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    C.B.S.E Board कक्षा : 10

    ह िंदी A – 2018 सिंकलित परीक्षा II

    [Summative Assessment II] समय : 3 घिंटे परू्ाांक : 80

    निदेश

    1. इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैं - क, ख, ग, और घ। 2. चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अननवार्य है। 3. र्थासंभव प्रत्रे्क खंड के उत्तर क्रमश: दीजिए।

    1. ननम्नलिखखत गदर्ांश को ध्र्ानपवूयक पढ़कर ददए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग 20 शब्दो में लिखखए : महात्मा गांधी न ेकोई 12 साि पहिे कहा था – मैं बरुाई करने वािों को सिा देने का उपार् ढूूँढ़ने िगूूँ तो मेरा काम होगा उनसे प्र्ार करना और धरै्य तथा नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्त ेपर िे आना। इसलिए असहर्ोग र्ा सत्र्ाग्रह घणृा का गीत नहीं है। असहर्ोग का मतिब बरुाई करने वािे से नही,ं बजकक बरुाई से असहर्ोग करना है। आपके असहर्ोग का उदे्धश्र् बरुाई को बढ़ावा देना नही ंहै। अगर दनुनर्ा बरुाई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बरुाई अपने लिए आवश्र्क पोषण के अभाव में अपने-आप मर िाए। अगर हम र्ह देखने की कोलशश करें कक आि समाि में िो बरुाई है, उसके लिए खुद हम ककतने जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कक समाि से बरुाई ककतनी िकदी दरू हो िाती है। िेककन हम पे्रम की एक झठूी भावना में पड़कर इसे सहन करत ेहैं। मैं उस पे्रम की बात नही ंकरता, जिसे पपता अपने गित रास्त ेपर चि रहे पतु्र पर मोहांध होकर बरसाता चिा िाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न मैं उस पतु्र की बात कर रहा हूूँ िो झठूी

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    पपत-ृभजतत के कारण अपने पपता के दोषों को सहन करता है। मैं उस पे्रम की चचाय नहीं कर रहा हूूँ। मैं तो उस पे्रम की बात कर रहा हूूँ, िो पववेकर्तुत है और िो बपुद्धर्तुत है और िो एक भी गिती की ओर से आूँख बंद नही ंकरता है। र्ह सधुारने वािा पे्रम है। (क) गांधीिी बरुाई करने वािों को ककस प्रकार सधुारना चाहत ेहैं? (ख) बरुाई को कैसे समाप्त ककर्ा िा सकता है? (ग) ‘प्रेम’ के बारे में गांधीिी के पवचार स्पष्ट कीजिए। (घ) असहर्ोग से तर्ा तात्पर्य है? (ङ) उपर्ुयतत गदर्ांश के लिए उपर्तुत शीषयक दीजिए।

    2. ननम्नलिखखत पदर्ांश को रहकर ददए गए प्रश्नों के उत्तर िगभग 20 शब्दों में

    लिखखए : तुम्हारी ननश्चि आूँखें तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेिेपन की रात के आकाश में प्रेम पपता का ददखाई नहीं देता है ज़रूर ददखाई देती होंगी नसीहतें नकुीिे पत्थरों-सी दनुनर्ा भर के पपताओं की िंबी कतार में पता नही ंकौन-सा ककतना करोड़वाूँ नम्बर है मेरा पर बच्चों के फूिोंवािे बगीच ेकी दनुनर्ा में तुम अव्वि हो पहिी क़तार में मेरे लिए मझु ेमाफ़ करना मैं अपनी मखूयता और पे्रम में समझता था मेरी छार्ा के तिे ही सरुक्षित रंग-बबरंगी दनुनर्ा होगी तुम्हारी अब िब तुम सचमचु की दनुनर्ा में ननकि गई हो मैं खुश हूूँ सोचकर कक मेरी भाषा के अहात ेसे परे है तुम्हारी परछाई। (क) बच्च ेमाता-पपता की उदासी में उिािा भर देत ेहैं – र्ह भाव ककन

    पंजततर्ों में आर्ा है?

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    (ख) प्रार्: बच्चों को पपता की सीख कैसी िगती है? (ग) माता-पपता के लिए अपना बच्चा सवयशे्रष्ठ तर्ों होता है? (घ) कपव ने ककस बात को अपनी मखुयता माना है और तर्ों? (ङ) भाव स्पष्ट कीजिए : 'प्रेम पपता का ददखाई नही ंदेता।'

    3. ननदेशानसुार उत्तर लिखखए।

    (क) बािगोपवन िानत ेहैं कक अब बढ़ुापा आ गर्ा। (आश्रश्रत उपवातर् छाूँटकर भेद भी लिखखए)

    (ख) मॉरीशस की स्वच्छता देखकर मन प्रसन्न हो गर्ा (लमश्र वातर् में बदलिए)

    (ग) गुरुदेव आराम कुसी पर िेटे हुए थे और प्राकृनतक सौंदर्य का आनंद िे रहे थे। (सरि वातर् में बदलिए)

    4. ननदेशानसुार वातर् बदलिए।

    (क) मई महीने में शीिा अग्रवाि को कॉिेि वािों ने नोदटस थमा ददर्ा। (कमयवाच्र् में)

    (ख) देशभततों की शहादत को आि भी र्ाद ककर्ा िाता है। (कतृयवाच्र् में) (ग) खबर सनुकर वह चि भी नही ंपा रही थी। (भाववाच्र् में) (घ) जिस आदमी न ेपहिे-पहि आग का आपवष्कार ककर्ा होगा, वह ककतना

    बड़ा आपवष्कताय होगा। (कतृयवाच्र् में) 5. रेखांककत पदों का पद-पररचर् लिखखए।

    अपने गाूँव की लमट्टी छूने के लिए मैं तरस गर्ा। 6.

    (क) ‘रनत’ ककस रस का स्थार्ी भाव है? (ख) ‘करुण’ रस का स्थार्ी भाव तर्ा है? (ग) ‘हास्र्’ रस का एक उदहारण लिखखए। (घ) ननम्नलिखखत पंजततर्ों में रस पहचान क्र लिखखए :

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    मैं सत्र् कहता हूूँ सखे! सकुुमार मत िानो मझु,े र्मराि से भी र्दु्ध को प्रस्ततु सदा मानो मझु।े

    7. ननम्नलिखखत गदर्ांश के आधार पर पछेू गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग

    20 शब्दों में लिखखए : िीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी हािदार साहब इस मनूतय के बारे में ही सोचत ेरहे, और अंत में इस ननष्कषय पर पहुूँच ेकक कुि लमिाकर कस्बे के नागररकों का र्ह प्रर्ास सराहनीर् ही कहा िाना चादहए। महत्व मनूतय के रंग-रूप र्ा कद का नहीं, उस भावना का है; वरना तो देशभजतत भी आिकि मज़ाक की चीज़ होती िा रही है। दसूरी बार िब हािदार साहब उधर से गजु़रे तो उन्हें मनूतय में कुछ अंतर ददखाई ददर्ा। ध्र्ान से देखा तो पार्ा कक चश्मा दसूरा है। (क) हािदार साहब को कस्बे के नागररकों का कौन-सा प्रर्ास सराहनीर् िगा

    और तर्ों? (ख) ‘देशभजतत भी आिकि मज़ाक की चीज़ होती िा रही है।' – इस पंजतत में

    देश और िोगों की ककन जस्थनतर्ों की ओर संकेत ककर्ा गर्ा है? (ग) दसूरी बार मनूतय देखने पर हािदार साहब को उसमें तर्ा पररवतयन ददखाई

    ददर्ा? 8. ननम्नलिखखत प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग 20 शब्दों में लिखखए :

