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बयानुल क़ुरान हिसा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉटर इसरार अिमद) [1] For more books visit: www.tanzeem.org बयानुल क़ुरान हिसा दौम (दूसरा) तुमा व मुतसर तफ़सीर सूरि आले इमरान से सूरतुल मायदा तक अज़ डॉटर इसरार अिमद ِ ْ يِ ح الرِ نٰ ْ الرِ ه ܀ِ مْ سِ بअज़े मुरब “बयानुल क़ुरान” के क़ारुइन (पाठक) इस अ से वाक़क़फ ि क़क यि तफ़सीरी काहवश (यास) मोितरम डॉटर इसरार अिमद की तसनीफ़ या तालीफ़ नि िै, बहकक आँनाब के शिरि-ए-आफाक़ (हव हस) दौरा-ए- तुमा क़ ु रान को तरतीब व तवीद के मराहिल से ज़ुज़ार कर ुज़अन- ुज़अन क़कताबी सूरत म पेश क़कया ा रिा िै। नवबर 2008 ई० म बयानुल क़ुरान (हिसा अवल) तबअ (हट) िोकर आयी तो उसे इकमी िकक़ म बहत पज़ीराई (सरािना) िाहसल हई और उसके तीन एहडशन िथ-िाथ फ़रोत िो ज़ये। हिसा अवल के मंज़रे आम पर आने के साथ िी हिसा दौम की इशाअत (काशन) का तक़ाज़ा और मुतालबा ज़ोर पकड़ने लज़ा। उि क़दन हडहिट हाि पहललक कूल मंडी बिाउीन के हसपल लेहटटनट कनुल (ररटायडु) आहशक़ हसैन सािब (एुकेशन कोर) ने मोितरम डॉटर सािब (रहि०) से मुलाक़ात करके “बयानुल क़ुरान” की तरतीब व तवीद के काम म मुआवनत (मदद) की पेशकश की। इस पेशकश की िैहसयत हबलाशुबा ताईद ज़ैबी की थी। मोितरम कनुल सािब ने खाहलसतन रज़ा-ए-इलािी के हसूल की खाहतर दावते क़ुरानी की नशरो इशाअत के इस काम म कमािक़ मुआवनत फ़रमायी। अकलाि तआला उि दुहनया व आहिरत म इसकी भरपूर ज़ा अता फ़रमाये। मोितरम डॉटर इसरार अिमद की शदीद वाहिश थी क़क यि क़कताब कद ज़ेवरे तबअ से आराता िो, चुनाँचे राक़क़मुल हऱफ़ से ज़ािे-ब-ज़ािे इसकी पेशरटत (ज़हत) के बारे म इतफ़सार (ाँच) फ़रमाते रिते। इतेक़ाल से एक रोज़ क़ल भी इसके ेस हभवाये ाने का दरयाटत फ़रमाया। मोितरम डॉटर सािब (रहि०) आ िमारे दरहमयान मौूद नि ि , लेक़कन आप (रहि०) इतिाई खुशक़कमत ि क़क अपनी ियाते मुतआर क़ुरान िकीम के उलूम व मआरफ़ की नशरो इशाअत म ज़ुज़ार ज़ये। आप (रहि०) के िाथ दावत रूअ इलल क़ु रान का लज़ाया हआ पौधा आप (रहि०) की हज़दज़ी िी म एक तनावर दरत बन चुका था, ो अब सदक़ा-

अे ुत्त ाुल क़ुाdata.quranacademy.com/.../02-BQ(Part-02)hindi.pdf · 2019. 10. 18. · इ ा के ी ो हिस्से िैं, र्ो ु

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  • बयानुल क़ुरान हिस्सा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉक्टर इसरार अिमद) [1] For more books visit: www.tanzeem.org

    बयानुल क़ुरान

    हिस्सा दौम (दसूरा)

    तर्ुुमा व मुख़्तसर तफ़सीर

    सूरि आले इमरान

    से

    सूरतुल मायदा तक

    अज़

    डॉक्टर इसरार अिमद

    ِ

    ِْحي الرَّ

    ِنٰ ْْح ِ الرَّ

    هِم ّٰللا

    ْ بِس

    अज़ ेमरुत्तब “बयानुल क़ुरान” के क़ारुइन (पाठक) इस अम्र से वाक़क़फ िैं क़क यि

    तफ़सीरी काहवश (प्रयास) मोितरम डॉक्टर इसरार अिमद की तसनीफ़ या

    तालीफ़ निीं ि,ै बहकक आँर्नाब के शिरि-ए-आफाक़ (हवश्व प्रहसद्ध) दौरा-ए-

    तर्ुुमा क़ुरान को तरतीब व तस्वीद के मराहिल से ज़ुज़ार कर र्ुज़अन-

    र्ुज़अन क़कताबी सूरत में पेश क़कया र्ा रिा ि।ै नवम्बर 2008 ई० में

    बयानुल क़ुरान (हिस्सा अव्वल) तबअ (हप्रन्ट) िोकर आयी तो उस े इकमी

    िकक़ों में बहुत पज़ीराई (सरािना) िाहसल हुई और उसके तीन एहडशन

    िाथों-िाथ फ़रोख्त िो ज़ये। हिस्सा अव्वल के मंज़रे आम पर आने के साथ िी

    हिस्सा दौम की इशाअत (प्रकाशन) का तक़ाज़ा और मुतालबा ज़ोर पकड़न े

    लज़ा। उन्िीं क़दनों हडहस्िक्ट हर्न्नाि पहललक स्कूल मंडी बिाउद्दीन के

    प्रप्रहसपल लेहटटनेंट कनुल (ररटायड)ु आहशक़ हुसैन सािब (एर्ुकेशन कोर) न े

    मोितरम डॉक्टर सािब (रहि०) से मुलाक़ात करके “बयानुल क़ुरान” की

    तरतीब व तस्वीद के काम में मुआवनत (मदद) की पेशकश की। इस पेशकश

    की िहैसयत हबलाशुबा ताईद ज़ैबी की थी। मोितरम कनुल सािब न े

    खाहलसतन रज़ा-ए-इलािी के हुसूल की खाहतर दावत े क़ुरानी की नशरो

    इशाअत के इस काम में कमािक़ मुआवनत फ़रमायी। अकलाि तआला उन्िें

    दहुनया व आहिरत में इसकी भरपूर र्ज़ा अता फ़रमाये।

    मोितरम डॉक्टर इसरार अिमद की शदीद ख्वाहिश थी क़क यि क़कताब

    र्कद ज़ेवरे तबअ से आरास्ता िो, चनुाँचे राक़क़मुल हुरूफ़ से ज़ाि-ेब-ज़ाि े

    इसकी पेशरटत (प्रज़हत) के बारे में इस्तफ़सार (र्ाँच) फ़रमाते रिते।

    इन्तेक़ाल से एक रोज़ क़लल भी इसके पे्रस हभर्वाये र्ाने का दरयाटत

    फ़रमाया। मोितरम डॉक्टर सािब (रहि०) आर् िमारे दरहमयान मौर्ूद निीं

    िैं, लेक़कन आप (रहि०) इन्तिाई खुशक़कस्मत िैं क़क अपनी ियाते मुस्तआर

    क़ुरान िकीम के उलूम व मआरुफ़ की नशरो इशाअत में ज़ुज़ार ज़ये। आप

    (रहि०) के िाथों दावत रुर्ूअ इलल क़ुरान का लज़ाया हुआ पौधा आप

    (रहि०) की हज़न्दज़ी िी में एक तनावर दरख़्त बन चुका था, र्ो अब सदक़ा-

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    ए-र्ाररया की सरूत इहख़्तयार कर चकुा ि ैऔर उसके बरज़ो बार (फल-पत्ती)

    से एक आलम मुस्तफ़ीद व मुस्तफ़ीज़ (लाभाहन्वत) िो रिा ि।ै मोितरम

    डॉक्टर सािब (रहि०) यक़ीनन अपने हिस्स े का काम मुकम्मल कर ज़य,े

    लेक़कन इस हज़मन में िमें अपने हिस्से का काम करत े रिना ि।ै मोितरम

    डॉक्टर सािब (रहि०) ने बयानुल क़ुरान (हिस्सा अव्वल) के तबअ सानी के

    मौक़े पर अपनी “तक़दीम” में तिरीफ़ फ़रमाया था:

    “इस हर्कद में अभी हसफ़ु सूरतुल फ़ाहतिा और सूरतलु बक़रि की

    तर्ुुमानी हुई ि,ै ज़ोया क़क अभी पिाड़ र्ैसा भारी काम बाक़ी ि।ै

    तािम अकलाि तआला के फ़ज़लो करम से तवक्क़ो ि ैक़क र्ैसे उसने,

    मेरे क़कसी इराद ेया मंसूबाबदंी के बज़ैर और मेरी खाहलस लाइकमी में

    पेशे नज़र हर्कद शाया करा दी, वैसे िी बाक़ी भी शाया करा दज़ेा।

    ख्वाि खुद मेरी इस दहुनया से दारे आहिरत की र्ाहनब रवानज़ी के

    बाद िी सिी---”

    बयानुल क़ुरान (हिस्सा दौम) सूरि आले इमरान, सूरतुहन्नसा और सूरतुल

    मायदा की तर्ुुमानी पर मुश्तहमल ि।ै अकलाि तआला इस हखदमते क़ुरानी

    को शफे क़ुबूल अता फ़रमा कर इस े िमारे हलये दनुयवी व उखरवी फौज़ो

    फलाि का बाइस बनाये और िमें वि हिम्मत व इस्तक़ामत अता फ़रमाये र्ो

    इस अज़ीम काम की तकमील के हलये दरकार ि।ै आमीन!

