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ककस क ख श कन क ललए एक स स ल त उस क इ दत स क नश फ फ ल न ज स ह त ह । इस के ाद पेशान

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    फ़ैज़ ए मुर्शिद: क़ुतुब-उल-्अक़्ताब हज़रत

    ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अब्दलु्लाह हज्वैरी رحمة هللا عليه

    सूरह यासीन के कररश्मात

    (र्सल्ल्सला कररश्मात ८)

    हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चुग़ताई مہبركات دامت

    पी एच डी (अमरीका)

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    सूरह यासीन का नुज़ूल

    मक़ामे नुज़ूल, मक्का ☆ शमुार सूरह, ३६ ☆ तअदाद आयात, ८३

    ☆ कललमात, ७२९

    ☆ तअदाद अल्फ़ाज़, ३०००

    ☆ तअदाद रुकूअ, ५

    सूरह यासीन पढ़ने पर नेककयााँ

    सूरह यासीन के कुल हरुफ़ ३००० हैं। क़ुरआन व हदीस के क़ानून के मुताबबक़ हर हफ़फ़ पर दस नेककयों का

    वादा है। ललहाज़ा एक दफ़ा रोज़ाना पढ़ने पर नेककयााँ १०×३०००=३०,०००

    महीना भर की कुल नेककयााँ ३०×३०,०००=९००,०००

    साल भर में कुल नेककयााँ १२×९००,०००=१०८००,०००

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    हाल ए दिल

    आप के ग़मों में बराबर का शरीक:

    क़ाररईन! इन लसफ़हात में आप की तवज्जह उन मसाइल, परेशाननयों और मुश्ककलात की तरफ़ कर रहा हूाँ।

    जो मेरे ख़्याल में हर घर का हहस्सा हैं। शब ्व रोज़ लोगों की मुलाक़ातें, ढेरों ख़तूत, टेली फ़ॉन और लोगों के

    मसाइल, ये तमाम बातें रोज़ बरोज़ मेरे तजुबे व मुशाहहदे और एह्सास को बढ़ाती जाती हैं। ये मुशाहहदा

    तजुबाफ़, एह्सास और ददफ़ उस वक़्त कुछ ज़्यादा महसूस होता है जब कोई ददफ़ भरी कहानी पढ़ के या सुन के

    यक़ीनन हदल भर आता है। आप यक़ीन करें में इस ग़म को अपना ग़म समझता हूाँ। और शख़ै अबू अल्हसन

    ख़रक़ानी رحمة اهلل علي ة का ये क़ोल फ़ौरन मेरे सामने आ जाता है कक आप ने फ़माफ़या "वो हदल अल्लाह तआला

    की मुहब्बत से ख़ाली है जो मख़्लूक़ ए ख़ुदा के साथ शफ़्क़त व रहमत का बताफ़व नहीीं करता और जो शख़्स

    ककसी को ख़ुश करने के ललए एक साींस भी ले तो उस की ये इबादत बरसों के नश्फ़्फ़ली नमाज़ों से बेह्तर है।

    इस के बाद परेशान हाल का सोज़ मेरे हदल का साज़ बन जाता है और मेरे अींदर एक हूक उठती है कक कोई

    ऐसी पुर तासीर दआु या कलाम हो जो मैं क़ाररईन को बताऊाँ श्जसे पढ़ कर उन का ददफ़, दखु हमेशा के ललए

    दरू हो जाए। मेरा क़लम हमेशा लोगों के दखुों ददों का मरहम बन कर चला है। मैं ने जब भी ललखा है। इन शा

    अल्लाह ख़ैर, ख़ैररयत ही ललखा है। तो आज भी इन लसफ़हात में आप हज़रात के ललए सूरह यासीन के ऐसे

    ख़ास आमाल जो कक यक़ीनन सीने का राज़ हैं। आप तक वो अमानत लोटा रहा हूाँ। ऐसे आमाल श्जस से

    लाखों घर वीरान से आबाद हो गए।

    ख़्वास्तगार इख़्लास व अमल

    बन्दा हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चुग़ताई دام

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    सूरह यासीन के फ़ज़ाइल अहािीस की रौशनी में:

    【१】एक ररवायत में आया है कक हक़ तआला शानुहू ने सूरह ताहा और सूरह यासीन को आसमान व

    ज़मीन के पैदा करने से हज़ार बरस पहले पढ़ा। जब फ़ररकतों ने सुना तो कहने लगे कक ख़ुकहाली है उस

    उम्मत के ललए श्जन पर ये क़ुरआन उतारा जाएगा और ख़ुकहाली है उन हदलों के ललए जो इस को उठाएींगे

    यानन याद करेंगे और ख़ुकहाली है उन ज़बानों के ललए जो इस की नतलावत करेंगी।

    (मुबारक मज्मूआ वज़ाइफ़ स ९३)

    【२】हज़रत सय्यदनुा अनस ریض اہلل اعتیلٰ نعہ से ररवायत है कक रसूल अकरम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या जो एक मतफ़बा

    सूरह यासीन पढ़ेगा उस के ललए दस मतफ़बा क़ुरआन पढ़ने का सवाब ललखा जाएगा।

    (नतलमफ़ज़ी ज ४ स ४०६)

    【३】हज़रत सय्यदनुा हस्सान बबन अत्या ریض اہلل اعتیلٰ نعہ से ररवायत है कक हुज़ूर नबी करीम ملسو هيلع هللا ىلص ने

    फ़माफ़या: तौरात में सूरह यासीन का नाम "मुइम्मतुन"् ( ٌ ۃ َّ है, क्योंकक ये अपनी नतलावत करने वाले को ( ُمِعم

    दनु्या और आख़ख़रत की हर भलाई अता करती है, और दनु्या व आख़ख़रत की बलाएाँ उस से दरू करती है और

    दनु्या व आख़ख़रत की होल्नाककयों से ननजात बख़्कती है और इस का नाम "मुदाकफ़अतुल-्क़ाश्ज़यह्"

    اِضْیۃ) ُۃٌاْلقَّ اِفعَّ भी है क्योंकक ये अपनी नतलावत करने वाले से हर बुराई को दरू कर देती है और उस की हर (ُمدَّ

    हाजत पूरी करती है। श्जस शख़्स ने इस की नतलावत की उस के ललए बीस हज्ज के बराबर सवाब है और

    श्जस ने इस को ललखा किर इसे पपया तो उस के पेट में हज़ार दवाएीं, हज़ार नूर, हज़ार यक़ीन, हज़ार बरकतें

    और हज़ार रहमतें दाख़ख़ल होंगी और उस से हर धोका और हर बीमारी दरू हो जाएगी।

    (तफ़्सीर मज़हरी, ُرٌاْلمَّْنُثْور (ज ७ स ३७ اَّلد ُ

    【४】हज़रत सय्यदनुा इब्न अब्बास ریض اہلل اعتیلٰ نعہ से ररवायत है कक नबी अकरम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या: मेरी

    ख़्वाहहश है कक सूरह यासीन मेरे हर उम्मती के हदल में हो। (अल्दुरुल-्मींसूर)

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    【५】हज़रत सय्यदनुा अनस ریض اہلل اعتیلٰ نعہ से ररवायत है कक हुज़ूर अकरम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या जो शख़्स हर

    रात सूरह यासीन की नतलावत करता रहा किर मर गया तो वो शहीद मरेगा। (अल्दुरुल-्मींसूर)

    【६】हज़रत सय्यदनुा मअकक़ल बबन यसार ریض اہلل اعتیلٰ نعہ से ररवायत है कक हुज़ूर अक्रम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या:

    सूरह यासीन क़ुरआन का हदल है जो शख़्स इस सूरह मुबारका की अल्लाह और आख़ख़रत के ललए नतलावत

    करेगा उस के पहले के गुनाह बख़्श हदए जाएींगे तो तुम इस की नतलावत अपने मरने वालों के पास करो।

