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मथ रा मथुरा यमुना नदी के पचिमी तट पर थत है समु तल से ऊँिाई 187 मीटर है जलवायु -ीम 22° से 45° से 0, शीत 40° से 32° से 0 औसत वा66 से .मी. जून से सतंबर तक मथुरा जनपद उतर देश की पचिमी सीमा पर थत है इसके पूवा जनपद एटा, उतर जनपद अलीग, दिणपूवा जनपद आगरा, दिणपचिम राजथथान एवं पचिमउतर हररयाणा राय थत मथुरा, आगरा मडल का उतरपचिमी ला है यह Lat. 27° 41'N और Long. 77° 41'E के मय थत है मथुरा जनपद ितहसील माँट, छाता, महावन और मथुरा तथा 10 वकास खड नदगाँव, छाता, िमुहाँ , गोवान, मथुरा , रह, नौहझील, मांट, राया और बदेव जनपद का भौगोसलक िफल 3329.4 वगा .मी. है जनपद की मुख नदी यमुना है , जो उतर से दिण की ओर बहती जनपद की कु ल ितहसील मांट, मथुरा, महावन और छाता से होकर बहती है यमुना का पूवी भाग पयाात उपजाऊ है तथा पचिमी भाग अपेिाकृ त कम उपजाऊ है इस जनपद की मुख नदी यमुना है , इसकी दो सहायक नददयाँ "करवन" तथा "पथवाहा" यमुना नदी वा भर बहती है तथा जनपद की येक तहसील को छू ती बहती है यह येक वा अपना मागबदलती रहती है , जसके पररणाम थवऱप हार हैटेयर िफल बा से भाववत हो जाता है यमुना नदी के कनारे की भूसम खादर है जनपद की वायु शुध एवं थवाथयवाक है गसमाय अधक गमी और सददाय अधक सदी पना यहाँ की वशेता है वाके अलावा वा भर शे समय मौसम सामायत: शुक रहता है मई जून के महीन ते गमा पचिमी हवाय (लू ) िलती जनपद अधकांश वाजुलाई अगथत माह होती है जनपद के पचिमी भाग आजकल बा का आना सामाय हो गया है , जससे काी ि जलमन हो जाता है मथ रा संदभ शूरसेन देश की मुय नगरी मथुरा के वय आज तक कोई वैददक संके त नहीं ात हो सका है। कतु .पू. पाँिवीं शतादी से इसका अथतव सध हो िका है। अंगुतरननकाय एवं मझम. आया है बुध के एक महान सशय महाकायायन ने मथुरा अपने गुर के सधात की सशिा दी। मैगथथनी सभवत: मथुरा को जानता था और इसके साथ हरेलीज के सब से भी पररधित था। ' माथुर' शद जैसमनके पूवा मीमांसासू भी आया है। ययवप पाणणनके सू थपट ऱप से ' मथुरा' शद नहीं आया है , कतु वरणाद-गण इसका योग समलता है। कतु पाणणनको वासुदेव, अजुान , यादव के अक-वृण लोग, सभवत: गोववद भी ात थे। पतंजसल के महाभाय मथुरा शद कई बार आया है। कई थान पर वासुदेव वारा कं स के नाश का उलेख नाटकीय संके त, धि एवं गाथाओं के ऱप आया है। उतराययनसू मथुरा को सौयापुर कहा गया है , कतु महाभाय उलणखत सौया नगर मथुरा ही है , ऐसा कहना सदेहामक है। आददपवा आया है मथुरा अनत सुदर गाय के सलए उन दन सध थी। जब जरास के वीर सेनापनत हंस एवं डभक यमुना डू ब गये , और जब जरास दु :णखत होकर मग िला गया तो कृ ण कहते , ' अब हम पुन: सन होकर मथुरा रह सक गे 'अत जरास के लगातार आमण से तंग आकर कृ ण ने यादव को वारका ले जाकर बसाया। वराह पुराण [ आया है - वणु कहते इस पृधथवी या अतररि या पाताल लोक कोई ऐसा थान नहीं है जो मथुरा के समान मुझे यारा हो- मथुरा मेरा सध ि है और मुतदायक है , इससे बकर मुझे कोई अय थल नहीं लगता। पध पुराण आया है - ' माथुरक नाम वणु को अयत वय है ' हररवंश पुराण ने मथुरा का सुदर वणान कया है , एक चलोक है - ' मथुरा मय-देश का ककु द (अथाात ् अयत महवपूणा थल) है , यह लमी का नवास-थल है , या पृधथवी का ंग है। इसके समान कोई अय नहीं है और यह भूत -ाय से पूणा है।' पुराण (1454-56) आया है कृ ण की समनत से वृणय एवं अक ने काल यवन के भय से मथुरा का याग कर दया। वायु पुराण का कथन है राम के भाई शुन ने मु के पु लवण को मार डाला और मधुवन समुवधशाली नगर बनाया। घट-जातक मथुरा को उतर मथुरा कहा गया है (दिण के पाडव की नगरी भी मुरा के नाम से सध थी), वहाँ कं स एवं वासुदेव की गाथा भी आयी है जो महाभारत एवं पुराण की गाथा से सभन है। रघुवंश इसे मुरा नाम से शुन वारा थावपत कहा गया है। वेनसाँग के अनुसार मथुरा अशोकराज वारा तीन थतूप बनवाये गये थे , पाँि देवमदर थे और बीस संघाराम थे, जनम 2000 बौध रहते थे। जेस ऐलन का कथन है मथुरा के दहदू राजाओं के सके .पू . वतीय शतादी के आरभ से थम शतादी के मय भाग तक के ह। एफ् . एस ् . ाउस की पुथतक 'मथुरा' भी टय है। मथुरा के इनतहास एवं ािीनता के वय सशलालेख भी काश डालते ह। खारवेल के सध असभलेख कसलंगराज (खारवेल) की उस वजय का वणान , जसम मधुरा की ओर यवनराज दसमत का भाग जाना उलणखत है। कननक, वक एवं अय कु ाण राजाओं के सशलालेख भी पाये जाते , यथा-महाराज राजाधराज कननख का नाग-नतमा का सशलालेख; सं . 14 का थतभतल लेख; वक (सं. 33) के रायकाल का बोधसव की नतमा के आार वाला सशलालेख वासु का सशलालेख; शोडास के काल का सशलालेख एवं मथुरा तथा उसके आस-पास के सात ामी लेख। एक अय मनोरंजक सशलालेख भी है , जसम नदबल एवं मथुरा के असभनेता (शैलालक) के पु वारा नागे दधकणा के मदर दत एक थतर-खड का उलेख है। वणु पुराण से कट होता है इसके णयन के पूवा मथुरा हरकी एक नतमा नतठावपत थी। वायु पुराण ने भववयवाणी के ऱप कहा है मथुरा, याग, साके त एवं मग गुत के पूवा सात नाग राजा राय करगे। अलबऱनी के भारत आया है माह रा ामण की भी है।

Mathura : Comprehensive Detail of Holy Places and Temples (in Hindi)

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Comprehensive detail of holy places and temples of Mathura.

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Page 1: Mathura : Comprehensive Detail of Holy Places and Temples (in Hindi)

मथरा मथरा यमना नदी क पशचिमी तट पर शथथत ह । समदर तल स ऊिाई 187 मीटर ह । जलवाय-गरीषम 22° स 45° स0, शीत 40° स 32° स0

औसत वराा 66 स.मी. जन स ससतबर तक । मथरा जनपद उततर परदश की पशचिमी सीमा पर शथथत ह । इसक पवा म जनपद एटा, उततर म जनपद अलीगढ, दकषिण–पवा म जनपद आगरा, दकषिण–पशचिम म राजथथान एव पशचिम–उततर म हररयाणा राजय शथथत ह । मथरा, आगरा मणडल का उततर–पशचिमी शिला ह । यह Lat. 27° 41'N और Long. 77° 41'E क मधय शथथत ह । मथरा जनपद म िार तहसील –माट, छाता, महावन और मथरा तथा 10 ववकास खणड ह – ननदगाव, छाता, िौमहा, गोवरान, मथरा , फरह, नौहझील, माट, राया और बलदव ह । जनपद का भौगोसलक ितरफल 3329.4 वगा कक.मी. ह । जनपद की परमख नदी यमना ह , जो उततर स दकषिण की ओर बहती हई जनपद की कल

िार तहसीलो माट, मथरा, महावन और छाता म स होकर बहती ह । यमना का पवी भाग पयाापत उपजाऊ ह तथा पशचिमी भाग अपिाकत कम

उपजाऊ ह । इस जनपद की परमख नदी यमना ह, इसकी दो सहायक नददया "करवन" तथा "पथवाहा" ह । यमना नदी वरा भर बहती ह तथा जनपद की परतयक तहसील को छती हई बहती ह । यह परतयक वरा अपना मागा बदलती रहती ह , शजसक पररणाम थवरप हिारो हकटयर

ितरफल बाढ स परभाववत हो जाता ह । यमना नदी क ककनार की भसम खादर ह । जनपद की वाय शदध एव थवाथयवराक ह । गसमायो म अधरक

गमी और सददायो म अधरक सदी पडना यहा की ववशरता ह । वराा क अलावा वरा भर शर समय मौसम सामानयत: शषक रहता ह । मई व जन

क महीनो म ति गमा पशचिमी हवाय (ल) िलती ह । जनपद म अधरकाश वराा जलाई व अगथत माह म होती ह । जनपद क पशचिमी भाग म आजकल बाढ का आना सामानय हो गया ह , शजसस काफी ितर जलमगन हो जाता ह ।

मथरा सदरभ शरसन दश की मखय नगरी मथरा क ववरय म आज तक कोई वददक सकत नही परापत हो सका ह। ककनत ई.प. पािवी शताबदी स इसका अशथततव ससदध हो िका ह। अगततरननकाय एव मशजझम. म आया ह कक बदध क एक महान सशषय महाकाचयायन न मथरा म अपन गर क

ससदधानतो की सशिा दी। मगथथनीि समभवत: मथरा को जानता था और इसक साथ हरकलीज क समबनर स भी पररधित था। 'माथर' शबद

जसमनन क पवा मीमासासतर म भी आया ह। यदयवप पाणणनन क सतरो म थपषट रप स 'मथरा' शबद नही आया ह, ककनत वरणादद-गण म इसका परयोग समलता ह। ककनत पाणणनन को वासदव, अजान , यादवो क अनरक-वशषण लोग, समभवत: गोववनद भी जञात थ। पतजसल क महाभाषय म मथरा शबद कई बार आया ह। कई थथानो पर वासदव दवारा कस क नाश का उललख नाटकीय सकतो, धितरो एव गाथाओ क रप म आया ह। उततराधययनसतर म मथरा को सौयापर कहा गया ह, ककनत महाभाषय म उशललणखत सौया नगर मथरा ही ह, ऐसा कहना सनदहातमक ह। आददपवा म आया ह कक मथरा अनत सनदर गायो क सलए उन ददनो परससदध थी। जब जरासनर क वीर सनापनत हस एव डडमभक यमना म डब गय, और जब जरासनर द:णखत होकर मगर िला गया तो कषण कहत ह, 'अब हम पन: परसनन होकर मथरा म रह

सक ग'। अनत म जरासनर क लगातार आकरमणो स तग आकर कषण न यादवो को दवारका म ल जाकर बसाया।

वराह पराण[ म आया ह- ववषण कहत ह कक इस पधथवी या अनतररि या पाताल लोक म कोई ऐसा थथान नही ह जो मथरा क समान मझ

पयारा हो- मथरा मरा परससदध ितर ह और मशकतदायक ह, इसस बढकर मझ कोई अनय थथल नही लगता। पदम पराण म आया ह- 'माथरक नाम

ववषण को अतयनत वपरय ह' हररवश पराण न मथरा का सनदर वणान ककया ह, एक चलोक यो ह- 'मथरा मधय-दश का ककद (अथाात अतयनत

महततवपणा थथल) ह, यह लकषमी का ननवास-थथल ह, या पधथवी का शग ह। इसक समान कोई अनय नही ह और यह परभत रन-रानय स पणा ह।'

बरहम पराण (14।54-56) म आया ह कक कषण की सममनत स वशषणयो एव अनरको न काल यवन क भय स मथरा का तयाग कर ददया। वाय

पराण का कथन ह कक राम क भाई शतरघन न मर क पतर लवण को मार डाला और मधवन म समवदधशाली नगर बनाया। घट-जातक म मथरा को उततर मथरा कहा गया ह(दकषिण क पाणडवो की नगरी भी मररा क नाम स परससदध थी), वहा कस एव वासदव की गाथा भी आयी ह जो महाभारत एव पराणो की गाथा स सभनन ह। रघवश म इस मररा नाम स शतरघन दवारा थथावपत कहा गया ह। हवनसाग क अनसार मथरा म अशोकराज दवारा तीन थतप बनवाय गय थ, पाि दवमशनदर थ और बीस सघाराम थ, शजनम 2000 बौदध रहत थ। जमस ऐलन का कथन ह कक

मथरा क दहनद राजाओ क ससकक ई.प. दववतीय शताबदी क आरमभ स परथम शताबदी क मधय भाग तक क ह। एफ. एस. गराउस की पथतक

'मथरा' भी दषटवय ह। मथरा क इनतहास एव परािीनता क ववरय म सशलालख भी परकाश डालत ह। खारवल क परससदध असभलख म कसलगराज

(खारवल) की उस ववजय का वणान ह, शजसम मधरा की ओर यवनराज ददसमत का भाग जाना उशललणखत ह। कननषक, हववषक एव अनय कराण

राजाओ क सशलालख भी पाय जात ह, यथा-महाराज राजाधरराज कननकख का नाग-परनतमा का सशलालख; स. 14 का थतमभतल लख; हववषक

(स. 33) क राजयकाल का बोधरसतव की परनतमा क आरार वाला सशलालख वास का सशलालख; शोडास क काल का सशलालख एव मथरा तथा उसक आस-पास क सात बराहमी लख। एक अनय मनोरजक सशलालख भी ह, शजसम नशनदबल एव मथरा क असभनता (शलालक) क पतरो दवारा नागनदर दधरकणा क मशनदर म परदतत

एक परथतर-खणड का उललख ह। ववषण पराण स परकट होता ह कक इसक परणयन क पवा मथरा म हरर की एक परनतमा परनतषठावपत हई थी। वाय पराण न भववषयवाणी क रप म कहा ह कक मथरा, परयाग, साकत एव मगर म गपतो क पवा सात नाग राजा राजय करग। अलबरनी क भारत म आया ह कक माहरा म बराहमणो की भीड ह।

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उपयाकत ऐनतहाससक ववविन स परकट होता ह कक ईसा क 5 या 6 शताशबदयो पवा मथरा एक समवदधशाली परी थी, जहा महाकावय-कालीन दहनद

रमा परिसलत था, जहा आग िलकर बौदध रमा एव जन रमा का परारानय हआ, जहा पन: नागो एव गपतो म दहनद रमा जागररत हआ, सातवी शताबदी म (जब हवनसाग यहा आया था) जहा बौदध रमा एव दहनद रमा एक-समान पशजत थ और जहा पन: 11वी शताबदी म बराहमणवाद

पररानता को परापत हो गया। अशगन पराण म एक ववधितर बात यह सलखी ह कक राम की आजञा स भरत न मथरा परी म शलर क तीन कोदट पतरो को मार डाला। लगभग दो सहथतराशबदयो स अधरक काल तक मथरा कषण-पजा एव भागवत रमा का कनदर रही ह। वराह पराण म मथरा की महतता एव इसक उपतीथो क

ववरय म लगभग एक सहथतर चलोक पाय जात ह, भागवत एव ववषण पराण म कषण, रारा, मथरा, वनदावन, गोवरान एव कषणलीला क ववरय

म बहत-कछ सलखा गया ह। पदम पराण का कथन ह कक यमना जब मथरा स समल जाती ह तो मोि दती ह; यमना मथरा म पणयफल उतपनन करती ह और जब यह मथरा स

समल जाती ह तो ववषण की भशकत दती ह। वराह पराण म आया ह- ववषण कहत ह कक इस पधथवी या अनतररि या पाताल लोक म कोई ऐसा थथान नही ह जो मथरा क समान मझ पयारा हो- मथरा मरा परससदध ितर ह और मशकतदायक ह, इसस बढकर मझ कोई अनय थथल नही लगता। पदम पराण म आया ह- 'माथरक नाम ववषण को अतयनत वपरय ह' हररवश पराण न मथरा का सनदर वणान ककया ह, एक चलोक यो ह- 'मथरा मधय-दश का ककद (अथाात अतयनत महततवपणा थथल) ह, यह लकषमी का ननवास-थथल ह, या पधथवी का शग ह। इसक समान कोई अनय नही ह और यह परभत रन-रानय स पणा ह।

मथरा का पररचय

मथरा, भगवान कषण की जनमथथली और भारत की परम परािीन तथा जगद-ववखयात नगरी ह। शरसन दश की यहा राजरानी थी। पौराणणक

सादहतय म मथरा को अनक नामो स सबोधरत ककया गया ह जस- शरसन नगरी, मरपरी, मरनगरी, मररा आदद। भारतवरा का वह भाग जो दहमालय और ववधयािल क बीि म पडता ह, परािीनकाल म आयाावता कहलाता था। यहा पर पनपी हई भारतीय सथकनत को शजन राराओ न सीिा व गगा और यमना की राराए थी। इनही दोनो नददयो क ककनार भारतीय सथकनत क कई कनदर बन और ववकससत हए। वाराणसी, परयाग,

कौशामबी, हशथतनापर,कननौज आदद ककतन ही ऐस थथान ह, परनत यह तासलका तब तक पणा नही हो सकती जब तक इसम मथरा का समावश न ककया जाय। यह आगरा और ददलली स करमश: 58 कक.मी उततर-पशचिम एव 145 कक. मी दकषिण-पशचिम म यमना क ककनार राषरीय राजमागा 2 पर शथथत ह। वालमीकक रामायण म मथरा को मरपर या मरदानव का नगर कहा गया ह तथा यहा लवणासर की राजरानी बताई गई ह-इस नगरी को इस

परसग म मरदतय दवारा बसाई, बताया गया ह। लवणासर, शजसको शतरघन न यदध म हराकर मारा था इसी मरदानव का पतर था। इसस मरपरी या मथरा का रामायण-काल म बसाया जाना सधित होता ह। रामायण म इस नगरी की समवदध का वणान ह। इस नगरी को लवणासर न भी सजाया सवारा था । (दानव, दतय, रािस आदद जस सबोरन ववसभनन काल म अनक अथो म परयकत हए ह, कभी जानत या कबील क सलए,

कभी आया अनाया सदभा म तो कभी दषट परकनत क वयशकतयो क सलए)। परािीनकाल स अब तक इस नगर का अशथततव अखशणडत रप स िला आ रहा ह।

शरसन जनपद

शरसन जनपद का नकशा

शरसन जनपद क नामकरण क सबर म ववदवानो क अनक मत ह ककनत कोई भी सवामानय नही ह। शतरघन क पतर का नाम शरसन था। जब

सीताहरण क बाद सगरीव न वानरो को सीता की खोज म उततर ददशा म भजा तो शतबसल और वानरो स कहा- 'उततर म मलचछ' पसलनद,

शरसन, परथथल , भरत (इनदरपरथथ और हशथतनापर क आसपास क परानत), कर (करदश) (दकषिण कर- करितर क आसपास की भसम), मदर,

कमबोज, यवन, शको क दशो एव नगरो म भली भानत अनसनरान करक दरद दश म और दहमालय पवात पर ढढो। इसस थपषट ह कक शतरघन क

पतर स पहल ही 'शरसन' जनपद नाम अशथततव म था। हहयवशी कातावीया अजान क सौ पतरो म स एक का नाम शरसन था और उसक नाम पर

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यह शरसन राजय का नामकरण होन की समभावना भी ह, ककनत हहयवशी कातावीया अजान का मथरा स कोई सीरा सबर होना थपषट नही ह। महाभारत क समय म मथरा शरसन दश की परखयात नगरी थी। लवणासर क वरोपरात शतरघन न इस नगरी को पन: बसाया था। उनहोन

मरवन क जगलो को कटवा कर उसक थथान पर नई नगरी बसाई थी। यही कषण का जनम(शी कषण जनमथथान), यहा क अधरपनत कस क

कारागार म हआ तथा उनहोन बिपन ही म अतयािारी कस का वर करक दश को उसक असभशाप स छटकारा ददलवाया। कस की मतय क बाद

शी कषण मथरा ही म बस गए ककत जरासर क आकरमणो स बिन क सलए उनहोन मथरा छोड कर दवारका परी बसाई दशम सगा, 58 म मथरा पर कालयवन क आकरमण का वतात ह। इसन तीन करोड मलचछो को लकर मथरा को घर सलया था।

शरसन जनपद की सीमा परािीन शरसन जनपद का ववथतार दकषिण म िबल नदी स लकर उततर म वतामान मथरा नगर स 75 कक. मी. उततर म शथथत कर(करदश)

राजय की सीमा तक था। उसकी सीमा पशचिम म मतथय और पवा म पािाल जनपद स समलती थी। मथरा नगर को महाकावयो एव पराणो म 'मथरा' एव `मरपरी' नामो स सबोधरत ककया गया ह। ववदवानो न `मरपरी' की पहिान मथरा क 6 मील पशचिम म शथथत वतामान 'महोली' स

की ह। परािीन काल म यमना नदी मथरा क पास स गजरती थी, आज भी इसकी शथथनत यही ह। शपलनी न यमना को जोमनस कहा ह, जो मथोरा और कलीसोबोरा क मधय बहती थी।

पराचीन साहितय म मथरा हररवश पराण म भी मथरा क ववलास-वभव का मनोहर धितर ह।ववषण पराण म भी मथरा का उललख ह, ववषण-पराण म शतरघन दवारा परानी मथरा क थथान पर ही नई नगरी क बसाए जान का उललख ह । इस समय तक मररा नाम का रपातर मथरा परिसलत हो गया था। कासलदास न रघवश म इदमती क थवयवर क परसग म शरसनाधरपनत सरण की राजरानी मथरा म वणणात की ह। इसक साथ ही गोवरान का भी उललख ह। मशललनाथ न 'मथरा` की टीका करत हए सलखा ह`-'कासलदीतीर मथरा लवणासरवरकाल शतरघनन ननमााथयतनत वकषयनत` । परािीन गरथो-दहनद, बौदध, जन एव यनानी सादहतय म इस जनपद का शरसन नाम अनक थथानो पर समलता ह। परािीन गरथो म मथरा का मथोरा, मदरा, मत-औ-लौ, मो-त-लो तथा सौरीपर (सौयापर) नामो का भी उललख समलता ह। इन उदाहरणो स ऐसा परतीत होता ह कक शरसन

जनपद की सजञा ईसवी सन क आरमभ तक जारी रही और शक-कराणो क परभतव क साथ ही इस जनपद की सजञा राजरानी क नाम पर `मथरा' हो गई। इस पररवतान का मखय कारण था कक यह नगर शक-कराणकालीन समय म इतनी परससवदध को परापत हो िका था कक लोग जनपद क

नाम को भी मथरा नाम स पकारन लग और कालातर म जनपद का शरसन नाम जनसारारण क थमनतपटल स ववथमत हो गया।

पराणो म मथरा पराणो म मथरा क गौरवमय इनतहास का ववरद वववरण समलता ह। अनक रमो स सबधरत होन क कारण मथरा म बसन और रहन का महततव

करमश: बढता रहा। ऐसी मानयता थी कक यहा रहन स पाप रदहत हो जात ह तथा इसम रहन करन वालो को मोि की पराशपत होती ह। वराह पराण

म कहा गया ह कक इस नगरी म जो लोग शधद वविार स ननवास करत ह, व मानव क रप म सािात दवता ह। शादध कमा का ववशर फल मथरा म परापत होता ह। मथरा म शादध करन वालो क पवाजो को आधयाशतमक मशकत समलती ह। उततानपाद क पतर धरव न मथरा म तपथया कर क नितरो म थथान परापत ककया था। पराणो म मथरा की मदहमा का वणान ह। प वी क यह पछन पर कक मथरा जस तीथा की मदहमा कया ह? महावराह न कहा था- "मझ इस वसररा म पाताल अथवा अतररि स भी मथरा अधरक वपरय ह। वराह पराण म भी मथरा क सदभा म उललख समलता ह, यहा की भौगोसलक शथथनत का वणान समलता ह। यहा मथरा की माप बीस योजन बतायी गयी ह। इस मडल म मथरा, गोकल, वनदावन, गोवरान

आदद नगर, गराम एव मददर, तडाग, कणड, वन एव अनगणणत तीथो क होन का वववरण समलता ह। इनका ववथतत वणान पराणो म समलता ह। गगा क समान ही यमना क गौरवमय महततव का भी ववशद वववरण ककया गया ह। पराणो म वणणात राजाओ क शासन एव उनक वशो का भी वणान परापत होता ह। बरहम पराण म वशषणयो एव अरको क थथान मथरा पर, रािसो क आकरमण का भी वववरण समलता ह। वशषणयो एव अरको न डर कर मथरा को छोड ददया था और उनहोन अपनी राजरानी दवारावती (दवाररका) म परनतशषठत की थी। मगर नरश जरासर न 23 अिौदहणी सना स इस नगरी को घर सलया था। अपन महापरथथान क समय यधरषठर न मथरा क ससहासन पर वजरनाभ को आसीन ककया। सात नाग-नरश गपतवश क

उतकरा क पवा यहा पर राजय कर रह थ। उगरसन और कस मथरा क शासक थ शजस पर अरको क उततराधरकारी राजय करत थ।कालानतर म शतरघन क पतरो को मथरा स सातवत भीम

न ननकाला तथा उसन तथा उसक पतरो न यहा पर राजय ककया। शरसन न जो शतरघन का पतर था, उसन यमना क पशचिम म बस हए सातवत

यादवो पर आकरमण ककया और वहा क शासक मारव लवण का वर करक मथरा नगरी को अपनी राजरानी घोवरत ककया। मथरा की थथापना शावण महीन म होन क कारण ही सभवत: इस माह म उतसव आदद करन की परपरा ह। परातन काल म ही यह नगरी इतनी वभवशाली थी कक

मथरा नगरी को दवननसमाता कहा जान लगा था। मथरा क महाभारत काल क राजवश को यद अथवा यदवशीय कहा जाता ह। यादव वश म मखयत: दो वश ह। शजनह-वीनतहोतर एव सातवत क नाम स जाना जाता ह। सातवत वगा भी कई शाखाओ म बटा हआ था। शजनम वशषण, अरक,

दवावदध तथा महाभोज परमख थ। यद और यद वश का परमाण ॠगवद म भी समलता ह। इस वश का सबर तवाश, दरह, अन एव पर स था।स जञात

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होता ह कक यद तवाश ककसी दरथथ परदश स यहा आए थ। वददक सादहतय म सातवतो का भी नाम आता ह। शतपथ बराहमण म आता ह कक एक

बार भरतवशी शासको न सातवतो स उनक यजञ का घोडा छीन सलया था। भरतवशी शासको दवारा सरथवती, यमना और गगा क तट पर यजञ

ककए जान क वणान स राजय की भौगोसलक शथथनत का जञान हो जाता ह। सातवतो का राजय भी समीपवती ितरो म ही रहा होगा। इस परकार महाभारत एव पराणो म वणणात सातवतो का मथरा स सबर थपषटतया जञात हो जाता ह।

मथरा मणडल

मथरा का मणडल 20 योजनो तक ववथतत था और इसम मथरा परी बीि म शथथत थी। वराह पराण एव नारदीय पराण(उततरारा, अधयाय 79-

80) न मथरा एव इसक आसपास क तीथो का उललख ककया ह। वराह पराण एव नारदीय पराण न मथरा क पास क 12 वनो की ििाा की ह,

यथा- मरवन, तालवन, कमदवन, कामयवन, बहलावन, भदरवन, खददरवन, महावन, लौहजघवन, बबलव, भाडीरवन एव वनदावन। 24 उपवन

भी थ शजनह पराणो न नही, परतयत पचिातकालीन गरनथो न वणणात ककया ह। वनदावन यमना क ककनार मथरा क उततर-पशचिम म था और ववथतार म पाि योजन था (ववषण पराण 5।6।28-40, नारदीय पराण, उततरारा 80।6,8 एव 77)। यही कषण की लीला-भसम थी। पदम पराण (4।69।9) न इस प वी पर वकणठ माना ह। मतथय. (13।38) न रारा को वनदावन म दवी दािायणी माना ह। कासलदास क काल म यह परससदध था। रघवश (6) म नीप कल क एव शरसन क राजा सरण का वणान करत हए कहा गया ह कक वनदावन कबर की वादटका धितररथ स ककसी परकार सनदरता म कम नही ह। इसक उपरानत गोवरान की महतता ह, शजस कषण न अपनी कननषठा अगली पर इनदर दवारा भजी गयी वराा स गोप-गोवपयो एव उनक पशओ को बिान क सलए उठाया था। वराहपराण (164।1) म आया ह कक गोवरान मथरा स पशचिम लगभग दो योजन ह। यह कछ सीमा तक ठीक ह, कयोकक आजकल वनदावन स

यह 18 मील ह। कमा पराण (1।14।18) का कथन ह कक परािीन राजा पथ न यहा तप ककया था। हररवश एव पराणो की ििााए कभी-कभी ऊटपटाग एव एक-दसर क ववरोर म पड जाती ह। उदाहरणाथा, हररवश (ववषणपवा 13।3) म तालवन गोवरान स उततर यमना पर कहा गया ह,

ककनत वाथतव म यह गोवरान स दकषिण-पवा म ह। कासलदास (रघवश 6।51) न गोवरान की गफाओ (या गहाओ कनदराओ) का उललख ककया ह। गोकल बरज या महावन ह जहा कषण बिपन म ननद-गोप दवारा पासलत-पोवरत हए थ। कस क भय स ननद-गोप गोकल स वनदावन िल

आय थ। ितनय महापरभ वनदावन आय थ। 16वी शताबदी म वनदावन क गोथवासमयो, ववशरत: सनातन, रप एव जीव क गरनथो क कारण

वनदावन ितनय-भशकत-समपरदाय का कनदर था। ितनय क समकालीन वललभािाया एक दसर स वनदावन म समल थ। मथरा क परािीन मशनदरो को औरगजब न बनारस क मशनदरो की भानत नषट-भरषट कर ददया था। सभापवा (319।23-24) म ऐसा आया ह कक जरासघ न धगररवरज (मगर की परािीन राजरानी, राजधगर) स अपनी गदा फ की और वह 99 योजन

की दरी पर कषण क समि मथरा म धगरी, जहा वह धगरी वह थथान 'गदावसान' क नाम स ववशत हआ। वह नाम कही और नही समलता। गराउस न मथरा नामक पथतक म वनदावन क मशनदरो एव गोवरान, बरसाना, रारा क जनम-थथान एव ननदगाव का उललख ककया ह। मथरा एव उसक आसपास क तीथा-थथलो का डबल. एस. कन कत 'धितरमय भारत' म भी वणान ह।

ससकतत

यहा क वन–उपवन, कनज–ननकनज, शी यमना व धगररराज अतयनत मोहक ह । पकषियो का मरर थवर एकाकी थथली को मादक एव मनोहर

बनाता ह । मोरो की बहतायत तथा उनकी वपऊ–वपऊ की आवाज स वातावरण गनजायमान रहता ह । बालयकाल स ही भगवान शीकषण की सनदर मोर क परनत ववशर कपा तथा उसक पखो को शीर मकट क रप म रारण करन स थकनद वाहन थवरप मोर को भशकत सादहतय म महततवपणा थथान समला ह । सरकार न मोर को राषरीय पिी घोवरत कर इस सरिण ददया ह ।

वराह पराण एव नारदीय पराण न मथरा क पास क 12 वनो की ििाा की ह, यथा- मरवन, तालवन, कमदवन, कामयवन, बहलावन,

भदरवन, खददरवन, महावन, लौहजघवन, बबलव, भाडीरवन एव वनदावन। 24 उपवन भी थ शजनह पराणो न नही, परतयत पचिातकालीन गरनथो न वणणात ककया ह।

बरज की महतता पररणातमक, भावनातमक व रिनातमक ह तथा सादहतय और कलाओ क ववकास क सलए यह उपयकत थथली ह । सगीत, नतय

एव असभनय बरज सथकनत क पराण बन ह । बरजभसम अनकानक मठो, मनतायो, मशनदरो, महतो, महातमाओ और महामनीवरयो की मदहमा स

वनदनीय ह । यहा सभी समपरदायो की आरारना थथली ह । बरज की रज का महातमय भकतो क सलए सवोपरर ह । इसीसलए बरज िौरासी कोस म 21 ककलोमीटर की गोवरान–राराकणड, 27 ककलोमीटर की गरणगोववनद–वनदावन, 5–5कोस की मथरा–वनदावन, 15–15 ककलोमीटर की मथरा, वनदावन, 6–6 ककलोमीटर ननदगाव, बरसाना, बहलावन, भाडीरवन, 9 ककलोमीटर की गोकल, 7.5 ककलोमीटर की बलदव, 4.5–4.5

