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1 संसार म� िजतनी भी प जा और �ान च�लत है । ये यादातर काल प जा है । और काल माया के भाव से इसी म� सतमत यानी सयप ष का भेद । सतलोक या अमरलोक का भेद । असल� हँस �ान । आमा का वात�वक �ान घ ल �मल गया है । इसी िथ�त को साफ़ करने के �लये म" अन राग सागर " से वाणी यानी कबीर धमदास संवाद को का�शत कर रहा ह । म� अपने सभी पाठक� से कहना चाह गा । आपने बह त प तक� पढ� ह�गी । एक बार इसको पढ� । ये आपक� आंखे खोल देगी �फ़र भी य�द आप एक ह� बार म� आसानी से इस मायाजाल और भेद को जानना चाह� । तो सरल �हद� म�लखी 150 पये म य क� ये प तक अवय पढ� । य�द आप इसक� गहरायी समझ गये । तो जीवन का ल�य और �नयाँ म� फ़ै ला धा�मक मकङजाल आपको आसानी से समझ म� आ जायेगा । मेर� भाषा म� आपके �दमाग म� भरा जम जम का धा�मक कचरा साफ़ होकर सचे भ से लौ लग जायेगी । जो सबका उधारकता है । तकता : राजीव लेठ www.dhyansamadhi.org http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/ www.facebook.com/groups/supremebliss/ www.facebook.com/profile.php?id=100006770207556/

प्रस्तुतकतार् राजीव कुलश्रेष्ठ" से वाणी यानी कबीर धमर्दास संवाद को प्रका

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Page 1: प्रस्तुतकतार् राजीव कुलश्रेष्ठ" से वाणी यानी कबीर धमर्दास संवाद को प्रका

1

ससार म िजतनी भी पजा और ान परचलत ह य जयादातर काल पजा ह और काल माया क परभाव स इसी म

सनतमत यानी सतयपरष का भद सतलोक या अमरलोक का भद असल हस ान आतमा का वासतवक

ान घल मल गया ह इसी िसथत को साफ़ करन क लय म अनराग सागर स वाणी यानी कबीर धमरदास

सवाद को परकाशत कर रहा ह म अपन सभी पाठक स कहना चाहगा आपन बहत पसतक पढ हगी एक

बार इसको पढ य आपक आख खोल दगी

फ़र भी यद आप एक ह बार म आसानी स इस मायाजाल और भद को जानना चाह तो सरल हनद म लखी

150 रपय मलय क य पसतक अवशय पढ यद आप इसक गहरायी समझ गय तो जीवन का लय और

दनया म फ़ला धामरक मकङजाल आपको आसानी स समझ म आ जायगा मर भाषा म आपक दमाग म भरा

जनम जनम का धामरक कचरा साफ़ होकर सचच परभ स लौ लग जायगी जो सबका उदधारकतार ह

परसततकतार राजीव कलशरषठ wwwdhyansamadhiorg httpsearchoftruth-rajeevblogspotin

wwwfacebookcomgroupssupremebliss

wwwfacebookcomprofilephpid=100006770207556

2

वषय सची 1 लखकय 4

2 अनरागसागर क कहानी 4

3 कबीर साहब और धमरदास 7

4 आदसिषट क रचना 9

5 अषटागीकनया और कालनरजन 14

6 वद क उतप 17

7 तरदव दवारा परथम समदरमथन 18

8 बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना 21

9 अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना 24

10 काल-नरजन का धोखा 27

11 चार खान चौरासी लाख योनय स आय मनषय क लण 30

12 चौरासी कय बनी 33

13 कालनरजन क चालबाजी 35

14 तपतशला पर काल पीङत जीव क पकार 36

15 कालनरजन और कबीर का समझौता 39

16 राम-नाम क उतप 43

17 ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह 45

18 कबीर और रावण 47

19 कबीर और रानी इनदरमती 50

20 रानी इनदरमती का सतयलोक जाना 53

21 कबीर का सदशरन शवपच को ान दना 55

22 काल कसाई जीव बकरा 58

23 समदर और राम क दशमनी का कबीर दवारा नबटारा 60

24 धमरदास क पवरजनम क कहानी 62

25 कालदत नारायण दास क कहानी 66

26 कालनरजन का छलावा बारह पथ 69

27 चङामण का जनम 71

28 काल का अपन दत को चाल समझाना 73

29 काल क चार दत 75

30 सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव 78

31 गर-शषय वचार-रहनी 80

32 शररान परचय 82

33 मन क कपट करामात 84

34 कपट कालनरजन का चरतर 85

35 सतयपथ क डोर 86

36 कौआ और कोयल स भी सीखो 87

37 परमाथर क उपदश 89

38 अनलपी का रहसय 90

39 धमरदास यह कठन कहानी 91

3

40 साध का मागर बहत कठन ह 93

41 लटरा कामदव 94

42 आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह 96

43 वदहसवरप सारशबद 97

4

वसतकह ढढकह कहवध आव हाथ कहकबीर तब पाइए जब भद लज साथ भदलनहा साथ कर दनह वसत लखाय कोटजनम का पथ था पल म पहचा जाय

लखकय

ससार म िजतनी भी पजा ान परचलत ह य जयादातर कालपजा ह और काल माया क परभाव स इसी म सनतमत यानी सतयपरष का भद सतलोक या अमरलोक का भद असल हसान आतमा का वासतवक ान घल-मल गया ह आपन बहत पसतक पढ़ हगी लकन एक बार इसको पढ़ य आख खोल दगी यद इसक गहरायी समझ गय तो जीवन का लय और दनया म फ़ला धामरक मकङजाल आसानी स समझ म आ जायगा और दमाग म भरा जनम-जनम का धामरक कचरा साफ़ होकर सचच परभ स लौ लग जायगी जो सबका उदधारकतार ह

अनरागसागर क कहानी

अनरागसागर कबीर साहब और धमरदास क सवाद पर आधारत महानगरनथ ह इसक शरआत म बताया ह क सबस पहल जब य सिषट नह थी परथवी आसमान सरज तार आद कछ भी नह था तब कवल परमातमा ह था सफ़र परमातमा ह शाशवत ह इसलय सतमत म और सचच जानकार सत परमातमा क लय lsquoहrsquo शबद का परयोग करत ह उस (परमातमा) न कछ सोचा (सिषट क शरआत म उसम सवतः एक वचार उतपनन हआ इसस सफ़रणा (सकचन जसा) हयी) तब एक शबद lsquoहrsquo परकट हआ (जस हम आज भी वचारशील होन पर lsquoहrsquo करत ह) उसन सोचा - म कौन ह इसीलय हर इसान आज तक इसी परशन का उर खोज रहा ह क - म कौन ह (उस समय य पणर था) उसन एक सनदर आनददायक दप क रचना क और उसम वराजमान हो गया फर उसन एक-एक करक एक ह

5

नाल स सोलह अश (सत) परकट कय उनम पाचव अश कालपरष को छोड़कर सभी सत आनद को दन वाल थ और सतपरष दवारा बनाय हसदप म आनदपवरक रहत थ लकन कालपरष सबस भयकर और वकराल था वह अपन भाइय क तरह हसदप म न जाकर मानसरोवर दप क नकट चला आया और सतपरष क परत घोर तपसया करन लगा लगभग चसठ यग तक तपसया हो जान पर उसन सतपरष क परसनन होन पर तीनलोक सवगर धरती और पाताल माग लए और फर स कई यग तक तपसया क तब सतपरष न अषटागी कनया (आदशिकत आदया भगवती आद) को सिषटबीज क साथ कालपरष क पास भजा (इसस पहल सतपरष न कमर नाम क सत को भजकर उसक तपसया करन क इचछा क वजह पछ) अषटागीकनया बहद सनदर और मनमोहक अग वाल थी वह कालपरष को दखकर भयभीत हो गयी कालपरष उस पर मोहत हो गया और उसस रतकरया का आगरह कया (यह परथम सतरी-परष का काममलन था) और दोन रतकरया म लन हो गए रतकरया बहत लमब समय तक चलती रह और इसस बरहमा वषण शकर का जनम हआ अषटागीकनया उनक साथ आननदपवरक रहन लगी पर कालपरष क इचछा कछ और ह थी पतर क जनम क उपरात कछ समय बाद कालपरष अदशय हो गया और भवषय क लए आदशिकत को नदश द गया तब आदशिकत न अपन अश स तीन कनयाय उतपनन क और उनह समदर म छपा दया फ़र उसन तीन पतर को समदरमथन क आा द और समदरमथन क दवारा परापत हयी तीन कनयाय अपन पतर को द द य कनयाय सावतरी लमी और पावरती थी तीन पतर न मा क कहन पर उनह अपनी पतनी क रप म सवीकार लया आदयाशिकत न (कालपरष क कह अनसार यह बात कालपरष दोबारा कहन आया था कयक पहल अषटागी न जब पतर को इसस पहल सिषटरचना क लय कहा तो उनहन अनसना कर दया) अपन तीन पतर क साथ सिषट क रचना क आदयाशिकत न खद अडज यानी अड स पदा होन वाल जीव को रचा बरहमा न पडज यानी पड स शरर स पदा होन वाल जीव क रचना क वषण न उषमज यानी पानी गम स पदा होन वाल जीव कट पतग ज आद क रचना क शकर न सथावर यानी पङ पौध पहाड़ पवरत आद जीव क रचना क और फर इन सब जीव को चारखान वाल चौरासी लाख योनय म डाल दया इनम मनषयशरर क रचना सवम थी इधर बरहमा वषण शकर न अपन पता कालपरष क बार म जानन क बहत कोशश क पर व सफल न हो सक कयक वो अदशय था और उसन आदयाशिकत स कह रखा था क वो कसी को उसका पता न बताय फर वो सब जीव क अनदर lsquoमनrsquo क रप म बठ गया और जीव को तरह-तरह क वासनाओ म फ़सान लगा और समसत जीव बहद दख भोगन लग कयक सतपरष न उसक कररता दखकर शाप दया था क वह एकलाख जीव को नतय खायगा और सवालाख को उतपनन करगा समसत जीव उसक करर वयवहार स हाहाकार करन लग और अपन बनान वाल को पकारन

6

लग सतपरष को य जानकर बहत गससा आया क काल समसत जीव पर बहद अतयाचार कर रहा ह (काल जीव को तपतशला पर रखकर पटकता और खाता था) तब सतपरष न ानीजी (कबीर साहब) को उसक पास भजा कालपरष और ानीजी क बीच काफ़ झङप हयी और कालपरष हार गया तपतशला पर तङपत जीव न ानीजी स पराथरना क क वो उस इसक अतयाचार स बचाय ानीजी न उन जीव को सतपरष का नाम धयान करन को कहा इस नाम क धयान करत ह जीवमकत होकर ऊपर (सतलोक) जान लग यह दखकर काल घबरा गया और उसन ानीजी स एक समझौता कया क जो जीव इस परमनाम (वाणी स पर) को सतगर स परापत कर लगा वह यहा स मकत हो जायगा ानीजी न कहा - म सवय आकर सभी जीव को यह नाम दगा नाम क परभाव स व यहा स मकत होकर आननदधाम को चल जायग काल न कहा - म और माया (उसक पतनी) जीव को तरह तरह क भोगवासना म फ़सा दग िजसस जीव भिकत भल जायगा और यह फ़सा रहगा ानीजी न कहा - लकन उस सतनाम क अदर जात ह जीव म ान का परकाश हो जायगा और जीव तमहार सभी चाल समझ जायगा कालनरजन को चता हयी उसन बहद चालाक स कहा - म जीव को मिकत और उदधार क नाम पर तरह-तरह क जात धमर पजा पाठ तीथर वरत आद म ऐसा उलझाऊगा क वह कभी अपनी असलयत नह जान पायगा साथ ह म तमहार चलाय गय पथ म भी अपना जाल फ़ला दगा इस तरह अलपबदध जीव यह नह सोच पायगा क सचचाई आखर ह कया म तमहार असल नाम म भी अपन नाम मला दगा आद अब कयक समझौता हो गया था ानीजी वापस लौट गय वासतव म मनरप म यह काल ह ह जो हम तरह-तरह क कमरजाल म फसाता ह और फर नकर आद भोगवाता ह लकन वासतव म यह आतमा सतपरष का अश होन स बहत शिकतशाल ह पर भोग वासनाओ म पड़कर इसक य दगरत हो गई ह इसस छटकारा पान का एकमातर उपाय सतगर क शरण और महामतर का धयान करना ह ह ---------------------- परसततकतार राजीव कलशरषठ चारगर ससार म धमरदास बड़ अश मिकतराज़ लख दिनहया अटल बयालस वश

7

1 सदशरन नाम साहब 2 कलपत नाम साहब 3 परमोध गर 4 कवलनाम साहब 5 अमोल नाम 6 सरतसनह नाम 7 हककनाम 8 पाकनाम 9 परगटनाम 10 धीरज नाम 11 उगरनाम 12 दयानाम 13 गरनधमन नाम साहब 14 परकाश मननाम साहब 15 उदतमन नाम साहब 16 मकनद मननाम 17 अधरनाम 18 उदयनाम 19 ाननाम 20 हसमण नाम 21 सकत नाम 22 अगरमण नाम 23 रसनाम 24 गगमण नाम 25 पारस नाम 26 जागरत नाम 27 भरगमण नाम 28 अकह नाम 29 कठमण नाम 30 सतोषमण नाम 31 चातरक नाम 32 आदनाम 33 नहनाम 34 अजरनाम 35 महानाम 36 नजनाम 37 साहब नाम 38 उदय नाम 39 करणा नाम 40 उधवरनाम 41 दघरनाम 42 महामण नाम

कबीर साहब और धमरदास

कबीर साहब क शषय धनी धमरदास का जनम बहत ह धनी वशय परवार म हआ था बाद म कबीर साहब क शरण म आकर उनस परमातम-ान लकर धमरदास न अपना जीवन साथरक और परपणर कया इस तरह उनह धमरदास क जगह lsquoधनी धमरदासrsquo कहा जान लगा धमरदास वषणव थ और ठाकर-पजा कया करत थ अपनी मत रपजा क इसी करम म धमरदास मथरा आय जहा उनक भट कबीर साहब स हयी धमरदास दयाल वयवहार और पवतर जीवन जीन वाल इसान थ अतयधक धन सप क बाद भी अहकार उनह छआ तक नह था व अपन हाथ स सवय भोजन बनात और पवतरता क लहाज स जलावन लकङ को इसतमाल करन स पहल धोया करत थ एकबार इसी समय म जब वह मथरा म भोजन तयार कर रह थ उसी समय कबीर स उनक भट हयी उनहन दखा क भोजन बनान क लय जो लकङया चलह म जल रह थी उसम स ढर चीटया नकलकर बाहर आ रह थी धमरदास न जलद स शष लकङय को बाहर नकाल कर चीटय को जलन स बचाया उनह बहत दख हआ और व अतयनत वयाकल हो उठ लकङय म जलकर मर गयी चीटय क परत उनक मन म बहद पशचाताप हआ व सोचन लग - आज मझस महापाप हआ ह अपन इसी दख क वजह स उनहन भोजन भी नह खाया उनहन सोचा िजस भोजन क बनन म इतनी चीटया जलकर मर गयी उस कस खा सकता ह उनक हसाब स वह दषत भोजन खान योगय नह था अतः उनहन वह भोजन कसी दन-हन साध महातमा आद को करान का वचार कया

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वो भोजन लकर बाहर आय तो उनहन दखा क कबीर एक घन शीतल व क छाया म बठ हय थ धमरदास न उनस भोजन क लय नवदन कया कबीर साहब न कहा - सठ धमरदास िजस भोजन को बनात समय हजार चीटया जलकर मर गयी उस भोजन को मझ कराकर य पाप तम मर ऊपर कय लादना चाहत हो तम तो रोज ह ठाकर जी क पजा करत हो फ़र उनह भगवान स कय नह पछ लया था क इन लकङय क अनदर कया ह धमरदास को बहद आशचयर हआ क इस साध को य सब बात कस पता चल उस समय तो धमरदास क आशचयर का ठकाना न रहा जब कबीर न व चीटया भोजन स िजदा नकलत हय दखायी इस रहसय को व समझ न सक और उनहोन दखी होकर कहा - बाबा यद म भगवान स इस बार म पछ सकता तो मझस इतना बङा पाप कय होता धमरदास को पाप क महाशोक म डबा दखकर कबीर न अधयातम-ान क गढ़ रहसय बताय जब धमरदास न उनका परचय पछा तो कबीर न अपना नाम सदगर कबीर साहब और नवासी अमरलोक बताया इसक कछ दर बाद कबीर अतधयारन हो गय धमरदास को जब कबीर बहत दन तक नह मल तो वो वयाकल होकर जगह जगह उनह खोजत फ़र और उनक िसथत पागल क समान हो गयी तब उनक पतनी न सझाव दया - तम य कया कर रह हो उनह खोजना बहत आसान ह जस क चीट चीटा गङ को खोजत हय खद ह आ जात ह धमरदास न कहा - कया मतलब पतनी न कहा - खब भडार कराओ दान दो हजार साध आयग जब वह साध तमह दख तो उस पहचान लना धमरदास को बात उचत लगी व ऐसा ह करन लग उनहन अपनी सार सप खचर कर द पर वह साध (कबीर) नह मला फर बहत समय भटकन क बाद उनह कबीर काशी म मल परनत उस समय व वषणव वश म थ फ़र भी धमरदास न उनह पहचान लया और उनक चरण म गर पङ धमरदास बोल - सदगर महाराज मझ पर कपा कर और मझ अपनी शरण म ल गरदव मझ पर परसनन ह म उसी समय स आपको खोज रहा ह आज आपक दशरन हय कबीर बोल - धमरदास तम मझ कहा खोज रह थ तम तो चीट चीट को खोज रह थ सो व तमहार भनडार म

9

आय इस पर धमरदास को अपनी मखरता पर बङा पशचाताप हआ तब उनह परायिशचत भावना म दख कर कबीर साहब न फ़र कहा - लकन तम बहत भागयशाल हो जो तमन मझ पहचान लया अब तम धयर धारण करो म तमह जीवन क आवागमन स मकत करान वाला मो-ान दगा इसक बाद धमरदास नवदन करक कबीर साहब को अपन साथ बाधोगढ ल आय फ़र तो बाधोगढ म कबीर क शरीमख स अलौकक आतमान सतसग क अवरल धारा ह बहन लगी दर दर स लोग सतसग सनन आन लग धमरदास और उनक पतनी lsquoआमनrsquo न महामतर क दा ल बाधोगढ क नरश भी कबीर क सतसग म आन लग और बाद म दा लकर व भी कबीर साहब क शषय बन यहा कबीर न बहत स उपदश दय िजनह उनक शषय न बाधोगढ नरश और धनी धमरदास क आदश पर सकलत कर गरनथ का रप दया -------------------- वशष - जब भी कसी सचचसनत का पराकटय होता ह तो कालपरष भयभीत हो जाता ह क अब य जीव को मोान दकर उनका उदधार कर दगा इसस हरसभव बचाव क लय वो अपन lsquoकालदतrsquo वहा भज दता ह धमरदास का पतर lsquoनारायण दासrsquo जो कालदत था कबीर का बहत वरोध करता था लकन उसक एक भी नह चल खद कबीर क पतर क रप म lsquoकमालrsquo कालदत था वह भी कबीर का बहत वरोध करता था बाद म कबीर न धमरदास को सयोगय शषय जानत हय मो का अनमोल ान दया और साथ ह य ताकद भी क धमरदास तोह लाख दहाई सारशबद बाहर नह जाई धमरदास न कहा - सारशबद बाहर नह जाई तो हसा लोक को कस जाई कबीर साहब न कहा - जो अपना होय तो दयो बतायी

आदसिषट क रचना

धमरदास बोल - साहब कपा कर बताय क मकत होकर अमर हय लोग कहा रहत ह मझ अमरलोक और अनय दप का वणरन सनाओ आदसिषट क रचना कौन स दप म सदगर क हसजीव का वास ह और कौन स दप म सतपरष का नवास ह वहा हसजीव कौन सा तथा कसा भोजन करत ह और व कौन सी वाणी बोलत ह

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आदपरष न लोक कस रच रखा ह तथा उनह दप रचन क इचछा कस हयी तीन लोक क उतप कस हयी साहब मझ वह सब भी बताओ जो गपत ह कालनरजन कस वध स पदा हआ और सोलह सत का नमारण कस हआ सथावर अणडज पणडज ऊषमज इन चार परकार क चार खान वाल सिषट का वसतार कस हआ और जीव को कस काल क वश म डाल दया गया कमर और शषनाग उपराजा कस उतपनन हय और कस मतसय तथा वराह जस अवतार हय तीन परमख दव बरहमा वषण महश कस परकार हय तथा परथवी आकाश का नमारण कस हआ चनदरमा और सयर कस हय कस तार का समह परकट होकर आकाश म ठहर गया और कस चार खान क जीव शरर क रचना हयी इन सबक उतप क वषय म सपषट बताय कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमह सतयान और मो पान का सचचा अधकार पाया ह इसलय सतयान का जो अनभव मन कया उसक सारशबद का रहसय कहकर सनाया अब तम मझस आदसिषट क उतप सनो म तमह सबक उतप और परलय क बात सनाता ह यह ततव क बात सनो जब धरती और आकाश और पाताल भी नह था जब कमर वराह शषनाग सरसवती और गणश भी नह थ जब सबका राजा नरजनराय भी नह था िजसन सबक जीवन को मोहमाया क बधन म झलाकर रखा ह ततीस करोङ दवता भी नह थ और म तमह अनक कया बताऊ तब बरहमा वषण महश भी नह थ और न ह शासतर वद पराण थ तब य सब आदपरष म समाय हय थ जस बरगद क पङ क बीच म छाया रहती ह धमरदास तम परारमभ क आद-उतप सनो िजस परतयरप स कोई नह जानता और िजसक पीछ सार सिषट का वसतार हआ ह उसक लय म तमह कया परमाण द क िजसन उस दखा हो चारो वद परमपता क वासतवक कहानी नह जानत कयक तब वद का मल ह (आरमभ होन का आधार) नह था इसीलय वद सतयपरष को lsquoअकथनीयrsquo अथारत िजसक बार म कहा न जा सक ऐसा कहकर पकारत ह चारो वद नराकार नरजन स उतपनन हय ह जो क सिषट क उतप आद रहसय को जानत ह नह इसी कारण पडत उसका खडन करत ह और असल रहसय स अनजान वदमत पर यह सारा ससार चलता ह सिषट क पवर जब सतयपरष गपत रहत थ उनस िजनस कमर होता ह व नम कारण और उपादान कारण और करण यानी साधन उतपनन नह कय थ उस समय गपतरप स कारण और करण समपटकमल म थ उसका समबनध सतयपरष स था lsquoवदह-सतयपरषrsquo उस कमल म थ तब सतयपरष न सवय इचछा कर अपन अश को उतपनन कया और अपन अश को दखकर वह बहत परसनन हय सबस पहल सतयपरष न lsquoशबदrsquo का परकाश कया और उसस लोकदप रचकर उसम वास कया फ़र सतयपरष न चार-पाय वाल एक सहासन क रचना क और उसक ऊपर lsquoपहपदपrsquo का नमारण कया फर सतयपरष अपनी समसत कलाओ को धारण करक उस पर बठ और उनस lsquoअगरवासनाrsquo यानी (चनदन जसी) एक सगनध परकट हयी सतयपरष न अपनी इचछा स सब कामना क और lsquoअठासी हजारrsquo दप क रचना क उन सभी दप म वह चनदन जसी सगनध समा गयी जो बहत अचछ लगी इसक बाद सतयपरष न दसरा शबद उचचारत कया उसस lsquoकमरrsquo नाम का सत (अश) परकट हआ और उनहन सतयपरष क चरण म परणाम कया तब उनहन तीसर शबद का उचचारण कया उसस lsquoानrsquo नाम क सत हय जो

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सब सत म शरषठ थ व सतयपरष क चरण म शीश नवाकर खङ रह तब सतयपरष न उनको एक दप म रहन क आा द चौथ शबद क उचचारण स lsquoववकrsquo नामक सत हय और पाचव शबद स lsquoकाल-नरजनrsquo परकट हआ काल-नरजन अतयनत तज अग और भीषणपरकत वाला होकर आया इसी न अपन उगर-सवभाव स सब जीव को कषट दया ह वस य lsquoजीवrsquo सतयपरष का अश ह जीव क आद-अत को कोई नह जानता ह छठव शबद स lsquoसहज नामrsquo सत उतपनन हय सातव शबद स lsquoसतोषrsquo नाम क सत हय िजनको सतयपरष न उपहार म दप दकर सतषट कया आठव शबद स lsquoसरत सभावrsquo नाम क सत उतपनन हय उनह भी एक दप दया गया नव स lsquoआननद अपारrsquo नाम क सत उतपनन हय दसव स lsquoमाrsquo नाम क सत उतपनन हय गयारहव स lsquoनषकामrsquo और बारहव स lsquoजलरगीrsquo नाम क सत हय तरहव स lsquoअचतrsquo और चौदहव स lsquoपरमrsquo नाम क सत हय पनदरहव स दनदयाल और सोलहव स lsquoधीरजrsquo नाम क वशाल सत उतपनन हय सतरहव शबद क उचचारण स lsquoयोगसतायनrsquo हय इस तरह lsquoएक ह नालrsquo स सतयपरष क शबद उचचारण स सोलह सत क उतप हयी सतयपरष क शबद स ह उन सत का आकार का वकास हआ और शबद स ह सभी दप का वसतार हआ सतयपरष न अपन परतयक दवयअग यानी अश को अमत का आहार दया और परतयक को अलग- अलग दप का अधकार बनाकर बठा दया सतयपरष क इन अश क शोभा और कला अननत ह उनक दप म मायारहत अलौकक सख रहता ह सतयपरष क दवयपरकाश स सभी दप परकाशत हो रह ह सतयपरष क एक ह रोम का परकाश करोङ सयर-चनदरमा क समान ह सतयलोक आननदधाम ह वहा पर शोक मोह आद दख नह ह वहा सदव मकतहस का वशराम होता ह सतपरष का दशरन तथा अमत का पान होता ह आदसिषट क रचना क बाद जब बहत दन ऐस ह बीत गय तब धमरराज कालनरजन न कया तमाशा कया उस चरतर को धयान स सनो नरजन न सतयपरष म धयान लगाकर एक पर पर खङ होकर सर यग तक कठन तपसया क इसस आदपरष बहत परसनन हय तब सतयपरष क आवाज lsquoवाणीरपrsquo म हयी - ह धमरराय कस हत स तमन यह तपसवा क नरजन सर झकाकर बोला - परभ मझ वह सथान द जहा जाकर म नवास कर सतयपरष न कहा - तम मानसरोवर दप म जाओ परसनन होकर धमरराज मानसरोवर दप क ओर चला गया और आननद स भर गया मानसरोवर पर नरजन न फ़र स एक पर पर खङ होकर सर यग तपसया क तब दयाल सतयपरष क हरदय म दया भर गयी नरजन क कठन सवा-तपसया स पषपदप क पषप वकसत हो गय और फ़र सतयपरष क वाणी परकट हयी उनक बोलत ह वहा सगनध फ़ल गयी

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सतयपरष न सहज स कहा - सहज तम नरजन क पास जाओ और उसस तप का कारण पछो नरजन क सवा-तपसया स पहल ह मन उसको मानसरोवर दप दया ह अब वह कया चाहता ह यह ात कर तम मझ बताओ सहज नरजन क पास पहच और परमभाव स कहा - भाई अब तम कया चाहत हो नरजन परसनन होकर बोला - सहज तम मर बङ भाई हो इतना सा सथानय मानसरोवर मझ अचछा नह लगता अतः म कसी बङ सथान का सवामी बनना चाहता ह मझ ऐसी इचछा ह क या तो मझ दवलोक द या मझ एक अलग दश द सहज न नरजन क अभलाषा सतयपरष को जाकर बतायी सतयपरष न सपषट शबद म कहा - हम नरजन क सवा-तपसया स सतिषट होकर उसको तीनलोक दत ह वह उसम अपनी इचछा स lsquoशनयदशrsquo बसाय और वहा जाकर सिषट क रचना कर तम नरजन स ऐसा जाकर कहो नरजन न सहज दवारा य बात सनी तो वह बहत परसनन और आशचयरचकत हआ नरजन बोला - सहज सनो म कस परकार सिषटरचना करक उसका वसतार कर सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया ह परनत म सिषटरचना का भद नह जानता फ़र यह कायर कस कर जो सिषट मन बदध क पहच स पर अतयनत कठन और जटल ह वह मझ रचनी नह आती अतः दया करक मझ उसक यिकत बतायी जाय तम मर तरफ़ स सतयपरष स यह वनती करो क म कस परकार lsquoनवखणडrsquo बनाऊ अतः मझ वह साजसामान दो िजसस जगत क रचना हो सक सहज न यह सब बात जब जाकर सतयपरष स कह तब उनहन आा द - सहज कमर क पट क अनदर सिषटरचना का सब साज सामान ह उस लकर नरजन अपना कायर कर इसक लय नरजन कमर स वनती कर और उसस दणडपरणाम करक वनयपवरक सर झकाकर माग सहज न सतयपरष क आा नरजन को बता द यह सनत ह नरजन बहत हषरत हआ और उसक अनदर बहत अभमान हआ वह कमर क पास जाकर खङा हो गया और बताय अनसार दणडपरणाम भी नह कया अमतसवरप कमर जो सबको सख दन वाल ह उनम करोध अभमान का भाव जरा भी नह ह और अतयनत शीतल सवभाव क ह अतः जब कालनरजन न अभमान करक दखा तो पता चला क कमर अतयनत धयरवान और बलशाल ह बारह पालग कमर का वशाल शरर ह और छह पालग बलवान नरजन का शरर ह नरजन करोध करता हआ कमर क चारो ओर दौङता रहा और सोचता रहा क कस उपाय स इसस उतप का सामान ल तब नरजन बहद रोष स कमर स भङ गया और अपन तीख नाखन स कमर क शीश पर आघात

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करन लगा परहार करन स कमर क उदर स पवन नकल उसक शीश क तीन अश सत रज तम गण नकल आग िजनक वश बरहमा वषण महश हय पाच-ततव धरती आकाश आद तथा चनदरमा सयर आद तार का समह उसक उदर म थ उसक आघात स पानी अिगन चनदरमा और सयर नकल और परथवीजगत को ढकन क लय आकाश नकला फ़र उसक उदर स परथवी को उठान वाल वाराह शषनाग और मतसय नकल तब परथवीसिषट का आरमभ हआ जब कालनरजन न कमर का शीश काटा तब उस सथान स रकत जल क सरोत बहन लग जब उनक रकत म सवद यानी पसीना और जल मला उसस समदर का नमारण तथा उनचास कोट परथवी का नमारण हआ जस दध पर मलाई ठहर जाती ह वस ह जल पर परथवी ठहर गयी वाराह क दात परथवी क मल म रह पवन परचणड था और परथवी सथल थी आकाश को अडासवरप समझो और उसक बीच म परथवी िसथत ह कमर क उदर स lsquoकमरसतrsquo उतपनन हय उस पर शषनाग और वराह का सथान ह शषनाग क सर पर परथवी ह नरजन क चोट करन स कमर बरयाया सिषटरचना का सब साजोसामान कमर उदर क अड म थी परनत वह कमर क अश स अलग थी आदकमर सतयलोक क बीच रहता था नरजन क आघात स पीङत होकर उसन सतयपरष का धयान कया और शकायत करत हय कहा - कालनरजन न मर साथ दषटता क ह उसन मर ऊपर बल परयोग करत हय मर पट को फ़ाङ डाला ह आपक आा का उसन पालन नह कया सतयपरष सनह स बोल - कमर वह तमहारा छोटा भाई ह और यह रत ह क छोट क अवगण को भलाकर उसस सनह कया जाय सतयपरष क ऐस वचन सनकर कमर आनिनदत हो गय इधर कालनरजन न फ़र स सतयपरष का धयान कया और अनक यग तक उनक सवा तपसया क नरजन न अपन सवाथर स तप कया था अतः सिषटरचना को लकर वह पछताया तब धमरराय नरजन न वचार कया क तीन लोक का वसतार कस और कहा तक कया जाय उसन सवगरलोक मतयलोक और पाताललोक क रचना तो कर द परनत बना बीज और जीव क सिषट का वसतार कस सभव हो कस परकार और कया उपाय कया जाय जो जीव क धारण करन का शरर बनाकर सजीव सिषटरचना हो सक यह सब तरका वध सतयपरष क सवा तपसया स ह होगा ऐसा वचार करक हठपवरक एक पर पर खङा होकर उसन चसठ यग तक तपसया क तब दयाल सतयपरष न सहज स कहा - अब य तपसवी नरजन कया चाहता ह वह तम उसस पछो और द दो उसस कहो वह हमार वचन अनसार सिषट नमारण कर और छलमत का तयाग कर सहज न नरजन स जाकर यह सब बात कह

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नरजन बोला - मझ वह सथान दो जहा जाकर म बठ जाऊ सहज बोल - सतयपरष न पहल ह सब कछ द दया ह कमर क उदर स नकल सामान स तम सिषटरचना करो नरजन बोला - म कस कया बनाकर रचना कर सतयपरष स मर तरफ़ स वनती कर कहो अपना सारा खत बीज मझ द द सहज न यह हाल सतयपरष को कह सनाया सतयपरष न आा द तो सहज अपन सखासन दप चल गय नरजन क इचछा जानकर सतयपरष न इचछा वयकत क उनक इस इचछा स अषटागी नाम क कनया उतपनन हयी वह कनया आठ भजाओ क होकर आयी थी वह सतयपरष क बाय अग जाकर खङ हो गयी और परणाम करत हय बोल - ह सतयपरष मझ कया आा ह सतयपरष बोल - पतरी तम नरजन क पास जाओ म तमह जो वसत दता ह उस सभाल लो उसस तम नरजन क साथ मलकर सिषटरपी फ़लवार क रचना करो कबीर साहब बोल - धमरदास सतयपरष न अषटागीकनया को जो जीव-बीज दया उसका नाम lsquoसोऽहगrsquo ह इस तरह जीव का नाम सोऽहग ह जीव ह सोऽहगम ह दसरा नह ह और वह जीव सतयपरष का अश ह फ़र सतयपरष न तीन शिकतय को उतपनन कया उनक नाम lsquoचतनrsquo lsquoउलघनrsquo और lsquoअभयrsquo थ सतयपरष न अषटागी स कहा क नरजन क पास जाकर उस पहचान कर यह चौरासी लाख जीव का मलबीज जीव-बीज द दो अषटागीकनया यह जीव-बीज लकर मानसरोवर चल गयी तब सतयपरष न सहज को बलाया और उसस कहा - तम नरजन क पास जाकर यह कहो क जो वसत तम चाहत थ वह तमह द द गयी ह जीव-बीज lsquoसोऽहगrsquo तमह मल गया ह अब जसी चाहो सिषटरचना करो और मानसरोवर म जाकर रहो वह स सिषट का आरमभ होना ह सहज न नरजन स जाकर ऐसा ह कहा