    (मुस्तद्रक हाककम, इब्न हब्बान, मस्नद् अहमद, अबू दाऊद, ननसाई ُرٌاْلمَّْنُثْورٌاَّلد ُ )

    【७】हज़रत सय्यदनुा इब्न अब्बास ریض اہلل اعتیلٰ نعہ फ़माफ़ते हैं जो शख़्स बवक़्त सुबह सूरह यासीन की

    नतलावत करे उस हदन की आसानी उसे शाम तक अता की गयी और श्जस शख़्स ने रात की इब्तदा में इस

    की नतलावत की उसे सुबह तक इस रात की आसानी दी गयी। (ُرٌاْلمَّْنُثْور ( اَّلد ُ

    【८】हज़रत सय्यदनुा अबू क़लाब ریض اہلل اعتیلٰ نعہ से ररवायत है वो फ़माफ़ते हैं श्जस ने सूरह यासीन की

    नतलावत की उस की मग़कफ़रत हो जाएगी और श्जस ने खाने के वक़्त उस के कम होने की हालत में नतलावत

    की तो वो उसे ककफ़ायत करेगा और श्जस ने ककसी मरने वाले के पास इस सूरत की नतलावत की अल्लाह

    अज़्ज़ व जल ्(उस पर) मोत के वक़्त नरमी फ़माफ़एगा और श्जस ने ककसी औरत के पास उस के बच्चे की

    पवलादत की तींगी पर सूरह यासीन की नतलावत की तो बच्चे की पवलादत में आसानी होगी और श्जस ने इस

    सूरह की नतलावत की गोया कक उस ने ग्यारह मतफ़बा क़ुरआन पाक की नतलावत की और हर चीज़ के ललए

    हदल है और क़ुरआन का हदल सूरह यासीन है।

    【९】हज़रत सय्यदनुा अबू ददाफ़अ ٰنع ریض اہلل اعتیل से ररवायत है कक हुज़ूर अक्रम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या: श्जस मरने

    वाले के पास सूरह यासीन की नतलावत की जाती है अल्लाह तबारक व तआला उस पर (उस की रूह क़ब्ज़

    करने में) नरमी फ़माफ़ता है। (ْنُثْور ُرٌاْلمَّ (اَّلد ُ

    【१०】हज़रत सय्यदना आइशा लसदीक़ा ٰنع ریض اہلل اعتیل से ररवायत है कक हुज़ूर नबी अक्रम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या:

    क़ुरआन हकीम में एक सूरत है श्जसे अल्लाह तआला के हााँ अज़ीम कहा जाता है इस के पढ़ने वाले को

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    अल्लाह तआला के हााँ शरीफ़ कहा जाता है इस को पढ़ने वाला क़यामत के रोज़ रबीआ और लमज़र क़बाइल

    से ज़ाइद अफ़राद की लशफ़ाअत करेगा वो सूरह यासीन है।

    ُرٌاْلمَّْنُثْور) (اَّلد ُ

    【११】हज़रत सय्यदनुा सफ़्वान बबन अमरू ٰنع ریض اہلل اعتیل फ़माफ़ते हैं: मशाइख़ ्कराम

    نع ریض اہلل اعتیلٰ फ़माफ़ते हैं कक आप क़रीबुल मगफ़ शख़्स के पास सूरह यासीन की नतलावत करेंगे तो उस से मोत

    की सख़्ती को हल्का ककया जाएगा। (ْنُثْور ُرٌاْلمَّ (اَّلد ُ

    【१२】हज़रत सय्यदनुा अबू बकर लसदीक़ ٰنع ریض اہلل اعتیل से ररवायत है कक हुज़ूर नबी करीम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या

    श्जस ने हर जुमे को अपने वाललदैन, दोनों या एक की क़ब्र की ज़्यारत की और उन के पास सूरह यासीन की

    नतलावत की तो अल्लाह तआला हर हफ़फ़ के बदले उस की बश्ख़्शश व मग़कफ़रत फ़माफ़ देता है। (तफ़्सीर

    मज़हरी, ُرٌاْلمَّْنُثْور (اَّلد ُ

    【१३】अता बबन अबी रब्बाह ٰنع ریض اہلل اعتیل कहते हैं कक मुझे हुज़ूर अक्रम ملسو هيلع هللا ىلص का ये इशाफ़द पोहींचा है, कक जो

    शख़्स सूरह यासीन को शरुू हदन में पढ़े उस की तमाम हदन की हवाइज पूरी हो जाएींगी। (दारमी)

    जन्नततयों को हुज़ूर ملسو هيلع هللا ىلص का सूरह ताहा व यासीन सुनाना:

    हज़रत अनस ٰنع ریض اہلل اعتیل से ररवायत है कक हुज़ूर नबी अक्रम ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या हक़ जल्ल जलालहू बवक़्त

    दीदार मदों को एक एक कर के सलाम करेगा और इसी तरह औरतों को सलाम करेगा और इशाफ़द फ़माफ़एगा

    मेरे दोस्तों और औललया को मरहबा हो किर उन की मेहमान नवाज़ी फ़माफ़एगा, किर इशाफ़द होगा ऐ फ़ररकतो!

    इन को तरबनाक यानन फ़रहत बख़्श बना दो। फ़ररकते जन्नत की नग़मा सराओीं यानन हूरऐन को लाएींगे

    और लोग तरब में आ आ कर ख़ूब वज्द करेंगे जब उन्हें अफ़ाक़ा होगा तो फ़ररकते अज़फ़ करेंगे ऐ हमारे रब!

    हम चाहते हैं कक आप इन्हें अपना कलाम सुनवाएीं। ख़ुदा तआला का इशाफ़द होगा ऐ दाऊद! इन्हें ज़रा मेरा

    कलाम तो सुना दीश्जये। वो लम ींबर पर चढ़ कर ज़बूर पढ़ें गे लोग तरब में आ कर वज्द करने लगेंगे, जब उन्हें

    अफ़ाक़ा होगा तो इशाफ़द ख़ुदावन्दी होगा कक ऐ मेरे बन्दो! तुम ने इस से ज़्यादा पाकीज़ह आवाज़ भी कभी

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    सुनी है...? वो अज़फ़ करेंगे नहीीं... ऐ हमारे रब! ख़ुदा तआला का इशाफ़द होगा अपनी इज़्ज़त व जलाल की

    क़सम! मैं अब तुम्हें इस से ज़्यादा पाकीज़ह तर आवाज़ सुनाऊीं गा। ऐ मुहम्मद ملسو هيلع هللا ىلص उहठए और लम ींबर पर

    चढ़ जाइए और सूरह ताहा व यासीन पहढ़ए पस हज़रत मुहम्मद ملسو هيلع هللا ىلص की आवाज़, आवाज़ ए दाऊद पर ख़ूबी

    में सत्तर हहस्सा बढ़ी हुई होगी और लोग तरब में आ आ कर ख़ूब वज्द करेंगे।

    ☆☆☆

    सूरह यासीन की बरकत के हैरत अंगेज़ वाक़्यात ्

    हाई ब्लड पे्रशर में मुअस्सर इलाज:

    मोहतरम भाई अब्दलु्वहीद साहब इस सच्चे वाक़ए के रावी हैं। एक हदन सूरह यासीन पर बात हो रही थी।

    उन्हों ने बताया कक १९७२ में उन्हें एक ख़ान साहब लमले। उन की कफ़शार ख़ून

    (ब्लड पे्रशर) बहुत बुलींद रहता था हर तरह के इलाज ककये। डॉक्टर से ले कर तबीब के टोटके तक सब

    आज़्माए कोई दवा कारगर ना हुई। किर अरसा दराज़ बाद उन से मुलाक़ात हुई तो वो बबल्कुल ठीक ठाक थे।

    मैंने वजह पूछी तो कहने लगे: एक शादी की तक़रीब में शरीक हुआ। उस हदन मेरी तबीअत ख़राब थी।

