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DIPLOMA IN yOgA AND NAturOPAthy CODE DYn-04 पंचमहाभूत वध[मान महावीर खुला विæवधालय , कोटा (राजèथान)

DIPLOMA IN yOgA AND NAturOPAthyassets.vmou.ac.in/DYN04.pdf · पाचन तंतु के मोटे bप म¤ आहार नाल के नाम से जाना

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  • DIPLOMA IN yOgA AND NAturOPAthy CODE DYn-04

    पंचमहाभतू

    वधमान महावीर खुला वि वधालय, कोटा (राज थान)

  • DYN-04

    VMOU Page 1

    पाठ्य म अिभक प सिमित

    ो. िवनय कुमार पाठक ो. एलआर गुजर डॉ. अनुराधा दु बे कुलपित अ य उप िनदेशक, िव ान एवं तकनीक वधमान महावीर खलुा िव विव ालय, कोटा वमखिुव, कोटा वमखिुव , कोटा

    संयोजक एवं सद य संयोजक डॉ. िन यानंद शमा योग एवं वा य िश ा िवभाग वधमान महावीर खलुा िव विव ालय, कोटा

    सद य 1. डॉ. डी. एन. शमा, उ राखंड 2. डॉ. ओ. एन. ितवारी, छ ीसगढ़ 3. डॉ. भान ुजोशी, ह ानी 4. डॉ. बी. पी. गौड़, जोधपरु 5. डॉ. मता चौधरी सहायक

    वीएमओयू 6. डॉ. जयिसहं यादव , जोधपरु 7. वै ा ीमती अंजना शमा , कोटा

    पाठ लेखन एवं संपादन

    पाठ लेखक पाठ एवं भाषा संपादक डॉ. एकांत या याता बॉयोलोजी, गािजयाबाद (यपूी) (1,2,5) डॉ. िन यान द शमा, सहायक आचाय, डॉ. िन यान द शमा, वमखिुव (3,9,10) योग एवं वा य िश ा िवभाग, वमखिुव

    िनसगाचाय हमेलता शमा, गािजयाबाद (यूपी) (4,6,7,8,11) (1,2, 4,5,6,7,8,11,12) डॉ. डी. एन. शमा नई िद ली (12)

    डॉ. डी. एन. शमा, नई िद ली (3,9,10)

    अकादिमक एवं शासिनक यव था

    ो. िवनय कुमार पाठक ो. एलआर गुजर ो. करन िसंह डॉ. सुबोध कुमार कुलपित िनदशेक अकादिमक िनदशेक, एमपीडी अित र त िनदेशक, एमपीडी वमखिुव, कोटा वमखिुव, कोटा वमखिुव, कोटा वमखिुव, कोटा

    उ पादन – मु ण जनवरी 2015

    इस साम ी के िकसी भी अंश क वमखिुव, कोटा क िलिखत अनमुित के िबना िकसी भी प म िमिमयो ाफ (च मु ण) ारा

    या अ यक पनु : ततु करने क अनमुित नह ह।ै

    वमखुिव, कोटा के िलए कुलसिचव वमखुिव, कोटा (राज.) ारा मु ि त एवं कािशत।

  • 1

    पाठ्य म : पंचमहाभतू इकाइ : 1 - शरीर सं रचना प रचय

    इकाइ : 2 -पंचमहाभतू प रचय

    इकाइ : 3 - जीवन शैली के रोग एवं पंचमहाभतू

    इकाइ : 4 - वा य क प रभाषा ल ण - र ण - उपाय, प य, अप य एव ंिव आहार

    इकाइ : 5 -िम ी (पृ वी त व) का अथ, गणु एवं िविभ न रोग के मह व

    इकाइ : 6 - जल त व का अथ, गुण एवं िविभ न रोग म मह व

    इकाइ : 7 -जल िचिक सा म यु िविभ न प ीयां, यं एवं सेक का योग

    इकाइ : 8 -सूय िकरण िचिक सा (अि नत व) का अथ, प रभाषा एव ंमह व तथा िविभ न रोग म उपचार हेत ु7 रंग का योग

    इकाइ : 9 -वायु त व का अथ (िविध एव ंउपयोिगता)

    इकाइ : 10 -उपवास (आकाश त व) का अथ, मह व एवं िविभ न कार के उपवास िविधया ं

    इकाइ : 11 - ा ितक िचिक सा म यु िविभ न यं का प रचय

    इकाइ : 12 - एिनमा िविध, यं योग एव ंउसम यु िविभ न कार के य

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    इकाइ - 1

    शरीर सरंचना प रचय इकाई क परेखा तावना

    उ े य

    1.1 कोिशका शरीर क इकाइ

    1.2 कोिशका

    1.3 उ क

    1.4 पाचन तं

    1.5 सन तं

    1.6 िधर प रसंचरण तं

    1.7 पेशीय तं

    1.8 अि थ तं

    1.9 तं ि का तं

    1.10 मह वपणू

    1.11 संदभ सूची

    तावना

    िकसी भी िचिक सा से पवू यह आव यक है िक शरीर क संरचना एव ंि यािव ान का ान हो। रोग के िव ान एवं उपचार के िलए यह िनता त आव यक है। हालां िक ाकृितक िचिक सा के एक योग उपचारक के िलए गहन ान क इतनी आव यकता नह ह,ै पर तु शरीर संरचना के आधार पर भतू

    ान के िबना िचिक सक के अ दर आ मिव वास नह आ सकता।

    उ े य

    शरीर संरचना इकाइ म पाठक गण को कोिशका, उ क एवं तं के संदभ म मूलभतू ान ा हो सकेगा। जानकारी के िव तार के िलए शरीर संरचना के साथ साथ शरीर ि या िव ान का आव यक

    ान ा कर सकेग। ाकृितक िचिक सा म शरीर को िवखि डत प से नह देखा जाता। स पणू तं एवं अंग का संबंध एक दसूरे के परो है। इस इकाइ म अलग अलग तं के िवशय म पाठक

    ान ा कर सकगे।

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    1.1 कोिशका शरीर क इकाइ

    ि यािव ान के अनसुार मनु य का शरीर िविभ न तं (System) से िमलकर बना होता है। य ेिविभ न तं अंग से िमलकर बनते है। अंग (Organ) िविभ न उ क (Tissues)से िमलकर बनत ेहै। उ क का िनमाण कोिशकाओ ं (Cells) से िमलकर बनता है। इस कार एक कोिशका शरीर क रचना मक एव ंि या मक इकाइ है। अत: उ क, अंग व तं कोिशकाओ ंसे िमलकर बनते है।

    कोिशका -- उ क --अंग--तं --शरीर

    Cell - Tissues -Organ--System---Body

    रचना मक एव ंि या मक प से समान कार कोिशकाओ ंका समहू उ क कहलाता है।

    1.2 कोिशका

    मानव शरीर के िविभ न उ क एवं अंग के अनसुार कोिशका क रचना क ि या अलग अलग होती है। साधारणत: एक कोिशका और जीव य, ( ला मा), नािभक एवं नािभका य गणु सू एव ंअ य कोिशकाए ंअंगक से िमलकर बनी होती है।

    मानव शरीर म तं ि का कोिशका सबसे बड़ी कोिशका होती है। र कोिशका लगभग 7.0 m यास के आकार क होती है।

    1. कोिशका िझ ली - कोिशका िझ ली ोटीन व वसा से मु य प से बनी होती है। इसक िवशेष बात यह ह ैिक यह िविभ न य के ित अध पारगमी होती है। कोिशका िझ ली कोिशका को सुर ा दान करने का काय करती है। कोिशका िझ ली के ठीक नीचे जीव य िझ ली भी होती है।

    2 जीव य - जीव य म संवेदनशीलता का िवशेष गुण होता है। सभी कोिशका अंगक िविभ न रसायिनक कण ( ोटीन, काब हाइ ेट, वसा, लवण, अकाबिनक पदाथ) जीव य म उपि थत होते है। िविभ न उपाचयी ि याओ ं को जीव य म सुलभ वातावरण दान करता है।

