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Works of Sankaracharya with Hindi Translation

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कनोपनिषद‌

सावाद राङकरमाषयसहित

[ पद-भाषय एव वादय-भाषय ]

अकाशयक-

गीतापरस, गोरखपर

इद अल व कब क हब इक कइ कद

मदक तथा परकाशक

धघनदयामदास जञालल

ान

गीतागरस, गोरखपर

पन

पर ह । परि ह ध

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हर

स०'१९९२

-अथम ससकरण मलय ॥) आठ आना ३२७००

निवदन - गा आर

कनोपनिषद‌ सामवदीय तखवकार आहणक अनतगत ह

इसम आरमभस ठकर अनतपरयनत सवर परसक दी खरप ओर

परभावका वरणन किया गया ह | पहल दो खणडोम सरवाधिषठान परतरहमक

पारमारथिक खरपका छकषणास निरदश करत इए परमारथजञानकी

अनिरवचनीयता तथा जञयक साथ उसका अभद परदरशित किया ह।

इसक पशचात‌ तीसर और चौथ खणडम यकषोपाखयानदवारा भगवानका

सरवपररकतव और सरवकरदतव दिखछाया गया ह | इसकी वरणनशली बडी

ही उदातत और गमभीर ह। मनतरोक पाठमातरस ही हदय एक अपरव

मसतीका अनभव करन छगता ह। भगवती शरतिकी महिमा अथवा वरणन-

शलीक समबनधम कछ भी कहना सरयको दीपक दिखाना ह ।

इस उपनिषदका विशष महततव तो इसीस परकट होता ह कि

भगवान‌ भाषयकारन इसपर दो मापय रच ह । एक ही गरनथपर एक ही

सिदधानतकी सथापना करत हए एक ही गरनथकारदवारा दो टीका लिखी

गयी हो--ऐसा परायः दखा नही जाता । यहा यह शङका होती ह कि ऐसा

करनकी उनह कयो ,आवशयकता हई ए वाकय-मापयपर टीका आरमभ करत

हए शरीआननदगिरि खामी कहत ह---कनोपितागितयादिका सामवदशासा-

मदनादयणोपनिषद पदो जयाखयायापि न ततोपष भगवान‌ भाषयकारः

शाररिकनयविरानिरणातारथतवादिति. नयायपरधानशरलरथसमाहकववयिया-

चिसयास:''***/**** “अरथात‌ 'कनपित' इतयादि सामवदीय शाखानतरगत

बराहमणोपनिपदकी पदशः वयाखया करक भी भगवान‌ भाषयकार सनतषट नही

हए, कयोकि उसम उसक अरथका शारीरकशाजानकछ यकतियोस निरणय नही किया गया था, अतः अब शरतयरथका निरपण करनवाल नयायपरधान

` वाकयोस वयाखया करनकी इचछास आरमभ करत ह |

(२)

इस उदधरणस सिदध होता ह कि भगवान‌ भाषयकारन पहल पद- भाषयकी सवना की धी । उसम उपनिपदरथकी पदशः वयाखया तो हो गयी थी; परनत यकतिपरवान वाकयोस उसक तातपरयका विवचन नही हआ था । इसलिय उनह वाकय-मापय छखिनकी आवशयकता हई। पद-भाषयकी रचना अनय भाषयोक हौ समान ह । वाजय-मापयम जहा-

तहा ओर विरषतया ततीय खणडक आरमभम यकति-परयकतियोदरारा परमतका खणडन और खमतका सथापन किया गया ह | ऐस सथानोम भाषयकारकी यह शली रही ह कि पहल शङका ओर उसक उततरको एक सतरसदशा वाकयस कह दत ह ओर फिर उसका विसतार करत ह; जस परसतत पसतकक पषठ ३ पर "करमविषय चानकतिः तदविरोधितवात‌" ऐसा कहकर फिर असय विजिनासितनयसयातमतचवसय करमविपयऽवचनम‌ः

इतयादि गरनथस इसीकी वयाखया की गयी ह |

इस परकार हम दखत ह कि पद-माषयम परधामतया मछकी पदशः वयाखया की गयी ह ओर वाकय-माषयम उसपर विशष धयान न दकर विपयका यकतियकत विवचन करनकी चषटा की गयी ह । अपरजी ओर बगलाम जो उपनिषद‌-भाषयक अनवाद परकारित इए ह उनम कवल

पद-भाषयकरा ही अनवाद किया गया ह, पणडितवर‌ शरीपीतामबरजीन जो हिनदी-अनवाद किया था उसम भी कवर पद-माषय ही लिया गया था ।

मराटी-मापानतरकार परखोकवासी पजयपाद प० शरीविषणवापट शान

कवल वाकय-भाषयकरा अनवाद किया ह। हम तो दोनो ही उपयोगी

परतीत हए; इसलिय दोनोहीका अनवाद परकाशित किया जा रहा ह । अनवादोकी छपाईम जो करम रकला गया ह उसस उन दोरनोको तखनातमक दषटिस पढनम बहत छभीता रहगा आश! ह, हमारा यह

अनबिकत परयास पाठकोको कछ रचिकर हो सकगा |

विनीत,

अनवादक

आदरिः

विषय-सची ><

विषय

१, शानतिपार

परथम खणड

२. समबनध-साषय ३. पररकविषयक गरदन

४, आतमाका सरवनियनततव

५. आतमाका अजञयतव और अनिवचनीयतव

६. बरहम वागादिस अतीत और अनपासय ह

दवितीय खणड

७, वरहमजञानकी अनिव चनीयता

८, अनभतिका उललख

९, जञाता अकत ह और अजञ जञानी ह १०. विानावमासोम बदयकी अनभति

११. आतमजञान ही सार ह

ततीय खणड

यकषोपाखयान

९२. दवताओका गरव

१३. यकषका परादरमाव १४, अगनिकी परीकषा

१५, वायकी परीकषा

१६. इनदरकी नियकति

१७. उमाका परादभौव

पषठ

9 १

२०

9 क ० (| (4

४४५ ४५

९५४

०७ ६ ३

०9५ ७ द

८७

ध कि ६५४३६ <=: ३१२

८०.६४ *** ११५

(२)

चतरथ खणड १८. उमाका उपदश क

१९, बरहमविधयक अधिदव आदश

२०. बरहमविषयक अधयातम आदश (27

२१. वन-सशक बरहमकी उपासनाका फल ६

२२. उपसहार ^

२३. विदयापरासिक साधन

२४. अनथावगाहनका फल ह

२५. शानतिपाठ ^

ˆ ११७

* १२०

१२३

१२६

उमा और इनदर

तसतदरहमण नमः

कनोपनिषद‌ मनतरारथ, शराङकरमावय और मापयारथतहित

"ग

यनरिताः भवरतनत भराणिनः सवष करमस । त-बनद परमातमान खातमान सवददिनाम‌ ॥ -

यसय पादादयसमभत विदव भाति चराचरम‌ ।

पणौननद शर चनद त परणाननदवितरदम‌ ॥ ह 4

शानतिपाठ

ॐ आपयायनत ममाङगानि वादपराणशकष) शरोतरमथो बल- मिनदरियाणि च सवाणि सरव बरहलौपनिषद माह बरहम निराकरया मा मा बरहम निराकरोदनिराकरणमसतवनिराकरण मऽसत तदातमनि निरत य उपनिपतस धरमासत मयि सनत त मयि सनत।

ॐ शानतिः ! शानतिः ॥ सानतः !!! मर अनन पषट हो तथा मर वाक‌ पराण, चकष, शरोतर, बर और समपरण

इनदरियो पषट हो । यह सतर उपनिपददय बरहम ह । म बरहमका निराकरण न कर | बरहम मरा निराकरण न कर [ अरथात‌ म बरहमस विसख न होऊ और बरहम मरा परितयाग न कर ] इस परकार हमारा परसपर अनिराकरण हो, अनिराकरण हो | उपनिपदोम जो धरम ह व आतमा

( आसजञान ) म खग हए मझम हो, व मझम दो | नविध तापकी शानति हो । ` । 7

--नण द १

७२% - = चकत - ~ प < ~ पा २ + प : > व 9: व. कप, ~ प "का 20... ८९५...

पथम कणड

समबनध-भाषय

पद-भाषय

(कनषितम‌' इतयादयोपनिपत‌ | अतर किनपितम! इतयादि पर- वि रहमविपयक उपनिपत‌ कहनी ह

न परनदयारचपया वकतवया इसलिय इस नवम अभयायका #

इति नवमसथाधयायसथ | आरमभ किया जाता ह । इसस [ह _ | प समपरण ककि परतिपादनकी

आरमभः । गरागतसातकरमाणि समयकरपस समाति की गयी ह, तथा समसत करमोक आशरयभत पराणकी उपासना एव करमकी अदध भत

कमौभरयभतख च पराणखोपासना- सामोपासनाका वरणन किया गया नयकतानि, करमाङगसामविषयाणि | ह । उसक पशचात‌ जो गायतरसाम-

वाकय-भाषय

समापत करमातमभतशराणविपय | इसस पव-अनथम करमक आशरयभत हर पराणविजञान तथा अनक परकारक करमका

विजञान कम चानक- निरपण समापत हआ, जिनक विकवप- परकारम/ ययोविकवप-| और समचयक अनषठानस दकषिण

समशययालषठानाइकषिणोततराभया और उततर मारगोदवारा करमशः आवतति! ( आवागमन ) और अनादइतति

खतिभयामादतयनावतती भवतः । (करमकति) हआ करती ह इसक आग

अत ऊरधव फलनिरपकषशञानकरम- | दवता-शान और कमोक समचयका निषकाम भावस अनषठान करनस

जिसन अपना चितत शदध कर लिया ह; सयोचछिननातमजञानभतिवनधकसय | जिसका आतमकचानका परतिबनधकरप

अशषतः परिसमापितानि,समसत-

उपकरमणिका

समचचयानषठानातकतातमससकार-

ऋ यह उपनिषद‌ सामवदीय तलवकार शाखाका नवम अधयाय ह ।

१. दोनमस कवल एक । २. एक साथ दोनो ।

खणड १] शाइरमाषयाथ द बयट स: बिपिन 2

पद‌-ननचय

च ! अननतर च गायतरसाम‌- | विपयक विचार और शिषयपरमपरा-

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विषय दशन वशानतयकत कायम ।

सरयमतयथोत कम च जञान

च समपगनषटित निषकाम

ममकषो! सतवशदधयरथ सचति ।

रप वराक वरणनम समापत होनवाल नयस कहा गया ह वह कारयरप वसतका ही वरणन ह |

ऊपर चतढाया हआ यह समपरण करम और जञान समयक‌ परकारस समपादन किय जानपर निषकाम ममकषकी तो चितत- जदधिकि कारण होत ह। तथा

चाकय-साषय

दववविषयदीपदरशिनो निरशाताशष- | दोप नषट हो गया ह, जो दवतविषयस

चाहयविषयतवातछखारवीजमकञान-

मचिचछितखतः भरतयगातमविषय-

जिनञासोः कनषितमितयातम-

सखरपतसतवविकञानायायमधयाय

आरभयत } तन च झतयपदम

अकञानसचछनतवय तततननो हि

सखारो यततः ! अनधिगततवाद‌

आतमनो यकता तदधिगमाय

तदविषया जिजञासा करमविषय चाचकतिः; तदधि

शानकरमविरोधः रोधितवात, ) असय विजिजञासितवयसय

दोष दखन लगा ह तथा समपरण बाहय बिधयोका तततव जान लनक कारण जो ससारक बीजसवरप अजञानका उचछद करना चाहता ह, उस आतमततवक _जिशासको आतमखरपक तततवका छान करानक लिय "कनपितम‌ः आदि

मनतरस यह ( नवो ) अधयाय आरमभ किया जाता ह} उस आतमतततक शानस दी मतठक कारणरप अजञानका उचछद करना चाहिय, कयोकि यह ससार अजञानमलक ही ह। आतमतततव अशात ह, इसलिय उसका जञान भास करनक लिय आतमविपयक जिजञासा उचित ही ह ।

कमकाणडम आतमतततयका निरपण नही किया गया कयोकि यह उसका विरोधी ह । इस विशषरपस जानन- योगय आतमतसवका करमकापडम

आतमतसवसय करमविषयषचचनम‌ ॥ विवचन नही किया जाता । यदि कहो

४ कनोपनिषद‌ [ खणड. =. का र ~ । 3 र ९.

पद-भाषय

सकाभसय त जञानरहितसथ कव-

लानि शरौतानि सारतानि च करमाणि दकषिणमारगपरतिपततय पनरावततय च भवनति । खाभा-

विषया लशादधीयया परबसया

पशचादिथावरानता अधोगतिः

सात‌ । “अथतयोः पथोन कतरण च न तानीमानि कषदराणयसकदा-

वतीनि भतानि भवनति जायसव

जञानरहित सकाम साधकक कवल शरौत और समारत करम दकषिण मागकी परापति और पनरावरतनक हत होत ह । इनक सिवा अराखीय खचछनद वततिस तो पश-

स लकर सथावरपरयनत अधोगति ही होती ह.। “य [ खचछनद परवतति- बाल जीव उततरायण और दकषिणायन ] इन दोनोमस किसी मारगस नही जात; व निरनतर आवरतन करनवाल कषदर जीव होत

भरियसवतयततततीय खानम‌” | ह; उनका “जनम खो और मरो (छा०उ०५।१०।८ ) इतिशरतः; | यह तीसरा सथान ( मारी) ह”

चाकय-भाषय

कसमादिति चदातमनो हि. यथा-

वदविकषान करमणा विरधयत ।

निरतिरायबरहमसखरपो हयातमा

विजिनञापयिषितः, “तदव बहम

तव विदधि नद यदिदम‌

(क० उ० १।४) इतयादि शरतः ।

न हि खाराजयऽभिषिकतो बरहमसव

गमितः कशचन नमितभिचछतयतो

बहमासमीति समबदधो न कम

कारयित राकयत । न छातमानम‌ अवापतोरथ बरहम मनयमानः परदतति

परयोजनवरती पदयति न च

कि क‍यो ? तो उसका कारण यह हकि आतमाका यथाथ जञान करमका विरोधी

/ कयोकि जिसका जञान कराना अभीषट

ह वह आतमा तो सरवोतकषट बरहमखरप ही ह, जसा कि “तदव बरहम रव विदधि नद‌ यदिदमपासत”” इतयादि शरतिका कथन ह! जो परष खाराजयपर अभिपिकत होकर बरहममाबको परापत हो गया ह वह किसीक भी सामन झकन- की इचछा नही करता । अतः जिसन

यह जान लिया ह कि "म तरहम ह! उसस करम नही कराया जा सकता | अपन आसमाको आपतकाम बरहम मानन-

वारा परष किसी भी परदरततिको

परयोजनवती नही दखता और कोई भी

खणड १] शाइडरभाषयाथ ५५

[~ या = व = ~ अ ~

पद‌-भाषय

“परजञा ह तिखरोउतयायमीयः”

(ऐ० आ०२।१।१।४) इदि च मनतरवरणात‌ ।

विशदधसचवसय त निषकामख शानाधिकारि- एव‌ बाहयादनितयात‌ निरपणम‌ साधयसाधनसमबनधाद

इह कतातपवकतादवा ससकार- विशषोदधवादिरकतख परतयगातम-

विषया जिजञासा परयरतत । तदतदरसत अशषतरतिवचनलकषणया

इस शरतिसि और “तीन परसिदध परजाओन धरमतयाग किया” इस मनतरवरण भी [ यदी बात सिदध होती ह. ] ।

जो इस जनम और परव जनम

किय इए करमोक ससकारविशपस उदधत वादय एव अनितय साधय- साधनक समबनधस विरकत हो गया ह उस विशदधचितत निषकाम परप- को ही परतयगातमविपयक जिजञासा

हो सकती ह । यही बात फकनपितम! इतयादि गरशनोततररपा

चाकय-भाषय

निषपरयोजना परवततिरतो विरधयत एव करमणा जञानम‌ ॥ अतः करम-

विपयऽलकतिविजञानविरोपविषया

पव जिकञासा |

करमानारमभ इति चनन;

निषकामसय ससकारारथतवात‌ ।

यदि हयामविजञाननारमाचिदया-

परवतति बिना परयोजनक. हो नही सकती; अतः करमस जञानका विरोध ह ही । इसीलिय करमकाणडम आतम- जञानका उललख नही ह; अरथात‌ जिजासा किसी विजञानविशषक समबनधम ही होती ह ।

यदि कहो कि तब तो करमका आरमभ ही न किया जाय तो ऐसा. कहना ठोक नही; कयोकि निषकाम कम परषका ससकार करनवाछा ह | पन ०-यदि आतमक अजशञनका

विषयतवातपरितितयाजयिषित करम कारण होनस आतमशञानदवारा करमका

ततः “परकषालनादधि पडसय दराद- सपशन चरम” (म० चन० २] ४९)

परितयाग कराना ही अभीषट ह तो /कीचडको घोनकी अपकषा तो उस दरस न दना ही अचछा ह!

६ कनोपनिषद‌ [ खणड १ [0 „3 रक - „ पक ` , श: - ऋ" - ~ ~ ~ ~ ध ~ 0 = ~. < बरह ~ पथ"

पद-भाषय

रतया परदरयत कनषितम! | शरतिदवारा दिखछायी जाती ह। क कठोपनिषदम तो कहा ह--

“सखयमम परमातमान इनदरियोको ४५ “पराशचि खानि वयतणतसवयमभ- नहर करक हिसित कर दिया

ह; इसलिय इनदरिया बाहरकी ओर सतखातपराङ‌ पशयति नानत- | ही दखती ह, अनतरातमाको नही

दखती; किसी-किसी बदधिमानन राह ह ह यग तमन‌। कथिदधीरः परतयगातमा हो आरती जमा करत हर

नमकषदाइततचशलसतततवमिचछन‌! | अपनी इनदरियोको रोककर „ , | परतयगातमाका साकषातकार किया ह”

( क०उ० २।१।१ ) इतयादि । | इतयादि । तथा अथरववदीय (मणडक) उपनिपदम भी कहा द--“शरहमनिषठ परप करमदवारा परापत होनवाल

वाकय-भाषय ,

इतयनारशम एव करमणः शरयान‌ । | उकतिक अनसार कमको आरमभ न ४ डस करना ही उततम ह कयोकि वह अलप अलपफलः <

४ दल फलवाछा और अधिक परिशरमवाला

तसयहानादव च अयशयाह; | ह तथा आतयनतिक कलयाण ततव- इति चत‌ । विजञान ही होता ह)

इतयायया । काठक चोकतम‌

ति

सतयम‌; एतदविदयाविषय छिदधानती-ठीक ह, परनत यह

वितशदय. फरमालपफलतवादि- | “वियामडक करम “जो मोगोकी करमावशयकय,. दोषयदनधरप खा | कामना करता ह”” तथा “इस भकार

परापशानसय त ह जो कामना करनवाला ह” इतयादि

सकामसय “कामान | शरतियोक अनसार सकाम परषक लिय व य न ही अवपफलतवादि दोषोस यकत तथा

2। २२) “इति ज कामयमानः बनधनकारक ह; निषकाम परषक चगि

~ +> द नदी । उसक लिय तो कम. अपन इसयादिशरतिभयः; न निषकामसय । | निरववक (निषपकष करनवाल) और

तसय त ससकारारथानयव करमाणि | आशरयभत आणोक विजञानक सहित

खणड १ ] शाइरसाषयाथ ७.

पर-भाषय

निरवदमायाननासतयकतः कतन ।

. तदविजञानारथ स गरमवाभिगचछत‌

समितपाणिः भोतरिय नकषनिषठम‌”

(म०उ० १२} १२)

इतयायाथवण च ।

एव हि विरकतख परतयगातम- निताशानसय विषय विजञान शरोत

परदशनस‌ सामधथयशपपचत,

नानयथा । एतसमाच परतयगातम-

लोकोकी परीकषा कर वरागयको परापत

हो जाय, कयोकि कत (करम) क दवारा अकत ( नितयखरप मोकष ) परापत नही हो सकता। उसका विशष जञान परापत करनक लिय तो उस ( जिनञाघ ) को हाथम समिधा लकर शरोतरिय और बरहमनिषठ शरक ही पास जाना चाहिय” इतयादि ।

कवर इस परकारस ही विरकत

परपको परतयगातमविषयकर विजञानक

शरवण, मनन और साकषातकारकी

कषमता हो सकती ह, और किसी तरह नही । इस परतयगातमाक

' वाकय-भराषय

> भवनति तननिवरतकाशरयपराण- विजञानसदहितानि । “५दचयाजी भयानारमयाजी बा” इतयपकर- मयातमयाजी त करोति “इद मऽननाङग ससकियत इति" ससका- राथमव करमाणीति वाजञसनयक । “महायजञ यकत बचाहमीय करियत तनः (मनन० २१२८) “यजञो दान तपशचौव पावनानि मनीषिणाम‌” (गौता १८ । ५) इतयादि समतशच |

पराणादिविजञान च कव करम- समखित चा सकामसय पराणातम-

ससकारक ही कारण होत ह। “दवयाजी शरषठ ह या आतमयाजी" इस परकार आरमम करक वाजसनय शरतिम कहा ह कि आतमयाजी अपन ससकारक लिय ही यह समझकर करम करता ह कि इसस मर इस अगका ससकार

होगा ?? | ““यह शरीर महायजञ और यजञोदधारा बहमजञानकी गरापतिक योगय किया जाता ह|”! “यजञ, दान और तप- य विदयानोको पवितर करनवाल ही ह" इतयादि समतियोस भी यही बात सिदध होती ह

अकला या करमक साथ मिखा हआ होनपर भी पराणादि विजञान सकाम

„ € कनोपनिषद‌ [ खणड १ 20७ ६६६२2. 3. । = 3. "~ अणा = 5.

पद‌-भाभय

बरहमविजञानातससारबीजमजञान

कामकरमपरवनचिकारणमशषतो निवरतत, “ततर को मोहः कः शोक एकतवमनपशयतः" ( ई० उ० ७) इति मनतरवरणात‌; “तरति शोकमातमवित‌" ( छा० उ०७।१॥ ३ ) इति, “भिदयत

हदयगरनथिशछियनत सवस सयाः।

कषीयनत चाख करमाणि तसिनद

बरहमतवविजञानस ही कामना और करमकी परवततिका कारण तथा ससारका बीजभत अजञान परणतया निदकतत हो सकता ह; जसा कि “उस अबसथाम एकतव दखनवाल परपको क‍या मोह और कया शोक हो सकता ह” इतयादि मनतरवरण तथा “आतरजञानी शीकको पार कर जाता ह” “उस परावरको दख लनपर उसकी हदय-गरनथि टठ जाती

ह, सार सनदह नषट हो जात ह परावर” (० 3० २।२।८ ) | और समसत करम कषीण हो जात ह” इतयादिशरतिमयशव । इतयादि शरतिशरोस सिदध होता ह ।

वाकय-भावय

शरापतयरथमव भवति । निषकामसय

सवातमजञानपरतिबनधनिरमषय

भवति;

उतपननातमविदयसय तवनारमभो

निररथकतवात‌ । “करमणा वधयत

जनतरवियया च विमचयत ।

तसमातकरम न करवनति यतयः

पारददिीनः? ( महा० शा० २४२ । ७) इति । “करिया

पथशच व परसतातखनयासशच तयोः

सनयास एवातयरचयत‌; इति

गरषक लिय तो पराणतव-परासिका ही

कारण होता ह, किनत निषकाम परष-

आवरशनिरमारजनचत‌ । | ॐ लिय वह दरपणक माजनक समान आतमजञानक गरतिवनधकोका निवतक

होता ह । हॉ, जिस आतमजञान परापत हो गया ह उसक लिय निषपरयोजन

होनक कारण कमक आरमभकी अपकषा नही ह । जसा कि “जीव करमस वधता ह और आतमजञानस मकत हो जाता ह, इसलिय पारदरशी यतिजन करम नही करत” #परवकालम करममाग और सनयास [ दो मारग ] थ उनम- सनयास ही उतकषट था?” “किन‍हीन तयागस

खणड ९] शाइरभाषयथ ९.

जब, म म जकन नि कि

पटद-भाषय

करमसदितादपि जञानादतत‌ सिधयतीति चत‌ १

न; वाजसनयक तखानय-

ससचयवाद- कारणसववचनात‌ ।

खणडनम‌ ((जाया म सयात‌""(ब°

उ० १।४। १७ ) इति परसततय

^पतरणाय लोको जययो नानयन

करमणा, करमणा पितररोको

शरिया दवलोकः” ( ब० उ०

१।५। १६ ) इतयातमनोऽनयख

परव ०-यह बात तो करमसहित जञानस भी सिदध हो सकती ह न?

सिदधानती---नही,._ कयोकि

वाजसनय ( बहदारणयक ) शरतिम उस ( कमसहित जञान ) को अनय फलका कारण बतलाया ह । “मझ

खो परापत होः" इस परकार आरमभ

करक वाजसनय शरतिम “यह छोक पतरदमारा परापत किया जा. सकता ह और किकती करमस नही; करमस पितखोक मिखता ह और विदया ( उपासना) स दवछोक” इस

लोकनरयख कारणतवमकत | परकार उस आतमास मिनन छोकतनय-

वाजसनयक । का ही कारण बतछाया ह | चकय-भषय

“तयागनक०”” ( क० उ० १।२)

“नानयः पनथा विदयत०? ( भव०

उ० ३ ८) इतयादिशचतिभयखच ।

न‍यायातय; उपायभतानि हि

करमाणि ससकारदवारण जञानसय ।

जञानन सवमततवपरापति। “अशन

ततव हि विनदतः (क ० उ० २।४)

शविदयया चिनदतऽखतम‌* (क०

उ० २। ४) इतयादिशरतिससति-

भयशच । न दि नयाः पारगो नाव

[ अमरतव परात करिया] तथा

५[ इसक सिवा] और कोई मारग नही ह?” इतयादि शरतियोस भी सिदध होता ह ।

यकतिस मी [ करम जञानक साकषात‌ साधन नही ह ]] करम तो चिततञचदधिक हारा जञानक साधन ह । अमरततवकी परापति तो जञानस ही होती ह जसा कि ४ जञानस | अमततव ही परापत कर लता ह” “पविदयासि अमतकोी पा छता

ह” इतयादि शरति-धमतियोस परमाणित होता ह। जो मनषय नदीक पार पहच गया ह वह अपन अभीषट

१० कनोपनिषद‌ [ खणड १- [2 चाई< 22% चाट.

पद‌-भाषय

ततरव च पारिघराजयविधान हतरकतः “कि परजया करिषयामो

यषा नोऽयमातमाय लोकः"

( ब० उ० ४।४। २२ ) इति।

ततराय हतवथः- परजाकरमततस- यकतविदयाभिमनषयपितदवलोक- तरयसाधनरनातमलोकपरतिपतति-

कारणः कि करिषयामः । न चा- साक रोकतरयमनितय साधन-

वरहो (उस बरहदारणयकोपनिपद‌- म) ही सनयास गरहण करनम यह हत बतछाया ह---हम गरजा- को लकर कया करग, जिन हम कि यह आतमछोक ही अभीषट

ह ® उस हतका अभिपराय इस परकार ह---मनषयछोक, पितछोक और दवरोक-दइन तीन छोकोक साधन अनातम- लोकोकी गरापतिक हतभत परजा, करम और करमसहित जञानस हम

-कया करना ह; कयोकि हमलगोको साधयमिषटम‌; यषामसाक सवाभा- | जिनह कि, खाभाविक) अजनमा,

चाकय-भाषय

न सशचति यथषटदशगमन परति

खातचञय सति । ४

न हि सखभावसिदध बसत

सिपाधयिषति सा- आतमनः =,

अविकायतवादि- धनः । खभावसिदध

आपिपयिषितः;

आतमतव सति नितयापततवात‌ ।

नापि विचिकारयिषितः; आतमसव

सति निसयसवादविकारिरवात‌

अविषयतवादसततवाचच । |

सथानपर जानिक लिय खतनतरता परात होनपर भी नौकाको न छोड--ऐसा कभी नही होता ।

जो वसत सवतः सिदध ह उस कोई भी परष साधनोस सिदध नही करना

ववाहता । आतमा भी खभाव-सिदध ह; और इसीलिय वह परापत करनकी इचछा

करन योगय नही ह, कयोकि आतमसवरप होनक कारण वह निल-परापत ही ह | इसी परकार उसका विकार भी इषट

नही ह कयाकि आतमा होनक साथ ही यह नितय, अविकारी; अविषय तथा

अमरत मी ह ।

खणड १ | दयाङकरभाषयाथ शर

बह = “4 चर 22० कप 222 बकरट ट ७: नाप, वाद 20७- नका:22%-

पद-साषय

विकोऽजोऽजरोऽशरतोऽभयो न | अजर, अमर, अमय और जो करमस घटता-बढता नही ह वह नितय-

वरधत करमणा नो कनीयाननितयशच लोक ही दषट ह, साधनदवारा परापत

लोक इषटः ! घ च नितयतवाना- होनवाला अनितय छोकतरय तो इषट ह. नही । ओर वह ( आतमछोक )

विदयानिववततिवयतिरकणानयसाधन-| तो नितय होनक कारण अविदया- निवततिक सितरा अनय किसी मी

निषपाधः । तसातरसगातम- | साधनस परापत होन योगय ह नही । ,

नहमिङानपकः सरवषणासनयास | जतः हमको आतमा जीर तरतः

एव करतवय इति । एकलजञानपरवक सतर परकारकी एपणाओका तयाग ही करना चाहिय।

वाकय-भषय

शरतशच “न वधत करमणा”

(° उ०४॥ ७) २३) इतयादि ।

समतशच “अविकारयोऽयमयचयतः

(गीता २। २५) इति । न च

५५ शनदधमपाप-

विदधम‌ (६० ० ८) इतयादि-

सञिकीरषितः

शरतिभयः; अननयतवाच; अनय-

नानयतससकियत । न चातम

नोऽनयभता करिया असति, न च 9 ०

सवनचातमना खमातमान सथि-

कीपत‌। न च बसतवनतराचान

नितयपरापतिया चसतवनतरसय

इसक सिवा शरतिस “आतमा करमस बढता नही ह” इतयादि और समतिस भी “यह आतमा अविकारय कहा जाता ह? इतयादि कहा गया ह। “शदध और पापरदहित” इतयादि शरतियोस [ परकद होता ह कि] आतमाका सघधकार करना भी अमीषट

नही ह | इसक सिवा अपनस अभिनन होनक कारण मी वह ससकारय नही ह कयोकि ससकार अनय वसतक दवारा अनयका ही हआ करता ह। आतमास भिनन कोई करिया भी नही ह; और सवय आतमाक योगस ही आतमा- क ससकारकी इचछा कोई न करगा |

एक वसतका दसरी वसतपर आधान करना अथवा एक वसतको दसरी वसतका परापत होना नितय नही हो

१२ कनोपनिषद‌ [ खणड १ [< 3 २ व < ~ अ ५.१. =" = 4 नर न दक नयटिट22- = ५.

पद-भाषय

करमसहभावितवविरोधान परतय- जञानकमविरोष- शातमबरहमविजञानसथ ।

परदरशनस‌

न झपाततकारकफल-

भदबिजञानन करमणा परतयत मितसवभददशनसथपरतयगातम- जहविषयसय सहभावितवम‌ उपपदयत, चसतपराधानय सति अपरषतनतरतवाहकषविजञानसस । तसादरषटावपटमयो वाहयताधन- साधयभयो विरकतसस अतयगातस- विषया बहमजिनञासयम‌ 'कनषि- तमर! इतयादिशरतया परदशयत । शिषपाचारय परशनपरतिवच नरपण कथन त खहमवसतविषयतवात‌ सखपरतिपततिकारण मवति । कवलतकगमयतव च दशित भवति ।

इसक सिवा आतमा और बरहमक एकतवजञानका करमक साथ-साथ होनम विरोध भी ह । जिसम [ करता-करमादि] कारक और [ खगौदि ] फलका भद खीकार किया गया ह उस करमक साथ समपरण भददषटिस रहित बरहम और आतमाकी एकताक जञानका रहना सगत नह ह, कयोकि बरहमजञान तो वसतपरघरान होनक कारण परष (करता) क अधीन नही ह । अत. इस "कनपितम‌' इतयादि शरतिक दवारा यह दषट और अदषट बरायसाधरन एव साधयोस विरकत हए परपकी ही परवथगावमविपयकर बरहमजिजञासा दिखलायी जाती ह । शिषय ओर आचायक गरशनोततररपस यह कथन वसतका सगमतास जञान करान कारण ह कयोकि यह विपय सकषम ह । इसक सिवा कव तकरदारा इसकी अगमयत | मी दिठडायी गयी ह ।

चाकय-भापय

नितया । नितयतव चषट मोकषसय ।

अत उतपननवियसय करमारसमो-

उनपपनन५ अतो वयादततवाहयवदधः

आतमविजञानाय कनषितमितया-

दयारसमः ।

सकता, और मोकषकी नितयता ही इष ह। इसलिय जिस आतमजञान हो गया ह उसक छिय कमका आरमभ नही बन सकता | अतः जिसकी वाहम-बदधि निदतत हो गयी ह उस आतमततवका जान करानक लिय 'कनषितम! इतयादि उपनिषद‌ आरमम की जाती ह ।

१. अरथात‌ आतमापर परमाननदतव आदि यणोका आधान या उसका बरहमाणड

बाहय अदयको परापत होना नितय नही हो सकता।

खणड १ ]

€ शाइरभाषयाथ शर

७२. यय य य य न य =

पद-साषय

. “मषा तकण मतिरायनया" (क० उ० १।२।९, इति शरतथ \ “आचाय

बानपरषो वद‌” ( छा० उ० ६।

१४।२ ) “आचारयादभव विदया

विदिता साधिषट परापदिति

(छा०उ०४।९) ३) “तदिदधि

परणिपातन! ( गीता ४ । ३४ )

इतयादिभरतिसपरतिनियमाच ।

दगर जहमनिषट विधिवरदपतय

मरतयगाससविषयादनयतर शरणम‌

अपदयननमय नितय शिवमचलस‌

इचछनपपरचछति कलपयत -

गरपसतति«

“यह बदधि तकदवारा परापत होन योगय नही ह” इस शरतिस भी यही बात सिदध होती ह। अतः ““आचाय- वान‌ परष [ बरहमको } जानता ह”

“आचारयस परापत हई विदया ही उतकषटताको परापत होती ह” “उस साषटाङग परणामक दवारा जानो

इतयादि शरति-सथतिक नियमानसार किसी शिषयन परसयगातमविपयकर

कानक सिवा कोई और शरण ( आशरय ) न दखकर उस निरभय, नितय, कलयाणमय अचल पदकी

इचछा करत हए किसी बरहमनिषठ

गरक पास विधिपरवक जाकर पछा---यही बात [आगकी शरतिस)

कलपना की जाती ह-- चाकय-साषय .

अरवततिलिजञाहिशपारथ रशच

उपपननः । रथादीना हि चतना-

बदधिषठिताना परचततिदणश न

अनधिषठितानाम‌ ॥ मन आदीना

च अचतनाना अचततिरटदयत ।

तदधि लिङग चतनावतो5चिषठातः

असतितव करणानि दहि मन

आदीनि नियमन परवतनत ।.

[ मन आदि अचतन पदारथाकी ] परडततिरप जिदखस [ उनकी पररणा करनवाल ] किसी विशष तचवक विषयम परशन करना ठीक ही ह, कयोकि रथ आदि [अचतन पदारथो ]की परतति भी चतन पराणियोकत अधिषठित होकर ही दखी ह, उनस अधिषठित हए विना नही दखी । मन आदि अचतन पदारथोकी भी परवतति दखी ही जाती ह। यही उनक चतन अधिषठाताक असतितवका अनमापक

लिनञ ह । मन आदि इनदरियॉ.नियमस

१४ कनोपनिषद‌ [ खणड १ [3 + वा १. ना * 20% ० कट:20% 2 ५. 0 „^

मररकषिपयकत गरभ

3» कनषित पतति परषित मनः । कन पराणः परथमः | + ५

उ दवो यनकति ॥ १॥

भरति यकतः । कनषिता वाचमिमा वदनति चकषः शरोतर क

यह मन किसक दवारा इचछित और पररित होकर अपन विपरयोम

गिरता ह ? किसस परयकत होकर परथम ( परधान) पराण चलता ह ?

मराणी किसक दवारा इचछा की हई यह वाणी बोलत ह ° और कौन दव

चकष तथा शरोतरको पररित करता ह ? ॥ १॥. पद-भाषय

कन इपित कन कतरा पितम‌ | कन इपितम--किस करताक „ | दवारा इचछित अरथात‌ अभिपरत हआ

उटमानिपरत सत‌ मनः पतात | मन अपन विपयकी ओर जाता वाकय-भाषपय

तननासति चतनावतयधिषटातरि

उपपदयत । तदविशषसय चानधि-

गमाचयतनाचतसामानय चाधिगत

चिरोपाथः परश उपपदयत

कनपितम‌ कनषट कसयचछा-

भातरण मनश पतति गचछति

खचिषय नियमन वयाशरियत

इतयथः । मधतऽननति विजञान-

निमिततमनतःकरण मनः परपितम‌

दवतयपमारथः । न तविषित-

परवतत हो रदी ह उनकी परदतति चिना किसी चतन अधिषठाताक बन नही सकती । इस परकार सामानय चततनका

जञान होनपर भी उसक विशष रपका जञान न होनक कारण यह विशष-विपयक परभ उचितदीह

कन इपिततम‌--किसस इचछा किया हआ अरथात‌ किसकी इचछामातरस मन अपन विपयोकी ओर गिरता अथात‌ जाता ह १ यानी वह किसकी इचछस अपन विषयम नियमानसार वयापार करता ह १ जिसस मनन करत ह वह विजञाननिमिततक अनतःकरण मन ह | यहा “किसक दवारा परषित हजा-सा-- ऐसा उपमापरक अरथ लना चाहिय।

खणड १ ] शाडरसाषयाथ ~ १५

[वा परी

पद-भाषय

गचछति खविषय परतीति समबधयत| ह-->यहो ततिः करियाक साथ

इपराभीहपणयारथसय गतयरथसय चहा-

सममवादिचछारथसयवतदरपमिति

`गसयत । इपितमिति इटपरयोग-

सतचछानदसः । तसयव परपरवसय

नियोगारथ परपितमितयतव‌ ।

ततर परषितमितयबोकत परपयित‌-

मरषणनिरषविपयफकाषला खात‌--

कीटदा

चा परपणमिति | इपितमिति त

कन परपयितविशषण,

विशषण सति तदभय निवतत,

-कसयचछामातरण परपितमितयरथ-

विशषनिरधारणात‌ ।

सवविपय परतिः का समबनध (अनवय) ह । यहा आभीकषणय और गतयरथक # “इप‌” धात समभव न होनक कारण यह इचछाथक इप‌" धातका ही [ इषितम‌ ] रप ह--ऐसा जाना जाता ह । [ षटम‌" क सथानम इपितम‌ः ] यह इट-परयोग छनदस (वदिक) | ह । उस पर-पचकः इप घातका दी पररणा अधम

शरपितम रप हआ ह | यदि यहा कवर परपितम! इतना ही

कहा होता तो परपण करनवाल

और उसक परषण-परकारक समबनधम ऐसी शङका हो सकती थी

कि किस परपकथिरोपक दवारा और किस परकार परषण किया हआ ट अतः यहा हितम‌ इस विशषणक रहनस य दोनो शङका निदतत हो जाती ह, कयोकि इसस किसीकी इचछामाननस परषित हआ यह विशष | अरथ हो जाता ह]

वाकय-भाषय

मरपितशचबदयोररथाविह समभवतः।

'ज हि शिषयानिव मन आदीनि

धइपितः और परषित” ` शबदोक मखय [4 ५, ~ ॐ अथ यहक लिय समभव नही इ;

कयोकि आतमा मन आदिको विषयोकी

# इप‌ धातक अरथ आमीधणय ( वारमबार होना ) गति और इचछा ह ।

न वयाकरणका यद सिदधानत ह कि “छनदसि इषटानविधि:? वदम जो परयोग जस दख गय ह वरक सयि उनका वसा ही विधान माना गया ह।

६ कनोपनिषद‌ [ खणड १

बरज ¶ 5 व व 3 = 22%, वनय 2७ रट( 2: वा ८ ५; वयय: 4 १ ५

| पद-भाषय

यदषोऽरथोऽभिगरतः खात‌? ग बा जल अभिमत कनपितमिसयतावत था तो 'कनषितम! इतनहीस

सनष कनवितमितवतावतव | सिदध हो सकनक कारण 'परषितम! "पनततसिदधवातमषितमिति न | ऐसा और नही कहना चाहिय था।

वयम‌ । अपि च शबदाधि- इसक अतिरिकत शबदोकी अधि- वकतवयम‌ । हक = कतास अरधकी अधिकता होनी कयादरथाधिकय यकतमिति इचछया | उचित ह इसलिय शा, करम अथवा करमणा वाचा वा कन परषित- | बाणी इनमस किसक दारा परषित,

3: ध इस परकार गरषकविशषका जञान मितयथपरिशषोऽवगनत यकतः । | परापत करना आवशयक होगा।

न, परशनसामरथयातः दहादि- | तमाधान-नही,परशनकी सामरथय- ह स यह बात परतीत नही होती; कयोकि

सबातादनितयातवरमकारयादिरकतः| इस यह निशचय होता ह कि जो परष दहादि सदवातरप अनितय करम और कारयस विरकत हो गया ह

वाकय-माषय

विषयभयः परषयसयातमा ! विविकत- | ओर इस परकार मही भजता जस गर रिषयोको । | वह तो सबस बिलकषण

और नितय चितखरप होनक कारण

नितय चिकितसाक अधिषठाता [ चकोर पकषी ] क समान उनकी परवततिम

धिषठाठवत‌ । कवल निमिततमातर ह ।

नितयचितखरपतया त निमितत-

मान भरचनतौ नितयचिकितला-

१. राजा रोग जव भोजन करत ह तो उसम विष मिका हआ तो नदी ह 'दतकी

परीकषाक लिय उस चकोर सामन रख दन ह । विषमिधितत अचरको दखकर चकारकी

ऑखॉका रग बदल जाता ह । इस परकार चकोरकौ कवल सननिधिमातरस ही राजाकी

मोजनम परवतति हो जाती ह । इसक लिय उस और कछ नही करना पडता ।

खणड २ ] सखाङकरमाषयाथ १५७

ए - > न = बॉय ०६:22 -करप29७:३८०३७- च<ट 2७ 'रपनियक- "कई :23७, "८29७: चलपपक-

। पद-भाषय

अतोऽनयतछटसथ नितय वसत

बतसमानः पचछतीति साम

यादपपदयत । इतरथा इचछावा-

करमभिरददादिसघातख पररयिततव

परसिदधमिति परनोऽनथक एव

सयात‌ ।

एवमपि गरपितशवदसथारथो न

परदरशित एव ।

न; सशयवतो<य परशन इति

गरषितशबदसथाथविशष उपपचयत।

कि यथापरसिदधमव कारयकारण-

सघातस परपयिततवम‌, कि वा

सघातवयतिरिकतसय सवतनतरसय

इचछामातरणव मनञादितरपयित‌-

और इनस परथक‌ कटसथ नितय वसतको जाननकी इचछा करनवाङा ह वही यह बात पछ रहा ह। अनयथा इचछा, वाक‌ और करमक दवारा तो इसत दहादि सदवात पररकतव परसिदध ही ह [अरथात‌ इचछा, वाणी और करमक दवारा यह दहादि सटठात मनको पररित किया करता ह---इस बातको तो सभी जानत ह ]। अतः यह गरशन निररथक ही हो जाता |

शङभा-- किनत इस परकार भी परपितः शबदका अरथ तो परदरशित हआ ही नहा।।

समाधान---नही, यह परशन किसी सशयाहका ह इसीस परषित शबदका अरथविशष उपपनन दयौ सकता ह [अरथात‌ जिस ऐसा सनदह ह कि ] यह पररक-भाव सरवपरसिदध भत और इनदरियोक सघातरप दहम ह, अथवा उस सददातस भिनन किसी सवतनतर वसतम ही कवर इचछामातरस मन आदिकी गररकता ह” इस

चाकय-मापय हि

पराण इति नासिकाभवः

धकरणात‌ । परथमतव परचलन-

करियायाः २

पभाणनिमितततवातखतो

यहा अकरणवशय “पराणः शबदस नासिकाम रहनवाला वाय समझना

चाहिय । चलन-करिया पराण-निमिततक होनस पराणको परधान माना गया ह ।

१८ कनोपनिषद‌ [ खणड १

~ २2७७... ६८८२७... ४६६२५... ६६०२६... ६२५...

