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जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 1 of 213 MASS COMMUNICATION जनसंचार लोकसàपक[ या जनसàपक[ या जनसंचार (Mass communication) से ता×पय[ उन सभी साधनɉ के अÚययन एवं वæलेषण से है जो एक साथ बहत बड़ी जनसंÉया के साथ संचार सàबÛध èथापत करने मɅ सहायक होते ह। ɇ Ĥायः इसका अथ[ सिàमलत Ǿप से समाचार पğ, पǒğकाएँ , रेडयो, दरदश[न , चलचğ से लया जाता है जो समाचार एवं व£ापन दोनो के Ĥसारण के लये ĤयÈत होते ह। ɇ जनसंचार माÚयम मɅ संचार सÞद कȧ उ×पǓत संèकत के 'चर' धातु से हई है िजसका अथ[ है चलना 1 पǐरचय 2 समाचार पğ 3 चलचğ पǐरचय लोकसंपक[ का अथ[ बड़ा हȣ åयापक और Ĥभावकारȣ है। लोकतंğ के आधार पर èथापत लोकस×ता के पǐरचालन के लए हȣ नहȣं बिãक राजतंğ और अधनायकतंğ के सफल संचालन के लए भी लोकसंपक[ आवæयक माना जाता है। कष , उÙयोग,åयापार, जनसेवा और लोकǽच के वèतार तथा पǐरçकार के लए भी लोकसंपक[ कȧ आवæयकता है। लोकसंपक[ का शािÞदक अथ[ है 'जनसधारण से अधकाधक Ǔनकट संबंध'Ĥाचीन काल मɅ लोकमत को जानने अथवा लोकǽच को सँवारने के लए िजन साधनɉ का Ĥयोग कया जाता था वे आज के वै£ाǓनक यगु मɅ अधक उपयोगी नहȣं रह गए ह। ɇ एक यगु था जब राजा लोकǽच को जानने के लए गÜतचर åयवèथा पर पण[त : आĮत रहता था तथा अपने Ǔनदेशɉ, मंतåयɉ और वचारɉ को वह शलाखंडɉ, ĤèतरमǓत[यɉ , ताĨपğɉ आǑद पर अंकत कराकर Ĥसाǐरत कया करता था। भोजपğɉ पर अंकत आदे श जनसाधारण के मÚय Ĥसाǐरत कराए जाते थे। राÏयादेशɉ कȧ मनादȣ कराई जाती थी। धम[Ēंथɉ और उपदेशɉ के Ùवारा जनǽच का पǐरçकार कया जाता था। आज भी वĐमाǑद×य, अशोक, हष[वध[न आǑद राजाओं के समय के जो शलालेख मलते हɇ उनसे पता चलता है Ĥाचीन काल मɅ लोकसंपक[ का माग[ कतना जǑटल और दǾह था। धीरे धीरे आधǓनक व£ान मɅ वकास होने से साधनɉ का भी वकास होता गया और अब ऐसा समय गया है जब लोकसंपक[ के लए समाचारपğ, मǑġत Ēंथ, लघु पèतक -पिèतकाएँ , Ĥसारण यंğ (रेडयो, टेलȣवजन), चलचğ, ÚवǓनवèतारक यंğ आǑद अनेक साधन उपलÞध ह। ɇ इन साधनɉ का åयापक उपयोग राÏयस×ता, औÙयोगक और åयापाǐरक ĤǓतçठान तथा अंतरराçĚȣय संगठनɉ के Ùवारा होता है। वत[मान यगु मɅ लोकसंपक[ के सवȾ×तम माÚयम का काय[ समाचारपğ करते ह। ɇ इसके बाद रेडयो, टेलȣवजन, चलचğɉ और इंटरनेट आǑद का èथान है। नाÒय, संगीत, भजन, कȧत[न, धमȾपदेश आǑद के Ùवारा भी लोकसंपक[ का काय[ होता है। लोकतांǒğक åयवèथा के अंतग[त जलस , सभा, संगठन, Ĥदश[न आǑद कȧ जो सवधाएँ हɇ उनका उपयोग भी राजनीǓतक दलɉ कȧ ओर से लोकसंपक[ के लए कया जाता है। डाक, तार, टेलȣफोन, रेल, वाययान , मोटरकार, जलपोत और यातायात तथा पǐरवहन के अÛयाÛय साधन भी राçĚȣय और अंतरराçĚȣय संपक[ के लए åयवǿत कए जाते ह। ɇ लोकतांǒğक åयवèथा के अंतग[त जनता Ùवारा Ǔनवा[चत ĤǓतǓनध भी लोकस×ता और लोकमत के मÚय लाकसंपक[ कȧ मह×वपण[ कड़ी का काम करते ह। ɇ लोकसंपक[ कȧ मह×ता बताते हए सन ् १७८७ ईसवी मɅ अमरȣका के राçĚपǓत टामस जेफस[न ने लखा था - Print to PDF without this message by purchasing novaPDF (http://www.novapdf.com/)

MASS COMMUNICATION जनसंचार · स jवधाएँु ह Gउनकाउपयोग भी राजनीतक दल Iक ओर से लोकसंपक[

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    MASS COMMUNICATION जनसंचार

    लोकस पक या जनस पक या जनसंचार (Mass communication) से ता पय उन सभी साधन के अ ययन एवं व लेषण से है जो एक साथ बहतु बड़ी जनसं या के साथ संचार स ब ध था पत करने म सहायक होते ह। ायः इसका अथ सि म लत प से समाचार प , प काए,ँ रे डयो, दरदशनू , चल च से लया जाता है जो समाचार एवं व ापन दोनो के सारण के लये य तु होते ह।

    जनसंचार मा यम म संचार स द क उ प त सं कतृ के 'चर' धातु से हईु है िजसका अथ है चलना ।

    1 प रचय 2 समाचार प 3 चल च

    प रचय

    लोकसंपक का अथ बड़ा ह यापक और भावकार है। लोकतं के आधार पर था पत लोकस ता के प रचालन के लए ह नह ं बि क राजतं और अ धनायकतं के सफल संचालन के लए भी लोकसंपक आव यक माना जाता है। क षृ , उ योग, यापार, जनसेवा और लोक च के व तार तथा प र कार के लए भी लोकसंपक क आव यकता है। लोकसंपक का शाि दक अथ है 'जनसधारण से अ धका धक नकट संबंध'। ाचीन काल म लोकमत को जानने अथवा लोक च को सँवारने के लए िजन साधन का योग कया जाता था वे आज के वै ा नक यगु म अ धक उपयोगी नह ंरह गए ह। एक यगु था जब राजा लोक च को जानने के लए ग तचरु यव था पर पणतू : आ त रहता था तथा अपने नदेश , मंत य और वचार को वह शलाखंड , तरम तयू , ता प आ द पर अं कत कराकर सा रत कया करता था। भोजप पर अं कत आदेश जनसाधारण के म य सा रत कराए जाते थे। रा यादेश क मनादु कराई जाती थी। धम ंथ और उपदेश के वारा जन च का प र कार कया जाता था। आज भी व मा द य, अशोक, हषवधन आ द राजाओ ंके समय के जो शलालेख मलते ह उनसे पता चलता है क ाचीन काल म लोकसंपक का माग कतना ज टल और द हु था। धीरे धीरे आध नकु व ान म वकास होने से साधन का भी वकास होता गया और अब ऐसा समय आ गया है जब लोकसंपक के लए समाचारप , म तु ंथ, लघु प तकु -पि तकाएँु , सारण यं (रे डयो, टेल वजन), चल च , व न व तारक यं आ द अनेक साधन उपल ध ह। इन साधन का यापक उपयोग रा यस ता, औ यो गक और यापा रक त ठान तथा अंतररा य संगठन के वारा होता है।