ककलोमीटर की मरवन, लोहवन, 2 ककलोमीटर की तालवन, 1.5 ककलोमीटर की कमदवन की नग पाव तथा दणडोती पररकरमा लगाकर शदधाल रनय होत ह । परतयक तयोहार, उतसव, ऋत माह एव ददन पर पररकरमा दन का बरज म ववशर परिलन ह । दश क कोन–कोन स आकर शदधाल बरज

पररकरमाओ को रासमाक कतय और अनषठान मानकर अनत शदधा भशकत क साथ करत ह । इनस नसधगाक ितना, रासमाक पररकलपना, सथकनत

क अनशीलन उननयन, मौसलक व मगलमयी पररणा परापत होती ह । आराढ तथा अधरक मास म गोवरान पवात पररकरमा हत लाखो शदधाल आत

ह । ऐसी अपार भीड म भी राषरीय एकता और सदभावना क दशान होत ह । भगवान शीकषण, बलदाऊ की लीला थथली का दशान तो शदधालओ क

सलए परमख ह ही यहा अकरर जी, उदधव जी, नारद जी, धरव जी और वजरनाथ जी की यातराय भी उललखनीय ह ।

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बरज की जीवन शली परमपरागत रप स बरजवासी साननद जीवन वयतीत करत ह । ननतय थनान, भजन, मशनदर गमन, दशान–झाकी करना, दीन–दणखयो की सहायता करना, अनतधथ सतकार, लोकोपकार क काया, पश–पकषियो क परनत परम, नाररयो का सममान व सरिा, बचिो क परनत थनह , उनह अचछी सशिा दना तथा लौककक वयवहार कशलता उनकी जीवन शली क अग बन िक ह । यहा कनया को दवी क समान पजय माना जाता ह । बरज

वननताय पनत क साथ ददन–रात काया करत हए कल की मयाादा रखकर पनत क साथ रहन म अपना जीवन साथाक मानती ह । सयकत पररवार परणाली साथ रहन, काया करन ,एक–दसर का धयान रखन, छोट–बड क परनत यथोधित सममान , यहा की समाशजक वयवथथा म पररलकषित होता ह । सतय और सयम बरज लोक जीवन क परमख अग ह । यहा काया क ससदधानत की महतता ह और जीवो म परमातमा का अश मानना ही ददवय

दशषट ह । मदहलाओ की माग म ससदर, माथ पर बबनदी, नाक म लौग या बाली, कानो म कणडल या झमकी–झाली, गल म मगल सतर, हाथो म िडी, परो म बबछआ–िटकी, महावर और पायजब या तोडडया उनकी सहाग की ननशानी मानी जाती ह । वववादहत मदहलाय अपन पनत पररवार और गह की मगल कामना हत करवा िौथ का वरत करती ह, पतरवती नाररया सतान क मगलमय जीवन हत अहोई अषटमी का वरत रखती ह । थवगाथतक

सनतया धिनह यहा सभी मागसलक अवसरो पर बनाया जाता ह और शभ अवसरो पर नाररयल का परयोग ककया जाता ह । दश क कोन–कोन स लोग यहा पवो पर एकतर होत ह । जहा ववववरता म एकता क सािात दशान होत ह । बरज म पराय: सभी मशनदरो म रथयातरा का उतसव होता ह । ितर मास म वनदावन म रगनाथ जी की सवारी ववसभनन वाहनो पर ननकलती ह । शजसम दश क कोन–कोन स आकर भकत

सशममसलत होत ह । जयषठ मास म गगा दशहरा क ददन परात: काल स ही ववसभनन अिलो स शदधाल आकर यमना म थनान करत ह । इस

अवसर पर भी ववसभनन परकार की वशभरा और सशलप क साथ राषरीय एकता क दशान होत ह , इस ददन छोट–बड सभी कलातमक ढग की रगीन

पतग उडात ह । आराढ मास म गोवरान पवात की पररकरमा हत पराय: सभी ितरो स यातरी गोवरान आत ह, शजसम आभरणो, परररानो आदद स ितर की सशलप

कला उदभावरत होती ह । शावण मास म दहनडोलो क उतसव म ववसभनन परकार स कलातमक ढग स सजजा की जाती ह । भादरपद म मशनदरो म ववशर कलातमक झाककया तथा सजावट होती ह । आशचवन माह म समपणा बरज ितर म कनयाए घर की दीवारो पर गोबर स ववसभनन परकार की कनतया बनाती ह, शजनम कौडडयो तथा रगीन िमकदार कागिो क आभरणो स अपनी साझी को कलातमक ढग स सजाकर आरती करती ह । इसी माह स मशनदरो म कागि क सािो स सख रगो की वदी का ननमााण कर उस पर अलपना बनात ह । इसको भी 'साझी' कहत ह। कानताक

मास तो शीकषण की बाल लीलाओ स पररपणा रहता ह । अिय ततीया तथा दवोतथान एकादशी को मथरा तथा वनदावन की पररकरमा लगाई

जाती ह । बसत पिमी को समपणा बरज ितर बसनती होता ह। फालगन मास म तो शजरर दखो उरर नगाडो , झाझ पर िौपाई तथा होली क

रससया की धवननया सनाई दती ह। ननदगाव तथा बरसाना की लठामार होली, दाऊजी का हरगा जगत परससदध ह।

बरज का पराचीन सगीत

बरज क परािीन सगीतजञो की परामाणणक जानकारी 16वी शताबदी क भशकतकाल स समलती ह । इस काल म अनको सगीतजञ वषणव सत हए । सगीत सशरोमणण थवामी हररदास जी, इनक गर आशरीर जी तथा उनक सशषय तानसन आदद का नाम सवाववददत ह । बजबावरा क गर भी शी हररदास जी कह जात ह, ककनत बज बावरा न अषटछाप क कवव सगीतजञ गोववनद थवामी जी स ही सगीत का अभयास ककया था । ननमबाका समपरदाय क शीभटट जी इसी काल म भकत, कवव और सगीतजञ हए । अषटछाप क महासगीतजञ कवव सरदास, ननददास, परमाननददास जी आदद भी इसी काल म परससदध कीतानकार, कवव और गायक हए, शजनक कीतान बललभकल क मशनदरो म गाय जात ह । थवामी हररदास जी न ही वथतत: बरज–सगीत क धरपद–रमार की गायकी और रास–नतय की परमपरा िलाई ।

सगीत

मथरा म सगीत का परिलन बहत पराना ह, बासरी बरज का परमख वादय यतर ह । भगवान शीकषण की बासरी को जन–जन जानता ह और इसी को लकर उनह मरलीरर और वशीरर आदद नामो स पकारा जाता ह । वतामान म भी बरज क लोकसगीत म ढोल मदग, झाझ, मजीरा, ढप,

नगाडा,पखावज, एकतारा आदद वादय यतरो का परिलन ह । 16 वी शती स मथरा म रास क वतामान रप का परारमभ हआ । यहा सबस पहल

बललभािाया जी न थवामी हरदव क सहयोग स ववशात घाट पर रास ककया । रास बरज की अनोखी दन ह, शजसम सगीत क गीत गदय तथा नतय

का ससमशण ह । बरज क सादहतय क साथकनतक एव कलातमक जीवन को रास बडी सनदरता स असभवयकत करता ह । अषटछाप क कववयो क

समय बरज म सगीत की मरररारा परवादहत हई । सरदास, ननददास, कषणदास आदद थवय गायक थ । इन कववयो न अपनी रिनाओ म ववववर

परकार क गीतो का अपार भणडार भर ददया । थवामी हररदास सगीत शाथतर क परकाणड आिाया एव गायक थ । तानसन जस परससदध सगीतजञ भी उनक सशषय थ । समराट अकबर भी थवामी जी क मरर सगीत- गीतो को सनन का लोभ सवरण न कर सका और इसक सलए भर बदलकर उनह सनन वनदावन आया करता था । मथरा, वनदावन, गोकल, गोवरान लमब समय तक सगीत क कनदर बन रह और यहा दर स सगीत कला सीखन आत रह ।

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मथरा जिल क परमख मजददर

भगवान शीकषण क जनम थथान पर महामना पडडत मदन मोहन मालवीय जी की पररणा स एक ववशाल मशनदर बना ह । यह दशी–ववदशी पयाटको क आकराण का कनदर ह । मशनदर म भगवान शीकषण का सनदर ववगरह ह । समीप ही सववरा यकत अनतधथ गरह तथा रमााथा आयवददक

धिककतसालय ह । अनतधथ गरह क ननकट ववशाल भागवत भवन ह । यहा शोर पीठ एव बाल मशनदर भी ह । इसक पीछ कशवदव जी का परािीन

मशनदर भी शथथत ह । नाम सकषिपत वववरण चचतर

कषण

जनमभसम

भगवान शी कषण की जनमभसम का ना कवल राषदरीय थतर पर महतव ह बशलक वशचवक

थतर पर मथरा जनपद भगवान शीकषण क जनमथथान स ही जाना जाता ह। आज वतामान

म महामना पडडत मदनमोहन मालवीय जी की पररणा स यह एक भवय आकराण मशनदर क

रप म थथावपत ह। पयाटन की दशषट स ववदशो स भी भगवान शीकषण क दशान क सलए यहा परनतददन आत ह

दवाररकारीश

मशनदर

मथरा नगर क राजाधरराज बािार म शथथत यह मशनदर अपन साथकनतक वभव कला एव

सौनदया क सलए अनपम ह। गवासलयर राज क कोराधयि सठ गोकल दास पारीख न इसका ननमााण 1814–15 म परारमभ कराया, शजनकी मतय पचिात इनकी समपशतत क

उततराधरकारी सठ लकषमीिनदर न मशनदर का ननमााण काया पणा कराया

राजकीय

सगरहालय

मथरा का यह ववशाल सगरहालय डमपीयर नगर, मथरा म शथथत ह। भारतीय कला को मथरा की यह ववशर दन ह । भारतीय कला क इनतहास म यही पर सवापरथम हम शासको की लखो स अककत मानवीय आकारो म बनी परनतमाए ददखलाई पडती ह

बाक बबहारी मशनदर

बाक बबहारी मददर मथरा शिल क वदावन राम म रमण रती पर शथथत ह। यह भारत क

परािीन और परससदध मददरो म स एक ह। बाक बबहारी कषण का ही एक रप ह जो इसम परदसशात ककया गया ह। कहा जाता ह कक इस मशनदर का ननमााण थवामी शी हररदास जी क

वशजो क सामदहक परयास स सवत 1921 क लगभग ककया गया

रग नाथ जी मशनदर

शी समपरदाय क सथथापक रामानजािाया क ववषण-थवरप भगवान रगनाथ या रगजी क

नाम स रग जी का मशनदर सठ लखमीिनद क भाई सठ गोववनददास और राराकषण दास

दवारा ननमााण कराया गया था। उनक महान गर सथकत क आिाया थवामी रगािाया दवारा ददय गय मदरास क रग नाथ मशनदर की शली क मानधितर क आरार पर यह बना था। इसकी बाहरी दीवार की लमबाई 773 फीट और िौडाई 440 फीट ह

गोववनद दव

मशनदर

गोववनद दव जी का मददर वदावन म शथथत वषणव सपरदाय का मददर ह। मददर का ननमााण

ई. 1590 म तथा इस बनान म 5 स 10 वरा लग। मददर की भवयता का अनमान इस उदधरण

स लगाया जा सकता ह औरगिब न शाम को टहलत हए, दकषिण-पवा म दर स ददखन वाली रौशनी क बार जब पछा तो पता िला कक यह िमक वनदावन क वभवशाली मददरो की ह

इथकॉन

मशनदर

वनदावन क आरननक मशनदरो म यह एक भवय मशनदर ह। इस अगरिो का मशनदर भी कहत

ह। कसररया वथतरो म हर रामा–हर कषणा की रन म तमाम ववदशी मदहला–परर यहा दख

जात ह। मशनदर म रारा कषण की भवय परनतमाय ह और अतयारननक सभी सववराय ह

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मदन मोहन

मशनदर

शीकषण भगवान क अनक नामो म स एक वपरय नाम मदनमोहन भी ह। इसी नाम स एक

मददर मथरा शिल क वदावन राम म ववदयमान ह। ववशालकानयक नाग क फन पर भगवान िरणाघात कर रह ह। परातनता म यह मददर गोववनद दव जी क मददर क बाद

आता ह

दानघाटी मददर

मथरा–डीग मागा पर गोवरान म यह मशनदर शथथत ह। धगरााजजी की पररकरमा हत आन वाल

लाखो शदधाल इस मशनदर म पजन करक अपनी पररकरमा परारमभ कर पणा लाभ कमात ह। बरज म इस मशनदर की बहत महतता ह। यहा अभी भी इस पार स उसपार या उसपार स इस

पार करन म टोल टकस दना पडता ह। कषणलीला क समय कषण न दानी बनकर गोवपयो स परमकलह कर नोक–झोक क साथ दानलीला की ह

मानसी गगा

गोवरान गाव क बीि म शी मानसी गगा ह। पररकरमा करन म दायी और पडती ह और पछरी स लौटन पर भी दायी और इसक दशान होत ह। मानसी गगा क पवा ददशा म- शी मखारववनद, शी लकषमीनारायण मशनदर, शी ककशोरीचयाम मशनदर, शी धगररराज मशनदर, शी मनमहापरभ जी की बठक, शी राराकषण मशनदर शथथत ह .... और पढ

कसम सरोवर

मथरा म गोवरान स लगभग 2 ककलोमीटर दर राराकणड क ननकट थथापतय कला क नमन

का एक समह जवाहर ससह दवारा अपन वपता सरजमल ( ई.1707-1763) की थमनत म बनवाया गया। कसम सरोवर गोवरान क पररकरमा मागा म शथथत एक रमणीक थथल ह जो अब सरकार क सरिण म ह

जयगरदव

मशनदर

मथरा म आगरा-ददलली राजमागा पर शथथत जय गरदव आशम की लगभग डढ सौ एकड

भसम पर सत बाबा जय गरदव की एक अलग ही दननया बसी हई ह। उनक दश ववदश म 20

करोड स भी अधरक अनयायी ह। उनक अनयानययो म अनपढ ककसान स लकर परबदध वगा तक क लोग ह

रारा रानी मददर

इस मददर को बरसान की लाडली जी का मददर भी कहा जाता ह। रारा का यह परािीन मददर मधयकालीन ह जो लाल और पील पतथर का बना ह। रारा-कषण को समवपात इस भवय और सनदर मददर का ननमााण राजा वीर ससह न 1675 म करवाया था। बाद म थथानीय लोगो दवारा पतथरो को इस मददर म लगवाया।

ननद जी मददर

ननद जी का मददर, ननदगाव म शथथत ह। ननदगाव बरजमडल का परससदध तीथा ह। गोवरान

स 16 मील पशचिम उततर कोण म, कोसी स 8 मील दकषिण म तथा वनदावन स 28 मील

पशचिम म ननदगाव शथथत ह। ननदगाव की परदकषिणा (पररकरमा) िार मील की ह। यहा पर कषण लीलाओ स समबशनरत 56 कणड ह। शजनक दशान म 3–4 ददन लग जात ह

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कषण जदमरमम

कषण जदमरमम, मथरा

भगवान शी कषण की जनमभसम का ना कवल राषदरीय थतर पर महतव ह बशलक वशचवक थतर पर जनपद मथरा भगवान शीकषण क जनमथथान

स ही जाना जाता ह। आज वतामान म महामना पडडत मदनमोहन मालवीय जी की पररणा स यह एक भवय आकराण मशनदर क रप म थथावपत

ह। पयाटन की दशषट स ववदशो स भी भगवान शीकषण क दशान क सलए यहा परनतददन आत ह। भगवान शीकषण को ववचव म बहत बडी सखया म नागररक आराधय क रप म मानत हए दशानाथा आत ह।

रगवान कशवदव का मजददर, शरीकषण जदमरमम

भगवान शीकषण न अपनी इहलौककक लीला सवरण की। उरर यधरषठर महाराज न परीकषित को हशथतनापर का राजय सौपकर शीकषण क

परपौतर वजरनाभ को मथरा मडल क राजय ससहासन पर परनतशषठत ककया। िारो भाइयो सदहत यधरशषठर थवय महापरथथान कर गय। महाराज

वजरनाभ न महाराज परीकषित और महवरा शाडडलय क सहयोग स मथरा मडल की पन: थथापना करक उसकी साथकनतक छवव का पनरदवार

ककया। वजरनाभ दवारा जहा अनक मशनदरो का ननमााण कराया गया, बही भगवान शीकषणिनदर की जनमथथली का भी महतव थथावपत ककया। यह कस का कारागार था, जहा वासदव न भादरपद कषण अषटमी की आरी रात अवतार गरहण ककया था। आज यह कटरा कशवदव नाम स

परससदव ह। यह कारागार कशवदव क मशनदर क रप म पररणत हआ। इसी क आसपास मथरा परी सशोसभत हई। यहा कालकरम म अनकानक

गगनिमबी भवय मशनदरो का ननमााण हआ। इनम स कछ तो समय क साथ नषट हो गय और कछ को ववरसमायो न नषट कर ददया ।

राधा-कषण, कषण जदमरमम, मथरा पोतरा कणड, मथरा परथम मजददर ईसवी सन स पवावती 80-57 क महाितरप सौदास क समय क एक सशला लख स जञात होता ह कक ककसी वस नामक वयशकत न शीकषण

जनमथथान पर एक मददर तोरण दवार और वददका का ननमााण कराया था। यह सशलालख बराहमी सलवप म ह। दववतीय मजददर दसरा मशनदर ववकरमाददतय क काल म सन 800 ई॰ क लगभग बनवाया गया था। सथकनत और कला की दशषट स उस समय मथरा नगरी बड

उतकरा पर थी। दहनद रमा क साथ बौदध और जन रमा भी उनननत पर थ। शीकषण जनमथथान क समीप ही जननयो और बौदधो क ववहार और

मशनदर बन थ। यह मशनदर सन 1017-18 ई॰ म महमद गिनवी क कोप का भाजन बना। इस भवय साथकनतक नगरी की सरिा की कोई उधित

वयवथथा न होन स महमद न इस खब लटा। भगवान कशवदव का मशनदर भी तोड डाला गया। ततीय मजददर सथकत क एक सशला लख स जञात होता ह कक महाराजा ववजयपाल दव जब मथरा क शासक थ, तब सन 1150 ई॰ म जजज नामक ककसी वयशकत न शीकषण जनमथथान पर एक नया मशनदर बनवाया था। यह ववशाल एव भवय बताया जाता ह। इस भी 16 वी शताबदी क आरमभ म ससकनदर लोदी क शासन काल म नषट कर डाला गया था। चतथभ मजददर जहागीर क शासन काल म शीकषण जनमथथान पर पन: एक नया ववशाल मशनदर ननमााण कराया ओरछा क शासक राजा वीरससह ज दव

बनदला न इसकी ऊिाई 250 फीट रखी गई थी। यह आगरा स ददखाई दता बताया जाता ह। उस समय इस ननमााण की लागत 33 लाख रपय

आई थी। इस मशनदर क िारो ओर एक ऊिी दीवार का परकोटा बनवाया गया था, शजसक अवशर अब तक ववदयमान ह। दकषिण पशचिम क एक

कोन म कआ भी बनवाया गया था इस का पानी 60 फीट ऊिा उठाकर मशनदर क परागण म फबबार िलान क काम आता था। यह कआ और

उसका बजा आज तक ववदयमान ह। सन 1669 ई॰ म पन: यह मशनदर नषट कर ददया गया और इसकी भवन सामगरी स ईदगाह बनवा दी गई जो

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आज ववदयमान ह। जनमथथान की ऐनतहाससक झाकी वपछल पषठो म दी जा िकी ह। यहा वतामान मशनदर क ननमााण का इनतहास दना आवचयक ह।

जदमसथान का पनरदवार सन 1940 क आसपास की बात ह कक महामना पशणडत मदनमोहन जी का भशकत-ववभोर हदय उपकषित शीकषण जनमथथान क खणडहरो को दखकर दरववत हो उठा। उनहोन इसक पनरदवार का सकलप सलया। उसी समय सन 1943 क लगभग ही थवगीय शी जगलककशोर जी बबडला मथरा परार और शीकषण जनम थथान की ऐनतहाससक वनदनीय भसम क दशानाथा गय। वहा पहिकर उनहोन जो दचय दखा उसस उनका हदय

उतयनत द:णखत हआ। महामना पशणडत मदनमोहन जी मालवीय न इरर शी जगलककशोर जी बबडला को शीकषण-जनमथथान की ददाशा क

समबनर म पतर सलखा और उरर शीबबडला जी न उनको अपन हदय की वयथा सलख भजी। उसी क फलथवरप शी कषण जनमथथान क

पनरदवार क मनोरथ का उदय हआ। इसक फलथवरप रमापराण शी जगल ककशोर जी बबडला न ता07 फरवरी 1944 को कटरा कशव दव को राजा पटनीमल क ततकालीन उततराधरकाररयो स खदीद सलया, परनत मालवीय जी न पनरदधार की योजना बनाई थी वह उनक जीवनकाल म परी न हो सकी। उनकी अशनतम इचछा क अनसार शी बबडला जी न ता0 21 फरवरी 1951 को शीकषण जनमभसम रषट क नाम स एक रषट

थथावपत ककया। जनमभसम रथट की थथापना 1951 म हई थी परनत उस समय मसलमानो की ओर स 1945 म ककया हआ एक मकदमा इलाहाबाद हाईकोटा म ननणायारीन था इससलए रथट दवारा जनमथथान पर कोई काया 7 जनवरी 1953 स पहल-जब मकदकमा खाररज हो गया-न ककया जा सका। उपकषित अवथथा म पड रहन क कारण उसकी दशा अतयनत दयनीय थी। कटरा क परब की ओर का भाग सन 1885 क लगभग तोडकर

बनदावन रलव लाइन ननकाली जा िकी थी। बाकी तीन ओर क परकोटा की दीवार और उसस लगी हई कोठररया जगह-जगह धगर गयी थी और उनका मलबा सब ओर फला पडा था। कषण िबतरा का खणडहर भी ववधवस ककय हए मशनदर की महानता क दयोतक क रप म खडा था। िबतरा परब-पशचिम लमबाई म 170 फीट और उततर-दशकखन िौडाई म 66 फीट ह। इसक तीनो ओर 16-16 फीट िौडा पचता था शजस

ससकनदर लोदी स पहल कसी की सीर म राजा वीरससह दव न बढाकर पररकरमा पथ का काम दन क सलय बनवाया था। यह पचता भी खणडहर हो िका था। इसस करीब दस फीट नीिी गपत कालीन मशनदर की कसी ह शजसक ककनारो पर पानी स अककत पतथर लग हए ह। उततर की ओर एक बहत बडा गढडा था जो पोखर क रप म था। समथत भसम का दरपयोग होता था, मशथजद क आस-पास घोससयो की बसावट

थी जो कक आरमभ स ही ववरोर करत रह ह। अदालत दीवानी, फौजदारी, माल, कथटोडडयन व हाईकोटा सभी नयायालयो म एव नगरपासलका म उनक िलाय हए मकदमो म अपन सतव एव अधरकारो की पशषट व रिा क सलए बहत कछ वयय व पररशम करना पडा। सभी मकदमो क ननणाय

जनमभसम-रथट क पि म हए। मथरा क परससदध वदपाठी बराहमणो दवारा हवन-पजन क पचिात शी थवामी अखडाननद जी महाराज न सवापरथम शमदान का शीगणश ककया और भसम की थवचछता का पनीत काया आरमभ हआ। दो वरा तक नगर क कछ थथानीय यवको न अतयनत परम और उतसाह स शमदान दवारा उततर ओर क ऊि-ऊि टीलो को खोदकर बड गडड को भर ददया और बहत सी भसम समतल कर दी। कछ ववदयालयो क छातरो न भी सहयोग

ददया। इनही ददनो उततर ओर की परािीर की टटी हई दीवार भी शी डालसमया जी क दस हिार रपय क सहयोग स बनवा दी गयी। भसम क कछ

भाग क थवचछ और समतल हो जान पर भगवान कषण क दशान एव पजन-अिान क सलए एक सनदर मशनदर का ननमााण डालसमया-जन रथट

क दान स सठ शीरामकषण जी डालसमया की थवगीया पजया माताजी की पणयथमनत म ककया गया। मशनदर म भगवान क बल-ववगरह की थथापना, शजसको शी जगल ककशोर बबडला जी न भट ककया था, आराढ शकला दववतीय समवत 2014 ता0 29 जन सन 1957 को हई, और इसका उद-घाटन भादरपद कषण 8 समवत 2015 ता0 6 ससतबर सन 1958 को 'कलयाण' (गीता परस) क यशथवी समपादक सतपरवर शीहनमान

परसाद पोददार क कर-कमलो दवारा हआ। यह मशनदर शीकशव दव मशनदर क नाम स परखयात ह।

शरीकषण-चबतर का जीणोदधार

कटरा कशवदव-शथथत शीकषण-िबतरा ही भगवान शीकषण की ददवय पराकय-थथली कहा जाता ह। मथरा-मयशजयम क कयरटर डा॰ वासदवशरण जी अगरवाल न अपन लख म ऐनतहाससक तय दकर इस असभमत को ससदध ककया ह। इसस ससदध होता ह कक मथरा क राजा कस क

शजस कारागार म वसदव-दवकीननदन शीकषण न जनम-गरहण ककया था, वह कारागार आज कटरा कशवदव क नाम स ही ववखयात ह और 'इस

कटरा कशवदव क मधय म शथथत िबतर क थथान पर ही कस का वह बनदीगह था, जहा अपनी बहन दवकी और अपन बहनोई वसदव को कस

न कद कर रखा था।' शीमदभागवत म इस थथल पर शीकषण-जनम क समय का वणान इस परकार ह-

वपतरो: समपचयतो सदयो बभव पराकत: सशश:॥

ततचि शौररभागवतपरिोददत: सत समादाय स सतकागहात। यदा बदहगानतसमयर तहया जा या योगमायाजनन ननद जायया॥

तया हतपरतययसवावशततर दवा:थथर पौरषववप शानयतषवथ। दवारथत सवाा: वपदहता दरतयया बहतकपाटायसकीलशखल: ॥

ता: कषणवाह वसदव आगत थवय वयवयानत यथा तमो रव:

(10।3।46-49)

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अथाात 'वपता-माता' क दखत-दखत उनहोन तरनत एक सारारण सशश का रप रारण कर सलया। तब वासदव जी न भगवान की पररणा स अपन

पतर को लकर सनतका-गह स बाहर ननकलन की इचछा की। उसी समय ननद-पतनी यशोदा क गभा स उस योगमाया का जनम हआ, जो भगवान

की शशकत होन क कारण उनक समान ही जनमरदहत ह। उसी योगमाया न दवारपाल और परवाससयो की समथत इशनदरयवशततयो की ितना हर

ली। व सबक सब अित होकर सो गय। बदीगह क सभी दरवाज बनद थ। उनम बड-बड ककवाड, लोह की जजीर और तोल जड हय थ। उनक

बाहर जाना बहत कदठन था; परनत वसदव जी भगवान शीकषण को गोद म लकर जयो-ही उनक ननकट पहि, तयो-ही व सभी दरवाज आपस-

आप खल गय। ठीक वस ही, जस सयोदय होत ही अनरकार दर हो जाता ह। शीवजरनाभ न अपन परवपतामह की इसी जनमथथली पर उनका परथम थमनत-मशनदर बनवाया था और इसी थथल पर उसक पचिात क मशनदरो क गभा-गह (जहा भगवान का अिााववगरह ववराजमान ककया जाता ह, उसको 'गभा-गह कहत ह।) भी ननसमात होत रह। परातन कला-कनतयो म मखय मशनदर की पादपीदठका (शपलथ) अषठपरहरी (अठपहल) हआ करती थी, शजस ऊिी कसी दकर बनाया जाता था। इसीसलय अनक मशनदरो क धवसावशर और ननमााण क कारण यह थथान 'शीकषण-ितवर' (िबतरा) नाम ल परखयात हआ। इस थथान पर ही शी ओरछा-नरश दवारा ननसमात मशनदर का गभा-गह रहा, जो औरगिब दवारा धवथत मशनदर क मलव म दब गया। उस मशनदर क पवा ददशावाल ववशाल जगमोहन

(दशाक-गह) क थथान पर तो औरगजब न एक ईदगाह खडी कर दी और पशचिम म गभा-गह अथाात समपणा शीकषण-िबतरा बिा रहा। शी कशवदव जी का परािीन ववगरह बरज क अनय ववगरहो की भानत आज भी सरकषित और पशजत ह। औरगजब क शासनकाल म मसलमानी फौज मशनदरो को धवथत करन क सलए जब कि ककया करती थी, तब गपत रप स दहनदओ को यह सिना समल जाती थी कक मशनदर तोडन क सलए

सना आ रही ह। यह सिना समलत ही ननषठावान भकतजन मशनदर-शथथत ववगरहो को दहनद राजय एव रजवाडो म ल जात थ। इसी कारण शी गोववनददव जी का शी ववगरह जयपर म, शी नाथ जी का शी ववगरह नाथदवारा (उदयपर) म एव री मदनमोहन जी का शी ववगरह करौली म आज

भी ववराजमान ह। शीकषण-िबतर पर ओरछा नरश वाल शी ववगरह क समबनर म थवगीय बाबा कषणदास दवारा परकासशत 'बरजमणडल-दशान' म उललख ह कक— 'जहागीर बादशाह क समय 1610 साल म ओरछा क राजा वीरससहदव न 33 लाख रपया लगाकर आददकशव का मशनदर

बनवाया था, जो कक 1669 साल म औरगजब क दवारा धवथत होकर मसशजद क रप म बन गया।' शजस मशनदर म आददकशव ववराजमान ह, वह मशनदर 1850 ई॰ म गवासलयर क कामदार क दवारा ननसमात हआ ह। परािीन ववगरह अदयावप

राजरान गराम (शिला कानपर म औरया, इटावा स 17 मील) पर शथथत ह। वही पास म 2 मील पर बरौली गराम म शी हररदव जी ववराजत ह। परािीन कशव-मशनदर क थथान को 'कशव कटरा' कहत ह। ईदगाह क तीन ओर की ववशाल दीवार धवथत मशनदर क पाराण-खणडो स बनी हई ह, जो धवस ककय गय परािीन मशनदर की ववशालता का मक सदश द रही ह। उपकषित रहन क कारण तीन शताशबदयो स भी अधरक समय तक यह

थथान समटटी-मलव क टीलो म दब गया। उसी मलव क नीि स, जहा भगवान का अिाा-ववगरह ववराजमान ककया जाता था, वह गभा-गह परापत

हआ। उततरोततर शीकषण-िबतर का ववकास होता िला आ रहा ह। शी कशवदव-मशनदर क उपरानत शीकषण-िबतर क जीणोदधार का काया सपरससदध इडडयन एकसपरस समािार-पतर-समह-सिालक शी रामनाथ जी गोयनका क उदार दान स उनकी रमापतनी थवगीय शीमती मगीबाई

गोयनका की थमनत म सवत 2019 म ककया गया। गभा-गह की छत क ऊपर सगमरमर की एक छतरी और एक बरामदा बनवाया गया। गभा-गह

की छत क फशा पर भी समपणा सगमरमर जडवाया गया। बड िमतकार की बात ह कक िबतर क ऊपर बरामद की दीवार म लगी सगमरमर की सशलाओ पर शीकषण की ववसभनन मदराओ म आकनतया उभर आयी ह, शजनह दखकर दशाकगण ववभोर हो जात ह। शरद पणणामा की पणा िनदर-

ननशा म इस िबतर का दर-जसा रवल-सौनदया दखत ही बनता ह।

पराचीन गरभ-गरि की पराजपत

शजस समय िबतर पर ननसमात बरामद की नीव की खदाई हो रही थी, उस समय शसमको को हथौड स िोट मारन पर नीि कछ पोली जगह

ददखाई दी। उस जब तोडा गया तो सीदढया और नीि काफी बडा कमरा-सा समला, जो ओरछा-नरश-ननसमात मशनदर का गभा-गह था। उसम शजस

थथान पर मनता ववराजती थी, वह लाल पतथर का ससहासन जयो-का-तयो समला। उस यथावत रखा गया ह तथा गभा-गह की जजाररत दीवारो की कवल मरममत कर दी गयी ह। ऊपर िबतर पर स नीि गभा-गह म दशानाधथायो क आन क सलय सीदढया बना दी गयी ह। गभा-गह क ससहासन

क ऊपर दशाको क सलय वसदव-दवकी सदहत शीकषण-जनम की झाककया धिबतरत की गयी ह। नीि लाल पतथर क परान ससहासन पर जहा पहल

कोई परनतमा रही होगी, शीकषण की एक परनतमा भकतो न ववराजमान कर दी ह। पवा की दीवार म एक दरवाज का धिहन था, जो ईदगाह क नीि को जाता था। आग काफी अररा था। उसक मख को पतथर स बनद करवा ददया गया। कि क फशा पर भी पतथर लग हए ह। उततर की ओर

