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9 50 - MPSC Material · ्यि अपेक्षा िैं हक नौवीं कक्षा के अंत तक हवद््यषाहथमि्य ों

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  • 50.009

  • हिंदी

    नौवीं कक्षालोकभषारती

    मिषारषाष्ट्र रषाज्य पषाठ् ्यपुसतक हनहममिती व अभ्यषासक्रम संशोधन मंडळ, पुणे

    मेरषा नषाम िै &

    शषासन हनणमि्य क्रमषंाक : अभ्यषास-२११६/(प्र.क्र.4३/१६) एसडी-4 हदनषांक २5.4.२०१६ के अनुसषार समनव्य सहमहत कषा गठन हक्यषा ग्यषा । हद. ३.३.२०१७ को हुई इस सहमहत की बैठक में ्यि पषाठ् ्यपुसतक हनधषामिररत करने िेतु मषान्यतषा प्रदषान की गई ।

    संलग्न ‘क्यू आर कोड’ तथा इस पुसतक में अन् सथानों पर दिए गए ‘क्यू आर कोड’ समार्ट फोन का प्र्ोग कर सककैन कर सकते हैं । सककैन करने के उपरांत आपको इस पाठ ्् पुसतक के अध््न-अध्ापन के दलए उप्ुक्त दलंक/दलंकस (URL) प्राप्त होंगी ।

  • प्रथमषावृत्त : २०१७ मिषारषाष्ट्र रषाज्य पषाठ् ्यपुसतक हनहममिती व अभ्यषासक्रम संशोधन मंडळ, पुणे - 4११००4इस पुसतक का सरा्टदिकार महाराष्ट्र राज् पाठ् ् पुसतक दनदम्टती र अभ्ासक्रम संशोिन मंडळ के

    अिीन सुरदषित है। इस पुसतक का कोई भी भाग महाराष्ट्र राज् पाठ् ् पुसतक दनदम्टती र अभ्ासक्रम संशोिन मंडळ के संचालक की दलखित अनुमदत के दिना प्रकादशत नहीं दक्ा जा सकता ।

    ©

    हिंदी भषाषषा सहमहत

    डॉ.हेमचंद्र रैि् ् - अध्षि डॉ.छा्ा पारील - सिस् प्रा.मैनोि् िीन मुल्ा - सिस्डॉ.ि्ानंि दतरारी - सिस्श्ी संतोष िोत्े - सिस् डॉ.सुदनल कुलकर्णी - सिस् श्ीमती सीमा कािंळे - सिस् डॉ.अलका पोतिार - सिस् - सदचर

    प्रकषाशक :श्ी हववेक उ्तम गोसषावी

    दन्ंत्कपाठ् ् पुसतक दनदम्टती मंडळ

    प्रभािेरी, मुंिई-२5

    हिंदी भषाषषा अभ्यषासगट

    श्ी रामदहत ्ािरडॉ. रषा्ट पुनररकरसौ. रृंिा कुलकर्णीश्ीमती मा्ा कोथळीकरश्ीमती रंजना दपंगळेश्ी सुमंत िळरीडॉ. रतना चौिरीश्ीमती रजनी महैसाळकरश्ीमती पयूदर््टमा पांडे्श्ीमती अच्टना भुसकुरेडॉ. िंडोपंत पारीलश्ीमती शारिा दि्ानीश्ी एन. आर. जरेेश्ीमती दनशा िाहेकर

    डॉ. आशा री. दमश्ाश्ीमती मीना एस. अग्ररालश्ीमती भारती श्ीरासतरश्ी प्रकाश िोकीलश्ी रामिास कारेश्ी सुिाकर गारंडेश्ीमती गीता जोशीडॉ. शोभा िेलिोडेडॉ.शैला चवहार्श्ीमती रचना कोलतेश्ी रदरंद्र िागरश्ी काकासाहिे राळुंजकरश्ी सुभाष राघ

    सं्योजन : डॉ.अलका पोतिार, दरशेषादिकारी दहंिी भाषा, पाठ् ् पुसतक मंडळ, पुर्े सौ. संध्ा दरन् उपासनी, दरष् सहा्क दहंिी भाषा, पाठ ्् पुसतक मंडळ, पुर्े

    हनहममिहत : श्ी सखचितानंि आफळे, मुख् दनदम्टदत अदिकारीश्ी राजेंद्र दचंिरकर, दनदम्टदत अदिकारीश्ी राजेंद्र पांडलोसकर,सहा्क दनदम्टदत अदिकारी

    अक्रषांकन : भाषा दरभाग,पाठ् ् पुसतक मंडळ, पुर्ेकषागज : ७० जीएसएम, क्रीमरोरमुद्रणषादेश :मुद्रक :

    मुखपृष्ठ : म्यूरा डफळ हितषांकन : श्ी राजेश लरळेकर

  • प्रसतषावनषा

    (डॉ. सुहनल मगर)संिषालक

    महाराष्ट्र राज् पाठ् ् पुसतक दनदम्टती र अभ्ासक्रम संशोिन मंडळ पुर्े-०4

    पुणे हदनषंाक ः- २8 अप्रैल २०१७

    अक््य तृती्यषा

    हप्र्य हवद् ्यषाहथमि्यो,

    आप नवहनहममित नौवीं कक्षा की लोकभषारती पढ़ने के हलए उ्सकु िोंगे । रंग-हबरंगी, अहत आकषमिक ्यि पुसतक आपके िषाथों में सौंपते हुए िमें अ््यहधक िषमि िो रिषा िै ।

    िमें ज्षात िै हक आपको कहवतषा, गीत, गजल सुननषा हप्र्य रिषा िै । किषाहन्यों के हवशव में हविरण करनषा मनोरंजक लगतषा िै । आपकी इन भषावनषाओं को दृतष्गत रखते हुए कहवतषा, गीत, दोिे, गजल, नई कहवतषा, वहैवध्यपूणमि किषाहन्यषाँ, हनबंध, िषास्य-व्यगं््य, संवषाद आहद सषाहित््यक हवधषाओं कषा समषावेश इस पुसतक में हक्यषा ग्यषा िै । ्ेय हवधषाएँ केवल मनोरंजन िी निीं अहपतु ज्षानषाजमिन, भषाषषाई कौशलों, क्मतषाओं एवं व्यतति्व हवकषास के सषाथ-सषाथ िररत हनमषामिण, रषाष्ट्री्य भषावनषा को सुदृढ़ करने तथषा सक्म बनषाने के हलए भी आवश्यक रूप से दी गई िैं । इन रिनषाओं के ि्यन कषा आधषार आ्यु, रुहि, मनोहवज्षान, सषामषाहजक सतर आहद को रखषा ग्यषा िै ।

    हडहजटल दुहन्यषा की नई सोि, वैज्षाहनक दृतष् तथषा अभ्यषास को ‘श्वणी्य’, ‘संभषाषणी्य’, ‘पठनी्य’, ‘लेखनी्य’, ‘पषाठ के आँगन में’, ‘भषाषषा हबंदु’, हवहवध कृहत्यषाँ आहद के मषाध्यम से पषाठ््यपुसतक में प्रसततु हक्यषा ग्यषा िै। आपकी सजमिनषा और पिल को ध्यषान में रखते हुए ‘आसपषास’, ‘पषाठ से आगे’, ‘कलपनषा पललवन’, ‘मौहलक सृजन’ को अहधक व्यषापक और रोिक बनषा्यषा ग्यषा िै । हडहजटल जगत में आपके सषाहित््यक हविरण िेतु प्र््येक पषाठ में ‘मै हँ ्यिषाँ’ में अनेक संकेत सथल (हलंक) भी हदए गए िैं। इनकषा सतत उप्योग अपहेक्त िै ।

    मषागमिदशमिक के हबनषा लक््य की प्रषातति निीं िो सकती । अतः आवश्यक प्रवीणतषा तथषा उदे्श्य की पूहतमि िेतु अहभभषावकों, हशक्कों के सि्योग तथषा मषागमिदशमिन आपके कषा्यमि को सुकर एवं सफल बनषाने में सिषा्यक हसद्ध िोगषा ।