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    कोिशका अंशक - एक कोिशका िविभ न ऊतक से िमलकर बने होते है।

    1.3 अ तद य जािलका -

    एक जािलका निलकाकार रचना के क के चार और फैली होती है। कुछ जािलकाओ ंम राइबोसोम कण िचपके होते है। कुछ जािलकाए ंिबना राइबोसोम के प से िचकन ेहोती है।

    काय - राइबोसोम यु जािलकाऐ ं ोटीन के िनमाण म सहयोगी होते ह जबिक िचकनी जािलकाए ंवसा कण का सं ेशण करती है। पेिशय तं तुओ ंके िसकुड़ने व फैलने म भी ये जािलकाए ंसहयोगी है।

    1.3.2 माइटाकोि या (Mitochondria)

    ऊजा के कण का सं ेषण करने के कारण माइटोकोि या को िव तु ह (Power House) भी कहते है। ोटीन व िलिपड़ उपाचय म इनका िवशेष काय सन ि या इन अंगक के िबना नह हो सकती।

    1.3.3 लाइसोसोम (Lysosomes)

    इनम ए जाइम भरे होते है। जब शरीर अंग अथवा कोश को ऊजा क आव यकता होती है तो य ेअंगक टूटकर पाचन ि या ारा ऊजा दान करते है। जीवाण ुभ ी भी होत ेहै। इ ह आ मह या क थैलर भी कहा जाता है।

    1.3.4 साइबोसोम

    ोटीन के सं ेषण म इनकािवशेष काय है।

    1.3.5 िडि टयोसोम (Dyctiosome)

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    इ ह पादप कोिशका म गो जीकाय के नाम से जाना जाता है। का बौहाइ ेट के सं ेशण का काय करते है।

    1.3.5 नािभका (Nycleus)कोिशका िवभाजन म िवशेष सहयोग है।

    1.4 पाचन तं (Digestine System)

    ऐसा तं जो भोजन के हण, पाचन, अवशोशण एवं बचे हए अपिश ट पदाथ को शरीर से िन कासन का काय करता है पाचन तं कहलाता है। भो य पदाथ को पचान े के िलए िविभ न पाचक रस (ए जाइम ) क आव यकता पड़ती है। इन पाचक रस का ावण मुख से ही ार भ हो जाता है, इसिलए भोजन को खबू चबाकर खाना चािहए। भोजन के चबाते चबाते उसम िमठास आने लगता है। इस िमठास का कारण ह ैिक भोजन म उपि थत टाच, लकूोज म प रितत होने लगती है। भोजन हण के आधा घं टे पहले तक व डेढ़ घ टे प ात का पानी नह पीना चािहए य िक पाचक रस जल म िवलय होकर भोजन के पाचन क ि या िबगाड़ देते है।

    पोशक एवं पोशक त व (Nutrition and Nutrients) भोजन म उपि थत ऐसे पदाथ जो शरीर ऊजा दान करते है, टूट फूट कोश क मर मत करते है एव ंिविभ न अवयव (िवटािमन एवं खिनज पदाथ) क पिूत करते है। ये िनयमन है - ोटीन - काब हाइ ेट, वसा, िवटािमन, िमि नरह एवं जल।

    पाचन (Digestion)& भोजन के अवयव का जिटल प से सरल म (Complex to simple)टूटना पाचन कहलाता है।

    पाचन तं के अंग - मनु य का पाचन तंत ुिन मन अंग से िमलकर बना है।

    1 मुख (Mouth)- जीभ, दांत, ताल,ु एवं लार ं िथया ं

    2 गलनली (Oesphagus)

    3 अमाशय अथवा पाक थली

    4 आंत -- छोटी आंत -- 1 प वा य 2 जजनुम 3 इिलयम

    -- बड़ी आंत 1 सीकम 2 कोलोन 3 मलाशय

    5 गुदा ार

    6 पाचन ं िथया - लार ं िथ

    यकृत

    िप ाशय

    अ नाशय

    1.3 उ क (Tissue)

    रचना, आकार एवं काय म समान कोिशकाओ ं का समहू उ क कहलाता है। िविभ न उततक िमलकर अंग का िनमाण करते ह मानव शरीर म चार कार के उ क होते ह ै-

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    1 वचीय उ क -शरीर व शरीर के ये िविभ न कार के होते है। मु य काय शरीर के अंग क र कर व पदाथ का आदान दान करना है। मु यत: साधारण एव जोड़ी, ि थया ंउ क िवशेष है।

    2 संयोजी उ क - वसीय उ क, वायवीय उ क, अि त, उपाि थ, र एवं अ य अंग को आपस म िमलाने वाले उ क संयोजी उ क कहलाते है।

    3 पेिशय उ क - एि छक अनैि छक एवं दय मांसीय (Voluntrary Involuntary an cardia muscle tissue)पेशीय उ क ह। हड्िडय पर ि थत पेिशय को अपनी इ छा ारा चला सकते ह इसिलए इसे एि छक पेशीय उ क कहते ह। शरीर के आ त रक अंग को अपनी इ छा अनसुार नह चला सकते इसीिलए इसे अनैक एि छक उ क कहते है। दय क मांस पेिशया ंएक बार धड़क ार भ करती ह ैव जीवन य त धड़कती रहती है।

    4 तं ि का उ क - मि त क , मे र ज ुएवं अ य शाखाि वत तं ि काए ंिमलकर तं ि का उ क का िनमाण करते ह। सम त इं ि य का ान इसी तं ि का उ क ारा होता है। मि त क एव ंमे र ज ुअ◌ाि◌वा सुशु ना तं ि का उ क का मु य भाग बनाते ह।

    पाचन तं तु के मोटे प म आहार नाल के नाम से जाना जाता है। आहार नाल मुख से ार भ होकर गुदा ार तक रचना है।

    मुख - मुख म पायी जाने वाली लार ं िथया लसलसे ाव ार मुख को तर बनाये रखने के साथ साथ पाचक रस का वण कर टाच का पाचन करन ेम सहायक है।

    Starch - Ptylen/ph 68--glucose

    साथ म 32 दांत भोजन को टुकड़ म तोड़ते ह। 16 नीचे के जबड़े व 13 उपरी जबड़े म होते ह। इन कुतरन,े फाड़ने, एव ंचबाने वाले दांत से यिद काम न िलया जाये तो आंत को अिधक काम करना पड़ता है।

    जीभ के अलग अलग भाग अलग अलग वाद हण करन ेका काम करते ह। इसम

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    ासनली (Oesophegus) - मुख के प ात ासनली से ार भ होकर आमाशंय तक क नाल सा य रचना (लगभग 10 से 12 इंच तक) होती है। इसम माकुचन गित ारा भोजन नीचे पहंचता है।

    अमाशय -आकार क नाशपती सा य थैलीनुमा रचना अमाशय कहलाती है। इसक 2 लीटर भोजन धारक मता है। यहा ं पर भोजन 3 से 4 घं टे तक पचकर आंत को भेज िदया जाता है।

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    ासनली एक आमाशय के म य एक वा व होता है जो भोजन को वापस उपर आने म रोकता है। उ टी अथवा कुजल क अव था म यह वा व ण भर के िलए खलु जाता है।

    छु ां त (Small Intestinal) - आमाशय म ोटीन का पाचन होता है, इसके प ात यह अ पिचत आहार, छु ास म भेज िदया जाता है। पाचन क ि से यही भाग सबसे अिधक मह वपणू है। यकृ , िप ाशय एवं अ नाशय ारा छोडे गये सम त रस छु ां त के ारि भक भाग प वा य म छोड़ िदये जाते ह ैजो काब हाइ ेट, ोटीन व वसा का पाचन करते ह।

    पाचन तं का सामा य िच

    ु ा ं क ल बाइ लगभग 20-20 फुट एव ंचौड़ाइ 1.5 इच होती है। िप ाशय ारा छोड़ा गया रस वसा के पाचन म सहयोगी है। साथ म यह वसा के कण को जल म िमलाकर छोटे छोटे कण म तोड़ देता है। िजसे वसीय अ ल कहते ह। अ नाशय ारा पाचन इस कार है -