सीदढया ह यह थथान अनत परािीन ह। वदी पर भकतजन शदधा पवाक माथा टककर रनय होत ह। दकषिण की ओर बाहर ननकलन क सलय एक

दरवाजा ननकाल ददया गया। िबतर क तीनो ओर जो पचता क खडहर थ, बडी कदठनाइयो स तोड गय। उनको तोडकर नीि की कसी थवचछ बना दी गयी और उस पर माबरल

धिपस फशा बना ददया गया ह। इस कसी स दो फीट ननिाई पर ढाल और ऊिी-नीिी दोनो ओर की जो भसम थी, उसको समतल करक उसम बादटका लगा दी गयी। इस भसम की खदाइर म अनक अवशर ननकल ह, जो ववधवस ककय हए मशनदरो क ह और परातततव की दशषट स बड

महततव क ह। इन सबको सरिा की दशषट स मथरा राजकीय सगरहालय को द ददया गया ह।

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रागवत-रवन

सन 1965 म सशलानयास होन क उपरानत-भवन की नीव की खदाई का काया परारमभ हो गया था। आरमभ म वाराणसी क शीरामिररतमानस-

मशनदर क अनसार भागवत-भवन-ननमााण की योजना भी 14-15 लाख रपयो की थी, लककन बाद म पराना मशनदर जो आगरा स भी ददखलाई

पडता था, उसकी ऊिाई क अनसार सशखर की ऊिाई 250 फीट रखी गयी, शजसक सलए सब समलकर 24-25 लाख रपय क खिा का अनमान

लगाया गया। अनक कारणो स, शजनम योजना की ववशालता एव बीि-बीि म आन वाली कदठनाइया शासमल ह, 1981 का वरा बीतत-बीतत

शीकषण-जनमथथान पर अकल डालसमया-पररवार एव उनस समबशनरत रथटो, वयापाररक सथथानो तथा अनयाय परसमयो की सवा रासश

भागवत-भवन और जनमथथान क अनय ववकास-कायो पर सब समलाकर एक करोड रपयो स ऊपर पहि गयी। शीकषण–जनमथथान क ववकास

क सलय उदारमना महानभावो की एक हिार रपय या इसस अधरक की सवा-रासशयो का वववरण भी भागवत-भवन क वववरण क अनत म जनमभसम थमाररका म ददया गया। जसा कक ऊपर उललख ककया जा िका ह, इस भवन की नीव वाराणसी क रामिररतमानस-मशनदर क अनसार बन िकी थी। जब नीव क ऊपर

दीवारो का भसम की सतह स 7-8 फीट ऊिाई तक ननमााण हो गया, उस समय 250 फट ऊिाई तक सशखर ल जान का ननणाय हआ। ऊि सशखर क ननणाय क साथ भागवत-भवन की जो कसी 7-8 फीट ऊिी रखनी थी, उसको 30-35 फीट ऊि ल जान का ननमााण िलता रहा। उस समय

ककसी को भी यह खयाल नही आया कक इसक ऊपर बनन बाल 250 फट ऊि सशखर का भार वहन करन योगय नीव ह या नही। लगभग 30 फीट

की ऊिाई तक ननमााण का काया पहिन पर ववशाल दीवारो म जब कछ दरार पडन लगी, उस समय ननमााणकततााओ को धिनता हई। तब तक

ननमााण-काया 36 फीट स भी ऊपर पहि िका था। नीव की इस कमिोरी ओर सबस पहल ससववल इजीननयर न धयान आकवरात करवाया, जो िणडीगढ म परशकटस करत थ तथा शजनहोन करािी एव सवाई मारोपर क डालसमया जी क सीमट कारखानो का ननमााण करवाया था। ततपचिात

इस सदह की पशषट उडीसा सीमट क शी पी0सी0 िटजी न भी की। उसक बाद रडकी इजीननयररग यननवससाटी क शी शमशरपरकाश एव शी गोपालरजन दवारा इसकी जाि करवायी गयी, शजसकी ररपोटा उनहोन फरवरी, 1974 म दी। इसक बाद इस पर जन-जलाई, सन 1974 म मदरास

क परससदध शी जी0एस0 रामथवामी स जब सलाह ली गयी, तब यही ननणाय हआ कक नीव क ऊपर विन घटाना िादहय और उसक सलए सशखर को हलका बनाया गया एव ऊिाई भी घटाकर लगभग 130 फीट कर दी गयी। तब स डडजाइननग का सारा काम शी पी0सी0 िटजी को सौपा गया, शजनहोन बडी लगन क साथ काम ककया और व नकश इतन साफ और वववरण क साथ भजत थ कक काम करन वाल को सरलता रह। इस परकार क थपषट नकश कोई भी आकका टकट अथवा ससववल इजीननयर नही दत। आवचयकतानसार व कई बार मथरा आकर भी काम की परगनत दखत

रह। जनमथथान की सवा म उनहोन मशनदर ननमााण की एव भगवान क परनत अपनी शदधा क कारण ही इतना पररशम ककया। इनकी रमापतनी बहत बीमार हो गयी, तब भी बबना ववशाम क य काम करत रह। ननमााण क समय आयी इन सब रकावटो क कारण 2-3 वरा ननमााण थथधगत

रहा। बीि-बीि म सीमट क अभाव स भी काम रकता रहा। इस परकार भागवत-भवन क ननमााण म सशलानयास स लकर मनता-परनतषठा तक

लगभग 17 वरा लग गय।

शरीमदभागवत का तामरपतनीकरण

पवा योजना थी कक भागवत-भवन की दीवारो पर शीमदभागवत क समपणा चलोको को सगमरमर की सशलाओ पर उतकीणा करवाकर जडवाया जाय। इसक सलए मशनदर क सामन क जगमोहन को पयाापत बडा बनवाया गया, परनत परकाश क सलए णखडककया आदद छोडन क कारण जगह

कम पडन लगी अत: यह ननणाय हआ कक शीमदभागवत क समपणा चलोको को तामर-पतरो पर उतकीणा करवाकर लगवाया जाय, शजसस कक उनकी आय अधरक रह। कदाधित ककसी भी कारण स ववधवस हो तो मकरान क पतथर क लखो स तामर पतर क लख कही अधरक दटकाऊ होग और

कागजो क गरनथ भी नषट हो जाय तो भी तामर पतर पर सलख गरनथ स शीमदभागवत गरनथ का पनरदधार सरलता स हो सकता ह। ताजमहल क

सगमरमर म भी दान (गरस) उभरन लग ह-ऐसा ववशरजञो का मत ह मथरा म बनी ररफाइनरी की गस स ताजमहल की कलाकनत क नषट होन की समभावना पर भी समािार-पतरो म अनक लोगो न सरकार का धयान आकवरात ककया था। तामरपतर पर मौसम का कवल इतना ही परभाव

पडता ह कक ऊपर परत मली हो जाती ह, जो समय-समय पर िमकायी जा सकती ह। अतएव तामरपतरो पर शीमदभागवत का मल-पाठ अधरक

काल तक सरकषित रह पान क कारण शीमदभागवत को तामरपतरो पर उतकीणा करवाकर भागवत भवन म लगवाया गया। कालानतर म भकमप

इतयादद अथवा जीणा-शीणाता की अवथथा म इमारत क ढह जान स मलब म दब रहन पर भी इन तामरपतरो पर उतकीणा शीमदभागवत का मल-पाठ

हिारो वरो तक सरकषित रह पायगा, जबकक मकरान क सगमरमर पर शीमदभागवत को खदवान स ऐसा समभव नही था। शीमदभागवत का तामरपतरो पर उतखनन काया शी वयास ननदन शमाा की दखरख म गारीनगर, ददलली शथथनत रारा परस म हआ। शीमदभागवत क कल छ:सौ पतीस

तामरपतर बन ह, जो भागवत भवन क मखय मशनदर का पररकरमा की दीवारो पर लगवाय गय ह।

रागवत-रवन एव उनक मखय महदर

भागवत-भवन की कसी को ऊिा रखन क कारण नीि क थथान म ववशाल कि (हाल) ननकाल ददय गय ह। इस ऊिाई को दो मशजलो म बाट

ददया गया ह। शजनम स पशचिम क नीि क तलल का उपयोग बालगोपाल सशिा-सदन नामक एक सशश-ववदयालय क सिालनाथा ककया जा रहा ह। ऊपर की मशजल म पशचिम की ओर शीकषण-शोरपीठ-पथतकालय थथावपत ककया गया ह, दकषिण की ओर दशाको क सलए शीकषण की एव शीराम की लीलाओ स समबशनरत यनतर-िासलत झाककया थथावपत की गयी ह। मखय भागवत भवन तक पहिन क सलय पशचिमी ददशा म 100

फीट लमबी ववशाल सीदढया बनवायी गयी ह, जसस भीड क समय याबतरयो क िढन एव उतरन क सलए असववरा न हो। अशकत, अनतवदध एव

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ववसशरअ दशाक गणो को मखय मशनदर क ररातल तक ल जान क सलय भागवत-भवन क पीछ की ओर उततर ददशा म ए सलफट लग िकी ह, जो याबतरयो को पररकरमा की छत तक ल जायगी। वहा स लगभग 10 फीट ऊिाई तक सीढी स िढकर जान पर सभा-मणडप की छत पर पहिा जा सकता ह। सशखर म ऊपर जान को सीदढया बनी ह। सशखर क मधय म बाहर िारो ओर िार छजज ह। सबस ऊपर की ऊिाई पर उततर तरफ

छजजा ह। इन छजजो स समथत मथरा नगरी एव सदर गोकल, वनदावन आदद बरजथथ तीथो का मनोरम पराकनतक दचय ददखायी पडता ह। भागवत-भवन क मखय सभा-मणडप क छत की ऊिाई लगभग 60 फीट ह। सभा-मणडप क उततर की ओर मधय म मखय मशनदर ह, शजसम शीरारा-कषण क 6 फीट सगमरमर क ववशाल ववगरह थथावपत ककय गय ह और उस मशनदर क दवार क ठीक सामन वाली दीवार पर एक ननददाषट

थथान पर हाथ जोडी मदरा म पवनपतर शी हनमान जी का शीववगरह थथावपत ककया गया ह। मखय मशनदर क पशचिम की ओर शथथत छाट मशनदर म शी जगननाथपरी स लाय गय शीजगननाथ जी, शीबलभदर जी एव शीसभदराजी क ववगरह थथावपत ह। सभामणडप क मधय भाग म दो छोट

मशनदर पवी और ददशा की ओर वाल मशनदर म सशव-पररवार की मनताया एव पारदसलग ववराजमान ककय गय ह। शीराराकषण क मशनदर क

सामन दकषिण ससर क पास शी मालवीय जी महाराज की उनक दादहनी ओर शीजगलककशोर जी ववरला की एव बायी ओर शी हनमानपरसाद जी पोददार की हाथ जोड मनताया ह, शजनको भगवान शी रारा-कषण-ववगरह क दशान बबना बारा क होत रहग। सभा-मणडप क पवा, पशचिम और दकषिण म तीन ववशाल दवार ह। इन दवारो क ऊपर की सजावट भारतीय सशलप-शली क आरार पर की गयी ह। सभा-मणडप क थतमभो क िारो ओर शीराराकषण क सखाओ, सणखयो एव सत-महातमाओ क धितर सगमरमर पर उतकीणा ककय जा रह ह। सभा मणडप क बाहर की छत पर स

भी मथरा-नगरी की ववहगम दचय बडा सहावना लगता ह। सभा-मणडप की दीवारो पर णखडककयो क बीि की जगह म भी धितरकारी होती। सभा मणडप की छत पर वनदावन क सपरससदध धितरकार शी दमपशतत ककशोर जी गोथवामी स सनदर धितरकारी करवायी गयी ह। भागवत-भवन क अततगड सशखर वस तो यातरी को दर स ही आकवरात करत ह, परनत व जस ही सीदढयो स िढकर मखय सभा मणडप क नीि

वाल पलटफामा पर पहित ह तो वहा स भागवत भवन का बाहरी दचय उनह और भी आकवरात करन लगता ह। सभी दवारो, गवािो, छजजो, दवार शाखाओ एव सशखरथथ सजावट का भारतीय सथकनत एव परािीन साथकनतक सशलप-शली स सशलपकारो न ऐसा सजाया ह कक व अनत

मनोरम लगती ह। मखय मशनदर का सशखर जनमभसम की सतह स लगभग 130 फीट ऊिा ह और छोट मशनदरो का सशखर लगभग 84 फीट ऊि जनमभसम की सतह सडक स लगभग 20 फीट ऊिी ह। अत: इन सबकी ऊिाई स सडक की सतह धगनी जाय तो लगभग 20 फीट और बढ जाती ह। मखय मशनदर क सशखर पर िकर सदहत छह फीट ऊि और मशनदरो पर लगभग ढाई फीट ऊि थवणा मशणडत कलश ह। ववगरह-परनतषठा शजस

भागवत-भवन को आरार-सशला ननतयलीला लीन भाई जी शी हनमानपरसादजी पोददार क कर कमलो दवारा हई थी, उसका ववगरह-परनतषठा-महोतसव फालगन कषण ितथी, वव0स0 2038 शकरवार, ददनाक 12 फरवरी, 1982 को समपनन हआ। पराण-परनतषठा महोतसव म आिाया थ वाराणसी क पशणडत शी रामजीलाल जी शाथतरी एव उनक अनय सहयोगीगण। पशणडत शीरामजीलाल शाथतरी क आिायाततव म ही इस भागवत-

भवन का सशलानयास ननतयलीला जीन पजय भाई जो शीहनमान परसाद जी पोददार दवारा समपनन ककया गया था। पािो मशनदरो क जो ववगरह ह, उनम स मखय मशनदर क शीरारा-कषणजी क ववगरह शीराम, लकषमण, सीता और हनमान जी शीववगरह एव

शीदगााजी का शीववगरह जयपर म पाणडय मनता मयशजयम स मासलक शी जगदीशनारायण जी पाणडय क दवारा ननसमात हए शी जगननाथजी क

शीववगरह री जगननाथपरी स वहा क पशणडत परवर शी सदासशवरथ शमाा न शाथतरीय ववधर स ननसमात करवाकर भज। पारद क शकर शी पारदचवरजी क सलग का ननमााण बमबई क शी भाऊ साहब कलकणी स करवाया गया। व वतामान म भारत क एकमातर पारद-सलग-ननमााता बतलाय जात ह। शी मालवीयजी, शी बबरलाजी एव पोददारजी की मनतायो का ननमााण राजथथान मताककला क शीरामचवरलालजी पाणडय दवारा हआ ह। परनतषठा-महोतसव बरवार, 3 फरवरी 1982 को गणश-पजन और नानदीमख-शादध दवारा हआ। माघ शकल 13 शननवार, 6 फरवरी 82 स लकर माघ कषण ततीय बहथपनतवार 11 फरवरी 1982 तक पशणडत शी रामजीलालजी शाथतरी क आिायातव म परनतशषठत ककय जान वाल सभी ववगरहो का अधरवास काया हआ फालगन कषण ितथी, शकरवार, 12 फरवरी 1982 को परात: 1030 बज क उपरानत ववगरहो की पराण-परनतषठा हई।

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दवाररकाधीश मजददर मथरा नगर क राजाधरराज बािार म शथथत यह मशनदर अपन साथकनतक वभव कला एव सौनदया क सलए अनपम ह । गवासलयर राज क

कोराधयि सठ गोकल दास पारीख न इसका ननमााण 1814–15 म परारमभ कराया, शजनकी मतय पचिात इनकी समपशतत क उततराधरकारी सठ

लकषमीिनदर न मशनदर का ननमााण काया पणा कराया । वरा 1930 म सवा पजन क सलए यह मशनदर पशषटमागा क आिाया धगरररलाल जी काकरौली वालो को भट ककया गया । तब स यहा पशषटमागीय परणासलका क अनसार सवा पजा होती ह । शावण क महीन म परनत वरा यहा लाखो शदधाल सोन–िादी क दहडोल दखन आत ह। मथरा क ववशाम घाट क ननकट ही असकडा घाट क ननकट यह मददर ववराजमान ह।

दवाररकाधीश मजददर

इततिास

यह मथरा का सबस ववथतत पशषटमागा मददर ह । भगवान कषण को ही दवाररकारीश (दवाररका का राजा) कहत ह । यह उपाधर पषटीमागा क

तीसरी गददी क मल दवता स समली ह

वासत

यह समतल छत वाला दोमशिला मशनदर ह शजसका आरार आयताकार (118’ X 76’) ह । पवामखी दवार क खलन पर खला हआ आगन िारो ओर स कमरो स नघरा हआ ददखता ह । यह मददर छोट-छोट शानदार उतकीणणात दरवाजो स नघरा हआ ह । मखय दवार स जाती सीदढया िौकोर

वगााकार क परागण म पहिती ह । इसका गोलाकार मठ इसकी शोभा बढाता ह । इसक बीि म िौकोर इमारत ह शजसक सहार थवणा परत िढ

बतरगण पशकतत म खमब ह शजनह छत-पखो व उतकीणणात धितराकनो स ससशजजत ककया गया ह । इस बनान म लखोरी ईट व िन, लाल एव बलआ पतथर का इथतमाल ककया गया ह । मशनदर क बाहरी थवरप को बगलारार महराब दरवाजो, पतथर की जासलयो, छजजो व जलरगो स

बन धितरो स सजाया ह । यह िौकोर ससहासन क समान ऊि भखणड पर बना ह। इसकी लमबाई और िौडाई 180 फीट और 120 फीट ह। इसका मखय दरवािा पवाासभमख बना ह। दवार स मददर क आगन तक जान क सलए बहत िौडी 16 सीदढया ह। दरवाि पर दवारपालो क बठन क सलए

दोनो ओर दो गौख ह जो िार सीदढयो पर बन ह। दसरा दवार 15 सीदढयो क बाद ह। यहा पर भी दवारपालो क बठन क सलए दोनो ओर थथान बन ह। मददर क दोनो दरवािो पर ववशाल फाटक लग ह। मददर क आगन म पहिन पर 6 सीदढया ह जो मददर क तीनो तरफ बनी ह। इन पर िढकर ही मददर और ववशाल मडप म पहिा जा सकता ह।

मडप या जगमोिन छततर

मडप या जगमोहन छततर क आकार का ह। यह मडप बहत ही भवय ह और वाथतसशलप का अनोखा उदारहण ह। यह मडप खमबो पर दटका हआ

ह। इसक पशचिम की ओर तीन सशखर बन ह शजनक नीि राजाधरराज दवाररकारीश महाराज का आकराक ववगरह ववराशजत ह। मददर म नाथदवारा की किी स अनक रगीन धितर बनाय गय ह। खमबो पर 6फीट पर स यह धितर बन ह। लाल, पील, हर रगो स बन यह धितर भागवत

पराण और दसर भशकत गरनथो म वणणात भगवान शीकषण की लीलाओ का धितरण ककया गया ह। वसदव का यशोदा क पास जाना, योगमाया का दशान, शकटासर वर, यमलाजान मोि, पतना वर, तणावता वर, वतसासर वर, बकासर, अघासर, वयोमासर, परलबासर आदद का वणान,

गोवरान रारण, रासलीला, होली उतसव, अकरर गमन, मथरा आगमन, मानलीला, दानलीला आदद लगभग सभी झाककया उकरी गयी ह। दवाररकारीश क ववगरह क पास ही उन सभी दव गणो क दशान ह, जो बरहमा क नायकतव म भगवान शीकषण क जनम क समय उपशथथत थ और उनहोन शीकषण की थतनत की थी। गोथवामी ववटठलनाथ जी दवारा बताय गय सात थवरपो का ववगरह यहा दशानीय ह। गोवराननाथ जी का ववशाल धितर ह। गोथवामी ववटठलनाथ जी क वपता वललभािाया जी और उनक साथ पतरो क भी दशान ह।

मददर क दकषिण म पररकरमा मागा पर शासलगराम जी का छोटा मददर ह। इसम गोकलदास पारीख का भी एक धितर ह। उतसव

अननकट कानताक शकला परनतपदा को गोवरान पजा का मनोरथ समपनन होता ह। सावन क झला और घटाए इस मददर की ववशरता ह। जनमाषटमी, दीपावली और वसनतोतसव ववशर रप स रमराम स मनाय जात ह।

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विशराम घाट

तट पर त त र ट इ त ट र इ पर इ पर प र त र र ट पर ट र र र − इ प ट पर र

र ; पर त त प – त त त – ट त, र त – रत त

र प र र त त र र त −

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र प ट त , त प प त, र र त, र त र प प त इ त र रत इ इ त त ट इ त प त त प र प त और प : पर प र प

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त त त र– र रत प र र ( र ) ( ) – र ट प

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त र र तर र पर र र तर त त त तप प ट तर 12 और 12 ट

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र र र प प त – र र और र र इ त पर र र र र र – और र प त –प त इ र ट र त र र- र त र - र प प त र र र पर

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र – और – त , त त र

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त त प ओर - त 25–30 ट त र त त

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वददावन वनदावन मथरा स 12 ककलोमीटर की दरी पर उततर-पशचिम म यमना तट पर शथथत ह । यह कषण की लीलाथथली ह । हररवश पराण,

शीमदभागवत, ववषण पराण आदद म वनदावन की मदहमा का वणान ककया गया ह । कासलदास न इसका उललख रघवश म इदमती-थवयवर क परसग म शरसनाधरपनत सरण का पररिय दत हए ककया ह* इसस

कासलदास क समय म वनदावन क मनोहारी उदयानो की शथथनत का जञान होता ह । शीमदभागवत क अनसार गोकल स कस क अतयािार स बिन क सलए नदजी कटबबयो और सजातीयो क साथ वनदावन ननवास क

सलए आय थ

ववषण पराण म इसी परसग का उललख ह

ववषणपराण म अनयतर वनदावन म कषण की लीलाओ का वणान भी ह* आदद ।

पराचीन वददावन

कहत ह कक वतामान वनदावन असली या परािीन वनदावन नही ह । शीमदभागवत* क वणान तथा अनय उललखो स जान पडता ह कक

परािीन वनदावन गोवरान क ननकट था । गोवरान-रारण की परससदध

कथा की थथली वनदावन पारसौली ( परम रासथथली ) क ननकट था । अषटछाप कवव महाकवव सरदास इसी गराम म दीघाकाल तक रह थ । सरदास जी न वददावन रज की मदहमा क वशीभत होकर गाया ह-

हम ना भई वनदावन रण

बरज का हदय

वनदावन का नाम आत ही मन पलककत हो उठता ह । योगचवर शी कषण की मनभावन मनता आखो क सामन आ जाती ह । उनकी ददवय

आलौककक लीलाओ की कलपना स ही मन भशकत और शदधा स

नतमथतक हो जाता ह । वनदावन को बरज का हदय कहत ह जहा शी राराकषण न अपनी ददवय लीलाए की ह । इस पावन भसम को प वी का अनत उततम तथा परम गपत भाग कहा गया ह । पदम पराण म इस भगवान का सािात शरीर, पणा बरहम स समपका का थथान तथा सख का आशय बताया गया ह । इसी कारण स यह अनादद काल स

भकतो की शदधा का कनदर बना हआ ह । ितनय महापरभ, थवामी हररदास, शी दहतहररवश, महापरभ वललभािाया आदद अनक

गोथवामी भकतो न इसक वभव को सजान और ससार को अनचवर समपनत क रप म परथतत करन म जीवन लगाया ह । यहा आननदपरद

यगलककशोर शीकषण एव शीरारा की अदभत ननतय ववहार लीला होती रहती ह ।

नामकरण

इस पावन थथली का वनदावन नामकरण कस हआ ? इस सबर म अनक मत ह । 'वनदा' तलसी को कहत ह । यहा तलसी क पौर अधरक

थ । इससलए इस वनदावन कहा गया । वनदावन की अधरषठातरी दवी वनदा ह । कहत ह कक वनदा दवी का मशनदर सवाकज वाल थथान पर था । यहा आज भी छोट-छोट सघन कज

ह । शी वनदा दवी क दवारा पररसववत परम रमणीय ववववर परकार क सवाकजो और कसलकजो दवारा पररवयापत इस रमणीय वन का नाम

वनदावन ह। यहा वनदा दवी का सदा-सवादा अधरषठान ह। वनदा दवी शीवनदावन की रिनयतरी, पालनयतरी, वनदवी ह। वनदावन क वि,

लता, पश-पिी सभी इनक आदशवती और अरीन ह। शी वनदा दवी की अरीनता म अगणणत गोवपया ननतय-ननरनतर कजसवा म सलगन

रहती ह। इससलए य ही कज सवा की अधरषठातरी दवी ह। पौणामासी योगमाया पराखया महाशशकत ह। गोषठ और वन म लीला की सवााधगकता का समपादन करना योगमाया का काया ह। योगमाया समाशषटभता थवरप शशकत ह। इनही योगमाया की लीलावतार ह- भगवती पौणामासीजी। दसरी ओर राराकषण क ननकज-ववलास और रास-ववलास आदद का समपादन करान वाली वनदा दवी ह। वनदा दवी क वपता का नाम िनदरभान, माता का नाम फललरा गोपी तथा पनत का नाम महीपाल ह। य सदव वनदावन म ननवास करती ह। य वनदा, वनदाररका, मना, मरली आदद दती सणखयो म सवापररान ह। य ही वनदावन की वनदवी तथा शीकषण की लीलाखया महाशशकत की ववशर

मनताथवरपा ह। इनही वनदा न अपन पररसववत और पररपासलत वनदावन क सामराजय को महाभाव थवरपा वरभान नशनदनी राधरका क

िरणकमलो म समपाण कर रखा ह। इसीसलए राधरका जी ही वनदावनचवरी ह। बरहम ववता पराण क अनसार वनदा राजा कदार की पतरी थी । उसन इस वनथथली म घोर तप ककया था । अत: इस वन का नाम वनदावन

हआ । कालानतर म यह वन रीर-रीर बथती क रप म ववकससत होकर आबाद हआ । बरहम ववता पराण म राजा कशधवज की पतरी शजस तलसी का शखिड स वववाह आदद का वणान ह, तथा प वी लोक म हररवपरया वनदा या

तलसी जो वि रप म दखी जाती ह- य सभी सवाशशकतमयी राधरका की कायवयहा थवरपा, सदा-सवादा वनदावन म ननवास कर और सदव

वनदावन क ननकजो म यगल की सवा करन वाली वनदा दवी की अश, परकाश या कला थवरपा ह। इनही वनदा दवी क नाम स यह वनदावन

परससदध ह। इसी पराण म कहा गया ह कक शीरारा क सोलह नामो म स एक नाम वनदा भी ह । वनदा अथाात रारा अपन वपरय शीकषण स

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समलन की आकािा सलए इस वन म ननवास करती ह और इस थथान क कण-कण को पावन तथा रसमय करती ह । वनदावन यानी भशकत

का वन अथवा तलसी का वन। रासमाक गरनथ शीमदभागवत महापराण म वनदावन की मदहमा अधरक ह । यहा पर उस परबरहम परमातमा न मानव रप अवतार रारण कर

अनक परकार की लीलाय की । यह वनदावन वरज म आता ह । वरज-अथाात- व स बरहम और शर रह गया रज यानन यहा बरहम ही रज क रप

म वयापत ह । इसीसलए इस भसम को वरज कहा जाता ह । उसी वरज म यह वनदावन भी आता ह। ववशरकर यह वनदावन भगवान शीकषण

की लीला ितर ह । ककसी सत न कहा ह कक - वनदावन सो वन नही , ननदगाव सो गाव । बशीवट सो बट नही, कषण नाम सो नाम ।[3] इस

वनदावन म भगवान शीकषण की धिनमय रप परमरपा रारा जी सािात ववराजमान ह । रारा साित भशकत रपा ह इस सलए इस वनदावन

म वास करन तथा भजन कीतान एव दान इतयादद करन स सौ गना फल परापत होता ह । सशरोमणण शीमदभागवत म यतर-ततर सवातर ही शीवनदावन की परिर मदहमा का वणान परापत होता ह।

शीननदबाबा क एव जयषठ भराता शी उपाननद जी कह रह ह-उपदरवो स भर हए इस गोकल महावन म न रहकर, तरनत सब परकार स

सरमय, तणोस आचछाददत, नाना परकार की वि-वललररयो तथा पववतर पवात स सशोसभत, गो आदद पशओ क सलए सब परकार स सरकषित

इस परम रमणीय वनदावन म हम गोप, गोवपयो क सलए ननवास करना कतावय ह।*

ितमाख बरहमा शीकषण की अदभत लीला-माररी का दशान कर बड ववशथमत हए और हाथ जोडकर पराथाना करन लग। बरहमाजी कह रह ह- 'अहो! आज तक भी शनतया शजनक िरणकमलो की रसल को अनवरण करक भी नही पा सकी ह, व भगवान मकनद शजनक पराण एव

जीवन सवाथव ह, इस वनदावन म उन बरजवाससयो म स ककसी की िरणरसल म असभवरकत होन योगय तण, गलम या ककसी भी योनन म जनम होना मर सलए महासौभागय की बात होगी। यदद इस वनदावन म ककसी योनन म जनम लन की समभावना न हो, तो ननद गोकल क

परानत भाग म भी ककसी सशला क रप म जनम गरहण कर, शजसस वहा की मला साफ करन वाली जमादारननया भी अपन परो को साफ

करन क सलए उन पतथरो पर पर रगड , शजसस उनकी िरणरसल को थपशा करन का भी सौभागय परापत हो।'[4]

परमातरभकत उदधव जी तो यहा तक कहत ह कक शजनहोन दथतयजय पनत-पतर आदद सग-समबशनरयो, आयारमा और लोकलजजा आदद सब

कछ का पररतयाग कर शनतयो क अनवरणीय थवय-भगवान बरजनदरननदन शीकषण को भी अपन परम स वशीभत कर रखा ह- म उन गोप-

गोवपयो की िरण-गोवपयो की िरण-रसल स असभवरकत होन क सलए इस वनदावन म गलम, लता आदद ककसी भी रप म जनम परापत करन पर अपना अहोभागय समझगा। [5]

रगभसम म उपशथथत माथर रमणणया वनदावन की भरर-भरर परशसा करती हई कह रही ह-अहा ! इन तीनो लोको म शीवनदावन और

वनदावन म रहन वाली गोप-रमणणया ही रनय ह, जहा परम पराण परर शीकषण योगमाया क दवारा ननगढ रप म मनषयोधित लीलाए

कर रह ह। ववधितर वनमाला स ववभवरत होकर बलदव और सखाओ क साथ मरर मरली को बजात हए गोिारण करत ह तथा ववववर

परकार क करीडा-ववलास म मगन रहत ह। [6]

कषण परम म उनमतत एक गोपी दसरी गोपी को समबोधरत करती हई कह रही ह- अरी सणख! यह वनदावन, वकणठ लोक स भी अधरक रप

म प वी की कीनताका ववथतार कर रहा ह, कयोकक यह यशोदाननदन शीकषण क िरणकमलो क धिहनो को अपन अक म रारण कर अतयनत सशोसभत हो रहा ह। सणख! जब रससकनदर शीकषण अपनी ववचव-मोदहनी मरली की तान छड दत ह, उस समय वशीधवननको मघागजान समझकर मयर अपन पखो को फलाकर उनमतत की भानत नतय करन लगत ह। इस दखकर पवात क सशखरो पर वविरण करन वाल पश-पिी समपणा रप स ननथतबर होकर अपन कानो स मरली धवनन तथा नतरो स मयरो क नतय का रसाथवादन करन लगत ह। [7]

थवय शकदव गोथवामीजी परम पलककत होकर वनदावन की पन:पन: परशसा करत ह-अपन ससर पर मयर वपचछ, कानो म पील कनर क

सगशनरत पषप, चयाम अगो पर थवणणाम पीतामबर, गल म पिरगी पषपो की िरणलशमबत वनमाला रारणकर अपनी अरर-सरा क दवारा वण को परपररतकर उसक मरर नाद स िर-अिर सबको मगर कर रह ह तथा गवालबाल शजनकी कीनता का गान कर रह ह, ऐस भवनमोहन

नटवर वश रारणकर शीकषण अपन शीिरण धिहनो क दवारा सशोसभत करत हए परम रमणीय वनदावन म परवश कर रह ह। [8]

इससलए अणखल धिदाननद रसो स आपलाववत मरर वनदावन को छोडकर शीकषण कदावप अनयतर गमन नही करत ह।*

एक रससक और भकत कवव न वनदावन क समबनर म शनत पराणो का सार गागर म सागर की भानत सकलन कर ठीक ही कहा ह- बरज

समदर मथरा कमल वनदावन मकरनद। बरज वननता सब पषप ह मरकर गोकलिनद।

मिापरर चतदय का परवास

परािीन वनदावन मसलमानो क शासन काल म उनक ननरतर आकरमणो क कारण नषट हो गया था और कषणलीला की थथली का कोई