    वतमान यगु म लोकसंपक के सव तम मा यम का काय समाचारप करते ह। इसके बाद रे डयो, टेल वजन, चल च और इंटरनेट आ द का थान है। ना य, संगीत, भजन, क तन, धम पदेश आ द के वारा भी लोकसंपक का काय होता है। लोकतां क यव था के अंतगत जलसु ू , सभा, संगठन, दशन आ द क जो स वधाएँु ह उनका उपयोग भी राजनी तक दल क ओर से लोकसंपक के लए कया जाता है। डाक, तार, टेल फोन, रेल, वाययानु , मोटरकार, जलपोत और यातायात तथा प रवहन के अ या य साधन भी रा य और अंतररा य संपक के लए यव त कए जाते ह। लोकतां क यव था के अतंगत जनता वारा नवा चत त न ध भी लोकस ता और लोकमत के म य लाकसंपक क मह वपणू कड़ी का काम करते ह।

    लोकसंपक क मह ता बताते हएु सन ्१७८७ ईसवी म अमर का के रा प त टामस जेफसन ने लखा था -

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 2 of 213

    हमार स ताओ ंका आधार लोकमत है। अत: हमारा थम उ े य होना चा हए लोकमत को ठ क रखना। अगर मझसेु पछाू जाए क म समाचारप से वह न सरकार चाहता हूँ अथवा सरकार से र हत समाचारप को पढ़ना चाहता हूँ तो म न:संकोच उ तर दँगाू क शासनस ता से र हत समाचारप का काशन ह मुझे वीकार है। पर म चाहँगाू क ये समाचारप हर यि त तक पहँचु और वे उ ह पढ़ने म स म ह । जहा ँसमाचारप वतं ह और हर यि त पढ़ने को यो यता रखता है वहा ँसब कछु सर तु है।

    मैकाले ने सन ्१८२८ म लखा -

    संस क िजस द घा म समाचारप के त न ध बैठते ह वह स ता का चतथु वग है। इसके बाद एडमंड बक ने लखा - संस म स ता के तीन वग ह कतं ु प त न धय का क चतथु वग है जो सबसे अ धक मह वपणू है।

    इसी कार सन ्१८४० म कालाइल ने यो य संपादक क प रभाषा बताते हएु लखा - म णु का काय अ नवायत: लेखन के बाद होता है। अत: म कहता हूँ क लेखन और म णु लोकतं के तंभ ह।

    अब यह प ट है क लोकसंपक क ि ट से वतमान यगु म समाचारप , संवाद स म तय , रे डयो, टेल वजन, फ म तथा इसी कार से अ य साधन का वशेष मह व है। यह ि थ त केवल भारत म ह नह ंहै बि क, वदेश म है। लोकसंपक क ि ट से वहा ँइन साधन का खबू उपयोग कया जाता है। इंगलड, अमर का, ांस, सो वयत स, जापान, जमनी तथा अ या य कई देश म जनसाधारण तक पहंचनेु के लए सव तम मा यम का काय

    समाचारप करते ह। इन देश म समाचारप क ब सं या लाख म है।

    समाचार प

    भारतवष म लोकसंपक क ि ट से समाचारप का थम काशन सन ्१७८० से आरंभ हआ।ु कहा जाता है, २९ जनवर , १७८० को भारत का पहला प बंगाल गजट का शत हआु था। इसके बाद सन ्१७८४ म कलक ता गजट का काशन हआ।ु सन ्१७८५ म म ास से क रयरू नकला, फर बंबई हेर ड, बंबई क रयरू और बंबई गजट जैसे प का अं ेजी म काशन हआ।ु इससे बहतु पहले इं लड, जमनी, इटल और ाँस से समाचारप का शत हो रहे थे। इं लड का थम प आ सफोड गजट सन ्१६६५ म का शत हआु था। लंडन का टाइ स नामक प सन ्१७८८ म नकला था। म णु यं के आ व कार से पहले चीन से कगयाडं और कयल 'तथा रोम से' 'रोमन ए टा डायरना' नामक प नकले थे।

    भारत म प के काशन का म सन ् १८१६ म ारंभ हआ।ु 'बंगाल गजट' के बाद 'जान बलइनु ', तथा द ई ट का काशन हआ।ु इंग लशमैन १८३६ म का शत हआ।ु १८३८ म बंबई से 'बंबई टाइ स' और बाद म 'टाइ स आफ इं डया' का काशन हआ।ु १८३५ से १८५७ के म य द ल , आगरा, मेरठ, वा लयर और लाहौर से कई प का शत हएु इस समय तक १९ ऐं लो इं डयन और २५ भारतीय प का शत होने लगे थे कतं ु जनता के म य उनका चार बहतु ह कम था। सन ्१८५७ के व ोह के बाद 'टाइ स आफ इं डया', 'पायो नयर', 'म ास मेल', 'अमतबाजारृ प का', ' टे समैन', ' स वल ऐंड म लटर गजट' और ' हदं'ू जसेै भावशाल समाचारप का काशन ारंभ हआ।ु बहार से बहार हेर ड, बहार टाइ स और बहार ए स ेस नामक प का शत हए।ु भारतीय भाषाओ ंम का शत होनेवाला थम प समाचारदपण सन ्१८१८ म ीरामपरु से बगँला म का शत

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 3 of 213

    हआ।ु सन ् १८२२ म बंबई समाचार, गजरातीु भाषा म का शत हआ।ु उद ूम 'कोहेनरू ', 'अवध अखबार' और 'अखबारे आम' नामक कई प नकले।

    हदं का थम समाचारप 'उदंत मातड' था, िजसके संपादक ी यगल कशोरु श लु थे। दसूरा प 'बनारस अखबार' राजा शव साद सतारे हदं ने सन ्१८४५ म का शत कराया था। इसके सपंादक एक मराठ स जन ी गो वदं रघनाथु भ ते थे। सन ्१८६८ म भारतद ुह र चं ने 'क व वचन सधाु ' नामक मा सक प का नकाल । पीछे इसे पा क और सा ता हक सं करण भी नकले। १८७१ म 'अ मोड़ा समाचार' नामक सा ता हक का शत हआ।ु सन ्१८७२ म पटना से ' बहार बंधु' नामक सा ता हक प का शत हआ।ु इसके का न म पं डत केशोराम भ का मखु हाथ था। सन ्१८७४ म द ल से सदादश, और सन ्१८७९ म अल गढ़ से 'भारत बंधु' नामक प नकले। य य समाचारप क सं या बढ़ती गई य य उनके नयं ण और नयमन के लए काननू भी बनाते गए। रा य जागरण के फल व प देश म दै नक, सा ता हक, मा सक, मैा स आ द प का काशन अ धक होने लगा। समाचारप के पठनपाठन के त जनता म अ धक अ भ च जा त हई।ु १५ अग त, १९४७ का जब देश वतं हआु तो ाय: सभी बड़े नगर से समाचारप का काशन होता था। वतं भारत के लए जब सं वधान बना तो पहल बार भाषण और अ भ यि त क वतं ता के स ांत को मा यता द गई। समाचारप का तर उ नत बनाने के लए एक आयोग का गठन कया गया।

    लोकतं (शाि दक अथ "लोग का शासन", सं कतृ लोक, "जनता" ,तं ,"शासन", ) या जातं एक ऐसी शासन यव था है िजसम जनता अपना शासक खदु चनतीु है । यह श द लोकतां क यव था और लोकतां क रा य दोन के लये य तु होता है। य य प लोकतं श द का योग राजनी तक संदभ म कया जाता है, कतं ु लोकतं का स ांत दसरेू समहू और संगठन के लये भी संगत है। सामांयतः लोकतं व भ न स ांत के म ण से बनते ह, पर मतदान को लोकतं के अ धकांश कार का च र गत ल ण माना जाता है।

    1 लोकतं के कार

    1.1 त न ध लोकतं 1.2 उदार लोकतं 1.3 य लोकतं

    2 भारत म लोकतं के ाचीनतम योग 3 इ ह भी देख 4 वा य सू

    लोकतं के कार

    लोकतं क प रभाषा के अनसारु यह "जनता वारा, जनता के लए, जनता का शासन है"। ले कन अलग-अलग देशकाल और प रि थ तय म अलग-अलग धारणाओ ंके योग से इसक अवधारणा कछु ज टल हो गयी है। ाचीनकाल से ह लोकतं के संदभ म कई ताव रखे गये ह, पर इनम से कई कभी याि वत नह ंहए।ु