    (क) 'बािगोबबन भगत' पाठ में ककन सामाजिक रूदढ़र्ों पर प्रहार ककर्ा गर्ा है? (ख) महावीर प्रसाद ददववेदी लशिा-प्रणािी में संशोधन की बात तर्ों करत ेहैं? (ग) ‘काशी में बाबा पवश्वनाथ और बबजस्मकिाखाूँ एक-दसूरे के परूक हैं' – कथन

    का तर्ा आशर् है? (घ) वतयमान समाि को 'संस्कृत' कहा िा सकता है र्ा 'सभ्र्'? तकय सदहत

    उत्तर दीजिए।

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    9. ननम्नलिखखत पदर्ांश के आधार पर ददए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग 20 शब्दों में लिखखए : हमारे हरर हाररि की िकरी। मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, र्ह दृढ़ करर पकरी। िागत सोवत स्वप्न ददवस-ननलस, कान्ह-कान्ह िकरी। सनुत िोग िागत है ऐसी, ज्र्ौं करूई ककरी। स ुतौ ब्र्ाश्रध हमकौं ि ैआए, देखी सनुी न करी। र्ह तौ 'सरू' नतनदह ंि ैसौंपो, जिनके मन चकरी (क) 'हाररि की िकड़ी' ककसे कहा गर्ा है और तर्ों? (ख) 'नतनदह ंि ैसौंपौ' में ककसकी ओर तर्ा संकेत ककर्ा गर्ा है? (ग) गोपपर्ों को र्ोग कैसा िगता है? तर्ों?

    10. ननम्नलिखखत प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगबग 20 शब्दों में लिखखए :

    (क) िर्शंकर प्रसाद के िीवन के कौन से अनभुव उन्हें आत्मकथा लिखने से रोकत ेहैं?

    (ख) बादिों की गियना का आह्हान कपव तर्ों करना चाहता है? 'उत्साह' कपवता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

    (ग) 'कन्र्ादान' कपवता में व्र्तत ककन्ही ंदो सामाजिक कुरीनतर्ों का उकिेख कीजिए।

    (घ) संगतकार की दहचकती आवाि उसकी पवफिता तर्ों नही ंहै? 11. "आि आपकी ररपोटय छाप दूूँ तो कि ही अखवार बंद हो िाए" – स्वतंत्रता

    संग्राम के दौर में समाचार-पत्रों के इस रवरेै् पर ‘एही ठैर्ाूँ झिुनी हेरानी हो रामा’ के आधार पर िीवन-मकूर्ों की दृष्टी से िगभग 150 शब्दों में चचाय कीजिए।

    अथवा ‘मैं तर्ों लिखता हूूँ', पाठ के आधार पर बताइए की पवज्ञान के दरुूपर्ोग से ककन मानवीर् मकूर्ों की िनत होती है? इसके लिए हम तर्ा कर सकते हैं?

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    12. ननम्नलिखखत में से ककसी एक पवषर् पर ददए गए संकेत-बबदंओंु के आधार पर 200 से 250 शब्दों में ननबंध लिखखए : (क) महानगरीर् िीवन

    • पवकास की अंधी दौड़ • संबंधो हा ह्रास • ददखावा

    (ख) पवो का बदिता स्वरुप

    • तात्पर्य • परंपरागत तरीके • बािार का बढ़ता प्रभाव

    (ग) बीता समर् कफर िौटता नहीं

    • समर् का महत्व • समर् ननर्ोिन • समर् गूँवाने की हाननर्ाूँ

    13. आपके िेत्र के पाकय को कूड़देान बना ददर्ा गर्ा था। अब पलुिस की पहि और

    मदद से पनु: बच्चों के लिए खेि का मदैान बन गर्ा है। अतः आप पलुिस आर्तुत को धन्र्वाद पत्र लिखखए।

    अथवा पटाखों से होने वािे प्रदषुण के प्रनत ध्र्ान आकपषयत करत ेहुए अपने लमत्र को पत्र लिखखए।

    14. पर्ायवरण के प्रनत िागरूकता बढ़ाने के लिए िगभग 50 शब्दों में एक पवज्ञापन

    लिखखए। अथवा

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    पवदर्ािर् के वापषयकोत्सव के अवसर पर पवदर्ाश्रथयर्ों दवारा ननलमयत-हस्तकिा की वस्तओंु की प्रदशयनी के प्रचार हेत ुिगभग 50 शब्दों में एक पवज्ञापन लिखखए।

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    C.B.S.E Board कक्षा : 10

    ह िंदी A – 2018 सिंकलित परीक्षा II

    [Summative Assessment II] समय : 3 घिंटे परू्ाांक : 80

    निदेश

    1. इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैं - क, ख, ग, और घ। 2. चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अननवार्य है। 3. र्थासंभव प्रत्रे्क खंड के उत्तर क्रमश: दीजिए।

    1. ननम्नलिखखत गदर्ांश को ध्र्ानपवूयक पढ़कर ददए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग 20 शब्दो में लिखखए : महात्मा गांधी न ेकोई 12 साि पहिे कहा था – मैं बरुाई करने वािों को सिा देने का उपार् ढूूँढ़ने िगूूँ तो मेरा काम होगा उनसे प्र्ार करना और धरै्य तथा नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्त ेपर िे आना। इसलिए असहर्ोग र्ा सत्र्ाग्रह घणृा का गीत नहीं है। असहर्ोग का मतिब बरुाई करने वािे से नही,ं बजकक बरुाई से असहर्ोग करना है। आपके असहर्ोग का उदे्धश्र् बरुाई को बढ़ावा देना नही ंहै। अगर दनुनर्ा बरुाई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बरुाई अपने लिए आवश्र्क पोषण के अभाव में अपने-आप मर िाए। अगर हम र्ह देखने की कोलशश करें कक आि समाि में िो बरुाई है, उसके लिए खुद हम ककतने जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कक समाि से बरुाई ककतनी िकदी दरू हो िाती है। िेककन हम पे्रम की एक झठूी भावना में पड़कर इसे सहन करत ेहैं। मैं उस पे्रम की बात नही ंकरता, जिसे पपता अपने गित रास्त ेपर चि रहे पतु्र पर मोहांध होकर बरसाता चिा िाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न मैं उस पतु्र की बात कर रहा हूूँ िो झठूी

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    पपत-ृभजतत के कारण अपने पपता के दोषों को सहन करता है। मैं उस पे्रम की चचाय नहीं कर रहा हूूँ। मैं तो उस पे्रम की बात कर रहा हूूँ, िो पववेकर्तुत है और िो बपुद्धर्तुत है और िो एक भी गिती की ओर से आूँख बंद नही ंकरता है। र्ह सधुारने वािा पे्रम है। (क) गांधीिी बरुाई करने वािों को ककस प्रकार सधुारना चाहत ेहैं?

    उत्तर : गांधीिी बरुाई करने वािों को पे्रम, धरै्य तथा नम्रता के साथ समझाकर सधुारना चाहत ेहैं।

    (ख) बरुाई को कैसे समाप्त ककर्ा िा सकता है?

    उत्तर : र्दद हम बरुाई को बढ़ावा देना बंद कर देंगे तो बरुाई स्वरं् समाप्त हो िाएगी।

    (ग) ‘प्रेम’ के बारे में गांधीिी के पवचार स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर : गांधीिी के अनसुार पे्रम का अथय मोह में अंधा होकर अपने पप्रर् की गिनतर्ों का समथयन करना र्ा बढ़ावा देना नही ंहै। बजकक उनके अनसुार उन गिनतर्ों को सधुारना ही सही अथों में पे्रम की पररभाषा है।

    (घ) असहर्ोग से तर्ा तात्पर्य है?