असभजञान शर नही रहा था । 15वी शती म ितनय महापरभ न अपनी बरजयातरा क समय वनदावन तथा कषण कथा स सबधरत अनय थथानो को अपन अतजञाान दवारा पहिाना था । रासथथली, वशीवट स यकत वनदावन सघन वनो म लपत हो गया था। कछ वरो क पचिात शाशणडलय एव भागरी ऋवर आदद की सहायता स शी वजरनाभ महाराज न कही शीमशनदर, कही सरोवर, कही कणड आदद की थथापनाकर लीला-थथसलयो का परकाश ककया। ककनत लगभग साढ िार हिार वरो क बाद य सारी लीला-थथसलया पन: लपत हो गई, महापरभ ितनय न तथा शी रप-सनातन

आदद अपन पररकारो क दवारा लपत शीवनदावन और बरजमडल की लीला-थथसलयो को पन: परकासशत ककया। शी ितनय महापरभ क पचिात

उनही की ववशर आजञा स शी लोकनाथ और शी भगभा गोथवामी, शी सनातन गोथवामी, शी रप गोथवामी, शी गोपालभटट गोथवामी, शी रघनाथ

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भटट गोथवामी, शी रघनाथदास गोथवामी, शी जीव गोथवामी आदद गौडीय वषणवािायो न ववसभनन शाथतरो की सहायता स, अपन अथक पररशम

दवारा बरज की लीला-थथसलयो को परकासशत ककया ह। उनक इस महान काया क सलए सारा ववचव, ववशरत: वषणव जगत उनका धिरऋणी रहगा। वतामान वनदावन म परािीनतम मददर राजा मानससह का बनवाया हआ ह। यह मगल समराट अकबर क शासनकाल म बना था । मलत: यह

मददर सात मशजलो का था । ऊपर क दो खड औरगिब न तडवा ददए थ । कहा जाता ह कक इस मददर क सवोचि सशखर पर जलन वाल दीप

मथरा स ददखाई पडत थ । यहा का ववशालतम मददर रगजी क नाम स परससदध ह । यह दाकषिणतय शली म बना हआ ह । इसक गोपर बड ववशाल

एव भवय ह । यह मददर दकषिण भारत क शीरगम क मददर की अनकनत जान पडता ह । वनदावन क दशानीय थथल ह- ननधरवन (हररदास का ननवास कज), कासलयादह, सवाकज आदद।

पराकततक छटा वनदावन की पराकनतक छटा दखन योगय ह । यमना जी न इसको तीन ओर स घर रखा ह । यहा क सघन कजो म भानत-भानत क पषपो स

शोसभत लता तथा ऊि-ऊि घन वि मन म उललास भरत ह । बसत ॠत क आगमन पर यहा की छटा और सावन-भादो की हररयाली आखो को शीतलता परदान करती ह, वह शीरारा-मारव क परनतबबमबो क दशानो का ही परनतफल ह । वनदावन का कण-कण रसमय ह । यहा परम-भशकत का ही सामराजय ह । इस गोलोक राम स अधरक बढकर माना गया ह । यही कारण ह कक

हिारो रमा-परायणजन यहा अपन-अपन कामो स अवकाश परापत कर अपन शर जीवन को बबतान क सलए यहा अपन ननवास थथान बनाकर

रहत ह । व ननतय परनत रासलीलाओ, सार-सगतो, हररनाम सकीतान, भागवत आदद गरनथो क होन वाल पाठो म सशममसलत होकर रमा-लाभ

परापत करत ह । वनदावन मथरा भगवान कषण की लीला स जडा हआ ह । बरज क कनदर म शथथत वनदावन म सकडो मशनदर ह । शजनम स

अनक ऐनतहाससक ररोहर भी ह । यहा सकडो आशम और कई गौशालाऐ ह । गौडीय वषणव, वषणव और दहनदओ क रासमाक ककरया-कलापो क

सलए वनदावन ववचवभर म परससदध ह । दश स पयाटक और तीथा यातरी यहा आत ह । सरदास, थवामी हररदास, ितनय महापरभ क नाम वनदावन

स हमशा क सलए जड हए ह ।

वददावन म यमना क घाट

वनदावन म शीयमना क तट पर अनक घाट ह। उनम स परससदध-परससदध घाटो का उललख ककया जा रहा ह-

1. शीवराहघाट- वनदावन क दकषिण-पशचिम ददशा म परािीन यमनाजी क तट पर शीवराहघाट अवशथथत ह। तट क ऊपर भी शीवराहदव

ववराजमान ह। पास ही शीगौतम मनन का आशम ह। 2. कालीयदमनघाट- इसका नामानतर कालीयदह ह। यह वराहघाट स लगभग आर मील उततर म परािीन यमना क तट पर अवशथथत ह।

यहा क परसग क समबनर म पहल उललख ककया जा िका ह। कालीय को दमन कर तट भसम म पहि न पर शीकषण को बरजराज ननद और बरजचवरी शी यशोदा न अपन आसओ स तर-बतरकर ददया तथा उनक सार अगो म इस परकार दखन लग कक 'मर लाला को कही कोई िोट

तो नही पहिी ह।' महाराज ननद न कषण की मगल कामना स बराहमणो को अनकानक गायो का यही पर दान ककया था। 3. सयाघाट- इसका नामानतर आददतयघाट भी ह। गोपालघाट क उततर म यह घाट अवशथथत ह। घाट क ऊपर वाल टील को आददतय टीला

कहत ह। इसी टील क ऊपर शीसनातन गोथवामी क पराणदवता शी मदन मोहन जी का मशनदर ह। उसक समबनर म हम पहल ही वणान

कर िक ह। यही पर परथकनदन तीथा भी ह। 4. यगलघाट- सया घाट क उततर म यगलघाट अवशथथत ह। इस घाट क ऊपर शी यगलबबहारी का परािीन मशनदर सशखरववहीन अवथथा म

पडा हआ ह। कशी घाट क ननकट एक और भी जगल ककशोर का मशनदर ह। वह भी इसी परकार सशखरववहीन अवथथा म पडा हआ ह। 5. शीबबहारघाट- यगलघाट क उततर म शीबबहारघाट अवशथथत ह। इस घाट पर शीराराकषण यगल थनान, जल ववहार आदद करीडाए करत

थ। 6. शीआररघाट- यगलघाट क उततर म यह घाट अवशथथत ह। इस घाट क उपवन म कषण और गोवपया आखमदौवल की लीला करत थ।

अथाात गोवपयो क अपन करपललवो स अपन नतरो को ढक लन पर शीकषण आस-पास कही नछप जात और गोवपया उनह ढढती थी। कभी शीककशोरी जी इसी परकार नछप जाती और सभी उनको ढढत थ।

7. इमलीतला घाट- आररघाट क उततर म इमलीघाट अवशथथत ह। यही पर शीकषण क समसामनयक इमली वि क नीि महापरभ शीितनय

दव अपन वनदावन वास काल म परमाववषट होकर हररनाम करत थ। इससलए इसको गौरागघाट भी कहत ह। 8. शगारघाट- इमलीतला घाट स कछ पवा ददशा म यमना तट पर शगारघाट अवशथथत ह। यही बठकर शीकषण न मानननी शीराधरका का

शगार ककया था। वनदावन भरमण क समय शीननतयाननद परभन इस घाट म थनान ककया था तथा कछ ददनो तक इसी घाट क ऊपर

शगारवट पर ननवास ककया था। 9. शीगोववनदघाट- शगारघाट क पास ही उततर म यह घाट अवशथथत ह। शीरासमणडल स अनतराान होन पर शीकषण पन: यही पर गोवपयो

क सामन आववभात हय थ। 10. िीर घाट- कौत की शीकषण थनान करती हई गोवपकमाररयो क वथतरो को लकर यही कदमब वि क ऊपर िढ गय थ। िीर का तातपया वथतर

स ह। पास ही कषण न कशी दतय का वर करन क पचिात यही पर बठकर ववशाम ककया था। इससलए इस घाटका दसरा नाम िन या ियनघाट भी ह। इसक ननकट ही झाडमणडल दशानीय ह।

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11. शीभरमरघाट- िीरघाट क उततर म यह घाट शथथत ह। जब ककशोर-ककशोरी यहा करीडा ववलास करत थ, उस समय दोनो क अग सौरभ स

भवर उनमतत होकर गजार करन लगत थ। भरमरो क कारण इस घाट का नाम भरमरघाट ह। 12. शीकशीघाट- शीवनदावन क उततर-पशचिम ददशा म तथा भरमरघाट क उततर म यह परससदध घाट ववराजमान ह। इसका हम पहल ही वणान

कर िक ह। 13. रीरसमीरघाट- शीवनदावन की उततर-ददशा म कशीघाट स पवा ददशा म पास ही रीरसमीरघाट ह। शीराराकषण यगल का ववहार दखकर

उनकी सवा क सलए समीर भी सशीतल होकर रीर-रीर परवादहत होन लगा था। 14. शीराराबागघाट- वनदावन क पवा म यह घाट अवशथथत ह। इसका भी वणान पहल ककया जा िका ह। 15. शीपानीघाट-इसी घाट स गोवपयो न यमना को पदल पारकर महवरा दवाासा को सथवाद अनन भोजन कराया था। 16. आददबदरीघाट- पानीघाट स कछ दकषिण म यह घाट अवशथथत ह। यहा शीकषण न गोवपयो को आददबदरी नारायण का दशान कराया था। 17. शीराजघाट- आदद-बदरीघाट क दकषिण म तथा वनदावन की दकषिण-पवा ददशा म परािीन यमना क तट पर राजघाट ह। यहा कषण नाववक

बनकर सणखयो क साथ शी राधरका को यमना पार करात थ। यमना क बीि म कौतकी कषण नाना परकार क बहान बनाकर जब ववलमब

करन लगत, उस समय गोवपया महाराजा कस का भय ददखलाकर उनह शीघर यमना पार करन क सलए कहती थी। इससलए इसका नाम

राजघाट परससदध ह।

इन घाटो क अनतररकत वनदावन-कथा नामक पथतक म और भी 14 घाटो का उललख ह-

(1)महानतजी घाट (2) नामाओवाला घाट (3) परथकनदन घाट (4) कडडया घाट (5) रसर घाट (6) नया घाट (7) शीजी घाट (8) ववहारी जी घाट

(9) ररोयार घाट (10) नागरी घाट (11) भीम घाट (12) दहममत बहादर घाट (13) िीर या िन घाट (14) हनमान घाट। वददावन क परान मोिललो क नाम

(1) जञानगदडी (2) गोपीचवर, (3) बशीवट (4) गोपीनाथबाग, (5) गोपीनाथ बािार, (6) बरहमकणड, (7) राराननवास, (8) कशीघाट (9)

रारारमणघरा (10) ननरवन (11) पाथरपरा (12) नागरगोपीनाथ (13) गोपीनाथघरा (14) नागरगोपाल (15) िीरघाट (16) मणडी दरवाजा (17)

नागरगोववनद जी (18) टकशाल गली (19) रामजीदवार (20) कणठीवाला बािार (21) सवाकज (22) कजगली (23) वयासघरा (24) शगारवट

(25) रासमणडल (26) ककशोरपरा (27) रोबीवाली गली (28) रगी लाल गली (29) सखनखाता गली (30) पराना शहर (31) लाररवाली गली (32)

गावरप गली (33) गोवरान दरवाजा (34) अहीरपाडा (35) दमाईत पाडा (36) वरओयार मोहलला (37) मदनमोहन जी का घरा (38) बबहारी परा (39) परोदहतवाली गली (40) मनीपाडा (41) गौतमपाडा (42) अठखमबा (43) गोववनदबाग (44) लोईबािार (45) रनतयाबािार (46) बनखणडी महादव (47) छीपी गली (48) रायगली (49) बनदलबाग (50) मथरा दरवाजा (51) सवाई जयससह घरा (52) रीरसमीर (53) टटटीया थथान (54)

गहवरवन (55) गोववनद कणड और (56) राराबाग।

बाक बबिारी मजददर बाक बबहारी मददर मथरा शिल क वदावन राम म रमण रती पर शथथत ह। यह भारत क परािीन और परससदध मददरो म स एक ह। बाक बबहारी कषण का ही एक रप ह जो इसम परदसशात ककया गया ह। शीराम वनदावन, यह एक ऐसी पावन भसम ह, शजस भसम पर आन मातर स ही सभी पापो का नाश हो जाता ह। ऐसा आणखर कौन वयशकत होगा जो इस पववतर भसम पर आना नही िाहगा तथा शी बाकबबहारी जी क दशान कर अपन

को कताथा करना नही िाहगा। यह मशनदर शी वनदावन राम क एक सनदर इलाक म शथथत ह। कहा जाता ह कक इस मशनदर का ननमााण थवामी शी हररदास जी क वशजो क सामदहक परयास स सवत 1921 क लगभग ककया गया।

बाक बबहारी जी मशनदर, वनदावन शरी बााकबबिारी जी का सकषिपत इततिास

शीराम वनदावन, यह एक ऐसी पावन भसम ह, शजस भसम पर आन मातर स ही सभी पापो का नाश हो जाता ह। ऐसा आणखर कौन वयशकत होगा जो इस पववतर भसम पर आना नही िाहगा तथा शी बाकबबहारी जी क दशान कर अपन को कताथा करना नही िाहगा। यह मशनदर शी वनदावन

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राम क एक सनदर इलाक म शथथत ह। कहा जाता ह कक इस मशनदर का ननमााण थवामी शी हररदास जी क वशजो क सामदहक परयास स सवत

1921 क लगभग ककया गया। मशनदर ननमााण क शरआत म ककसी दान-दाता का रन इसम नही लगाया गया। शीहररदास थवामी ववरय उदासीन वषणव थ। उनक भजन–

कीतान स परसनन हो ननधरवन स शी बाकबबहारीजी परकट हय थ। थवामी हररदास जी का जनम सवत 1536 म भादरपद मदहन क शकल पि म अषटमी क ददन वनदावन क ननकट राजापर नामक गाव म हआ था। इनक आराधयदव चयाम–सलोनी सरत बाल शीबाकबबहारी जी थ। इनक

वपता का नाम गगारर एव माता का नाम शीमती धितरा दवी था। हररदास जी, थवामी आशरीर दव जी क सशषय थ। इनह दखत ही आशरीर

दवजी जान गय थ कक य सखी लसलताजी क अवतार ह तथा राराषटमी क ददन भशकत परदायनी शी रारा जी क मगल–महोतसव का दशान लाभ

हत ही यहा परार ह। हररदासजी को रसननधर सखी का अवतार माना गया ह। य बिपन स ही ससार स ऊब रहत थ। ककशोरावथथा म इनहोन आशरीर जी स यगल मनतर दीिा ली तथा यमना समीप ननकज म एकानत थथान पर जाकर धयान-मगन रहन लग। जब य 25 वरा क हए तब

इनहोन अपन गर जी स ववरकतावर परापत ककया एव ससार स दर होकर ननकज बबहारी जी क ननतय लीलाओ का धिनतन करन म रह गय। ननकज वन म ही थवामी हररदासजी को बबहारीजी की मनता ननकालन का थवपनादश हआ था। तब उनकी आजञानसार मनोहर चयामवणा छवव

वाल शीववगरह को ररा को गोद स बाहर ननकाला गया। यही सनदर मनता जग म शीबाकबबहारी जी क नाम स ववखयात हई यह मनता मागाशीरा, शकला क पिमी नतधथ को ननकाला गया था। अतः पराकय नतधथ को हम ववहार पिमी क रप म बड ही उललास क साथ मानत ह। शी बाकबबहारी जी ननधरवन म ही बहत समय तक थवामी जी दवारा सववत होत रह थ। कफर जब मशनदर का ननमााण काया समपनन हो गया, तब

उनको वहा लाकर थथावपत कर ददया गया। सनाढय वश परमपरागत शीकषण यनत जी, बबहारी जी क भोग एव अनय सवा वयवथथा समभाल

रह। कफर इनहोन सवत 1975 म हरगलाल सठ जी को शीबबहारी जी की सवा वयवथथा समभालन हत ननयकत ककया। तब इस सठ न वरी, कोलकतता, रोहतक, इतयादद थथानो पर शीबाकबबहारी रथटो की थथापना की। इसक अलावा अनय भकतो का सहयोग भी इसम काफी सहायता परदान कर रहा ह। आननद का ववरय ह कक जब काला पहाड क उतपात की आशका स अनको ववगरह थथानानतररत हए। परनत शीबाकववहारी जी यहा स थथानानतररत नही हए। आज भी उनकी यहा परम सदहत पजा िल रही ह। कालानतर म थवामी हररदास जी क उपासना पदधनत म पररवतान लाकर एक नय समपरदाय, ननमबाका सपरदाय स थवततर होकर सखीभाव सपरदाय बना। इसी पदधनत अनसार वनदावन क सभी मशनदरो म सवा एव महोतसव आदद मनाय जात ह। शीबाकबबहारी जी मशनदर म कवल शरद पणणामा क ददन शी शीबाकबबहारी जी वशीरारण करत ह। कवल शावन तीज क ददन ही ठाकर जी झल पर बठत ह एव जनमाषटमी क ददन ही कवल उनकी मगला–आरती होती ह । शजसक दशान

सौभागयशाली वयशकत को ही परापत होत ह । और िरण दशान कवल अिय ततीया क ददन ही होता ह । इन िरण-कमलो का जो दशान करता ह

उसका तो बडा ही पार लग जाता ह। थवामी हररदास जी सगीत क परससदध गायक एव तानसन क गर थ। एक ददन परातःकाल थवामी जी दखन लग कक उनक बबथतर पर कोई रजाई

ओढकर सो रहा ह।यह दखकर थवामी जी बोल– अर मर बबथतर पर कौन सो रहा ह। वहा शीबबहारी जी थवय सो रह थ। शबद सनत ही बबहारी जी ननकल भाग। ककनत व अपन िडा एव वशी, को ववथतर पर रखकर िल गय। थवामी जी, वदध अवथथा म दशषट जीणा होन क कारण उनको कछ

नजर नही आय । इसक पचिात शी बाकबबहारीजी मशनदर क पजारी न जब मशनदर क कपाट खोल तो उनह शी बाकववहारीजी मशनदर क पजारी न जब मशनदर म कपट खोल तो उनह शीबाकबबहारी जी क पलन म िडा एव वशी नजर नही आयी। ककनत मशनदर का दरवाजा बनद था। आचियािककत होकर पजारी जी ननधरवन म थवामी जी क पास आय एव थवामी जी को सभी बात बतायी। थवामी जी बोल कक परातःकाल कोई

मर पलग पर सोया हआ था। वो जात वकत कछ छोड गया ह। तब पजारी जी न परतयि दखा कक पलग पर शीबाकबबहारी जी की िडा–वशी ववराजमान ह। इसस परमाणणत होता ह कक शीबाकबबहारी जी रात को रास करन क सलए ननधरवन जात ह। इसी कारण स परातः शीबबहारी जी की मगला–आरती नही होती ह। कारण–राबतर म रास करक यहा बबहारी जी आत ह। अतः परातः शयन म बारा डालकर उनकी आरती करना अपरार ह। थवामी हररदास जी क दशान परापत करन क सलए अनको समराट यहा आत थ। एक बार ददलली क समराट

अकबर, थवामी जी क दशान हत यहा आय थ। ठाकर जी क दशान परातः 9 बज स दोपहर 12 बज तक एव साय 6 बज स राबतर 6 बज तक होत ह। ववशर नतधथ उपलकषयानसार समय क पररवतान कर ददया जाता ह। शीबाकबबहारी जी क दशान समबनर म अनको कहाननया परिसलत ह। शजनम स एक तथा दो ननमनसलणखत ह– एक बार एक भशकतमती न अपन पनत को बहत अननय–ववनय क पचिात वनदावन जान क सलए राजी ककया। दोनो वनदावन आकर शीबाकबबहारी जी क दशान करन लग। कछ

ददन शीबबहारी जी क दशान करन क पचिात उसक पनत न जब थवगह वापस लौटन कक िषटा की तो भशकतमनत न शीबबहारी जी दशान लाभ स

वधित होना पडगा, ऐसा सोिकर वो रोन लगी। ससार बरन क सलए थवगह जायग, इससलए वो शीबबहारी जी क ननकट रोत–रोत पराथाना करन

लगी कक– 'ह परभ म घर जा रही ह, ककनत तम धिरकाल मर ही पास ननवास करना, ऐसा पराथाना करन क पचिात व दोनो रलव थटशन की ओर घोडागाडी म बठकर िल ददय। उस समय शीबाकववहारी जी एक गोप बालक का रप रारण कर घोडागाडी क पीछ आकर उनको साथ लकर ल

जान क सलय भशकतमनत स पराथाना करन लग। इरर पजारी न मददर म ठाकर जी को न दखकर उनहोन भशकतमनत क परमयकत घटना को जान

सलया एव ततकाल व घोडा गाडी क पीछ दौड। गाडी म बालक रपी शीबाकबबहारी जी स पराथाना करन लग। दोनो म ऐसा वाताालाप िलत समय

वो बालक उनक मधय स गायब हो गया। तब पजारी जी मशनदर लौटकर पन शीबाकबबहारी जी क दशान करन लग। इरर भकत तथा भशकतमनत शीबाकबबहारी जी की थवय कपा जानकर दोनो न ससार का गमन तयाग कर शीबाकबबहारी जी क िरणो म अपन

जीवन को समवपात कर ददया। ऐस ही अनको कारण स शीबाकबबहारी जी क झलक दशान अथाात झाकी दशान होत ह।

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झााकी का अथभ शीबबहारी जी मशनदर क सामन क दरवाज पर एक पदाा लगा रहता ह और वो पदाा एक दो समनट क अतराल पर बनद एव खोला जाता ह, और भी ककवदती ह। एक बार एक भकत दखता रहा कक उसकी भशकत क वशीभत होकर शीबाकबबहारी जी भाग गय। पजारी जी न जब मशनदर की कपाट

खोला तो उनह शीबाकबबहारी जी नही ददखाई ददय। पता िला कक व अपन एक भकत की गवाही दन अलीगढ िल गय ह। तभी स ऐसा ननयम

बना ददया कक झलक दशान म ठाकर जी का पदाा खलता एव बनद होता रहगा। ऐसी ही बहत सारी कहाननया परिसलत ह। थवामी हररदासजी क दवारा ननधरवन शथथत ववशाखा कणड स शीबाकबबहारी जी परकदटत हए थ। इस मशनदर म कषण क साथ शीराधरका ववगरह

की थथापना नही हई। वशाख मास की अिय ततीया क ददन शीबाकबबहारी क शीिरणो का दशान होता ह। पहल य ननरवन म ही ववराजमान थ। बाद म वतामान मशनदर म परार ह। यवनो क उपदरव क समय शीबाकबबहारी जी गपत रप स वनदावन म ही रह, बाहर नही गय। शीबाकबबहारी जी का झाकी दशान ववशर रप म होता ह। यहा झाकी दशान का कारण उनका भकतवातसलय एव रससकता ह। एक समय उनक दशान क सलए एक भकत महानभाव उपशथथत हए। व बहत दर तक एक-टक स इनह ननहारत रह। रससक बाकबबहारी जी उन

पर रीझ गय और उनक साथ ही उनक गाव म िल गय। बाद म बबहारी जी क गोथवासमयो को पता लगन पर उनका पीछा ककया और बहत

अननय-ववनय कर ठाकरजी को लौटा-कर शीमशनदर म परराया। इससलए बबहारी जी क झाकी दशान की वयवथथा की गई ताकक कोई उनस

नजर न लडा सक। यहा एक ववलिण बात यह ह कक यहा मगल आरती नही होती। यहा क गोसाईयो का कहना ह कक ठाकरजी ननतय-राबतर म रास म थककर भोर म शयन करत ह। उस समय इनह जगाना उधित नही ह।

रग नाथ जी का मजददर शी समपरदाय क सथथापक रामानजािाया क ववषण-थवरप भगवान रगनाथ या रगजी क नाम स रग जी का मशनदर सठ लखमीिनद क भाई सठ

गोववनददास और राराकषण दास दवारा ननमााण कराया गया था। उनक महान गर सथकत क उदभट आिाया थवामी रगािाया दवारा ददय गय

मदरास क रग नाथ मशनदर की शली क मानधितर क आरार पर यह बना था। इसकी लागत पतालीस लाख रपय आई थी। इसकी बाहरी दीवार की लमबाई 773 फीट और िौडाई 440 फीट ह। मशनदर क अनतररकत एक सनदर सरोवर और एक बाग भी अलग स इसस सलगन ककया गया ह। मशनदर क दवार का गोपर काफी ऊिा ह। भगवान रगनाथ क सामन साठ फीट ऊिा और लगभग बीस फीट भसम क भीतर रसा हआ ताब का एक धवज थतमभ बनाया गया। इस अकल थतमभ की लागत दस हिार रपय आई थी। मशनदर का मखय दवार 93 फीट ऊि मडप स ढका हआ

ह। यह मथरा शली का ह। इसस थोडी दर एक छत स ढका हआ ननसमात भवन ह, शजसम भगवान का रथ रखा जाता ह। यह लकडी का बना हआ

ह और ववशालकाय ह। यह रथ वरा म कवल एक बार बरहमोतसव क समय ितर म बाहर ननकाला जाता ह।

रग नाथ जी का मजददर, वददावन यह बरहमोतसव-मला दस ददन तक लगता ह। परनतददन मशनदर स भगवान रथ म जात ह। सडक स िल कर रथ 690 गि रगजी क बाग तक

जाता ह जहा थवागत क सलए मि बना हआ ह। इस जलस क साथ सगीत, सगनर सामगरी और मशाल रहती ह। शजस ददन रथ परयोग म लाया जाता ह, उस ददन अषटरात की मनता रथ क मधय थथावपत की जाती ह। इसक दोनो ओर िौररारी बराहमण खड रहत ह। भीड क साथ सठ लोग

भी जब-तब रथ क रथस को पकड कर खीित ह। लगभग ढाई घनट क अनतराल म काफी जोर लगाकर यह दरी पार कर ली जाती ह। अगामी ददन शाम की बला म आनतशबाजी का शानदार परदशान ककया जाता ह। आसपास क दशानाधथायो की भीड भी इस अवसर पर एकतर होती ह। अनय

ददनो जब रथ परयोग म नही आता तो भगवान की यातरा क सलए कई वाहन रहत ह- कभी जडाऊ पालकी तो कभी पणय कोठी, तो कभी ससहासन

होता ह। कभी कदमब तो कभी कलपवि रहता ह। कभी-कभी ककसी उपदवता को भी वाहन क रप म परयोग ककया जाता ह। जस- सरज, गरड,

हनमान या शरनाग। कभी घोडा, हाथी, ससह, राजहस या पौराणणक शरभ जस ितषपद भी परयोग म लाय जात ह।

मथरा, ए डडसहिकट ममोयर, लखक-एफ ऐस गराउस( 1874) का रथ क मल का वयय हिसाब

इस समारोह म लगभग पॉ ॉि हिार रपय की रनरासश वयय की जाती ह। वरा भर क रख-रखाव का वयय सततावन हिार स कम नही होता। इसम स तीस हिार की सबस बडी मद तो भोग म ही खिा होती ह। परतयक सवर दस बज तक आट का पातर ककसी भी पराथाना कतताा को द ददया जाता ह। मशनदर स 33 गावो की जायदाद लगी हई ह। इसस एक लाख सतरह हिार रपय की आय होती ह। इसम स शासन िौसठ हिार रपय

लता ह। इन ततीस गावो म स िौथाई वनदावन समत तरह गाव मथरा म पडत ह और बीस आगरा शिल म। साल भर म भट िढावा बीस हिार

रपय क लगभग मलय का आता ह। ननधरयो म लगाए गए रन स गयारह हिार आठ सौ रपय का बयाज समलता ह।

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सन 1868 म थवामी न परी जमीदारी एक परबर ससमनत को हथताशनतररत कर दी थी। इसम दो हिार रपय की दटकट लगी थी। थवामी क बाद

शी ननवासािाया को नामजद ककया गया था, जो अपन पवाज की भानत ववदवान न होकर सामानय जन की भानत सशकषित था। उसक दरािरण क

कारण वयवथथा करन की आवचयकता आ पडी। उसकी लमपटता जगजादहर और कखयात थी। उसकी कफिलखिी की कोई सीमा नही थी। अपन वपता क ननरन क बाद वह कछ गिारा भतता पाता रहा। मशनदर की वयवथथा-सवा क सलए मदरास स दसर गर लाय गय। जमीदारी परी तरह छ: सदथयो की एक ससमनत क ननयतरण म रही। इनम स सबस उतसाही सठ नारायण दास थ। सठ को नयाससयो का मखतार आम बनाया गया था। मशनदर की बीस लाख की समपशतत इसी सठ क नाम कर दी गई। इस सपरबनर क बाद उतसव समारोहो क आयोजनो म कोई धगरावट

नही आन पाई और न दातवयो की उदारता ही घटी बशलक दफतर क वतननक वयय म भी कमी हई। पराभत वाल गावो म स तीन गाव महावन म और दो जलसर म थ। जयपर नरश मानससह न रगजी मशनदर को य दान ककय थ। यदयवप वह राज ससहासन का वराननक उततराधरकारी था कफर भी वह उस पर कभी न बठा। राजा प वीससह की रानी क गभा स वह उसक ननरनोपरात पदा हआ था। सन 1779 ई॰ म प वीससह की मतय क बाद उनक भाई परताप ससह न उततराधरकार का दावा ककया। दौलतराव ससधरया न इसस भतीज मानससह का अधरकार रोक ददया। मानससह

यवा राजकमार था और सादहतय और रमा क परनत समवपात था। तीस हिार रपय वावराक आय क आचवासन पर राजा की उपाधर तयागकर वह

वनदावन वास करन लगा। उसन कदठन रासमाक ननयमो क पालन म शर जीवनकाल यही वयतीत ककया। सततर वरा की आय म सन 1848 म उसका वही ननरन हआ। सतताईस वरा पयात पालथी मार एक ही मदरा म बठा रहा। वह अपन आसन स नही उठता था। सपताह म बस एक बार

ही पराकनतक वववशता वश आसन छोडता था। पाि ददन पवा ही उसन अपन अनत की भववषयवाणी की थी और अपन बढ सवको की दखभाल

करन की पराथाना सठ स की थी। उनम स लकषमी नारायण वयास नामक एक सवक सन 1874 तक अपनी मतय पयानत मशनदर की जमीदारी का परबनरक बना रहा।

गोववदद दव जी का महदर ननमााण काल - ई. 1590 । सवत 1647

शासन काल - अकबर (मगल)

ननमााता- राजा मानससह पतर राजा भगवान दास, आमर (जयपर, राजथथान)

सशलप रपरखा एव ननरीिण - रप गोथवामी और सनातन गर, कलयानदास (अधयि), माणणक िनदर िोपडा (सशलपी), गोववनद दास और गोरख

दास (कारीगर) ननमााण शली - दहनद (उततर-दकषिण भारत), जयपरी, मगल, यनानी और गोधथक[1] का समशण। लागत मलय- एक करोड रपया (लगभग). 5-10 वरा म तयार । माप- 105 x 117 फट (200 x 120 फट बाहर स) । ऊिाई- 110 फट (सात मशिल थी आज कवल िार ही मौजद ह) ववशरता- उततरी भारत की थथापतय कला का उतकषटतम नमना

गोववदद दव जी का महदर, वददावन

गोववनद दव जी का मददर ई. 1590 ( स.1647)म बना । मददर क सशला लख[2] स यह जानकारी परी तरह सननशचित हो जाता ह कक इस भवय

दवालय को आमर (जयपर राजथथान) क राजा भगवान दास क पतर राजा मानससह न बनवाया था । रप एव सनातन नाम क दो गरऔ की दखरख म मददर क ननमााण होन का उललख भी समलता ह। जमस फगासन न सलखा ह कक यह मशनदर भारत क मशनदरो म बडा शानदार ह। मददर की भवयता का अनमान इस उदधरण स लगाया जा सकता ह 'औरगिब न शाम को टहलत हए, दकषिण-पवा म दर स ददखन वाली रौशनी क बार जब पछा तो पता िला कक यह िमक वनदावन क वभवशाली मददरो की ह। औरगिब, मददर की िमक स परशान था, समारान क सलए

उसन तरत कायावाही क रप म सना भजी। मददर, शजतना तोडा जा सकता था उतना तोडा गया और शर पर मशथजद की दीवार, गममद आदद

बनवा ददए । कहत ह औरगिब न यहा नमाि म दहथसा सलया।' मददर का ननमााण म 5 स 10 वरा लग और लगभग एक करोड रपया खिाा बताया गया ह। समराट अकबर न ननमााण क सलए लाल पतथर ददया। शी गराउस क वविार स, अकबरी दरबार क ईसाई पादररयो न, जो यरोप क दशो स आय थ, इस ननमााण म थपषट भसमका ननभाई शजसस यनानी करस और यरोपीय ििा की झलक ददखती ह। डा.परभदयाल मीतल न शी उदयशकर शाथतरी क हवाल स बताया ह कक गराउस का कथन सही नही ह। 'परासाद मडन म कहा ह- परासाद (गभागह)