    हवशवषास िै हक आप सब पषाठ््यपुसतक कषा कुशलतषापूवमिक उप्योग करते हुए हिंदी हवष्य के प्रहतहवशेष अहभरुहि एवं आ्मी्यतषा की भषावनषा के सषाथ उ्सषाि प्रदहशमित करेंगे ।

  • पिली इकषाई

    दूसरी इकषाई

    * अनुक्रमहणकषा *

    क्र. पषाठ कषा नषाम हवधषा रिनषाकषार पृष्ठ १. चािँनी रात िंडकाव् मैदथलीशरर् गुप्त १-३ २. दिलली का दिलंगुड़ा हास् कहानी राजेंद्र लाल हांडा 4-७ ३. किीर (पयूरक पठन) आलोचना हजारी प्रसाि ि् दररेिी 8-११ 4. दकतािें नई कदरता गुलजार १२-१4 5. जयूदल्ा एकांकी अंतोन चिेर १5-१8 ६. ऐ सखि ! (पयूरक पठन) मुकरर्ाँ अमीर िुसरो १९-२० ७. डाकॅरर का अपहरर् दरज्ान कथा हररकृष्र् िेरसरे २१-२5 8. रीरभयूदम पर कुछ दिन ्ात्ा रर््टन रुदकमर्ी संगल २६-३१ ९. ररिान माँगयूँगा नहीं गीत दशरमंगल दसंह ‘सुमन’ ३२-३३१०. रात का चौकीिार

    (पयूरक पठन)लघुकथा सुरेश कुशराह ‘तनम्’ ३4-३६

    ११. दनमा्टर्ों के पारन ्ुग में कदरता अरल दिहारी राजपे्ी ३७-३8

    क्र. पषाठ कषा नषाम हवधषा रिनषाकषार पृष्ठ १. कह कदररा् कुँडदल्ाँ दगररिर ३९-4१ २. जंगल (पयूरक पठन) संरािातमक कहानी दचत्ा मुि् िगल 4२-4६ ३. इनाम हास् दनिंि अरुर् 4७-5२ 4. दसंिु का जल नई कदरता अशोक चक्रिर 5३-55 5. अतीत के पत् पत् दरनोिा भारे, गांिीजी 5६-६० ६. दनसग्ट रैभर (पयूरक पठन) कदरता सदुमत्ानंिन ‘पंत’ ६१-६३ ७. दशष्राचार चररत्ातमक कहानी भीष्म साहनी ६4-६९ 8. उड़ान गजल चंद्रसेन दररार ७०-७१ ९. मेरे दपता जी (पयूरक पठन) आतमकथा हरररंशरा् िचिन ७२-७६१०. अपराजे् रर््टनातमक कहानी कमल कुमार ७७-8१११. सरतंत् गान प्र्ार् गीत गोपाल दसंह नेपाली 8२-8३

    रचना दरभाग 84-88

  • ्यि अपेक्षा िैं हक नौवीं कक्षा के अंत तक हवद् ्यषाहथमि्यों में भषाषषा हवष्यक हनम्नहलतखत क्मतषाएँ हवकहसत िों ।

    भषाषषा हवष्यक क्मतषा

    क्ेत क्मतषा

    श्वण १. गि् ् -पि् ् दरिाओं काे रसग्रहर् करते हुए सुनना/सुनाना । २. प्रसार माध्म के का््टक्रमों को एकाग्रता एरं दरसतारपयूर्टक सुनाना । ३. रैख्रक समस्ा को समझने हेतु संंचार माध्मों से प्राप्त जानकारी सुनकर उनका उप्ोग करना ।4. सुने हुए अंशों पर दर्लेषर्ातमक प्रदतदक्र्ा िेना ।5. सुनते सम् कदठन लगने राले शबिों, मि्ु िों, अंशों का अंकन करना ।

    भषाषण-संभषाषण

    १. पररसर एरं अंतरदरि् ् ाल्ीन का््टक्रमों में सहभागी हाेकर पषि-दरपषि मंे मत प्रकर करना । २. िेश के महत्रपयूर््ट दरष्ों पर चचा्ट करना, दरचार व्क्त करना । ३. दिन-प्रदतदिन के व्रहार में शुि् ि उचिारर् के साथ राता्टलाप करना । 4. पदठत सामग्री के दरचारों पर चचा्ट करना तथा पाठ् ् ेतर सामग्री का आश् िताना ।5. दरनम्रता एर ंदृढ़तापयूर्टक दकसी दरचार क ेिार ेमें मत व्क्त करना, सहमदत-असहमदत प्रकर करना ।

    वषािन १. गि् ् -पि् ् दरिाओं का आश्सदहत भारपयूर््ट राचन करना । २. अनयूदित सादहत् का रसासरािन करते हुए राचन करना । ३. दरदरि षिेत्ों के पुरसकार प्राप्त व्खक्त्ों की जानकारी का रगणीकरर् करते हुए मुिर राचन करना ।4. दलखित अंश का राचन करते हुए उसकी अचयूकता, पारिदश्टता, अलंकाररक भाषा की प्रशंसा करना ।5. सादहखत्क लिेन, पयूर्ट ज्ान तथा सरअनुभर क ेिीच मयूल्ांकन करत ेहुए सहसिंिं सथादपत करना ।

    लेखन १. गि् ् -पि् ् सादहत् के कुछ अंशों/पररचछेिों में दररामदचह् नों का उदचत प्र्ोग करते हुए आकलनसदहत सुपाठ ्् , शुि् िलेिन करना । २. रूपरेिा एरं शबि संकेतों के आिार पर लेिन करना । ३. पदठत गि् ् ांशों, पि् ् ांशों का अनरुाि एरं दलप्ंतरर् करना ।4. दन्त प्रकारों पर सर्ंसफफूत्ट लेिन, पदठत सामग्री पर आिाररत प्र्नों के अचयूक उततर दलिना ।5. दकसी दरचार, भार का सुसिंि् ि प्रभारी लेिन करना, व्ाख्ा करना, सपष् भाषा में अपनी

    अनुभयूदत्ों, संरेिनाओं की संदषिप्त अदभव्खक्त करना ।अध्य्यन कौशल

    १. मुहाररे, कहारतें, भाषाई सौंि््टराले राक्ों तथा अन् भाषा के उि् िरर्ों का प्र्ोग करने हेतु संकलन, चचा्ट और लेिन । २. अंतरजाल के माध्म से अध््न करने के दलए जानकारी का संकलन । ३. दरदरि स्ोतों से प्राप्त जानकारी, रर््टन के आिार पर संगर्की् प्रसतुदत के दलए आकृदत (पी. पी.री. के मिु् िे) िनाना और शबिसंग्रह ि् रारा लघुशबिकोश िनाना । 4. श्रर् और राचन के सम् ली गई दरपपदर््ों का सर्ं के संिभ्ट के दलए पुनःसमरर् करना ।5. उि् िरर्, भाषाई सौंि््टराले राक्, सरुचन आदि का संकलन एरं उप्ोग करना ।

  • हशक्कों के हलए मषागमिदशमिक बषातें ........