    महसूस हो रहा था कक बुलींद कफ़शार ख़ून क़ाबू में नहीीं। मैं तक़रीब छोड़ कर खड़ा हो गया। मेज़बान ने रोका

    और कहने लगे: खाना खुल गया है, खा कर जाइए। मैं ने मुआज़रत कर के जाने की वजह बताई। वहीीँ एक

    बुज़ुगफ़ बेठे थे उन्हों ने कहा: मैं तुम्हें एक आसान इलाज बताता हूाँ, जो बुलींद कफ़शार ख़ून को सही कर देगा।

    नमाज़ फ़ज्र पढ़ कर एक प्याले में पानी भररये। एक बार दरूद इब्राहीमी पहढ़ए किर एक बार सूरह यासीन,

    इस के बाद एक बार दरूद इब्राहीमी पढ़ कर

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    पानी पर दम कीश्जये और पी लीश्जये। इक्तालीस रोज़ मुसल्सल ये अमल कीश्जये। इन शा अल्लाह

    तआला बुलींद कफ़शार ख़ून मामलू की सतह पर आ जाएगा। ये अमल कम कफ़शार ख़ून (लौ ब्लड पे्रशर) में भी

    मुफ़ीद है, आज़्मा कर देख़खये। मैं ने ये अमल शरुू कर हदया। इस के बाद कभी ये लशकायत नहीीं हुई। बबल्कुल

    ठीक हूाँ कोई परहेज़ भी नहीीं करता हूाँ। इस के बाद मैंने कई हज़ार लोगों को ये अमल बताया और वो भी ठीक

    हो गए।

    फ़स्ल पर ततलावत के असरात (एक साइंसी तजुबाि):

    डॉक्टर अम्जद मुहलसन अल्मदनी ने बग़दाद यूननवलसफ़टी से एक हदल्चस्प मोज़ूअ पर पी एच डी की है। उन

    के तहक़ीक़ी मुक़ाले का मोज़ूअ था गींदमु के पौदों में अदराक हयात। उन्हों ने इस पर बाक़ाइदा तहक़ीक़ की।

    पाींच मुख़्तललफ़ ककयाररयों में गींदमु के बीज बोए और यकसाीं देख भाल करते रहे। एक ककयारी पर ताललबा

    की ये श्ज़म्मा दारी लगाई कक वो बैठ कर सूरह यासीन पढ़ा करे। वो ख़ुद भी क़ुरआन करीम की कुछ आयात

    पढ़ कर पानी पर दम करते और ककयारी में डाल देते। पााँचों ककयाररयों में पौदे ननकले और किर ख़ोशे लगे।

    जब दाने गगने गए तो श्जस ककयारी पर सूरह यासीन का पवदफ़ ककया गया था वहाीं सब से ज़्यादा ननकले। ये

    लसफ़फ़ सूरह यासीन का एअजाज़ था और क़ुरआन पाक की आयात का असर कक पौदों की नशो व नुमा बहुत

    बेह्तर हो गयी। यूाँ ननबातात में अदराक हयात का पहलू साबबत हो गया।

    बाग़बानी की शौक़ीन ख़ातून का तजुबाि:

    एक साहब ने ललखा कक मेरी एक जान्ने वाली ख़ातून लींदन में मुक़ीम हैं। उन्हें बाग़बानी का बहुत शौक़ है।

    उन का एक क़ीमती पोदा मुरझाने लगा ककसी तरह ठीक नहीीं हुआ। वो भी सुबह के वक़्त गमले के क़रीब बैठ

    कर नतलावत करने लगीीं। एक ही हफ़्ते में मुरझाया हुआ पोदा हरा हो गया और उस की नशो व नुमा बेह्तर

    हो गयी। अब उन्हों ने मामलू बना ललया है कक पौदों के पास बैठ कर रोज़ाना सूरह यासीन की नतलावत

    करती हूाँ।

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    ला इलाज मरीज़ा का इलाज:

    एक ख़ातून ला इलाज मज़फ़ में गगरफ़्तार थीीं। उन का मामूल था कक जब भी क़ुरआन पाक पढ़ती थीीं, सूरह

    यासीन ज़रूर एक बार पढ़ लेतीीं। उन से ककसी ने पूछा कक आप सूरह यासीन क्यूाँ पढ़ती हैं? उन्हों ने बताया

    "मैंने अपनी वाललदा को हमेशा क़ुरआन पढ़ने के बाद यासीन पढ़ते देखा है। वही आदत मुझे लमल गयी"

    रफ़्ता रफ़्ता वो इस सूरह की नतलावत कसरत से करने लगीीं। तजुफ़मा भी पढ़ लेतीीं। आख़ख़र अल्लाह ने उन के

    हाल पर रहम फ़माफ़या और उन्हें सेहत कालमला हालसल हो गयी।

    क़ब्र में से सही सालम वापस आ जाना:

    कलामुल्लाह शरीफ़ की तफ़्सीर के मशहूर मुफ़श्स्सर अल्लामा इमाम नालसरुदीन رحمة اهلل علي ة पर एक मतफ़बा

    सक्ता की हालत तारी हुई श्जस में इींसान की कैकफ़य्यत लमस्ल मुदाफ़ की हो जाती है लोगों ने उन को ये समझ

    कर कक उन का इन्तक़ाल हो गया है क़ब्र में दफ़न कर हदया। दफ़न करने के बाद हज़रत अल्लामा رحمة اهلل علي ة

    की हालत ख़त्म हुई तो क़ब्र में देखते हैं मगर कुछ नज़र नहीीं आता क़ब्र के अींदर अपनी बेचैनी की हालत में

    सूरह यासीन पढ़नी शरुू कर दी इतने में एक कफ़न चोर ने उन का कफ़न चुराने के ललए उन की क़ब्र के सब

    तख़्त ेहटा हदए हज़रत इमाम साहब जब अपनी क़ब्र से सीधे खड़े हुए तो कफ़न चोर ख़ौफ़ की वजह से फ़ौरन

    मर गया। अल्लाह तआला ने इमाम साहब को इस मुश्ककल से ननजात अता फ़माफ़ई, मुसल्मानों को चाहहए

    कक इस वाक़्या से इब्रत व सबक़ हालसल करें। (फ़ज़ाइल हहफ़ाज़ुल ्क़ुरआन)

    यासीन शरीफ़ का अपने पढ़ने वाले के बद्द ख़्वाह की आखँ तनकाल लेना:

    हज़रत इमाम शाफ़ई رحمة اهلل علي ة ने अपनी बअज़ तालीफ़ात में एक वलीयुल्लाह (जो कक ज़ुबैदा शहर के रहने

    वाले हैं) से नक़ल फ़माफ़या है कक उन्हों ने कहा है कक मैं जनाज़ा के साथ मग़ररब की नमाज़ के बाद गया दफ़न

    के बाद जब लोग चले आये और अाँधेरा हो गया तो मैं वहीीँ रुक गया मैं ने वहाीं देखा कक एक शख़्स कुत्ते की

    सूरत में क़ब्र में गया और ज़बान ननकालते हुए थका हुआ ननकला और सीधी आाँख से काना था मैं ने उस से

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    हाल मालूम ककया उस ने कहा कक मैं इस मय्यत से बुराई करने गया था मगर सूरह यासीन ने रोक हदया और

    मेरी आाँख ननकाल ली और मुझ से ककसी ने उसी वक़्त कहा कक ये शख़्स मुल्क भी पढ़ता होता तो वो सूरत

    तेरी दसूरी आाँख भी ननकाल लेती। (रोज़ुल ्ररयाहीन)

    सूरह यासीन की बरकत से शरीर ल्जन्ननी से हहफ़ाज़त:

    हज़रत सय्यदनुा अहमद बबन उबैदलु्लाह ریض اہلل اعتیلٰ نعہ फ़माफ़ते हैं कक मेरे वाललद साहब एक मतफ़बा ऐसे रास्ते