    18 मई, 2010

    िाक़फज़ खाहलद मिमूद हखज़र

    मुदीर शौबा मतबुआत, क़ुरान अकेडमी लािौर

    सूरि आल ेइमरान

    तम्िीदी कहलमात

    क़ुरान िकीम के आज़ाज़ में वाक़ेअ मक्की और मदनी सरूतों के पिल ेगु्रप में

    मदनी सूरतों के र्ो दो र्ोड़ े आये िैं, उनमें स े पिले र्ोड़ े की पिली सूरत

    “सूरतुल बक़रि” के तर्ुुमे और मुख़्तसर तशरीि की िम तकमील कर चुके िैं,

    और अब िमें इस र्ोड़ ेकी दसूरी सूरत “आले इमरान” का मुताअला करना ि।ै

    यि बात पिल े बयान िो चुकी ि ै क़क दो चीज़ों के माबैन र्ोड़ा िोने की

    हनस्बत यि ि ैक़क उन दोनों चीज़ों में ज़िरी मुशालित भी िो लेक़कन कुछ फ़क़ु

    भी िो, और यि फ़क़ु ऐसा िो र्ो एक-दसूरे के हलये तक्मीली

    (complementary) नौइयत का िो, याहन एक-दसूरे से हमल कर क़कसी

    मक़सद की तकमील िोती िो। यि हनस्बत ेज़ौहर्यत की िक़ीक़त ि।ै

    सूरतुल बक़रि और सूरि आले इमरान में मुशालित के नमुाया पिलु यि

    िैं की दोनों हुरूफे मुक़त्तआत “امل” से शुरू िोती िैं। दोनों के आज़ाज़ में क़ुरान मर्ीद की अज़मत का बयान ि,ै अज़रचे सरूि आले इमरान में इसके साथ िी

    तौरात और इन्र्ील का बयान भी ि।ै क़फर यि क़क दोनों के इख्तताम पर बड़ी

    अज़ीम आयात आयी िैं। सूरतुल बक़रि के इख्तताम पर वाररद आयात िम

    पढ़ चुके िैं। उसकी आखरी आयत को क़ुरान िकीम की अज़ीम तरीन दआुओं

    में से शुमार क़कया र्ा सकता ि:ै {..... ِسْينَ ِاْن ن َََٓن َرب ََنا ََل تَُؤاِخْذََن

    ْ اَْو اَْخَطا

    ٓا } सरूि आल े

    इमरान के आखरी रुकूअ में भी एक हनिायत र्ामेअ दआु आयी ि ैर्ो तीन-

    चार आयतों में फैली हुई ि।ै क़फर र्ैसे मैंने आपको बताया, सूरतुल बक़रि भी

    सूरतुल उम्मातनै ि,ै दो उम्मतों स ेहिताब और ज़ुटतज़ू कर रिी ि,ै और यिी

    मामला सूरि आले इमरान का भी ि।ै फ़क़ु यि ि ैक़क सूरतुल बक़रि में ज़्यादा

    ज़ुटतज़ू यहूद के बारे में ि ैऔर सरूि आल ेइमरान में नसारा के बारे में। तो

    ज़ोया इस तरि अिले क़कताब से ज़ुटतज़ू की तकमील िो रिी ि।ै अिले क़कताब

    में से “यहूद” अिमतर तबक़ा था और दीनी ऐतबार से उनकी अिहमयत

    ज़्यादा थी, ख्वाि तादाद में वि कम थे और कम िैं। दसूरा तबक़ा ईसाईयों का

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    ि,ै हर्नका तज़क़करा सरूतुल बक़रि में बहुत कम आया ि,ै लेक़कन सरूि आल े

    इमरान में ज़्यादा हिताब उनसे ि।ै क़फर र्सैे सरूतुल बक़रि के दो तक़रीबन

    मसावी हिस्से िैं, पिला हनस्फ़ 18 रुकूओं और 152 आयात पर मुश्तहमल ि ै

    और हनस्फ़े सानी 22 रुकूओं लेक़कन 134 आयात पर मुश्तहमल ि,ै विी

    कैक़फ़यत सरूि आले इमरान में ब-तमामो-कमाल हमलती ि।ै सरूि आल े

    इमरान के भी दो हिस्से िैं, र्ो बहुत मसावी िैं। इसके कुल 20 रुकूअ िैं, 10

    रुकूअ हनस्फ़े अव्वल में िैं और 10 रुकूअ िी हनस्फ़े सानी में। पिले 10 रुकूओं

    में 101 आयात और दसूरे 10 रुकूओं में 99 आयात िैं। याहन हसफ़ु एक आयत

    का फ़क़ु ि।ै क़फर र्ैसे सरूतुल बक़रि में हनस्फ़े अव्वल के तीन हिस्से िैं वैसे िी

    यिाँ भी हनस्फ़े अव्वल के तीन हिस्से िैं, लेक़कन यिा ँ तक़सीम रुकूओं के

    ऐतबार से निीं बहकक आयात के ऐतबार से ि।ै इस सूरि मुबारका की

    इलतदाई 32 आयात इसी तरि तम्िीदी कलाम पर मुश्तहमल िैं र्ैसे सूरतुल

    बक़रि के इलतदाई चार रुकूअ िैं। सूरतुल बक़रि में रुए सुखन इलतदा िी स े

    यहूद की तरफ़ िो ज़या ि,ै र्बक़क यिाँ रुए सुखन इलतदा िी से नसारा की

    तरफ़ ि।ै

    इलतदाई 32 आयात के बाद 31 आयात में िास तौर पर नसारा से बरािे

    रास्त हिताब ि।ै िज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की हवलादत क़कन िालात में

    हुई, उनका मक़ाम और मरतबा क्या था, उनकी असल िहैसयत क्या थी, और

    क़फर यि क़क उनके साथ क्या मामला हुआ, इस हिस्से में यि मज़ामीन

    शाहमल िैं। इस सूरि मुबारका का अक्सरो बेशतर हिस्सा 3 हिर्री में

    ग़ज़वा-ए-ओिद के बाद नाहज़ल हुआ ि,ै लेक़कन 31 आयात पर मुश्तहमल यि

    हिस्सा 9 हिर्री में नाहज़ल हुआ। “नर्रान” अरब के र्ुनूब में यमन की

    र्ाहनब एक बस्ती थी और विाँ ईसाई आबाद थे। विाँ के ईसाईयों के सरदार

    और पादरी कोई सत्तर आदहमयों का एक वफद लेकर रसलू अकलाि ملسو هيلع هللا ىلص की

    हिदमत में यि बात समझने-समझाने के हलये क़क आप ملسو هيلع هللا ىلص क़कस बात की

    दावत द े रि े िैं, मदीना मुनव्वरा िाहज़र हुए और वि लोज़ कई क़दन विा ँ

    मुक़ीम रि।े उन्िोंने बात पूरी तरि समझ भी ली और िामोश भी िो ज़ये,

    लेक़कन क़फर भी बात निीं मानी तो आँहुज़रू ملسو هيلع هللا ىلص ने उन्िें मुबाहिले की दावत

    दी, लेक़कन वि इस चैलेंर् को क़ुबूल क़कये बज़ैर विाँ से चले ज़ये। उन्िोंन े

    रसूल अकलाि ملسو هيلع هللا ىلص की दावत की हशद्दत के साथ तरदीद (इन्कार) निीं की

    और उसे क़ुबूल भी निीं क़कया। सूरि आले इमरान की यि 31 आयात

    नर्रान के ईसाईयों से हिताब के तौर पर नाहज़ल हुईं। सरूतुल बक़रि के बारे

    में एक बात बयान िोने से रि ज़यी थी क़क उसके रुकूअ 38 की आयात हर्नमें

    सूद स ेमुताहकलक़ आखरी अिकाम िैं, यि भी तक़रीबन 9 हिर्री में नाहज़ल

    हुई िैं। ज़ोया मुशाबित का यि पिलु भी दोनों सूरतों में मौर्ूद ि।ै सूरतुल

    बक़रि का अक्सरो बेशतर हिस्सा अज़रच े ज़ज़वा-ए-बद्र से क़लल नाहज़ल

    हुआ, लेक़कन उसकी कुछ आयात 9 हिर्री में नाहज़ल हुईं। इसी तरि सूरि

    आले इमरान का अक्सरो बेशतर हिस्सा अज़रचे ज़ज़वा-ए-ओिद के बाद 3

    हिर्री में नाहज़ल हुआ, लेक़कन नर्रान के ईसाईयों से हिताब के हज़मन में

    आयात 9 हिर्री में नाहज़ल हुईं। क़फर र्सैे सूरतलु बक़रि के हनस्फ़े अव्वल के

    आखरी हिस्स े (रुकूअ 15, 16, 17, 18) में िज़रत इब्रािीम अलैहिस्सलाम

    और खाना काबा का हज़क्र था इस तरि से यि बात आपको यिाँ भी हमलेज़ी।

    यिाँ भी अिले क़कताब को उसी अंदाज़ में दावत दी ज़यी ि ै र्ैस े सूरतुल

    बक़रि के सौलिवें रुकूअ में दी ज़यी ि।ै सूरि आल ेइमरान के हनस्फ़े अव्वल

    का यि तीसरा हिस्सा 38 आयात पर मुश्तहमल ि,ै र्ो बहुत अिम और

    र्ामेअ आयात िैं।

    सूरतुल बक़रि और सूरि आले इमरान दोनों के हनस्फ़े सानी का आज़ाज़

    ِذْْيَ ٓاَمُنوا“َا ال َ ُ ّي

    َ के अकफ़ाज़ से िोता ि।ै र्ैस ेसरूतुल बक़रि के उन्नीसवें रुकूअ ”ٰٓيٓसे हनस्फ़े सानी का आज़ाज़ िोता िै:

    ا َ هُّي

    َا ٰٓي

    َ ِْْبِْي

    ه الص

    َعَ مَ ه ّٰللا

    َّوِة ۭ ِان

    ٰلَّالص

    َِ وْْبَّا ِِبلص

    ْوُنِْعيَتْوا اس

    ُنَمٰ اَ ِْذْي

    َّ

    ٥٣ال

    इस तरि सूरि आले इमरान के ग्यािरवें रुकूअ से इसके हनस्फ़े सानी का

    आज़ाज़ िोता ि:ै

    ْوُ َ َتََلَِتٖھ و

    ٰقُ تَّقَ حَ هوا ّٰللا

    ُقَّوا ات

    ُنَمٰ اَ ِْذْي

    َّ

    ا الَھهي

    َا ٰٓي

    َنْوُِلمْسه مْ ُُتْنَاَ وَّ ِاَلَُّ

    ١٠٢ُت

    सूरि आल ेइमरान का हनस्फ़े सानी दस रुकूओं पर मुश्तहमल ि ैऔर इनकी

    तक़सीम उमूदी ि,ै उफ़ुक़ी निीं ि।ै पिले दो रुकूओं में हिताब ज़्यादातर

    मुस्लमानों से ि,ै क़फर अज़रचे रुए सुखन अिल ेक़कताब की तरफ़ भी ि।ै इसके

    बाद मुसलसल छ: रुकूअ ज़ज़वा-ए-ओिद के िालात पर मुश्तहमल िैं। याहन

    इस हज़मन में र्ो मसाइल सामने आये उन पर तबहसरा, मुस्लमानों स ेर्ो

    ज़लहतयाँ हुईं उन पर हज़रटत और आइन्दा के हलये हिदायात। यि तक़रीबन

    60 आयात िैं र्ो छ: रुकूओं पर फैली हुई िैं। यि ज़ोया “ज़ज़वा-ए-ओिद” के

    उन्वान से क़ुरान मर्ीद का एक मुस्तक़क़ल बाब (chapter) ि।ै लेक़कन क़ुरान

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    में इस तरि से अबवाब निीं बनाये ज़ये िैं, बहकक इसकी सूरतें िैं। र्सैा क़क

    इलतदा में “तआरुफ़े क़ुरान” के हज़मन में अज़ु क़कया र्ा चकुा ि,ै क़ुरान खुत्बात े

    इलाहिया का मर्मुआ ि।ै एक िुत्बा नाहज़ल िो रिा ि ै और इसके अन्दर

    मुख्तहलफ़ मज़ामीन बयान िो रि ेिैं, लेक़कन इनमें एक रलत और तरतीब ि।ै

    अब तक इस रलत और तरतीब पर तवज्जो कम हुई ि,ै लेक़कन इस दौर में

    क़ुरान िकीम के इकम व मारफ़त का यि पिलु ज़्यादा नुमाया हुआ ि ै क़क

    इसमें बड़ा नज़्म ि,ै इसके अन्दर तंज़ीम ि,ै इसमें आयात का आपस में रलत ि,ै

    सूरतों का सरूतों से रलत ि।ै यि ऐसे िी बेरलत और अलल टप कलाम निीं ि।ै

    इस सूरि मुबारका के आिरी दो रुकूअ बहुत अिम िैं। उनमें स े भी

    आखरी रुकूअ तो बहुत िी र्ामेअ ि।ै इसमें वि अज़ीम दआु भी आयी ि ै

    हर्सका हज़क्र मैंने अभी क़कया, और फ़लसफ़ा-ए-ईमान के बारे में अिम तरीन

    बिस भी उस मक़ाम पर आयी ि।ै और उससे पिले का रुकूअ याहन उन्नीसवा

    रुकूअ भी बड़ ेर्ामेअ मज़ामीन पर मुश्तहमल ि ैऔर उसमें दर िक़ीक़त पूरी

    सूरि मुबारका के मज़ामीन को sum-up क़कया ज़या ि।ै

    इन दोनों सूरतों के माबैन हनस्बते ज़ौहर्यत के िवाले से आप दखेेंज़े क़क

    बाज़ मक़ामात पर तो अकफ़ाज़ भी विी आ रि ेिैं, विी अदंाज़ ि।ै र्ैसे सरूतुल

    बक़रि की आयत 136 में फ़रमाया ज़या: “(ऐ मुस्लमानों!) तुम किो िम

    ईमान रखते िैं अकलाि पर और र्ो कुछ िम पर नाहज़ल क़कया ज़या और र्ो

    कुछ इब्रािीम अलैहिस्सलाम और इस्माइल अलैहिस्सलाम और इसिाक़

    अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम और औलाद े याक़ूब पर नाहज़ल

    क़कया ज़या.....।” हबककुल यिी मज़मून सूरि आले इमरान की आयत 84 में

    आया ि।ै िज़रत इब्रािीम अलैहिस्सलाम का हज़क्र भी दोनों सरूतों में हमलता

    ि।ै यहूद के बारे में {.... َنُةَُة َواْلَمْسك

    ل َ ُِم الذ ْْيِ

    َبْت َعلَ े वाली आयत सरूि आल {َوُُضِइमरान में भी ि,ै ज़रा तरतीब का फ़क़ु ि।ै [क़ुरान मर्ीद में ऐसे मक़ामात

    “मुतशाबाि” किलाते िैं और यि हुटफ़ाज़ के हलये मुहश्कल तरीन मक़ाम िोत े

    िैं क़क तेज़ी और रवानी में वि इससे मुशाबेि दसूरे मक़ाम पर मुन्तक़क़ल िो

    र्ाते िैं।] इन दोनों सूरतों के मज़ामीन के अन्दर आपको इतनी ज़िरी

    मुनास्बत नज़र आयेज़ी हर्सको मैंन ेज़ौहर्यत से तशबीि दी ि।ै ज़ाहिर बात

    ि ै क़क िर िवैान का र्ोड़ा र्ो िोता ि ैवि तक़रीबन नलबे फ़ीसद तो एक-

    दसूरे से मुशाबेि िोता ि ैलेक़कन उसमें कोई दस फ़ीसद का फ़क़ु भी िोता ि,ै

    और वि फ़क़ु भी ऐसा िोता ि ै क़क दोनों के र्मा िोने से क़कसी मक़सद की

    तकमील िो रिी िोती ि।ै र्ैसा क़क आपको मालूम ि,ै मद ुऔर औरत एक-

    दसूरे से मुशाबेि िैं, लेक़कन हर्न्स के ऐतबार से मद ुऔर औरत के हर्स्म में

    फ़क़ु ि।ै अलबत्ता दोनों के हमलाप से मक़सद ेतनासुल याहन पैदाइशे औलाद

    और अफ़ज़ाइशे नस्ल (नस्ल में वृहध) िाहसल िो रिा ि,ै र्ो एक तरफ़ा तौर

    पर िाहसल निीं िो सकता। यि हनस्बते ज़ौहर्यत क़ुरान मर्ीद की सूरतों में

    अक्सरो बेशतर ब-तमाम-ओ-कमाल मौर्ूद ि।ै अलबत्ता इस हज़मन में ज़िरे

    तदलबुर की ज़रूरत ि।ै क़ुरान में ज़ौरो क़फ़क्र क़कया र्ाय,े सोच-हवचार क़कया

    र्ाये तो क़फर इस नज़म क़ुरान के िवाले स े इज़ाफ़ी मायने, इज़ाफ़ी इकम,

    इज़ाफ़ी माफ़ुत और इज़ाफ़ी हिकमत के खज़ाने खुलते िैं। मैं सूरतुल बक़रि

    की तम्िीद में यि बता चकुा हू ँक़क नबी अकरम ملسو هيلع هللا ىلص ने इन दोनों सरूतों को

    “अज़्ज़ािरावैन” का नाम क़दया ि,ै याहन दो हनिायत ताबनाक और रोशन

    सूरतें। र्सैे क़ुरान मर्ीद की आखरी दो सूरतों सरूतुल फ़लक़ और सूरतुन्नास

    को “अल मुअव्वज़ातैन” का नाम क़दया ज़या ि ै इसी तरि क़ुरान िकीम के

    आज़ाज़ में वाररद इन दोनों सूरतों को “अज़्ज़ािरावैन” का नाम क़दया ज़या ि।ै

  • बयानुल क़ुरान हिस्सा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉक्टर इसरार अिमद) [5] For more books visit: www.tanzeem.org

