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UNIT- 1 ST (KNOWLEDGE) ǒान की अवधारणा (CONCEPT OF KNOWLEDGE) 1 ǒान एक वˑृत अवधारणा है | 2 ǒान का ˢरप सैȠावतक होता है | 3 ǒान का थानातरण सफलतापूववक वकया जाता है | 4 ǒान का ˢरप वˑृत होता है | 5 ǒान से ाɑ जानकारी ही कौशल ाɑ का आधार होती है | 6 ǒान का योग मनुˈ के सवागीण वकास के वलए वकया जाता है | 7 यह सǒानाȏक विया के माȯम से ाɑ वकया जाता है | 8 यह सैȠावतक और अमूतव होता है | 9 यह वचारो के माȯम से वकया जाता है | 10 यह सूचनाओ का सह है | 11 यह कब ,,,का उȅर देता है | 12 यह वशƗण एव अनुभव दोनो के माȯम से वकया जाता है | 13 ǒान बौȠक दƗता का दशवन होता है | ǒान के उȞे श (OBJECTIES OF KNOWLEDGE) सम˟ाओ के समाधान के वलए युि धान करना वकसी घटना और परथवत को समझने म सहायता दान करना विया के वलए उवचत चमता का ववकास करना कौशल का ववकास करना वकास करना ʩिगत ववकास करना सूचना को वनवʮतता देना सूचना को वनवʮत आकार देना व ʩाƥा करना ʩिगत अनुभव को सु करना वसȠातो का वनमा वण करना मानवसक ववकास के वलए अवसर दान करना व वनमा वण करना शɨो का वनमा वण करना समाज का वनमा वण करना इवतहास एव सˋृ वत का वनमा वण करना वकास करना सामावजक आवथवक राजनै वतक ववʶेषण करना मानवसक सपवȅ का उȋादन करना

UNIT- 1ST - Modern College

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UNIT- 1ST

(KNOWLEDGE)

ज्ञान की अवधारणा (CONCEPT OF KNOWLEDGE)

1 ज्ञान एक ववसृ्तत अवधारणा है|

2 ज्ञान का स्वरुप सैद्ाांवतक होता है|

3 ज्ञान का स्थानाांतरण सफलतापूववक वकया जाता है|

4 ज्ञान का स्वरुप ववसृ्तत होता है|

5 ज्ञान से प्राप्त जानकारी ही कौशल प्राप्तप्त का आधार होती है |

6 ज्ञान का प्रयोग मनुष्य के सवाांगीण ववकास के वलए वकया जाता है |

7 यह सांज्ञानात्मक प्रविया के माध्यम से प्राप्त वकया जाता है|

8 यह सैद्ाांवतक और अमूतव होता है |

9 यह ववचारो ां के माध्यम से वकया जाता है |

10 यह सूचनाओां का सांग्रह है|

11 यह कब ,क्या ,क्योां ,का उत्तर देता है|

12 यह वशक्षण एवां अनुभव दोनो ां के माध्यम से वकया जाता है |

13 ज्ञान में बौप्तद्क दक्षता का प्रदशवन होता है|

ज्ञान के उदे्दश (OBJECTIES OF KNOWLEDGE)

समस्याओां के समाधान के वलए युप्ति प्रधान करना

वकसी घटना और पररप्तस्थवत को समझने में सहायता प्रदान करना

विया के वलए उवचत चमता का ववकास करना

कौशल का ववकास करना ववकास करना

व्यप्तिगत ववकास करना सूचना को वनवितता देना

सूचना को वनवित आकार देना व व्याख्या करना

व्यप्तिगत अनुभव को सुदृढ़ करना

वसद्ाांतो का वनमावण करना मानवसक ववकास के वलए अवसर प्रदान करना व वनमावण

करना शब्ोां का वनमावण करना

समाज का वनमावण करना

इवतहास एवां सांसृ्कवत का वनमावण करना

ववकास करना सामावजक आवथवक राजनैवतक ववशे्लषण करना मानवसक सांपवत्त का उत्पादन

करना।

ज्ञान के प्रमुख स्रोत (SOURCES OF KNOWLEDGE)

A-प्राथवमक स्त्रोत-

(PRIMARY SOURCES)

इस प्रकार के स्रोत के अांतगवत वह आते हैं जो सववप्रथम हमारे सामने सूचना को उपप्तस्थत करते हैं

साथ में स्रोतो प्राप्त सूचनाएां पूणवता हमारे द्वारा सूचनाओां के पहचानने एवां समझने की योवगता पर

आधाररत होती है| यह ज्यादा ववश्वसनीय नही ां होती| इसका परीक्षण वकया जाए तो ज्ञान की प्रकृवत

दूवषत होने की सांभावना होती हैं |प्राथवमक स्रोतो ां के अांतगवत इांवियाां शावमल होती है |

B- वद्वतीय स्रोत-

(SECONDARY SOURCES)

1-Authoritative Sources_

इसकी अांतगवत प्रमावणत पुस्तकोां, धमव, धमव-ग्रांथो ां, उपवनषद, सावहत्य को सप्तिवलत वकया जाता है|

इससे साथ ज्ञान को प्रमावणत ज्ञान कहाां जाता है| इस प्रकार यह ज्ञान वैद्य एवां ववश्वसनीय होता है

क्योांवक इसको तकव एवां सोच के आधार पर पररभावषत वकया जाता है| इस ज्ञान की अांतगवत ववद्यालय

में पढ़ाई जाने वाली पाठ पुस्तके भी सप्तिवलत है|

2-Unautenticated Sources-

इसके अांतगवत वह स्रोत आते हैं जो ज्ञान तो प्रदान करते हैं पर प्रमावणत होने की सांभावना अवधक

नही ां होती है| इस प्रकार के स्रोत की जाांच करना आवश्यक होता है|

इसमें अनेक श्रोत सप्तिवलत हैं -

अनुभवजन्य स्रोत (Experience Based Sources)-

इसने व्यप्तिगत अनुभव को सप्तिवलत वकया जाता है इसमें व्यप्तिगत रुवच सप्तिवलत होती है इसके

अांतगवत वसु्तवनष्ठता नही ां होता है| परांपराओां एवां कथा उसे प्राप्त ज्ञान इसकी अांतगवत कथाएां कहावनयाां

मानयता सप्तिवलत हैं| इनका कोई प्रमाण नही ां होता| यह वैध नही ां है|

तकव वचांतन एवां बुप्तद् पर आधाररत ज्ञान (Logical Thinking Based Sources)-

बुप्तद् का प्रयोग करके तकव ज्ञान से प्राप्त ज्ञान को तकव वचांतन के माध्यम से शुद् ज्ञान प्राप्त वकया

जाता है| इसके माध्यम से प्राप्त ज्ञान की ववशेषता होती है की यह वनगमन वववध पर आधाररत होता

है या आगमन वववध पर आधाररत होता है| आगमन वववध के अांतगवत लोगो ां का अनुभव का

समानीकरण वकया जाता है |

अतः दृवि व प्रज्ञा पर आधाररत ज्ञान (Sources Based on Insight)-

इस प्रकार के ज्ञान की अांतगवत वह श्रोत आते हैं जो सांयोग एवां अत्यवधक बुप्तद् का प्रणाम होते हैं|

सामावजक अांतः वियासामावजक रहता है|

सांबांधो ां पर आधाररत ज्ञान (Sources Based on Relations)-

सांबांधो ां पर आधाररत ज्ञान के अांतगवत सामावजक सांस्था स्थानो ां से प्राप्त ज्ञान सप्तिवलत होता है

सामावजक सांस्थाओां में समाज और सांसृ्कवत से प्राप्त ज्ञान आता है|

ज्ञान के स्रोत एवां वैधता (SOURCES AND VALIDITY OF KNOWLEDGE)

सामान्यतः ज्ञान के चार प्रमुख स्रोत मानें तो जाते हैं-

1-अनुभव पर आधाररत ज्ञान(Experience Based Sources)

2-तावकव क वचांतन ज्ञान(Logical Thinking Based Sources)

3-वनणवयो ां पर आधाररत ज्ञान(Sources Based on Decission)

4-अांतदृववि पर आधाररत ज्ञान(Sources Based on Insite)

1-SENSORY KNOWLEDGE (इप्तियो ां द्वारा)-

जो अनुभव होता है वह ज्ञान का प्रमुख साधन होता है ।हमारी पााँच ज्ञानेप्तियो ां है ,आाँख,नाक, कान

और त्वचा| इसके द्वारा देखकर, सूांघकर ,सुनकर, स्वाद लेकर, स्पशव करके हम साांसाररक वसु्तओां के

बारे में तरह-तरह के ज्ञान प्राप्त करते हैं ।ऐसे ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान कहा जाता है | इप्तियो ां द्वारा जो

ज्ञान प्राप्त होता है उसकी ववश्वसनीयता का आकलन वकया जा सकता है परांतु उस ज्ञान की सत्यता

ज्ञात करना कवठन होता है| इसका अथव होता है सत्त की पुवि करना कवठन होता है ।

Experience Based Sources

Logical Thinking

Based Sources

Sources Based on Decission

Sources Based on

Insite

2-LOGICAL THINKING BASED KNOWLEDGE (तावकव क वचांतन)-

तावकव क वचांतन मनुष्योां के अांदर एक ऐसी योग्यता है वजसके वबना कोई भी ज्ञान सांभव नही ां है|

अनुभव द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है उसमें वसु्तओां की उपप्तस्थवत आवश्यक होती है परां तु जो ज्ञान

अमूतव है ऐसे ही ज्ञान का आधार तावकव क वचांतन होता है ।इांिी अनुभव के द्वारा रांग ,स्वाद तथा गांद से

सम्बांवधत कुछ सांवेदनाएां प्राप्त कर लेते हैं परां तु जब वसु्तओां में भेद करने का प्रश्न आता है वहााँ हमें

तावकव क वचांतन की आवश्यकता होती है|ये दो प्रकार से होता है वनगमन बुप्तद् द्वारा और आगमन

बुप्तद् द्वारा।

3-(Sources Based on Decission)वनणवयो ां पर आधाररत-

महापुरुषो ां द्वारा जो कथन वदए जाते हैं वह वनणवयो ां पर आधाररत ज्ञान होता है ।कथनो ां तथा भाषाओां

को ज्ञान के स्रोतो ां के रूप में वलया जाता है परां तु सत्यता की जााँच करना कवठन होता है।

4-(Sources Based on Insight)अांतदृववि द्वारा-

अांतदृववि से ही प्रतीत होता है वक यह एक आांतररक ज्ञान है वजसमें ज्ञान के रूप में कुछ स्पि होता है |

इसके अांतगवत ज्ञानेप्तियो ां तथा वचांतन की कोई भूवमका नही ां होती है इसके अांतगवत अचानक एक

आकाश की ज्योवत

मालूम पड़ती है।

ज्ञान के प्रकार (FORM OF KNOWLEDGE)