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 4 of 213

    त न ध लोकतं

    त न ध लोकतं म जनता सरकार अ धका रय को सीधे चनतीु है। त न ध कसी िजले या ससंद य े से चनेु जाते ह या कई समानपा तकु यव थाओ ंम सभी मतदाताओ ंका त न ध व करते ह। कछु देश म म त यव था य तु होती है। य य प इस तरह के लोकतं म त न ध जनता वारा नवा चत होते ह,ले कन जनता के हत म काय करने क नी तया ं त न ध वयं तय करते ह। य य प दलगत नी तया,ं मतदाताओ ंम छ व, पनःु चनावु जसेै कछु कारक त न धय पर असर डालते ह, क तु सामा यतः इनम से कछु ह बा यकार अनदेशु होते ह। इस णाल क सबसे बड़ी

    खा सयत यह है क जनादेश का दबाव नी तगत वचलन पर रोक का काम करता है, य क नय मत अंतराल पर स ता क वैधता हेतु चनावु अ नवाय ह। (अर वदं पांडे)

    उदार लोकतं

    एक तरह का त न ध लोकतं है, िजसम व छ और न प चनावु होते ह। उदार लोकतं के च र गत ल ण म, अ पसं यक क सर ाु , काननू यव था, शि तय के वतरण आ द के अलावा अ भ यि त, भाषा, सभा, धम और संपि त क वतं ता मखु है।

    य लोकतं

    य लोकतं म सभी नाग रक सारे मह वपणु नी तगत फैसल पर मतदान करते ह। इसे य कहा जाता है य क सै ां तक प से इसम कोई त न ध या म य थ नह ंहोता। सभी य लोकतं छोटे समदायु या नगर-रा म ह।

    भारत म लोकतं के ाचीनतम योग

    ाचीन काल मे भारत म स ढ़ु यव था व यमान थी। इसके सा य हम ाचीन सा ह य, स क और अ भलेख से ा त होते ह। वदेशी या य एवं व वान के वणन म भी इस बात के माण ह।

    ाचीन गणतां क यव था म आजकल क तरह ह शासक एवं शासन के अ य पदा धका रय के लए नवाचन णाल थी। यो यता एवं गणु के आधार पर इनके चनावु क या आज के दौर से थोड़ी भ न ज र थी। सभी नाग रक को वोट देने का अ धकार नह ंथा। ऋ वेद तथा कौ ट य सा ह य ने चनावु प त क पि टु क है परंतु उ ह ने वोट देने के अ धकार पर रोशनी नह ंडाल है।

    वतमान संसद क तरह ह ाचीन समय म प रषद का नमाण कया गया था। जो वतमान संसद य णाल से मलता-जलताु था। गणरा य या संघ क नी तय का संचालन इ ह ंप रषद वारा होता था। इसके सद य क सं या वशाल थी। उस समय के सबसे स गणरा य ल छ व क क य प रषद म 7707 सद य थे। वह ंयौधेय क के य प रषद के 5000 सद य थे। वतमान ससंद य स क तरह ह प रषद के अ धवेशन नय मत प से होते थे।

    कसी भी म ेु पर नणय होने से पवू सद य के बीच म इस पर खलकरु चचा होती थी। सह -गलत के आकलन के लए प - वप पर जोरदार बहस होती थी। उसके बाद ह सवस म त से नणय का तपादन कया जाता था। सबक सहम त न होने पर बहमतु या अपनायी जाती थी। कई जगह तो सवस म त होना अ नवाय होता था। बहमतु से लये गये नणय को ‘भ य सि कमू ’ कहा जाता था। इसके लए वो टगं का सहारा लेना पड़ता था। त काल न समय म वोट को ‘छ द’ कहा जाता था। नवाचन आय तु क भां त इस चनावु क देख रेख करने वाला भी एक अ धकार होता था िजसे शलाका ाहक कहते थे। वोट देने के लए तीन णा लया ंथीं।

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    (1) गढ़कू (ग तु प से) – अथात अपना मत कसी प पर लखकर िजसम वोट देने वाले यि त का नाम नह ंआता था।

    (2) ववतकृ ( कट प से) – इस या म यि त सबंं धत वषय के त अपने वचार सबके सामने कट करता था। अथात खलुे आम घोषणा।

    (3) संकणज पक (शलाका ाहक के कान म चपकेु से कहना) - सद य इन तीन म से कोई भी एक या अपनाने के लए वतं थे। शलाका ाहक परू म तैदु एवं ईमानदार से इन वोट का हसाब करता था।

    इस तरह हम पाते ह क ाचीन काल से ह हमारे देश म गौरवशाल लोकतं ीय पर परा थी। इसके अलावा स यवि थतु शासन के संचालन हेतु अनेक मं ालय का भी नमाण कया गया था। उ तम गणु एवं यो यता के आधार पर इन मं ालय के अ धका रय का चनावु कया जाता था।

    मं ालय के मखु वभाग थे-

    (1) औ यो गक तथा श प संबंधी वभाग

    (2) वदेश वभाग

    (3) जनगणना

    (4) य व य के नयम का नधारण

    मं मंडल का उ लेख हम ‘अथशा ’ ‘मन म तु ृ ’, ‘श नी तु ’, ‘महाभारत’, इ या द म ा त होता है। यजवदु और ा मण ंथ म इ ह ‘रि न’ कहा गया। महाभारत के अनसारु मं मंडल म 6 सद य होते थे। मनु के अनसारु सद य सं या 7-8 होती थी। शु ने इसके लए 10 क सं या नधा रत क थी।

    इनके काय इस कार थे:-

    (1) परो हतु - यह राजा का गु माना जाता था। राजनी त और धम दोन म नपणु यि त को ह यह पद दया जाता था।

    (2) उपराज (राज त न ध)- इसका काय राजा क अनपि थ तु म शासन यव था का संचालन करना था।

    (3) धान- धान अथवा धानमं ी, मं मंडल का सबसे मह वपणू सद य था। वह सभी वभाग क देखभाल करता था।

    (4) स चव- वतमान के र ा मं ी क तरह ह इसका काम रा य क सर ाु यव था संबंधी काय को देखना था।

    (5) समु - रा य के आय- यय का हसाब रखना इसका काय था। चाण य ने इसको समह ता कहा।

    (6) अमा य- अमा य का काय संपणू रा य के ाक तकृ संसाधन का नयमन करना था।

    (7) दतू- वतमान काल क इंटेल जसी क तरह दतू का काय ग तचरु वभाग को संग ठत करना था। यह रा य का अ यंत मह वपणू एवं संवेदनशील वभाग माना जाता था।

    इनके अलावा भी कई वभाग थे। इतना ह नह ंवतमान काल क तरह ह पंचायती यव था भी हम अपने देश म देखने को मलती है। शासन क मलू इकाई गांव को ह माना गया था। येक गांव म एक ाम-सभा होती थी। जो गांव क

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    शासन यव था, याय यव था से लेकर गांव के येक क याणकार काम को अंजाम देती थी। इनका काय गांव क येक सम या का नपटारा करना, आ थक उ न त, र ा काय, सम नतु शासन यव था क थापना कर एक आदश

    गांव तैयार करना था। ामसभा के मखु को ामणी कहा जाता था।

    सारा रा य छोट -छोट शासन इकाइय म बंटा था और येक इकाई अपने म एक छोटे रा य सी थी और था नक शासन के न म त अपने म पणू थी। सम त रा य क शासन स ता एक सभा के अधीन थी, िजसके सद य उन शासन-इकाइय के धान होते थे।

    एक नि चत काल के लए सबका एक म यु अथवा अ य नवा चत होता था। य द सभा बड़ी होती तो उसके सद य म से कछु लोग को मलाकर एक कायकार स म त नवा चत होती थी। यह शासन यव था एथे स म लाइ थेनीज के सं वधान से मलती-जलतीु थी। सभा म यवाु एवं वृ हर उ के लोग होते थे। उनक बैठक एक भवन म होती थी, जो सभागार कहलाता था।