पद-भाषय

तवम‌, इतयसयारथसय परदशनारथ

कनषित पतति परषित मन इति

विशषणदयमनपपचचत ।

न खतनतर मनः खबिषय

मन.अयतीना खथ पततीति परसि-

पासतनयः उमर; ततर कथ परशन अदशनस‌

यदि खतन‍तर मनः पगरवतति-

निबततिविषय सयात‌, तहि सख

अनिषटचिनतन न सथात‌ । । अनथ नव जाननसङकटपयति । अभयगर-

उपयदयत इति, उचयत-

परकार इस अमिपरायको परदरशित करनक लिय ही “किसक दवारा इचछित और परपित किया हआ मन [अपन विपयकी ओर] जाता ह ऐस दो विशषण ठीक हो सकत ह ।

यदि कहो कि यह बात तो परसिदध ही ह. कि मन सवतनतर ह और वह सवय ही अपन विपयोकी ओर जाता ह; फिर उसक विषयम यह परशन कस बन सकता ह * तो इसक उततरम हमारा कहना ह कि यदि मन अभरवतति-निवततिम सवतनतर होता तो सभीको अनिषट-

चिनतन होना ही नही चाहिय था । किनत मन जान-बझकर भी अनरथ- चिनतन करता ह और रोक

वाकय-भाषय

विषयावभासमाचर करणाना

रचतति;ः। चचिकरिया त पराण-

सयव मनभदिष । तससासपराथसय

पराणसय । तति गचछति यकतः

(यकत इतयतत‌। वाचो वदन कि

निमितत पराणिना चलषःकरोतरयोशर

को दवः परयोकता करणानाम‌

-अधिषठाता चतनावानयः स कि-

| विरोषण इतयरथः ॥ १॥

इनदरियोकी सवततः परचरतति तो कवल

विषयोका परकाशनमातर ही ह । मन आदिम चलन-करिया तो पराण-

हीकी ह; इसीलिय पराणकी परधानता ह| वह पराण किसस यकत अरथात‌ पररित होकर गमन करता यानी

चलता ह । वाणीका भाषण मी किस निमिततस होता ह? पराणियोक नतर और रोतरोको पररित करनवाछा कौन दव ह! अरथौत‌ जो चतन तततव इनदरियोका अधिषठाता ह वह किन विशषणोस यकत ह १॥ १॥

खणड १ ] शाङकरभाषयारथ १९.

हन. ~. = = व द = था द चर 23%, यह९”य 2७० कट ट40 "यार व

पद-भाषय

दख च'कारय बारथमाणमपि गपरव- | जानपर भी अतयनत दःखमय कारयम भी परवतत हो ही जाता ह।

तत एव मनः | तसाशकत एव | अतः शकनषितम‌ इतयादि परशन

कनषितमितयादिपरकषः । उचित ही ह । कन पराणः यकतः नियकतः किसक दवारा नियकत यानी

रितः सन‌ परति गचछति ख- पररित हआ पराण अपन वयापारम गरवतत होता ह £ परथम” यह पराणका

वयापार परति । परथम इति पराण- वि कतवात‌ विशपण हो सकता ह, कयोकि विशषण सयात‌) ततप €. त समकत इनदरियोकी परबततिया गराण-

सरवनदरियगरवततीनाम‌ । परवक ही होती ह. ।

छोकिक परप किसक दवारा

इचछित यह शबदरपा वाणी बोलत

ह ? तथा कौन दव--बोतनवान‌ ( गरकाशमान‌ ) वयकति चकष एव शरोतरनदरिययो अपन-अपन वयापारम

नियकत-पररित करता ह ॥१॥

कन इपिता वाचम‌ इमा

शबदलकषणा वदनति लौकिकाः ।

तथा चकषः शरोतर च खख

विषय फ उ दवः दयोतनवान‌ यनकति नियङकत पररयति ॥१॥

~=

पद-भाषय

एव पषटवत योगयायाह गर)) | इस परकार पछनवाल योगय शिषयस गरन कहा- त‌ जो

शण यत‌ तव पचछसि, मनआदि- | पछता ह कि मन आदि इनदिय- समहको अपन विपयोकी ओर

करणजातसय को दवः खबिपय | पररित करनवाला कौन दव ह ओर वह उनह किस परकार पररित करता

भति पररयिता कथवाररयतीति। | ह, सो उन--

२०८ कनोपनिषद‌ [ खणड १ { 4 य 3 3" 5. यय 2.

आतयाका सरवनियनततत

शरोतरसय शरोतर मनसो मनो यदवाचो ह वाच स उ पराणसय पराणशकषषशकषरतिखचय धीराः मतयासमा- छोकादमता भवनति ॥ २॥

जो शरोतरका शरोतर, मनका मन और वाणीका भी वाणी ह वही मराणका पराण ओर‌ चकषका चकष ह [-ऐसा जानकर ] धीर परप ससारस मकत होकर इस छोकस जाकर अमर हो जात ह || २ ॥

पद-सापय

शरोतरसय शरोतर शणोतयननति | शरोतरसय शरोतरम:--जिसस शरवण : ~ | करत ह वह शरोतन' ह अथ

शा कक क ४. स शरवणम व करण शबदामिवयजञक शरोतर- | शबदका अभिनयञञक शरोतरनदरिय ह। मिनदरियम, तसय शरोतर सः त भी शरोतर वह ह जिसक

ह 4 पयत तन पछा ह कि चव यसतवया पषटः “चकषः शरोतर क और शरोतरको कौन दव नि

उ दवो यनकति" इति । करता ह 2 वाकय-भाषय

शरोतरसय ओतरम‌ इतयादिपरिति- ह शरोतर भरोतरम‌” त

वचन निरविशषसय निमिततववाथम‌। 2228 00084 म

विकरियादिविशषरहितसयातमनो | शरोतरम‌” इतयादि रपस उततर दनका मनभादिपघततौ निमितततवम‌ | यही तातपय ह कि विकरिया आदि समसत

ध ~ विशपोस रहित आतमाका मन आदि- इसयततचछोतरसय शीचमितयादिपति- ततम र इतय तचदरौ दि की मदरततिम कारणतव ह यही इसस चचनसयाथः; अञजगमात‌ | तदल- | जाना जाता ह, कयोकि इस भरतिक अकषर गतानि हातरासमिननथउकषराणि। । भी इसी अरथम अनगत ह । दि

१-अरथात‌ वह सरवथा निविकार और निविशष होनपर भौ सन आदिको पररित

करनवाला ह ! ह

खणड २ ] शाइरभाषयाथ २९

वा - + वक - कय ~ 5 नका2 2 चकॉर टिक चरटिजिटक "का सिट2क पट १:2७ बर<र 4० उ८की पक

परद-भाषय

असववविचिषटः शरोतरादीनि | शजञा--अशक उततरम तो यह ८ ना बतलाना चाहिय था कि इस

नियङकत इति वकतवय, ननवत- | परकारक गणोबाल ६ शरोतरादि- > छ को पररित करता ह; उसम यह

दनलरप परतिवचन शतरख कहना कि वह शरोतरका शरोतर ह- आरतरमिति । ठीक उततर नही ह ।

नष दोषः) तसयानयथाविशषा- समाधान---यह कोई दोप नही

5 ह, कयोकति उस गररकका और नवगमात‌ । यदि हि शरोतरादि- | किसी परकार कोई विशषरप नही

वयापारवयतिरिकतत खनयापा- 8 जा ध दरोती र 5 आदिका परयोग करनवालक समान

रण विशिषटः शरोतरादिनियोकता | शरोनादि वयापारस अतिरिकत किसी

अवगमयत दातादिपरयोकतवत‌ , त ५ कर क ५ $ शरातरादका {नियाकता जञात त

तददमनचखय परतिवचन सात! | तह उतर भनवित तो) विनत

न किह शरोतरादीना भरयोकता | यहा खत कावनवाञक समान कोई . मा शिषटो रववितरादि- शरोतरादिका खबयापारविशिषट परयोकता

खबयापारविशिषटी लवितरादि- | जञात नही ह । अवयब-सहयोगस

वदधिगमयत। शरोतरादीनामव त हक ८.५ ४ क ड , ध भासब फर का रप

सहताना वयापारणालोचन आलोचना; सङकलप एव निशचय सङरपापयवसायलकषणन फराव- | आदिरप वयापार ह उसीस यह

चवाकय-सापय

कथम‌ ए #एणोतयननति शोतरम; | कस ! [सो इस परकार कि] जिसस पराणी सनत ह उस “रोः कहत ह । उसका जो शबदको परकाशित करना ह

'शबदोपलबछ रपतयावभासकतव न । वह 'ओतचतवः ह ! शरोजका जो शबद- क उपलबधारपस परकाशकतव ह वह

सतः ८ ५, शओओजसयाचिदपतवात‌, | खतः नही ह, कयोकि वह अचतन सतमनशच चिदरपतवात‌ । ह और आतमा चतनरप ह ।

तसय दाबदावभासकतव शरोततवम ।

शर कनोपनिषद‌ [ खणड १ ० = । < ५. वा

पद-भाषय

सानलिजञनावगमपत---असति हि शरोतरादिभिरसहतः, यतमयोजन-

परयकतः शरोतरादिकलापः गहादि- वदिति । सहताना पराथतवाद अवगमयत भोतरादीना परयोकता।

तसखादचरपमवद परतिवचन

शरोतर शरोतरमितयादि ।

कः पनरतर पदारथः शरोतरसय

शरोरमितयादः १ न छतर शरोतरसय शरोतरानत-

रणारथः, यथा भरका-

सख परकाशानतरण ।

आतमन-«

ओनादि-

परकादयकतवम‌

जाना जाता ह कि गह आदिक समान जिसक परयोजनस शरोतरादि कारण-कलाप परवतत हो रहा ह बह शरोतरादिस असहत ( परथक‌ ) कोई तततव अवशय ह। सहत पदारथ परारथ ( दसरक साधनरप ) हआ करत ह; इसीस कोई शरोतरादिका परयोकता अवशय ह---यह जाना जाता ह| अतः यह शरोतरसय शरोतरम‌ इतयादि उततर ठीक ही ह ।

शङका विनत इस शरोतरसय शरोतरम‌ इतयादि पदका यहा क‍या अरथ अमिगरत ह ? क‍योकि जिस तरह एक परकाशको दसर परकारका परयोजन नही होता उसी तरह एक शरोतरको दसर शरोतरस तो कोई परयोजन ह. ही नही।

वाकय-सापप

यचछोतरसथो पलबधतवनाव-

भासकतव तदातमनिमितततवा-

चदरोचसय भरोमिवयचयत; यथा

सवतरसय कषतर यथा वोदकसयौषणय-

मचिनिमिततमिति दगघरपयदकसय

दभधाशचिखचयत; उदकमपि

हयचिखयोगादञिखचयत, तदवद‌

शरोचका ज उपलबधारपस अवभासकतव ह वह आतमनिमिततक होनस आतमाको शशरोतका ओोतर!

ऐसा कटा जाता ह, जस कषतरिय जातिका [ नियामक करम ] कषतर कहलाता ह, अथवा जस [ उषण ] जल‍रकी उषणता अमिक कारण होती

ह; इसलिय उस जछानवाल जलको भी जछानवाला अमरि कहा जाता ह; ओर अधिक सयोगस जह भी अचि कहा जाता ह; उसी परकार [ भरमाता

खणड १ | शाइसमाषयाथ २३-

विकि कारट २६८२७. विक कई. नई: क

पद-साषय

नष दोषः) अयमतर पदाथः- शरोतर तावसखविषयवयञनसमरथ दषटम‌ । ततत सवविषयनयदधन- सामथय शरोतर चतनय हातम- जयोतिषि निचयऽसहत सरवानतर सति भवति; न असति इति ।

अतः शरोतरसय शरोरमितयादयप-

पयत) तथा च भरतयनतराणि- “आतमनवाय जयोतिषासत, (छ ०उ०४।३। ६) “तख भासा सरवमिद विभाति" ( क०> उ० २।२। १५, शर ६। १४) ० २।२। १० ) “यन सयसत- पति तजसदधः” ( त° जा० ३। १२९१७) इतयादीनि ।

समाधान--यह भी कोई दोष नही ह। यहा इस पदका अरथ

इस परकार ह--शरोतर अपन विषय- को अभिवयकत करनम समरथ ह-- यह दखा ही जाता ह। किनत शरोतरका वह अपन विषयको अभि-

वयकत करनका सामरथयथ नितय, असहत, सबौनतर चतन आतम- जयोतिक रहनपर ही रह सकता ह, न

रहनपर नही! रह सकता । अतः

उस (शरोतरसय ओरोननम! इतयादि कहना उचित ही ह | “यह अपन ही परकाशस परकाशित ह” “उसक परकाशस ही यह सतर परकाशित

होता ह” “जिस तजस परदीपत हज सरय तपता ह” इतयादि शरतिया भी इसी अरथकवी चोतक ह। तथा

चाकय-भाषय

अनितय यतसयोगादपटनधसव

ततकरण भरीचादि । उदकसयव

दगधतवमनितय हि तच तत‌]

यञच त नितयसपखनधतवमनचा-

चिवौपणय सर निवयोपरनधिखरप-

सवादगधवोपरनघोचयत ! भरोचा-

दिष शरोततवादयपलबघिरनितया

नितया चातमनयतः शरोचसय

आतमाम ] जिनक सयोगस अनितय उपलछबधतव ह व शरतराद करण कहलात ह | जलक दाहकतवक समान आतमाम उपलबधसय अनितय ही ह। जस अयिम नितय उषणता रहनक कारण वह दगधा कहलाता ह उसी परकार जिसम निवय-उपलनधतव रहता ह बह नितय उपलबधिखरप होनक कारण उप" लवधा कहा जाता ह। शरोतरादि निमिनतोक होनपर जो आतमाम शरोततवादिकी उप- लबधि होती ह वह अनितय ह और कवल आतमाम वह नितय ह; अतः “शओोतरसय

चछ ` कनोपनिषद‌ [ खणड १

गकार रि वि डि कि न> दि

पद-भाषय

“यदादितयगत तजो जगदधा- | गीताम भी कहा ह--““जो तज

सयतजखिलम” (गीता ११५ १२) | सधि ढोकर स नगत हि । “ | परकाशित करता ह” “ह भारत !

षत कषतरी तथा कतख परकाशचयति| इसी परकार समपण कषोतरकरो कषतरी

भरत" (गीता १३) ३३) इति | परकाशित करता ह।” कठोप- । ह निपतम भी कहा _ ह--- वह गीत 7 ` = च गीतास । काठक च “नितयो | नितयोका नितय और चतनोका नितयाना चतनशतनानाप"” | चतन ह” इतयादि । शरोतरादि

८२।२।१३) इति। शरोतरायरव इनदरिययरग ही सबका आतमभत

स ह निति चतन ह--यह बात [ छोकम ]

सयातमभत चतन परसिदर ह। उस शरानतिका इस

परसिदधम‌ तदिह निवसयत। असति पदस निराकरण किया जाता ह ।

० 8 अतः शरोतरादिका भी शरोतरादि

किमपि विदवदभदधिगमय सरवानतर- | अरथात‌ उनकी सामरथयका निमितत-

तम कटखथमजमजरमतममय | शल ऐसा कोई पदारथ ह जो

५ = श आतमवतताओकी बदधिका विषयः

शरोतरादरपि भरोतरादि ततसामथय- | सबस अनतरतमः, कटसय, अजनमा,

निमिम‌ इति परतिबचन शबदारथ| भजर, अमर और अमय 2 इस परकार यह उततर और दाबदाथ

शरोपपचचत एव । ठीक ही ह ।

वाकय-भाषय

शरोतरमितयायकषराणामरथाउगमाद‌ | शरोतरम! इतयादि अकषरोक अथक

= > अनगमस नितयोपलगधिखरप निविशष उपपदयत निरविशषसयोपलबधि- पपदयत निरविशष आतमाका मन आदिकी मदततिम कारण

खरपसयातमनो भनञदिरचतति- | होना ठीक ही ह । इसी परकार [ जसा कि धोतरसय शरोतरम‌ › क विषयम कहा

निमि च क

तततवमिति । मन आदिषवव | गया ह ] मन, वाद‌ और पराणादिक यथोकतम‌ ` समबनधम भी समझ लना चाहिय ।

खणड १] शाङकरभाषयारथ २५

[0 ~ 2 2 2 त ट 0 पाई जय प "22% वरड:

'पद-भषय

तथा मनसः अनतःकरणसय इसी परकार वह मनकरा--अनतः-

8 अनत- | करणका मन ह, कयोकि चिजजयोति- ‡ | न झनतःकरणम‌ अनत भ त ज ह पर दोधि क परकाराक तरिना अनतःकरण

रण चतनयजयोतिषो ति | अपन विषय सङकलप ओर अधयवसाय

खविषयसङकलपाधयवसायादि- | ( निशचय ) आदिम समरथ नही हो कता । अतः वह मनका भी मन

समरथ खात‌ । तसखानमनसोऽपि | शक ६ ह । यहा बदधि और मनको एक

सन इति । इह -बदधिमनसी मानकर मनका निरदश किया एकीकतय निदशो मनस इति। | गया ह ।

यदवाचो ह वाचम‌; यचछबदो | यदवाचो ह वाचम---यहाोक यसादथ शरोतरादिभिः सम धयत‌, शबदका भयसमात‌, अरथ यसमीदरथ शर भः सच ( दववर म कयोकि वह शरोतरका

समबधयत-यसाचरोतरसय शरो म‌, | रतर ह, कयोकि वह भनका मन ष | ह? इस परकार शरोतरादि समी पदोस

यसरानमनसो मन इतयवम‌ । | समबनध ह। वाचो ह वाचम‌! दवितीया इस पदसमहम "वाचम‌ पदकी

चाचो ह वाचमिति दवितीया दवितीया विभकति परथमा विभकतिक ^ ३८० *

परथमातवन बिपरिणमयत, पराणसय | रपम परिणत कर छी जाती ह, जसा कि शराणसय गराण:” म दखा

आण इति दशनात‌। वाचो ह | जाता ह । यदि कहो कि वाचो कवाकय-भापय

वाचो इ वाच पराणसय पराण यहा "वाचो ह वाचम‌? तथा पराणसय पाणः" इस परकार [ पिछल पदम ] सरवतर ही [ परथमा और दवितीया ] दो विभकति समझनी चाहिय, कयो १ कयोकि

, धर वातलसपनिदथ आसमा-विपयक परशन होनक कारण कथम‌ !£ पटसवातखरपनिद शः, | उसक खरपका निरदश किया गया ह

ध / और निरदश परथमा विभकतिस ही भथमयव च निदशः! तसय च | किया जाता ह; तथा आतमा ही

इति चिभकतिदधय सरवज दरषटवयम‌]

बद कनोपनिषद‌ [ खणड १ बकॉ:टपकक, ८०220 नाईस29%- 9 4 23% ५.० =.

पद-साषय

वाचमितयतदनरो पन पराणख

शराणसिति कसाददितीयव न

करियत १ न; बहनामलरोधसय

यकततयात‌ वाचमितयसय वागि-

सयतावदकतवय स ड पराणसय

भराण इति शबददवयाचरोधन; एव

हि बहनामनरोधो यकतः ङतः सयात‌ ।

पषट च वसत परथमयव निरदषड

यकतम‌ । स यसतवया पषठ पराणख

मराणाखयबरचतिविरषसय पराणः

ततकत हि पराणसय आणन-

सामयम‌) न हयातमनानधिषठितसय

ह वाचम‌” इस परयोगक अनरोधस शराणसय पराणम‌" इस परकार दितीया ही कयो नही कर ली जाती * तो ऐसा कना उचित नही कयोकि बहतोका अनरोध मानना ही यकतिसजञत ह । अतः स उ पराणसय पराणः इस पदसमहक [स और पराणः] दो शबदोक अनरोधस (वाचम‌ इस शबदको ही ^ वाक‌ › इतना कहना चाहिय } ऐसा

करनस ही बहतोका अनरोध यकत

( खीकार ) किया समझा जायगा ।

इसक सिवा, पछी इई वसतका

निरदश परथमा विभकतिस ही करना

उचित ह। [ अभिपराय यह कि ) जिसक विपयम तन पछा ह वह पराणका यानी पराण नामक बतति- विशषका आण ह । उसक कारण ही पराणका गराणनसामरथय ह, कयो- कि आतमास अनधिषठित पराणका

पराणनमपपथत, को होवानयातक/ पराणन सममव नही ह, जसा कि

वाकय-भाषय

शयतवातकमतवमिति दितीया ।

अतौ वाचो इद चावच पराणसय

पराण इतयसमातसरवञनव विभकति-

दइयम‌।

ञय ह, इसलिय उसम करमतव रहनक कारण दवितीया मी ठीक ह| अतः“वाचो ह वाचम‌. तथा "पराणसय पराणः इस

कथनकर अनसार सभी जगह दो चिमकति समझनी चाहिय । -[ अरथात‌ सभी पदोम य दोनो विभकतियो रह सकती द । ]

खणड १ ] शाइरसापयारथ २७

बसिटक १ 5 =

पद-भालय

राणयादरदष आकाञच आननदो | “यदि यह आननदखरप आकाश

न सयात‌" (त° उ०२।७।१)

“ऊधव पराणयननयतयपान परतय-

गखति"" ( क०उ०२।२।३ )

इतयादिशरतिभयः । इहापि च

सयत यन‌ पराणः परणीयत

तदव जहम तव बिदधि इति ।

शरोतरादीनदरियपरसताव पराण-

सयव गरहणम‌ यकत न त आणरय।

सतयमवम‌ ; पराणगरहणनव त

पराणख गरहण कतमव मनत

शरतिः । सरवसयव करणकलाप

यदरथपरयकता परवतति; तददधति

परकरणारथो विवकषितः ।

न होता तो कौन जीवित रहता

और कौन आसोचछास करता” “यह पराणको ऊपर छ जाता ह तथा अपानको नीचकी ओर छोडता

ह” इतयादि शरतियोस सिदध होता ह। यहो" (इस उपनिषदम) भी यह कहग ही कि जिसक दवारा पराण पराणन करता ह उसीको त‌

बरहम जान ।

शङा- परनत यहा शरोतरादि इनदरियोक परसदनम पराणको ही गरहण करना यकतियकत ह, गराणको नही ।

समाधान---यह ठीक ह। किनत शरति, पराणको अहण करनस ही पराणका भी अहण किया मानती ह | इस परकरणको यही अरथ बतकाना अभीषट ह कि जिसक लिय समपरण इनदरिय-समहकी परदतत ह वही बरहम ह |

वाकय-भाषय

यदतचछोतरादयपलबधिनिमितत

मातमानन शरोचसय करोअमि- अमततव- निरपणम‌ छनधिखरप नि-

विषमातमतचव तदबद‌भवातिसचयानववोधनिमि- ताधयारोपिताद‌ बदधयादिलकष-

णातससारानमीकषण सवा चीरा

तयादिलकषण नितयोप-

यह जो शरोचादिकी उपलबधिका

निमिततमत तथा “शरोतरका शरो

इतयादि लकषणोवाला नितयोपलबधि- सवरप निरविशष आतमततव ह उस जानकर; अजञानकर कारण आरोपित

बदधि आदि लकषणोवाल ससारस

छटकर---छसस मकत होकर, धीर--

२८ कनोपनिषद‌ [ खणड र क वा 3 अ ~ त -: वा । ~ अ - 22, ' ~. च बार

पद‌-भाषय

तथा चशचषशचकष रपपरकाश-

कस चकषो यदपगरहणसामथय

तदातमचतनथाधिषठितसयव । अतः

चकषपशचघः ।

रषटः पषटखयारथख जञातमिए- आतमविदो- तवात‌ भोतरादः शरोतरा ऽततव- दिलकषण यथोकत निरपणम‌ ञाता इतयधया

बरहम जञातवा इसयधया-

दिथत; अमता भवनति इति

फलशरतथ । जञानादभचसरतव

शरापयत । जञातवा बिचयत इति

सामरथयात‌ । शरोतरादिकरणकलाप-

यञिसना-भरोतरादौ हयारमभाव

तवा, तदपाधिः सन‌, तदातमना

जायत भरियत ससरति च।

तथा [ चह बरहम | चकषका चकष

ह | रपको परकाशित करनवाल चकष-इनदियम जो रपको गरहण करनका सामरथयथ ह वह आतम- चतनयस अधिषठित होनक कारण ही ह । इसडिय वह चशलका चशल ह |

परशन-करताको अपन पछ हए

पदारथको जाननकी इचछा हआ ही करती ह; अतः अमरता भवनतिः (अमर हो जात ह) ऐसी फट- शरति होनक कारण उपयकत

शरोतरादिक शरोतरादिरप बरहमको

जानकर--हस परकार यहा जञातवा!

करियाका अधयाहार किया जाता ह,

कयोकि जञानस ही अमरतवकी परापति

होती ह, जसा कि रहमको] जानकर मकत हो जाता ह! इस उकतिकी सामरधयस सिदध होता ह। जीव शरोतरादि करणकलापको तयागकर --शरोतरादिम ही आतमभाव करक ' उनकी उपाधिस यकत होकर

जनमता, मरता और ससारको परापत चाकय-भाषय

धीमनतः परतयासपाहलोकाचछरीरात‌ | बदधिमान‌ लोग इस छोकस जाकर

यतय वियजयानयसिननपरति-

सनधीयमान निरनिमितततवादसता

भवनति । ५

अरथात‌ इस शरीरस परथक‌ होकर दसर शरीरका अनसनधान न करनक कारण अनय कोई परयोजन न रहनस अमत हो जात ह ।

खणड १] छाङरभषयारथ २९ बॉ व ^ स य क य = ` = २. १

पद‌-माषय

अतः शरोतरादः शरोतरादिलकषण | होता ह। अतः ओरोतरादिका शरोतरादि-

बरहमातमति विदितवा, अतिमनचय रप बरहम ही आतमा ह ऐसा जानकर

शरोतरादयातममारव परितयजय--य और अतिमोचन करक अरथात‌

ओबतराधातममा परितयजनति, त वोतरादिम आतममावको धयागकर घीर जगत)

५, | परष 'परतयो अथात‌ पतर, मितर,

धीराः धीमनतः; न हि विशिषट- | कलतर और बनधओम अहता-ममताक धीमसवमनतरण भओोरादयातम- | वयवहारलप इस छोकस विलग हो

भावः शकयः पारतयकतम--परतय | यानी समपण एषणाओस मकत

वयाघरतय अखरात‌ रोकात‌ पतर- होकर अगत--अमरणधरमो हो

मितरकलतरवनधष ममाहभाव

सवयवहारलकषणात‌,

पणा भलवतयथः अमरणधरमाणो भवनति ।

सयकतसव-

जात ह | जो लग शरोतरादिम आतम-

भावका तयाग करत ह ब धीर यानी

बदधिमान‌ होत ह। कयोकि विशिषट

अगरता | घदधिमतवक बिना शरोतरादिम आतम-

भावका तयाग नही किया जा सकता)

वाकय-भाषय

खति छाजञान करमाणि छारी-

सनतर भतिसनदधत । आपतम-

ववोध त सवोकरमोरमभनिमिचा-

जशञानविपरीतविदयाशिनिषलशतवात‌

करमणामनारसमषछता पव

भवनति) रारीरादिखनतानाचिचछद‌

पतिसनधानायपकषयाधयारोपित- |

अजञानक रहनतक ही कम दसर शरीरकी खोज किया करत ह] आतमशान हो जानपर तो समपरण कमकि आरमभक अजञानस विपरीत जञानरप अथिदधाया करमोक दः हो जानपर फिर परारबध निःशष हो जानक कारण व अखत ही हो जात ह ] [अनादि ससारपरमपरास “म शरीर ह! ऐस अधयासक कारण `| “पनः पनः शरीरपरासिरप परमपराका चिचछद न हो ऐसा अनसनधान करत

रहनक कारण अपन ऊपर आरोपित

१० कनोपनिषद‌ [ खणड १ [2 2 2 वा 3 चयाई:2- 5. नयारटि 2 । =

पद-भाषय

“जन करमणा न परजया धनन तयागनक अमततवमानशः”

“करमस, परास अथवा घनस नही, किनही-किनहीन कवल वयागस ही अमरतव छाम किया ह” “खयमम-

( कवसय० १ २ ) “पराचि | नइनदरियोको बहिरसख करक दिसित * खानि वयवणतखयमभसतसात‌ | कर दिया ह इसलिय जीव बाहय

पराङपरयति नानतरातन‌ ।

कथिदधीरः परतयगातमानमकषदा- चततचकषसमततवमिचछन‌ (क०उ०

२। १११) ५यदा सरव परमचयन

कामा यऽसय हदि भिताः. “`

अतर बहम समबलत! ( क० उ०

२।३। १४) इतयादिशरतिमयः।

अथवा, अतिमनचयतयननवषणा-

तयागख सिदधतवाद‌ असाछोकात‌

शरतय अखाचछरीरादपतय मतव-

तयरथः ॥२॥

वसतरओको ही दखता ह, अपन अनतरातमाको नही दखता। कोई बदधिमान‌ परष अमरतवकी इचछास इनदरियोकी रोककर अपन परतय- गातमाको दखता ह” “जिस समय इसक हदयकी कामनाए छठ जाती

ह -““इस अवसथाम वह बरहमको परापत कर छता ह” इतयादि शरतियोस मी यही सिदध होता ह | अथवा एषणातयाग तो “अतिमचयो इस पदस ही सिदध हो जाता ह, अतः “असमाहछोकाषपरतयः का यह भाव

समझना चाहिय कि इस दारीरत “` अछग होकर यानी मरकर [अमर

हो जात ह] ॥२॥ इ

यसचछरोतरादरपि शरोतरादयातम- भत बहम, अतः। .

कयोकि बरहम शरोतरादिका भी

चाकय-साषय

सतयवियोगापवमपयशताः सनतो की हई अजञानरप मतयका वियोग ह परव भी नितय आतमखरप

नितयातमसखरपवततवादसता भवसति ~ कारण यदयपि अभत ही रहत

इतयपचरयत ॥ २॥ तथापि अमर ह--ऐसा

उपचारस कहा जाता ह ॥ २॥ +5ह-०४&०-%--

खणड १] शाडरभाषयाथ ३१

= १... १. ^ = था यि:2- नए :2- बयाज पाई<०८ 222० "य<<-222- चर > 2

आतमाका अजञयतत और अनिरवचनयितव

न ततर चकषरगचछति न वागगचछति नो मनो न

विदमो न विजानीमो यथतदनशिषयादनयदव तदविदितादथो अविदितादधि। इति शशरम परवषा य नसतदवयाचचकषिर ॥२॥ ` वयो ( उस बहमतक ) नतरनदरिय नही जाती, वाणी नही जाती, मन नही जाता | अतः जिस परकार शिषयकरो इस बरहमका उपदश करना चाहिय, वह हम नही जानत---वह हमारी समझम नही आता ।

वह विदितस अनय ही ह तथा अविदितस भी पर ह---ऐसा हमन परव-

परपोस सना ह, जिनहोन हमार परति उसका वयाखयान किया था ॥ ३ |] पद-साषय

न ततर तसिनबरहमणि चकषः वहा---उस बरहमम नतरनदरिय नही जाती, कयोकि अपनहीम अपनी गचछति गमना-

» सवातमनि ~ । | गति होनी असमभव ह । ओर न वाणी समभवात‌। तथा न वाग‌ गचछति} | ही पहचती ह जिस समय वाणी- चाचा हि शबद उचारथमाणोऽभि- | सउचवारण किया हआ शबद‌ अपन

धय परकाशयति थदा, तदाभि-

धय परति वागगचछतीरयचयत ।

वाचयको परकाशित करता ह. उस समय ही, अपन वाचयतक वाणी पहचती ह--ऐसा कहा जाता ह।

वाकय-भाषय नतर चशरगचछति इसयकतऽपि | यदयपि आचारयन ततवा निरपण

कर दिया तो भी न समझनक कारण परयलयोग दतरपरतिपततः । | गिषयक यनः मशच करनस “वहा

नतरनदरिय नही जातीः इतयादि कारण शरोरसय शरोतमितयबमादिना | ह । अरथात‌ “शरोचसय शरोतरम‌ ° इतयादि

र भरतिस आतमतचवका निरपण कर उतऽपयातमतसतवऽपरतिपननतवात‌ | दिय जानपर भी आतमततव अतयनत खकमतवदतोरवसतनः पनः सकषम होनक कारण समझम न आनस

पनः परयनययकषाकारणमाह--च दिषयको जो पनः पछनकी इचछा

हई उसका कारण “न तन चकषगचछति!

दय कनोपनिषद‌ [ खणड १

[य 9 गटर: 2 । ~ किस ~ 9 अ "5 5

पद‌-भाषय ~

तसय च शबदसय तननिरतकसख च

करणसथातमा बरहम । अतो न

आरगचछति यथागरिदाहकः

परकाशकथापि सन‌ न झातसान

परकाशयति दहति वा, तदत‌ \

नो मनः सनशचानयसथ

सङकटपयित‌ अधयवसायित च सत‌

नातमान सङलपयतयधयवसयति

च, तसयापि बरहमारमति इनदरिय-

मनोभया हि वसतनो विजञानम‌!

तदगोचरतवानन विननः तदर

ईदशमिति ।

किनत बरहम तो शबद और उसका

वयवहार करनवाल इनदरियका आतमा

ह। अतः वाणी बहा उसी परकार नही पहच सकती, जत कि अगनि

दाहक ओर परकाशक होनपर भी अपनको न जछाता ह और न

परकाशित ही करता ह।

ओर न मन ही [ वहॉतक जाता

ह] | मन मी अनय पदारथोका सङकलप और निशचय करनवाला होता हआ भी अपना सङकलप या

निशचय नही करता ह, कयोकि बरहम उसका भी आतमा ह । इनदरिय ओर मनस ही वसतका जञान हआ करता

ह; उनका अविपय होनक कारण हम यह नही जानत कि वह बरहम

ऐसा ह । चाकथ-भाषय

तजञ चललगचछतीति। तच ओचा-

चातमभत चशषरादीनि चाक‌-

चकषषोः सरवनदरियोपलकषणारथ-

तवानन विजञानमतपादयनति ।

सखादिवततहि गरहमतानतःकर-

इतयादि शरतिसि वतराया गया ह। शरोजादिक आतमखरप उस आतम- ततवक विषयम चपठ आदि इनदरयो नान उतपनन नही कर सकती;

कयोकि यहा वाक‌ ओर चशच सभी इनदरियोका उपलकषण करनक लिय ह |

[ इसपर सनदह होता ह] तो पिर सखादिक समान उसका अनतःकरणस गरहण हो सकता होगा १

णनात आदनो मनः ।” न | [ इसपर कहत ह--_] मन भी उसतक

खणड १ ] छाङकरभाषयाथ २२

पद-भाषय

अतो न विजानीमो यथा यन

परकारण एतद‌ बहम अनशिषयात‌

उपदिशचछिषयायतयभिपरायः ।

यदवि करणगोचर तदनयसम

उपदषट शकय जातिगणकरिया-

विशषणः न तजञातयादिबिशषण-

चदरहम तसाहिपमशिषयालपदशन

परतयाययितमिति उपदश तदरथ-

गरहण च यललातिशयकरतवयता

दरशयति ।

अतः जिस परकारस इस बरहमका अनशासन---शिषयक परति उपदश कषिया जाय--यह हम नही जानत

ऐसा इसका अभिपराय ह । जो वसत इनदरियोका विपय होती ह. उसीका जाति, यण और करियारप विशषणोदधारा दसरको उपदश किया जा सकता ह। किनत बरहम

उन जाति आदि विशपणोचास नही ह । अतः शिपयोको उपदश- दवारा उसकी परतीति कराना बहत

कठिन ह--इस परकार शरति उपदश और उसक अरथका गरहण करनम अविक परयतन करनकी

आवशयकता दिखाती ह ।

चाकय-भापय

सखादिवनमनसो विपयसतत‌ ;

इनदरियाविषयरवात‌ ।

न विदयो न विजानीमोऽनतः-

करणन यथतदभहय मन आदिकरण-

जातमनशिषयाद‌ अबदाखन

कयोतपरवततिनिमितत भवततथा-

> विपयतवानन विदयो न चिजानीमः।

नही पहचता । वह सखादि समान

मनका भी विपय नही ह, कयोकि वह इनदरियोका अविपय ह।

यह बरहम मन आदि इनदरियसमहका

जिस परकार अनशासन करता ह अरथात‌ जिस परकार उनकी गजततिका

कारण होता ह--इनदरियोका अविषय

होनक कारण--इस समबनधम अपन अनतःकरणदवारा हम कछ नही जानत अरथात‌ कछ नही समझत |

५. कनोपनिषद‌ [ खणड १ न - आ व ०.