    अध्य्यन-अनुभव देने से पिले पषाठ् ्यपुसतक में हदए गए अध्यषापन संकेतों, हदशषा हनददेशों को अच्ी तरि समझ लें । भषाहषक कौशलों के प्र््यक् हवकषास के हलए पषाठ््यवसतु ‘श्वणी्य’, ‘संभषाषणी्य’, ‘पठनी्य’ एवं ‘लेखनी्य’ में दी गई िैं । पषाठ पर आधषाररत कहृत्यषँा ‘पषाठ के आँगन’ में आई िैं । जिषाँ ‘आसपषास’ में पषाठ से बषािर खोजबीन के हलए िै, विीं ‘पषाठ से आगे’ में पषाठ के आश्य को आधषार बनषाकर उससे आगे की बषात की गई िै । ‘कलपनषा पल्लवन’ एवं ‘मौहलक सृजन’ हवद््यषाहथमि्यों के भषावहवशव एवं रिनषा्मकतषा के हवकषास तथषा सव्यंसफफूतमि लेखन िेतु हदए गए िैं । ‘भषाषषा हबंदु’ व्यषाकरहणक दृतष् से मित्वपूणमि िै । इसमें हदए गए अभ्यषास के प्रशन पषाठ से एवं पषाठ के बषािर के भी िैं । हवद् ्यषाहथमि्यों ने उस पषाठ से क्यषा सीखषा, उनकी दृतष् में पषाठ, कषा उल्लेख उनके द्वषारषा ‘रिनषा बोध’ में करनषा िै । ‘मैं िँू ्यिषाँ’ में पषाठ की हवष्य वसतु एवं उससे आगे के अध्य्यन िेतु संकेत सथल (हलंक) हदए गए िैं । इलेकटट्रॉहनक संदभभों (अंतरजषाल, संकेतसथल आहद) में आप सबकषा हवशेष सि्योग हनतषांत आवश्यक िै । उपरोति सभी कृहत्यों कषा सतत अभ्यषास करषानषा अपेहक्त िै । व्यषाकरण पषारंपररक रूप से निीं पढ़षानषा िै । कहृत्यों और उदषािरणों के द्वषारषा संकलपनषा तक हवद््यषाहथमि्यों को पहुँिषाने कषा उ्तरदषाह्य्व आप सबके कंधों पर िै । ‘पूरक पठन’ सषामग्ी किीं न किीं पषाठ को िी पोहषत करती िै और ्यि हवद््यषाहथमि्यों की रुहि एवं पठन संसकृहत को बढ़षावषा देती िै । अतः ‘पूरक पठन’ सषामग्ी कषा वषािन आवश्यक रूप से करवषाएँ ।

    आवश्यकतषानुसषार पषाठ््येतर कृहत्यों, भषाहषक खेलों, संदभभों, प्रसंगों कषा भी समषावेश अपेहक्त िै । आप सब पषाठ््यपुसतक के मषाध्यम से नैहतक मूल्यों, जीवन कौशलों, केंद्री्य त्वों के हवकषास के अवसर हवद््यषाहथमि्यों को प्रदषान करें। क्मतषा हवधषान एवं पषाठ््यपुसतक में अंतहनमिहित सभी संदभभों कषा सतत मूल्यमषापन अपेहक्त िै । आशषा िी निीं पूणमि हवशवषास िै हक हशक्क, अहभभषावक सभी इस पुसतक कषा सिषमि सवषागत करेंगे ।

    ६. संगर्क पर उपलबि सामग्री का उप्ोग करते सम् िूसरों के अदिकार (कॉपी राईर) का उल्ंघन न हो इस िात का ध्ान रिना ।७. संगर्क की सहा्ता से प्रसतुतीकरर् और आॅन लाईन आरेिन, दिल अिा करने के दलए उप्ोग करना ।8. प्रसार माध्म/संगर्क अादि पर उपलबि होने राली कलाकृदत्ों का रसासरािन एरं

    दर्लषेर्ातमक दरचार करना ।९. संगर्क/ अंतरजाल की सहा्ता से भाषांतर/दलप्ंतरर् करना ।

    व्यषाकरण १. पुनरारत्टन-कारक, राक् परररत्टन एरं प्र्ोग- रर््ट दरचछेि/ रर््ट मेल (सामान्), काल परररत्टन२ पुनरारत्टन-प्ा्ट्राची-दरलोम, उपसग्ट-प्रत््, सदंि के भेि (३) ३. दरकारी, अदरकारी शबिों का प्र्ोग (िेल के रूप मंे)4. अ. दररामदचह् न (..., ´ ´ ´ , -०-, .) ब. शुद्ध उचिारर् प्र्ोग और लेिन (स्ोत,

    सत्ोत, शृंगार)5. मुहाररे-कहारतें प्र्ोग, च्न

  • 1

    - मथैिलीशरण गपु्त

    १. चाँदनी रात

    पहली इकाई

    आपके पररवेश के ककसी सुंदर प्ाकृकतक स्थल का वर्णन कनम्नकलखित मुद् दों के आधार पर कीकिए ः- कृकत के कलए आवश्यक सोपान ः· संुदर प्राकृतिक स्थल करा नराम िथरा तिशेषिराएँ बिराने के तलए कहें । · िहराँ िककी दूरी िथरा पररिहन सुतिधराएँ पूछें । · तनिरास-भोजन आतद की व्यिस्थरा के बरारे में चचराचा करें । · प्राकृतिक संपत्ि्यों पर आधराररि उद ््योगों के नरामों की सूची बनिराएँ ।

    िनम ः ३ अगस्ि १88६ तचरगराँि, झराँसी (उ.प्.) मृत्यु ः १२ तदसंबर १९६4 पररच्य ः मैतथलीशरण गुप्त जी खड़ी बोली के मह््िपूणचा कति हैं । आपकी रचनराएँ मरानिी्य संिेदनराओं, तिशेषिः नरारी के प्ति करुणरा की भरािनरा से ओिप्ोि हैं । प्मुि कृकत्याँ ः सराकेि (महराकराव्य),्यशोधररा, ज्यद्रथ िध, पंचिटी, भरारि-भरारिी (खंडकराव्य), रंग में भंग, रराजरा-प्जरा आतद (नराटक)

    िंडकाव्य ः इसमें मरानि जीिन की तकसी एक ही घटनरा की प्धरानिरा होिी है । प्रासंतगक कथराओं को इसमें स्थरान नहीं तमलिरा ।

    प्स्िुि अंश ‘पंचिटी’ खंडकराव्य से तल्यरा ग्यरा है । प्कृति की छटरा करा सुंदर रूप बड़े ही मराधु्यचा के सराथ अतभव्यंतजि हुआ है । चराँदनी रराि करा मनोहरी िणचान सुंदर शब्दों में तचतरिि तक्यरा है ।

    पररच्य

    पद् ्य संबंधी

    चरारु चंद्र की चंचल तकरणें

    खेल रही हैं जल-थल मंे ।

    स्िचछ चराँदनी तबछी हुई है

    अितन और अंबर िल में ।।

    पुलक प्गट करिी है धरिी

    हररि िृणों की नोकों से ।

    मरानो झूम रहे हैं िरु भी

    मंद पिन के झोंकों से ।।

    क्यरा ही स्िचछ चराँदनी है ्यह

    है क्यरा ही तनस्िब्ध तनशरा ।

    है स्िचछदं-सुमंद गंध िह

    तनररानंद है कौन तदशरा ?

    बंद नहीं, अब भी चलिे हैं

    तन्यति नटी के करा्यचा-कलराप ।

    पर तकिने एकरांि भराि से

    तकिने शरांि और चुपचराप ।।

    आसपास

    मैं हँ ्यहाँ

    bharatdiscovery.org/india/मैतथलीशरण_गुप्त

  • 2

    संचरार मराध्यमों से ‘रराषटट्ी्य एकिरा’ पर आधराररि तकसी समरारोह की जरानकरारी पतिए ।

    अपने घर-पररिरार के बड़े सदस््यों से लोककथराओं को सुनकर कक्रा मेें सुनराइए ।

    शब्द संसारपुलक (पंु.सं.) = रोमरांच, खुशीका्य्ण कलाप (पंु.सं.) = गतितितधकुटीर (स्रिी.सं.) = झोंपड़ी, कतुट्यराकनर्भीक (ति.) = तनडरधनु्णर (पंु.सं.) = िीरंदराजकुसुमा्युध (पंु.सं.) = अनंग, करामदिेदृक्टगत (ति.) = जो तदखराई पड़िरा हो

    है तबखेर देिी िसंुधररा

    मोिी, सबके सोने पर ।

    रति बटोर लेिरा है उनको

    सदरा सबेररा होने पर ।।

    और तिररामदरात्यनी अपनी

    संध्यरा को दे जरािरा है ।

    शून्य श्यराम िनु तजससे उसकरा

    न्यरा रूप छलकरािरा है ।।

    पंचिटी की छरा्यरा में है

    सुंदर पणचा कुटीर बनरा ।

    उसके सममुख स्िचछ तशलरा पर

    धीर-िीर तनभभीक मनरा ।।

    जराग रहरा ्यह कौन धनुचार

    जबतक भुिन भर सोिरा है ?

