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    NON PROFIT PUBLICATION .

    गुरुत्व कामाारम द्वारा प्रस्तुत... 28 अक्टूफय से 3 2018 Our Web Site: www.gurutvajyotish.com Shp Our Product Online www.gurutvakaryalay.com

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    गरुुत्व ज्मोततष साप्ताहहक ई-ऩत्रिका भें रेखन हेतु

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    गरुुत्व ज्मोततष साप्ताहहक ई-ऩत्रिका भें आऩके द्वारा लरखे गमे भॊि, मॊि, तॊि, ज्मोततष, अॊक ज्मोततष, वास्तु, पें गशुई, टैयों, येकी एवॊ अन्म आध्मात्त्भक ऻान वधाक रेख को प्रकालशत कयने हेत ु बेज सकते हैं। अधधक जानकायी हेतु सॊऩका कयें।

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    ऩत्रिका प्रस्तुतत ध ॊतन जोशी, गुरुत्व कामाारम पोटो ग्राफपक्स ध ॊतन जोशी, गुरुत्व कामाारम

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  • अनुक्रभ

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    ?

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    14 ( 2) 24

    स्थामी औय अन्म रेख सॊऩादकीम 4 दैतनक शबु एवॊ अशबु सभम ऻान तालरका 46 28 अक्टूफय से 3 नवम्फय 2018 साप्ताहहक ऩॊ ाॊग

    40 हदन के ौघडडमे

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    28 अक्टूफय से 3 नवम्फय 2018 साप्ताहहक व्रत-ऩवा-त्मौहाय

    40

    हदन फक होया - समूोदम से समूाास्त तक 48

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    ई- जन्भ ऩत्रिका E HOROSCOPE अत्माधुतनक ज्मोततष ऩद्धतत द्वाया उत्कृष्ट बववष्मवाणी के साथ

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  • वप्रम आत्त्भम,

    फॊध/ु फहहन

    जम गुरुदेव हहॊद ूऩॊ ाॊग के अनुसाय

    - 8

    - द्वा द्वा द्वा

    आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो ऩयभात्भा की कृऩा आऩके ऩरयवाय ऩय फनी यहे। ऩयभात्भा से मही प्राथना हैं…

    ध ॊतन जोशी

  • 5 21 27 -2018

    ***** साप्ताहहक ई-ऩत्रिका से सॊफॊधधत सू ना ***** - भें गुरुत्व कामाारम के अधधकायों के साथ ही आयक्षऺत हैं। - / -

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  • 6 8 -2018

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  • 7 8 -2018

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    कातताक : कृष्ण ऩऺ एकादशी अजुान ने बगवान ्श्री कृष्ण से कहा हे बगवन ्

    ! कृप्मा भुझ ेकातताक भास की कृष्ण ऩऺ की एकादशी की कथा सुनाइए। इस एकादशी का नाभ क्मा है तथा इसभें फकस देवता का ऩूजन फकमा जाता है । इस एकादशी का व्रत कयने से क्मा पर लभरता है ? कृऩा कयके मह सफ ववस्तायऩूवाक फताएॊ।

    बगवान ्श्रीकृष्ण फोरे हे अजुान ! कातताक भास के कृष्ण ऩऺ की एकादशी का नाभ यभा ह। इसके व्रत से व्मत्क्त के सभस्त ऩाऩ नष् ट हो जाते हैं । व्रत की कथा तुभ ध्मान से सुनों

    प्रा ीनकार भें भु ुकुन्द नाभ का एक याजा याज्म कयता था । इन्र, वरूण, कुफेय आहद देवगण उसके लभि थे । वह फड़ा सत्मवादी तथा बगवान ् ववष्णु का बक् त था । उसका याज्म सबी प्रकाय से सॊऩन्न था । याजा की न्रबागा नाभक एक कन्मा थी त्जसका वववाह उसन ेयाजा न्रसेन के ऩुि सोबन से कयवा हदमा । न्रबागा

    याजा एकादशी का व्रत फड़ े ही नीतत-तनमभ के साथ कयता था औय अऩने याज्म भें सबी रोग मथा सॊबव कठोयता से इस तनमभ का ऩारन कयते थे । एक फाय की फात है फक सोबन कातताक भहीने भें अऩने ससुयार आमा था। उसी दौयान अततऩुण्मदातमनी यभा एकादशी आ गई । याज्म के तनमभ के अनुसाय इस हदन सबी व्रत यखते थे । याजा की कन्मा न्रबागा ने सो ा फक भेये ऩतत तो व्रत-कभा इत्माहद कामों भें फड़ ेकभजोय हैं, वे एकादशी का व्रत कैसे कयेंगे ! जफफक वऩता के महाॊ तो सबी को व्रत कयने का तनमभ है ।

    भेये ऩतत ने महद याजाऻा भानी, तो उन्हें फहुत कष् ट होगा । तनमभानुसाय याजा ने आऻा जायी की फक सायी प्रजा ववधध-ववधान ऩूवाक एकादशी का व्रत कये । जफ दशभी आई तफ याज्म भें हढॊढोया वऩटा, उसे सुनकय सोबन अऩनी ऩत् नी के ऩास गमा औय फोरा हे वप्रमे ! तुभ भुझ ेकुछ उऩाम फतराओ क्मोंफक भैं व्रत नहीॊ कय सकता, महद भैं व्रत करुॊगा तो जीववत नहीॊ यह सका ।

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  • 8 8 -2018

    ऩतत की फात ऩय न्रबागा फोरी हे प्राणनाथ ! भेये वऩताजी के याज्म भें एकादशी के हदन कोई बी बोजन नहीॊ कय सकता । महाॊ तक फक प्राणी-ऩशु-ऩऺी आहद बी घास, अन्न, जर आहद ग्रहण नहीॊ कयते; फपय बरा भनुष्म कैसे बोजन कय सकता हैं ? महद आऩ व्रत नहीॊ कय सकते तो फकसी दसूये याज्म भें रे जाइए । क्मोंफक महद आऩ महाॊ यहें तो आऩको व्रत अवश्म ही कयना ऩड़गेा ।

    न्रबागा फात ऩय सोबन ने कहा हे वप्रमे ! तुम्हाया सुझाव उध त है । फकन्तु भैं व्रत के डय स ेफकसी दसूये स्थान ऩय नहीॊ जाऊॊ गा अफ भैं मह व्रत अवश् म ही करुॊगा, ऩरयणाभ ाहे कुछ बी हो, बाग्म भें लरखा कौन लभटा सकता है ।