पद-भाषय

“न विदमो न विजानीमो यथ-

तदचशचिषयात‌' इति असयनतम‌

([परवोकत शरतिक] “न विदमो न विजानीमो यचतदरिषयात‌” इस वाकयस उपदशक परकारका

एवोपदशगरकारपरतयाखयान परापत | अतयनत निपध परापत होनपर उसका तदपवादोजयमचयत । सतयमव

परतयकषादिभिः परमाणन परः

परतयाययित शकयः; आगमन त

शकयत एव परतयाययितमिति

तदपदशारथभागममाह--

यह अपवाद कहा जाता ह। यह ठीक ह कि परतयकषादि परमाणोस परमातमाकी परतीति नही करायी जा सकती, किनत शाखस तो उसकी परतीति करायी ही जा सकती ह---अतः उसक उपदशक लिय शाशरपरमाण दत ह-

लाकय-भाषय ४

अथवा शरोजादीना शओरोचादि-

लकषण बरहम विदषण वशय तयकत

आचारय आह न दाकयत दश-

पितम‌ | कसमात‌ न ततर चशच-

गचछति इतयादि परववतसवम‌। अनन

त विशषो ययतदसशिषयादिति ।

यरथतदजलशिषयात‌ परतिपादयच

अनयोऽपि शिषयानितोउनयन

विधिनतयमिपराय: ।

सरवथापि बरहम बोचयतयकत

आचारय आह, अनयदव तदि-

दितादथो अविदितादघीतया-

गमम‌ विदिताविदिताभयामनय- ।

अथवा शिषयक यह कहनपर कि शोजादिक ओतरादिरप बहयको विशष- रपस दिखलाओः आचाय कहत ह कि 'उस दिखाया नही जा सकता।? कयो १ कयोकि उसतक नतर नही पहच सकत” इतयादि परकारस सबका आशय पववत‌ समझना चाहिय । यहा “यथतदनशिषयात‌*र इस वाकयका विशष तातपय ह; अरथात‌ जिस किसी अनय विधिस कोई अनय गर अपन रिषयोको इसका अनशासन-- परतिपादन कर सकता ह [ वह हम नही जानत ]।

“परनत मञच तो किसी भी तरह जरहमका बोध करा ही दीजयि-- शिषयक ऐसा कहनपर आचाय कहत ह---“वह बरहम जान हएस अनय ह तथा बिना जानस भी पर ह-जान और न जान हएस भिनन होना यही उपदशकी परमपरा ह | इसक सिवा

खणड १ ] शाडरभाषयारथ २५

व = क क = 0 गमररमि

पद-भाषय

अनयदव तदविदितादथो अबि-

दितादधीति । अनयदव पथगव

तद‌ यतत शरोतरादीना शरोतरा

दीतयकतमविषयशर तषाम‌ । तद‌

विदिताद‌ अनयदव हि। विदित

नाम यहदििदिकरिययातिशयनाए

"वह विदितस अनय ही ह और अविदितस भी पर ह ।' यहा जिस परकरणगरापत ओतरादिक शरोतरादि और उनक अविषय बरहमका उलछख किया

गया ह वह विदितस अनय- परथक‌ ही ह। चदन-करियास अतयनत

वयापत अरथात‌ वदन-करियाकी करम-

भत जो कछ [नामरपातमक]

वाकय-माषय

तवम‌ । यो दि जञाता स एव सः ५ |

सरवामकतवात‌। अतः सरवातमनो

जञातशाचनतरासावादविदितादनय-

तवम‌। “'स वतति वदय न च

(दव उ०

2 । १९) इति च मनतरवरणात‌।

' “विजञातायमर कन विजानीयात‌,

(ब० उ० २१४ १४) इति च

तसयासति वतता

वाजसनयक । अपिच वयकतमव

विदित तसमादनयदितयभिपरायः ।

यहिदित वयकत तदलयविषय-

तवादचप सविसध ततोऽनितयमत

-पवानकतवादटयदधमत एव तदवि-

कषण बहम ति सिदधम‌ ।

जो कोई मी उसको जाननवाला ह वह सवय वही ह, कयोकि बरहम सरवातमक ह । अतः सबक आतमारप उस जञाताक सिवा अनय जञाताका अभाव होनक कारण वह, जितना कछ जाना जाता ह उसस भिनन ह;

जसा कि मनतरवरण भी कहता ह-- “बह समपरण जञवको जानता ह तथा उसका जञाता और कोई नही ह” तथा वाजसनय-शरतिम भी कदा ह-- “अर ] उस विजञाताको किसस जान £

इसक सिवा वयकतको ही विदित कहा

गया ह, उसस भिनन [यानी अबयकत] ह यही इस [ अनयदव विदितात‌ ] का तातपरय ह जो विदित अरथात‌ वयकत होता ह वह दसरका विषय होनक कारण असप और सविरोध होता ह ऐसा होनस अनितय होता ह; अतः अनक होनक कारण अशर भी होता ह; इसलिय सिदध हआ कि वरहम उसस भिनन परकारकादीह।

कनोपनिषद‌ [ खणड श‌ बकर बकिटटिक ह वयाईएिट ४० नई 27220 चवाए ०-2 नय222%- 3 , फ,

पद-भाषय

३६

विदिकरियाकमभत

किशवितकसपचिदविदित सयादिति

सरवभव वयाकत विदितमव;

तसतादनयदवतयथः । अविदितमजञात तदीति परापत

आह--अथो अपि अविदिताद‌

करचित‌ | वसत कही-न-कही किसी-न-किसी- दिति। को जञात ह उसीको 'विदित' कहत

ह। अतः समपरण वयाकत वसत धविदित' ही ह। उस [विदित वसत] स बरहम परथक‌ ही ह---यह इसका तातपय ह ।

तो फिर बरहम अजञात ह--ऐसा गरापत होनपर कहत ह---“वह

अधिदित---बिदितस विपरीत वयाकत विदितविपरीतादवयाकताबिदया- | पदारथोकी बीजभत अविदयारप

वाकय-सराषय

तदयचिदितम‌ ।

न; विजञानानपकषतवात‌। यदधय-

विदित तदधिशाना- पकषम‌ अचविदित- विजञानाय हि छोक- परचचतिः | इद त

विजञानानप कष। कसमात‌. ? विजञान-

जहमणः

सवीय परकाशन

अनयानपकषतवम‌

सवरपतवात‌ । न हि यसय यतखरप

तततनानयतोऽपशचयत । न च खत |

एवापकषा अनपशचमव खिदध-

तवाच‌। परदीपः खरपाभिवयकतौ

न भरकाञशानतरमनयतोऽपशचत

सखती वा । यदधयनपशध ततखत

पव सिदधम‌ परकाशातमकतवात‌

पय°-तो फिर बरहम अजञात हआ १

सिदधानती-नही; कयोकि उस विजञान (जञात होन) की अपकषा नही ह । जो वसत अजञात होती ह उसक विजञान- की अपकषा हआ करती ह। अजञात वसतको जाननक लिय ही समपरण लोकोकी परवतति ह; किनत बरहमको अपन विजञानकी अपकषा नदी ह; कयौ १ कयोकि वह विजञानखरप ही ह । जिसका जो खरप होता ह वह उसीकी दसरस अपकषा नही रखता ओर अपनस तो अपकषा हआ ही नही करती, कयोकि अपना-आप तो सिदध (आरापत ) होनक कारण अपकषास रहित ही ह। दीपक अपन खरपकी अमिवयकतिक लिय अपनस अथवा किसी अनयस गरकाशानतरकी अपकषा नही रखता । इस परकार जो अपकषा नही रखता वह खतः सिदध ही ह । दीपक परकाशखरप ही ह; अतः अपन खरपकी अभिवयकतिक लिय

परदोपसयापकषितो5पयनरथकः सयात‌; | यदि वह परकादानतरकी अपकषा कर रन

खणड १ ] शाइरमाषयाथ ३७

हि ता चका ~ प -- चाय - ~ प = ~ ह ~ क - ~ व "ारप23-"आरडि2क‍७-००४५८०४७०

पद‌-भमाषय

लकषणादयाकतवीजात‌, अथि | अवयाकतस भी अचि! ह अधि! का

इति उपयरथ, लकषणया अनयद‌ इतयरथः । यदवि थखादधि उपरि

भवति, तततसादनयदिति

परसिदधम‌ ।

अरथ ऊपर होता ह; परनत लकषणास

इसका अरथ (अनयः करना चाहिय,

कयोकि जो वसत जिसस अधि---

ऊपर होती ह बह उसस अनय हआ

| करती ह---यह परसिदध ही ह ।

५ चाकय-भषय

भकार विशषाभावात‌ । न हि |

परदीपसय खरपाभिवयकती घदीप-

परकाशोषथवान‌। न चवमातम-

नोऽनयतर विजञानमसति. यन

स रपविजञानऽपयपशषयत ।

विरोध इति वननानयतवात‌ ।

सवरपविकञान विजञानखरपतवाद‌

विजञानानतर नापकषत इतय तदसत‌।

दयत हि विपरीतजञानमातमनि

समयगजञान च । न जानामयातमा-

नमिति । शरतशच “ततवमसि”

(छा० उ० ६ ८-१६) “आतमा-

नमवावत‌ (व° ड० १।४।९१०)

तो वयरथ टी होगा, कयोकि परकाशस कोई विशषता नदी हआ करती । एक टीपकक सवरपकी अमिवयकतिम किसी

अनय दीपकका परकाश सारथक नटी होता | इसी परकार आतमास भिनन ऐसा कोई विजञान नही ह जो उसक

सरपका जञान करानक लिय

अपकषित हो !

यदि कहो कि इसस विरोध परतीत

होता ह तो ऐसा कहना ठीक नही; कयोकि [ आतमा ] इसस भिनन ह ।

परव ०-तमन जो कहा कि आतमा

विजानसवरप ह, इसलिय उसक

सवरपको जाननम किसी अनय विजञान-

की अपकषा नही ह--सो ठीक नही) कयोकि आतमाम मी विपरीत जञान

और समयक‌ जान होता दखा ही जाता ह; जसा कि “म आतमाको नही जानता” इतयादि कथनस तथा “त बह

(वरहम ) ह? “आतमाको ही जाना?

३८ 5 कनोपनिपद‌ [ खणड १ निका टिम नि किक न 9 नि टिक गिक,

पद-साषय

यदविदित तदल मतय हःखा- बरण तमक चति हयम‌ ॥

मतमभितरतव- तखादिदितादनयहदय अतिपादनस‌ इतयकत तवहयतवयकत

सयात‌ ! तथा अविदितादधि इतकतऽखपादयतवशकत' सयात‌ ।

जो वसत विदित होती ह वह अलप, मरणशील एव द:खमयी होती

ह, इसलिय वह हय (तयाजय) ह । बरहम उस विदित वसतस भिन ह-- ऐसा कहनस उसका अहयतव वतलया गया | तथा "वह अविदित-

स भी ऊपर ह! ऐसा कहनपर उसका अनपादयतव परतिपादन किया गया |

चाकय-भाषय

= ड५ ७. ऋ क क 2

“यत व तमातमान विदितवा | “उस इस आतमाको निशचयपरवक जान-

(जर० उ० ३५१) इतिच ।

सव ज शरतिषवातमविजञान विजञा-

नानतरापशचतव ददयत । तसपात‌

पतयकषशरतिविरोध इति चत‌ । न; कसमात‌ १ अनयो हि ख

आतमा बदधवादिकायकरणसहग-

ताभिमानसखनतानाचिचछ र

ऽविवकातमको बदधयवभासपरथानः [प

चशचरादिकरणो नितयचितखर-

पाचमानतःसारो यतरानितय विजञानम‌

अवभासत । वौदधशरतययानाम‌ आ-

विमावतिरोमावधघरमकतवाततदधम-

कर” आदि शरतियोस सिदध होता ह । शरतियोम आतमाक जञानक लिय सरवव

ही विजञानानतरकी अपकषा दखी जाती

ह । इसलिय [ उपयकत कथनका ] परतयकष ही शरतिसि विरोध ह ।

सिदधानती-ऐसा कहना ठीक नही ]

कयो ! कयोकि बदधि आदि काय और करणक सघातम जो अमिमान ह उसकी परमपराका विचछद न होना ही जिसका

लकषण ह, नितय चितखरप आतमा ही जिसका आनतरिक सार ह और जिसम

अनितय चिननानका अवभास हआ

करता ह बह अविवकातमकः चिदाभास-

परधान तथा चकष आदि करणोवाल आतमा ( जीवातमा ) [ शदध चतनस | भिनन ही ह | बौदध मरतीतियोका आविरभाव-तिरोभाव उसका धरम ह; अतः अपन उस धरमक कारण वह उस-

तथव विलकषणमपि चाघमाखत । | स यक‌ दिखलायी भी दता ह।

खणड १ ] शाहलरभाषयाथ ३९

बकॉरट कर षा ~ 5 ५ त नए: 2:00%- चाई डक नककिटिआक-

पद-भाषय

कारयाथ हि कारणमनयदनयन

उपादीयत । अतशच न वदितः

अनयसम परयोजनायानयदपादय

भवतीति । एव विदताविदिता-

हयोपादय

अरतिषधन सवातमनोऽननयसवाद‌

भयामनयदिति

बरकमविषया जिजञासा शिषयसय

किसी कारयक लिय ही किसी अनय

परषदवारा एक अनय कारण यानी

साधनको गरहण किया जाता ह; अतः वतता (आतमा ) को किसी अनय

परयोजनक लिय कोई अनय साधन

उपादय नही ह | इस परकार वह विदित और अविदित दोनोस भिनन

द इस कथनदवारा हय ओर उपादयका परतिपध कर दिया जान-

स [जञय वसत] अपन आतमास

अभिन सिदध होनक कारण शिषयकी

बरहमविषयक जिजञासा परण हो जाती

चाकय-सापव

अनतःकरणसय मनसोऽपि मनोऽनतमतसवाससरवानतरशतः । अनतगतन नितयविकञानखरपण आकाशवदपरचलधितातमनानतरगरस- भतन वादयो बदधघातमा तदविलकषणः अचिरभिरिवाचिः अतययसाचि- भौवतिरोभावधरमकरचिजञानाभास-

रपरनितयविजञान आतमा सखी डखीतयभयपगतो. रौकिकीः । अतोऽनयो नितयविजञनखरपादा-

तमनः! तनन हि विजञानापकषा विप-

[किनत वह झद चतन तो] {आमा सरवानतर ह? ऐसा वतलान- वाली शरतिक अनसार अनतःकरण यानी मनका भी मन ह | उस अनतरगत; नितयविानखरप आकाशक समान अविचल और अनतरगरमभत चिदातमास बाहय और विरलण अनितय विशानवान‌ विजञानातमा ही; आविरभा ब-तिरोभाव धमवाल विजञानामासरप अनितय अतययोक कारण कौकिक परपोदवारा आतमा सखी-ढःखी ह--ऐसा माना जाता ह, जस जवाछाओक कारण अमि | अतः यह नितयविजञानखरप आतमा-

स भिनन ह। उसीम विजञानकी अपकषा रीतजञानतव चोपपचयत न पन- | तथा विपरीत जञानतवकी समभावना ह-- नितयविजञान । नितयचिजञानखरप चिदातमाम नही ।

ड० कनोपनिषद‌ [ खणड ₹

0, स वयई<८22% वय 32% नह: 22:2७ "कई ८2% चर आक- पयईए 22%-ववि3,

पद-भाषय

निरवतिता सयात‌ । न हयनयसय | ह, कयोकि अपन आतमास भिन सवातमनो विदिताबिदिताभयाम‌ | ओर

० अच।दत दान नन हाना समभव अनयतव वसतनः सममवसीतयारमा | = 2 ा समभव रयसय ९, ८६ नही ह | अतः आतमा ही बरहम

ष वाकयारथः; “अयमातमा | ह. यह इस वाकयकरा अरथ ह |

जडा" (माणड० २) “य आतमा- | यही बात “यह आतमा बरहम ह?

पहतपापमा,' (छा० उ०८।७१) | “जो आतमा पापस रहित ह” चवाकय-भाषय

तवमसीति वोधोपदशचो न ह पव°-[ ऐसा माननस तो] 99 तः

उपपदयत इति चत‌। “आतमानम- अवध मी ह ह

चावत‌” (च० उ० १॥४। १०) | “अपन आसमाकी ही जाना [ कि म हि __ | बह ह | इतयादि वाकय ही सारथक

इतयवमादीनि च नितयवोधातम- हो सकत ह--कयोकि नहय तो नितय-

कतवात‌ । न यादितयोऽनयन | बोधसवरप ह } सय दसरस परकाशित ध ६ कमी नटी हो सकता | इसलिय

परकाइयत5तसतदथबोधोपदशः | आतमाक विषयम शञानका उपदश अनरथक इति चत‌। करना वयरथ ही होगा ।

न; छोकाधयारोपापोहारथतवात‌। |. सिदधानदी-ऐसी बात नही ह, कयोकि तमनि हि नितय: वह उपदश लछोगोदवारा किय हए

वोधोपदशसय सरवातमनि हि नितय- | अधयारोपकी निदततिक लिय ह। अधयास- विजञान चदधीदयनितय- | कोगोन आतमतततवक अजञानवश उस निरासारथतवम‌ 2 नितयविजानसवरप सरवातमापर बदधि

धरमो छोकरधया- व घरमोका आरोप किया सषि विवकतसतदपो- | इमा द । उसकी निदनततिक लिय ही

ता आतमाविवकतसतदपो- | उल जञानसवरपक जञानका उपदश क नप ६5

हाथो बोधोपदशो बोधातमनः॥ | किया जाता ह।

तज च वोधावोधौ लमञजसौ, | तथा उस बोधसवरपम बोध और अबोध समीचीन भी ह, कयोकि जस

अनयनिमितततवाददक इवौषणयम‌ | अमिक कारण जलम उषणता रहती ह

खणड १ ] शाइरमाषयाथ ४१

न - + य < ~ ह 720, व व थ या 2स‍७ "किट 2 नाक: कक आई कि पक [ < कक

अद-भाषय

““तसाकषादपरोकषाहरहम + ( थ० | “जो साकषात‌ अपरोकषरपस बरहम ही

.उ० ३।४। १) “य आतमा | ह” “जो आतमा सरवानतर ह” इतयादि

सरवानतरः” (द° उ० ३।४। १) | अनय शरतियोस भी परमाणित

इतयादिशरतयनतरमयशरति । होती ह |

वाकय-भाषय

अजशिनिमिततम/राजयहनी इचादितय- तथा सरयक कारण दिन और रात

निमितत। छोक नितयावोषणय-

परकाशावगनयादितययोरनयतरभावा

भावयोनिमितततवादनितयाविच

डपचरयत। चशयतयचनिः परकाश-

यिषयति सवितति तछत‌। पव

च सखदःखवसधमोकछायघयारोपो

खोकसय तदपकषय तचवमसयतमा-

नमवाचदिवयातमाववोधोपदरयन

शरतयः कवरमधयासपापोदारथाः।

यथा खबितालोौ धकाशयतति

आतमानम‌ इति बदयणो विदिता- तदत‌, वोधावोध-

विदितासया- जा मनयतवम‌ कठतव च नितय-

चोधातमनि । तसमात‌-

` अनयदविदितात‌ ) अधिदाबदशच

अनयारथ । यदधा यदधि यसयायि

हआ करत ह; बस ही उनका कारण भी अनय ( आरोपित धम) ही ह। उषणता और परकाश--य अगनि और सक तो नितय-घरम ह, किनत लोकम अनयतर अपन भाव ओर

अमावक कारण व अनितयवत‌ उपचरित होत ह; जस--'अमि जला दगा, धयथ परकाशित करगा! इतयादि वाकयोम, वस ही [ आतमाक विधयम समझना चाहिय ]। इस परकार छोकका जो सख-दःख एव वनध-मोकषरप

अधयारोप ह उसकी अपनास ही “तततवमसि! “आतमानमवावत‌ इतयादि शरतिया आतमजानक उपदशस कवल अधयारोपकी निदततिक चि ही ह ।

जिस परकार “यह यय जपन-आपको परकाशित करता ह? [ इस वाकयस पकामसवरप सरयम गरकाणकतवका उललख किया जाता ह ] उसी परकार नितयवोधखरप आतमास भी जान ओर अजञानका करततव माना गया ह। इसलिय वह अविदित ( अजञात) स

भी अनय ह। यहा "अधिः शबद “अनय! अरथम ह। अथवा जो जिसस अधि

४२ कनोपनिषद‌ [ खणडश कर: बयाह ०८2%- ५3:20. ~ नया 5220०

पद-भाषय

एव सरवातमनः सरव विरष- चिनमातरजयोतिषो | रहित चिनमातरजयोतिःखरप वसतका रहितसय

इस परकार सौतमा सरवविरोप-

बरहमतवपरतिपादकसय वाकयाथसय | बरहमत परतिपादन करनवाल वाकयारथ-

चाकय-भाषय

ततततोऽनयतसामरधयीत‌ ) यथाधि

भतयादीना राजञा । अनयकतमव

अविदित ततोऽनयदितयरथः।

विदितमविदित च वयकतावयकत

कारयकारणतवन विकदिपत

ताभयामनयदहय विजञानखरप

सवविरोषपरसयसतमितम‌ इतयय

समदायारथः । अत एवातमतवानन

दव उपादयो वा | अनयदधयनयन

दयसपदिय वा । न तनव

तयसय कसयचिदधयसपादय वा

भवति । आतमा च हय सवानत-

रातमतवादविषयमतोऽनयसयापिन

_ ~~ ~~~ ~~~ ~~

(ऊपर ) होता ह वह उसस अनय ही हआ करता ह; कयोकि उस शबदकी शकतिस यही बोध होता ह; जिस परकार सवक आदिस ऊपर राजा ।* अवयकत ही अविदित ह, उसस यह आतमा पथक‌ ह--यही इसका तातपय ह।

विदित और अविदित यानी वयकत और अवयकत ही करमशः कारय तथा कारणभावस मान गय ह उनस भिनन वह बरहय ह जो समपरण विगषणोस रहितविजञानसवरप ह---यह इस समसत वाकयसमदायका तातपय ह। अतः आतमसखरप होनक कारण यह तयाजय या गराहय भी नही ह। अनय वसत ही किसी अनयकी तयाजय या गराहय हआ करती ह; सवय आप ही अपनी कोई भी वसत हय या उपादय नही होती) आतमा ही बरहम ह और सवका अनतरयामी होनस वह किसी इनदरियका विषय भी नही ह | इसलिय वह किसी _अनयका मी हय या उपादय नही ह । इसक. सिवा आतमास भिनन कोई और

वसत न होनक कारण भी [ वह दयसपादय चा। अनयाभावाशच | । हयोपादयरहित ह ]।

१. जिस परकार सवकोक ऊपर होनक कारण राजा उनस भिनन ह उसी परकार

अविदितस ऊपर होनक कारण आतमा उसस भिनन ह ।

खणड १ ] शाडरभाषयाथ डर

बपट 2 नाप 9 बय>:220 चिट.

पद-मणय

आचारथोपदशपरमपरया तवमाह--इति झशरमतयादि । जरहमच एवमाचारयोपदशपरमपरथा

एवाधिगनतवय न तकतः परवचन-

मधावहशरततयोयजञादिभयथःइति एव शशरम शरतवनतो वय परव- पाम‌ आचारयाणा वचनम‌; य

परापत | का ति झशनम परवपाम‌ इतयादि वाकयदवारा आचायकि उपदशकी

परमपरास परापत होना दिखाया गया ह। इस परकार बह बरहम आचारयोकी उपदश-परमपरास ही जञातवय ह, तकस अथवा परवचन, मधा, बहशरत, तप एव यजञादिस नही---ऐसा हमन

परववरती आचारयोका वचन सना ह । आचारयाः नः असभय तद बरहम | जिन आचायोन हमार परति उस जयाचचकषिर वयाखयातवनतः बरहमका वयासयान--सपषट कथन

चाकय-भाषय

इति शशरम परवषामितयागमो-

पदशः । वयाचच- यथोकतसय आपत

आमाणिकतवम‌ तिर इतयसातननय

तरकपरतिषधारथम‌ाय

नसतदरहलोकतवनतसत नितयमचागरम

बरहमपरतिपादक वयाखयातवनतो

न पनः खबदधिभभवण तकण

उकतवनत इतयागमपारमपय-

विचछद दशयति विदयासततय ।

, तकरतवनचसथितो आानतोऽपि

भवतीति ॥ ३॥

(इति झशनमपरवधराम! ( यह हमन परव आचाय क सहस खना ह ) ऐसा कहकर यह दिखलात ह कि यह [ परमपरागत ] शासतरका उपदश ह । हमस [ शासतरीय मतका ] वयाखयान किया था [ यह उनकी सवतनतर कलपना नही ह] ऐसा कहकर जो उन आचारयोकी असतनवता दिखलायी ह वह तकका परतिषध करनक लिय ह; जिनहोन हमस उस बरहमका वरणन किया था । अरथात‌ उनहोन बरहम का परति- पादन करनवाल नितय आगमका ही

वयाखयान करक बतछाया था अपनी

बदधिस ही परकट हए; तकदवार नही कहा। इस परकार जानकी सवतिक लिय शासतरपरमपराका अविचछद दिखलाया ह, कयोकि तक तो अनवसथित और मअरमपरण भी होता ह ॥ ३ ॥

“““-090:42950०---

छ कनोपनिषद‌ [ खणड १ बॉ, नम 2 कर रपट नाई नि ट डक गाए वाई किट: 0 3 3 बक+2:%.

पदनभाषय

विसपषट कथितवनतः, तषाम‌ | किया था, उनक [बचनस हम उस जानना चाहिय] यह इसका तातपरय ह॥ ३}

इद इतयरथः ॥१॥

अनयदव तदविदितादथो

अविदितादधि, इतयनन वाकयन

आतमा बरहति परतिपादित

रोतराशङका जाता-कथ नवातमा

बरहम । आतमा हि नामाधिकतः

कमणयपासन च ससारी करमो- पासन वा साधनमलषठाय बहमादि-

दवानसवभ वा परापतमिचछति ।

तततसादनय उपासथो विषण

रीशवर इनदरः पराणो वा बहम

भवितमरहति, न सवारमा; लोक-

शरतथयविरोधात‌ । यथानय तारकिका ईशवरादनय आतमा

इतयाचकषत, तथा करमिणोडस

यजा यजरयनया एव दवता

उपासत । तसायकत यददिदित-

मपासय तदह भवत‌ ततोऽनय

उपासक इति । तामतामाशडा

शिषयलिजजनोपलकषय तदवाकयादरा

आह-मव सङिषठाः,

"वह विदितस अनय ह और अविदितस भी ऊपर ह" इस चाकय- दवारा आतमा ही बरहम ह--ऐसा परतिपादन किय जानपर शरोताको यह शका छई---आतमा किस परकार तरहम ह ? आतमा तो कम और उपासनाम अविकत ससारी जीवको कहत ह, जो करम या उपासनारप साधनका अनषठान कर बरहमा आदि दवताओ अथवा सवरगको गरापत करना चाहता ह । अतः उसस भिनन उसका उपासय विषण ईशर, इनदर अथवा पराण ही नहय होना चाहिय---आतमा नही, कयोकि यह बात ललक-विशवासक विरदध ह । जिस परकार अनय , तारकिक लोग आतमाको इशवरस भिनन बतटात ह उसी परकार करम- काणडी भी इसका यजन करो- इसका यजन करो' इस परकार अनय दवताकी ही उपासना करत ह । अतः उचित यही ह कि जो उपासय विदित ह वह बरहम हयो ओर उसस भिनन उसका उपासक हो । शिषयक वयाज अथवा उसक वाकयस उसकी इस आशकाको उपलकषित कर कहत ह:--ऐसी शका मत करो,

खणड १ |] छाङकरभाषयारथ ४५,

सम [< „<

बरहम चायादिस अतीत और अनपासय ह

यदवाचानभयदित यन वागमयदयत ।

तदव बरहम तव विदि नद यदिदमपासत ॥ ४ ॥

जो वाणीस परकाशित नदी ह, किनत जिसस वाणी परकाशित होती

ह उसीको त‌ बरहम जान; जिस इस [ दशकालावचछिनन वसत ] की छोक

उपासना करता ह वह बरहम नही ह |) ४ ॥

पटद‌-भापय

यत‌ चतनयमातरसतताकम) | जो चतनयसतताखरप बरहम वाणी-

वाचा वागिति = स(अपरकाशित ह] निहामछ आदि आठ सथानोम# आशरित तथा अपलि-

किए 0 वानाम‌ दवतास अधिषठित वरणोको अभिवयकत अभिवयजञक करणम‌ वरणाशरार- | करनवाडी व अकत सङकतपरिचछिना एतावनत एव | परिचछिन और इतन तथा इस करमपरयकता इति; एव तद- ऋमस † परयकत होनवाल ह, ऐस

चाकय-भाषय

यदवाचा इति मनजायवादो धयदवाचाः इतयादि मनतरोका उललख

आतमततवकी ददगरतीतिक लिय किया

गया ह। “वह विदितस भिनन ह! ऐसा

जो झासतरका तातपरय इस बरादमण-अनथन माहमणोकतोडसयच दवढिसत मनता | ऊपर कहा ह उसकी पषटिक लिय दी. यदधाचतयादयः पचयनत । य धयदवाचा! इतयादि मनतर पड जात ह।

इढपरतीतः । अनयदव तदधि

वितादिति योऽयमागमारथो

# जिहामल,हदय, कणट, मधौ, दनत, नासिका, ओएछ और ताल ।

| यह मीमासकॉका मत ह, जस (गौ. यह पद गकार, औकार तथा विसग-- इस करमविशषस अवचछिनन वरणरप ही ह +

४६ कनोपनिषद‌ [ खणड १ [ कनया फिट कनया सट नयाय) कक भाई कक आम या 5८236 वया ८2% वय>2७ ५०:23 ~ वयापक

पद-भाषय

भिवयदभय: शबद) पद वागिति

उचयत;“अकारो च सरवा वाकसषा

सपशानतसथोषमभिवयजयमाना

बहवी नानारपा भवति

(ऐ० आ०२।३।७। १३) इति

शरतः ।

सतयानत एष विकार यखासतया

मितममित सवरः

नियमवाङ वरण 'वाक कह जाति ह | तथा उनस अभिवयकत होनवाढा

चबद भी पद या वा! कहा जाता ह । शरति कहती ह--- “अकार* ही समप वाक‌ ह, और यह वाक‌ ही अपन सपश अनतसथ और ऊरम आदि भदोस अभिवयकत होकर

अनक रपवाली हो जाती ह।” इस परकार मिरत अमित खर एव सतय और मिधया-य जिसक विकार

वाकय-साषय

यदभहय वाचा शबदनानभयदितम‌

अनभयकतमभरकाशितमिवयतत‌ +

यन वागभयदयत इति वाकपरकाश-

दततवोकतिः! यन अकादयत इति

चाचोडमिधानसथामिधय परकाश-

कतवसय हततवमचयत तरहमणः

जो बरहम वाणीस अरथात‌ शबदस अनमबदितत--अनकत अरथात‌ अपरकाशित ह । और जिसस वाणी अभयदित होती ह--ऐसा कहकर उस वाणीक भकाग- का हत बतछाया ह! “जिसस वाणी परकाशित होती हः ऐसा कहकर वाणीक अभिधान (उचचारण) क अभिधय ( वाचय) को परकादिित करनम बरहमको हत बतलाया ह [अरथात‌ यह दिखलाया ह कि वाणीम जो अरथको अभिवयजञित करनका सामथय ह वह बहमका ही ह ] |

# अकर परधान उ>कारस उपलकषित सफोट नामक चिचछाकति

१. कस म तक सभी वभ! र.यररव)९. शप सतह ।४. जिनक पादका

अनत नियत अकषरोवाला ह उन वाकयोको मित ( ऋगवद ) कइत ह ५. जिनक पादका अनत नियत अकषरॉवाला नही ह उन वाकयोको अमित ( यजरवद ) कहत ह ६. गायन-

भधान सामवद “सवर” कहलाता द ।

सखणड १ | शादकरभाषयारथ ७७

बॉल = ० 2 ~ 2

पद‌-भाषय

चाचा पदतवन परिचछिनना

करणगणवतया--अनभयदितम‌

अपरकाशितमनभयकतम‌ ।

यन बरहमणा विवकितऽथ

सकरणा वाक‌ अभयदयत चतनय- ।

जयोतिषा परकाशयत परयजयत

इतयतदरदयाचो ह वागिसयकतम‌,

“वदनवा‌" (छ० उ० १।

४।७ ) “यो वाचमनतरो यम- यति” (च ०उ० ३ ७! १७) इतयादि च षाजसनयक । “या

वाक‌ परषष सा धोपष परतिषटिता

ह उस पदरपस परिचछिन एव वागिनदियरप गणवाखी वाणीस जो अनभयदित--अपरकाशित अरथात‌ नही कहा गया ह--

बलकि जिस बरहमक दवारा बागिनदरिसहचित वाणी विचकषित

, अरथम बोली जाती अरथात‌ अपन चतनय-जयोतिःखरपस परकाशित

यानी परयकत की जाती ह, जो वाणीकी वाणी ह! इस परकार

वतलाया गया ह [जिसक विपयम]

वहदारणयकरोपनिपदम “बोठनक कारण वाणी ह” ““जो भीतरस वाणी-

का नियमन करताह” इतयादि कहा

ह, तथा “चतन गराणियोम जो बाणी (वाकशकति) ह वह घोपो (वणो म

चाकय-भाषय

ˆ उकत च कनपिता वाचमिमा

चदनति यदवाचो ह वाचमिति।

सदव बह सव विदधीतयविपयतवन

हमण आतमनयवसथापनारथ

आचनायः । यदधाचानभयदित

खाकधकादानिमितत चति जहा

णोऽचिपयतवन घसतवनतरजिघकषा

ऊपर “लोग किसकी पररणास इस वाणीको बोलत ह? इस परशनक उततरम धजो वाणीका वाणी ह? इतयादि कहा भीजा चका ह। “त उसीको बरहम जान! यह आगम बरहममो अविषय- रपस बदधिम बिठानक लिय ह। “जो वाणीस परकट नही होता बलकि वाणीक परकाशित होनका हत ह! इस कथनस बरहमका अविषयतव सिदध करता हआ शझाजर परषको अनय वसतक गरहण करनकी इचछास

डद कनोपनिषद‌ ~ वरक...

[ खणड १

पद-भाषय

कथितता यद‌ बराहमण” इति परशषमतपाथ रतिवचनकतम‌ “सा वामयया सवम भाषतः" इति। सा हि वकवकतिनितया वाक‌ चतनयजयोतिःसवरपा, “न हि वकतरवकतरविपरिरोपो विदयत” (ब० 3० ४ | ३। २६ ) इति शरतः |

तदव आतमसवरप जहय

निरतिशय भमाखय बहचचाद‌ बरहमति विदवि विजानीहि सवम‌ । यरवागादयपाधिभिरवाचो ह वाक‌ चकषषशवचः शरोतर शरोतर मनसो

मनः; करता मोकता विजञाता नियनता गरशासिता विजञान- माननद बरहम इतयवमादयः

वयवहारा असवयवहार नि-

विशष पर सामय बरहमणि परबतनत

सथित ह, उस कोई बरहमवतता ही जानता ह” इस परकार परशन उठा- कर यह उततर दिया ह कि “जिसक दवारा जीव खपतम बोलता ह वह वाक‌ ह” वकताकी वह निःय वाचन शकतिही चतनय-जयोतिःखरप वाक ह जसा कि “वकताकी वाचन- शकतिका रप कमी नही होता” इस शरनिस सिदध होता द ।

उस आतमखरपको ही त‌. चहत‌ होनक कारण वरहम यानी भमा-

सक सरवोतकषट बरहम जान | जिनवाक‌ _ आदि उपाधियोक कारण, वाणीका

^ | वाणी, चकषका चकष , शरोतरका शरोतर, मनका मन, करता, मोकता, विजञाता, नियनता, शासनकरता, तथा बरहम

विजञान और आननदखरप ह--- इतयादि परकारक वयवहार उस

अबयवहाय निरविशष सरबोतकषट समखरप बरहमम परवतत होत ह,

चाकय-भाषय

निवतय खातमनयचावसथापयति

आमरायसतदव बहय तव विदधीति

यललत उपरमयति | नदमितयपा-

सयपरतिचधाच ॥ ४॥

निवतत करक अपन आतमखरपम ही जोडता ह और 'उसीको त बरहम जानः इस वाकयदवारा वह उस अनय परयस उपरत करता ह तथा ननद यदिद- मपासत! इस कथनस भी बरहमका उपासयतव निषध करनक कारण [ वह अनय सब ओरस उस निदतत करता ह ] ॥ ४॥

खणड १ ] शाइरभाषयारथ ४९.