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    वसा ए जाइम लाइपेज वसीय अ ल + ि लसरोल

    ोटीन ि पिसन/पेि सन Dipeptid/pepsinogeos

    Nuclue Acids Nuclease Nuletides - Nucloosides

    आंत के उ क ारा पाचक रस का वण एवं पाचन इस कार से होता है

    मा टोज मा टेज लकूोज

    ले टोस ले टेस लकुोज+ ले टोज

    सु ोज सु े ज लकुोज + फु टोज

    डाइपे टाइन डाइपे टाइडेज एमीनो एिसड

    पाचन तं का ि क निलका तं - प वाशय म खलुने वाली पाचन ं िथया ं यकृत, िप ाशय एव ंअ नाशय का ि क निलका तंत ुबहत ही मह वपणू है। यकृत ारा छोड़ा गया रस पहले िप ाशय म आता ह ैयह यकृत से यकृत निलका ारा िप ाशय म पह ंचता है। िप ाशय से िप निलका ारा यह रस ऐसी निलका से जड़ुता है जो यकृत से आ रही होती है। यह निलका संयु िप निलका कहलाती है। यह संयु िप निलका अ नाशय रस को लान ेवाली अ नाशय निलका साथ िमलकर एक फूली हइ निलका ारा प वाशय म खलुती है। यहा ंपर तीन िथय का राज का वज होकर तीन का पाचन करता है। इसिलए प वाशय पाचन तं क पाचन क ि से सबसे मह वपणू भाग है।

    निलका तं

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    यकृत मनु य के शरीर क सबसे बड़ी ं िथ है। यह 24 घं टे म आधा लीटर से भी अिधक पाचन रस का वण करता है। यह म य उदर म दाइ और ि थत होता है। यकृत का भार 1.2 से 1.5 िकलो तक होता है। यकृत से दो टुकड़ म होता है।

    1.5 सन तं

    ऐसा तं जो सासं के लेने, छोड़ने व आ सीजन लेने व काबन डाइ ऑ साइड को फेफेड़ ारा शरीर से बाहर िनकालने म काय करता है। सन तं कहलाता है। इन गैस के िविनमय क ि या फेफेड़ म उपि थत फु फुस कोश करते ह।

    सन ि या - भोजन के ऑ सीकरण क ि या सन ि या कहलाती है। इस ि या म ऊजा का उ सजन होता है जो शरीर के िविभ न काय म सहयोगी है।

    सन तं के अंग - सन तं के िन नन अंग है।

    1 नािसका ार

    2 नािसका नली

    3 निसका गहुा

    4 क ठ अथवा गल क

    5 वर यं

    6 वायु नली

    7 ास निलका

    8 फेफेड़े

    9 वायु कोशाऐ ं

    10 व ोदर म य थ पेशी अथवा महा ाचीरा

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    दो निसका र एक नािसकाि थत पदा ारा बं टे होते ह। यह पदा अि थ एवं उपाि थ से िमलकर बनी होती है। नािसका ारा यह माग पीछे नािसका क म आकर खुंलता है। यह काफ संवेदनशील भाग ह ै य िक पांच कमेि य (नाक, कान, जीभ, ने एवं वचा) से संबं िधत नस, निडया ं एव ंतं ि काए ंइस क के पास से होकर गुजरती ह। यह भाग से िवजातीय य ( े मा एवं कफ) को साफ करते रहने से एका ता यान एव ंइि य पर िनयं ण शि बढ़ती है।

    नािलका क गल क के मा यम से वर यं म खलुता है। वर यं (Voice box)vFkok LarynxCard),क ढ कण (एि डलोिटस) ारा ढका होता है। कुछ भी खाते, पीते अथवा िनगलते व यह ढ कण बंद होकर वायुनली का रा ता बंद कर देता है। वायु नली के आकार क उपाि थय ारा सुरि त रहता है। वायुनली शाखाि वत होकर ासनली के मा यम से फेफेड़ म खलुती है।

    फेफड़े - फेफड़े उपरी व गुहा के दोन और फुफुसावरण ारा फिसल के नीचे सुरि त रहते ह। नीचे क ओर फेफड़े महा चीरा पेशी पर िटकते ह। फेफड़ म वायु के िविनमय के िलए कोश या थैिलयां होते है। ये कोश एक महीन िझ ली यु होते है। इस महीन िझ ली ारा ही गैस के दबाव के कारण

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    आदान दान सहज एवं ाकृितक प से होता है। इ ही कोश अथवा फेफड़ क थैिलय म ऑ सीजन व काबन डाइ आ साइड का आदान दान होता है।

    मनु य के फेफड़े व म पृ भाग पर मे द ड अधर भाग पर छाती क हड्डी व पसिलय के म य सुरि त होते ह। नीचे क ओर महाशीरा पेशी से फेफड़े सटे रहते है।

    ास के लेने व छोड़ने क ि या म यह डाय ाम नीचे व उपर क ओर होता है। सामा यत: इस सन ि या म िन म चरण ह -

    1 फेफड़ क थैिलय म ऑ सीजन का घलुना व काबन डाइ ऑ साइड का फेफड़ म छोडा जाना। यह काबन डाइ ऑ साइड ास ारा बहार छोड़ दी जाती है।

    2 यह ऑ सीजन र किणकाओ ं; ठ व ला मा ारा सोख ली जाती है। व स पणू शरीर को वािहत क जाती है। आगे उ क व कोिशकाओ ं ारा यह ऑ सीजन काम म आती है।

    3 ऑ सीजन क ऑ सीकरण ि या ारा काबन डाइ ऑ साइड मु होकर र किणकाओ ंारा फेफड़ म जाकर छोड़ दी जाती है।

    फेफेड़ का दय का संबंध - दय स पणू शरीर के अशु र िशराओ ं ारा ा करता है। िशरा ारा ा यह र हमारे दय के दाय आिलंद म एक होता है। दाये आिलंद से दाय िनलय म र

    भेजा जाता है। इस दाय िनलय से अशु र शुि करण के िलए फु फुस धमनी ारा फेफेड़ को भेजा जाता है िफर फेफेड़ म परासरण एवं िवसरण ि या ारा शु ऑ सीकृत र दय के बाये आिलंद ारा हण कर िलया जाता है। िफर बाये आिलंद से बाये िनलय को शु र भेजा जाता है। तत ्प ात बाय िनलय ारा र स पणू शरीर को महाधमिनय ारा प प कर िदया जाता है। यही फेफड़ व दय का संबंध है।

  • 14

    1.6 िधर प रसंचरण तं

    दय र वािहय फेफड़ सब शरीर म र का िनयमन िजस तं ारा होता है उसे िधर प रसंचरण तं कहते ह। र शरीर का सबसे तरल संयोजी ऊतक है। र के वाह ारा ही स पणू शरीर को ऑ सीजन भोजन एवं अ य आव यक अवयव ा होते है। इसी र ारा शरीर ि याओ ं ारा अपिश ट पदाथ का िन कासन होता है।

    िधर - िधर ला मा एव ंर किणकाओ ं से िनिमत तरल पदाथ ला मा कहलाता है। व ठोस भाग र किणकाए ंकहलाती है।

    ला मा - र का 55 ितशत भाग ला मा होता है। इस ला मा म 90 से 92 ितशज जल होता

    है। 6-8 ितशत ोटीन (फाइ ोनोजन, लोकोस, ए यू िमन) होती है। Na +, CA++,

    Mg++,HCO3-,Cl.आिद खिनज ला मा म होते है। लकूोज, एिमनो एिसड, वसा भी इसम पाये

    जाते ह।

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    दय क रचना - दोन फेफड़ के बीच व गुहा के म य म दय ि थत होता है। नीचे के भाग से दय थोडा बाइ और झु का होता है। दय एक ि -िझ लीय आवरण दय आवरण ारा सुरि त