    उत्तर : असहर्ोग का मतिब बरुा करने वािे से नही,ं बजकक बरुाई से असहर्ोग करना है। अथायत ्बरुाई का त्र्ाग करना ही असहर्ोग है।

    (ङ) उपर्ुयतत गदर्ांश के लिए उपर्तुत शीषयक दीजिए।

    उत्तर : शीषयक – 1. प्रेम और अदहसंा का अथय 2. प्रेम और अदहसंा की पररभाषा

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    2. ननम्नलिखखत पदर्ांश को रहकर ददए गए प्रश्नों के उत्तर िगभग 20 शब्दों में लिखखए : तुम्हारी ननश्चि आूँखें तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेिेपन की रात के आकाश में प्रेम पपता का ददखाई नहीं देता है ज़रूर ददखाई देती होंगी नसीहतें नकुीिे पत्थरों-सी दनुनर्ा भर के पपताओं की िंबी कतार में पता नही ंकौन-सा ककतना करोड़वाूँ नम्बर है मेरा पर बच्चों के फूिोंवािे बगीच ेकी दनुनर्ा में तुम अव्वि हो पहिी क़तार में मेरे लिए मझु ेमाफ़ करना मैं अपनी मखूयता और पे्रम में समझता था मेरी छार्ा के तिे ही सरुक्षित रंग-बबरंगी दनुनर्ा होगी तुम्हारी अब िब तुम सचमचु की दनुनर्ा में ननकि गई हो मैं खुश हूूँ सोचकर कक मेरी भाषा के अहात ेसे परे है तुम्हारी परछाई। (क) बच्च ेमाता-पपता की उदासी में उिािा भर देत ेहैं – र्ह भाव ककन

    पंजततर्ों में आर्ा है? उत्तर : बच्च ेमाता-पपता की उदासी में उिािा भर देत ेहैं – र्ह भाव

    ननम्नलिखखत पंजततर्ों में आर्ा है – "तुम्हारी ननश्चि आूँखें तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेिेपन की रात के आकाश में"

    (ख) प्रार्: बच्चों को पपता की सीख कैसी िगती है?

    उत्तर : बच्चों को प्रार्: पपता की सीख चभुनेवािी नकुीिे पत्थरों के समान िगती हैं।

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    (ग) माता-पपता के लिए अपना बच्चा सवयशे्रष्ठ तर्ों होता है? उत्तर : माता-पपता के लिए उनका बच्चा सवयशे्रष्ठ होता है तर्ोंकक दनुनर्ा

    के सभी बच्चों में से सबसे अधधक पे्रम वो अपने बच्चों से ही करत ेहैं।

    (घ) कपव ने ककस बात को अपनी मखुयता माना है और तर्ों?

    उत्तर : कपव अपनी पतु्री को दनुनर्ा से नछपा कर अपने पास सरुक्षित रखना चाहता है। अपनी इसी भावना को कपव अपनी मखुयता मानता है। तर्ोंकक िब उसकी पतु्री बड़ी हो िाती है तो वह खुद को उस दनुनर्ा के अनसुार ढ़ाि िेती है।

    (ङ) भाव स्पष्ट कीजिए : 'प्रेम पपता का ददखाई नही ंदेता।' उत्तर : पपता का प्रेम ददखाई नहीं देता तर्ोंकक प्रार्ः अपने बच्चों को सही

    राह ददखाने के लिए पपता को कठोरता ददखानी पड़ती है। परंत ुउसकी इस कठोरता में भी पे्रम नछपा होता है जिसे बच्चें समझ नहीं सकत ेहै।

    3. ननदेशानसुार उत्तर लिखखए।

    (क) बािगोपवन िानत ेहैं कक अब बढ़ुापा आ गर्ा। (आधश्रत उपवातर् छाूँटकर भेद भी लिखखए) उत्तर : अब बढ़ुापा आ गर्ा। (संज्ञा उपवातर्)

    (ख) मॉरीशस की स्वच्छता देखकर मन प्रसन्न हो गर्ा (लमश्र वातर् में

    बदलिए) उत्तर : िैसे ही मॉरीशस की स्वछता देखी, वसेै ही मन प्रसन्न हो गर्ा।

    (ग) गुरुदेव आराम कुसी पर िेटे हुए थे और प्राकृनतक सौंदर्य का आनंद िे रहे

    थे। (सरि वातर् में बदलिए)

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    उत्तर : गुरुदेव आराम कुसी पर िेटे हुए ही प्राकृनतक सौंदर्य का आनंद िे रहे थे।

    4. ननदेशानसुार वातर् बदलिए।

    (क) मई महीने में शीिा अग्रवाि को कॉिेि वािों ने नोदटस थमा ददर्ा। (कमयवाच्र् में) उत्तर : मई महीने में शीिा अग्रवाि को कॉिेि दवारा नोदटस थमा ददर्ा

    गर्ा।

    (ख) देशभततों की शहादत को आि भी र्ाद ककर्ा िाता है। (कतृयवाच्र् में) उत्तर : देशभततों की शहादत को आि भी र्ाद करत ेहैं।

    (ग) खबर सनुकर वह चि भी नही ंपा रही थी। (भाववाच्र् में) उत्तर : खबर सनुकर उसके दवारा चिा भी नहीं िा रहा था।

    (घ) जिस आदमी न ेपहिे-पहि आग का आपवष्कार ककर्ा होगा, वह ककतना बड़ा आपवष्कताय होगा। (कतृयवाच्र् में) उत्तर : जिस आदमी ने पहिे-पहि आग का आपवष्कार ककर्ा, वह ककतना

    बड़ा आपवष्कताय है। 5. रेखांककत पदों का पद-पररचर् लिखखए।

    अपने गाूँव की लमट्टी छूने के लिए मैं तरस गर्ा। गाूँव की – िानतवाचक संज्ञा, एकवचन, पजुकिंग, संबंध कारक। लमट्टी – िानतवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिगं। मैं – उत्तम परुुषवाचक सवयनाम, एकवचन, पजुकिंग कक्रर्ा का कताय। तरस - भाववाचक संज्ञा, एकवचन, पजुकिंग। गर्ा – अकमयक कक्रर्ा, एकवचन, पजुकिग।

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    6. (क) ‘रनत’ ककस रस का स्थार्ी भाव है?

    उत्तर : श्रृगंार रस

    (ख) ‘करुण’ रस का स्थार्ी भाव तर्ा है? उत्तर : शोक

    (ग) ‘हास्र्’ रस का एक उदहारण लिखखए। उत्तर : एक गरभ मैं सौ-सौ पतू,

    िनमाव ेऐसा मिबतू, करै खटाखट काम सर्ाना, सखख सज्िन नदह ंछापाखाना।

    (घ) ननम्नलिखखत पंजततर्ों में रस पहचान क्र लिखखए : मैं सत्र् कहता हूूँ सखे! सकुुमार मत िानो मझु,े र्मराि से भी र्दु्ध को प्रस्ततु सदा मानो मझु।े उत्तर : वीर रस

    7. ननम्नलिखखत गदर्ांश के आधार पर पछेू गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग

    20 शब्दों में लिखखए : िीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी हािदार साहब इस मनूतय के बारे में ही सोचत ेरहे, और अंत में इस ननष्कषय पर पहुूँच ेकक कुि लमिाकर कस्बे के नागररकों का र्ह प्रर्ास सराहनीर् ही कहा िाना चादहए। महत्व मनूतय के रंग-रूप र्ा कद का नहीं, उस भावना का है; वरना तो देशभजतत भी आिकि मज़ाक की चीज़ होती िा रही है। दसूरी बार िब हािदार साहब उधर से गजु़रे तो उन्हें मनूतय में कुछ अंतर ददखाई ददर्ा। ध्र्ान से देखा तो पार्ा कक चश्मा दसूरा है। (क) हािदार साहब को कस्बे के नागररकों का कौन-सा प्रर्ास सराहनीर् िगा

    और तर्ों?