नजा विकि > कि निक

परद-भाषय

तानवयदसथ आतमानमव - नि-

विरष बरहम विदधीति एवशबदाथ।

नद बरहम यदिदम‌ इतयपाधिभद-

विशिषटमनातमशवरादि उपासत

धयायनति । तदव बह तव विदधि

इतयकतऽपि नद ह इतयनातम-

नोऽहमतव पनरचयत नियमारथम‌

अनयतरहमदधिपरिसखयानाथ

बा ॥४॥

उन सब उपाधियौका बाधकर अपन

निरविशष आतमाको ही बरहम जान--- यही 'एव' शबदका अरथ ह जिस

इस उपाधिविशिषट अनातमा ईशवरादि- की उपासना--धयान करत ह यह

बरहम नही ह । 'उसीको ठ बरहम

जानः इतना कह दनपर भी

[* अनातमवसतम. बरहममावनाका

निषध हो ही जाता] पनः “यह

बहम नही ह! इस वाकयक दवारा जो अनातमाका अरहमतव परतिपादन

किया ह वह आतमाम ही बहम- बदधिका नियमन करनक छिय अथवा

अनय उपासय दवताओम बरहम-बदधि- की निवतति करनक लिय ह ॥४॥,

"69

यनमनसा न मयत यनाहमनो मतम‌ ।

तदव बरहम तव विधिः नद यदिदमपासत ॥ ५॥

जो मनस मनन नही किया जाता, वतकि जिसस मन मनन किया

इआ कहा जाता ह उसीको त‌ बरहम जान । जिस इस [ ददा-काटावचछिनन

वसत ] की लोक उपासना करता ह वह बरहम नही ह ! ५॥ @

६० कनोपनिषद‌ ` खणड १

पद-भाषय

यनमनसा न मदत; मन

इतयनतःकरण बदधिमनसोरकतवन

गहयत । मजतऽननति मनः सरव

करणसाधारणम‌, सरवविषय- वयापकतवात‌ । “कामः सङकसपो

विचिकितसा रदराशरदधा धतिर-

घतिहीधीरितयततसक. मन एव"

(ब० उ० १। ५१ ३) इति

शरतः कामादिदवततिमनमनः । तन

मनसा यत‌ चतनयजयोतिमनसः अवभासक न मनत न सङकलप-

यति नापि निशचिनोति लोकः,

मनसोऽवभासषकतवन नियनत‌-

तवात‌ । सरवयिपय परति परतय- गवति सवातमनि न परवततऽनतः- करणम‌ । अनतःसथन हि चतनय- लयोतिषावभासितसय मनसो

मननसामधयम‌ ; तन सदततिक

जिसका मनक दवारा मनन नही किया जाता; मन ओर‌ बदधिक एकतवरपस यदो मन शबदस अनतः- करणका गरहण किया जाता ह। जिसक दवारा मनन करत ह उस मन कहत ह; वह समसत इनदरियोक विपयोग वयापक होनक कारण सपपरण इनदरियोक लिय समान ह | “काम, सकलप, सशय, शरदधा, अशरदधा, घय, अधरय, खजा, बदधि - और भय---य सब मन ही ह” इस रतिक अनसार मन कामादि दततियोवाखा ह । उस मनक दवारा यह लोक जिस मनक परकाशक चतनयजयोतिका मनन---सकलप अथवा निशचय नही कर सकता, कयोकि मनका गरकाशक होनक कारण वह तो उसका नियामक

ह । आतमा सतर विपयोक परति परतयकरप (आनतरिक) ही ह; अतः उसम मन परदतत नदी हो सकता।

अपन भीतर सथित चतनयजयोतिस परकाशित हए मनम ही मनन करनका

सामरधय ह। उसक दवारा चततियकत हए वाकय-भषय

यनमनसा इतयादि समानम‌।

' भमनो मतसिति यन बरहमणा मनोऽपि

विषयीकत नितयविजञानखरपण

“यनमनसा? इतयादि अतियोका तातपय समान ही ह। पमन मनन किया जाता ह! अरथात‌ जिस नितय विजञानसवरप बरहमदवारा मन भी विषय

खणड १] शाइरभापयारथ ५९ ह य ~ ७ "किय बहा. ना. रप 22%, बा<22- वाई: बा 20- या 22७

पद-भाषय

सनो यन बरहमणा मत विषयीकत | मनको बरहमवतताोग जिस बरहमक वयापत‌ आहः कथयनति अदम- दवारा मत---विषयीकत अरथात‌ वयापत बिदः । तसात‌ तदव मनस बतलात ह;उस मनक परतयकचतयिता 22 0 आतमाको ही त‌ बरहम जान। नद आतमान भतयकचतयितार भकष (इतयादि वाकयकी वयाखया परववत‌

विदधि । नदमितयादि पवबत‌ ॥५॥ ५१ चाहिय ॥ ५॥

यचचकषषा न पशयति यन चकषषि परयति । तदव बरहम ल विदधि. नक यदधिददगघासत ॥ ६॥ जिस कोई नतरस नही दखता वलकि जिसकी सहायतास नतर

[ अपन विपयोको ] दखत ह उसोको त‌. बरहम जान । जिस इस [दश-

काटावचछिनन वसत ] की लोक उपासना करता ह वह बरहम नही ह ॥६॥ १ परद-भलनय

यत‌ चकषषा न पशयति न | लोक जिस अनतःकरणकौ इतति- स यकत नतरदवारा नही दखता अरथात‌ विपय नही करता किनत जिस

सयकतन लोकः, यन चकषपि चतनयआतमजयोतिक दवारा चकषओ ॥ सिभदभिजायश अरथात‌ अनतःकरणकी वततियोक

अनतःकरणदबवातत मदाभननाशरकष- भदस विभिनन हई---ननरनदरियकी

उततीः पशयति चतनयातम- | इततियोको दखता--विपय करता * जयोतिषा 8 यानो वयापत करता ह उसीको त. जयोतिपा विपयीकरोति वया- बरहम जान इतयादि परववत‌ समझना मोति | तददतयादि परववत‌ ॥६।। । चाहिय ॥६॥

वाकय-भापय इयतत‌ । सव करणानामविषयम‌, | किया जाता ह । जो सब इनदरियोका तानि च सवयापाराणि सचिपयाणि| अविपय ह और नितय विजञानसवरपस

नितयविननानखरपाचभासतया | अवभासित होनक कारण जिसस व

विषयीकरोति अनतःकरणवततिः

५२ कनोपनिषद‌ ८ [खणडश हा भ ० य

यचछरोतरण न शरणोति यन शरोतरमिद‌ शरतम‌ |

तदव बरहम तव विदिः नद यदिदमपासत} ७॥ जिस कोई कानस नही सनता बलकि जिसस यह शरोतरनदिय सनी

जाती ह उसीको ततरह जान, [जिस इस [ दशकाछातरचछिनन वसत ] की रोक उपासना करतो. ह वहः रहम नही ह ॥ ७॥

शय

लोक जिस मनोदरततिस यकत

आकाशक कारयभत तथा दिशा-

रप दवतास अधिषठित शरोतरनदरियदवारा -

नही सन सकता अथात‌ जिस शरोतरस विषय नही कर सकता,

यत‌ भोतरणः+ न' शणोति

दिगदवताधिषठितन ` -अकऋएफ

कारयण मनोहर 2

विषयीकरोति रोकः, यन शरीतरम‌ ८

02. जयोतिषा विषयीकत तदव | किया जाता ह वही वरहम ह] इतयादि इतयादि पएववत‌ ॥७॥ पववत‌ समझना चाहिय ॥ज।

न ९

यतमाणन न पराणिति यन पराणः परणीयत । तदव बरहम तव विदधि. नद यदिदमपासत ॥ ८ ॥ जो नासिकारनपरथ पराणक दवारा विपय नही किया जाता बलकि

जिसस पराण अपन विपयोकी ओर जाता ह उसीको त‌. बरहम जान । जिस इस [ दरकाखवचछिन वसत ] की छोक उपासना करता ह वह बरहम नही ह ॥ ८ ॥

घाकय-भाषय

यनावभासयनत इति शछोकारथ' । | सभी इनदरिया अपन वयापार और ; विपयोक सहित अवभासित होती ह--- ४८ मी ठ शव कतरी तथा छतल यह इन मनतरोका तातपरय ह ¡ “तथा

परकाशयति” ( गीता १३६ । ३३ ) / भच समपरण कषतरको परकाशित करता

खणड १ ] ॥ चछाङकरभाषयारथ । ५३ [` ~ 9 नई टिक नया ज: 2 ० 4 व (मय कर 8 एलियि पक

पद-भाषय

यत‌ पराणन घराणन पारथिवन | अनतःकरणकी और पराणकौ ४ रवखितनानतः वततियोक सहित नासिकारनधमसित नासिकापटानतरवखितनानतः कत ण दागी

करणपराणचरततिभया सहितन यनन |. दारा जो पराणन अथात‌ गनध- ५ ठ यकत वसतओको विपय नही करता,

पराणिति गनधवम ध नधवन‌ विषयीकरोति वतकि जिस चतनयआममजयोतिस

यन चतनयातमजयोतिषावभासथ- | परकाशयरपस पराण अपन विपयकी ओर परवतत किया जाता ह. वही

8 ५ हा" ह कतयादि दोप सव अथ पहल-

यत तदवतयाद सच समानम‌ ॥८॥. हीक समान ह॥ ८ ॥

इति परथमः खणडः ॥१॥

[5

वाकय-भाषय

. सवन सवविषय परति पराणः परणी

इति सतः । “तसय भाखा” | ह” इस समतिस और “उसक तजस ( म० उ० २।२।१०) इति | [ यह सब परकाशित ह |» इस आथरवणी चाथवण | यन पराण इति करिया- | शतिस भी यही परमाणित होता ह

निमिततसय 'यन पराणः" इस शरतिका यह तातपरय ह शकतिरपयातमविजञाननिमितततय- क करियाशकति भी आतमविजञानक ततर‌ ॥५॥ ६॥ ॥ ७॥ ॥ <॥ कारण ही परदतत होती ह ॥ ५-८ ॥ +--+००:-७::०६००----

इति पथमः खणडः ॥ १॥

ट कनोपनिपद‌ [ खणडय

व ~ 0 १ + य या

[40० _ (>

दिलीय शकणड ->०*2+ 9 ०~--~

बरहमजनानकी अमिरववनयिता

पद-भाषय

एव हयोपादयविपरीतसतव-

मातमा बलति परतयायितः शिषयः

अहमव बरहमति सषट बदाहमिति

मा गरहणीयादिसयाशचयादाहाचायः

शिषपधदधिविचालनाथस---यदी- तयादि ।

ननविषटव स वदाहम‌ इति

निधिता परतिपततिः ।

सतयम‌? इषटा निशचिता भरति-

मवाणोओोघल पततिः; न हि स वदा-

दव. हमिति । यदधि वद

वसत विषयीभवति; ततसषठ

वदित शकयम‌, दादयमिव दगधम‌

अगनदगध न तवशनः सवरपमव ।

सवसथ हि बदितः सवातमा बरहमति सरववदानताना सनिथितोऽः। इह च तदव परतिपादित परशन-

इस परकार हयोपादयस विपरीत त. आतमा ही बरहम ह--ऐसी परतीति कराया हआ शिषय यह न समझ बठ कि शरहम म ही ह, ऐसा म उस अचछी तरह जानता ह इस अभिपरायसत उसकी बदधिको [शस निशचरस ] विचदटित करनक ढिय आचारयन यदि मनयस इतयादि कहा।

परव ०--म उस अचछी तरह जानता ह--ऐसा निशचित जञान तो इषट ही ह ।

तिदधानता---ठीक ह, निशचित जञान तो अवदय इ ही ह, परनत ` (न उस अचछी तरह ,जानता ह ऐसा कथन इए नही ह । जो वव वसत वतताकी धिपय होती ह वही अचछी तरह जानी जा सकती ह; जिस परकार दहन करनवाल अगनि क दाहका विपय दादय पदाथ ही हो सकता ह उसका खरप नही हो सकता। बरहम समी जञाताओका आतमा (अपना-आप) ही ह! यह समसत वदानतोका भठीभोति निशचय _ किया हआ अरथ ह। यहा भी

खणड २ |] शाहडरभाषयाथ ५८ [ ~ व वा "काट परिटिक पट 3 बा 7229७: वॉर टि कक बहईटड- चपकि०७

पद-साषय

परतिवचनोकतया रोतरख शरोतरस

इतयाचया । “यदवाचानमयदितम‌'

इति च विरषतोऽवधारितम‌ ।

बरहमवितसमपदायनिशयशरोकतः

(अनयदव तदविदितादथो अबि-

दितादधि, इति । उपनयसतमप-

सहरिणयति च अविजञात वि-

जानता विजञातमविजानताम‌

इति तखादयकतमव शिषयसथ स

बदति बदधि निराकतम ।

न दि वदिता वदितरचदित

शकयः अगनिदगधरिव दःधममरः ।

“शरोतरसय शरोतरम‌ इतयादि परशनोततरो-

दवारा उसीका परतिपादन किया गया

ह | उसीको 'यददाचानमयदितम इस वाकयदवारा विशषरपस निशचय किया ह| "वह विदितस अनय ह. ओर अविदितस भी ऊपर ह” इस वाकयदवारा बरहमवतताओक समपरदाय- का निशचय भी बतखया गया ह तथा इस परकार उललख किय हए परकरणका “अविजञात विजानता विजञतसविजानतामस! इस वाकयदवारा

उपसहार करग अतः शर अचछी तरह जानता ह! ऐसी .शिषयकी बदधिका निराकरण करना उचित ही ह ।

जिस परकार जकनवार अगनि- ,दवारा खय अगनि नही जलाया जा सकता उसी परकार जाननवालक

चाकय-भाषय

यदि मसयस खवद इति

लिषयबदधिचिचाखना गटीत-

सथिरताय । विदिताविदि-

वाभया निवरतय बदधि शिषयसय

खातमनयवसथापय तदव बरहम तव

विदधीति सखाराजयऽभियिचय

उपासयपरतिपधनाथासय वखि

विचाखयति ।

“यदि मनयस सवद' इतयादि वाकयस, जो शिषयकी बदधिको विचलित करना

ह बह उसक महण किय हए अरथको सथिर करनक लिय ही ह । शिषयकी बदधिको शात और अजञात वसवओस हटाकर (तदव बरहम सव विदधि" (उसीको ' त बरहम जान) इस कथनस अपन आतमसवरपम‌ सथिर कर तथा उपासयक

परतिषषदवारा उस सवाराजयपर अभिषिकत- कर अव ` उसकी बदधिको विचलित करत ह | .

=

५६ कनोपनिषद‌ [ खणड २ बयईपलिटकक नारद2% या पिक चारज: 22% 2 व ~ 2 व 4. वा, 4.

पद-भाभय

न चानयो वदिता जहमणोऽसति | | दवारा खय जाननवाख नही जाना वव जा सकता । बरहमका जाननवाठा

यख वदय । नान‍य- | कोई और ह भी नही जिसका वह दतोजसति विजञात” ८ च उ० उसस भिनन बरहम जञय ह सक ।

इसस मितर और कोई जञाता नही ३।८। ११ ) इतयनयो विजञाता | ह” इस शरतिदवारा भी बरहमस मिनन दि -__. | जञाताका परतिपष किया गया ह।

अतिषिधयत । तसमात‌ सषट वदाह | अतः 'म बरहमको अचछी तदर जानता हरी यह समझना मिधया ही ह। इसलिय गरन यदि मनयस

यकतमवाहाचारयो यदीतयादि । । इतयादि ठीक ही कटा ह। यदि मनयस सवदति दहरमवापि ननम‌ । सव वतथ

जहमणो रप यदसय तव यदसय दवषवथ ज मीमाधसयमब त मनय विदितम‌ ॥ १॥

यदि त‌ ऐसा मानता ह कि भ अचछी तरह जानता ह, तो निशचय ही त बरहमका थोडा-सा ही रप जानता ह | इसका जो रप त‌ जानता ह और इसका जो रप दवताओग विदित ह [ वह भी अलप ही ह] अतः तर लिय बरहम विचारणीय ही ह। [ ततर शिषपन एकानत ` दशम विचार करनक अननतर कहा--] भ बरहमको जान गया--ऐसा

समझता ह! ॥ १॥

जयति परतिपतति मिथयब। तसाद‌ |

पद-भाषय

यदि कदाचित‌ मनयस स| यदि कदाचित‌ च. ऐसा मानता वदति सषट बदाह बरहमति | हो कि म बरहमको अचछी तरह

चानय-भाषय

यदि मनयस सवद अरद | यदि त यह मानता ह कि म बहमको

दय ति तव ततो5वपमच बरहमणो / अचछी तरह जानता ह तो त निशचय

१ 'दशममव! ऐसा भो पाठ ह। . *

खणड २ | साहधसमाषयारथ ५.७

[| व ~ ~ छा - = ब - ~ बिक आरडर कर 22० ~ ~ य.

पद-साषय

कदाचिदरथाशरत दरविजञयमपि

शषीणदोषः समधाः कशथरितमति-

पदयत कथितति साशङकमाह

यदीतयादि । दषठ च “य एषोऽ

किणि परषो दशयत एष आतमति

होवाततद शरतमभयमतदर ङ"?

(छा० उ० ८ । ७।४ ) इतयकत

पराजापतयः पणडितोऽपयसरराड‌-

विरोचनः सवभावदोपवशादनप-

पदयमानमपि विपरीतमरथ शरीर-

मातमति परतिपननः । तथनदरो

दवराट‌ सकददिबविरकत चापरति-

पदयमानः सवभावदोपकषयमपकषय

जानता ह । जिसक दोप कषीण हो गय ह. ऐसा कोई बदधिमान‌ परष कमी सन हएक अनसार दरविजञय विपयको भी समझ लता ह और कोई नहौ भी समननता-इस आशयस ही [ गरन ] “यदि मनयस इतयादि शकायकत वाकय कहा ह । ऐसा दखा भी गया ह कि “यह जो नतरोक भीतर परष दिखायी दता ह यही आतमा ह, यही अमत ह, यही अमयपद ह और यही बरहम ह--ऐसा [बरहमान] कहा” इस परकार बरहमा जीक कहनपर परजापति-

की सनतान और पणडित होनपर भी असरराज विरोचनन अपन खभावक दोपस, किसी परकार सिदध न होनपर भी शरीर ही आतमा ह, ऐसा विपरीत अरथ समझ लिया। तथा दवराज इनदरन भी एक,

दो तथा तीन वार कहनपर भी इसका भाव न समझकर अपन

खभावका दोप कषीण हो जानक चाकय-भापय

रप वतथ तवमिति नन निशचित

मनयत इतयाचारयः। सा पनरवि-

चालना किमरथतयचयत-पव-

ही बरहयकर रपको बहत कम जानता ह- दखा आचारय समझत ह | परनत आचारय जो शिषयकी बदधिको विचलित करत ह वह किसलिय ह--इसपर कहत ह कि [उनका यह कारय ] शिषयदवारा पहल अहण किय हए अथन

गदधीतवसतनि बदधः सथिरताय ! ' बदधिकी सथिरताक लिय ह। [ इसी

"७८ कनोपनिषद‌ [ खणड,२ | = ० ५ 2 द‌

पद-भाषय /

चतरथ, परयाय परथमोकतमव बरहम | अननतर चोथी बार“कहनपर पहलीः

परतिपननवान‌ । रोकऽपि एकसखाद‌

गरोः शणवता कशरियथावतमति-

पदयत ककिदयथाचत‌ कधिदधिप-

रीत कथिनन परतिपदयत} कि

वकतवयमतीनदरियमातमततवम‌ !

अनन हि विगरतिपनाः सदसदवादि-

नसतारकिकाः सरव । तसमादविदित

जहलति सनिधितोकतमपि विषमः

मरतिपततितवाद‌ यदि मनयस

इतयादि साशङक वचन यकतमव

आचायख । दहरम‌ असपमवापि

नन तव वतथ -जानीष बरहमणो

रपम‌ ।

ही बार कह हए बरहमका जञान परापत किया । छोकम भी एक ही गर स शरवण करनवालोम कोई तो, ठीक-ठीक समझ ठता ह, कोई ठीक नही समझता ह, कोई उलटा समझ बठता ह और कोई समझता ही नही | फिर यदि अतीनदिय' आतमतततको न समञच सक तो, इसम कहना ही कया ह? इसक समबनधम तो समसत सदवादी औरः असदवादी तारविक भी उलटा ही

समझ हए ह । अतः शरहमको जानः लिया" यह कथन सनिशचित होनपर भी विषम परतिपतति ( जञान ) होनक कारण आचारयफा यदि सनयत सवद' इतयादि राकायकत कथन उचित ही ह । [अतः आचारय कहत ह यदि त‌. रहमको मन जान लिया ह? ऐसा मानता ह तो निशचय -ही त‌ बरहमक अलप रपको ही जानता ह ।

वाकय-भाषय

दवषवपि वदाहमिति मनयत यः

सोऽधयसय बरहमणो.रप ददसमव

वतति ननम‌ । कसमात‌ १ अविषय.

सवातकसयचिदधहमणः ). ,

उददयको लकर आचाय कहत ह--] दवताओम भी जो कोई यह मानता ह कि म बहमको अचछी तरह जानता ह वह भी निशचय ही उस हमक रपको बहत कम जानता ह। कयो कयोकि बरहम किसीका मी.विषय नही ह। * :

सतणड २] झा रसाषयारथ । पः

न म को वि 9 क

पद-मापव

-किमनकानि जदयणो सपाणि | परव ०-कया बरहमक बड ओर

महानतयरमकाणि च, यनाह दहर- | छोट अनको , रप-ह, जिसस कि मबतयादि १ - गर सत बरहमक अलप रपको ही

. ५ जानता ह -रसा कह रह ह बाढम‌; अनकानि हि | , सिदधरनता-दो) नाम-रपातमक

[हि वा 38 उपाधिक किय हए नो बरहमक अनक सौपा बरहम रपाण, न =, श रप ह, किनत खतः नही। ह | खतः निरपणम‌. सवतः । सवतसत ध क | | हिः ग | तो “जो अशबद, असप, रपरहित,

रस निरयमगनधवच यत‌ ( क० | अवयय, रसहीन, नितय और गनध- उ० १|३। १५, तसिदोततर० | हीन ह. इस शरतक असार ९, मकतिक० २। ७२ ) इति

राबदादिक सहित उसक सभी रपो- शबदादिभिः सह रपाणि परति- | २ ॥ र ' पिधयनत । का परतिपष किया जाता ह |

नल यनव धरमण यदरपयत | परव०-जिस धरम दवारा जिसका तदव तशय सवरपमिति बहमणोऽपि। निरपण किया ५ ह वही 8582 यन विशषष निरपण तदष | रप हआ करता ह; अतः बरहमका भ त खरप साद‌ न जिस विशषणस निरपण होता ह बही ह ~ चयत | उसका खरप होना चाहिय । अतः चतनयम‌ एथिवयादीनामनय- | कहत ह---चतनय परथिवी आदिका , तमख सरवषा विपरिणताना था | अथवा परिणामको परापत हए अनय

वाकय-भाषय ~

अथवासपमवासयाधयातमिक अथवा इसका इस परकोर समबनध 3 लगाना चाहिय कि इस गरहमकाजो

मजपय दव च आवधिददधिक- मनषयोम आधयातमिक और दवताओम मसय बरहमणो यदरप तदिति व रप ह वह बहत तचछ ही

क नि |. 'अथनः ऐसा कटकर बरहमक ५ नवति दत | विवास हतपरदरशित करत ह। कयोकि मीमासायाः । यसमाइहसमव , ख | “बह विदितस एक‌.ही ह'--ऐसा कह

+, । जानक ` कारण बरहमका अचछी परकार विदित बरहमणो रपमनयदव तदधि दवि- | जाना हआ रप तो असप -टी- ह।

६० कनोपनिषद‌ [ खणड २ "या डि:220 "कि: र चारट ह: 4, वयय: 22% "गई 72७ "कट 2 त".

पद-भाषय

धरमो मवति, तथा शरोतरादी- | समसत पदारथमिस किसीका धरम नही नामनतःकरणसख च धरमो न | ह ओर न वह शरोतरादि इनदरिय अथवा भवतीति बरहमणो रपमिति बरहम | अनतःकरणका ही धरम ह, अतएव

रपयत चतनयन । तथा चोकतम‌ । | वह वहावा रप ह, इसीडिय “'विजञानमाननद बरहम” (च ° उ० बरहमका चतनयरपस निरपण किया

३।९।२८) “विजञान एव" | 7 ह * ५ (न ल = ८८.....: | (बरहम विजञान ओर आननदखरप ह

क । प ॥ ौ ॥ न “वह‌ िजञानवन ही ह “बरहम सतय

ह जञान और अननतखरप ह”? “परजञान २।१।१) जञान बहम | वरहम ह” इस परकार शरतियोम भी ( ऐ० उ० ५ | ३) इति च| बरहक रपका निरपण किया

बरहमणो सय निरदिषट शरतिष] | गया ह । सतयमवम‌; तथापि तदनतः- | सिखानती--यह ठीक ह, तथापि

करणदनदयोषायिदारणव वि- | वद अनतकरण, शरीर और इनम न रप उपाधिक दवारा ही चिजञानादि

जञानादिशवदनिदिशयत, तदल- राबदोस निरपण किया जाता ह,

. कारितवाद‌ दहादिवदधिसझोच- | कयोकि दहादिक बरदधि, सकोच, चाकय-भापय

तादितयकततवात‌। खवदति च मनय-| और त यह मानता ही ह कि म उस अचछी सौव वरय ~ | तरद जानता ह। इसलिय त तरहमक असप

खऽतोऽसपमव चतय तव बरहमणो | सवरपको ही जानता ह। कयोकि ऐसी रप यसमादथ च तसमानमीमासयम‌ | बात ह; इसलिय जबतक तझ विदितत

हि विचारयमय और अविदितका अतिपध करनवाल एवायापि त तच बरहम विचायमव | गाखरवचनका अनमव न हो तबतक

तो अब भी म तर लिय बरहमको मीमासा यानी विचारक योगय ही समझता ह; यावदधिदिताविदितअतिपघागमा- |

यह इसका" तातप ह । यभव इतयरथः ।

खणड २ ] शाइरसाषयाथ ६९

0 = ५ = 2 2 द 209, नई लि नई टक नया क, पाई 2७

पद-भाषय

चछदादिष नाशष च, न सवतः)

सवतसत “अविजञात विजानता

विजञातसविजानताम‌” ( क० उ०

२।३) इति धित मविषयति ।

यदस बरहमणो रपमिति परवण

समबनधः । न कवलमधयातमो-

पाधिपरिचछिनसखाख बहमणो

रप तवमरप वतथ; यदपयधि- दवतोपाधिपरिचछिननसयाख

हमणो सप दवष वतथ तवम‌

तदपि नन दहरमव वतथ इति

मनयऽहम‌ । यदधयातम यदपि

दवष तदपि चोपाधिपरिचछिन-

तवादहरतवानन निवतत । यतत

उचछद और नाश आदिम वह उनका अनकरण करनवाला ह; परनत खतः वसा नही ह । खतः तो वह “जाननवालोक लिय अजञात ह ओर न जाननवालोक लिय जञात ह” इस परकार निशचय किया जायगा ।

'यदसयः इस पदसमहका परथ-. वरती बरहमणो रपम‌) क साथ समबनध

ह । त‌ कवर आधयातमिक उपाधिस परिचछिन हए इस तऋयक ही अलप रपको नही जानता बलकि अधिदवत उपाधिस परिचछिनन हए इस बरहमक मी जिस रपकोत‌ दवताओम जानता ह वह भी निशचय त‌ इसक अलप रपको ही जानता ह--ऐसा म मानता ह | इसका जो अधयातमरप ह ओर जो दवताओम ह वह भी उपाबि- परिचछिन होनक कारण दहरतव ( अलपतव ) स दर नही ह । किनत

चाकय-भाषय

मनय विदितमिति दिपयसय

मीमाखाननतरोकतिः पतययतरय-

सङगतः । समभयगवसतनिशचयाय

विचालितः शिषय आचारयण

मीमासयमव त इति चोकत पकानत ,

धमनव विदितम‌" यह िषयकी मीमासा ( विचार) करनक अननतरकी

उकति ह--कयोकि ऐसा माननपर टी तीन मरकारकी गरतीतियोकी सदधति होती ह। समयक‌ वसतकर निशचयकर लिय विचलित किय हए. शिषयस जब

आचायन कहा कि तमहार लिय अभी जय विचारणीय ही ह तब शिषयन

क * कनोपनिषद‌ { खणड २ [4 वर. स 2 < वाय =

परद-माषय धवसतसरवोपाधि क क 9

विधवसतसवोपाधिविशष शानतम‌

अननतमकमदरत भमाखय निरय

जहय, न ततसवदयमितयशिगरायः ।

यत एवम‌ अथ ज तसात‌ मनय अदयापि मीमासय विचाय मव त तव जम । एवमाचारयोकतः शिषय एकानत उपविषटः समा- हितः सच‌, यथोकतमाचारयण आगममथतो विचाय, तकतथ निरधाय, सवानभव दतवा, आचायसकारायपगमय- उवाच

जो समपरण उपाधि और बिशषणोस रहित शानत अननत एक अदवितीय

भमासजञक नितय बरहम ह वह सगमतास जाननयोगय नही ह-- यह इसका अभिपराय ह |

कयोकि ऐसी बात ह इसलिय अभी तो म तर लिय अकमको विचारणीय ही समझता ह। आचारयकर ऐसा कहनपरः शिषयन ` एकानतम बठकर समाहित हो आचारयक बतटाय हए आगमको अरथसदवित विचारकर और तकदवारा निशवयकरर आतमानभव कनक

अननतर आचारयक समीप आकर मनयऽहमथदानी विदित | कहा- भ ऐसा मानता ह कि अवर 'बललति ॥१॥ मझ बरहम विदितदहो गया ह ॥ १॥ ,

ह | चाकय-भाषय

समाददितो भतवा विचार यथोकत

खपरिनिशचितः सचचाहगमाचा- '

यातमाजमवपरतययतरयसयकविषय-

सवन सङगतयरथस‌ । एव हि खपरि- ह

निषठिता चिचया सफला सयानन

'अनिशचितति नयायः घदशितो!

भवति; मनय बिदतिमिति ॥

परिनिषठितनिशचितविजञानपरतिजञा- |

दतकतः॥१॥ . छ

एकानत दशम समाहित चिततस परवोकत परकासस बरहमको विचारनक अननतर भरीमति ' निशचय ' करक चालः आचारय ओर अपना अनभव--इन तीनो परतीतियोकी एक ही विषयम सगति करनक लिय कहा [ म हमको जञात हआ ही मानता ह ] | इसस यह नयाय दिखछाया गया ह कि इस परकार खब निशचित किया हआ जञान ही सफल होता ह---अनिशचित नही; कयोकि भमनतर विदितम‌ इस उततिस परि- निशचित--निशचित विजञानकी परतिजञाक

‹| हठका.ही परतिपादन किया गया ह ॥१॥

खणड २. ] शाहडरभाषयाथ ६३ 3 = चर 0. 2 "कट, बिन फिट व 4 4 व भाई टक <.

पद-आपय

"कथमिति, भण- ` | कस विदित हआ ह सो सनिय- अनमतिका उललख

नाह* मनय सवदति नो न वदति वद च ।

* यो नसतदवद तदद‌ नो न वदति वद‌ च ॥२॥ म न तो यह मानता ह कि बरहमको अचछी तरह जान गया और

"न यही समझता ह कि उस नही जानता । इसलिय म उस जानता ह "ओर‌ नही भी जानता | हम शिपयोमस जो इस परकार [ उस विदिता- विदितस अनय ] जानता ह वही जानता ह ॥ २ |

पद-भाषय

न अह मनथ सवदति; नवा | म अचछी तरह जानता ह--- ऐसा नही मानता अरथात‌ बरहमको

ला => । ॐ 5 | अचछी तरह जानता ह--ऐसा भी मनय सबद‌ बरहमति नव ति | क निशवयपरवक नही आता । तब

तो तझ बरहम ,विदित ही नही हआ--ऐसा कहनपर शिषय कहता ह---'म नही जानता, सो भी बात नही ह, जानता भी ह'। मलक “बद च' इस पदसमहक “च' शबदस “नही भी जानता! ऐसा अरथ लना चाहिय |

, चाकय-भाषय ह , परिनिषठित सफल विजञान। आचारयका और अपना निशचय

समान ही ह--यह दिखकनिक लिय शिषय अपन अचछी परकार निशचित किय हए सफल विजञानकी परतिजञा

(4 ११ | चलयताच यसमादधतमाद नाह करता ह, कयोकि “नाह मनय सवद*--- ऐसा कहकर वह उसका हत मनय सवद इति। बतलछाता ह | , # .... # बही“नाए कसा भी ए ह नन

“नाह” ऐसा भी पाठ ह, वाकय-भाषय इसी पराठक अनसार ह।

'बिदित तवया अललतयकत आह--

नोन बदति वद च । बद

चति चशबदानन वद च ।

3 , अतिजानीत आचारयातमनिशचययोः

वठ कनोपनिषद‌

[2 ~ य म वा र #

[ खणड २

पद-भसापय

नय विपरतिषिदध नाह मनय

90-8७ कप

सवदति, नो न वदति, वद च

इति । यदि न मनयस सवदति,

कथ सनयस वदचति) अथ

मनयस वदवति, कथ न मनयस

सवदति । एक वसत यन जञायत,

तनव तदव वसत न सविजञायत |

चजयिसवा । न च बरहम सशयित-

समन जञय विपरीततवन वति

गर-भ बरहमको अचछी तरह जानता ह--ऐसा नही मानता

तथा शर नही जानता--सो भी बात नही ह बलकि जानता ही ह? ऐसा कहना तो परसपर विरदध ह।

यदि त यह नही मानता कि उस अचछी तरह जानता ह! तो ऐसा कस समझता ह कि 'उस जानता भी ह” और यदि तमानता ह कि 'म जानता ही ह! तो ऐसा कयो नही

मानता कि “उस अचछी तरह

जानता ह! । सशययकत और विपरीत जञानको छोडकर एक

वसत जिसक दारा जानी जाती ह उसीस वही वसत अचछी तरह नही

जानी जाती--ऐसा कहना तो

ठीक नही ह। और ऐसा भी कोई नियम नही वनाया जा सकता कि

बरहम सशययकत अथवा विपरीतरपस ताकय-माषय

अहतयव घारणारथो निपातो

नव मनय इतयतत‌ । यावद

परिनिषित विजञान तावतखवद

सषठ वदा बरहम ति विपरीतो

मम निशचय आखीत‌ ।

सल उपजगाम भवदधिरचिचालितसयः

अह" यह निशचयारथक निपात ह। इसका यह तातपरय ह कि म [बहमको अचछी तरह जानता ह ] ऐसा मानता ही नही । जबतक सनन जञान परापत नही हआ था तबतक ही मझ 'म तरहयको अचछी तरह जानता ह!--ऐसा विपरीत निशचय था} आपक दवारा | उस निशचयस ] विचलित किय जानपर अब मरा वह निशचय दर हो गयाः .*

खणड २ ] शाइरभाषयारथ ६५

= = = ० 3 त‌ 4 थ 2 य 2.

पद-माषय

नियनत शकयम‌ .। सशयविप- | दी जाननयोगय ह, कयोकि सशय € = ७ सरवतर ¢ = ओ वि . गो बतर 6 री

यया हि {नथरकरतवनव र विपरयय तो सवतर अनथका

परसिदधो ।

एवमाचारयण विचालय-

मानोऽपि शिषयो न विचचार;

(अनयदव तदविदितादथो अवि-

दितादधि' इतयाचारयोकतागम-

समपरदायवलात‌ उपपचतयनभव-

वाचच; जगज च बरहमविदयाया

चटनिशयता दरशयननातमनः ।

रपस ही परसिदध ह |

आचारयदवारा इस परकार विचलित किय जानपर भी वह विदितस

अनय ही ह और अविदितस भी ऊपर ह' इस आचारयकर कह हए शाखसमपरदायक बरस तथा उपपतति

ओर अपन अनभवक बरस शिषय विचलित न हआ; बलकि वह बरहम-

विदयाम अपनी इढनिशचयता दिखलात

हए गरजन टगा। किस परकार

चाकय-भाषय

ह [4 ~ ४ €, ५ 9.

यथोकताथमीमासाफकभतात‌ कयोकि वह परवोकत अथकी मीमासा

सवारमवरहयतवनिशचयरपातसमयक‌- ( विचार ) क फलसवरप अपन आतमा-

५ ` | क बरहमतवनिशचयरप समयक‌ परतययक परतययादविरदधतवात‌ । अतो नाह ~ ८ व विरदध ह । अतः “म अचछी तरह

मनय ख वदति । जानता ह” ऐसा तो मानता ही नह ।

यसमाचचतचनव न वद‌ नो न वदति

मनय इतयजचवतत; अविदित-

बहयपरतिपधात‌ । कथ तरहि

मनयस इतयकत आद-यद‌ च ।

चशबदाषधव च न वद‌ चतयभिपरायः #

तथा; उस बरहमको म नही जानता--ऐसा भी नदी मानता

कयोकि अविदित बरहमका परतिषध किया गया ह| यहो 'नो न वदति" इस वाकयक आग “मनय! इस करिया-पदकी अनतत होती ह । फिर यह पछनपर कि धतम' किस परकार मानत हो ¢ रिषय वोखा--पवद चः । यहा धचः शबदस धवद चच न वद च अरथात‌ जानता मी ह और नही मी जञानता~

दिद " कनोपनिषद‌

0 प)

[खणडय

पद-भाषय

'कथमितयवयत-यो थ कथिद‌ नः असाक सबरहमचारिणा मधय

तनमदकत वचन ततवतो वद) स तदबरहम वद‌ ।

किपनसतद चनमितयत आह-

नो न बदति वद च इति।

यदव “अनयदव तदविदितादथो

गजन खगा, सो बतखत ह-- बरहमचारियोक सहित “हम रिषयम जो-जो मर कह हए उस वचनको ततततः जानता ह--बही उपत बरहमको जानता ह |!

अचछा तो वह वचन ह क‍या! ऐसा परशन करनपर [ शिषय ] कहता ह----'म नही जानता--ऐसा भी नही ह, जानता भी ह ।” जो बात [ आचारयन ] वह विदितस अनय

अविदितादधि, इतयकतम‌ तदव | दी ह और अविदितस भी ऊपर ह

` बसठ इस वाकयदवारा कही थी उसी वसत-

अनमानानभवामया | को अपन अनमान और अनभवस

चाकय-भाणय

विदिताविदिताभयामनयसवाइलमणः| ऐसा अभिपराय ह | कयोकि बरहय विदित

तसमानमया विदित बरहय ति सनय

इति बाकयाथः ।

अथचा वद‌ चति नितयचिजञान-

१ क

अदयखरपतया नो न वद वदव

चाह खरपविकरियाभावात‌ ।

विशषविजञान च पराभयसत न

खत इति परमारथतो न च

वदति ।

और अविदित--दोनोस ही मिनन ह। अतः बरहम मझ विदित ह---यह मानता ह?-यही इस वाकयका अथ ह।

अथवा ववद च इसका यह

अभिपराय ह कि म नितयविजञान-बरहम- सवरप होनक कारण “नही जानता'

--एऐसी बात नही ह वसकि जानता ही ह, कयोकि अपन सवरपम कोई विकार नही ह। तथा विशष विजञान भी दसरोका आरोपित किया हआ ही ह सवरपस नही ह--इसलिय

१ [4

परमाथतः नही भी जानता |

खणड य‌ | शाइरसाषयारथ द७

ह ~ ण ~ ~ ~ चिट आप न ~ र 2 अ सट "वापिस

पद-साषय

सयोजय निधित वाकयानतरण

नो न बदति वद च इतयवोचत‌

आचारयबदधिसबादाथ मनदबदधि

गरहणवयपोहाथ च च तथा च

गजितयपपनन मवति भयो नसत-

हद तदवद" इति ।२॥

मिलकर निशचित करक आचारयकी बदधिको समयक‌ परकारस बतलछान और मनदबदधियोकी बदधिकी पहचस बचानक लिय एक दसर वाकयस शन नही जानता--ऐसा भी नही ह जानता भी ह” ऐसा कहा ह। ऐसा होनपर ही 'हममस जो इस [ वाकयक मरम कतो जानता ह वही जानता ह? यह गरजना उचित हो सकती

| ह ॥२॥ ~"

चाकय-भषय

यो नसतदधद‌ तदधदति पकषानतर

निरासारथमाखचाय उकतारथोन-

चादात‌। यो नोऽसमाक मधय स

एव तदरहय वद‌ नानय; | उपासय-

बरहमविचवादतोऽनयसय यथाह

वदति | वद‌ चति पकषानतर बरहय-

विचव निरसयत | कतो ऽयमरथोऽ-

चखीयत इतयचयत । उकताचवा-

दाढडकत दयबदति नो न वदति

वद चति ॥२॥ ,

धयो नसतदवद तदवद' यह आगम उपयकत अरथका अनवाद होनक कारण इसस अनय पकषोका निषध करनक लिय ह । हममस जो उस बरहममको इस गरकार विदित- अविदितस मिनन जानता ह वही जानता ह, और कोई नही; कयोकि जसा म जानता ह उसस अनय परकार जानन- वाला तो उपासय अरथात‌ कारयतरहमको दी जाननवाला ह। “वद च! इस पदस अनय पकषवालम बरहमविततका निरास किया जाता ह। किस कारण यह निषकरष निकाला जाता ह १ सो बतलात ह। ऊपर कह हए. अथका अनबाद करनक कारण; कयोकि यहा 'नो न वदति वद च इस वाकय परवोकतका ही अनवाद करत ह ॥ २॥

००५8 >०००---

द८ कनोपनिषरद‌ [ खणड २ बकपड 2७ 8 १. ५...