    उसने एकादशी का व्रत फकमा रेफकन हदन फीतते-फीतते सोबन बूख औय प्मास से अत्मन्त व्माकुर होने रगा । सूमा अस्त होमा औय यात्रि जागयण का सभम आ गमा। रेफकन यात्रि सोबन को अत्माधधक कष्ट देने वारी थी । दसूये हदन का सूमोदम होने से ऩूवा ही बूख-प्मास से सोबन के प्राण तनकर गए ।

    याजा ने सोबन के भतृ शयीय को जर-प्रवाह कया हदमा औय अऩनी ऩुिी को आऻा दी फक वह सती न हो कय बगवान ्ववष्णु ऩय बयोसा यखे ।

    न्रबागा अऩने वऩता की आऻानुसाय सती नहीॊ हुई । वह अऩने वऩता के घय यहकय नीतत-तनमभ से एकादशी के व्रत कयने रगी ।

    उधय यभा एकादशी के प्रबाव से सोबन को जर से तनकार लरमा गमा औय बगवान ् ववष्णु की कृऩा से उसे नमा जीवन प्राप्त हुवा औय उसे भन्दया र ऩवात ऩय धन-धान्म से मुक् त देवऩुय नाभ का एक उत्तभ नगय याजा फना हदमा गमा । सोबन स्वणा तथा यत्नजडड़त लसॊहासन ऩय सुन्दय वस् ि तथा आबूषण धायण फकए फैठता औय गन्धवा तथा अप्सया नतृ्म कय उसकी स्तुतत कयतेथे । उस सभम याजा सोबन इन्र के सभान प्रतीत हो यहा था ।

    उस सभम भु कुुन्द नगय का सोभशभाा नाभ का एक ब्राह्भण तीथामािा के लरए तनकरा। जो घूभते-घूभत ेसोबन के याज्म भें जा ऩहुॊ ा, सोबन को देखा । वह

    ब्राह्भण सोबनको अऩने याज्म के याजा का जभाई जानकय उसके तनकट गमा । याजा सोबन ब्राह्भण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ औय अऩने ससुय तथा स्िी न्रबागा के कुशर-भॊगर ऩूछने रगा ।

    सोभशभाा फोरा हे याजन ् ! हभाये याजा तथा आऩकी ऩत् नी न्रबागा दोनों कुशर है । अफ आऩ अऩना वतृ्तान्त फतराइए । आऩने तो यभा एकादशी के हदन अन्न-जर ग्रहण न कयने के कायण प्राण त्माग हदए थे । भुझ े फड़ा आश् मा है फक ऐसा सुॊदय नगय आऩको फकस प्रकाय प्राप् त हुआ ?

    सोबन फोरा हे ब्राह्भण देव ! मह सफ कातताक भास की कृष्ण ऩऺ की यभा एकादशी के व्रत का पर है । इसी से भुझ ेमह सुॊदय नगय प्राप् त हुआ है, रेफकन मह अत्स्थय है ।

    इस ऩय ब्राह्भण फोरा हे याजन ् ! मह अत्स्थय क्मों है औय त्स्थय फकस प्रकाय हो सकता है, आऩ भुझ ेसभझाइए । महद इसके त्स्थय कयने के लरए भैं कुछ कय सका तो वह उऩाम भैं अवश्म ही करुॊगा ।

    सोबन फोरा हे देव ! भैंने वह व्रत वववश होकय तथा श्रद्धायहहत फकमा था । उसके प्रबाव से भुझ े मह अत्स्थय नगय प्राप् त हुआ हैं, रेफकन महद आऩ इस वतृ्तान्त को भें ऩत्नी न्रबागा से कहोगे तो वह इसको त्स्थय कय सकती है ।

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  • 9 8 -2018

    ब्राह्भण अऩने नगय रौटकय उसने न्रबागा से सभस्त वतृ्तान्त कहा । इस ऩय याजकन्मा न्रबागा फोरी हे ब्राह्भण देव ! आऩ क्मा वह सफ आऩ देखकय आमे हैं ! मा अऩना स्वप्न भें देखा दृश्म कह यहे हैं ?

    ब्राह्भण फोरा हे ऩुिी ! भैंने तेये ऩतत सोबन तथा उसके नगय को प्रत्मऺ देखा है, ऩयन्तु वह नगय अत्स्थय है । तूभ कोई ऐसा उऩाम कयो त्जससे फक वह त्स्थय हो जाम ।

    न्रबागा फोरी हे भहायाज ! आऩ भुझ े उस नगय भें रे लरए, भैं अऩने ऩतत को देखना ाहती हूॊ । भैं अऩने व्रत के प्रबाव से उस नगय को त्स्थय कय रूॊगी ।

    न्रबागा के फात को सुनकय ब्राह्भण उसे वाभदेवजी के आश्रभ भें रे गमा । वाभदेवजी ने उसके वतृ्तान्त को सुनकय न्रबागा का भन्िों से अलबषेक फकमा । न्रबागा भन्िों तथा व्रत के प्रबाव स े हदव्म

    देह धायण कयके ऩतत के ऩास गई । सोबन ने अऩनी स् िी न्रबागा को देखकय उसे प्रसन्नताऩूवाक आसन ऩय अऩने ऩास फैठा लरमा ।

    न्रबागा फोरी हे प्राणनाथ ! अफ आऩ भेये एकादशी व्रत के ऩुण्म को सुतनए, जफ भैं अऩने वऩता के गहृ भें आठ वषा की थी, तफ ही से भैं ऩूणा ववधध-ववधान से एकादशी का व्रत कय यही हूॊ । उन्हीॊ व्रतों के प्रबाव से आऩका मह नगय त्स्थय हो जाएगा जो अफ प्ररम के अन्त तक त्स्थय यहेगा। न्रबागा हदव्मरुऩ धायण कयके तथा हदव्म वस् ि-अरॊकायों से सुशोलबत होकय अऩने ऩतत के साथ भन्दया र ऩवात ऩय सुखऩूवाक यहने रगी ।