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    उत्तर : हािदार साहब को कस्बे के नागररकों का नेतािी की मनूतय पर चश्मा िगान ेका प्रर्ास सराहनीर् िगा तर्ोंकक िोगों का र्ह प्रर्ास उनकी देशभजतत की भावना प्रकट करता है।

    (ख) ‘देशभजतत भी आिकि मज़ाक की चीज़ होती िा रही है।' – इस पंजतत में

    देश और िोगों की ककन जस्थनतर्ों की ओर संकेत ककर्ा गर्ा है? उत्तर : देशभततों न ेदेश को आज़ादी ददिाने के लिए अपना सवयस्व देश

    के प्रनत समपपयत कर ददर्ा। आि िो हम स्वत्रंत देश में आज़ादी की साूँस िे रहे है र्ह उन्हीं के कारण संभव हो पार्ा है, उन्ही ंके कारण आज़ाद हुआ है। परन्त ुर्दद ककसी के मन में ऐसे देशभततों के लिए सम्मान की भावना नहीं है, उनके ददखाए हुए रास्तों पर नही ंचित।े तो र्ह बड़ ेही द:ुख की बात है। र्ह देशभजतत का मज़ाक ही तो है।

    (ग) दसूरी बार मनूतय देखने पर हािदार साहब को उसमें तर्ा पररवतयन ददखाई

    ददर्ा? उत्तर : दसूरी बार मनूतय देखने पर हािदार साहब को उसमें कुछ पररवतयन

    ददखाई ददर्ा। ध्र्ान से देखने पर पता चिा कक मनूतय का चश्मा बदिा हुआ था। पहिे मोटे फे्रमवािा चौकोर चश्मा था, अब तार के फे्रमवािा गोि चश्मा है।

    8. ननम्नलिखखत प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग 20 शब्दों में लिखखए :

    (क) 'बािगोबबन भगत' पाठ में ककन सामाजिक रूदढ़र्ों पर प्रहार ककर्ा गर्ा है? उत्तर : 'बािगोबबन भगत' पाठ में ननम्नलिखखत सामाजिक रुदढर्ों पर

    प्रहार ककर्ा गर्ा है : 1. िब बािगोबबन भगत के बेटे की मतृ्र् ुहुई उस समर् सामान्र्

    िोगों की तरह शोक करन ेकी बिाए भगत न ेउसकी शरै्ा के समि गीत गाकर अपने भाव प्रकट ककए - "आत्मा का

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    परमात्मा से लमिन हो गर्ा है। र्ह आनंद मनान ेका समर् है, द:ुखी होन ेका नहीं।"

    2. बेटे के कक्रर्ा-कमय में भी उन्होंने सामाजिक रीनत-ररवािों की परवाह न करते हुए अपनी पतु्रवध ूसे ही दाह संस्कार संपन्न करार्ा।

    3. समाि में पवधवा पववाह का प्रचिन न होने के बाविूद भी उन्होंने अपनी पतु्रवध ूको ज़बरदस्ती उसके भाई के साथ भेिकर उसके दसूरे पववाह का ननणयर् ककर्ा।

    4. अन्र् साधओंु की तरह लभिा माूँगकर खाने के पवरोधी थे।

    (ख) महावीर प्रसाद ददववेदी लशिा-प्रणािी में संशोधन की बात तर्ों करत ेहैं? उत्तर : महावीर प्रसाद दपववेदी के अनसुार र्दद हम चाहत ेहैं कक लशिा

    जस्त्रर्ों का अनथय करती है, तो हम उसमें कुछ संशोधन कर जस्त्रर्ों की लशिा प्राप्त करने के मागय को प्रशस्त कर सकते हैं। हम लमिकर रे् तर् कर सकत ेहैं कक जस्त्रर्ों को तर्ा पढ़ना चादहए, ककतना पढ़ना चादहए, ककस तरह का पढ़ना चादहए और कहाूँ लशिा प्राप्त करनी चादहए। इससे सबका पवरोध समाप्त हो िाएगा।

    (ग) ‘काशी में बाबा पवश्वनाथ और बबजस्मकिाखाूँ एक-दसूरे के परूक हैं' – कथन

    का तर्ा आशर् है? उत्तर : बाबा पवश्वनाथ के र्हाूँ शहनाई बिाकर बबजस्मकिाखाूँ अपने ददन

    का आरंभ करते हैं। उनकी शहनाई सनुकर ही बाबा पवश्वनाथ के ददन का भी आरंभ होता है। दोनों िैसे एक दिेू के बबना अधरेू हैं। एक के बबना दसूरे का अजस्तत्व पणूय नही ंहोता है। इससे इस कथन का आशर् स्पष्ट होता है - ‘काशी में बाबा पवश्वनाथ और बबजस्मकिाखाूँ एक-दसूरे के परूक हैं'।

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    (घ) वतयमान समाि को 'संस्कृत' कहा िा सकता है र्ा 'सभ्र्'? तकय सदहत उत्तर दीजिए। उत्तर : वतयमान समाि को 'सभ्र्' कहा िा सकता है। इसके पीछे कारण

    है कक िो मनषु्र् अपनी बपुद्ध तथा पववेक के दवारा नए तथ्र्ों की खोि व दशयन करता है, वह संस्कृत कहिाता है। भतूकाि में जितने भी आपवष्कार हुए थे उन्हें संस्कृत कहा गर्ा है और आि के समर् में हम चाहे उसमें ककतने ही सधुार कर िे हम संस्कृत नहीं कहिा सकत ेहमें सभ्र् की उपाधध दी िाएगी तर्ोंकक हमें र्ह तथ्र् व दशयन अपनी पहिे की पीढ़ी से लमिा है।

    9. ननम्नलिखखत पदर्ांश के आधार पर ददए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगभग

    20 शब्दों में लिखखए : हमारे हरर हाररि की िकरी। मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, र्ह दृढ़ करर पकरी। िागत सोवत स्वप्न ददवस-ननलस, कान्ह-कान्ह िकरी। सनुत िोग िागत है ऐसी, ज्र्ौं करूई ककरी। स ुतौ ब्र्ाधध हमकौं ि ैआए, देखी सनुी न करी। र्ह तौ 'सरू' नतनदह ंि ैसौंपो, जिनके मन चकरी (क) 'हाररि की िकड़ी' ककसे कहा गर्ा है और तर्ों?

    उत्तर : 'हाररि की िकड़ी' उन्होंने श्री कृष्ण को कहा है। जिस प्रकार हाररि पिी अपनी िकड़ी को नहीं छोड़ती उसी प्रकार से गोपपर्ाूँ श्री कृष्ण को नही ंछोड़ती हैं। श्री कृष्ण गोपपर्ों को अत्र्धधक पप्रर् हैं उन्होंने दृढ़ता से कृष्ण को अपने मन मर बसार्ा है कृष्ण के प्रनत अपने प्रेम को ककसी भी प्रकार नहीं छोड़ सकती।

    (ख) 'नतनदह ंि ैसौंपौ' में ककसकी ओर तर्ा संकेत ककर्ा गर्ा है?

    उत्तर : 'नतनदह ंि ैसौंपौ' में गोपपर्ाूँ उन िोगों की ओर संकेत करती हैं जिनका मन श्रीकृष्ण के पे्रम और भजतत में अनरुतत नही ंहै उनका मन एकाग्र नहीं बजकक र्हाूँ-वहाूँ भटकता रहता है। उन्ही ं

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    िोगों को अपने मन को एकाग्र रखने के लिए र्ोग साधना की आवश्र्कता पड़ती है।

    (ग) गोपपर्ों को र्ोग कैसा िगता है? तर्ों?