    से गुज़रे जहााँ श्जन्न भूत का बसेरा था हालाींकक वो दसूरों को इस रास्ते से गुज़रने से रोका करते थे वाललद

    मोहतरम का बयान है कक मैं वहाीं से गुज़र रहा था कक अचानक मुझे एक औरत हदखाई दी जो पीले रींग के

    कपड़े पहने एक तख़्त पर बेठी थी। उस के इदफ़ गगदफ़ गचराग़ जल रहे थे। उस औरत ने मुझे आवाज़ दी। मैं ने

    फ़ौरन यासीन शरीफ़ पढ़ना शरुू कर दी। जैसे ही मैं ने सूरह यासीन पढ़ना शरुू की तमाम गचराग़ बुझ गए।

    वो औरत ननहायत ही परेशानी के आलम में मुझ से कहने लगी: "ऐ अल्लाह के बन्दे! ये तुम ने मेरे साथ क्या

    ककया?" इस तरह मैं उस से महफ़ूज़ रहा। (ककताबुल अज़्मत स ४२०)

    शतैान का अँधा हो जाना:

    हज़रत सय्यदनुा सअल्बा बबन सुहैल ریض اہلل اعتیلٰ نعہ फ़माफ़ते हैं: "एक मतफ़बा मैं ने सेहरी में पीने के ललए कुछ

    पानी रखा मगर जब सेहरी के वक़्त पानी लेने के ललए गया तो वहाीं कुछ ना था। दसूरे हदन मैंने दबुारह पानी

    रखा और उस पर सूरह यासीन शरीफ़ पढ़ी। जब सेहरी का वक़्त हुआ तो मैं ने देखा कक पानी इसी तरह रखा

    हुआ है जब कक शतैान अाँधा हो कर घर के इदफ़ गगदफ़ चक्कर लगा रहा है।" (मकाइदल ्शतैानुल ्इब्न अबी अल-्

    दन्याज ४, स५३२)

    "सलामनु ्क़ौल-ल्म्म-र-्रल्ब्ब-र-्रहीम"

    ِحْیم) ٌر َّ ب ٌر َّ ْ ٌِِم ْوًلا ٌقَّ لٰم :इस्म आज़म है (سَّ

    एक बुज़ुगफ़ फ़माफ़ते हैं कक बअज़ उल्लमा ने इस आयत को इस्म आज़म के तौर पर नक़ल ककया है। राक़मुल-

    हरुफ़ का तजुबाफ़ है कक इस को श्जस भी मुसीबत में पढ़ा है या ककसी को ललख कर हदया है या ककसी पर दम

    ककया है तो उस से बहुत फ़ायदा ज़ाहहर हुआ है। मेरे उस्ताद हज़रत मौलाना मुहम्मद अब्दलु्लाह बेहल्वी

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    مةحइस आयत को अपने तावीज़ात और झाड़ िूाँ اهلل علي ة ر क में इस्तेमाल करते थे अल्लाह तआला आप की क़ब्र

    को और ज़्यादा मुनव्वर फ़माफ़ए। (आमीन)

    अल्लामा जलालुदीन सुयूती رحمة اهلل علي ة ने अपनी ककताब "अरफ़ह्मत कफ़ल ्नतब वश्ल्हक्मत" में ललखा है कक

    सूरह यासीन के दरम्यान में एक आयत है श्जस के पाींच कललमात हैं..... अगर कोई शख़्स उस को तलाश कर

    ले तो उस का हाकफ़ज़ा भी तेज़ हो जाएगा और इसरार ख़फ़ु्या पर भी मुतल्लअ होगा इस आयत के इस्तेमाल

    का तरीक़ा ये ललखा है कक इस को बावज़ू हो कर ककसी पाक बतफ़न पर ललख कर रोज़ाना पाींच हदन तक पानी

    में घोल कर पी ललया जाए। बन्दा ने वो आयत तलाश की तो वो "सलामुन ्क़ौल-श्म्म-र-्रश्ब्ब-र-्रहीम"

    ِحْیم) ٌر َّ ب ٌر َّ ْ ٌِِم ْوًلا ٌقَّ لٰم लमली। वल्लाह आअलम (سَّ

    सूरह यासीन के ज़ररए एक ना अहल शागिदि से फ़ैज़ सलब करने का वाक़्या:

    एक बे अदब और गुस्ताख़ शख़्स ने मशहूर शख़ै से कक़रआत ्सबआ की तालीम हालसल की जब

    वो फ़ाररग़ हो कर अपने वतन लोटा तो ककसी ने उस से कहा: क्या ही ख़ूब होता अगर लसफ़फ़ एक ऐब तुम्हारे

    अींदर ना होता वो ये कक तुम्हारा शख़ै तो फ़लाीं और ऐसा है। उस बे अदब ने जवाब हदया ये कोई हजफ़ की बात

    नहीीं क्योंकक मैं ने शहद चाट ललया है और बतफ़न छोड़ हदया है। उस की ये बात उस्ताद को पोहींची तो उस ने

    अपने शागगदफ़ और साथी क़ुराअ को जमा ककया और कहा इस ननय्यत से सूरह यासीन पढ़ो कक हमारा शहद

    हमारी तरफ़ लोट आये चुनाचे जब उन लोगों ने सूरह यासीन मुकम्मल पढ़ ली तो उस बे अदब शागगदफ़ के

    सीने से कक़रआत का फ़ैज़ सलब हो गया श्जस पर वो उस्ताद की तरफ़ रुजूअ हुआ। बबदआत से तोबा ताइब ्

    हुआ, ग़फ़्लत की नीींद से बेदार हुआ और किर अल्लाह तआला ने उस पर अपनी रहमत का फ़ैज़ बसाफ़या।

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    कँुवें के पानी का ऊपर आ जाना:

    एक वाक़्या क़ारी उबैदलु्लाह उफ़फ़ लाला का तज़्करह ग़ोस्या में मोलवी हाकफ़ज़ क़ारी गुल हसन

    اهلل علي ة

    مةح رحمة اهلل علي ة ख़लीफ़ा सानी मौलाना सय्यद ग़ोस अली शाह क़लन्दर पानी पत्ती ने अपने शख़ै मौसूफ़ ر

    के हवाले से ललखा है श्जस को उन्हीीं के अल्फ़ाज़ में नक़ल ककया जाता है। एक रोज़ इशाफ़द हुआ (यानन सय्यद

    ग़ौस अली शाह साहब رحمة اهلل علي ة ने फ़माफ़या) कक भोपाल में क़ारी उबैदलु्लाह उफ़फ़ क़ारी लाला साहब से

    मुलाक़ात हुई। हम ने उन को क़ुरआन शरीफ़ सुनाना शरुू ककया। वो कहने लगे: आप के ललए सीधा सादह

    पढ़ लेना काफ़ी है। उन के इशाफ़द से हमारा ख़्याल भी पलट गया। एक हदन क़ारी साहब से हम ने पूछा कक

    आप को अपने से बेह्तर भी कोई क़ारी लमला? फ़माफ़ने लगे कक हााँ एक मतफ़बा मैं दकन को जा रहा था राह में

    एक गााँव में ठहरा और हस्बे आदत पूछा कक यहााँ कोई क़ारी भी है? लोगों ने कहा कक क़ारी तो हम जानत ेनहीीं

    मगर एक अींधे हाकफ़ज़ मश्स्जद में लड़के पढ़ाया करते हैं जब उन के पास गया तो देखा कक लड़के बाहर बेठे हैं

    और हाकफ़ज़ जी हुजरे में हैं एक एक लड़का जाता है और सबक़ पढ़ कर चला आता है जो लड़का अींदर जाने

    वाला था उस की मआररफ़त मैं ने अपनी इत्तला कराई तो हाकफ़ज़ जी ने अींदर बुला ललया। लमज़ाज पूछा। मैं