    भोगी कुसुमरा्युध ्योगी-सरा

    बनरा दृतषटगि होिरा है ।।

    (‘पंचवटी’ से)

    पठनी्य

    (अ) संिाल ः

    (१) सूचनानुसार कृकत्याँ कीकिए ः-

    िरारों के उतदि और अस्ि होने के बरारे में कल्पनरा

    पाठ के आँगन में

    ‘पुलक प्गट करिी है धरिी हररि िृणों की नोकों से,’ इस पंतकि करा कल्पनरा तिस्िरार कीतजए ।

    श्रवरी्य

    कलपना पल्लवन

    लेिनी्य‘प्कृति मनषु्य की तमरि है’, स्पषट कीतजए ।

  • 3

    (ख) चाँदनी रात की विशेषताएँ ः

    (२) वनम्नविखखत पवं्तयों का सरि अर्थ विखखए ः (च) चारु चंद्र ........... झोंको से । (छ) क्ा ही स्वचछ .......... शांत और चुपचाप ।

    १.

    २.

    ३.

    4.

    5.

    ६.

    ७.

    8.

    पव्वत

    नदी

    ददए गए शबदों का उप्ोग करते हुए स्वरदचत कदवता बनाकर काव्मंच पर प्रस्ततु कीदिए ।

    तारे

    आकाश

    पृथवी

    पाठ से आगे

    वनम्न शब्दों के पया्थयिाची शब्द विखखए ः- भाषा विंदु

    कृषक

    तरु चंद्र

    अरण्उद ्् ान

    शरद पदू््वमा त्ोहार के बारे में चचा्व कीदिए।संभाषणीय

    ....................................................................................

    ....................................................................................

    ....................................................................................रचना िोध

    वसुंधरा

  • 4

    - राजेंद्र लाल हांडा

    २. कबलली का कबलंगुड़ा

    एक सम्य थरा जब घरों में तबल्ली करा आनरा-जरानरा बुररा समझरा जरािरा थरा । परंिु आजकल की पररतस्थति के करारण पुररानी तिचरारधराररा और परंपररा एकदम घपले में पड़ गई है । िही तिचरार ठीक समझरा जरािरा है तजससे कराम चले । तपछले तदनों हमरारे घर में बहुि चूहे हो गए थे । उनहें घर से तनकरालने के बहुिेरे प््य्न तकए गए पर हमरारी एक न चली । आटे और अनराज के तलए लोहे के ढोल बनिराए गए । ्यह उपरा्य कुछ तदनों िक करारगर रहरा । परिंु आँख बचराकर चूहे इन ढोलों में भी घुसने लगे । इस समस््यरा पर कई तमरिों से पररामशचा तक्यरा ग्यरा । आखखर ्यह फैसलरा हुआ तक घर मंे एक तबल्ली पराली जराए । इस प्स्िराि पर तकसी को आपत्ि न थी ।

    चुनरांचे एक तबल्ली लराई गई । उसकी खूब खरातिर होने लगी । कभी बचे् दूध तपलरािे, कभी रोटी देिे । उसने तितधपिूचाक चूहों करा सफरा्यरा शुरू कर तद्यरा । देखिे-ही-देखिे चूहे घर से गरा्यब हो गए । सब लोग बड़े खुश हुए । तबल्ली प्रा्यः सब लोगों की थराली से जूठन ही खरािी इसतलए हमें इसकरा कोई खचचा भी नहीं पड़रा । दो महीने बराद िह सम्य आ ग्यरा जब हम चूहों को िो भूल गए और तबल्ली से िंग आ गए । हमने सोचरा चूहे िो खराली अनराज ही खरािे थे, कम-से-कम परेशरान िो नहीं करिे थे । ्यह तबल्ली खराने में भी कम नहीं और हमें िंग भी करिी रहिी है । उसके प्ति हमराररा व्यिहरार बदल ग्यरा ।

    तबल्ली भी कम समझदरार जरानिर नहीं । जो शेर के कराबू में नहीं आई िह हमसे कैसे मराि खरा जरािी । उसने भी अपनरा रिै्यरा बदल तद्यरा । हमरारे आगे-पीछे तफरने की बजरा्य िह रसोई के आसपरास कोने में दुबक कर बैठ जरािी । जब मौकरा लगिरा, मजे से जो जी में आिरा खरािी । इस िरह चोरी करिे तबल्ली कई बरार पकड़ी गई । एक तदन सुबह उठिे ही मैं रसोई में कुछ लेने ग्यरा । देखिरा हँ तक किे हुए दूध करा दही जो रराि को बड़े चराि से जमरा्यरा ग्यरा थरा, तबल्ली खूब मजे से खरा रही ह ै।

    अब तचंिरा हुई तक तबल्ली से कैसे पीछरा छुड़रा्यरा जराए । मेररा नौकर बहुि होतश्यरार है । रराि को कराम ख्म करके जराने से पहले उसने एक खराली बोरी के अंदर दो रोतट्यराँ डराल दीं और चुपके से एक िरफ खड़रा होकर तबल्ली करा इिंजरार करने लगरा । तबल्ली आई । िह एकदम रोतट्यराें पर झपटी । नौकर ने िुरंि बोरी करा एक तसररा पकड़ कर उसे ऊपर से बंद कर

    रराजेंद्र लराल हरांडरा जी एक जराने-मराने कथराकरार हैं । आपकी रचनराएँ परि-पतरिकराओं में सिि प्करातशि होिी रहिी हैं । सम सरामत्यक तिष्यों पर आपकी रचनराएँ सरामरातजक समस््यराओं को उद् घरातटि करिी हैं ।

    हास््य कहानी ः जीिन की तकसी घटनरा करा रोचक, प्िराही िणचान कहरानी होिी है । इसमें तकसी स््य करा उद् घराटन होिरा है । हरास््य कहरानी में इसे हल्क-ेफुल्क ेहँसी के अंदराज में प्स्िुि तक्यरा जरािरा ह ै।

    प्स्िुि पराठ में लेखक हरांडरा जी ने हरास््य के मराध्यम से गलिफहमी के करारण उ्पन्न तिशेष खस्थति्यों करा िणचान तक्यरा है ।

    गद् ्य संबंधी

    कृकत के कलए आवश्यक सोपान ः

    · घटनरा/प्संग करा स्थरान िथरा सम्य के बरारे में पूछें । · क्यरा घटनरा घटी कक्रा में परस्पर सिंराद करिराएँ, इसपर चचराचा करिराएँ । · घटनरा करा पररणराम कहलिराएँ । · कक्रा में संिराद करिराएँ ।

    पररच्य

    समूह बनाकर अपने दैनंकदन िीवन में घकटत हास््य घटना/प्संग को संवाद रूप में प्स्तुत कीकिए ः-

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    संर्ाषरी्य

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    तद्यरा । रस्सी के सराथ बोरी करा मुँह बराँध तद्यरा ग्यरा । चूतँक अब रराि के दस बजे थे, मैंने अपने नौकर अमरू से कहरा तक ‘‘सबेरे तबल्ली को कहीं दूर छोड़ आए तजससे िह इस घर में िरापस न आ सके ।’’

    सब लोगों को चरा्य तपलरािे-तपलरािे अमरू को अगले तदन आठ बज गए । मैंने ्यराद तदलरा्यरा तक उसे तबल्ली को भूली भतट्यराररन की िरफ छोड़ कर आनरा है । बोरी कंधे पर लटकरा अमरू चल तद्यरा । बराि आई गई हो गई । मैं हजरामि और स्नरान आतद में व्यस्ि हो ग्यरा क्योंतक सरािे नौ बजे दफिर जरानरा थरा । गुसलखराने में मुझे जोर करा शोर सुनराई तद्यरा । मैं नहराने में व्यस्ि थरा और कुछ गुनगुनरा रहरा थरा इसतलए मेररा ध्यरान उधर नहीं ग्यरा । दो तमनट के बराद ही तफर शोर हुआ । इस बरार मैंने सुनरा तक मेरे घर के सरामने कोई आिराज लगरा रहरा हैः ‘अरापकरा नौकर पकड़ तल्यरा ग्यरा है । अगर आप उसे छुड़रानरा चराहिे हैं िो छपपरिराले कुएँ पर पहुँतचए ।’