ज्ञान को मुख्य रूप से दो आधार पर वगीकृत वकया गया है-

1- (ON THE BASES OF ABILITY )उपलब्धता के आधार पर

2- (ON THE BASES OF NATURE)ज्ञान की प्रकृवत के आधार पर

उपलब्धता के आधार पर ज्ञान की प्रकृवत के आधार पर

1-(ON THE BASES OF ABILITY ) उपलब्धता के आधार पर-

1-व्यप्तिगत ज्ञान –PERSONAL KNOWLEDGE

कोई भी व्यप्ति वकसी वसु्त व्यप्ति के सांबांधो ां के बारे में जो सोचता है उसका व्यप्तिगत ज्ञान होता है

।यह ज्ञान व्यप्ति ववशेष तक ही सीवमत रहता है तथा उस व्यप्ति ववशेष के माध्यम से ही इसे प्राप्त

वकया जा सकता है ।व्यप्ति ववशेष से तकव पूणववववाद कर व्यप्तिगत ज्ञान की प्राप्तप्त की जा सकती

है।

2-सामावजक ज्ञान-SOCIAL KNOWLEDGE

सामावजक ज्ञान समाज व्यवस्था द्वारा प्राप्त वकया जाता है ।यह ज्ञान ग्रांथालय मैं उपलब्ध रहता है

और इसे साववजवनक ज्ञान भी कहते हैं।

3-आवथवक सामावजक ज्ञान-SOCIO-ECONOMICAL

सामावजक ज्ञान वलप्तखत होता है वकां तु सभी अवभवलप्तखत ज्ञान समाज के सभी सदस्योां को उपलब्ध

नही ां होता है | जब वलप्तखत ज्ञान का उपयोग कुछ ही लोगो ां तक सीवमत होता है तो उससे सामावजक

ज्ञान कहते हैं ।इस शे्रणी के अांतगवत आधे प्रकावशत प्रलेख को रखा जाता है ।इसके अांतगवत व्यप्तिगत

वववरण आलेख ररकॉर्व बैंक खाते इत्यावद आते हैं।

2- ON THE BASES OF NATURE (ज्ञान की प्रकृवत के आधार पर)-

1-बुप्तद्सांगत ज्ञान

2-अांतरदशील ज्ञान

3-वैज्ञावनक ज्ञान

बुप्तद्सांगत ज्ञान अांतरदशील ज्ञान वैज्ञावनक ज्ञान

व्यप्तिगत

ज्ञान

सामाजक

ज्ञान

आवथवक

सामावजक

ज्ञान

1-बुप्तद्सांगत ज्ञान-

यह ज्ञान अनुभूवत , प्रयोगवादी होता है यह प्रारां वभक प्राकृवतक वहअांतवनववहत होता है यह ज्ञान

व्यापक प्रामावणक और तकव ववचारो ां पर आधाररत होता है।

2- अांतरदशील ज्ञान-

यह बुप्तद्सांगत होता है ।यह ज्ञान सवोच्च शे्रणी का होता है कभी कभी वह मप्तस्तष्क की अब चेतन

अवस्था में प्राप्त वकया जाता है ।यह प्रते्यक व्यप्ति में एक समान नही ां होता है।

3- वैज्ञावनक ज्ञान-

यह अांतरदशी ज्ञान का शुप्तद्करण कर जब उसे सैद्ाांवतक स्वरूप प्रदान वकया जाता है तो उसे

वैज्ञावनक ज्ञान की प्राप्तप्त होती है ।ववज्ञान की पररभाषा है वक ज्ञान का व्यवप्तस्थत स्वरूप ही ववज्ञान

है।

यह ववशे्लषणात्मक व सांशे्लषणात्मक होता है ।यह सत्यावपत व व्यवप्तस्थत ज्ञान है।

ज्ञान के प्रकार

CLASSIFICATION ON THE BASIS OF RESOURCES OF KNOWLEDGE

(ज्ञान प्राप्तप्त के साधनो के आधार पर वगीकरण)-

इांवियो ां द्वारा ज्ञान आांख, कान, नाक, त्वचा ,जीभ यह सब ज्ञान प्राप्तप्त के साधन है| बच्चा छोटा होता

है तो इांवियो ां द्वारा सूचना को ग्रहण करता है ,एकत्र करता है और इस सूचना के आधार पर उसका

मप्तस्तष्क ज्ञान प्राप्त करता है| लेवकन वसफव बचे्च ही नही ां बप्ति बडे़ होकर हम इांवियो ां पर आधाररत

ज्ञान प्राप्त करते हैं तो इस ज्ञान का आधार ज्यादा ववश्वसनीय नही होता |

(KNOWLEDGE THROUGH PROPER THINKING )अनुभवजवनत ज्ञान-

ज्ञान वातावरण से अनुभव प्राप्त करके वमलता है| यह ज्ञान कई बार वैध नही ां होता क्योांवक कई बार

घटनाओां को देखने का हमारा अपना दृविकोण होता है जो वक हमारे ववश्वास एवां मानता पर आधाररत

होता है| प्रत्याशीकरण में तु्रवट होने के कारण इस प्रकार के ज्ञान में वैधता एवां ववश्वास वनयता मैं कमी

होती है।

वचांतन जवनत ज्ञान(Logical Thinking Based Sources)

इस प्रकार का ज्ञान तथा होता है जब हम समुवचत वचांतन द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं इसमें ववशे्लषण की

विया सप्तिवलत होती है| ववशे्लषण द्वारा प्राप्त ज्ञान वैद्य व ववश्वसनीय होता है।

अपरा ज्ञान –

इसको हम अपने अनुभव द्वारा प्राप्त करते हैं ववशेष तौर पर जब हम अपने भौवतक वातावरण के

साथ अांतः विया करते हुए साांसाररक ज्ञान प्राप्त करते हैं तो वह ज्ञान अपरा ज्ञान के लाता है।

परा ज्ञान –

इसको शुद् एवां आध्याप्तत्मक शे्रणी में रखा जाता है शे्रणी में रखा जाता है इस प्रकार के ज्ञान की प्राप्तप्त

गुरु वेद सावहत्य उपवनषद एवां धावमवक ग्रांथ के माध्यम से होती है यह ज्ञान वास्तववक जीवन

मेंआध्याप्तत्मक उपदेशो ां की प्राप्तप्त में काम आता है|

ज्ञान की रूप ज्ञान को हम पाांच भागो ां में वगीकृत करते हैं स्थानीय एवां साउथ ववज्ञान साववभौवमक

ज्ञान मूतव एवां अमूतव ज्ञान सैद्ाांवतक एवां प्रयोगात्मक ज्ञान कर प्रकरण और सांपूणव ग्रांथ सांबांधी ज्ञान

ववद्यालय एवां ववद्यालय से बाहर का ज्ञान। वशक्षा प्राप्त करने के स्रोत औपचाररक स्रोत इसमें

ववद्यालय आता है वनधावररत स्रोत वनरोग वचकनी औपचाररक स्रोत इसमें मुि ववश्वववद्यालय आते हैं

अनोपचाररक स्रोत इसके अांतगवत घर समाज समुदाय इत्यावद आते हैं

ज्ञान की ववशेषताएाँ (CHARACTERISTICS OF KNOWLEDGE)

वशक्षा के उदे्दश्य व्यप्ति के ज्ञान का ववकास करना होता है ।इस ज्ञान का श्रोत इप्तिय अनुभव

होता है| वशक्षा का उदे्दश्य ज्ञान प्राप्त करना है| यह ज्ञान व्यप्ति अपने अनुभवो ां से ववषय ववशेषज्ञो ां

से प्रमावणत ग्रांथो ां के अध्ययन से प्राप्त करता है| वशक्षा बचे्च को इस लोगो ां को बनाती है वक वह वकसी

भी प्रकार केवचांतन के आधार पर ही प्राप्त करें-ज्ञान के ववषय में और अवधक जानकारी प्राप्त करने