    ने कलाम मजीद सुन्ने का इकत्याक ज़ाहहर ककया। फ़माफ़या पहले आप पढ़ें। ख़ैर मैं ने एक रुकूअ पढ़ा तो

    हाकफ़ज़ नाबीना के कान खड़े हो गए और कहा कक क्या तुम क़ारी लाला हो। मैं ने कहा हााँ! आप ने क्यूाँकर

    पहचाना? उन्हों ने कहा कक आज सारे हहींदसु्तान में इस शद्द् व मद के साथ पढ़ने वाला लसवाए क़ारी लाला के

    और कोई नहीीं है इस के बाद हाकफ़ज़ जी ने पढ़ना शरुू ककया। लसफ़फ़ "अऊज़ु" ( ُذْ पढ़ी थी कक एक बतफ़न जो ( اَُعو

    उन के पास रखा था उस का सरपोष हहला और रुकूअ शुरू करते ही वो सरपोष गज़ भर ऊीं चा ठहरा रहा। जब

    हाकफ़ज़ जी पढ़ चुके तो वो अपनी जगा पर आ गया मुझे बहुत हैरत हुई उन्हों ने ख़ामोशी का सबब पूछा मैं ने

    ये माजरा बयान ककया। फ़माफ़या: तुम्हें क़ाल में यद् तोला है मुझे हाल में..... और मैं तमाम कलाम मजीद का

    आलमल हूाँ अभी तुम को और भी तमाशा हदखाऊीं गा ग़ज़फ़ ज़ुहर के वक़्त मुझे जींगल में ले गए वहाीं एक कुाँ वा

    था कहा आओ.... वज़ू कर के नमाज़ पढ़ लें, मैं ने कहा बहुत अच्छा, मैं रहट खेंचता हूाँ आप वज़ू करें। कहा इस

    की ज़रूरत नहीीं तुम सूरह यासीन कुाँ वें के ककनारे पर खड़े हो कर पढ़ो मैं ने पढ़ना शरुू की और पानी ने जोश

    मारा आख़ख़र पढ़ते पढ़ते पानी ककनारे पर आ गया हम ने वज़ू कर के नमाज़ पढ़ी किर सैर करते हुए दसूरे

    कुाँ वें पर पोहींचे।

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    इब्राहीम बबन अधम का ख़ास अमल:

    सहल तुस्री رحمة اهلل علي ة फ़माफ़ते हैं कक एक शख़्स ने इब्राहीम बबन अधम رحمة اهلل علي ة के पास आ कर कहा कक आप

    सूरह यासीन के बारे में क्या फ़माफ़ते हैं? फ़माफ़या: इस में एक इस्म है श्जस को वो मालूम हो जाए और वो उस

    इस्म से जो दआु माींगे तो वो दआु क़ुबूल हो जाती है। दाई ख़्वाह नेक हो या बद, बशतेकक उस इस्म को उन

    कललमात के साथ ज़म करे जो उस इस्म के साथ ख़ुसूलसयत रखते हैं उस शख़्स ने अज़फ़ की ख़ुदा आप का

    भला करे आप ये फ़माफ़एाँ कक मैं सारी सूरत से दआु माींग ललया करूाँ फ़माफ़या नहीीं ख़ास उसी एक इस्म को उन

    अल्फ़ाज़ के साथ लमला कर दआु माींगें जो उसी इस्म के ललए ख़ास हैं क्योंकक ख़ुदा तआला ने श्जस तरह

    बीमारी पैदा कर के उस की दवा भी पैदा की इसी तरह उस ने अपने हर एक इस्म के ललए एक ख़ास शै पैदा

    की है श्जस से दआु माींगी जाए तो क़ुबूल हो जाती है। रसूलल्लाह ملسو هيلع هللا ىلص ने फ़माफ़या है कक हर एक शै का हदल

    होता है और क़ुरआन का हदल सूरह यासीन शरीफ़ है पस यही शराफ़त और उन इस्मों की अज़्मत ही इस

    सूरत के ललए काफ़ी है। क्योंकक अल्लाह तआला ने इस सूरत को क़ुरआन शरीफ़ का हदल क़रार हदया है और

    बदन हैवानात में ज़्यादा शरीफ़ उज़्व यही हदल ही होता है और ये इस सूरत की शराफ़त इस इस्म की

    शराफ़त की वजह से है जो इस सूरत में है।

    जान्ना चाहहए कक सूरत यासीन में अल्लाह तआला के इस्मों में से एक इस्म हकीम है श्जस के हफ़ों के राज़

    पर अगर ककसी को इत्तला हो जाए और वो पाक साफ़ और मुतवज्जह बकक़ब्ला इस को ललखे और धो कर

    इस इस्म के श्जतने एअदाद हैं उतने हदनों में पीता रहे ख़ुदा उसको हहक्मत की बातें करने का मल्का इनायत

    फ़माफ़एगा और मख़्लूक़ात के राज़ उस पर खोल देगा और वो इस्म इस सूरत के दरम्यान में वाकक़अ है श्जस

    के पाींच कल्मे और सोला हरुफ़ हैं श्जन में चार हफ़फ़ मींक़ूत हैं। दो हफ़ों के नीचे नुक़्ते और दो के ऊपर और इस

    में आलम रबीई और आलम नतबई और आलम तरकीबी का राज़ है और इस ललए कक चार को चार से ज़बफ़ देने

    से सोला हो जाते हैं और इस अमल के कुल हरुफ़ १६ ही हैं इसी राज़ पर आसमान और ज़मीन और अशफ़ व

    कुसी क़ाइम हैं और इसी के सबब रूह-उल-् क़ुदसु ने

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    एहतराक़ात फ़ल्क्या और क़वाए नूरननया में क़ुदरत पाई है और उसी के सबब रूह क़ाललब हैवानी में क़रार

    पकड़ती है और इसी के सबब इस सूरत को दसूरी सूरतों पर फ़ज़ीलत और शराफ़त लमली है और ये बात "ता-

    सीन"् ( ٌٌٰط س ) और ता-सीन-्मीम ( ٌسمٰط ) में नहीीं है क्योंकक "ता" ( ط) का मानई "सीन"् ( س ) के मानए से

    मुतसल है और "यासीन" (ٰیسین) में "य" ( ي) का मानए "सीन"्

    के मानए से मुतसल नहीीं है क्योंकक ये बानतन के मानए में है। (س )

    इस सूरह के साथ दआु मांिने का तरीक़ा:

    जो शख़्स इस इस्म की बरकत हालसल करने का इरादा करे तो हहलाल के बढ़ने के हदनों यानन चााँद की पहली

    तारीख़ों में तीन हदन अख़्त्यार करे। जुमा, हफ़्ता, इत्वार इन तीनों हदनों में ग़सु्ल कर के ख़ूब पाक साफ़

    सुथरे कपड़े पहन कर कपड़ों को ख़ुकबू लगाए और रोज़े रखे और ख़ैरात करे और ऊीं ची नीची कोई बात चीत ना

    करे और इस अस्ना में हींसी और हदल लगी सुस्ती ग़फ़्लत फ़ख़्र व तकब्बुर को अपने नज़्दीक ना आने दे

    क्योंकक ये बड़ी अज़्मत वाला इस्म है इस की ताज़ीम वही करता है श्जस को उस के राज़ पर वाश्क़्फ़यत है

    और वो इस्म हयात है जो आफ़्ताब में ललखा हुआ है। इसी इस्म को इस्राफ़ील ् السالم علیہ सूर में िूीं कें गे और

    इन तीन हदनों में हर वक़्त बावज़ू रहे और इन हदनों में हर कक़स्म की हैवानी अकया से परहेज़ रखे जब इत्वार

    का हदन आए तो सुबह की नमाज़ के बाद तुलूअ आफ़्ताब के वक़्त आफ़्ताब की तरफ़ मुतवज्जह हो कर बैठ