    मैं हैररान हुआ तक क्यरा बराि है । समझरा शरा्यद अमरू तकसी की सराइतकल से टकररा ग्यरा होगरा । शरा्यद सराइतकलिराले करा कुछ नुकसरान हो ग्यरा हो और उसने अमरू को धर-पकड़रा हो । रही आदमी इकट ्ठे होने की बराि, ्यह कराम तदल्ली में मखुशकल नहीं और तफर करौल बराग में िो बहुि आसरान है जहराँ सैकड़ों आदतम्यों को पिरा ही नहीं तक िे तकधर जराएँ और क्यरा करें । खैर, उधर जरा ही रहरा थरा तक ररास्िे में खराली बोरी लटकराए अमरू आिरा हुआ तदखराई तद्यरा । िह खूब खखलखखलराकर हँस रहरा थरा । उसे डराँटिे हुए मैंने पूछरा- ‘‘अरे क्यरा बराि हुई ? िूने आज सुबह-ही-सुबह क्यरा गड़बड़ की जो इिनरा शोर मचरा और मुहल्ल ेके लोग िुझे मरारने को दौड़े ?’’

    अमरू को कुछ कहनरा नहीं पड़रा । उसके पीछे कुछ आदमी आ रहे थे, उनहोंने मुझे सराररा मरामलरा समझरा तद्यरा । बराि ्यह हुई तक जैसे अमरू कंधे पर बोरी लटकराए तबल्ली को बराहर छोड़ने जरा रहरा थरा; कुछ लोगों को शक हुआ तक बोरी में बच्रा है । दो आदमी चुपके-चुपके उसके पीछे हो तलए । उनहोंने देखरा तक बोरी अंदर से तहल रही है । बस, उनहंे तिशिरास हराे ग्यरा तक इस बदमराश ने तकसी बच्े को पकड़रा है । अमरू स्िभराि से अल्पभराषी है, कुछ मसखररा भी है । िह चुप रहरा । देखिे-देखिे पचरासों आदमी इकट् ठे हो गए । उनमें से एक तचल्लराकर कहने लगरा, ‘‘घेर लो इस आदमी कराे, ्यह बदमराश उसी तगरोह में से है तजसकरा कराम बच्े पकड़नरा है ।’’ उस जगह से पुतलस थरानरा भी बहुि दूर नहीं थरा । एक आदमी लपक कर थराने ग्यरा और िहराँ से थरानेदरार और एक तसपराही को बुलरा लरा्यरा । थरानेदरार को देखिे ही एक उ्सराही दशचाक अपने कुिते की बराहें ऊपर चिरािे हुए बोलरा, ‘‘दरोगरा जी, ऐसरा नहीं हो सकिरा तक आप इस बदमराश को चुपचराप ्यहरँा से ले जराएँ और करानूनी करा्यचािराही की आड़ में इसे हिरालराि के मजे लेने दें । पहले इसकी जी भर के मरममि होगी । गजब नहीं है तक भरे मुहल्ले से बचे् उठरा तलए जराएँ ? दो तदन हुए परासिराली गली से एक बच्रा गुम हो ग्यरा । देिनगर से िो कई उठराए जरा चुके हैं । आप बराद में इसके सराथ चराहे जो करें पहले हम

    अपने तप््य प्राणी से संबतंधि कोई कहरानी सुतनए िथरा उससे प्राप्त सीख सुनराईए । जैसे-पंचिंरि की कहरातन्यराँ आतद ।

    श्रवरी्य

    महरादेिी िमराचा जी द ्िराररा तलखखि ‘मेररा पररिरार’ से तकसी प्राणी करा रेखरातचरि पतिए ।

    पठनी्य

    तकसी पशु तचतक्सक से परालिू प्रातण्यों की सही देखभराल करने संबंधी मरागचादशचान प्राप्त कीतजए ।

    आसपास

    5

  • 6

    लोग इसकी तपटराई करेंगे ।’’ भीड़ में से दतस्यों ने इस सुंदर प्स्िराि करा समथचान तक्यरा और लोग अमरू को पीटने के तलए मरानो िै्यरार होने लगे ।

    उन तदनों तदल्ली में बड़ी सनसनी फैली हुई थी । नगर के सभी भरागों से बच्ों के उठराए जराने की खबरें आ रही थीं । एक-दो बरार परिों में ्यह छपरा तक जमुनरा के पुल पर कुछ आदमी पकड़े गए तजनहोंने बोरर्यों में बच्ें बंद तकए हुए थे । स्ककूलोें से बचे् बहुि सरािधरानी से लराए जरािे थे । पराककों में और बराहर गतल्यों में बच्ों करा खेलनरा-ककूदनरा बंद हो चुकरा थरा । तदल्ली नगरपरातलकरा और संसद में इसी तिष्य पर अनेक सिराल-जिराब हो चुके थे इसतलए इस मरामले में रराजधरानी के सभी नरागररकों की तदलचस्पी थी । आशच्यचा इस बराि करा नहीं तक लोगों ने अमरू पर संदेह क्यों तक्यरा, बतल्क इस बराि करा थरा तक उनहोंने अभी िक उसकी मरार-तपटराई शुरू क्यों नहीं कर दी । िरािरािरण में सनसनी और िनराि की कमी न थी ।

    अगर थरानेदरार और पतुलस करा तसपराही िहराँ न होिे िो अबिक अमरू पर भीड़ टूट पड़ी होिी । थरानेदरार ने आिे ही अमरू की कलराई पकड़ ली और पूछरा, ‘‘बोल, ्यह बच्रा िूने कहराँ से उठरा्यरा है और इसे िू कहराँ ले जरा रहरा है ? बिरा कहराँ हैं िेरे और सराथी ? आज सबकरा सुरराग लगराकर ही हटूँगरा ।’’ अमरू अब िक िो तदल में हँस रहरा थरा मगर थरानेदरार की धमतक्यों से कुछ घबररा ग्यरा । दबी आिराज में िह थरानेदरार से बोलरा- ‘‘सरकरार, मैंने तकसी करा बच्रा नहीं उठरा्यरा । न मैं बदमराश हँ । मैं िो एक भले घर करा नौकर हंॅ । रोटी-चौकरा करिरा हँ और अपनरा पेट परालिरा हँ ।’’

    जो आदमी थरानेदरार को बुलराकर लरा्यरा थरा, क्ोध में आकर बरेालरा, ‘‘क्यों बकिरा है, बे ! दरोगरा जी, ऐसे नहीं ्यह मरानेगरा । दो-चरार बेंि रसीद कीतजए ।’’ दरोगरा ने बगल से तनकराल कर बेंि अपने हराथ में ली ही थी तक अमरू नम्रिरापिूचाक झुकरा और बोलरा, ‘‘सरकरार, आप तजिनरा चराहें मुझे पीट लें, पहले ्यह िो देख लें तक इस बोरी में है क्यरा ? हुकम हो िो चतलए थराने चलें ।’’ ्यद् ्यतप थरानेदरार इस बराि पर रराजी हो गए थे पर भीड़ कब मरानने िराली थी । लोग तचल्लरा उठे, ‘‘हरतगज नहीं, ऐसरा कभी नहीं होगरा । हम सब इस आदमी की बदमराशी के गिराह हैं । मरामलरा कभी दबने नहीं देंगे ।’’ थरानेदरार डर गए तक उनकी नी्यि पर लोगों को शक हो रहरा है उनहोंने अमरू से कहरा, ‘‘अचछरा, बोरी को नीचे रखो । इसकरा मुँह खोलो ।’’