    हे ऩाथा ! मह यभा एकादशी का ववशषे भाहात्म्म है । जो भनुष्म यभा एकादशी के व्रत को ववधध-ववधान से कयते हैं, उनके सभस्त ऩाऩ नष् ट हो जाते हैं । जो भनुष्म यभा एकादशी का भाहात्म्म सुनते हैं, वह अन्त सभम ववष्णुरोक को जाते हैं ।

    कनकधाया मॊि आज के बौततक मुग भें हय व्मत्क्त अततशीघ्र सभदृ्ध फनना ाहता हैं। कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ ाना कयने से व्मत्क्त के जन्भों जन्भ के ऋण औय दरयरता स ेशीघ्र भुत्क्त लभरती हैं। मॊि के प्रबाव से व्माऩाय भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। कनकधाया मॊि अत्मॊत दरुाब मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हेतु अ कू प्रबावा शारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊि को ववद्वानो ने स्वमॊलसद्ध तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं। आज के मुग भें हय व्मत्क्त अततशीघ्र सभदृ्ध फनना ाहता हैं। धन प्रात्प्त हेतु प्राण-प्रततत्ष्ठत कनकधाया मॊि के साभने फैठकय कनकधाया स्तोि का ऩाठ कयने से ववशषे राब प्राप्त होता हैं। इस कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ ाना कयने से ऋण औय दरयरता स ेशीघ्र भुत्क्त लभरती हैं। व्माऩाय भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। जैस ेश्री आहद शॊकया ामा द्वारा कनकधाया स्तोि फक य ना कुछ इस प्रकाय की गई हैं, फक त्जसके श्रवण एवॊ ऩठन कयने से आस-ऩास के वामुभॊडर भें ववशषे अरौफकक हदव्म उजाा उत्ऩन्न होती हैं। हठक उसी प्रकाय से कनकधाया मॊि अत्मॊत दरुाब मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हेतु अ कू प्रबावा शारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊि को ववद्वानो ने स्वमॊलसद्ध तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं। जगद्गुरु शॊकया ामा ने दरयर ब्राह्भण के घय कनकधाया स्तोि के ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ शॊकय हदत्ग्वजम भें लभरता हैं। कनकधाया भॊि:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्ीॊ-श्रीॊ क्रीॊ कनक धायमै स्वाहा'

    GURUTVA KARYALAY

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  • 10 8 -2018

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  • 11 8 -2018

    सवा कामा लसवद्ध कव

    त्जस व्मत्क्त को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊतछत सपरतामे एवॊ फकमे गमे कामा भें लसवद्ध (राब) प्राप्त नहीॊ होती, उस व्मत्क्त को सवा कामा लसवद्ध कव अवश्म धायण कयना ाहहमे।

    कवच के प्रभुख राब: सवा कामा लसवद्ध कव के द्वारा सुख सभवृद्ध औय नव ग्रहों के नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्क्त के जीवन से सवा प्रकाय के द:ुख-दारयर का नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नतत प्रात्प्त होकय जीवन भे सलब प्रकाय के शुब कामा लसद्ध होत ेहैं। त्जसे धायण कयने से व्मत्क्त महद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे ववृद्ध होतत हैं औय महद नौकयी कयता होतो उसभे उन्नतत होती हैं।

    सवा कामा लसवद्ध कव के साथ भें सववजन वशीकयण कव के लभरे होन ेकी वजह से धायण कताा की फात का दसूये व्मत्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं।

    सवा कामा लसवद्ध कव के साथ भें अष्ट रक्ष्भी कव के लभरे होने की वजह से व्मत्क्त ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अष्ट रुऩ (१)-आहद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धमैा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राप्त होता हैं।

    सवा कामा लसवद्ध कव के साथ भें तंत्र यऺा कव के लभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू होती हैं, साथ ही नकायात्भक शत्क्तमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्क्त ऩय नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वषे यखने वारे व्मत्क्तओ द्वारा होने वारे दषु्ट प्रबावो से यऺा होती हैं।

    सवा कामा लसवद्ध कव के साथ भें शत्र ु ववजम कव के लभरे होन ेकी वजह से शि ुसे सॊफॊधधत सभस्त ऩयेशातनओ स ेस्वत् ही छुटकाया लभर जाता हैं। कव के प्रबाव से शि ुधायण कताा व्मत्क्त का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़ सकते।

    अन्म कव के फाये भे अधधक जानकायी के लरमे कामाारम भें सॊऩका कये: फकसी व्मत्क्त ववशषे को सवा कामा लसवद्ध कव देने नही देना का अॊततभ तनणाम हभाये ऩास सुयक्षऺत हैं।

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    (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

  • 12 8 -2018

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  • 13 8 -2018

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  • 14 8 -2018

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  • 15 8 -2018

    भनोवाॊतछत परो फक प्रात्प्त हेतु लसवद्ध प्रद गणऩतत स्तोि

    प्रततहदन इस स्तोि का ऩाठ कयने स ेभनोवाॊतछत पर शीघ्र प्राप्त होते हैं।

    भनोवाॊतछत पर प्राप्त कयने हेतु गणेश जी के ध ि मा भूतत ा के साभने भॊि जाऩ कय सकते हैं। ऩूणा श्रद्धा एवॊ ऩूणा ववश्वास के साथ भनोवाॊतछत पर प्रदान कयने वारे इस स्तोि का प्रततहदन कभ से कभ 21 फाय ऩाठ अवश्म कयें।

    अधधकस्म अधधकॊ परभ।् जऩ त्जतना अधधक हो सके उतना अच्छा है। महद भॊि अधधक फाय जाऩ कय सकें तो शे्रष्ठ।

    प्रात् एवॊ सामॊकार दोनों सभम कयें , पर शीघ्र प्राप्त होता है।

    काभना ऩूणा होने के ऩश् मात बी तनमलभत स्िोत रा ऩाठ कयते यहना ाहहए। कुछ एक ववशषे ऩरयत्स्थतत भें ऩूवा जन्भ के सॊध त कभा स्वरूऩ प्रायब्ध की प्रफरता के कायण भनोवाॊतछत पर की प्रात्प्त मा तो देयी सॊबव हैं!