    एक ाचीन उ लेख के अनसारु अपराधी पहले वचाराथ व न चयमहामा नामक अ धकार के पास उपि थत कया जाता था। नरपराध होने पर अ भय तु को वह म तु कर सकता था पर द ड नह ंदे सकता था। उसे अपने से ऊंचे यायालय भेज देता था। इस तरह अ भय तु को छ: उ च यायालय के स मखु उपि थत होना पड़ता था। केवल राजा को दंड देने का अ धकार था। धमशा और पवू क नजीर के आधार पर ह द ड होता था।

    देश म कई गणरा य व यमान थे। मौय सा ा य का उदय इन गणरा य के लए वनाशकार स हआ।ु परंतु मौय सा ा य के पतन के प चात कछु नये लोकतां क रा य ने ज म लया। यथा यौधेय, मानव और आजनीु यन इ या द।

    ाचीन भारत के कछु मखु गणरा य का योरा इस कार है:-

    शा य- शा य गणरा य वतमान ब ती और गोरखपरु िजला (उ तर देश) के े म ि थत था। इस गणरा य क राजधानी क पलव तु थी। यह सात द वार से घरा हआु स दरु और सर तु नगर था। इस संघ म अ सी हजार कलु और पांच लाख जन थे। इनक राजसभा, शा य प रषद के 500 सद य थे। ये सभा शासन और याय दोन काय करती थी। सभाभवन को स यागार कहते थे। यहा ं वशेष एवं व श ट जन वचार- वमश कर कोई नणय देते थे। शा य प रषद का अ य राजा कहलाता था। भगवान बु के पता श ोदनु शा य य राजा थे। कौसल के राजा सेनिजत के पु वड घभ ने इस गणरा य पर आ मण कर इसे न ट कर दया था।

    ल छ व- ल छ व गणरा य गंगा के उ तर म (वतमान उ तर बहार े ) ि थत था। इसक राजधानी का नाम वैशाल था। बहार के मज फरपरु ु िजले के बसाढ़ ाम म इसके अवशेष ा त होते ह। ल छ व य वण के थे। व मान महावीर का ज म इसी गणरा य म हआु था। इस गणरा य का वणन जैन एवं बौ ंथ म मखु प से मलता है। वैशाल क रा य प रषद म 7707 सद य होते थे। इसी से इसक वशालता का अनमानु लगाया जा सकता है। शासन काय के लए दो स म तयां होती थीं। पहल नौ सद य क स म त वैदे शक स ब ध क देखभाल करती थी। दसरू आठ सद य क स म त शासन का संचालन करती थी। इसे इ टकलु कहा जाता था। इस यव था म तीन कार के वशेष होते थे- व न चय महामा , यावहा रक, और स ाधार।ू

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    ल छ व गणरा य त काल न समय का बहतु शि तशाल रा य था। बार-बार इस पर अनेक आ मण हए।ु अ तत: मगधराज अजातश ु ने इस पर आ मण करके इसे न ट कर दया। परंतु चतथु शता द ई. म यह पनु: एक शि तशाल गणरा य बन गया।

    वि ज- ल छ व, वदेह, क ड ामु के ातकृ गण तथा अ य पांच छोटे गणरा य ने मलकर जो सघं बनाया उसी को वि ज संघ कहा जाता था। मगध के शासक नर तर इस पर आ मण करते रहे। अ त म यह संघ मगध के अधीन हो गया।

    अ ब ठ- पंजाब म ि थत इस गणरा य ने सक दर से यु न करके सं ध कर ल थी।

    अ ेय- वतमान अ वाल जा त का वकास इसी गणरा य से हआु है। इस गणरा य म सकंदर क सेनाओ ंका डटकर मकाबलाु कया। जब उ ह लगा क वे यु म जीत हा सल नह ंकर पायगे तब उ ह ने वयं अपनी नगर को जला लया।

    इनके अलावा अ र ट, औट वरु , कठ, क ण दु , ु क, पातान थ इ या द गणरा य का उ लेख भी ाचीन गंथ म मलता है।

    आध नकु लोकतं

    आध नकु लोकतं क कोई ऐसी स नि चतु सवमा य प रभाषा नह ंक जा सकती जो इस श द के पीछे छपे हएु संपणू इ तहास तथा अथ को अपने म समा हत करती हो। भ न- भ न यगु म व भ न वचारक ने इसक अलग अलग प रभाषाएँ क ह, परंतु यह सवदा वीकार कया है क लोकतं ीय यव था वह है िजसम जनता क सं भताु हो। जनता का या अथ है, सं भताु कैसी हो और कैसे संभव हो, यह सब ववादा पद वषय रहे ह। फर भी, जहा ँतक लोकतं क प रभाषा का न है अ ाहम लकंन क प रभाषा - लोकतं जनता का, जनता के लए और जनता वारा शासन - ामा णक मानी जाती है। लोकतं म जनता ह स ताधार होती है, उसक अनम तु से शासन होता है, उसक ग त ह शासन का एकमा ल य माना जाता है। परंतु लोकतं केवल एक व श ट कार क शासन णाल ह नह ंहै वरन ्एक वशेष कार के राजनी तक संगठन, सामािजक संगठन, आ थक यव था तथा एक नै तक एवं मान सक भावना का नाम भी है। लोकतं जीवन का सम दशन है िजसक यापक प र ध म मानव के सभी पहलू आ जाते ह।

    1 इ तहास 2 कार 3 संसदा मक तथा अ य ा मक लोकतं ीय सगंठन 4 लोकतं का यापक व प 5 लोकतं के उपादान (ट सू ) 6 लोकतं के श ु

    इ तहास

    लोकतं क आ मा जनता क सं भताु है िजसक प रभाषा यगु के साथ बदलती रह है। इसे आध नकु प के आ वभाव के पीछे शताि दय लंबा इ तहास है। य य प रोमन सा ा यवाद ने लोकतं के वकास म कोई राजनी तक योगदान नह ंकया, परंतु फर भी रोमीय स यता के समय म ह ताइक वचारक ने आ याि मक आधार पर मानव समानता का

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 8 of 213

    समथन कया जो लोकतं ीय यव था का महान ्गणु है। ससरो, सनेका तथा उनके पववू त दाश नक जेन एक कार से भावी लोकतं क नै तक आधार शला न मत कर रहे थे। म ययगु म बारहवी ंऔर तेरहवी ंशता द से ह राजतं वरोधी आदंोलन और जन सं भताु के बीज देखे जा सकते ह। यरोपू म पनजागरणु एवं धमसधारु आदंोलन ने लोकतं ा मक स ातं के वकास म मह वपणू योग दया है। इस आदंोलन ने यि त क धा मक वतं ता पर जोर दया तथा राजा क शि त को सी मत करने के य न कए। लोकतं के वतमान व प को ि थर करने म चार ां तय ,

    1688 क इंगलड क र तह न ां त, 1776 क अमर क ां त, 1789 क ांसीसी ां त और 19वी ंसद क औ यो गक ां त का बड़ा योगदान है। इंगलड क गौरवपणू ां त ने यह न चय कर दया क शासक य नी त एवम ्रा य व धय

    क प ठभ मृ ू म ससं क वीक तृ होनी चा हए। अमर क ां त ने भी लोक भ वु के स ांत का पोषण कया। ांसीसी ां त ने वतं ता, समानता और ात वृ के स ांत को शि त द । औ यो गक ां त ने लोकतं के स ांत को आ थक े म य तु करने क ेरणा द ।

    कार

    सामा यत: लोकतं -शासन- यव था दो कार क मानी जानी है :

