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    परिचय

    मरू्तिकला भारत की र्िर्भन्न एि ंर्िर्िध संस्कृर्त को अपने में समार्ित र्कये िुए ि।ै भारतीय मरू्तिकला स्ियं में िी अदु्भत ि।ै मरू्तिपजूा

    भारत की संस्कृर्त का एक अर्भन्न अगं रिा ि,ै अलग-अलग धमों से जडेु अलग-अलग काल-खण्ड के दौरान िमें मरू्तियों का एक

    अलग रूप दखेने को र्मलता ि।ै

    इसी क्रम में अपने मरू्तिकला र्िशषेांक के अगले पडाि में िम मौयिकाल एि ंशुंग ि सातिािन काल की मरू्तिकला एि ंउससे जडुी

    संस्कृर्त का र्िशे्लषण करने का प्रयास करेंग।े

    मौययकालीन मूर्तयकला

    भारत में मरू्तिकला का दसूरा चरण मौयि काल से आरंभ िोता ि।ै र्संध ुघाटी के नगरों की समार्ि से मौयों के उदय तक, एक

    िजार िषि से अर्धक की अिर्ध में, कोई भी कलात्मक कृर्त निीं र्मलती िैं। र्संध ुघाटी के नगरों के पश्चात ्अशोक स्तंभों के

    शीषि, र्जनमें से कुछ संभितः उसके राज्य से पिूि र्नर्मित िुए थे, मरू्तिकला के प्रमखु प्रारंर्भक उदािरण िैं।

    सारनाथ के स्तंभ के प्रर्सद्ध र्संि तथा रामपरुिा के स्तंभ का कम प्रर्सद्ध परंत ुअर्धक सुंदर िषृभ, यथाथििादी मरू्तिकारों की

    कृर्तयााँ िैं जो कुछ न कुछ ईरानी और यनूानी परम्परा के ऋणी िैं। स्तंभों पर बनी िुई पश ुआकृर्तयााँ र्संध ुघाटी की मदु्राएाँ

    खोदने िालों की शलैी से प्रत्यक्ष रूप से प्रभार्ित थीं, र्जनमें एक यथाथििादी दृर्िकोण भी र्मलता ि।ै

    स्तंभों के अर्तररक्त मौयिकाल की एक कलाकृर्त दीदारगंज से प्राि यक्षी की मरू्ति ि।ै यक्षी के िाथ में चाँिर ि,ै र्जससे दिेताओ ं

    और राजाओ ंपर पंखा र्कये जाने का संकेत र्मलता ि।ै इस मरू्ति के शरीर के र्नचले र्िस्से में िस्त्र ि ैतथा मर्िला ने कानों,

    बािों और गले में बडी मात्र में आभषूण पिने िुए िैं। इस प्रर्तमरू्ति को भारतीय कला जगत के र्िकास की एक मित्त्िपूणि कडी

    के रूप में दखेा जाता ि।ै इसी के साथ, र्चपके र्नचले बस्त्र, िस्त्रिीन धड एि ंप्रचरु आभषूण आम िो गये।

    आगरा-मथरुा के मध्य र्स्थत परखम ग्राम से प्राि एक मखु एि ंभजुार्ििीन मरू्ति इस काल की मरू्तिकला का उत्कृि नमनूा ि।ै

    इस यक्ष मरू्ति को ‘मर्णभद्र’ किा गया ि।ै यि मरू्ति आज भी मथरुा संग्रिालय में रखी गयी ि।ै बेसनगर से प्राि एक स्त्री की

    मरू्ति र्मलती ि ैजो मौयिकालीन मरू्तिकला का प्रर्तर्नर्धत्ि करती ि।ै

    िास्ति में ईसा से कुछ शतार्ददयों पिूि की कुछ अन्य प्रमखु मरू्तियााँ, यक्षों की अनेक आकृर्तयााँ िैं जो सजीि आकार से कुछ

    बडी िैं। ि ेसदुृढ़, िषुभ के समान ग्रीिा िाली और भारी िैं और यद्यर्प प्रार्िर्धक रूप से ि ेपणूि निीं िैं तथार्प उनमें एक