    भनोवाॊतछत पर की प्रात्प्त के अबाव भें मोग्म ववद्वान की सराह रेकय भागादशान प्राप्त कयना उध त होगा। अववश्वास व कुशॊका कयके आयाध्म के प्रतत अश्रद्धा व्मक्त कयने से व्मत्क्त को प्रततकूर प्ररयणाभ हह प्राप्त होते हैं। शास्िोक्त व न हैं फक बगवान (इष्ट) फक आयाधना कबी व्मथा नहीॊ जाती।

    भंत्र:- गणऩततववाघ्नरनयाजो रम्फतुण्डो गजानन्। द्वैभातुयश् हेयम्फ एकदन्तो गणाधधऩ्॥ ववनामकश् ारुकणा् ऩशुऩारो बवात्भज्। द्वादशैतातन नाभातन प्रातरुत्थाम म् ऩठेत ्॥

    ववश्वॊ तस्म बवेद्वश्मॊ न ववघ्नरनॊ बवेत ् क्वध त ्। (ऩद्म ऩु. ऩ.ृ 61।31-33)

    बावाथव: गणऩतत, ववघ्नरनयाज, रम्फतुण्ड, गजानन, द्वैभातुय, हेयम्फ, एकदन्त, गणाधधऩ, ववनामक, ारुकणा, ऩशुऩार औय बवात्भज- गणेशजी के मह फायह नाभ हैं। जो व्मत्क्त प्रात्कार उठकय इनका तनमलभत ऩाठ कयता हैं, सॊऩूणा ववश्व उनके वश भें हो जाता हैं, तथा उसे जीवन भें कबी ववघ्नरन का साभना नहीॊ कयना ऩड़ता।

    गणेश रक्ष्भी मॊि प्राण-प्रततत्ष्ठत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दकुान-ओफपस-पैक्टयी भें ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी भें

    स्थावऩत कयने व्माऩाय भें ववशषे राब प्राप्त होता हैं। मॊि के प्रबाव से बाग्म भें उन्नतत, भान-प्रततष्ठा एवॊ व्माऩाय भें ववृद्ध होती हैं एवॊ आधथाक त्स्थभें सुधाय होता हैं। गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थावऩत कयने से बगवान गणेश औय देवी रक्ष्भी का सॊमुक्त आशीवााद प्राप्त होता हैं। Rs.325 से Rs.12700 तक

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  • 16 8 -2018

    ॊर का यत्न भोती ॊर ग्रह के शुब परों की प्रात्प्त हेत ुधायण फकमा जाता हैं। भोती को ॊर यत्न भाना गमा है। भोती ववलबन्न बाषाओ भे तनम्न लरखखत नाभो से जाना जात है। हहन्दी भे :- भोती, भुक्ता सस्कृत भे :- भुक्ता, सौम्मा, नीयज, तायका, शलशयत्न, भौत्क्तक, ताया, स्वप्नसाय, इन्दयुत्न, भुक्तापर, शूलरज, शोत्क्तक, शलशवप्रम, जीवयत्न, त्रफन्दपुर, शुत्क्तभखण, यसाईबव, सौफकतक, भूवाारयद आहद। फ़ायसी भे :- भुखारयद, अयफी भे :- भुखारयद, रेहटन भे :- भागोरयटा अगें्रजी :- ऩरा भोती की उत्ऩत्त्त

    प्राम् भोती स्वेत यॊग का ही होता हैं। स्वेत यॊग के अरावा गुराफी, रार, ऩीरे, नीरे, कारे, हये आहद यॊगो भें बी ऩामे जाते हैं।

    भोती एक जैववक यत्न होता है। क्मोफक भोती का तनभााण बी सभुर भें सीऩ/तछऩ भें होता है। सभुर भें एक ववशषे प्रकाय का जीव होता हैं त्जसे घोंघा (भूसेर) नाभ से जाना जाता हैं। मह घोंघा सीऩ के अॊदय अऩना घय फनाकय यहता है। भोती के ववषम भें एसी भान्मता है की जफ ॊरभा स्वातत नऺि भें होता हैं तफ ऩानी की टऩकने वारी फूॊद जफ घोंघे के खरेु हुए भुॊह भें ऩड़ती है तफ भोती का जन्भ होता है। रेफकन एसा फहोत कभ होत हैं।

    ज्मादातय भोती येत के कण मा कोई छोटे जीव से फनते हैं। वैऻातनक भत से घोंघा के शयीय ऩय घागे के सभान अॊग होते हैं। त्जसकी भदद से वह अऩन ेआऩको फडी लशरा/ ऩत्थय ऩय जरीम स्थानों भें अऩने

    आऩको ध ऩकाता हैं। घोंघा जर भें एक फषा भें दो ऋत ुभें जन्भ रेते हैं। जानकायो की भाने तो जो घोंघा फडी लशरा का सहाया प्राप्त कय रेते हैं वहीॊ घोंघा इस मोग्म होता हैं की वह भोतत फना सकते हैं।

    घोंघा भाॊस के दो आवयण के अॊदय होता हैं त्जसे भेण्टर कहा जाता हैं। मह भेण्टर सूक्ष्भ छत्तों से ढॊका होता हैं, त्जसभें एक ववशषे प्रकाय के कठोय ऩदाथों के लभश्रण को तनकारने की ऺभता होती हैं। मह लभश्रण जभा होते-होते धीये-धीये सीऩ का रुऩ रे रेता हैं। मह सीवऩमाॊ हय घोंघे को ढॊककय यखती हैं औय उसकी यऺा कयती हैं। घोंघा अऩनी आवश्मक्ता के अनुसाय जरुयत ऩडने ऩय सीऩ को खोरकय अऩना बोजन प्राप्त कयके सीऩ को ऩुन् फॊध कय रेता हैं।

    प्राम् सीऩ भें ाय ऩते होती हैं। मह ायों ऩत ेफहोत धीये-धीये फनती हैं एवॊ ववलबन्न ऩयतों से ऩडते हुए प्रकाश की यत्श्भसे भोती भें सुॊदयता आती हैं।

    घोंघा उक्त फिमाओॊ से अऩने लरमे सीऩ भें घय फना रेता हैं। जफ कोई लबन्न ऩदाथा जैसे येत के कण