पउ>-भाषय

शिषयाचारयसवादातिनिशवतय सवन रपण शरतिः समसतसवाद-

निरवततमथमव वोधयति-यसया- | ही “यसवामतम इतयादि अपन ही मतमितयादिना- रपस बतछाती ह--

जञाता अनञ ह और अजञ जञानी ह

यसयामत तय सत मत यसय न वद‌ सः । अविजञात विजानता विकञातमविजानताम‌ ॥ ३ ॥

बरहम जिसकरो जञात नह ह उसीको जञात ह और जिसको जञात ह वह उस नही जानता; कयोकि बह जाननवालोका बिना जाना हआ

ह ओर न जाननवालमकरा जाना हआ ह [कयोकि अनय वसतओक समान ददय न होनरो वह विपयरपस नही जाना जा सकता] ॥ ३॥

पई-भाषय

अब शिपय और आचारयक सवादस निचतत होकर शरति समकत सबादस समपनन होनवाल अरभको

यसय अहमविदः अमतस‌ 8 त ऐसा जा ~ ~> ~> | अभिपराय अध शवय ह कि

आविजञातम‌ आदत जह | बरह अमत--अविजञात यानी ` मतम‌ अमिशरायः निशचय, तसव ४ ह डस‌ बरहम इ

| जञात समयमबललसपभिपरायः। | मत अथात‌ जात हो गया ह--ऐसा कक ४ | | इसका तातपरय ह। और जिस शय यसय पनः मत जञात विदित बरहम मत--नजञात अरथात‌ विदित हो

वाकय-माषय “

'यसयामतम‌ › इतयादि शरति-वचन

इस आरयायिकाका उपसहार करनक लिय ह। शिषय और अगवारयकी उकति-अतयकति ही जिसका लकषण ह ऐसी इस अनभव और थयकतिपरधान आखयायिकास जो अरथ सिदध हआ ह

यसयामतम‌ इति शरौतम‌

आखयायिकारथोपसदाराथम‌ । चिषयाचारयोकतिभरतयकतिटकषणया

अनभवयकतिपरधानयः आखयायि-

कया योऽथः सिदधः स शरौतन

खणड २ ] खओाङकरभाषयोरथ ६२. | 2 2 । । = ५ -= 2. ~ "कप कर,

पद-भाषय

मया बरहति निशचय), न बदव | गया ह रसा निशचय ह वह त जानता ही नही--उस बरहमका

खः-न नदय विजानाति सः। | जञान नही ह |

विददविदषोयथोकती पकषौ | अब अविजञात विजानतामः (2 सा कहकर विदवान‌ ओर अविदरान‌-

अवधारय ति--अविजञात न ला & ध क उपयकत पकषोका अवधारण

तामिति, अविजञातम‌ अमतम‌ | ( निशचय ) करत ह--जाननवारो

अरथात‌ भटी परकार समञनवारो- भवरिदितमब बहम विजानता | न वह बरहम अविजञात---अमत

समयगबिदितवतामितयतत‌ | | यानी - अविदित ( अजञय ) ही. ह; चवाकय-साषय ,

चचननागमपरधानन निगमन- वह सवका उपसहार करनवाल इस शचाखरपरधान भौतवनचनस सपम कहा

सथानोयन सशलपत उचयत । यदकत | जाता ह | जिस वागादि इनदरियोका

विदितादसयदधागादी च दितनयगागादीनामयोर- | पदा मिज यदचया या तथा अयमव और उपपततिस भी जिसकी

| ४ मीमासा की यी उस बरहमको वसा ही पततिभया हम तततथव जञातवयम‌ | जानना चाहिय |

कसमात‌ १ यसयामत यसय |. किस कारणस १ [ सो बतछात विविदिषामरयतभदततसय साधकसय द--] जिजञासास पररित होकर पर अमतमविजञातमबिदित बरहम | इए जिस साधकको बरहम अविजञात--

अविदित ह अरथात‌ आतमततवनिशचय- रप फलम परयवसित होन वाल ४ वोघतया विविदिषा निदतत |. कक 58207 00 जञानरप स जिसकी जिजञासा निचरतत टो गयी इतयभिभरायः; तसय मत कञात तन ह उसीको बह विदित जञात ह | बिदित क क

ज ५ ५ ४ बिदित बरहम! यनाविषयतवन | तातपय यह कि जिसन बरहमको

तवात‌ भीमाखित चानञभवोप-

७० कनोपनिषद‌ [ खणड २ बट पक त „थ 2 4 2 (९:2७

पद-भाषय

विजञात विदित बहम अविजान- | तातपरय यह ह कि इनदरिय, मन और ताम‌ असमपगदरशिनाम‌, इनदरिय- बदधि आदिम आतमभाव करनवाल

असमयगदरशी अजञानियोक लिय बरहम मनोबदधिषववातमदरशिनामितयथ४| विजञात यानी विदित (जञय) ही ह |#

चाकय-भाषय

आतमतवन परतिददधमितयथः। सर | अविपयरपस आतमभावस जाना ह

समयगदरी यसय विजञानाननत-

रमव बरहमातमभावसयावसिततवात‌

सरवततः कारयाभाघो विपरययण

मिथयाजञानो मवति । कथम‌ ? मत

विदित जञात मया नहय ति यसय

चिकञान ख सिथयादरशी चिपरीत-

विजञानो विदितादनयतवादभहमणो

न वद‌ स न विजानाति ।

ततशच खिदधमयदिकसय विकञा- नसय भिथयाचवम‌ , अबरहमविपय- तया निनदिततवाततथा कपिल- कणभगादिसमयसयापि विदित- बरहमचिषयरवादनवसथिततकरजनय- सवादधिविदिपानिचनतच मिधया- तवमिति । ससतशच “या वद‌- बाहया; समतयो याशच काशच

उसीन उस जाना ह । जिस विजानकी परासिक अननतर टी सब ओर बरहमातम- भावकी परापति हो जानक कारण करतवयका अभाव हो जाता ह वही समयगदरशी ह | इसस विपरीत समझन- वाला मिथया जानी होता ह । कस ! [सो कहत ह--] जिसका ऐसा

विजञान ह कि बरहम नन विटित- जात अरथात‌ मानम ह वह विपरीत

विनानवान‌ मिथयादरगी ह, कयोकि बरहम विदितस भिनन ह; इसलिय वह बरहमको नही जानता--नही समझता |

इन कारणोस अवदिक विजानका मिथयातव सिदध हआ; कयोकि वह बरहम-

विपरयक न होनस, निनदित ह । यही नही, कपिल और कणाद आदिक सिदधानत भी जञातबरहमविषयक; अनवसथिततकजनित और जिशञासाकी निचरतति न करनवाल होनस मिथया ही ह। “जो वदवाहय समतिया ह तथा

+ इस वाकयका तातपरय यह ह कि “जिनह जहम सवरपका यथाथ बोध हो गया ह

व तो उस मन-बदधि आदिस अगराहय होनफ कारण अजञात यानी अकषय ही मानन द ।

और जो अजञानी ह व मन-बदधि शरादिको ही आतमा समझनक कारण जयका उनक

साथ अभद समझकर यह मानन छगत ह कि हमन उस जान लिया ह! ।

खणड २ ] शाडसमाषयाथ ७९१

रा ४९220. ऋए2७-"०८६२२७७- «अ९<2७७- रस" 29 डर, हर वार

पद-भाषय

न खतयनतमवाबयतपननबदधी- | हा, जिनकी बदधि अतयनत अवयतपनना व ( अकशल ) ह उनक लिय ऐसी,

नाम‌ । न हि तषा विजञातम‌ | वात नही ह, कयोकि उनह तो

असमाभिरकतति मतिरभवति । | (हमन बरहमको जान लिया द" ऐसी बदधि ही नही होती । किनत जो

इनदरियमनोबदधच पाधिषवातम- । लोग इनदि, मन और बदधि आदि उपाधियोम आतममाव करनवाल ह.

उनह तो, बरहम और उपाधिक

पलमभात‌ बदधयाधयपाधशच | पारथकयका जञान न होन तथा बदधि चाकय-भाषय

कडशयः । सरवासता निपफछा+ | और मी जो कोई कविचार ह व भरोकतासतमोनिषठा हि ताः | सभी निषफछ कह गय ह ओर सब-फ-,

सझता+?” ( मञ० १२५। ९.५) | सब अजञाननिषठ ही मान गय ह”! इस

इति चिपरीतमिथयाजञानयो- | समतिवाकयस भी विपरीत जञान और

नशतवादिति । मिथयाजञानको नषट बतलाया गया ह ।

अविननात विजानता विजञात- {अविजञात विजानता विजञातम- विजानताम‌” यह मनतरक परवारधम कह हए. अरथका हत-कथन ह; कयोकि

चादसपानरथकयात‌ । अनवाद‌- | उसीका अनवाद करना तो वयरथ 3००28 ... | होगा । अनवादमातरक लिय कोई वात

माजऽनथक चचनमिति परवो- | कहना कछ अरथ नही रखता, इसलिय “यसयामतम! इतयादि परव पदस कह इए. जान और अजञानक हतरपस ही

दरशिना त अरहमोपाधिविवकाल-

मविजानतामिति परचददतकतिरल-

कतयोयसपामतमितयादिना शाना-

जञानयोरदतवरथतवनदसचयत । यह कहा गया ह ।

अविजञातमविदितमातमतवन कयोकि विजानियोको बरहम आतम- अविपयतया बरहम विजानता यसमात सवरप शोनक कारण इनदरियोका विपय

„ ... „| न होनस अविजशञात--अविदित ह, - तसमाततदव जञानम‌। यततषा विननात | | उसलयि वही ञान ह। और जो विदित वयकतमव बदधवयादिविपय | अजानी ह, जो ऐसा नही जानत कि

\७२२' कनोपनिषद‌ [ लणड २ ग<-222-घकरटर:229७- नाईक 2%, नए कट थक पट 0७ नह 20७ वक०:22:- कई 22%: <.

पद-भाषय

विजञातसवाद‌ विदित बरहनतयप-

पचत भरानतिरितयतोऽपमय-

गदशन परवपकषतवनोपनयखत--

विजञातमविजानतामिति । अथवा

हतवरथ उततरारथोऽविजञात-

मितयादिः ॥३॥

आदि उपाधिक जञातरप होनस शरहम विदित ह? ऐसी भानति होनी उचित ही ह । अतः यहा 'बिजञात- मविजानताम‌” इस वाकयहवारा

असमयगदशनका परवपकषरपस उछख किया गया ह । अथवा “अविजञात विजानताम! इतयादि जो मनतरका

उततरादध ह बह* हत-अरथम ह ॥ श। "इछ | वाकय-भाषय

बरहमाविजञानता विदिताविदित- | जञात ओर अजञात पदारथोस रहित, ५ अपना आतमा; नितयविजञानसवरप,

पट चजञान- 5० 5 वयाजततमातमभत नितयचि आतमसथ; अविकरियः अमतः . अजरः

खरपमातमसथमविकरियमसतमज- | अभय और अननयरप होनक कारण ध बरहम किसी इनदरियका विपय नही ह--

सममयमननयतवाद‌ चम‌ | उनटीको तरस विजञात--विदित-- वयकत अविजानता बदधयादिविषया- | अरथात‌ बदधि आदिक विषयरपस ही

समतयव नितय चिशात बरहम ।

तसमादविदिताचिदतिवयकतावयकत-

चरमाधयारोपण कारयकारणभावन

सविकलपमयथारथविषयसवात‌ । |

शकतिकादी रजतादधयारोपण-

परतीत होता ह, उनह सरवदा चदधि आदि- क विषयरपस ही बरहमका जञान ह। अतः विदित-अविदित अथवा वयकत-अवयकत आदि धरमोक आरोपस [ उनका जाना हआ बरहम ] कारय-कारणभाव रहनस सविकवप ही ह कयोकि वह अयथारथ विषयक ह | उनका वह जञान शकति आदिम आरोपित रजत आदि जञानोक

जञानवनमिथयाजञान तषाम‌ ॥ ३॥ । समान मिथया ही ह ॥ ३ | *+-+--*०+७:२/०७६००---

# हत यो समझना चादियि-- नम अशानियोको इसलिय जञात ह, कयोकि

विजञानियोको वह अजञात ह । ह

खणड २ ] शाङकरभाषय ७

व ~ = य ~ बरटिटट- 3७ नाक 2 ५० नह अत बरस चार 229- आई व2५७- ८523 बाई 22७ ५022७.

पद-भापय

५अबजञात विजानताम‌ | शरहन जाननवारोको अचिजञात | ति ह! ऐसा निशचय हआ । इस परकार इतयवधरतम‌ । याद‌ बरहमातयनतम‌ यदि बरहम अतयनत अविजञात ही ह

एवाविजञातम‌, ऊौकिकाना तरहम- | तो 2038 परष और बरहमवतताओम

विषट चावि पाहः । अवि | ब भद नही रह जाता; इसक रदा चारिरोपः परापत | च‌ | ततिवा 'जाननवालको अविजञात ह!

जञात विजानताम! इति च | यह कथन परसपर विरदध भी ह। 5 ~ फिर वह वरहम समयक‌ परकारस कस

परसपरविरदयम कथ त तदरहम | जाना जाता ह--यही बात समयगविदित मवती तयवमरथमाह-- | वतलानक लिय कहत ह---

विननानावभासोम वलकर अनमति

परतिबोधविदित मतममततव हि विनदत ।

आतमना विनदत वीरय विदयया विनदतऽमतम‌ ॥ ४ ॥ ` जो परतयक वोध (बौदध परतीति ) म परवयगातमरपस जाना गया

ह वही तरहम ह--यही उसका जञान द, कयोकि उस बरहमजञानस अमततव-

की परापति होती ह। अमततव अपनहीस परापत होता ह, विदयास तो

अननानानधकारकरो निदतत करनका सामरथय मिकता ह ॥ 9 ॥

पद-भापय 4

परतिबोधविदित बोध बोध | शरतितरोधविदितम‌' यानी जो | बोध-वोधक परति विदित होता

भरति विदितम‌ | बोधशबवदन वोदधा-| ह । वहो धोः शबदस बदधिस ~ | होनवाली परतीतियो (जञानो) का

परतयया उचयनत । सरव परतयया । कथन हआ ह । अतः समसत वाकय-भाषप

, परतिबोधविदित मतम‌ इति £परतिवोधविदितम‌ यह दविरकति ह,

वीपसा अतययानामातमाववोध- | कयोकि परतीतियो ही आतमजञानकी

दारतवात‌ । चोध धति । दवार ह । "वोधमरति बोध परति! ( वोध-

«७ कनोपनिषद‌ [ खणड २ ऋषि 22, बह 0७- नह व जिस बकरपरि:2७- वयापक, 3. १ द, =^.

पद-भाषय'

विषथीभवनति यसय स आतमा सव-

बोधानपरति बधयत । सरवपरतयय-

दरशी चिचछकतिसवरपमातरः

परतययरव परतययषयविशिषटतया

लकषयत; नानयददवारमनतरातमनो

विजञानाय ।

अतः; अतययपरतयगातमतया

अतययसाकषितया विदित बरहम यद‌

गणोऽनद- तदा तनमत तत‌- अतिपाइनस‌ ^

समयगदशनमितयथः

सरवपरतययदशितव चोपजनना-

परतीतिया जिसकी चिपय होती ह वह आतमा समसत बोधोक समय जाना जाता ह | समपरण परतीतियो- का साकषी और चिचछकतिखरपमातर होनक कारण बह गरतीतियोदवारा सामानयरपस गरतीतियोम ही ककत होता ह । उस अनतरातमाका जञान परापत करनक लिय कोई और मारग नही। ह |

अतः जिस समय बरहमको

परतीतियोक अनतःसाकषीखरपस

जाना जाता ह उसी समय बह जञात होता ह; अरथात‌ यही

उसका समयक‌ जञान ह । समपरण

परतीतियोका साकषी होनपर ही वाकय-भाषय

बोध परतीति चीपसा सरवधतयय-

वयापतयरथा । बौदधा हि सव परतययाः

तपतरोदचननितयविकञानखरपातम-

वयातवाद विजञानख रपावभासा३,

तदि

लकषणोऽचिवदपरभयत इति तन

तदनयाचभासशचातमा

त इारीभवनतयामोपटनधौ ।

तसमसातपतिबोधावभास परतयगातम-

बोधक परति ) यह दिरकति समपरण परतीतियोम [ बरहमकी | वयाति सचित करनक लिय ह। बदधिजनित समपरण अतीतिरयो तप हए. छोहक समान नितय विजञानखरप आतमास वयास रहनक

कारण उस विजञानखरपस ही अवमासित ह तथा उनस पथक‌ उनका

अवभासक आतमा [ छोहपिणडम वयास

इए ] अथिक समान उनस सरवथा विलकषण उपलबध होता ह । अतः व बौदध परतयय आतमाकी उपलबधिस दवारखरप ह । इसलिय परतयक बौदध मरतययक अवभासम जो परतयगातम-

खणड २ ] दाडरभाषयाथ ५७९

क ¬ त िि बरटविट2 9, एक 24 पक" 3७ नयाय ७ "व 23% "या :23%- पक <*:ट कक 20-

पद-भाषय

पायवसितदकखरयता नितयतव | उसका शदधिदषयशचलय साधितव,

विशदधसवरपतवमातमतव निरवि-

शषतकरतयच सरवभतष सिदध

भवत‌; लकषणमदाभावादययोमन

-इव घटगिरिगहादिष । विदिता-

तरिदितामयामनयदरहयतयागम-

वाकयाथ एव परिशदध एधोपसहतो

भवति । “ददरा शरतः शरोता

मतमनता भिजञातविजञाता"" इतति

हि शरतयनतरम‌ ।

नितयतव, विशदधखरपतव, आतमतव, निरविरोपतव और समपरण भतोम [ अनसयत ] एकतव सिदध हो सकता

ह, जिस परकार कि लकषणोम भद न होनक कारण घट, परवत और गहादि- म आकाशका अभद ह । इस परकार बरहम विदित और अधिदित--- दोनोहीस मिन ह" इस शाखचचनक अरथका ही भटी परकार शोधन करक

[व । (|

। यहा उपसहार किया गया ह । इसक सिवा “बह दषिका दरा ह, शरवण- का शरोता ह, मतिका मनन करन- वाला ह और विजञातिका विजञाता ह” ऐसी एक दसरी शरति भी ह ।

. । [उसस भी यही सिदध होता ह ] |

काकय-भाषय

तया यदिदित तदरहय तदव मत

जञात तदव समयगजञानवतमतयगा-

तमविकञानम‌, न विपयविकञानम‌ । आतमतवन पतयगातमानमकष-

दिति च कारक ।

'अगधतरव हि विनदत" आतमशान

अमततव- निमिततम‌

सतयधापः विपया-

तमविजञान दि सतयः भारभत

इति हतबचनम‌ऽवि परयय

खवरपस जाना जाता ह वही बरहय हः वही माना हआ अरथात‌ जञात ह तथा वही समयगनानकर सहित परतयगातमाका

जञान ह; विषयजञान समयगनान नही ह !

परतयगातमाको आतमसखवरपस दखाः ऐसा कठोपनिपदम कहा ह | “अमततव हि विनदतः (आतमजानस अमरतव ही परापत होता ह) यह हतसचक वाकय ह, कयोकि इसस विपरीत जञानस

मतयकी परापति होती ह | बदधि आदि विपरयोम आतमतव बोध होनस ही

\७दि कनोपनिषद‌ [ खणड २ १ = व: 2 30 ईट, १ ० = १ बिक व ि20% 4 3 9 र, ५

पद-भरषय

यदा पनरबोधिकरियाकरतति बोध-

करियारकषणन तसकतार विजाना-

तीति.बोधलकषणन विदित अति-

बोधविदितमिति वयाखयायत,

यथा यो वकषशाखाशरालयति स

वायरिति तदत‌; तदा बोधकरिया-

शकतिमानातमा दरवयम‌, न बोध‌-

सवरप एव । बोधसत जायत

विनशयति च | यदा बोधो

जाथत, तदा बोधकरियया स-

जिस परकरार, जो -वककी राखाओको चलायमान करता ह उस वाय कहत ह उसी परकार-- जिस समय “परतिबोधविदितम‌ इसका ऐसा अरथ किया जाता ह कि आतमा बोधकरियाका कतौ ह; अतः बोधकरियारप लिदनस उसक करतीको जानता ह, इसलिय बोधरप- स विदित होनक कारण वह

धरतितरोधविदितम” कहलाता ह उस समय---आतमा बोधकरियारप

शकतिस यकत एक दरवय सिदध होता ह, साकषात‌ बोधखरप ही सिदध नही होता । बोध ( बदधिगत परतीति )

तो उतपनन होता ह और नट भी हो जाता ह। अतः जिस समय बोध उतपनन होता ह उस समय तो

चाकय-भाषय

इतयातमविजञानमसततवनिमिततम‌ इति यकत हतवचनममततव हि विनदत इति ।

आतमजञानन तपायत१ `

नन] . कथ तरहि

तमना विनदत सवनव नि- तयातमखभावनासततव चिनवत । |

नारमबनपकम‌ । विनदत इति '

किमशरतसवस-

मतयका आरमभ होता ह; अतः आतमविजञान अमरतवका हत ह, इसलिय “अमततव हि विनदतः यह हतवबचन ठीक ही ह ।

परव ०-कया आतमशानस अमरतव उतपनन किया जाता ह १

सिदधानती-नही । पन ०-तब कस ! सिदधानती-अमरतव तो आतमास--

अपन नितयातमसरमावस ही परासत करत

ह, किसीक 'आशरयस नही । विनदतः इसस यह समझना चाहिय कि उसकी

खणड-२ ] शाडरसमाषया 99

ह <. चर चर = 2 बकर य चर 24० "कक नई, कक

पद-साषय

विशष: । यदा बोधो नशयति, तदा | वह बोधकरियारप विशषणस यकत

नषटबोधो दरवयमातर निरविशषः ।

ततरव सति विकरियातमकः साव-

यवोऽनितयोऽशचदध इतयादयो दोषा

न परिहत शकयनत ।

यदपि काणादानाम‌ आतम- कणादमत- मनः सयोगजो बोध

समकष आतमनि समवति; अत आतमनि. बोदषतवम‌; न त विकरियातमक आतमा; दरजय-

मातरसत भवति घट इव रागसम-

वायी; असिन‌ पकषऽपयचतन

दरवयमातर नहमति “विजञान- माननद बहम" (र०उ०३।९ २८)

होता ह और जब उसका नाश हो जाता ह तो बह निरविशप दववयमातर रह जाता ह। ऐसा माननस तो वह‌ विकारी, सावयव, अनितय और अशदध निशचित होता ह; ओर उसक इन दोपोका किसी परकार परिहार नही किया जा सकता ।

तथा वशषिक मतावरमबियोका जो मत ह कि आतमा और मनक सयोगस उतपन ददोनवादय बोध आतमाम समवाय-समबनधस रहता

ह, इसीस आतमाम बोदधतव ह, वसततः आतमा विकारी नही ह, वह तो नीलपीतादि वरणोक समवायी घटक समान कवर दववयमातर हः --सो इस पशचम मी बरहम अचतन दरवयमातर सिदध होता ह और “बरहम विजञान एव आननदखरप ह”

चाकय-भाषय

आतमविकञानापशचम‌ । यदि दि विदयोतपादयमसरतरव सयादनितय ५५ ४ ९,

भवतकमकायवत‌ । -अतो न

विदयोतपायम‌) [4 [4 [॥ ५.

यदि चातमनवाशचतरव विनदत

कि पनरविदयया करियत दतयचयत।

0

परापति आतमविजञानकी “अपकषा 'रखन- वाली ह। यदि अमततव विदयास उतपनन किया जान योगय होता तो करमफलक समान अनितय हो जाताः। इसलिय वह विदयास उतपादय नही ह.।

| ,यदि कहो कि जब अगधतःव सवतः धर]

ही मिल जाता ह तो विदया उसम कया करती ह, तो इसम हम यह कहना ह

\७८ ' कनोपनिषद‌ [ खणड २ ५. क = ह = 2 लि, र 0 २६22%, य 20%, 2. दा

पव‌-भाषय

“रजञान जहय" (ऐ० उ० ५) ३) इतयादा; शरतयो बाधिताः सयः आतमनो निरवयवतवन परदशा- मावात‌ नितयसयकतरवाच मनसः सपतयतपततिनियमानपपततिरपरि-

हाया सयात‌ । ससरगधरमितव चातमनः शरतिरषतिनयायविरदध कलपित खात‌ । “असङगो न हि सत" (चर उ० ३।९।२६)

“असकत सरवभत” ( गीता १३। १४ ) इति हि भरतिसपरती । नयायशव--मणवहणवता स- सजयत, नातलयजातीयम‌। अतः

निगण निरविशष सवविरकषण कन- चिदपयतसयजातीयन सखजयत इतयतत‌ नथायविरदध भवत‌ । तसात‌ नितयालपतजञानसवरप-

“परजञान बरहम ह” इतयादि शरतिया बाधित हो जाती ह.। निरवयव होनक कारण आतमाम कोई दशविशष नही ह; ओर उसस मनका नितयसयोग ह; इस कारण उसम समतिकी उतपततिक नियमकी अनपपतति अनिवारय हो जाती ह तथा शरति, समति और यकतिस विरदध आतमाक ससरगधरमी होनकी कलपना मी होती ह । “असनन [आतमा] का किसीस सग नही होता” “सगरहित और सबका पालन करनवाला ह” ऐसी शरति और सपति परसिदध ह । यकतिसि भी जो वसत सगण होती ह. उसतीका गणवानस ससग होता ह; विजातीय बसतओ- का सयोग कमी नही होता । अतः

निरयण निरविशिष और सबस विलकषण आतमाका किसी भी विजातीय वसतस सयोग होता ह--ऐसा मानना नयायविरद होगा । अतः नितय अविनाशी जञानखरप परकाश-

वाकय-भाषय

अनातमविजञान निवतयनती सा

तनिघरतया सवाभाविकसयासरत-

तवसय निमिततमिति कबपयत ।

यत आह "वीरय विदयया विनदत ।

कि वह अनातमविजञानको निवतत

करती हई उसकी निदनततिक दवारा

खाभाविक अमततवकी हत बनती ह, कयोकि [अगल वाकयस ] “विदयास

[अजञानानधकारको निवतत करनका ]

सामथय परास होता ह? ऐसा कदा भी ह।

खणड २ ] शओाङकरभाषयारथ ५७९,

त < ~ चय = ~ पाणा ~ सथी

पद-भाषय

जयोतिरातमा अललतययमरथः सव- बोधबोडतव आतमनः सिधयति,

नानयथा । तसात‌ शरतिबोध- विदित मतम‌ इति यथा-

वयाखयात एवारथोऽसाभिः |

यतपनः सवसवयता परतिबोधः

जरहमणः खपर- विदि तमितय सवचताया सयारथो वरणयत, ततर

आओऔपाधिकतवम‌ अवति सोपाधिकसव

आतमनो बदधय पाधिखरपसवन भद परिकरपयातमनातमान वततीति सबयवहारः--“आतमयवातमान

पसयति(च०उ०४।४।२३)

““खथमवातमनातमान वसथ तव परषोततम” ( गीता १०।१५ ) इति। न त निरपाधिकसयातमन

एकतव खसवदयता परसवयता चा समभवति ! सवदनखसरप-

मय आतमा ही बरहम ह--यह अरथ “ आतमक समपरण बोधोक बोदधा होनपर ही सिदध हो सकता ह, ओर किसी परकार नही । इसलिय 'रतिबरोधविदितम इसका--हमन जसी वयाखया की ह- वही अरथ ह]

इसक सिवा शरतिवौधविदितम

इस वाकयका-जो खपरकाशता अरथ बतलाया जाता ह वहा आतमाकतो

सोपाधिक मानकर उसम बदधि आदि उपाधिक रपस भदकी कलपना कर “आतमास आतमाको

जानता ह” ऐसा वयवहार हआ करता ह, जसा कि ((आतमाम ही आतमाको दखता ह” “ह परषोततम !

तम खय अपनस ही अपनको

जानत हो” इतयादि वाकयोदरारा कहा

गया ह । किनत निरपाधिक आतमा

तो एक रप होनक कारण उसम

खसवदता अथवा परसबचता समभव ही नही ह | जिस परकार

वाकय-भषय

चीरय सामथयमनातमाधयारोप-

मायाखानतभवानतानमिभावय- `

रकषण बर विदयया विनदत ! तचच

किविशिषटम‌ ? अडरतमचिनाचि ।

विदयस वीय--सामथय यानी अनातमाक अधयारोप तथा माया और अनतःकरणकर कारण परापत हए अजञानस जिसका परामव नही हो सकता ऐसा बल परापत होता ह। वह किस विषणस यकत ह १ वह अमत यानी अविनाशी ह ।

८० कनोपनिषद‌ | खणडः? श र ¬. "५. वा < > ~. बक सर क

पद-भाषय

चवातसवदनानतरापकषा च न

समभवति, यथा परकाशख परका-

शानतरापकषाया न समभवः तदत‌।

वौदधपकष सवसवयताया त कषणमङखरतव निरातमकतव च विजञानसय खात‌; न हि विजञात- विजञातविपरिरोषो भिधतऽवि- नाितवात‌"*(चर*उ० ४।३।३०) “नितय विशर सगतम‌"? ( झ० उ० ११६) सबा एष महानज आतमाजरोऽमरोऽमतोऽ- मयः" (ब० उ० ४७।७। २५) इतयायाः शरतयो बाधयरन‌ ।

यतपनः अतियोधशबदन परतिवोधारन- निरनिमिततो योधः परति-

विचार वोधः यथा सकषख इतयथ परिकलपयनति, सढटि-

परकाशको किसी अनय परकारोकी अपकषा होना समभव नही ह उसी परकार जञानखरप होनक कारण उस [ अपन जञानक लिय ] किसी अनय जञानकी अपकषा नही ह )

तथा बोदधमतानसार तो विजञानकी खसवदयता खीकार करनपर भी उसकी कषणमजगरता और निरातमकता सिदध होन छगगी । [ ऐसा होनपर ] “अविनाशी होनक कारण विजञाताकी विजञितिका खोप नही होता” “नितय विर और सरवगत ह”? “वह यह महान‌ अज आतमा अजर अमर अमत और अमयरप ह” इतयादि शरतियो बाधित हो जायगी ।

इसक सितरा जो छोग परति- बोधशबदस, जसा कि सषपत परपकौ होता ह वह निरनिमितत बोध

परतिबोध ह--ऐस अरथकी कलपना करत ह अथवा जो दसर छोग

चाकय-भाषय

अविदयाज हि वीरय विनाचि।

विदययाचिदयाया बाधयतवात‌ । न

त विदयाया वाधकरोऽसतीति

विदयाजमसत वीरयम‌ । अतो विदाखवतव निमिततमान भवति ।

"(नायमातमा वलहीनन लभयः?

इति चाथरवण (स०उ०३।२। ४)

अविदयास होनवाला बल नाशवान होता ह; कयोकि अविदया विदयास बाधित हो जाती ह | किनत विदयाका बराधक और कोई नही ह, अतः विदयाजनित चीय अमत होता ह। इसलिय विदया तो अमततवम कवल निमिततमातर होती ह। आथरवण शरतिम भी कहा ह--(“यह आतमा बलहीनस परास होनयोगय नही

हः ।

खणड २ ] दाडरभाषयाथ <

ह रा पकाय - - अ ~ वा वा 29 - नहर हट "का नआपक22

पद-साषय

जञान परतिबोध इतयपर; नि-

निमिततः सनिमिततः सकदासददरा

परतिवोध एब हि सः! अमततवस‌

अमरणमभाव सथातसनयवसथान

मोष हि यसाद‌ विनदत रभत

यथोकतात‌ शरतिबोधातमतिबोध-

विदितातमकात, तसासरतिवोध-

विदितमव मतमितयभिपरायः ।

बोधसय हि भरतयगातपविषयतव

च मतममततव हतः न हयातमनोऽ-

नातमतवममततव मवति आतम-

5 (~€

सादातमनोऽशरततव निनिमि

[ मकतिक कारणमत ] एक बार होनवाल विजञानको ही परतिरोध, समझत ह-[व कछ भी माना कर ] तरिना निमिदस हो अथवा निमिततस तथा एक बार हो अथवा अनक बार वह सवरका सवर परति- बोध ही ह [ इसका विशप विवचन करनस हम कोई परयोजन नही ह| कयोकि ममकषगण उपरयकत परतिबोध- स अरथात‌ परतयक बौदध परतययम होनवाल आतमजञानस ही अमततव--- अमरणमाव अथौत‌ अपन आतमाम सथित होनारप मोकष परापत करत ह। अतः वह (बरहम) परतयक बोधम अनभव होनवाल ही माना गया ह-- ऐसा इसका अभिपराय ह । कयोकि बोधका परतयगातमविपयकर होना ही अमरतवम कारण माना गया ह। आतमाकी अनातमरपता उसक

अमरतवका कारण नही हा सकती | आतमाका अमरतव उसका खरप-

ततमव + भत होनक कारण अहतक ही ह ।

वाकय-भाषय

खोकऽपि विदयाजमव बलमभि-

भवति न चारीरादिसामय यथा

। हसतयादः । द |)

लॉकमस भी विदयाजनित बल ही दसर बलोका पराभव करता ह, शरीर आदि- का बल नही; जस हाथी-घोड आदिक शारीरिक बल [ मनषयक ]विदयाजनित बलको नही दवा सकत ।

<२ कनोपनिषद‌ [ खणड २

(५ 9 थ त‌ = 2 3 4 १. < २.

पद-भाषय

एव सतयतवमातमनो यद- | इसी परकार आतमाकी मतय भी

विदयया अनातमतवपरतिपततिः ।

कथ पनरयथोकतयातमविधया-

शाननामततव- तसव विनदत इतयत

मलमकर आह--आतमना सयन

रपण विनदत लभत वीय बल

सामयम‌ | धनसहायमनतरौपधि-

तपोयोगकत वीय मतय न

शकरोतयमिभवितम‌ अनितयवसत-

ततवात‌; आतमविदा त वीय-

अविदयावश उसम अनातमतवकी उपलबधि ही ह |

तो फिर उपयकत आतमजञानस करिस परकार अमरतव खभ कर

लता ह ? इसपर कहत ह---

[ मसकष परष | आतमा अरथात‌ अपन खरपक जञानस बीरय--बल यानी [ अमरतव-परापतिका ] सामरथय परापत करता ह। घन, सहाय, मनतर, ओपधि, तप और योगस परापत होनवाछा वीरय अनितय बरतका किया हआ होनस मतयका परामव करनम

समरथ नही ह; किनत आतमविदयास होनवाला वीरय तो आतमादवारा ही

मातमनव विनदत, नानधन इतयतो- परपत करिया जाता ह---अनय किसीस

जननयसाधनतवादातमविदयावीयसस नदी । इसलिय आतमविदयाजनित ˆ वीरय किसी अनय साधनस परापत

तदव वीथ मतय शकरोतय- | होनवाछा नही ह; अतः बही वीरय

वाकय-माघय

अथवा भरतिवोघविदित मत-

मिति सकदवारोषविपसतनिरसत-

ससकारण खपतपरतिवोधवयहि-

दित तदव मत जञात मवतीति । का

अथवा गरपदशः परतिवोीधसतन

अथवा 'परतिवरोधविदित मतम‌ इस

वाकयका ऐसा अरथ समझना चाहिय कि खमस जग हएक समान जिसक समपरण विपरीत ससकारोका एक बार ही बाघ हो गया ह, उसोस जो जाना जाता ह बही मत अरथात‌ जञात होता ह | अथवा गर का उपदण ही परतिबोध ह उसस जाना

खणड २ | &

शाइरसभाषयाथ ८३

ता - ~ य ~ व सर

पट‌-माषय

मिमचितम‌ ! यत एवमातम-

विदयारत वीयमातमनव विनदत,

अतः विदयया आतमबिषयया

विनदतऽगरतम‌ अभरततवम‌ ।

“नायमातमा बलहीनन लभयः"

( मर० उ० ३।२)४) इतया-

वण । अतः समथो हतः अघ-

मतयका परामव कर सकता ह | कयोकि [ ससषष परप } इस परकार

आतमविदयाजनित वीरयको आतमादवारा ही परापत करता ह, इसलिय आतम- समबनविनी विदयास ही अमरतव परापत

करता ह । अथरववदीय ( मणडक ) उपनिपदम कहा ह---“यह आतमा बलददीन परपको परापत होन योगय

नही ह” | अतः यह आतमविदयारप हत [ मदयका निवारण करनम] समरथ ह कयोकि इसस अमरतव

ततव हि विनदत इति ॥४॥ गरापत करता ह ॥ 9 ॥

=-=

कटा खड सरनरतिरथकमता- जिनम सासारिक दःखोकी बहरता

दिष ससारदःखबरहरष पराणि- | परतादि

निकायष जममजरामरणरोगादि

सगरापतिरशञानात‌ अतः--

ह उन दवता, मनषय, तिरयक‌ और मराणियोम अजञानवश

जनम, जरा, मरण ओर रोगादिकी परापति होना निशचय ही बड दःखकी बात ह | अतः--

चाकय-भाषय

वा विदित मतमिति। उभय | हआ ही मत (जाना हआ) ह।

भरतिवोधशचबदपरयोगोऽसति खछ-

भविबदधो शरणा परतिवोधित

इति । परव त यथारथम‌ ॥ ७ ॥

सोनस जागा हआ तथा गरदवारा परतिवोधित- दोनो दही जगह शपरतिवोधः शबदका परयोग होता ह । परनत इन तीनोम सबस पहला अरथ ही ठीक ह॥४॥

«>>->0१0< ९9६04

८४ कनोपनिषद‌ [ खणड २

ए - = प - ~ वय = ह < ~ ब ¬ व बा 230, = 20७. पक > व < + कय - + पा

आतमजञान ही सार ह

इह चदवदीदथ सतयमसति न चदिहावदीनमहती

विनषटिः । भतष भतष विचितय धीराः परतयासमाषटोकाद‌-

सरता मवनति ॥ ५॥

यदि इस जनमम बरहको जान डिया तब तो ठीक ह और यदि उस इस जनमम न जाना ततर तो बडी मारी हानि ह। बदधिमान‌ छोग

उस समसत पराणियोम उपलबध करक इस छोकस जाकर ( मरकर )

अमर हो जात ह ॥ ५॥ पर-भाषय

इह एव चत‌ मषयोडघिकतः। यदि किसी अधिकारी परपन समथः सन‌ यदि अवदीद‌ | सामरथय छाम कर इस छोकम ही आतमान यथोकतलकषण विदित- | उपरयकत रकषणोस यकत आतमाको चान‌ यथोकतन परकारण; अथ | परवोकत परकारस जान लिया, तवर तदा असि ससय मचषयजनम- | तो उसक इस मलषयजनमम सधय--

,सयसिननविनादयोऽथवतता = वा | अविनाशिता---सारथकता---सदभाव वाकय-भाषय

इह चदवदीत‌ इतयवदयकत- | {इहनदवदीदथ सतयमसि यह ` शरत आतमसाकषातकारका अवदय

वयतोकतिरचिपयय विनाशशरतः । | कनतवयता वतलानवाली ह, कयोकि ५ इसकी विपरीत अवसथाम अरतिन

इह मञषयजनमान सतयवदय- | विनाश बतलाया ह | इह अरथात‌ इस

मातमा वदितवय इतयतदधिघीयत ! | महपय-जनमक रहत हए आतमाको अवदय जान लना चाहिय--ऐसा

कथमिह चदवदीदधिदितवान‌, अथ | विधान किया जाता ह किस परकार ८ , | कि यदि इस जनमम आतमाको जान

सतय परमारथततवमसतयवापत | नवा तो ठीक ह. उस पनायत

तसय जनम सफलमितयपरिपरायः || मास हो गया; अमिपराय यह कि उसका जनम सफल हो गया | ओर

न चदिहावदीजष विदतिवान | यदि उस इस जनमम न जाना-न

खणड २ ] शाटरसापयाथ ८५

[व ~~ वा = क पररिकर १4० >रटकिरक चाप 29७ गिट ७ "व किक 22७० ५८223. 32

पर-भाषय

सदधावो वा परमारथता वा सतय विदयत । न चदिहवदीदिति, न

चद‌ इह जीवद अधिकतः अवदीत‌ न विदितवान‌। तदा

महती दीरघा अननता विनषटि विनाशन जनमजरामरणादि-

परबनधाविचछदरकषणण ससार गतिः।

तसादव गणदोषौ विजा- ननतो बराकमणाः भतष भतष

सरबभतष सथावरष चरष च एक- सातमतचव बरहम विचितय विजञाय

अथवा परमारथता विदयमान ह । और यदिन जाना अरथात‌ इस लोकम जीवित रहत हए ही उस

अधिकारीन आतमजञान परापत न

किया तो उस महान---दीरघ यानी अननत विनाश अथौत‌ जनम, जरा ओर मरण आदिकी परमपराका विचछद न होनारप ससारगतिकी

ही परापति होती ह]

अतः इ परकार गण और दोषको जाननवाल धीर---बदधिमान‌ बराहमण- लोग पराभी-पराणीम अरथात‌ समपरण चराचर जीवोम एक बरहमलरप आतमततवकोी विचितया-जानकर

चाकय-भाषय

चथच जनम । अपि च महती

विनषटिमहानविनाशो जनम

मरणपरवनधाविचछदपराधिलशषण+

सथाचतसतसमादवशय तदधिचछदाय

जञय यातमा ।

कानन त कि सयादिरयखयत ।

भतष भतष चराचरष सब

इतयरथः । विचितय पथडनिषकषय

एकमातमतततव ससारधरमरसपणट-

समकष तो उसका जनमकथा ही गया]

यही नही। जनम-मरणपरमपराकी

अविचछिननतारप वडी भारी हानि भी

ह ¦ अतः उस परमपराक विचछदक लिय आतमाको अवशय जान छना

चाहिय ।

आतमजञानस होगा कवा सो [ भतष

भतप आदि बाकयस ] बतलात ह । भत-भतस अरथात‌ समपरण चराचर पराणियोम आतमाका शोधनकर--उस उसस अग निकालकर यानी ससार-

घरमोस असपषट एकमातर आतमतततवको

~. कनोपनिषद‌ [ खणड २

[ य ता ~ य. र.