अपरा

ज्ञानपरा ज्ञान

के वलए हमें इसकी ववशेषताओां का अध्ययन करना होगा जो की वनम्नवलप्तखत है-

1-जो ज्ञान सही है वही ां ज्ञानहै।

2-ज्ञान को अनुभव से प्राप्त वकया जाता है।

3-ज्ञान का कोई दायरा सीमा नही ां होती है।

4-ज्ञान वनरांतर चलने वाली प्रविया होती है।

5-ज्ञान कभी समाप्त नही ां होता।

6-सूचना ज्ञान का श्रोत होती है।

7-ज्ञान समय के पररणाम स्वरूप होता है।

8-ज्ञान तीन तथ्ोां पर आधाररत होता है-सच्चाई, सबूतो ां और ववचार।

9-ज्ञान सुवनवित होता है।

10-भाषा के माध्यम से ज्ञान की प्राप्तप्त तथा इसका सांचार होता है।

11-ज्ञान की पुवि की जा सकती है।

12-ज्ञान मप्तस्तष्क का भोजन है।

13-ज्ञान प्राप्त करने से बड़ा और कोई सुख नही ां है।

DISTINCTION BETWEEN KNOWLEDGE AND SKILL

S.N KNOWLEDGE

SKILL

1 ज्ञान एक ववसृ्तत अवधारणा है|

ज्ञान का एक भाग है|

2 ज्ञान का स्वरुप सैद्ाांवतक होता है|

इसका स्वरुप प्रायोवगक होता है|

3 ज्ञान का स्थानाांतरण सफलतापूववक वकया

जाता है|

इसके वलए पयावप्त अभ्यास करना पड़ता है|

4 ज्ञान का स्वरुप ववसृ्तत होता है|

स्वरुप की दृवि से अपेक्षाकृत छोटा होता है|

5 ज्ञान से प्राप्त जानकारी ही कौशल प्राप्तप्त का

आधार होती है |

कौशल में ज्ञान वनवहत होता है|

6 ज्ञान का प्रयोग मनुष्य के सवाांगीण ववकास

के वलए वकया जाता है |

जीववकापाजवन के वलए व् आत्मवनभवरता के

वलए आवश्यक है|

7 यह सांज्ञानात्मक प्रविया के माध्यम से प्राप्त

वकया जाता है|

शारीररक एवां बौप्तद्क योग्यता क वलए

आवश्यक है|

8 यह सैद्ाांवतक और अमूतव होता है |

यह मनोगत्यात्मक प्रविया के माध्यम से

प्राप्त होता है|

9 यह ववचारो ां के माध्यम से वकया जाता है |

यह मूतव रूप से व्यि होता है|

10 यह सूचनाओां का सांग्रह है|

इसको प्रवशक्षण के माध्यम से प्राप्त वकया

जाता है|

11 यह कब ,क्या ,क्योां ,का उत्तर देता है|

यह कैसे का उत्तर देता है |

12 यह वशक्षण एवां अनुभव दोनो ां के माध्यम से

वकया जाता है |

इसको प्रवशक्षण के माध्यम से प्राप्त वकया

जाता है|

13 ज्ञान में बौप्तद्क दक्षता का प्रदशवन होता है|

इसको प्रवशक्षण के माध्यम से प्राप्त वकया

जाता है|

DISTINCTIONS BETWEEN TEACHING AND TRAINING

BASIS OF

DIFFERENCE TEACHING TRAINING

MEANING वशक्षण का अथव पढ़ना ,वशक्षा देना

,ज्ञान देना ,यह वशक्षक वशक्षाथी की

उपस्थवत में सांपन्न होने वाली

अांतविया है |

प्रवक्षक्षण एक सुव्यवप्तस्थत प्रविया है वजसके

द्वारा व्कप्ति वनवित उदे्दश्योां की प्राप्तप्त हेतु

ज्ञान एवां कौशल को सीखता है |

NATURE वशक्षण को ववज्ञानां एवां कला है|

प्रवशक्षण की प्रकवतवैज्ञावनक वववधओां पर

आधाररत है |

GOAL AND

OBJECTIVES

वशक्षण का मुख्य उदे्दश्य वशक्षावथवयो ां

के मानवसक स्तर को बेहतरीन

बनाना है |

प्रवक्षक्षण का मुख्य उदे्दश्य व्यप्तियोां की

आदतोां को वनष्पावदत करना है |

TIME

PERIOD दीघवकालीन होती है |

अल्पकालीन होती है |

SCOPE व्यापक होता है|

अपेक्षा कृत कम व्यापक होता है |

BASIS सैद्ाांवतक अवधारणा पर

आधारतीत है |

व्यवहाररक अवधारणा पर आधाररत है |

DISTINCTIONS BETWEEN REASON AND BELIEF

S.N REASON BELIEF

1 तावकव क रूप सोचने,समझने और वनष्कषव

वनकालने की मानवसक शप्ति को वववेक

कहते है |

वववेक तकव को वबना सोचे समझे वनष्कषव को

वबलकुल वैसा ही स्वीकार कर वलया जाता है|

2 यह वैज्ञावनक ज्ञान के ववकास के वलए

आवश्यक है |

आस्था पर आधाररत होता है |

3 वववेक ज्ञान को सत्य ज्ञान बनता है यह अांधववश्वास पर आधाररत मान्यताओां के

हस्तांतरण में उपयोगी होता है |

4 परम्पराओां एवां मूल्ो ां के ववकास के वलए

आवश्यक है

ववश्वास ज्ञान को भ्रवमत करता है

5 यह सामाजीकरण में बाधा उत्पन्न करता है | परम्पराओां और मूल्ो ां के ववकास और

हस्तांतरण में उपयोगी |

6 यह आधुवनकता और नवीन ज्ञान के वलए

आवश्यक है |

यह सामाजीकरण के वलए आवश्यक है |

7 वववेक सामवजक पररवतवन के वलए आवश्यक

है |

यह परम्परागत ज्ञान एवां धावमवक ज्ञान के

वलए आवश्यक है |

8 यह ज्ञानात्मक उदे्दश्य की प्राप्तप्त के वलए

आवशयक है |

यह सामवजक पररवतवन में बाधा उत्पन्न

करता है|

9 तकव पर आधाररत होता है | यह भावात्मक उदे्दश्योां की प्राप्तप्त के वलए

कुछ सीमा तक आवश्यक है |

ज्ञानमीमाांसा (EPISTEMOLOGY)

ज्ञान ज्ञानमीमाांसा दशवन वक वह शाखा है वजसमें ज्ञान से सांबांवधत वववभन्न प्रश्नो ां की मीमाांसा की

जाती है|

इन प्रश्नो ां में सवाववधक प्रमुख प्रश्न है वक जानने वाला और वजसकी वदशा में जाना है उसके

सांबांध होना का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास वकया जाता है |

इसके अवतररि ज्ञान प्राप्तप्त के साथ , ज्ञान की अांतववसु्त या वास्तववक बाह्य वसु्त के समानता

एवां अांतर के सांबांध में प्रश्न|

इस प्रकार ज्ञानमीमाांसा की ववषय सामग्री ज्ञान की प्रविया वववधयाां लक्षण एवां पररप्तस्थवतयाां

प्रामावणकता अशुप्तद्यााँ आती है |

इन समस्याओां का वववेचन ही ज्ञानमीमाांसा है दशवनशास्त्र में कुछ समस्याओां का ज्ञान प्राप्त

करने का प्रयास वकया जाता है|

इस ववषय में यह ज्ञात करना आवश्यक हो जाता है वक ज्ञान क्या है?

ज्ञान की उत्पवत्त वकस प्रकार हुई है? इसका स्वरूप क्या है? इसका ववकास कैसे हुआ ? इन

सभी प्रश्नो ां का उत्तर दशवन शास्त्र की शाखा ज्ञान मीमाांसा के अांतगवत आता है|

इसके अांतगवत वनम्नवलप्तखत प्रश्नो ां के उत्तर वदए जाते हैं जैसे जानने वाला एवां वजसकी ववषय में

जानना है अांतववसु्त और बाह्य वसु्त ज्ञान|

पदाथव ज्ञान की सीमाएां , ज्ञान की प्राप्तप्त, ज्ञान वकसका है, ज्ञान की वसु्त का अप्तस्तत्व ज्ञान के

भेद, प्रविया, ववसृ्मवत ,ववश्वास, अवनवितता, प्रामावणकता और ववज्ञान से इसका सांबांध|

इन सभी प्रश्नो ां के उत्तर ज्ञानमीमाांसा के अांतगवत आते हैं|

ज्ञानमीमाांसा का के्षत्र इसको भी कहा जा सकता है |

ज्ञानमीमाांसा के अांतगवत बहुत सारी वववधयााँ भी आती है-आगमन वववध ,सांशे्लषण, ववशे्लषण

वववध , ज्ञानमीमाांसा के अांतगवत सांशे्लषण ववशे्लषण वववधयो ां का उपयोग करते हैं|

ज्ञान सांबांधी समस्याओां के ववषय में दाशववनको ां ने ली थी वनष्कषव है आदशववादी दशवको ां के

अनुसार ज्ञानमीमाांसा के अांतगवत ववचार ज्ञान मानते हैं |

यथाथववादी के अनुसार ज्ञानमीमाांसा के अांतगवत ने कहा वक ज्ञान वसु्तओां का ज्ञान है |

इसवलए ववज्ञान सांबांधी वववेचन भी दशवन का ज्ञान मीमाांसा का प्रमुख अांग है|

इस वववेचना का सिान मुख्यता वनम्नवलप्तखत 4 प्रश्नो ां के साथ होता है-

ज्ञान क्या है?

ज्ञान के साधन क्या है?

ज्ञान की सफलता असफलता कैसे वनधावररत की जा सकती है?

सत्ता की जााँच कैसे हो सकती है? ववज्ञान और ववश्व के बीच में क्या सांबांध है?

IDEALISM AND EPISTRMOLOGY

आदशववावदयो ां के अनुसार ज्ञानमीमाांसा की प्रमुख ववशेषताएाँ -

आदशववादी मन का दशवन है,

इस दशवन मैं भाव पक्ष प्रधान है,

ववश्व की रचना ईश्वर द्वारा की गई | जो साथवक प्रतीत होती है| ववज्ञान एवां वचांतन ज्ञान की

प्रमुख ववशेषताएाँ है,

प्रत्यक्षीकरण समय, स्थान ,घटना की गुणवत्ता है,

ज्ञान का मुख्य स्त्रोत वचांतन, समीक्षा है,

इस दशवन का ज्ञान प्रत्यक्ष तथा अनुमान से भी प्राप्त वकया जा सकता है,

NATURALISM AND EPISTEMOLOGY

प्रगवतवादी के अनुसार ज्ञानमीमाांसा

प्रगवतवादी इप्तियाां तथा कमवइांवियाां को ज्ञान का माध्यम बनाते थे

प्रत्यक्ष अनुमान से ज्ञान प्राप्त होता है

इसमें भौवतक पदाथों से सांबांध होता है

इसमें ज्ञान के वलए भौवतक, रसायन शास्त्र, गवणत, जीव ववज्ञान ,भूगभवशास्त्र, सामावजक

ववज्ञानो ां का अध्ययन करते हैं

प्रगवतवाद मैं ज्ञान का आधार वसर्फव पररकल्पनाएां की पुवि से होता है

EPISTEMOLOGY OF REALISM

यथाथववादी ज्ञानमीमाांसा

यथाथववाद मन और आत्मा को भी इसके शरीर के अांग मानते हैं

इसके अांतगवत मानवसक ववकास पर बल वदया

इसके अांतगवत ववज्ञान जीवन के वलए हैं

इसमें वास्तववक समस्याओां का वनदान समावहत है

व्यावसावयक वशक्षा अवभयान के अांतगवत आती है

ज्ञान के वनमावण की कालानुिवमक समीक्षा

(CHRONOLOGICAL REVIEW ON KNOWLEDGE)

प्रागैवतहावसक काल से ही वशक्षा का आरांभ हो चुका था | जब प्राकृवतक जीवन वबताने वाला अपने

वातावरण के अनुकूल आचरण करने का प्रयत्न करने लगा था तो उसने अपनी जीवन रक्षा के वलए

बुप्तद् का प्रयोग वकया इस व्यवस्था का अनुकूलन की आवश्यकता मनुष्य के साथ-साथ सभी प्रावणयो ां

को होती है| जो प्राणी अपने वातावरण में स्थावपत नही ां हो पाता है वह नि हो जाता है| मनुष्य में वृप्तद्

होती है |इसका प्रयोग करके वे स्वयां का अनुकूलन करने में सफल हो जाता है | अन्य प्रावणयो ां में

सारी शप्तियाां अवधक होती है मानव मैं उतनी शप्ति नही ां होती है परां तु बुप्तद् के बल के आधार पर

व्यवस्थापन करने में सफल हो जाता है | यही से अपनी वशक्षा को शुरू करता है| अपनी बुप्तद् से उन

साधनो ां और उपयोग जो उसे वातावरण में अनुकूलन करने में सहायक होते हैं|

वशक्षा एक स्वाभाववक और सहज प्रविया है| जो जन्म से मृतु्य तक चलती रहती है| इसमें सामांजस्य

की भावना के आधार पर ववकास वकया जाता है आलू बढ़ने के साथ साथ बालक की आवश्यकताएाँ

भी बढ़ती है और उसे पहले की अपेक्षा अवधक व्यवस्थापक क्षमता की आवश्यकता होने लगती है|

माता के अनुकूलन के साथ स्वयां को ढालने का प्रयास करना ही वशक्षा के माध्यम से ही सांभव है|

इसवलए बालक के स्वाभाववक ववकास में सहायता वमलती है| वास्तव में बालक को ऐसी वशक्षा और

वनदेशन की आवश्यकता होती है जो उसे जन्म से लेकर मृतु्य पयवन्त तक ववकवसत होने में सहायता

प्रदान करें |

मााँ ही बालक की पहली गुरू है जो उसे वशक्षा के माध्यम से ज्ञान देती है| मााँ- वपता के सांरक्षण ,मेरे

घर पररवार के सांरक्षण में रहकर पड़ोस तथा समाज के प्रते्यक कायव सांपादन कर , वनवावण मांवदर

वाहन रहन- सहन और वशिाचार बालक सीखता है | सीखना दूसरे शब्ोां में वशक्षा एवां ववज्ञान का