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  • 17 8 -2018

    मा फकडा, घोंघे के शयीय से रग जाता हैं तो घोंघा इस कण से भुत्क्त ऩाने के लरमे ऩूणा कोलशश कयता हैं औय कबी सपर तो कबी असपर होता हैं। जफ घोंघा असपरता प्राप्त कयता हैं, तफ घोंघा उस कण को सीऩ भें भौजुद ऩदाथो से उसे ढॊकने की कोलशश कयता हैं औय उस ऩय ऩयत दय ऩयत ढाता हैं। त्जस ऩदाथा से सीऩ फनती हैं उसी ऩदाथा को वह उस कण ऩय ढाता हैं। सभम के साथ मह ऩयत ेभोतत का ऩूणा रुऩ धायण कय रेता हैं। भोती का आकाय लबन्न-लबन्न होते हैं। भोती गोर, अण्डाकाय, नासऩतत आहद अतनमलभत आकाय के होता हैं। घोंघा ने फनामे सीऩ मा भेण्टर के त्रफ भें जफ कोई ध ऩकने वारा कीडा पस कय छेद कय देता हैं तफ जो भोती फनत ेहैं वह सीऩ से ध ऩक जाते हैं। उन भोतीमों को सीऩ से काटकय तनकार ना ऩडता हैं। इस तयह प्राप्त होने वारे भोती ऩटे एवॊ अतनमलभत आकाय के होते हैं। त्जन्हें त्रफल्स्टय ऩरा कहा जाता हैं। गोर भोती से उनका भूल्म कभ होता हैं।

    भान्मता के अनुसाय भोती ववशषे रुऩ से अऩने प्राकृततक रूऩ भें प्राप्त होता है। भोती घोंघे भें गोर, अण्डाकाय अथवा टेढ़ा-भेढ़ा जैसा बी फनता हैं, वह उसी रूऩ भें उऩरब्ध होता हैं।

    अन्म यत्नों की बाॊतत इसकी कहटॊग तथा ऩॉलरस आहद नहीॊ की जाती हैं। भोती को भारा भें वऩयोने के लरए इनभें तछर ही फकमे जाते हैं।

    रेफकन आज सभम के साथ आधतुनक उऩकयणो एवॊ नवीनतभ तकतनको की भदद से भोती को ऩॉलरस अवश्म फकमा जाता हैं। महद फकसी भोती का आकाय गोर व अॊडाकय मा टेढ़ा-भेढ़ा होने के उऩयाॊत उसका कोई एक हहस्सा नुकीरा हो तो उस े काटकय ऩॉलरस कय उसकी उऩयी ऩयतो को हटा हदमा जाता हैं। मह फिमा सबी नुकीरे भोती भें सॊबव नहीॊ होती कुछ ही भोतीमों भें सॊबव हो ऩाती हैं। भोती के राब: ववद्वान ज्मोततषीम के अनुसाय त्जन रोगों का भन

    अशाॊत यहता हैं औय त्जनको अधधक िोध आता है

    उन्हें भोती धायण कयने स े ववशषे राब प्राप्त होत ेहैं।

    भोती भान की एकाग्रता फढ़ाता हैं एवॊ भानलसक शाॊतत प्रदान कयने भे सहामक होता हैं।

    भोती धायण कयने स े व्मत्क्त को भान-प्रततष्ठा एवॊ धन, ऎश्वमा एवॊ वैबव की प्रात्प्त होती हैं।

    भोती योगों को नाश कयने भें बी सहामक होता हैं। ज्वय भें भोती धायण कयना राबप्रद यहता हैं। मह रृदम गतत को तनमॊिण कयने भें सहामक होता

    हैं। भोती आॊिशोथ, अल्सय एवॊ ऩेट एवॊ आहद फीभारयमों

    भें राबदामी होता हैं। ऐसी भान्मता है, फक जो व्मत्क्त शुद्ध भोती धायण

    कयते हैं उस ऩय देवी रक्ष्भी प्रसन्न यहती हैं औय उसे धन का अबाव नहीॊ होता।

    भोती दाम्ऩत्म सम्फन्ध भें सुधाय राने भें बी राबदामक होता हैं।

    धन प्रात्प्त के लरए ऩीरे यॊग की आबा वारा भोती धायण कयना राबदामक होता हैं। फौवद्धक ऺभता भें ववृद्ध के लरए रार यॊग की आबा वारा भोती धायण कयना राबदामक होता हैं। भान-सम्भान एवॊ प्रलसवद्ध के लरमे सपेद यॊग की आबा वारा भोती धायण कयना राबदामक होता हैं। ईश्वयीम कृऩा प्रात्प्त के लरए नीरे यॊग की आबा वारा भोती धायण कयना राबदामक होता हैं। भान्मता: काॊ के धगरास भें ऩानी डार कय उसभें भोती यखा

    जाता है. अगय इस ऩानी से फकयण तनकर यही हों तो भोती को असरी सभझा जाता है.

    लभट्टी के फयतन भें गौभिू डारकय उसभें भोती यखा जाता है. यातबय भोती को इसी फयतन भें यखा जाता है. सुफह भोती को देखा जाता है. भोती ऩय इस उऩाम का कोई प्रबाव नहीॊ ऩडा हों औय भोती अॊखड हों तो भोती को असरी सभझा जाता है.

    भोती को अनाज के बूस ेस ेजोय से यगडा जाता है. भोती के नकरी होने ऩय उसका यूा हो जाता है.

  • 18 8 -2018

    द्वादश महा यंत्र मॊि को अतत प्राध न एवॊ दरुाब मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्वारा फनामा गमा हैं। ऩयभ दरुाब वशीकयण मॊि, बाग्मोदम मॊि भनोवाॊतछत कामा लसवद्ध मॊि याज्म फाधा तनवतृ्त्त मॊि गहृस्थ सुख मॊि शीघ्र वववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि

    सहस्िाऺी रक्ष्भी आफद्ध मॊि आकत्स्भक धन प्रात्प्त मॊि ऩूणा ऩौरुष प्रात्प्त काभदेव मॊि योग तनवतृ्त्त मॊि साधना लसवद्ध मॊि शि ुदभन मॊि

    उऩयोक्त सबी मॊिो को द्वादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि लसद्ध ऩूणा प्राणप्रततत्ष्ठत एवॊ तैन्म मुक्त फकमे जात ेहैं। त्जस ेस्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अ ाना-ववधध ववधान ववशषे राब प्राप्त कय सकत ेहैं।

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    भोती ऩय कोई प्रबाव नहीॊ ऩड यहा हों तो मह भोती असरी होता है

    इस उऩाम के अन्तगात भोती को शुद्ध गाड े घी भें कुछ देय के लरमे यखा जाता है. अगय भोती असरी होने ऩय घी के वऩघरने की सॊबावनाएॊ फनती हैं।