    (1) वशु या य लोकतं तथा (2) त न ध स ता मक या अ य लोकतं

    वह शासन यव था िजसम देश के सम त नाग रक य प से रा यकाय संपादन म भाग लेते ह य लोकतं कहलाती ह। इस कार का लोकतं अपे ाकतृ छोटे आकार के समाज म ह सभंव है जहा ँसम त नवाचक एक थान पर एक हो सक। स दाश नक सो ने ऐस लोकतं को ह आदश यव था माना है। इस कार का लोकतं ाचीन यनानू के नगररा य म पाया जाता था। यना नयू ने अपने लोकतं ा मक स ांत को केवल अ पसं यक यनानीू नाग रक तक ह सी मत रखा। यनानू के नगररा य म बसनेवाले दास , वदेशी नवा सय तथा ि य को राजनी तक अ धकार से वं चत रखा गया था। इस कार यनानीू लोकतं घोर असमानतावाद पर टका हआु था।

    वतमान यगु म रा य के वशाल व प के कारण चीन नगररा य का य लोकतं संभव नह ं है, इसी लए आजकल ि व जरलड के कछु कटन को छोडकर, जहा ँ य लोकतं चलता है, सामा यत: त न ध लोकतं का ह चार है िजसम जनभावना क अ भ यि त जनता वारा नवा चत त न धय वारा क जाती है। जनता वयं शासन न करते हएु भी नवाचन प त के वारा शासन को वैधा नक र त से उ तरदा य वपणू बना सकती है। यह आध नकु लोकतं का मलू वचार है।

    संसदा मक तथा अ य ा मक लोकतं ीय संगठन

    आजकल सामा यतया दो कार के परंपरागत लोकतं ीय संगठन वारा जन वीक तृ ा त क जाती है - ससंदा मक तथा अ य ा मक। संसदा मक यव था का त य है क जनता एक नि चत अव ध के लए संस सद य का नवाचन करती है। संस वारा मं मंडल का नमाण होता है। मं मंडल ससं के त उ तरदायी है और सद य जनता के त उ तरदायी होते है। अ य ा मक यव था म जनता यव था पका और कायका रणी के धान रा प त का नवाचन करती है। ये दोन एक दसरेू के त नह ंबि क सीधे और अलग अलग जनता के त व ध नमाण तथा शासन के लए मश: उ तरदायी ह। इस शासन यव था के अंतगत रा का धान (रा प त) ह वा त वक मखु होता है। इस कार

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 9 of 213

    लोकतं म सम त शासन यव था का व प जन सहम त पर आधा रत मया दत स ता के आदश पर यवि थत होता है।

    लोकतं का यापक व प

    लोकतं केवल शासन के प तक ह सी मत नह ंहै, वह समाज का एक संगठन भी है। सामािजक आदश के प म लोकतं वह समाज है िजसम कोई वशेषा धकारय तु वग नह ंहोता और न जा त, धम, वण, वंश, धन, लगं आ द के आधार पर यि त यि त के बीच भेदभाव कया जाता है। वा तव म इस कार का लोकतं ीय समाज ह लोकतं ीय रा य का आधार हो सकता है।

    राजनी तक लोकतं क सफलता के लए उसका आ थक लोकतं से गठबंधन आव यक है। आ थक लोकंत का अथ है क समाज के येक सद य को अपने वकास क समान भौ तक स वधाएँु मल। लोग के बीच आ थक वषमता अ धक न हो और एक यि त दसरेू यि त का शोषण न कर सके। एक ओर घोर नधनता तथा दसरू ओर वपलु संप नता के वातावरण म लोकतं ा मक रा का नमाण सभंव नह ंहै।

    नै तक आदश एवं मान सक ि टकोण के प म लोकतं का अथ मानव के प म मानव यि त व म आ था है। मता, स ह णताु , वरोधी के ि टकोण के त आदर क भावना, यि त क ग रमा का स ांत ह वा तव म लोकतं

    का सार है।

    लोकतं के उपादान (ट सू )

    आध नकु यगु म लोकतं ीय आदश को काय प म प रणत करने के लए अनेक उपादान का आ वभाव हआु है। जैसे ल खत सं वधान वारा मानव अ धकार क घोषणा, वय क मता धकार णाल वारा त न ध चननेु का अ धकार, लोक नमाण, उप म, पनरावतनु तथा जनमत सं ह जैसी य जनवाद णा लय का योग, थानीय वाय त शासन का व तार, वतं एवं न प यायालय क थापना, वचार, भाषण, म णु तथा आ था क वतं ता को मा यता, व धसंमत शासन को मा यता, बलवाद के थान पर सतत वाद ववाद और तकप त वारा ह आपसी संघष के समाधान क या को मा यता देना है। वय क मता धकार के यगु म लोकमत को श त एवं संग ठत करने, स ांत के समा य कट करण, नी तय के यवि थत वकास तथा त न धय के चनावु के सहायक होने म राजनी तक दल क उपादेयता - आध नकु लोकतं का एक वै श य है। मानव यि त व के सवतोमखीु वकास के लए शासन को जनसेवा के यापक े म पदापण करने के लए आध नकु लोकतं को लोक क याणकार रा य का आदश हण करना पड़ा है।

    लोकतं के श ु

    टाचार आतंकवाद एवं हसंा वंशवाद, प रवारवाद, कारपोरेटवाद मजहबी काननू राजनै तक ह या

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 10 of 213

    अवां छत गोपनीयता ेस पर रोक अ श ा एवं नर रता

    टाचार (आचरण)

    सावज नक जीवन म वीकतृ म यू के व आचरण को ट आचरण समझा जाता है। आम जन जीवन म इसे आ थक अपराध से जोड़ा जाता है।

    1 टाचार क हा नया ँ 2 व भ न कार के टाचार 3 प रचय 4 संदभ 5 इ ह भी देख 6 वा य सू

    टाचार क हा नया ँ

    टाचार, वकास व सशासनु का श ु है। टाचार गर ब के हक को छ नता है, संसाधन आवंटन को वकतृ करता है, लोग के व वास को ख म करता है और नयम क अनदेखी करता है।

    टाचार से लोग के मन म नराशा ज म लेती है। उनक काम करने क उजा मार जाती है। टाचार से सजना मकताृ ( ए ट वट ) मार जाती है। टाचार के कारण लोग नये काय हाथ म लेने से डरते ह िजससे नवाचार के माग म बाधा आती है। टाचार के कारण देश क सर ाु खतरे म पड़ जाती है। इससे आतंकवाद, अराजकता और जंगलराज क ि थ त न मत होती है।

    बहतु सी महान स यताओ ंके पतन का म यु कारण टाचार ह रहा है। नक मी, अयो य तथा ट सरकार जनता को योजनापवकू ट बनाकर अपना शासन बचाये रख पाती ह। इसे

    ' ट बनाओ और राज करो' क नी त कहते ह। व भ न कार के टाचार

    घसू ( र वत) चनावु म धांधल से स के बदले प पात ह ता वसलू जबरन च दा लेना अपने वरो धय को दबाने के लये सरकार मशीनर का द पयोगु

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 11 of 213

    यायाधीश वारा गलत या प पातपणू नणय व वध : वंशवाद, लैकमेल करना, टै स चोर , झठू गवाह , झठाू मकदमाु , पर ा म नकल, पर ाथी का गलत म यांकनू - सह उ तर पर अंक न देना और गलत/अ ल खत उ तर पर भी अंक दे देना, पैसे लेकर ससंद म न पछनाू , पैसे लेकर वोट देना, वोट के लये पसैा और शराब आ द बाँटना, पसेै लेकर रपोट छापना, व भ न पर कारु के लये चय नत लोग म प पात करना, आ द।