    उत्तर : गोपपर्ों को र्ोग व्र्थय, कड़वी ककड़ी के समान िगता है, जिसे कोई खाना नही ंचाहता है। जिस प्रकार कड़वी ककड़ी को ननगिा नहीं िा सकता है। उसी प्रकार उद्धव की ज्ञानपणूय र्ोग की बातें भी उनकी समझ से बाहर हैं। वो उन्हें स्वीकार नही ंकर पा रही हैं। र्ोग ऐसा रोग है,िो न पहिे कभी देखा है न सनुा है।

    10. ननम्नलिखखत प्रश्नों के उत्तर प्रत्रे्क िगबग 20 शब्दों में लिखखए :

    (क) िर्शंकर प्रसाद के िीवन के कौन से अनभुव उन्हें आत्मकथा लिखने से रोकत ेहैं? उत्तर : िर्शंकर प्रसाद के रे् अनभुव उन्हें आत्मकथा लिखने से रोकते

    हैं – 1. कपव का िीवन दःुख और अभावों से भरा रहा हैं। मजुश्कि से

    कपव को अपनी परुानी वेदना से मजुतत लमिी है, आत्मकथा लिखकर कपव अपने मन में दबे हुए कष्टों को र्ाद करके द:ुखी नही ंहोना चाहता है।

    2. अपनी सरिता के कारण उसने कई बार धोखा भी खार्ा है। वह अपने व्र्जततगत िीवन को उपहास का कारण नही ंबनाना चाहता।

    3. दसूरों दवारा उनके िीवन को मनोरंिन की वस्त ुमानना और उसमें मजे़ िेने के भाव के अनभुव के कारण।

    (ख) बादिों की गियना का आह्हान कपव तर्ों करना चाहता है? 'उत्साह'

    कपवता के आधार पर स्पष्ट कीजिए। उत्तर : कपव ने बादि से फुहार, ररमखझम र्ा बरसन ेके लिए नहीं कहता

    बजकक 'गरिन'े के लिए कहा है; तर्ोंकक कपव बादिों को क्रानंत

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    का सतू्रधार मानता है। 'गरिना' पवद्रोह का प्रतीक है। कपव बादिों से पौरुष ददखाने की कामना करता है। कपव ने बादि के गरिने के माध्र्म से कपवता में नतून पवद्रोह का आह्वान ककर्ा है।

    (ग) 'कन्र्ादान' कपवता में व्र्तत ककन्ही ंदो सामाजिक कुरीनतर्ों का उकिेख

    कीजिए। उत्तर : 'कन्र्ादान' कपवता में दहेि प्रथा तथा कन्र्ादान के नाम पर

    िड़ककर्ों के िीवन से खखिवाड़ िैसी सामाजिक कुरीनतर्ों का उकिेख लमिता है। पववाह में होनेवािे कन्र्ादान के बाद िड़की अपने माता-पपता के लिए पराई हो िाती है। ससरुाि िाकर उसका स्वरं् का अजस्तत्व भी चकूहे-चौके में नष्ट हो िाता है।

    (घ) संगतकार की दहचकती आवाि उसकी पवफिता तर्ों नही ंहै?

    उत्तर : कपव कहता है - संगतकार िब मखु्र् गार्क के पीछे-पीछे गाता है वह अपनी आवाज़ को मखु्र् गार्क की आवाज़ से अधधक ऊूँ चें स्वर में नही ंिाने देते ताकक मखु्र् गार्क की महत्ता कम न हो िाए। र्ही दहचक (संकोच) उसके गार्न में झिक िाती है। वह ककतना भी उत्तम हो परन्तु स्वरं् को मखु्र् गार्क से कम ही रखता है। िेखक आगे कहता है कक र्ह उसकी असफिता का प्रमाण नही ंअपपतु उसकी मनषु्र्ता का प्रमाण है कक वह शजतत और प्रनतभा के रहते हुए स्वरं् को ऊूँ चा नहीं उठाता, बजकक अपने गुरु और स्वामी को महत्व देने की कोलशश करता है।

    11. "आि आपकी ररपोटय छाप दूूँ तो कि ही अखवार बंद हो िाए" – स्वतंत्रता

    संग्राम के दौर में समाचार-पत्रों के इस रवरेै् पर ‘एही ठैर्ाूँ झिुनी हेरानी हो रामा’ के आधार पर िीवन-मकूर्ों की दृष्टी से िगभग 150 शब्दों में चचाय कीजिए।

    अथवा

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    ‘मैं तर्ों लिखता हूूँ', पाठ के आधार पर बताइए की पवज्ञान के दरुूपर्ोग से ककन मानवीर् मकूर्ों की िनत होती है? इसके लिए हम तर्ा कर सकते हैं?

    उत्तर : "आि आपकी ररपोटय छाप दूूँ तो कि की अखवार बंद हो िाए" –

    स्वतंत्रता संग्राम के दौरान समाचार-पत्रों का रवरै्ा देश के प्रनत उपेिापणूय िान पड़ता है। इसकी विह अंगे्रिी शासन का डर है। देशभततों का सम्मान करना, उनका समथयन करना ऐसी भावना िैसे मर गई है। उन्हें समाचार-पत्र की शजतत का प्रर्ोग कर िोगों को एक कर स्वतंत्रता प्राप्त करवाने में अग्रसर होना चादहए था। र्दद देश उसी समर् एक हो गर्ा होता, तो हमें अधधक ददनों तक गुिामी नही ंकरनी पड़ती। उन्हें देश से नहीं अपने से अधधक पे्रम था। दिुारी और टुन्न ूदो ऐसे पात्र थे, जिन्होंने गुिामी की बेड़ड़र्ों को नकार ददर्ा था। वे स्वतंत्रतापवूयक िीना चाहत ेथे। ऐसे में र्दद समाचार-पत्र उसका साथ देत ेतो ऐसा िन सिैाब आता कक देशभर िाग िाता।

    अथवा दहरोलशमा तो पवज्ञान के दरुुपर्ोग का ज्विंत उदाहरण है ही पर हम मनषु्र्ों दवारा पवज्ञान का और भी दरुुपर्ोग ककर्ा िा रहा है। िैसे-

    1. पवज्ञान ने र्ात्रा को सगुम बनान ेके लिए हवाई िहाज़, गाड़ड़र्ों आदद का ननमायण ककर्ा परन्तु हमने इनसे अपने ही वातावरण को प्रदपूषत कर ददर्ा है।

    2. इस पवज्ञान की देन के दवारा आि हम अंगप्रत्र्ारोपण कर सकत ेहैं। परन्त ुआि इस देन का दरुुपर्ोग कर हम मानव अंगों का व्र्ापार करने िगे हैं।

    3. पवज्ञान के दरुुपर्ोग से भ्रणू हत्र्ाएूँ बढ़ रही है। 4. पवपवध कीटनाशकों का प्रर्ोग आत्महत्र्ा के लिए होता है। 5. पवज्ञान ने कंप्र्टूर का आपवष्कार ककर्ा उसके पश्चात ्उसने इंटरनेट

    का आपवष्कार ककर्ा रे् उसने मानव के कार्ों के बोझ को कम करन ेके लिए ककर्ा। हम मनषु्र्ों ने इन दोनों का दरुुपर्ोग कर वार्रस व साइबर क्राइम को िन्म ददर्ा है।

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    6. आि हर देश परमाण ुअस्त्रों को बनाने में िगा हुआ है िो आन ेवाि ेभपवष्र् के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

    इसे रोकने में हमारी भलूमका बहुत ही महत्वपणूय है। रे् कहना कक पवज्ञान का दरुुपर्ोग हो रहा है - सही है! परन्त ुहर व्र्जतत इसका दरुुपर्ोग कर रहा है। र्ह कहना सवयथा गित होगा। तर्ोंकक कुछ िोग इसके दरुुपर्ोग को रोकने के लिए कार्य करत ेरहत ेहैं। (1) पवज्ञान के बनाए हधथर्ारों का र्थासंभव मानवता की भिाई के लिए

    ही करें, मनषु्र् के पवनाश के लिए नहीं। (2) प्रदषूण के प्रनत िनता में िागरुकता िाने के लिए अनेकों कार्यक्रमों