अषटागीकनया और कालनरजन

सहज क दवारा सतयपरष क ऐस वचन सनकर नरजन परसनन होकर अहकार स भर गया और मानसरोवर चला आया फ़र जब उसन सनदर कामनी lsquoअषटागीकनयाrsquo को आत हय दखा तो उस अत परसननता हयी अषटागी का

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अनपमसदयर दखकर नरजन मगध हो गया उसक सनदरता क कला का अनत नह था यह दखकर कालनरजन बहत वयाकल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क कररता सनो वह अषटागीकनया को ह नगल गया जब अनयायी कालनरजन अषटागी का ह आहार करन लगा तब उस कनया को कालनरजन क परत बहत आशचयर हआ जब वह उस नगल रहा था तो अषटागी न सतयपरष को धयान करक पकारा क कालनरजन न मरा आहार कर लया ह अषटागी क पकार सनकर सतयपरष न सोचा क यह कालनरजन तो बहत करर और अनयायी ह इस कनया क तरह ह पहल कमर न धयान करक मझ पकारा था क कालनरजन न मर तीन शीश खा लय ह सतयपरष आप मझ पर दया किजय कबीर साहब बोल - कालनरजन का ऐसा करर चरतर जानकर सतयपरष न उस शाप दया क वह परतदन लाख जीव को खायगा और सवालाख का वसतार करगा फ़र सतयपरष न ऐसा भी वचार कया क इस कालपरष को मटा ह डाल कयक अनयायी और करर कालनरजन बहत ह कठोर और भयकर ह यह सभी जीव का जीवन बहत दखी कर दगा लकन अब वह मटान स भी नह मट सकता था कयक एक ह नाल स व सब सोलह सत उतपनन हय थ अतः एक को मटान स सभी मट जायग और मन सबको अलग लोकदप दकर जो रहन का वचन दया ह वह डावाडोल हो जायगा और मर य सब रचना भी समापत हो जायगी अतः इसको मारना ठक नह ह सतयपरष न वचार कया क कालपरष को मारन स उनका वचन भग हो जायगा अतः अपन वचन का पालन करत हय उस न मारकर यह कहता ह क अब वह कभी हमारा दशरन नह पायगा यह कहत हय सतयपरष न योगजीत को बलवाया और सब हाल कहा क कस तरह कालनरजन न अषटागी कनया को नगल लया और कमर क तीन शीश खा लय उनहन कहा - योगजीत तम शीघर मानसरोवर दप जाओ और वहा स नरजन को मारकर नकाल दो वह मानसरोवर म न रहन पाय और हमार दश सतयलोक म कभी न आन पाय नरजन क पट म अषटागी नार ह उसस कहो क वह मर वचन का सभाल कर पालन कर नरजन जाकर उसी दश म रह जो मन पहल उस दय ह अथारत वह सवगरलोक मतयलोक और पाताल पर अपना राजय कर वह अषटागी नार नरजन का पट फ़ाङकर बाहर नकल आय िजसस पट फ़टन स वह अपन कम का फ़ल पाय नरजन स नणरय करक कह दो क वह अषटागी नार ह अब तमहार सतरी होगी योगजीत सतयपरष को परणाम करक मानसरोवर दप आय कालनरजन उनह वहा आया दखकर भयकर रप हो गया और बोला - तम कौन हो और कसन तमह यहा भजा ह योगजीत न कहा - अर नरजन तम नार को ह खा गय अतः सतयपरष न मझ आा द क तमह शीघर ह यहा स नकाल योगजीत न नरजन क पट म समायी हयी अषटागी स कहा - अषटागी तम वहा कय रहती हो तम सतयपरष क तज का समरन करो और पट फ़ाङकर बाहर आ जाओ

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योगजीत क बात सनकर नरजन का हरदय करोध स जलन लगा और वह योगजीत स भङ गया योगजीत न सतयपरष का धयान कया तो सतयपरष न आा द क वह नरजन क माथ क बीच म जोर स घसा मार योगजीत न ऐसा ह कया फ़र योगजीत न नरजन क बाह पकङ कर उस उठाकर दर फ़ क दया तो वह सतयलोक क मानसरोवर दप स अलग जाकर दर गर पङा सतयपरष क डर स वह डरता हआ सभल सभलकर उठा फ़र अषटागीकनया नरजन क पट स नकल वह कालनरजन स बहत भयभीत थी वह सोचन लगी क अब म वह दश न दख सकगी म न जान कस परकार यहा आकर गर पङ यह कौन बताय वह नरजन स बहत डर हयी थी और सकपका कर इधर-उधर दखती हयी नरजन को शीश नवा रह थी तब नरजन बोला - ह आदकमार सनो अब तम मर डर स मत डरो सतयपरष न तमह मर lsquoकामrsquo क लय रचा ह हम-तम दोन एकमत होकर सिषटरचना कर म परष ह और तम मर सतरी हो अतः तम मर यह बात मान लो अषटागी बोल - तम यह कसी वाणी बोलत हो म तो तमह बङा भाई मानती ह इस परकार जानत हय भी तम मझस ऐसी बात मत करो जब स तमन मझ पट म डाल लया था और उसस उतपनन होन पर अब तो म तमहार पतरी भी हो गयी ह बङ भाई का रशता तो पहल स ह था अब तो तम मर पता भी हो गय हो अब तम मझ साफ़ दिषट स दखो नह तो तमस यह पाप हो जायगा अतः मझ वषयवासना क दिषट स मत दखो नरजन बोला - भवानी सनो म तमह सतय बताकर अपनी पहचान कराता ह पाप पणय क डर स म नह डरता कयक पाप पणय का म ह तो कतार (करान वाला) ह पाप पणय मझस ह हग और मरा हसाब कोई नह लगा पाप पणय को म ह फ़लाऊगा जो उसम फ़स जायगा वह मरा होगा अतः तम मर इस सीख को मानो सतयपरष न मझ कह समझा कर तझ दया ह अतः तम मरा कहना मानो नरजन क ऐसी बात सनकर अषटागी हसी और दोन एकमत होकर एक दसर क रग म रग गय अषटागी मीठ वाणी स रहसयमय वचन बोल और फ़र उस नीचबदध सतरी न वषयभोग क इचछा परकट क उसक रतवषयक रहसयमय वचन सनकर नरजन बहत परसनन हआ और उसक भी मन म वषयभोग क इचछा जाग उठ नरजन और अषटागी दोन परसपर रतकरया म लग गय तब कह चतनयसिषट का वशष आरमभ हआ धमरदास तम आदउतप का यह भद सनो िजस भरमवश कोई नह जानता उन दोन न तीन बार रतकरया क िजसस बरहमा वषण तथा महश हय उनम बरहमा सबस बङ मझल वषण और सबस छोट शकर थ इस परकार अषटागी और नरजन का रतपरसग हआ उन दोन न एकमत होकर भोगवलास कया तब उसस आदउतप का परकाश हआ

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वद क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास वचार करो पीछ ऐसा वणरन हो चका ह क अिगन पवन जल परथवी और परकाश कमर क उदर स परकट हय उसक उदर स य पाचो अश लय तथा तीन सर काटन स सत रज तम तीन गण परापत हय इस परकार पाच ततव और तीन गण परापत होन पर नरजन न सिषटरचना क फ़र अषटागी और नरजन क परसपर रतपरसग स अषटागी को गण एव ततव समान करक दय और अपन अश उतपनन कय इस परकार पाच-ततव और तीन गण को दन स उसन ससार क रचना क वीयरशिकत क पहल बद स बरहमा हय उनह रजोगण और पाच ततव दय दसर बद स वषण हय उनह सतगण और पाच ततव दय तीसर बद स शकर हय उनह तमोगण और पाच ततव दय पाच ततव तीन गण क मशरण स बरहमा वषण महश क शरर क रचना हयी इसी परकार सब जीव क शरर क रचना हयी उसस य पाच-ततव और तीन गण परवतरनशील और वकार होन स बारबार सजन-परलय यानी जीवन-मरण होता ह सिषट क रचना क इस lsquoआदरहसयrsquo को वासतवक रप स कोई नह जानता धमरदास कबीर साहब आग कहन लग नरजन बोला - अषटागी कामनी मर बात सन और जो म कह उस मान अब जीव-बीज सोऽहग तमहार पास ह उसक दवारा सिषटरचना का परकाश करो ह रानी सन अब म कस कया कर आदभवानी बरहमा वषण महश तीन पतर तमको सप दय और अपना मन सतयपरष क सवा भिकत म लगा दया ह तम इन तीन बालक को लकर राज करो परनत मरा भद कसी स न कहना मरा दशरन य तीन पतर न कर सक ग चाह मझ खोजत-खोजत अपना जनम ह कय न समापत कर द सोच-समझकर सब लोग को ऐसा मत सदढ कराना क सतयपरष का भद कोई पराणी जानन न पाय जब य तीन पतर बदधमान हो जाय तब उनह समदरमथन का ान दकर समदरमथन क लय भजना इस तरह नरजन न अषटागी को बहत परकार स समझाया और फ़र अपन आप गपत हो गया उसन शनयगफ़ा म नवास कया वह जीव क lsquoहरदयाकाशरपीrsquo शनयगफ़ा म रहता ह तब उसका भद कौन ल सकता ह वह गपत होकर भी सबक साथ ह जो सबक भीतर ह उस मन को ह नरजन जानो जीव क हरदय म रहन वाला यह मन नरजन सतयपरष परमातमा क रहसयमय ान क परत सदह उतपनन कर उस मटाता ह यह अपन मत स सभी को वशीभत करता ह और सवय क बङाई परकट करता ह सभी जीव क हरदय म बसन वाला यह मन कालनरजन का ह रप ह सबक साथ रहता हआ भी य मन पणरतया गपत ह और कसी को दखाई नह दता य सवाभावक रप स अतयनत चचल ह और सदा सासारक वषय क ओर दौङता ह वषयसख और भोगपरवत क कारण मन को चन कहा ह यह दन-रात सोत-जागत अपनी अननत इचछाओ क पतर क लय भटकता ह रहता ह और मन क वशीभत होन क कारण ह जीव अशात और दखी होता ह इसी कारण उसका पतन होकर जनम-मरण का बधन बना ह जीव का मन ह उसक दख भोग और जनम-मरण का कारण ह अतः मन को वश म करना ह सभी दख और

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जनम-मरण क बधन स मकत होन का उपाय ह जीव तथा उसक हरदय क भीतर मन दोन एक साथ ह मतवाला और वषयगामी मन कालनरजन क अग सपशर करन स जीव बदधहन हो गय इसी स अानी जीव कमर अकमर क करत रहन स तथा उनका फ़ल भोगत रहन क कारण ह जनम-जनमातर तक उनका उदधार नह हो पाता यह मन-काल जीव को सताता ह इिनदरय को पररत कर वभनन पापकम म लगाता ह यह सवय पाप पणय क कम क काल कचाल चलता ह फ़र जीव को दखरपी दणड दता ह उधर जब तीन बालक बरहमा वषण महश सयान समझदार हय तो माता अषटागी न उनह समदर मथन क लय भजा लकन व बालक खलन म मसत थ अतः समदर मथन नह गय कबीर साहब बोल - धमरदास उसी समय एक तमाशा हआ नरजनराव न योग धारण कया उसन पवन यानी सास खीचकर परक पराणायाम स आरमभ करपवन ठहरा कर कमभक पराणायाम बहत दर तक कया फ़र जब नरजन कमभक तयाग कर रचनकरया स पवनरहत हआ तब उसक सास क साथ वद बाहर नकल वदउतप क इस रहसय को कोई बरला वदवान ह जानगा वद न नरजन क सतत क और कहा - ह नगरणनाथ मझ कया आा ह नरजन बोला - तम जाकर समदर म नवास करो तथा िजसका तमस भट हो उसक पास चल जाना वद को आा दत हय कालनरजन क आवाज तो सनायी द पर वद न उसका सथलरप नह दखा उसन कवल अपना जयोतसवरप ह दखाया उसक तज स परभावत होकर आानसार वद चल गय फ़र अत म उस तज स वष क उतप हयी इधर चलत हय वद वहा जा पहच जहा नरजन न समदर क रचना क थी व सध क मधय म पहच गय फ़र नरजन न समदरमथन क यिकत का वचार कया

तरदव दवारा परथम समदरमथन

तब नरजन न गपत धयान स अषटागी को याद करत हय समझाया और कहा - बताओ समदर मथन म कसलय दर हो रह ह बरहमा वषण महश हमार तीन पतर को समदर मथन क लय शीघर ह भजो मर वचन दढ़ता स मानो और अषटागी इसक बाद तम सवय समदर म समा जाना तब अषटागी न समदरमथन हत वचार कया और तीन बालक को अचछ तरह समझा-बझाकर समदर मथन क लय भजा उनह भजत समय अषटागी न कहा - समदर स तमह अनमोल वसतय परापत हगी इसलय तम जलद ह जाओ यह सनकर बरहमा वषण और महश तीन बालक चल पङ और जाकर समदर क पास खङ हो गय तथा उस मथन का उपाय सोचन लग

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फ़र तीन न समदरमथन कया तीन को समदर स तीन वसतय परापत हयी बरहमा को वद वषण को तज और शकर को हलाहल वष क परािपत हयी य तीन वसतय लकर व अपनी माता अषटागी क पास आय और खशी-खशी तीन वसतय दखायी अषटागी न उनह अपनी-अपनी वसत अपन पास रखन क आा द अषटागी न कहा - अब फ़र स जाकर समदर मथो और िजसको जो परापत हो वह ल लो उसी समय आदभवानी न एक चरतर कया उसन तीन कनयाय उतपनन क और अपनी उन अश को समदर म परवश करा दया जब इन तीन कनयाओ को समदर म परवश करान क लय भजा इस रहसय को अषटागी क तीन पतर नह जान सक अतः उनहन जब समदरमथन कया तो समदर स तीन कनयाय नकल उनहन खशी स तीन कनयाओ को ल लया और अषटागी क पास आय अषटागी न कहा - पतरो तमहार सब कायर पर हो गय अषटागी न उन तीन कनयाओ को तीन पतर को बाट दया बरहमा को सावतरी वषण को लमी और शकर को पावरती द तीन भाई कामनी सतरी को पाकर बहत आनिनदत हय और उन कामनय क साथ काम क वशीभत होकर उनहन दव और दतय दोन परकार क सतान उतपनन क कबीर साहब बोल - धमरदास तम यह बात समझो क जो माता थी वह अब सतरी हो गयी अषटागी न फ़र स अपन पतर को समदर मथन क आा द इस बार समदर म स चौदह रतन नकल उनहन रतन क खान नकाल और रतन लकर माता क पास पहच तब अषटागी न कहा - पतरो अब तम सिषटरचना करो अणडज खान क उतप सवय अषटागी न क पणडज खान को बरहमा न बनाया ऊषमज खान वषण तथा सथावर को शकर न बनाया उनहन चौरासी लाख योनय क रचना क और उनक अनसार आधाजल आधाथल बनाया सथावर खान को एक-ततव का समझो और ऊषमज खान को दो-ततव तीन-ततव स अणडज और चार-ततव स पणडज का नमारण हआ पाचततव स मनषय को बनाया और तीन गण स सजाया सवारा इसक बाद बरहमा वद पढ़न लग वद पढ़त हय बरहमा को नराकार क परत अनराग हआ कयक वद कहता ह परष एक ह और वह नराकार ह और उसका कोई रप नह ह वह शनय म जयोत दखाता ह परनत दखत समय उसक दह दिषट म नह आती उस नराकार का सर सवगर ह और पर पाताल ह इस वदमत स बरहमा मतवाला हो गया

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बरहमा न वषण स कहा - वद न मझ आदपरष को दखा दया ह फ़र ऐसा ह उनहन शकर स भी कहा - वद पढ़न स पता चलता ह क परष एक ह और सबका सवामी कवल एक नराकार परष ह यह तो वद न बताया परनत उसन ऐसा भी कहा क मन उसका भद नह पाया बरहमा अषटागी क पास आय और बोल - माता मझ वद न दखाया और बताया क सिषट रचना करन वाला हम सबका सवामी कोई और ह ह अतः हम बताओ क तमहारा पत कौन ह और हमारा पता कहा ह अषटागी बोल - बरहमा सनो मर अतरकत तमहारा अनय कोई पता नह ह मझस ह सब उतप हयी ह और मन ह सबको सभारा ह बरहमा न कहा - माता वद नणरय करक कहता ह क परष कवल एक ह और वह गपत ह अषटागी बोल - पतर मझस नयारा सिषटरचयता और कोई नह ह मन ह सवगरलोक परथवीलोक और पाताललोक बनाय ह और सात समदर का नमारण भी मन ह कया ह बरहमा न कहा - मन तमहार बात मानी क तमन ह सब कछ कया ह परनत पहल स ह परष को गपत कस रख लया जबक वद कहता ह क परष एक ह और वह अलखनरजन ह माता तम कतार बनो आप बनो परनत पहल वदरचना करत समय यह वचार कय नह कया और उसम परष को नरजन कय बताया अतः अब तम मर स छल न करो और सच-सच बात बताओ कबीर साहब बोल - जब बरहमा न िजद पकङ ल तो अषटागी न वचार कया क बरहमा को कस परकार समझाऊ जो यह मर महमा को बङाई को नह मानता यह बात नरजन स कह तो यह कस परकार ठक स समझगा नरजन न मझस पहल ह कहा था क मरा दशरन कोई नह पायगा अब बरहमा को अलखनरजन क बार म कछ नह बताया तो कस परकार उस दखाया जाय ऐसा वचार कर अषटागी न कहा - अलखनरजन अपना दशरन नह दखाता बरहमा बोल - माता तम मझ सह-सह सथान बताओ आग-पीछ क उलट-सीधी बात करक मझ न बहलाओ म य बात नह मानता और न ह मझ अचछ लगती ह पहल तमन मझ बहकाया क म ह सिषटकतार ह और मझस अलग कछ भी नह ह और अब तम कहती हो क lsquoअलखनरजनrsquo तो ह पर वह अपना दशरन नह दखाता कया उसका दशरन पतर भी नह पायगा ऐसी पदा न होन वाल बात कय कहती हो इसलय मझ तमहार कहन पर भरोसा नह ह अतः इसी समय उस कतार का दशरन करा दिजय और मर सशय को दर किजय इसम जरा भी दर न करो अषटागी बोल - बरहमा म तमस सतय कहती ह क उस अलखनरजन क सात सवगर ह माथा ह और सात पाताल चरण ह यद तमह उसक दशरन क इचछा हो तो हाथ म फ़ल ल जाकर उस अपरत करत हय परणाम करो यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय

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अषटागी न मन म वचार कया - बरहमा मरा कहा मानता नह ह य कहता ह वद न मझ उपदश कया ह क एक परष नरजन ह परनत कोई उसक दशरन नह पाता ह अतः वह बोल - अर बालक सन अलखनरजन तमहारा पता ह पर तम उसका दशरन नह पा सकत यह म तमस सतयवचन कहती ह यह सनकर बरहमा न वयाकल होकर मा क चरण म सर रख दया और बोल - म पता का शीश सपशर व दशरन करक तमहार पास आता ह कहकर बरहमा lsquoउर दशाrsquo चल गय माता स आा मागकर वषण भी अपन पता क दशरन हत पाताल चल गय कवल शकर का मन इधर-उधर नह भटका वह माता क सवा करत हय कछ नह बोल

बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना

बहत दन बीत गय अषटागी न सोचा - मर पतर बरहमा और वषण न कया कया इसका कछ पता नह लगा व अब तक लौटकर कय नह आय तब सबस पहल वषण लौटकर माता क पास आय और बोल - पाताल म मझ पता क चरण तो नह मल उलट मरा शरर वषजवाला (शषनाग क परभाव स) स शयामल हो गया माता जब म पता नरजन क दशरन नह कर पाया तो म वयाकल हो गया और फ़र लौट आया अषटागी परसनन हो गयी और वषण को दलारत हय बोल - पतर तमन नशचय ह सतय कहा ह उधर पता क दशरन क बहद इचछक बरहमा चलत-चलत उस सथान पर पहच गय जहा न सयर था न चनदरमा कवल शनय था वहा बरहमा न अनक परकार स नरजन क सतत क जहा जयोत का परभाव था वहा भी धयान लगाया और ऐसा करत हय बहत दन बीत गय परनत बरहमा को नरजन क दशरन नह हय शनय म धयान करत हय बरहमा को अब lsquoचारयगrsquo बीत गय अषटागी को चनता हयी क म बरहमा क बना कस परकार सिषटरचना कर और कस परकार उस वापस लाऊ तब अषटागी न यिकत सोचत हय अपन शरर म उबटन लगाकर मल नकाला और उस मल स एक पतरीरपी कनया उतपनन क उस कनया म दवयशिकत का अश मलाया और कनया का नाम गायतरी रखा गायतरी उनह परणाम करती हयी बोल - माता तमन मझ कस कायर हत बनाया ह वह आा किजय

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अषटागी बोल - मर बात सनो बरहमा तमहारा बङा भाई ह वह पता क दशरन हत शनयआकाश क ओर गया ह उस बलाकर लाओ वह चाह अपन पता को खोजत-खोजत सारा जनम गवा द पर उनक दशरन नह कर पायगा अतः तम िजस वध स चाहो कोई उपाय करक उस बलाकर लाओ गायतरी बताय अनसार बरहमा क पास पहची उसन दखा धयान म लन बरहमा अपनी पलक तक नह झपकात थ वह कछ दन तक सोचती रह क कस वध दवारा बरहमा का धयान स धयान हटाकर अपनी ओर आकषरत कया जाय फ़र उसन अषटागी का धयान कया तब अषटागी न धयान म गायतरी को आदश दया क अपन हाथ स बरहमा को सपशर करो तब वह धयान स जागग गायतरी न ऐसा ह कया और बरहमा क चरणकमल का सपशर कया बरहमा धयान स जाग गया और उसका मन भटक गया वह वयाकल होकर बोला - त कौन पापी अपराधी ह जो मर धयान समाध छङायी म तझ शाप दता ह कयक तन आकर पता क दशरन का मरा धयान खडत कर दया गायतरी बोल - मझस कोई पाप नह हआ ह पहल तम सब बात समझ लो तब मझ शाप दो म सतय कहती ह तमहार माता न मझ तमहार पास भजा ह अतः शीघर चलो तमहार बना सिषट का वसतार कौन कर बरहमा बोल - म माता क पास कस परकार जाऊ अभी मझ पता क दशरन भी नह हय ह गायतरी बोल - तम पता क दशरन कभी नह पाओग अतः शीघर चलो वरना पछताओग बरहमा बोला - यद तम झठ गवाह दो क मन पता का दशरन पा लया ह और ऐसा सवय तमन भी अपनी आख स दखा ह क पता नरजन परकट हय और बरहमा न आदर स उनका शीश सपशर कया यद तम माता स इस परकार कहो तो म तमहार साथ चल गायतरी बोल - ह वद सनन और धारण करन वाल बरहमा सनो म झठ वचन नह बोलगी हा यद मर भाई तम मरा सवाथर परा करो तो म इस परकार क झठ बात कह दगी बरहमा बोल - म तमहार सवाथर वाल बात समझा नह अतः मझ सपषट कहो गायतरी बोल - यद तम मझ रतदान दो यानी मर साथ कामकरङा करो तो म ऐसा कह सकती ह यह मरा सवाथर ह फ़र भी तमहार लय परमाथर जानकर कहती ह बरहमा वचार करन लग क इस समय कया उचत होगा यद म इसक बात नह मानता तो य गवाह नह दगी और माता मझ मझ धककारगी क न तो मन पता क दशरन पाय और न कोई कायर सदध हआ अतः म इसक परसताव म पाप को वचारता ह तो मरा काम नह बनता इसलय रतदान दन क इसक इचछा पर करनी ह

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चाहय ऐसा ह नणरय करत हय बरहमा और गायतरी न मलकर वषयभोग कया उन दोन पर रतसख का रग परभाव दखान लगा बरहमा क मन म पता को दखन क जो इचछा थी उस वह भल गया और दोन क हरदय म कामवषय क उमग बढ़ गयी फ़र दोन न मलकर छलपणर बदध बनायी तब बरहमा न कहा - चलो माता क पास चलत ह गायतरी बोल - एक उपाय और करो जो मन सोचा ह वह यिकत ह क एक दसरा गवाह भी तयार कर लत ह बरहमा बोल - यह तो बहत अचछ बात ह तम वह करो िजस पर माता वशवास कर तब गायतरी न साी उतपनन करन हत अपन शरर स मल नकाला और उसम अपना अश मलाकर एक कनया बनायी बरहमा न उस कनया का नाम सावतरी रखवाया तब गायतरी न सावतरी को समझाया क तम चलकर माता स कहना क बरहमा न पता का दशरन पाया ह सावतरी बोल - जो तम कह रह हो उस म नह जानती और झठ गवाह दन म तो बहत हान ह बरहमा और गायतरी को बहत चता हयी उनहन सावतरी को अनक परकार स समझाया पर वह तयार नह हयी तब सावतरी अपन मन क बात बोल - यद बरहमा मझस रतपरसग कर तो म ऐसा कर सकती ह तब गायतरी न बरहमा को समझाया क सावतरी को रतदान दकर अपना काम बनाओ बरहमा न सावतरी को रतदान दया और बहत भार पाप अपन सर ल लया सावतरी का दसरा नाम बदल कर पहपावती कहकर अपनी बात सनात ह य तीन मलकर वहा गय जहा कनया आदकमार अषटागी थी तीन क परणाम करन पर अषटागी न पछा - बरहमा कया तमन अपन पता क दशरन पाय और यह दसर सतरी कहा स लाय बरहमा बोल - माता य दोन साी ह क मन पता क दशरन पाय इन दोन क सामन मन पता का शीश सपशर कया ह अषटागी बोल - गायतरी वचार करक कहो क तमन अपनी आख स कया दखा ह सतय बताओ बरहमा न अपन पता का दशरन पाया और इस दशरन का उस पर कया परभाव पङा गायतरी बोल - बरहमा न पता क शीश का दशरन पाया ह ऐसा मन अपनी आख स दखा ह क बरहमा अपन पता नरजन स मल माता यह सतय ह बरहमा न अपन पता पर फ़ल चढ़ाय और उनह फ़ल स यह पहपावती उस

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सथान स परकट हयी इसन भी पता का दशरन पाया ह आप इसस पछ क दखय इसम री भर भी झठ नह ह अषटागी बोल - पहपावती मझस सतय कहो और बताओ कया बरहमा न पता क सर पर पषप चढ़ाया पहपावती न कहा - माता म सतय कहती ह चतमरख बरहमा न पता क शीश क दशरन कय और शात एव िसथर मन स फ़ल चढ़ाय इस झठ गवाह को सनकर अषटागी परशान हो गयी और वचार करन लगी

अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना

अषटागी को बहद आशचयर हआ क बरहमा न नरजन क दशरन पा लय ह जबक अलखनरजन न परता कर रखी ह क उस कोई आख स दख नह पायगा फ़र य तीन लबार झठ-कपट कस कहत ह क उनहन नरजन को दखा ह उसी ण अषटागी न नरजन का धयान कया और बोल - मझ सतय बताओ नरजन न कहा - बरहमा न मरा दशरन नह पाया उसन तमहार पास आकर झठ गवाह दलवायी उन तीन न झठ बनाकर सब कहा ह वह सब मत मानो वह झठ ह अषटागी को बहत करोध आया उसन बरहमा को शाप दया - तमन मझस आकर झठ बोला अतः कोई तमहार पजा नह करगा एक तो तम झठ बोल और दसर तमन न करन योगय कमर (दषकमर) करक बहत बङा पाप अपन सर ल लया आग जो भी तमहार शाखा सतत होगी वह बहत झठ और पाप करगी तमहार सतत (बरहमा क वश अथवा बरहमा क नाम स पकार जान वाल बराहमण) परकट म तो बहत नयम धमर वरत उपवास पजा शच आद करग परनत उनक मन म भीतर पाप मल का वसतार रहगा तमहार व सतान वषणभकत स अहकार करगी इसलय नकर को परापत हगी तमहार वश वाल पराण क धमरकथाओ को लोग को समझायग परनत सवय उसका आचरण न करक दख पायग उनस जो और लोग ान क बात सनग उसक अनसार व भिकत कर सतय को बतायग बराहमण परमातमा का ान भिकत को छोङकर दसर दवताओ को ईशवर का अश बताकर उनक भिकत-पजा करायग और क नदा करक वकराल काल क मह म जायग अनक दवी-दवताओ क बहत परकार स पजा करक यजमान स दणा लग और दणा क कारण पशबल म पशओ का गला कटवायग दणा क लालच म यजमान को बबकफ़ बनायग व िजसको शषय बनायग उस भी परमाथर कलयाण का रासता नह दखायग परमाथर क तो व पास भी नह जायग परनत सवाथर क लय व सबको अपनी बात समझायग सवाथ होकर सबको अपनी सवाथरसदध का ान सनायग और ससार म अपनी सवा-पजा मजबत करग अपन को ऊचा और और को छोटा कहग इस परकार

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बरहमा तर वशज तर ह जस झठ और कपट हग शाप सनकर बरहमा मछरत होकर गर पङ फ़र अषटागी न गायतरी को शाप दया - गायतरी बरहमा क साथ कामभावना स हो जान स मनषयजनम म तर पाच पत हग तर गायरपी शरर म बल पत हग और व सात-पाच स भी अधक हग पशयोन म त गाय बनकर जनम लगी और न खान योगय पदाथर खायगी तमन अपन सवाथर क लय मझस झठ बोला और झठ वचन कह कया सोचकर तमन झठ गवाह द गायतरी न गलती मानकर शाप सवीकार कर लया फर अषटागी न सावतरी को दखा और बोल - तमन नाम तो सनदर पहपावती रखवा लया परनत झठ बोलकर तमन अपन जनम का नाश कर लया सन तमहार वशवास पर तमस कोई आशा रखकर कोई तमह नह पजगा दगध क सथान पर तमहारा वास होगा कामवषय क आशा लकर अब नकर क यातना भोगो जानबझ कर जो तमह सीचकर लगायगा उसक वश क हान होगी अब तम जाओ और व बनकर जनम तमहारा नाम कवङा कतक होगा कबीर बोल - अषटागी क शाप क कारण बरहमा गायतरी और सावतरी तीन बहत दखी हो गय अपन पापकमर स व बदधहन और दबरल हो गय कामवषय म परवत करान वाल कामनी सतरी कालरप-काम (वासना क इचछा) क अततीवर कला ह इसन सबको अपन शरर क सनदर चमर स डसा ह शकर बरहमा सनकाद और नारद जस कोई भी इसस बच नह पाय कोई बरला सनत-साधक बच पाता ह जो सदगर क सतयशबद को भल परकार अपनाता ह सदगर क शबदपरताप स य कालकला मनषय को नह वयापती अथारत कोई हान नह करती जो कलयाण क इचछा रखन वाला भकत मन वचन कमर स सतगर क शरीचरण क शरण गरहण करता ह पाप उसक पास नह आता कबीर साहब आग बोल - बरहमा वषण महश तीन को शाप दन क बाद अषटागी मन म पछतान लगी उसन सोचा शाप दत समय मझ बलकल दया नह आयी अब न जान नरजन मर साथ कसा वयवहार करगा उसी समय आकाशवाणी हयी - भवानी तमन यह कया कया मन तो तमह सिषटरचना क लय भजा था परनत तमन शाप दकर यह कसा चरतर कया ह भवानी ऊचा और बलवान ह नबरल को सताता ह और यह निशचत ह क वह इसक बदल दख पाता ह इसलय जब दवापर यग आयगा तब तमहार भी पाच पत हग भवानी न अपन शाप क बदल नरजन का शाप सना तो मन म सोच वचार कया पर मह स कछ न बोल वह सोचन लगी - मन बदल म शाप पाया नरजन म तो तर वश म ह जसा चाहो वयवहार करो फ़र अषटागी न वषण को दलारत हय कहा - पतर तम मर बात सनो सच-सच बताओ जब तम पता क चरण सपशर करन गय तब कया हआ पहल तो तमहारा शरर गोरा था तम शयाम रग कस हो गय