    ِِب ُذْوُعَھِ لا

    ه ل

    ِ

    ِْجي

    َّ الرِنٰطْیَّ الش

    َِِم

    ِ

    ِْحي

    َّ الرِنٰ ْْحَِّ الر

    هِم ّٰللا

    ْ بِس

    आयात 1 स े9 तक

    َّمۗـۗمُ ۙ Ǻال وْ يه

    َق

    ْ

    ه الَـَح

    ْ

    الَوُ ھَّ ِاَلَهٰ ِالٓ َ َلُ هَِما ۭۙ Ąّٰللا

    ا لًق ِ دَصُ مِ

    قَ ْ

    َب ِِبْلِٰكت

    ْ

    الَكْيَلَ ع

    َ

    لَّ ََن

    َلْي ِ

    ْ

    ْن ِ

    ْاَلَ وَىةٰرْوَّ الت

    َ

    لَ َْنَاَِه وْيَدَ يَ ْْيَانَ ڛ ِانَّ ۙ Ǽب

    َقْرُف

    ْ

    ال

    َ

    لَ َْنَاَاِس و

    َِّلن ى لًدُ ھُلْبَ قِِْم

    اٍم اَِتقْو انُ ذٌ ِْزْيَ عُ هّٰللاَ ۭ وٌدِْديَ شٌاب

    َذَ عْمُھَِ لهِت ّٰللا

    ٰي

    ٰ

    ا ِِبْوُرَفَ كَ ِْذْي

    َّ Ćۙل

    َ َلَ ه ّٰللا

    َِّان

    ِء

    ۗ

    َماَّ ِِف الس

    ََلَِض و

    ْرَ ْ ِِف اَل

    ٌءْ َِه َش

    ْيَلَ ع

    ٰٰفْ َاِم ۭۙ Ĉَي حَ رْ

    َ ْ ِِف اَل

    ُْ

    ُكُر ِ وَصُ يِْذيَّ الَوُھ

    اِ ٓ َ ۭ َلُء

    ۗ

    اَشَ يَفْيَ ك

    ُ ِْكيَ ْ

    اْلُ ِْزْيَع

    ْ

    الَوُ ھَّ ِاَلَهٰيٰتٌ Čۙل هُ اٰ َب ِمنْ ِكتٰ

    ْ

    الَكْيَلَ ع

    َ

    لَ َْنَ آِْذيَّ الَوُھ

    ا َ مَنْوُِبعَّتَيَ فٌغْيَ زِِْبِم

    ْوُلُ قْ ِِفَ ِْذْي

    َّا الَّم

    َ

    اَۭ فٌتِِٰبٰشَتُ مُرَخُاَِب و

    ِٰكت

    ْ

    الهمُنَّ اُ ھٌتَٰ

    َكْ هُّم

    َء

    ۗ

    اَِتغْ ابُهْ ِمنَهَابَشَ ِِف ت

    َنْوُِِس الره

    َ ڤ وُ ه ّٰللا

    َّ ِاَلٗٓهَلِْوي

    ْ َ َتُمَلْعَا يَمَِلٖه څ و

    ِْوي

    ْ َ َتَء

    ۗ

    اَِتغْابَِة وَنِْفت

    ْ

    ال

    اِب َب

    ْ

    لَ ْوا اَل

    ُولُ آ َّ ِاَلُرَّكَّذَا يَمَا ۚ وَِن بَِد رْ ِعنِْ

    ِم

    ٌّ ُا ِبٖه ُك

    َّنَمٰ اَنْوُلْوُقَِم يِْعل

    ْ

    Ċۙالَا َلَنَّبَر

    َبْوُلُ ق

    ْ

    غ ِ

    ُ ُت

    ُابَّھَو

    ْ

    الَتْنَ اَكَّ ۚ ِانًةَ ْْحَ رَكْنُدَّ لْا ِِم

    َنَ لْبَھَا وَنَتْيَدَ ھْ ِاذَدْعَا بَ Ďۙن

    ٓ

    اَنَّبَر

    َادَعِْمي

    ْ

    الُِلفْ ُ َيَ َلَ ه ّٰللا

    َِّهۭ ِان

    َْب ِفي

    ْيَ رٍَّم َل

    ْوَاِس لِي

    َّ النُاِمع

    َ جَكَّ Ḍِان

    ۙ

    आयत 1

    “अहलफ़। लाम। मीम।” َّمۗـۗ ۙ Ǻال

    यि हुरूफ़े मुक़त्तआत िैं हर्नके बारे में इज्माली ज़ुटतज़ू िम सूरतुल बक़रि के

    आज़ाज़ में कर चकेु िैं।

    आयत 2

    “अकलाि वि मअबूदे बरिक़ ि ै हर्सके हसवा

    कोई इलाि निीं, वि हज़न्दा ि,ै सबका क़ायम

    रखने वाला ि।ै”

    ُمْوهيَق

    ْ

    ه الَـَح

    ْ

    الَوُ ھَّ ِاَلَهٰ ِالٓ َ َلُ ه Ąّٰللا

    ۭۙ

    यि अकफ़ाज़ सूरतुल बक़रि में आयतुल कुरसी के आज़ाज़ में आ चुके िैं। एक

    िदीस में आता ि ैक़क अकलाि तआला का एक इस्मे आज़म ि,ै हर्सके िवाल े

    से अज़र अकलाि से कोई दआु माँज़ी र्ाये तो वि ज़रूर क़ुबूल िोती ि।ै यि

    तीन सूरतों अल बक़रि, आल ेइमरान और तािा में ि।ै(1)

    आँहुज़ूर ملسو هيلع هللا ىلص ने तअय्युन के साथ निीं बताया क़क वि इस्मे आज़म कौन

    सा ि,ै अलबत्ता कुछ इशारे क़कये िैं। र्ैसे रमज़ानुल मुबारक की एक शब

    “लय्लतुल क़द्र” र्ो िज़ार मिीनों से अफ़ज़ल ि,ै उसके बारे में तअय्यनु के

    साथ निीं बताया क़क वि कौनसी ि,ै बहकक फ़रमाया:

    َواِخِ ِِف اْلِوْرِ َفاْلَتِمُسْوَھا ِِف اْلَعْْشِ اَْلَ “उसे आखरी अशरे की ताक़ रातों में तलाश करो।”(2)

    ताक़क ज़्यादा ज़ोक़ व शौक़ का मामला िो। इसी तरि इस्मे आज़म के बारे में

    आप ملسو هيلع هللا ىلص ने इशारात फ़रमाये िैं। आप ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़रमाया क़क यि तीन सरूतों

    सूरतुल बक़रि, सरूि आले इमरान और सूरि तािा में ि।ै इन तीन सूरतों में

    र्ो अकफ़ाज़ मुश्तरक (common) िैं वि “अल िय्युल क़य्यूम” िैं। सूरतलु

    बक़रि में यि अकफ़ाज़ आयतुल कुरसी में आये िैं, सूरि आले इमरान में यिा ँ

    दसूरी आयत में और सरूि तािा की आयत 111 में मौर्ूद िैं।

    आयत 3

    “उसने नाहज़ल फ़रमायी ि ैआप पर (ऐ नबी

    ”यि क़कताब िक़ के साथ (ملسو هيلع هللا ىلص

    ِ

    قَ ْ

    َب ِِبْلِٰكت

    ْ

    الَكْيَلَ ع

    َ

    لَّ َ َن

    उस अकलाि ने हर्सके हसवा कोई मअबूद निीं, र्ो अलिय्य ि,ै अल क़य्यूम

    ि।ै इसमें इस कलाम की अज़मत की तरफ़ इशारा िो रिा ि ैक़क र्ान लो यि

    कलाम क़कसका ि,ै क़कसने उतारा ि।ै और यिा ँनोट कीहर्ये, लटज़ नज्ज़ला

    आया ि,ै अन्ज़ला निीं आया।

    “यि तसदीक़ करते हुए आयी ि ै उसकी र्ो

    इसके सामने मौरू्द ि”ै هِ

    ْيَدَ يَ ْْيََِما ب

    ا لًق ِ دَصُ م

    याहन तौरात और इन्र्ील की र्ो इसस े पिले नाहज़ल िो चुकी िैं। क़ुरान

    िकीम साबक़ा कुतबे समाहवया की दो ऐतबार से तसदीक़ करता ि।ै एक यि

    क़क वि अकलाि की क़कताबें थीं हर्नमे तिरीफ़ िो ज़यी। दसूरे यि क़क क़ुरान

  • बयानुल क़ुरान हिस्सा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉक्टर इसरार अिमद) [6] For more books visit: www.tanzeem.org

    और मुिम्मद रसूल अकलाि ملسو هيلع هللا ىلص उन पेशनज़ोइयों का हमस्दाक़ बन कर आय े

    िैं र्ो उन क़कताबों में मौर्ूद थीं।

    “और उसन े तौरात और इन्र्ील नाहज़ल

    फ़रमायी थीं।” َلْي ِ

    ْ

    ْن ِ

    ْاَلَ وَىةٰرْوَّ الت

    َ

    لَ َْنَاَ ۙ Ǽو

    आयत 4

    “इससे पिल ेलोज़ों की हिदायत के हलये” اِس

    َِّلن ى لًدُ ھُلْبَ قْ ِِم

    “और अकलाि न ेफ़ुरक़ान उतारा।” ڛ

    َانَقْرُف

    ْ

    ال

    َ

    لَ َْنَاَ و

    “फुरक़ान” का हमस्दाक़ क़ुरान मर्ीद भी ि,ै तौरात भी ि ैऔर मौज्ज़ात भी

    िैं। सूरतुल अन्फ़ाल में “यौमुल फ़ुरक़ान” ज़ज़वा-ए-बद्र के क़दन को किा ज़या

    ि।ै िर वि शय र्ो िक़ को हबककुल मुबरिन कर द ेऔर िक़ व बाहतल के

    माबैन इहम्तयाज़ पैदा कर द ेवि फ़ुरक़ान ि।ै

    “बेशक हर्न लोज़ों न ेअकलाि की आयात का

    इन्कार क़कया उनके हलये सख्त अज़ाब ि।ै”

    ٌاب

    َذَ عْمُھَِ لهِت ّٰللا

    ٰي

    ٰ

    ا ِِبْوُرَفَ كَ ِْذْي

    َّ

    الَِّان

    ۭ ٌدِْديَ ش

    यिाँ अब तिदीद और धमकी का अंदाज़ ि ैक़क इस क़ुरान का मामला दहुनया

    की दसूरी क़कताबों की तरि ना समझो क़क मान हलया तब भी कोई िर्ु निीं,

    ना माना तब भी कोई िर्ु निीं। अज़र पढ़ने पर तबीयत राहज़ब हुई तो भी

    कोई बात निीं, तहबयत राहज़ब निीं ि ैतो मत पढ़ो, कोई इकज़ाम निीं। यि

    क़कताब वैसी निीं ि,ै बहकक यि वि क़कताब ि ै क़क र्ो इस पर ईमान निीं

    लायेंज़े तो उनके हलये बहुत सख्त सज़ा िोज़ी।

    “और अकलाि तआला ज़बरदस्त ि,ै इन्तेक़ाम

    लेन ेवाला ि।ै” اٍم

    َِتقْو انُ ذٌ ِْزْيَ عُ هّٰللاَ Ćۙو

    यि लटज़ इस ऐतबार से बहुत अिम ि ैक़क अकलाि तआला बेशक रऊफ़ ि,ै

    रिीम ि,ै शफ़ीक़ ि,ै ज़फ़ूर ि,ै सत्तार ि,ै लेक़कन साथ िी “عززی ذوانتقام” भी ि,ै भी ि।ै अकलाि तआला की यि दोनों शानें क़कब व ज़िन में ”شدیُد العقاب“रिनी चाहिये।

    आयत 5

    “यक़ीनन अकलाि पर कोई शय भी मख्फ़ी

    निीं ि,ै ना आसमान में ना ज़मीन में।” ِِف ََلَِض و

    ْرَ ْ ِِف اَل

    ٌءْ َِه َش

    ْيَلَ عٰٰفْ َ َيَ َلَ ه ّٰللا

    َِّان

    ِء

    ۗ

    َماَّ Ĉالس

    ۭۙ

    आयत 6

    “विी ि ै र्ो तुम्िारी सूरतज़री करता ि ै

    (तुम्िारी माँओ के) रिमों में हर्स तरि

    चािता ि।ै”