    तार्त्िक ठोसपन ि ैजो उत्तरकालीन मरू्तियों में कर्ठनाई से पाया जाता ि।ै इन आकृर्तयों के र्िशाल उदर की तलुना िडप्पा

    की मरू्ति के धड के उदर से की गयी ि,ै र्जससे बीच के लम्बे काल में परम्परा के बने रिने का प्रमाण र्मलता ि।ै

    1. मथरुा र्जले के परखम ग्राम से र्मली यक्ष मरू्ति र्जसे ‘मर्णभ्रद’ किा गया ि।ै 2. मथरुा र्जले के बडौदा ग्राम से र्मली यक्ष-प्रर्तमा। 3. मथरुा के झींग-का-नगरा से प्राि यक्षी की प्रर्तमा। 4. मथरुा से प्राि यक्ष प्रर्तमा।

    भारतीय मरू्ति और र्चत्रकला: मौयिकालीन कालीन मरू्तिकला "भाग - 2"

    (Sculpture and Painting: Mauryan Age Sculpture and Painting "Part - 2")

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    5. पद्मािती (ग्िार्लयर, म-प्र-) से प्राि यक्ष-प्रर्तमा। 6. पटना नगर में दीदारगजं से प्राि चामर ग्रार्िणी यक्षी की प्रर्तमा। 7. पटना से प्राि दो यक्ष प्रर्तमायें। 8. बेसनगर (र्िर्दशा) से प्राि र्त्रमखु यक्षी की प्रर्तमा। 9. राजघाट (िाराणसी) से प्राि र्त्रमखु यक्ष की प्रर्तमा। 10. र्िर्दशा से प्राि यक्ष प्रर्तमा। 11. र्शशपुालगढ़ (उडीसा) से प्राि यक्ष प्रर्तमायें। 12. कुरूके्षत्र में आमीन से प्राि यक्ष प्रर्तमा। 13. मिेरौली से प्राि यक्षी की प्रर्तमा।

    उडीसा के धौली और कालसी (दिेरादनू) के चट्टानों को काटकर बनायी गयी िाथी की आकृर्तयााँ स्िाभार्िक िैं। ये िाथी चट्टान से

    बािर र्नकलते िुए जान पडते िैं। िाथी की दोनों िी आकृर्तयााँ उत्कीणि मरू्तिकला का सुंदर उदािरण प्रस्ततु करती िैं। अशोक स्तंभों

    के शीषों पर बनी पशओु ंकी आकृर्तयााँ मौयियुगीन मरू्तिकला का सिोत्तम नमनूा िैं।

    श ुंग एवुं सातवाहन कालीन मूर्तयकला

    मौयों के बाद उत्तर भारत में मखु्यतः सत्ता में शुगं रि।े सातिािनों के पास दर्क्षण-पर्श्चम का क्षेत्र था। इन दोनों के कल में कला

    रचनात्मक गर्तर्िर्ध के चरण में पिुाँची, र्जसने बौद्ध धमि के सिारे और उसको मखु्य स्रोत बनाते िुए घरेल ूकलात्मक

    आदंोलन का एक साथ प्रर्तर्नर्धत्ि र्कया। शुभं-सातिािन यगु की कला का प्रभाि उत्तर भारत के बोधगया, सााँची और

    भरिुत के बौद्ध स्तपूों के प्रिशे द्वार और ििेर्नयों में स्पि रूप से दखेने को र्मलता ि।ै

    दरअसल मौयिकाल के पश्चात बदु्ध या उनके र्शष्यों के अिशषेों पर स्तपूों का र्नमािण िुआ, र्जनके रेर्लंग्स और द्वारों पर

    मरू्तियााँ उत्कीणि करके उन्िें सजाया गया। इनमें बदु्ध की जीिन कथा और बौद्ध सार्ित्य के अनेक दृश्य र्दखाये गये िैं। भरिुत,

    गया और सााँची के मिान बौद्ध स्थलों की पाषाण ििेर्नयााँ और प्रिशे द्वारों पर खदुी मरू्तियााँ शुगं-सातिािन कालीन मरू्तिकला