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वषण न कहा - पता क दशरन हत जब म पाताललोक पहचा तो शषनाग क पास पहच गया वहा उसक वष क तज स म ससत (अचत) हो गया मर शरर म उसक वष का तज समा गया िजसस वह शयाम हो गया तब एक आवाज हयी - वषण तम माता क पास लौट जाओ यह मरा सतयवचन ह क जस ह सतयग तरतायग बीत जायग तब दवापर म तमहारा कषणअवतार होगा उस समय तम शषनाग स अपना बदला लोग तब तम यमना नद पर जाकर नाग का मानमदरन करोग यह मरा नयम ह क जो भी ऊचा नीच वाल को सताता ह उसका बदला वह मझस पाता ह जो जीव दसर को दख दता ह उस म दख दता ह ह माता उस आवाज को सनकर म तमहार पास आ गया यह सतय ह क मझ पता क शरीचरण नह मल भवानी यह सनकर परसनन हो गयी और बोल - पतर सनो म तमह तमहार पता स मलाती ह और तमहार मन का भरम मटाती ह पहल तम बाहर क सथलदिषट (शरर क आख) छोङकर भीतर क ानदिषट (अनतर क आख तीसर आख) स दखो और अपन हरदय म मरा वचन परखो सथलदह क भीतर सममन क सवरप को ह कतार समझो मन क अलावा दसरा और कसी को कतार न मानो यह मन बहत ह चचल और गतशील ह ण भर म सवगर पाताल क दौङ लगाता ह और सवछनद होकर सब ओर वचरता ह मन एक ण म अननतकला दखाता ह और इस मन को कोई नह दख पाता मन को ह नराकार कहो मन क ह सहार दन-रात रहो ह वषण बाहर दनया स धयान हटाकर अतमरखी हो जाओ अपनी सरत और दिषट को पलट कर भकट मधय (भह क बीच आाचकर) पर या हरदय क शनय म जयोत को दखो जहा जयोत झलमल झालर सी परकाशत होती ह वषण न अपनी सवास को घमाकर भीतर आकाश क ओर दौङाया और (अतर) आकाशमागर म धयान लगाया हरदयगफ़ा म परवश कर धयान लगाया धयान परकया म वषण न पहल सवास का सयम पराणायाम स कया कमभक म जब उनहन सवास को रोका तो पराण ऊपर उठकर धयान क कनदर शनय म आया वहा वषण को lsquoअनहद-नादrsquo क गजरना सनाई द यह अनहद बाजा सनत हय वषण परसनन हो गय तब मन न उनह सफ़द लाल काला पीला आद रगीन परकाश दखाया धमरदास इसक बाद वषण को मन न अपन आपको दखाया और lsquoजयोतपरकाशrsquo कया िजस दखकर वह परसनन हो गय और बोल - ह माता आपक कपा स आज मन ईशवर को दखा धमरदास अचानक चककर बोल - सदगर यह सनकर मर भीतर एक भरम उतपनन हआ ह अषटागीकनया न जो lsquoमन का धयानrsquo बताया इसस तो समसत जीव भरमा गय ह यानी भरम म पङ गय ह कबीर बोल - धमरदास यह कालनरजन का सवभाव ह ह क इसक चककर म पङन स वषण सतयपरष का भद नह जान पाय (नरजन न अषटागी को पहल ह सचत कर आदश द दया था क सतयपरष का कोई भद जानन न पाय ऐसी माया फ़लाना) अब उस कामनी अषटागी क यह चाल दखो क उसन अमतसवरप सतयपरष को छपाकर वषरप कालनरजन को दखाया िजस lsquoजयोतrsquo का धयान अषटागी न बताया उस जयोत स कालनरजन

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को दसरा न समझो धमरदास अब तम यह वलण गढ़ सतय सनो जयोत का जसा परकटरप होता ह वसा ह गपतरप भी ह (दय मोमबी आद क जयोत लौ) जो हरदय क भीतर ह वह ह बाहर दखन म भी आता ह जब मनषय दपक जलाता ह तो उस जयोत क भाव-सवभाव को दखो और नणरय करो जयोत को दखकर पतगा बहत खश होता ह और परमवश अपना भला जानकर उसक पास आता ह लकन जयोत को सपशर करत ह पतगा भसम हो जाता ह इस परकार अानता म मतवाला हआ वह पतगा उसम जल मरता ह जयोतसवरप कालनरजन भी ऐसा ह ह जो भी जीवातमा उसक चककर म आ जाता ह कररकाल उस छोङता नह इस काल न करोङ वषण अवतार को खाया और अनक बरहमा शकर को खाया तथा अपन इशार पर नचाया काल दवारा दय जान वाल जीव क कौन-कौन स दख को कह वह लाख जीव नतय ह खाता ह ऐसा वह भयकर काल नदरयी ह धमरदास बोल - मर मन म सशय ह अषटागी को सतयपरष न उतपनन कया था और िजस परकार उतपनन कया वह सब कथा मन जानी कालनरजन न उस भी खा लया फ़र वह सतयपरष क परताप स बाहर आयी फ़र उस अषटागी न ऐसा धोखा कय कया क कालनरजन को तो परकट कया और सतयपरष का भद गपत रखा यहा तक क सतयपरष का भद उसन बरहमा वषण महश को भी नह बताया और उनस भी कालनरजन का धयान कराया अषटागी न कसा चरतर कया क सतयपरष को छोङकर कालनरजन क साथी हो गयी अथारत िजन सतयपरष का वह अश थी उसका धयान कय नह कराया कबीर साहब बोल - धमरदास नार का सवभाव तमह बताता ह िजसक घर म पतरी होती ह वह अनक जतन करक उस पालता-पोसता ह पहनन को वसतर खान को भोजन सोन को शयया रहन को घर आद सब सख दता ह और घर-बाहर सब जगह उस पर वशवास करता ह उसक माता-पता उसक हत म य आद करा क ववाह करत हय वधपवरक उस वदा करत ह माता-पता क घर स वदा होकर वह अपन पत क घर आ जाती ह तो उसक साथ सब गण म होकर परम म इतनी मगन हो जाती ह क अपन माता-पता सबको भला दती ह धमरदास नार का यह सवभाव ह इसलय नार सवभाववश अषटागी भी पराय सवभाव वाल ह हो गयी वह कालनरजन क साथ होकर उसी क होकर रह गयी और उसी क रग म रग गयी इसीलय उसन सतयपरष का भद परकट नह कया और वषण को कालनरजन का ह रप दखाया

काल-नरजन का धोखा

धमरदास बोल - यह रहसय तो मन जान लया अब आग का रहसय बताओ आग कया हआ कबीर साहब बोल - अषटागी न वषण को पयार कया और कहा बरहमा न तो वयभचार और झठ स अपनी मानमयारदा खो द वषण अब सब दवताओ म तमह ईशवर होग सब दवता तमह को शरषठ मानग और तमहार पजा करग िजसक इचछा तम मन म करोग वह कायर म परा करगी

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फ़र अषटागी शकर क पास गयी और बोल - शव तम मझस अपन मन क बात कहो तम जो चाहत हो वह मझस मागो अपन दोन पतर को तो मन उनक कमारनसार द दया ह शकर न हाथ जोङकर कहा - माता जसा तमन कहा वह मझ दिजय मरा यह शरर कभी नषट न हो ऐसा वर दिजय अषटागी न कहा - ऐसा नह हो सकता कयक lsquoआदपरषrsquo क अलावा कोई दसरा अमर नह हआ तम परमपवरक पराण पवन का योगसयम करक योगतप करो तो चार-यग तक तमहार दह बनी रहगी तब जहा तक परथवी आकाश होगा तमहार दह कभी नषट नह होगी वषण और महश ऐसा वर पाकर बहत परसनन हय पर बरहमा बहत उदास हय तब बरहमा वषण क पास पहच और बोल - भाई माता क वरदान स तम दवताओ म परमख और शरषठ हो माता तम पर दयाल हयी पर म उदास ह अब म माता को कया दोष द यह सब मर ह करनी का फ़ल ह तम कोई ऐसा उपाय करो िजसस मरा वश भी चल और माता का शाप भी भग न हो वषण बोल - बरहमा तम मन का भय और दख तयाग दो क माता न मझ शरषठ पद दया ह म सदा तमहार साथ तमहार सवा करगा तम बङ और म छोटा ह अतः तमहारा मान-सममान बराबर करगा जो कोई मरा भकत होगा वह तमहार भी वश क सवा करगा भाई म ससार म ऐसा मत-वशवास बना दगा क जो कोई पणयफ़ल क आशा करता हो और उसक लय वह जो भी य धमर पजा वरत आद जो भी कायर करता हो वह बना बराहमण क नह हग जो बराहमण क सवा करगा उस पर महापणय का परभाव होगा वह जीव मझ बहत पयारा होगा और म उस अपन समान बकठ म रखगा यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय वषण न उनक मन क चता मटा द बरहमा न कहा - मर भी यह चाह थी क मरा वश सखी हो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क फ़लाय जाल का वसतार दखो उसन खानी वाणी क मोह स मोहत कर सार ससार को ठग लया और सब इसक चककर म पङकर अपन आप ह इसक बधन म बध गय तथा परमातमा को सवय को अपन कलयाण को भल ह गय यह कालनरजन वभनन सख भोग आद तथा सवगर आद का लालच दकर सब जीव को भरमाता ह और उनस भात-भात क कमर करवाता ह फ़र उनह जनम-मरण क झल म झलाता हआ बहभात कषट दता ह ------------------- खानी बधन - सतरी-पत पतर-पतरी परवार धन-सप आद को ह सब कछ मानना खानी बधन ह वाणी बधन - भत-परत सवगर-नकर मान-अपमान आद कलपनाय करत हय वभनन चतन करना वाणी बधन ह

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कयक मन इन दोन जगह ह जीव को अटकाय रखता ह मोट माया सब तज झीनी तजी न जाय मान बङाई ईषयार फ़र लख चौरासी लाय सनतमत म खानी बधन को lsquoमोटमायाrsquo और वाणी बधन को lsquoझीनीमायाrsquo कहत ह बना ान क इन बधन स छट पाना जीव क लय बहद कठन ह खानी बधन क अतगरत मोटमाया को तयाग करत तो बहत लोग दख गय ह परनत झीनीमाया का तयाग बरल ह कर पात ह कामना वासनारपी झीनीमाया का बधन बहत ह जटल ह इसन सभी को भरम म फ़सा रखा ह इसक जाल म फ़सा कभी िसथर नह हो पाता अतः यह कालनरजन सब जीव को अपन जाल म फ़साकर बहत सताता ह राजा बल हरशचनदर वण वरोचन कणर यधषठर आद और भी परथवी क पराणय का हतचतन करन वाल कतन तयागी और दानी राजा हय इनको कालनरजन न कस दश म ल जाकर रखा यानी य सब भी काल क गाल म ह समा गय कालनरजन न इन सभी राजाओ क जो ददरशा क वह सारा ससार ह जानता ह क य सब बवश होकर काल क अधीन थ ससार जानता ह क कालनरजन स अलग न हो पान क कारण उनक हरदय क शदध नह हयी कालनरजन बहत परबल ह उसन सबक बदध हर ल ह य कालनरजन अभमानी lsquoमनrsquo हआ जीव क दह क भीतर ह रहता ह उसक परभाव म आकर जीव lsquoमन क तरगrsquo म वषयवासना म भला रहता ह िजसस वह अपन कलयाण क साधन नह कर पाता तब य अानी भरमत जीव अपन घर अमरलोक क तरफ़ पलटकर भी नह दखता और सतय स सदा अनजान ह रहता ह ---------------------- धमरदास बोल - मन यम यानी कालनरजन का धोखा तो पहचान लया ह अब बताओ क गायतरी क शाप का आग कया हआ कबीर साहब बोल - म तमहार सामन अगम (जहा पहचना असभव हो) ान कहता ह गायतरी न अषटागी दवारा दया शाप सवीकार तो कर लया पर उसन भी पलट कर अषटागी को शाप दया क माता मनषय जनम म जब म पाच परष क पतनी बन तो उन परष क माता तम बनो उस समय तम बना परष क ह पतर उतपनन करोगी और इस बात को ससार जानगा आग दवापर यग आन पर दोन न गायतरी न दरौपद और अषटागी न कनती क रप म दह धारण क और एक-दसर क शाप का फ़ल भगता जब यह शाप और उसका झगङा समापत हो गया तब फ़र स जगत क रचना हयी बरहमा वषण महश और अषटागी इन चारो न अणडज पणडज ऊषमज और सथावर इन चार खानय को उतपनन कया फ़र चार-खानय क अतगरत भनन-भनन सवभाव क चौरासी लाख योनया उतपनन क पहल अषटागी न अणडज यानी अड स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क बरहमा न पणडज यानी शरर क अनदर गभर स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क वषण न ऊषमज यानी मल पसीना पानी आद स

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उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क शकर न सथावर यानी व जङ पहाङ घास बल आद जीवखान क रचना क इस तरह स चार खानय को चार न रच दया और उसम जीव को बधन म डाल दया फ़र परथवी पर खती आद होन लगी तथा समयानसार लोग lsquoकारणrsquo lsquoकरणrsquo और lsquoकतारrsquo को समझन लग इस परकार चार खान क चौरासी का वसतार हो गया इन चार खानय को बोलन क लय lsquoचार परकार क वाणीrsquo द गयी बरहमा वषण महश और अषटागी दवारा सिषटरचना होन क कारण जीव उनह को सब कछ समझन लग और सतयपरष क तरफ़ स भल रह

चार खान चौरासी लाख योनय स आय मनषय क लण

धमरदास बोल - िजन चार खान क उतप हयी उनका वणरन मझ बताय चौरासीलाख योनय क जो वकराल धाराय ह उनम कस योन का कतना वसतार हआ वह भी बताय कबीर साहब बोल - म तमह योनभाव का वणरन सनाता ह चौरासी लाख योनय म नौ लाख जल क जीव और चौदह लाख पी होत ह उङन रगन वाल कम-कट आद साईस लाख होत ह व बल फ़ल आद सथावर तीस लाख होत ह और चारलाख परकार क मनषय हय इन सब योनय म मनषयदह सबस शरषठ ह कयक इसी स मो को जाना समझा और परापत कया जा सकता ह मनषययोन क अतरकत और कसी योन म मोपद या परमातमा का ान नह होता कयक और योन क जीव कमरबधन म भटकत रहत ह धमरदास बोल - जब सभी योनय क जीव एक समान ह तो फ़र सभी जीव को एक सा ान कय नह ह कबीर साहब बोल - जीव क असमानता क वजह तमह समझा कर कहता ह चारखान क जीव एक समान ह परनत शरररचना म ततववशष का अनतर ह सथावर खान म सफ़र lsquoएक ततवrsquo होता ह ऊषमज म lsquoदो ततवrsquo अणडज खान म lsquoतीन ततवrsquo और पणडज खान म lsquoचारततवrsquo होत ह इनस अलग मनषयशरर म पाच-ततव होत ह अब चार खान का ततवनणरय भी जान अणडज खान म तीन ततव - जल अिगन और वाय ह सथावर खान म एक ततव lsquoजलrsquo वशष ह ऊषमज खान म दो ततव वाय तथा अिगन बराबर समझो पणडज खान म चार ततव अिगन परथवी जल और वाय वशष ह पणडज खान म ह आन वाला मनषय - अिगन वाय परथवी जल आकाश स बना ह धमरदास बोल - मनषययोन म नर-नार ततव म एक समान ह परनत सबको एक समान ान कय नह ह सतोष मा दया शील आद सदगण स कोई मनषय तो शनय होता ह तथा कोई इन गण स परपणर होता ह कोई मनषय पापकमर करन वाला अपराधी होता ह तो कोई वदवान कोई दसर को दख दन वाल सवभाव का होता ह

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तो कोई अतकरोधी कालरप होता ह कोई मनषय कसी जीव को मारकर उसका आहार करता ह तो कोई जीव क परत दयाभाव रखता ह कोई आधयातम क बात सनकर सख पाता ह तो कोई कालनरजन क गण गाता ह मनषय म यह नानागण कस कारण स होत ह कबीर साहब बोल - म तमस मनषययोन क नर-नार क गण अवगण को भल परकार स कहता ह कस कारण स मनषय ानी और अानी भाव वाला होता ह वह पहचान सनो शर साप का गीदङ सयार कौवा गदध सअर बलल तथा इनक अलावा और भी अनक जीव ह जो इनक समान हसक पापयोन अभय मास आद खान वाल दषकम नीच गण वाल समझ जात ह इन योनय म स जो जीव आकर मनषययोन म जनम लता ह तो भी उसक पीछ क योन का सवभाव नह छटता उसक पवरकम का परभाव उसको अभी परापत मानवयोन म भी बना रहता ह अतः वह मनषयदह पाकर भी पवर क स कम म परवत रहता ह ऐस पशयोनय स आय जीव नरदह म होत हय भी परतय पश ह दखायी दत ह िजस योन स जो मनषय आया ह उसका सवभाव भी वसा ह होगा जो दसर पर घात करन वाल करर हसक पापकम तथा करोधी वषल सवभाव क जीव ह उनका भी वसा ह सवभाव बना रहता ह धमरदास मनषययोन म जनम लकर ऐस सवभाव को मटन का एक ह उपाय ह क कसी परकार सौभागय स सदगर मल जाय तो व ान दवारा अान स उतपनन इस परभाव को नषट कर दत ह और फ़र मनषय कागदशा (वषठा मल आद क समान वासनाओ क चाहत) क परभाव को भल जाता ह उसका अान पर तरह समापत हो जाता ह तब पवर पशयोन और अभी क मनषययोन का यह दवद छट जाता ह सदगरदव ान क आधार ह व अपन शरण म आय हय जीव को ानअिगन म तपाकर एव उपाय स घस पीटकर सतयान उपदश अनसार उस वसा ह बना लत ह और नरतर साधना अभयास स उस पर परभावी पवरयोनय क ससकार समापत कर दत ह िजस परकार धोबी वसतर धोता ह और साबन मलन स वसतर साफ़ हो जाता ह तब वसतर म यद थोङा सा ह मल हो तो वह थोङ ह महनत स साफ़ हो जाता ह परनत वसतर बहत अधक गनदा हो तो उसको धोन म अधक महनत क आवशयकता होती ह वसतर क भात ह जीव क सवभाव को जानो कोई-कोई जीव जो अकर होता ह ऐसा जीव सदगर क थोङ स ान को ह वचार कर शीघर गरहण कर लता ह उस ान का सकत ह बहत होता ह अधक ान क आवशयकता नह होती ऐसा शषय ह सचचान का अधकार होता ह धमरदास बोल - यह तो थोङ सी योनय क बात हयी अब चारखान क जीव क बात कह चारखान क जीव जब मनषययोन म आत ह उनक लण कया ह िजस जानकर म सावधान हो जाऊ कबीर साहब बोल - चारखान क चौरासी लाख योनय म भरमाया भटकता जीव जब बङ भागय स मनषयदह धारण करन का अवसर पाता ह तब उसक अचछ-बर लण का भद तमस कहता ह िजसको बहत ह आलस नीद आती ह तथा कामी करोधी और दरदर होता ह वह अणडज खान स आया ह जो बहत चचल ह और चोर करना िजस अचछा लगता ह धन-माया क बहत इचछा रखता ह दसर क चगल नदा िजस अचछ लगती ह इसी सवभाव क कारण वह दसर क घर वन तथा झाङ म आग लगाता ह तथा चचल होन क कारण कभी बहत रोता ह

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कभी नाचता-कदता ह कभी मगल गाता ह भतपरत क सवा उसक मन को बहत अचछ लगती ह कसी को कछ दता हआ दखकर वह मन म चढ़ता ह कसी भी वषय पर सबस वाद-ववाद करता ह ान धयान उसक मन म कछ नह आत वह गर सदगर को नह पहचानता न मानता वदशासतर को भी नह मानता वह अपन मन स ह छोटा बङा बनता रहता ह और समझता ह क मर समान दसरा कोई नह ह उसक वसतर मल तथा आख कचङयकत और मह स लार बहती ह वह अकसर नहाता भी नह ह जआ चौपङ क खल म मन लगाता ह उसका पाव लमबा और कभी-कभी वह कबङा भी होता ह य सब अणडज खान स आय मनषय क लण ह अब ऊषमज क बार म कहता ह यह जगल म जाकर शकार करत हय बहत जीव को मारकर खश होता ह इन जीव को मारकर अनक तरह स पकाकर वह खाता ह वह सदगर क नाम-ान क नदा करता ह गर क बराई और नदा करक वह गर क महतव को मटान का परयास करता ह वह शबदउपदश और गर क नदा करता ह वह बहत बात करता ह तथा बहत अकङता ह और अहकार क कारण बहत ान बनाकर समझाता ह वह सभा म झठ वचन कहता ह टङ पगङ बाधता ह िजसका कनारा छाती तक लटकता ह दया धमर उसक मन म नह होता कोई पणय-धमर करता ह वह उसक हसी उङाता ह माला पहनता ह और चदन का तलक लगाता ह तथा शदध सफ़द वसतर पहनकर बाजार आद म घमता ह वह अनदर स पापी और बाहर स दयावान दखता ह ऐसा अधम-नीच जीव यम क हाथ बक जाता ह उसक दात लमब तथा बदन भयानक होता ह उसक पील नतर होत ह कबीर साहब बोल - अब सथावर खान स आय जीव (मनषय) क लण सनो इसस आया जीव भस क समान शरर धारण करता ह ऐस जीव क बदध णक होती ह अतः उनको पलटन म दर नह लगती वह कमर म फ़ टा सर पर पगङ बाधता ह तथा राजदरबार क सवा करता ह कमर म तलवार कटार बाधता ह इधर-उधर दखता हआ मन स सन (आख मारकर इशारा करना) मारता ह परायी सतरी को सन स बलाता ह मह स रसभर मीठ बात कहता ह िजनम कामवासना का परभाव होता ह वह दसर क घर को कदिषट स ताकता ह तथा जाकर चोर करता ह पकङ जान पर राजा क पास लाया जाता ह सारा ससार भी उसक हसी उङाता ह फ़र भी उसको लाज नह आती एक ण म ह दवी-दवता क पजा करन क सोचता ह दसर ह ण वचार बदल दता ह कभी उसका मन कसी क सवा म लग जाता ह फ़र जलद ह वह उसको भल भी जाता ह एक ण म ह वह (कोई) कताब पढ़कर ानी बन जाता ह एक ण म ह वह सबक घर आना जाना घमना करता ह एक ण म बहादर एक ण म ह कायर भी हो जाता ह एक ण म ह मन म साह (धनी) हो जाता ह और दसर ण म ह चोर करन क सोचता ह एक ण म धमर और दसर ण म अधमर भी करता ह इस परकार ण परतण मन क बदलत भाव क साथ वह सखी दखी होता ह भोजन करत समय माथा खजाता ह तथा फ़र बाह जाघ पर रगङता ह भोजन करता ह फ़र सो जाता ह जो जगाता ह उस मारन दौङता ह और गसस स िजसक आख लाल हो जाती ह और उसका भद कहा तक कह धमरदास अब पणडज खान स आय जीव का लण सनो पणडज खान स आया जीव वरागी होता ह तथा योगसाधना क मदराओ म उनमनी-समाध का मत आद धारण करन वाला होता ह और वह जीव वद आद का वचार कर धमर-कमर करता ह तीथर वरत धयान योग समाध म लगन वाला होता ह उसका मन गरचरण म

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भल परकार लगता ह वह वद पराण का ानी होकर बहत ान करता ह और सभा म बठकर मधर वातारलाप करता ह राज मलन का तथा राज क कायर करन का और सतरीसख को बहत मानता ह कभी भी अपन मन म शका नह लाता और धन-सप क सख को मानता ह बसतर पर सनदर शया बछाता ह उस उम शदध साितवक पौिषटक भोजन बहत अचछा लगता ह और लग सपार पान बीङा आद खाता ह पणयकमर म धन खचर करता ह उसक आख म तज और शरर म परषाथर होता ह सवगर सदा उसक वश म ह वह कह भी दवी-दवता को दखता ह तो माथा झकाता ह उसका धयान समरन म बहत मन लगता ह तथा वह सदा गर क अधीन रहता ह

चौरासी कय बनी

कबीर साहब बोल - मन चारो खान क लण तमस कह अब सनो मनषययोन क अवध समापत होन स पहल कसी कारण स दह छट जाय वह फ़र स ससार म मनषय जनम लता ह अब उसक बार म सनो धमरदास बोल - मर मन म एक सशय ह जब चौरासी लाख योनय म भरमन भटकन क बाद य जीव मनषयदह पाता ह और मनषयदह पाया हआ य जीव फ़र दह (असमय) छटन पर पनः मनषयदह पाता ह तो मतय होन और पनः मनषयदह पान क यह सध कस हयी और उस पनः मनषय जनम लन वाल क गण लण भी कहो कबीर साहब बोल - आय शष रहत जो मनषय मर जाता ह फ़र वह शष बची आय को परा करन हत मनषयशरर धारण करक आता ह जो अानी मखर फ़र भी इस पर वशवास न कर वह दपक बी जलाकर दख और बहत परकार स उस दपक म तल भर परनत वाय का झका (मतय आघात) लगत ह वह दपक बझ जाता ह (भल ह उसम खब तल भरा हो) उस बझ दपक को आग स फ़र जलाय तो वह दपक फ़र स जल जाता ह इसी परकार जीव मनषय फ़र स दह धारण करता ह अब उस मनषय क लण भी सनो उसका भद तमस नह छपाऊगा मनषय स फ़र मनषय का शरर पान वाला वह मनषय शरवीर होता ह भय और डर उसक पास भी नह फ़टकता मोहमाया ममता उस नह वयापत उस दखकर दशमन डर स कापत ह वह सतगर क सतयशबद को वशवासपवरक मानता ह नदा को वह जानता तक नह वह सदा सदगर क शरीचरण म अपना मन लगाता ह और सबस परममयी वाणी बोलता ह अानी होकर ान को पछता समझता ह उस सतयनाम का ान और परचय करना बहद अचछा लगता ह धमरदास ऐस लण स यकत मनषय स ानवातार करन का अवसर कभी खोना नह चाहय और अवसर मलत ह उसस ानचचार करनी चाहय जो जीव सदगर क शबदरपी उपदश को पाता ह और भल परकार गरहण करता ह उसक जनम-जनम का पाप और अानरपी मल छट जाता ह सतयनाम का परमभाव स समरन करन वाला जीव भयानक काल-माया क फ़द स छटकर सतयलोक जाता ह सदगर क शबदउपदश को हरदय म धारण करन वाला जीव अमतमय अनमोल होता ह वह सतयनाम साधना क बल पर अपन असलघर अमरलोक चला जाता ह जहा सदगर क हसजीव सदा आननद करत ह और अमत आहार करत ह

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जबक कालनरजन क जीव कागदशा (वषठा मल क समान घणत वासनाओ क लालची) म भटकत हय जनम-मरण क कालझल म झलत रहत ह सतयनाम क परताप स कालनरजन जीव को सतयलोक जान स नह रोकता कयक महाबल कालनरजन कवल इसी स भयभीत रहता ह उस जीव पर सदगर क वश क छाप दखकर काल बवशी स सर झकाकर रह जाता ह धमरदास बोल - आपन चारखान क जो वचार कह वो मन सन अब म जानना चाहता ह क चौरासी लाख योनय क धारा का वसतार कस कारण स कया गया और इस अवनाशी जीव को अनगनत कषट म डाल दया गया मनषय क कारण ह यह सिषट बनायी गयी ह या क कोई और जीव को भी भोग भगतन क लय बनायी गयी ह कबीर साहब बोल - सभी योनय म शरषठ मनषयदह सख दन वाल ह इस मनषयदह म ह गरान समाता ह िजसको परापत कर मनषय अपना कलयाण कर सकता ह ऐसा मनषयशरर पाकर जीव जहा भी जाता ह सदगर क भिकत क बना दख ह पाता ह मनषयदह को पान क लय जीव को चौरासी क भयानक महाजाल स गजरना ह होता ह फ़र भी यह दह पाकर मनषय अान और पाप म ह लगा रहता ह तो उसका घोरपतन निशचत ह उस फ़र स भयकर कषटदायक (साढ़ बारह लाख साल आय क) चौरासी धारा स गजरना होगा दर-ब-दर भटकना होगा सतयान क बना मनषय तचछ वषयभोग क पीछ भागता हआ अपना जीवन बना परमाथर क ह नषट कर लता ह ऐस जीव का कलयाण कस तरह हो सकता ह उस मो भला कस मलगा अतः इस लय को परापत करन क लय सतगर क तलाश और उनक सवा भिकत अतआवशयक ह धमरदास मनषय क भोगउददशय स चौरासी धारा या चौरासी लाख योनया रची गयी ह सासारक-माया और मन-इिनदरय क वषय क मोह म पङकर मनषय क बदध का नाश हो जाता ह वह मढ़ अानी ह हो जाता ह और वह सदगर क शबदउपदश को नह सनता तो वह मनषय चौरासी को नह छोङ पाता उस अानी जीव को भयकर कालनरजन चौरासी म लाकर डालता ह जहा भोजन नीद डर और मथन क अतरकत कसी पदाथर का ान या अनय ान बलकल नह ह चौरासी लाख योनय क वषयवासना क परबलससकार क वशीभत हआ य जीव बारबार कररकाल क मह म जाता ह और अतयनत दखदायी जनम-मरण को भोगता हआ भी य अपन कलयाण का साधन नह करता धमरदास अानी जीव क इस घोर वप सकट को जानकर उनह सावधान करन क लय (सनत न) पकारा और बहत परकार स समझाया क मनषयशरर पाकर सतयनाम गरहण करो और इस सतयनाम क परताप स अपन नजधाम सतयलोक को परापत करो आदपरष क वदह (बना वाणी स जपा जान वाला) और िसथर आदनाम (जो शरआत स एक ह ह) को जो जाच-समझ कर (सचचगर स मतलब य नाम मह स जपन क बजाय धनरप होकर परकट हो जाय यह सचचगर और सचचीदा क पहचान ह) जो जीव गरहण करता ह उसका निशचत ह कलयाण होता ह गर स परापत ान स आचरण करता हआ वह जीव सार को गरहण करन वाला नीर-ीर ववक (हस क तरह दध और पानी क अनतर को जानन वाला) हो जाता ह और कौव क गत (साधारण और दारहत मनषय) तयाग कर हसगत वाला हो जाता ह इस परकार क ानदिषट क परापत होन स वह वनाशी तथा अवनाशी का वचार करक

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इस नशवर नाशवान जङ दह क भीतर ह अगोचर और अवनाशी परमातमा को दखता ह धमरदास वचार करो वह नःअर (शाशवत नाम) ह सार ह जो अर (जयोत िजस पर सभी योनय क शरर बनत ह धयान क एक ऊची िसथत) स परापत होता ह सब जङततव स पर वह असल सारततव ह

कालनरजन क चालबाजी

धमरदास बोल - साहब चार खानय क रचना कर फ़र कया कया यह मझ सपषट कहो कबीर साहब बोल - धमरदास यह कालनरजन क चालबाजी ह िजस पडत काजी नह समझत और व इस lsquoभक कालनरजनrsquo को भरमवश सवामी (भगवान आद) कहत ह और सतयपरष क नाम ानरपी अमत को तयाग कर माया का वषयरपी वष खात ह इन चारो अषटागी (आदशिकत) बरहमा वषण महश न मलकर यह सिषटरचना क और उनहन जीव क दह को कचचा रग दया इसीलय मनषयदह म आय समय आद क अनसार बदलाव होता रहता ह पाच-ततव परथवी जल वाय अिगन आकाश और तीन गण सत रज तम स दह क रचना हयी ह उसक साथ चौदह-चौदह यम लगाय गय ह इस परकार मनषयदह क रचना कर काल न उस मार खाया तथा फ़र फ़र उतपनन कया इस तरह मनषय सदा जनम-मरण क चककर म पङा ह रहता ह ओकार वद का मल अथारत आधार ह और इस ओकार म ह ससार भला-भला फ़र रहा ह ससार क लोग न ओकार को ह ईशवर परमातमा सब कछ मान लया व इसम उलझ कर सब ान भल गय और तरह-तरह स इसी क वयाखया करन लग यह ओकार ह नरजन ह परनत आदपरष का सतयनाम जो वदह ह उस गपत समझो कालमाया स पर वह lsquoआदनामrsquo गपत ह ह धमरदास फ़र बरहमा न अठासी हजार ऋषय को उतपनन कया िजसस कालनरजन का परभाव बहत बढ़ गया (कयक व उसी का गण तो गात ह) बरहमा स जो जीव उतपनन हय वो बराहमण कहलाय बराहमण न आग इसी शा क लय शासतर का वसतार कर दया (इसस कालनरजन का परभाव और भी बढ़ा कयक उनम उसी क बनावट महमा गायी गयी ह) बरहमा न समत शासतर पराण आद धमरगरनथ का वसतरत वणरन कया और उसम समसत जीव को बर तरह उलझा दया (जबक परमातमा को जानन का सीधा सरल आसान रासता lsquoसहजयोगrsquo ह) जीव को बरहमा न भटका दया और शासतर म तरह-तरह क कमरकाड पजा उपासना क नयम वध बताकर जीव को सतय स वमख कर भयानक कालनरजन क मह म डालकर उसी (अलखनरजन) क महमा को बताकर झठा धयान (और ान) कराया इस तरह lsquoवदमतrsquo स सब भरमत हो गय और सतयपरष क रहसय को न जान सक धमरदास नरकार (नरकार) नरजन न यह कसा झठा तमाशा कया उस चरतर को भी समझो कालनरजन (मन

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दवारा) आसरभाव उतपनन कर परताङत जीव को सताता ह दवता ऋष मन सभी को परताङत करता ह फ़र अवतार (दखाव क लय नजमहमा क लय) धारण कर रक बनता ह (जबक सबस बङा भक सवय ह) और फ़र असर का सहार (क नाटक) करता ह और इस तरह सबस अपनी महमा का वशष गणगान करवाता ह िजसक कारण जीव उस शिकतसपनन और सब कछ जानकर उसी स आशा बाधत ह क यह हमारा महान रक ह वह (वभनन अवतार दवारा) अपनी रककला दखाकर अनत म सब जीव का भण कर लता ह (यहा तक क अपन पतर बरहमा वषण महश को भी नह छोङता) जीवन भर उसक नाम ान जप पजा आद क चककर म पङा जीव अनत समय पछताता ह जब काल उस बरहमी स खाता ह (मतय स कछ पहल अपनी आगामी गत पता लग जाती ह)