पयावप्त कराने का पयावप्त साधन होता है|

जब बालक ववद्यालय जाने लायक होती है तो वो ववद्यालय में प्रवेश लेने से वशक्षा ग्रहण करता है|

समाज और वातावरण सभी वशक्षा देने वाली एक सांस्थाएां है| इसमें पररवार भी एक शावमल है|

वजससे बालक का स्वाभाववक वशक्षा ग्रहण करने में सहायता वमलती है, परां तु ववद्यालय वलए भी

सुवनयोवजत वशक्षा देने वाली सांस्था है| सभी अनौपचाररक सांस्थाएां ववद्यालय की स्थापना में तथा

शैवक्षक वातावरण तैयार करने में उसकी सहायता करती है| अनौपचाररक सांस्थाएां जैसे पररवार,

समुदाय, समाज, आदमी, बालक की वशक्षा की पृष्ठभूवम तैयार करती है और सीखने का अवसर

प्रदान करती है|

SOCIOLOGICAL BASIS OF CURRICULUM DEVELOPMENT

समाज में ज्ञान की उत्पवत्त के िवमक ववकास

पृथ्वी पर सृवि की रचना दो अरब से भी अवधक वषव पुरानी मानी जाती है| आज से कोई 30 करोड़

वषव पहले ऐसी दशा आ गई थी वक पानी और नमी के कारण उस पर वनस्पवत या जीव जनु्त जनु्तओां

का रहना सांभव हो गया था| ढाई करोड़ वषव पहले स्तनधारी जीव तथा फल फूल वाले वो पेड़ ,वृक्ष

ववशेष दोनो ां का भी ववकास हो गया था | भूवैज्ञावनको ां के अनुसार मानव को 10 लाख वषव पूवव जन्म

हुआ था | प्रारम्भ में मानव अन्य जावतयो ां के प्रावणयो ां के समान ही रहता था परनु्त उसमें कुछ अांतर

था मानव के पास बुप्तद् थी जो वक उसकी प्रमुख ववशेषता थी|

प्रस्तर काल में ज्ञान का ववकास

प्रस्तरकाल उस काम को माना जाता है जब जीव अपनी उधर पूवतव के वलए कां दमूल फल इत्यावद को

खाता था और वशकार करता था| वशकार के वलए उसे औजार की जरूरत पड़ती थी| वशकार के

वलए उन्ोांने जो औजार बनायी थी वे पत्थर के थे| धीरे धीरे उसने पत्थर के साथ लकड़ी और हवियो ां

के भी औजार बनाने प्रारांभ कर दी है| भवन वनमावण काल में आगे भी तो न होने के कारण यहााँ तो

वह गुफाओां में रहता था या वफर पेड़ पौधो ां के नीचे रहता था | काम के शुरू में उसको ज्ञान नही ां था |

वह मास को कचे्च रूप में वदखाया करता था वफर अचानक आग जलाने लगा और उसका उपयोग

करके भोजन बनाने लगा | ज्ञान की शप्तियोां पर पहली ववजय थी धीरे धीरे औजार अवधक ववकवसत

हुए और उनके साथ होने लगे|केबल गुर्फाओां में रहने के स्थान पर उसने छोटे छोटे तबू्बका वनमावण

वकया|

जब बुप्तद् का ववकास हुआ तो वह पशु भी पाले लगा| उसने उत्पादन भी प्रारांभ कर वदया| वशकार

स्थान पर अब वे पशुपालन और वकसान बनने लगा|

कृवष प्रारांभ करने पर घर बनाना शुरू कर दी है जो वमट्टी, पत्थर, लकड़ी द्वारा बनाए जाते थे | उसने

बप्तस्तयाां बसाने प्रारांभ कर दी और सभ्यता और सांसृ्कवत का ववकास होने लगा और एक समाज का

रूप में आने लगा| श्रम ववभाजन के कारण बड़ाई, कुमार आवद के रूप में वशप्तल्पयो ां का एक ऐसा

वगव के ववकवसत होने लगा जो वशल्प द्वारा ही आजीववका कमाने लगे | समाज के मध्य व्यापार आवद

वववनमय का भी धीरे धीरे ववकास होने लगा| प्रस्तर कार की जानकारी खुदाई से प्रारांभ हुई|

धातु युग में ववकास

भारतीय कच्ची वमट्टी के बतवन पकाने मैं लेने लगे थे खुदाई में वमले अवशेष इसका उदाहरण है ये

भवट्टयाां प्रायः पत्थर की बनी होती थी | पत्थरो ां में धातु काअांश भी पयावप्त मात्रा में होता था|

आग के ताप से धातु अलग हो जाती थी | धातु और औजार बनाने के वलए उपयुि है क्योांवक इससे न

केवल फैलाया जा सकता है बप्ति इस को ठोक पीट कर वनवित आकार भी वदया जा सकता है|

सांसार की अनेक प्राचीन सभ्यताएां इसी युग युग की है|

याांवत्रक वैज्ञावनक युग

याांवत्रक वैज्ञावनक युग में ज्ञान की ववकास याांवत्रक और वैज्ञावनक युग का प्रारां वभक आवथवक उत्पादन

की प्रविया वशवथल थी| इस दशा में जब अठारहवी ां शताब्ी में औद्योवगक िाांवत का सूत्रपात हुआ

याांवत्रक शप्ति के उपयोग से जब मनब ने कारखानो ां की स्थापना प्रारांभ की तब ना केवल आवथवक

उत्पादन मैं असाधारण रूप से वृप्तद् हुई अवपतु समाज के सामावजक जीवन में भी महत्वपूणव पररवतवन

सामने आया| प्राचीन मान्यताओां को लाने तथा नवीन ववचारधाराओां के प्रयोग एवां अनुसांधान के

पररणाम स्वरूप मानव ने वैज्ञावनक आववष्कारो ां के के्षत्र में काम करना प्रारांभ कर वदया | वजसके

कारण ववकास सांभव हो सका| समाज में व्यापारी और सांचार के नए साधनो ां का आववष्कार हुआ|

प्राचीन समय में पारस्पररक सांबांधो परांपराओां पर आधाररत थे | यही कारण था वक उनका त्वररत

ववकास नही ां हो सका सेवक -साहूकार और कजवदार, राजा और प्रजा, पुरोवहत और जनता सबसे

पारस्पररक सांबांधो ां का आधार पुराने समय से ही चला आ रहा है| जो वक एक रीवत- ररवाज के रूप में

है | इस युग में मनुष्योां ने सांबांधो ां का वनमावण तरीके से करना चाहा | वतवमान लोकतांत्र वजसमें

समाजवाद का उदय हुआ है वह वनरांकुश शासकोां के ववरुद् वकए गए प्रयासो ां का पररणाम है | धमव

के के्षत्र में अब रूवढ़वादी का अनुसरण नही ां करना चाहते ,हालााँवक धमव में ववश्वास ,आस्था रखते हैं|

समाज के ववकास में यह अत्यांत िाांवतकारी पररवतवन था|

UNIT -2ND

LANGUAGE AND READING COMPREHENSION

MEANINGAND DEFINITION (भाषा का अथव एवां पररभाषा)-

भाषा वह माध्यम है, वजसमें धमव, सांसृ्कवत ,ववचार और भाव सुरवक्षत रहती है ।

भाषा के द्वारा ही मनुष्य वकसी नवीन ववषयो ां के बारे में जानकारी प्राप्त करता है|

भाषा मानव को प्रकृवत द्वारा प्राप्त ज्ञान नही ां है बप्ति ये अपने ज्ञान और पररश्रम द्वारा अवजवत

की जाती है ।

मानव के उपयोग और ववकास के साथ भाषा को मानव ने ग्रहण वकया है ।

वतवमान पररपेक्ष में आवथवक, सामावजक, राजनीवतक ,रािर ीय ,अांतररािर ीय और वैज्ञावनक सभी

के्षत्रो ां में मानव अपने ववचारो ां, भावो ां और ज्ञान के आदान-प्रदान में सक्षम है इसका सारा शे्रय

भाषा को ही जाता है|दूसरे शब्ोां में हम कह सकते हैं वक भाषा ववचार और भाव को

अवभव्यि करने का एक सशि माध्यम है ।

जब वकसी ववषय पर वचांतन करते हैं तो हमारी सोच भाषा का रूप ले लेती है ।

भाषा में ववचार अांतवनववहत होते हैं ।इस तरह हम कह सकते हैं वक वचांतन और भाषा में घवनष्ठ

सांबांध है ।

इस प्रकार कहा जा सकता है वक भाषा वचांतन और अवभव्यप्ति का साधन है ।

भाषा अांवकत सांकेतो ां का उपयोग है | सांपे्रक्षण का प्रयोग बहुत दूर तक नही ां वकया जा सकता

है परां तु अांवकत सांकेतो ां का सांपे्रक्षण दूर-दूर तक वकया जा सकता है ।

ध्ववन सांकेतो ां को वलवपबद् कर वलप्तखत रूप वदया जाता है ।

भाषा वलवपबद्, स्थायी होता है ।

मातृभाषा का अथव मााँ की भाषा है|

DEFINITION OG LANGUAGE (भाषा की पररभाषा)

‘‘ध्वन्यात्मक शब्ोां द्वारा ववचारो ां की अवभव्यप्ति की भाषा है।‘’

‘’भाषा अवभव्यप्ति की दृवि से सीवमत ध्ववनयो ां का सांगठन है|’’

‘’भाषा से और ववचारो एवां भावो ां का व्यप्ति कारण रूप से स्रोतो ां से प्रमावणत

होता है।‘’

भाषा की प्रकृवत (NATURE OF LANGUAGE)

1-भाषा वातावरण ही होती है।

2-ववचारो ां की अवभव्यप्ति होती है।

3-भाषा अनुकरण ही होती है।

4-भाषा पररवतवनशील होती है।

5-भाषा का रूप उच्चाररत होता है।

6-भाषा का रूप वलप्तखत होता है।

7-भाषा परांपरा से सम्बांवधत होती है।

1-LANGUAGE IS THE MEANSOF EXPRESSION

2-LANGUAGE IS CLOSELY RELATED WITH IDEAS

3-LANGUAGE IS ACQUIRED ASSETS

4-LANGUAGE IS LEARNED THROUGH IMITATION

5-LANGUGE IS LINKED WITH TRADITION

6-LANGUAGE IS DYNAMIC AND CHANGEABLE

7-EVERY LANGUAGE HAS IT’S OWN GEOGRAPHICAL BOUNDARY

8-EVERY LANGUAGE HAS IT’S UNIQUE STRUCTURE

9-LANGUAGE IS ALWAYS LINKED WITH CULTURE AND CIVILISATION

10-LANGUAGE HAS VARIETY AND DIVERSITY

भाषा का स्वरूप

मौप्तखक भाषा

वलप्तखत भाषा

मूल भाषा

मातृभाषा

अांतररािर ीय भाषा

साांसृ्कवतक भाषा

रािर भाषा

राजभाषा

ववदेशी भाषा

मातृभाषा

वलप्तखत भाषा

मौप्तखक भाषा

मूल भाषा

मातृभाषा

राजभाषा

ववदेशी भाषा

रािर भाषा

साांसृ्कवतक भाषा

अांतररािर ीय भाषा

मातृभाषा

वलवप

ववचार मानव की ववशेषता है ववचारो ां ने भाषा को जन्म वदया और भाषा को स्थाई रूप देने की