पद‌-भषय

साकषातछतय धीराः धीमनतः परतय

वयावतय ममाहभावलकषणाद-

` विदयारपादसमाषछोकाद‌ उपरमय

सरवालमकमावमदरतमापननाः सनतः अगरता भवनति बहव मवसती- तयरथः) “स यो ह व ततपर बरहम चद बरहमव भवति ( य° उ० ३।२।९ ) इति शरतः ॥५॥

अरथात‌ साकषात‌ कर यहास छौटन- पर अरथात‌ ममता-अहतारप इस अविदयातमक छोकस उपरत होकर

सबम आलमकतवरप अदरौतमावको परापत होकर अमर अरथात‌ बरहम ही हो जात ह, जसा कि “जो परष निशचयपरवक उस परतरहको जानता ह वह बरहम ही हो जाता ह” इस शरतिस सिदध होता ह ॥ ५॥

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इति दवितीयः खणडः ॥२॥ ~< ><

वाकय -भाषय

सातममावनो पलभयतयथः अन का- €. ० ०

थतवादधातना न पनशचितवति

धीराः

धीमनतो विवकिनो विनिवतत

बादयविषयाभिदाषाः भल सतवा-

समभवति विरोधात‌ ;

समादोकाचछरीरायनातमलकषणात‌

वयाचततममसतवाहकाराः सनत

इतयरथः । असता अमरणधरमाणो

नितयविजञानासततवखभावा एव

भचनति ॥ ५॥

आतमभावस उपछरबध कर धीर--

बदधिमान‌ अरथात‌ विवकी परष-- जिनकी वाहय विषयोकी अभिलाषा

निवतत हो गयी ह--मरकर अरथात‌ इस शरीरादि अनातमसखरप लोकस

जिनका ममतव और अहकार निचरतत हो गया ह ऐस होकर अमत---अमरण- धमा यानी नितयविजञनामतखभाववाल ही हो जात ह । धाठओक अनक अरथ होत ह [ इसीलिय यहा “विचितया करियाका उपयकत अथ ठीक ह ] यहा इसका "वयन करक? ऐसा अथ नही हो सकता, कयोकि आतमाक समबनधम ऐसा अरथ करनस विरोध आता ह॥ ५॥

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इति दवितीयः खणडः ॥ २॥ ~---०० ५9००

खणड] ` शाइरमभाषयारथ ८७

व - : प: + वा 2 0 ~ > ~ द 4 कक - ~ "कप: अ 22७ ~

हटकीयः खणडय; >+-+००४९७६००६०५०---

यकषोपाखयान चाकय-भाषय

बरहय ह दवभय इति बरहमणो

दविजञयतोकतिरयला- नान धिकयारथा । समाता

परयोजन गनः हला पनहमविदया यदधीनः

परषारथः । अत

ऊरवमरथवादन बरहमणो दरविजञय

तोचयत । तदधिकषान कथ ल नाम

यललमधिक करयादिति |

शमादरथो वादनायोऽभिमान-

शातनात‌ ! खमादि था बरहय

विदयासाधन विधितसित तदरथोऽय-

मरथवादासनायः। न हि शमावि-

खाघनरदितसयाभिमानरागदधपा-

यकतसय वहमविकषान सामथय मसति । वयाचतवाहममिथयापरतयय-

गरादयतवाददयणः । यसमाचा-

गनयादीना जयाभिमान खातयति।

ततशच बदयविकञान दरशयतयमि-

मानोपशम ॥ तसमारछमादि-

साधनविधानाथो5यमरथबाद इतय-

चसीयत ।

“बरहम ह दवभयो! इतयादि वाकयस [ आरमभ होनवाली आखयायिकाक

दवारा] जो बरहमकी दरविशयता बतछायी गयी ह वह, बरहमपरासिक सवि अधिक यजञ करना चाहिय--इस परयोजनक लिय ह । जिसक अधीन परषारथ ह वह बरहमविदया तो समापत हो गयी । अब आग अरथवाददवारा बरहमकी दरविजयता बतलायी जाती ह, जिसस कि उस परापत करनक लिय मनषय

किसी-न-किसी तरह अधिक यजञ कर।

अथवा यह शरतिभाग अमिमानका नाय करनवाला होनस शमादिकी परापति-

क लिय हो सकता ह | या शमादिको बरहमविदयाका साधन बतलाना दष ह; अतः उसीक लिय यह अथवाद-शरति ह! जो परष शमादि साधनस रहित तथा अमिमान ओर राग-दवपादिस यकत ह. उसका बरहमजञानकी परापतिम सामय नही हो सकता; कयोकि बरहम बाहय मिथया परतीतियोक निरसनदवारा ही गरहण किया जान योगय ह। यह आखयायिका अधि आदिक विजय- समबनधी अभिमानको नषट करती ह, इसलिय अभिमानक शानत होनपर ही बरहमनानकी परापति विखछाती ह। अतः इसका साराश यह हआ कि यह अथवादः गमादि साधनोका विधान करनक लिय ही ह ।

८८ कनोपनिषद‌

ए य ~ = वा = द वाई: "किट 2 बहा६:22%- यईकट- ऋषि: 4७ आ६८०:22:७च< 2

[ खणड ३

चाकय-साधय

खगणोपासनाथो ` |

तवात‌ । नद यदिचषासत इतय-

पासयतव बरहमणोऽपोदितमपोदित-

-तवादनपासयतव परास तसयव

बरहमणः खगणतवनाधिदवमधयासम

चोपासन विधातनयमिवयवमरथो

वा! इतयधिदवत तदधनमिसयषा-

सितवयमिति हि वकषयति ।

बरहमति परो लिङगात‌ । न

हानयतर परादौशवर

नितयसरवञात‌ परि- अहमपदाभिपराय:

४५.५१

शरयागनयादीसतरण वजनीकत

सामरथयमसति तनन शशाक

बगघमितयादिलिजाइलाशबदवाचय

ईशवर इतयवसीयत । न दयनयथा-

भिसठण दगध नोतसहत वायरवा

दातम‌ । ईशवरचछया ठणमपि

चजरीभवतीसयपपदयत । ततसिदधि-

जगतो नियतपरदतततः ।

अथवा यह सगणोपासनाका विधान

करनक लिय मी हो सकता ह, कयोकि पहल तरहमक उपासयतवका निषध कर

चक ह । पहल “नद यदिदमपासतः इस शरतिस बरहमक उपासयतवका निषध हो चका ह; इस परकार निषिदध हो जानस बहयकी अनपासथता परापत

होनपर उसी अरहमकी सशणभावस अधिदव या अधयातम उपासना करनी चाहिय इसीको बतलानक लिय यह अरथवाद हो सकता ह, जसा कि आग चलकर “तददनमितयपासितवयम‌! इस

[४। ६ मनतर] स उसक अधिदवरप- क उपासयतवका वरणन करग |

“बरहम! इस राबदस यहा परमातमा (ईशवर ) समझना चाहिय; कयोकि यहा उसीकी सचना दनवाल लिग (चिहन ) दख जात ह । नितयसरवजञ परमशवरकी छोडकर और किसीम अचि आदि दवताओका परामव करक तणको चञच बना दनकी शकति नही हो सकती । अतः (तनन शशाक दगधम‌?

( उस अचि नही जला सका ) इतयादि लिगस बरहमशबदका वाचय ईशवर ही ह--ऐसा निशचित होता ह। इसक सिवा और किसी कारणस अथि तणको जलानम और वाय उस उडानम 'असमथ नही हो सकत थ | हो, यह ठीक ह कि ईशवसकी इचछास तो तण भी वञरटो जाता ह। उस ईशवरकी सिदधि ससारकी नियमित परइतचिस

खणड ३ ] खडरभाषयषथ ८९.

क "2७५ ना<०-20७ "०220७ ११/६२2:७-

चाकय-भाषय

शरतिसखरतिपरखिदधिभिनितय- यदयपि नितयसरचविजञानखरपः ~ €. श ४५

सवातमा; सवदाकतिमान‌ इशवर ४०१ ~~ ॐ कप [3 सिदधिस 25. न. सविजञान शशवर सरवातमनि सव शरति, समति और असिदधिस सिदध

शकतौ सिदधऽपि रालनारथनिशच-

यारथसचयत । तसयशवरसय सदधाच-

सिदधिः कतो भवतीतयचयत ।

यदिद जगददवगनधरव यकषरकष-

॥ पितपिशाचादि- ईशवरसय आर

कषण चवियतपथि- जगतरियनततव-

९ हक तप

निरपणन‌ “थ रपिचयचनदरञ ह-

पराणयपभोगयोगयसथानसाधन-

समपनधि तदतयनतऋशलछशिलिपि-

भिरपि दरनिमाण

निभिततादधरपनियतपरदततिनिदतति-

[= दशकाल-

- करममतदधोकतकरमचिभागकञपरयल-

पवक भवितमहतति; कारयतव

खति यथोकतलकषणसवात‌ ! यद-

मासादरथशयनासनादिवत ।

विपकष मातमादिवत‌ !

भी ह तो भी शाघछठकर अको निशचय करनक लिय यहॉ यह

[अनमान_ कटा जाता ह | उस ईशवरक सदधावकी सिदधि किस मकार होती

ह १ इसपर कहत ह--

खरम; आकादय; परथिवी, सरय, चनदर, अह और नशषतरोक कारण विचितर ठीखनवाला तथा नाना परकारक पराणियोक उपभोगयोगय सथान और साधनोस समबनध रखन- वाला यह जितना दवता, गनधरव, यकष; राकषस, पिदगणण और पिशाचादि-

रप जगत‌ ह वह अतयनत कश शिवपियोददाय भी बनाया जाना कठिन

ह। अतः यह दश, कार और निमितत- क अनरप नियमित परदनतति-निदवततिक

करमवाला जगत‌ मोकता और करम विभागको जाननवाक किसी चतनकर परयकषपरवक ही हो सकता ह; कयोकि काययरप होनक कारण यह उपरयकत लकषणोवालय ह । जस कि गर; परासादः रथ) गयया और आसन आदि [ सभी कारयरप अनितय पदाथ दख जात ह]; तथा इसक विपरीत [ वयतिरकी इषटानतसवरप ] आतमा आकाश आदि [नितय पदारथ ह ]।

९० कनोपनिषद‌ [ खणड ३ [था गिर ०:20: 2; त 2७ नकए2722%: नया: 2 29 नए <-22%- ८ ८2/% १.

वाकय-भीषय

करमण वति चत‌. ? । पर-

कमणाम- तनबसय निमिततमातर-

नतर तवात‌ । यदिदिशपमोग-

वचिचय पराणिना

ततछाधनवचितय च दशकाल-

निमिततायरपनियतपरचततिनिचतति-

करम च तनन नितयसवजञकलठकम‌ ।

कि तरहि? करमण एव तसया

चिनतयभमावतवात‌ सरवशच फट-

हततवाभयपगमात‌ । सति करमणः

फलहततव.. करिमीशवराधिक-

कलपनयति न नितयसयशवरसय [> ह

नितयसवजञराकतः फलहततव क

चत‌।

न करमण पवो पभोगवचिञया-

चति

दय पपदयत । कसमात‌ १ कठतनतर-

तवातकरमणः । चितिमतपयल-

नित हि करम ततपरयतनो परमात‌-

उपरत सदशानतर कारानतर

चा * नियतनिमिततविशपापस

कलः फल जनयिषयतीति न यकत

मनपशयानयदातमनः अयोकत‌।

यदि कहो कि जगत‌की उतपतति कमस ही ह तो ऐसा कहना ठीक नदी; कयोकि करम परतनतर होनक कारण कवल उसका निमितत हो सकता, ह । [ मीमासककी यकतिको सपषट करक दिखलछात ह] यह जो पराणियोक उपभोगकी विचितरता ह तथा उनक साधनोकी विभिननता और दश, काल तथा निमिततक अनरप परदमतति-निदतति-

का नियमित करम‌ ह वह किसी निसय सरवञका रचा हआ नही ह। तो किसका रचा हआ ह १ [ इसपर कहत द] यह कवल कमका ही फल ह कयोकि वह अचिनतय परभाववाला ह तथा समीन उस फलक हतरपस सवीकार किया ह। इस परकार फालक हतरपस करमक रहत हए. ईशवरकी अधिक कबपना करनस कया लाभ ह! अतः नितय सरवजञ और सरवशकतिमान‌ इशवरम फलका दवतव नही ह ।

सिदधानती-कवल करमस ही उपभोग आदिकी विचितरता समभव नही ह । किस कारणस १ कयोकि करम करताक अधीन ह । चतन परपक यललस निषपनन होनवालछा करम उसक परयत निदतत होनस निदतत होकर दगानतर या कालानतरम किसी नियत निमितत

विशपकी अपकषास ही करताको फछकी परापति करावगा--ऐसी वयवसथा होनक कारण यह कहना उचित नही कि वह अपन किसी दसर परवरतककी अपकषा न करक ही फल द दता ह । यदि

खणड ३ ] शाडडयमाषयारथ ९१

0 ० त)

चाकय-भाषय

परयोकतति

नियरतितोषसि तवा

करतव फलकाड

चनमया

परयोकषय फटाय यदातमानरप

फलमिति ।

न। दशकालनिमिततविशषान-

मिजषतवात‌ । यदि हि करता दश-

विशपाभिजञ: सनखातनतयण कम

नियञयाततोऽनिषटफरसयाप-

४९ 4 कत 9

योकता सयात‌ । न च निनिमितत

तदनिचछयातमसमवत तचचम-

वदधिकरोति करम

न चातमकतभकरतसमचतमय-

| १३ सकानतमणिवद‌ङषट भवति

परधानकरदसमचततवातकमणः ।

भरताशरयमिति चनन साधनतवात‌।

कतकरियायाः साधनभतानि

भतानि करियाकराङऽजभतवयापा-

राणि समापतौ च हलादिवतकरना

करम करनवाल जीवको ही फलकालम उसका परवरतक माना जाय तो [उस समय वह करमस कदगा --] “अर कस | मन तझ किया था; अब म ही तझ फल दनक लिय मरचरतत करता ह; अतः सझ अपन अनरप फल द ।?

किनत ऐसा होना समभव नही ह, कयोकि जीव दश, काक और निमिततविजपस अनभिन ह । यदि कता ही दशादि विशषका जञाता होकर खतन‍नरतापरवक कमको परवनत करता तो अनिषट फछक लिय तो उस पररित ही न किया करता । इसक सिवा;

किसी अनय निमिततकी अपकषा न रखकर कताक इचछाक विना ही; आतमाक साथ निलयसमबह हआ करम अपन-आप ही चमडक समान विकार- को परापत नही होता |

भणिक-विजानरप आतमाका किया हआ करम करतास नितयसमबदध न होकर चमबक-पतथरक समान अपन-आप ही फलका आकरषण नही कर सकता; कयो- कि करमका परधान करतास नितयसमबनध ह। यदि कहो कि करम भतोक आशरयस रहता ह तो ऐसा कहना ठीक नही; कयोकि व तो कवछ उसक साधन ह । करताकी करियाक साधनरप भतः जो कवल करियाकारम उसक वयापारका अनभव करत ह ओर वयापारक समापत हो जानपर हल आदिक समान

णर‌ कनोपनिषद‌ [ खणड ३

0 = 2, २-2५ बिक "करिए नह 20. य 2 24७ - 2 र ~= अ ८.

घाकय-भसाषय

परितयकतानि न फरछ कालानतर

कतसतसदहनत न हि हल कषतराद‌

बीहीनगई परवशयति। भतकरम-

णोशवाचतनतवातखतः परदचयज प-

पततिः । वायवदिति चननासिदध-

सवात‌} न हि चायोरचितिमतः

सखतःपरचततिः सिदधा सथादिषव-

दरशनात‌ ।

खछाललातकरमण पवति चचछासख

हि करियातः फलसिदधिमाह

नशवराद: खरगकामी यजततयादि।

न च भरमाणाचिगततवादानथकय

यकतम‌ । न चशवरासतितव असा-

णानतरमसतीति चत‌ ।

न | दषटनयायदानादपपकतः ।

किया विधा रश करियामद- दिदि निरपणम‌ फरादषटफखा च, डछ-

फरापि दविविधाननतरः-

फलागामिफला च, अननतरफला

गतिभजिलकषणा। काछानतरफला। ५.

करतादवारा तयाग दिय जात ह, कालानतर- म उसका फर दनम समरथ नही हो सकत । हल धानयोको खतस ल जाकर

घरम नही पहचा सकता । अतः अचतन होनक कारण मत और करमोकी खतः परवरति असमभव ह | यदि कहो कि [ अचतन होनपर भी ] वाथक समान इनकी खतः परचरनति हो

सकती ह तो ऐसा कहना ठीक नही) कयोकि वह असिदध ह | अचतन वायकी खतः परवतति सिदद नही हो सकती; कयोकि रथादि अनय अचतन

पदारथमि वह दखी नही जाती ।

मीमासकर-गाखरानखार तो करमस ही फल मिलता ह, कयोकि 'सखरमकामो यजतः इतयादि शासतर कमस ही फलकी सिदधि वताता ह; ईशवरादिस नही । इस परकार जो बातत परमाणसिदध ह उसको वयथवतलाना भी ठीक नही ह, और ईशवरकी सतताम मी [अरथापततिको छोडकर] और कोई परमाण नहो ह ।

सिदधानती-ऐसा कहना ठीक नही; कयोकि दषट नयायको तयागना उचित नही ह | करिया दो परकारकी ह-- इषटफ और अचदषफला । इदषट-

फलक भी दो भद ह---अननतरफला और आगामिफा । गमन और भोजन इतयादि करियाए अननतरफला

ह तथा कषि और सवा आदि

१. ततकार फल दनवाली । २. भविषयम फल दनवालो ।

खणड ३ ] शाङकरमाषयारथ रद

9 मि चि य नि टिक क ० "पड

चाकय-माषय‌

च कषिसवादिखकषणा ततराननतर-

फला फलापवरनिणयव काङानतर-

फा ततपननपरधव सिनी )

आतमसवयादचीन हि कषि-

सवदः फलम‌ यतः । न चोभय-

सयायनयतिरकण खतनथ करम

ततो चा फर दषटम‌। तथाच

करमफलपरापती न दशनयायहान-

सपपदयत । तसमाचछानत यागादि

करमणि नितयः कर करमफल-

विभागजञ ईशवरः सवयादिवदया-

गादयघरपफखदातोपपदयत । स

चातमभतः सरवसय सरवकरिया- फटषरतययसाकषी नितयदिजञान-

खभावः ससारघमरससपए:। शरतशच । “न छिपयतत छोक-

४ दभखन बाहाः छः सतितवः = 34 (क० ड०२।२। ११) साधनम‌ ८... >~

जरा सतयमतयति (ब० ड०३।७५॥ १) “विजरो चिषतयः ॥ ( ० उ०

८ । ७} १) “सतयकामः सतय- सङसपःः (छा० उ० ८ !७ १) “"पष सवशवरः (मा० उ० ६) “साध कम कारयति" (कौषी ड० ३। ९) “अनशचनननयो अभि-

काखानतरफ ह । उनम जो जो अननतरफला ह व फलोदयक समय

ही नषट हो जाती ह तथा कालानतर- फा उतपनन होकर [ फर दनस परव ही] नषट हो जानवाली ह ।

कयोकि कपिका फर अपन अधीन

ह और सवा आदिका फल अपन सवयक अधीन ह। इस दो परकारक नयायको छोडकर कम या उसस परापत होनवाला फर खतनन दखा मी नही जाता; तथा कमफलकी पराकषिम इस

सपषट ठीखनवाकझ नयायको छोडना

उचित भी नटी ह, इसलिय यागादि कमकरि समास हो जानपर उन यागादि- क अनरप फर दनवाला तथा करता; कम और फलक विभागको जाननवाला ईशवर सवय आदिक समान होना ही चाहिय; और वह सबका अनतरातमा; समपण करमफल और परतीतियोका साकषी, नितयविजञानखरप. तथा सासारिक धरमोस अछता होना चाहिय |

यही वात शरतिस मी सिदध होतो

ह । “समपरण छोकीस विछकषण परमातमा

लोकक दःखस लिपत नही होता”

“बह जरा ओर सतछको पार किय हए

ह” “जरा और मतयस रहित ह?! “वह

सतयकाम सतयसङकरप ह?” “यह सरवशवर

दः बह झम करम कराता ह? “दसरा

[ पकषी ] कमफको न भोगता हआ

णछ कनोपनिषद‌ [ खणड ह

0 ५ नव 27229 नई 2 2 3 ५.

चाकय-भाषय

चाकशीति” (अव० उ० ४। ६)

“परततसप वा अकषरसय परशासन"