तपतशला पर काल पीङत जीव क पकार

धमरदास अब आग सनो बरहमा न अड़सठ तीथर सथापत कर पाप पणय और कमर अकमर का वणरन कया फ़र बरहमा न बारह राश साईस नतर सात वार और पदरह तथ का वधान रचा इस परकार जयोतष शासतर क रचना हयी अब आग क बात सनो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन का जाल फ़लान क लय बनाय गय अड़सठ तीथर य ह 1 काशी 2 परयाग 3 नमषारणय 4 गया 5 करतर 6 परभास 7 पषकर 8 वशवशवर 9 अटटहास 10 महदर 11 उजजन 12 मरकोट 13 शककणर 14 गोकणर 15 रदरकोट 16 सथलशवर 17 हषरत 18 वषभधवज 19 कदार 20 मधयमशवर 21 सपणर 22 कातरकशवर 23 रामशवर 24 कनखल 25 भदरकणर 26 दडक 27 चदणडा 28 कमजागल 29 एकागर 30 छागलय 31 कालजर 32 मडकशवर 33 मथरा 34 मरकशवर 35 हरशचदर 36 सदधाथर तर 37 वामशवर 38 कककटशवर 39 भसमगातर 40 अमरकटक 41 तरसधया 42 वरजा 43 अक शवर 44 दवारका 45 दषकणर 46 करबीर 47 जलशवर 48 शरीशल 49 अयोधया 50 जगननाथपर 51 कारोहण 52 दवका 53 भरव 54 पवरसागर 55 सपतगोदावर 56 नमलशवर 57 कणरकार 58 कलाश 59 गगादवार 60 जललग 61 बङवागन 62 बदरकाशरम 63 शरषठ सथान 64 वधयाचल 65 हमकट 66 गधमादन 67 लगशवर 68 हरदवार और बारह राशया - मष वष मथन ककर सह कनया तला विशचक धन मकर कभ मीनय ह तथा साईस नतर - अिशवनी भरणी कका रोहणी मगशरा आदरार पनवरस पषय आशलषा मघा पवारफ़ालगनी उराफ़ालगनी हसत चतरा सवात वशाखा अनराधा जयषठा मल पवारषाढा उराषाढा शरवण धनरषठा शतभषा पवारभादरपरद उराभादपरद रवतीय ह सात दन - रववार सोमवार मगलवार बधवार बहसपतवार शकरवार शनवार पदरह तथया - परथम या पङवा दज तीज चौथ पचमी षषठ सपतमी अषटमी नवमी दशमी एकादशी दवादशी तरयोदशी चौदस पणरमा

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(शकलप) दसरा एक कषणप भी होता ह िजसक सभी तथया ऐसी ह होती ह कवल उसक पदरहवी तथ को पणरमा क सथान पर अमावसया कहत ह धमरदास फ़र बरहमा न चारो यग क समय को एक नयम स वसतार करत हय बाध दया एक पलक झपकन म िजतना समय लगता ह उस पल कहत ह साठपलक को एकघङ कहत ह एकघङ चौबीस मनट क होती ह साढ़सात घङ का एकपहर होता ह आठपहर का दन-रात चौबीस घट होत ह सात दन का एक सपताह और पदरह दन का एकप होता ह दो-प का एक महना और बारह महन का एक वषर होता ह सतरह लाख अटठाईस हजार वषर का सतयग बारह लाख छयानब हजार का तरता और आठ लाख चौसठ हजार का दवापर तथा चार लाख बीस हजार का कलयग होता ह चार यग को मलाकर एक महायग होता ह (यग का समय गलतबिलक बहत जयादा गलत ह य ववरण कबीर साहब दवारा बताया नह ह बिलक अनय आधार पर ह कलयग सफ़र बाईस हजार वषर का होता ह और तरता लगभग अड़तीस हजार वषर का होता ह) धमरदास बारह महन म कातरक और माघ इन दो महन को पणय वाला कह दया िजसस जीव वभनन धमर-कमर कर और उलझा रह जीव को इस परकार भरम म डालन वाल कालनरजन (और उसक परवार) क चालाक कोई बरला ह समझ पाता ह परतयक तीथर-धाम का बहत महातमय (महमा) बताया िजसस क मोहवश जीव लालच म तीथ क ओर भागन लग बहत सी कामनाओ क पतर क लय लोग तीथ म नहाकर पानी और पतथर स बनी दवी-दवता क मत रय को पजन लग लोग आतमा परमातमा (क ान) को भलकर इस झठपजा क भरम म पङ गय इस तरह काल न सब जीव को बर तरह उलझा दया सदगर क सतयशबद उपदश बना जीव सासारक कलश काम करोध शोक मोह चता आद स नह बच सकता सदगर क नाम बना वह यमरपी काल क मह म ह जायगा और बहत स दख को भोगगा वासतव म जीव कालनरजन का भय मानकर ह पणय कमाता ह थोङ फ़ल स धन-सप आद स उसक भख शानत नह होती जबतक जीव सतयपरष स डोर नह जोङता सदगर स दा लकर भिकत नह करता तबतक चौरासी लाख योनय म बारबार आता-जाता रहगा यह कालनरजन अपनी असीमकला जीव पर लगाता ह और उस भरमाता ह िजसस जीव सतयपरष का भद नह जान पाता लाभ क लय जीव लोभवश शासतर म बताय कम क और दौङता फ़रता ह और उसस फ़ल पान क आशा करता ह इस परकार जीव को झठ आशा बधाकर काल धरकर खा जाता ह कालनरजन क चालाक कोई पहचान नह पाता और कालनरजन शासतर दवारा पाप-पणय क कम स सवगर-नकर क परािपत और वषयभोग क आशा बधाकर जीव को चौरासी लाख योनय म नचाता ह पहल सतयग म इस कालनरजन का यह वयवहार था क वह जीव को लकर आहार करता था वह एक लाख जीव नतय खाता था ऐसा महान और अपार बलशाल कालनरजन कसाई ह वहा रात-दन तपतशला जलती थी कालनरजन जीव को पकङ कर उस पर धरता था उस तपतशला पर उन जीव को जलाता था और बहत दख दता था फ़र वह उनह चौरासी म डाल दता था उसक बाद जीव को तमाम योनय म भरमाता था इस परकार कालनरजन जीव को अनक परकार क बहत स कषट दता था

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तब अनकानक जीव न अनक परकार स दखी होकर पकारा क कालनरजन हम जीव को अपार कषट द रहा ह इस यमकाल का दया हआ कषट हमस सहा नह जाता सदगर हमार सहायता करो आप हमार रा करो सतयपरष न जीव को इस परकार पीङत होत दखा तब उनह दया आयी उन दया क भडार सवामी न मझ (ानी) नाम स बलाया और बहत परकार समझा कर कहा - ानी तम जाकर जीव को चताओ तमहार दशरन स जीव शीतल हो जायग जाकर उनक तपन दर करो सतयपरष क आा स म वहा आया कालनरजन जीव को सता रहा था और दखी जीव उसक सकत पर नाच रह थ जीव दख स छटपटा रह थ म वहा जाकर खङा हो गया जीव न मझ दखकर पकारा - ह साहब हम इस दख स उबार लो तब मन lsquoसतयशबदrsquo पकारा और उपदश कया फ़र सतयपरष क lsquoसारशबदrsquo स जीव को जोङ दया दख स जलत जीव शािनत महसस करन लग तब सब जीव न सतत क - ह परष आप धनय हो आपन हम दख स जलत हओ क तपन बझायी हम इस कालनरजन क जाल स छङा लो परभ दया करो मन जीव को समझाया - यद म अपनी शिकत स तमहारा उदधार करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह कयक सतयपरष क वचन अनसार सदउपदश दवारा ह आतमान स जीव का उदधार करना ह अतः जब तम यहा स जाकर मनषयदह धारण करोग तब तम मर शबदउपदश को वशवास स गरहण करना िजसस तमहारा उदधार होगा उस समय म सतयपरष क नाम समरन क सह वध और सारशबद का उपदश करगा तब तम ववक होकर सतयलोक जाओग और सदा क लय कालनरजन क बधन स मकत हो जाओग जो कोई भी मन वचन कमर स समरन करता ह और जहा अपनी आशा रखता ह वहा उसका वास होता ह अतः ससार म जाकर दह धारण कर िजसक आशा करोग और उस समय यद तम सतयपरष को भल गय तो कालनरजन तमको धर कर खा जायगा जीव बोल - ह परातन परष सनो मनषयदह धारण करक (मायारचत वासनाओ म फ़सकर) यह ान भल ह जाता ह अतः याद नह रहता पहल हमन सतयपरष जानकर कालनरजन का समरन कया क वह सब कछ ह कयक वद पराण सभी यह बतात ह वद-पराण सभी एकमत होकर यह कहत ह क नराकार नरजन स परम करो ततीस करोङ दवता मनषय और मन सबको नरजन न अपन वभनन झठ मत क डोर म बाध रखा ह उसी क झठमत स हमन मकत होन क आशा क परनत वह हमार भल थी अब हम सब सह-सह रप स दखायी द रहा ह और समझ म आ गया ह क वह सब दखदायी यम क कालफ़ास ह ह कबीर साहब बोल - जीव यह सब काल का धोखा ह काल न वभनन मत-मतातर का फ़दा बहत अधक फ़लाया ह कालनरजन न अनक कला मत का परदशरन कया और जीव को उसम फ़सान क लय बहत ठाठ फ़लाया (तरह-तरह क भोगवासना बनायी) और सबको तीथर वरत य एव याद कमर काड क फ़द म फ़ासा िजसस कोई मकत नह हो पाता

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फ़र आप शरर धारण करक परकट होता ह और (अवतार दवारा) अपनी वशषमहमा करवाता ह और नाना परकार क गण कमर आद करक सब जीव को बधन म बाध दता ह कालनरजन और अषटागी न जीव को फ़सान क लय अनक मायाजाल रच वद शासतर पराण समत आद क भरामकजाल स भयकरकाल न मिकत का रासता ह बनद कर दया जीव मनषयदह धारण करक भी अपन कलयाण क लय उसी स आशा करता ह कालनरजन क शासतर आद मतरपी कलाए बहत भयकर ह और जीव उसक वश म पङ ह सतयनाम क बना जीव काल का दड भोगत ह इस तरह जीव को बारबार समझा कर म सतयपरष क पास गया और उनको काल दवारा दय जा रह वभनन दख का वणरन कया दयाल सतयपरष तो दया क भडार और सबक सवामी ह व जीव क मल अभमानरहत और नषकामी ह तब सतयपरष न बहत परकार स समझा कर कहा - काल क भरम स छङान क लय जीव को नाम उपदश स सावधान करो

कालनरजन और कबीर का समझौता

धमरदास न कबीर साहब स कहा - परभो अब मझ वह वतात कहो जब आप पहल बार इस ससार म आय कबीर बोल - धमरदास जो तमन पछा वह यग-यग क कथा ह जो म तमस कहता ह जब सतयपरष न मझ आा क तब मन जीव क भलाई क लय परथवी क ओर पाव बढ़ाया और वकराल कालनरजन क तर म आ गया उस यग म मरा नाम अचत था जात हय मझ अनयायी कालनरजन मला वह मर पास आया और झगङत हय महाकरोध स बोला - योगजीत यहा कस आय कया मझ मारन आय हो ह परष अपन आन का कारण मझ बताओ मन कहा - नरजन म जीव का उदधार करन सतपरष दवारा भजा गया ह अनयायी सन तमन बहत कपट चतराई क भोलभाल जीव को तमन बहत भरम म डाला ह और बारबार सताया सतपरष क महमा को तमन गपत रखा और अपनी महमा का बढ़ाचढ़ा कर बखान कया तम तपतशला पर जीव को जलात हो और उस जला-पका कर खात हय अपना सवाद परा करत हो तमन ऐसा कषट जीव को दया तब सतपरष न मझ आा द क म तर जाल म फ़स जीव को सावधान करक सतलोक ल जाऊ और कषट स जीव को मिकत दलाऊ इसलय म ससार म जा रहा ह िजसस जीव को सतयान दकर सतलोक भज यह बात सनत ह कालनरजन भयकर रप हो गया और मझ भय दखान लगा फ़र वह करोध स बोला - मन सर यग तक सतपरष क सवा तपसया क तब सतपरष न मझ तीनलोक का राजय और उसक मान बङाई द

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फ़र दोबारा मन चौसठ यग तक सवा तपसया क तब सतपरष न सिषट रचन हत मझ अषटागी कनया (आदयाशिकत) को दया और उस समय तमन मझ मारकर मानसरोवर दप स नकाल दया था योगजीत अब म तमह नह छोङगा और तमह मारकर अपना बदला लगा म तमह अचछ तरह समझ गया मन कहा - धमरराय नरजन म तमस नह डरता मझ सतपरष का बल और तज परापत ह अर काल तरा मझ कोई डर नह तम मरा कछ नह बगाङ सकत कहकर मन उसी समय सतयपरष क परताप का समरन करक lsquoदवयशबद अगrsquo स काल को मारा मन उस पर दिषट डाल तो उसी समय उसका माथा काला पङ गया जस कसी पी क पख चोटल होन पर वह जमीन पर पङा बबस होकर दखता ह पर उङ नह पाता ठक यह हाल कालनरजन का था वह करोध कर रहा था पर कछ नह कर पा रहा था तब वह मर चरण म गर पङा और बोला - ानीजी म वनती करता ह क मन आपको भाई समझ कर वरोध कया यह मझस बङ गलती हयी म आपको सतयपरष क समान समझता ह आप बङ हो शिकतसमपनन हो गलती करन वाल अपराधी को भी मा दत हो जस सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया वस ह आप भी मझ कछ परसकार दो सोलह सत म आप ईशवर हो ानीजी आप और सतयपरष दोन एक समान हो मन कहा - नरजनराव तम तो सतयपरष क वश (सोलह सत) म कालख क समान कलकत हय हो म जीव को lsquoसतयशबदrsquo का उपदश करक सतयनाम मजबत करा क बचान आया ह भवसागर स जीव को मकत करान को आया ह यद तम इसम वघन डालत हो तो म इसी समय तमको यहा स नकाल दगा नरजन वनती करत हय बोला - म आपका एव सतयपरष दोन का सवक ह इसक अतरकत म कछ नह जानता ानीजी आपस वनती ह क ऐसा कछ मत करो िजसस मरा बगाङ हो और जस सतयपरष न मझ राजय दया वस आप भी दो तो म आपका वचन मानगा फ़र आप मिकत क लय हसजीव मझस ल लिजय तात म वनती करता ह क मर बात मानो आपका कहना य भरमत जीव नह मानग और उलट मरा प लकर आपस वादववाद करग कयक मन मोहरपी फ़दा इतना मजबत बनाया ह क समसत जीव उसम उलझ कर रह गय ह वद शासतर पराण समत म वभनन परकार क गणधमर का वणरन ह और उसम मर तीन पतर बरहमा वषण महश दवताओ म मखय ह उनम भी मन बहत चतराई का खल रचा ह क मर मतपथ का ान परमखरप स वणरन कया गया ह िजसस सब मर बात ह मानत ह म जीव स मिनदर दव और पतथर पजवाता ह और तीथर वरत जप और तप म सबका मन फ़सा रहता ह ससार म लोग दवी दव और भत भरव आद क पजा आराधना करग और जीव को मार-काट कर बल दग ऐस अनक मत-सदधात स मन जीव को बाध रखा ह धमर क नाम पर य होम नम और इसक अलावा भी अनक जाल मन डाल रख ह अतः ानीजी आप ससार म जायग तो जीव आपका कहा नह मानग और व मर मतफ़द म फ़स रहग मन कहा - अनयाय करन वाल नरजन म तमहार जालफ़द को काट कर जीव को सतयलोक ल जाऊगा िजतन भी

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मायाजाल जीव को फ़सान क लय तमन रच रख ह सतशबद स उन सबको नषट कर दगा जो जीव मरा lsquoसारशबदrsquo मजबती स गरहण करगा तमहार सब जाल स मकत हो जायगा जब जीव मर शबद उपदश को समझगा तो तर फ़लाय हय सब भरम अान को तयाग दगा म जीव को सतनाम समझाऊगा साधना कराऊगा और उन हसजीव का उदधार कर सतलोक ल जाऊगा सतयशबद दढ़ता स दकर म उन हसजीव को दया शील मा काम आद वषय स रहत सहजता समपणर सतोष और आतमपजा आद अनक सदगण का धनी बना दगा सतपरष क समरन का जो सार उपाय ह उसम सतपरष का अवचल नाम हसजीव पकारग तब तमहार सर पर पाव रखकर म उन हसजीव को सतलोक भज दगा अवनाशी lsquoअमतनामrsquo का परचार-परसार करक म हसजीव को चता कर भरममकत कर दगा इसलय धमररायनरजन मर बात मन लगाकर सन इस परकार म तमहारा मानमदरन करगा जो मनषय वधपवरक सदगर स दा लकर नाम को परापत करगा उसक पास काल नह आता सतयपरष क नामान स हसजीव को सध हआ दखकर कालनरजन भी उसको सर झकाता ह यह सनत ह कालनरजन भयभीत हो गया उसन हाथ जोङकर वनती क - तात आप दया करन वाल हो इसलय मझ पर इतनी कपा करो सतपरष न मझ शाप दया ह क म नतय लाख जीव खाऊ यद ससार क सभी जीव सतयलोक चल गय तो मर भख कस मटगी फ़र सतपरष न मझ पर दया क और भवसागर का राजय मझ दया आप भी मझ पर कपा करो और जो म मागता ह वह वर मझ दिजय सतयग तरता और दवापर इन तीन म स थोङ जीव सतयलोक म जाय लकन जब कलयग आय तो आपक शरण म बहत जीव जाय ऐसा पकका वचन मझ दकर ह आप ससार म जाय मन कहा - कालनरजन तमन य छल-मथया का जो परपच फ़लाया ह और तीन यग म जीव को दख म डाल दया मन तमहार वनती जान ल अर अभमानी काल तम मझ ठगत हो जसी वनती तमन मझस क वह मन तमह बखश द लकन चौथायग यानी कलयग जब आयगा तब म जीव क उदधार क लय अपन वश यानी सनत को भजगा आठअश सरत ससार म जाकर परकट हग उसक पीछ फ़र नय और उमसवरप सरत lsquoनौतमrsquo धमरदास क घर जाकर परकट हग सतपरष क व बयालस अश जीवउदधार क लय ससार म आयग व कलयग म वयापक रप स पथ परकट कर चलायग और जीव को ान परदान कर सतलोक भजग व बयालस अश िजस जीव को सतयशबद का उपदश दग म सदा उनक साथ रहगा तब वह जीव यमलोक नह जायगा और कालजाल स मकत रहगा नरजन बोला - साहब आप पथ चलाओ और भवसागर स उदधार कर जीव को सतलोक ल जाओ िजस जीव क हाथ म म अश-वश क छाप (नाम मोहर) दखगा उस म सर झकाकर परणाम करगा सतपरष क बात को मन मान लया परनत मर भी एक वनती ह आप एकपथ चलाओग और जीव को नाम दकर सतयलोक भजवाओग तब म बारहपथ (नकल) बनाऊगा जो आपक ह बात करत हय मतलब आपक जस ह ान क बात मगर फ़ज ान दग और अपन आपको कबीरपथी ह कहग म बारह यम ससार म भजगा और आपक नाम स पथ चलाऊगा

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मतअधा नाम का मरा एक दत सकत धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा दत धमरदास क घर जनम लगा इसक बाद आपका अश वहा आयगा इस परकार मरा वह दत जनम लकर जीव को भरमायगा और जीव को सतयपरष का नामउपदश (मगर नकल परभावहन) दकर समझायगा उन बारह पथ क अतगरत जो जीव आयग व मर मख म आकर मरा गरास बनग मर इतनी वनती मानकर मर बात बनाओ और मझ पर कपा करक मझ मा कर दो दवापर यग का अत और कलयग क शरआत जब होगी तब म बौदधशरर धारण करगा इसक बाद म उङसा क राजा इदरमन क पास जाऊगा और अपना नाम जगननाथ धराऊगा राजा इनदरमन जब मरा अथारत जगननाथ मदर समदर क कनार बनवायगा तब उस समदर का पानी ह गरा दगा उसस टकरा कर बहा दगा इसका वशष कारण यह होगा क तरतायग म मर वषण का अवतार राम वहा आयगा और वह समदर स पार जान क लय समदर पर पल बाधगा इसी शतरता क कारण समदर उस मदर को डबा दगा अतः ानीजी आप ऐसा वचार बनाकर पहल वहा समदर क कनार जाओ आपको दखकर समदर रक जायगा आपको लाघकर समदर आग नह जायगा इस परकार मरा वहा मदर सथापत करो उसक बाद अपना अश भजना आप भवसागर म अपना मतपथ चलाओ और सतयपरष क सतनाम स जीव का उदधार करो और अपन मतपथ का चहन छाप मझ बता दो तथा सतयपरष का नाम भी सझा समझा दो बना इस छाप क जो जीव भवसागर क घाट स उतरना चाहगा वह हस क मिकतघाट का मागर नह पायगा मन कहा - नरजन जसा तम मझस चाहत हो वसा तमहार चरतर को मन अचछ तरह समझ लया ह तमन बारह पथ चलान क जो बात कह ह वह मानो तमन अमत म वष डाल दया ह तमहार इस चरतर को दखकर तमह मटा ह डाल और अब पलट कर अपनी कला दखाऊ तथा यम स जीव का बधन छङाकर अमरलोक ल जाऊ मगर सतपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन नशचय कया ह क अमरलोक उस जीव को ल जाकर पहचाऊगा जो मर सतयशबद को मजबती स गरहण करगा अनयायीनरजन तमन जो बारहपथ चलान क माग कह ह वह मन तमको द पहल तमहारा दत धमरदास क यहा परकट होगा पीछ स मरा अश आयगा समदर क कनार म चला जाऊगा और जगननाथ मदर भी बनवाऊगा उसक बाद अपना सतयपथ चलाऊगा और जीव को सतयलोक भजगा नरजन बोला - ानीजी आप मझ सतयपरष स अपन मल का छाप नशान दिजय जसी पहचान आप अपन हसजीव को दोग जो जीव मझको उसी परकार क नशान पहचान बतायगा उसक पास काल नह आयगा अतः साहब दया करक सतपरष क नाम नशानी मझ द मन कहा - धमररायनरजन जो म तमह सतयपरष क मल क नशानी समझा द तो तम जीव क उदधार कायर म वघन पदा करोग तमहार इस चाल को मन समझ लया काल तमहारा ऐसा कोई दाव मझ पर नह चलन वाला धमरराय मन तमह साफ़ शबद म बता दया क अपना `अरनामrsquo मन गपत रखा ह जो कोई हमारा नाम लगा तम उस छोङकर अलग हो जाना जो तम हसजीव को रोकोग तो काल तम रहन नह पाओग धमररायनरजन बोला - ानीजी आप ससार म जाईय और सतयपरष क नाम दवारा जीव को उदधार करक ल

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जाईय जो हसजीव आपक गण गायगा म उसक पास कभी नह आऊगा जो जीव आपक शरण म आयगा वह मर सर पर पाव रखकर भवसागर स पार होगा मन तो वयथर आपक सामन मखरता क तथा आपको पता समान समझ कर लङकपन कया बालक करोङ अवगण वाला होता ह परनत पता उनको हरदय म नह रखता यद अवगण क कारण पता बालक को घर स नकाल द फ़र उसक रा कौन करगा इसी परकार मर मखरता पर यद आप मझ नकाल दग तो फ़र मर रा कौन करगा ऐसा कहकर नरजन न उठकर शीश नवाया और मन ससार क और परसथान कया कबीर न धमरदास स कहा - जब मन नरजन को वयाकल दखा तब मन वहा स परसथान कया और भवसागर क ओर चला आया

राम-नाम क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास भवसागर क ओर चलत हय म सबस पहल बरहमा क पास आया और बरहमा को आदपरष का शबद उपदश परकट कया तब बरहमा न मन लगाकर सनत हय आदपरष क चहन लण क बार म बहत पछा उस समय नरजन को सदह हआ क बरहमा मरा बङा लङका ह ानी क बात म आकर वह उनक प म न चला जाय तब नरजन न बरहमा क बदध फ़रन का उपाय कया कयक नरजन मन क रप म सबक भीतर बठा हआ ह अतः वह बरहमा क शरर म भी वराजमान था उसन बरहमा क बदध को अपनी ओर फ़र दया (सब जीव क भीतर lsquoमनसवरपrsquo नरजन का वास ह जो सबक बदध अपन अनसार घमाता फ़राता ह) बदध फ़रत ह बरहमा न मझस कहा - वह ईशवर नराकार नगरण अवनाशी जयोतसवरप और शनय का वासी ह उसी परष यानी ईशवर का वद वणरन करता ह वद आानसार ह म उस परष को मानता और समझता ह जब मन दखा क कालनरजन न बरहमा क बदध को फ़र दया ह और उस अपन प म मजबत कर लया ह तो म वहा स वषण क पास आ गया वषण को भी वह आदपरष का शबदउपदश कया परनत काल क वश म होन क कारण वषण न भी उस गरहण नह कया वषण न मझस कहा - मर समान अनय कौन ह मर पास चार पदाथर यानी फ़ल ह धमर अथर काम मो मर अधकार म ह उनम स जो चाह म कसी जीव को द मन कहा - वषण सनो तमहार पास यह कसा मो ह मो अमरपद तो मतय क पार होन स यानी आवागमन छटन पर ह परापत होता ह तम सवय िसथर शात नह हो तो दसर को िसथर शात कस करोग झठ साी झठ गवाह स तम भला कसका भला करोग और इस अवगण को कौन भरगा मर नभक सतयवाणी सनकर वषण भयभीत होकर रह गय और अपन हरदय म इस बात का बहत डर माना उसक बाद म नागलोक चला गया और वहा शषनाग स अपनी कछ बात कहन लगा

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मन कहा - आदपरष का भद कोई नह जानता ह सभी काल क छाया म लग हय ह और अानता क कारण काल क मह म जा रह ह भाई अपनी रा करन वाल को पहचानो यहा काल स तमह कौन छङायगा बरहमा वषण और रदर िजसका धयान करत ह और वद िजसका गण दन-रात गात ह वह आदपरष तमहार रा करन वाल ह वह तमह इस भवसागर स पार करग रा करन वाला और कोई नह ह वशवास करो म तमह उनस मलाता ह साातकार कराता ह लकन वष खान स उतपनन शषनाग का बहत तज सवभाव था अतः उसक मन म मर वचन का वशवास नह हआ जब बरहमा वषण और शषनाग न मर दवारा सतयपरष का सदश मानन स इकार कर दया तब म शकर क पास गया परनत शकर को भी सतयपरष का यह सदश अचछा नह लगा शकर न कहा - म तो नरजन को मानता ह और बात को मन म नह लाता तब वहा स म भवसागर क ओर चल दया कबीर साहब आग बोल - जब म इस भवसागर यानी मतयमडल म आया तब मन यहा कसी जीव को सतपरष क भिकत करत नह दखा ऐसी िसथत म सतपरष का ानउपदश कसस कहता िजसस कह वह अधकाश तो यम क वश म दखायी पङ वचतर बात यह थी क जो घातक वनाश करन वाला कालनरजन ह लोग को उसका तो वशवास ह और व उसी क पजा करत ह और जो रा करन वाला ह उसक ओर स व जीव उदास ह उसक प म न बोलत ह न सनत ह जीव िजस काल को जपता ह वह उस धरकर खा जाता ह तब मर शबदउपदश स उसक मन म चतना आती ह जीव जब दखी होता ह तब ान पान क बात उसक समझ म आती ह लकन उसस पहल जीव मोहवश कछ दखता समझता नह फर ऐसा भाव मर मन म उपजा क कालनरजन क शाखा वश सतत को मटा डाल और उस अपना परतय परभाव दखाऊ यमनरजन स जीव को छङा ल तथा उनह अमरलोक भज द िजनक कारण म शबदउपदश को रटत हय फ़रता ह व ह जीव मझ पहचानत तक नह सब जीव काल क वश म पङ ह और सतयपरष क नाम उपदशरपी अमत को छोङकर वषयरपी वष गरहण कर रह ह लकन सतयपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन अपन मन म नशचय कया क अमरलोक उसी जीव को लकर पहचाऊ जो मर सारशबद को मजबती स गरहण कर धमरदास इसक आग जसा चरतर हआ वह तम धयान लगाकर सनो मर बात स वचलत होकर बरहमा वषण शकर और बरहमा क पतर सनकादक सबन मलकर शनय म धयान समाध लगायी समाध म उनहन पराथरना क - ह ईशवर हम कस lsquoनामrsquo का समरन कर और तमहारा कौन सा नाम धयान क योगय ह धमरदास जस सीप सवात नतर का सनह अपन भीतर लाती ह ठक उसी परकार उन सबन ईशवर क परत परमभाव स शनय म धयान लगाया उसी समय नरजन न उनको उर दन का उपाय सोचा और lsquoशनयगफ़ाrsquo स अपना शबद उचचारण कया तब इनक धयान समाध म ररार यानी lsquoराrsquo शबद बहत बार उचचारत हआ उसक आग म अर उसक पतनी माया यानी अषटागी न मला दया इस तरह रा और म दोन अर को बराबर मलान पर राम शबद बना

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रामनाम उन सबको बहत अचछा लगा और सबन रामनाम समरन क ह इचछा क बाद म उसी रामनाम को लकर उनहन ससार क जीव को उपदश दया और समरन कराया कालनरजन और माया क इस जाल को कोई पहचान समझ नह पाया और इस तरह रामनाम क उतप हयी इस बात को तम गहरायी स समझो धमरदास बोल - आप पर सदगर ह आपका ान सयर क समान ह िजसस मरा सारा अान अधरा दर हो गया ह ससार म मायामोह का घोर अधरा ह िजसम वषयवकार लालची जीव पङ हय ह जब आपका ानरपी सयर परकट होता ह और उसस जीव का मोह अधकार नषट हो जाय यह आपक शबदउपदश क सतय होन का परमाण ह मर धनय भागय जो मन आपको पाया आपन मझ अधम को जगा लया अब आप वह कथा कह जब आपन सतयग म जीव को मकत कया

ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह

कबीर साहब बोल - धमरदास सतयग म िजन जीव को मन नामान का उपदश कया था सतयग म मरा नाम lsquoसतसकतrsquo था म उस समय राजा धधल क पास गया और उस सारशबद का उपदश सनाया उसन मर ान को सवीकार कया और उस मन lsquoनामrsquo दया इसक बाद म मथरा नगर आया यहा मझ खमसर नाम क सतरी मल उसक साथ अनय सतरी वदध और बचच भी थ खमसर बोल - ह परष परातन आप कहा स आय हो मन उसस सतयपरष सतयलोक तथा कालनरजन आद का वणरन कया खमसर न सना और उसक मन म सतयपरष क लय परम उतपनन हआ उसक मन म ानभाव आया और उसन कालनरजन क चाल को भी समझा पर खमसर क मन म एक सदह था क अपनी आख स सतयलोक दख तब ह मर मन म वशवास हो तब मन (सतसकत) उसक शरर को वह रहत हय उसक आतमा को एकपल म सतलोक पहचा दया फ़र अपनी दह म आत ह खमसर सतयलोक को याद करक पछतान लगी और बोल - साहब आपन जो दश दखाया ह मझ उसी दश अमरलोक ल चलो यहा तो बहत काल-कलश दख पीङा ह यहा सफ़र झठ मोहमाया का पसारा ह मन कहा - खमसर जबतक आय पर नह हो जाती तबतक तमह सतयलोक नह ल जा सकता इसलय अपनी आय रहन तक मर दय हय सतयनाम का समरन करो अब कयक तमन सतयलोक दखा ह इसलय आय रहन तक तम दसर जीव को सारशबद का उपदश करो जब कसी ानवान मनषय क दवारा एक भी जीव सतयपरष क शरण म आता ह तब ऐसा ानवान मनषय सतयपरष को बहत परय होता ह जस कोई गाय शर क मख म जाती हो यानी शर उस खान वाला हो और तब कोई बलवान मनषय आकर उस छङा ल तो सभी उसक बढ़ाई करत ह जस बाघ अपन चगल म फ़सी गाय को सताता डराता भयभीत करता हआ मार डालता ह ऐस ह कालनरजन जीव को दख दता हआ मारकर खा जाता ह इसलय जो भी मनषय एक भी जीव को सतयपरष क भिकत म लगाकर कालनरजन स बचा लता ह तो वह

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मनषय करोङ गाय को बचान क समान पणय पाता ह यह सनकर खमसर मर चरण म गर पङ और बोल - साहब मझ पर दया किजय और मझ इस करर रक क वश म भक कालनरजन स बचा लिजय मन कहा - खमसर यह कालनरजन का दश ह उसक जाल म फ़सन का जो अदशा ह वह सतयपरष क नाम स दर हो जाता ह खमसर बोल - साहब आप मझ वह नामदान (दा) दिजय और काल क पज स छङाकर अपनी (गर क) आतमा बना लिजय हमार घर म भी जो अनय जीव ह उनह भी य नाम दिजय धमरदास तब म खमसर क घर गया और सभी जीव को सतयनाम उपदश कया सब नर-नार मर चरण म गर गय खमसर अपन घर वाल स बोल - भाई यद अपन जीवन क मिकत चाहत हो तो आकर सदगर स शबदउपदश गहण करो य यम क फ़द स छङान वाल ह तम यह बात सतय जानो खमसर क वचन स सबको वशवास हो गया और सबन वनती क - ह साहब ह बनदछोङ गर हमारा उदधार करो िजसस यम का फ़दा नषट हो जाय और जनम-जनम का कषट (जीवन-मरण) मट जाय तब मन उन सबको नामदान करत हय धयानसाधना (नामजप) क बार म समझाया और सारनाम स हसजीव को बचाया कबीर साहब बोल - धमरदास इस तरह सतयग म म बारह जीव को नाम उपदश कर सतयलोक चला गया सतयलोक म रहन वाल जीव क शोभा मख स कह नह जाती वहा एक हस का दवयपरकाश सोलह सय क बराबर ह फ़र मन कछ समय तक सतयलोक म नवास कया और दोबारा भवसागर म आकर अपन दत हस जीव धधल खमसर आद को दखा म रात-दन ससार म गपतरप स रहता ह पर मझको कोई पहचान नह पाता फ़र सतयग बीत गया और तरता आया तब तरता म म मनीनदर सवामी क नाम स ससार म आया मझ दखकर कालनरजन को बङा अफ़सोस हआ उसन सोचा - इनहन तो मर भवसागर को ह उजाङ दया य जीव को सतयनाम का उपदश कर सतयपरष क दरबार म ल जात ह मन कतन छलबल क उपाय कय पर उसस ानी को कोई डर नह हआ व मझस नह डरत ह ानी क पास सतयपरष का बल ह उसस मरा बस इन पर नह चलता ह और न ह य मर कालमाया क जाल म फ़सत ह कबीर साहब बोल - धमरदास जस सह को दखकर हाथी का हरदय भय स कापन लगता ह और वह परथवी पर गर