आवश्यकता ने जन्म वदया |

वलवप के ववकास की अवस्थाएाँ है-

-वलवप प्रतीक

-वलप्तखत वलवप

-वचत्रवलवप

-भाव वलवप

-ध्ववन वलवप

“सबसे पहले ववचारो ां को व्यि करने के वलए कुछ सांकेतो ां को वनवित वकया| इसके

पिात वचत्रवलवप का आववष्कार हुआ| वचत्रवलवप का ववकवसत रूप भाव वलपी है |

वकसी भाषा की मूल ध्ववनयो ां के वलए वनवित समूहो ां को ही वलपी हैं| “

देवनागरी वलवप

वहन्दी भाषा की वलवप देवनागरी है देवनागरी वलवप जन्म ब्राह्मी वलवप से हुआ है,

ब्राह्मी वलवप सांसार की सबसे प्राचीन वलपी है,

इसका अववष्कार आयों ने वकया था|

वैवदक सांसृ्कवत और सांसृ्कवत इसी वलवप में वलखी गई है इसका प्रयोग वकया गया था,

अशोक के वशलालेखो ां में ब्राह्मी वलवप का ही प्रयोग वकया गया है,

वलवप

वलवप

प्रतीक

वलप्तखत

वलवप

वचत्र

वलवप

ध्ववन

वलपी

भाव

वलपी

ववशेषता-

यह वलपी सुांदर एवां स्पि है,

देवनागरी वलवप में प्राय सभी सांकेतो ां से पररभावषत वकया गया है,

देवनागरी वलवप में मात्राओां का प्रयोग वकया जाता है,

वजससे उनका आकार छोटा होता है यह वलवप बायी ां से दायी ां ओर वलखी जाती है,

देवनागरी वलवप भारत में प्रयुि होने वाली कई वलवपयाां का मेल है हमारे देश का मूल

सावहत्य सांसृ्कवत इसी वलवप में सुरवक्षत है,

यह सबसे अवधक समृद् वलवप है,

मातृ भाषा

मातृभाषा को बालक जन्म से ही अपने पररवार के सदस्योां के साथ रहकर सीखता है,

मातृ भाषा सीखने में अनुकरण का ववशेष महत्व होता है,

माता वपता जैसा बोलते हैं वैसा ही बालक अनुसरण करता है,

मातृ भाषा को पालने की भाषा भी कहा जाता है,

मातृ भाषा का महत्व

बालक की वशक्षा में मातृभाषा का ववशेष महत्व होता हे,

मातृ भाषा जीवन की उन्नवत का आधार है,

यह वशक्षा का सवोत्तम साधन है,

मातृ भाषा के माध्यम से व्यप्ति का सांपूणव ववकास होता है,

मातृ भाषा के माध्यम से बालक का बौप्तद्क ववकास होता है,

मातृ भाषा के माध्यम से बालक का भावात्मक ववकास होता है,

बालक का चाररवत्रक ववकास होता है,

मातृ भाषा के माध्यम से बालक का सकारात्मक शप्ति का ववकास होता है,

मातृ भाषा अन्य भाषाओां को समझने में सहायक होती हे,

मातृ भाषा ज्ञानाजवनका प्रमुख साधन होती है,

मातृ ववचार वववनमय का साधन होती है,

मातृ भाषा सरसता की अनुभूवत कराती है,

सामावजक एकता में सहायक होती है,

मातृ भाषा साांसृ्कवतक एकता में सहायक होती है,

मातृ भाषा के माध्यम से बालक सामावजक कुशलता का ववकास करता है,

मातृ भाषा वशक्षण के उदे्दश्य

सूप्तियााँ तथा लोकोप्तियो ां के बारे में ज्ञानाजवन करन,

उपन्यास और नाटक आवद का ज्ञानाजवन कराना,

ववद्यावथवयो ां को ऐवतहावसक वैज्ञावनक ववषयो ांसे पररवचत कराना,

ववद्यावथवयो ां को तत्वोां से अवगत कराना,

कल्पना मनोववशे्लषण शप्तियोां का ववकास कराना,

वाक्य ववन्यास की अनुभूवत का ववकास कराना,

अथव ग्राह्यता शप्ति भाव अवभव्यप्ति क्षमता का ववकास कराना,

मुहावरे लोकोप्तियो ां का समुवचत ववकास कराना,

मूल्ाांकन की क्षमता का ववकास कराना है,

शुद् उच्चारण की क्षमता का ववकास कराना,

उपन्यास का ववकास कराना रचना की प्रवृवत्त का ववकास कराना,

ववद्यावथवयो ां की मौवलकता का ववकास कराना,

ववववध शैवलयो ां से पररवचत कराना,

वचांतन कल्पना शप्ति का ववकास कराना,

पाठ्यिम के साथ साथ अन्य ग्रांथो ां का ववकास कराना,

ग्रन्थालय का उपयोग कराना सांसृ्कवत सभ्यता के प्रवत अनुराग उत्पाद कराना,

सावहप्तत्यक गवतवववधयो ां से पररवचत कराना है,

कववता एवां सावहत्यके प्रवत अनुराग उपलब्ध कराना,

पठान एवां लेखक कौशल को ववकवसत करना है,

स्वाध्याय की प्रगवत को ववकवसत कर आना,

वाचन को ववकवसत करना,

शब् भांर्ार में वृप्तद् करना,

LANGUAGE COMPREHENSION (भाषा कौशल)

भाषा वह माध्यम है वजसके द्वारा मनुष्य वकसी व्यप्ति ववशेष यह पररवेश के ववषय में जानने का

प्रयत्न करता है | अपनी वजज्ञासा को मनुष्य मौप्तखक या वलप्तखत रूप में प्राप्त उत्तर से शाांत कर लेता

है ।मौप्तखक का प्रयोग करने वह सुनने और बोलने की विया करता हैऔर वलप्तखत रूप का प्रयोग

करने के वलए पढ़ने और वलखने की ।दूसरे शब्ोां में ये कहा जाए वक सुनना और बोलते वक़्त

मौप्तखक भाषा और वलखते समय वलप्तखत भाषा का का प्रयोग भाषाकौशलहै |

वनम्नवलप्तखत प्रकार के होते हैं|

श्रवण कौशल

पठन कौशल

लेखन कौशल

श्रवण कौशल

भाषा सीखने का प्रथम चरण श्रवण है |श्रवण कौशल ही सभी कौशल को ववकवसत करने का प्रथम

आधार है |जो बच्चा बचपन में सुन नही ां पाता वह बोलने में भी असफल रहता है उसका भाषा ज्ञान

शून्य रहता है |श्रवण कौशल के बाद ही उसमें पढ़ने वलखने का कौशल ववकवसत वकया जाता है

|वकसी भी व्यप्ति के द्वारा प्रयुि ध्ववनयो ां शब्ोां भावो ां को कानो ां के माध्यम से ग्रहण कर उसका अथव

ग्रहण करने की विया श्रवण कहलाती है |बालक के व्यप्तित्व के ववकास में श्रवण कौशल अत्यांत

महत्वपूणव है|

पठन कौशल

श्रवण कौशललेखन कौशल

READING SKILL (पठन कौशल)

वशक्षा के वलए शब्ोां का प्रयोग वकया जाता है पठन कौशल कहते हैं।

वाचन का मतलब है शब् और वाणी से वलखे हुए अथवा छपे हुए शब् ।

शब्ोां का उच्चारण करना ही वाचन कहलाता है।

वाचन के प्रकार

मौन वाचन,

सस्वर वाचन,

OBJECTIVES OF READING SKILL (वाचन कौशल के प्रमुख उदे्दश्य)-

मनोरांजन के वलए पत्र पवत्रकाएां कहावनयााँ व अन्य सामग्री पढ़ने की उतु्सकता,

एकाग्रता पूवव पढ़ने की क्षमता का ववकास करना,

पढ़ते समय शुद् अशुद् वतवनी मैं अांतरस्पि करना,

वगों के मेल से शब् वनमावण की क्षमता को ववकवसत करना,

गवत ,यवत ,ववराम वचन्ो ां को ध्यान में रखकर पढ़ने का अभ्यास कराना,

वगों के मेल से बने शब्ोां से वाक्य को पढ़ना,

पठन के दोष, कारण और सुधार के उपाय –

पठन एक कला है पठन कौशल को ववकवसत करने के वलए कार्फी अभ्यास करना

जरूरी है,

पठन करते हुए बचे्च गलवतयाां करते हैं क्योांवक

वबना अथव समझे पढ़ना

अनुवचत पठन शैली

अनुवचत मुिा

मौन वाचन सस्वर वाचन

शुद् उच्चारण न होना

अनुवचत गवत

CAUSES ( कारण )

शब् भांर्ार में कमी

वाचन अभ्यास की कमी

पाठ्य सामग्री का कवठन होना

पाठ्य सामग्री में छपाई सांबांधी

गलवतयााँ

अरुवच पाठ्य सामग्री

असावधानी

दृविदोष वाणी दोष

मनोवैज्ञावनक कारण

कक्षा का तनावपूणव वातावरण

अध्यापक का व्यवहार

वाचन सांबांधी मागवदशवन का

आभाव

SUGGESTION उपाय=

आकषवक वातावरण

अध्यापक का आदशव वाचन

सस्वर वाचन

छात्रो ां का मानवसक स्तर के

अनुरूप पाठ्य सामग्री का चुनाव

पाठ्यपुस्तकोां की छपाई

बच्चोां मैं हमददी

शारीररक उपचार द्वारा दृविदोष

वाणी दोष को दूर करने का प्रयास

शब्भांर्ार में वृप्तद् करना

ध्ववनयो ां का अपूणव ध्यान का

अभ्यास करना

पठन सम्बांवधत उवचत मागवदशवन

कवठन शब्ोां की व्याख्या पठन से

पहले

सावधानी से पढ़ने का अभ्यास

पठन कौशल-

वशक्षा के वलए शब्ोां का प्रयोग वकया जाता है पठन कौशल कहते हैं।वाचन का

मतलब है शब् और वाणी से वलखे हुए अथवा छपे हुए शब् ।शब्ोां का उच्चारण करना ही वाचन

कहलाता है।

पठन / वाचन कौशल के प्रमुख उदे्दश्य-

मनोरांजन के वलए पत्र पवत्रकाएां कहावनयााँ व अन्य सामग्री पढ़ने की उतु्सकता|

एकाग्रता पूवव पढ़ने की क्षमता का ववकास करना|

पढ़ते समय शुद् अशुद् वतवनी मैं अांतरस्पि करना|

वगों के मेल से शब् वनमावण की क्षमता को ववकवसत करना|

गवत ,यवत ,ववराम वचन्ो ां को ध्यान में रखकर पढ़ने का अभ्यास कराना|

वगों के मेल से बने शब्ोां से वाक्य को पढ़ना|

SILENT READING (मौन वाचन )