    जाए और इस्म से तीन बार दआु माींग कर अपनी हाजत की दआु करे और जब आफ़्ताब ख़ख़त अस्तवा पर

    आ जाए तो उस वक़्त २ बार दआु माींगे और जब आफ़्ताब ग़रुूब होने लगे तो उस वक़्त एक बार दआु माींगे।

    किर अगर इस इस्म की पत्थर को भी क़सम देगा तो वो ज़रूर िट जाएगा और इस इस्म को अगर इत्वार या

    जुमेरात के हदन लमगी वाले या क़ज़फ़दार या परेशान हाल शख़्स के वास्ते ललखे या ककसी और ऐसे काम में उस

    को इस्तेमाल करे श्जस में अल्लाह तआला की ख़ुकनोदी हो तो फ़ायदा होगा।

    फ़ायदा: बुज़ुगों ने फ़माफ़या कक ये सारे कमालात सूरह यासीन की एक आयत "सलामुन ्क़ौल-श्म्म-र-्रश्ब्ब-र-्

    रहीम" (سلمٌقوًلٌِمٌربٌالرحیم) में है।

    ☆☆☆☆☆

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    सूरह यासीन के फ़वाइि बुज़ुगाान ्िीन के मुशादहिात की रौशनी में:

    (१) हज़रत मुक़री رحمة اهلل علي ة कहते हैं कक जब बादशाह या दकुमन का ख़ौफ़ हो और उस के ललए सूरह यासीन

    पढ़े तो वो ख़ौफ़ जाता रहता है। श्जस ने सूरह यासीन और सूरह वस्साफ़्फ़ात जुमे के हदन पढ़ी और किर

    अल्लाह से दआु की उस की दआु पूरी होती है।

    (२) यह्या बबन कसीर رحمة اهلل علي ة ने फ़माफ़या जो शख़्स सुबह को सूरह यासीन पढ़ ले वो शाम तक ख़ुशी और

    आराम से रहेगा और अगर शाम को पढ़ ले तो वो सुबह तक ख़ुशी में रहेगा और फ़माफ़या कक मुझे ये बात ऐसे

    शख़्स ने बताई है श्जस ने इस का तजुबाफ़ ककया है। (इब्न अल्फ़रीस, तफ़्सीर मज़्हरी)

    (३) अज़ीम मुफ़स्सर अल्लामा अबू अल्बरकात अब्दलु्लाह बबन अहमद इब्न महमूद अल्नस्फ़ी ने अपनी

    मकहूर "तफ़्सीर मदारक अल्तींज़ील" में नक़ल ककया है कक जो शख़्स सूरह यासीन पढ़ेगा अगर भूका होगा तो

    उस को आसूदह ककया जाए। प्यासा पढ़े तो सेराब ककया जाए। नींगा पढ़े तो ललबास लमले। अगर ख़ौफ़ व

    हरास ्में होगा तो उसे अम्न व सुकून दे हदया जाएगा, अगर वह्शत ज़्दह होगा तो उसकी वह्शत दरू कर दी

    जाएगी, अगर वो मुहताज होगा तो ख़ुदा उस की अहत्याज दरू कर देगा। अगर क़ैद में होगा तो अल्लाह पाक

    उस को ररहाई अता कर देगा, अगर रास्ता भटका हुआ पढ़ेगा तो ख़ुदावन्द तआला उस की रहबरी फ़माफ़ते हुए

    मींश्ज़ल पर पोहींचा देगा। अगर मक़ू्रज़ पढ़ेगा तो अल्लाह उस का क़ज़फ़ अपने ख़ज़ानों से अदा कर देगा

    परवहदफ़गार आलम उस से हर मुसीबत टाल देगा और उस की हर हाजत को पूरा फ़माफ़एगा। (तफ़्सीर मदारक

    अल्तींज़ील)

    (४) दीगर बुज़ुगाफ़न दीन के मुशाहहदात में है कक सूरह यासीन अगर ग़ैर शादी शदुह पढ़े तो उस की जल्द

    शादी हो जाएगी।

    ☆ बीमार पढ़े तो जल्द तींदरुुस्ती पाए। ☆ क़ैदी पढ़े तो ग़ैब से ररहाई के अस्बाब बन जाएीं। ☆ ग़म में मुब्तला

    शख़्स पढ़े तो जल्द उन से छुटकारा पाए। ☆ ककसी चीज़ की गुम्शदु्गी में पढ़े तो वो चीज़ जल्द लमल जाए या

    उसका बेह्तर नेअमुल ्बदल लमल जाए।

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    (५) एक बुज़ुगफ़ फ़माफ़ते हैं: श्जस ने सूरह यासीन पढ़ी और किर अल्लाह तआला से दआु की तो वो दआु

    ज़रूर पूरी होती है जो शख़्स ख़ुलसू ननय्यत के साथ पाबन्दी से सूरह यासीन पढ़ता है वो ज़रूर जन्नत में

    जाएगा और उस की दीन व दनु्या की तमाम मुश्ककलें आसान हो जाएींगी।

    (६) हज़रत सय्यदनुा अबू जाफ़र मुहम्मद बबन अली رحمة اهلل علي ة फ़माफ़ते हैं: जो शख़्स अपने हदल में सख़्ती

    पाए तो वो एक प्याले में ज़ाफ़रान से "यासीन वल्क़ुरआनन-ल-्हकीम" ललखे किर उसे पी ले (इन शा अल्लाह

    तआला उस का हदल नरम होगा।)

    हमारे एक वाकक़फ़ कार क़ारी अन्वर कमाल ने सूरह यासीन के बारे में बताया "जब भी मुझे कोई

    मुश्ककल पेश आए, मैं अहल ख़ाना के साथ लमल कर अवल आख़ख़र तीन मतफ़बा दरूद शरीफ़ और ८१ बार

    सूरह यासीन पढ़ कर दआु करता हूाँ। तीन हदन पढ़ने से मुश्ककल हल हो जाती है।" सूरह यासीन को हर

    मुश्ककल और परेशानी का हल बताते हैं।

    ☆☆☆☆☆

    उजड़े घरों को आबाि करने का ख़ास अमल

    मुर्शिद हज्वैरी से हार्सल हुई ख़ास अमानत:

    ये अमानत दर असल मुझे मेरे मुरब्बी और शख़ै हज़रत ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अब्दलु्लाह अबक़री

    मज्ज़ूब رحمة اهلل علي ة श्जन की सारी श्ज़न्दगी अल्लाह तआला के हुक्म और सवफ़रर कौनैन ملسو هيلع هللا ىلص के तरीक़ों पर

    गुज़री इस अमल की बदौलत उन्हों ने उजड़ते घरों को हाँसता बस्ता देखा। वीरान दकुानों को आबाद देखा।

    बबाफ़द ख़ान्दानों को ख़ुकहाल देखा। मायूस लोगों को पुर आस देखा। हत्ता कक जो लोग अपने मसाइल,

    मुश्ककलात, परेशाननयों की वजह से ख़ुदकुशी पर तुल आए थे बाद में वही लोग एक हींसती मुस्कुराती आबाद

    और शाद, शान्दार और जान्दार, शादाब, तर व ताज़ह श्ज़न्दगी गुज़ार रहे हैं।

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    ८० साला आज़मूदह अमल:

    मैं ने इस मज़्मून को नो हहस्सों में तक़्सीम ककया है। क़ाररईन! आप ख़ुद सोचें सूरह यासीन क़ुरआन का

    हदल है और क़ुरआन मजीद ककतनी पुर अज़्मत ककताब है। मेरी कोलशश होगी कक अब तक के भी

    मुशाहहदात (मेरे और मेरे हज़रत शख़ै رحمة اهلل علي ة के और दीगर लोगों के) वो आप तक अमानत समझ कर