    के उत्कृि उदािरण िैं। भरिुत की मरू्तिकला गया और सााँची की शलैी से कम र्िकर्सत ि ैऔर संभितः यि प्राचीनतम ि ै

    जबर्क सााँची के प्रिशे-द्वार र्जनकी खदुाई अर्धक र्स्थरता एि ंकौशल से िुई थीं, संभितः इन तीनों में सबसे बाद की ि।ै

    भरिुत में स्तपू की पाषाण ििेर्नयों के सीध ेखडे स्तंभों पर समस्त श्रेष्ठ भारतीय मरू्तिकला के समान यक्षों और यर्क्षयों की

    सनु्दरता से पणूि की गयी एि ंअलंकाररक मरू्तियााँ खदुी िुई िैं। उनकी समतलता से यि संकेत र्मलता ि ैर्क कलाकार िाथी

    दााँत पर कायि करन ेमें दक्ष थे। गया की पाषाण ििेर्नयााँ, जो एक स्तपू के चारों ओर न िोकर उस पर्ित्र पथ के चारों ओर िैं

    जिााँ ज्ञान-प्रार्ि के उपरांत ध्यानमग्न बदु्ध ने भ्रमण र्कया था, भरिुत से प्रगर्त की ओर बढ़ती प्रतीत िोती िैं। आकृर्तयााँ

    अर्धक गिरी, अर्धक चेतन और अर्धक गोलाकार िैं।

    इससे इस काल के मरू्तिकारों के कौशल और दक्षता का पता चलता ि।ै प्रारंर्भक उत्तर भारतीय मरू्तिकला की मित्त्िपणूि

    सफलता र्नस्सन्दिे सााँची ि।ै यिााँ का स्तपू अत्यंत प्राचीन नक्काशी से ससुर्ज्जत ि।ै यर्क्षयााँ मसु्कुराती िैं जब ि ेसुंदर मदु्राओ ं

    में झकुती िैं अथिा पादांगों के र्लए ब्रैकेट का काम करती िैं जो स्थलू िार्थयों अथिा प्रसन्नता से दााँत र्नकाले िुए बौनों पर

    र्टके िैं। ऊध्िों और पादांगों के समतल धरातल से यकु्त चौखटों पर बदु्ध के जीिन अथिा जातक कथाओ ंके दृश्य बनाए गये

    िैं। इनमें कुछ चेिाएाँ तो स्पितया मसेोपोटार्मया या फारस से प्रेरणा प्राि लगती िैं, परंत ुसम्पणूि रूप में, अपने आकार के

    पेचीदपेन में, प्रसन्नतापणूि यथाथि में सााँची के प्रिशे-द्वार की नक्काशी र्कसी पिूि अनमुार्नत योजना के अनसुार निीं िुई थी।

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    मरू्तिकारों की र्नयरु्क्त धार्मिक मठों द्वारा न िोकर र्नजी संरक्षकों द्वारा िोती थी जो स्तपू को सनु्दर रूप दकेर कीर्ति प्राि करना

    चािते थे और मरू्तिकार अपने संरक्षकों द्वारा बतायी िुई नक्काशी उस ढंग से करते थे, र्जसे ि ेसििश्रेष्ठ समझते थें कलाकार

    जानते थे र्क उन्िें क्या प्रदर्शित करना ि।ै ि ेअपने मर्स्तष्क में स्पि रूप ्से दखे लेते थे र्क उसे कैसे उकेरना ि।ै

    यि काल भारतीय मरू्तिकला के र्िकास का प्रारंर्भक और सौन्दयिपणूि आदंोलन का यगु रिा जो कुषाण काल में मरू्तिकला के

    र्िकास के मिानतम यगु में प्रर्िि िुआ।

    मूर्तयकला के इस अुंक में इतना ही, अगले अुंक में हम क छ अन्य कालखण्डों से ज डी मूर्तयकला के बािे में िोचक

    जानकारियााँ लेकि शीध्र प्रस्त त होंगे।

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