    व सभा का आर्ोिन ककर्ा िा रहा है। जिससे प्रदषूण के प्रनत रोकथाम की िा सके। इन समारोहों में िाकर व िोगों को बताकर हम अपनी भलूमका अदा कर सकत ेहैं।

    (3) टी.वी पर प्रसाररत अश्िीि कार्यक्रमों का खुिकर पवरोध करुूँगा और समािोपर्ोगी कार्यक्रमों के प्रसारण का अनरुोध करुूँगा।

    12. ननम्नलिखखत में से ककसी एक पवषर् पर ददए गए संकेत-बबदंओंु के आधार पर

    200 से 250 शब्दों में ननबंध लिखखए : (क) महानगरीर् िीवन

    • पवकास की अंधी दौड़ • संबंधो हा ह्रास • ददखावा

    महानगर से तात्पर्य ऐसे नगर से है, जिसमें िाखों की संख्र्ा में िोग रहत ेहैं। महानगर र्ानन ऊूँ ची-ऊूँ ची इमारतों, बड़-ेबड़ ेकि-कारखानों, दकुानों तथा दौड़ते वाहनों आदद से परूरत घनी आबादी वािा शहर। पवश्व के प्रार्: सभी देशों में महानगर हैं। न्र्रू्ाकय , वालशगंटन, िंदन, टोतर्ो, पेररस आदद पवश्व के कुछ प्रमखु महानगर हैं। भारत में ददकिी, मुंबई, कोिकाता और चने्नई महानगरों की शे्रणी में आत ेहैं।

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    महानगरों का िीवन थोड़ा अिग है - भाग-दौड़, आपा-धापी, हर कोई अपने आप में व्र्स्त है। महानगरीर् िीवन में समस्त भौनतक सखु–सपुवधाओं की चकाचौंध देखी िा सकती है पर इस चकाचौंध में िीवन मकूर्ों का ननरंतर हास हो रहा है। महानगरों के िीवन ने मनषु्र् को मशीन बना ददर्ा है। िोगों के पास समर् का अभाव है। ककसी के पास भी अपने सगेसंबधंधर्ों, लमत्रों से लमिने का समर् नही ंहै। एक-दसूरे के सखु-दखु बाूँटने का समर् नही ंहै। महानगरों में स्पधाय और ददखावा इतना बढ़ गर्ा है की इसके चिते िोगों में तनाव बढ़ गर्ा है।

    (ख) पवो का बदिता स्वरुप

    • तात्पर्य • परंपरागत तरीके • बािार का बढ़ता प्रभाव

    हमारा देश पवों का देश है। त्र्ौहार ऊिाय का संचार करते हैं, उदास मनों में आशा िागतृ करत ेहैं, अकेिेपन को दरू करत ेहैं। आि बदिते र्गु के साथ त्र्ौहार का स्वरूप भी बदि रहा है। पहिे एक महीन ेपहिे ही त्र्ौहार की तैर्ाररर्ाूँ शरुू कर दी िाती थी। आि िोगों के पास समर् नहीं है, त्र्ौहार के ददन मजुश्कि से समर् ननकाित ेहै। पहिे िोग एक-दसूरे के घर िाते और लमि-िुिकर पवों का आनंद उठात ेथे। परन्त ुसमर् बदिने के साथ ही पवों के स्वरूप में भी भारी अंतर आर्ा है। आि सब मोबाईि पर बधाइर्ाूँ देकर ही पवय मना िेत ेहै। पहिे घर पर लमठाइर्ाूँ, तरह तरह के व्र्िंन बनाए िाते थे आि बािार से ही मूँगवा लिए िाते है। आि कि सभी पवय िैसे ऊपरी तौर पर मनारे् िाते है िोगों में कोई उत्साह देखने नही ंलमिता।

    (ग) बीता समर् कफर िौटता नहीं

    • समर् का महत्व • समर् ननर्ोिन

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    • समर् गूँवाने की हाननर्ाूँ समर् ननरंतर प्रवादहत ििधारा के समान है िो आगे ही बढ़ता है बबना ककसी की प्रतीिा र्ा पवश्राम के। िो व्र्जतत समर् के साथ आगे बढ़ सकता है, वही िीवन में सफि होता है। समर् का सदपुर्ोग ही व्र्जतत को पवकास के मागय पर अग्रसर करता है। समर् के महत्त्व को समझने वािा िीन ेकी किा सीख िेता है। ककसी न ेसमर् की तुिना धन से की है। वास्तव में समर्, धन से भी कही अधधक मकूर्वान है। धन तो आता-िाता रहता है, ककंत ुगर्ा हुआ समर् कभी िौटकर नहीं आता। िो समर् की कद्र करता है, समर् उसकी कद्र करता है। इनतहास में ऐसे अनेक उदाहरण है कक सही समर् पर सही ननणयर् िेने वाि ेव्र्जतत ही िीवन में सफि हुए हैं। इसलिए मनषु्र् अपने समर् का पवभािन इस प्रकार करे कक उसके पास अध्र्र्न, व्र्ार्ाम, मनन, धचतंन आदद सभी कार्ों के लिए समर् हो। समर् पवभािन कर उसका सदपुर्ोग करना सीख िें तो भपवष्र् सपुवधािनक और सखुमर् हो िाता है।

    13. आपके िेत्र के पाकय को कूड़देान बना ददर्ा गर्ा था। अब पलुिस की पहि और

    मदद से पनु: बच्चों के लिए खेि का मदैान बन गर्ा है। अतः आप पलुिस आर्तुत को धन्र्वाद पत्र लिखखए।

    अथवा पटाखों से होने वािे प्रदषुण के प्रनत ध्र्ान आकपषयत करत ेहुए अपने लमत्र को पत्र लिखखए। उत्तर :

    सेवा में, पलुिस आर्तुत अधधकारी, अपना बाग, पजश्चम पवहार, नई ददकिी – ११००२७

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    पवषर् – पलुिस दवारा की गई मदद के लिए धन्र्वाद मान्र्वर, मैं अपने पत्र के माध्र्म से आपका धन्र्वाद करता हूूँ। मैं आपके सेवा िेत्र अपना बाग में रहता हूूँ। कुछ समर् पहिे हमारे र्हाूँ के कमिा पवहार पाकय में िोगों ने कूड़ा फे़कना शरुू कर ददर्ा था। जिससे वातावरण प्रदपूषत हो रहा था और बच्चों को खेिन ेके लिए पर्ायप्त स्थान नही ंलमि रहा था। इस कारण हमें बहुत असपुवधा हो रही थी। आपने इस समस्र्ा को दरू करने में हमारी सहार्ता की और आवश्र्क कार्यवाही की। अब िोग पररसर स्वच्छ रखत ेहै और बच्चों को भी खेिने के लिए पर्ायप्त स्थान लमिता है। आपके इस सराहनीर् प्रर्ास के लिए हमारी ओर से आपको धन्र्वाद। भवदीर्, अमर व्र्ास १०२, अपना बाग पजश्चम पवहार, नई ददकिी – ११००२७

    अथवा पता : ......... ददनाूँक : ...... पप्रर् लमत्र, ददवािी समीप आने वािी है। पटाखों का शोर भी सनुाई देने िगा है। पटाखे तो िैसे उत्सव के अलभन्न अंग बन गए हैं, िेककन इससे पर्ायवरण पर भी प्रनतकूि प्रभाव पड़ता है। पटाखों से ध्वनन और वार् ुप्रदषुण होता है। थोड़ी देर की खुशी पर्ायवरण को भारी नकुसान पहुूँचाती है। इस बार मैंने प्रर्ास ककर्ा है कक हम हररत ददवािी मनाएूँगे। मैंने पटाखे नही ंििाने का ननश्चर् ककर्ा है। दीपाविी दीपों का पवय है, पटाखों का नहीं। हम दीपक ििाकर, घर पर लमठाइर्ाूँ बनाकर, रंगारंग कार्यक्रम का आर्ोिन कर दीपाविी का आनंद उठा सकें गे।