    प रचय

    आम तौर पर सरकार स ता और संसाधन के नजी फ़ायदे के लए कये जाने वाले बेजा इ तेमाल को टाचार क सं ा द जाती है। एक दसरू और अ धक यापक प रभाषा यह है क नजी या सावज नक जीवन के कसी भी था पत और वीकाय मानक का चोर - छपे उ लंघन टाचार है। ले कन टाचार क प रभाषा इतनी सीधी, सरल और एकांगी नह ं है। सरकार दायरा नजी जीवन, सामािजक-सामदा यकु याओ ंऔर उ योग- यापार जगत के साथ घलाु - मला रहता है िजसके कारण यह प रभाषा नाकाफ़ हो जाती है। था पत और वीकाय समझे जाने वाले मानक पर न- च न लगते रहते ह। यह पछाू जाता रहता है क या केवल र वत लेना या अवैध कमीशन ख़ाना ह टाचार है, जा तगत, न लगत, ल गक और से शअलु भेदभाव करना टाचार क ेणी म नह ंआता? व भ न मानक और देशकाल के हसाब से भी इसम त द लया ँहोती रहती ह। मसलन, भारत म र ा सौद म कमीशन ख़ाना अवैध है इस लए इसे टाचार और रा - वरोधी क यृ मान कर घोटाले क सं ा द जाती है। ले कन द नयाु के कई वक सत देश म यह एक

    जायज़ यापा रक कारवाई है। सं क तयृ के बीच अंतर ने भी टाचार के न को पेचीदा बनाया है। उ नीसवी ंसद के दौरान भारत पर औप नवे शक शासन थोपने वाले अं ेज़ अपनी व टो रयाई नै तकता के आईने म भारतीय यौन-यवहार को दराचरणु के प म देखते थे। जब क बीसवी ंसद के उ तराध का भारत कसी भी यरोपवासीु क नगाह म यौ नक-श तावादु का शकार माना जा सकता है।

    टाचार का म ाु एक ऐसा राजनी तक न है िजसके कारण कई बार न केवल सरकार बदल जाती ह। बि क यह बहतु बड़े-बड़े ऐ तहा सक प रवतन का वाहक भी रहा है। रोमन कैथ लक चच वारा अन हु के बदले श कु लेने क था को मा टन लथरू वारा टाचार क सं ा द गयी थी। इसके ख़लाफ़ कये गये धा मक संघष से ईसाई धम- सधारु नकले। प रणाम व प ोटे टट मत का ज म हआ।ु इस ऐ तहा सक प रवतन से सेकलरवादु के स ीकरणू का आधार तैयार हआ।ु

    समाज-वै ा नक वमश म टाचार से संबं धत समझ के बारे म कोई एकता नह ं है। पँजीवादू वरोधी नज़ रया रखने वाले व वान क मा यता है क बाज़ार आधा रत यव थाए ँ ‘ ीड इज़ गडु’ के उसलू पर चलती ह, इस लए उनके तहत टाचार म बढ़ोतर होनी लाज़मी है। दसरू तरफ़  खलेु समाज क वकालत करने वाले और मा सवाद वरोधी ब जीवीु

    सवहारा क तानाशाह वाल यव थाओ ंम क य न टु पाट के अ धका रय वारा बड़े पैमाने पर रा य के संसाधन के द पयोगु और आम जनता के साधारण जीवन क क मत पर ख़दु के लए आरामतलब िज़ंदगी क गारंट करने क तरफ़ इशारा करते ह। टाचार क दसरू समझ रा य क सं था वारा लोग क आ थक ग त व धय म ह त ेप क मा ा और दायरे पर नभर करती है। बहतु अ धक टै स वसलनेू वाले नज़ाम के तहत कर-चोर को सामािजक जीवन क एक मजबरू क तरह लया जाता है। इससे एक स ांत यह नकलता है क िजतने कम काननू और नयं ण  ह गे, टाचार क ज़ रत उतनी ह कम होगी। इस ि टकोण के प पवू सो वयत संघ और चीन समते समाजवाद देश का उदाहरण

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 12 of 213

    दया जाता है जहा ँरा य क सं था के सव यापी होने के बावजदू बहतु बड़ी मा ा म टाचार क मौजदगीू रहती है।  ‘ यादा नयं ण- यादा टाचार’ के समीकरण को सह ठहराने के लए तीस के दशक के अमे रका म क गयी शराब-बंद का उदाहरण भी दया जाता है िजसके कारण संग ठत और आ थक टाचार म अभतपवू ू उछाल आ गया था।

    साठ  और स तर के दशक म कछु व वान ने अ व क सत देश के आ थक वकास के लए एक सीमा तक टाचार और काले धन क मौजदगीू को उ चत करार दया था। अन ड जे. ह दनहाइमर जैसे स ांतकार का कहना था क पर पराब और सामािजक प से ि थर समाज को टाचार क सम या का कम ह सामना करना पड़ता है। ले कन तेज़ र तार से होने वाले उ योगीकरण और आबाद क आवाज़ाह के कारण समाज था पत मानक और म यू को छोड़ते चले जाते ह। प रणाम व प बड़े पैमाने पर टाचार क प रघटना पैदा होती है। स तर के दशक म ह दनहाइमर क यह स ांत ख़ासा च लत था। टाचार वरोधी नी तय और काय म क वकालत करने के बजाय ह दनहाइमर ने न कष नकाला था क जैसे-जैसे समाज म समृ बढ़ती जाएगी, म यवग क त ठा म वृ होगी और शहर स यता व जीवन-शलै का वकास होगा, इस सम या पर अपने आप काबू होता चला जाएगा। ले कन स तर के दशक म ह यरोपु और अमे रका म बड़े-बड़े राजनी तक और आ थक घोटाल का पदाफ़ाश  हआ।ु इनम अमे रका का वाटरगेट कडल और टेन का पौलसन एफ़ेयर मखु था। इन घोटाल ने म यवग य नाग रक गणु के वकास म यक न रखने वाले

    ह दनहाइमर के इस स ांत के अ तआशावाद क हवा नकाल द ।

    साठ के दशक के दौरान ह कछु अ य व वान ने भी ह दनहाइमर क तज़ पर तक दया था क टाचार क सम या क नै तक या याए ँकरने से कछु हा सल होने वाला नह ं है। इनम सेमअलु हं टं टन मखु थे। इन समाज-वै ा नक क मा यता थी क टाचार हर प रि थ त म नकसानदेहु नह ंहोता। वकासशील देश म वह मशीन म तेल क भ मकाू नभाता है और लोग के हाथ म ख़च करने लायक पैसा आने से उपभो ता ां त को ग त मलती है। ले कन अ का म टाचार के ऊपर व व बक वारा 1969 म जार रपट ने इस धारणा को ध का पहँचाया।ु इस रपट के बाद टाचार को

    एक अ नवाय बराईु और आ थक वकास म बाधक के तौर पर देखा जाने लगा। व व बक टाचार के ख़लाफ़ म हमु चलाने म जटु गया। इस वमश का एक प रणाम यह भी नकला क समाज-वै ा नक अपे ाकतृ कम वक सत देश म टाचार क सम या के त यादा दलच पी दखाने लगे। वक सत देश म टाचार क सम या काफ़ -कछु

    नज़रअंदाज़ क जाने लगी।

    यह ि टकोण भम डल करणू के दौर म और बल हआ।ु उधार देने वाल अंतरा य व तीय सं थाओ,ं उन पर हावी वक सत देश और बड़े-बड़े कॉरपोरेशन ने यह गारंट करने क को शश क क उनके वारा द जाने वाल मदद का सह -सह इ तेमाल हो। इसका प रणाम 1993 म ासंपेरसी इंटरनैशनल क थापना म नकला िजसम व व बक के कई पवू अ धकार स य थे। इसके बाद सव ण और आकँड़ के ज़ रये टाचार का तलना मकु अ ययन शु हो गया। ले कन इन यास के प रणाम कसी भी तरह से संतोषजनक नह ंमाने जा सकते। 2007 म डे नयल ज़मैन ने ‘ हाट हैव वी ल ड अबाउट द कािज़ज़ ऑफ़ कर शन ॉम टेन इयस ऑफ़ ॉस नैशनल इि प रकल रसच?’ लख कर नतीजा नकला है क प रप व उदारतावाद लोकतं और बाज़ारो मखु समाज अपे ाकतृ कम ट ह। उनके उलट तेल नयात करने वाले देश, अ धक नयं णकार काननू बनाने वाले और म ा फ तु को काबू म न करने वाले देश कह ंअ धक ट ह।