    होता है। मानव दयके चार भाग होते ह ैदो आिल द व दो िनलय दोन आिलद व दो िनलय को एक पतली मांसल रचना अ त आिलंद ख ड ारा बं टे होते ह। दोन िनलय एक मोटी मजबतू मांसल रचना अ न िनलय ख ड ारा बं टे होते ह। दोन और के आिलंद अपनी ओर के िनलय वा व ारा खलुते है। यह वा व र को वापस आिलद म वाह से रोकते ह।

    स पणू दय िवशेष कार क मांसपेिशय दय मांसपिेशया ं से ढका होता है। एक सु म रचना स पणू दय को गित के िनयम के िलए दाये आंिनद म ि थत होती है। िजसे गित िनधा रत कहते है। यहा ंसे दय के पदंन का िनयम ार भ होता है।

    लाल र किणकाओ ंक सं या एक व य पु श के र म 5 िमिलयन mm3 होती है। लाल र किणकाऐ ंम जा म बनती है। ये किणकाऐ ंके क िविहन होती है। इन किणकाओ ंम लाल रंग यु हीमो लोिबन होता है जो िहम नामक आयरन व लोिबन नामक ोटीन से िमलकर बना होता है। एक व थ यि म 12 से 16 ाम ित 100 िम.ली. र का िहमो लोिबन होता है। मु य प से इन

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    कण का काय सन म योग होने वाली गैस O2काबन ाइऑ साइड क संवहन करता है।

    ला.र.क. क आय ु120 िदन होती है। न ट होन ेके प ात ये कण िझ ली म जाकर िगरते है।

    ेत र किणकाओ ं(WBC) के क यु होती ह। इसक सं या 6000-8000 ित िम.मी.3 र म होती है। इनका बहत कम होता है। WBC का मु य काय हमारे शरीर क ितर ा णाली को बल देना है। सं मण दाह एव ंएलज के समय ये कण अपनी सं या म विृ करते ह। WBC के िवशेष भागी कण िल फोसाइटस B o T िल फोसाइट का रंग णाली को मजबूत बनान ेम िवशेष काय है।

    लैटेलेट्स क र म 1,500,00 से 35,00,00 क सं या ित िम.मी. 3 होती है। लेटेलेट्स का मु य र का थ का जमाने म होता है। ये र कण शरीर से र क हानी होने से बचाते ह। लेटेलेट्स क म जा म होती है।

    र समहू (Blood Group)

    मनु य म चार कार का र समूह होता है -A, B, AB और O A िकसी भी रोगी को र चढ़ाने से पवू र का िमलान िकया जाताहै। नीचे िदखाये गये तीरांकन के अनसुार र को चढ़ाया जाता है।

    व ्

    लड गुर्प को सवदाती है। यह र िकसी भी र समूह वाले रोगी को चढ़ाया जा सकता है। । र समहू वाला सबसे सव ाही मानते है। यह िकसी भी र समूह से र हण कर सकता है। िवशेष बात यह है िक समान र समूह वाला अपने समान र ले भी सकता है और उसे र द ेभी सकता है।

    एक िवशेष बात यान रखने क यह भी है िक इन चार समहू को भी दो दो कार के र समूह म

    बां टा गया है वह है Rh+ve and Rh-ve।

    1.7 पेिशय तं

    पेिशया ं व अि थया ं दोन िमलकर चलने क ि या करते है। मांस पिेशया ंमनु य के शरीर का लगभग 40 से 50 ितशत भार होती ह। मांस पेिशय का मु य काय उ ेजनशीलता, संकुचनशीलता फैलाव एवं लचीलापन (Excitability,contractility, txtenmbility and leasti) होता है। मनु य शरीर म तीन कार क मांसपेिशया ंहोती है।

    मांस पेिशय के कार

    1 रेखीय पेशीय अथवा अि थ पेशी अथवा ऐि छक पेशी - इन पेिशय को अपनी इ छा अनसुार चलाया जा सकता है। व ेहड्िडय से जड़ुी हइ मांस पेिशया ंहै। इनके तंत ुएक ही

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    रेिखत िदशा म लगे होने के कारण इसे रेखीय पेशी भी कहते है। शरीर को चलने, उठने, बैठने िहलने डुलने म अि थय व उसके जोड़ के साथ िमलकर काय करते है।

    2 अरेखीय पेशी अथवा अनैि छक पेशी -शरीर के अंग का िनमाण अरेिखत पेिशय ारा होता है। इ ह एक अपनी इ छा अनसुार नह चला सकते । इनके त तु अरेिखत होते ह।

    3 दयी पेशी - देखने म रेिखत पेशी के समान सीधे तं तुओ ं वाली रचना एव ंकाय म अपने आव काय करन ेवाली दयी पेशी होती है। जीवन य न िनत िनरंतर म पेिशया ंकाय करती रहती है।

    रेखीए पेशी के त त ु अ य छोटे छोटे त तुओ ं से िमलकर बने होते है। इन पिेशय म एि टन व

    मायोिसन नामक ोटीन होती है। कैि शयम आयन (Co++) व ऊजा बंध (ATP) क सहायता म ये मांसपिेशया ंअपना काय करती है।

    मांस पेशी िविभ न बंध ारा जड़ुी होती है। दो सीधी लाइन (Z-Line) से भीतरी भाग बंध व । बंध होते है। इनम म य भ ्बंध होता है।

    सारकोमीयर

    1.8 अि थ तं (Skeltal System)

    अि थय व उपाि थय (Bonesand cartilages) से िमलकर एक ढांचा शरीर को आकार देने का िनमाण करता ह। इस अि थ तं कहते है। मांस पेिशय के साथ िमलकर ये हड्िडया ंचलने, िफरन ेका काय करती ह।

    कैि शयम व फा फोरस लवण के साथ ये हड्िडया ंमजबतूी ा करती ह। मानव शरीर म 206 हड्िडया ंहोती ह िज ह अ ययन के िलए दो भाग म बां टा जा सकता है।

    केि य व पा व अि थया ं(Axial and Appendicular Sxeleton)

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    केि य अि थय म खोपड़ी (Skull), es:n.M (Vertebral Column) छाती क हड्डी व पि लयां होती है। खोपड़ी दो कार क अि थय से िनिमत होती है। केिलयल व फेिसयल दोन िमलकर कुल 22 हड्िडय से िमलकर बने होते है। केिनयल म 8 अि थया ंहोती ह जो आपस म िबना िहलने वाले पदाथ (White fibre tissue) से जड़ुी होती ह। सामने क ओर चेहरे पर 14 अि थया ंहोती ह। िजसम कान के भीतर क हड्िडया ंशरीर के सबसे छोटी हड्िडया ंहोती है।

    मे र ज ु26 केशे काओ ंसे िनिमत होती है। इनम मश: िन न केश काएं होती है।

    ीवा केशे काएं - 7

    व - 12

    किट - 5

    से म - 1

    पु छ - 1

    मे द ड मे र ज ु(Spinal cord) क र ा करता ह। मे द ड के दोन ओर 12-12 पसिलया ं(24 Ribs) आगे शरीर के अधर भाग से छाती क मजबूत अि थ से जड़ुी होती ह। सात मसिलया ंपणू होती ह जो आगे क ओर छाती क हड्डी से जड़ुती ह। नीचे क ओर 8व , 9व , व 10 व पसिलया ंमे र ज ुसे पीछे क ओर व आगे 7 व पसली से उपि थय के म यम से जड़ुी होती ह। अंितम 2 जोड़ी पसिलया ं (11 व व 12 व ) उदर म खलुी होती ह। मे र ज ुपसिलया ंव छाती क हड्डी िमलकर पसिलय का िपंजरा तैयार करते ह। इस िपंजरे म केकड़े, दय आिद अंग सुरि त रहते ह।

    पा व अि थ तं (Appendicular sxleton) म मु य प से दोन हाथ, दोन पैर क अि थया ंव दोन मेखलाए ं(अंश मेखला व ोणी मेखला) होती ह। येक हाथ व पैर म 30-30 अि थया ंहोती है।