    अमरू शरांतिपिूचाक नीचे बैठ ग्यरा और धीरे से उसने बोरी करा मुँह खोल तद्यरा । जैसे ही बोरी करा मुँह खुलरा तबल्ली करा तबलंगुड़रा छलराँगें मरारिरा हुआ एक िरफ भराग ग्यरा और लोग देखिे ही रह गए । थरानेदरार की भी समझ में न आ्यरा तक अब क्यरा करें ? िह थराने की िरफ मुड़रा और एक िरांॅगेिराले की पीठ पर बेंि मरारिे हुए बोलरा, ‘‘जरानिे नहीं तक ररास्िे में िरांॅगरा खड़रा नहीं करनरा चरातहए ।’’ इस प्करार अपनी झेंप तमटराने करा ्य्न करिे हुए दरोगरा जी चले गए और अमरू हँसिरा हुआ घर िरापस आ ग्यरा ।

    रंग नस्ल संपक्क

    अपने पररसर में लरािराररस जरानिरों की बििी संख्यरा एिं उनसे हराेने िराली परेशरातन्यों के बरारे में संबंतधि अतधकरारी को परि तलखकर सूचनरा दीतजए ।

    मौकलक सृिन

    लेिनी्यआपकरा परालिू कु्िरा दो तदनों से लरापिरा है । उसके तलए समराचरारपरि मंे देने हिेु तिज्रापन िै्यरार कीतजए । तनमन मुद् दों करा आधरार लें ।

  • 7

    पाठ के आँगन में

    (क) संजाि ः

    (१) सूचनानुसार कृदत्ाँ कीदिए ः-

    (3) स्पष्ट कीदिए ः* घर के सदस््ों का दबल्ी के प्रदत व्वहार पह्े और बाद में-

    (२) उततर द्खिए ः* दबल्ी के रवै्े में आ्ा पररवत्वन- १. २.

    (ख) कहानी के प्रमुख पात्र

    शब्द संसारदुतकारना (दरि.) = दतरस्कार करनाकारगर (दव.) = उप्ोगी, प्रभावीमसखरा (पुं.स.) = हँसोड़, हँसाने वा्ावगरोह (पुं.सं.) = समूहचुनांचे (अव्.) = इसद्ए

    मुहािर ेवसर चढ़ जाना = उद ्दंडता के द्ए िु्ी छूट देनाटूट पड़ना = झपट पड़नावयसत होना = तल्ीन होनापरामश्थ करना = रा् ्ेना

    िान पान

    घर में दबल्ी पा्ने के कार्

    भाषा विंदु

    (६) डा्नासोर प्रा्ी अब दु््वभ हो गए हैं । (७) वह तटस््थ होकर अपने दवचार रिता है । (8) इस भौदतक िीवन में मनषु्् बहुत िुश है । (९) गदम्व्ों में सारी धरती शषु्क हो िाती है ।(१०) पैसों का अपव्् नहीं करना चादहए ।

    ‘प्रा्ी हमसे कहते हैं, दि्ो और िीने दो’ इस दवष् पर स्वमत प्रकट कीदिए ।

    पाठ से आगे

    (१) दबल्ी भी कम समझदार िानवर नहीं है ।(२) अमरु स्वभाव से अलपभाषी है ।(३) पुरानी दवचार धारा और परंपरा एकदम घप्े में पड़ गई है ।(4) अब हम उसे दुतकार रहे हैं ।(5) ददस्ों ने इस सुंदर प्रस्ताव का सम्थ्वन दक्ा ।

    शब्द कोश की सहायता से रेखांवकत शब्दों के वििोम खोवजए तरा उनसे नए िा्य विखखए ः-

    ....................................................................................

    ....................................................................................

    ....................................................................................रचना िोध

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    गद् ्य संबंधी

    ३. कबीर

    पूरक पठन - हजारी प्रसाद द् थििेदी

    तहंदी सरातह््य के हजरार िषकों के इतिहरास में कबीर जैसरा व्यतकि्ि लेकर कोई लेखक उ्पन्न नहीं हुआ । मतहमरा में ्यह व्यतकि्ि केिल एक ही प्तिद् िंद् िी जरानिरा है, िुलसीदरास परंिु िुलसीदरास और कबीर के व्यतकि्ि में बड़रा अंिर थरा । ्यद् ्यतप दोनों ही भकि थे परंिु दोनों स्िभराि, संस्करार और दृतषटकोण में एकदम तभन्न ेथ । मस्िी, फककड़रानरा स्िभराि और सब कुछ ही झराड़-फटकरारकर चल देने िराले िेज ने कबीर को तहंदी सरातह््य करा अद् तििी्य व्यतकि बनरा तद्यरा है । उनकी िराणी में सब कुछ को पराकर उनकरा सिचाज्यी व्यतकि्ि तिरराजिरा रहिरा है । उसी ने कबीर की िराणी में अनन्यसराधरारण जीिनरस भर तद्यरा है । कबीर की िराणी करा अनुकरण नहीं हो सकिरा । अनुकरण करने की सभी चेषटराएँ व्यथचा तसद् ध हुई हैं ।

    ´´´कबीरदरास की िराणी िह लिरा है जो ्योग के के्रि में भतकि करा बीज

    पड़ने से अंकुररि हुई थी । उन तदनों उ्िर के हठ्योतग्यों और दतक्ण के भकिों में मौतलक अंिर थरा । एक टूट जरािरा थरा पर झुकिरा न थरा, दूसररा झुक जरािरा थरा पर टूटिरा न थरा । एक के तलए समराज की ऊँच-नीच भरािनरा मजराक और आक्मण करा तिष्य थरा, दूसरे के तलए म्यराचादरा और स्फकूतिचा करा । .. संसरार में भटकिे हुए जीिों को देखकर करुणरा के अशु् से िे करािर नहीं हो आिे थे बतल्क और भी कठोर होकर उसे फटकरार बिरािे थे । िे सिचाजगि के पराप को अपने ऊपर ले लेने की िरांछरा से ही तिचतलि नहीं हो पड़िे थे बतल्क और भी कठोर और भी शषुक होकर सुरि और तिरि करा उपदेश देिे थे । संसरार मंे भरमने िरालों पर द्यरा कैसी, मुतकि के मरागचा मंे अग्रसर होने िरालों को आरराम कहराँ, करम की रेख पर मेख न मरार सकरा िो संि कैसरा ?

    ज्रान करा गेंद कर सुिचा करा डंड करखेल चौगरान-मैदरान मराँही ।जगि करा भरमनरा छोड़ दे बरालकेआ्य जरा भेष-भगिंि पराहीं ।। ´´´अकखड़िरा कबीरदरास करा सिचाप्धरान गुण नहीं हैं । जब िे अिधूि ्यरा

    ्योगी को संबोधन करिे हैं िभी उनकी अकखड़िरा पूरे चिराि पर होिी है । िे ्योग के तबकट रूपों करा अििरण करिे हैं गगन और पिन की पहेली बुझरािे रहिे हैं, सुन्न और सहज करा रहस््य पूछिे रहिे हैं, द ्िैि और अद् िैि के स््ि की चचराचा करिे रहिे हैं-

    अिधू, अचछरहँ सों न्यराररा ।जो िुम पिनरा गगन चिराओ, गुफरा में बरासरा ।गगनरा-पिनरा दराेनों तबनसैं, कहँ ग्यरा जोग िुमहराररा ।।

    िनम ः १९ अगस्ि १९०७ दुबे करा छपररा, बतल्यरा (उ.प्.) मृत्यः १९ मई १९७९(उ.प्.) पररच्य ः द् तििेदी जी तहंदी के शीषचास्थ सरातह््यकरारों में से एक हैं । आप उच्कोतट के तनबंधकरार, उपन्यरासकरार,आलोचक, तचंिक एिं शोधकिराचा हैं । प्मुि ककृत्याँः अशोक के फकूल, कल्पलिरा (तनबंध), बराणभट् ट की आ्मकथरा, चरारु चंद्रलेख, पुननचािरा (उपन्यरास), कबीर, तहंदी सरातह््य की भूतमकरा-मेघदूि एक पुररानी कहरानी आतद (आलोचनरा और सरातह््य इतिहरास)

    आलोचना ः तकसी तिष्य िस्िु के लक््य को ध्यरान में रखिे हुए उसके गुण-दोष एिं उप्युकििरा करा तििेचन करने िराली तिधरा आलोचनरा है ।