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पङता ह वस ह सतयपरष क नाम स कालनरजन भय स थरथर कापता ह

कबीर और रावण

तरतायग म जब मनीनदर सवामी (तरतायग म कबीर का नाम) परथवी पर आय और उनहन जाकर जीव स कहा - यमरपी काल स तमह कौन छङायगा तब व अानी भरमत जीव बोल - हमारा कतारधतार सवामी पराणपरष (कालनरजन) ह वह पराणपरष वषण हमार रा करन वाला ह और हम यम क फ़द स छङान वाला ह कबीर बोल - धमरदास उन अानी जीव म स कोई तो अपनी रा और मिकत क आस शकर स लगाय हय था कोई चडी दवी को धयाता गाता था कया कह य वासना का लालची जीव अपनी सदगत भलकर पराया ह हो गया और सतयपरष को भल गया तथा तचछ दवी-दवताओ क हाथ लोभवश बक गया कालनरजन न सब जीव को परतदन पापकमर क कोठर म डाला हआ ह और सबको अपन मायाजाल म फ़साकर मार रहा ह यद सतयपरष क ऐसी आा होती तो कालनरजन को अभी मटाकर जीव को भवसागर क तट पर लाऊ लकन यद अपन बल स ऐसा कर तो सतयपरष का वचन नषट होता ह इसलय उपदश दवारा ह जीव को सावधान कर कतनी वचतर बात ह क जो (कालनरजन) इस जीव को दख दता खाता ह वह जीव उसी क पजा करता ह इस परकार बना जान यह जीव यम क मख म जाता ह धमरदास तब चार तरफ़ घमत हय म लका दश म आया वहा मझ वचतरभाट नाम का शरदधाल मला उसन मझस भवसागर स मिकत का उपाय पछा और मन उस ानउपदश दया उस उपदश को सनत ह वचतरभाट का सशय दर हो गया और वह मर चरण म गर गया मन उसक घर जाकर उस दा द वचतरभाट क सतरी राजा रावण क महल गयी और जाकर रानी मदोदर को सब बात बतायी उसन मदोदर स कहा - महारानी जी हमार घर एक सनदर महामन शरषठयोगी आय ह उनक महमा का म कया वणरन कर ऐसा सनतयोगी मन पहल कभी नह दखा मर पत न उनक शरण गरहण क ह और उनस दा ल ह तथा इसी म अपन जीवन को साथरक समझा ह यह बात सनत ह मदोदर म भिकतभाव जागा और वह मनीनदर सवामी क दशरन करन को वयाकल हो गयी वह दासी को साथ लकर सवणर हरा रतन आद लकर वचतरभाट क घर आयी और उनह अपरत करत हय मर चरण म शीश झकाया मन उसको आशीवारद दया मदोदर बोल - आपक दशरन स मरा दन आज बहत शभ हआ मन ऐसा तपसवी पहल कभी नह दखा क िजनक सब अग सफ़द और वसतर भी शवत ह सवामी जी म आपस वनती करती ह मर जीव (आतमा) का कलयाण िजस

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तरह हो वह उपाय मझ कहो म अपन जीवन क कलयाण क लय अपन कल और जात का भी तयाग कर सकती ह ह समथरसवामी अपनी शरण म लकर मझ अनाथ को सनाथ करो भवसागर म डबती हयी मझको सभालो आप मझ बहत दयाल और परय लगत हो आपक दशरन मातर स मर सभी भरम दर हो गय मन कहा - मदोदर सनो सतयपरष क नामपरताप स यम क बङ कट जाती ह तम इस ानदिषट स समझो म तमह खरा (सतयपरष) और खोटा (कालनरजन) समझाता ह सतयपरष असीम अजर अमर ह तथा तीनलोक स नयार ह अलग ह उन सतयपरष का जो कोई धयान-समरन कर वह आवागमन स मकत हो जाता ह मर य वचन सनत ह मदोदर का सब भरम भय अान दर हो गया और उसन पवतरमन स परमपवरक नामदान लया मदोदर इस तरह गदगद हयी मानो कसी कगाल को खजाना मल गया हो फ़र रानी चरण सपशर कर महल को चल गयी मदोदर न वचतरभाट क सतरी को समझा कर हसदा क लय पररत कया तब उसन भी दा ल धमरदास फ़र म रावण क महल स आया और मन दवारपाल स कहा - म तमस एक बात कहता ह अपन राजा को मर पास लकर आओ दवारपाल वनयपवरक बोला - राजा रावण बहत भयकर ह उसम शव का बल ह वह कसी का भय नह मानता और कसी बात क चता नह करता वह बङा अहकार और महान करोधी ह यद म उसस जाकर आपक बात कहगा तो वह उलटा मझ ह मार डालगा मन कहा - तम मरा वचन सतय मानो तमहारा बालबाका भी नह होगा अतः नभक होकर रावण स ऐसा जाकर कहो और उसको शीघर बलाकर लाओ दवारपाल न ऐसा ह कया वह रावण क पास जाकर बोला - ह महाराज हमार पास एक सदध (सनत) आया ह उसन मझस कहा ह क अपन राजा को लकर आओ रावण करोध स बोला - दवारपाल त नरा बदधहन ह ह तर बदध को कसन हर लया ह जो यह सनत ह त मझ बलान दौङा-दौङा चला आया मरा दशरन शव क सत गण आद भी नह पात और तन मझ एक भक को बलान पर जान को कहा मर बात सन और उस सदध का रप वणरन मझ बता वह कौन ह कसा ह कया वश ह दवारपाल बोला - ह राजन उनका शवत उजजवल सवरप ह उनक शवत ह माला तथा शवत तलक अनपम ह और शवत ह वसतर तथा शवत साजसामान ह चनदरमा क समान उसका सवरप परकाशवान ह मदोदर बोल - ह राजा रावण जसा दवारपाल न बताया वह सदधसनत परमातमा क समान सशोभत ह आप शीघर जाकर उनक चरण म परणाम करो तो आपका राजय अटल हो जायगा ह राजन इस झठ मान बङाई क अहम को तयाग कर आप ऐसा ह कर

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मदोदर क बात सनत ह रावण इस तरह भङका मानो जलती हयी आग म घी डाल दया गया हो रावण तरनत हाथ म शसतर लकर चला क जाकर उस सदध का माथा काटगा जब उसका शीश गर पङ तब दख वह भक मरा कया कर लगा ऐसा सोचत हय रावण बाहर मर पास आया और उसन सर बार पर शिकत स मझ पर शसतर चलाया मन उसक शसतरपरहार को हर बार एक तनक क ओट पर रोका अथारत रावण वह तनका भी नह काट सका मन तनक क ओट इस कारण क क रावण बहत अहकार ह इस कारण अपन शिकतशाल परहार स जब रावण तनका भी न काट पायगा तो अतयनत लिजजत होगा और उसका अहकार नषट हो जायगा तब यह तमाशा दखती हयी (मरा बलपरताप जान कर) मदोदर रावण स बोल - सवामी आप झठा अहकार और लजजा तयाग कर मनीनदर सवामी क चरण पकङ लो िजसस आपका राजय अटल हो जायगा यह सनकर खसयाया हआ रावण बोला - म जाकर शव क सवा-पजा करगा िजनहन मझ अटल राजय दया म उनक ह आग घटन टकगा और हरपल उनह को दणडवत करगा मन उस पकार कर कहा - रावण तम बहत अहकार करन वाल हो तमन हमारा भद नह समझा इसलय आग क पहचान क रप म तमह एक भवषयवाणी कहता ह तमको रामचनदर मारग और तमहारा मास का भी नह खायगा तम इतन नीचभाव वाल हो कबीर साहब बोल - धमरदास मनीनदर सवामी क रप म मन अहकार रावण को अपमानत कया और फ़र अयोधयानगर क ओर परसथान कया तब रासत म मझ मधकर नाम का एक गरब बराहमण मला वह मझ परमपवरक अपन घर ल गया और मर बहत परकार स सवा क गरब मधकर ानभाव म िसथरबदध वाला था उसका लोकवद का ान बहत अचछा था तब मन उस सतयपरष और सतयनाम क बार म बताया िजस सनकर उसका मन परसननता स भर गया वह बोला - ह परमसनत सवरप सवामी म भी उस अमतमय सतयलोक को दखना चाहता ह तब उसक सवाभाव स परसनन होकर lsquoअचछाrsquo ऐसा कहत हय म उसक शरर को वह रहा छोङकर उसक जीवातमा को सतयलोक ल गया अमरलोक क अनपम शोभा-छटा दखकर वह बहत परसनन हआ और गदगद होकर मर चरण म गर पङा और बोला - सवामी आपन सतयलोक दखन क मर पयास बझा द अब आप मझ ससार म ल चलो िजसस म अनय जीव को यहा लान क लय उपदश (गवाह) कर और जो जीव घर-गहसथी क अतगरत आत ह उनह भी सतय बताऊ धमरदास जब म उसक जीवातमा को लकर ससार म आया और जस ह मधकर क जीवातमा न दह म परवश कया तो उसका शरर जागरत हो गया मधकर क घर-परवार म सोलह अनय जीव थ

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मधकर न उनस सब बात कह और मझस बोला - साहब मर वनती सनो अब हम सबको सतयलोक म नवास दिजय कयक परथवी तो यम का दश ह इसम बहत दख ह फ़र भी माया स बधा जीव अानवश अधा हो रहा ह इस दश म कालनरजन बहत परबल ह वह सब जीव को सताता ह और अनक परकार क कषट दता हआ जनम-मरण का नकर समान दख दता ह काम करोध तषणा और माया बहत बलवान ह जो इसी कालनरजन क रचना ह य सब महाशतर दवता मन आद सबको वयापत ह और करोङ जीव को कचलकर मसल दत ह य तीन लोक यमनरजन का दश ह इसम जीव को णभर क लय वासतवक सख नह ह आप हमारा य जनम-जनम का कलश मटाओ और अपन साथ ल चलो तब मन उन सबको सतयपरष क नाम का उपदश दकर हसदा स गर (क) आतमा बनाया और उनक आय पर हो जान पर उनको सतयलोक भज दया उन सोलह जीव को सतयलोक जात हय दखकर ससारजीव क लय वकराल भयकर यमदत उदास खङ दखत रह उनह ऊपर जात दखकर व सब ववश और बहद उदास हो गय व सब जीव सतयपरष क दरबार म पहच गय िजनह दखकर सतयपरष क अश और अनय मकत हसजीव बहत परसनन हय सतयपरष न उन सोलह हसजीव को अमरवसतर पहनाया सवणर क समान परकाशवान अपनी अमरदह क सवरप को दखकर उन हसजीव को बहत सख हआ सतयलोक म हरक हसजीव का दवयपरकाश सोलह सयर क समान ह वहा उनहन अमत (अमीरस) का भोजन कया और अगर (चदन) क सगनध स उनका शरर शीतल होकर महकन लगा इस तरह तरतायग म मर (मनीनदर सवामी नाम स) दवारा ानउपदश का परचार-परसार हआ और सतयपरष क नामपरभाव स हसजीव मकत होकर सतयलोक गय

कबीर और रानी इनदरमती

तरतायग समापत हआ दवापर-यग आ गया तब फ़र कालनरजन का परभाव हआ और फ़र सतयपरष न ानीजी को बलाकर कहा - ानी तम शीघर ससार म जाओ और कालनरजन क बधन स जीव का उदधार करो कालनरजन जीव को बहत पीङा द रहा ह जाकर उसक फ़ास काटो मन सतयपरष क बात सनकर उनस कहा - आप परमाणत सपषट शबद म आा करो तो म कालनरजन को मारकर सब जीव को सतयलोक ल आता ह बारबार ऐसा करन ससार म कया जाऊ सतयपरष बोल - योगसतायन सनो सारशबद का उपदश सनाकर जीव को मकत कराओ जो अब जाकर कालनरजन को मारोग तो तम मरा वचन ह भग करोग अब तो अानी जीव काल क जाल म फ़स पङ ह और उसम ह उनह मोहवश सख भास रहा ह लकन जब तम उनह जागरत करोग तब उनह आननद का अहसास होगा

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जब तम कालनरजन का असल चरतर बताओग तो सब जीव तमहार चरण पकङग ह ानी जीव का भाव सवभाव तो दखो क य ान अान को पहचानत समझत नह ह तम ससार म lsquoसहजभावrsquo स जाकर परकट होओ और जीव को चताओ तब म फ़र स ससार क तरफ़ चला इधर आत ह चालाक और परपची कालनरजन न मर चरण म सर झका दया वह कातर भाव स बोला - अब कस कारण स ससार म आय हो म वनती करता ह क सार ससार क जीव को समझाओ ऐसा मत करना आप मर बङ भाई हो म वनती करता ह सभी जीव को मरा रहसय न बताना मन कहा - नरजन सन कोई-कोई जीव ह मझ पहचान पाता ह और मर बात समझता ह कयक तमन जीव को अपन जाल म बहत मजबती स फ़साकर ठगा हआ ह धमरदास ऐसा कहकर मन सतयलोक और सतयलोक का शरर छोङ दया और मनषयशरर धारण कर मतयलोक म आया उस यग म मरा नाम करणामय सवामी था तब म गरनार गढ़ आया जहा राजा चनदरवजय राजय करत थ उस राजा क सतरी बहत बदधमान थी उसका नाम इनदरमती था वह सनत समागम करती थी और ानीसनत क पजा करती थी इनदरमती अपन सवभाव क अनसार महल क ऊची अटार पर चढ़ कर रासता दखा करती थी यद रासत म उस कोई साध जाता नजर आता तो तरनत उसको बलवा लती थी इस परकार सनत क दशरन हत वह अपन शरर को कषट दती थी वह कसी सचचसनत क तलाश म थी उसक ऐस भाव स परसनन हम उसी रासत पर पहच गय जब रानी क दिषट हम पर पङ तो उसन तरनत दासी को आदरपवरक बलान भजा दासी न रानी का वनमर सदश मझ सनाया मन दासी स कहा - दासी हम राजा क घर नह जायग कयक राजय क कायर म झठ मान बङाई होती ह और साध का मान बङाई स कोई समबनध नह होता अतः म नह जाऊगा दासी न रानी स जाकर ऐसा ह कहा तब रानी सवय दौङ-दौङ आयी और मर चरण म अपना शीश रख दया फ़र वह बोल - साहब हम पर दया किजय और अपन पवतर शरीचरण स हमारा घर धनय किजय आपक दशरन पाकर म सखी हो गयी उसका ऐसा परमभाव दखकर हम उसक घर चल गय रानी भोजन क लय मझस नवदन करती हयी बोल - ह परभ भोजन तयार करन क आा दकर मरा सौभागय बढ़ाय आपक जठन मर घर म पङ और बचा भोजन शष परसाद क रप म म खाऊ मन कहा - रानी सनो पाच-ततव (का शरर) िजस भोजन को पाता ह उसक भख मझ नह होती मरा भोजन अमत ह म तमह इसको समझाता ह मरा शरर परकत क पाच-ततव और तीन गण वाला नह ह बिलक अलग ह पाच-ततव तीन गण पचचीस परकत स तो कालनरजन न मनषय शरर क रचना क ह सथान और करया क भद स कालनरजन न वाय क lsquoपचासी भागrsquo कय इसलय पचासी पवन कहा जाता ह इसी

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वाय तथा चार अनयततव परथवी जल आकाश अिगन स य मनषय शरर बना ह परनत म इनस एकदम अलग ह इस पाच-ततव क सथलदह म एक lsquoआदपवनrsquo ह आद का मतलब यहा जनम-मरण स रहत नतय अवनाशी और शाशवत ह वह चतनयजीव ह उस lsquoसोऽहगrsquo बोला जाता ह यह जीव सतयपरष का अश ह कालनरजन न इसी जीव को भरम म डालकर सतयलोक जान स रोक रखा ह कालनरजन ऐसा करन क लय नाना परकार क मायाजाल रचता ह और सासारक वषय का लोभ-लालच दकर जीव को उसम फ़साता ह और फ़र खा जाता ह म उनह जीव को कालनरजन स उदधार करान आया ह काल न पानी पवन परथवी आद ततव स जीव क बनावटदह क रचना क और इस दह म वह जीव को बहत दख दता ह मरा शरर कालनरजन न नह बनाया मरा शरर lsquoशबदसवरपrsquo ह जो खद मर इचछा स बना ह रानी इनदरमती को बहत आशचयर हआ और वह बोल - परभ जसा आपन कहा ऐसा कहन वाला दसरा कोई नह मला दयानध मझ और भी ान बताओ मन सना ह क वषण क समान दसरा कोई बरहमा शकर मन आद भी नह ह पाच-ततव क मलन स यह शरर बना ह और उन ततव क गण भख पयास नीद क वश म सभी जीव ह परभ आप अगमअपार हो मझ बताओ क बरहमा वषण तथा शकर स भी अलग आप कहा स उतपनन हय हो ऐसा बताकर मर िजासा शानत करो मन कहा - इनदरमती मरा दश नागलोक (पाताल) मतयलोक (परथवी) और दवलोक (सवगर) इन सबस अलग ह वहा कालनरजन को घसन क अनमत नह ह इस परथवी पर चनदरमा सयर ह पर सतयलोक म सतयपरष क एक रोम का परकाश करोङ चनदरमा क समान ह तथा वहा क हसजीव (मकत होकर गयी आतमाय) का परकाश सोलह सयर क बराबर ह उन हसजीव म अगर (चनदन) क समान सगनध आती ह और वहा कभी रात नह होती रानी इनदरमती घबरा कर बोल - परभ आप मझ इस यम कालनरजन स छङा लो म अपना समसत राजपाट आप पर नयोछावर करती ह म अपना सब धन-सप का तयाग करती ह ह बनदछोङ मझ अपनी शरण म लो मन कहा - रानी म तमह अवशय यम कालनरजन स छङाऊगा सतयनाम का समरन दगा पर मझको तमहार धन-सप तथा राजपाट स कोई परयोजन नह ह जो धन-सप तमहार पास ह उसस पणयकायर करो सचच साध-सनत का आदर सतकार करो सतयपरष क ह सभी जीव ह ऐसा जानकर उनस वयवहार करो परनत व मोहवश अान क अधकार म पङ हय ह सब शरर म सतयपरष क अश जीवातमा का ह वास ह पर वह कह परकट और कह गपत ह ह रानी य समसत जीव सतयपरष क ह परनत व मोह क भरमजाल म फ़स कालनरजन क प म हो रह ह यह सब चरतर कालनरजन का ह ह क सब जीव सतयपरष को भलाकर उसक फ़लाय खानी-वाणी क जाल म फ़स ह और उसन यह जाल इतनी सझबझ स फ़लाया ह क मझ जस उदधारक स भी जीव कालवश होकर उसका प लकर लङत ह और मझ भी नह पहचानत इस परकार य भरमत जीव सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन स परम करत ह असखय जीव म स कोई-कोई ह इस कपट कालनरजन क चालाक को समझ पाता ह और सतयनाम का उपदश लता ह इनदरमती बोल - ह परभ अब मन सब कछ समझ लया ह अब आप वह करो िजसस मरा उदधार हो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन रानी को सतयनाम उपदश यानी दा द रानी न ऐसी (दा क समय होन वाल) अनभत स परभावत होकर अपन पत स कहा - सवामी यद आप सखदायी मो चाहत हो तो करणामय सवामी क शरण म आओ मर इतनी बात मानो राजा बोला - रानी तम मर अधागनी हो इसलय म तमहार भिकत म आध का भागीदार ह इसलय हम-तम दोन भकत नह हग म सफ़र तमहार भिकत का परभाव दखगा क कस परकार तम मझ मकत कराओगी म तमहार भिकत का परताप दखगा िजसस सब दख कषट मट जायग और हम सतयलोक जायग

रानी इनदरमती का सतयलोक जाना

कबीर साहब बोल - धमरदास यह सब रानी न मर पास आकर कहा और मन उस वघन डालकर बदध फ़रन वाल कालनरजन का चरतर सनाया उसन राजा क बदध कस तरह फ़र द और इसक बाद मन रानी को भवषय क बार म बताया मन रानी स कहा - रानी सनो कालनरजन अपनी कला स छलरप धारण करगा साप बनकर कालदत तमहार पास आयगा और तमह डसगा ऐसा म तमह पहल ह बताय दता ह इसलय म तमको बरहल मनतर बताता ह िजसस कालरपी सपर का सब जहर दर हो जायगा फ़र यम तमस दसरा धोखा करगा वह हसवणर का सफ़दरप बनाकर तमहार पास आयगा और मर समान ान तमह समझायगा वह तमस कहगा - रानी मझ पहचान म कालनरजन का मानमदरन करन वाला ह और मरा नाम ानी करणामय ह इस परकार काल तमह ठगगा म उसका हलया भी तमह बताता ह कालदत का मसतक छोटा होगा और उसक आख का रग बदरग होगा उसक दसर सब अग शवतरग क हग य सब काल क लण मन तमह बता दय तब रानी न घबरा कर मर चरण पकङ लय और बोल - परभ मझ सतयलोक ल चलो यह तो यम का दश ह िजसस मर सब दख-कषट मट जाय मन कहा - रानी सतयनाम-दा स यम स तमहारा समबनध टट गया ह और तम सतयपरष क आतमा हो गयी हो अब तम इस सतयनाम का समरन करो तब य परपची कालनरजन तमहारा कया बगाङ लगा जबतक तमहार आय पर न हो इसी नाम का समरन करो जबतक आय का ठका परा न हो जीव सतयलोक नह जा सकता इस कालनरजन क कला बहत भयकर ह वह ससार म जीव क पास हाथीरप म आता ह परनत सहरपी सतयनाम का समरन करत ह समरन वाल का भय कालनरजन मानता ह और सामन नह आता रानी बोल - साहब जब कालनरजन सपर बनकर मझ सताय और हसरप धारण कर भरमाय तब फ़र आप मर पास आ जाना और मर हस-जीवातमा को सतयलोक ल जाना यह मर वनती ह

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कबीर साहब बोल - रानी काल सपर और मानवरप क कला धरकर तमहार पास आयगा तब म उसका मानमदरन करगा मझ दखत ह काल भाग जायगा उसक पीछ म तमहार पास आऊगा और तमहार जीव को सतयलोक ल जाऊगा धमरदास इतना कहकर मन सवय को छपा लया और तब तकसपर बनकर कालदत आया जब आधी रात हो गयी थी तब रानी अपन महल म आकर पलग पर लट गयी और सो गयी उसी समय तक न आकर रानी क माथ म डस लया रानी न जलद ह राजा स कहा - तक न मझ डस लया ह इतना सनत ह राजा वयाकल हो गया और वष उतारन वाल गारङ (ओझा) को बलाया रानी इनदरमती न साहब म सरत लगाकर उनका दया बरहल मनतर जपा और गारङ स कहा - तम दर जाओ तमहार आवशयकता नह ह रानी न राजा स कहा - सदगर न मझ बरहल मनतर दया ह िजसस मझ पर वष का परभाव नह होगा ऐसा कहत हय जाप करती हयी रानी उठ कर खङ हो गयी राजा चनदरवजय अपनी रानी को ठक दखकर बहत परसनन हआ धमरदास रानी क बना कसी नकसान क ठक हो जान पर वह कालदत वहा गया जहा बरहमा वषण महश थ और बोला - मर वष का तज भी इनदरमती को नह लगा सतयपरष क नामपरताप स सारा वष दर हो गया वषण न कहा - यमदत सन तम अपन सब अग सफ़द बना लो मर बात मानो और छल करक रानी को ल आओ तब उस कालदत न ऐसा ह कया और रानी क पास मर (कबीर) वश म आकर बोला - रानी तम कय उदास हो मन तमह दामनतर दया ह तम जानबझ कर ऐसी अनजान कय हो रह हो रानी मरा नाम करणामय ह म काल को मारकर उसक ऐसी पसाई कर दगा जब काल न तक बनकर तमह डसा तब भी मन तमह बचाया तम पलग स उतरकर मर चरण सपशर करो और अपनी मान बङाई छोङो म तमह परभ क दशरन कराऊगा लकन मर दवारा पहल ह बताय जान स रानी न उसको पहचान लया और उसक आख म तीन रखाय दखी पील सफ़द और लाल फ़र उसका छोटा मसतक दखा फर रानी मर वचन को याद करती हयी बोल - यमदत तम अपन घर जाओ मन तमह पहचान लया ह कौवा बहत सनदर वश बनाय परनत वह हस क सनदरता नह पा सकता वसा ह मन तमहारा रप दखा मर समथरगर न मझ पहल ह सब बता दया था यह सनकर यमदत न बहत करोध कया और बोला - मन कतना बारबार तमह कहकर समझाया फ़र भी तम नह मानी तमहार बदध फ़र गयी ह

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ऐसा कहकर वह रानी क पास आया और उसन रानी को थपपङ मारा िजसस रानी भम पर गर गयी और उसन मरा (कबीर) समरन कया फर बोल - ह सदगर मर सहायता करो मझको य कररकाल बहत दख द रहा ह धमरदास मरा सवभाव ह क भकत क पकार सनत ह मझस नह रहा जाता इसलय म णभर म इनदरमती क पास आ गया मझ दखत ह रानी को बहत परसननता हयी मर आत ह काल वहा स चला गया उसक थपपङ स जो अशदध हयी थी मर दशरन स दर हो गयी तब रानी बोल - साहब मझ यम क छाया क पहचान हो गयी मर एक वनती सनय अब म मतयलोक म नह रहना चाहती साहब मझ अपन दश सतयलोक ल चलय यहा तो बहत काल-कलश ह यह कहकर वह उदास हो गयी धमरदास उसक ऐसी वनती सनकर मन उस पर स काल का कठन परभाव समापत कर दया फ़र उसक आय का ठका (शष आय का समय समय स पहल परा करना) परा भर दया और रानी क हसजीव को लकर सतयलोक चला गया मन उस लकर मानसरोवर दप पहचाया जहा पर मायाकामनी कलोलकरङा कर रह थी अमतसरोवर स उस अमत चखाया तथा कबीरसागर पर उसका पाव रखवाया उसक आग सरतसागर था वहा पहचत ह रानी क जीवातमा परकाशत हो गयी तब उस सतयलोक क दवार पर ल गया िजस दखकर रानी न परमसख अनभव कया सतयलोक क दवार पर रानी क हसआतमा को दखकर वहा क हस न दौङकर रानी को अपन स लपटा लया और सवागत करत हय कहा - तम धनय हो जो करणामय सवामी को पहचान लया अब तमहारा कालनरजन का फ़दा छट गया और तमहार सब दख-दवद मट गय ह इनदरमती मर साथ आओ तमह सतयपरष क दशरन कराऊ ऐसा कहकर मन सतयपरष न वनती क - ह सतयपरष अब हस क पास आओ और एक नय हस को दशरन दो ह बनदछोङ आप महान कपा करन वाल हो ह दनदयाल दशरन दो तब पषपदप का पषप खला और वाणी हयी - ह योगसतायन सनो अब हस को ल आओ और दशरन करो तब ानी हस क पास आय और उनह ल जाकर सतयपरष का दशरन कराया सब हस न सतयपरष को दणडवत परणाम कया तब आदपरष न चार अमतफ़ल दय िजस सब हस न मलकर खाया

कबीर का सदशरन शवपच को ान दना

कबीर साहब बोल - धमरदास रानी इनदरमती क हसजीव को सतयलोक पहचा कर उस सतयपरष क दशरन करान क बाद मन कहा - ह हस अब अपनी बात बताओ तमहार जसी दशा ह सो कहो तमहारा सब दख-दवद जनम-

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मरण का आवागमन सब मट गया और तमहारा तज सोलह सयर क बराबर हो गया और तमहार सब कलश मटकर तमहारा कलयाण हआ इनदरमती दोन हाथ जोङकर बोल - साहब मर एक वनती ह बङ भागय स मन आपक शरीचरण म सथान पाया ह मर इस हसशरर का रप बहत सनदर ह परनत मर मन म एक सशय ह िजसस मझ (अपन पत चनदरवजय) राजा क परत मोह हआ ह कयक वह राजा मरा पत रहा ह ह करणामय सवामी आप उस भी सतयलोक ल आईय नह तो मरा राजा काल क मख म जायगा कबीर साहब बोल - तब मन कहा बदधमान हस सन राजा न नामउपदश नह लया उसन सतयपरष क भिकत नह पायी और भिकतहन होकर ततवान क बना वह इस असार ससार म चौरासी लाख योनय म ह भटकगा इनदरमती बोल - परभ म जब ससार म रहती थी और अनक परकार स आपक भिकत कया करती थी तब सजजन राजा न मर भिकत को समझा और कभी भी भिकत स नह रोका ससार का सवभाव बहत कठोर ह यद अपन पत को छोङकर उसक सतरी कह अलग रह तो सारा ससार उस गाल दता ह और सनत ह पत भी उस मार डालता ह साहब राजकाज म तो मान परशसा नािसतकता करोध चतराई होती ह ह परनत इन सबस अलग म साध-सत क सवा ह करती थी और राजा स भी नह डरती थी तो जब म साध-सनत क सवा करती थी यह सनकर राजा परसनन ह होता था साहब इसक वपरत राजा ऐसा करन क लय मझ रोकता दख दता तो म कस तरह साध-सनत क सवा कर पाती और तब मर मिकत कस होती अतः सवा-भिकत को जानन वाला वह राजा धनय ह उसक हस (जीवातमा) को भी ल आइय ह हसपत सदगर आप तो दया क सागर ह दया किजय और राजा को सासारक बधन स छङाईय कबीर साहब बोल - धमरदास म उस हस इनदरमती क ऐसी बात सनकर बहत हसा और इनदरमती क इचछाअनसार उसक राजय गरनारगढ़ म परकट हो गया उस समय राजा चनदरवजय क आय पर होन क करब ह आ गयी थी राजा चनदरवजय क पराण नकालन क लय यमराज उनह घर कर बहत कषट द रहा था और सकट म पङा हआ राजा भय स थरथर काप रहा था तब मन यमराज स उस छोङन को कहा यमराज उस छोङता नह था धमरदास दलरभ मनषयशरर म सतयनाम भिकत न करन क चक का यह परणाम होता ह सतयपरष क भिकत को भलकर जो जीव ससार क मायाजाल म पङ रहत ह आय पर होन पर यमराज उनह भयकर दख दता ह ह तब मन राजा चनदरवजय का हाथ पकङ लया और उसी समय सतयलोक ल आया रानी इनदरमती यह दखकर बहत परसनन हयी और बोल - ह राजा सनो मझ पहचानो म तमहार पतनी ह राजा उसस बोला - ानवान हस तमहारा दवय रपरग तो सोलह सयर जसा दमक रहा ह तमहार अग-अग म वशष अलौकक चमक ह तब तमको अपनी पतनी कस कह शरषठनार यह तमन बहत अचछ भिकत क िजसस अपना और मरा दोन का ह उदधार कया तमहार भिकत स ह मन अपना नजघर सतयलोक पाया मन करोङ जनम तक धमरपणय कया तब ऐसी सतकमर करन वाल भिकत करन वाल सतरी पायी म तो राजकाज ह करता हआ भिकत स वमख रहा रानी यद तम न होती तो म नशचय ह कठोर नकर म जाता ऐसा मन मतयपवर ह

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अनभव कया अतः ससार म तमहार समान पतनी सबको मल कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन राजा स ऐसा कहा जो जीव सतयपरष क सतनाम का धयान करता ह वह दोबारा कषटमय ससार म नह जाता धमरदास इसक बाद म फ़र स ससार म आया और काशी नगर म गया जहा भकत सदशरन शवपच रहता था वह शबदववक ान को समझन वाला उम सनत था उसन मर बताय आतमान को शीघर ह समझा और उस अपनाया उसका पकका वशवास दखकर मन उस भवबधन स मकत कर दया और वधपवरक नाम उपदश कया धमरदास सतयपरष क ऐसी परतय महमा दखत हय भी जो जीव उसको नह समझत व कालनरजन क फ़द म पङ हय ह जस का अपवतर वसत को भी खा लता ह वस ह ससार लोग भी अमत छोङकर वष खात ह अथारत सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन क ह भिकत करत ह धमरदास दवापर यग म यधषठर नाम का एक राजा हआ महाभारत यदध म अपन ह बनध-बानधव को मारकर उनस बहत पाप हआ था अतः यदध क बाद बहत हाहाकार मच गया चारो ओर घोर अशािनत और शोक-दख का माहौल था खद यधषठर को बर सवपन और अपशकन होत थ तब शरीकषण क सलाह पर उनहन इस पाप नवारण हत एक य कया इस य क सभी वधवत तयार आद करक जब य होन लगा तब शरीकषण न कहा - इस य क सफ़लतापवरक होन क पहचान ह क आकाश म बजता हआ घटा सवतः सनायी दगा उस य म सयासी योगी ऋष मन वरागी बराहमण बरहमचार आद सभी आय सभी को परम स भोजन आद कराया पर घटा नह बजा यधषठर बहत लिजजत हय और शरीकषण क पास इसका कारण पछन गय शरीकषण बोल - िजतन भी लोग न भोजन कया इनम एक भी सचचा सनत नह था व दखाव क लय साध सनयासी योगी वरागी बराहमण बरहमचार अवशय लग रह ह पर व मन स अभमानी ह थ इसलय घटा नह बजा यधषठर को बढ़ा आशचयर हआ इतन वशाल य म करोङ साधओ न भोजन कया और उनम कोई सचचा ह नह था तब हम ऐसा सचचासनत कहा स लाय शरीकषण न कहा - काशी नगर स सदशरन शवपच को लकर आओ व ह सवम साध ह उन जसा साध अभी कोई नह ह तब य सफ़ल होगा ऐसा ह कया गया और घनटा बजन लगा शवपच सदशरन क गरास उठात ह घटा सात बार बजा य सफ़ल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास तब भी जो अानी जीव सदगर क वाणी का रहसय नह पहचानत ऐस लोग क बदध नषट होकर यम क हाथ बक गयी ह अपन ह भकतजीव को य काल दख दता ह नकर म डालता ह काल