क आग बढ मडप, उसक आग छ: िौकी, छ: िौकी क आग रग मडप, रग मडप क आग तोरणयकत मडप बनना िादहए। इस मददर की सबस

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बडी ववशरता इसक मडप म ही ह। इसक खड आपस म इस सघडता क साथ गथ हए ह कक उनस मददर क मखय जगमोहन की शोभा दववगडडत

हो जाती ह। इसका वयास 40 फट ह और लमबाई िौडाई ननयमानसार ह। इसकी छत िार कमानी दार आरो (शहतीर नमा पतथरो) स बनाई गयी ह।...' ई.1873 म शी गराउस (ततकालीन शिलारीश मथरा) न मददर की मरममत का काया शर करवाया शजसम 38,365 रपय का खिा आया। शजसम 5000 रपय महाराजा जयपर न ददया और शर सरकार न। मरममत और रख रखाव आज भी जारी ह लककन मददर की शोिनीय दशा को दखत

हए यह सब कछ नगणय ह।

इततिास

गोथवासमयो न वनदावन आकर पहला काम यह ककया कक वनदा दवी क नाम पर एक वनदा मशनदर का ननमााण कराया। इसका अब कोई धिनह

ववदयमान नही रहा। कछ का कथन ह कक यह सवाकज म था। इस समय यह दीवार स नघरा हआ एक उदयान भर ह। इसम एक सरोवर ह। यह

रास मणडल क समीप शथथत ह। इसकी खयानत इतनी शीघर िारो ओर फली कक सन 1573 ई॰ म अकबर समराट यहा आखो पर पटटी बारकर पावन

ननधरवन म आया था। यहा उस ऐस ववथमयकारी दशान हए कक इस थथल को वाथतव म रासमाक भसम की मानयता उस दनी पडी। उसन अपन साथ आय राजाओ को अपना हाददाक समथान ददया कक इस पावन भसम म थथानीय दवता महनीयता क अनरप मशनदरो की एक शखला खडी की जाए। गोववददव, गोपीनाथ, जगल ककशोर और मदनमोहन जी क नाम स बनाय गय िार मशनदरो की शखला, उसी थमरणीय घटना क थमनत थवरप

अशथततव म आई । व अब भी ह ककनत ननतानत उपकषित और भगनावथथा म ववदयमान ह। गोववददव का मशनदर इनम स सवोततम तो था ही, दहनद सशलपकला का उततरी भारत म यह अकला ही आदशा था। इसकी लमबाई िौडाई 100-100 फीट ह। बीि म भवय गमबद ह। िारो भजाय नकील महराबो स ढकी ह। दीवारो की औसत मोटाई दस फीट ह। ऊपर और नीि का भाग दहनद सशलपकला का आदशा ह और बीि का मशथलम

सशलप का। कहा जाता ह कक मशनदर क सशलपकार की सहायता अकबर क परभाव क कछ ईसाई पादररयो न की थी। यह समधशत सशलपकला का उततरी भारत म अपनी ककथम का एक ही नमना ह। खजराहो क मशनदर भी इसी सशलप क ह। मलभत योजनानसार पाि मीनार बनवाई गयी थी, एक कनदरीय गमबद पर और िार अनय गभागह आदद ,पर गभागह परा धगरा ददया गया ह। दसरी मीनार कभी परी बन ही नही पायी। यह

सामानय ववचवास ह कक औरगिब बादशाह न इन मीनारो को धगरवा ददया था। नासभ क पशचिम की एक ताख क नीि एक पतथर लगा हआ ह

शजस पर सथकत म लमबी इबारत सलखी हई ह। इसका लख बहत बबगडा हआ ह। कफर भी इसका ननमााण सवत 1647 वव0 पढा जा सकता ह

और यह भी कक रप और सनातन क ननदशन म बना था। भसम स दस फीट ऊिा सलखा ह- [सदभा दख] राजा पधथवी ससह जयपर क महाराजा क

पवाज थ। उसक सतरह बट थ। उनम स बारह को जागीर दी गयी थी। यह अमबर (आमर-जयपर) की बारह कोठरी कहलाती ह। मशनदर का सथथापक राजा मानससह राव पधथवीससह का पौतर था। औरगजब क राज स 1873 ई तक मशनदर क जीणोधदार का कोई परयास नही ककया गया ह। मददर को आसपास रहन वालो की दया पर छोड

ददया गया था। व इसम स तोड-फोड कर भवन का सामान भी ल जात रह। दीवारो पर बड-बड झाड उग आय। सर ववसलयम मर की उपशथथनत म मथरा क कलकटर एफ0 एस0 गराउस न मशनदर को सरिाथा पराततव ववभाग को दना िाहा ककनत उसन कोई अनदान नही ददया। इसकी मरममत क सलए इसक सथथापक जयपर नरश को सलखा गया। नरश न इजीननयरो की कत क अनसार र0 5000 थवीकार कर सलय। 1873 ई॰ म इसकी मरममत का काम आरमभ हआ। औरगजब दवारा बनवाई गई दीवार तडवा दी गई और मलवा उठवा ददया गया, जो मशनदर की दीवारो क सहार-सहार लगभग आठ-आठ फीट की ऊिाई तक जमा हो गया और शपलनथ (कसी) की सनदरता को नषट कर रहा था। अनक मकान

मशनदर की दीवारो क सहार मशनदर क आगन म बन गय थ, व धगरा ददय गय। इस परकार पवा और दकषिण भाग क दो िौड ववशाल राथत खोल

ददय गय। पहल मशनदर म परवश क सलए सकरी और टडी मढी गली ही थी, जहा स पर मशनदर को दखा जा सकता था। नासभथथल क उततरी भाग म एक टट सलटर को सभालन क सलय एक ईटो का खमभा बनवा ददया गया था। वह भी धगरा ददया गया। टट हए पतथर क सलटर को लोह

क तीन वोलटो स कसकर सार ददया गया। दकषिण ददशा म गमबद और मीनार वाली एक सनदर छतरी थी, जो मशनदर क िालीस वरा बाद बनाई

गयी थी। इसक बाद इस सब क शासक सर जॉन थरिी हए। शासन न सरकारी कोर स मशनदर को कछ अनदान बार ददया था। इसस मशनदर की परी छत की मरममत हो सकी। पवा का ऊपर का भाग बबलकल खथता हाल म था। वह उतार कर पन: परा बनवाया गया। उततर क और

दकषिण क भागो को भी पन: बनवाया गया। जगमोहन का भी जीणोधदार कराया गया। थरिी क बाद आय सर जॉजा काउपर न सन 1877 ई॰ क

मािा माह तक मशनदर को नया रप ददया। इसम कल लागत र0 38365 आई।

राधावललर जी का मजददर यह बहत ही सनदर ह। इसक भवन का सौदया और सशलप लगभग गोवरान क हरदव मशनदर क जसा ह। यह भी पमान का बना ह। इसकी नासभ

34 फीट िौडी ह। ऊपर और नीि का भाग दहनद सशलप का ह और मधय का भाग मशथलम सशलप का। इसक भीतर 63 फीट x 20 फीट का बडा कि

ह। हरदव क मशनदर की भानत यह मशनदर भी औरगिब न धवथत कर ददया था। इसका परा जीणोधदार उननीसवी शती म कराया गया था। इसी क दकषिण की ओर आरननक मशनदर बनाया गया ह। य पािो मशनदर इसी शखला म वाथत-सशलप क अदभत आदशा ह। फरगसन आदद न सशखरो पर आचिया वयकत ककया ह। य सशखर बौदध थतपो म समलत ह। 11वी शताबदी का खजराहो का पाचवानाथ मशनदर और 16वी शताबदी क वनदावन

क मदनमोहन और जगलककशोर मशनदरो म सामय ह। बनारस का ववचवचवर मशनदर भी इसी शखला म ह। वाथतव म हआ यह ह कक मल मशनदरो

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का जीणोधदार जब-जब हआ, तब-तब उनम कछ न कछ पररवतान आता गया। इसी स लगता ह कक इन मशनदरो का थथापतय पराना नही ह। वनदावन क मदनमोहन मशनदर क ननकटथथ शगार बट क मशनदर क ववरय म यही बात उधित ठहरती ह। शगार बट की आय र. 13500 थी,जो तीन भागीदारो म बट जाती थी। जमना पार का जहागीरपर और बलबन मशनदर क पराभत क अश ह।

रारावललभ जी का मशनदर, वनदावन

मदन मोिन जी का महदर ननमााण काल - सभवत: ई.1590 स 1627 क बीि (सही समय अजञात)

शासन काल-मगल (अकबर-जहागीर) ननमााता- राम दास खतरी या कपरी ननवासी मलतान

मदन मोिन जी का महदर, वददावन परातनता म यह मददर गोववनद दव जी क मददर क बाद आता ह। ननमाणा क समय और सशशलपयो क सबनर म कछ जानकारी नही ह। परिसलत

कथाओ म आता ह कक राम दास खतरी (कपरी नाम स परिसलत) वयापारी की वयापाररक सामान स लदी नाव यहा यमना म फस गयी थी। जो मदन मोहन जी क दशान और पराथाना क बाद ननकल गयी। वापसी म रामदास न मददर बनवाया। शीकषण भगवान क अनक नामो म स एक

वपरय नाम मदनमोहन भी ह। इसी नाम स एक मददर कालीदह घाट क समीप शहर क दसरी ओर ऊि टील पर ववदयमान ह। ववशालकानयक

नाग क फन पर भगवान िरणाघात कर रह ह। लकषमणदास क भकत-ससनर म इसकी कथा दी गयी ह। यह भकत-माल का आरननक सथकरण

ह। गोथवामीपाद रप गोथवामी और सनातन गोथवामी को गोववनद जी की मनता ननदगाव स परापत हई थी। यहा एक गोणखरख म स खोदकर इस

ननकाला गया था, इसस इसका नाम गोववनद हआ। वहा स लाकर गोववनद जी को बरहकणड क वतामान मददर की जगह पर परराया गया। वनदावन उन ददनो बसा हआ नही था। व समीपवाती गावो म तथा मथरा भी सभिाटन हत जात थ। एक ददन मथरा क एक वयशकत न उनह मदनमोहन की मनता परदान की शजस उनहोन लाकर द:शासन पहाडी पर कालीदह क पास परार ददया। वही उनहोन अपन रहन क सलय एक

झोपडी भी बना ली और उस जगह का नाम पशकनदन घाट रख ददया। कयोकक मागा इतना ऊिा-नीिा और खराब था कक कोई पश भी नही जा सकता था। 'ननिाऊ-ऊिाऊ दखी ववशरन पशकनदन वह घाट कहाई, तहा बठी मनसख लहाई।' एक ददन पजाब म मलतान का रामदास खतरी- जो कपरी नाम स अधरक जाना जाता था, आगरा जाता हआ वयापार क माल स भरी नाव लकर यमना म आया ककनत कालीदह घाट क पास

रतील तट पर नाव अटक गयी। तीन ददनो तक ननकालन क असफल परयासो क बाद वह थथानीय दवता को खोजन और सहायता मागन लगा। वह ककनार पर आकर पहाडी पर िढा। वहा उस सनातन समल। सनातन न वयापारी स मदनमोहन स पराथाना करन का आदश ददया। उसन ऐसा ही ककया और ततकाल नाव तरन लग गई। जब वह आगर स माल बिकर लौटा तो उसन सारा पसा सनातन को अपाण कर ददया और उसस वहा मददर बनान की ववनती की। मददर बन गया और लाल पतथर का घाट भी बना। मशनदर का मधय भाग 57 फीट लमबा और जगमोहन 20'x 20'

वगा फीट पशचिमी छोर पर तथा इसी लमबाई िौडाई की पीछ पजा थथली ह। मधय भाग म तीन ओर तीन दवार ह और पवी छोर पर एक

वगााकार दवार ह शजसक बाहर 9 या 10 फीट का ढलान ह। इससलय परवश दवार ककनार की ओर स ह। इसकी कल उिाई 22 फीट ह। इसकी छत

धगर गई ह। जगमोहन की मीनार भी धगर िकी ह। इसक एकमव दवार पर एक पतथर लगा ह। शजस पर बगाली और दवनागरी म अककत ह। इस समय इसक उभर अिर इतन समट गय ह कक कछ भी थपषट पठनीय नही ह। पजाररयो न इसकी कोई धिता भी नही की। मशनदर की आय

लगभग दस हिार रपय थी, शजसम स आठ हिार रपय भट नयौछावर क होत थ और शर थथाई समपशतत स आत थ। वनदावन-जत मागा पर रामलाल नामक बाग इसकी समपशतत म था। इसी मशनदर की आय स राराकणड की शाखा भी वयवशथथत होती थी। समय-समय पर मशनदर का

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जीणोधदार भी कराया जाता रहा ह। पतथरो की जब कमी हई तो ईटो का परयोग ककया ह। दरवाि की एक बठक पर कननौज क ककसी यातरी की यातरा का नतथी सिक सवत 1684 वव0 सलखा ह। सन 1875 ई॰ म मशनदर म काफी सरार ककया गया। िढन क सलय सीदढया बनाई गई। परानी बाउनरी दीवार तोड दी गई। मदनमोहन जी की मल मनता अब करौली म ह। करौली म राजगोपाल ससह न 1725 ई॰ म उनक थवागताथा नया मशनदर बनवाया गया। शजस गसाई को मशनदर का परभार सौपा था, वह मसशादाबाद का रामककशोर था। इसक बाद मदनककशोर रहा। करौली क

मशनदर स पराभत लगा ह शजसस र0 27000 की वावराक आय होती थी। भगवान को ददन म सात बार भोग लगता ह। मखय ह दोपहर को राजभोग और रात को शयनभोग। शर पाि भोगो म स समषठान आदद रहता ह। सवाकाल म मगल आरती होती ह। 9 बज रप, 11 बज शगार, तीन बज पन: रप, साझ को साधय आरती होती ह। इस मशनदर क परसग म सरदास नामक एक वषणव भकत की एक घटना भकतमाल म वणणात हई ह। अकबर क शासन म वह सडीला का अमीन

था। एक अवसर पर मशनदर म आय पजाररयो और तीथा-याबतरयो क थवागत म उसन अपन शिल का तमाम लगान वयय कर डाला। खजान क

बकस ववधरवत ददलली (अकबर की राजरानी आगरा थी। ददलली भलवश सलखा गया परतीत होता ह।) भज ददय गय। जब व खोल गय तो उनम पतथरो क अनतररकत और कछ न ननकला। दहनद मनतरी टोडरमल तक को यह अनतशय भशकत पसद न आ सकी और वह कारागार म डाल ददया गया। कपाल भगवान अपन इस भकत सवक को नही भल सक और उनहोन ववशरकर बादशाह को उस कारागार स मकत करन क आदश

ददलाय। सरदास की नारायण परशसा मल पाठ म इस परकार ह। वपरयादास की टीका काफी लमबी ह। [1] अथाात भगवान मदनमोहन और सरदास

नाम जजीर की दो कडडयो की भानत अटल रप म जोड ददय। सरदास कावय गण और गान ववदया की रासश थ और सहिरी क अवतार थ। रारा-कषण उनक उपाथय थ और रहथय लीलाओ क आननद क अधरकारी थ। उनहोन बहववर नवरसो क परमख शगार रस क परमगीत अनक भानत

गाय। मख स नाम उचिारण करत ही शगार समराट हिारो बार नग पर दौड आय। दोनो जडवा भाइयो (यमलाजान) की भानत भगवान न सरदास

की अटट आथथा थवीकारी और जजीर की दो कडडयो की भानत मदनमोहन को सरदास क नाम क साथ जोड ददया।

जगलककशोर जी का मजददर

जगलककशोर जी का मशनदर, वनदावन

परानी शखला म यह िौथा ह। यह कशी घाट क पास शथथत ह। इसका ननमााण जहागीर क समय म सन 1627 ई॰ म हआ था। इसका ननमााणकतताा नानकरन था। यह िौहान ठाकर था। परनत यह भी असभव नही ह कक वह गोपीनाथ मशनदर क ननमााता रायससल का बडा भाई रहा हो। इसका जगमोहन दसर मशनदरो क जगमोहन की अपिा कछ बडा ह जो 25 वगाफीट का ह,दवार पवा को ह। ककनत उततर और दकषिण म भी छोट-छोट दवार ह। गभागरह नषट हो िका था। गराउस न मशनदर का जीणोधदार कराया था। नगरपासलका न ऊपर क कमर को एक रपया माससक

ककराय पर उठा ददया था शजसस कक कोई उस पर अनाधरकार न कर ल और उस की सफाई होती रह। कछ ही ददनो बाद नय कलकटर क आत ही इसका दरपयोग होन लगा और यह पश घर बन गया था।

गोपी नाथ जी मजददर ननमााण काल - ननशश ित नतधथ अजञात

ननमााता- कछवाहा ठाकरो की शखावत शाखा क सथथापक क पौतर रायससल

ननमााण शली - मदनमोहन मशनदर स सशलप म समलता जलता ह।

गोपी नाथ जी मशनदर, वनदावन

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सन 1821 ई॰ म एक बगाली कायथथ न नया मशनदर बनवाया शजसका नाम ननदकमार घोर था । इस शखला म यह कछ पहल का मशनदर ह। इसका ननामााण कछवाहा ठाकरो की शखावत शाखा क सथथापक क पौतर रायससल न कराया बतात ह। अफगान आकरमण को ववफल करन म उसन इतनी महानता और ववशरता क साथ काम ककया था कक अकबर न उस एक जागीर क साथ 1250 घडसवारो का मनसबदार बना ददया था। अकबर क अरीन राजा मानससह का भी उसन राणापरताप क ववरदध साथ ददया था और काबल क असभयान म भी खयानत अशजात की थी। उसक ननरन की नतधथ अजञात ह। शजस मशनदर का उसन ननमााण कराया बतात ह, वह पवा वणणात मदनमोहन मशनदर स सशलप म समलता-जलता ह। यह काफी भगनावथथा म था। गभा गह परा धगर िका था, तीनो बजा छत स आ लग थ और दरवािा भी पराय: धगर िका था। इसक

सहार छपपर बन गय थ शजसस यह ददखाई भी नही दता था। गराउस न यह छपपर धगरवा ददय थ। सन 1821 ई॰ म एक बगाली कायथथ न नया मशनदर बनवाया शजसका नाम ननदकमार घोर था। इसी न मदनमोहन का नया मशनदर भी बनवाया था। लगभग 3000 र0 का भट-िढावा इसम आता था और पराभत स 1200 रपय आत थ।

शरी सािी गोपाल का मजददर शी गोववनद मशनदर क पशचिम म सािीगोपाल मशनदर का भगनावशर अवसशषट ह। परािीन गोपाल जी सािी दन क सलए ववदयानगर िल गय थ। शी ितनयिररतामत म छोट-बड ववपर क परसग म भकतवतसल शी गोपाल जी का अदभत िररतर वणान ह। वहा पर परारकर शी गोपाल जी न जनसमाज म यह सािी दी थी कक 'बड ववपर न छोट ववपर की सवा स परसनन होकर उसस अपनी

बटी का वववाह करन का विन ददया था। म इसका सािी ह।' कालानतर म यह ववगरह शी जगननाथ परी म परार तथा वहा स बारह मील दर सतयवादीपर म अब ववराजमान ह। अब सतयवादीपर का नाम सािीगोपाल ही परससदध ह। तभी स वनदावन म सािीगोपाल का मशनदर सनी अवथथा म पडा ह तथा अब उसका भगनावशर ही अवसशषट ह

कशी घाट

यमना नदी पार स वनदावन का दरचय

यमना क ककनार िीरघाट स कछ पवा ददशा म कशी घाट अवशथथत ह। शीकषण न यहा कशी दतय का वर ककया था। परसग

एक समय सखाओ क साथ कषण यहा गोिारण कर रह थ। सखा मरमगल न हसत हए शीकषण स कहा-पयार सखा! यदद तम अपना मोरमकट, मरर मरसलया और पीतवथतर मझ द दो तो सभी गोप-गोवपया मझ ही पयार करगी तथा रसील लडड मझ ही णखलाएगी। तमह कोई

पछगा भी नही। कषण न हसकर अपना मोरपख, पीतामबर, मरली और लकटी मरमगल इठलाता हआ इरर-उरर घमन लगा। इतन म ही महापराकरमी कशी दतय ववशाल घोड का रप रारण कर कषण का वर करन क सलए दहनदहनाता हआ वहा उपशथथत हआ। उसन महाराज कस स

सन रखा था- शजसक ससर पर मोरपख, हाथो म मरली, अगो पर पीतवसन दखो, उस कषण समझकर अवचय मार डालना। उसन कषण सज हए

मरमगलको दखकर अपन दोनो वपछल परो स आकरमण ककया। कषण न झपटकर पहल मरमगल को बिा सलया। इसक पचिात कशी दतय का वर ककया। मरमगल को कशी दतय क वपछल परो की िोट तो नही लगी, ककनत उसकी हवा स ही उसक होश उड गय। कशी वर क पचिात वह

सहमा हआ तथा लशजजत होता हआ कषण क पास गया तथा उनकी मरली , मयरमकट, पीतामबर लौटात हए बोला- मझ लडड नही िादहए। पराण बि तो लाखो पाय। गवाल-बाल हसन लग। आज भी कशीघाट इस लीला को अपन हदय म सजोय हए ववराजमान ह।

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गोवधभन

दानघाटी, गोवधभन मथरा नगर क पशचिम म लगभग 21 ककमी की दरी पर यह पहाडी शथथत ह। यही पर धगररराज पवात ह जो 4 या 5 मील तक फला हआ ह। इस

पवात पर अनक पववतर थथल ह।पलथतय ऋवर क शाप क कारण यह पवात एक मटठी रोज कम होता जा रहा ह। कहत ह इसी पवात को भगवान

कषण न अपनी छोटी अगली पर उठा सलया था। गोवरान पवात को धगररराज पवात भी कहा जाता ह। गगा सदहता म गोवरान पवात की वदना करत हए इस वनदावन म ववराजमान और वनदावन की गोद म ननवास करन वाला गोलोक का मकटमणण कहा गया ह। पौराणणक मानयता अनसार शी धगररराजजी को पलथतय ऋवर दरौणािल पवात स बरज म लाए थ। दसरी मानयता यह भी ह कक जब राम सतबर का काया िल रहा था तो हनमान जी इस पवात को उततराखड स ला रह थ लककन तभी दव वाणी हई की सत बर का काया पणा हो गया ह तो यह सनकर हनमानजी इस पवात को बरज म थथावपत कर दकषिण की ओर पन: लौट गए। पौराणणक उललखो क अनसार भगवान कषण क काल म यह अतयनत हरा-भरा रमणीक पवात था। इसम अनक गफा अथवा कदराए थी और उनस शीतल जल क अनक झरन झरा करत थ। उस काल क बरज-वासी उसक

ननकट अपनी गाय िराया करत थ, अतः व उकत पवात को बडी शदधा की दरशषट स दखत थ। भगवान शी कषण न इनदर की परमपरागत पजा बनद

कर गोवरान की पजा बरज म परिसलत की थी, जो उसकी उपयोधगता क सलय उनकी शदधाजसल थी। भगवान शी कषण क काल म इनदर क परकोप स

एक बार बरज म भयकर वराा हई। उस समय समपणा बरज जल मगन हो जान का आशका उतपनन हो गई थी। भगवान शी कषण न उस समय

गोवरान क दवारा समथत बरजवाससयो की रिा की थी। भकतो का ववचवास ह, शी कषण न उस समय गोवरान को छतरी क समान रारण कर उसक नीि समथत बरज-वाससयो को एकतर कर सलया था, उस अलौककक घटना का उललख अतयनत परािीन काल स ही पराणादद रासमाक गरनथो म और कलाकनतयो म होता रहा ह। बरज क भकत कववयो न उसका बडा उललासपणा कथन ककया ह। आजकल क वजञाननक यग म उस

आलौककक घटना को उसी रप म मानना सभव नही ह। उसका बवदधगमय असभपराय यह जञात होता ह कक शी कषण क आदश अनसार उस समय

बरजवाससयो न गोवरान की कदराओ म आशय लकर वराा स अपनी जीवन रिा की थी। गोवरान क महतव की सवााधरक महतवपणा घटना यह ह

कक यह भगवान कषण क काल का एक मातर शथथर रहन वाला धिनह ह। उस काल का दसरा धिनह यमना नदी भी ह, ककनत उसका परवाह

लगातार पररवनतात होन स उस थथाई धिनह नही कहा जा सकता ह। इस पवात की पररकरमा क सलए समि ववचव स कषणभकत, वषणवजन और वललभ सपरदाय क लोग आत ह। यह परी पररकरमा 7 कोस (करोश) अथाात लगभग 21 ककलोमीटर ह। यहा लोग दणडौती पररकरमा करत ह। दणडौती पररकरमा इस परकार की जाती ह कक आग हाथ फलाकर िमीन पर लट जात ह और जहा तक हाथ फलत ह, वहा तक लकीर खीिकर

कफर उसक आग लटत ह। इसी परकार लटत-लटत या साषटाग दणडवत करत-करत पररकरमा करत ह जो एक सपताह स लकर दो सपताह म परी हो पाती ह। यहा गोरोिन, रमारोिन, पापमोिन और ऋणमोिन- य िार कणड ह तथा भरतपर नरश की बनवाई हई छतररया तथा अनय सदर

इमारत ह। मथरा स डीग को जान वाली सडक गोवरान पार करक जहा पर ननकलती ह, वह थथान दानघाटी कहलाता ह। यहा भगवान दान

सलया करत थ। यहा दानरायजी का मददर ह। इसी गोवदधान क पास 20 कोस क बीि म सारथवत कलप म वनदावन था तथा इसी क आसपास

यमना बहती थी। मागा म पडन वाल परमख थथल आनयौर, जनतपरा, मखारववद मददर, राराकणड, कसम सरोवर, मानसी गगा, गोववनद कणड,

पछरी का लौठा, दानघाटी इतयादद ह। राराकणड स तीन मील पर गोवरान पवात ह। पहल यह धगररराज 7 कोस म फल हए थ, पर अब आप

ररती म समा गए ह। यही कसम सरोवर ह, जो बहत सदर बना हआ ह। यहा वजरनाभ क परराए हररदवजी थ पर औरगजबी काल म वह यहा स

िल गए। पीछ स उनक थथान पर दसरी मनता परनतशषठत की गई। यह मददर बहत सदर ह। यहा शी वजरनाभ क ही परराए हए एकिकरचवर महादव का मददर ह। धगररराज क ऊपर और आसपास गोवदधान गराम बसा ह तथा एक मनसा दवी का मददर ह। मानसी गगा पर धगररराज का मखारववनद ह, जहा उनका पजन होता ह तथा आराढी पणणामा तथा कानताक की अमावथया को मला लगता ह। गोवदधान म सरसभ गाय, ऐरावत

हाथी तथा एक सशला पर भगवान का िरणधिहन ह। मानसीगगा पर शजस भगवान न अपन मन स उतपनन ककया था, दीवाली क ददन जो दीपमासलका होती ह, उसम मनो घी खिा ककया जाता ह, शोभा दशानीय होती ह। पररकरमा की शरआत वषणवजन जनतपरा स और सामानयजन

मानसी गगा स करत ह और पन: वही पहि जात ह। पछरी का लौठा म दशान करना आवचयक माना गया ह, कयोकक यहा आन स इस बात की पशषट मानी जाती ह कक आप यहा पररकरमा करन आए ह। पररकरमा म पडन वाल परतयक थथान स कषण की कथाए जडी ह। मखारववद मददर वह

थथान ह जहा पर शीनाथजी का पराकय हआ था। मानसी गगा क बार म मानयता ह कक भगवान कषण न अपनी बासरी स खोदकर इस गगा का पराकय ककया था। मानसी गगा क पराकय क बार म अनक कथाए ह। यह भी माना जाता ह कक इस गगा को कषण न अपन मन स परकट ककया था। धगररराज पवात क ऊपर गोववदजी का मददर ह। कहत ह कक भगवान कषण यहा शयन करत ह। उकत मददर म उनका शयनकि ह। यही मददर म शथथत गफा ह शजसक बार म कहा जाता ह कक यह राजथथान शथथत शीनाथ दवारा तक जाती ह। गोवरान की पररकरमा का पौराणणक

महतव ह। परतयक माह क शकल पि की एकादशी स पणणामा तक लाखो भकत यहा की सपतकोसी पररकरमा करत ह। परनतवरा गर पणणामा पर

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यहा की पररकरमा लगान का ववशर महतव ह। शीधगररराज पवात की तलहटी समथत गौडीय समपरदाय, अषटछाप कवव एव अनक वषणव रससक

सतो की सारना-थथली रही ह।

िररदव जी महदर

हररदव जी मददर, गोवरान

मानसी गगा क ननकटथथ इस मशनदर का ननमााण अमबर (आमर) नरश राजा भगवान दास न कराया था। 68 फीट लमब और 20 फीट िौड भववनयास क आयता कार मशनदर का गभागह इसी माप क अनसार बनाया गया। शजसक िारो ओर खल मधय भाग म तीन महराब बन हए ह। जब कक दवार क ननकट िौथ परथतरवाद दहनद शली की तकनीक क सहार दटका हआ ह। इसक ऊपरी दहथस म रौशनदान बन ह शजस की छजज स

ऊिाई लगभग 30 फीट ह। जो कक ननशचित दरी क अनतर हाधथयो और जलवयाघर क उभर ससरो क अलकत ह। इसक ऊपरी दहथस म पतथर की परी दोहरी छत थी। जो ऊिी उठी बाहरी और भीतरी महराबदार थी। मधय भाग समतल ककनत ककनार स यह इतना गहरी महराब दार और थी कक

इमारत की िौडाई कम होत हए भी महराबदार छत का आभास दती ह। ऐसी ही िमकती महराबदार छत भगवानदास क पतर मानससह दवारा वनदावन म बनवाय गय गोववनद दव जी मशनदर म भी ददखाई पडती ह। भववनसाय क मधयभाग एव गभागह पर बन दो सशखरो क छत क बराबर समतल ककय जान क बावजद भी महाकाय ननमााण का बदहभााग भवय

व परभावशाली ह। इसक ननमााण म भरतपर खदानो की नीव म आसपास क पतथरो का उपयोग ककया गया। इनस कई फीट गहरी भता की गई। भवन क आरार म समटटी भर दी गई ऊिाई स भवन का थथानयतव और परतीनत बढ गई। मददर क सथथापक क वपता बबहारीमल पहल राजपत थ

शजनहोन मगल दरबार स समबनर थथावपत ककय। व अमबर क कछवाहा ठाकरो की राजावत शाखा क मणखया थ। उनक मताबबक व इस शाखा क सथथापक की 18वी पीढी क वशज थ। परवती काल म 1728 ई॰ म राजरानी जयपर थथानानतररत हो गई। वतामान म महाराजा 34वी पीढी क वशज बताय जात ह। सरनाल क यदध म भगवान दास न सौभागय वश अकबर क जीवन की रिा की। तदननतर उनह पजाब का गवानर ननयकत ककया गया। वही 1520 म लाहौर म उनकी मतय हो गई। उनकी पतरी का वववाह सलीम स हआ जो अनतोगतवा जहागीर क णखताब

रारण कर बादशाह बना। मददर को भगोसा और लोरीपरी गावो 2,300 रपय की वावराक आय परापत होती थी। इनम स बाद क गाव का अनदान भरतपर नरश दवारा 500

रपय माससक दान क बदल म ककया गया। मददर क वशानगत गोसाई लमब समय मशनदर की बनावट और रासमाक सवाओ की उपिा करत हए

परी आय का उपभोग करत रह। इस अदरदशी लालि क िलत उततरी भारत क परससदध तीथा मददर की वासशाक आय ससमटकर 50 रपय रह

गयी। इतना ही नही बशलक 1872 ई॰ म मधय भाग की मिबत छत जजार होन लगी। इसक जीणोदधार की गराउस दवारा ससववल कोटा स अनदान थवीकत करान का परयास ककया गया। साथ ही मशनदर की पराशपत जो कछ महीनो म साझदारो क झगडो क कारण शिला कोशागार म जमा होन लगी थी, जडकर 3,000 रपय हो गई। परथताव को सहायता परदान करन म थथानीय

शासन न कोई अननचछा नही जताई और एक असभयनता जीणोदधार काया की समभाववत लागत जािन क सलए परनतननयकत ककया गया। ककनत

आयकत कायाालय स पतरािार करन म दभाागयवश दर हो गई और इसी बिी एक दहथस को छोडकर परी छत धगर गई। हालाकक यह जीणोदवार क ितर म एक परनतमान बन सकता था। इसक सलए 8,767 रपय का अनमाननत खिा ननरााररत कर सलया गया था। इसक साथ ही िकक काया की शरआत क सलए अचछी बित भी थी। यदद काया बबना दरी ककय ततकाल शर हो जाता तो दो या तीन वरो म बगर ककसी अडिन क परा हो जाता। ककनत वररषट अधरकाररयो न अपरल तक कोई अगला आदश नही ददया। जब आगामी अकटबर म अनमाननत खिा परथतत ककया गया। इसी बीि अडीग क बननया छीतरमल न थवय को अमर रखन क इराद स अलप वयय क बल पर जीणोदवार का बीडा उठाया और ननजी वयय पर