    भोती के दोष महद भोती टूटा हुआ हो, तो एसा भोती ऩहनन ेसे भन भें

    ॊ रता व्माकुरता व कष्ट फक ववृद्ध होती हैं। महद भोती भें भक न हो तो उस भोती को धायण

    कयने से तनधानता आती हैं। महद भोती भें गड्ढा हो, तो एसा भोती स्वास्थम एवॊ

    धन सम्ऩदा को हातन ऩहुॉ ाने वारा होता हैं। महद भोती ों के जैसा आकाय हो मा उस ऩय दाग-

    धब्फे हो, तो एसा भोती धायण कयने से ऩुि से सॊफॊधधत कष्ट होता हैं।

    महद भोती ऩटा हो तो, वह भोती सुख सौबाग्म का नाश कयने वारा व ध ॊता फढाने वारा होता हैं।

    महद भोती ऩय छोटे कारे दाग तो, एसा भोती धायण कयने से स्वास्थम फक हातन होती हैं।

    महद भोती ऩय येखाएॊ हो तो, एसा भोती धायण कयने से मश एवॊ ऐश्वमा की हातन होती हैं।

    महद भोती के ायों तयप गोर येखा हो तो, एसा भोती धायण कयने स ेबमवधाक तथा स्वास्थम व रृदम को हातन

    ऩहुॉ ाने वारा होता हैं। महद भोती ऩय रहयदाय येखाएॊ हदखाई देती हो तो, एसा

    भोती धायण कयने से भन भें उद्ववग्नता व धन फक हातन होती हैं।

    महद भोती हदखने भें रॊफा मा फेडौर हो तो, एसा भोती धायण कयने स ेफर व फुवद्ध की हातन होती हैं।

    महद भोती ऩय छारा के सभान धब्फे उबये हो तो, एसा भोती धायण कयने से धन-सम्ऩदा व सौबाग्म का नष्ट कयने वारा होता हैं।

    महद भोती की सतह पटी हुई हो हो तो, एसा भोती धायण कयने स ेनाना प्रकाय के कष्ट होते हैं।

    महद भोती ऩय कारे यॊग की आबा मुक्त हो तो, एसा भोती धायण कयने से अऩमश फक प्रात्प्त होती हैं।

    महद भोती तीन कोने वारा हो तो, एसा भोती धायण कयने से फर एवॊ फुवद्ध का नाश होता हैं औय नऩुॊसकता की ववृद्ध होती हैं।

    महद भोयी ताम्र वणा का हो तो, एसा भोती धायण कयने से बाई-फहन व ऩरयवाय का नाश होता हैं।

    महद भोती ाय कोणों स ेमुक्त हो तो, एसा भोती धायण कयने से ऩत्नी का नाश होता हैं।

    महद भोती यक्त वणा का हो तो, एसा भोती धायण कयने से ायों तयप स ेववऩदा आन ऩड़ती हैं।

  • 19 8 -2018

    रुराऺ

    ?

    रुर के अऺ से प्रकट होने के कायण रुराऺ को साऺात लशव का लरॊगात्भक स्वरुऩ भाना गमा हैं। ववद्वानो का कथ हैं की रुराऺ भें एक ववलशष्ट प्रकाय की हदव्म उजाा शत्क्त सभाहहत होती हैं। प्राम् सबी ग्रॊथकायों व ववद्वानो ने रुराऺ को असह्म ऩाऩों को नाश कयने वारा भाना हैं। इस लरए लशव भाहा ऩुयाण भें उल्रेख ककमा गमा हैं।

    लशववप्रमतभो ऻेमो रुराऺ् ऩयऩावन्। दशानात्स्ऩशानाज्जाप्मात्सवाऩाऩहय् स्भृत्॥

    अथावत: रुराऺ अत्मॊत ऩववि, शॊकय बगवान का अतत वप्रम हैं। उसके दशान, स्ऩशा व जऩ सवा ऩाऩों का नाश होता हैं।

    रुराऺ धायणाने सवा दु् खनाश् अथावत: रुराऺ असॊखम दु् खों का नाश कयने वारा हैं। रुराऺ शब्द के उच् ायण से गोदा का पर प्राप्त होता हैं। रुराऺ के ववषम भें रुराऺ जावारोऩतनषद भें स्वमॊ बगवान कारग्नी का कथन हैं:

    तद् रुराऺ ेवात्ग्वषमे कृते दशगोप्रदानेन मत्परभवाप्नोतत तत्परभश् नुते ।

    कयेण स्ऩषृ्टवा धायणभािेण द्ववसहस्ि गोप्रदान पर बवतत ।

    कणामोधाामाभाणे एकादश सहस्ि गोप्रदानपरॊ बवतत । एकादश रुरत्वॊ गच्छतत ।

    लशयलस धामाभाणे कोहट ग्रोप्रदान परॊ बवतत । अथावत: रुराऺ शब्द के उच् ायण से दश गोदान (गाम का दान) का पर प्राप्त होता हैं। रुराऺ का स्ऩशा कयन ेव धायण कयने से दो हजाय गोदान (गाम का दान) का पर लभरता हैं। दोनो कानो ऩय रुराऺ धायण कयने स े

    ग्माया हजाय गोदान (गाम का दान) का पर लभरता हैं। गरे भें रुराऺ धायण कयने से कयोडो ो़ गोदान (गाम का दान) का पर लभरता हैं।

    अरग-अरग यॊगों के रुराऺ भें अरग-अरग प्रकाय की शत्क्तमाॊ तनहहत होती हैं। इस लरमे यॊगो के अनुसाय रुराऺ का प्रबाव भनुष्म ऩय ऩड़ता हैं।

    ब्राह्भणा् ऺत्रिमा् वैश्मा् शूराश् तेत लशवाऻमा । वृऺ ा जाता् ऩधृथव्माॊ तु तज्जातीमो् शुबाऺभ् । श् वेतास्तु ब्राह्भण ऻेमा् ऺत्रिमा यक् तवणाका् ॥ ऩीता् वैश्मास्तु ववऻेमा् कृष्णा् शूरा उदाहु्ता् ॥