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    आशा करता हूूँ कक तमु भी ऐसा करोगे और हररत ददवािी मनाओगे। तुम्हारा लमत्र राहुि शमाय

    14. पर्ायवरण के प्रनत िागरूकता बढ़ाने के लिए िगभग 50 शब्दों में एक पवज्ञापन

    लिखखए। अथवा

    पवदर्ािर् के वापषयकोत्सव के अवसर पर पवदर्ाधथयर्ों दवारा ननलमयत-हस्तकिा की वस्तओंु की प्रदशयनी के प्रचार हेत ुिगभग 50 शब्दों में एक पवज्ञापन लिखखए।

    पर्ायवरण िागरूकता

    पर्ायवरण की शदु्धता हमारे लिए उतनी ही िरूरी है, जितना कक भोिन स्वस्थ पर्ायवरण ही हमारी और आनेवािी पीढ़ी की िीवन रेखा है तो –

    िन िन में चतेना िाओ। पर्ायवरण का अिख िगाओ।

    हस्तकिा की वस्तुओं की प्रदशयनी आइए हमारे हस्तकिा कार्यक्रम में चार चाूँद िगाए वाजिब दाम में पाइए घर की सिावट का सामान –

    चादर, फूिदान, पदे, मोमबजत्तर्ाूँ आदद ...

    रतन पजब्िक स्कूि 11 माचय

    समर् : शाम 6 से 8

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    Board Paper – 2017

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    संकलऱत परीक्षा – II SUMMATIVE ASSESSMENT – II

    हिन्दी HINDI

    (पाठ्यक्रम अ) (Course - A)

    समय : 3 घंटे परू्ाांक : 90

    सामान्य निदेश : 1. इस प्रश्न-ऩत्र के चाय खॊड हैं - क, ख, ग, औय घ। 2. चायों खॊडों के प्रश्नों के उत्तय देना अननवामय है। 3. मथासॊबव प्रत्मेक खॊड के उत्तय क्रभश: दीजजए।

    खॊड – क प्र.1. ननम्नलरखखत गदमाॊश को ध्मानऩवूयक ऩढ़कय ऩछेू गए प्रश्नों के लरए सही

    उत्तय वारे ववकल्ऩ चनुकय लरखखए : 1 x 5 = 5 रोकतॊत्र के भरुबतु तत्व को सभझा नहीॊ गमा हे औय इसलरए रोग सभझते हैं कक सफ कुछ सयकाय कय देगी, हभायी कोई जजम्भेदायी नहीॊ हैं। रोगो भें अऩनी ऩहर से जजम्भेदायी उठाने औय ननबाने का सॊस्काय ववकलसत नहीॊ हो ऩामा हैं। परस्वरूऩ देश कक ववशार भानव-शजतत अबी खयायटें रेती ऩड़ी है औय देश कक ऩूॉजी उऩमोगी फनाने के फदरे आज फोझरूऩ फन फठैी हैं। रेककन उसे नीॊद से झकझोय कय जाग्रत कयना हैं। ककसी बी देश को भहान फनाते हैं उसभे यहने वारे रोग। रेककन अबी हभाये देश के नागरयक अऩनी जिम्भेदायी से फचते यहे हैं। चाहे सड़क ऩय चरने कक फात अथवा साप-सपाई कक फात हो, जहाॉ-तहाॉ हभ रोगों को गॊदगी पैराते औय फेतयतीफ ढॊग से वहाॊ देख सकते हैं। कपय चाहते हैं कक सफ कुछ सयकाय ठीक कय दे। सयकायने फहुत साये कामय ककए हैं, इसे अस्वीकाय नहीॊ ककमा जा सकता हैं। वऻैाननक प्रमोगशाराएॉ खोरी हैं, ववशार फाॉध फनवाए हैं, फ़ौराद के कायखाने खोरे हैं आदद-आदद फहुत साये काभ सयकाय के दवाया हुए हैं। ऩय अबी कयोडों रोगों को कामय भें पे्ररयत नहीॊ ककमा जा सका है।

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    Board Paper – 2017

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    वास्तव भें होना तो मह चादहए कक रोग अऩनी सझू-फझू के साथ अऩनी आॊतरयक शजतत के फर ऩय खड़ ेहों औय अऩने ऩास जो कुछ साधन-साभग्री हो उसे रेकय कुछ कयना शरुू कय दें। औय कपय सयकाय उसभें आवश्मक भदद कये। उदाहयण के लरए, गाॉववारे फड़ी-फड़ी ऩॊचवषीम मोजनाए नहीॊ सभझ सकें गे, ऩय वे रोग मह फात जरूय सभझ सकें गे कक अऩने गाॉव भें कुआॉ चादहए, कहाॉ लसॊचाई की िरुयत हैं, कहाॉ ऩरु कक आवश्मकता हैं। फाहय के रोग इन सफ फातों से अनलबऻ होते हैं। (i) रोकतॊत्र का भरूबतू तत्व है

    (क) कतयव्मऩारन (ख) रोगों का याज्म (ग) चनुाव (घ) जनभत

    (ii) ककसी देश की भहानता ननबयय कयती है

    (क) वहाॉ की सयकाय ऩय (ख) वहाॉ के ननवालसमों ऩय (ग) वहाॉ के इनतहास ऩय (घ) वहाॉ की ऩूॉजी ऩय

    (iii) सयकाय के काभों के फाये भें क़ौन-सा कथन सही नहीॊ है?

    (क) वऻैाननक प्रमोगशाराएॉ फनवाई हैं (ख) ववशार फाॉध फनवाए हैं (ग) वाहन-चारक को सधुाया है (घ) फ़ौराद के कायखाने खोरे हैं

    (iv) सयकायी व्मवस्था भें ककस कभी की ओय रेखक ने सॊकेत ककमा है?

    (क) गाॉव से जुड़ी सभस्माओॊ के ननदान भें ग्राभीणों की बलूभका को नकायना

    (ख) मोजनाएॉ ठीक से न फनाना

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    Board Paper – 2017

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    (ग) आधनुनक जानकायी का अबाव (घ) जभीन से जुड़ी सभस्माओॊ की ओय ध्मान न देना

    (v) झकझोय कय जागतृ कयना का बाव गदमाॊश के अनसुाय होगा

    (क) नीॊद से जगाना (ख) सोने न देना (ग) जजम्भेदायी ननबाना (घ) जिम्भेदारयमों के प्रनत सचते कयना