उसस िररी ननमााण काया अपन हाथो म ल सलया। तदनसार उसन मल छत क बि हए दहथस को छललदार छजज समत बरहमी स धवथत करा ददया और उसकी जगह बडौल लकडी दीवारो पर रखवा दी। शजनस ससफा इतना हो सकता था कक आगामी कछ वरो क सलए मौसम स रिा हो सकगी। मगर आकनत म जो कछ अदववतीय ववसशषटता थी, अशथततव म नही रही। इस परकार भारतीय थथापतय क खशणडत इनतहास क कछ

पननो म हमशा क सलए रबब लग गय। वनदावन क गोववनद दव मशनदर की तजा पर यहा कोई परनतमा नही ह शजसस अधरकाश दहनद रमाथथलो की तरह इसकी कलातमक परतीनत म अपकशाण उतपनन हो गया। जबकक इसम मौसलक रप स मनतापजा क सलए पराण परनतशषठत ककया गया था। इसम पववतरतम ववचवास की जन आनशणननक कायो क सलए थथापतय क सभी अथा समादहत थ। यदद इस राषरीय थमारक क रप म स रकषित

ककया गया होता तो भववषय क ककसी थवणणाम काल म गोवरान का वही थथान होता जसा कक परािीन रोम का ह।

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मानसी गगा गोवरान गाव क बीि म शी मानसी गगा ह। पररकरमा करन म दायी और पडती ह और पछरी स लौटन पर भी दायी और इसक दशान होत ह। एक

बार शी ननद-यशोदा एव सभी बरजवासी गगा थनान का वविार बनाकर गगा जी की तरफ िलन लग। िलत-िलत जब व गोवरान पहि तो वहा सनधया हो गयी। अत: राबतर वयतीत करन हत शी ननद महाराज न शी गोवरान म एक मनोरम थथान सननशचित ककया।

मानसी गगा, गोवरान

यहा पर शी कषण क मन म वविार आया कक बरजराम म ही सभी-तीथो का वास ह, परनत बरजवासीगण इसकी महान मदहमा स अनसभजञ ह। इससलय मझ ही इसका कोई समारान ननकालना होगा। शी कषण जी क मन म ऐसा वविार आत ही शी गगा जी मानसी रप म धगररराज की तलहटी म परकट हई। परात:काल जब समथत बरजवाससयो न धगररराज तलहटी म शी गगा जी को दखा तो व ववशथमत होकर एक दसर स

वाताालाप करन लग। सभी को ववशथमत दख अनतयाामी शी कषण बोल कक- इस पावन बरजभसम की सवा हत तो तीनो लोको क सभी-तीथा यहा आकर ववराजत ह। परनत कफर भी आपलोग बरज छोडकर गगा थनान हत जा रह ह। इसी कारण माता गगा आपक सममख आववभात हई ह। अत: आपलोग शीघर ही इस पववतर गगा जल म थनानादद काया समपनन कर। शी ननद बाबा न शी कषण की इस बात को सनकर सब गोपो क

साथ इस म थनान ककया। राबतर को सब न दीपावली का दान ददया। तभी स आज तक भी दीपावली क ददन यहा असखय दीपो की रोशनी की जाती ह। शी कषण क मन स आववभात होन क कारण यहा गगाजी का नाम मानसीगगा पडा। कानताक मास की अमावथया नतधथ को शी गगा जी यहा परकट हई थी। आज भी इस नतथी को थमरण करत हए हिारो भकतगण यहा थनान-पजा-अिाना-दीप दानादद करत ह। भागयवान भकतो को कभी-कभी इसम दर की रारा का दशान होता ह। शी भशकत ववलास म कहा गया ह- गग दगरमय दवी! भगवनमानसोदव। भगवान शी कषण क मन स आववभात होन वाली दगरमयी गगा दवी! आपको म नमथकार करता ह। इस मानसी गगा का परससदध गगा नदी स सवााधरक माहातमय ह। वह शी भगवान क िरणो स उतपनन हई ह और इसकी उतपशतत शी भगवान क मन स ह। इसम शी राराकषण सणखयो क साथ यहा नौका-ववहार की लीला करत ह। इस मानसी गगा म शी रघनाथ दास गोथवामीपाद न शी राराकषण की नौका-ववलास लीला का दशान ककया था। मानसी गगा म एक बार थनान करन स जो फल परापत

होता ह वह हिारो अचवमर यजञो तथा सकडो राजसय यजञो क करन स परापत नही होता ह*। मानसी गगा क तटो को पतथरो स सीदढयो सदहत

बनवान का शय जयपर क राजा शी मानससह क वपता राजा शी भगवानदास को ह। मानसी गगा क िारो और दशानीय थथानो क दशान करत हए

पररकरमा लगात ह।

पररकरमा पदवतत

मानसी गगा की पररकरमा ककसी भी थथान स ककसी भी समय उठा सकत ह। मगर जहा स पररकरमा आरमभ कर वही पर आकर पररकरमा को ववराम दना िादहए। मखारववनद स पररकरमा परारमभ करत ह। मानसी गगा क पवा तट पर मखारववनद मशनदर क ननकट शी लकषमीनारायण

मशनदर ह। यहा स गोवरान पररकरमा मागा म िलत हए शी हररदव जी का मशनदर ह। कफर यहा स आग पररकरमा मागा म िलत हए दानघाटी पर

शी दानबबहारी जी क मशनदर क दशान होत ह। िलत-िलत शी लकषमीनारायण मशनदर, शी रारा मदनमोहन मशनदर, शी बबहारी जी मशनदर, शी ववचवकमाा मशनदर, शी वकटचवर मशनदर, शी रारावललभ मशनदर, यहा स शी चयामसनदर मशनदर, शी िकलचवर महादव मशनदर इतयादद होत

हए शी मखारववनद मशनदर म आत हए पररकरमा को ववराम दत ह।

मजददर तथा कणड समि

मानसी गगा क पवभ हदशा म शी मखारववनद, शी लकषमीनारायण मशनदर, शी ककशोरीचयाम मशनदर, शी धगररराज मशनदर, शी मनमहापरभ जी की बठक, शी राराकषण मशनदर

शथथत ह।

दकषिण हदशा म शी हररदव मशनदर, बरहमकणड, शी मनसादवी मशनदर, शी गौरादाऊ जी, शी गनरचवर महादव जी, शी यमना मोहन जी, शीमहादव-हनमान जी, शी बबहारी जी मशनदर दशानीय ह।

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पजचचम हदशा म शी धगररराज महाराज (शी सािीगोपाल) मशनदर, शी ववचवकमाा, शी राराकषण मशनदर शथथत ह।

उततर हदशा म शी राराबललभ मशनदर, शी नरससह, शी चयामसनदर, शी बबहारी जी, शी लकषमीनारायण, शी नाथ जी, शी ननदबाबा का मशनदर, शी रारारमण,

नतन मशनदर, शी अदवतदास बाबा का भजन कटीर, शी तीन कौडी बाबा का आशम, ससदधबाबा का भजन कटीर, शी रारागोववनद मशनदर, भागवत भजन, शी िकलचवर महादव, महापरभ मशनदर, राजकणड, झलन करीडा थथान, ससदध शी हनमान मशनदर इतयादद दशानीय ह। मानसी गगा क सभी घाटो का ननमााण जयपर नरश मानससह क वपता राजा भगवानदास न कराया था। मानसी गगा का बहत महतव ह। मानसी गगा क पराकय की तीन कथाय कही जाती ह।

1. शीकषण न गोवपयो क कहन पर वर हतया क पाप स मकत होन क सलय अपन मन स इस परकट ककया तथा एव इसम थनान कर पाप

मकत हए। 2. शी ननदबाबा और यशोदा मया बरजवाससयो क साथ गगा थनान क सलय यातरा पर जा रह थ। रात म इनहोन गोवरान म ववशाम ककया।

कषण न वविार ककया कक जब सार तीथा बरज म ववदयमान ह, तो इतनी दर कया जाना? कषण न भागीरथी गगा का थमरण ककया और थमरण करत ही गगा वहा दीपावली क ददन परकट हो गयी। राबतर म सभी न दीपदान ककया तथा थनान ककया। जब स परनतवरा लाखो तीथायातरी यहा दीपावली पर थनान करत ह और दीपदान करत ह।

3. शीकषण जी की पटरानी यमना जी न अपनी बडी बदहन गगा क ऊपर कपा करन क सलय कषण स पराथाना की। कषण न यमना की पराथाना सनकर उसी समय गगा का आहवान ककया और गोवपयो क साथ जल ववहार कर उनह कताथा ककया।

कसम सरोवर गोवरान स लगभग 2 ककलोमीटर दर राराकणड क ननकट थथापतय कला क नमन का एक समह जवाहर ससह दवारा अपन वपता

सरजमल ( ई.1707-1763) की थमनत म बनवाया गया। ई. 1675 स पहल यह कचिा कणड था शजस ओरछा क राजा वीर ससह न पकका कराया उसक बाद राजा सरजमल न इस अपनी रानी ककशोरी क सलए बाग-बगीि का रप ददया और इस अधरक सनदर और

मनोरम थथल बना ददया ।

कसम सरोवर, गोवरान

बाद म जवाहर ससह न इस अपन माता वपता क थमारक का रप द ददया । मखय थमारक 57 फीट वगााकार ह । थमारक का सबस

उतकषट भाग इसकी कसी ह जोकक रपरखा म सथपषट और पररषकनत म उतकषट ह। राजा क थमारक क बगल म दोनो ओर कछ छोट

आकार म उनकी राननयो, हससया और ककशोरी की छतररया बनी ह। थमारक 460 फीट लमब िबतर पर ह । इसकी वपछली दीवार दोनो ककनारो पर पद क सदषय परतीत होती ह और ववसभनन रपरखा की दो मशजली नौ छतररया अगरभाग म उभार परदशान को ननसमात

की गई ह। रानी हससया क थमारक क सशननकट एक ववचवसनीय दासी की छतरी भी ह । इसक पीछ एक ववथतीणा बगीिा ह और सामन की ओर वददका क ननिल दहथस पर एक मनोरम तालाब ह, शजस कसम सरोवर कहा

जाता ह। यह सरोवर 460 फीट वगााकार ह। इसक पतथरो क सोपान िारो ओर मधयभाग म टट ह और िार छोट आकार क कि

आचछाददत दीवार क साथ पानी म सरोवर जल क 60 फीट अनदर तक बन ह। इसक उततर म जवाहर ससह की छतरी ननमााण क सलए

परगनत हई थी ककनत तभी मसलमानो क आकरमण क िलत उसका दबारा ननमााण काया शर नही ककया जा सका। उसी ओर झील क

घाट िनतगरथत ह। कहा जाता ह कक इसक ननमााण क कछ वरा पचिात ही गोसाई दहममत बहादर ननमााण सामगरी वनदावन म घाटो का ननमााण करान क सलए ल गया। आज भी घाट उसकी थमनत म कायम ह।

कसम सरोवर गोवरान क पररकरमा मागा म शथथत एक रमणीक थथल ह जो अब सरकार क सरिण म ह। उधित दखभाल न होन क

कारण अपनी भवयता और रमणीकता खोता जा रहा ह।

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बरसाना बरसाना मथरा स 42 कक॰मी॰, कोसी स 21 कक॰मी॰, छाता तहसील का एक छोटा-सा गाव ह। बरसाना रारा क वपता वरभान का ननवास थथान

था। यहा लाडलीजी का बहत बडा मददर ह। यहा की अधरकाश परानी इमारत 300 वरा परानी ह। रारा को लोग यहा पयार स 'लाडलीजी' कहत ह। बरसाना गाव क पास दो पहाडडया समलती ह। उनकी घाटी बहत ही कम िौडी ह। मानयता ह कक गोवपया इसी मागा स दही-मकखन बिन जाया करती थी। यही पर कभी-कभी कषण उनकी मटकी छीन सलया करत थ। बरसाना का पराना नाम बरहमासररनन था। राराषटमी क अवसर पर

परनतवरा यहा मला लगता ह।

जयपर मददर, बरसाना बरसाना कषण की परयसी रारा की जनमथथली क रप म परससदध ह। इस थथान को, जो एक बहत पहाडी की तलहटी म बसा ह, परािीन समय म बहतसान कहा जाता था (बहत सान=पवात सशखर) इसका परािीन नाम बरहतसान, बरहमसान अथवा वररभानपर ह। इसक अनय नाम बरहमसान या वरभानपर (वरभान, रारा क वपता का नाम ह) भी कह जात ह। बरसाना परािीन समय म बहत समदध नगर था। रारा का परािीन मददर मधयकालीन ह जो लाल और पील पतथर का बना ह। यह अब पररतयकतावथथा म ह। इसकी मनता अब पास ही शथथत ववशाल एव परम भवय

सगमरमर क बन मददर म परनतषठावपत की हई ह। य दोनो मददर ऊिी पहाडी क सशखर पर ह। थोडा आग िल कर जयपर-नरश का बनवाया हआ दसरा ववशाल मददर पहाडी क दसर सशखर पर बना ह। कहा जाता ह कक औरगजब शजसन मथरा व ननकटवती थथानो क मददरो को कररतापवाक नषट कर ददया था, बरसान तक न पहि सका था। रारा शी कषण की आहलाददनी शशकत एव ननकचजचवरी मानी जाती ह। इससलए

रारा ककशोरी क उपासको का यह अनतवपरय तीथा ह। बरसान की पणयथथली बडी हरी-भरी तथा रमणीक ह। इसकी पहाडडयो क पतथर चयाम तथा गौरवणा क ह शजनह यहा क ननवासी कषणा तथा रारा क अमर परम का परतीक मानत ह। बरसान स 4 मील पर ननदगाव ह, जहा शीकषण क

वपता नद जी का घर था। बरसाना-नदगाव मागा पर सकत नामक थथान ह। जहा ककवदती क अनसार कषण और रारा का परथम समलन हआ

था। (सकत का शबदाथा ह पवाननददाषट समलन का थथान) यहा भादर शकल अषटमी (राराषटमी) स ितदाशी तक बहत सनदर मला होता ह। इसी परकार फालगन शकल अषटमी, नवमी एव दशमी को आकराक लीला होती ह। बसत पिमी स बरसाना होली क रग म सरोबार हो जाता ह। टस

(पलाश) क फल तोडकर और उनह सखा कर रग और गलाल तयार ककया जाता ह। गोथवामी समाज क लोग गात हए कहत ह- "ननदगाव को पाड बरसान आयो र।" शाम को 7 बज िौपाई ननकाली जाती ह जो लाडली मशनदर होत हए सदामा िौक रगीली गली होत हए वापस मशनदर आ

जाती ह। सबह 7 बज बाहर स आन वाल कीतान मडल कीतान करत हए गहवर वन की पररकरमा करत ह। बारहससघा की खाल स बनी ढाल को सलए पीली पोखर पहित ह। बरसानावासी उनह रपय और नाररयल भट करत ह, कफर ननदगाव क हररयार भाग-ठडाई छानकर मद-मथत होकर

पहित ह। रारा-कषण की झाकी क सामन समाज गायन करत ह । लटठामार िोली बरहमधगरी पवात शथथत ठाकर लाडीलीजी महाराज मशनदर क परागण म जब नदगाव स होली का नयोता दकर महाराज वरभानजी का परोदहत

लौटता ह तो यहा क बरजवासी ही नही दश भर स आय शदधाल खशी स झम उठत ह। पाड का थवागत करन क सलए लोगो म होड लग जाती ह। थवागत दखकर पाड खशी स नािन लगत ह। रारा कषण की भशकत म सब अपनी सर-बर खो बठत ह। लोगो दवारा लाय गय लडडओ को ननदगाव क हररयार फगआ क रप म बरसाना क गोथवामी समाज को होली खलन क सलए बलात ह। कानहा क घर ननदगाव स िलकर उनक

सखा थवरपो न आकर अपन कदम बढा ददया। बरसानावासी रारा पि वालो न समाज गायन म भशकतरस क साथ िनौती पणा पशकतया परथतत

करक ववपि को मकाबल क सलए ललकारत ह और मकाबला रोिक हो जाता ह। लटठा-मार होली स पवा ननदगाव व बरसाना क गोथवामी समाज

क बीि जोरदार मकाबला होता ह। ननदगाव क हररयार सवापरथम पीली पोखर पर जात ह। यहा थथानीय गोथवामी समाज अगवानी करता ह। महमान-नवाजी क बाद मशनदर पररसर म दोनो पिो दवारा समाज गायन का मकाबला होता ह। गायन क बाद रगीली गली म हररयार लटठ

झलत ह। यहा सघड हररयारी अपन लठ सलए थवागत को खडी समलती ह। दोनो तरफ कतारो म खडी हसी दठठोली करती हई हररयानो को जी भर-कर छडत ह। ऐसा लगता ह जस असल म इनकी ससराल यहा ह। इसी अवसर पर जो भतकाल म हआ उस शजया जाता ह। यह परमपरा सददयो स िली आ रही ह। ननचछतल परम भरी गासलया और लादठया इनतहास को दोबारा दोहरात हए निर आत ह। बरसाना और ननदगाव म इस

थतर की होली होन क बाद भी आज तक कोई एक दसर क यहा वाथतव म कोई आपसी ररचता नही हआ। आजकल भी यहा टस क फलो स होली खली जाती ह, रसायनो स पववतरता क कारण बािार रगो स परहि ककया जाता ह। अगल ददन ननदबाबा क गाव म छतटा होती ह। बरसाना क

लोह-हरा स भरकर मकाबला जीतन ननदगाव आयग। यहा गायन का एक बार कफर कडा मकाबला होगा। यशोदा कणड कफर स थवागत का गवाह

बनगा, भरा थोक म कफर होगी लटठा-मार होली।

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राधा रानी महदर

रारा रानी मददर, बरसाना

बरसाना क बीिो-बीि एक पहाडी ह जो कक बरसान क मशथतरक पर आभरण क समान ह। उसी क ऊपर रारा रानी मददर ह इस मददर को बरसान की लाडली जी का मददर भी कहा जाता ह। रारा का परािीन मददर मधयकालीन ह जो लाल और पील पतथर का बना ह। रारा-कषण को समवपात इस भवय और सनदर मददर का ननमााण राजा वीर ससह न 1675 म करवाया था। बाद म थथानीय लोगो दवारा पतथरो को इस मददर म लगवाया। रारा जी को पयार स बरसाना क लोग लसल जी और वरभान दलारी भी कहा जाता ह। राराजी क वपता का नाम वरभान और उनकी माताजी का नाम कीनता था। रारा रानी का मददर बहत ही सनदर और मनमोहक ह। रारा रानी मददर करीब ढाई सौ मीटर ऊिी पहाडी पर बना ह

और इस मददर म जन क सलए सकडो सीदढया िढनी पढती ह। रारा शी कषण की आहलाददनी शशकत एव ननकचजचवरी मानी जाती ह। इससलए

रारा ककशोरी क उपासको का यह अनतवपरय तीथा ह। बरसान की पणयथथली बडी हरी-भरी तथा रमणीक ह। इसकी पहाडडयो क पतथर चयाम तथा गौरवणा क ह शजनह यहा क ननवासी कषणा तथा रारा क अमर परम का परतीक मानत ह। बरसान स 4 मील पर ननदगाव ह, जहा शीकषण क

वपता नद जी का घर था। बरसाना-नदगाव मागा पर सकत नामक थथान ह। जहा ककवदती क अनसार कषण और रारा का परथम समलन हआ

था। (सकत का शबदाथा ह पवाननददाषट समलन का थथान) यहा भादर शकल अषटमी (राराषटमी) स ितदाशी तक बहत सनदर मला होता ह। इसी परकार फालगन शकल अषटमी, नवमी एव दशमी को आकराक लीला होती ह। लाडली जी क मददर म राराषटमी का तयौहार बड ही रमराम स

मनाया जाता ह। यह तयौहार भदरपद माह क शकल पि की अषटमी को मनाया जाता ह।

राधाषटमी बरसान म राराषटमीका तयौहार बड रमराम स मनाया जाता ह। राराषटमी क ददन रारा रानी मददर को दलहन की तरह सजाया जाता ह। राराषटमी का पवा जनमाषटमी क 15 ददन बाद भदरपद माह की शकल पि की अषटमी को मनाया जाता ह। राराषटमी पवा बरसाना वाससयो क

सलए अनत महतवपणा ह। राराषटमी क ददन रारा जी क मददर म फलो और फलो स सजाया जाता ह। पर बरसान म इस ददन उतसव का महौल

होता ह। राराषटमी क उतसव म राराजी को लडडओ का भोग लगाया जाता ह और उस भोग को मोर को णखला ददया जाता ह। रारा रानी को छपपन परकार क वययजनो का भोग लगाया जाता ह और इस बाद म मोर को णखला ददया जाता ह। मोर को रारा-कषण का थवरप माना जाता ह। बाकी परसाद को शदधालओ म बाट ददया जाता ह। रारा रानी मददर म शदधाल बराई गान गात ह और नाि गाकर राराषटमी का तयौहार मनात

ह। राराषटमी क उतसव क सलए राराजी क महल को काफी ददन पहल स सजाया जाता ह। राराषटमी क पवा पर शदधाल गहवरवन की पररकरमा भी लगात ह। राराषटमी क अवसर पर रारा रानी मददर क सामन मला लगाता ह।

महदर म िोली बरसान म होली का तयौहार बड रमराम स मनाया जाता ह। बरसाना म लटठमार होली की शरआत सोलहवी शताबदी म हई थी। तब स बरसाना म यह परपरा य ही ननभाई जा रही ह, शजसक अनसार वसत पिमी क ददन मददर म होली का डाढा गड जान क बाद हर शाम गोथवामी समाज

क लोग रमार गायन करत ह। परसाद म दशानाधथायो पर गलाल बरसाया जाता ह। इस ददन रारा जी क मददर स पहली िौपाई ननकाली जाती ह

शजसक पीछ-पीछ गोथवामी समाज क परर झाडा-मजीर बजात हए होली क पद गात िलत ह। बरसाना की रगीली गली स होकर बािारो स रग

उडाती हई यह िौपाई सभी को होली क आगमन का एहसास करा दती ह। मददर म पड की अचछी खासी खानतर की जाती ह। यहा तक कक उस

पर शकवटल क दहसाब स लडड बरसाए जात ह शजस पाड लीला कहा जाता ह। शदधाल रारा जी का आशीवााद परापत करन क सलए मददर म होती ह तो उन पर वहा क सवायत िारो तरफ स कसर और इतर पड टस क रग और गलाल की बौछार करत ह। मददर का लबा िौडा परागण रग-गलाल स

सराबोर हो जाता ह।

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नददगााव

ननद जी मददर, ननदगाव

ननदगाव बरजमडल का परससदध तीथा ह। मथरा स यह थथान 30 ककलोमीटर दर ह। यहा एक पहाडी पर ननद बाबा का मशनदर ह। नीि पामरीकणड नामक सरोवर ह। याबतरयो क ठहरन क सलए रमाशाला ह।

भगवान कषण क पालक वपता स समबदध होन क कारण यह थथान तीथा बन गया ह। ननदगाव म बरजराज शीननदमहाराज जी का राजभवन ह। यहा शीननदराय, उपाननद, असभननद, सननद तथा ननद न वास ककया ह, इससलए यह ननदगाव सखद थथान ह।

गोवरान स 16 मील पशचिम उततर कोण म, कोसी स 8 मील दकषिण म तथा वनदावन स 28 मील पशचिम म ननदगाव शथथत ह। ननदगाव की परदकषिणा (पररकरमा) िार मील की ह। यहा पर कषण लीलाओ स समबशनरत 56 कणड ह। शजनक दशान म 3–4 ददन लग

जात ह। दवाधरदव महादव शकर न अपन आराधयदव शीकषण को परसनन कर यह वर मागा था कक म आपकी बालयलीलाओ का दशान करना

िाहता ह। थवय भगवान शीकषण न ननदगाव म उनह पवाताकार रप म शथथत होन का आदश ददया। शीशकर महादव भगवान क आदश

स ननदगाव म ननदीचवर पवात क रप म शथथत होकर अपन आराधय दव क आगमन की परतीिा करन लग। शीकषण परम वषणव शकर की असभलारा पणा करन क सलए ननदीचवर पवात पर बरजवाससयो ववशरत: ननदबाबा, यशोदा मया तथा गोप सखाओ क साथ अपनी बालय एव पौगणड अवथथा की मरर लीलाए करत ह।

दवापरयग क अनत म दवमीढ नाम क एक मनन थ। उनकी दो पशतनया थी। एक िबतरय वश की, दसरी गोप वश की थी। पहली िबतरय

पतनी स शरसन तथा दसरी गोपपतनी स पजानय गोप पदा हय। शरसन स वसदव आदद िबतरय पतर उतपनन हए। पजानय गोप कवर और गोपालन क दवारा अपना जीवन ननवााह करत थ। पजानय गोप अपनी पतनी वरीयसी गोपी क साथ ननदीचवर पवात क ननकट ननवास

करत थ। दववरा नारद भरमण करत–करत एक समय वहा आय। पजानयगोप न ववधरवत पजा क दवारा उनको परसनन कर उनस उततम

सनतान परापत करन क सलए आशीवााद मागा। नारद जी न उनको लकषमीनारायण मनतर की दीिा दी और कहा, इस मनतर का जप करन स

तमह उततम सनतान की पराशपत होगी। नारद जी क िल जान पर व पास ही तडाग तीथा म थनान कर वही गरपरदतत मनतर का परनतददन

ननयमानसार जप करन लग। एक समय मनतर जप क समय आकाशवाणी हई कक- ह पजानय! तमन ऐकाशनतक रप म मरी आरारना की ह। तम परम सौभागयवान हो। समथत गणो स गणवान तमहार पाि पतर होग। उनम स मधयम पतर ननद होगा, जो महासौभागयवान

होगा। सवाववजयी, रडचवयासमपनन, पराणीमातर क सलए आननददायक शीहरर थवय उनक पतर क रप म परकट होग। ऐसी आकाशवाणी सनकर पजानयगोप बहत परसनन हए। कछ ददनो क पचिात उनह पाि पतर और दो कनयाए पदा हई। व कछ और ददनो तक ननदीचवर पवात क ननकट रह, ककनत कछ ददनो क बाद कशी दतय क उपदरव स भयभीत होकर व अपन पररवार क साथ गोकल महावन म जाकर

बस गय। वही मधयमपतर ननदमहाराज क पतर क रप म थवय भगवान शीकषणिनदर परकट हए।

लटठामार िोली बरसाना और नदगाव की लठमार होली तो जगपरससदध ह। "नदगाव क कवर कनहया, बरसान की गोरी र रससया" और ‘बरसान म आई जइयो बलाए गई रारा पयारी’ गीतो क साथ ही बरज की होली की मथती शर होती ह। वस तो होली पर भारत म मनाई जाती ह लककन बरज की होली खास मथती भरी होती ह. वजह य कक इस कषण और रारा क परम स जोड कर दखा जाता ह। उततर भारत क बज ितर म बसत पिमी स ही होली का िालीस ददवसीय उतसव आरभ हो जाता ह। नदगाव एव बरसान स ही होली की ववशर उमग जागत होती ह। जब नदगाव क गोप गोवपयो पर

रग डालत, तो नदगावकी गोवपया उनह ऐसा करनस रोकती थी और न माननपर लाठी मारना शर करती थी। होली की टोसलयो म नदगाव क

परर होत ह कयोकक कषण यही क थ और बरसान की मदहलाए कयोकक रारा बरसान की थी। ददलिथप बात य होती ह कक य होली बाकी भारत

म खली जान वाली होली स पहल खली जाती ह। ददन शर होत ही नदगाव क हररयारो की टोसलया बरसान पहिन लगती ह. साथ ही पहिन लगती ह कीतान मडसलया। इस दौरान भाग-ठढई का खब इतिाम होता ह। बरजवासी लोगो की धिरौटा जसी आखो को दखकर भाग ठढई की वयवथथा का अदाि लगा लत ह। बरसान म टस क फलो क भगोन तयार रहत ह। दोपहर तक घमासान लठमार होली का समा बर िका होता ह। नदगाव क लोगो क हाथ म वपिकाररया होती ह और बरसान की मदहलाओ क हाथ म लादठया, और शर हो जाती ह होली। कछ समय बाद वहा महावन म भी पतना, शकटासर तथा तणावता आदद दतयो क उतपाद को दखकर वरजचवर शीननदमहाराज अपन

पतरादद पररवार वगा तथा गो, गोप, गोवपयो क साथ छटीकरा गराम म, कफर वहा स कामयवन, खलनवन आदद थथानो स होकर पन:

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ननदीचवर (ननदगाव) म लौटकर यही ननवास करन लग। यही पर कषण की बालय एव पौगणड की बहत सी लीलाए हई। यही स गोपाषटमी क ददन पहल बछडो और बछडडयो को तथा दो–िार वरो क बाद गोपाषटमी क ददन स ही कषण और बलदव सखाओ क साथ गायो को लकर गोिारण क सलए जान लग। यहा ननदगाव म कषण की बहत सी दशानीय लीलाथथसलया ह।

नददरवन

ननदीचवर पवात स सलगन दकषिण की ओर ननदभवन की पौढी का भगनावशर नाममातर अवसशषट ह । यही पर ववशाल ननदभवन था । इसम ननदबाबा, मा यशोदा, मा रोदहणी, कषण और बलदव सबक अलग–अलग शयनघर, रसोईघर, भाणडारघर, भोजनथथल, राधरका एव कषण क

ववशामथथल आदद कि ववराजमान थ । यही पर कषण और बलदव न अपनी बालय, पौगणड और ककशोर अवथथा तक की बहत सी लीलाए की ह । यही पर मा यशोदा क अतयनत आगरह और परीनतपवाक अनरोर स सणखयो क साथ राधरका परनतददन पवााहव म जावट गराम स आकर परम

उललासपवाक मा रोदहणी क साथ कषण क सलए रधिकर दरवयो का पाक करती थी । कषण पास क बहत भोजनागार म सखाओ क साथ भोजन

करत थ । भोजन क पचिात एक सौ पग िलकर शयनागार म ववशाम करत थ ।

राचधका ववशरामसथल

रनरन का काया समापत होन क पचिात राधरका मा यशोदा क अनरोर स शी रननषठा सखी क दवारा लाय हए शीकषण क भकतावशर क साथ

परसाद पाकर इसी बगीि म ववशाम करती थी । उसी समय सणखया दसरो स अलकषित रप म कषण का उनक साथ समलन कराती थी । इस

थथान का नाम राराबाग ह ।

वनगमन सथान

मा यशोदा बलराम और कषण का परनतददन नाना रप स शगार कर उनह गोिारण क सलए तयार करती थी । तथा वयाकल धितत स सखाओ क

साथ गोिारण क सलए ववदा करती थी ।

गोचारण गमन मागभ सखाओ क साथ नटवर राम–कषण गोिारण क सलए इसी मागा स होकर ननकलत थ ।

राचधका ववदा सथल

मा यशोदा राधरका को गोदी म बठाकर रोती हई उस जावट गराम क सलए यही स ववदा करती थी ।

दचधमदथन का सथान

यशोदा जी यहा ननतयपरनत परात:काल दधरमनथन करती थी । आज भी यहा एक बहत बडी दधर की मटकी दशानीय ह ।

पणभमासीजी का आगमन पथ

बालकषण का दशान करन क सलए योगमाया पौणमासी इसी पथ स ननदभवन म परारती थी । य सार थथान बहदाकार ननदभवन म शथथत ह । शीरघपनत उपाधयाय न ननदभवन का सरस शबदो म वणान ककया ह–

शनतमपर थमनतसमतर भारतमनय भजनत भवभीता: । अहसमह ननद वनद यथयासलनद पर बरहम ।। (पदयावली)[2]

नददकणड

ननदभवन स थोडी दर दकषिण म ननदकणड ह । महाराज ननद परनतददन परात: काल यहा थनान, सनधया मनतर जप आदद करत थ । कभी–कभी कषण और बलराम को भी अपन कनरो पर बबठाकर लात थ । और उनह भी थनान करात थ । कणड क तट पर शथथत मशनदर म ननदबाबा और

उनकी गोद म बठ बालथवरप कषण एव दाऊजी की बडी मनोहर झाकी ह ।

नदद बठक

बरजचवर महाराज ननद यहा पर अपन बड और छोट भाईयो, वदध गोपो तथा परोदहत आदद क साथ समय–समय पर बठकर कषण क कलयाणाथा ववववर परकार क परामशा आदद करत थ । बठकर परामशा करन क कारण इस बठक कहा गया ह । िौरासी कोस बरज म महाराज ननद की बहत

सी बठक ह । ननदबाबा गोकल क साथ जहा भी ववराजमान होत, वही पर समयोधित बठक हआ करती थी । इसी परकार की बठक छोटी और बडी बठन तथा अनय थथानो म भी ह । ननदबाबा , गो, गोप, गोपी आदद क साथ जहा भी ननवास करत थ । उस ननदगोकल कहा जाता था । बठक कस होती थी, उसका एक परसग इस परकार ह–