    َفْيَاِم ك

    َحْرَ ْ ِِف اَل

    ُْ

    ُكُر ِ وَصُ يِْذي

    َّ

    الَوُھ

    ۭ ُء

    ۗ

    اَشَ ي

    पिली चीज़ अकलाि के इकम से मुताहकलक़ थी और यि अकलाि की क़ुदरत स े

    मुताहकलक़ ि।ै विी ि ैर्ो तमु्िारी नक़्शाकशी कर दतेा ि,ै सूरत बना दतेा ि ै

    तुम्िारी माँओ के रिमों में र्ैसे चािता ि।ै क़कसी के पास कोई इहख़्तयार

    (choice) निीं ि ैक़क वि अपना नक़्शा खुद बनाये।

    “उसके हसवा कोई मअबूद निीं, वि ग़ाहलब

    और िकीम ि।ै” ُ ِْكيَ ْ

    اْلُ ِْزْيَع

    ْ

    الَوُ ھَّ ِاَلَهٰ ِالٓ َ Čَۙل

    आयत 7

    “विी ि ै हर्सने आप ملسو هيلع هللا ىلص पर यि क़कताब

    नाहज़ल फ़रमायी” َب

    ِٰكت

    ْ

    الَكْيَلَ ع

    َ

    لَ َْنَ آِْذي

    َّ

    الَوُ ھ

    क़कसी-क़कसी र्ज़ि नज्ज़ला के बर्ाय अन्ज़ला का लटज़ भी आ र्ाता ि,ै और

    यि आिज़ं (rhythm) के ऐतबार स ेिोता ि,ै क्योंक़क क़ुरान मर्ीद का अपना

    एक मलाकूती हज़ना (Divine Music) ि,ै इसमें अज़र आिज़ं के िवाले स े

    ज़रुरत िो तो यि अकफ़ाज़ एक-दसूरे की र्ज़ि आ र्ाते िैं।

    “इसमें मोिकम आयात िैं और विी असल

    क़कताब िैं”

    ْ

    الهم

    ُ

    نَّ اُ ھٌتَٰ

    َكْ ه ُّمٌتٰيٰ اُهِْب ِمن

    ٰ ِكت

    “मोिकम” और पुख्ता आयात वि िैं हर्नका मफ़हूम हबककुल वाज़ेि िो और

    हर्न्िें इधर से उधर करने की कोई ज़ंुर्ाइश ना िो। इस क़कताब की र्ड़,

    बुहनयाद और असास विी िैं।

  • बयानुल क़ुरान हिस्सा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉक्टर इसरार अिमद) [7] For more books visit: www.tanzeem.org

    “और कुछ दसूरी आयतें ऐसी िैं र्ो मतुशाबेि

    िैं।” ۭ

    ٌتِِٰبٰشَتُ مُرَخ

    ُ

    اَ و

    हर्नका िक़ीक़ी और सिी-सिी मफ़हूम मुअय्यन करना बहुत मुहश्कल बहकक

    आम िालात में नामुमक़कन ि।ै इसकी तफ़सील तआरुफ़े क़ुरान के हज़मन में

    अज़ु की र्ा चकुी ि।ै आयतलु अिकाम हर्तनी भी िैं वि सब मोिकम िैं, क़क

    यि करो यि ना करो, यि िलाल ि ैयि िराम! र्ैसा क़क िमने सरूतुल बक़रि

    में दखेा क़क बार-बार “ ْم کُِتَب َُعلَْیک ” के अकफ़ाज़ आते रि।े मैं अज़ु कर चुका हू ँ

    क़क क़कताब दरिक़ीक़त ि ै िी मर्मुआ-ए-अिकाम। लेक़कन हर्न आयात में

    अकलाि तआला की ज़ात व हसफ़ात की बिस ि ैउनका फ़िम आसान निीं ि।ै

    अकलाि की ज़ात व हसफ़ात का िम क्या तसव्वुर कर सकते िैं? अकलाि का

    िाथ, अकलाि का चेिरा, अकलाि की कुरसी, अकलाि का अशु, इनका िम

    क्या तसव्वुर करेंज़े? इसी तरि फ़ररश्ते आलमे ज़ैब की शय िैं। आलमे बरज़ख

    की क्या कैक़फ़यत ि?ै क़ब्र में क्या िोता ि?ै िम निी समझ सकते। आलमे

    आहिरत, र्न्नत और दोज़ि की असल िक़ीक़तें िम निी समझ सकते। चुनाचँ े

    िमारी ज़िनी सति के क़रीब लाकर कुछ बातें िमें बता दी ज़यी िैं क़क

    ٗہ ُ ٗہ ََل یُْْتَُک ُک

    ُ । चुनाँचे इनका एक इज्माली तसव्वरु क़ायम िो र्ानाَما ََل یُْدَرُک ُک चाहिये, इसके बज़ैर आदमी का रास्ता सीधा निीं रिज़ेा। लेक़कन इनकी

    तफ़ासील में निीं र्ाना चाहिये। दसूरे दर्े में मैंने आपको बताया था क़क कुछ

    तबीअयाती मज़ाहिर (Physical Phenomena) भी एक वक़्त तक आयात े

    मुतशाबेिात में से रि ेिैं, लक़ेकन र्सैे-र्ैसे साइंस का इकम बढ़ता चला र्ा

    रिा ि,ै रटता-रटता इनकी िक़ीक़त से पदाु उठता चला र्ा रिा ि ैऔर अब

    बहुत सी चीज़ें मोिकम िोकर िमारे सामने आ रिी िैं। तािम अब भी बाज़

    चीज़ें ऐसी िैं हर्नकी िक़ीक़त स े िम बेखबर िैं। र्ैस े िम अभी तक निीं

    र्ानते क़क सात आसमान से मुराद क्या ि?ै िमारा यक़ीन ि ै क़क इन्शा

    अकलाि वि वक़्त आयेज़ा क़क इन्सान समझ लेज़ा क़क िाँ यिी बात सिी थी

    और यिी ताबीर सिी थी र्ो क़ुरान ने बयान की थी।

    “तो वि लोज़ हर्नके क़दलों में कर्ी िोती ि ै

    वि पीछे लज़त ेिैं उन आयात के र्ो उनमें से

    मुतशाबेि िैं”

    ا َ مَنْوُِبعَّتَيَ فٌغْيَ زِِْبِم

    ْوُلُ قْ ِِفَ ِْذْي

    َّ

    ا الَّم

    َ

    اَف

    ُهْ ِمنَهَابَشَ ت

    “क़फ़तने की तलाश में” ةِ

    َنِْفت

    ْ

    الَء

    ۗ

    اَِتغْ اب

    वि चािते िैं क़क कोई िास नयी बात हनकाली र्ाये ताक़क अपनी ज़िानत

    और फ़तानत का डकंा बर्ाया र्ा सके या कोई क़फ़तना उठाया र्ाय,े कोई

    फ़साद पैदा क़कया र्ाये। हर्नका अपना ज़िन टेढ़ा िो चुका ि ैवि उस टेढ़े

    ज़िन के हलये क़ुरान स ेकोई दलील चािते िैं। चनुाँचे अब वि मुतशाबेिात के

    पीछे पड़ते िैं क़क इनमें से क़कसी के मफ़हूम को अपने मनपसंद मफ़हूम की

    तरफ मोड़ सकें । यि उससे क़फ़तना उठाना चािते िैं।

    “और उनकी िक़ीक़त व माहियत मालूम

    करने के हलये।” ِلٖه څ

    ِْوي

    ْ َ َتَء

    ۗ

    اَِتغْابَ و

    वि तलाश करते िैं क़क इन आयात की असल िक़ीक़त, असल मंशा और असल

    मुराद क्या ि।ै याहन यि भी िो सकता ि ैक़क क़कसी का इकमी ज़ोक़ िी ऐसा

    िो और यि भी िो सकता ि ैक़क एक शख्स की क़फ़तरत में कर्ी िो।

    “िालाँक़क उनका िक़ीक़ी मफ़हूम अकलाि

    अकलाि के हसवा कोई निीं र्ानता।”

    َلْعَا يَمَ ڤ و

    ُ ه ّٰللا

    َّ ِاَلٗٓهَلِْوي

    ْ َ َتُ م

    “और र्ो लोज़ इकम में राहसख िैं वि यू ँकित े

    िैं क़क िम ईमान लाये इस क़कताब पर, यि

    कुल का कुल िमारे रब की तरफ़ से ि।ै”

    ٌّ ُا ِبٖه ُك

    َّنَمٰ اَنْو

    ُ

    لْوُقَِم ي

    ْ

    ِعل

    ْ

    ِِف الَنْوُِِس الره

    َو

    ا ۚ َِن بَِد رْ ِعنِْ

    ِم

    हर्न लोज़ों को रुसूख क़फ़ल इकम िाहसल िो ज़या ि,ै हर्नकी र्ड़ें इकम में

    ज़िरी िो चुकी िैं उनका तज़ ेअमल यि िोता ि ैक़क र्ो बात साफ़ समझ में

    आ ज़यी ि ैउस पर अमल करेंज़े और र्ो बात पूरी तरि समझ में निीं आ रिी

    ि ै उसके हलय े इन्तेज़ार करेंज़े, लेक़कन यि इज्माली यक़ीन रखेंज़े क़क यि

    अकलाि की क़कताब ि।ै

    “और यि नसीित िाहसल निीं कर सकत े

    मज़र विी र्ो िोशमन्द िैं।” اِب

    َب

    ْ

    لَ ْوا اَل

    ُ

    ول

    ُ

    آ َّ ِاَلُرَّكَّذَا يَمَ Ċۙو

    और सबस े बड़ी िोशमन्दी यि ि ै क़क इन्सान अपनी अक़्ल की हुददू

    (limitations) को र्ान ल े क़क मेरी अक़्ल किाँ तक र्ा सकती ि।ै अज़र

    इन्सान यि निी र्ानता तो क़फर वि ऊलुल अलबाब में स ेनिीं ि।ै हबलाशुबा

  • बयानुल क़ुरान हिस्सा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉक्टर इसरार अिमद) [8] For more books visit: www.tanzeem.org

    अक़्ल बड़ी शय ि ै लेक़कन उसकी अपनी हुददू िैं। एक िद से आज़े अक़्ल

    तर्ावुज़ निीं कर सकती:

    ज़ुज़र र्ा अक़्ल से आज़े क़क यि नूर

    हचराज़े राि ि ैमंहज़ल निीं ि!ै

    याहन मंहज़ल तक पहुचँान ेवाली शय अक़्ल निीं, बहकक क़कब ि।ै लेक़कन अक़्ल

    बिरिाल एक रोशनी दतेी ि,ै िक़ीक़त की तरफ़ इशारे करती ि।ै

    आयत 8

    “(और उन ऊललु अलबाब का यि क़ौल िोता

    ि)ै ऐ रब िमारे! िमारे क़दलों को कर् ना िोन े

    दीहर्यो इसके बाद क़क तनू े िमें हिदायत द े

    दी ि”ै

    ا َنَتْيَدَ ھْ ِاذَدْعَا بَنَبْوُلُ ق

    ْ

    غ ِ

    ُ ُتَا َلَنَّبَ ر

    “और िमें त ूिास अपन ेखज़ाना-ए-फ़ज़ल से

    रिमत अता फरमा।” ۚ

    ًةَ ْْحَ رَكْنُد

    َّ

    لْا ِِم

    َنَ لْبَھَ و

    “यक़ीनन तू िी सब कुछ देने वाला ि।ै” ُابَّھَو

    ْ

    الَتْنَ اَكَّ Ďِۙان

    िमें र्ो भी हमलेज़ा तरेी िी बारज़ाि से हमलेज़ा। त ूिी फ़याज़े िक़ीक़ी ि।ै

    आयत 9

    “ऐ रब िमारे! यक़ीनन तू र्मा करने वाला ि ै

    लोज़ों को एक ऐसे क़दन के हलय े हर्स (के

    आने) में कोई शक निीं ि।ै”

    ِهۭ َْب ِفي

    ْيَ رٍَّم َل

    ْوَاِس لِي

    َّ النُاِمع

    َ جَكَّ ِان

    ٓ

    اَنَّبَ ر

    “यक़ीनन अकलाि तआला उस वादे के

    हखलाफ़ निीं करेज़ा।” َادَعِْمي

    ْ

    الُِلفْ ُ َيَ َلَ ه ّٰللا

    َّ Ḍِان

    ۙ

    अकलाि तआला अपने वाद ेकी हखलाफ़वज़ी निीं करता। हलिाज़ा र्ो उसन े

    बताया ि ैवि िोकर रिज़ेा और क़यामत का क़दन आकर रिज़ेा।

    आयात 10 स े20 तक

    ِِنَ ْغُْن تَا لْوُرَفَ كَ ِْذْي

    َّ الَّ ِان

    َك ىِٰٕۗولُأًَـا و ـــــ

    ْـيَِ شه ّٰللا

    َِ

    ِمْمُھُدََلْوَ آ ََلَ وْمُھُالَوْمَ اْمُھْنَع

    اِر َّ النُدْوُقَ وْمُھُمُ ۙ 10ھ

    َذَخ

    َ

    اَا ۚ فَِتنٰي

    ٰ

    ا ِِبْ ُُبَّذَۭ كِْلِهم

    ْبَ قْ ِِم

    َ ِْذْي

    َّالَ وَنْوَعِْل ِفر

    ِٰب ا

    ْ

    اَدَك

    ْ

    الُدِْديَ شُ هّٰللاَ وِِْبِم

    ْ ُُنُ ِبذُ هاِب ّٰللا

    َنَ ِاٰلٰ 11ِعق وْ ُ َْشَ

    ُ

    ُتَ وَنْوُبَلْغُـتَا سْوُرَفَ كَ ِْذْي

    َِّـل لْلُق

    ُادَِمه

    ْ

    َس الِْبئَۭ وَ ََّّنَهَِل 12ج ِبيْ ِِفْ سَ

    ُاِتل

    َقُ تٌةَا ۭ ِفئ

    َتَقَت

    ْ

    ِ ال

    ْْيَتَ ِفئْ ِِفٌةَيٰ اُْ

    ُكَ لَنَ َكْدَق

    ْث ِ مْمُھَنْوَ َّ َّيٌِفَرة

    َى َك

    ٰرْخُاَِ وه ّٰللا

    ْ ِِفَّ ۭ ِانُء

    ۗ

    اَشَّ يْ َٖه ِم ِ

    ْْصَ ِبنُِد يَ ُ ُيُ هّٰللاَۭ و ِ

    ْْيَع

    ْ

    الَي

    ْ

    اَ رِْمْْيَل

    اِر َصْبَ ْوِِل اَل

    ُ َِلًةَ ِْعْبَ لَلِكَٰ 13ذ ِنْيْ بَ

    ْ

    الَِء و

    ۗ

    اَس ِ الن

    َِت ِِم

    ٰوَهَّبه الش

    ُاِس ح

    َّ لِلن

    َِ ْيُز

    فِ

    ْ

    الَِب و

    َھَّ الذ

    ََرِة ِِم

    َطْنَقُم

    ْ

    ِ الْاِطْي

    َنَق

    ْ

    الَِثۭ و

    ْرَ ْ

    اْلَاِم و

    َعْنَ ْاَلَِة وَمَّوَسُم

    ْ

    ِل الْيَ ْ

    اْلَِة و

    َّض

    ِب

    ٰ

    َما

    ْ

    ُن الْسُ حٗهَدْ ِعنُ هّٰللاَا ۚ وَيْنهوِة الد

    ٰيَ ْ

    اْلُاعَتَ مَلِكْٰ 14ذ ٍ ِِم

    ْْيَ ِِبُْ

    ُكُئ ِ بَنُؤَ اْلُق

    ْ َ

    ُتْ ِِم

    ِْريْ َ

    َتٌتهنَ جِْم ِ ِبَ رَدْا ِعن

    ْوَقَّ اتَ ِْذْي

    َّۭ لِلُْ

    لُِكٰ ذ

    ٌا َوْزَاَا وَ ْ ِفْي

    َ ِْلِدْي

    ٰ خُرٰ ْٰهَ ْا اَل

    ََهِِت

    اِد َِعب

    ْ

    ِِبلٌۢ ِْصْي

    َ بُ هّٰللاَِ ۭ و

    ه ّٰللا

    َِ

    ِمٌانَوِْرضَّ وٌَرةَّهَطه 15م

    ۚنَّا مَ اٰ

    ٓ

    اَنَّ ِان

    ٓ

    اَنَّبَ رَنْوُلْوُقَ يَ ِْذْي

    َّلَا

    اِر َّاَب الن

    َذَا ع

    َِقنَا وَنَبْ ُُنُا ذ

    َنَ لِْفرْاغَ 16ف

    ِْۚبِ لصه

    َ ا

    َ ِْنـِتْي

    ٰق

    ْ

    الَ وَ ِْدِقْي

    هالص

    َ وَ ْْي

    اِر َ ْْسَ ْ ِِبَل

    َ ِْفِرْي

    ْغَـتْسُم

    ْ

    الَ وَ ِْفِقْي

    ْنُم

    ْ

    الَ 17و

    ُة

    َ

    ك ىَِٰٕۗمل

    ْ

    الَ وَوُ ھَّ ِاَلَهٰ ِالٓ َ َلٗهَّنَ اُ ه ّٰللا

    َِهدَش

    َ ْ

    اْلُ ِْزْيَع

    ْ

    الَوُ ھَّ ِاَلَهٰ ِالٓ َِطۭ َل

    ِْقس

    ْ

    ا ِِبل ىِٕمًۢ

    ۗ

    اَِم ق

    ِْعل

    ْ

    وا الُولُاَ و

    ُ ْ 18ِكي

    ۭ ِ دَ ّٰللاه َ ِعنْ ْيْ ِ

    الد

    َِّان

    ا ًۢيْغَ بُمِْعل

    ْ

    الُمُھَء

    ۗ

    اَا جَِد م

    ْعَ بْۢ ِِم

    ََّب ِاَل

    ِٰكت

    ْ

    ا الُُتْوُ اَ ِْذْي

    َّ ال

    َفَلَتْا اخ

    َمَ ۣ وُم

    َ

    َلْس ِ

    ْاَل

    اِب َِس

    ْ

    اْلُعْي َِ

    َسَ ه ّٰللا

    َِّانَِ فهِت ّٰللا

    ٰي

    ٰ

    ِِبْرُف

    ْ

    كَّ يْ َِمَۭ وْمُھَنْیَِانْ 19ب

    َ ف

    ْلُقَ فَكْوهج

    ۗ

    اَح

    اِ َ ۭ فْ ُُتْمَلْسَاَ ءَٖ

    ْي ِ مُ ْاَلََب و

    ِٰكت

    ْ

    ا الُُتْوُ اَ ِْذْي

    َِّل لْلُقَۭ وِنَعَبَِّ ات

    َِمَِ وهِهَي ّلِِل

    ْجَ وُتْمَلْسَ ا

    ْن

    ِِب ٌۢ ِْصْي

    َ بُ هّٰللاَ ۭ وُغٰلَب

    ْ

    الَكْيَلَا عَ َِّاَّنَا فْوَّلَ َ ُتِْانَا ۚ وْوَدَتِْد اھ

    َقَا فْوُمَلْسَاِد ا

    َِعب

    ْ

    20ل

    आयत 10

    “यक़ीनन हर्न लोज़ों न े कुफ़्र की रहवश

    इहख़्तयार की िरहज़ज़ ना बचा सकें ज़े उन्िें

    ْمُھ

    ُ

    الَوْمَ اْمُھْنَِِنَ ع

    ْغُْن تَا لْوُرَفَ كَ ِْذْي

    َّ

    الَِّان

    ِه ّٰللا

    َِ

    ِمْمُھُدََلْوَ آ ََلًَٔـاو ـــــ

    ْـيَ ش

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    उनके माल और ना उनकी औलाद अकलाि से

    कुछ भी।”

    अब यि ज़रा तिदीदी और चैलेंर् का अंदाज़ ि।ै ज़माना-ए-नुज़ूल के ऐतबार

    से आपने नोट कर हलया क़क यि सूरि मुबारका 3 हिर्री में ज़ज़वा-ए-ओिद

    के बाद नाहज़ल िो रिी ि,ै लेक़कन यि रुकूअ र्ो ज़ेरे मुताअला ि ैइसके बारे

    में ज़ुमाने ग़ाहलब ि ैक़क यि ज़ज़वा-ए-बद्र के बाद नाहज़ल हुआ। ज़ज़वा-ए-बद्र

    में मुस्लमानों को बड़ी ज़बरदस्त फ़ति िाहसल हुई थी तो मुस्लमानों का

    morale बहुत बुलन्द था। लेक़कन ऐसी ररवायात भी हमलती िैं क़क र्ब

    मुस्लमान बद्र से ज़ाज़ी बन कर, फ़तियाब िोकर वापस आये तो मदीना

    मुनव्वरा में र्ो यहूदी क़बीले थे उनमें से बाज़ लोज़ों न ेकिा क़क मुस्लमानों!