    ज़ा हर है क ये न कष कसी भी कोण से नये नह ंह। हाल ह म िजन देश म आ थक घोटाल का पदाफ़ाश हआु है उनम छोटे-बड़े और वक सत-अ वक सत यानी हर तरह के देश (चीन, जापान, पेन, मैि सको, भारत, चीन, टेन, ाज़ील,

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 13 of 213

    सर नामू , द ण  को रया, वेनेज़एलाु , पा क तान, एटं गा, बरमडाू , ोए शया, इ वेडोर, चेक गणरा य, वग़ैरह)  ह। टाचार को स वधाजनकु और हा नकारक मानने के इन पर पर वरोधी नज़ रय से परे हट कर अगर देखा जाए तो

    अभी तक आ थक वृ के साथ उसके कसी सीधे संबधं का स ीकरणू नह ंहो पाया है। उदाहरणाथ, ए शया के दो देश , द ण  को रया और फ़ल पींस, म टाचार के सचकांकू बहतु ऊँचे ह। ले कन, को रया म आ थक वृ क दर ख़ासी है, जब क फ़ल पींस म नीची।

    टाचार क सम या से नबटने के लए आम तौर पर िजन उपाय क तजवीज़ क जाती है, उ ह इस तरह देखा जा सकता है : टाचार वरोधी कड़े काननू बनाने और सं थागत उपाय (जसेै, भारत म लोकपाल और लोकाय तु बनाने के लए चलाई जाने वाल म हमु , अमे रका म फ़ॉरेन कर ट ेि ट सस ए ट बना कर अंतरा य तर पर र वतखोर को ग़ैरकाननीू करार देना, हांगकांग म इं डपडट कमीशन अग ट कर शन), अंतरा य तर पर टाचार वरोधी नयम-काननू और सं थाओ ंका नमाण, ासंपेरसी इंटरनैशनल जैसी ग़ैर-सरकार सं थाओ ं वारा चलाई जाने वाल म हमु , एकाउं टगं व धय म सधारु , सरकार ठेके देने आबं टत करने क याओ ंको उ तरो तर पारदश बनाना, संग ठत अपराध का मकाबलाु करने के लए रा य और अंतरा य तर पर बेहतर यास, अ धका रय को बेहतर वेतन देना ता क उ ह टाचार करने क ज़ रत ह महससू हो, नयं णकार काननू को कम से कम करते चले जाना और बाज़ार को हर स भव तर के से खोलना, काननू लागू करने वाले और वतनकार अ धका रय को बेहतर श ण देना, अ धका रय के नै तक और नी तगत सं कार को पश देना, मानहा न और अ य ेस संबंधी काननू को सधारनाु ता क प कार टाचार का यादा से यादा पदाफ़ाश कर सक, टाचार के ख़लाफ़ उ चत कदम न उठा पाने वाल सरकार को आ थक सहायता रोक देने क धमक देना और काले धन के अंतरा य लेन-देन और हवाला इ या द पर रोक लगाने के उपाय। इनके अलावा राजनी तक दल के संचालन और चनावु लड़ने के लए वैध कोष  और अनदानु क यव था करने को भी एक मह वपणू उपाय क तरह चि नत कया गया है ता क अवैध ोत से धन उगाहने क वि तृ को हतो सा हत कया जा सके।

    संदभ

    1. णव वधन (1997), ‘कर शन ऐंड डवेलपमट : अ र यू ऑफ़ इशज़ू’, जरनल ऑफ़ इकॉनॉ मक लटरेचर 35 .

    2. एम. रो बसंन (स पा.) (1998), कर शन ऐंड डवेलपमट, क कैस, ए बं डन, यकूे.

    3. ए.जे. ह दनहाइमर (स पा.) (1970), पॉ ल टकल कर शन : र ड ं ज़ इन क परे टव एनालै सस, ांज़े शन, यू ंस वक, एनजे.

    4. माइकल जां टन (2005), स ॉ स ऑफ़ कर शन : वे थ, पॉवर, ऐंड डेमो ै सी, केि ज य नव सु ट ेस, केि ज.

    5. डै नयल ज़मान (2007), ‘ हाट हैव वी ल ड अबाउट द कािज़ज़ ऑफ़ कर शन ॉम टेन इयस ऑफ़ ॉस-नैशनल इि प रकल रसच?’, एनअलु र यू ऑफ़ पॉ ल टकल साइंस 10

    भारत म टाचार भारत म टाचार का इ तहास राजनै तक टाचार

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    टाचार नवारण अ ध नयम, 1988 पारद शता के य सतकता आयोग सचनाू का अ धकार अ ध नयम, 2005 भारत के मखु घोटाले इं डया अग ट कर शन सशासनु

    वा य सू

    भारत म दस साल म 1555 हजार करोड़ का टाचार (जागरण) स ीमु कोट के नणय के बाद वशेष ने उठाए धानमं ी पर सवाल के य सतकता आयोग, भारत के य सचनाू आयोग, भारत ए ट -कर शन यरोू टाचार नवारण अ ध नयम, १९८८ (अं ेजी म) THE PREVENTION OF CORRUPTION ACT, 1988 ा पैरे सी इ टरनेशनल (Transparency International) कमयोग क टाचार वरोधी क डयाँ प रवतन: टाचार के व संघषरत एस के दबूे फाउ डेशन - टाचार के व सघंष जानेट भारत म टाचार के व काय करने वाल सरकार एवं गैर-सरकार सं थाय सशासनु के लये कायरत कछु सं थाओ ंके बारे म सं त ववरण (अं ेजी म) Fight Corruption Now - टाचार के व संघषरत ीमती जे एन जय ी का अं ेजी लाग टाचार के व एक आवज - टाचार के व एक आवाज What we can do for our country sitting at home? ( ह द -अं ेजी लॉग) कौन दे रहा है पा टय को इतना चंदा? डा. वामी क टाचार वरोधी स म त : प रचय टाचार क क मत जान और घसू न देने/लेने क शपथ ल। टाचार का भ मासरु

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    दरदशनू छोटे पाठ:दरदशनू नाम से संबो धत अ य लेख को देखने के लये दरदशनू (बह वक पीु ) पर जाय।

    दरदशनू १ (या सं ेप म, ददू) एक ऐसी दरसंचारू णाल है िजसके वारा चल च व व न को दो थान के बीच सा रत व ा त कया जा सके। यह श द दरदशनू सेट, दरदशनू काय म तथा सारण के लये भी य तु होता है। दरदशनू का अं ेजी श द 'टेल ि हज़न' लै टन तथा यनानीू श द से बनाया गया है िजसका अथ होता है दरू ि ट (यनानीू - टेल = दरू, लै टन - वज़न = ि ट)। दरदशनू सेट १९३० के उ तराध से उपल ध रहे ह और समाचार व मनोरंजन के ोत के प म शी ह घर व सं थाओ ंम आम हो गये। १९७० के दशक से वीसीआर टेप और इसके वाद वीसीडी व डीवीडी जैसे अंक य णा लय के वारा रकाड कये काय म व सनेमा देखना भी स भव हो गया।

    भारत म दरदशनू सारण का ार भ १५ सतंबर, १९५९ म हआु जब एक ायो गक प रयोजना के प म द ल म दरदशनू के खोला गया तथा दरदशनू नाम से सरकार दरदशनू चैनल क नींव पड़ी। दरदशनू म उप ह तकनीक का योग१९७५-१९७६ म ार भ हआ।ु

    १.^ अं ेज़ी म "दरदशनू " को "टे ल व न" (television) कहा जाता है। था के अनसारु " " को कभी-कभी "ज़" लख दया जाता है िजस से यह श द "टे ल वज़न" लख दया जाता है हालां क यह पराू सह नह ंहै। "टे ल व न" श द को सह बोलने के लए के उ चारण पर यान द य क यह "ज़" और "झ" दोन के उ चारण से भ न है।

    बाहर क ड़या ँ

    दरदशनू चैनल दरदशनू चैनल से स बं धत खबरे तकनीक ान ह द म दरू (दरदशनू सेट) क सम या नवारण और मर मत पर नो स दरू क सम या नवारण और मर मत पर नो स ( त बि बत ( मरर) जाल थल) े णयाँ: टे ल वज़न इले ॉ नक यि तयाँु

    ==रे डयो, टेल वजन==aarambh ke lagbhag 100 varsho tak radio , tarango par sarkaar ka niyantran raha . sann 1995 me uchhatam nyayalaya me ek faisale me kaha ki dhwani tarango par kisi ek ka adhikaar nahi ho sakta .