वलवपबद् भाषा अथावत् वलप्तखत सामग्री को वबना आवाज वकए हुए मन ही मन शाांवतपूववक ग्रहण

करने की विया को मौन वाचन कहा जाता है| इसमें आांखें पाठ्य सामग्री को शीघ्रता से पड़ती है

और मप्तस्तष्क उस सामग्री के अथव को ग्रहण करता जाता है|

IMPORTANCE ( महत्व )-

सस्वर वाचन का अभ्यास कराने के पिात बच्चोां को मौन वाचन का अभ्यास कराया जाता

है,

जीवन में ऐसे बहुत से अवसर आते हैं जब व्यप्ति सस्वर वाचन नही ां कर सकता ऐसी प्तस्थवत

में मन ही मन पढ़ना जरूरी होता है ,

हर बचे्च को मौन वाचन का अभ्यास होना जरूरी है,

मौन वाचन से मनुष्य का वदमाग़ भी बहुत हो जाता है,

मौन वाचन में मप्तस्तष्क सविय रहते हैं परां तु उच्चारण का ववकास नही ां हो पाता है,

इसमें वबना थके हुए कार्फी देर तक अध्ययन वकया जा सकता है,

मौन वाचन में पढ़ने की गवत भी तेज होती है ,

कम समय में अवधक से अवधक पाठ सामग्री का अध्ययन वकया जा सकता है,

मौन वाचन के द्वारा आाँखो ां की गवत का ववकास होता है,

मौन ध्यान कें वित रखता है ,

OBJECTIVES OF SILENCE READING

(मौन वाचन के वनम्नवलप्तखत उदे्दश्य)-

छात्रो ां की पररवचत शब्ावली को सविय शब्ावली में पररववतवत करना,

छात्रो ां के ववशे्लषण क्षमता को ववकवसत करना,

पाठ्य सामग्री का अथव ग्रहण करके कें िीय भाव को समझने योग्य बनाना,

छात्रो ां में वाचन की रुवच जागृत करना,

अवकाश के समय का सदुपयोग करना,

छात्रो ां में स्वाध्याय की आदत को ववकवसत करना,

मौन वाचन की ववशेषता एवां सावधानी,

वातावरण समय वबलकुल शाांत होना चावहए,

मन ही मन एकाग्रवचत्त होकर पढ़ना चावहए,

पाठक एकाग्र होने पर ही पाठ वसु्त एवां ग्रहण कर सकता है सस्वर के उपराांत मौन वाचन

कराना,

आवश्यक है मौन वाचन से पूवव कवठन शब्ोां की व्याख्या कर देनी चावहए,

कक्षा एक दम शाांत होनी चावहए मौन वाचन से पहले ववद्यावथवयो ां को वनदेश दे देना चावहए

वाचन के बाद प्रश्न पूछ कर जााँच कर लेनी चावहए,

अध्यापक की सजगता और सावधानी मौन वाचन की सफल का आधार है,

यह चुपचाप वकया जाता है,

इसमें कक्षा का वातावरण शाांत में हो ,

|बड़ी कक्षाओां के वलए कारगर है, ,

ववचारो ां को समझने में सहायक है,

LOUD READING (सस्वर वाचन)-

•जैसा वक नाम से ही स्पि है वक लय में पढ़ाया गया वाचन सस्वर वाचन कहलाता है ।

•इसमें ध्यान वनवहत होता है ।

•यह वाचन की प्रारां वभक अवस्था होती है ।

•आत्मवनभवरता का ववकास होता है ।

•बालक शुद् उच्चारण सीखता है।

•ये बोलकर वकया जाता है।

•इसमें कक्षा का वातावरण में स्वर मे होता है।

•इसे उच्चारण शुप्तद् के वलए वकया जाता है।

•यह छोटी कक्षाओां में उपयोगी होता है।

•इसमें उच्चारण से और ग्रहण ।होता

•इसमें पढ़ने समझने की गवत नू्यनतम होती है। है

•इसमें सूक्ष्म अध्ययन सांभव है।

•इसमें स्पि अक्षर अवभव्यप्ति होती है।

•इसमें स्पि शब्ोां उच्चारण भी होता है |

•उवचत वाणीवनगवम होता है।

•इसमें वणवमाला के वलवपबद् वणों की पहचान होती है।

प्रकार

1- INDIVIDUAL READING (व्यप्तिगत सस्वर वाचन) –

इसके अांदर व्यप्तिगत पठन एक व्यप्ति द्वारा आवाज करते हुए वकया जाता है ।अनुकरण वाचन

वहााँ अध्यापको ां को सचेत एवां जागरूक रहना चावहए वक बालक उच्चारण ठीक कर सका है वक

नही ां ।उवचत गवत व ववराम वचन्ो ां का प्रयोग सही प्रकार से कर रहा है वक नही ां ।अनुकरण वाचन

करते समय यवद कोई बालक उच्चारण करता है तो उसे बीच में नही ां रोकना चावहए यवद अध्यापक

इस पठन से पूवव सम्बांवधत पाठ का भाव ववद्यावथवयो ां के समक्ष स्पि कर दें तो उसे पठन अवधक

सफल होजाता है ।इसवलए इसे व्यप्तिगत पठन कहा जाता है।

2-COLLECTIVEV READING (समवेद पठान) –

ये दो या दो से अवधक ववद्यावथवयो ां का एक साथ ऊाँ चे स्वर में पररणाम होता है ।छोटी कक्षाओां में इस

प्रकार का पठन वकया जाता है ।इससे बालको ां की वजतना सांकोच दूर होता है ।इसमें पहले

अध्यापक पड़ता है वफर बाकी ववद्यावथवयो ां को पीछे से पढ़ने को कहा जाता है।

UTILITIES (सस्वर वाचन की उपयोवगता)-

•ववषयवसु्त को बालक समझने का प्रयास करता है|

•ग्रहण करने की योग्यता का ववकास होता है|

•नई बातो ां की जानकारी प्रदान की जाती है|

•अध्याय को ववकवसत वकया जाता है|

•बालक की शब् भांर्ार में वृप्तद् होती है|

•नए मुहावरे का ज्ञान होता है|

•इसमें बालक उवचत गवत बल ववराम वचन् का अभ्यास करता है|

STRATEGIES OF EFECTIVE READING

प्रभाती पठान हेतु रणनीवतयाां –

1-सविय रणनीवत

सस्वर वाचन

-व्यप्तिगत

सस्वर वाचन

समवेद सस्वर

वाचन

2-अनुमान रणनीवत

3-वनगरानी रणनीवत

4-खोज - चयन रणनीवत

5-साराांश रणनीवत

6-दृशमान रणनीवत

सविय

रणनीवत

साराांश

रणनीवत

खोज -

चयन

रणनी

वत

वनगरानी

रणनीवत

अनुमान

रणनीवतदृशमान रणनीवत

सविय रणनीवतयाां –

इसमें राजनीवत के अांतगवत वशक्षक बालको ां को उनके पूवव ज्ञान एवां अनुभव को वतवमान से जोड़ता

है ।वजससे छात्रो ां में अध्ययन के प्रवत रुवच उत्पन्न होती है ।वह नए तत्व ,प्रत्यय ,प्रत्यय को सरलता से

समझ में लगता है ।

अनुमान रणनीवत –

इसमें छात्रो ां को पाठ के वास्तववक प्रारूप को अपने पूवव ज्ञान पठन में वकन तत्वोां एवां व्यप्तियोां को

स्थान वदया गया है तथा वकन को छोड़ा गया है इन सभी को सप्तिवलत कर तत्व को समझाना होता

है ।छात्र वशक्षक की सहायता के वबना नही ां कर सकता ।

वनगरानी रणनीवत -

कोई व्यप्ति पठन के दौरान एवां पिात क्या और कैसे सोचता है यह वकसी भी ववषय के उदे्दश्य

धारण का मुख्य आधार होता है ।इसके साथ ही वणों को आपस में वकस प्रकार प्राप्त करता है तथा

वकस प्रकार से अलग करना है यह योग्यता होती है एक वशक्षक छात्रो ां को पठन के दौरान इन

समस्त

पहलुओां को भलीभाांवत पररवचत कराता है ।इससे पठन को प्रभावी एवां उपयोगी बनाया जा सके

।प्रश्न या पूछताछ रणनीवत -इस पाठ में वदए गए तत्वोां अवधारणा को स्पि करने के वलए छात्रो ां से

प्रश्न पूछ कर उत्तर प्राप्त करता है इसके साथ ही वशक्षक छात्रो ां को प्रश्न पूछने के वलए प्रोत्सावहत

करते हैं वजससे उनके अांदर पठन को लेकर वजज्ञासा उत्पन्न हो क्योांवक जब तक वह प्रश्न नही ां पूछ

पाएगा और ना ही उत्तर दे पाएगा|

खोज रणनीवत –

इसमें वशक्षक बच्चोां को वववभन्न प्रकार की अध्ध्ध्यन सामग्री प्रदान करता है और ववद्यावथवयो ां से

सांबांवधत सामग्री से जुडे़ प्रश्न एवां अवधारणा को प्रसु्तत करता है इसके साथ ही कवठन शब्ोां से स्पि

करता है इससे छात्रो ां को वकसी भी प्रकार की समस्या ना हो सके इसके पिात वववभन्न प्रकार के

प्रश्नो ां के माध्यम से छात्रो ां पड़ता है वजससे छात्रो ां को सांबांवधत हल को खोजा जा सके इसके अांतगवत

वदए गए हुए पाठ के प्रमुख तत्व एवां भावनात्मक रूप से प्रसु्तत करना अांतगवत आता है|

पठन के प्रकार

पठन के प्रकार कौन-कौन से हैं तथा उनसे एक छात्र को क्या लाभ है ,तथा इसकी प्रमुख

ववशेषताएां क्या है ?इन तत्वो ां का अध्ययन करने से पूवव छात्र को यह जानना आवश्यक है वक पठन

क्या है ?पठन एक जवटल ववषय ,कायवकलाप ,गवतवववध है ।वजसमें अनुभूवत एवां ववचार दोनो ां

सप्तिवलत होते हैं ।असल इसमें दो प्रविया होती है ,पहली शब्ोां की पहचान और दूसरी व्यापकता

,शब्ोां की पहचान से आशय वकसी भाषा में बोलने के वलए प्रयोग वकए जाने वाले शब्ोां से है

,व्यापकता से ऐसे शब्ोां का मूल वाक्योां की रचना तथा आपस में सांबांध से है ।

पठन के अनेक प्रकार है

1-गहन पठन

2-व्यापक पठन

3-अने्वषण पठन

4-मौप्तखक पठन-

5-मौन पठन

6-मौप्तखक पठन

7-प्रकरण पठन

8-स्कीवमांग पठन

9-अवलोकन पठन

10-वैवश्वक पठन

Skimming Reading-

पठान के सबसे प्रारां वभक प्रकार में से एक है ।इसका उदे्दश्य आप जो पठन सामग्री अध्ययन कर