    हाथ म - 1 मू रस + 2 रेिडयस व अलना + 8 कलाइ म + 5 हथेली म + 14 अंगिुलय म।

    पैर म - 1 फ मर + 2 टीिबया व फैवलुा + 7 टखने म

    7 तलव े+ 14 पर क अंगु िलय म + 1 प म

    आकृित क हड्डी पटेला घटुने पर होती है।

    अंश मेखला व ोणी मेखला मश: हाथ व पैर क हड्िडय म जोड़ने वाली अि थय का संयोजन होता है।

    अि थय म जोड़ (Joints) - अि थय के म य जोड़ गित म सहायक होते ह। कुछ जोड़ ऐसे होते ह जहां पर अि थया ं गित नह करती इ ह तंतु जोड़ (Fibrous Joints) कहते ह। जैसे खोपड़ी क हड्िडया ंकुछ हड्िडया ंआपस म उपाि थय से जड़ुी होती ह। िज ह उपाि थ जोड़ (Cartilaginous Joints) कहते ह। ये जोड़ पसिलय व मे र ज ुके म य होते ह।

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    कछ जो ऐसे होते ह िजनम गुहा होती ह व इसके म य िचकनी िसनवोियल य भरा हो◌ात ह। जो जोड़ को िघसने से बचाता ह। िन न कार के जोड़ जैसे बाल ओर सोिकट जोड़ मूरस व अंश मेखला के म य होता है।

    क जानमुा जोड़ (Hinge Joint) - घटुने व कोहनी म होता है व िपवोट (Pivot Joint) ऊपरी थम कशे का एटलस व खोपड़ी के म य होता है साइल जोड़ - कापल व मेटाकापल के म य होता ह। और लाइिडंग जोड़ - काप स के म य होता ह।

    1.9 तं ि का तं

    शरीर के िविभ न अंग , यंग का समिुचत संचालन एवं संतुलन का काम तं ि का तं करता ह। उदाहरण के िलए यायाम करते समय शरीर क ऊजा दान करन ेका काम तं ि का तं करते ह।

    तं ि का तं क िवशेष कोिशका का नाम तं ि का कोिशका है िकसी भी उ ीपन को पहचानने, हण करने के काम (Detect, Receive and transmit) ये तं ि का कोिशका (Neuron) करती है।

    मानव तं ि का तं - मानव तं ि का तं के दो भाग म बां टा गया ह।

    केि य तं ि का तं प रसरीय तं ि का तं

    (Central Nervous System) (Peripnel Nervous System)

    मि त क मे र ज ु Somatic Nerural System Autonomic Neuro System

    Sympatheti Neural System Autonomic N.Sy.

    मि त क - मनु य का मि त क खोपड़ी के नीचे सुरि त रहता है। मि त क व खोपड़ी के म य तरल पदाथ होता ह। जो मि त क को झटक से बचाता है। मि त क तीन िझि लय ारा सुरि त रहता ह। िज ह एक प से मि त कावरण कहते है।

    अ ययन क ि से मि त क को तीन भाग म बांटा गया है।

    1 अ मि त क 2 म यमि त क 3 प मि त क

    अ मि त क म मि त क काफ बड़ी रचना होती है। मि त क दो गोला म गहरे तक बंटा होता है। इ ह दांया व बांया मि त क गोला कहते ह। ये गोला तं ि का तं तुओ ंवाली रचना कायस कैलोसम से जड़ेु होते ह। इस गोला को एक कुछ कोिशकाओ ंक सतह ढ़के रखती है। ये िविभ न वलयनमुा रचना भरेु रंग क तीत होती है। इसे े मैटर कहते ह। मि त क के मि त क वाले भाग को काय क ि से िविभ न संवडेी े म बां टा गया ह। इ ह मश: वाणी े , ि

    े , वण े , मरण े , ाण े आिद के नाम से जाना जाता है। मि त क क भीतरी भाग ेत रंग का तीत होता है। िजसे थैलेमस कहते ह। इसम ठीक जड़ुी रचना को हाइपो थैलमस कहते

    ह। इसम ठीक जड़ुी रचना को हाइजो थैलेमस कहते ह। यह हाइयोथैलेमस शरीर का ताप िनयमन, भखू, यास, अनभुव करान ेका काय करता ह। िविभ न हारमन , हारमोन जो अ य हारमोन ं िथय

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    को िनयं ि त करते ह इसी भाग म सािबत होता ह। यही हाइपोथेलेमस लिगक वभाव, भाव क अिभ यि (उ ेजना, आनंद, सुख, दखु व डर) ेरणा आिद भाव का ान करता है।

    म य मि त क अ व प मि त क के म य होता है। म य व प मि त क िमलकर एक रचना बनाते ह। िजसे ेन टेग कहते ह।

    प मि त क म िन न रचनाए ं होती ह। अनमुि त क मेडयूला, आंवलगेटा व पो स। मेड्यूला आ लेगेटा नीचे मे क ओर मे र ज ु(सुशमुना) म आकर बंट जाता है।

    1.10 मह वपूण

    1 एक सामा य ज त ुकोिशका का िच सिहत वणन करो। कोिशका िकसे कहते ह?

    2 उ क िकसे कहते है? उ क िकतने कार के होते ह?

    3 पाचन तं क प रभाषा िलखो। पाचन तं का अंग सिहत वणन करो। पाचन तं का सामा य िच बनाओ।

    4 सन तं का िच सिहत वणन करो। फेफड़ और दय का या संबंध है।

    5 र का या काय है? र िकन िकन घटक से िमलकर बना होता है।

    6 दय क संरचना का सिच वणन करो।

    7 पेिशयाँ िकतने कार क होती है? वणन करो।

    8 केि य अि थय का वणन करो।

    9 पा व अि थ तं का वणन करो।

    10 अि थय म जोड़ का या लाभ है? ये िकतने कार के होते ह?

    11 तं ि का कोिशका का या काय है? मानव तं ि का तं िकतने भाग म िवभािजत िकया जा सकता है।

    12 मि त क क रचना का वणन करो।

    1.11 संदभ सूची

    ाकृितक आयुिव ान - आरो य काशन (राकेश िज दल) शरीर रचना एवं ि या िव ान - डॉ. िवमल कुमार मोदी

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    इकाइ : 2

    पंच महाभतू प रचय इकाइ क संरचना

    2.1 तावना

    2.2 उ े य

    2.3 ाकृितक िचिक सा का इितहास

    2.4 ाकृितक िचिक सा का भारत वष म इितहास

    2.5 ाकृितक िचिक सा का िवदेश मे िवकास

    2.6 सारांश

    2.7 बोधा मक (अ यासाथ)

    2.8 स दभ ं थ

    2.1 तावना

    पहले के समय म िचिक सा े का जब इतना िवकास नह हआ था तब रोग को कभी देवताओ ंका अिभशाप माना जाता था तो कभी अपने कुकम का फल मान िलया जाता था तो कभी अपने नजर टोटका और भतू ेत-आ मा आिद से जोडकर देख िलया जाता था और उसी के अनु प उपचार िदया जाता था। बीमा रय के इस कार म का उपचार भी उसी के अनु प कभी देवताओ ंको स न करके कभी भतू िपचाश क झाड फूक करके यहा ंतक क शरीर को गम लोहे क छड आिद से जलाकर अथवा पश ुबिल चढा कर उपचार िदए जात ेथे।

    उस समय शरीर म अवां िछत िवजातीय य के आने को शरीर म उपरो कार के त व का आना वीकार कर िलया जाता था। उस समय िबमारी के आने पर उसे दबाव देकर यादा भोजन करने को