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क लय अब कया कह य भकत-अभकत सभी को दख दता ह सबको मार खाता ह गौर स समझो इस काल क दवारा ह महाभारत यदध म शरीकषण न पाडव को यदध क लय पररत कया और हतया का पाप करवाया फ़र उनह शरीकषण न पाडव को दोष लगाया क तमस हतया का पाप हआ अतः य करो और तब कहा था क तमह इसक बदल सवगर मलगा तमहारा यश होगा धमरदास इसक बाद भी पाडव को (शरीकषण न) और अधक दख दया और जीवन क अतम समय म हमालय यातरा म भजकर बफ़र म गलवा दया दरौपद और चार पाडव भीम अजरन नकल सहदव हमालय क बफ़र म गल गय कवल सतय को धारण करन वाल यधषठर ह बच जब शरीकषण को अजरन बहत परय था तो उसक य गत कय हयी राजा बल हरशचनदर कणर बहत बङ दानी थ फ़र भी काल न उनह बहत परकार स दख दया अपमान कराया अतः इस जीव को अानवश सतय-असतय उचत-अनचत का ान नह ह इसलय वह सदा हतषी सतयपरष को छोङकर इस कपट धतर कालनरजन क पजा करत हय मोहवश उसी क ओर भागता ह कालनरजन जीव को अनक कला दखाकर भरमत करता ह जीव इसस मिकत क आशा लगाकर और उसी आशा क फ़ास म बधकर काल क मख म जाता ह इन दोन कालनरजन और माया न सतयपरष क समान ह बनावट नकल और वाणी क अनक नाम मिकत क नाम पर ससार म फ़ला दय ह और जीव को भयकर धोख म डाल दया ह

काल कसाई जीव बकरा

कबीर साहब बोल - धमरदास दवापर यग बीत गया और कलयग आया तब म फ़र सतयपरष क आा स जीव को चतान हत परथवी पर आया और मन कालनरजन को अपनी ओर आत दखा मझ दखकर वह भय स मरझा ह गया और बोला - कसलय मझ दखी करत हो और मर भय भोजन जीव को सतयलोक पहचात हो तीन यग तरता दवापर सतयग म आप ससार म गय और जीव का कलयाण कर मरा ससार उजाङा सतयपरष न जीव पर शासन करन का वचन मझ दया हआ ह मर अधकारतर स आप जीव को छङा लत हो आपक अलावा यद कोई दसरा भाई इस परकार आता तो म उस मारकर खा जाता लकन आप पर मरा कोई वश नह चलता आपक बलपरताप स ह हसजीव (मनषय) अपन वासतवक घर अमरलोक को जात ह अब आप फ़र ससार म जा रह हो परनत आपक शबदउपदश को ससार म कोई नह सनगा शभ और अशभ कम क भरमजाल का मन ऐसा ठाठ मोह सख रचा ह क िजसस उसम फ़सा जीव आपक बताय सतयलोक क सदमागर को नह समझ पायगा धमर क नाम पर मन घर-घर म भरम का भत पदा कर दया ह इसलय सभी जीव असल पजा भलकर भगवान दवी-दवता भत-पशाच भरव आद क पजा-भिकत म लग ह और इसी को सतय समझ कर खद को धनय मान रह ह इस परकार धोखा दकर मन सब जीव को अपनी कठपतल बनाया हआ ह ससार म जीव को भरम और अान का भत लगगा परनत जो आपको तथा आपक सदउपदश को पहचानगा उसका भरम ततकाल दर हो जायगा

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लकन मर भरमभत स गरसत मनषय मास-मदरा खायग पयग और ऐस नीच मनषय को मास खाना बहत परय होगा म अपन ऐस मतपथ परकट करगा िजसम सब मनषय मास-मदरा का सवन करग तब म चडी योगनी भत-परत आद को मनषय स पजवाऊगा और इसी भरम स सार ससार क जीव को भटकाऊगा जीव को अनक परकार क मोहबधन म बाधकर इस परकार क फ़द म फ़सा दगा क व अपन अनत समय तक मतय को भलकर पापकम म लपत और वासतवक भिकत स दर रहग और इस परकार मोहबधन म बध व जीव जनम पनजरनम और चौरासी लाख योनय म बारमबार भटकत ह रहग भाई आपक दवारा बनी हयी सतयपरष क भिकत तो बहत कठन ह आप समझाकर कहोग तब भी कोई नह मानगा कबीर साहब बोल - नरजन तमन जीव क साथ बङा धोखा कया ह मन तमहार धोख को पहचान लया ह सतयपरष न जो वचन कहा ह वह दसरा नह हो सकता उसी क वजह स तम जीव को सतात और मारत हो सतयपरष न मझ आा द ह उसक अनसार सब शरदधाल जीव सतयनाम क परमी हग इसलय म सरल सवभाव स जीव को समझाऊगा और सतयान को गरहण करन वाल अकर जीव को भवसागर स छङाऊगा तमन मोहमाया क जो करोङ जाल रच रख ह और वद शासतर पराण म जो अपनी महमा बताकर जीव को भरमाया ह यद म परतयकला धारण करक ससार म आऊ तो तरा जाल और य झठ महमा समापत कर सब जीव को ससार स मकत करा द लकन जो म ऐसा करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह उनका वचन तो सदा न टटन वाला न डोलन वाला और बना मोह का अनमोल ह अतः म उसका पालन अवशय ह करगा जो शरषठ जीव हग व मर सारशबद ान को मानग तर चालाक समझ म आत ह शीघर सावधान होन वाल अकरजीव को म भवसागर स मकत कराऊगा और तमहार सार जाल को काटकर उनह सतयलोक ल जाऊगा जो तमन जीव क लय करोङ भरम फ़ला रख ह व तमहार फ़लाय हय भरम को नह मानग म सब जीव का सतयशबद पकका करक उनक सार भरम छङा दगा नरजन बोला - जीव को सख दन वाल मझ एक बात समझा कर कहो क जो तमको लगन लगाकर रहगा उसक पास म काल नह जाऊगा मरा कालदत आपक हस को नह पायगा और यद वह उस हसजीव (सतयनाम दा) क पास जायगा तो मरा वह कालदत मछरत हो जायगा और मर पास खाल हाथ लौट आयगा लकन आपक गपतान क यह बात मझ समझ नह आती अतः उसका भद समझा कर कहो वह कया ह तब मन कहा - नरजन धयान स सन सतय शरषठ पहचान ह और वह सतयशबद (नवारणी नाम) मो परदान करान वाला ह सतयपरष का नाम lsquoगपत परमाणrsquo ह कालनरजन बोला - अतयारमी सवामी सनो और मझ पर कपा करो इस यग म आपका कया नाम होगा मझ बताओ और अपन नामदान उपदश को भी बताओ क कस तरह और कौन सा lsquoनामrsquo आप जीव को दोग वह सब मझ बताओ िजस कारण आप ससार म जा रह हो उसका सब भद मझस कहो तब म भी जीव को उस नाम का उपदश कर चताऊगा और उन जीव को सतयपरष क सतयलोक भजगा परभ आप मझ अपना दास बना लिजय तथा य सारा गपतान मझ भी समझा दिजय मन कहा - नरजन सन म जानता ह आग क समय म तम कसा छल करन वाल हो दखाव क लय तो तम

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मर दास रहोग और गपतरप स कपट करोग गपत सारशबद का भदान म तमह नह दगा सतयपरष न ऐसा आदश मझ नह दया ह इस कलयग म मरा नाम कबीर होगा और यह इतना परभावी होगा क lsquoकबीरrsquo कहन स यम अथवा उसका दत उस शरदधाल जीव क पास नह जायगा कालनरजन बोला - आप मझस दवष रखत हो लकन एक खल म फ़र भी खलगा म ऐसी छलपणर बदध बनाऊगा िजसस अनक नकल हसजीव को अपन साथ रखगा और आपक समान रप बनाऊगा तथा आपका नाम लकर अपना मत चलाऊगा इस परकार बहत स जीव को धोख म डाल दगा क व समझ व सतयनाम का ह मागर अपनाय हय ह इसस अलप जीव सतय-असतय को नह समझ पायग कबीर साहब बोल - अर कालनरजन त तो सतयपरष का वरोधी ह उनक ह वरदध षङयतर रचता ह अपनी छलपणर बदध मझ सनाता ह परनत जो जीव सतयनाम का परमी होगा वो इस धोख म नह आयगा जो सचचा हस होगा वह तमहार दवारा मर ानगरनथ म मलायी गयी मलावट और मर वाणी का सतय साफ़-साफ़ पहचानगा और समझगा िजस जीव को म दा दगा उस तमहार धोख क पहचान भी करा दगा तब वह तमहार धोख म नह आयगा य बात सनकर कालनरजन चप हो गया और अतधयारन होकर अपन भवन को चला गया धमरदास इस काल क गत बहत नकषट और कठन ह यह धोख स जीव क मन-बदध को अपन फ़द म फ़ास लता ह --------------------- कबीर साहब न धमरदास दवारा काल क चरतर क बार म पछन पर बताया क - जस कसाई बकरा पालता ह उसक लय चार-पानी क वयवसथा करता ह गम-सद स बचन क लए भी परबनध करता ह िजसक वजह स उन अबोध बकर को लगता ह क हमारा मालक बहत अचछा और दयाल ह हमारा कतना धयान रखता ह इसलय जब कसाई उनक पास आता ह तो सीध-साध बकर उस अपना सह मालक जानकर अपना पयार जतान क लए आग वाल पर उठाकर कसाई क शरर को सपशर करत ह कछ उसक हाथ-पर को भी चाटत ह कसाई जब उन बकर को छकर कमर पर हाथ लगाकर दबा-दबाकर दखता ह तो बचार बकर समझत ह मालक पयार दखा रहा ह परनत कसाई दख रहा ह क बकर म कतना मास हो गया और जब मास खरदन गराहक आता ह तो उस समय कसाई नह दखता क कसका बाप मरगा कसक बट मरगी कसका पतर मरगा या परवार मर रहा ह वो तो बस छर रखी और कर दया - मऽ उनको सवधा दन खलान पलान का उसका यह उददशय था ठक इसी परकार सवरपराणी कालबरहम क पजा-साधना करक काल आहार ह बन ह

समदर और राम क दशमनी का कबीर दवारा नबटारा

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धमरदास बोल - साहब इसस आग कया हआ वह सब भी मझ सनाओ कबीर साहब बोल - उस समय राजा इनदरदमन उङसा का राजा था राजा इनदरदमन अपन राजय का कायर नयायपणर तरक स करता था दवापर यग क अनत म शरीकषण न परभास तर म शरर तयागा तब उसक बाद राजा इनदरदमन को सवपन हआ सवपन म शरीकषण न उसस कहा तम मरा मदर बनवा दो ह राजन तम मरा मदर बनवाकर मझ सथापत करो जब राजा न ऐसा सवपन दखा तो उसन तरनत मदर बनवान का कायर शर दया मदर बना जस ह उसका सब कायर परा हआ तरनत समदर न वह मदर और वह सथान ह नषट कर डबो दया फ़र जब दबारा मदर बनवान लग तो फ़र स समदर करोधत होकर दौङा और ण भर म सब डबोकर जगननाथ का मदर तोङ दया इस तरह राजा न मदर को छह बार बनबाया परनत समदर न हर बार उस नषट कर दया राजा इनदरदमन मदर बनवान क सब उपाय कर हार गया परनत समदर न मदर नह बनन दया मदर बनान तथा टटन क यह दशा दखकर मन वचार कया कयक अनयायी कालनरजन न पहल मझस यह मदर बनवान क पराथरना क थी और मन उस वरदान दया था अतः मर मन म बात सभालन का वचार आया और वचन स बधा होन क कारण म वहा गया मन समदर क कनार आसन लगाया परनत उस समय कसी जीव न मझ वहा दखा नह उसक बाद म फ़र समदर क कनार आया और वहा मन अपना चौरा (नवास) बनाया फ़र मन राजा इनदरदमन को सवपन दखाया और कहा - अर राजा तम मदर बनवाओ और अब य शका मत करो क समदर उस गरा दगा म यहा इसी काम क लय आया ह राजा न ऐसा ह कया और मदर बनवान लगा मदर बनन का काम होत दखकर समदर फ़र चलकर आया उस समय फ़र सागर म लहर उठ और उन लहर न च म करोध धारण कया इस परकार वह लहराता हआ समदर उमङ उमङ कर आता था क मदर बनन न पाय उसक बहद ऊची लहर आकाश तक जाती थी फ़र समदर मर चौर क पास आया और मरा दशरन पाकर भय मानता हआ वह रक गया और आग नह बढ़ा कबीर साहब बोल - तब समदर बराहमण का रप बनाकर मर पास आया और चरण सपशर कर परणाम कया फ़र वह बोला - म आपका रहसय समझा नह सवामी मरा जगननाथ स पराना वर ह शरीकषण िजनका दवापर यग म अवतार हआ था और तरता म िजनका रामरप म अवतार हआ था उनक दवारा समदर पर जबरन पल बनान स मरा उनस पराना वर ह इसीलय म यहा तक आया ह आप मरा अपराध मा कर मन आपका रहसय पाया आप समथरपरष ह परभ आप दन पर दया करन वाल ह आप इस जगननाथ (राम) स मरा बदला दलवाईय म आपस हाथ जोङकर वनती करता ह म उसका पालन करगा जब राम न लका दश क लय गमन कया था तब व सब मझ पर सत बाधकर पार उतर जब कोई बलवान कसी दबरल पर ताकत दखाकर बलपवरक कछ करता ह तो समथरपरभ उसका बदला अवशय दलवात ह ह समथरसवामी आप मझ पर दया करो म उसस बदला अवशय लगा कबीर साहब बोल - समदर जगननाथ स तमहार वर को मन समझा इसक लय मन तमह दवारका दया तम

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जाकर शरीकषण क दवारका नगर को डबो दो यह सनकर समदर न मर चरण सपशर कय और वह परसनन होकर उमङ पङा तथा उसन दवारका नगर डबो दया इस परकार समदर अपना बदला लकर शानत हो गया इस तरह मदर का काम परा हआ तब जगननाथ न पडत को सवपन म बताया क सतयकबीर मर पास आय ह उनहन समदरतट पर अपना चौरा बनाया ह समदर क उमङन स पानी वहा तक आया और सतयकबीर क दशरन कर पीछ हट गया इस परकार मरा मदर डबन स उनहन बचाया तब वह पडापजार समदरतट पर आया और सनान कर मदर म चला गया परनत उस पडत न ऐसा पाखड मन म वचारा क पहल तो उस मलचछ का ह दशरन करना पङा ह कयक म पहल कबीरचौरा तक आया परनत जगननाथपरभ का दशरन नह पाया (पडा मलचछ कबीर साहब को समझ रहा ह) धमरदास तब मन उस पड क बदध दरसत करन क लय एक लला क वह म तमस छपाऊगा नह जब पडत पजा क लय मदर म गया तो वहा एक चरतर हआ मदर म जो मतर लगी थी उसन कबीर का रप धारण कर लया और पडत न जगननाथ क मतर को वहा नह दखा कयक वह बदल कर कबीर रप हो गयी पजा क लय अतपषप लकर पडत भल म पङ गया क यहा ठाकर जी तो ह ह नह फ़र भाई कस पज यहा तो कबीर ह कबीर ह तब ऐसा चरतर दखकर उस पडा न सर झकाया और बोला - सवामी म आपका रहसय नह समझ पाया आप म मन मन नह लगाया मन आपको नह जाना उसक लय आपन यह चरतर दखाया परभ मर अपराध को मा कर दो कबीर साहब बोल - बराहमण म तमस एक बात कहता ह िजस त कान लगाकर सन म तझ आा दता ह क त ठाकर जगननाथ क पजा कर और दवधा का भाव छोङ द वणर जात छत अछत ऊच नीच अमीर गरब का भाव तयाग द कयक सभी मनषय एक समान ह इस जगननाथ मदर म आकर जो मनषय म भदभाव मानता हआ भोजन करगा वह मनषय अगहन होगा भोजन करन म जो छत-अछत रखगा उसका शीश उलटा (चमगादङ) होगा धमरदास इस तरह पडत को पकका उपदश करत हय मन वहा स परसथान कया

धमरदास क पवरजनम क कहानी

धमरदास बोला - साहब आपक दवारा जगननाथ मदर का बनवाना मन सना इसक बाद आप कहा गय कौन स जीव को मकत कराया तथा कलयग का परभाव भी कहय कबीर साहब बोल - धमरदास lsquoराजसथल दशrsquo क राजा का नाम lsquoबकजrsquo था मन उस नाम उपदश दया और जीव

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क उदधार क लय कणरधार कवट बनाया राजसथल दश स म शालमल दप आया और वहा मन एक सत lsquoसहतrsquo को चताया और उस जीव का उदधार करन क लय समसत गर ानदा परदान क फ़र म वहा स दरभगा आया जहा राजा lsquoचतभरज सवामीrsquo का नवास था उसको भी पातर जानकर मन जीव को चतान हत गरवाई (जीव को चतान और नाम उपदश दन वाला) बनाया उसन जरा भी मायामोह नह कया तब मन उस सतयनाम दकर गरवाई द धमरदास मन हस का नमरलान रहनी गहनी समरन आद इन कङहार गरओ को अचछ तरह बताया व सब कल मयारदा काम मोह आद वषय का तयाग कर सारगण को जानन वाल हय चतभरज बकज सहतज और चौथ धमरदास तम य चार जीव क कङहार ह अथारत जीव को सतयान बताकर भवसागर स पार लगान वाल ह यह मन तमस अटल सतय कहा ह धमरदास अब तमहार हाथ स मझको जमबदप (भारत) क जीव मलग जो मर उपदश को गरहण करगा कालनरजन उसस दर ह रहगा धमरदास बोल - साहब म पापकमर करन वाला दषट और नदरयी था और मरा जीवातमा सदा भरम स अचत रहा तब मर कस पणय स आपन मझ अाननदरा स जगाया और कौन स तप स मन आपका दशरन पाया वह मझ बताय कबीर साहब बोल - तमह समझान और दशरन दन क पीछ कया कारण था वह मझस सनो तम अपन पछल जनम क बात सनो िजस कारण म तमहार पास आया सत सदशरन जो दवापर म हय वह कथा मन तमह सनाई जब म उसक हसजीव को सतयलोक ल गया तब उसन मझस वनती क और बोला - सदगर मर वनती सन और मर माता-पता को मिकत दलाय ह बनदछोङ उनका आवागमन मट कर छङान क कपा कर यम क दश म उनहन बहत दख पाया ह मन बहत तरक स उनको समझाया परनत तब उनहन मर बात नह मानी और वशवास ह नह कया लकन उनहन भिकत करन स मझ कभी नह रोका जब म आपक भिकत करता तो कभी उनक मन म वरभाव नह होता बिलक परसननता ह होती इसी स परभ मर वनती ह क आप बनदछोङ उनक जीव को मकत कराय जब सदशरन शवपच न बारबार ऐसी वनती क तो मन उसको मान लया और ससार म कबीर नाम स आया म नरजन क एक वचन स बधा था फ़र भी सदशरन शवपच क वनती पर म भारत आया म वहा गया जहा सत शवपच क माता पता lsquoलमीrsquo और lsquoनरहरrsquo नाम स रहत थ भाई उनहन शवपच क साथ वाल दह छोङ द थी और सदशरन क पणय स उसक माता-पता चौरासी म न जाकर पनः मनषयदह म बराहमण होकर उतपनन हय थ जब दोन का जनम हो गया तब फ़र वधाता न समय अनसार उनह पत-पतनी क रप म मला दया तब उस बराहमण का नाम कलपत और उसक पतनी का नाम महशवर था बहत समय बीत जान पर भी महशवर क सतान नह हयी थी तब पतरपरािपत हत उसन सनान कर सयरदव का वरत रखा वह आचल फ़लाकर दोन हाथ जोङकर सयर स पराथरना करती उसका मन बहत रोता था तब उसी समय म (कबीर साहब) उसक आचल म बालक रप धरकर परकट हो गया मझ दखकर महशवर बहत परसनन हयी और मझ घर ल गयी और अपन पत स बोल - परभ न मझ पर कपा क और मर सयरवरत करन का फ़ल यह बालक मझको दया

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म बहत दन तक वहा रहा व दोन सतरी-परष मलकर मर बहत सवा करत पर व नधरन होन स बहत दखी थ तब मन ऐसा वचार कया क पहल म इनक गरबी दर कर फ़र इनको भिकत-मिकत का उपदश कर इसक लय मन एक लला क जब बराहमण सतरी न मरा पालना हलाया तो उस उसम एक तौला सोना मला फ़र मर बछौन स उनह रोज एक तौला सोना मलता था उसस व बहत सखी हो गय तब मन उनको सतयशबद का उपदश कया और उन दोन को बहत तरह स समझाया परनत उनक हरदय म मरा उपदश नह समाया बालक जानकर उनह मर बात पर वशवास नह आया उस दह म उनहन मझ नह पहचाना तब म वह शरर तयाग कर गपत हो गया तब कछ समय बाद उस बराहमण कलपत और उसक सतरी महशवर दोन न शरर छोङा और मर दशरन क परभाव स उनह फ़र स मनषय शरर मला फ़र दोन समय अनसार पत-पतनी हय और वह चदनवार नगर म जाकर रहन लग इस जनम म उस औरत का नाम lsquoऊदाrsquo और परष का नाम lsquoचदनrsquo था तब म सतयलोक स आकर पनः चदवार नगर म परगट हआ उस सथान पर मन बालक रप बनाया और वहा तालाब म वशराम कया तालाब म मन कमलपतर पर आसन लगाया और आठ पहर वहा रहा उस तालाब म ऊदा सनान करन आयी और सनदर बालक दखकर मोहत हो गयी वह मझ अपन घर ल गयी उसन अपन पत चदनसाह को बताया क य बालक कस परकार मझ मला चदन साह बोला - अर ऊदा त मखर सतरी ह शीघर जाओ और इस बालक को वह डाल आओ वरना हमार जात कटमब क लोग हम पर हसग और उनक हसन स हम दख ह होगा चदनसाह करोधत हआ तो ऊदा बहत डर गयी चदन साह अपनी दासी स बोला - इस बालक को ल जा और तालाब क जल म डाल द कबीर साहब बोल - दासी उस बालक को लकर चल द और तालाब म डालन का मन बनाया उसी समय म अतधयारन हो गया यह दखकर वह बलख-बलख कर रोन लगी वह मन स बहत परशान थी और य चमतकार दखकर मगध होती हयी बालक को खोजती थी पर मह स कछ न बोलती थी इस परकार आय पर होन पर चदनसाह और ऊदा न भी शरर छोङ दया और फ़र दोन न मनषयजनम पाया अबक बार उन दोन को जलाहा-कल म मनषयशरर मला फ़र स वधाता का सयोग हआ और फ़र स समय आन पर व पत-पतनी बन गय इस जनम म उन दोन का नाम नीर नीमा हआ नीर नाम का वह जलाहा काशी म रहता था तब एक दन जठ महना और शकलप तथा बरसाइत पणरमा क तथ थी नीर अपनी पतनी नीमा क साथ लहरतारा तालाब मागर स जा रहा था गम स वयाकल उसक पतनी को जल पीन क इचछा हयी तभी म उस तालाब क कमलपतर पर शशरप म परकट हो गया और बालकरङा करन लगा जल पीन आयी नीमा मझ दखकर हरान रह गयी उसन दौङकर मझ उठा लया और अपन पत क पास ल आयी नीमा न मझ दखकर बहत करोध कया और कहा - इस बालक को वह डाल दो

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नीमा सोच म पङ गयी तब मन उसस कहा - नीमा सनो म तमह समझाकर कहता ह पछल (जनम क) परम क कारण मन तमह दशरन दया कयक पछल जनम म तम दोन सदशरन क माता-पता थ और मन उस वचन दया था क तमहार माता-पता का अवशय उदधार करगा इसलय म तमहार पास आया ह अब तम मझ घर ल चलो और मझ पहचान कर अपना गर बनाओ तब म तमह सतयनाम उपदश दगा िजसस तम कालनरजन क फ़द स छट जाओग तब नीमा न नीर क बात का भय नह माना और मझ अपन घर ल गयी इस परकार म काशी नगर म आ गया और बहत दन तक उनक साथ रहा पर उनह मझ पर वशवास नह आया व मझ अपना बालक ह समझत रह और मर शबदउपदश पर धयान नह दया धमरदास बना वशवास और समपरण क जीवनमिकत का कायर नह होता ऐसा नणरय करक गर क वचन पर दढ़तापवरक वशवास करना चाहय अतः उस शरर म नीर नीमा न मझ नह पहचाना और मझ अपना बालक जानकर सतसग नह कया धमरदास जब जलाहाकल म भी नीर नीमा क आय पर हयी और उनहन फ़र स शरर तयाग कर दबारा मनषयरप म मथरा म जनम लया तब मन वहा मथरा म जाकर उनको दशरन दया अबक बार उनहन मरा शबदउपदश मान लया और उस औरत का रतना नाम हआ वह मन लगाकर भिकत करती थी मन उन दोन सतरी-परष को शबदनाम उपदश दया इस तरह व मकत हो गय और सतयलोक म जाकर हसशरर परापत कया उन हस को दखकर सतयपरष बहत परसनन हय और उनह lsquoसकतrsquo नाम दया फर सतयलोक म रहत हय मझ बहत दन बीत गय तब कालनरजन न बहत जीव को सताया जब कालनरजन जीव को बहत दख दन लगा तब सतयपरष न सकत को पकारा और कहा - ह सकत तम ससार म जाओ वहा अपार बलवान कालनरजन जीव को बहत दख द रहा ह तम जीव को सतयनाम सदश सनाओ और हसदा दकर काल क जाल स मकत कराओ य सनकर सकत बहत परसनन हय और व सतयलोक स भवसागर म आ गय इस बार सकत को ससार म आया दखकर कालनरजन बहत परसनन हआ क इसको तो म अपन फ़द म फ़सा ह लगा तब कालनरजन न बहत स उपाय अपनाकर सकत को फ़साकर अपन जाल म डाल लया जब बहत दन बीत गय और काल न एक भी जीव को सरत नह छोङा और सबको सताता मारता खाता रहा तब जीव न फ़र दखी होकर सतयपरष को पकारा और तब सतयपरष न मझ पकारा सतयपरष न कहा - ानी शीघर ह ससार म जाओ मन जीव क उदधार क लय सकत अश भजा था वह ससार म परकट हो गया हमन उस सारशबद का रहसय समझा कर भजा था परनत वह वापस सतयलोक लौटकर नह आया और कालनरजन क जाल म फ़सकर सध-बध (समत अपनी पहचान) भल गया ानीजी तम जाकर उस अचत-नदरा स जगाओ िजसस मिकतपथ चल वश बयालस हमारा अश ह जो सकत क घर अवतार लगा ानी तम शीघर सकत क पास जाओ और उसक कालफ़ास मटा दो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब सतयपरष क आा स म तमहार पास आया ह धमरदास तम सोचो वचारो क तम जस lsquoनीरrsquo स होकर जनम हो और तमहार सतरी आमन lsquoनीमाrsquo स होकर जनमी ह वस ह म तमहार घर आया ह तम तो मर सबस अधक परय अश हो इसलय मन तमह दशरन दया अबक बार तम मझ पहचानो तब म तमह सतयपरष का उपदश कहगा यह वचन सनत ह धमरदास दौङकर कबीर साहब क चरण म गर गय और रोन लग

कालदत नारायण दास क कहानी

कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमहार सामन सतय का भद परकाशत कया ह और तमहार सभी काल-जाल को मटा दया ह अब रहनी-गहनी क बात सनो िजसको जान बना मनषय य ह भलकर सदा भटकता रहता ह सदा मन लगाकर भिकतसाधना करो और मान-परशसा को तयागकर सचचसनत क सवा करो पहल जात वणर और कल क मयारदा नषट करो (अभमान मत करो और य मत मानो क lsquoमrsquo य ह या वो ह य चौरासी म फ़सन का सबस बङा कारण होता ह) तथा दसर अनयमत पतथर (मतर) पानी (गगा यमना कमभ आद) दवी-दवता क पजा छोङकर नषकाम गर क भिकत करो जो जीव गर स कपट चतराई करता ह वह जीव ससार म भटकता भरमता ह इसलय गर स कभी कपट परदा नह रखना चाहय गर स कपट मतर क चोर क होय अधा क होय कोढ़ जो गर स भद कपट रखता ह उसका उदधार नह होता वह चौरासी म ह रहता ह धमरदास कवल एक सतयपरष क सतयनाम क आशा और वशवास करो इस ससार का बहत बङा जजाल ह इसी म छपा हआ कालनरजन अपनी फ़ास (फ़दा) लगाय हय ह िजसस क जीव उसम फ़सत रह परवार क सब नर-नार मलकर यद सतयनाम का समरन कर तो भयकर काल कछ नह बगाङ सकता धमरदास तमहार घर िजतन जीव ह उन सबको बलाओ सब (हस) नामदा ल फ़र तम अनयायी और करर कालनरजन स सदा सरत रहोग धमरदास बोल - परभ आप जीव क मल (आधार) हो आपन मरा समसत अान मटा दया मरा एक पतर नारायण दास ह आप उस भी उपदश कर यह सनकर कबीर साहब मसकरा दय पर अपन अनदर क भाव को परकट नह कया और बोल - धमरदास िजसको तम शदध अतःकरण वाला समझत हो उनको तरनत बलाओ धमरदास न सबको बलाया और बोल - भाई य समथर सदगरदव सवामी ह इनक शरीचरण म गरकर समपरत हो जाओ िजसस क चौरासी स मकत होओ और ससार म फ़र स न जनम इतना सनत ह सभी जीव आय और कबीर साहब क चरण म दडवत परणाम कर समपरत हो गय परनत नारायण

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दास नह आया धमरदास सोचन लग क नारायण दास तो बहत चतर ह फ़र वह कय नह आया धमरदास न अपन सवक स कहा - मर पतर नारायण दास न गर lsquoरपदासrsquo पर वशवास कया ह और उसक शा अनसार वह िजस सथान पर शरीमदभगवद गीता पढ़ता रहता ह वहा जाकर उसस कहो तमहार पता न समथरगर पाया ह सवक नारायण दास क पास जाकर बोला - नारायण दास तम शीघर चलो आपक पता क पास समथरगर कबीर साहब आय ह उनस उपदश लो नारायण दास बोला - म पता क पास नह जाऊगा व बढ़ हो गय ह और उनक बदध का नाश हो गया ह वषण क समान और कौन ह हम िजसको जप मर पता बढ़ हो गय ह और उनको जलाहा गर भा गया ह मर मन को तो वठठलशवर गर ह पाया ह अब और कया कह मर पता तो बस पागल ह हो गय ह उस सदशी न यह सब बात धमरदास को आकर बतायी धमरदास सवय अपन पतर नारायण दास क पास पहच और बोल - पतर नारायण दास अपन घर चलो वहा सदगर कबीर साहब आय हय ह उनक शरीचरण म माथा टको और अपन सब कमरबधनो को कटाओ जलद करो ऐसा अवसर फ़र नह मलगा हठ छोङो बनदछोङ गर बारबार नह मलत नारायण दास बोला - पताजी लगता ह आप पगला गय हो इसलय तीसरपन क अवसथा म िजदागर पाया ह अर िजसका नाम राम ह उसक समान और कोई दवता नह ह िजसक ऋष-मन आद सभी पजा करत ह आपन गर वठठलशवर का परम छोङकर अब बढ़ाप म वह िजनदागर कया ह तब धमरदास न नारायण को बाह पकङ कर उठा लया और कबीर साहब क सामन ल आय और बोल - इनक चरण पकङो य यम क फ़द स छङान वाल ह नारायण दास मह फ़रकर कट शबद म बोला - यह कहा हमार घर म मलचछ न परवश कया ह कहा स यह lsquoिजनदाठगrsquo आया िजसन मर पता को पागल कर दया वदशासतर को इसन उठाकर रख दया और अपनी महमा बनाकर कहता ह यद यह िजनदा आपक पास रहगा तो मन आपक घर आन क आशा छोङ द ह नारायण दास क यह बात सनत ह धमरदास परशान हो गय और बोल - मरा यह पतर जान कया मत ठान हय ह फ़र माता आमन न भी नारायण को बहत समझाया परनत नारायण दास क मन म उनक एक भी बात सह न लगी और वह बाहर चला गया तब धमरदास कबीर स वनती करत हय बोल - साहब मझ वह कारण बताओ िजसस मरा पतर इस परकार आपको कटवचन कहता ह और दबरदध को परापत होकर भटका हआ ह कबीर बोल - धमरदास मन तो तमह नारायण दास क बार म पहल ह बता दया था पर तम उस भल गय हो

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अतः फ़र स सनो जब म सतयपरष क आा स जीव को चतान मतयलोक क तरफ़ आया तब कालनरजन न मझ दखकर वकराल रप बनाया और बोला - सतयपरष क सवा क बदल मन यह lsquoझाझरदपrsquo परापत कया ह ानी तम भवसागर म कस (कय) आय म तमस सतय कहता ह म तमह मार दगा तम मरा यह रहसय नह जानत कबीर न कहा - अनयायीनरजन सन म तझस नह डरता जो तम अहकार क वाणी बोलत हो म इसी ण तमह मार डालगा कालनरजन सहम गया और वनती करता हआ बोला - ानीजी आप ससार म जाओग बहत स जीव का उदधार कर मकत करोग तो मर भख कस मटगी जब जीव नह हग तब म कया खाऊगा मन एक लाख जीव रात-दन खाय और सवालाख उतपनन कय मर सवा स सतयपरष न मझको तीनलोक का राजय दया आप ससार म जाकर जीव को चताओग उसक लय मन ऐसा इतजाम कया ह म धमर-कमर का ऐसा मायाजाल फ़लाऊगा क आपका सतयउपदश कोई नह मानगा म घर-घर म अान भरम का भत उतपनन करगा तथा धोखा द दकर जीव को भरम म डालगा तब सभी मनषय शराब पीयग मास खायग इसलय कोई आपक बात नह मानगा आपका ससार म जाना बकार ह मन कहा - कालनरजन म तरा छल-बल सब जानता ह म सतयनाम स तर दवारा फ़लाय गय सब भरम मटा दगा और तरा धोखा सबको बताऊगा कालनरजन घबरा गया और बोला - म जीव को अधक स अधक भरमान क लय बारह पथ चलाऊगा और आपका नाम लकर अपना धोख का पथ चलाऊगा lsquoमतअधाrsquo मरा अश ह वह धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा कालदत धमरदास क घर जनम लगा पीछ स आपका अश जनम लगा भाई मर इतनी वनती तो मान ह लो धमरदास तब मन नरजन को कहा सनो नरजन तमन इस परकार कहकर जीव क उदधारकायर म वघन डाल दया ह फ़र भी मन तमको वचन दया इसलय धमरदास अब वह lsquoमतअधाrsquo नाम का कालदत तमहारा पतर बनकर आया ह और अपना नाम नारायण दास रखवाया ह नारायण कालनरजन का अश ह जो जीव क उदधार म वघन का कायर करगा यह मरा नाम लकर पथ को परकट करगा और जीव को धोख म डालगा और नकर म डलवायगा जस शकार नाद को बजाकर हरन को अपन वश म कर लता ह और पकङकर उस मार डालता ह वस ह शकार क भात यमकाल अपना जाल लगाता ह और इस चाल को हसजीव ह समझ पायगा तब कालदत नारायण दास क चाल समझ म आत ह धमरदास न उस तयाग दया और कबीर क चरण म गर पङ