(ब०ण० ०२} ८। ९) इतयादया

असखारिण एकसयातमनो नितय-

मकतसय सिदधौ शरतयः | समतयशच

सहसनशो विदयनत! न चारथचादाः

दाकयनत कसपयितम‌ । अननय

योभितव खति विजञानोतपादक-

तवात‌ । न चोतपनन विजञान

बाधयत ।

अपरतिषधनच । न चशवरो

नासतीति निषधोऽसति । परापतय-

भावादिति चननोकततवात‌ । न

हिसयादितिचतपरापतयभावातपति-

„~ 9 षधो नारभय इति चनन ।

ईभवरसदधाव सवायसयोकततवात‌ ।

अथवाशरतिषधादिति कमणः फठ-

दान .ईशवरकाछादीना न भति-

षधोऽसति! न च निमिततानतरः-

~~~ ---

_- ___ ~~~ ~~~ _ ~ _‌_-__~_‌] ब]

कवल उस दखता ह?” “दरस अकषर- बरहमको आजञाम [ सय और चनदरमा सथित ह ]” इतयादि शरतियो ससार- धमसि रहित एक नितयमकत आतमाकी सिदधिम ही परमाणभत ह । इसी परकार

सहखो सपरतिरयो मी मौजद ह । य सब अरथवाद ह--ऐसी कलपना मी नही की जा सकती; कयोकि व किसी अनय विधिक जपभत न होनक कारण

खतनतर जञान उतपनन करनवाल ह और

उनस उतपनन हआ जञान [ किसी

परमाणानतरस] बाधित मी नही होता ।

[ ईशवरका ] निषध न होनक कारण मी [परवोकत शरतियो अथवाद नही ह] । ईशवर नही ह--ऐसा निपध कही भी नही मिलता । यदि कहो कि इशवरकी मरासि (सिदधि) न होनक कारण निपध नही ह, तो ऐसा कहना उचित नही, कयोकि उसक विषयम कहा

जा चका ह। अरथात‌ यदि ऐसा कहो कि [ शासतरम ] ईशवरका कोई परसदध ही नही आता; इसीलिय ४न हिसपातसरवा भतानि! इस वाकयक समान ईशवरक निपघका भी आरमभ नही किया गया; तो ऐसी बात भी नही ह; कयोकि ईशवरकी सतताम उपयकत नयाय कहा गया ह। अथवा “अपरतिपधात‌? इस हत का यह तातपरय समझना चाहिय कि करम का फल दनम ईशवर और काल आदिका परतिपध नही किया गया ह | करमकोः

खणड ३ ] शाङकरभाषयारथ रण

[ ~ ~) 2 ९. का < „ च ॥ ~ ऋ ९ व त करयरट23७- 5५-22, नि:

वाकय-मषय

-निरप कवलन करतव परतयकत

फलद दम‌ । न विनषटोऽपि

यागः कालानवर फटदो भवति |

सवयवदधिवतसवकन खवजञ- शवरवदधौ त ससछ-

तारया यागादि-

करमणा विनषटऽपि करमणि सवयादिव

दशवरातफ कतभवतीति यकतम‌! न त पनः पदारथा वाकयदातनापि

दशानतर काडानतर बाखख सवभाव जहति । न हि दश-

कालानतरष चािरजषणो भवति। एव करमणोऽपि कारानतर फ दधिभरकासमवो परभयत ।

वीजकषतरससकारपरिरकषावि-

जञानवतकतरपशषफ कषयादि चि-

जञानवतसवयवदधिससकारापकषफल

च सवादि । यागादः करमणसत- , थाविजञानवतकरजपकषफरतवासप-

पततौ काखानतरफरतवातकरमदश-

कारनिमिततविपाकविभागनञवदधि-

'खसकारापकष फल भवित-

करमफलपरदान

इशवरसय

पराधानयम‌

किसी अनय निमिततकी अपकषा न करक कवल कतास ही पररित होकर फल दत दखा भी नही ह। सरवथा नषट हआ याग कालानतरम फल दनवाला

कभी नही होता ।

जिस परकार सबककी सवस सवय (सवामी) की बदधिपर ससकार पड जाता ह उसी परकार यागादि करमस सरवजञ ईशवरी बदधिक ससकारयकत हो जानस, फिर उस करमक नषट हो जानपर मी, जस सवकको , सवामीस

वस ही करताको ईशवरस फल मिल जाता ह--ऐसा विचार ही ठीक ह। पदाथ तो, सकडो परमाणभत वाकय होनपर भी, दगानतर या कारानतरम

अपन खमावको नही छोडत । अगि किसी भी दश या काखानसम बीततक

नही हो सकता । इस परकार करमोका भी कालानतसम टो ही परकार फर

मिलता दखा जाता ह | कपि आदि करम ऐस करताकी

अपकषास फल दनवाल ह जिस बीज, कषतरससकार तथा खतीकी रकषा आदिका जञान हो; और सवा आदि कम विजञानवान‌ सवयकी बदधिक ससकारकी अपकषास फलठायक ह । यागादिः कम कावमनतरम फल दनवाल ह इसलिय उनकी फलपरापतिको अजञानी करताकी अपकषास मानना तो ठीक नही ह; अतः उनका फल करम; दश, काल, निमितत और करमविपाकक विभागको जाननवाल किसी चतनकी

बदधिक ससकारकी अपकषास ही हो

९६ कनोपनिपद‌ [ खणड द

[2 व य 3 र ५.

वाकय-भाषय

मरदति; सवादिकमाचरपफलक-

सवयवदधिससकारापकषफटसयव ।

तसमातसिदधः सजञ ईशवरः सव-

जनतवदधिकमफलविभागसाकषी

सरवभतानतरातमा । “यतसाकषा-

दपरोशादरहय य आतमा सरवा-

नतर (च० उड०३।४। १)

इति रतः । ॐ

ख एव चाचरातमा जनतना नानयोऽतोऽसति दषटा

आता मनवा विजञाता सावातमय- “नानयदतोऽसति चि-

सथापनम‌ जञात” (व उ० ३

८ ॥ ११) इतयादयातमानतरपरति-

पधशचतः । ““वसवमसि"” (छा०

उ० ६। ८-१६) इति चातमतवोप-

दशात‌ न हि. भतपिणडः काञचनातमतवनोपदिदयत ।

जञानराकतिकरमोपासयोपासक-

झदधाशदधमकतामकमददातममद‌

एवति चनन। भददरषणयपवादात‌।

सकता ह; जस कि सवा आदि करमोका

फल उसफ अनरप फलको जाननवाल

सवयकी बदधिपर हए ससकारकी

अपभास मिलता ह। इसस समपरण जीवोकी बदधि कम और फलक

विभागका साकषी; सरवानतरयामी, सरवजञ

ईशवर सिदध हआ। “जो साकषात‌ अपरोकष बरहम ह जो सरवानतर आतमा

ह?! इस अरतिसि भी यही अमाणित होता ह |

और वही इस खषटिम जीबोका

आतमा ह | उसस भिनन और कोई

दरा; भोता; मनता अथवा विजञाता

नही ह, जसा कि “इसस भिनन और कोई विनाता नही ह? इतयादि मिनन

आतमाका परतिषध करनवाली शरतिः

तथा “तततयमसि?? इस महावाकयदवारा

बरहमका आतमतव उपदश करनस सिदध

होता ह। मिदधीक टलका सवरणरपस

कभी उपदश नही किया जाता।

यदि कहो कि जञान; शकति, करम उपासय-उपासक; शदध-अदयदध तथा मकत- अमकत इतयादि भदोक कारण आतमाका भद ही ह, तो ऐसा कहना टीक नदीः कयोकि मददषटिकी निनदा की गयी ह ।

खणड द | शाइडरभा षयारथ ९.ॐ

वा ८ 4. वा ०.२2, बह 7 ५ ५. चर 2%-

5९% य न नि आरि200- र य2 पर-भाषष

, अविजञात विजानता विजञात-

चशयमाणा- मविजानताम इतयादि-

सयाधिकायः शरवणाद‌ यदसति तदधि

“^ जञात परमाणः यननासि

तदविजञात शशविषाणकलपमतय-

नतमवासदचम‌ ; तथद बरहमा-

विजञाततवादसदबति मनदबदधीना

शरहम जाननवालोक चयि

अविजञान ह और न जाननवालोक

छिय जञात हः इस शरतिस मनदबदधि परषोको ऐसा शरम न हो जाय कि

जो वरत ह बह तो परमाणो

जान ही छी जाती ह और जो नही ह वह अविजञात वसत तो खरगोशक सगक समान अतयनत अभावरप ही दखी गयी ह, अतः

यह बरहम भी अविजञात होनक कारण वयामोहो मा भदिति तदरथय- | अतत‌ हो ह! इसीलिय यह माखयायिका आरभयत । आखयायिका आरमभ की जाती ह ।

वाबय-भाषय

यदकत ससारिण ईशवराद-

लनया इतिः तनन ।

कि वरहि? मद‌ एव ससारयातमनाम‌।

कसमात‌ १

खकचषणमदादणवमरहिपचत‌ \ कथ

लकषणमद दवयचयत--ईभवरसय

'ताचननितय सविषय जञान

सवितपरकाशवत‌ ॥. तदधिष-

रीत ससारिणा खदयोतसयव ।

पद०-तमन जो कहा कि ससारी

जीवोका ईशवसस अभद ह सो ठक नही |

सिदधानती-तो फिर कया बात ह ? पन ०-ससारी जीव और परमातमा-

का तो परसपर भद ही ह। सिदधानदी-कयो ए परव ०-धोड और भसक समान

उनक लकषणोम भद होनक कारण; और यदि कदो कि 'उनक छकषणोम करिस परकार मद ह तो बतलछात ह [सनो, | सरयक परकाशक समान ईशवरको सब विपयोका सरवदा जान रहता ह, उसक विपरीत ससारी जीवोको खदयोत ( जगन ) क समान असपजञान ह। इसी परकार दोनकी शकतियोम भी

तथच शकतिभदोऽपि । नितया | भद ह | इशवरकी शकति नितय

९.८ कनोपनिषद‌ [ खणड द [~ मा ~: एक,

पद-साषय

तदव हि बहम सरवपरकारण | वह बरहम ही सतर परकारस शासन असव दवानामपि परोदवः, करनवाल, दवताओका भी परम दव,

ध , _ ~~ , | $रोका भी परम रः दरविजञय ईधराणामपि परमशवर, दरवियः, | तथा दवताओकी जयका कारण दवाना जयहतः, असराणा | ओर अघरोकी पराजयका हत ह ।

वाकय-खाणय खव चिपया चशवरदाकतिविपरीत- | ओर सवतोमखी ह तथा जीवकी

इसक विपरीत ह। ईशवरका करम भी उसक चितखरपकी सततामानस ही

खततामाजनिमिनतमीभवरसय ! औ- | दनवाला ह जस कि उपणतारप [ सकानतमणि आदि] दरबयोकी सततामातनस दहनकारय निषपनन हो जाता | ह, अथवा जस राजा, चमबक और

परकाशस होनवाठ कारय [ उनकी | सननिधिमातरस ] होत ह उसी परकार | ईशवरक करम उसक सवरपम विकार

उतपनन करनवाल नही ह, किनत ततिबचनाडपासय ईशवरौ शर- | जीवक करम इसस विपरीत ह।

तरसय ! कम च चितसवरपातम-

सणयसवरपदरवयसनतामाजनिमितत-

दहनकरमवत‌ + राजञायसकानत-

परकाशकरमबनच सवातमाविकिया-

रपम‌। चिपरीतमितरसय । उपासी-

“उपासीत” इस शरतिक अनसार ईशवर गर एव राजाक समान उपासनीय

ह तथा जीय शिषय और सवकक समान

उपासक ह। “अपहतपापमा” आदि

राजवत‌ । डपासकशन तरः

चिषयशरतयवत‌ । अपहतपापमादि-

अवणाजनितवझदध इशवरः । | अतियोक अनसार ईशवर नितवझदध ह पणयो व पणयनतिवचनादविपरीत | तथा पणयो व पणयन आदि

शरतिवाकयोख जीव इसक विपरीत- इतरः ।

खमभाववाला ह |

अतः ईशवर तो नितयमकत ही ह किनत जीव नितय अशदधिक योगक

कारण ससारी ह | तथा जहा जञानादि लकषणोम भद रहता ह वहा सरवदा भद

अत एव नितयसकत पवशवसो

नितयाशयदधियोगातससारीतरः ॥

सपि च यच जञानादिलकषणमद‌

खणड ३ ] शाइरसाषयारथ ९९,

[ < ^ 4 त पक पाई 3 त 2 4 4 जज कर

पद-भालय

पराजथहतः; ततकथ नासतीतयत- | त वह ह किस परकार नही? [ अरथात‌ अवसय ही ह ] । इस अरथक ¢ [4 [,.

थान तरा ण ४ अगकः

न व तल अनकल ही इस खणडक आगव

वचासि चथयसत । वाकय दख जात ह |

चवाकय-भाषय

असति तज मदो दटः; यथाशव- | ही दखा गया ह; जस घोड और

महिपयोः । तथा जञानादिछकषण- भदादीशवरादातमना मदोऽसतीति चत‌ ।

न!

कसमात‌ ?

५“अनयोऽखाचनयो ऽदमसमीति

नस वद” (व° उ० १।४।१०) “त कषययकोका भवनति (छा०

उ० ७} २५ २) “सतयोः स

सतयमापनोति” (०० २।९ १ १०)

इति भददणिदयपोहयत। एकतव- भतिपादिनयशच शरतयः सदसा विनत ।

यदकत जञानादिलकषणमदादि-

वयजोचयत- न दयानादविमदसय मोपाधिकतवम‌ अनभयप गम ज यपगमात‌ ॥

बदधयादिभयो वयति-

सकिः चिलकषणाशर शवरादधिनन-

लकषणा आतमानो न सनति | एक

पवशवरणचातमा सरवभताना

सम । अतः इसी परकार जञानादि लकषणोम भद रहनक कारण ईशवर और जीवोम भद ही ह।

सिदधानती-यह वात नही ह ।

घव०-कस !

सिदधानवी-कयोकि “यह (बरहम ) अनय ह और म अनय ह--ऐसा जो जानता ह वह [ बरहमक यथारथ खरप- को ] नही जानता” “व नाशचवान‌ छोकोको परापत होत ह” “बह मतयस मतयको परापत होता ह? इतयादि वाकयोस मददषटिका निषध किया जाता

ह और एकतवका परतिपादन करन- वाली तो सहलो शरतिरयो विदयमान ह ।

तथा तमन जो कहा कि जञानादि लकषणोम भद होनकर कारण जीव और ईशवरका भद ही ह, सो इस विषयम मरा यह कथन ह कि उनस कछ मी भद नही ह, कयोकि हम उनक शानादि- का भद मानय नही ह । बदधि आदि उपाधियोस वयतिरिकत और विलकषण ऐस कोई जीव नही ह जो ईशवरस

मिनन लकषणवाल हो । एक ही नितयमकत ईशवर समपरण पराणियोका आतमा माना

कनोपनिषद‌ [ खणड द 0 य ~ 0.

१००

पद-भाषय

अथवा बरहममिधायाः सततय । | - अथवा इस ( आखयायिका ) का आरमभ बरहमविदयाकी सततिक लिय ह। किस परकार 2 कयोकि बरहमजञानस ही अभि आदि दवगण दवताओम शरषटतवको गरापत हए थ और उनम भी इनदर सबस बढकर हआ ।

चाकय-साषय

नितयञकतोऽभयपगसयत । बाहय- | जाता ह; कयोकि चकष और हदधि

कथम‌ १ बहयविजञानादधि अगनया-

दयो दवा दवाना शरषठतव जगघः।

ततोऽपयतितराभिनदर इति ।

अशलव उयादिसमाहारसनतानाहइ-

कारममतवादिविपरीतपरतययपर-

बन‍धाविचछदछकषणो नितयशदध-

चदधमकतचिजञानातमशवरगरभो नितय-

विजञानाभासशरिततचतयबीजबी जि-

सवभावः करपितोऽनितयविजञान

ईशवरलकषणचिपरी तो 5भय पगमयत,

यसयाविचछद ससारवयवहारः

विचछद च मोधधवयवहारः ।

अनयशच अपपवसपतयकषपर-

धवसो दवपितमनषियादलिकषणो

भतविशषसमाहारो न पनशयत-

योऽनयो भिननलशचषण ईशवरादभय-

पगमयत । ~.

आदि सघातकी परमपयस परातत हए अकार और ममतारप विपरीत जञानका विचछद न दोना ही जिसका लकषण ह, नितय शदध बदध मकत विजञाखरप ईशवर ही जिसका अनतयामी ह, जो सय नितयविजञानका अवभास ८ परतिबिमब ) चितत, चतय ( सखादि विपय ), बीज (अविदयादि) ओर बीजी ( शरीरादि ) स तादातमयको परापत होकर तदरप हो गया ह तथा जो कलपित; अनितय विजञानवान‌ और ईशवसक छकषणस विपरीत ह वही बाहय जीव माना गया ह; जिसक इस ओपाधिक सवरपका विचछद न होनस ससारका वयवहार होता ह तथा विचछद हो जानपर मोकषवयवहार होता ह |

इसम जो दव, पित और मनषयरप भतोका सघातविशष ह वह मततिकाक, लपक समान परतयकष नषट हो जानवाला

और [ चतन आतमास ] सरवथा मिनन ह; चिनत जो [ सथछ, सकषम और कारण तीनो परकारक शरीरोस ] विलकषण चौथा आतमा ह वह ईशवरस भिननलकषणोवालय नही माना जा सकता।

खणड २ ] शछाङकरभाणयारथ १०१ (2 2 2 र

पद‌-साषय

अथवा दरविजय अकतयतत‌

रदयत-यनागयादयोऽति-

तजपोऽपि छनव चह पिदित-

नतसतथनदरो दवानामीशवसोऽपि

सननिति |

अथवा इसस यह दिखटाया

गया ह कि बरहम दरविजञय ह, कयोकि अभि आदि परम तजखी होनपर भी कठिनतास ही बरहमको जान

सक थ तथा दवताओका सवामी

होनपर भी इनदरन उस बडी. कदनितास पहचाना था |

चाकय-भाषय

चदधधादिकलपितातमवयततिर-

काभिपयण त टठशषणसदात‌

इतयाशरयासिदधी हतः ईशवरात‌

अनयसयतमनोऽसचवात‌ ।

ईशवरसयव विरदधलकषणतवम-

यकतमिति चछखदःखादियोगशच।

न । निमितततव सति छोक-

विपरययाधयारोपणातसविदयत‌ !

यदि कहो कि उदधि आदि कसपित आतमास [ निरपाधिकर चतनसवरप |] आतमा भिनन ह इस अभिपरायस हमन 'लकषणमद होनक कारणः ऐसा हत दिया ह, तो तमशस यह हत आशरयासिदध # ह; कयोकि शवरस भिनन और किसी आतमाकी सतता नही ह।

पम०-{ यदि ईशवरस मितर और कोई आतमा नही ह तो ] ईशवरम ही विरदधलकषणतथ तथा सख-हधख आदिका योग होना तो ठीक नही ह ।

सिदधानती--ऐसी बात नही ह कयोकि आतमा सरयक समान कवछ निमिततमाच ह; छोकोकी उसम जो विपरीत बदधि ह बह कव आरोपक कारण ह | जिस

यथा हि सविता नितयगरकादचरप- । परकार सरय नितयपरकाशसवरप होनक # जहा यकषम पकषतावचछदकालका शरभाव होता ह वहो सारयासिदध हतवाभास

माना जाता ह, जत---'भाकाशकसम झगानधिमान‌ द, कसम होनक कारण, अनयकसमवच‌ , इस जमान 'आकाशकछमः ज पकष ह उसम पकषतावचछडकाक यानी कसमतवका अभाव ह, कयोकि आकाशकसम कमी किसीन नही दखा। इसी परकार यहा समझना चाहिय।

१०२ कनोपनिषद‌ [ खणड ३

गकि पिम गि > > +

पद-भाषय

वकषयमाणोपनिषदधिधिपर वा |

सरव बरहमविदयावयतिरकण पराणिना

करततवभोकततवादयमिमानो मिथया

अथवा आग कही जानवाली

समसत उपनिपद विधिपरक ह । और बरहमविदयास अतिरिकत गराणियो-

|| का जो करततव-भोकततवादिका अभि-

ताकय-साषय

तवाहलोकासिवयवतयनमभिवयकति-

निमितततव खति रोकषटिविपरय-

यणोदयासतमयाहो राजादिऋत-

तवाधयारोपभागमवतयवमीशवर

नितयविजञानशकतिरप छोकजञाना-

पोहखदःखसशरतयादिनिमितततव

खति छोकविपरीतवदधधाधयारो-

पित विपररीतलशषणतव सखख-

दःखाशचयशच न खतः ।

आतमदपसयनरपाधयारोपाचच ।

यथा घनादिविपकरीणऽमबर यनव

सचितपरकाशो न हदयत स

आतमचपखयनरपमचाधयसयति

सतितद‌ानीभिदह न परकाशयतीति

खतयव परकाशषनयतर सरानतया ।

कारण छोकिक पदारथोकी अभिवयकति ओर अनभिवयकतिका निमिततमातर होता ह तथापि छोकीकी इशमि विपरीत भाव आ जानक कारण इस अधयारोप- का पातर बनता ह कि वह उदय-असत और दिन-रातरि आदिका करता ह, उसी परकार नितयविजञानञनकतिखरप ईशवरम भी लोकोक जानका विनाश तथा सख; दःख और समति आदिकी निमिततता उपसथित होनपर रोकोकी विपरीत बदधिस विपरीतकभणतव तथा सख- दःखाशरयतवका आरोप कर लिया जाता ह, उसम खतः ऐसा कोई भाव नही ह ।

_ इसक सिवा सभी जीव अपनी- अपनी दषटिक अनरप ही उसम

“आरोप करत ह [ इसलिय भी वह उन सब आरोपोस अछता ह ] । जिस परकार आकाझक मघर आदिस आचछादित हो जानपर जिस-जिसको सरथका परकाश दिखलायी नही दता वही-वही अनयतर परकाश रहनपर भी शरानतिवश अपनी

दिक अनसार ऐसा आरोप करता ह कि “इस समय यहा सरय परकाशमान नही ह |” इसी परकार इस आतसमतततवम

खणड ३ -] शाहरभाषयाण १०३

[= ~ = नयरटिट बकरप लि टिक, नकसल 23% १220 यारपि 2 कई िट५०- बढ किट (22% वरद कि नस

पद-भाषय

इतयतदशनाथ वा आखयायिका, | मान ह. वह दवताओक जय

आदिक अभिमानक समान मिथया यथा दवाना जयादयभिमानः | ह. यह बात दिखानक लिय ही

तदवदिति । परसतत आखयायिका ह ।

चाकय-भसाषय

एवमिह वौदधादिवचयहवासि-

भवा ङशनानतयापयारोपितः सख-

दःखादियोग उपपदयत |

ततससरणानच । तसयवशवरसयव

हि ससरणम--“मततः सथतिशौन- मपोहन च (गीता १०॥ १५)

“नादतत कसयचितपापम‌? (गीता

५} १५.) इतयादि । अतौ नितय-

मकत पकरससिनसचितरीव छोका-

विदयाधयारोपितमीणवर ससारि-

तवम‌ ) शासनादिपरामाणयादभयप-

गतमस सारितवसितयविरोध इति।

पतन धतयक जञानादिभदः

परतयकतः सौकमथचतनयसव गतवा-

चअवशष च भदरहतवभावात‌ ।

विकरियावचच चानितयतवात‌ ।

मोकष च विरपानभयपगमादभयप-

गम चानितयतवभरसङगात‌। अविदया-

चदपरभयतवाञच भदसय ।

भी बदधि आदिकी इततियोक उदय और असतस वचिनयको परापत हई शरानतिस आरोपित सख-दशखादिका योग हो सकता ह ।

इस विषयम उसीकी सति भी ह अरथात‌ उस ईशवरक ही सपरतिवाकय

भी ह; जस--““मझहीस पराणियोको समति; जञान और अकञान परापत रोत ह ईशवर किसीक पापको सवीकार नही करता?” इतयादि । अतः सरयक समान एक ही नितयमकत रशवरम लोकन अविगरावग ससारितवका आरोप कर रखा ह, तथा राखरादि पमाणो- स उसका अससारितव जाना गया ह, इसलिय इसम कोई विरोध नही ह}

इसस परतयक जीवक जञानादि भदका परतयाखयान हो गया, कयोकि उन समीम सषमताः चतनय और सवगततवादि धम समानरपस रहनक कारण भदक हतका अभाव ह। यदि उनह विकासी माना जाय तोव अनितय हो जायग | इसक सिवा मकतावसथाम किसीन भी आतमाका कोई विशष भाव नही माना; यदि कोई मानगा तो अनितयतवका परसग उपसथित हो जायगा | तथा भद तो कवल अविगरावानको ही उपलबध होता;

१०७ कनोपनिषद‌ [ खणड ह

2८ था 2 ८ "बाकि: वयाट >:22%- "कट क 23% नया 22%- न 3220 ~ म १.

दवता ओका गरव

' बरहम ह दवभयो विजिगय तसय ह बरहमणो

दवा अमहीयनत ॥ १ ॥

कप

विजय

यह परसिदध ह कि बरहमन दवताओक लिय विजय परापत फी | कहत

ह, उस बरहमकी विजयम दवताओन गौरव परापत करिया ॥ १॥ पर-साषय

बरहम यथोकतलकषण पर ह

किल दवभयोऽरथाय विजिगय जय

य परतिदध ह कि उपरयकत . | लकषणोवाड परतरहमन दवताओक

खयि जय परापत की । अधौत‌ दवता

लबधवत‌ दवानामसराणा च | जर अघरोक सगरामम ससारक चाकय-भषय

तरकषयऽचपपततिरिति खिदधम | ह, अविदयाका कषय होनपर उसकी एकतवम‌ । सिदधि नही होती । अतः [ जीव और

ईशवरका ] एकतव ही सिदध होता ह । तससाचछरीरनदरियमनो व दधि- अतः अह कारक समबनधस अजञानक

+ ^ बीजभत शरीर; इनदरियः मनः बदधिः जनधमकष. पविषयचव‌नाखनतानसय | विषय और इनदियजञानक परवाहका,

अहङकारसमचनयादजञान | जो नितयविजञानखरप आतमास भिनन वयवसथा

वाजसय ननतयानजञाना-

नयनिमिततसथातमततवयाथातमयचि-

जञानादविनिवततावजञानवीजसयवि-

चछद‌ आतमनो मोकषसजञा; विपरयय च बनयसजञा, खरपापशचतवा-

दभयोः।

' बरहम ह इतयतिदयारथः | परा

किर दवासरखतराम जगतसथिति-

परिपिपालयिषया तमाननशासनानञ-

वरतिभयो दवभयोऽरथिभयोऽथाय

किसी अनय निमिनतस सथित ह; आतम- तचवक यथारथ जञानस उस निमिततक निदतत हो जानपर जो अजञानक बीजका उचछद हो जाना ह वही आतमाका मोकष कहलाता ह और उसस विपरीत- का नाम बनध ह; क‍योकि व [बनध ओर मोकष दोनो ही [ बदधबादि उपाधिविशिषट ] सवरपकी अपकषास ह ।

षरहम हः इसस षटः ऐतिहय

( इतिहास) का दयोतक ह। कहत ह, पवकालम दवासरसगरामम बरहमन

जगत‌-यितति ( लोक-मयादा) की रकषाक लिय अपनी आजञाम चलनवाल विजयारथी दवताओक लिय असरोको

खणड ३ ] चाङकरभावयारथ १०५

पा अ अ - व व ७-१५ नाटक न आपि2-

षट-भषय

सगरामषसराजितवा जगदराती- | शतर तथा ईशवरकी मरयादा भनन नीशवरसतभचन‌ दवभयो जय | करनवाल असरोको जीतकर जगत‌-

ततफल च गरायचछजजगतः सथमन ¦ की सथितिक चयि वह जय ओर तख ह किङ हमणो विजय । उसका फर दवताओको द दिया । दचाः अगनयादयः अमहीयनत | कहत ह, वरहमकौ उस विजयम असनि

महिमान भराकठवनतः)) १॥ | आदि दवगण महिमाको परात हए॥ १॥ ~न

यकषका आदमवि

त रकषनतासाकमवाय विजयोऽसमाकमवाय महिमति ।

तषा विजञो तभयो ह परादबभव तनन वयजानत

किमिद यकषमिति ॥ २॥ उनहोन सोचा हमारी ही यह विजय ह, ओर‌ हमारी ही यह

महिमा ह । कहत ह, वह बरहम दवताओक अभिपरायकनी जान गया ओर उनक सामन परादभत हआ । तव दवताछोग [ यकषरपम परकट हए ] उस बहमको यह यपन कोन ह ? ऐसा न जान सक ॥ २ ॥

चाकय-भाणषय

विजञिगयऽजपीदशचरान‌ । चहमण | जीत लिया। अरथात‌ बरहमकी इचारप इचछानिमिततो विजयो दवाना | निमिततस दवताओकी विजय हो

वमवतयरथः: । तसय ह बरहमणो | गयौ । तरहक उस विजन दवताओ- विजय दवा अमहीयनत । यनना- श 2048 अनार

दिलोकसथितयपदारिपवखरप परा- असरोक पराजित हो जानपर दवताओ जितष दवा बदधि पजा वा| न इदि अथवा खब सतकार परास आकतवनतः ॥ १॥ किया ॥१॥

०02 «२६००--

त एधनत इति मिथयापतयय- | ° शननतः इतयादि शासरवाकषय, मिधयापरतययतप टनक कारण [ अमिमानका ] हयतव परतिपादन

[ करनक लिय ह । तवादधयतवखयापनारथमासताय+ ।

१०६ कनोपनिषद‌ { खणड ३

00 - ~ ~ अ" < ~ ` 3 व + त । 3 आ ~ ह = 20- 20७, ~. व ~ थ ~

पद‌-भाषय

तदा आसमस खय परतयगातमन | ततर, अनतःकरणम खित, गरतयगातमा, सरवजञ, शराणियोक

ईशवरसय सवजसय सरवकरियाकर-

सयोजयितः पराणिना सरवशकतः

जगतः धिति चिकीरषः अय

जयो महिमा चसयजाननतःतदवाः

ऐशवनत ईकषितवनतः अगनयादि

सवरपपरिचछिननातमकतोऽखाक-

मवाथ षरिजयः असखाकमवाय

महिमा अभिवासविनदरतयादि-

लकषणो जयफलभतोऽखाभिरल-

भयत; नाससपरसयमातमभतशवर-

कत इति । एव मिधयाभिमानकषणवता

तत‌ ह किल एषा मिथयकषण

विजजञौ विजञातवदरकम । सरवकषित

समपरण करमफलोका सयोग करान- वाल, सरवराकतिमान‌ एव जगत‌की

रकषा करनक इचछक ईशवरकी ही ४७

यह समपरण जय और महिमा ह यह न जानत इए आतमाको अभि

आदि रपोस परिचछिन माननवाल

दवता सोचन छग कि---हमलछोगो-

की हयी यह विजय हई ह, ओर इस विजयकी फरमत अभचितव, वायतव

एव इनदरतवरप यह महिमा भी

हमारी ही ह; अतः हमार दवारा ही

इसका अनमव किया जाता ह; यह विजय अथवा महिमा हमार अनतरातम-

भत ईशवरकी की हई नही ह ।

इस परकार मिथया अभिमानस विचार करनवाल उन दवताओक

इस मिथया विचारको बरहमन जान

लिया, कयोकि समसत जीबोक

चाकय-भाषय

[+

ईशवरनिमितत, विजय खसाम- जो विजय ई-धरक निमिततस परात हई थी उसम “यह हमारी सामरथयस

यनिमिततोऽसमाकमवाय विजयोऽ-| परापत हई हमारी ही विजय ह, हमारी

दि तद‌ सरवभतकरणपरयोक‍त‌- | अनतःकरणोका पररक होनक कारण

वह सबका साकषी ह । दवताओक

इस मिथया जञानको जानकर इस

पदम मवासरबददवा मिथया- | मिषया जञानस अछरोकी हो मति

तवात‌ दवाना च मिथयाजञान-

5206: हवताओका भी पराभव न हो जाय भिमानातपराभवयरिति तदल-

इस परकार उनपर अनकमपा करत

` कमपया दचानमिथयाभिमाना- | हए यह सोचकर करि दिवताओक

५ .... _ | मिधयजञानको निदतत करक म उनह पनोदननानगषटीयामिति तभयः ५ ह

अनगहीत कर वह उन दवताओ-

दवभयः ह किलारथाय गरादवशध | क डिय परादरभत इभा अथौत,

चारवप-भापय

समाकमवाय भहिमतयातमनी | ही महिमा ह! इस परकार [ अभिमान

$ करक | अपनी विजय आदि कसयाणक जयादि शरणोनिमित सरवातमा- | _ ४ र

हतभत सरवातमा सरवकलयाणातपद

आतमख ईशवरको ही आतमभावस न

शवरमवातमतवनावदधवा पिणड- | जानकर पिणडमातरक अभिमानी होकर

नमातमसथ सवकसयाणासपदमी-

उनहोन जो मिथया परतयय कर लिया था

वह कवल पिणडमातरस समबनध रखन-

वाला होनस मिथया जञानरप था ।

अतः सरवातमा ईशवर यथारथ सरप

बोधस उसका दयतव परकट करमकर

भवरयाथातमयावयोधन दातवयता- । लिय दी यह “तदधाम ( वह बरहम उन

माजभिमानाः ननतो य विधया-

अतयय चकरसतसय पिणडमातरविपय-

तवन मिथयागरतययतवातसचा सम-

प३-साषय

सवयोगमाहातमयनिरमितनासय-

तन वरिसमापनीयन रपण दवाना-

मिनदरियमोचर परादषभव पराद-

भतवत‌ । तत‌ परादभत जह न वयजानत नव विजञातवनतः

| अपनी योगमायाक गरभावस सबको

। विसित करनवाछ अति अदभतरपस

दवताओकी उनदरियोका तरिपय होकर

। परादरभत अरथात‌ परकट हआ । उस

परकट हए बरहमको दवतालोग यह

दवाः किमिद यकष पजय | न जान सक कि यह यशच अरथात‌

महदभतमिति ॥२॥ पजनीय महान‌ पराणी कौन ह १।२॥

~=" चाकय-सापय

खयापनारथसतदधौपामितयायाखया-

यिकामनाय: ।

तदभहय ह किरणा दवानामभि-

पराय मिधयादङकाररप विजकञौ

विनातवत‌ । जञाचवा च मिधयाभि-

मानशातनन तदचजिधकषया

दवभयोडरथाय तपामवनदरियगोचर

नातिदर घाडवभच । महशवर- दकतिसायोपाततनातयनतातन

दरभत किङ कनचिदगपविदषण ।

ततकिकोपछभमाना अपि दचा

न वयजानत न चिनातवनतः

किमिद यद तदयशचपञयसितति॥२॥

वताओक अभिपरायको जान गया ) आदि आदखयायिकारप आमनाय

( गालल ) ह।

कहत ह, वह बरहम इन दवतायक मिथया अहकाररप अभिपरायको समझ

गया--उस इसका जञान हो गया! उस जानकर उस मिधयामिमानक छदनदवारा दवताओपर अनगरह करन-

की इचछास वह दवताओक ही लिय उनकी इनदरियोका विपय होकर उनस थोडी ही दरपर परकट हआ। वह महशवरकी मायायकतिस अण किय हए किसी बड ही विचितर सरपविशपस

परकर हआ; जिस टखकर भी दवता लोग यह न जान सक--न पहचान

सक कि यह यकष अरथात‌ पजय कौन ह? ॥ २॥

>--००"२३२,.२६००----

खणड ३ ] दाङकरभाषयारथ १०२.

ऋ - वा ~ र

अभिका परीकषा

तऽभिमनरवजञातवद‌ एतदविजानीहि किमिद यकषमिति

तथति ॥ ३ ॥ उनहोन अगनिस कहा--द अगन | इस बातको मादधम करो कि

यह यशच कौन ह ¢ उसन कहा---बहत अचछा ॥ ३ ॥ पडझ-भा

त तदजाननतो दवाः सानत-

भयासतदविलिकञासवः अमम‌ यगरगाभिन जातवदस सवजञ- कणपम‌ अगरवन‌ उकतवनतः । ह जातवदः एतद‌ अणटरोचरसथ

यकष विजानीहि विशषतो बधय सवतव नसतजसतरी फिमतव-

कषमिति ॥ ३॥

तदभयदरवततममयवदतकोऽसीतयभिरव

ह, उस न जाननवाल दवताओन

भीतरस डरत-डरत उस जाननकी

इचछास सबस आग चलनवाल

सरवजञकलप जातवदा अगनिस कहा- 'ह जातवरदः ! हमार नतरोक सममख

खित इस यकषको जानो--विशष-

रपस माछम करो कि यह यशच कौन ह; कयोकि तम हम सप

तजखी हो” ॥१॥

अहमसमीतय- वरवीलनातवदा वा अहमसमीति ॥ ४ ॥

अधि उस यकषक पास गया । उसन अशचिस पछा, (त‌ कौन ह ४ उसन कहा, 'म अगनि ह, म निशचय जातवदा ही ह! ॥ 9 ॥

पट-भाषय

तथा असत इति तद‌ यकषम‌ अभि अदरवत‌ तसपरति गतवा-

नञनिः । त च

पिषचछिष ततसमीपऽपरगरभसा-

तपणीभत तथकषम‌ अभयवदद‌

गतवनत

तब “बहत अचछा? ऐसा कहकर अगनि उस यकषकी ओर अभिदरत हआ अरथात‌ उसक पास गया। इस परकार गय हए और धषट न होनक कारण अपन समीप चपचाप खड हए परशन करनकी इचछावाल उस अगनिस यशषन कहा-- त‌

११० कनोपनिषद‌ [ खणड ३ [8 श, ~" द ~ वा ~ म = १. अ ०

पद-भाषय

अगनि अति अभाषत कोऽसीति |

एव बकमणा पषटोऽपनिः अननवीत‌-

अभि अपरिरनामाह परसिदधो जात-

वदा इति च नामदयन‌ परसिदध

तयारमान धयनति ॥ ४ ॥

कौन ह £ बरहमक इस परकार पछनपर---'म अगनि ह---म अचि नामस परसिदध जातवदा -- इस परकार “अगनिन दो नामस परसिदध होनक कारण अपनी परशसा करत

हए कहा ॥ ४ ॥

तसमि*रतवयि कि वीयमितयपीद४ सरव दहय यदिद पथिवयामिति ॥ ५॥

[ फिर यकषन पछा---] उस [ जातवदारप ] तझम सामरथय कया

ह [ अगनिन कहा--] पथिवीम यह जो कछ ह उस सभीको जटा

सकता ह" ॥ ५ ॥

पद‌-भषय

एवकतवनत बचावोचत‌

तिन‌ एव भरसिदधगणनामबति

तवयि कि वीरय सामयम‌ इति ।

सोऽजवीद‌ इद जगत‌ सव दहय

मखीङया यद‌ इद खावरादि

पथिवयाम‌ इति । एथिवयामि-

सयपरकषणाधम‌, यतोऽनतरिकषख-

इस परकार बोछत हए उस

अमनिस बरहमन कहा--'रस परसिदध

गण ओर नामवाछ तझम कया

वीरय-- सामय ह ? वह बोछा---

'थिवीपर जो यह चराचररप

जगत‌ ह इस सबको जला सकता

ह---भसम कर सकता ह ।' "पथिवीम!

यह कबर उपलकषणक लिय ह,

कयोकि जो वसत आकाशम रहती

ह वह भी अगनरिसि जर ही

मपि दयत एबामिना ॥ ५ ॥ | जाती ह ॥ ५॥

खणड ३ ] शाइरसाषयारथ १११

ह = +. < < ५ य रा ~ ०229

तसम तण निदधवतदहति । तदपपरयाय सवजवन

तनन शशाक दगध स तत एव निबबत नतदशक विजञात यदतयकषमिति ॥ ६ ॥

तब यकषन उस अगनिक लिय एक तिनका रख दिया और कहा-- “स जलाः | अशचि उस तणक समीप गया, परनत अपन सार बगस भी

उस जछानम समरथ नही हआ । बह उसक पासस ही छोट आया और बोला, यह यकष कोन ह--इस बातको म नही जान सकाः ॥ ६॥

पद-मषय

तसम एवमभिमानवत जदा तण निदधौ पराः खापितवत‌।

जणा “एतत‌ तणमातर ममागरतः

दह न चदसि दःगध समथः, यशच दणटखाभिमान सरवतर! इतयकतः तत‌ तरणम‌ उपपरयाय तणसमीप गतवान‌ सवबजवन सरवोतसाहकतन वगन । गतया

तत‌ न शशाक नाशकरगधम‌।

सः जातवदाः रण दणधम- शकतो वीडितो हतगरतिजञः तत एव यकषादव तषणी दवानपरति निबधत निवतत; परतिगतवान‌ न एतत‌ यकषम‌ अशक शकतवानह विजञात विरषतः यदतयकष- मिति॥ ६ ॥

इस परकार अभिमान करनवाल

उस अगनिक लिय बरहमन एक तण

रखा अरथात‌ उसक आग तण डा दिया | बरहमक ऐसा कहनपर कि नत. मर सामन इस तिनकको जला; यदि त‌. इस जलानम समरथ नही ह तो सरवतर जछानवाला होनका अभिमान छोड दः वह अपन सार _ वर अरथात‌ उतसाहकत समपरण वगस उस तणक पास गया। किनत वरहो जाकर भी वह उस जछानम समरथ न हआ |

इस परकार उस तिनकको जलानम असमरथ वह अगनि हतपरतिजञ होनक कारण ठलित होकर उस

यकषक पासस चपचाप दवताओक परति नितत इआ--अरथात‌ उनक पास छौठ आया [ और बोछ---] “इस यकषको म विशपरपस ऐसा नही जान सका कि यह यकष | कौन ह ” ॥ ६॥

११२ कनोपनिषद‌ [ खणड ३

~र व 23% „3 4 9 नयदा(>८22:% "वर २८22 १ रा (म थक,

चायकी परीकषा

अथ वायमबबनवायवतदविजानीहि किमतयकषमिति

तथति ॥ ७ ॥

तदननतर) उन दवताओन वायस कहा--ह वाय) ! इस बातको

मातम करो कि यह यकष कौन ह” उसन कहा---बहत अचछा' ॥ ७॥

तदमयदरवततममयवदतकोऽसीति वायवो अहमसमीतय-

वरवौनमातसशि वा अहमसमीति ॥ < ॥

वाय उस यकचक पास गया, उसन वायस पछा---“ठ कोन ह ”

उसन कहा--भ वाय ह---म निशचय मातरिशरा ही ह ॥ ८॥

तसमिशसतयि कि वीयमितयपीद* सबमाददीय

यदिद परथिवयामिति ॥ € ॥

[ तन यकषन पछा---] 'उस [ मातरिशवारप ] तझम कया सामय

ह ® [ बायन कहा--) 'परथिवीम यह जो कछ ह उस सभीको गरहण

कर सकता ह ॥ ९ ॥

तसम तण निदधावतदादतसवति तदपपरयाय सवजवन

तनन शशाकादात तत एव निववत नतदराक विजञात

यदतयकषमिति ॥ १० ॥

तब यकषन उस बायक लिय एक तिनका रखा ओर कहा-- इस

रहण कर! । वाय उस तणक समीप गया । परनत अपन सार वगस भी

खणड क ] शाडरभापयारथ ११२

~ व 24% घट: बयजट- 5 2, 0 १.2. बकर) 2, 3 2 वाई 2 व <

वह उस गरहण करनम समरथ न हआ । तब वह उसक पासस छोट

आया और बोडा--शयह यशच कौन ह--इस बातको म नही जान

सकाः ॥ १०॥

पद-भाषय

[॥

अथ अननतर वायमनरबन‌

ह चायो एतहिजानीहीतयादि

समानारथ परवण। वानाहमना-

इनधनाहा वायः । मातरयनत-

रिकष शयतीति मातरिशधा । इद ।

सरवमपि आददीय शकषीयामर‌

यदिद परथिवयामितयादि समान-

मव ॥ १०॥

` तदननतर उनहोन वायस कहा-

ह वायो ! इस जानो, इतयादि

सष अरथ पहलहीक समान ह। [ वायको ] वान अरथात‌ गमन या गनघगरहण करनक कारण “वाय!

कहा जाता ह | मातरि अरथात‌ अनतरिकषम शरयन ८ विचरण)

करनक कारण बह 'भातरिशा!

ह। परयिवीम जो कछ ह म इस सभीको रहण कर सकता ह---

इतयादि शप अरथ पहलहीक समान ह ॥ १०॥

"0०

साकय-भाषय

तदविकञानायाभनिमचरचन‌ । तण-

निधनऽथमभिधायोऽतयनतससभा-

चितयोरञनिमारतयोसतणदहनाद‌ा-

नाहाकतयातमसमभावना शातिता

भवदिति ॥ ३-१० ॥

दवताभोन उस जाननक लिय अभिस कहा | अगनि और वायक सामन तण रखनम बरहमका यह

अभिपराय था कि एक तिनकको जलान और गरहण करनम असमरथ होनस इन अतयनत परतिषठित अमर 'और वायका आतमामिमान कषीण हो जाय [३-१ ०॥

००6२५००५

१९४ कनोपनिषद‌ [ खणड ३

बलि < वयय पक न लिीट4%- "कर 9 "याद 2 ` य ५ थक, "८ ५.

इनदरका नियकति

अधनदरमबरवनमघवननतदविजानीहि किमतयकषमिति तथति तदभयदरवततसमाततिरोदध ॥ ११ ॥

तदननतर दवताओन इनदरस कहा--'मघवन‌ ! यह यकष कौन

ह--इस बातको मादम करो।” तब इनदर (बहत अचछा! कह उस यकषक पास गया, किनत वह इनदरक सामनस अनतरधान हो गया ॥ ११ ॥

पद-भाषय

अथनदरमबचनमघवलनतदविजा- | फिर दवताओन इनदरस ह

नीहीतयादि परववत‌ । इनदरः

परमशवरो सधवा बरवचवात‌

तथति तदभयदरवत‌ । तखात‌

इनदरादातमसमीप गतात‌ तद

तिरोदध तिरोभतम‌ । इनदरसथ-

नदरतवाभिमानोऽतितरा निरा

कतवय इतयतः सवादमातरमपि नादाइलनदराय ॥ ११ ॥

मधवन‌ | इस जानो! इतयादि परववत‌ कहा । इनदर अरथात‌ परमशवर, जो बलवान होनक कारण “मघवा”

कहा गया ह, बहत अचछा--ऐसा कहकर उसकी ओर चखा । अपन समीप आय हए उस इनदरक सामन-

स वह बरहम अनतरघान हो गया। इनदरका सबस बढा हआ इनरतवका अभिमान तोडना चाहिय---

इसलिय इनदरको बरहमन सवादमातरका

भी अवसर नदी दिया ॥ ११॥

चाकय-भाषय

इनदर आदितयो वचशरदधा ;

अविरोधात‌. । इनदरौपसरपण जहय

तिरोदघ ददयनायमभिपरायः--

इदरोऽहमितयधिकवमोऽभिमानो-

ऽसय सोऽहमगनयादिभिः परापत

इनदर आदितय अथवा वजञधारी दवराजका नाम ह, कयोकि दोनो ही “ अरथोमि कोई विरोध नही ह । बरहम जो इनदरक समीप आत ही अनतरधान हो गया इसम यह अभिपराय था कि

[ बरकनन दखा--] इस भम इनदर ( दवराज ) ह? ऐसा सोचकर सबस अधिक अभिमान ह, अतः मर साथ अभि आदिको जो वाणीका सममाषण-

खणड ३ ] शाङरभाषयारथ १९५ <>. भीमम ( 3 व द = थार वा 2 थ

उमाका अादरभावि

सतसिनन वाकारो खियमाजगाम बहशोभमाना- समा९ हमवती ता£ होवाच किमतकषमिति ॥१२॥

वह इनदर उसी आकाशम [ जिसम कि यशच अनतरधान हआ था ] एक अतयनत शोभामयी चक पास आया और उस सवरणाभपणमषिता [ अथवा हिमालयकी पतरी ] उमा ( पारवतीरपिणी बरहमविदया स नोला- “यह यकष कौन ह ” ॥ १२ ॥

पद-भाषय

तचछषयसिननाकाश आकाश-

परदश आतमान दचयितवा तिरो- वह यशच जिस आकाशम---

आकाशक जिस भागम अपना दरशन भतमिनदरथ.. तरहमगसतिरोधान- | दकर तिरोहित हआ था और उसक

काल यसिननाकाश आसीत‌, तिरोदित होनक समय इनदर जिस कक ॐ | आकाशम था, वह इनदर यह सोचता स इनदरः तसिनव आकाश | हआ कि 'यह यकष कौन ह ? उसी तसथौ कि तधकषमिति धयायन‌; | आकाशम खडा रहा | अनि आदि- न निवतऽगनयादिवत‌ । क समान पीछ नही छोटा ।

चाकय-भाषय

वाकसमभाषपणमातरमपयनन न | मातर भी परापतो गया था उसक (/ चवि भी म इस परापत न हो सका--

भातोऽसमीतयभिमान कथ न नाम | ऐसा सोचकर यह किसी तरह अपना अभिमान छोड द । अततः उसपर

कपा करनक लिय ही बरहम अनतरधान तदरहय बभव ॥ ११ ॥ हो गया ॥ ११॥

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स चछानताभिमान इनदरोऽतयथ | इस परकार अभिमान शानतहो बरहम विजिकायसननाकादो | जानपर इनदर राका अतयनत जिना

तथान होकर उसी आकाराम; जिसम कि बरहमणः भादरमाव मासीततिर बरकषका आविरभाव एव तिरोभाव हआ च तसमिननव सरियमतिरपिणो | था, एक अतयनत रपयती सली--

जदयादिति तदनपरहायवानतरहित

११६ कनोपनिषद‌ [ खणड द

व > ~ वा: + ऋः - ~ अय: ; ध १ १ । ~ 2. १ ५. का 2 वा 9" १

पद-साषय

तसयनदरसख यकष भकति बदा उस इनदरकी यकषम भकति

विदया उमारपिणी आदरभरखी- | जानकर खरीवशधारिणी उमारपा

रपा। स इनदर! ताम‌ उमा

बहशोममानाम‌- सरवषा -सोभमानाना जोमनतमा विदया,

तदा बहशोभमानति विशषण- सपपनन मवति; हमवती हम- कताभरणवतीमिव बहशोभ- मानामितयथः; अथवा उनव हिमवतो दहिता हमवती नितय- मव सरवजञनशवरण सह वतत इति जञात समरथति कतवा ताम‌-- उपजगाम इनदरसता ह उमा किङ

उवाच पपरचछ--जहि किमतइश- यितवा तिरोभत यकषमिति ॥ १२॥

० ०3०3. जीनजील 3७3... > अली 8 आल सम मी मी ली हलक ला आर

विदयादवी परकट इई । वह इनदर उस अतयनत शोमामयी हमवती उमाक पास गया । समसत शोसायमानोम विदया ही सबस अधिक सोभामयी ह; इसलिय उसक लिय “बह शोभमाना” यह विशषण उचित ही ह। हमवती अरथात‌ हम ( सवरण ) निरमित आमपणोवारीक समान अतयनत शोभामयी । अथवा हिमवान‌-

की कनया होनस उमा ( पारवती ) ही हमवती ह । बह सरवदा उस सरवजञ ईशवरक साथ वरतमान रहती ह; अतः उस जाननम समरथ होगी--यह सोचकर इनदर उसक पास गया,

ओर उसस पछा---'बतलाइय, इस परकार दरशन दकर छिप जानवाला यह यकष कौन ह ” ॥ १२ ॥

इति ततीयः खणडः | ३॥] ~ चाकय-भाषय

विदयामाजगाम । अभिषायोदवोध-

दवतवाददरपलनयमा दमवतीव खा

शोभमाना विधव । विरपोऽपि

विदयाचानवह शोभत ॥ १२॥

चिदयादवीक पास आया । बरहमक गस हो जानक अभिपरायको परकट करनक कारण रदरपतनी हिमालयपतरी पारवती- क समान शोभामयी वह बहमविया ही थीः कयोकि विदयावान‌ परष रपहीन

होनपर मी बहत शोमा पाता ह॥१२॥ इति ततीयः खणडः ॥ २ ॥

००9०२००

खणड ४ ] शाडरभाषयाथ ११७ [2 ण 0 4 य 2 द 22% "५ 3 व थ -- कर,

छः चतः खणड

उमाका उपदश

सा वरहमति होवाच बरहमणो वा एतदविजय महीय-

धवमिति ततो हव विदाञचकार वरहयति ॥ १॥

उस विचादवीन सपषटतया कहा--“ह हम ह, तम बरहमक ही

विजय इस परकार महिमानवित इए होः । कहत ह, तभीस इनदरन यह

जाना कि यह हम ह| १॥

पद‌-भाषय

सा बरहमति होवाच ह फिर | उसन यह बरहम ह' ऐसा कडा । 9 कनस "निससनदह बरहम-शरक विजय णो व ईशवरसयव विजय--

म हर प ईधरसथव विनय , | दी [ तम महिमाको परापत हए हो ]। ईरणव जिता असरा यय | अघरोको शरन ही जीता था; ततर निमिततमातरम‌; तसयव | घम तो उसम निमिततमातर य । न „ , , | अतः उसक ही विजयम तमह विजय- यय महीयधव महिमान | «६ महिमा मिली ह |! मल

आपनथ । एतदिति करियाविशष- | "एतत‌" यह करियाविशषणक सयि वाकय-नाणय

ता च पषटा तसया एव वचनाद‌ | इनदर उस उमास पछकर उसीक विदाञचकार विदितचान‌ । अत वचनस [ बरहमको ] जाना था, अतः

इनदरसय वोधटततवादवियवोमा । र गई हठभता होनस ध (3 शव यासह‌ विदयाकतदायवानीशवर इति / वातः ५ _ | ऐसी सथति भी ह । कयोकि इनदरक

सतिः । यसमादिनदविनानपवकम‌ | विजञानपरवक मि वाद और इनदर ० अ १ नननदिषठ [4 ४. अभनिवायिवनदरासत होनबलविषटमति- । इन दवताओन ही बहमको, उसक

११८ कनोपनिषद‌ { खणड ७

[< ५. य = ~ = चिट नि 2 आई 2८22७, नाई 222०. 0 द त

पद‌-भाषय

णारथत‌ ।

यषमाकम--अखाकमवाय वि

जयोऽखाकमवाय महिमति । ततः

तसतादमावाकयाद ह एव विदा-

चकार बहञति इनदरः; अवधारः

णात‌ ततो हव इति, न

खातरजयण ॥ १॥

मिथयाभिमानसत | ह । यह हमारी ही विजय ह, यह हमारी ही महिमा ह! यह तो तमहारा मिथया अमिमान ही ह)

तब उमादवीक उस वाकयस ही इनदरन जाना कि “यह बरहम ह! । (ततः” पदक साथ हः और “एव! य अवयय निशचय करानक लिय ही

परयकत हए ह। [ अथौत‌ उमा दवीक वाकयस ही इनदरन बरहमको

जाना ] खतनतरतास नही ॥ १॥ नन

यसादभरिवासििनदरा एत दवा

बरहमणः सबाददरशनादिना सामी-

पययपगताः--

कयोकि अगनि, वाय और इनर- य दवता ही बरहमक साथ सवाद ओर दरशनादि करनक कारण उसकी समीपताकरो गरापत हए थ---

तसमादवा एत दवा अतितरामिवानयानदवानयदचिवौय-

रिन‍दरसत हयनननदिषठ परपशसत होनतमथमो विदाबवकार बहमति ॥ २॥

कयोकि अगनि वाय और इनदर--इन दवताओन ही इस समीपसथ बरहयको सपरश किया था और उनहोन ही उस पहल-पहल “यह बरहम ह! ऐसा जाना था, अतः व अनय दवताओस बढकर हए ॥ २ ॥

वाकय-माषय

समीप बरहमविदयया नदय शराताः

सनतः पसपरशः सपषटवनतः- त हि पथमः पथम विदाञचकार विद‌ा-

कररितयतत‌-तसमादतितराम‌ अतीतयानयानतिदायन दीपयनत

नदिषठ अरथात‌ अतयनत समीप पहचकर

बरहमविदयादवारा सपश किया था--उन‍हीन परथम यानी पहल-पहल उस जाना था

इसलिय व अनय दवताओस बढ हए

ह---उनस अधिक ददीपयमान होत ह;

खणड ४ ] शाङकरभाषय ११९.

व ~ य ~ त ~ ०0 ~ धा - द ~ दा 23. आर नरसिट बरस

पद-भाषम

तसात‌ सवगणः अतितरामिव | इसलिय निशचय दी य दवगण शकतिगणादिमहामागयः अनयान‌ | अपन शकति एव गण आदि महान‌

दवान‌ अतितराम‌ अतिशषरत | सौमामयोक कारण अनय दवताओस

इव एत दवाः । इव | बढकर हए। शव! झबद निररथक

शबदोजनथकोजवधारणारथो वा। | अथवा निशचयारथवोधक ह। कयोकि यद अगनिः वायः इनदरः त हि | अगनि, वाय और इनदर--हन दवा यसमात‌ एनत‌ बरहम नदिषठम‌ | दवताओन इस बरहमको परवोकत

असतिकतम परियतम पसपशन) | सवाद आदि परकारोस नदिषठ

सपषवनतो यथोकततरकषणण स- | अरथात‌ अतयनत निकटवती एव वादादिशरकार), त हि यखाचच | परियतम भावस सपरश किया था हतोः एनद‌ बरहम परथमः परथमाः | और उनहोन ही इस बरकमको परथम परधानाः सनत इतयतत‌ विदा†चकार| अथात‌ परधानरपस यह बरहम ह? विदाचकररितयतदककति ॥२॥ | ऐसा जाना था ॥ २॥

यसमादभरिवाय अपि इनदरः] कयोकि अगनि और बायन भी >~, = ~ >| इनरक वाकयस ही उस जाना था,

वाकयादव विदा चकरत,, ईनदर ह | कारण कि उमाक वाक‍यस तो इनदरन

उमावाकयातमरथम शरत जहमति-- | ही पहल सना था कि यह बरसह"-

तसमादवा इनदरोपतितरामिवानयानदवानस होननन दिषठ पसपश स छोनतमथमो विदादवकार बरहमति ॥ ३॥

इसलिय इनदर अनय सतर दवताओस बढकर हआ कयोकति उसन ही

इस समीपसथ बरहमको सपरश किया था--उसन ही पहल-पहल “यह बरहम ह! इस परकार इस जाना था| ३॥

ह चि वाकय-भाषय

अनयानदवासततोऽपीनदरोऽतितरा | उनम ५२ इनदर सबस अधिक मदौ दीतिमान‌ ह, कयोकि सबस पहल उस

दीपयत) माव नरहमविजशञानात‌ ॥ १-३॥| ही बरहमका जञान हआ था॥ १-३॥

१२० कनोपनिषद‌ [ खणड ४

(न ट क‍ "करपि बार बक220७- 22: "४०29७ वया200.४९-०220७ चाई*:22%, "५००22.

पद-भाषय

तसमाह इनदर/ अतितरामिव | अतः इनदर इन अनय दवताओकी अपकषा भी बढकर हआ, कयोकि

उसीन इस सवस समीपस सपरश

सहननदिषठ पसयश थसमात‌ | किया था--उसीन इस सबस पहल जाना था कि “यह बरहम ह! इस परकार इस वाकयका अरथ पहल

तललतयकतारथ वाकयम‌ ॥ ३॥ | ही कहा जा चका ह ॥ ३॥ "60

जमपिपयक अधिदव आदश हि. म

तसथष आदशो यदतदधियतो वयदयतदा र इती-

ननयमीमिषदार इतयधिदवतम‌ ॥ ४ ॥

अतिरोरत इव अनयान‌ दवान‌ ।

सदयनतपरथमो विदाचकार

उस बरहमका यह [ उपासना-समबनधी ] आदश ह । जो बिजलीक चमकनक समान तथा पटक मारनक समान परादरभत हआ वह उस

बरहमका अधिदवत रप ह ॥ ४॥

पउ-भाषय

तख परतसय बरहमण एप उस परसतावित बरहमक विपयम

यह आदश यानी उपमोपदश ह।

जिस उपमास उस निरपम बरहमका

उपदश किया जाता ह वह

आदश उपमोपदश+। निरपमसय

बरहमणो. यनोपमाननोपदशः चाकय-भाषय

तसयष आदश; । तसय बरहमण

पष वकषयमाण आदश उपासनो-

उसका यह अदश ह। अरथात‌ उस बहयका यह आग का जानवालम

आदश---उपासनासमबनधी उपदश ह।

पदश इतयरथः । यससादवभयो । कयोकि बहम दवताओक सामन विदयत-

खणड छ ] शाडरभाषयाथ १२१

[व - >. 4 "किट 9 टक न रि जिन न क

पद-भाषय

सोधयमादश इतयचयत । कि

तत यदतत परसिदध लोक विदयतो

चयदयतद‌ विधोतन इतवदिसय-

तदशपपननमिति विदयतो विदयोत-

नमिति करपयत । आ३ इतयप-

माथ । विचयतो विदयोतनमिव-

तयथः, “यथा सकषटियतम‌'! इति

शरतयनतर च दशनात‌ । विदय-

दिव हि सदातमान दशचयितवा

तिरोभत हम दवभयः)

अथवा विदयतः तिजः” इतय-

आदश” कहा जाता ह। वह आदश कया ह * यह जो छोकम

परसिदध विजलीका चमकना ह । यहा “यबतत‌” शबदका 'परकाश किया” ऐसा अरथ अनपपनन होनक

कारण "विदयतो विदयोतनम---विदयत‌- का चमकना ऐसा अरथ माना जाना ह | आः यह अवयय उपमाक डिय ह | अरथात‌ जनी चमकनक समान [ऐसा तातपय ह| जसा कि “यथा सकदिधतम‌” इस अनय शरतिस मी दखा जाता ह, | कयोकि बरहम विदयतक समान ही अपनको एक बार परकाशित करक

दवताओक सामनस तिरोभत हो गया था |

अथवा “विदयत” इस पदक आग 'तिज: पदका अधयाहार

धयाह £ = ५ ह

यम। वयदयतद‌ विदयोतित- | करना चाहिय । “वयदयतत‌ःका अरथ

वाकय-भाषय

[4 4 (व १ वियदिव सहसव परादभत बरहम | क समान सहसा ८ अकसमात‌) ही

यतिमततसमादधिदयतो विदयोतन यथा! परकट हो गया था, इसलिय जो यह

बरहम परकाशमय ह वह विदयतक परका

यदतडझ वययतदवियोतितबत‌। | क समान परकाशित हआ। आए का अरथ (इव, ह; यह 'आः शबद उपमाक

आ इचतयपमारथ आशबदः । यथा | लिय ह । जिस परकार विजली सघन

१२२ कनोपनिषद‌ { खणड ७ य । < ~य ७...

गर-भाषय

त‌ आद इ । विदयतसतजः | ह परकाशित हआ! तथा जा का अरथ

सकददियोतितवदिवतयमितरायः ।

इतिशबद आदशगरतिनिरद जा

इतययमादश इति । इचछबदः

सथचयाथः । अय चापरससादशः ।

कोऽसौ ? मयभीमिपद‌ यथा चकषः

नयरममिपद‌ निमष कतवत‌ ।

समानः ह | अतः इसका अभिपराय यह हआ कि (जो बतरिजलीकी तजक समान एक बार परकाशित हआ } इतिः अबद आदशका सपदझत करनक लिय ह अरथात‌ 'यह आदश ह? ऐसा बतलानक लिय ह, और त‌” शबद समचयाधक ह ।

इसक सिवा एकदसरा आददा यह भी ह | वह कया ह ? [ सनो--] जिस परकार नतर निमष करता ह, उसी परकार उसन भी निमप किया।

चाकय-सापथ

* १५ ४

धघनानधकार चिदा विदयतसचतः

भकाशत एव तदर दवाना परतः

खवतः परकाशवदवयकतीभतमतो

वययतदिवरयपासयम‌ । यथा

सरदधियतमिति च वाजसनयक ।

यसमाचचनदरोपसलपणकाद सयमी-

मिपत‌। यथा कथिचचशचरनिमण

छतवानिति । दतीदिलयनरथकौ

निपातौ । निमिपितचदिव तिरो- भतम‌ । इतति पवमधिदवत दव- ताया अधि यदखनमधिदवत तत‌॥ ४ ॥

अनधकारको विदीरण करक सब ओर ऋ १ द

परकाशित गती ४ उसी परकार यह बरहम

दवतारअकि तामन सव ओर परकाययन

होकर वयकत ह; दसलयि यह बिजडीकी अमकक समान ह! इस परकार उपासना करनयोगय ह। जसा कि वाजसनयक अतिम मी

धववा सकदवियतमस ऐसा कहा ह ।

कयोकि उनदरक समीप जानक समय

वरहम रसपरकार सकरचित शो गया थाः मानो किसीन नतर मढ नवयि हो; अतः यह नतर मढनक समान तिरोदित हआ । इस परकार यह अधिदवत बअदादशन ह] जो दशन दवतासमबनधी होता द बद‌ अधिदवत कददछाता ह। परति" और 'इत‌? इन दोनो निपातोका यहा कछ अरथ नही ह ॥ ४॥

2 ९5०

खणड ४ ] शाडरभाषयाथ शर वॉर: ~ ~ 9 नवाब: पक पकका व २. च बाप

पद‌-माषय

खाथ णिच‌ । उपमाथ एव | यहाखारथम "णिच‌ परतय हआ ह । आकारः | चककपो विषय परति | आ उपमाक दी लिय ह। इस परकार तियत | निशरक विषय परकारक छिप जानक

भकार भावि सत‌ चतव । | समानः ता अरथ इजा । इ तरहयह इति अधिदवत दबताविषय बरहमकी अधिदवत---दवताविषयकऋ

बरहमण उपमानदशनस‌ || ७ | | उपमा दिखलायी गयी ॥ ४ ॥

>

बहयविषयक अधयातम आदश

अथाधयातम यदतदवचछतीव च मनोऽनन चतदप- समरतयभीणशसङकलपः ॥ ५ ॥

इसक अननतर अधयातमउपासनाका उपदश कहत ह- यह मन जो जाता हआ सा कहा जाता ह वह बरहम ह- इस परकार उपासना करनी चाहिय, कयोकि इसस ही यह तरहमका समरण करता ह और निरनतर सकलप किया करता ह ॥ ५॥

पद-भाषय

अथ अननतरम‌ अधयातम | इसक पशचात‌ अब अधयातम अतयगातमविषय आदश उचयत । । अरथात‌ परवयगातमा-समबनधी आदश

वाकय-नषय

अथ अननतरमधयातममातम- अव आग अधयातम--आरम- विषयक उपासना कही जाती ह--

विषयमधयातममचयत दति वाय | इस परकार इस वाकयभ “उचयत! यह करियापद शष ह । जो यह मन उपरयकत

शोषः । यदतचयथोकतरकषण बरहम | लकषणोयाछ बरहमक परति मानो जाता--

१२४ कनोपनिषद‌ [ खणड ४

[ १ रद :<:22% श वएजि-2 4 "या १८226 "वा ००22% ~ य कट. नक 022, = बरक.

पद‌-भानय

यदतद‌ गचछतीव च मनः ।

एतदरङच दौकत इव विषथीकरो-

तीव । यचच अनन मनसा एतद‌

ज उपसरति समीपतः समरति

साधकः अभीकषण भशम‌ । सक-

सपशच मनसो बरहमविषयः । मन-

उपाधिकतवादधि मनसः सकरप-

समतयादिभरतययर भिवयजयत बरहम,

विषरयीकरियमा-णमिव । अतः

स एप बहमणोऽषयारममादशः।

कहा जाता ह । यह जो मन जाता

इआ-सा माम होता ह, सो वह

मानो बरहमको ही विपय करता ह । ओर साधक परष इस मनस जो

बरहमका वारमबारउपसमरण---

समीपस समरण करता ह [वह उसका अधयातम आदश ह] ।

मनका सङकलप भी बरहमको ही `

विपय करनवाटा ह । बरहम मनरप

उपाधिवादा ह; इसलिय मनकी

सटडलप एव समति आदि परतीतियोस

मानो विपय किया जाता हआ

बरहम ही अभिवयकत होता ह । अतः

यह उस बरहमका अधयातम आदश ह।

चाकय-साषय

गचछतीव परापनोतीच विषयीकरोती- | परापत होता अरथात‌ विषय करता ह [ वह बरहम ह--इस परकार उपासना

वतयरथः । नपनरविषयीकरोति | करनी चाहिय ] ! मन वसततः अहमको

मनसरोऽविषयतवादरदमणोऽतो मनो

न गचछति! यनाहमनो मतमिति

हि चोकतम‌ । त गचछतीवति

मनसोऽपि मनससवात‌।

विधरय नही करता; कयोकि बरहय तो मनका अविषय ह; इसलिय वह उसतक नही पहच सकता, जसा कि पहल कह चक हः कि “जिसस मन मनन किया कहा जाता ह ।* अतः मनका भी मन होनक कारण धगचछतीवः (मानो जाता ह) ऐसा कहा गया ह ।

खणड 8 ] शाइरसापयारथ शश५

५20७. = = वा ~ 22७ बटर चकरटि:20, "आफ 22७ हरपकट ७० बहरपक 22. चाट: 72७: ०आ५०:200- 5५०20

पड-भषय

विदयननिमिषणवदधिदवत छत-

परकाशनधरमि, अधयातम च मनः

भरतययपपरकाङामिवयकतिधरमि--

इतयष आदशच! एवमादिशयमान

. हि बरहम मनदबदधिगमय भवतीति

बरहमण आदशोपदशः | न हि

निरपाधिकमव बहम मनददधि-

भिराकरयित शकयम‌ ॥ ५॥

विदयत‌ और निमषोनमपक समान बरहम शीघर परकाशित हानवाख ह---यह अधिदवत आदश कहा

गया और वह मनकी परतीतिक समकालरम अभिवयकष दवोनबाला ह---यह उसका अधयातम आदश ह । इस परकार उपदश कया हआ बरहम मनदवदधियोकी मी समझम आ जाता ह---इसडिय यह [सोपाधिक]

बरहमका उपदश करिया गया, कयोकि

मनदबदधि परपोदरारा निरपाधिक

बरहमका जञान परापत नही कया जा

सकता ॥ ५ ॥

0)

~ चाकय-माषय

आआतमभततवाचच तरहमणसततस-

मीप मनो वरतत इति । उपसमरतय- नन मनसव तदभय विदधासयसम- तसमादरा गचछतीचतयचयत ।

अभीकषण पनः पनशच सडडलपो बहपरपितसय मनसः । अत

उपसमरणसङकवपादिभिदिङञ नहा मनोऽभयातमभतसपासयमिलयभि- परायः ॥ ५ ॥

अरथात‌ तरहमका सवरपभत होनक कारण मन उसक समीप रहता ह| कयोकि विदवान‌ इस मनस ही उस

बरहमका समरण करता ह इसलिय [मन] जहाक समीप मानो जाता ह" ऐसा

हा जाता ह । बरहमदवारा पररित मनका ही बारमबार सङकसप होता ह। अतः

तातपय यह ह कि सरण और सङकसप आदि लिदधोस मनकी अधयातम बरहम-

सवरपस उपासना करनी चाहिय ॥ ५॥

---*०‰९+>०द<००--~

१२ कनोपनिषद‌ [ खणड ४ [ 2 य प १ व 3 व नाई 23% धा र आ

किच | तथा-- बन-पजञक बहमकी उपासनाका फल

तदध तदन नाम तददनमितयपासितवय स य एतदव

वदामि हन ९ सरवाणि भतानि सवाञछनति ॥ ६ ॥ वह यह बरहम ही वन ८ समभजनीय ) ह । उसकी ववतत--इस

नामस उपासना करनी चाहिय। जो उस इस परकार जानता ह उस

सभी भत अचछी तरह चाहन रत ह ॥ ६॥ पद-भाषय

तद‌ बरहम ह किल तदन नाम वह बरहम निशचय ही “तददन

4. नामवाखा ह । (तसय वन तदवनम‌ तसय वन तदन तख पराणिजातसय | [ इस परकार यहा षषठी ततपरप

पतयगातमभततवाइन चननीय | समास ह | । अधौत यह उस पराणिसमहका परवयगावमखरप होनक

सभजनीयम‌ । अतः तदवन नाम; | कारण वन---बननीय अथोत‌ ध हि भजनीय ह । इसलिय इसका नाम

भखयात बहम तदवनमिति यतः, | (न! ह । गकि हा न

तसात‌ तदवनमिति अननव गणा- | इस नामस परसिदध ह, इसलिय सितनय चिनत उसकी (तदरनः इस गणनयञजक

मिधानन उपासितनय चिनत- | नामस दी उपासना--चिनतन नीयम‌ | करना चाहिय |

वाकय-भाषय तसय चाधयातमसपासन गणो | उस बरहमकी अधयातम-उपासनाम

विधीयत- गणका विधान किया जाता ह-- तदध तददनम‌ तदतडहा तचच पयह ननः ह, यानी यह बरहम

9 तत‌ अरथात‌ परोभ और बन--अचछी

तदधन च ततपरोकष- चन | तरह भजन करन योगय ह। [वन‌ घातका अरथ अचछी परकार भजन करना ह ] तत‌ शबद जिसका करममत समभजनीयम‌ । वनतसततकम-

खणड ४ ] शाङकरभाषयारथ १२५७

0 द 2 बयाज: 3 2 वा 2 2

पद-भाषय

अनन नामनोपासनस फल-

माह स यः कथिद‌ एतद‌ यथोकत

जडा एव यथोकतगण वद उपासत

अभि ह एनम‌ उपासकः सरवाणि

भतानि अभि सबाजछनति ह

शरायनत एव यथा नन ॥ ६ ॥

इस नामस की हई उपासनाका फठ बतलात ह---जो कोई इस परवोकत बरहमको उपरयकत गगोस यकत जानता अरथात‌ उपासना करता ह उस उपासकस समसत पराणी

इसी परकार अपन समपरण अभीषट फटोकी इचछा यानी परारथना करन खगत ह, जस कि बरहमस ॥ ६ ॥

सम

एवमनशिए: शिषय आचाय- सवाच--

इस परकार उपदश

शिषयन आचारयस कहा---

पाकर

चाकय-भाणय

शासतसमाततदधन नाम ।

हमणो गौण हीद नाम । तसमा-

दनन गणन तदधनमितयपासित-

चयम‌ । स यः कशचिदतयथोकतमव

यथोकतन शणन चनमितयनन

नाखनाभिधय बरहम वदोपासत

तसथततफठमचयत ।! सरवाणि

शरतानयनञपाखकमभमिसवाञछ-

~ नतीदाभिसमभजनत सवनत सम-

वयरथ: । यथागणोपाखन हि

फलम‌ ॥ ६॥

ह ऐस षन‌ धाठस तन शबद सिदध होता ह; अतः उसका (तदरनः नाम ह। बरहमका यह नाम गणविशषक कारण ह। अतः इस गणक कारण बह “वन ह? इस परकार उपासना करन योगय ह। वह, जो कोई उपयकत गणक कारण पहल कह हए “वन! इस नामस इसक अभिधय तरहमको जानता

अरथात‌ उपासना करता ह उसक लिय यह फल बतलाया जाता ह। इस उपासककी सभी भत इचछा करत ह अरथात‌ समी उसका भजन यानी सवा करत ह । यह परसिदध ही ह कि जस गणवालकी उपासना की जाती ह वखा ही फल होता ह ॥ ६ ॥

~-०० ५९०००

१२८ ` कनोपनिषद‌ [ खणड 8

१ 22७. ० बरपड:220, त ` 2 बह: शा = +

उपसहार

उपनिषद मो बरहीतयकता त उपनिषडाहमी वाव त उपनिषदमबरमति ॥ ७ ॥

[ शिषयकर यइ कहनपर कि ] ह गरो ! उपनिषद‌ किय [ गरन

कहा ] हमन तझस उपनिषद‌ कह दी । अब हम तर परति बराहमण- जातिसमबनधिनी उपनिषद‌ करग, ॥ ७ ॥

पद-साषय वि

उपनिषद रहसय यचचिनतय व ॥ 28 ! न 2५ 45 उपनिषद‌ यानी रहसय ह वह मझ

मो भगवस‌ जहि इति । कषठ ।

एवयकतवति शिषय आहा- | शिषयक ऐसा कहनपर आचारथ- क ~ न कहा, तझस उपनिपद‌ तो कह चायः-उकता अभिहिता त तब | दी गयो । बह उपनिषद‌ कया ह £

उपनिषत‌ । का पनः सतयाह-- | सो बतछात ह---हमन तर परति बराहमी-तरहम यानी परमातमसमबनधिनी

बराहमा बरहमण$ई परमसातमन उखय | उपनिषद‌ ही कही ह, कयोकि पव-

_ | कथित विजञान परमातमसमबनधी ही था। जराहला ताम‌, परमातमावषयतवा ति निशचय ही ति उपनिपदमबरम

दतीतविजञानसथ, वाव एव त | इस वाकयक दवारा पहल कही हई नि ~ | उपनिपदको ही लकषय करक भन

उपानषदमनरमति उकतामन | तमस परमातमसमबधिनी उपनिषद‌ हक ही कही ह! इस परकार& अगल परमसातमविषयासपनिषद मनरमतय गरनथका विपय सपषट करनक लिय

वधारयतयततराथम । निशचय करत ह। ५ (त‌ चाकय-माषय

उपनिषद भो बहि इदतयता- | इस परकार उपनिषद‌ कह चकनपर 2 ८

यामपयपनिषदि . शिषयणोकत | भी जवर सिपयन कदा कि स किय तब आचाय बोल आचाय आह--उकता कथिता । ठझस उपनिषद‌ और आतमाकी

# उपानिषदक जिजञास शिषयस आचारय परवम ही उपनिषदका कथन कर यह सपषट

करत ह कि उततर अनधम उपनिषदका वरणन नही ह ।

खषड ४ |] शाङकरभाषयाथ ११९

त ~ ¬ वा ० "-करप बा कप बरपिट क० बआए कर बट ०० चर नक चाट 4० बन टिक पाए 2 ५

पद-भाषय

परमातमविषयाञचपनिषद शरत- |

बतः उपनिषद मो बरहीति पचछतः रिषयख कोऽभिपरायः !

यदि तावचतखाथख अशनः

कतः, ततः पिषटपषणवपनर‌-

कतोऽनथकः परभः खात‌ । अथ सावशपोकतोपनिपतखात‌, ततसत-

सखा; फरवचननोपसहारो न

यकतः "परतयासाहछोकादमता

भवनति” ( ० उ० २।५)

इति। तसादकतोपमिषचछषविष-

योऽपि गरभोऽलपयन एव, अनच-

शपिततवात‌ । कतरखभिपरायः अषदरितयचयत---

यहा परमातमविपयिनी उपनिषद‌- को सन चकनवाल शिषयका (उपनिषद‌ किय इस परकार गरहन करनम कया अभिपराय ह ? यदि उसन सनी इई बातक विषयम ही पनः रसन किया ह तो उसका पनः कहना पिषटपषण ( पिस हएको पीसन ) क समान निररथक ही ह | और यदि पहल कही हई उपनिषद‌ असमपरण होती तो “इस रोक परयाण करनक अननतर व अमर हो जात ह” इस परकार फल बतलात हए. उसका उपसहार करना उचितन होता । अतः परवोकत उपनिषदक अवशिषट ( कहनस बच हए ) अशक समबनधम परशन करना भी अयकत ही ह, कयोकि उसम कोई बात कहनस छोडी नही गयी | तो फिर परशनकरता- का कया अभिपराय हो सकता ह? इसपर कहा जाता ह---

चाकय-भाषय

त तभयमपनिषदातमोपासन च ! अधना बराहमी चाव त तभय बरहमणो बराहमणजातखपनिषदमनम चकषयाम इतयरथः । वकषयति हि । बराहमी नोकता उकता तवातमोपनि- षत‌ तानन मताभिपायोऽनम- तयय शबदः ॥ ७ ॥

उपासना कह दी!। अब हम तझ बराहमी--बरहमकी--बराहमण-जातिकी उपनिषद‌ सनात ह। यह उपनिषद‌ आग कही जायगी । अबतक बराहमी उपनिपद‌ नही कही गयी, कवल आतमोपनिषद‌ ही कही गयी ह | अतः अबरम इस शनदस भतकालका

/ अभिपराय नही ह | ७॥

4० कनोपनिषद‌ [ खणड ४

व रह = + - ~ चा - पा व ~ ~

पड-मषयः

कि परवोकतोपनिषचछषतथा

ततसहकारिसाधनानतरापकषा,अथ

निरपशव १ सापकषा चदपकषित-

विषयामपनिषद जहि । अथ

निरपशषा चदवधारय पिपपलाद-

चननातः परमसतीतयवमभिपरायः ।

एतदपपतननमाचायसथावधा रण-

रचनम‌ “उकता त उपनिषत‌"

इति ।

- .मच नावधारणमिदम‌, यतो-

ऽनयदवकतवयमाह (तसय तपो दमः”

इतयादि । `

सतव, बयदयत आचा-

तरपगरशतीना यण‌_ न -तकताषानष‌ः

शरहमविदयाया- छषतया ततसहकारि

महम साधनानतराभिगरायण , पादनम‌

वा; कि त बरहमविदया

पहल जो उपनिषद‌ कहो ` गयो ह उसक अवदोपरपस किनदी अनय सहकारी साधनोकी अपकषा ह अधवा वह सरवथा निरपकषा' ही कही गयी ह? यदि वह सपकषा ह तो अपकषित विपयसमबनधिनी उपनिपद‌ कहिय और यदि उस किसीकी अपकषा नदौ ह तो पिपपलछादक समान इसस पर ओर कछ नही ह---इस परकार निरधारण कीजिय--+ यह शिषयक गरशनका अभितराय ह । अतः आचारयका तझस उपनिपद‌ कह दी गयी यह‌ अवधारण वाकय ठीक ही ह |

हयह अवधारण वाकय नही हो सकता, कयोकि (तसय तथो दमः” इतयादि आगामी वाकयदयरा कछ ओर. कहन योगय वात कही गयी ह । ( 5

समाधान-ठीक ह, आचारयन एक दसर कथनीय विषयकरो तो कहा ह; तथापि उस पवकति उपनिपदक अवशषरप अथवा अनय सहकारी साधनरपस नही कहा । बलकि बरहमविदयाकी गरापतिक उपाय बतलानक ही अभिपरायस

आपतयपायाभिगरायण वदसतदजश | कहा ह, कयोकि मनतरम वद, और + दखिय परशनोपनिषद‌ ६ ! ७

शणड ४ ] शाइरभाषयाथ १२१

[त - +. कात - ~ पा ~. < 3 4 थ पटक पर पर नकाटट2%-करपस 22०"

पद-भाषय

सहपाठन समीकरणाततपः अभती-

नाम‌। न हि वदाना शिकषा

जराना च साशाहहविदयाशपरतव

ततसहकारिसाधनतव वा समभ-

चति । "+

सहपठितानामपि यथायोग

चिसजय विनियोगः सयादिति

चत‌ यथा सकतवाकारमनतरण-

मनतराणा यथादवत विभागः,

तथा तपोदमकरमसतयादीनामपि बरहमविदयाशपरव ततसहकारिसाध-

नतव वति करपयत । वदाना

तदङगाना चारथपरकाशकतवन ~+;

# अभनिरिद

4.४ ॥

हविरजषतावीवधत

उनक अगोक साथ तप आदिक पाठ करक उनस इनकी समानता मरकट की गयी ह। बरहमविदयाक साकषात‌ रोपभत अथवा सहकारी

साधन वद और उनक अग शिकषा आदि भी नही हो सकत । [अतः इनक साथ पाठ होनस तय आदिभी विदयाक अग या साधन सिदध नही होत )।

झजला-किनत [ वद-वदादधोक ] साथ-साथ पढ हए होनपरर भी तप आदिका भी समबनधक अनसार विभाग करक परयोग किया जा सकता ह। अरथात‌ जिस परकार सकतवाकरप अनमनतरण मनतरोका उनक दवताओ- क अनसार विभाग किया जाता ह# उसी परकार तप दम करम और सतयादिको भी बरहमविदयाका शषभत अथवा सहकारी सावन माना जा

सकता ह। वद और उनक अनन अरथक परकाशक होनस करम और

मदय जयायो5कत।

अभिपोमाविद .दविरजपतरामवीवपतता मदो जयायोऽकातताम‌ ॥ ˆ

इतयादि सकतवाकम दौ समसत यशोकी समापतिपर दवताओका अनमनतरण किया

जाता द! यथपि इस सकवाकम बहतस दवताओका निरदश किया गया ह; तो मो लिस

यर जिस दवताका आवाइन किया जाता ह उसीक विशतरजनम समरथ होनक कारण जिस अकार इस सकतवाकका विनियोग छोता ह उसी भकार तप आदिका भी विदयाक

शरपस विनियोग दयो जायगा ।

१२२ कनोपनिषद‌ [ खणड.

[2 4 2 य

पद-साचय

करमातमजञानोपायतवमितयव हयय विभागो यजयत अथसमबनधोप- पततिसामरथयादिति चत‌ |

न; अयकतः । न हयय वि-

भागो घटना पराञचति} । न हि

सरवकरियाकारकफलमभदबदधितिर-

सकारिणया बरहमविदयायाः शषा-

पकषा सहकारिसाधनसमबनधो वा

यजयत। सरवविषयवयावततपरतय-

गातमविषयनिषठतवाचच अहम-

विदयायासतफलसख च निःशरय

सख । “मोकषमिचछनसदा करम

सयजदव ससाधनम‌ । तयजतव

हि तजजञय तयकतः परतयकपर

पदम” तसातकरमणा सहकारितव

करमशषापकषा वा न जञानसयोष-

पदयत। ततोऽसदव घकतवाकाल-

आतमजञानक साधन ह--इस परकार अथक समबनधकी उपपततिक सामरधवस उनका ऐसा विभाग उचित ही ह । ऐसा मान तो?

समाधान--यकतिसडभत न होनक कारण ऐसा मानना ठीक नही, कयोकि ऐसा विभाग परसतत परसगक अनकल नही ह । सबर परकारकी करिया कारक फक और भदबदधिका तिरसकारकरनवाली बरहमविदयाम किसी परकारक शषकी अपकषा अथवा उचित सहकारी साधनका समबनध मानना ठीक नही ह,कयोकि बरहमविदया ओर उसका फल निःशरयल--य सतर परकारक विषयोस निदतत होकर परतयगातमा-रप विषयम सथित होनवार ह। [कहा भी ह] “शरोकषकी इचछा कररनवाखा परष

सरवदा साधनसहित करमोको वयाय द। तयाग करनस ही तयागीको अपन परतयगातमरप परमपदका जञान हो सकता ह” । अतः करम को जञानकी सहकारिता अथवा जञानको करमका शष होनकी अपकषा समभव नही हः । अतः सकतवाकरप अनमनतरणकत समान इन तप आदिका भी समबनधक अनसार विभाग हो

सकता ह--ऐसा विचार मिथया ही मनरणवदयथायोग विभाग इति । | ह । अतः [ शिषयक उपरयकत ]

खणड ४ ] शाडरमाषयारथ १३३

2 ~ 3, = 8 ~ 0-5-22 | <, अ १

पर-भाषय

तखादवधारणारथतब परशनमनति- | परशनका जो उततर ह वह [ उपदश- 225 की समापतिका ] अवधारण करनक

= "र तः अरथात‌ अमरतव-परापतिक छिय किसी उपानपदकतानयो = एवा ल अनय साधनकी अपकषास रहित इतनी

तवाय ॥ ७॥ ही उपनिषद‌ कही गयी ह ॥ ७ ॥ ~>

विदयापरापतकि सापन

तसथ तपो दमः करमति परतिषठा वदाः सवोङगानि सतयमायतनम‌ ॥ < ॥

उकत ( बराहमी उपनिपद‌ ) की तप, दम, करम तथा वद और समपरण वदाग--य परतिषठा ह एव सय आयतन ह॥ ८ ॥

पद-भाषय

यामिमा बराहमीसपनिपद तवा- कदर सामन हा गा = उपनिपदका वणन किया ह उस 8380 तसय तसया उकताया परवकथित उपनिपदकी पराकर

उपनिषदः परापतयपायभतानि 9 तप शा ह । शरीर, ~ „ =-= | इनदरिय और मनक समाधानका

शादि । तपः काथनदरय | नाम तप ह । दम उपशम मनसा समाधानम‌ } दमः उप- । ( विपयोस निदतत होन ) को कहत

वाकय-भाघय

तसया वकषयमाणाया उपनिपद‌; | उस आग कही जानवारी उपनिपद‌- तपो बरहमचरयादि दम डपशमशकरम | की तप रयचयोदि, दम--इनदरिय-

दीलयततानि निगरह तथा अथिहोतरादि करम- य सव अशनिहोतरादीतय ति | ~ ॥ व र दोचरादी मतिषठाशरयः। | परतिठा--आधय ह । इनक होनपर पत दि सतस ाहययपनिपत‌ | दी वरादयी उपनिषद‌ परतिषठित हभ

42 4 € अतिषठिता भवति । वदशसवारोऽ- | करती ह। चारो वद‌ तथा समपरण ह क हल वदाड भी परतिषठा ही ह । इस परकार

जञानि च सरवाणि । परततिषठतयजञ- । [ वदाः सरवाजञानिक आग ] परतिषठा"

१३७ कनोपनिषद‌ [ खणड न 2 ~

पर-भसापषय `

शमः । कम अशरिहोतरादि । | | ह। और करम अगनिहोतरादि ह। एतहि ससकतसय सचचिदा इनक दवारा ससकारयकत हए परपो- एतहि ससकतय सचशदधिदवारा को ही चिततशदधिदवारा तततवजञानकी

तचचजञानोतपततिरदटा। दटा हममर- | उतपतति होती दखी गयी ह । जिनका 4 मनोमर निवतत नही हआ ह उन

जप (

दितकलमपसोकत ध ४ परपोको तो उपदश दिया जानपर परतिपततिविपरीतपरतिपततिथ, यथ-| भी बरहमक विपयम अजञान अथवा दरविरोचनपरभतीनाम‌ । विपरीत जञान होता दखा गया ह,

प‌ जस इनदर ओर विरोचन आदिक ।

तखादिह चातीतष वा चहप | अतः इस जनमम अथवा बीत जनमानतरष तपञदिभिः कत- ईर अनको जनमोमि जिनका चितत

सचचशदरजञान समतपयत यथा- क आदिस शदध हो कर ५ शरतम‌ ८{ दव = ¢ ह‌ आतयकत जञान उतपनन || |

दष तः त कक “जिसकी भगवानम अतयनत भकति व‌ + क कता | ह और जसी भगवानम ह वसी ही हाथ अकाशनत महातमन, | गरम भी ह उस महातमाको ही य ( इव० 3० ६। २२ ) इति मनतर- | परवोकत बरिपय परकाशित होत ह” वरणात‌ । “बवानसतपदमत पसा इस मनतरवरणस तथा “पापकरमोक

न वाकय-भाषय

वतत । बहमाशरया दि विदया ।

सतय यथामतवचनमपीडाकरम‌

पटकी अनशगचि की जाती ह । कयोकि विदया बरहम ( वद ) क ही आशरय रहन- वारी ह। सतय अरथात‌ दसरकी पीडा नपहचानवाछा यथारथ वचन आयतन--नियाससथान ह, कयोकि सतययान‌ परषोम ही उपयकत साधन आयतनक समान सथित ह ॥ ८ ॥,

आयसन निवासः सतयवतछ हि

सव यथीकतमायतन इवाच-

सथितम‌ ॥.८॥

२ ०-+३०१०९/०६००---

खणड ७ ] शाडगरभाषयाथ शश५

त ~ क = ट0- वयॉरपि ७ चपट ७० नए किट७- नई जि ट4- १५27220०- "कई 2200. चईट230 चिट 2७- चाट.

. पद-भाषय

कषयातपापसय करमणः" ( महा० शा० २०४। ८ ) इति सपरतश ।

इतिशबदः उपलकषणतवपरदश-

नारथः । . इति एवमादयनयदपि

जञानोतपततरपकारकम‌ “अमानि-

तवमदमभितवम‌!( गीता १३।७)

इतयायपदरवित भवति । परतिषठा

पादौ पादाविवाखाः, तष हि

सतस परतितिषठति बरहमविदया

परवतत, पहचामिव परषः!

वदाशचतवारः सरवाणि चाङगानि

शिकषादीनि षट‌ करमजञानपरकाश-

कतवाददाना. तदरकषणाथतवाद

अङगाना परतिषठाखम‌ ।

अथवा, गरतिषठाशबदसय पाद-

रपकलपनाथतवाददासतवितराणि सरवाङगानि शिरआदीनि । असिन‌ पकष शिकषादीना वद- अरहणनव गरहण कत परतयतवयम‌।

कषीण होनपर परषोको जञान उतपनन होता ह” इस समतिस भी यही परमाणित होता ह । ;

[ मल मनतरम ] “इतिः शबद [ अनय साधनोका ] उपलकषणतव परदरशित करनक लिय ह | अरथात‌ इसी परकार जञानकी उतपतति करन-

वाल “अमानितव अदममितव आदि अनय साधन भी परदरशित हो जात

ह । रतिषठाः चरणोको कहत ह. अरथात‌ य चरणोक समान इसक आधारभत ह ] जिस परकार परष अपन चरणोपर सथित होकर वयापार करता ह उसी परकार इन साधनोक रहत हए ही बरमविदया सथित और परदतत होती ह । ऋक‌ आदि चार वद ओर. शिकषा आदि छः अदध [भी परतिषठा] ह। कम और जञानक परकाशक होनक कारण वदोको और उनकी रकषाक कारणभत होनस वदादधोको बरहम-

विदयाकी परतिषठा कहा गया ह ।

अथवा शरतिषठा शबदकी चरण- रपस कलपना की गयी ह; इसलिय वद उस बरहमविदयाक शिर आदि अनय समपरण अङग ह । इस पकषम

शिकषा आदिको बदका. गरहण करनस

ही गरहण किया समझ लना चाहिय।

९२द कनोपनिपद‌ [ खणड थ

ए - > का = +. चक = ~. कः = ~ क < ~ च 4. ~ द = + ~ 2०७.

` पद-भाषय

अदधिनि हि गहीतऽङगानि गरही तानि

एव मवनति, तदायचतवादडञा- नाम

सतयम‌ आयतन यतर तिषठ तय- पनिषत‌ तदायतनम‌ | सतयमिति

अमायिता अकौटिलय बाखनः-

कायानाम‌ । तष दयाशरयति

विदा य अमायािनः साधवः,

नासरपरकतिष मायाविष। “न

यष जिहममनत न माया च

(पर० उ० १ । १६) इति

शरतः । तसातसतयमायतनमिति

कणपयपत तपआदिष एव

गरतिषठातवन आपधसय सतयसथ

पनरायतनतवन गरहण साधना-

तिशयतवजञापनाथम‌ । “अशवमध-

सहस च सतय च तलया इतम‌।

अशवमधसदसराच सतयमक विकषि

षयत" ( विषणसमर° < ) इति

समरतः ॥ ८ ॥