रहे हैं उसके उदे्दश्योां से यथाशीघ्र पररवचत होना है ।दूसरे शब्ोां में इस स्कीम का अथव है शीघ्र पठन

।इससे अनेक जानकाररयाां प्राप्त होती है ।वकसी गद्याांश का समान अथव ,गद्याांश को वकस प्रकार से

सांगवठत वकया गया है तथा पाठ की सांरचना वकस प्रकार से की गई है ,लेखक के मुख्य ववचार यानी

उसका इरादा इसके बारे में जानकारी ।scanning तुलना में एक जवटल है क्योांवक इसमें पाठक को

लेखक द्वारा दी गई जानकारी को ठीक करना होता है ।वास्तव में उसको वदखाई नही ां दे रही है

इसका प्रयोग छात्रो ां में आत्मववश्वास को मजबूत करने के वलए वकया जाता है ।इसके वबना पाठ के

अथव को समझना है मुप्तिल है ।

इसका प्रयोग sq3r (survey , question,read,recite ,review )वववध के वलए भाग के रूप में

वकया जाता है ।इसका प्रयोग के वलए वकया जाता है ।

उसमें अनेक प्रकार के होते हैं को समझने के वलए करता है एक प्रकार का कौशल है छात्रो ां के

अध्ययन के दौरान योजना बनाकर को ववकवसत वकया जाता है इसके वलए करते हैं अध्यापक एवां

छात्रो ां की भूवमका में अध्यापक छात्रो ां का महत्वपूणव योगदान होता है अध्यापक की भूवमका वकस

प्रकार से पाठको ां के वलए मुख्य रूप से वलया गया था|

मौप्तखक

पठन

अने्वषण

पठन

व्यापक

पठनगहन

पठन

मौन

पठन

अवलोकन

पठन

प्रकरण

पठन

वैवश्वक

पठन

स्कीवमांग

पठन

(SCANNING) अवलोकन पठन

सै्कवनांग एक प्रकार का कौशल है इसकी आवश्यकता हमें उस समय होती है जब हमें वकसी ववषय

वसु्त या तत्व की ववशेष जानकारी तत्काल प्राप्त करनी होती है ।जब हम वकसी गध्याांश को पड़ रहे

होते हैं तो हमें अपनी आांखो ां को तीव्र गवत से पाठ के शीषव और अांत तक बहुत तीव्र गवत से पढ़ना

होता है इससे हमें जो ववशेष सूचना चावहए प्राप्त हो जाए ।समानता इसके वलए एक तकनीकी

वैज्ञावनक सामग्री की वववशि जानकारी है जो हमें प्रश्न या समस्या का हल प्राप्त करने में सहायता

पहुांचाती है ।इसके के माध्यम से छात्रो ां ने वनम्नवलप्तखत तत्वो ां की सूचना प्राप्त होती है -इसवलए

उन्ो ांने वकसी वववशि तत्व की जानकारी प्राप्त करने के वलए उस पर कें वित रहता है ।इसवलए

आांखो ां की गवत का ववशेष महत्व होता है ।यह पाठक की समस्या का समाधान प्राप्त करने की एक

वववध है ।इसके वलए का प्रयोग वकसी वववशि जानकारी प्राप्त करने के वलए वकया जाता है ।नाम

से्पवलांग का प्रयोग प्रयोग की जानकारी को पता लगाने के वलए वकया जाता है दूसरी भाषा में

ववद्यावथवयो ां के वलए एक बहुत मूल्वान कौशल नही ां करते हैं वकया जाता है|

UNIT -3RD

DEVELOPING WRITING SKILLS

लेखन कौशल

भाषा के दो रूप हैं वलप्तखत और मौप्तखक,

ववचारो ां की अवभव्यप्ति के वलए व्यप्ति सांकेतो ां प्रयोग करता है,

भाषा को वववशि माध्यम से वलप्तखत रूप में पररववतवत करना भाषा का वलप्तखत रूप है,

सांकेतो ां को वववशि माध्यम से वलप्तखत रूप में व्यि वकया जाता है तो उसे वलवप कहते हैं,

भाषा का यही वलप्तखत रूप लेखन कहलाता है| ववचारो ां की अवभव्यप्ति लेखक कौशल की

अवभव्यप्ति कहलाती है,

वलवप ज्ञान प्राप्त करने के उपराांत भाषा के वलप्तखत रूप का प्रयोग कर व्यप्ति अपने भावो ां

एवां ववचारो ां को लेखक कौशल के रूप में स्थावयत्व प्रदान करता है ,

स्थावयत्व एवां समृप्तद् का प्रमुख आधार वलप्तखत अवभव्यप्ति ही है ,

OBJECTIVES (लेखक कौशल के उदे्दश्य)

शुद् एवां सुांदर वलखावट की आदत को ववकवसत करना,

वणों के सुांदर और शुभ बनावटवसखाना,

छात्रो ां में सावधानीपूववक वलखने की आदत का ववकास करना है शब्ोां को मुहावरे का उवचत

प्रयोग करना वसखाना,

छात्रो ां में वाक्य रचना के वनयमो ां को ववकवसत करना,

छात्र को ववराम वचन्ो ां का सही प्रयोग से वसखाना,

छात्रो ां को अपने ववचारो ां को िम में प्रकट करना वसखाना,

छात्रो ां को ववषयानुसार भाषा शैली का प्रयोग करना वसखाना,

छात्रो ां को उवचत अनुचे्छद ववचारो ां को व्यि करना वसखाना,

छात्रो ां में अपने अनुभवो ां को ववचारो ां को वलखकर व्यि करने की योग्यता को ववकवसत

करना ,

सावहत्य के प्रवत रुवच जाग्रत करना,

सृजनात्मक योग्यता को ववकवसत करना,

छात्र में सावधानीपूववक वलखने की आदत को ववकवसत करना ,

लेखन कौशल का महत्व जीवन के अनेक ऐसे के्षत्र हैं जहााँ केबल मुाँह की अवभव्यप्ति से काम

नही ां कर सकता दूर रहने वाले वमत्रो ां सांबांवधयो ां को अपना सांदेश देने के वलए वलप्तखत भाषा का

प्रयोग आवश्यक हो जाता है,

अपने ववचारो ां को सुरवक्षत रखने के वलए वलप्तखत अवभव्यप्ति की आवश्यकता होती है,

भाषा के दो रूपोां में मौप्तखक और वलप्तखत अवधकार प्राप्त करने के वलए वलप्तखत रूप में भी

उत्तम तरीके से भरपूर अवभव्यि करने की कला का ववकास होना चावहए,

दैवनक जीवन का वववरण रखने के वलए आवश्यक है भाषा सभ्यता एवां सांसृ्कवत का वाहक है

जो की वलप्तखत रूप में सुरवक्षत है | ज्ञान ववज्ञान आवद से पररवचत कराने का मुख्य साधन

वलप्तखत भाषा ही है,

मूल्ाांकन एवां परीक्षा प्रणाली के वलए वलप्तखत भाषा का प्रयोग उपयोगी है,

औद्योवगक प्रगवत के वलए भी वलप्तखत भाषा उपयोगी है,

दस्तावेजो ां का वहसाब रखने के वलए भी वलप्तखत भाषा उपयोगी है,

लेखन के समय ध्यान रखने योग्य बातें

एक दो या अवधक का मूल सामग्री को समझना

सामग्री में आयी व्याख्याओां उदाहरणो ां और भावो ां के द्वारा को रेखाांवकत करना

मूल भाग को अलग कागज पर वलखना

आवश्यक हो मूल भाव के आधार पर साथवक शीषवक वलखना

वलप्तखत सार को पढ़ना और देखना की कही उसमें कोई मुख्य बात आने में रहें तो नही ां गई

आवश्यक होने पर शाखा सांपादन करना सांपादन का आरोप है वक सांसार में कोई मुख्य

बात आने से रहें तो नही ां गयी अगर रह गई है तो उसे जोड़ना

भाषा शैली को उपयुि और उपयोगी बनाना|

लेखन कौशल

भाषा के दो रूप हैं वलप्तखत और मौप्तखक

ववचारो ां की अवभव्यप्ति के वलए व्यप्ति सांकेतो ां प्रयोग करता है|

भाषा को वववशि माध्यम से वलप्तखत रूप में पररववतवत करना भाषा का वलप्तखत रूप है|

सांकेतो ां को वववशि माध्यम से वलप्तखत रूप में व्यि वकया जाता है तो उसे वलवप कहते हैं|

भाषा का यही वलप्तखत रूप लेखन कहलाता है| ववचारो ां की अवभव्यप्ति लेखक कौशल की

अवभव्यप्ति कहलाती है|

वलवप ज्ञान प्राप्त करने के उपराांत भाषा के वलप्तखत रूप का प्रयोग कर व्यप्ति अपने भावो ां

एवां ववचारो ां को लेखक कौशल के रूप में स्थावयत्व प्रदान करता है |

स्थावयत्व एवां समृप्तद् का प्रमुख आधार वलप्तखत अवभव्यप्ति ही है |

लेखक कौशल के उदे्दश्य

शुद् एवां सुांदर वलखावट की आदत को ववकवसत करना|

वणों के सुांदर और शुभ बनावट वसखाना|

छात्रो ां में सावधानीपूववक वलखने की आदत का ववकास करना है शब्ोां को मुहावरे का उवचत

प्रयोग करना वसखाना|

छात्रो ां में वाक्य रचना के वनयमो ां को ववकवसत करना|

छात्र को ववराम वचन्ो ां का सही प्रयोग से वसखाना|

छात्रो ां को अपने ववचारो ां को िम में प्रकट करना वसखाना|

छात्रो ां को ववषयानुसार भाषा शैली का प्रयोग करना वसखाना |

छात्रो ां को उवचत अनुचे्छद ववचारो ां को व्यि करना वसखाना|

छात्रो ां में अपने अनुभवो ां को ववचारो ां को वलखकर व्यि करने की योग्यता को ववकवसत

करना

सावहत्य के प्रवत रुवच जाग्रत करना|

सृजनात्मक योग्यता को ववकवसत करना|

छात्र में सावधानीपूववक वलखने की आदत को ववकवसत करना |

लेखन कौशल का महत्व जीवन के अनेक ऐसे के्षत्र हैं जहााँ केबल मुाँह की अवभव्यप्ति से काम

नही ां कर सकता दूर रहने वाले वमत्रो ां सांबांवधयो ां को अपना सांदेश देने के वलए वलप्तखत भाषा का

प्रयोग आवश्यक हो जाता है|

अपने ववचारो ां को सुरवक्षत रखने के वलए वलप्तखत अवभव्यप्ति की आवश्यकता होती है|

भाषा के दो रूपोां में मौप्तखक और वलप्तखत अवधकार प्राप्त करने के वलए वलप्तखत रूप में भी