    प्स्िुि पराठ में द् तििेदी जी ने संि कबीर के व्यखति्ि, उनके उपदेश, उनकी सराधनरा, उनके स्िभराि के तितभन्न गुणों को बड़े ही रोचक ढंग से स्पष्ट तक्यरा है ।

    पररच्य

    8

  • 9

    गगनरा-मद् धे जोिी झलके, परानी मद् धे िराररा ।घतटगे नींर तिनतसने िराररा, तनकरर ग्यौ केतह द् िराररा । ´´´परंिु िे स्िभराि से फककड़ थे । अचछरा हो ्यरा बुररा, खररा हो ्यरा खोटरा,

    तजससे एक बरार तचपट गए उससे तजंदगीभर तचपटे रहो, ्यह तसद् धरांि उनहेें मरान्य नहीं थरा । िे स््य के तजज्रासु थे और कोई मराेह-ममिरा उनहें अपने मरागचा से तिचतलि नहीं कर सकिी थी । िे अपनरा घर जलराकर हरा थ में मुरराड़रा लेकर तनकल पड़ े थे और उसी को सराथी बनराने को िै्यरार थे जो उनके हराथों अपनरा भी घर जलिरा सके -

    हम घर जराररा अपनरा, तल्यरा मुरराड़रा हराथ ।अब घर जरारों िरासु करा, जो चलै हमरारे सराथ ।िे तसर से पैर िक मस्ि-मौलरा थे । मस्ि-जो पुरराने क्ृ्यों करा तहसराब नहीं

    रखिरा, ििचामरान कमकों को सिचास्ि नहीं समझिरा और भतिष्य में सब-कुछ झराड़-फटकरार तनकल जरािरा है । जो दुतन्यरादरार तकए-करराए करा लेखरा-जोखरा दुरुस्ि रखिरा है िह मस्ि नहीं हो सकिरा । जो अिीि करा तचट ्ठरा खोले रहिरा है िह भतिष्य करा क्रांिदशभी नहीं बन सकिरा । जो मििरालरा है िह दुतन्यरा के मराप-जोख से अपनी सफलिरा करा तहसराब नहीं करिरा । कबीर जैसे फककड़ को दतुन्यरा की होतश्यरारी से क्यरा िरास्िरा ? ्ये प्ेम के मििराले थे मगर अपने को उन दीिरानों में नहीं तगनिे थे जो मराशूक के तलए सर पर कफन बराँधे तफरिे हैं । .......

    हमन हैं इशक मस्िरानरा, हमन को होतश्यरारी क्यरा । रहें आजराद ्यरा जग से, हमन दतुन्यरा से ्यरारी क्यरा ।जो तबछुड़ै हैं तप्यरारे से, भटकिे दर-बदर तफरिे । हमराररा ्यरार है हम मंे, हमन को इिंजरारी क्यरा । ´´´इसीतलए ्ये फककड़रराम तकसी के धोखे में आने िराले न थे । तदल जम ग्यरा

    िो ठीक है और न जमरा िो रराम-रराम करके आगे चल तदए । ्योग-प्तक््यरा को उनहोंने डटकर अनुभि तक्यरा, पर जँची नहीं ।

    ´´´उनहें ्यह परिराह न थी तक लोग उनकी असफलिरा पर क्यरा-क्यरा तटपपणी

    करेंगे । उनहोंने तबनरा लराग-लपेट के, तबनरा तझझक और संकोच के एेलरान तक्यरा-आसमरान करा आसररा छोड़ प्यरारे,उलतट देख घट अपन जी ।िुम आप में आप िहकीक करो,िुम छोड़ो मन की कल्पनरा जी ।आसमरान अथराचाि गगन-चंद्र की परम ज्योति । जो िस्िु केिल शरारीररक

    व्यरा्यराम और मरानतसक शम-दमरातद करा सराध्य है िह चरम स््य नहीं हो सकिी । ...... केिल शरारीररक और मरानतसक किरा्यद से दीखने िराली ज्योति जड़ तच्ि की कल्पनरा-मरारि है । िह भी बराह् ्य है । कबीर ने कहरा, और आगे चलो । केिल तक््यरा बराह् ्य है, ज्रान चरातहए । तबनरा ज्रान के ्योग व्यथचा है ।

    ´´´

    सूचनरा के अनुसरार कृति्यराँ ः-(१) संजराल ः

    मस्ि-मौलरा के लक्ण

    (२) पररचछदे पिकर प्राप्त होने िराली पे्रणरा तलखखए ः

    तकसी संि कति के दोहे िथरा पद सतुनए ।

    श्रवरी्य

    संि कबीर जी के बरारे में अतधक जरानकरारी प्राप्त कीतजए िथरा कक्रा में उसकरा िराचन कीतजए ।

    पठनी्य

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    कबीर की ्यह घर-फकूँक मस्िी, फककड़नरा लरापरिराही और तनमचाम अकखड़िरा उनके अखंड आ्मतिशिरास करा पररणराम थी । उनहोंने कभी अपने ज्रान को, अपने गुरु को और अपनी सराधनरा को संदेह की नजरों से नहीं देखरा । अपने प्ति उनकरा तिशिरास कहीं भी तडगरा नहीं । कभी गलिी महसूस हुई िो उनहोंने एक क्ण के तलए भी नहीं सोचरा तक इस गलिी के करारण िे स्ि्यं हो सकिे हैं । उनके मि से गलिी बरराबर प्तक््यरा में होिी थी, मरागचा में होिी थी, सराधन में होिी थी ।

    ´´´िे िीर सराधक थे और िीरिरा अखंड आ्म-तिशिरास को आश््य

    करके ही पनपिी है । कबीर के तलए सराधनरा एक तिकट संग्रराम स्थली थी, जहराँ कोई तिरलरा शूर ही तटक सकिरा थरा ।

    ´´´कबीर तजस सराईं की सराधनरा करिे थे िह मुफि की बरािों से नहीं

    तमलिरा थरा । उस रराम से तसर देकर ही सौदरा तक्यरा जरा सकिरा थरा-सराई सेंि न पराइए, बरािराँ तमलै न को्य । कबीर सराैदरा रराम सौं, तसर तबन कदै न हो्य ।। ´´´्यह प्ेम तकसी खेि में नहीं उपजिरा, तकसी हराट में नहीं तबकिरा तफर

    भी जो कोई भी इसे चराहेगरा, परा लेगरा । िह रराजरा हो ्यरा प्जरा, उसे तसफ्क एक शिचा मराननी होगी, िह शिचा है तसर उिरारकर धरिी पर रख ले । तजसमें सराहस नहीं, तजसमें इस अखंड प्ेम के ऊपर तिशिरास नहीं, उस करा्यर की ्यहराँ दराल नहीं गलेगी । हरर से तमल जराने पर सराहस तदखराने की बराि करनरा बेकरार है, पहले तहममि करो, भगिरान आगे आकर तमलेंगे ।

    ´´´तिशिरास ही इस पे्म की कुंजी है;-तिशिरास तजसमें संकोच नहीं,

    द् तिधरा नहीं, बराधरा नहीं ।पे्म न खेिौं नीपजै, प्ेम न हराट तबकरा्य ।रराजरा-परजरा तजस रुचे, तसर दे सो ले जरा्य ।।सूरै सीस उिरारर्यरा, छराड़ी िन की आस ।आगेथैं हरर मुलतक्यरा, आिि देख्यरा दरास ।।भतकि के अतिरेक में उनहोंने कभी अपने को पतिि नहीं समझरा क्योंतक

    उनके दैन्य में भी उनकरा आ्म-तिशिरास सराथ नहीं छोड़ दिेरा थरा । उनकरा मन तजस प्ेमरूपी मतदररा से मििरालरा बनरा हुआ थरा िह ज्रान के गुण से िै्यरार की गई थी । ´´´

    ्युगराििरारी शखति आैर तिशिरास लेकर िे पैदरा हुए थे और ्युगप्ििचाक की दृििरा उनमें ििचामरान थी इसीतलए िे ्युग प्ििचान कर सके । एक िराक्य में उनके व्यतकि्ि को कहरा जरा सकिरा हैः िे तसर से पैर िक मस्ि-मौलरा थे-बेपरिराह, दृि, उग्र, कुसुमरादतप कोमल, िज्रादतप कठोर ।