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  • जनसंचार Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 16 of 213

    ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------- समाचारप

    समाचार प या अख़बार, समाचारो पर आधा रत एक काशन है,िजसम म यतु : साम यक घटनाय, राजनी त, खेल-कदू , यि त व, व ापन इ या द जानका रया ंस ते कागज पर छपी होती है। समाचार प संचार के साधनो म मह वपणू थान रखते ह । समाचारप ायः दै नक होते ह ले कन कछु समाचार प सा ता हक, पा क, मा सक एवं छमाह भी होत ह। अ धकतर समाचारप थानीय भाषाओ ंमे और थानीय वषय पर केि त होते ह।

    1 समाचारप ो का इ तहास 2 यह भी देखे 3 इ ह भी देख 4 बाहर क डया ँ 5 ोत

    समाचारप ो का इ तहास

    सबसे पहला ात समाचारप 59 ई.पू. का 'द रोमन ए टा डउरना' है। ज लएसू सीसर ने जनसाधरण को मह वपणू राजनै त और समािजक घटनाओ ंसे अवगत कराने के लए उ हे शहरो के मखु थानो पर े षत कया। 8वी शता द मे चीन मे ह त ल खत समाचारप ो का चलन हआु [1]।

    अखबार का इ तहास और योगदान: यँू तो टश शासन के एक पवू अ धकार के वारा अखबार क श आतु मानी जाती है, ले कन उसका व प अखबार क तरह नह ंथा। वह केवल एक प ने का सचना मकू पचा था। पण पेणू अखबार बंगाल से 'बंगाल-गजट' के नाम से वायसराय ह क वारा नकाला गया था। आरंभ म अँ ेज ने अपने फायदे के लए अखबार का इ तेमाल कया, चँ कू सारे अखबार अँ ेजी म ह नकल रहे थे, इस लए बहसं यकु लोग तक खबर और सचनाएँू पहँचु नह ंपाती थीं। जो खबर बाहर नकलकर आती थीं से गजरतेु , वहा ँअपना आतंक फैलाते रहते थे। उनके खलाफ न तो मकदमेु होते और न ह उ ह कोई दंड ह दया जाता था। इन नारक य प रि थ तय को झेलते हएु भी लोग खामोश थे। इस दौरान भारत म ‘द हदं ताु न टाइ स’, ‘नेशनल हेरा ड', 'पाय नयर', 'मंबईु - मरर' जैसे अखबार अँ ेजी म नकलते थे, िजसम उन अ याचार का दरू-दरू तक उ लेख नह ं रहता था। इन अँ ेजी प के अ त र त बंगला, उद ूआ द म प का काशन तो होता रहा, ले कन उसका दायरा सी मत था। उसे कोई बंगाल पढ़ने वाला या उद ूजानने वाला ह समझ सकता था। ऐसे म पहल बार 30 मई, 1826 को ह द का थम प ‘उदंत मातड’ का पहला अंक का शत हआ।ु

    यह प सा ता हक था। ‘उदंत-मातड' क श आतु ने भाषायी तर पर लोग को एक सू म बाँधने का यास कया। यह केवल एक प नह ंथा, बि क उन हजार लोग क जबानु था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे। ह द म प क श आतु से देश म एक ां तकार प रवतन हआु और आजाद क जंग । उ ह काफ तोड़-मरोड़कर ततु कया जाता था, ता क अँ ेजी सरकार के अ याचार क खबर दबी रह जाएँ। अँ ेज सपाह कसी भी े म घसकरु मनमाना यवहार करते थे। लटू, ह या, बला कार जैसी घटनाएँ आम होती थीं। वो िजस भी ेको भी एक नई दशा मल । अब

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    लोग तक देश के कोने-कोन म घट रह घटनाओ ंक जानकार पहँचनेु लगी। ले कन कछु ह समय बाद इस प के संपादक जगलु कशोर को सहायता के अभाव म 11 दसंबर, 1827 को प बदं करना पड़ा। 10 मई, 1829 को बंगाल से ह द अखबार 'बंगदतू' का काशन हआ।ु यह प भी लोग क आवाज बना और उ ह जोड़े रखने का मा यम। इसके बाद जलाईु , 1854 म यामसंुदर सेन ने कलक ता से ‘समाचार सधाु वषण’ का काशन कया। उस दौरान िजन भी अखबार ने अँ ेजी हकमतु ू के खलाफ कोई भी खबर या आलेख छपा, उसे उसक क मत चकानीु पड़ी। अखबार को तबं धत कर दया जाता था। उसक तया ँजलवाई जाती थी,ं उसके काशक , संपादक , लेखक को दंड दया जाता था। उन पर भार -भरकम जमानाु लगाया जाता था, ता क वो दबाराु फर उठने क ह मत न जटाु पाए।ँ

    आजाद क लहर िजस तरह परूे देश म फैल रह थी, अखबार भी अ याचार को सहकर और मखरु हो रहे थे। यह वजह थी क बंगाल वभाजन के उपरांत ह द प क आवाज और बलंदु हो गई। लोकमा य तलक ने 'केसर ' का सपंादन कया और लाला लाजपत राय ने पंजाब से 'वदें मातरम' प नकाला। इन प ने यवाओंु को आजाद क लड़ाई म अ धक-से-अ धक सहयोग देने का आ वान कया। इन प ने आजाद पाने का एक ज बा पैदा कर दया। ‘केसर ’ को नागपरु से माधवराव स े ने नकाला, ले कन तलक के उ तेजक लेख के कारण इस प पर पाबंद लगा द गई।

    उ तर भारत म आजाद क जंग म जान फँकनेू के लए गणेश शकंर व याथ ने 1913 म कानपरु से सा ता हक प ' ताप' का काशन आरंभ कया। इसम देश के हर ह से म हो रहे अ याचार के बारे म जानका रया ँ का शत होती थीं। इससे लोग म आ ोश भड़कने लगा था और वे टश हकमतु ू को उखाड़ फकने के लए और भी उ सा हत हो उठे थे। इसक आ ामकता को देखते हएु अँ ेज शासन ने इसके लेखक , संपादक को तरह-तरह क ताड़नाए ँद ,ं ले कन यह प अपने ल य पर डटा रहा।

    इसी कार बंगाल, बहार, महारा के े से प का काशन होता रहा। उन प ने लोग म वतं ता को पाने क ललक और जाग कता फैलाने का यास कया। अगर यह कहा जाए क वतं ता सेना नय के लए ये अखबार कसी ह थयार से कमतर नह ंथे, तो कोई अ तशयोि त नह ंहोगी।

    अखबार बने आजाद का ह थयार ेस आज िजतना वतं और मखरु दखता है, आजाद क जंग म यह उतनी ह बं दश और पाबं दय से बँधा हआु था। न तो उसम मनोरंजन का पटु था और न ह ये कसी क कमाई का ज रया ह । ये अखबार और प -प काए ँआजाद के जाँबाज का एक ह थयार और मा यम थे, जो उ ह लोग और घटनाओ ंसे जोड़े रखता था। आजाद क लड़ाई का कोई भी ऐसा यो ा नह ंथा, िजसने अखबार के ज रए अपनी बात कहने का यास न कया हो। गाँधीजी ने भी ‘ह रजन’, ‘यंग-इं डया’ के नाम से अखबार का काशन कया था तो मौलाना अबलु कलाम आजाद ने 'अल- हलाल' प का काशन। ऐसे और कतने ह उदाहरण ह, जो यह सा बत करते ह क प -प क