    प्र. 2. प्रस्तुत गदमाॊश को ध्मानऩवूयक ऩढ़कय उस ऩय आधारयत प्रश्नों के लरए सही

    उत्तय वारे ववकल्ऩ चनुकय लरखखए : 1 x 5 = 5 हरयमाणा के ऩयुातत्त्व-ववबाग दवाया ककए गए अफ तक के शोध औय खुदाई के अनसुाय रगबग ५५०० हेतटेअय भें पैरी मह याजधानी ईसा से रगबग ३३०० वषय ऩवूय भ़ौजूद थी। इन प्रभाणों के आधाय ऩय मह तो तम हो ही गमा हैं कक याखीगढ़ी कक स्थाऩना उससे बी सकैड़ो वषय ऩवूय हो चकुी थी। अफ तक मही भाना जाता यहा हैं कक इस सभम ऩाककस्तान भें जस्थत हड़प्ऩा औय भअुनजोदडो ही लसॊधकुारीन सभ्मता के भखु्मा नगय थे। याखीगढ़ी गाॉव भें खुदाई औय शोध का काभ रुक-रुक कय चर यहा है। दहसाय का मह गाॉव ददल्री से भात्र एक स़ौ ऩचास ककरोभीटय कक दयूी ऩय हैं। ऩहरी फाय महाॉ १९६३ भें खुदाई हुई थी औय तफ इसे लसॊध-ुसयस्वती सभ्मता का सफसे फड़ा नगय भाना गमा। उस सभम के शोधार्थयमों ने सप्रभाण घोषणाएॉ कक थी कक महाॉ दफे नगय, कबी भअुनजोदोड़ों औय हड़प्ऩा से बी फड़ा यहा होगा। अफ सबी शोध ववशषेऻ इस फात ऩय सहभत हैं कक याखीगढ़ी, बायत-ऩाककस्तान औय अपगाननस्तान का आकय औय आफादी कक दृजटट से फड़ा शहय था। प्राप्त वववयणों के रानसुाय सभरु्चत रूऩ से ननमोजजत इस शहय कक सबी सड़कें १.९२ भीटय च़ौड़ी थी। मह च़ौड़ाई कारीफॊगा की सड़कों से बी ज्मादा हैं। एक ऐसा फतयन बी लभर गमा हैं, जो सोने औय चाॉदी कक ऩयतों से ढका हैं। इसी स्थर ऩय एक 'पाउॊ ड्री' के बी र्चह्न लभरे हैं, जहाॉ सॊबवतः सोना ढारा जाता होगा। इसके अरावा टैयाकोटा से फनी असॊख्म प्रनतभाएॊ

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    ताॉफे के फतयन औय कुछ प्रनतभाएॉ औय एक 'फनेस' के अवशषे बी लभरे हैं। भई २०१२ भें ' ग्रोफर हैरयटेज पॊ ड' ने इसे एलशमा के दस ऐसे 'ववयासत-स्थरों' की सचूी भें शालभर ककमा है, जजनके नटट हो जाने का खतया है। याखीगढ़ी का ऩयुाताजत्वक भहत्तव ववलशटट है। इस सभम मह ऺेत्र ऩयेू ववश्व के ऩयुातत्व ववशषेऻो कक ददरचस्ऩी औय जजऻासा का कें द्र फना हुआ है। महाॉ फहुत से काभ फकामा है; जो अवशषे लभरे है, उनका सभरु्चत अध्मन अबी शषे है। उत्खनन का काभ अफ बी अधयूा है।

    (i) अफ लसॊध-ुसयस्वती सभ्मता का सफसे फड़ा नगय ककसे भानने की

    सॊबावनाएॉ है (क) भअुनजोदड़ो (ख) याखीगढ़ी (ग) हड़प्ऩा (घ) कारीफॊगा

    (ii) च़ौड़ी सड़कों से स्ऩटट होता है कक

    (क) मातामात के साधन थे (ख) अर्धक आफादी थी (ग) शहय ननमोजजत था (घ) फड़ा शहय था

    (iii) इसे एलशमा के ववयासत स्थरों भें स्थान लभरा तमोंकक

    (क) नटट हो जाने का खतया है (ख) सफसे ववकलसत सभ्मता है (ग) इनतहास भें इसका नाभ सवोऩरय है (घ) महाॉ ववकास की तीन ऩयतें लभरी हैं

    (iv) ऩयुातत्व-ववशषेऻ याखीगढ़ी भें ववशषे रूर्च रे यहे हैं तमोंकक

    (क) काफी प्राचीन औय फड़ी सभ्मता हो सकती है

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    (ख) इसका सभरु्चत अध्ममन शषे है (ग) उत्खनन का कामय अबी अधयूा है (घ) इसके फाये भें अबी-अबी ऩता रगा है

    (v) उऩमतुत शीषयक होगा

    (क) याखीगढ़ी : एक सभ्मता की सॊबावना (ख) लसॊध-ुघाटी सभ्मता (ग) ववरपु्त सयस्वती की तराश (घ) एक ववस्ततृ शहय याखीगढ़ी

    प्र. 3. ननम्नलरखखत काव्माॊश को ध्मानऩवूयक ऩढ़कय ऩछेू गए प्रश्नों के लरए सही

    उत्तय वारे ववकल्ऩ चनुकय लरखखए : 1 x 5 = 5 एक ददन तने ने बी कहा था, जड़?

    जड़ तो जड़ ही है; जीवन से सदा डयी यही है

    औय मही है उसका साया इनतहास कक जभीन भें भुॉह गड़ा ऩड़ी यही है रेककन भैं जभीन से ऊऩय उठा

    फाहय ननकरा, फढ़ा हूॉ, भजफतू फना हूॉ, इसी से तो तना हूॉ

    एक ददन डारों ने बी कहा था, तना? ककस फात ऩय है तना?

    जहाॉ बफठार ददमा था वहीॊ ऩय है फना प्रगनतशीर जगती भें नतर बय नहीॊ डोरा है

    खामा है, भोटामा है, सहरामा चोरा है; रेककन हभ तने से पूटीॊ,

    ददशा-ददशा भें गईं ऊऩय उठीॊ, नीच ेआईं

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    हय हवा के लरए दोर फनीॊ, रहयाईं, इसी से तो डार कहराईं।

    एक ददन पूरों ने बी कहा था, ऩजत्तमाॉ?

    ऩजत्तमों ने तमा ककमा? सॊख्मा के फर ऩय फस डारों को छाऩ लरमा,

    डारों के फर ऩय ही चर—चऩर यही हैं, हवाओॊ के फर ऩय ही भचर यही हैं;

    रेककन हभ अऩने से खुरे, खखरे, पूरे हैं— यॊग लरए, यस लरए, ऩयाग लरए—

    हभायी मश—गॊध दयू—दयू—दयू पैरी है, भ्रभयों ने आकय हभाये गुन गाए हैं,

    हभ ऩय फ़ौयाए हैं।

    सफ की सनु ऩाई है, जड़ भसुकयाई है!

    (i) तने का जड़ को जड़ कहने से तमा अलबप्राम है

    (क) भजफतू है (ख) सभझदाय है (ग) भखूय है (घ) उदास है

    (ii) डालरमों ने तने के अहॊकाय को तमा कहकय चयू-चयू कय ददमा?

    (क) जड़ नीच ेहै तो मह ऊऩय है (ख) मों ही तना यहता है (ग) उसका भोटाऩा हास्मास्ऩद है (घ) प्रगनत के ऩथ ऩय एक कदभ बी नहीॊ फढ़ा

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    (iii) ऩजत्तमों के फाये भें तमा नहीॊ कहा गमा है? (क) सॊख्मा के फर से फरवान हैं (ख) हवाओॊ के फर ऩय डोरती हैं (ग) डारों के कायण चॊचर हैं (घ) सफसे फरशारी हैं

    (iv) पूरों ने अऩने लरए तमा नहीॊ कहा?

    (क) हभाये गुणों का प्रचाय-प्रसाय होता है (ख) दयू-दयू तक हभायी प्रशॊसा होती है (ग) हभ हवाओॊ के फर ऩय झभूते हैं (घ) हभने अऩना रूऩ-स्वरूऩ ख़ुद ही सॉवाया है

    (v) जड़ तमों भसुकयाई?

    (क) सफने अऩने अहॊकाय भें उसे बरुा ददमा (ख) पूरों ने ऩजत्तमों को बरुा ददमा (ग) ऩजत्तमों ने डालरमों को बरुा ददमा (घ) डालरमों ने तने को बरुा ददमा

    प्र. 4. नीच ेलरखे ऩदमाॊश को ध्मानऩवूयक ऩढ़कय ऩछेू गए प्रश्नों के सही उत्तय

    वार ेववकल्ऩ चनुकय लरखखए : 1 x 5 = 5 ओ देशवालसमों, फठै न जाओ ऩत्थाय से, ओ देशवालसमों, योओ भत मों ननझयय से,

    दयख्वााास्त कयें, आओ, कुछ अऩने ईश्व य से वह सनुता है ग़भिादों औय यॊजीदों की।

    जफ साय सयकता-सा रगता जग-जीवन से,

    अलबवषततय कये