    पोहींचाऊीं मुझे सो फ़ीसद उम्मीद है कक आप इस से इस्तेफ़ादह करेंगे। और आप के मसाइल इन शा अल्लाह

    हल होंगे। एक ऐसा अमल जो गुज़कता ८० सालों से आज़्माया जा रहा हो और श्जस ने भी यक़ीन, एतमाद

    तवज्जह और यकसूई से इस अमल को ककया वो अल्लाह के फ़ज़्ल व अह्सान से काम्याब हुआ।

    आज़्माए सच्चे मुशादहिात

    इस तमाम मज़्मून में मेरी गुफ़्तुगू का मह्वर ्तीन मकफ़ ज़ी चीज़ें होंगी। १- मेरे और मेरे हज़रत رحمة اهلل علي ة के

    वसीअ मुशाहहदात व तजुबाफ़त २- श्जन लोगों को मैं ने बताया और उन्हों ने ककया उन के मुशाहहदात,

    तजुबाफ़त। ३- वो ख़ुतूत जो मुझे मोसूल हुए। श्जन में ददफ़ भरी और सोज़ भरी दास्तानें आाँखों को ग़म्नाक कर

    देती हैं।

    उजड़े घर का आबाद हो जाना:

    एक ख़ातून का ख़त लमला, ललखा था कक बच्पन में मेरे वाललद साहब फ़ॉत हो गए थे। मेरे चचा ने मुझे

    पाला उन के फ़ॉत होने की दास्तााँ भी अजीब है कक ख़ान्दानी दकुमनी की वजह से उन दोनों को क़त्ल कर

    हदया गया था। मगर

    क़ुदरत इलाही उन के इरादों से अल्लाह तआला ने मुझे बचा के हदखाया मेरे चचा ने अपनी दो बेहटयों के

    साथ तीसरी बेटी मुझे बना ललया। वो मुझ से बहुत मुहब्बत करते थे मेरी हर ज़रूरत का ख़्याल रखते थे,

    श्ज़न्दगी के हदन रात गुज़रते गए मैं ने बी ए कर ललया। मेरी दो कश्ज़न मुझसे बड़ी थीीं मेरे चचा ने उन की

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    शादी कर दी उस के बाद उन्हें मेरी कफ़क्र लाहक़ हुई चूाँकक मेरे नाम मेरे वाललद की वजह से अच्छी ख़ासी

    जाएदाद थी इस ललए बहुत ररकते आना शरुू हुए। मेरे चचा ने अपने बेटे से शादी इस वजह से ना की कक लोग

    ये ना समझें कक दौलत और जाएदाद के लालच की वजह से कक जाएदाद मेरे घर से ना जाए। इस ललए अपने

    बेटे की शादी कर दी। हमारे दरू परे के ररकतेदार थे उन का बेटा "स" जो कक आला नींबरों में इींजीननयररींग से

    फ़ाररग़ हुआ था मेरी शादी उस से कर दी गयी। श्ज़न्दगी का तो ये हहस्सा बहुत अच्छा रहा। मेरे चचा ने मुझे

    बहुत जहेज़ हदया। मेरा ख़ावन्द मुझ से मुहब्बत ख़ुलूस से पेश आया। हदन रात गुज़रते गए कुछ अरसे बाद

    मेरी सास,सुसर और ख़ावन्द का रवय्या तब्दील हो गया। मैं बहुत हैरान थी आख़ख़र ये क्या हुआ मेरी

    ख़ख़दमत में कमी नहीीं, अताअत में सुस्ती नहीीं, फ़माांबदाफ़री में गुस्ताख़ी नहीीं, लेककन बात ये खुली उन का

    मुताललबा ये था कक मेरी तमाम जाएदाद उन के बेटे यानन अपने ख़ावन्द के नाम कराऊाँ मेरे चचा भी देने को

    तय्यार थे और उस की तमाम आम्दनी दे भी रहे थे। लेककन वो तमाम जाएदाद ख़ुद सींभालना चाहते थे मेरे

    पेश नज़र शमफ़ व हया, हहजाब था कक मैं चचा से कैसे कहूाँ। बात बढ़ते बढ़ते आख़ख़र कार अब तलाक़ तक

    पोहींच गयी उन्हों ने मुझे चचा के घर भेज हदया है आख़ख़र कार मैंने चचा से भी कहा उन्हों ने जाएदाद ललख

    कर दे भी दी लेककन उन्हों ने मुझे, मेरे दो मासूम बच्चों को बहुत श्ज़ल्लत व रुस्वाई से घर से ननकाल हदया

    है। मोहतरम क़ाररईन! उस ख़ातून का जब ये ददफ़ भरा ख़त मेरे पास पोहींचा तो मैं ने सूरह यासीन का ख़ास

    अमल पढ़ने को हदया क्योंकक घरदार बा हया बा पदाफ़ और दखुी ख़ातून थी जो ककसी पेशावर आलमल पीर के

    पास जा नहीीं सकती थी। उस ने मेरे इस अमल को बहुत तवज्जह और ग़ौर से पढ़ा मैं ने उस बहन को ललखा

    कक इस अमल को नव्वे हदन पढ़ें ख़वातीन के जो वक़्फ़े के हदन होते हैं वो बाद में पूरे करे कुछ अरसे के बाद

    मुझे उस ख़ातून का ख़त लमला। उस ने ललखा कक इस ख़त को ललखते हुए रो रही हूाँ। वो ख़ावन्द कक श्जस के

    वकील ने मुझे तलाक़ के काग़ज़ात ललख हदए थे मेरे ख़ावन्द के लसफ़फ़ दस्तख़त होना बाक़ी थे, वो मेरे ललए

    किर वही ख़ावन्द बन गया जो शादी के अव्वलीन हदनों में था। उस ख़ातून ने ललखा मैं हैरान हूाँ ससुर श्जस ने

    मेरे मरहूम बाप को और मुझे गाललयाीं दे कर घर से धक्के दे कर ननकाल हदया था वो मेरे ललए मुहब्बत व

    ख़ुलूस का सहारा बन गया। क़ाररईन! यक़ीन जाननये ये अमल उजड़े घरों को बसाने और बहती आाँखों को

    चुप कराने के ललए अक्सीर मरहम से बढ़ कर है।

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    बद्द चलन शौहर का राह रास्त पर आ जाना:

    इसी तरह का एक और वाक़्या है मेरे पास इलाज की ग़रज़ से इस्लाम आबाद के श्क्लननक में एक ख़ातून

    आई। उस की दोनों कलाइयाीं सोने से भरी हुई थीीं लेककन उस का चेहरा आींसुओीं से भरा हुआ था। वो रो रो कर

    अपनी दास्तान बयान कर रही थी कक उस का ख़ावन्द बहुत बड़ा सनअत कार है उस के ख़ावन्द ने

    मुलाश्ज़मत के ललए आई हुई एक लड़की से दोस्ती लगा कर उसे अपने पास रख ललया है।

    बक़ोल ्उस ख़ातून के, मेरी मालमूात के मुताबबक़ ननकाह भी नहीीं ककया। वो लड़की मेरे आाँगन में साींप की

    तरह मुझे डस रही है। क़ाररईन! यक़ीन जाननये वो ख़ातून इस्लाम आबाद के एक बहुत अमीर सेक्टर की

    ररहाइशी थी उस का अींग अींग रो रो कर पुकार पुकार कर फ़याफ़द कर रहा था। मैं ने उस ख़ातून को तसल्ली दी

    और अज़फ़ ककया कक वो तमाम और अमल वज़ीफ़े छोड़ कर सूरह यासीन का ख़ास अमल पढ़े तवज्जह ध्यान

    एतमाद और यक्सूई ज़रूरी है वरना फ़ायदा ना होगा उस ख़ातून ने मुझ से वादा ककया और चली गयी चूाँकक

    इस्लाम आबाद हर माह जाना होता था, आइन्दा माह किर लमली कहने लगीीं फ़क़फ़ नहीीं पड़ा और ये भी कहने

