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Sample Copy. Not For Distribution.

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  • i

    एक लड़की रोई

    Sample Copy. Not For Distribution.

  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in __________________________________________________

    © Copyright, 2018, Deepanshu Kohli

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.

    ISBN: 978-93-88719-46-9

    Price: ` 265.00

    The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.

    Printed in India

    Sample Copy. Not For Distribution.

  • iii

    एक लड़की रोई

    दीप ांश ुकोहली

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

    www.educreation.in

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  • iv

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  • v

    क्य ज़रूरत है? काफी सालो तक इन दिल के टुकडो को डायरी के पन्नो में काली स्याही से धसंाकर कुछ अक्षर, कुछ शब्ि और कुछ बातें बन ही गयी| बहुत दहम्मत लगती है अपनी कविताओं को ककसी और को सौंपने में, जैस ेकोई लड़की घर से वििा हो रही हो| िो अब भी तुम्हारी ही बेटी है पर...... ऐसी ही कुछ 100 कविताओं को भेज रहा ह ूँ आपके पास! शायि कफर कभी मौका ना ममले, या कफर कभी दहम्मत न हो| ज़रूरत है|

    रूपक अनीरक

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  • दीप ांशु कोहली

    1

    एक

    यादों की ये धलू जो छनती रहती है ददल की मकड़ी सपने बुनती रहती है रात की तारीख़ी जब बढ्ने लगती है ख़्वाबों से ये आंखे सनती रहती है

    कोई पुराना परवाना आ जाता है

    इश्क़ की तारीफ़ों मे वो जल जाता है मोम शमां का मेज पे जब जम जाता है

    नाखनूो से उसे कुतरती रहती है ददल की मकड़ी सपने बुनती रहती है

    कहते कहते कह ना पात ेहै उनसे ड़र लगता है दरू जो जात ेहै उनसे

    दहज्र के मौसम मे बेरंग सी वो तततली उड़ती नहीं है, बाद सससकती रहती है ददल की मकड़ी सपने बुनती रहती है

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  • एक लड़की रोई

    2

    पाना चाहते है जो पाना मुश्श्कल है करे भी क्या ददल को समझाना मुश्श्कल है उनके ददल मे रहना चाहता है ये ददल ददल की मेरे मुझसे ठनती रहती है ददल की मकड़ी सपने बुनती रहती है

    कोनो पे है जंग दीवारे सीली है

    आँसू बरसते है ये छत भी गीली है बाड लगाते है पलको पे यादों की एक नदी सी है ,उफनती रहती है

    ददल की मकड़ी सपने बुनती रहती है

    त रीखी - अधेँर हहज्र – जुद ई

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  • दीप ांशु कोहली

    3

    दो

    ये इश्क हँसाता है रुलाने जैसा दरू रहता है पास आने जसैा

    जल्दी रहती है उनके दीदार की हाल हो जाता है ततफ्लान ेजैसा सबकी मुहब्बत सबसे जुदा है इश्क़ नहीं सारे ज़माने जैसा

    वो ददल मे ग़म छुपा के आया है उसका हँसना है मुस्कुराने जैसा बेटी, बहन, बा और बगेम हर ररश्ता है तनभाने जैसा उनसे इकरार ककया है मैंने तब से हाल है दीवाने जैसा

    सलखता नहीं हँू के मुश्श्कल होगी नाम नहीं है उनका समटाने जैसा

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