    अन्म श् रोक भें उल्रेख हैं: ब्राह्भणा् ऺत्रिमा वैश्मा् शूरा जाता भभाऻमा ॥ रुराऺास्ते ऩधृथव्माॊ तु तज्जातीमा् शुबाऺका् ॥ श्वेतयक्ता् ऩीतकृष्णा वणााऻेमा् िभाद्फुधै् ॥ स्वजातीमॊ नृलबधााम ंरुराऺॊ वणात् िभात ्॥

    श्वेत यंग: सपेद यॊग वारे रुराऺ भें सात्त्त्वक उजाामुक्त ब्रह्भ स्वरुऩ शत्क्त सभाहहत होती हैं। इस लरए ब्राह्भण को श्वेत वणा का रुराऺ धायण कयना ाहहए। यक्तवणीम (ताम्र के सभान आबामुक्त) : यक्त यॊग की आबामुक्त रुराऺ भें याजसी उजाामुक्त शिसुॊहायक शत्क्त सभाहहत होती हैं। इस लरए ऺत्रिम को यक्तवणॉम रुराऺ धायण कयना ाहहए। ऩीतवणीम (कांचन मा ऩीरी आबामुक्त) : ऩीरे यॊग की आबामुक्त रुराऺ भें याजसी व ताभसी दोनों प्रकाय की सॊमुक्त उजाा शत्क्त सभाहहत होती हैं। इस लरए वैश्म को ऩीतवणॉम रुराऺ धायण कयना ाहहए। कृष्णवणीम: कारे यॊग की आबामुक्त रुराऺ भें ताभसी उजाामुक्त सेवा व सभऩाणात्भक शत्क्त सभाहहत होती हैं। इस लरए शूर को कृष्णवणॉम रुराऺ धायण कयना ाहहए। मह शास्िों भे उल्रेखखत ववद्वान ऋवषमों का तनदेश है फक भनुष्म को अऩने वणा के अनुरूऩ श्वेत, यक्त, ऩीत

  • 20 8 -2018

    औय कृष्ण वणा के रुराऺ धायण कयने ाहहए। ववशषेकय बगवान लशव के बक्तो के लरमे तो रुराऺ को धायण कयना ऩयभ आश्मक हैं।

    वणैस्तु तत्परॊ धाम ंबुत्क्तभुत्क्तपरेप्सुलब् ॥ लशवबक्तैववाशषेेण लशवमो् प्रीतमे सदा ॥

    सवााश्रभाणाॊवणाानाॊ स्िीशूराणाॊ। लशवाऻमा धामाा: सदैव रुराऺा:॥

    सबी आश्रभों (ब्रह्भ ायी, वानप्रस्थ, गहृस्थ औय सॊन्मासी) एवॊ वणों तथा स्िी औय शूर को सदैव रुराऺ धायण कयना ाहहमे, मह लशवजी की आऻा है!

    रुराऺ को तीनों रोकों भें ऩूजनीम हैं। रुराऺ के स्ऩशा से रऺ गुणा तथा रुराऺ की भारा धायण कयने स ेकयोड़ गुना पर प्राप्त होता हैं। रुराऺ की भारा से भॊि जऩ कयने से अनॊत कोहट पर की प्रात्प्त होती हैं।

    त्जस प्रकाय सभस्त रोक भें लशवजी वॊदनीम एवॊ ऩूजनीम हैं उसी प्रकाय रुराऺ को धायण कयने वारा व्मत्क्त सॊसाय भें वॊदन मोग्म हैं। रुराऺ धायण परभ ्

    रुराऺा मस्म गोिषुे रराटे त्रिऩुण्रकभ।् स ाण्डारोऽवऩ सम्म्ऩूज्म् सवावणोंत्तभो बवेत॥्

    अथावत् त्जसके शयीय ऩय रुराऺ हो औय रराट ऩय त्रिऩुण्ड हो, वह ाण्डार बी हो तो सफ वणों भें उत्तभ ऩूजनीम हैं। अबक्त हो मा बक्त हो, नीॊ से नी व्मत्क्त बी मदी रुराऺ को धायण कयता हैं, तो वह सभस्त ऩातको के भुक्त हो जाता हैं।

    जो भनुष्म तनमभानुशाय सहस्िरुराऺ धायण कयता हैं उसे देवगण बी वॊदन कयते हैं।

    उत्च्छष्टो वा ववकभो वा भुक् तो वा सवाऩातकै्। भुच्मते सवाऩाऩेभ्मो रुराऺस्ऩशानेन वै॥

    अथावत् जो भनुष्म उत्च्छष्ट अथवा अऩववि यहते हैं मा फुये कभा कयने वार व अनेक प्रकाय के ऩाऩों से मकु्त वह भनुष्म रुराऺ का स्ऩशा कयते ही सभस्त ऩाऩों से छूट जाते हैं।

    कण्ठे रुराऺभादाम लम्रमते महद वा खय्। सोऽवऩरुरत्वभाप्नोतत फकॊ ऩुनबुावव भानव्।

    अथावत् कण्ठ भें रुराऺ को धायण कय महद खय(गधा) बी भतृ्मु को प्राप्त हो जाए तो वह बी रुर तत्व को प्राप्त होता हैं, तो ऩथृ्वीरोक के जो भनुष्म हैं उनके फाये भें तो कहना ही क्मा! आथाात ्सवा साॊसारयक भनुष्मों को स्वगा-प्रात्प्त व रोक ऩयरोक सुधायने के लरए रुराऺ अवश्म धायण कयने मोग्म हैं।

    रुराऺॊ भस्तके धृत्वा लशय् स्नानॊ कयोतत म्। गॊगास्नानॊपरॊ तस्म जामते नाि सॊशम्॥

    अथावत् रुराऺ को भस्तक ऩय धायण कयके जो भनुष्म लसय से स्नान कयता हैं उसे गॊगा स्नान के सभान ऩयभ ऩववि स्नान का पर प्राप्त होता हैं तथा वह भनुष्म सभस्त ऩाऩों से भुक्त हो जाता हैं इसभें सॊशम नहीॊ हैं।

    >> िभश: अगरे अॊक भें ...