    बा य िकया जाता था। और धारणा थी िक इस तरह के कोप म खाना नह खाने से शरीर बहत ही िनबल हो जाएगा। इसी कारण उपचार म इसी कार क लापरवाहीय ाण घातक बन जाती थी। इसका वणन आज वेद मे भी आया है। ऐसी लापरवािहय पर खडा वा य या शरीर क ची-न व क तरह कभी भी िगरने क हालत म रहता ह ैतभी कुछ पश ुपि य जैसे ािणय से सीखन ेको िमला िक वा य खराब होने क ि थित म खाना छोड कर शरीर के िविभ न अंग को िव ाम देकर वा य ा िकया जा सकता है। पश ुप ी ठीक इसी कार अपना खाना छोड देता है। इन सब

    त य को समझने के प ात ात हआ िक यह शरीर पचं-त व से बना है और पंच त व के असंतुलन से ही वा य का खराब होना समझ मे आया। कृित म यही पंच त व मूल व प म िव मान है। जब भी हम ाकृितक वातावरण से दरूी बना लेते थे अथात पंच त व से िवमुख होने पर ही वा य िबगड जाता था िजस कार मकान क दीवार खराब होने पर उसक मर मत करने के िलए रेत,

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    सीमे ट, इट, पानी इ यािद क आव यकता होती है ठीक उसी कार शरीर के उपचार के िलए भी पंच त व क आव यकता होती है, िकसी को भी थकान होन ेपर आराम करने क सलाह, कट जाने पर पानी या मू से भीगे कपडे को बाधना तथा जहरील ेक डे या सांप ारा काटने पर िम ी का लेप करना, चम रोग होन ेपर पीली िम ी का लेप करना इ यािद सभी कार के उपाय भारत म ाकृितक िचिक सा के, िवकास क पहली अव था के प म ादभुाव माना जाता ह ैयह काल 5000 वष पवू वैिदक ंथ मे बताया गया है। उसके प ात भारत और िवदेश मे, िविभ न ग भीर रोग क उन अव था म िकसी यि िवशेष के ारा सामािजक वातावरण को छोडकर वन मे चले जाना तथा िविभ न प ितय के िचिक सक ारा इसके योग ारा वै ािनकता िस करना आिद के साथ-2 िवकिसत होता गया। िजन मु य भारतीय ाकृितक िचिक सक ारा इस प ित का िवकिसत िकया गया। ऐसे ाकृितक िचिक सक का आप जीवन प रचय हम इस इकाइ म अ ययन करगे।

    2.2 उ े य

    ाकृितक िचिक सा के इितहास का अ ययन करना। ाकृितक िचिक सा के मुख सं थापक का प रचय। िवदेशी ाकृितक िचिक सा के णेताओ ंका जीवन प रचय का अ ययन करना।

    2.3 ाकृितक िचिक सा का इितहास

    ाकृितक िचिक सा का इितहास उतना ही परुाना है िजतना वय ं कृित का यह प ित पृ वी पर थम जीव के व प से ही ार भ हो गयी थी। यह िचिक सा िव ान आज क सभी िचिक सा ाणािलय से परुाना है। अथवा यह भी कहा जा सकता है िक यह दसूरी िचिक सा प ितय क जननी है। इसका वणन पौरािणक थ एव ंवेद म िमलता है अथात वेद क प के बाद, पौराण काल म भी यह प ित चिलत थी। उस काल म दुध काल, फल क प, उपवास इ यािद के ारा ही व थ हो पाते थे। ऐसे लोग जो भोग िवलासी होते थे, व ेउपवास इ यािद म िव ास नह

    करते थे। उ होने कुछ पेड पौधे प इ यािद के प म औषिध का योग रामायण काल से ार भ कर िदया था। इस कार जीव के पदापण को ही कृित एक भाग माना जाता है। आधुिनक ाकृितक िचिक सा का इितहास डा. इसाफ जेिन स (Dr. Isaac Jennings) से अमे रका म 1788 से ार भ कर िदया था। जॉन वे बे (John Wesby) ने भी ठ डे पानी के नान एव ंपानी पीने क िविधय से उपचार देना ार भ िकया था। महाब ग नामक बोध थ म वणन आता ह ैिक एक िदन भगवान बु को सांप ने काट िलया तो उस समय जहर के नाश के िलए भगवान बु ने िचकनी िम ी, गोबर, मू आिद को योग करवाया था और दसूरे िभ ुके बीमार पडन ेपर भाप नान व उ ण गम व ठ डे जल के नान ारा िनरोग िकये जाने का वणन 2500 वष परुानी उपरो घटना से िस होता है।

    ाकृितक िचिक सा के साथ-2 योग एवं नान आसान ेका योग शारी रक एव ंआ याि मक सुधार के िलये 5000 हजार वष से चलन म आया है पतंजिल योग सू इसका एक ामािणक थ है इसका चलन केवल भारत म ही नह अिपत ु िवदेश मे भी होता रहा है। यहा ं मुख ाकृितक िचिक सक के िवषय म वणन करना आव यक हो जाता है। य िक ाकृितक िचिक सा के इतन े

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    (परुाने इितहास के साथ) इनका नाम भी ाय: लु जैसा हो गया था य ? आधुिनक िचिक सा ाणािलय के आगमन व प इस णाली को भलूना वाभािवक भी था। ाकृितक िचिक सा को

    दोबारा िति त करन ेक मांग को उठान ेवाले मु य िचिक सक म बडे नाम वाले ऐलोपैिथक िवधा के डा. मु य प से िवदेशी अथात पा ातय देश का योगदान वणनीय है। ये वो भावशाली यि थे जो आधुिनक औषिध िव ान का योग करते-2 थक चूके थे और वय ंरोगी होने के बाद, िनरोग होने मे असहाय होते जा रह ेथे। उ होने वयं पर ाकृितक िचिक सा के योग करते हए, वय ंको व थ िकया और अपने शेष जीवन म ाकृितक िचिक सा प ित ारा अनेक असा य रोिगय को

    उपचार करते हए िचिक सा प ित को दबुारा थािपत करन ेक शु आत क । इ होने जीवन यापन तथा रोग उपचार को, अिधक तक संगत िविधय ारा िकये जाने का शुभार भ िकया।

    2.4 ाकृितक िचिक सा का भारत वष म इितहास

    भारत वष म ाकृितक िचिक सा के ादभुाव के िवषय मे ी डी. वकट चेलापित शमा जी ने वष 1894 म डा. लूइ कूने के िस पु तक “The new science of healingß का तेलग ूभाषा म अनवुाद करके इसका ार भ िकया। इसके प ात 1904 म िबजनौर िनवासी ी कृ ण व प ने इसका अनवुाद िह दी और उद ुदोन भाषाओ ंमे िकया। पु तक के आगमन के साथ-2 लोग क

    िच और उसके अ ययन म भी विृ होनी ार भ हइ और शी ही ारं िभक िचिक सा प ित लोग मे चिलत होनी ार भ हइ। महा मा गांधी जी एडो फ जू ट क पु तक “Return to Nature” पढकर बहत भािवत हए। उनके जीवन म यह प ित गहराइ तक चली गइ और उ होने त काल भाव से अपने वयं के शरीर तथा प रवार के लोग और आ म मे रहने वाले लोग पर उपचार योग ार भ िकए। अ तत: भारत जैसे गरीब देश म वा य के िलए ाकृितक िचिक सा प ित सव म प ित है। इसका चार उ होने गांव-2 म करने के साथ ही पनूा के पास उरिलकांचन म एक ाकृितक िचिक सालय क थापना क और इस िचिक सालय के िचिक सक भी बने। उरिलकांचन मे पहला ाकृितक िचिक सालय थािपत होने के कारण ही पि म भारत म ाकृितक िचिक सा का ादभुाव सबसे पहले हआ है।

    डा. कृ णम राज ूने िवजयवाडा से थोडी दू री पर ही एक िवशाल िचिक सालय क थापना क इसके साथ साथ देश म डा. जानक शरण वमा, डा. शरण साद, डा. महावीर साद पो ार, डा. गंगा