    इतना ना इतराओ। यि तो कुरैश के कुछ नातर्ुबेकार छोकरे थे हर्नस े

    तुम्िारा मुक़ाबला पेश आया ि,ै अज़र कभी िमसे मुक़ाबला पेश आया तो क़दन

    में तारे नज़र आ र्ायेंज़े, वज़ैरि-वज़ैरि। तो इस पसमंज़र में यि अकफ़ाज़ कि े

    र्ा रि ेिैं क़क हसफ़ु मुशररकीने मक्का पर मौक़ूफ़ (हवश्राम) निीं, आहिरकार

    तमाम कुटफ़ार इसी तरि स ेज़ेर िोंज़ ेऔर अकलाि का दीन ग़ाहलब िोकर

    रिज़ेा। { َ اَْكَثَ ٓ َاْمِ ٖه َولِٓكن 2 الن َاِس ََل یَْعلَُمْوَن َوهّٰللاُ َغاِلٌب لََعٓ 1 } (सूरि युसुफ:21)

    “और वि तो सबके सब आज़ का ईंधन बनेंज़े।” اِر

    َّ النُدْوُقَ وْمُ ھَىِٕكٰۗول

    ُ

    اَ ۙ 10و

    आयत 11

    “(उनके साथ भी वैसा िी मामला िोज़ा) रै्सा

    क़क आले क़फ़रऔन और उन लोज़ों के साथ

    हुआ र्ो उनसे पिले ज़ुज़रे।”

    ِْۭلِهم

    ْبَ قْ ِِم

    َ ِْذْي

    َّ

    الَ وَنْوَعِْل ِفر

    ِٰب ا

    ْ

    اَدَ ك

    तुम्िारी तो िहैसयत िी क्या ि!ै क्या हपद्दी और क्या हपद्दी का शोरबा। आल े

    क़फ़रऔन का मामला याद करो, उनके साथ क्या हुआ था? क़फ़रऔन बहुत

    बड़ा शिशंाि और बड़ ेलाव लश्कर वाला था, लेक़कन उसका क्या िाल हुआ?

    और उससे पिले आद व समूद र्ैसी ज़बरदस्त क़ौमें इसी र्ज़ीरा नुमाये अरब

    में रिी िैं।

    “उन्िोंने भी िमारी आयात को झुठलाया था।” ا ۚ

    َِتنٰي

    ٰ

    ا ِِبْ ُُبَّذَ ك

    “तो अकलाि न े पकड़ा उनको उनके ज़नुािों

    की पादाश में।”

    ِِْبِم

    ْ ُُنُ ِبذُ ه ّٰللا

    ُمُھَذَخ

    َ

    اَ ف

    “और अकलाि सज़ा दनेे में बहुत सख्त ि।ै” اِب

    َِعق

    ْ

    الُدِْديَ شُ هّٰللاَ 11و

    आयत 12

    “(ऐ नबी ملسو هيلع هللا ىلص!) कि दीहर्य े उन लोज़ों से

    र्ो कुफ़्र की रहवश इहख़्तयार कर रि े िैं क़क

    तुम सबके सब (दहुनया में) मग्लूब िोकर

    रिोज़े और (क़फर आहिरत में) र्िन्नम की

    तरफ घेर कर ल ेर्ाये र्ाओज़े।”

    ٰ ِاٰلَنْوُ ََشْ ُ

    ُتَ وَنْوُبَلْغُـتَا سْوُرَفَ كَ ِْذْي

    َِّـل

    ل

    ْ

    لُق

    َۭ ََّّنَهَ ج

    “और वि बहुत बुरा रठकाना ि।ै”

    ُادَِمه

    ْ

    َس الِْبئَ 12و

    आयत 13

    “तुम्िारे हलये एक हनशानी आ चुकी ि ैउन दो

    हज़रोिों में हर्न्िोंन ेआपस में र्ज़ं की।” ا ۭ

    َتَقَت

    ْ

    ِ ال

    ْْيَتَ ِفئْ ِِفٌةَيٰ اُْ

    ُكَ لَنَ َكْدَ ق

    याहन बद्र की र्ंज़ में एक तरफ़ मुस्लमान थे और दसूरी तरफ मुशररकीन ेमक्का

    थे। इसमें तुम्िारे हलय ेहनशानी मौर्ूद ि।ै

    “एक हज़रोि अकलाि की राि में रं्ज़ कर रिा

    था और दसूरा काक़फ़र था”

    ٌِفَرة

    َى َك

    ٰرْخ

    ُ

    اَِ وهِل ّٰللا

    ِْبيَ سْ ِِفُاِتل

    َقُ تٌةَ ِفئ

    “वि उन्िें देख रि े थे अपनी आँखों से क़क

    उनसे दो ज़ुने िैं।” ۭ ِ

    ْْيَع

    ْ

    الَي

    ْ

    اَ رِْمْْيَلْث ِ مْمُھَنْوَ َّ َّي

    इसके कईं मायन ेक़कये ज़ये िैं। एक यि क़क मुस्लमानों को तो खुकलम-खुकला

    नज़र आ रिा था क़क िमारे मुक़ाहबल िमसे दोज़ुनी फ़ौर् ि,ै र्बक़क वि

    हतज़ुनी थी। बाज़ ररवायात में यि भी आता ि ैक़क अकलाि तआला ने ज़ज़वा-

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    ए-बद्र में कुटफ़ार पर ऐसा रौब तारी कर क़दया था क़क उन्िें नज़र आ रिा था

    क़क मुस्लमान िमसे दोज़ुने िैं।

    “और अकलाि तआला ताईद (समथुन)

    फ़रमाता ि ैअपनी नुसरत से हर्सकी चािता

    ि।ै”

    ۭ ُء

    ۗ

    اَشَّ يْ َٖه ِم ِ

    ْْصَ ِبنُِد يَ ُ ُيُ هّٰللاَ و

    “इसमें यक़ीनन एक इबरत ि ै आँखें रखन े

    वालों के हलये।” اِر

    َصْبَ ْوِِل اَل

    ُ َِلًةَ ِْعْبَ لَلِكٰ ذْ ِِفَّ 13ِان

    यि इबरत और सबक़ आमूज़ी हसफ़ु उनके हलये िोती ि ैर्ो आँखें रखते िों,

    हर्नके अन्दर दखेने की सलाहियत मौर्ूद िो।

    अज़ली आयत क़फ़तरते इंसानी के ऐतबार से बड़ी अिम ि।ै बाज़ लोज़ों में

    िास तौर पर दहुनया और अलाइक़ दनुयवी (दहुनया की क़दलचस्पी) की

    मोिलबत ज़्यादा शदीद िोती ि।ै यिाँ उसका असल सबब बताया र्ा रिा ि ै

    क़क अकलाि तआला ने वाक़क़अतन यि शय क़फ़तरते इंसानी में रखी ि।ै

    इसहलये क़क अकलाि तआला ने इस दहुनया को क़यामत तक आबाद रखना ि ै

    और इसकी रौनक़े बिाल रखनी िैं। चुनाचँे मद ुऔर औरत की एक-दसूरे के

    हलये कहशश िोज़ी तो औलाद पैदा िोज़ी और दहुनया की आबादी में इज़ाफ़ा

    िोता रिज़ेा और इस तरि दहुनया क़ायम रिज़ेी। दौलत की कोई तलब िोज़ी

    तो आदमी मेिनत व मशक्क़त करेज़ा और दौलत कमायेज़ा। इसहलये यि

    चीज़ें क़फ़तरते इंसानी में basic animal instincts के तौर पर रख दी ज़यी

    िैं। बस ज़रूरत इस बात की ि ै क़क इन हर्हबकली (स्वाभाहवक) तक़ाज़ों को

    दबा कर रखा र्ाये, अकलाि की मोिलबत और अकलाि की शरीअत को इसस े

    बालातर रखा र्ाये। यि मतलूब निीं ि ै क़क इनको ित्म कर क़दया र्ाये।

    ताअज़ीबे नटस और नटसकशी (self annihilation) इस्लाम में निीं ि।ै यि

    तो रिबाहनयत ि ैक़क अपने नटस को कुचल दो, ित्म कर दो। र्बक़क इस्लाम

    तज़क़कया-ए-नटस और self control का दसु दतेा ि ैक़क अपने आपको क़ाब ू

    में रखो। नटसे इंसानी एक मँुिज़ोर घोड़ा ि।ै घोड़ा हर्तना ताक़तवर िोता ि ै

    उतना िी सवार के हलये तज़े दौड़ना आसान िोता ि।ै लेक़कन मँुिज़ोर और

    ताक़तवर घोड़ ेको क़ाबू में रखने की ज़रूरत भी ि।ै वरना सवार अज़र उसके

    रिमो करम पर आ ज़या तो वि र्िाँ चािज़ेा उस ेपटखनी द ेदज़ेा।

    आयत 14

    “मुज़य्यन कर (संवार) दी ज़यी ि ै लोज़ों के

    हलये मरज़ूबाते (आकर्ुक) दहुनया की

    मोिलबत रै्से औरतें और बेटें”