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परसग धगररराज गोवरान को सात ददनो तक अपनी कननषठ अगली पर रारणकर सपत वरीय कषण न इनदर का घमणड िकनािर कर ददया था । इसस सभी वदध गोप बड आचियािककत हए । उनहोन एक बठक की । जयषठ भराता उपाननद उस बठक क सभापनत हए । ननदबाबा भी उस

बठक म बलाय गय । वदध गोपो न बठक म अपना–अपना यह मनतवय परकट ककया कक शीकषण एक सारारण बालक नही ह । जनमत ही पतना जसी भयकर रािसी को खल–ही–खल म मार डाला। ततपचिात शकटासर, तणावता, अघासर आदद को मार धगराया । कालीय जस भयकर नाग

का भी दमनकर उसक कालीदह स बाहर कर ददया । अभी कछ ही ददन हए धगररराज जस ववशाल पवात को सात ददनो तक अपनी कननषठ

अगली पर रारण कर मसलारार वशषट और आरी–तफान स सार बरज की रिा की । यह सारारण बालक का काया नही ह । हम तो ऐसा लगता ह

कक यह कोई ससदध परर, दवता अथवा थवय नारायण ही ह । ननद और यशोदा का पतर मानकर इस डाटना, डपटना, िोर, उदणड आदद समबोरन

करना उधित नही ह। अत: ननद, यशोदा और गोप, गोपी सावरानी स सदव इसक साथ परीनत और गौरवमय वयवहार ही कर । उपशथथत सभी गोपो न इस वकतवय को बहत ही गमभीर रप स गरहण ककया । सभी न समलकर ननदबाबा को इस ववरय म सतका कर ददया । ननदबाबा न हसत

हए उनकी बातो को उडा ददया और कहा– आदरणीय सजजनो ! आपका वकतवय म न शवण ककया, ककनत म कषण म लशमातर भी ककसी दवतव

या भगवतता का लिण नही दख रहा ह । म इस जनम स जानता ह भला भगवान को भख और पयास लगती ह ? यह मकखन और रोटी क सलए

ददन म पिास बार रोता ह । कया भगवान िोरी करता और झठ बोलता ह ? यह गोवपयो क घरो म जाकर मकखन िोरी करता ह, झठ बोलता ह

तथा नाना परकार क उपदरव करता ह । पडोस की गोवपया इस िललभर मठठ क सलए, लडड क सलए तरह-तरह स निाती और इसक साथ णखलवाड

करती ह । जसा भी हो, जब इसन हमार घर म पतर क रप म जनम गरहण ककया ह, तब इसक परनत हमारा यही कतावय ह भववषय म स यह

सदािार आदद सवागणसमपनन आदशा वयशकत बन । हा एक बात ह कक महवरा गगाािाया न नामकरण क समय यह भववषयवाणी की थी कक

तमहारा यह बालक गणो म भगवान नारायण क समान होगा । अत: धिनता की कोई बात नही ह । इसक अनतररकत कभी–कभी कषण क दहत

म, उसकी सगाई क सलए तथा अनय ववरयो क सलए समय–समय पर बठक हआ करती थी ।

यशोदा कणड

ननदभवन क उततर म यह कणड अवशथथत ह । मा यशोदा यहा परनतददन थनान करती थी । कभी–कभी कषण और बलराम को भी साथ लाती थी । तथा उन दोनो बालको की बाल करीडा का दशानकर अतयनत आनशनदत होती थी । कणड क तट पर नससह जी का मशनदर ह । मा यशोदा थनान

करन क यशोदा कणड क पास ही ननजान थथल म एक परािीन गफा ह । जहा अनक सनत महानभावो न सारनाकर भगवद पराशपत की ह । ससदध

महातमाओ की यह भजन थथली आज तक ननरपि सारको को भजन क सलए आकवरात करती ह । यशोदाकणड क पास ही कारोहरो कणड ह ।

िाऊबबलाऊ

यशोदा कणड क पशचिमी तट पर सखाओ क साथ कषण की बालकरीडा का यह थथान ह । यहा सखाओ क साथ कषण बलदव दोनो भाई बालकरीडा करन म इतन तनमय हो जात थ कक उनह भोजन करन का भी थमरण नही रहता था । मया यशोदा कषण बलराम को बलान क सलए रोदहणी जी को पहल भजती, ककनत जब व बलान जाती तो उनकी पकड म य नही आत, इरर उरर जात थ । इसक पचिात यशोदा जी थवय जाती और

नाना परकार की भधगमा क दवारा बडी कदठनता स दोनो को पकडकर घर लाती और उनह थनान आदद कराकर भोजन कराती । कभी -कभी यही पर राम कषण को हाऊओ का भय ददखाकर कषण को गोदी म पकडकर ल आती । उस समय कषण मया स हाओ ददखान का हठ करत । मया ! म हऊआ दखगा । आज भी हऊआ की परथतरमयी मनताया कषण की इस मरर बाललीला का थमरण कराती ह । दर खलन मत जाउ लाल यहा हाऊ आय ह । हस कर पछत कानह मया यह ककन पठाय ह ।

मधसदनकणड

ननदीचवर क उततर म यशोदाकणड क पास ही नाना परकार क पषपो स लद हए वि और लताओ क बीि म यह कणड सशोसभत ह । यहा मतत हो कर भरमरगण सदव पषपो का मकरनद पान करत हए सवातरगञजन करत ह कषण सखाओ क साथ वन म खलत हए भरमरो क गञजन का अनकरण करत ह । भरमरो का दसरा एक नाम मरसदन भी ह तथा कषण का भी एक नाम मरसदन ह । दोनो क यहा गञजन का थथान होन क

कारण इस थथान का नाम मरसदन कणड ह ।

पानीिारीकणड

इसका नामानतर पनघट कणड भी ह । बरजवासी इसी कणड का ववशदध मीठाजल पान करत थ । गोप रमणणया इस कणड पर जल भरन क सलए

आती थी । इससलए इस पनघट कणड भी कहत ह । कषण भी गोवपयो क साथ समलन क सलए पनघट पर उपशथथत होत । ववशरकर गोवपया कषण स समलन क सलए ही उतकशणठत हो कर यहा आती थी । जल भरत समय कषण का दशानकर ऐसी तनमय हो जाती कक मटकी खाली ह या जल स भरी ह इसका भी उनह धयान नही रहता । ककनत उनकी हदयरपी मटकी म वपरयतम अवचय भर जात । पनघट का एक ननगढ रहथय यह

भी ह– गोवपया यहा कषण का यह पन (परनतजञ) थमरण करक आती कक 'म वहा तमस अवचय ही समलगा ' । कषण उस पन को ननभान क सलए

वहा उनकी परतीिा करत हए ननशचित रप म समलत । अत: कषण और गोवपया दोनो का पन यहा परा होता ह, इससलए इसक पनघट कहत ह । ननदगाव क पशचिम म िरणपहाडी शथथत ह ।

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मिावन

मथरा नाथ शी दवाररका नाथ, महावन िौरासी खमभा, महावन

शिला मथरा, उ0पर0 म मथरा क समीप, यमना क दसर तट पर शथथत अनत परािीन थथान ह शजस बालकषण की करीडाथथली माना जाता ह। यहा अनक छोट-छोट मददर ह जो अधरक परान नही ह। समथत वनो स आयतन म बडा होन क कारण इस बहदवन भी कहा गया ह। इसको महावन,

गोकल या वहदवन भी कहत ह। गोलोक स यह गोकल असभनन ह।* वरज क िौरासी वनो म महावन मखय था।

इततिास स

महावन मथरा-सादाबाद सडक पर मथरा स 11 ककलोमीटर दरी पर शथथत ह। यह एक परािीन थथान ह। महावन नाम ही इस बात का दयोतक ह

कक यहा पर पहल सघन वन था। मगल काल म सन 1634 ई॰ म समराट शाहजहा न इसी वन म िार शरो का सशकार ककया था। सन 1018 ई॰ म महमद गिनवी न महावन पर आकरमण कर इसको नषट भरषट ककया था। इस दघाटना क उपरानत यह अपन परान वभव को परापत नही कर सका। समनहाज नामक इनतहासकार न इस थथान को शाही सना क ठहरन का थथान बताया ह। सन 1234 ई॰ म सलतान अलतमश न कासलनजर की ओर जो सना भजी थी वह यहा ठहरी थी। सन 1526 ई॰ म बाबर न भी इस थथान क महतव को थवीकार ककया था। अकबर क शासनकाल म यह आगरा सरकार क अनतगात 33 महलो म स एक महल था। सन 1803 ई॰ म यह अलीगढ शिल का एक भाग था। सन 1832 ई॰ म यह कफर मथरा शिल म समला ददया गया। अगरजी शासन म यहा तहसील थी। सन 1910 ई॰ म तहसील मथरा को थथानानतररत कर दी गई। बौदधकाल म भी एक महतव की जगह रही होगी। फाहयान नामक िीनी यातरी न शजन मठो का वणान सलखा ह उनम स कछ मठ यहा भी रह

होग कयोकक उसन सलखा ह कक यमना नदी क दोनो ओर बौदध मठ बन हए थ। बहत स इनतहासकारो दवारा यह नगर एररयन और शपलनी दवारा वणणात मथोरा और कलीसोबोरा ह।

महावन म परािीन दगा की ऊिी भसम अब भी दखन को समलती ह शजसस जञात होता ह कक यह कछ तो पराकनतक और कछ कबतरम था इस

दगा क समबनर म कहा जाता ह कक इसको मवाड क राजा कतीरा न ननसमात ककया था। परमपरागत अनशनतयो स जञात होता ह कक राणा मसलमानो क आकरमण स मवाड छोडकर महावन िल आय थ और उनहोन ददगपाल नामक महावन क राजा क यहा आशय सलया था। राणा क पतर कानतकअर का वववाह ददगपाल की पतरी क साथ हआ था और कफर अपन चवसर क राजय का ही वह अनत म उततराधरकारी हआ। कानतकअर न अपन पारवाररक परोदहतो को समपणा महावन का परोदहततव परदान ककया। य बराहमण सनाढय थ। आज भी उन

बराहमणो क वशज िौररी उपाधर गरहण करत ह और अब भी थोक िौररीयान क नाम स य परससदध ह। आिाया शी कलाशिनदर ‘कषण’ क ‘महावन और रमणरती’ लख क अनसार कथब म एक थथान पर बबरदटश शासनकाल का सशलालख ह।

शजसक दवारा महावन तथा उसक आसपास म आखट करना ननवरदध ह। मगल शासक अकबर महान, जहागीर, शाहजहा आदद शासको न भी पशषट समपरदाय क गोथवासमयो स परभाववत होकर इस ितर म पश-वर की ननरराजञाए परसाररत की थी।

िौरासी खमभा मशनदर स पवा ददशा म कछ ही दर यमना जी क तट पर बरहमाड घाट नाम का रमणीक थथल ह। यहा बहत सनदर पकक

घाट ह। िारो ओर सरमय विावली, उदयान एव एक सथकत पाठशाला ह। रासमाक मानयता क अनकल यहा शीकषण न समटटी खान क

बहान यशोदा को अपन मख म समगर बराहमाड क दशान कराय थ। यही स कछ दर लतवशषटत थथल म मनोहारी धिनताहरण सशव दशान

ह। बबरदटश काल म महावन तहसील बन जान स इस नगर की कछ उनननत हई लककन परािीन वभव को यह परापत नही कर सका। महावन को औरगिब क समय म उसकी रमाार नीनत का सशकार बनना पडा था। इसक बाद 1757 ई॰ म अफगान अहमदशाह अबदाली न

जब मथरा पर आकरमण ककया तो उसन महावन म सना का सशववर बनाया। वह यहा ठहर कर गोकल को नषट करना िाहता था। ककत

महावन क िार हिार नागा सनयाससयो न उसकी सना क 2000 ससपादहयो को मार डाला और थवय भी वीरगनत को परापत हए। गोकल पर

होन वाल आकरमण का इस परकार ननराकरण हआ और अबदाली न अपनी फौज वापस बला ली। इसक पचिात महावन क सशववर म

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ववशधिका (हजा) क परकोप स अबदाली क अनक ससपाही मर गए। अत: वह शीघर ददलली लौट गया ककत जात-जात भी इस बबार आकराता न मथरा, वनदावन आदद थथानो पर जो लट मिाई और लोमहराक ववधवस और रकतपात ककया वह इसक पवा कतयो क अनकल ही था।

परानी गोकल

महावन गोकल स आग 2 ककमी. दर ह। लोग इस परानी गोकल भी कहत ह। गोपराज ननद बाबा क वपता पजानय गोप पहल ननदगाव म ही रहत थ। वही रहत समय उनक उपाननद, असभननद, शीननद, सननद, और ननदन-य पाि पतर तथा सननदा और नशनदनी दो कनयाए पदा हई। उनहोन वही रहकर अपन सभी पतर और कनयाओ का वववाह ददया। मधयम पतर शीननद को कोई सनतान न होन स बड धिशनतत हए। उनहोन अपन पतर ननद को सनतान की पराशपत क सलए नारायण की उपासना की और उनह आकाशवाणी स यह जञात हआ कक शीननद को असरो का दलन करन वाला महापराकरमी सवागण समपनन एक पतर शीघर ही पदा होगा। इसक कछ ही ददनो बाद कशी आदद असरो का उतपात आरमभ होन

लगा। पजानय गोप पर पररवार और सग समबशनरयो क साथ इस बहदवन म उपशथथत हए। इस बहद या महावन म ननकट ही यमना नदी बहती ह। यह वन नाना परकार क विो, लता-वललररयो और पषपो स सशोसभत ह, जहा गऊओ क िरान क सलए हर-भर िारागाह ह। ऐस एक थथान को दखकर सभी गोप बरजवासी बड परसनन हए तथा यही पर बड सखपवाक ननवास करन लग। यही पर ननदभवन म यशोदा मया न कषण कनहया तथा योगमाया को यमज सनतान क रप म अदधाराबतर को परसव ककया। यही यशोदा क सनतकागार म नाडीचछदन आदद जातकमा रप वददक

सथकार हए। यही पतना, तणावता, शकटासर नामक असरो का वर कर कषण न उनका उदधार ककया। पास ही ननद की गोशाला म कषण और

बलदव का नामकरण हआ। यही पास म ही घटनो पर राम कषण िल, यही पर मया यशोदा न ििल बाल कषण को ओखल स बारा, कषण न यमलाजान का उदधार ककया। यही ढाई-तीन वरा की अवथथा तक की कषण और राम की बालकरीडाए हई। वहदवन या महावन गोकल की लीलाथथसलयो का बरहमाणड पराण म भी वणान ककया गया ह।

वतभमान दशभनीय सथल

मथरा स लगभग छह मील पवा म महावन ववराजमान ह। बरजभशकत ववलास क अनसार महावन म शीननदमशनदर, यशोदा शयनथथल,

ओखलथथल, शकटभजनथथान, यमलाजान उदधारथथल, सपतसामददरक कप, पास ही गोपीचवर महादव, योगमाया जनमथथल, बाल गोकलचवर, रोदहणी मशनदर, पतना बरथथल दशानीय ह। भशकतरतनाकर गरनथ क अनसार यहा क दशानीय थथल ह- जनम थथान, जनम-सथकार थथान,

गोशाला, नामकरण थथान, पतना वरथथान, अशगनसथकार थथल, शकटभजन थथल, थतनयपान थथल, घटनो पर िलन का थथान, तणावता वरथथल, बरहमाणड घाट, यशोदा जी का आगन, नवनीत िोरी थथल, दामोदर लीला थथल, यमलाजान-उदधार-थथल, गोपीचवर महादव,

सपतसामददरक कप, शीसनातन गोथवामी की भजनथथली, मदनमोहनजी का थथान, रमणरती, गोपकप, उपाननद आदद गोपो क वासथथान,

शीकषण क जातकमा आदद का थथान, गोप-बठक, वनदावन गमनपथ, सकरौली आदद।

ददतधावन टीला यहा ननद महाराज जी बठकर दातन क दवारा अपन दातो को साफ करत थ।

नददबाबा की िवली दनत रावन टीला क नीि और आसपास ननद और उनक भाईयो की हवसलया तथा सग-सबनरी गोप, गोवपयो की हवसलया थी। आज उनका भगनावशर दर-दर तक दखा जाता ह।

राधादामोदर महदर

मथरा स 18 कक0 मी0 दर मिावन म यमना क बाय तट पर शथथत यह परससदध मशनदर ततकालीन बोर कला एव थथापतय का ददगदशाक ह। इसम अथसी खमभा मखय दशानीय ह।

नददरवन

ननद हवली क भीतर ही शी यशोदा मया क कि म भादो माह क रोदहणी नितरयकत अषटमी नतधथ को अदधाराबतर क समय थवय-भगवान शीकषण

और योगमाया न यमज सनतान क रप म मा यशोदा जी क गभा स जनम सलया था। यहा योगमाया का दशान ह। शीमदभागवत म भी इसका थपषट वणान समलता ह कक महाभागयवान ननदबाबा भी पतर क उतपनन होन स बड आनशनदत हए। उनहोन नाडीछद-सथकार, थनान आदद क

पचिात बराहमणो को बलाकर जातकमा आदद सथकारो को समपनन कराया।* शीरघपनत उपाधयायजी कहत ह कक ससार म जनम-मरण क भय

स भीत कोई शनतयो का आशय लत ह तो कोई थमनतयो का और कोई महाभारत का ही सवन करत ह तो कर, परनत म तो उन शीननदराय जी की वनदना करता ह कक शजनक आगन म परबरहम बालक बनकर खल रहा ह।

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पतना उदधार सथल

माता का वश बनाकर पतना अपन थतनो म कालकट ववर भरकर ननदभवन म इस थथल पर आयी। उसन सहज ही यशोदा-रोदहणी क सामन ही पलन पर सोय हए सशश कषण को अपनी गोद म उठा सलया और थतनपान करान लगी। कषण न कालकट ववर क साथ ही साथ उसक पराणो को भी िसकर रािसी शरीर स उस मकतकर गोलोक म रात क समान गनत परदान की। पतना पवाजनम म महाराज बसल की कनया रतनमाला थी। भगवान वामनदव को अपन वपता क राजभवन म दखकर वस ही सनदर पतर की कामना की थी। ककनत जब वामनदव न बसल महाराज का सवाथव हरण कर उनह नागपाश म बार ददया तो वह रोन लगी। उस समय वह यह सोिन लगी कक ऐस करर बट को म ववरसमधशत थतन-पान

कराकर मार डालगी। वामनदव न उसकी असभलाराओ को जानकर 'एवम अथत' ऐसा ही हो वरदान ददया था। इसीसलए शीकषण न उसी रप म उसका वर कर उसको रातरोधित गनत परदान की।

शकटरजन सथल

एक समय बाल-कषण ककसी छकड क नीि पलन म सो रह थ। यशोदा मया उनक जनमनितर उतसव क सलए वयथत थी। उसी समय कस दवारा परररत एक असर उस छकड म परववषट हो गया और उस छकड को इस परकार स दबान लगा शजसस कषण उस छकड क नीि दबकर मर जाए। ककनत ििल बालकषण न ककलकारी मारत हए अपन एक पर की ठोकर स सहज रप म ही उसका वर कर ददया। छकडा उलट गया और उसक

ऊपर रख हए दर, दही, मकखन आदद क बतान िकनािर हो गय। बचि का रोदन सनकर यशोदा मया दौडी हई वहा पहिी और आचियािककत

हो गई। बचि को सकशल दखकर बराहमणो को बलाकर बहत सी गऊओ का दान ककया। वददक रिा क मनतरो का उचिारणपवाक बराहमणो न काली गाय क मतर और गोबर स कषण का असभरक ककया। यह थथान इस लीला को सजोय हए आज भी वतामान ह। शकटासर पवा जनम म दहरणयाि दतय का पतर उतकि नामक दतय था। उसन एक बार लोमशऋवर क आशम क हर-भर विो और लताओ को किलकर नषट कर ददया था। ऋवर न करोर स भरकर शाप ददया- 'दषट तम दह-रदहत हो जाओ।' यह सनकर वह ऋवर क िरणो म धगरकर िमा मागन लगा।' उसी असर न छकड म आववषट होकर कषण को पीस डालना िाहा, ककनत भगवान कषण क शीिरणकमलो क थपशा स मकत हो गया। शीमदभागवत म इसका वणान ह।

तणावतभ वधसथल

एक समय कस न कषण को मारन क सलए गोकल म तणावता नामक दतय को भजा। वह कस की पररणा स बवणडर का रप रारण कर गोकल म आया और यशोदा क पास ही बठ हए कषण को उडाकर आकाश म ल गया। बालकषण न थवाभाववक रप म उसका गला पकडा सलया, शजसस

उसका गला रदध हो गया, आख बाहर ननकल आई और वह प वी पर धगर कर मर गया।

दचधमदथन सथल

यहा यशोदा जी दधर मनथन करती थी। एक समय बाल कषण ननशा क अनतम भाग म पलग पर सो रह थ। यशोदा मया न पहल ददन शाम को दीपावली क उपलकषय म दास, दाससयो को उनक घरो म भज ददया था। सवर थवय कषण को मीठा मकखन णखलान क सलए दकषिमनथन कर रही थी तथा ऊि थवर एव ताल-लय स कषण की लीलाओ का आववषट होकर गायन भी कर रही थी। उरर भख लगन पर कषण मया को खोजन लग। पलग स उतरकर बड कषट स ढलत-ढलत रोदन करत हए ककसी परकार मा क पास पहि। यशोदा जी बड पयार स पतर को गोदी म बबठाकर थतनपान करान लगी। इसी बीि पास ही आग क ऊपर रखा हआ दर उफनन लगा। मया न अतपत कषण को बलपवाक अपनी गोदी स नीि बठा ददया और दर की रिा क सलए िली गई। अतपत बाल कषण क अरर करोर स फडकन लग और उनहोन लोढ स मटक म छद कर ददया। तरल

दधर मटक स िारो ओर बह गया। कषण उसी म िलकर घर क अनदर उलट ओखल पर िढकर छीक स मकखन ननकालकर कछ थवय खान लग

और कछ बदरो तथा कौवो को भी णखलान लग। यशोदा जी लौटकर बचि की करतत दखकर हसन लगी और उनहोन नछपकर घर क अनदर

कषण को पकडना िाहा। मया को दखकर कषण ओखल स कदकर भाग, ककनत यशोदाजी न पीछ स उनकी अपिा अधरक वग स दौडकर उनह पकड सलया, दणड दन क सलए ओखल स बार ददया। [4] कफर गहकाया म लग गयी। इरर कषण न सखाओ क साथ ओखल को खीित हए पवा जनम क शापगरथत कबर पतरो को थपशा कर उनका उदधार कर ददया। यही पर ननदभवन म यशोदा जी न कषण को ओखल स बारा था। ननदभवन स बाहर पास ही नलकबर वर मणणगरीव क उदधार का थथान ह। आजकल जहा िौरासी खमबा ह, वहा कषण का नाडीछदन हआ था। उसी क पास म ननदकप ह।

नददबाबा की गोशाला गोशाला म कषण और बलदव का नामकरण हआ था। गगाािाया जी न इस ननजान गोशाला म कषण और बलदव का नामकरण ककया था। नामकरण क समय शीबलराम और कषण क अदभत पराकरम, दतयदलन एव भागवतोधित लीलाओ क सबनर म भववषयवाणी भी की थी। कस क

अतयािारो क भय स ननद महाराज न बबना ककसी उतसव क नामकरण सथकार कराया था।

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मलल तीथभ यहा नग बाल कषण और बलराम परथपर मलल यदध करत थ। गोवपया लडड का लोभ ददखालाकर उनको मललयदध की पररणा दती तथा यदध क

सलए उकसाती। य दोनो बालक एक दसर को पराशजत करन की लालसा स मलल यदध करत थ। यहा पर वतामान समय म गोपीचवर महादव

ववराजमान ह।

नददकप

महाराज ननद जी इस कए का जल वयवहार करत थ। इसका नामानतर सपतसामददरक कप भी ह। ऐसा कहा जाता ह कक दवताओ न भगवान

शीकषणकी सवा क सलए इस परकट ककया था। इसका पानी शीतकाल म उषण तथा उषणकाल म शीतल रहता था। इसम थनान करन स समथत

पापो स मशकत समल जाती ह।

मिावन म शरीचतदय मिापरर शी रप सनातन क बरज आगमन स पवा शी ितनय महापरभ वन भरमण क समय यहा परार थ। व महावन म कषण जनमथथान म शीमदनमोहन

जी का दशानकर परम म ववहवल होकर नतय करन लग। उनक नतरो स अशरारा परवादहत होन लगी।

शरीसनातन गोसवामी का रजनसथल

िौरासी खमबा मशनदर स नीि उतरन पर सामददरक कप क पास ही गफा क भीतर सनातन गोथवामी की भजनकटी ह। सनातन गोथवामी कभी-कभी यहा गोकल म आन पर इसी जगह भजन करत थ और शीमदनगोपालजी का परनतददन दशान करत थ।* एक समय सनातन गोथवामी यमना पसलन क रमणीय बाल म एक अदभत बालक को खलत हए दखकर आचियािककत हो गय। खल समापत होन पर व बालक क पीछ-पीछ

िल, ककनत मशनदर म परवश ही वह बालक ददखाई नही ददया, ववगरह क रप म शीमदनगोपाल दीख। वही शीमदनगोपाल कछ समय बाद पन:

मथरा क िौबाइन क घर म उसक बालक क साथ म खलत हए समल। शीमदनगोपाल न सनातनजी स उनक साथ वनदावन म ल िलन सलए

आगरह ककया। सनातन गोथवामी उनको अपनी भजनकटी म ल आय और ववशाल मशनदर बनवा कर उनकी सवा-पजा आरमभ करवाई। जनमथथली ननदभवन स पराय: एक मील पवा म बरहमाणड घाट ववराजमान ह।

कोलघाट

बरहमाणड घाट स यमना पार मथरा की ओर कोलघाट ववराजमान ह। शी वसदव जी नवजात कषण को लकर यही स यमना पार होकर गोकल

ननदभवन म पहि थ। शजस समय वसदव जी यमना पार करत समय बीि म उपशथथत हए, उस समय यमना शीकषण क िरणो को थपशा करन क सलए बढन लगी। वसदव जी कषण को ऊपर उठान लग। जब वसदव जी क गल तक पानी पहिा तो व बालक की रिा करन की धिनता स घबडाकर कहन लग इस 'को लव' अथाात इस कौन लकर बिाय। इससलए वजरनाभ जी न यमना क इस घाट का नाम कोलघाट रखा। यमना क थतर को बढत दखकर बालकषण न पीछ स अपन परो को यमना जी क कोल म (गोदी म) थपशा करा ददया। यमना जी कषण क िरणो का थपशा पाकर झट नीि उतर गई। पीछ स वहा टाप हो गया और वहा कोलगाव बस गया। कोल घाट क तटपर उथलचवर और पाणडचवर महादवजी क दशान ह। दाऊजी स पाि कोस उततर की तरफ दवथपनत गोपका ननवास थथान दवनगर ह। वहा रामसागरकणड, परािीन बहद कदमब वि

और दवथपनत गोप क पजन की गोवरान सशला दशानीय ह। दाऊजी क पास ही हातौरा गराम ह वहा ननदरायजी की बठक ह।

कणभछदन सथान

यहा बालकषण और बलराम का कणाछदन सथकार हआ था। इसका वतामान नाम कणाावल गाव ह। यहा कणाबर कप, रतनिौक और शीमदनमोहन तथा मारवरायजी क शीववगरहो क दशान ह।

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गोकल

यमना, गोकल घाट

यह थथल मथरा स 15 ककमी की दरी पर यमना क पार शथथत ह। यह वषणव तीथा ह। यथाथा महावन और गोकल एक ही ह। ननद बाबा अपन

पररजनो को लकर ननदगाव स वहदवन या महावन म बस गय। गो, गोप, गोपी आदद का समह वास करन क कारण महावन को ही गोकल कहा गया ह। ननदबाबा क समय गोकल नाम का कोई पथक रप म गाव या नगर नही था। यथाथा म यह गोकल आरननक बथती ह। यहा पर

ननदबाबा की गऊओ का णखडक था। आज स लगभग पाि सौ पचिीस वरा पहल शी ितनय महापरभ क बरज आगमन क पचिात शी वललभािाया न यमना क इस मनोहर तट पर शीमदभागवत का पारायण ककया था। इनक पतर शी ववटठलािाया और उनक पतर शीगोकलनाथजी की बठक भी यहा पर ह। असल म शीववटठलनाथ जी न औरगजब को िमतकार ददखला कर इस थथान का अपन नाम पर पटटा सलया था। उनहोन ही इस

गोकल को बसाया। उनक पचिात शीगोकलनाथ क पतर, पररवारो क सदहत इस गोकल म ही रहत थ। शीवललभकल क गोथवामी गोकल म ही रहत थ। उनहोन यहा पर मथरशजी, ववटठलनाथ जी, दवाररकारीश जी, गोकलिनदरमा जी, बालकषण जी तथा शीमदनमोहन जी क शीववगरहो को परनतषठा की थी। बाद म शीमथरश जी कोटा, शीववटठलनाथ जी नाथदवारा, शीदवाररकारीश जी काकरौली, गोकलिनदरमा जी कामवन,

शीबालकषण जी सरत और मदनमोहन जी कामवन परार गय। शीवललभकल क गोथवामी गोकल म रहन क कारण गोकसलया गोथवामी क

नाम स परससदध ह। ववचवास ककया जाता ह कक भगवान कषण न यहा गौए िरायी थी। कहा जाता ह, शी कषण क पालक वपता ननद जी का यहा गोषठ था। सपरनत वललभािाया, उनक पतर गसाई बबटठलनाथ जी एव गोकलनाथजी को बठक ह। मखय मशनदर गोकलनाथ जी का ह। यहा वललभकल क िौबीस मशनदर बतलाय जात ह। महासलगचवर तनतर म सशवशतनाम थतोतर क अनसार महादव गोपीचवर का यह थथान ह:

गोकल गोवपनीपजयो गोपीचवर इतीररत:। यह बरज का बहत महतवपणा थथल ह। यही पर रोदहणी न बलराम को जनम ददया था। बलराम दवकी क सातव गभा म थ शजनह योगमाया न आकवरात करक रोदहणी क गभा म डाल ददया था। मथरा म कषण क जनम क बाद कस क सभी सननको को नीद आ गयी और वासदव की बडडया खल गयी थी। तब वासदव कषण को गोकल म ननदराय क यहा छोड आय थ। ननदराय जी क घर लाला का जनम हआ ह, रीर-रीर यह बात

गोकल म फल गयी। सभी गोपगण, गोवपया, गोकलवासी खसशया मनान लग। सभी घर, गसलया िौक आदद सजाय जान लग और बराइया गायी जान लगी। कषण और बलराम का पालन पोरण यही हआ और दोनो अपनी लीलाओ स सभी का मन मोहत रह। घटनो क बल िलत हए

दोनो भाई को दखना गोकल वाससयो को सख दता था, वही माखन िराकर कषण बरज की गोवपकाओ क दखो को हर लत थ। गोवपया कषण जी को छाछ और माखन का लालि दकर निाती थी तो कषण जी बासरी की रन स सभी को मनतर मगर कर दत थ। कषण न गोकल म रहत हए

पतना, शकटासर, तणावता आदद असरो को मोि परदान ककया। गोकल स आग 2 ककमी. दर महावन ह। लोग इस परानी गोकल कहत ह। यहा िौरासी खमभो का मशनदर, ननदचवर महादव, मथरा नाथ, दवाररका नाथ आदद मशनदर ह।

नवनीतवपरया जी का मजददर

नवनीतवपरया जी का यह परािीन मशनदर गोकल, मथरा म शथथत ह ।

नवनीतवपरया जी का मशनदर,गोकल

शरीठाकरानीघाट

गोकल का यह मखय घाट ह। शीवललभािाया जी को यही पर शीयमना महारानी का दशान परापत हआ था उनहोन यही पर सवापरथम दीिा दना आरमभ ककया। इससलए वललभ सपरदाय क वषणवो क सलए यह घाट बहत ही महतवपणा थथान ह।

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गोववदद घाट

शीवललभािायाजी जब बरज म आय, तब यमना क इस घाट का दशान कर बड आकवरात हए। उनहोन बड-बढ बरजवाससयो स सना कक पास ही ननदबाबा की णखडक थी और यह घाट जहा वह बठ ह, वह घाट गोववनद घाट क नाम स ववखयात ह। शीवललभािायाजी उस थथान का दशान कर

इतन परभाववत हए कक उनहोन इस घाट पर शमीवि क नीि शीमदभागवत का सपताह-पारायण ककया। इसक अनतररकत यहा- गोकलनाथजी का बाग, बाजनटीला, ससहपौडी, यशोदाघाट, शीववटठलनाथ जी का मशनदर, शीमदनमोहन जी का मशनदर, शीमारवराय जी का मशनदर, शीगोकलनाथ जी का मशनदर, शीनवनीतवपरया जी का मशनदर, शीदवारकानाथजी का मशनदर, बरहमछोकरा वि,