उत्तम तरीके से भरपूर अवभव्यि करने की कला का ववकास होना चावहए|

दैवनक जीवन का वववरण रखने के वलए आवश्यक है भाषा सभ्यता एवां सांसृ्कवत का वाहक है

जो की वलप्तखत रूप में सुरवक्षत है |

ज्ञान ववज्ञान आवद से पररवचत कराने का मुख्य साधन वलप्तखत भाषा ही है|

मूल्ाांकन एवां परीक्षा प्रणाली के वलए वलप्तखत भाषा का प्रयोग उपयोगी है|

औद्योवगक प्रगवत के वलए भी वलप्तखत भाषा उपयोगी है|

दस्तावेजो ां का वहसाब रखने के वलए भी वलप्तखत भाषा उपयोगी है|

सांवक्षप्तीकरण या सार लेखन (SUMMARISING)

सांवक्षप्तीकरण अथवा सार लेखन में वकसी ववसृ्तत ववषय वसु्त अांश के मूल भावना को कम से कम

शब्ोां में या सांवक्षप्त रूप से वलखा जाता है| लेखन की आवश्यकता वशक्षा के के्षत्र में अत्यवधक

पड़ती है| वकसी सामग्री का सार वलखना एक उपयोगी कला है| सांवक्षप्तीकरण का वनम्नवलप्तखत

उदहारण के माध्यम से सरलतापूववक समझा जा सकता है- वजस प्रकार मख्खन से घी वनकाला

जाता है उसी प्रकार सांपूणव ववषय वसु्त से मुख्य वबांदु को वनकालना ही सार लेखन कहलाता है|

PROCESS OF SUMMARISING सार लेखन की प्रविया

सार लेखन की प्रविया के वनम्नवलप्तखत चरण है

मूल सामग्री का ज्ञान|

मूल भाव की पहचान|

सांबांवधत स्पि करने वाली व्याख्या|

उदाहरण पुनरावृवत्त की पहचान|

मूल को प्रभाववत करने वाले तत्वोां कथाओां अलांकारो ां कथनोां और रचनात्मक शैली की

पहचान|

मूल भाव को स्पि करने के वलए ववस्तार देने वाले बावकयो ां को हटाते हुए सार लेखन|

METHOD OF SUMMARISING सार लेखन की वववध

सववप्रथम यह जान लेना अवत आवश्यक है वक वकसी गद्याांश अथवा ववषय वसु्त के सांके्षपण और

सार लेख में अांतर होता है | सांके्षपण वकसी भी दी हुई सामग्री का सुरवक्षत अथवा छोटा रुप होता है,

परनु्त सार सांके्षपण से और भी अवधक छोटा होता है सार और साराांश दोनो ां ही शब् 1 रूप में

प्रयुि होते हैं|

मूल अवतरण से सांके्षपण एक वतहाई होता है

वकसी भी ववषय अथवा पद के मोल भाव को जीववत रखते हुए शब्ोां को कम करना ही एक

कला है|

इसकी प्रमुख वववधयााँ है

त्याग वववध

पररवतवन वववध

त्याग वववध

इसके अांतगवत शब्ोां को छोड़ना होता है अथावत जो काम के नही ां हैं वजन्ें हटा देने पर कोई

पररवतवन नही ां आता है उसे त्याग वववध कहते हैं| इसमें लेखक का पररचय पता आवद नही ां वलखा

जाता है| वकसी बात को यवद उदाहरण आवद देकर समझाया गया है तो उसे छोड़ वदया जाता है |

केबल मूल सांदेश ही वलया जाता है| लोकोप्तियााँ अलांकार आवद का प्रयोग भी त्याग वववध के अन्य

त्याग वदया जाता है| सांकुवचत वाक्य वलखे जाते हैं अन्य शब्ोां के वलए एक शब् से ही काम चलाया

जाता है| भाषा में कम एवां महत्वपूणव शब्ोां का चयन अपेवक्षत होता है| वजस समय सरल सुांदर

और प्रभावी लगे इन बातो ां पर अपने नोट्स बनाने एवां सामग्री तैयार करने वटप्पवणयो ां ररपोटों आवद

को सांके्षप में वलखते समय ध्यान रखना चावहए|

पररवतवन वववध

पररवतवन वववध में भूल अवतरण की भाषा ना उतारकर कुछ पररवतवन करना अपेवक्षत है |

जैसे सांवध समास का प्रयोग करके शब्ोां को कम वकया जाता है | इसी प्रकार कई शब्ोां के

वलए एक शब् का प्रयोग करके वाक्योां को छोटा वकया जाता है|

अनूलेख-

आधुवनक युग में प्रारांभ से सुांदर वलखने की योग्यता को ववकवसत करनापाठ्यिम में सुलेख

अभ्यास पुस्तकोां के स्थान पर वदया गया है|

इन्ी ां सुले पुस्तकोां की सहायता से एक अध्यापक को अपना अपना उत्तरदावयत्व वनभाता है

|

इन पुस्तकोां में पृष्ठ के ऊपर प्रथम पांप्ति में सुांदर सुर्ौल समान बडे़ अक्षरो ां में वाक्या छपे

होते हैं|

बाद में लगभग दो या तीन पांप्तियो ां में वबांदू लाइनें हिी हिी छपी होती है|

शेष पृष्ठ बचे्च को वलखने के वलए स्थान वदया जाता है|

छात्रो ां को हिे वलखे हुए वाक्योां पर घुमाकर का अभ्यास कराया जाता है|

इस अभ्यास के बाद ही बच्चो ां को वलखना वसखाया जाता है| ऐसा करने से छात्रो ां वतवनी की

शुद्ता तथा ववराम वचन्ो ां का ज्ञान हो जाता है|

ध्यान देने योग्य बातें-

लेखन सामग्री जैसे पेंवसल से्लट कलाम इत्यावद का वशक्षक को परीक्षण कर लेना चावहए

बच्चोां को ठीक अनुपात से सीधे सीधे वलखने का अभ्यास कराना चावहए,

दो वाक्योां के बाद एवां दो पांप्तियो ां के बाद दूर ही रखनी चावहए,

लेखन को सुधारने की पे्ररणा देनी चावहए,

प्रवतयोवगताएां कराकर पुरसृ्कत करना चावहए,

सुलेख-

सुलेख का अथव है सुांदर लेख।

सुलेख सुवशवक्षत व्यप्तियोां की पहचान होती है सुलेख।

सुलेख की ववशेषता –

सुलेख लेखक की क्षमता का ववकास करता है ।

सुलेख के माध्यम से पाठ की पुनरावृवत्त होती है ।

वतवनी के सही रूप की पहचान होती है।

छात्रो ां को ववषय वसु्त का उदे्दश्य एवां अथव का ज्ञान होता है ववश्वास में वृप्तद् होती है

सुलेख के वलए आवश्यक वबन्दुओां

सुलेख कराते समय वशक्षक को सविय रहना चावहए।

सुलेख कराते समय एवां उससे पूवव से वशक्षक को छात्रो ां के लेखन सामग्री की पूरी

तरह से जााँच कर लेनी चावहए ।

छात्रो ां को प्रोत्सावहत करना चावहए ।

छात्रो ां को पयावप्त अवसर देने चावहए ।

सुलेख की ववशेषता –

मात्राओां के साथ सही आकार से अनुपात ,

शब् पर वशरोरेखा वबलकुल सीधी होनी चावहए ,

शब् वाकयो ां पांप्तियो ां की परस्पर समुवचत दूरी होनी चावहए ,

वलखते समय पृष्ठ के बाई ओर उवचत हावशया छोड़ा जाना चावहए,

सुांदरता भी अत्यांत आवश्यक वबन्दु है,

सुलेख करते समय ध्यान रखने योग्य बातें –

वशक्षक छात्रो ां के आसन की व्यवस्था का वनरीक्षण करें ,

छात्रो ां के वलखनी पकड़ने पर भी वशक्षक ध्यान दें,

स्पि और सुर्ौल वलखने के वलए भी वशक्षक ध्यान दें,

प्राथवमक स्तर पर लेखन की समय अववध लांबी नही ां होनी चावहए

सरलता से लेखन होना चावहए

उदे्दश्य-

छात्र आकषवक एवां सुन्दर तरीके से सुर्ौल आकषवण लेखन की ओर उनु्मख हो,

छात्रो ां की प्रमुख इप्तियो ां को प्रवशवक्षत वकया जाए,

बालको में सौ ांदयव अनुभूवत की भावना का ववकास हो,

गवत का ववशेष ववकास होना चावहए,

महत्व-

छात्रो ां के वलए सुलेख का वववशि महत्व होता है

सुलेख एक कला है,

परीक्षा अांक भी प्रदान करते हैं,

हस्तलेख का परीक्षण पर बहुत प्रभाव पड़ता है,

मुिण के वलए भी वरदान है वशक्षक को अपने ववद्यावथवयो ां को प्रोत्सावहत करना चावहए,

प्रवतलेख-

उच्चस्तरीय रूप है |अनुलेख में बच्चोां को सामने आदशव लेख होता है और बचे्च उसी आकार एवां

प्रकार के अक्षर शब्ोां और वाक्योां की रचना करते हैं और प्रवतलेखन में बचे्च यथा इस रचना को

अपनी पुस्तक में उतारते हैं| पत्र लेखन में अक्षरो ां का आकार प्रकार वैसा ही होना चाहना नही ां होता

है जैसा वक यथा लेख में होता है |

अक्षरो ां की सुांदरता एवां उनके समानुपाती होने पर लेख पर भी बल वदया जाता है |

पत्र लेखन करने में से बचे्च के लेख में सुधार होता है उन्ें नए नए शब्ोां एवां वाक्योां का ज्ञान

होता है |उनका भाषा ज्ञान बढ़ता है और वह शुद् वलखने की वशक्षा प्राप्त करते हैं |

बच्चोां से पाठ पुस्तक है पत्र कहाां हो अथवा समाचार पत्रो ां पत्रो ां के उपयुि लेकर आना

आवश्यक होता है|

अवधक से अवधक लाभ उठाने के वलए वशक्षकोां को करना चावहए वशक्षकोां को उनके आसन

करने चावहए|

उनकी वववध में सुधार करना चावहए और उनकी लेखन सामग्री का वनरीक्षण करना चावहए|

भाषा ज्ञान का ध्यान रखना चावहए पत्र लेखन के वलए भाषा अांश खाते समय बच्चोां की रुवच

अवभरुवच का ध्यान रखना चावहए|

बच्चोां की अपनी पाठ्य पुस्तकें कहावनयाां कहावनयो ां की पुस्तकें एवां बाल सावहत्य ववशेष

रूवच होती है|

उन्ी ां का प्रवतलेखन करना चावहए जब बचे्च पत्र लेखन कर चुके हो तो वशक्षक उनको

उनकी जाांच करनी चावहए और बच्चोां को नू्यनतम और अशुप्तद्यो ां का वनराकरण कर आना

चावहए |

इसके वलए सबसे पहले तो उन्ें उन्ें अशुप्तद्यो ां के कारणो ां को जानना चावहए वफर उन

कारणो ां के पर ववजय प्राप्त करने का प्रयत्न करना चावहए उसके बचे्च की और स्वयां बनेंगे|