    लगी कक मुझे आप पर एतमाद है, मायसू नहीीं हूाँ। मैं ने उसे मुस्तक़ल पढ़ने की ताकीद की दसूरे माह किर

    ख़ातून तश्रीफ़ लाईं और मस्रूर थीीं कहने लगीीं, मुझे खोई हुई इज़्ज़त लमल गयी है और क़ाररईन! ये लफ़्ज़ उस

    नेक सालेह ख़ातून ने इस अींदाज़ से कहा मैं उसे बयान नहीीं कर सकता। कहने लगीीं ना मालूम क्या हुआ।

    जैसे कोई ख़्वाब से जागता है मेरे लमयाीं की आाँखें खुल गयी हैं अब वो किर वही हैं जो पहले थे।

    मेरे ख़ावन्द ने उस नाजाइज़ तअल्लुक़ वाली लड़की से हर कक़स्म का ररकता छोड़ हदया है। पहले तो मैं

    महीनों बीमार रहती थी। अींदर अींदर ही कुढ़ती रहती। मेरे लमयाीं मेरा हाल तक ना पूछते। एक दफ़ा ऐसा भी

    हुआ था कक मैं सीहढ़यों से गगर गयी थी और मुझे हत्ता कक ख़ासी चोटें आईं लेककन मेरे लमयाीं के कान पर जूीं

    तक ना रेंगी और मैं अींदर ही अींदर रोती रही, उन्हें मेरे तन से नफ़रत थी। हत्ता कक मेरे बच्चों तक से नफ़रत

    थी। अब वो तमाम नफ़रतें मुहब्बतों में बदल गयी हैं वाक़ई ये अमल एक अल्लाह तआला का मुअज्ज़ा और

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    ख़ास अता है। मज़ीद उस ख़ातून ने कहा कक अब इस बाबरकत और बा सआदत अमल को कभी नहीीं छोड़

    पाऊाँ गी।

    तीन बेहियों की परेशान कुन ्कहानी:

    कुएटा से उम्र रसीदह बुज़ुगफ़ और साथ उन की उम्र रसीदह बेटी तश्रीफ़ लाईं। बुज़ुगफ़ की सफ़ेद दाढ़ी और बा

    शरअ शकल, चेहरे पर नूरानीयत, गुफ़्तुगू का सलीक़ा देख कर मैं मुतालसर हुए बग़ैर ना रह सका। उन का

    अल्म्य ये था कक उन की तीन बेहटयाीं थीीं और तीनों उन्हों ने सोच समझ कर अच्छे घरों में ब्याहीीं लेककन

    लसतम ज़रीफ़ी तीनों दामाद कुछ इस अींदाज़ से पेश आए कक ये शख़्स ख़ून के आींसू रो कर रह गया। तीनों

    दामादों ने बेहटयों को बहुत तींग ककया ना उन की कोई दवा, ना ललबास और ना बच्चों की तालीम पर

    तवज्जह ना खाने पीने का सलीक़ा और ना घर पर तवज्जह। उन तीनों बेहटयों में से एक जो सब से ज़्यादा

    सताई हुई साथ खड़ी थी। वो बुज़ुगफ़ कहने लगे कक अब तक ९२ हज़ार मुअज़्ज़ज़ ्आलमलों पर ख़चफ़ कर चुका

    हूाँ। बहुत तावीज़ ललए अमल व टोने ककये लेककन ककसी से कुछ फ़ायदा नहीीं हुआ मुआम्ला रोज़ बरोज़

    उलझ्ता गया। हत्ता कक मेरी इस बेटी के ख़ावन्द ने इस बेटी को कह हदया कक वो या तो ख़ुद अपने वाललद के

    घर चली जाए वरना धक्के दे कर ननकाल दूींगा। वो बुज़ुगफ़ रो रो कर दास्तान बयान कर रहे थे। मज़ीद कहने

    लगे ये बेटी इन दो कपड़ों के साथ अकेली तन तन्हा मेरे घर आ गयी। मेरी एक ररकतेदार ख़ातून के भाई ने

    आप का पता हदया है बहुत मुश्ककल से यहााँ पोहींचा हूाँ टे्रन के लम्बे सफ़र ने मेरे बाल बाल को थका हदया है मैं

    ने उन्हें तसल्ली दी और उन्हें दरख़्वास्त की कक वो ये सूरह यासीन का ख़ास अमल अपनी तमाम बेहटयों को

    पढ़ने के ललए दें तीनों बेहटयाीं ये अमल तवज्जह ध्यान से ४० हदन या ज़्यादा से ज़्यादा ९० हदन ज़रूर पढ़ें

    और अगर घर में और अफ़राद लमल कर पढ़ें यानन हर शख़्स ये अमल करे तो ज़्यादा फ़ायदा होगा। वो बुज़ुगफ़

    तश्रीफ़ ले गए कोई साल भर के बाद उन का ख़त लमला कक मेरी दो बेहटयों ने ये अमल पढ़ा था एक ने नहीीं

    पढ़ा। श्जन दो बेहटयों ने अमल पढ़ा था। उन के साथ मआुम्ला ठीक हो गया है हत्ता कक पहले मेरी बेहटयों के

    बच्चे मााँ से गुस्ताख़ी करते थे तो बाप उन्हें रोकता टोकता नहीीं था बश्ल्क बहुत मुस्कुराता रहता था। लेककन

    अब बच्चे थोड़ी सी भी गुस्ताख़ी करते हैं तो बाप उन्हें ताँब्य करता है और डाींटता है और मााँ का अदब लसखाता

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    है, मुझे अफ़्सोस है कक मेरी तीसरी बेटी भी ये अमल पढ़ लेती तो उस का मुआम्ला भी अच्छा हो जाता।

    लेककन क्या करूाँ वो मग़ररबी लमज़ाज की हदल्दादह है।

    बीवी की लापरवाही का दरू हो जाना:

    एक साहब मेरे पास आए और बहुत ददफ़ से बयान करने लगे मेरी शादी को १७ साल हो गए हैं लेककन मेरी

    बीवी ने मेरे घर को आज तक अपना घर नहीीं सम्झा मुझे याद नहीीं कक कोई हदन चैन से गुज़रा हो। वो या तो

    हदन का कुछ हहस्सा टी वी के सामने गुज़ारती है या अड़ोस पड़ोस में या ककसी फ़ीं क्शन या शादी में जाने की

    तय्यारी में या किर अपने मेके। घर का कोना कोना गन्दा हुआ पड़ा है कपड़े जगा जगा बबखरे हुए। बच्चों के

    स्कूल बैग, जूते बबखरे हुए। बच्चों के स्कूल की वदी मेली रहती है। मुझसे कोई हदल्चस्पी नहीीं हर सीधी बात

    का उल्टा मत्लब ननकालती है, अब तो मैं भी इस्लाह कर के थक गया हूाँ। कई दफ़ा सोचा कक तलाक़ दे दूाँ

    मगर छे बच्चे देख कर रुक जाता हूाँ बहुत कोलशश की सम्झाने की, बड़ों को बीच में डाला लोगों से केहल्वाया

    मगर वो ख़ातून मानने का नाम नहीीं लेती हत्ता कक अब तो मुझे बअज़ औक़ात उस के ककदाफ़र में से इख़्लाक़ी

    हालत में शक होने लगा है। वो साहब मुझ से कहने लगे मैं एक मामूली सी मुलाश्ज़मत करता हूाँ श्जस से

    बच्चों के तालीमी अख़्राजात बमुश्ककल पूरे होते हैं। एक तरफ़ मुझ पर बच्चों का ख़चाफ़ और एक तरफ़ अकेली

    मेरी बीवी का ख़चाफ़, थक गया हूाँ, मैं चोरी करूाँ , डाके डालूाँ आख़ख़र कहााँ से लाऊाँ मुझे मकवर