    ِء

    ۗ

    اَس ِ النَِت ِِم

    ٰوَهَّبه الش

    ُاِس ح

    َّ لِلنَِ ْيُز

    َ ِْنْي

    َب

    ْ

    الَ و

    मरज़ूबाते दहुनया में से पिली मोिलबत औरतों की हज़नवायी ज़यी ि।ै फ़्राईड

    के नज़दीक भी इंसानी मुिर्ररकात में सबसे क़वी और ज़बरदस्त मुिर्ररक

    (potent motive) प्रर्सी र्ज़्बा ि ैऔर यिाँ अकलाि तआला ने भी सबस े

    पिले उसी का हज़क्र क़कया ि।ै अज़रच े बाज़ लोज़ों के हलये पेट का मसला

    फ़ौक़क़यत इहख़्तयार कर र्ाता ि ै और मआशी ज़रूरत प्रर्सी र्ज़्बे से भी

    शदीदतर िो र्ाती ि,ै लेक़कन वाक़क़या यि ि ै क़क मद ु व औरत के माबैन

    कहशश इंसानी क़फ़तरत का लाहज़मा ि।ै चुनाचँे रसूल अकलाि ملسو هيلع هللا ىلص ने भी

    फ़रमाया ि:ै

    َجاِل ِِمَ ْکُت َبْعِدْی ِفْتَنًة اََُض َ لََعَ الِ َساءِ َما َرَ الن ِ“मैंने अपने बाद मदों के हलये औरतों के क़फ़तन ेसे ज़्यादा ज़रर रसा ँ

    (िाहनकारक) क़फ़तना और कोई निीं छोड़ा।”

    उनकी मोिलबत इन्सान को किाँ से किाँ ल ेर्ाती ि।ै हबलआम हबन बाऊरा

    यहूद में से एक बहुत बड़ा आहलम और फ़ाहज़ल शख्स था, मज़र एक औरत के

    चक्कर में आकर वि शैतान का पैरो बन ज़या। उसका क़क़स्सा सूरतुल आराफ़ में

    बयान हुआ ि।ै बिरिाल औरतों की मोिलबत इंसानी क़फ़तरत के अन्दर रख

    दी ज़यी ि।ै क़फर इन्सान को बेटे बहुत पसंद िैं क़क उसकी नस्ल और उसका

    नाम चलता रि,े वि बुढ़ापे का सिारा बनें।

    “और र्मा क़कय े हुए खज़ान े सोने के और

    चांदी के” ةِ

    َِّفض

    ْ

    الَِب و

    َھَّ الذ

    ََرِة ِِم

    َطْنَقُم

    ْ

    ِ الْاِطْي

    َنَق

    ْ

    الَ و

    “और हनशानज़दा घोड़े” ِة

    َمَّوَسُم

    ْ

    ِل الْيَ ْ

    اْلَ و

    उम्दा नस्ल के घोड़ ेहर्न्िें चनु कर उन पर हनशान लज़ाय ेर्ाते िैं।

    “और माल मवेशी और खेती।” ِثۭ

    ْرَ ْ

    اْلَاِم و

    َعْنَ ْاَلَ و

    पंर्ाब और सराइकी इलाक़े में चौपायों को माल किा र्ाता ि।ै यि र्ानवर

    उनके माहलकों के हलये माल की िहैसयत रखते िैं।

  • बयानुल क़ुरान हिस्सा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉक्टर इसरार अिमद) [11] For more books visit: www.tanzeem.org

    “यि सब दनुयवी हज़न्दज़ी का साज़ो सामान

    ि।ै” ا ۚ

    َيْنهوِة الد

    ٰيَ ْ

    اْلُاعَتَ مَلِكٰ ذ

    बस नुक्ता-ए-ऐतदाल यि ि ैक़क र्ान लो यि सारी चीज़ें इस दहुनया की चंद

    रोज़ा हज़न्दज़ी का साज़ो सामान िैं। इस हज़न्दज़ी के हलये ज़रुररयात की िद

    तक इनस ेफ़ायदा उठाना कोई बुरी बात निीं ि।ै

    “लेक़कन अकलाि के पास ि ैअच्छा लौटना।” ِب

    ٰ

    َما

    ْ

    ُن الْسُ حٗهَدْ ِعنُ هّٰللاَ 14و

    वि र्ो अकलाि के पास ि ैउसके मुक़ाबले में यि कुछ भी निीं ि।ै अज़र ईमान

    हबलआहिरत मौर्ूद ि ै तो क़फर इन्सान इन तमाम मरज़ूबात को, अपन े

    तमाम र्ज़्बात और मीलानात को एक िद के अन्दर रखज़ेा, उससे आज़े निीं

    बढ़ने दज़ेा। लेक़कन अज़र इनमें से क़कसी एक शय की मोिलबत भी इतनी

    ज़ोरदार िो ज़यी क़क आपके क़दल के ऊपर उसका क़लज़ा िो ज़या तो बस आप

    उसके ज़ुलाम िो ज़ये, अब विी आपका मअबदू ि,ै चाि ेवि दौलत िो या कोई

    और शय िो।

    आयत 15

    “इनसे कहिये क़क क्या मैं तुम्िें बताऊँ इन

    तमाम चीज़ों से बितर शय कौनसी ि?ै” ۭ

    ُْ

    لُِكٰ ذْ ٍ ِِم

    ْْيَ ِِبُْ

    ُكُئ ِ بَنُؤَ ا

    ْ

    لُ ق

    “र्ो लोज़ तक़वा इहख़्तयार करते िैं उनके

    हलये उनके रब के पास ऐसे बाग़ात िैं हर्नके

    दामन में नक़दयाँ बिती िोंज़ी”

    ْ ِِم

    ِْريْ َ

    َتٌتهنَ جِْم ِ ِبَ رَدْا ِعن

    ْوَقَّ اتَ ِْذْي

    َّلِل

    ُرٰ ْٰهَ ْا اَل

    ََهِِتْ َ

    ُت

    तक़वा यिी ि ैक़क तुम पर अपने नटस का भी िक़ ि ैर्ो तुम्िें अदा करना ि,ै

    लेक़कन नार्ायज़ रास्त ेसे निीं। तमु्िारे पेट का भी िक़ ि,ै वि भी अदा करो,

    लेक़कन अकले िलाल से। तमु्िारी बीहवयों और तुम्िारी औलाद के भी तुम पर

    हुक़ूक़ िैं, र्ो तुम्िें र्ायज़ तरीक़ों से अदा करने िैं। तमु्िारे र्ो मुलाक़ाती आन े

    वाले िैं उनका भी तुम पर िक़ ि।ै रसूल अकलाि ملسو هيلع هللا ىلص ने िज़रत अलदकुलाि

    हबन अम्र हबन आस رضی ہللا عنہ से इशारा फ़रमाया था:

    َ ِلَ َ ِلَزْوِرَک َفِان او َوِان ً َ ِلَزْوِجَ َعلَْیَ َقق او َوِان

    ً َ ِلَعْیِنَ َعلَْیَ َقق او َوِان ً َسِدَک َعلَْیَ َقق

    ا َعلَْیَ َقًق

    इन सबके हुक़ूक़ अदा करो, लेक़कन अकलाि से ऊपर क़कसी िक़ को फ़ाइक़ ना

    कर दनेा। बस यि ि ैअसल बात। “ज़र हिटज़ ेमराहतब ना कुनी हज़न्दीक़ी!”

    अज़र यि हिटज़े मराहतब निीं िोज़ा तो ज़ोया आपका दीन भी ज़या और

    दहुनया भी ज़यी।

    “उनमें वि िमेशा रिेंज़े” ا

    َ ْ ِفْي

    َ ِْلِدْي

    ٰ خ

    “और उनके हलय ेबड़ी िी पाक औरतें िोंज़ी”

    ٌَرةَّهَطه مٌا َوْزَاَ و

    “और (सबसे बढ़ कर) अकलाि की खुशनदूी

    िोज़ी।” ۭ ِ

    ه ّٰللا

    َِ

    ِمٌانَوِْرضَّ و

    “और अकलाि अपन ेबन्दों को दखे रिा ि।ै” اِد

    َِعب

    ْ

    ِِبلٌۢ ِْصْي

    َ بُ هّٰللاَ 15و

    आयत 16

    “र्ो यि किते रित े िैं परवरक़दज़ार! िम

    ईमान ल ेआये” ا

    َّنَمٰ ا

    ٓ

    اَنَّ ِان

    ٓ

    اَنَّبَ رَنْو

    ُ

    لْوُقَ يَ ِْذْي

    َّ

    لَ ا

    “पस िमारे ज़नुािों को बख्श दे” ا

    َنَبْ ُُنُا ذَنَ لِْفرْاغَ ف

    “और िमें आज़ के अज़ाब से बचा ले।” اِر

    َّاَب الن

    َذَا عَِقنَ 16و

    आज़े उनकी मदाि (तारीफ़) में अकफ़ाज़ इस्तेमाल िो रि ेिैं क़क र्ो यि दआुए ँ

    करते िैं उनके यि औसाफ़ िैं। इसमें ज़ोया तलक़ीन ि ैक़क अज़र अकलाि से यि

    दआु करना चािते िो क़क अकलाि तमु्िारे ज़ुनाि बख्श द ेऔर तमु्िें र्िन्नम के

    अज़ाब से बचा ले तो अपने अन्दर यि औसाफ़ पैदा करो।

    आयत 17

    “सब्र करन ेवाले और रास्तबाज़ (सचे्च)”

    َ ِْدِقْي

    هالص

    َ وَ ِْْبِْي

    هلصَ ا

  • बयानुल क़ुरान हिस्सा दौम, आले इमरान से मायदा तक (डॉक्टर इसरार अिमद) [12] For more books visit: www.tanzeem.org

    रास्तबाज़ी में रास्तज़ोयी भी शाहमल ि ै और रास्त क़करदारी भी। याहन

    आपका अमल भी सिी और दरुुस्त िो और क़ौल भी सिी और दरुुस्त िो।

    “और फ़रमाबरदार और अकलाि की राि में

    खचु करन ेवाले”

    َ ِْفِقْي

    ْنُم

    ْ

    الَ وَ ِْنـِتْي

    ٰق

    ْ

    الَ و

    “और अवक़ाते सिर में मज़क़फ़रत चािन े

    वाले।” اِر

    َ ْْسَ ْ ِِبَل

    َ ِْفِرْي

    ْغَـتْسُم

    ْ

    الَ 17و

    वि र्ो सिर का वक़्त ि ै (small hours of the morning) उस वक़्त

    अकलाि के हुज़रू इस्तज़फ़ार करने वाले। एक तो पंच वक़्ता नमाज़ ेिैं, और

    एक िास वक़्त ि ैहर्सके बारे में फ़रमाया ज़या ि ैक़क िर रात र्ब रात का

    आखरी एक हतिाई हिस्सा बाक़ी रि र्ाता ि ै तो अ