    (‘कबीर क ेव्यतकि्ि, सरातह््य और दराशचातनक तिचरारों की आलोचनरा’ स)े

    फक्कड़ (पुं.) = मस्िहठ्योग (पुं.सं.) = ्योग करा एक प्करारसुरत (स्रिी.सं.) = करा्यचा तसद् तध करा मरागचामिे (स्रिी.फरा.) = कील, कराँटरामुराड़ा (पुं.सं.) = जलिी हुई लकड़ीकांतदशभी (ति.) = दूरदशभीमाशूक (पुं.अ.) = तप््यतहकीक (स्रिी.अ.) = जराँचशम (पुं.सं.) = शरांति, क्मरा मुहावरा दराल न गलनरा = सफल न होनरा

    शब्द संसार

    लेिनी्य

    ‘कबीर संि ही नहीं समराज सुधरारक भी थे’ इस तिष्य पर तिचरार तलखखए ।

    दोहों की प्ति्योतगिरा के संदभचा में आपस में चचराचा कीतजए ।

    संर्ाषरी्य

  • 11

    पाठ के आँगन में

    * संजराल ः

    र्ाषा कबंदु रेिांककत शब्दों से उपसग्ण और प्त्य्य अलग करके कलखिए ः-F भरारि की अलौतककिरा सरारे तिशि में फैली है ।

    अ लौतकक िरा

    F रराजेश अतभमरानी लड़करा है । F पूतणचामरा के तदन चराँद पररपणूचािरा तलए हुए थरा ।

    F मोह-ममिरा उनहें अपने मरागचा से तिचतलि नहीं कर सकिी थी ।

    F लोग उनकी असफलिरा पर क्यरा-क्यरा तटपपणी करेंगे ।

    F फककड़नरा लरापरिराही और तनमचाम अकखड़िरा उनके आ्मतिशिरास करा पररणराम थी ।

    (१) सूचना के अनुसार कृकत्याँ कीकिए ः

    (२) सही कवकलप चुनकर वा््य कफर से कलखिए ः-

    मन की एकराग्रिरा बिराने की करा्यचा पद ्धति की जरानकरारी अिंरजराल/्यू ट् ्यूब से प्राप्त कीतजए ।

    आसपास‘संिों के िचन समराज पररििचान में सहरा्यक होिे हैं’ इस तिष्य पर अपने तिचरार तलखखए ।

    (क) कबीर के मिरानुसरार पे्म तकसी, १. खिे में नहीं उपजिरा । २. गमले में नहीं उपजिरा । ३. बराग में नहीं उपजिरा ।(ख) कबीर तजज्रासु थे, १. तमथ्यरा के । २. स््य के ३. कथ्य के ।

    मौकलक सुिन

    कबीर जी की रचनराएँ ्यू ट ््यूब पर सतुनए ।पाठ से आगे

    ....................................................................................

    ....................................................................................

    ....................................................................................रचना बोध

    कबीर की तिशेषिराएँ

    F केिल एक ही प्तिद् िंद् िी जरानिरा है, िुलसीदरास ।

  • 12

    4. ककताबें- गलुजार

    तकिराबें झॉंकिी हैं बंद अलमरारी के शीशों से,

    बड़ी हसरि से िकिी हैं ।

    महीनों अब मुलराकरािें नहीं होिीं,

    जो शरामें उनकी सोहबि में कटरा करिी थीं

    अब अकसर ........

    गुजर जरािी हैं ‘कं प्यूटर के पदकों पर’

    बड़ी बेचैन रहिी हैं तकिराबें ........

    उनहें अब नींद में चलने की आदि हो गई है

    जो कदरंे िो सुनरािी थी

    तक तजनके ‘सेल’ कभी मरिे नहीं ेथ,

    िो कदरें अब नजर आिी नहीं घर में,

    जो ररशि ेिो सुनरािी थीं ।

    िह सरारे उधड़े-उधड़े हैं,

    कोई सफरा पलटिरा िो इक तससकी तनकलिी है,

    कई लफजरंेा के मरानी तगर पड़े हैं

    तबनरा प्िों के सूखे-टुंड लगिे हैं िो सब अल्फराज,

    तजन पर अब कोई मरानी नहीं उगिे ........

    कनम्नकलखित मुद् दों के आधार पर पुस्तकों से संबंकधत चचा्ण के आ्योिन में सहर्ागी होकर कलखिए ः-ककृत के कलए आवश्यक सोपान ः

    · पराठ ््येिर पुस्िकें । · पुस्िकों करा संकलन । · पुस्िकों की देखभराल । · तिचरार मंथन तिचरार, िराक्य, सुिचन ।

    िनम ः १8 अगस्ि १९३६ में दीनरा, झलेम तजलरा, पजंराब, (स्ििंरििरा पिूचा भरारि) में हुआ । पररच्य ः गलुजरार जी करा मलू नराम सपंरून तसहं करालररा ह ै। आप एक कति, पटकथरा लखेक, तफल्म तनदतेशक, नराटककरार होन े के सराथ-सराथ तहंदी तफल्मों क ेप्तसद ्ध गीिकरार हैं । प्मुि ककृत्याँ ः चौरस रराि (लघुकथराएँ), ररािी परार (कथरा संग्रह), रराि, चराँद और मैं, एक बूँद चराँद, रराि पशमीने की (कतििरा संग्रह), खरराशें (कतििरा, कहरानी करा कोलराज) ।

    नई ककवता ः आधुतनक सिेंदनरा के सराथ पररिेश के संपणूचा िैतिध्य को नए तशल्प में अतभव्यकि करने िराली कराव्यधराररा है ।

    प्स्िुि कतििरा मंे गुलजरार जी ने पुस्िकें पिने करा सुख, कंप्यूटर के करारण पुस्िकों के प्ति अरुतच, पुस्िकों और मनुष्यों के बीच बििी दूरी और उससे उ्पन्न ददचा कराे बड़े ही मरातमचाक ढंग से प्स्िुि तक्यरा है ।

    पद् ्य संबंधी

    पररच्य

    लेिनी्य

    मैं हँ ्यहाँhttps://youtu.be/tHGlJOo3J14

  • 13

    सुप्तसद ्ध कति गुलजरार की अन्य तकसी कतििरा करा मौन िराचन करिे हुए आनंदपूिचाक रसरास्िरादन कीतजए िथरा तनमन मुद ्दों के आधरार पर केंद्री्य भराि स्पषट कीतजए ।

    पराठ् ्यपुस्िक की तकसी एक कतििरा करा मुखर एिं मौन िराचन कीतजए ।

    सफदर हराशमी रतचि ‘तकिराबें कुछ कहनरा चराहिी है’ कतििरा सतुनए ।

    हसरत (स्रिी.सं.) = करामनरा, उममीद, इचछरासोहबत (पुं.सं.) = संगिकदरें (स्रिी.अ.) = मूल््य, मरा्यनेिा्यका (पुं.अ.) = लजजि, स्िराद सफा (पुं.अ.) = पन्नराअलफाि (पुं.सं.) = शब्द

    जुबरां पर जो जरा्यकरा आिरा थरा जो सफरा पलटने करा

    अब उँगली ‘तकलक’ करने से बस

    झपकी गुजरिी है

    बहुि कुछ िह-ब-िह खुलिरा चलरा जरािरा है परदे पर,

    तकिराबों से जो जरािी रराब्िरा थरा, कट ग्यरा है ........

    कभी सीने पे रख के लेट जरािे ेथ

    कभी गोदी में लेिे ेथ

    कभी घुटनों को अपने ररहल की सूरि बनरा कर

    नीम-सजदे में पिरा करिे थे, छूिे थे जबीं से

    िो सराररा इल्म िो तमलिरा रहेगरा आइंदरा भी

    मगर िो जो तकिराबों में तमलरा करिे थे सूखे फकूल

    और महके हुए रुकके

    तकिराबें तगरने, उठराने के बहराने ररशि ेबनिे थे

    उन