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  • 21 8 -2018

    वणाभारा के अनुसाय स्वप्न पर वव ाय

    स्वप्न भें आइना देखना फकसी लभि से बेट मा इच्छा

    ऩूतत ा का सॊकेत है। स्वप्न भें आइना भें अऩना भुहॊ देखना स्िी से कष्ट

    मा नौकयी भें ऩयेशानी का सॊकेत है। स्वप्न भें आसभान देखना ऩदोन्नतत मा उच् ऩद

    की प्रात्प्त का सॊकेत है। स्वप्न भें स्वमॊ को आसभान भे उड़ते देखना कामा भें

    सपरता लभरने का सॊकेत है। स्वप्न भें स्वमॊ को आसभान भे देखना मािा भें शुब

    पर की प्रात्प्त का सॊकेत है। स्वप्न भें स्वमॊ को आसभान से धगयते देखना

    आधथाक नुक्शान होने का सॊकेत है। स्वप्न भें आसभान ऩय रते देखना फीभायी आन े

    का सॊकेत है। स्वप्न भें आसभान हाथ से छूते देखना भनोकाभना

    ऩूणा होने का सॊकेत हैं। स्वप्न भें स्वमॊ के आॊसू देखना ऩरयवाय भें फकसी

    भाॊगलरक कामा के सॊऩन्न होने का सॊकेत है। स्वप्न भें आग देखना अनैततक कामा से धन प्रात्प्त

    का सॊकेत है। स्वप्न भें आग जरा कय बोजन फनाते देखना

    ऩदौन्नतत औय धन राब का सॊकेत है। स्वप्न भें आग आग से कऩडा जरते देखना नेि योग

    एवॊ ववलबन्न कष्ट लभरने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आवाज सुनते देखना शुब सभम के आगभन का सॊकेत है।

    स्वप्न भें स्वमॊ को फकसी फॊधन से आजाद होत ेदेखना सकर ध ॊताओ से भुत्क्त का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आरू देखना स्वाहदष्ट बोजन लभरने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आॊवरा देखना कामा लसवद्ध भें मा इच्छा ऩूतत ा भें ववघ्नरन का सॊकेत है।

    स्वप्न भें स्वमॊ को आॊवरा खाते देखना भनोकाभना ऩूणा होने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आक के पूर मा ऩत्ते देखना शायारयक कष्ट लभरने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आग की रऩटें देखना ऩरयवाय भें झगडा ख़तभ होने औय शात्न्त फढ़ने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें स्वमॊ को आभ खाते देखना सॊतान का सुख भें ववृद्ध एवॊ धन प्रात्प्त के सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें फकसी ऩुरुष का स्िी को आलरॊगन कयत ेदेखना काभ सुख की प्रात्प्त का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें फकसी स्िी का ऩुरुष को आलरॊगन कयत ेदेखना ऩतत से फेवपाई का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें फकसी ऩुरुष का ऩुरुष को आलरॊगन कयत ेदेखना फकसी से शितुा फढ़ने का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें फकसी स्िी का स्िी को आलरॊगन कयत ेदेखना फकसी से धन प्रात्प्त का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें स्वमॊ को आत्भहत्मा कयते मा फकसी को आत्भहत्मा कयते देखना हदधाामु की प्रात्प्त का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें स्वमॊ को आवायागदॊ कयते देखना योजगाय प्रात्प्त मा धन प्रात्प्त का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें फकसी स्िी का आॉ र देखना फकसी प्रततमोधगता भें ववजम लभरने का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें फकसी स्िी को आॉ र आॊसू ऩोछते देखना शुब सभम आने का सॊकेत हैं।

  • 22 8 -2018

    स्वप्न भें फकसी स्िी को आॉ र भें भुॉह तछऩात ेदेखना साभात्जक भान-सम्भान की प्रात्प्त का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें आया रते देखना फकसी सॊकट से शीघ्र भुत्क्त लभरने का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें आया रूका हुवा हदखे तो फकसी अऻात सॊकट के आनेका ऩूवा सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें आवेदन कयते देखना दयूस्थ स्थानों की मािा से राब लभरने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आश्रभ देखना व्मवसाम भें हातन होन ेका सॊकेत है।

    स्वप्न भें आइसिीभ खाते देखना शीघ्र सुख औय शाॊतत लभरने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आॊधी आते देखना सॊकटों से छुटकाया लभरने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें आॊधी से स्वमॊको धगयते देखना सपरता प्रात्प्त का सॊकेत है।

    स्वप्न भें औषधी देखना गरत सॊगतत भें पॊ सन ेका सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें इभरी खाते देखना स्िी के

    लरए शुब सॊकेत रेफकन ऩुरुष के लरए अशुब सॊकेत है।

    स्वप्न भें इष्ट प्रततभा के ोयी देखना ववलबन्न कष्ट एवॊ सॊकटो का सॊकेत है।

    स्वप्न भें इनाभ लभरते देखना अऩभातनत होने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें इि रगाते देखना भान-सम्भान की ववृद्ध एवॊ शुबपरों की प्रात्प्त का सॊकेत है।

    स्वप्न भें इभायत देखना भान-सम्भान भें ववृद्ध एवॊ धन राब लभरने का सॊकेत है।

    स्वप्न भें ईंट देखना कष्ट लभरने का सॊकेत है। स्वप्न भें फकसी इॊजन को रता देखना मािा ऩय

    जाने का एवॊ शि ुसे सतका यहने का सॊकेत हैं। स्वप्न भें इन्रधनुष देखना धन हातन औय सॊकटों की

    ववृद्ध होने का सॊकेत हैं।

    स्वप्न भें उजाड़ा स्थान देखना दयूस्थ स्थान की

    मािा होने का सॊकेत हैं। स्वप्न भें उस्तया रते देखना धन हातन मा धन की

    ोयी का सॊकेत हैं। स्वप्न भें उस्तया रते देखना मािा भें धन राब

    लभरने का सॊकेत हैं। स्वप्न भें उऩवन देखना फकसी फीभायी का सॊकेत हैं। स्वप्न भें उदघाटन का दृष्म देखना अशुब सॊकेत हैं। स्वप्न भें फकसी को उदास होते देखना शुब सभा ाय

    की प्रात्प्त का सॊकेत हैं। स्वप्न भें उधायी की रेन-देन होते देखना धन राब

    का सॊकेत हैं। स्वप्न भें स्वमॊ को उड़ते देखना फकसी गॊबीय दघुाटना

    होने का सॊकेत हैं। स्वप्न भें स्वमॊ को उछरते देखना फकसी अशुब

    सभा ाय लभरने का सॊकेत हैं। स्वप्न भें उल्