शीगोकलिनदरमाजी का मशनदर, शीमथरानाथजी का मशनदर तथा शीननदमहाराज जी क छकडा रखन आदद थथान दशानीय ह। गोकल क सामन यमना क उसपार नौरगाबाद गाव ह। उसम शीगगा जी का मशनदर तथा दसर दशानीय थथान ह।

बलदव

दाऊजी मशनदर, िीर सागर,

जसथतत

यह थथान मथरा जनपद म बरजमडल क पवी छोर पर शथथत ह। मथरा स 21 कक॰मी॰ दरी पर एटा-मथरा मागा क मधय म शथथत ह। मागा क बीि

म गोकल एव महावन जो कक पराणो म वणणात 'वहदवन' क नाम स ववखयात ह, पडत ह। यह थथान पराणोकत 'ववदरमवन' क नाम स ननददाषट ह। इसी ववदरभवन म भगवान शी बलराम जी की अतयनत मनोहारी ववशाल परनतमा तथा उनकी सहरसमाणी राजा कक की पतरी जयोनतषमती रवती जी का ववगरह ह। यह एक ववशालकाय दवालय ह जो कक एक दगा की भानत सदढ परािीरो स आवशषठत ह। मशनदर क िारो ओर सपा की कणडली की भानत पररकरमा मागा म एक पणा पललववत बािार ह। इस मशनदर क िार मखय दरवाज ह, जो करमश:

1. ससहिौर, 2. जनानी डयोढी, 3. गोशाला दवार, 4. बडवाल दरवाि क नाम स जान जात ह।

मशनदर क पीछ एक ववशाल कणड ह जो कक बलभदर कणड क नाम स पराण म वणणात ह। आजकल इस 'िीरसागर' क नाम स पकारत ह।

ऐततिामसक तथय

मगरराज जरासर क राजय की पशचिमी सीमा यहा लगती थी, अत: यह ितर कस क आतक स पराय: सरकषित था। इसी ननसमतत ननद बाबा न बलदव जी की माता रोदहणी को बलदव जी क परसव क ननसमत इसी ववदरमवन म रखा था और यही बलदव जी का जनम हआ शजसक परतीक रप

रीढा (रोदहणयक गराम का अपभरश तथा अबरनी, बर रदहत ितर) दोनो गराम आज तक मौजद ह।

मगलकाल म रीर-रीर समय बीत गया बलदव जी की खयानत एव वभव ननरनतर बढता गया और समय आ गया रमाादवरी शहशाह औरगिब का। शजसका मातर सकलप समथत दहनद दवी-दवताओ की मनता भजन एव दव थथान को नषट-भरषट करना था। मथरा क कशवदव मशनदर एव महावन क

परािीनतम दव थथानो को नषट-भरषट करता आग बढा तो उसन बलदव जी की खयानत सनी व ननचिय ककया कक कयो न इस मनता को तोड ददया जाय। फलत: मनता भजनी सना को लकर आग बढा। कहत ह कक सना ननरनतर िलती रही जहा भी पहित बलदव की दरी पछन पर दो कोस ही बताई जाती शजसस उसन समझा कक ननचिय ही बलदव कोई िमतकारी दव ववगरह ह, ककनत अरमोनमादधा सना लकर बढता ही िला गया शजसक पररणाम-थवरप कहत ह कक भौरो और ततइयो (बराा) का एक भारी झणड उसकी सना पर टट पडा शजसस सकडो सननक एव घोड उनक

दश क आहत होकर काल कवसलत हो गय। औरगजब क अनतर न थवीकार ककया दवालय का परभाव और शाही फरमान िारी ककया शजसक

दवारा मददर को 5 गाव की माफी एव एक ववशाल नककारखाना ननसमात कराकर परभ को भट ककया एव नककारखाना की वयवथथा हत रन

परनतवरा राजकोर स दन क आदश परसाररत ककया। वही नककारखाना आज भी मौजद ह और यवन शासक की पराजय का मक सािी ह। इसी फरमान-नाम का नवीनीकरण उसक पौतर शाह आलम न सन 1196 फसली की खरीफ म दो गाव और बढाकर यानी 7 गाव कर ददया। शजनम

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खडरा, छवरऊ, नरपर, अरतौनी, रीढा आदद शजसको ततकालीन ितरीय परशासक (विीर) निफ खा बहादर क हथतािर स शाही महर दवारा परसाररत ककया गया तथा थवय शाह आलम न एक पथक स आदश ित सदी 3 सवत 1840 को अपनी महर एव हथतािर स जारी ककया। शाह

आलम क बाद इस ितर पर ससधरया राजवश का अधरकार हआ। उनहोन समपणा जागीर को यथाथथान रखा एव पथक स भोगराग माखन समशी एव मददर क रख-रखाव क सलय राजकोर स रन दन की थवीकनत ददनाक भादरपद-वदी िौथ सवत 1845 को गोथवामी कलयाण दवजी क पौतर

गोथवामी हसराजजी, जगननाथजी को दी। यह सारी जमीदारी आज भी मददर शी दाऊ जी महाराज एव उनक मासलक कलयाण वशज, जो कक

मददर क पणडा परोदहत कहलात ह, उनक अधरकार म ह। मगल काल म एक ववसशषट मानयता यह थी कक समपणा महावन तहसील क समथत

गावो म स शी दाऊजी महाराज क नाम स पथक दव थथान खात की माल गजारी शासन दवारा वसल कर मददर को भट की जाती थी, जो मगलकाल स आज तक शाही गराट क नाम स जानी जाती ह, सरकारी खजान स आज तक भी मददर को परनतवरा भट की जाती ह।

बबरहटश शासन

इसक बाद अगरिो का जमाना आया। मशनदर सदव स दश-भकतो क जमावड का कनदर रहा। उनकी सहायता एव शरण-थथल का एक मानय-सरोत

भी। जब बबरदटश शासन को पता िला तो उनहोन मशनदर क मासलकान पणडो को आगाह ककया कक व ककसी भी थवतनतरता परमी को अपन यहा शरण न द परनत आतमीय समबनर एव दश क थवतनतरता परमी मशनदर क मासलको न यह दहदायत नही मानी, शजसस धिढ-कर अगरि शासको न मशनदर क सलय जो जागीर भसम एव वयवथथाए पवा शाही पररवारो स परदतत थी उनह ददनाक 31 ददसमबर सन 1841 को थपशल कसमचनर क

आदश स ककी कर जबत कर सलया गया और मशनदर क ऊपर पहरा बबठा ददया शजसस कोई भी थवतनतरता परमी मशनदर म न आ सक, परनत

ककल जस परािीरो स आवशषठत मशनदर म ककसी दशानाथी को कस रोक लत? अत: थवतनतरता सगरामी दशानाथी क रप म आत तथा मशनदर म ननबाार िलन वाल सदावता एव भोजन वयवथथा का आननद लत ओर अपनी काया-ववधर का सिालन करक पन: अभीषट थथान को िल जात। अत: परयतन करन क बाद भी गदर परसमयो को शासन न रोक पाया।

मादयताए बलदव एक ऐसा तीथा ह शजसकी मानयताए दहनद रमाावलमबी करत आय ह। रमाािायो म शीमद वललभािाया जी क वश की तो बात ही पथक

ह। ननमबाका , माधव, गौडीय, रामानज, शकर काशषणा, उदासीन आदद समथत रमाािायो, म बलदव जी की मानयताए ह। सभी ननयसमत रप स

बलदव जी क दशनाथा परारत रह ह और यह करम आज भी जारी ह।

गराउस क अनसार

इसक साथ ही एक रकका बबरदटश राज म मददर को तब लगा जब एफ॰ एस॰ गराउस यहा का कलकटर ननयकत हआ। गराउस महोदय का वविार था कक बलदव जस परभावशाली थथान पर एक ििा का ननमााण कराया जाय कयोकक बलदव उस समय एक मरानय तीथा थथल था। अत: उसन

मददर की बबना आजञा क ििा ननमााण परारमभ कर ददया। शाही जमान स ही मददर की 256 एकड भसम म मददर की आजञा क बगर कोई वयशकत

ककसी परकार का ननमााण नही करा सकता था। कयोकक उपयाकत भसम क मासलक जमीदार शी दाऊजी ह। तो उनकी आजञा क बबना कोई ननमााण

कस हो सकता था? परनत उनमादी गराउस महोदय न बबना कोई परवाह ककय ननमााण कराना शर कर ददया। मददर क मासलकान न उसको बलपवाक धवथत करा ददया शजसस धिढ-कर गराउस न पडा वगा एव अनय ननवाससयो को भारी आतककत ककया। आगरा क एक मरानय सठ एव

महाराज मरसान क वयशकतगत परभाव का परयोग कर वायसराय स भट कर गराउस का थथानानतरण बलनदशहर कराया। शजस थथान पर ििा का ननमााण करान की गराउस की हठ थी। उसी थथान पर आज वहा 'बससक पराइमरी पाठशाला' ह जो पशचिमी थकल क नाम स जानी जाती ह। गराउस की पराजय का मक सािी ह।

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कामयवन

िनदरमा जी मशनदर, कामयवन

बरजमणडल क दवादशवनो म ितथावन कामयवन ह। यह बरजमणडल क सवोततम वनो म स एक ह। इस वन की पररकरमा करन वाला सौभागयवान वयशकत बरजराम म पजनीय होता ह।*

ह महाराज ! तदननतर कामयवन ह, जहा आपन (शीबरजनदरननदन कषण न) बहत सी बालकरीडाए की थी । इस वन क कामादद सरोवरो म थनान करन मातर स सब परकार की कामनाए यहा तक कक कषण की परममयी सवा की कामना भी पणा हो जाती ह ।[1]

यथाथा म शीकषण क परनत गोवपयो का परम ही 'काम' शबद वाचय ह । 'परमव गोपरामाणा काम इतयागमत परथाम', अथाात गोवपकाओ का ननमाल परम जो कवल शीकषण को सख दन वाला होता ह, शजसम लौककक काम की कोई गनर नही होती, उसी को शाथतरो म काम कहा गया ह । सासाररक काम वासनाओ स गोवपयो का यह शदध काम सवाथा सभनन ह । सब परकार की लौककक कामनाओ स रदहत कवल परमाथपद

कषण को सखी करना ही गोवपयो क काम का एकमातर तातपया ह । इसीसलए गोवपयो क ववशदध परम को ही शीमदभागवतादद शाथतरो म काम

की सजञा दी गई ह । शजस कषणलीला थथली म शीराराकषण यगल क ऐस अपराकत परम की असभवयशकत हई ह, उसका नाम कामवन ह। गोवपयो क ववशदध परमथवरप शदधकाम की भी सहज ही ससवदध होती ह, उस कामवन कहा गया ह।

कामय शबद का अथा अतयनत सनदर, सशोसभत या रधिर भी होता ह । बरजमडल का यह वन ववववर–परकार क सरमय सरोवरो, कपो, कणडो, वि–वललररयो, फल और फलो स तथा ववववर परकारक ववहगङमो स अनतशय सशोसभत शीकषण की परम रमणीय ववहार थथली ह

। इसीसलए इस कामयवन कहा गया ह । ववषण पराण क अनसार कामयवन म िौरासी कणड (तीथा), िौरासी मशनदर तथा िौरासी खमब वतामान ह । कहत ह कक इन सबकी

परनतषठा ककसी परससदध राजा शीकामसन क दवारा की गई थी ऐसी भी मानयता ह कक दवता और असरो न समलकर यहा एक सौ अडसठ(168) खमबो का ननमााण ककया था ।

कणड और तीथभ यहा छोट–बड असखय कणड और तीथा ह । इस वन की पररकरमा िौदह मील की ह । ववमलकणड यहा का परससदध तीथा या कणड ह । सवापरथम इस

ववमलकणड म थनान कर शीकामयवन क कणड अथवा कामयवन की दशानीय थथसलयो का दशान परारमभ होता ह । ववमलकणड म थनान क

पचिात गोवपका कणड, सवणापर, गया कणड एव रमा कणड क दशान ह । रमा कणड पर रमाराज जी का ससहासन दशानीय ह । आग यजञकणड,

पाणडवो क पितीथा सरोवर, परम मोिकणड, मणणकणणाका कणड ह । पास म ही ननवासकणड तथा यशोदा कणड ह । पवात क सशखर भदरचवर सशवमनता ह । अननतर अलि गरड मनता ह । पास म ही वपपपलाद ऋवर का आशम ह । अननतर ददहहली, रारापषकररणी और उसक पवा भाग म लसलता पषकररणी, उसक उततर म ववशाखा पषकररणी, उसक पशचिम म िनदरावली पषकररणी तथा उसक दकषिण भाग म िनदरभागा पषकररणी ह, पवा–दकषिण क मधय थथल म लीलावती पषकररणी ह । पशचिम–उततर म परभावती पषकररणी, मधय म रारा पषकररणी ह । इन पषकररणणयो म िौसठ सणखयो की पषकररणी ह । आग कशथथली ह । वहा शखिड बरथथल तथा कामचवर महादव जी दशानीय ह ।, वहा स उततर म िनदरशखर मनता ववमलचवर तथा वराह थवरप का दशान ह । वही दरोपदी क साथ पि पाणडवो का दशान, आग वनदादवी क साथ गोववनदजी का दशान, शीरारावललभ, शीगोपीनाथ, नवनीत राय, गोकलचवर और शीरामिनदर क थवरपो का दशान ह । इनक अनतररकत िरणपहाडी शीरारागोपीनाथ, शीरारामोहन (गोपालजी), िौरासी खमबा आदद दशानीय थथल ह । कामवन गराम स दो फलााग दर दकषिण–पशचिम कोण म परससदध ववमल कणड शथथत ह। कणड क िारो ओर करमश: (1) दाऊजी, (2) सयादव, (3)

शीनीलकठचवर महादव, (4) शीगोवराननाथ, (5) शीमदन मोहन एव कामयवन ववहारी, (6) शीववमल ववहारी, (7) ववमला दवी, (8)

शीमरलीमनोहर, (9) भगवती गगा और (10) शीगोपालजी ववराजमान ह।

शरीवददादवी और शरीगोववदददव

यह कामयवन का सवााधरक परससदध मशनदर ह । यहा वनदादवी का ववशर रप स दशान ह, जो बरजमणडल म कही अनयतर दलाभ ह । शीरारा–गोववनददवी भी यहा ववराजमान ह । पास म ही शीववषण ससहासन अथाात शीकषण का ससहासन ह । उसक ननकट ही िरण कणड ह, जहा शीरारा

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और गोववनद यगल क शीिरणकमल पखार गय थ । शीरप–सनातन आदद गोथवासमयो क अपरकट होन क पचिात रमाानर मगल समराट

औरगजब क अतयािारो स शजस समय बरज म वनदावन, मथरा आदद क परससदध मशनदर धवस ककय जा रह थ, उस समय जयपर क परम भकत

महाराज बरज क शीगोववनद, शीगोपीनाथ, शीमदनमोहन, शीरारादामोदर, शीरारामारव आदद परससदध ववगरहो को अपन साथ लकर जब जयपर

आ रह थ, तो उनहोन मागा म इस कामयवन म कछ ददनो तक ववशाम ककया । शीववगरहो को रथो स यहा ववसभनन थथानो म परराकर उनका ववधरवत थनान, भोगराग और शयनादद समपनन करवाया था । ततपचिात व जयपर और अनय थथानो म परराय गय । तदननतर कामयवन म जहा–जहा शीरारागोववनद, शीरारागोपीनाथ और शीरारामदनमोहन परराय गय थ, उन–उन थथानो पर ववशाल मशनदरो का ननमााण कराकर

उनम उन–उन मल शीववगरहो की परनतभ–ववगरहो की परनतषठा की गई । शीवनदादवी कामयवन तक तो आई, ककनत व बरज को छोडकर आग नही गई । इसीसलए यहा शीवनदादवी का पथक रप दशान ह । शीितनय महापरभ और उनक शीरप सनातन गोथवामी आदद पररकरो न बरजमणडल की लपत लीलाथथसलयो को परकाश ककया ह । इनक बरज म आन स पवा कामयवन को वनदावन माना जाता था । ककनत, शीितनय महापरभ न ही मथरा क सशननकट शीराम वनदावन को परकासशत ककया । कयोकक कामयवन म यमनाजी, िीरघाट, ननधरवन, कालीदह, कशीघाट, सवाकज, रासथथली वशीवट, शीगोपचवर महादव की शथथनत असमभव

ह । इससलए ववमलकणड, कामचवर महादव, िरणपहाडी, सतबार रामचवर आदद लीला थथसलया जहा ववराजमान ह, वह अवचय ही वनदावन स

पथक कामयवन ह । वनदादवी का थथान वनदावन म ही ह। व वनदावन क कञज की तथा उन कञजो म शीराराकषण यगल की करीडाओ की अधरषठातरी दवी ह । अत: अब व शीराम वनदावन क शीरप सनातन गौडीय मठ म ववराजमान ह । यहा उनकी बडी ही ददवय झाकी ह । शीगोववनद मशनदर क ननकट ही गरडजी, िनदरभारा कणड, िनदरचवर महादवजी, वाराहकणड, वाराहकप, यजञकणड और रमाकणडादद दशानीय ह ।

धमभ कणड

यह कणड कामयवन की पवा ददशा म ह । यहा शीनारायण रमा क रप म ववराजमान ह । पास म ही ववशाखा नामक वदी ह । शवणा नितर,

बरवार, भादरपद कषणाषटमी म यहा थनान की ववशर ववधर ह । रमा कणड क अनतगात नर–नारायण कणड, नील वराह, पि पाणडव, हनमान जी, पि पाणडव कणड (पञि तीथा) मणणकणणाका, ववचवचवर महादवादद दशानीय ह ।

यशोदा कणड

कामयवन म यही कषण की माता शीयशोदाजी कावपतरालय था । शीकषण बिपन म अपनी माता जी क साथ यहा कभी–कभी आकर ननवास

करत थ । कभी–कभी ननद–गोकल अपन गऊओ क साथ पडाव म यही ठहरता था । शीकषण सखाओ क साथ यहा गोिारण भी करत थ ।* ऐसा शाथतरो म उललख ह । यह थथान अतयनत मनोहर ह ।

गया कणड

गया कणड, ववमल कणड

गयातीथा भी बरजमणडल क इस थथान पर रहकर कषण की आरारना करत ह । इसम अगथत कणड भी एक साथ समल हए ह । गया कणड क

दकषिणी घाट का नाम अगथत घाट ह । यहा आशचवन माह क कषण पि म थनान, तपाण और वपणडदान आदद परशथत ह । परयाग कणड

तीथाराज परयाग न यहा शीकषण की आरारना की थी । परयाग और पषकर य दोनो कणड एक साथ ह । दवारका कणड

शीकषण न यहा पर दवार का स बरज म परारकर महवरायो क साथ सशववर बनाकर ननवास अवशथथत ककया था । दवारकाकणड, सोमती कणड,

मानकणड और बलभदर कणड– य िारो कणड परथपर सशननकट अवशथथत ह । नारद कणड

यह नारदजी की आरारना थथली ह । दववरा नारद इस थथान पर कषण की मरर लीलाओ का गान करत हए अरया हो जात थ । मनोकामना कणड

ववमल कणड और यशोदा कणड क बीि म मनोकामना कणड और काम सरोवर एक साथ ववराजमान ह । यहा थनानादद करन पर मन की सारी कामनाए पणा हो जाती ह । कामयवन म गोवपकारमण कामसरोवर ह, जहा पर मन की सारी कामनाए पणा हो जाती ह । उसी कामयवन म अनयानय सहथतर तीथा ववराजमान ह ।

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सतबदध सरोवर

शीकषण न यहा पर शीराम क आवश म गोवपयो क कहन स बदरो क दवारा सतका ननमााण ककया था । अभी भी इस सरोवर म सत बनर क

भगनावशर दशानीय ह । कणड क उततर म रामचवर महादवजी दशानीय ह । जो शीरामावशी शीकषण क दवारा परनतशषठत हए थ । कणड क दकषिण

म उस पार एक टील क रप म लकापरी भी दशानीय ह ।

परसग

शीकषण लीला क समय ददन परम कौतकी शीकषण इसी कणड क उततरी तट पर गोवपयो क साथ विो की छाया म बठकर ववनोददनी शीराधरका क साथ हाथय–पररहास कर रह थ । उस समय इनकी रप माररी स आकषट होकर आस पास क सार बदर पडो स नीि उतरकर उनक िरणो म परणामकर ककलकाररया मारकर नािन–कदन लग । बहत स बदर कणड क दकषिण तट क विो स लमबी छलाग मारकर उनक िरणो क समीप

पहि । भगवान शीकषण उन बदरो की वीरता की परशसा करन लग । गोवपया भी इस आचियाजनक लीला को दखकर मगर हो गई । व भी भगवान शीरामिनदर की अदभत लीलाओ का वणान करत हए कहन लगी । कक शीरामिनदरजी न भी बदरो की सहायता ली थी । उस समय

लसलताजी न कहा– हमन सना ह कक महापराकरमी हनमान जी न तरतायग म एक छलाग म समदर को पार कर सलया था । परनत आज तो हम

सािात रप म बदरो को इस सरोवर को एक छलाग म पार करत हए दख रही ह । ऐसा सनकर कषण न गवा करत हए कहा– जानती हो ! म ही तरतायग म शीराम था मन ही रामरप म सारी लीलाए की थी । लसलता शीरामिनदर की अदभत लीलाओ की परशसा करती हई बोली– तम झठ हो । तम कदावप राम नही थ । तमहार सलए कदावप वसी वीरता समभव नही । शीकषण न मथकरात हए कहा– तमह ववचवास नही हो रहा ह, ककनत

मन ही रामरप रारणकर जनकपरी म सशवरन को तोडकर सीता स वववाह ककया था । वपता क आदश स रनर-बाण रारणकर सीता और

लकषमण क साथ धितरकट और दणडकारणय म भरमण ककया तथा वहा अतयािारी दतयो का ववनाश ककया । कफर सीता क ववयोग म वन–वन

भटका । पन: बनदरो की सहायता स रावण सदहत लकापरी का धवसकर अयोधया म लौटा । म इस समय गोपालन क दवारा वशी रारणकर

गोिारण करत हए वन–वन म भरमण करता हआ वपरयतमा शीराधरका क साथ तम गोवपयो स ववनोद कर रहा ह । पहल मर रामरप म रनर–

बाणो स बतरलोकी काप उठती थी । ककनत, अब मर मरर वणनाद स थथावर–जगङम सभी पराणी उनमतत हो रह ह । लसलताजी न भी मथकरात

हए कहा– हम कवल कोरी बातो स ही ववचवास नही कर सकती । यदद शीराम जसा कछ पराकरम ददखा सको तो हम ववचवास कर सकती ह । शीरामिनदरजी सौ योजन समदर को भाल–कवपयो क दवारा बरवाकर सारी सना क साथ उस पार गय थ । आप इन बदरो क दवारा इस छोट स

सरोवर पर पल बरवा द तो हम ववचवास कर सकती ह । लसलता की बात सनकर शीकषण न वण–धवनन क दवारा िणमातर म सभी बदरो को एकतर कर सलया तथा उनह परथतर सशलाओ क दवारा उस सरोवर क ऊपर सत बारन क सलए आदश ददया । दखत ही दखत शीकषण क आदश स

हिारो बदर बडी उतसकता क साथ दर -दर थथानो स पतथरो को लाकर सत ननमााण लग गय । शीकषण न अपन हाथो स उन बदरो क दवारा लाय हए उन पतथरो क दवारा सत का ननमााण ककया । सत क परारमभ म सरोवर की उततर ददशा म शीकषण न अपन रामचवर महादव की थथापना भी की । आज भी य सभी लीलाथथान दशानीय ह । इस कणड का नामानतर लका कणड भी ह ।

लकलकी कणड

गोिारण करत समय कभी कषण अपन सखाओ को खलत हए छोडकर कछ समय क सलए एकानत म इस परम रमणीय थथान पर गोवपयो स

समल । व उन बरज– रमणणयो क साथ यहा पर लका–नछपी (आख मदउवल) की करीडा करन लग । सब गोवपयो न अपनी–अपनी आख मद ली और कषण ननकट ही पवात की एक कनदरा म परवश कर गय । सणखया िारो ओर खोजन लगी, ककनत कषण को ढढ नही सकी । व बहत ही धिशनतत हई कक कषण हम छोडकर कहा िल गय ? व कषण का धयान करन लगी । जहा पर व बठकर धयान कर रही थी, वह थथल धयान–कणड

ह । शजस कनदरा म कषण नछप थ , उस लक–लक कनदरा कहत ह ।

चरणपिाडी

िरणपहाडी, कामयवन

शीकषण इस कनदरा म परवशकर पहाडी क ऊपर परकट हए और वही स उनहोन मरर वशीधवनन की । वशीधवनन सनकर सणखयो का धयान टट

गया और उनहोन पहाडी क ऊपर वपरयतम को वशी बजात हए दखा। व दौडकर वहा पर पहिी और बडी आतरता क साथ कषण स समली । वशीधवनन स पवात वपघल जान क कारण उसम शीकषण क िरण धिहन उभर आय । आज भी व िरण– धिहन थपषट रप म दशानीय ह । पास

म उसी पहाडी पर जहा बछड िर रह थ और सखा खल रह थ, उसक पतथर भी वपघल गय शजस पर उन बछडो और सखाओ क िरण– धिहन

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अककत हो गय, जो पाि हिार वरा बाद आज भी थपषट रप स दशानीय ह । लक–लकी कणड म जल–करीडा हई थी । इससलए इस जल–करीडा कणड

भी कहत ह । ववहल कणड

िरणपहाडी क पास ही ववहल कणड और पञिसखा कणड ह । यहा पर कषण की मरली धवनन को सनकर गोवपया परम म ववहल हो गई थी । इससलए वह थथान ववहल कणड क नाम स परससदध हआ । पञि सखा कणडो क नाम रगङीला, छबीला, जकीला, मतीला और दतीला कणड ह । य

सब अगरावली गराम क पास ववदयमान ह । यशोधरा कणड

नामानतर म घोररानी कणड ह । घोररानी यशोरर गोप की बटी थी । यशोरर गोप न यही अपनी कनया का वववाह कर ददया था । शीकषण की मातामही पाटला दवी का वह कणड ह । शरी परबोधानदद सरसवती रजन सथली लकलकी कणड क पास ही बड ही ननजान ककनत सरमय थथान म शीपरबोराननदजी की भजन–थथली ह । शीपरबोराननद , शीगोपाल भटट गोथवामी क गर एव वपतवय थ । य सवाशाथतरो क पारगत अपराकत कवव थ । रारारससराननधर, शीनवदवीप शतक, शीवनदावन शतक आदद इनही महापरर की कनतया ह । शीकववकणापर न अपन परससदध गौरगणोददशदीवपका म उनको कषणलीला की अषटसणखयो म सवागणसमपनना तगववदया सखी बतलाया ह । शीरगङम म शीमनमहापरभ स कछ कषण कथा शवणकर य शीसमपरदाय को छोडकर शीमनमहापरभ क अनगत हो गय । शीमनमहापरभ क शीरगङम स परथथान करन पर य वनदावन म उपशथथत हए और कछ ददनो तक यहा इस ननजान थथान म रहकर उनहोन

भजन ककया था । अपन अशनतम समय म शीवनदावन कालीदह क पास भजन करत–करत ननतयलीला म परववषट हए । आज भी उनकी भजन

और समाधर थथली वहा दशानीय ह । कफसलनी मशला कलावता गराम क पास म इनदरसन पवात पर कफसलनी सशला ववदयमान ह । गोिारण करन क समय शीकषण सखाओ क साथ यहा कफसलन की करीडा करत थ । कभी–कभी राधरकाजी भी सणखयो क साथ यहा कफसलन की करीडा करती थी । आज भी ननकट गाव क लडक गोिारण करत

समय बड आननद स यहा पर कफसलन की करीडा करत ह । यातरी भी इस करीडा कौतकवाली सशला को दशान करन क सलए जात ह ।

वयोमासर गफा

वयोमासर गफा, कामयवन

इसक पास ही पहाडी क मधय म वयोमासर की गफा ह । यही पर कषण न वयोमासर का वर ककया था । इस मरावी मनन की कनदरा भी कहत ह । मरावी मनन न यहा कषण की आरारना की थी । पास म ही पहाडी नीि शीबलदव परभ का िरणधिहन ह । शजस समय शीकषण वयोमासर का वर कर रह थ, उस समय प वी कापन लगी । बलदव जी न अपन िरणो स प वी को दबाकर शानत कर ददया था । उनही क िरणो का धिहन

आज भी दशानीय ह ।

परसग

एक समय कषण गोिारण करत हए यहा उपशथथत हए । िारो तरफ वन म बडी–बडी हरी–भरी घास थी । गऊव आननद स वहा िरन लग गई । शीकषण ननशचिनत होकर सखाओ क साथ मर(भड)िोरी की लीला खलन लग । बहत स सखा भड बन गय और कछ उनक पालक बन । कछ

सखा िोर बनकर भडो को िरान की करीडा करन लग । कषण वविारक (नयायारीश) बन । मर पालको न नयायरीश कषण क पास भड िोरो क

ववरदध मकदमा दायर ककया । शीकषण दोनो पिो को बलाकर मकदम का वविार करन लग । इस परकार सभी गवालबाल करीडा म आसकत हो गय । उरर वयोमासर नामक कस क गपतिर न कषण को मार डालन क सलए सखाओ जसा वश रारण कर सखा मणडली म परवश ककया और

भडो का िोर बन गया तथा उसन भड बन हए सार सखाओ को करमश: लाकर इसी कनदरा म नछपा ददया । शीकषण न दखा कक हमार सखा कहा गय ? उनहोन वयोमासर को पहिान सलया कक यह काया इस सखा बन दतय का ही ह । ऐसा जानकर उनहोन वयोमासर को पकड सलया और उस

मार डाला । ततपचिात पालक बन हए सखाओ क साथ पवात की गफा स सखाओ का उदधार ककया । शीमदभागवत दशम थकनर म शीकषण की इस लीला का वणान दखा जाता ह ।

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रोजन थाली

भोजन थाली, कामयवन

वयोमासर गफा स थोडी दर भोजन थाली ह । शीकषण न वयोमासर का वरकर यही पर इस कणड म सखाओ क साथ थनान ककया था उस कणड

को िीरसागर या कषणकणड कहत ह । इस कणड क ऊपर कषण न सब गोप सखाओ क साथ भोजन ककया था । भोजन करन क थथल म अभी भी पहाडी म थाल और कटोरी क धिहन ववदयमान ह । पास म ही शीकषण क बठन का ससहासन थथल भी ववदयमान ह । भोजन करन क

पचिात कछ ऊपर पहाडी पर सखाओ क साथ करीडा कौतक का थथल भी ववदयमान ह । सखालोग एक सशला को वादययनतर क रप म वयवहार

करत थ । आज भी उस सशला को बजान स नाना परकार क मरर थवर ननकलत ह यह बाजन सशला क नाम स परससदध ह । पास म ही शानत की तपथया थथली शानतनकणड ह, शजसम गपतगगा नसमरतीथा, हररदवार कणड, अवशनतका कणड, मतथय कणड, गोववनद कणड, नससह कणड और

परहलाद कणड य एकतर ववदयमान ह । भोजन थथली की पहाडी पर शीपरशरामजी की तपथया थथली ह । यहा पर शीपरशरामजी न भगवद

आरारना की थी । कामयवन म शीगौडीय समपरदाय क ववगरह–शीगोववनदजी, शीवनदाजी, शीगोपीनाथजी और शीमदनमोहनजी ह । शीवललभ समपरदाय क ववगरह– शीकषणिनदरमाजी, नवनीतवपरयाजी और शीमदनमोहनजी ह ।

कामयवन क दरवाज

कामयवन म सात दरवाज ह–

1. डीग दरवाजा– कामयवन क अशगन कोण म (दकषिण–पवा ददशा म) अवशथथत ह । यहा स डीग (दीघापर) और भरतपर जान का राथता ह । 2. लका दरवाजा– यह कामयवन गाव क दकषिण कोण म अवशथथत ह । यहा स सतबनर कणड की ओर जान का मागा ह । 3. आमर दरवाजा– कामयवन गाव क नऋत कोण म (दकषिण–पशचिम ददशा म) अवशथथत ह । यहा स िरणपहाडी जान का मागा ह । 4. दवी दरवाजा– यह कामयवन गाव क पशचिम म अवशथथत ह । यहा स वषणवीदवी (पजाब) जान का मागा ह । 5. ददलली दरवाजा –यह कामयवन क उततर म अवशथथत ह । यहा स ददलली जान का मागा ह । 6. रामजी दरवाजा– गाव क ईशान कोण म अवशथथत ह । यहा स ननदगाव जान का मागा ह । 7. मथरा दरवाजा– यह गाव क पवा म अवशथथत ह । यहा स बरसाना होकर मथरा जान का मागा ह ।