    साद गौड, डा. िव ल दास मोदी, डा. हीरालाल, महा मा जगदीशवरान द, डा. कुलर जन मुखज , डा. वी. वकट राव, डा. एस. जे. िसंह, इ यािद के यास से कइ सरकारी सं थाए ंतथा िद ली म केि य योग एवं ाकृितक िचिक सा अनसंुधान प रषद इ यािद क थापना हेतु मु य योगदान िदया िजसके फल व प आज ाकृितक िचिक सा एक मा यता ा िचिक सा प ित के प म वीकार क गइ। इनमे से कुछ का जीवन प रचय इस कार है।

    1. डा. कुलरंजन मुखज :- ाकृितक िचिक सा के े म डा. कुलरंजन मुखज का बहत बडा योग दान रहा। बचपन से ही, इ ह कृित एवं ाकृितक िचिक सा से िवशेष ेम था। तथा िकशोराव था म इ होने ाकृितक िचिक सा का योग रोग उपचार के िलए शु िकया। सन ् 1930 म डा. कुलरंजन ने हाजरा रोड, कोलकाता मे नेचर केयर अ पताल मे काय िकया। इससे भी पवू उ होन बां लादशे ढाका के मदारीपूर मे नेचर केयर अ पताल के

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    काय िकया तथा सफल परीणाम ा िकए। अपने जीवन काल म उ होने हजार असा य रोिगय के रोग ठीक िकये इसी कारण उनक तुलना ऐलोपैथी के सीिनयर डा. िवधान च ा के साथ क जाती थी। गांधी जी को भी इनके ारा दी गइ उपचार प ित पर िव ास था तथा वह भी इनके पास रोिगय को भेजा करते थे। इ होने एक पु तक भी िलखी ोटेि टव फुडस इन हे थ ए ड िडसीज। इसके अित र इ होने अ जी और िह दी भाषा म कइ मह वपणू पु तक भी िलखी ये पु तक आज भी सराहनीय एवं सहायक है। डा. मुखज ना केवल रोिगय क िचिक सा करते थे अिपत ु वह अपनी आय का 50 ितशत भाग ाकृितक िचिक सा मे लगाते थे। वह बहत ही इमानदार तथा सरल यि व के इंसान थे।

    सन ्1956 म डा. मुखज ने अिखल भारतीय ाकृितक िचिक सा प रषद क थापना क । इसी कार इनके ारा ाकृितक िचिक सा म अ ू त चम कार िकए।

    2. ी िव लदास मोदी :- इनका ज म 25 अ ैल सन ्1912 इ. म जनपद गोरखपुर मे हआ था। इ होने मैि क तक िश ा गोरखपुर म नातक िश ा काशी िह द ूिव िव ालय से क । वह अ यापक बनना चाहते थे। एक बार यह भंयकर प से बीमार पड गए तथा सभी तरह क दवा ल बे समय तक लेने पर आराम नह हआ तो इ होने ाकृितक िचिक सा ी बाले र

    साद िसंह के माग दशन मे ाकृितक िचिक साली। वे न केवल रोगमु हए बि क उनका वा य पहले से भी उ म हो गया इसी से ही उनक आ था और िन ा ाकृितक

    िचिक सा म लग गइ।

    आगे चलकर सन ्1940 इ. मे इ होने आरो य मं िदर ाकितक िचिक सालय क थापना क इ होने एडो फ ज ट ारा िलखी पु तक “ मजनतदम जव दंजनतम” का िह दी अनवुाद करके भारतीय ाकृितक िचिक सा के े म एक बडा काय िकया इ होने गांधी जी क रचना मक वृितय पर केि य पि का जीवन-सािह य का संपादन भी िकया।

    इ होने भारत म ाकृितक िचिक सा के े मे ान व अनभुव का योग कर खूब स मान तथा ित ा हािसल क तथा इसी अनभुव के कारण िवदेश म भी इस प ित के अ ययन के िलए यह अनेक देश मे गए। या ा क दौरे िकए। वह अमे रका भी गए तथा वहा ंके

    ाकृितक िचिक सा के देखकर तथा अनभुव ा कर ‘‘यूरोप-या ा’’ नामक पु तक िलखी।

    ाकृितक िचिक सा के िलए एक 1962 म कूल ऑफ नेचूरल थेरा यू िट स क थापना क एव ंिचिक सा के िजसके ारा उ होने कइ हजार बालक बािलकाओ ंको ाकृितक िचिक सा क िश ा दी । आज व े िश य देश के िविभ न भाग मे ाकृितक िचिक सा के काम म लगे है। इ होने शारी रक एव ंमानिसक वा य के िलए रोगो क सरल िचिक सा वा य के िलए, फल तरका रया ब च का वा य एवं उनके रोग दुध-क प उपवास से लाभ उपवास िचिक सा आिद अनेक पु तक को अं गे ्रजी और भारतीय भाषाओ ं अनुवाद भी िकया। मोदी जी ने

    ाकृितक िचिक सा म मानस के िनमलीकरण के िलए भगवान बु ारा वितत िवप यना तके यान-साधना का समावेश िकया इस कार अपने जीवन के 60 वष ाकृितक िचिक सा को

    समिपत िकए।

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    3. डा. जानक शरण वमा :-एक सफल िचिक सक थे। इ होने ाकृितक िचिक सा के े म अपना मह वपणू योगदान िदया। इ होने िह दी भाषा मे बहत सारी पु तक िलखी। इ होने अचूक िचिक सा और ‘‘अचूक िचिक सा के योग’’ नामक एक सव े पु तक क रचना क इनक पु तक पढकर ही ाकृितक िचिक सा ेमी माग दशन ा करते है। अपनी इन पु तक के कारण ही उनका नाम ाकृितक िचिक सा के इितहास म सदा अमर रहेगा।

    4. डा. के ल मण शमा :- इ होन तिमलनाडू मे ज म व उ च िश ा ा करने के उपरांत सारा जीवन ाकृितक िचिक सा के िलए समिपत कर िदया। इ होने अित िस पु तक ‘‘ ेि टकल ऑफ नेचर केयर’’ क रचना क । इ होने ाकृितक िचिक सा के े म अि तीय गित क ।

    5. डा. बाले र साद िसंह :- इनका ाकृितक िचिक सा के िलए बहमू य है। इ होने भारत के कोन-े2 म ाकृितक िचिक सा का चार सार िकया। इसी उ े य क पिूत के िलए इ होने बहत सारे िशिवर का आयोजन कर हजार लोग को उपचार उपल ध करा कर उ ह रोग मु िकया। इ ह ने अनेक पि काओ ंका स पादन कुशलता-पवूक िकया। जीवन सखा एक े पि का थी। इ होने गांधी जी से ाकृितक िचिक सा क ेरणा ा क तथा अपना परूा जीवन ाकृितक िचिक सा को स ाि िकया। इ होने अनेक यवुक को िश ण देकर सुयो य ाकृितक िचिक सक बनाया।

    6. महा मा गांधी :- महा मा गांधी बहत ही महान ाकृितक िचिक सक थे। इ होने देश म ाकृितक िचिक सा के अित र उपवास और स या ह के िनयम का भी अनपुालन िकया। इ होने सव थम भारत मे ाकृितक आ म का िनमाण िकया। इ होने आरो य क कंुजी का स पादन िकया। िजसका चार सार देश और िवदेश म हआ तथा लाख लोग ने इससे लाभ उठाया।

    गांधी जी ने एडो फ जु ट ारा रिचत पु तक “Return to Nature” नाम क िस पु तक का अ ययन करके ाकृितक िचिक सा क ेरणा ा क और इस े म बहत सफलता ा क । इ होने भारत के साथ-2 िवदेश मे भी इस प ित का चार िकया। इनक िलखी पु तक मे ‘‘Diet & diet reform” आहार शा अपने समय क लाभकारी और उपयोगी पु तक है।

    7. डा. वेिगराज कृ णम राज ू :- इनका ज म 1910 सन ् म हआ। इ होने आ देश म िवशाल ाकृितक िचिक सालय क थापना क तथा एक आदश ाकृितक िचिक सा िश ण सं था