~~~ --~_~~~_~_

कयोकि अदनीक अधीन ही अनग होत

ह इसलिय अङगीक यहीत होनपर उसक अङग भी गहीत हो ही जात ह |

सतय आयतन ह । जहा वह उपनिपद‌ सथित होती ह वही उसका आयतन ह । वाणी, मन

और शरीरकी अमायिकता यानी अकटिडताका नाम सतय ह। जो छोग अमायावी और साघ

( जदधखभाव ) होत ह उनहीम

बरहमतिया आशरय छती ह, आसरी परकतिवाल मायाचियोम नदी, जसा

कि “जिनम कटिता, मिथया और माया नह ह” इतयादि शरतिस सिदध होता ह। अतः सतय उसका

आयतन ह--ऐसी कलपना की जाती ह। तप आदिम ही गरतिषठा- रपस परापत इए सतयको फिर आयतनरपस गरहण करना उसका

अतिराय साघनतव परदरशित करनक

लिय ह। “सहसर अशवमध और सतय तराजम रख जानपर सहस

अशवमघोकी अपकषा अकख सतय ही विशष ठहरता ह? इस सपतिस भी यही परमाणित होता ह ॥ ८ ॥.

०9०००

खणड ४ ] शाडरभाषयाथ १३७

गरनधावगाहनका फल

यो वा एतामव वदापहतय पापमानमननत खगग छोक

ञय परतितिषठति परतितिषठति ॥ € ॥ | जो निशवयपरक इस उपनिपदको इस परकार जानता ह वह

पापको कषीण करक अननत और मदान‌ खरगछोकम परतिषठित होता ह,

परतिषटित होता ह ॥ ९॥ पघर-भाषय

यो व एता बहमविदयाम‌

कनपितम‌! इतयादिना यथो-

कताम‌ एव महाभागाम‌ चह ह

दवभयः इतयादिना सतता सब-

विदयापरतिषठा बद

हि विनदतः इतयकतमपि बरहम-

अमततव

कनपितम! इतयादि वाकषयदवारा कही हई तथा शरहम ह दवमयः! आदि आखयायिकादवारा सतत इस महाभागा और समपरण विाओकी आशरयभता बरहमविदयाको जो परष

जानता ह वह पापकरो छोडकर अरयात‌ अविदया, कामना और कमरप ससारक बीजक तयागकर अननत---जिसका कोई पार नही

विदयाफलमनत निगमयति-- ह उस खरछोकम अरथात‌. छखखरप वाकय-भाषय -

तामता तपआयहा ततपरतिषठा तप आदि अगोवारी और उनदीपर

बाहमीजपनिषद‌ सायतनामातम-

शानदतभतामच यथावयो वद‌

अदधततऽखतिषटति, तसयततफलम‌

आह--अपहतय पापमानम‌ अप-'

कषीय घरमाचरमावितयथः

नत5पारपविदयमानानत

अन- ह

सवग

परतिषठित इस बराहमी उपनिपदको, जो कि आतमजानकी हतभत ह, जो उसक आयतनक सहित इस परकार यथायत‌ जानता ह--जो उसका अनवरतन यानी अनषठान करता ह उसक लिय यह फल बतलाया गया ह। वह पापको कषीण करक अरथात‌ धरम और अधरमका कषय करक जिसका अनत न हो उस खरगलोकम अरथात‌ दःखरहित आननद-

कोक खखभाय निदध खातमनि | पराय और अननत--अपार अरथात‌

१२८ कनोपनिषद‌ [ खणड 8

{५ का: 4 बलि 2, 2 नह पट 2 4 = य: न

- + पद-मषय , ,६

अपहतय‌ पापमानम‌ अविदयाकाम-

कमलकषण ससारबीज विधय अननत, , अपयनत सवरग , रोक

सखातमक बरहमणीतयतत‌ । अननत

इति विशषणानन तरिषिषटप अननत-

शबद ओषचारिकोऽपि सयाद‌

इतयत आह--जयय इति। जयय जयायसि: सवमहततर खातमनि

[प‌ 99 [=>

खय एव परातिषठत । न पनः

बरहमम, जो जयय--बडा अरथात‌ सबस महान‌ ह उस अपन मखय आतमाम सित 'हो जाता ह। तातपरय यह ह कि वह फिर ससार- को परापत नही होता । “अमनततव हि विनदत! इस वाकयदवारा पहर बरहमवियाका फ कह भी दियो ह, तो'मी इस वाकयदवारा उसका अनतम फिर उपसहार करत ह । “अननतः ऐसा विशषण होनक कारण “खरम कोक स दवलोक नही समझना चाहिय; कयोकि उसम भी उपचारस अननतः शबदकी परननतति हो सकती ह इसलिय “जयय” यह विशषण दिया

ससारमापथवत इतयभिपरायः ॥९॥ | गया ह ॥ ९ ॥ "= कि क

इति चतरथः खणडः ॥ 9 ॥ कनोपनिषतपदभाषयम‌

ससपणम‌

<

चवाकय-भराषय

पर बरहमणि जयय महति सव

महततर परतितिषठति सवबदानतवय

जहयातमतवनावगमय तदव बरहम

भतिपदयत इतयरथः ॥ ९ ॥

जयषठ--मदान‌ यानी सबस बड परबहम- म परतिषठित हो जाता र'। अरथात‌ समपरण वदानतवाकयोस वय. अहमको आतममावस जानकर उसी अहमको आस हो जाता ह॥ ९॥

[~ "~

इति चतरथ: खणडः ॥ ४ ॥ कनोपनिषदाकयभाषयम‌

समपषम‌ => <<=०~

झानतिपाठ

ॐ आपयायनत ममाङगानि वाकमाणशवकषः शरोतरमथो

बरमिनदियाणि नच सरवाणि । सरव बरहमोपनिषद‌ माह हय

निराकरया:मा मा बरहम निराकरोदनिराकरणमसतवनिरा-

करण मऽसत । तदातमनि निरत य उपनिषतस धरमासत

समयि सनत" त मयि सनत ॥ |

| ॐ शानतिः ! शानतिः !! शानतिः!

---० रन

॥ हरिः ॐ ततसद‌ ॥

शरीहरिः

समनतननपरतीकानि

अथ वायमबवनवायवतत‌ अथाधयातम यदतत‌ अयनरमनरवनमघवन‌ ०९ इह चदवदीदथ ९९२ उपनिषद भो बहि १ ॐ कनषित पतति परषित मनः तदशयदरवततमभयवदत‌

9१

तदध तदवन नाम 3४१ त-'ऐकषनतासमाकमयायम‌ बड तसमादवा इनदरोडइतितराम‌ ६ तसादवा-णत दवा: ५

, तसमि <सतवयि कि वीयम‌ ५ 3) =

तसम वण निदधौ ५९ 23

तसय तपो दभः*कमति तसयष आदशो "यदतत‌ लक तडमिमनबरवजञातवदः न तन चकषरगचछति नाह मनय सवदति ४ मरतिबोधविदितम‌ ए जहय ४ दवभयः 59४5 यचकषषा न न पशयति यचछोतरण न शणोति ध यतपराणन न मराणिति ९.५९ यदिः"मनयस सवदति ९

यदवाचानभयदित यन ,*** यनमनकता न मनत य

यसयामत तसय मतम‌ ५४ यो वा एतामवम‌ ९९९ शरोजसय शरोचम‌ । ० स तसमिननवाकरान डक सा हयति होवाच | | म‌ ७ न ९ ७ ७ छ ~ च ७५ ५ 6 ७ ८७५८ ८ ५८५५७ न न ८० ५५५७ न ७ ५ न ४ 4

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