    का संचालन िकया इ होने कइ पु तक भी िलखी जो ाकृितक िचिक सा के े म मह वपणू है।

    8. डा. महावीर साद पोददार :- इस ाकृितक िचिक सक ने महा मा गांधी जी से ेरणा ा कर इस प ित को अपनाया इ होने अपनी स पणू आय ु ाकृितक िचिक सालय म रहकर हजार िनराश रोिगय को जीवन दान िदया और इ होने िह दी म अनेक िकताब भी िलखी।

    9. स त िवनोबा भावे :- स त िवनोबा भावे महा मा गांधी जी के आ याि मक आचाय थे तथा इ होने भी राम नाम त व क ाकृितक िचिक सा से मह वपणू बताते हए राम नाम एक िच तन पु तक मे ाकृितक जीवन के मूलभतू आदश का बडे सु दर िववेचन िकया। इ होने कइ स मेलन मे ाकृितक िचिक सक का िवशेष मागदशन िकया।

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    10. ी मोरार जी भाइ देसाइ :- अं गे ्रजी शासन के समय एक उ च पद पर कायरत होते हए भी इ होने उसका याग कर वत ता सं ाम म भाग िलया और भारत के धानमं ी का पद भार को समहालते हए ाकृितक िचिक सा को नया मोड िदया। इ होने कइ पु तक के ारा अपने अनभुव को जन-2 तक पहचाया फरवरी 1995 से आप 100 वष होकर जीवन शरद शतम का एक जीवा त उदाहरण ततु करेग।

    11. डा. शरण साद :- आपने अनेक वष तक भारतीय ाकृितक िचिक सा िव ापीठ कलक ा मे ाचाय एवं मु य िचिक सक के प मे काय िकया। तथा इ होने कइ वष तक गांधी जी ारा थािपत िनसग उपचार के उ लीकंचन म मु य िचिक सक के पद पर काय िकया इ होने अपने अनभुव के आधार पर कइ े तथा मािणक थ का लेखन िकया िजनका काशन सव सेवा संघ ारा िकया गया। डा. शरण साद एक महान िचिक सक के प उदाहरण थे।

    12. डा. एस. जे. िसंह :- यह े ाकृितक िचिक सक म से एक है। इ होने ाकृितक िचिक सा का िश ण िवदेश से ा िकया तथा अपने जीवन का बडा काल ाकृितक िचिक सा को स ाि िकया। इ होने लेिलंग का अं ेजी भाषा म उद ुतथा िह दी िलिप म सिव तार, अनवुाद िकया जो उस समय के मह वपणू योग दान मे से एक था यह बहत ही लोकि य ाकृितक िचिक सक थे।

    13. डा. बी. वकटराव व डा. ीमित िवजय ल मी :- ये दोनो ही डा. कृ णम राज ूके िश य थे तथा उनसे िश ण हण कर इ होने हैदराबाद म एक िवशाल ाकृितक िचिक सालय क थापना क इसी के साथ नेचर केयर कॉलेज एम.डी. चार वष य पाठ्य म क थापना

    कर उसे उसमािनया युिनविसटी से मा यता भी िदलाइ वतमान म यही पांच वष य पाठ्य म म प रवितत हो गया ह वतमान म M.B.B.S. यो यता के बराबर उपािध छा को दी जाती थी।

    14. डा. एस. वामी-नाथन :- ये एक महान िचिक सक तथा डा. व. के ल मण शमा के िश य भी थे। यह उ च िश ा हण कर के ीय सरकार मे उ च अिधकार के पद पर कायरत होते हए भी ाकृितक िचिक सा के चार सार म िन वाथ भाव से बढ चढ कर सेवा का काम कर रहे है। यह लाइफ नेचुरल अंगे ्रजी मािसक पि का के स पादक के साथ-2 जीवन सखा मािसक पि का का भी स पादन िकया।

    15. डा. हीरा लाल :- भारत म ाकृितक िचिक सक मे डा. हीरा लाल जी का िवशेष थान है। इ होने डा. िव ल दास और डा. महावीर साद पो ार के साथ ाकृितक िचिक सा का काय आरो य मि दर गोरखपुर म ार भ िकया। इसके साथ-2 ही इ होने ाकृितक िचिक सा के चार सार के िलए गांव गांव जाकर अपनी मह वपणू भागीदारी िनभाइ साथ ही

    काशन के काय म भी यह ि याशील रह। िचिक सा के चार सार म इ होने अपना जो सहयोग िदया। उसके प रणाम व प जन जन तक इस िचिक सा को पह ंचाना स भव हो पाया। इ होने महामं ी के प म अिखल भारत ाकृितक िचिक सा प रषद एवं योग प रषद

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    के काय भार को संभाला। इनके ारा कइ पु तक का स पादन िह दी व अंगे ्रजी म िकया गया।

    16 डा. जे. एम. ज सावला :- यह भी ल बे समय से ाकृितक िचिक सा के े से जडेु हए है तथा इ होने ाकृितक िचिक सा के अनभुव के आधार पर ाकृितक िचिक सक को अनेक उ च कोिट क मािणक पु तक भी दी है।

    17 डा. गौरीशकंर :- डा. एम. ज सावला क तरह इ होने भी अपने जीवन के लगभग 44 वष ाकृितक िचिक सा संगठन एवं अ य रचना मक काय मे सि य प से काय करते हए

    िश ण ा कर उ र दशे म मुख िचिक सक के प म काय िकया। इ होने 1980 सन ्म महिष दयान द ाकृितक योग ित ान क थापना क है। इ होने तीन मह वपणू पु तक भी िलखी।

    18 डा. जगदीश च जौहर :- इ होने सन ्1947 म महा मा गांधी जी के स पक म आने पर इस प ित क ओर अ सर होकर कइ मह वपणू काय िकए तथा आयवुद का िश ण ा कर सेवा म लग गए साथ ही प ी क याणा ाकृितक िचिक सालय के सं थापक प.ं ओम

    काश ि खा जी के स पक म आने के पणू प से केवल ाकृितक िचिक सा के उपरांत आप चार सार म लग गए। इ होने बाद म गांधी जी ारा िलखी गइ पु तक आरो य क कंुजी का उद ुम अनवुाद भी िकया।

    19. डा. यगुल िकशोर चौधरी :- इ होने अपना परूा जीवन केवल ाकृितक िचिक सा को सि◌ पत िकया तथा इसका चार सार करते हए तीस से अिधक पु तक िलखकर

    ाकृितक िचिक सा सािह य को समृ िकया।

    20 डॉ. खषुी राम शमा िदलकष: डॉ. मोदी? डॉ. ज सावाला, डॉ. वकटरान और डॉ. सरदार जसवंत िसंह के ही समक आपका भी काय ाकृितक िचिक सा के े म था। आपने

    ाकितक िचिक सा के वै ािनक अ ययन क न च डाल मूलत: पंजाब के िनवासी थे। उ र देश म आकर उ. . ाकृितक िचिक सा सिमित क थापना कर, लखनऊ, रीवर बक कॉलोनी, इं िडयन मेिडकल ऐसोिसयेशन भवन ◌ो ◌ाटर हअ आरो य िनकेतन का

    ारंभ िकया तथा कुछ वष उपरांत के ीय योग एवं ाकृितक िचिक सा के अनसंुधान प रषद ्(भारत सरकार), जनकपुरी नइ िद ली के ारा शत ितशत अनदुान साढ़े चार वष य , ाकृितक एव ं योग िचिक सा म भारत का थम बी.एन.वाइ. एम. पाठ्य म सभी आधुिनक िवषय सिहत, अरो य िनकेतन एवं िश ा कॉलेज के पास कै पस म ारंभ िकया। 1987 के उपरांत सी.सी. आर.वाइ.एन. के िनदशानुसार िव विव ालय से संबं ता न करा पाने के कारण पाठ्य म संचालन का काय िनर त कर िदया गया। वहा ंअं ितम वेश 1984 से बंद कर िदया गया तथा शेष को पाठ्य म क प