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कालनरजन का छलावा बारह पथ

धमरदास बोल - कालनरजन न जीव को भरमान क लय जो अपन बारह पथ चलाय व मझ समझा कर कहो कबीर साहब बोल - म तमस काल क lsquoबारह पथrsquo क बार कहता ह lsquoमतयअधाrsquo नाम का दत जो छल बल म शिकतशाल ह वह सवय तमहार घर म उतपनन हआ ह यह पहला पथ ह दसरा lsquoतमर दतrsquo चलकर आयगा उसक जात अहर होगी और वह नफ़र यानी गलाम कहलायगा वह तमहार बहत सी पसतक स ान चराकर अलग पथ चलायगा तीसरा पथ का नाम lsquoअधाअचतrsquo दत होगा वह सवक होगा वह तमहार पास आयगा और अपना नाम lsquoसरतगोपालrsquo बतायगा वह भी अपना अलग पथ चलायगा और जीव को lsquoअरयोगrsquo (कालनरजन) क भरम म डालगा धमरदास चौथा lsquoमनभगrsquo नाम का कालदत होगा वह कबीरपथ क मलकथा का आधार लकर अपना पथ चलायगा और उस मलपथ कहकर ससार म फ़लायगा वह जीव को lsquoलदrsquo नाम लकर समझायगा उपदश करगा और इसी नाम को lsquoपारसrsquo कहगा वह शरर क भीतर झकत होन वाल शनय क lsquoझगrsquo शबद का समरन अपन मख स वणरन करगा सब जीव उस lsquoथाकाrsquo कहकर मानग धमरदास lsquoपाचव पथrsquo को चलान वाला lsquoानभगीrsquo नाम का दत होगा उसका पथ टकसार नाम स होगा वह इगला-पगला नाङय क सवर को साधकर भवषय क बात करगा जीव को जीभ नतर मसतक क रखा क बार म बता कर समझायगा जीव क तल मससा आद चहन दखकर उनह भरमरपी धोख म डालगा वह िजस जीव क ऊपर जसा दोष लगायगा वसा ह उसको पान खलायगा (नाम आद दना) lsquoछठा पथrsquo कमाल नाम का ह वह lsquoमनमकरदrsquo दत क नाम स ससार म आया ह उसन मद म वास कया और मरा पतर होकर परकट हआ वह जीव को झलमल-जयोत का उपदश करगा (जो अषटागी न वषण को दखाकर भरमा दया) और इस तरह वह जीव को भरमायगा जहा तक जीव क दिषट ह वह झलमल-जयोत ह दखगा िजसन दोन आख स झलमल-जयोत नह दखी ह वह कस झलमल-जयोत क रप को पहचानगा झलमल-जयोत कालनरजन क ह उस दत क हरदय म सतय मत समझो वह तमह भरमान क लय ह सातवा दत lsquoचतभगrsquo ह वह मन क तरह अनक रगरप बदल कर बोलगा वह lsquoदनrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और दह क भीतर बोलन वाल आतमा को ह सतयपरष बतायगा वह जगतसिषट म पाच-ततव तीन गण बतायगा और ऐसा ान करता हआ अपना पथ चलायगा इसक अतरकत आदपरष कालनरजन अषटागी बरहमा आद कछ भी नह ह ऐसा भरम बनायगा सिषट हमशा स ह तथा इसका कतारधतार कोई नह ह इसी को वह ठोस lsquoबीजकrsquo ान कहगा वह कहगा क अपना आपा ह बरहम ह वह वचन वाणी बोलता ह तो फ़र सोचो गर का कया महतव और आवशयकता ह राम न वशषठ को और कषण न दवारसा को गर कय बनाया जब कषण जस न गरओ क सवा क तो ऋषय-मनय क फ़र गनती ह कया ह नारद न गर को दोष लगाया तो वषण न उनस नकर भगतवाया जो बीजक ान वह दत थोपगा वह ऐसा होगा जस गलर क भीतर कङा घमता ह तथा वह कङा समझता ह क

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ससार इतना ह ह अपन आपको कतार-धतार मानन स जीव का कभी भला न होगा अपन आपको ह मानन वाला जीव रोता रहगा आठवा पथ चलान वाला lsquoअकलभगrsquo दत होगा वह परमधाम कहकर अपना पथ चलायगा कछ करआन तथा वद क बात चराकर अपन पथ म शामल करगा वह कछ-कछ मर नगरण-मत क बात लगा और उन सब बात को मलाकर एक पसतक बनायगा इस परकार जोङजाङ कर वह बरहमान का पथ चलायगा उसम कमरआशरत (यानी ानरहत ानआशरत नह कमर ह पजा ह मानन वाल) जीव बहत लपटग नौवा पथ lsquoवशभर दतrsquo का होगा और उसका जीवनचरतर ऐसा होगा क वह lsquoरामकबीरrsquo नाम का पथ चलायगा वह नगरण-सगण दोन को मलाकर उपदश करगा पाप-पणय को एक समझगा ऐसा कहता हआ वह अपना पथ चलायगा दसवा पथ क दत का नाम lsquoनकटा ननrsquo ह वह lsquoसतनामीrsquo कहकर पथ चलायगा और lsquoचारवणरrsquo क जीव को एक म मलायगा वह अपन वचनउपदश म बराहमण तरय वशय शदर सबको एक समान मलायगा परनत वह सदगर क शबदउपदश को नह पहचानगा वह अपन प को बाधकर रखगा िजसस जीव नकर को जायग वह शरर का ान कथन सब समझायगा परनत सतयपरष क मागर को नह पायगा धमरदास कालनरजन क चालबाजी क बात सनो वह जीव को फ़सान क लय बङ-बङ फ़द क रचना करता ह वह काल जीव को अनक कमर (पजा आद आडबर सामािजक रतरवाज) और कमरजाल म ह जीव को फ़ास कर खा जाता ह जो जीव सारशबद को पहचानता ह समझता ह वह कालनरजन क यमजाल स छट जाता ह और शरदधा स सतयनाम का समरन करत हय अमरलोक को जाता ह lsquoगयारहव पथrsquo को चलान वाला lsquoदगरदानीrsquo नाम का कालदत अतयनत बलशाल होगा वह lsquoजीवपथrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और शररान क बार म समझायगा उसस भोल अानी जीव भरमग और भवसागर स पार नह हग जो जीव बहत अधक अभमानी होगा वह उस कालदत क बात सनकर उसस परम करगा lsquoबारहव पथrsquo का कालदत lsquoहसमनrsquo नाम का होगा वह बहत तरह क चरतर करगा वह वचनवश क घर म सवक होगा और पहल बहत सवा करगा फ़र पीछ (अथारत पहल वशवास जमायगा और जब लोग उसको मानन लगग) वह अपना मत परकट करगा और बहत स जीव को अपन जाल म फ़सा लगा और अश-वश (कबीर साहब क सथापत ान) का वरोध करगा वह उसक ान क कछ बात को मानगा कछ को नह मानगा इस परकार कालनरजन जीव पर अपना दाव फ़ कत हय उनह अपन फ़द म (असलान स दर) बनाय रखगा यानी ऐसी कोशश करगा वह अपन इन अश (कालदत) स बारह पथ (झठान को फ़लान हत) परकट करायगा और य दत सफ़र एकबार ह परकट नह हग बिलक व उन पथ म बारबार आत-जात रहग और इस तरह बारबार ससार म परकट हग जहा-जहा भी य दत परकट हग जीव को बहत ान (भरमान वाला) कहग और व यह सब खद को कबीरपथी बतात हय करग और व शररान का कथन करक सतयान क नाम पर कालनरजन क ह महमा को घमाफ़रा कर बतायग और अानी जीव को काल क मह म भजत रहग कालनरजन न ऐसा ह करन का उनको आदश दया ह

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जब-जब नरजन क य दत ससार म जनम लकर परकट हग तब-तब य अपना पथ फ़लायग व जीव को हरान करन वाल वचतर बात बतायग और जीव को भरमा कर नकर म डालग धमरदास ऐसा वह कालनरजन बहत ह परबल ह वह तथा उसक दत कपट स जीव को छलबदध वाला ह बनायग -------------- आतमान क lsquoहसदाrsquo और lsquoपरमहस दाrsquo म वाणी या अनय इिनदरय का कोई सथान नह ह दोन ह दाओ म सरत को दो अलग-अलग सथान स जोङा जाता ह मतलब धयान बारबार वह ल जान का अभयास कया जाता ह जब धयान पर साधक क पकङ हो जाती ह तो य धयान खद-ब-खद अपन आप होन लगता ह और तीन महन क ह सह अभयास स दवयदशरन अनतलक क सर भवरगफ़ा आसमानी झला आद बहत अनभव होत ह दसर दा क बाद एक सथायी सी शात महसस होती ह जसी पहल कभी महसस नह क और आपक िजनदगी म सवभाव म एक मजबती सी आ जाती ह इसीलय सनत न कहा ह - फ़कर मत कर िजकर कर

चङामण का जनम

धमरदास बोल - परभ अब आप मझ पर कपा करो िजसस ससार म वचनवश परकट हो और आग पथ चल कबीर बोल - धमरदास दस महन म तमहार जीवरप म वश परकट होगा और अवतार होकर जीव क उदधार क लय ह ससार म आयगा य तमहारा पतर ह मरा अश होगा धमरदास न कहा - साहब मन तो अपनी कामदर को वश म कर लया ह फ़र कस परष क अश lsquoनौतम सरतrsquo चङामण ससार म जनम लग कबीर साहब बोल - तम दोन सतरी-परष कामवषय क आसिकत स दर रहकर सफ़र मन स रत करो सतयपरष का नाम पारस ह उस पान पर लखकर अपनी पतनी आमन को दो िजसस सतयपरष का अश नौतम जनम लगा तब धमरदास क यह शका दर हो गयी क बना मथन क यह कस सभव होगा फ़र कबीर साहब क बताय अनसार दोन पत-पतनी न मन स रत क और पान दया जब दस मास पर हय तब मकतामण का जनम हआ इस पर धमरदास न बहत दान कया कबीर साहब को पता चला क मकतामण का जनम हो गया ह तो व तरनत धमरदास क घर पहच और मकतामण को दखकर बोल - यह मकतामण मिकत का सवरप ह यह कालनरजन स जीव को मकत करायगा

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फ़र कबीर साहब मकतामण क दा करत हय बोल - मन तमको वश बयालस का राजय दया तमस बयालस वश हग जो शरदधाल जीव को तारग तमहार उन वश बयालस स साठ शाखाय हगी और फ़र उन शाखाओ स परशाखाय हगी तमहार दस हजार तक परशाखाय हगी वश क साथ मलकर उनका गजारा होगा लकन यद तमहार वश उनस ससार समबनध मानकर नाता मानग तो उनको सतयलोक परापत नह होगा इसलय तमहार वश को मोहमाया स दर रहना चाहय धमरदास पहल मन तमको जो ानवाणी का भडार सपा था वह सब चङामण को बता दो तब बदधमान चङामण ान स पणर हग िजस दखकर काल भी चकनाचर हो जायगा धमरदास न कबीर साहब क आा का पालन कया और दोन न कबीर क चरण सपशर कय यह सब दखकर कालनरजन भय स कापन लगा परसनन होकर कबीर साहब बोल - धमरदास जो सतयपरष क इस नामउपदश को गरहण करगा उसका सतयलोक जान का रासता कालनरजन नह रोक सकता चाह वह अठासी करोङ घाट ढ़ढ़ कोई मख स करोङ ान क बात कहता हो और दखाव क लय बना वधान क (कायद स दा आद क) कबीर कबीर का नाम जपता हो वयथर म कतना ह असार-कथन कहता हो परनत सतयनाम को जान बना सब बकार ह ह जो सवय को ानी समझकर ान क नाम पर बकवास करता हो उसक ानरपी वयजन क सवाद को पछो करोङ यतन स भी यद भोजन तयार हो परनत नमक बना सब फ़का ह रहता ह जस भोजन क बात ह वस ह ान क बात ह हमारा ान का वसतार चौदह करोङ ह फ़र भी सारशबद (असल नाम) इनस अलग और शरषठ ह धमरदास िजस तरह आकाश म नौ लाख तारागण नकलत ह िजनह दखकर सब परसनन होत ह परनत एक सयर क नकलत ह सब तार क चमक खतम हो जाती ह और व दखायी नह दत इसी तरह नौ लाख तारागण ससार क करोङ ान को समझो और एक सयर आतमानी सनत को जानो जस वशाल समदर को पार करान वाला जहाज होता ह उसी परकार अथाह भवसागर को पार करवान वाला एकमातर lsquoसारशबदrsquo ह ह मर सारशबद को समझ कर जो जीव कौव क चाल (वषयवासना म रच) छोङ दग तो वह सारशबदगराह हस हो जायग धमरदास बोल - साहब मर मन म एक सशय ह कपया उस सन मझ समथर सतपरष न ससार म भजा था परनत यहा आन पर कालनरजन न मझ फ़सा लया आप कहत हो म सतसकत का अश ह तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया ऐसा ह आग वश क साथ हआ तो ससार क सभी जीव नषट हो जायग इसलय साहब ऐसी कपा कर क कालनरजन वश को न छल कबीर बोल - धमरदास तमन सतय कहा और ठक सोचा और तमहारा यह सशय होना भी सतय ह आग धमररायनरजन एक खल तमाशा करगा उस म तमस छपाऊगा नह कालनरजन न मझस सफ़र बारह पथ चलान क बात कह थी और अपन चार पथ को गपत रखा था जब मन चार गरओ का नमारण कया तो उसन भी अपन चार अश परकट कय और उनह जीव को फ़सान क लय बहत परकार स समझाया अब आग जसा होगा वह सनो जबतक तम इस शरर म रहोग तबतक कालनरजन परकट नह होगा जब तम शरर छोङोग तभी काल आकर परकट होगा काल आकर तमहार वश को छदगा और धोख म डालकर मोहत करगा वश क बहत नाद सत महत कणरधार हग काल क परभाव स व पारस वश को वष क सवाद जसा करग

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बदमल और टकसार वश क अनदर मशरत हग वश म एक बहत बङा धोखा होगा कालसवरप lsquoहगrsquo दत उसक दह म समायगा वह आपस म झगङा करायगा बदवश क सवभाव को हगदत नह छोङगा वह मन क दवारा बदवश को अपनी तरफ़ मोङगा मरा अश जो सतयपथ चलायगा उस दखकर वह झगङा करगा उसक चहन अथवा चाल को वह नह दख सकगा और अपना रासता वश म दखगा वश अपन अनभवगरनथ कथ कर (कह कर) रखगा परनत नादपतर क नदा करगा तब उन अनभवगरनथ को वश क कणरधार सत महत पढ़ग िजसस उनको बहत अहकार होगा व सवाथर और अहकार को समझ नह पायग और ान कलयाण क नाम पर जीव को भटकायग इसी स म तमह समझाकर कहता ह अपन वश को सावधान कर दो नादपतर जो परकट होगा उसस सब परम स मल धमरदास इसी मन स समझो तम सवरथा वषयवकार स रहत मर नादपतर (शबद स उतपनन) हो कमाल पतर जो मन मतक स जीवत कया था उसक घट (शरर) क भीतर भी कालदत समा गया उसन मझ पता जानकर अहकार कया तब मन अपना ानधन तमको दया म तो परमभाव का भखा ह हाथी घोङ धन दौलत क चाह मझ नह ह अननयपरम और भिकत स जो मझ अपनायगा वह हसभकत ह मर हरदय समायगा यद म अहकार स ह परसनन होन वाला होता तो म सब ान धयान आधयातम पडत-काजी को न सप दता जब मन तमह परम म लगन लगाय अपन अधीन दखा तो अपनी सब अलौकक ान-सपदा ह सप द ऐस ह धमरदास आग सपातर लोग को तम यह ान दना धमरदास अचछ तरह जान लो जहा अहकार होता ह वहा म नह होता जहा अहकार होता ह वहा सब कालसवरप ह होता ह अतः अहकार मिकत क अनोख सतयलोक को नह पा सकता मकतामण और चङामण एक ह अश क दो नाम ह

काल का अपन दत को चाल समझाना

धमरदास बोल - साहब जीव क उदधार क लय जो वचनवश lsquoचङामणrsquo ससार म आया वह सब आपन बताया वचनवश को जो ानी पहचान लगा उसको कालनरजन का lsquoदगरदानीrsquo जसा दत भी नह रोक पायगा तीसरा सरत अश lsquoचङामणrsquo ससार म परकट हआ ह वह मन दख लया फ़र भी मझ एक सशय ह साहब मझ समथर सतयपरष न भजा था परनत ससार म आकर म भी कालनरजन क जाल म फ़स गया आप मझ lsquoसतसकतrsquo का अश कहत हो तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया अगर ऐसा ह सब वश क साथ हआ तो ससार क सब जीव नषट हो जायग इसलय ऐसी कपा करय क कालनरजन सतयपरष क वश को अपन छलभद स न छल पाय कबीर साहब बोल - यह तमन ठक कहा और तमहारा सशय सतय ह भवषय म कालनरजन कया चाल खलगा वह बताता ह सतयग म सतयपरष न मझ बलाया और ससार म जाकर जीव को चतान क लय कहा तो

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कालनरजन न रासत म मझस झगङा कया और मन उसका घमणड चर-चर कर दया पर उसन मर साथ एक धोखा कया और याचना करत हय मझस तीनयग माग लय अनयायी कालनरजन न तब कहा - भाई म चौथा कलयग नह मागता और मन उस वचन द दया और तब जीव क कलयाण हत ससार म आया कयक मन उसको तीन यग द दय थ उसी स उस समय वचनमयारदा क कारण अपना पथ परकट नह कया लकन जब चौथा कलयग आया तब सतयपरष न फ़र स मझ ससार म भजा पहल क ह तरह कसाई कालनरजन न मझ रासत म रोका और मर साथ झगङा कया वह बात मन तमह बता द ह और कालनरजन क बारह पथ का भद भी बता दया कालनरजन न मझस धोखा कया उसन मझस कवल lsquoबारह पथrsquo क बात कह और गपत बात मझको नह बतायी तीन यग म तो वचन लकर उसन मझ ववश कर दया और कलयग म बहत जाल रचकर ऊधम मचाया काल न मझस सफ़र बारह पथ क कहकर गपतरप स lsquoचार पथrsquo और बनाय जब मन जीव को चतान क लय चार कङहार गर क नमारण क वयवसथा क तो काल न अपना अशदत भज दया तथा अपनी छलबदध का वसतार कया और अपन चार अशदत को बहत शा द कालनरजन न दत स कहा - अशो सनो तम तो मर वश हो तमस जो कह उस मानो और मर आा का पालन करो भाई हमारा एक दशमन ह जो ससार म कबीर नाम स जाना जाता ह वह हमारा भवसागर मटाना चाहता ह और जीव को दसर लोक (सतयलोक) ल जाना चाहता ह वह छल-कपट कर मर पजा क वरदध जगत म भरम फ़लाता ह और मर तरफ़ स सबका मन हटा दता ह वह सतयनाम क समधर टर सनाकर जीव को सतयलोक ल जाता ह इस ससार को परकाशत करन म मन अपना मन दया हआ ह और इसलय मन तमको उतपनन कया मर आा मानकर तम ससार म जाओ और कबीर नाम स झठपथ परकट करो ससार क लालची और मखर जीव काम मोह वषयवासना आद वषय क रस म मगन ह अतः म जो कहता ह उसी अनसार उन पर घात लगाकर हमला करो ससार म तम lsquoचार पथrsquo सथापत करो और उनको अपनी-अपनी (झठ) राह बताओ चारो क नाम कबीर नाम पर ह रखो और बना कबीर शबद लगाय मह स कोई बात ह न बोलो अथारत इस तरह कहो कबीर न ऐसा कहा कबीर न वसा कहा जस तम कबीरवाणी का उपदश कर रह होओ कबीर नाम क वशीभत होकर जब जीव तमहार पास आय तो उसस ऐस मीठ वचन कहो जो उसक मन को अचछ लगत ह (अथारत चोट मारन वाल वाल सतयान क बजाय उसको अचछ लगन वाल मीठ मीठ बात करो कयक तमह जीव को झठ म उलझाना ह) कलयग क लालची मखर अानी जीव को ान क समझ नह ह व दखादखी क रासता चलत ह तमहार वचन सनकर व परसनन हग और बारबार तमहार पास आयग जब उनक शरदधा पकक हो जाय और व कोई भदभाव न मान यानी सतय क रासत और तमहार झठ क रासत को एक ह समझन लग तब तम उन पर अपना जाल डाल दो पर बहद होशयार स कोई इस रहसय को जानन न पाय तम जमबदप (भारत) म अपना सथान बनाओ जहा कबीर क नाम और ान का परमाण ह जब कबीर बाधगढ (छीसगढ़) म जाय और धमरदास को उपदश-दा आद द तब व उसक बयालस वश क ानराजय को सथापत करग तब तमह उसम घसपठ करक उनक राजय को डावाडोल करना ह मन चौदह यम क नाकाबनद करक जीव

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क सतयलोक जान का मागर रोक दया ह और कबीर क नाम पर बारह झठपथ चलाकर जीव को धोख म डाल दया ह भाई तब भी मझ सशय ह उसी स म तमको वहा भजता ह उनक बयालस वश पर तम हमला करो और उनह अपनी बात म फ़सा लो कालनरजन क बात सनकर व चार दत बोल - हम ऐसा ह करग यह सनकर कालनरजन बहत परसनन हआ और जीव को छल-कपट दवारा धोख म रखन क बहत स उपाय बतान लगा जीव पर हमला करन क उसन बहत स मनतर सनाय उसन कहा - अब तम ससार म जाओ और चार तरफ़ फ़ल जाओ ऊच नीच गरब अमीर कसी को मत छोङो और सब पर काल का फ़दा कस दो तम ऐसी कपट-चालाक करो क िजसस मरा आहार जीव कह नकल कर न जान पाय धमरदास यह चारो दत ससार म परगट हग जो चार अलग-अलग नाम स कबीर क नाम पर पथ चलायग इन चार दत को मर चलाय बारह पथ का मखया मानो इनस जो चार पथ चलग उसस सब ान उलट-पलट हो जायगा य चार पथ बारह पथ का मल यानी आधार हग जो वचनवश क लय शल क समान पीङादायक हग यानी हर तरह स उनक कायर म वघन करत हय जीव क उदधार म बाधा पहचायग यह सनकर धमरदास घबरा गय और बोल - साहब अब मरा सशय और भी बढ़ गया ह मझ उन कालदत क बार म अवशय बताओ उनका चरतर मझ सनाओ उन कालदत का वश और उनका लण कहो य ससार म कौन सा रप बनायग और कस परकार जीव को मारग व कौन स दश म परकट हग मझ शीघर बताओ

काल क चार दत

कबीर साहब बोल - धमरदास उन चार दत क बार म तमस समझा कर कहता ह उन चार दत क नाम - रभदत करभदत जयदत और वजयदत ह अब lsquoरभदतrsquo क बात सनो यह भारत क गढ़ कालजर म अपनी गदद सथापत करगा और अपना नाम भगत रखगा और बहत जीव को अपना शषय बनायगा जो कोई जीव अकर होगा अथारत िजसम सतयान क परत चतना होगी तथा िजसक पवर क शभकमर हग वह यम (कालनरजन) क इस फ़द को तोङकर बच जायगा वह कालरप रभदत बहत बलवान तथा षङयतर करन वाला होगा वह तमहार और मर वातार का खडन करगा वह दावधान को रोकगा और सतयपरष क सतयलोक और दप को झठा बतायगा वह अपनी lsquoअलग ह रमनीrsquo कहगा वह मर सतयवाणी क परत ववाद करगा िजसक कारण उसक जाल म बहत लोग फ़सग चार धाराओ का अपन मतानसार ान करगा मरा नाम कबीर जोङकर अपना झठा परचार-परसार करगा वह अपन आपको कबीर ह बतायगा और मझ पाच-ततव क दह म बसा हआ बतायगा वह जीव को सतयपरष क समान

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सदध करगा तथा सतयपरष का खडन कर जीव को शरषठ बतायगा हसजीव को इषट कबीर ठहरायगा तथा कतार को कबीर कहकर पकारगा सबका कतार कालनरजन जीव को घोर दख दन वाला ह और उसक ह समान यह यमदत मझ भी समझता ह वह कमर करन वाल जीव को ह सतयपरष ठहरायगा और सतयपरष क नाम-ान को छपाकर अपन आपको परकट करगा वचार करो जीव अपन आप ह सब होता तो इस तरह अनक दख कय भोगता पाच-ततव क दह वाला पाच-ततव क अधीन हआ य जीव दख पाता ह और रमभदत जीव को सतयपरष क समान बताता ह सतयपरष का शरर अजर-अमर ह उनक अनक कलाय ह तथा उनका रप और छाया नह ह धमरदास य गरान अनपम ह िजसम बना दपरण क अपना रप दखायी दता ह अब दसर lsquoकरभ दतrsquo का वणरन सनो वह मगध दश म परकट होगा और अपना नाम धनीदास रखगा करभ छल-परपच क बहत स जाल बछायगा और ानीजीव को भी भटकायगा िजसक हरदय म थोङा भी आतमान होगा य यमदत धोखा दकर उस नषट कर दगा धमरदास इस करभ क चालबाजी सनो यह अपन कथन क टकसार बताकर मजबत जाल सजायगा वह चनदर इङा सयर पगला नाङय क अनसार शभ-अशभ लगन का परचार-परसार करगा तथा राह-कत आद गरह का वसतार स वणरन करगा वह पाच-ततव तथा उनक गण क मत को शरषठ बताकर उनका वणरन करगा तब अानी जीव उसक फ़लाय भरम को नह जानग वह जयोतष क मत को टकसार कहकर फ़लायगा और जीव को गरह-नतर तथा इिनदरय क वश म करक उनका असल सतयपरष क भिकत स धयान हटा दगा वह जल वाय का ान बतायगा और पवन क वभनन नाम और गण का वणरन करगा वह सतय स हटकर ऐसी पजावधान चलाकर जीव को धोखा दकर भरमायगा भटकायगा वह अपन शषय बनात समय वशष नाटक करगा अग-अग क रखा दखगा और पाव क नाखन स सर क चोट को दखत हय जीव को कमरजाल म फ़साकर भरमायगा वह जीव को दख-समझ कर तथा शरवीर कहकर मोह मद म चढ़ा कर धर खायगा भरमाय हय अपन शषय स दणा म सवणर तथा सतरी अपरण करायगा इस परकार वह जीव को ठगगा शषय को गाठ बाधकर तब वह फ़रा करगा और कमरदोष लगाकर उस यम का गलाम बना दगा पचासी पवन काल क ह अतः वह शषय को पवन नाम लखकर पान खलायगा वह नीर पवन क ान का परसार करगा और शषय को पवन नाम दकर आरती उतरवायगा काल क पचासी पवन अनसार पजा करायगा कया नार कया परष वह सबक शरर क तल मसस क पहचान दखा करगा शख चकर और सीप क चनह दखगा कालनरजन का वह दत ऐसी दषटबदध का होगा और जीव म सशय उतपनन करगा तथा उनह गरसत (बरबाद) करत हय पीङत करगा इस कालदत का और भी झठ-परपच सनो वह अपनी lsquoसाठ समrsquo तथा lsquoबारह चौपाईयrsquo को उठाकर जीव म भरम उतपनन करगा वह lsquoपचामत एकोर नामrsquo का समरन को शरषठशबद और मिकतदाता बतायगा जीव क कलयाण का जो असलान आदकाल स निशचत ह वह उस झठ और धोखा बतायगा तथा पाच-ततव पचचीस परकत

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तीन गण चौदह यम यह ईशवर ह अथारत ऐसा कहगा तम ह सब कछ हो पाच-ततव का जाल बनाकर यह यमदत शरर क ततव का धयान करायगा वचार करो क ततव का धयान लगाय तब शरर छटन पर कहा जायग ततव तो ततव म मल जायगा धमरदास जीव को जहा आशा होती ह वह उसका वास होता ह अतः नाम-समरन स धयान हटन पर ततव म उलझ कर वह ततव म ह समायगा कहा तक कह करभ घमासान वनाश करगा उसक छल को वह समझगा जो जीव सतयनाम उपदश को गरहण करन वाला और समझन वाला होगा पाच जङततव तो काल क अग ह अतः ततव क मत म पङकर जीव क दगरत ह होगी और यह सब कछ वह कबीर क नाम पर खद को कबीरपथी बताकर इसको कबीर का ान बताकर करगा जो जीव उसक जाल म फ़स जायग वह करर कालनरजन क मख म ह जायग अब तीसर दत lsquoजयदतrsquo क बार म जानो यह यमदत बङा वकराल होगा यह झठा-परपची अपनी वाणी को आद अनाद (वाणी) कहगा यह जयदत lsquoकरकट गरामrsquo म परकट होगा जो बाधौगढ क पास ह ह वह lsquoचमार कलrsquo म उतपनन होगा और ऊचकल वाल क जात को बगाङन क कोशश करगा यह यमदत lsquoदासrsquo कहायगा और lsquoगणपतrsquo नाम का उसका पतर होगा व दोन पता पतर परबल कालसवरप दखदायी हग और तमहार वश को आकर घरग अथारत जीव क उदधार म यथाशिकत बाधा पहचायग वह कहगा असलान हमार पास ह धमरदास वह तमहार वश को उठा दगा अथारत परभाव खतम करन क कोशश करगा वह अपना अनभव कहकर अपन बहत स गरनथ बनायगा और उसम ानीपरष क समान सवाद बनायगा वह कहगा क lsquoमलानrsquo तो सतयपरष न मझ दया ह धमरदास क पास मलान नह ह वह तमहार वश को भरमा दगा और ानमागर को वचलत करगा वह तमहार वश म अपना मत पकका करगा और मल lsquoपारस-थाकाrsquo पथ चलायगा मलछाप लकर वश को बगाङगा वह कालदत अपना मल पारस दकर सबक वसी ह बदध कर दगा वह भीतर शनय म झकत होन वाल lsquoझगrsquo शबद क बात करगा िजसस ानहन कचचजीव को भलावा दगा परष-सतरी क िजस रज-वीयर स शरररचना होती ह उसको वह अपना मलमत परचलत करगा शरर का मल lsquoआधारबीजrsquo कामवषय ह परनत उसका नाम वह गपत रखगा पहल तो वह अपना मलआधार थाका ह गपत रखगा फ़र जब शषय को जोङकर पर तरह साध लगा तब उसका वणरन करगा पहल तो ान-गरनथ को समझायगा फ़र पीछ स अपना मत पकका करायगा वह सतरी क अग को पारस ान दगा िजस आा मानकर उसक सब शषय लग पहल वह ान का शबद-उपदश समझायगा फ़र कामवषय वासना जो नकर क खान ह उस वह मल बखानगा वह lsquoझाझर दपrsquo क कथा सनायगा पाच-ततव स बन शरर क lsquoशनयगफ़ाrsquo म जाकर य पाच-ततव बहत परकार स रगीन चमकला परकाश बनात ह उस गफ़ा म lsquoहगrsquo शबद बहत जोर स उठता ह जब lsquoसोऽहगमrsquo जीव अपना शरर छोङगा तब कौन स वध स lsquoझगrsquo शबद उसक सामन आयगा कयक वह तो शरर क रहन तक ह होता ह शरर क छटत ह वह भी समापत हो जायगा

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lsquoझाझर दपrsquo कालनरजन न रच रखा ह और lsquoझग-हगrsquo दोन काल क ह शाखा ह य अनयायी कालदत अवहर (सतरी-परष कामसमबनध) ान कहगा lsquoअवहर ानrsquo कालनरजन का धोखा ह वह तमहार ान क भी महमा शामल करक मलाकर कहगा इसलय उसक मत म बहत स कङहार महत हग वह कालदत सथान-सथान पर नीचकमर करगा और हमार बात करत हय हम पर ह हसगा अतः अानी ससार लोग समझग क यह सब समान ह अथारत कबीर का मत और lsquoजयदतrsquo का मत एक ह ह जब कोई इस भद को जानन क कोशश करगा तभी उस पता चलगा िजसक हाथ म सतनामरपी दपक होगा वह हसजीव काल क इस जजाल को तयाग कर अपना कलयाण करगा इसम कोई सदह नह ह य कपटकाल बगल का धयान लगाय रहगा और सतयनाम को छोङकर कालसमबनधी नाम को परकटायगा अब चौथ lsquoवजयदतrsquo क बात सनो यह बनदलखनड म परकट होगा और अपना नाम lsquoजीवrsquo धरायगा यह वजयदत lsquoसखाभावrsquo क भिकत पकक करगा यह सखय क साथ रास रचायगा और मरल बजायगा अनक सखय क सग लगन परम लगायगा और अपन आपको दसरा कषण कहायगा वह जीव को धोखा दकर फ़ासगा और कहगा - आख क आग lsquoमन क छायाrsquo रहती ह और नाक क ऊपर क ओर आकाश lsquoशनयrsquo ह आख और कान बनद कर धयान लगान क िसथत म कोहरा जसा दखता ह सफ़द काला नीला पीला आद रग दखना च क करयाय ह परनत वह मिकत क नाम पर उनम जीव को डालकर भरमायगा य सब काल का धोखा ह यह परतण बदलती करयाय िसथर ह जो शरर क आख स दखी जाती ह अतः यह कालदत मन क छाया माया दखायगा और मिकत का मल छाया को बतायगा यह lsquoसतयनामrsquo स जीव को भटका कर काल क मख म ल जायगा

सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव

कबीर बोल - धमरदास सदगर सवपर ह अतः शषय को चाहय क गर स अधक कसी को न मान और गर क सखाय हय को सतय करक जान एक समय ऐसा भी आयगा जब तमहारा बदवश उलटा काम करगा वह बना गर क भवसागर स पार होना चाहगा जो नगरा होकर जगत को समझाता ह अथारत ान बताता ह वह खद तो डबगा ह तथा ससार क जीव को भी डबायगा बना गर क कलयाण नह होता जो गर क शरणागत होता ह वह ससारसागर स पार हो जाता ह कालनरजन अनक परकार स जीव को धोख म डालता ह अतः बना गर क जीव को अहकारवश ान कहत दखकर काल बहत खश होता ह धमरदास बोल - साहब कपा कर lsquoनाद-बदrsquo ान समझान क कपा कर कबीर बोल - बद एक और नाद बहत स होत ह जो बद क भात मल वह बद कहाता ह वचनवश सतयपरष का अश ह उसक ान स जीव ससार स छट जाता ह नाद और बदवश एक साथ हग तब उनस काल मह छपाकर रहगा जस मन तमह बताया वस नादबद योग (योग का एक तरका परकार) एक करना कयक बना

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नाद तो बद का भी वसतार नह होता और बना बद नाद नह उबरगा इस कलयग म काल बहत परबल ह जो अहकाररप धर सबको खाता ह नाद अहकार तयाग कर होगा और बद का अहकार बद सजायगा इसी स सतयपरष न इन दोन को अनशासत करन क लय मयारदा (नयम) म बाधा और नाद-बद दो रप बनाय जो अहकार छोङकर सतयसवरप परमातमा को भजगा उसका धयान समरन करगा वह हस-सवरप हो जायगा नाद-बद दोन कोई ह अहकार सबक लय हानकारक ह ह इसलय यह निशचत ह जो अहकार करगा वह भवसागर म डबगा धमरदास बोल - साहब आपन नाद-बद क बार म बताया अब मर मन म एक बात आ रह ह आपक वरोधी मर पतर नारायण दास का कया होगा वह ससार क नात मरा पतर ह इसलय चता होती ह सतयनाम को गरहण करन वाल जीव सतयलोक को जायग और नारायण दास काल क मह म जायगा यह तो अचछ बात न होगी कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमको बारबार समझाया पर तमहार समझ म नह आया अगर चौदह यमदत ह मकत होकर सतयलोक चल जायग तो फ़र जीव को फ़सान क लय फ़दा कौन लगायगा अब मन तमहारा ान समझा तम मर बात क परवाह न करक मोहमाया दवारा सतयपरष क आा को मटान म लग हय हो जब मनषय क मन म मोह अधकार छा जाता ह तब सारा ान भलकर वह अपना परमाथर कमर नषट करता ह बना वशवास क भिकत नह होती और बना भिकत क कोई जीव भवसागर स नह तर सकता फ़र स तमह काल फ़दा लगा ह तमन परतय दखा क नारायण दास कालदत ह फ़र भी तमन उस पतर मानन का हठ कया जब तमह ह मर वचन पर वशवास नह आता तो ससार लोग गरओ पर कया वशवास करग जो अहकार को छोङकर गर क शरण म आता ह वह सदगत पाता ह जो तरगणी माया को पकङत ह उनम मोहमद जाग जाता ह और व अभाग भिकत-ान सब तयाग दत ह जब तम ह गर का वशवास तयाग दोग जो जीव का उदधार करन वाल हो तब सामानय जीव का कया ठकाना इस परकार भरमत करन क यह तो कालनरजन क सह पहचान ह धमरदास सनो जसा तम कह रह हो वसा ह तमहारा वश भी परकाशत करगा मोह क आग म वह सदा जलगा और इसी स तमहार वश म वरोध पङगा िजसस दख होगा पतर धन घर सतरी परवार और कल का अभमान यह सब काल ह का तो वसतार ह वह इनह को माधयम बनाकर जीव को बधन म डालता ह इनस तमहारा वश भल म पङ जायगा और सतयनाम क राह नह पायगा ससार क अनय वश क दखादखी तमहार वश क लोग भी पतर धन घर परवार आद क मोह म पङ जायग और यह दखकर कालदत बहत परसनन हग तब कालदत परबल हो जायग और जीव को नकर भजग कालनरजन अपन जाल म जीव को जब फ़साता ह तो उस काम करोध मद लोभ मोह वषय म भला दता ह फ़र उस गर क वचन पर वशवास नह रहता तब सतयनाम क बात सनत ह वह जीव चढ़न लगता ह गर पर वशवास न करन का यह लण ह धमरदास िजसक घट (शरर) म सतयनाम समा गया ह उसक पहचान कहता ह धयान स सनो उस भकत को काल का वाण नह लगता और उस काम करोध मद लोभ नह सतात वह झठ मोह तषणा तथा सासारक वसतओ क आशा तयाग कर सदगर क सतयवचन म मन लगाता ह जस सपर मण को धारण कर परकाशत होता

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ह ऐस ह शषय सदगर क आा को अपन हरदय म धारण कर तथा समसत वषय को भलाकर ववक हस बनकर अवनाशी नज मकतसवरप सतयपद परापत कर सदगर क वचन पर अटल और अभमानरहत कोई बरला ह शरवीर सत परापत करता ह और उसक लय मिकत दर नह होती इस परकार जीवत ह मिकतिसथत का अनभव और मिकत परदान कराना सदगर का ह परताप ह अतः सदगर क चरण म ह परम करो और सब पापकमर अान एव सासारक वषय वकार को तयाग दो अपन नाशवान शरर को धल क समान समझो यह सनकर धमरदास सकपका गय वह कबीर साहब क चरण म गर पङ और दखी सवर म बोल - परभ म अान स अचत हो गया था मझ पर कपा कर कपा कर मर भल-चक मा कर जो नारायण दास क लय मन िजद क थी वह अान म खद को पता जानकर क थी अतः मर इस भल को मा कर कबीर बोल - धमरदास तम सतयपरष क अश हो परनत वश नारायण दास काल का दत ह उस तयाग दो और जीव का कलयाण करन क लय भवसागर म सतयपथ चलाओ यह सनकर धमरदास कबीर साहब क पर पर गर पङ और बोल - आज स मन अपन उस पतररप कालदत को तयाग दया अब आपको छोङकर कसी और क आशा कर तो म सतयसकलप क साथ कहता ह मरा नकर म वास हो कबीर साहब परसननता स बोल - धमरदास तम धनय हो जो मझको पहचान लया और नारायण दास को तयाग दया जब शषय क हरदयरपी दपरण म मल नह होगा गर का सवरप तब ह दखायी दगा जब शषय अपन पवतर हरदय म सदगर क शरीचरण को रखता ह तो काल क सब शाखाओ क समसत बधन को मटाता ह परनत जबतक वह सात पाच (सात सवगर काल तथा माया (क) तीन पतर बरहमा वषण महश य पाच) क आशा लगी रहगी तबतक वह शषय गरपद क महमा नह समझ पायगा

गर-शषय वचार-रहनी

धमरदास बोल - साहब आप गर हो म दास ह अब मझ गर-शषय क रहनी समझा कर कहो कबीर बोल - गर का वरत धारण करन वाल शषय को समझना चाहय क नगरण-सगण क बीच गर ह आधार होता ह गर क बना आचार अनदर-बाहर क पवतरता नह होती और गर क बना कोई भवसागर स पार नह होता शषय को सीप और गर को सवात बद क समान समझना चाहय गर क समपकर स तचछजीव (सीप) मोती क समान अनमोल हो जाता ह गर पारस और शषय लोह क समान ह जस पारस लोह को सोना बना दता ह गर मलयागर चदन क समान ह शषय वषल सपर क तरह होता ह इस परकार वह गर क कपा स शीतल होता ह गर समदर तो शषय उसम उठन वाल तरग ह गर दपक ह तो शषय उसम समपरत हआ पतगा ह गर चनदरमा ह तो शषय चकोर ह गर सयर ह जो कमलरपी शषय को वकसत करत ह इस परकार गरपरम को

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शषय वशवासपवरक परापत कर गर क चरण का सपशर और दशरन परापत कर जब इस तरह कोई शषय गर का वशष धयान करता ह तब वह भी गर क समान होता ह धमरदास गर एव गरओ म भी भद ह य तो सभी ससार ह गर-गर कहता ह परनत वासतव म गर वह ह जो सतयशबद या सारशबद का ान करान वाला ह उसका जगान वाला या दखान वाला ह और सतयान क अनसार आवागमन स मिकत दलाकर आतमा को उसक नजघर सतयलोक पहचाय गर जो मतय स हमशा क लय छङाकर अमतशबद (सारशबद) दखात ह िजसक शिकत स हसजीव अपन घर सतयलोक को जाता ह उस गर म कछ छल-भद नह ह अथारत वह सचचा ह ह ऐस गर तथा उनक शषय का मत एक ह होता ह जबक दसर गर-शषय म मतभद होता ह ससार क लोग क मन म अनक परकार क कमर करन क भावना ह यह सारा ससार उसी स लपटा पङा ह कालनरजन न जीव को भरमजाल म डाल दया ह िजसस उबर कर वह अपन ह इस सतय को नह जान पाता क वह नतय अवनाशी और चतनय ानसवरप ह इस ससार म गर बहत ह परनत व सभी झठ मानयताओ और अधवशवास क बनावट जाल म फ़स हय ह और दसर जीव को भी फ़सात ह लकन समथरसदगर क बना जीव का भरम कभी नह मटगा कयक कालनरजन भी बहत बलवान और भयकर ह अतः ऐसी झठ मानयताओ अधवशवास एव परमपराओ क फ़द स छङान वाल सदगर क बलहार ह जो सतयान का अजर-अमर सदश बतात ह अतः रात-दन शषय अपनी सरत सदगर स लगाय और पवतर सवाभावना स सचच साध-सनत क हरदय म सथान बनाय िजन सवक भकत शषय पर सदगर दया करत ह उनक सब अशभ कमरबधन आद जलकर भसम हो जात ह शषय गर क सवा क बदल कसी फ़ल क मन म आशा न रख तो सदगर उसक सब दखबधन काट दत ह जो सदगर क शरीचरण म धयान लगाता ह वह जीव अमरलोक जाता ह कोई योगी योगसाधना करता ह िजसम खचर भचर चाचर अगोचर नाद चकरभदन आद बहत सी करयाय ह तब इनह म उलझा हआ वह योगी भी सतयान को नह जान पाता और बना सदगर क वह भी भवसागर स नह तरता धमरदास सचचगर को ह मानना चाहय ऐस साध और गर म अतर नह होता परनत जो ससार कसम क गर ह वह अपन ह सवाथर म लग रहत ह न तो वह गर ह न शषय न साध और न ह आचार मानन वाला खद को गर कहन वाल ऐस सवाथ जीव को तम काल का फ़दा समझो और कालनरजन का दत ह जानो उसस जीव क हान होती ह यह सवाथरभावना कालनरजन क ह पहचान ह जो गर शाशवतपरम क आितमकपरम क भद को जानता ह और सारशबद क पहचान मागर जानता ह और परमपरष क िसथर भिकत कराता ह तथा सरत को शबद म लन करान क करया समझाता ह ऐस सदगर स मन लगाकर परम कर और दषटबदध एव कपट चालाक छोङ द तब ह वह नजघर को परापत होता ह और इस भवसागर स तर क फ़र लौटकर नह आता तीन काल क बधन स मकत सदा अवनाशी सतयपरष का नाम अमत ह अनमोल ह िसथर ह शाशवत सतय स मलान वाला ह अतः मनषय को चाहय क वह अपनी वतरमान कौव क चाल छोङकर हस सवभाव अपनाय और

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बहत सार पथ जो कमागर क ओर ल जात ह उनम बलकल भी मन न लगाय और बहत सार कमर भरम क जजाल को तयाग कर सतय को जान तथा अपन शरर को मटट ह जान और सदगर क वचन पर पणर वशवास कर कबीर साहब क ऐस वचन सनकर धमरदास बहत परसनन हय और दौङकर कबीर क चरण स लपट गय व परम म गदगद हो गय और उनक खशी स आस बहन लग फ़र वह बोल - साहब आप मझ ान पान क अधकार और अनाधकार जीव क लण भी कह कबीर बोल - धमरदास िजसको तम वनमर दखो िजस परष म ान क ललक परमाथर और सवाभावना हो तथा जो मिकत क लय बहत अधीर हो िजसक मन म दया शील मा आद सदगण ह उसको नाम (हसदा) और सतयान का उपदश करो कनत जो दयाहन हो सारशबद का उपदश न मान और काल का प लकर वयथर वाद-ववाद तकर -वतकर कर और िजसक दिषट चचल हो उसको ान परापत नह हो सकता होठ क बाहर िजसक दात दखाई पङ उसको जानो क कालदत वश धरकर आया ह िजसक आख क मधय तल हो वह काल का ह रप ह िजसका सर छोटा हो परनत शरर वशाल हो उनक हरदय म अकसर कपट होता ह उसको भी सारशबद ान मत दो कयक वह सतयपथ क हान ह करगा तब धमरदास न कबीर साहब को शरदधा स दडवत परणाम कया

शररान परचय

धमरदास बोल - साहब म बङभागी ह आपन मझ ान दया अब मझ शररनणरय वचार भी कहय इसम कौन सा दवता कहा रहता ह और उसका कया कायर ह नाङ रोम कतन ह और शरर म खन कसलय ह तथा सवास कौन स मागर स चलती ह आत प फ़फ़ङा और आमाशय इनक बार म भी बताओ शरर म िसथत कौन स कमल पर कतना जप होता ह और रात-दन म कतनी सवास चलती ह कहा स शबद उठकर आता ह तथा कहा जाकर वह समाता ह अगर कोई जीव झलमल-जयोत को दखता ह तो मझ उसका भी ान ववक कहो क उसन कौन स दवता का दशरन पाया कबीर बोल - धमरदास अब तम शरर-वचार सनो सतयपरष का नाम सबस नयारा और शरर स अलग ह कयक वह आदपरष कमशः सथल सम कारण महाकारण तथा कवलय शरर स अलग ह इसलय उसका नाम भी अलग ह ह पहला मलाधारचकर गदासथान ह यहा चारदल का कमल ह इसका दवता गणश ह यहा सोलह सौ अजपा जाप ह मलाधार क ऊपर सवाधषठानचकर ह यह छहदल का कमल ह यहा बरहमा सावतरी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह आठदल (प) का कमल नाभसथान पर ह यह वषण लमी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह

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इसक ऊपर हरदय सथान पर बारह दल का कमल ह यह शव पावरती का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह वशदधचकर का सथान कठ (गला) ह यह सोलह दल का कमल ह इसम सरसवती का सथान ह इसक लय एक हजार अजपा जाप ह भवरगफ़ा दो-दल का कमल ह वहा मनराजा का थाना (चौक - मकत होत जीव को भरमान क लय) ह इसक लय भी एक हजार अजपा जाप ह इस कमल क ऊपर शनयसथान ह वहा होती झलमल-जयोत को कालनरजन जानो सबस ऊपर lsquoसरतकमलrsquo म सदगर का वास ह वहा अननत अजपा जाप ह धमरदास सबस नीच मलाधारचकर स ऊपर तक इककस हजार छह सौ सवास दन-रात चलती ह (सामानय सवास लन और छोङन म चार सक ड का समय लगता ह इस हसाब स चौबीस घट म इककस हजार छह सौ सवास दन-रात आती जाती ह) अब शरर क बार म जानो पाच-ततव स बना य (घङा घट) कमभरपी शरर ह तथा शरर म सात धातय रकत मास मद मजजा रस शकर और अिसथ ह इनम रस बना खन सार शरर म दौङता हआ शरर का पोषण करता ह जस परथवी पर असखय पङ-पौध ह वस ह परथवीरपी इस शरर पर करोङ रोम (रय) होत ह इस शरर क सरचना म बहर कोठ ह जहा बहर हजार नाङय क गाठ बधी हयी ह इस तरह शरर म धमनी और शरापरधान नाङया ह बहर नाङय म नौ पहखा गधार कह वारणी गणशनी पयिसवनी हिसतनी अलवषा शखनी ह इन नौ म भी इङा पगला सषमना य तीन परधान ह इन तीन नाङय म भी सषमना खास ह इस नाङ क दवारा ह योगी सतययातरा करत ह नीच मलाधारचकर स लकर ऊपर बरहमरधर तक िजतन भी कमलदल चकर आत ह उनस शबद उठता ह और उनका गण परकट करता ह तब वहा स फ़र उठकर वह शबद शनय म समा जाता ह आत का इककस हाथ होन का परमाण ह और आमाशय सवा हाथ अनमान ह नभतर का सवा हाथ परमाण ह और इसम सात खङक दो कान दो आख दो नाक छद एक मह ह इस तरह इस शरर म िसथत पराणवाय क रहसय को जो योगी जान लता ह और नरतर य योग करता ह परनत सदगर क भिकत क बना वह भी लख चौरासी म ह जाता ह हर तरह स ानयोग कमरयोग स शरषठ ह अतः इन वभनन योग क चककर म न पङ कर नाम क सहज भिकत स अपना उदधार कर और शरर म रहन वाल अतयनत बलवान शतर काम करोध मद लोभ आद को ान दवारा नषट करक जीवन मकत होकर रह धमरदास य सब कमरकाड मन क वयवहार ह अतः तम सदगर क मत स ान को समझो कालनरजन या मन शनय म जयोत दखाता ह िजस दखकर जीव उस ह ईशवर मानकर धोख म पङ जाता ह इस परकार य lsquoमनरपीrsquo कालनरजन अनक परकार क भरम उतपनन करता ह धमरदास योगसाधना म मसतक म पराण रोकन स जो जयोत उतपनन होती ह वह आकार-रहत नराकार मन ह ह मन म ह जीव को भरमान उनह पापकम म वषय म परवत करन क शिकत ह उसी शिकत स वह सब जीव को कचलता ह उसक यह शिकत तीन लोक म फ़ल हयी ह इस तरह मन दवारा भरमत यह मनषय खद को पहचान कर असखय-जनम स धोखा खा रहा ह और य भी नह सोच पाता क कालनरजन क कपट स िजन तचछ दवी-दवताओ क आग वह सर झकाता ह व सब उस (आतमा-मनषय) क ह आशरत ह धमरदास यह सब नरजन का जाल ह जो मनषय दवी- दवताओ को पजता हआ कलयाण क आशा करता ह परनत सतयनाम क बना यह यम क फ़ास कभी नह कटगी

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मन क कपट करामात

कबीर बोल - धमरदास िजस परकार कोई नट बदर को नाच नचाता ह और उस बधन म रखता हआ अनक दख दता ह इसी परकार य मनरपी कालनरजन जीव को नचाता ह और उस बहत दख दता ह यह मन जीव को भरमत कर पापकम म परवत करता ह तथा सासारक बधन म मजबती स बाधता ह मिकत उपदश क तरफ़ जात हय कसी जीव को दखकर मन उस रोक दता ह इसी परकार मनषय क कलयाणकार काय क इचछा होन पर भी यह मन रोक दता ह मन क इस चाल को कोई बरला परष ह जान पाता ह यद कह सतयपरष का ान हो रहा हो तो य मन जलन लगता ह और जीव को अपनी तरफ़ मोङकर वपरत बहा ल जाता ह इस शरर क भीतर और कोई नह ह कवल मन और जीव य दो ह रहत ह पाच-ततव और पाच-ततव क पचचीस परकतया सत रज तम य तीन गण और दस इिनदरया य सब मन-नरजन क ह चल ह सतयपरष का अश जीव आकर शरर म समाया ह और शरर म आकर जीव अपन घर क पहचान भल गया ह पाच-ततव पचचीस परकत तीन गण और मन-इिनदरय न मलकर जीव को घर लया ह जीव को इन सबका ान नह ह और अपना य भी पता नह क म कौन ह इस परकार स बना परचय क अवनाशी-जीव कालनरजन का दास बना हआ ह जीव अानवश खद को और इस बधन को नह जानता जस तोता लकङ क नलनी यतर म फ़सकर कद हो जाता ह यह िसथत मनषय क ह जस शर न अपनी परछा कए क जल म दखी और अपनी छाया को दसरा शर जानकर कद पङा और मर गया ठक ऐस ह जीव काल-माया का धोखा समझ नह पाता और बधन म फ़सा रहता ह जस काच क महल क पास गया का दपरण म अपना परतबमब दखकर भकता ह और अपनी ह आवाज और परतबमब स धोखा खाकर दसरा का समझकर उसक तरफ़ भागता ह ऐस ह कालनरजन न जीव को फ़सान क लय मायामोह का जाल बना रखा ह कालनरजन और उसक शाखाओ (कमरचार दवताओ आद न) न जो नाम रख ह व बनावट ह जो दखन-सनन म शदध मायारहत और महान लगत ह परबहम पराशिकत आद आद परनत सचचा और मोदायी कवल आदपरष का lsquoआदनामrsquo ह ह अतः धमरदास जीव इस काल क बनायी भलभलया म पङकर सतयपरष स बगाना हो गय और अपना भला-बरा भी नह वचार सकत िजतना भी पापकमर और मथया वषय आचरण ह य इसी मन-नरजन का ह ह यद जीव इस दषटमन नरजन को पहचान कर इसस अलग हो जाय तो निशचत ह जीव का कलयाण हो जाय यह मन मन और जीव क भननता तमह समझाई जो जीव सावधान सचत होकर ानदिषट स मन को दखगा समझगा तो वह कालनरजन क धोख म नह आयगा जस जबतक घर का मालक सोता रहता ह तबतक चोर उसक घर म सध लगाकर चोर करन क कोशश करत रहत ह और उसका धन लट ल जात ह ऐस ह जबतक शरररपी घर का सवामी य जीव अानवश मन क चाल क परत सावधान नह रहता तबतक मनरपी चोर उसका भिकत और ानरपी धन चराता रहता ह और जीव को नीचकम क ओर पररत करता रहता ह परनत जब जीव इसक चाल को समझकर सावधान हो जाता ह तब इसक नह चलती जो जीव मन को जानन लगता ह उसक जागरतकला (योगिसथत) अनपम होती ह जीव क लय अान अधकार बहत भयकर अधकप क समान ह इसलय य मन ह भयकर काल ह जो जीव को बहाल करता ह सतरी-परष मन दवारा ह एक-दसर क परत आकषरत होत ह और मन उमङन स ह शरर म कामदव जीव को

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बहत सताता ह इस परकार सतरी-परष वषयभोग म आसकत हो जात ह इस वषयभोग का आननदरस कामइनदर और मन न लया और उसका पाप जीव क ऊपर लगा दया इस परकार पापकमर और सब अनाचार करान वाला य मन होता ह और उसक फ़लसवरप अनक नकर आद कठोर दड जीव भोगता ह दसर क नदा करना दसर का धन हङपना यह सब मन क फ़ासी ह सनत स वर मानना गर क ननदा करना यह सब मन-बदध का कमर कालजाल ह िजसम भोलाजीव फ़स जाता ह परसतरी-परष स कभी वयभचार न कर अपन मन पर सयम रख यह मन तो अधा ह वषय वषरपी कम को बोता ह और परतयक इनदर को उसक वषय म परवत करता ह मन जीव को उमग दकर मनषय स तरह तरह क जीवहतया कराता ह और फ़र जीव स नकर भगतवाता ह यह मन जीव को अनकानक कामनाओ क पत र का लालच दकर तीथर वरत तचछ दवी-दवताओ क जङ-मतरय क सवा-पजा म लगाकर धोख म डालता ह लोग को दवारकापर म यह मन दाग (छाप) लगवाता ह मिकत आद क झठ आशा दकर मन ह जीव को दाग दकर बगाङता ह अपन पणयकमर स यद कसी का राजा का जनम होता ह तो पणयफ़ल भोग लन पर वह नकर भगतता ह और राजा जीवन म वषयवकार होन स नकर भगतन क बाद फ़र उसका साड का जनम होता ह और वह बहत गाय का पत होता ह पाप-पणय दो अलग-अलग परकार क कमर होत ह उनम पाप स नकर और पणय स सवगर परापत होता ह पणयकमर ीण हो जान स फ़र नकर भगतना होता ह ऐसा वधान ह अतः कामनावश कय गय पणय का यह कमरयोग भी मन का जाल ह नषकाम भिकत ह सवरशरषठ ह िजसस जीव का सब दख-दवद मट जाता ह धमरदास इस मन क कपट-करामात कहा तक कह बरहमा वषण महश तीन परधान दवता शषनाग तथा ततीस करोङ दवता सब इसक फ़द म फ़स और हार कर रह मन को वश म न कर सक सदगर क बना कोई मन को वश म नह कर पाता सभी मन-माया क बनावट जाल म फ़स पङ ह

कपट कालनरजन का चरतर

कबीर बोल - धमरदास अब इस कपट कालनरजन का चरतर सनो कस परकार वह जीव क छलबदध कर अपन जाल म फ़साता ह इसन कषण अवतार धर कर गीता क कथा कह परनत अानी जीव इसक चाल रहसय को नह समझ पाता अजरन शरीकषण का सचचा सवक था और शरीकषण क भिकत म लगन लगाय रहता था शरीकषण न उस सब समान कहा सासारक वषय स लगाव और सासारक वषय स पर आतम मो सब कछ सनाया परनत बाद म काल अनसार उस मोमागर स हटाकर सासारक कमर-कतरवय म लगन को पररत कया िजसक परणामसवरप भयकर महाभारत यदध हआ शरीकषण न गीता क ान उपदश म पहल दया मा आद गण उपदश क बार म बताया और ान-वान कमरयोग आद कलयाण दन वाल उपदश का वणरन कया जबक अजरन सतयभिकत म लगन लगाय था तथा वह शरीकषण को बहत मानता था पहल शरीकषण न अजरन को मिकत क आशा द परनत बाद म उस नकर म डाल दया कलयाणदायक ानयोग का तयाग कराकर उस सासारक कमर-कतरवय क ओर घमा दया िजसस कमर क वश हय अजरन न बाद म बहत दख पाया मीठा अमत दखाकर उसका लालच दकर धोख स वष समान दख द दया

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इस परकार काल जीव को बहला-फ़सला कर सनत क छव बगाङता ह और उनह मिकत स दर रखता ह जीव म सनत क परत अवशवास और सदह उतपनन करता ह इस कालनरजन क छलबदध कहा-कहा तक गनाऊ उस कोई कोई ववक सनत ह पहचानता ह जब कोई ानमागर म पकका रहता ह तभी उस सतयमागर सझता ह तब वह यम क छल-कपट को समझता ह और उस पहचानता हआ उसस अलग हो जाता ह सदगर क शरण म जान पर यम का नाश हो जाता ह तथा अटल अय-सख परापत होता ह

सतयपथ क डोर

धमरदास बोल - परभ इस कालनरजन का चरतर मन समझ लया अब आप lsquoसतयपथ क डोरrsquo कहो िजसको पकङ कर जीव यमनरजन स अलग हो जाता ह कबीर बोल - धमरदास म तमको सतयपरष क डोर क पहचान कराता ह सतयपरष क शिकत को जब यह जीव जान लता ह तब काल कसाई उसका रासता नह रोक पाता सतयपरष क शिकत उनक एक ह नाल स उतपनन सोलह सत ह उन शिकतय क साथ ह जीव सतयलोक को जाता ह बना शिकत क पथ नह चल सकता शिकतहन जीव तो भवसागर म ह उलझा रहता ह य शिकतया सदगण क रप म बतायी गयी ह ान ववक सतय सतोष परमभाव धीरज मौन दया मा शील नहकमर तयाग वरागय शात नजधमर दसर का दख दर करन क लय ह तो करणा क जाती ह परनत अपन आप भी करणा करक अपन जीव का उदधार कर और सबको मतर समान समझ कर अपन मन म धारण कर इन शिकतसवरप सदगण को ह धारण कर जीव सतयलोक म वशराम पाता ह अतः मनषय िजस भी सथान पर रह अचछ तरह स समझ-बझ कर सतयरासत पर चल और मोह ममता काम करोध आद दगरण पर नयतरण रख इस तरह इस डोर क साथ जो सतयनाम को पकङता ह वह जीव सतयलोक जाता ह धमरदास बोल - परभ आप मझ पथ का वणरन करो और पथ क अतगरत वरिकत और गरहसथ क रहनी पर भी परकाश डालो कौन सी रहनी स वरागी वरागय कर और कौन सी रहनी स गरहसथ आपको परापत कर कबीर साहब बोल - धमरदास अब म वरागी क लय आचरण बताता ह वह पहल अभय पदाथर मास मदरा आद का तयाग कर तभी हस कहायगा वरागीसनत सतयपरष क अननयभिकत अपन हरदय म धारण कर कसी स भी दवष और वर न कर ऐस पापकम क तरफ़ दख भी नह सब जीव क परत हरदय म दयाभाव रख मन-वचन कमर स भी कसी जीव को न मार सतयान का उपदश और नाम ल जो मिकत क नशानी ह िजसस पापकमर अान तथा अहकार का समल नाश हो जायगा वरागी बरहमचयर वरत का पणररप स पालन कर कामभावना क दिषट स सतरी को सपशर न कर तथा वीयर को नषट न कर काम करोध आद वषय और छल-कपट को हरदय स पणरतया धो द और एकमन एकच होकर नाम का समरण कर धमरदास अब गरहसथ क भिकत सनो िजसको धारण करन स गरहसथ कालफ़ास म नह पङगा वह कागदशा (कौवा सवभाव) पापकमर दगरण और नीच सवभाव स पर तरह दर रह और हरदय म सभी जीव क परत दयाभाव बनाय

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रख मछल कसी भी पश का मास अड न खाय और न ह शराब पय इनको खाना-पीना तो दर इनक पास भी न जाय कयक य सब अभय-पदाथर ह वनसपत अकर स उतपनन अनाज फ़ल शाक सबजी आद का आहार कर सदगर स नाम ल जो मिकत क पहचान ह तब काल कसाई उसको रोक नह पाता ह जो गरहसथ जीव ऐसा नह करता वह कह भी नह बचता वह घोर दख क अिगनकनड म जल-जल कर नाचता ह और पागल हआ सा इधर-उधर को भटकता ह ह उस अनकानक कषट होत ह और वह जनम-जनम बारबार कठोर नकर म जाता ह वह करोङ जनम जहरल साप क पाता ह तथा अपनी ह वष जवाला का दख सहता हआ य ह जनम गवाता ह वह वषठा (मल टटट) म कङा कट का शरर पाता ह और इस परकार चौरासी क योनय क करोङ जनम तक नकर म पङा रहता ह और तमस जीव क घोर दख को कया कह मनषय चाह करोङ योग आराधना कर कनत बना सदगर क जीव को हान ह होती ह सदगर मन बदध पहच क पर का अगमान दन वाल ह िजसक जानकार वद भी नह बता सकत वद इसका-उसका यानी कमरयोग उपासना और बरहम का ह वणरन करता ह वद सतयपरष का भद नह जानता अतः करोङ म कोई ऐसा ववक सत होता ह जो मर वाणी को पहचान कर गरहण करता ह कालनरजन न खानी वाणी क बधन म सबको फ़साया हआ ह मदबदध अलप जीव उस चाल को नह पहचानता और अपन घर आननदधाम सतयलोक नह पहच पाता तथा जनम-मरण और नकर क भयानक कषट म ह फ़सा रहता ह

कौआ और कोयल स भी सीखो

कबीर बोल - धमरदास कोयल क बचच का सवभाव सनो और उसक गण को जानकर वचार करो कोयल मन स चतर तथा मीठ वाणी बोलन वाल होती ह जबक उसका वर कौवा पाप क खान होता ह कोयल कौव क घर (घसल) म अपना अणडा रख दती ह वपरत गण वाल दषट मतर कौव क परत कोयल न अपना मन एक समान कया तब सखा मतर सहायक समझ कर कौव न उस अणड को पाला और वह कालबदध कागा (कौवा) उस अणड क रा करता रहा समय क साथ कोयल का अणडा बङकर पकका हआ और समय आन पर फ़ट गया तब उसस बचचा नकला कछ दन बीत जान पर कोयल क बचच क आख ठक स खल गयी और वह समझदार होकर जानन समझन लगा फ़र कछ ह दन म उसक पख भी मजबत हो गय तब कोयल समय-समय पर आ आकर उसको शबद सनान लगी अपना नजशबद सनत ह कोयल का बचचा जाग गया यानी सचत हो गया और सच का बोध होत ह उस अपन वासतवक कल का वचन वाणी पयार लगी फ़र जब भी कागा कोयल क बचच को दाना खलान घमान ल जाय तब-तब कोयल अपन उस बचच को वह मीठा मनोहर शबद सनाय कोयल क बचच म जब उस शबद दवारा अपना अश अकरत हआ यानी उस अपनी असलपहचान का बोध हआ तो उस बचच का हरदय कौव क ओर स हट गया और एक दन कौव को अगठा दखा कर वह कोयल का बचचा उसस पराया होकर उङ चला कोयल का बचचा अपनी वाणी बोलता हआ चला और तब घबरा कर उसक पीछ-पीछ कागा वयाकल बहाल होकर

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दौङा उसक पीछ-पीछ भागता हआ कागा थक गया परनत उस नह पा सका फ़र वह बहोश हो गया और बाद म होश आन पर नराश होकर अपन घर लौट आया कोयल का बचचा जाकर अपन परवार स मलकर सखी हो गया और नराश कागा झक मारकर रह गया धमरदास िजस परकार कोयल का बचचा होता ह क वह कौव क पास रहकर भी अपना शबद सनत ह उसका साथ छोङकर अपन परवार स मल जाता ह इसी वध स जब कोई भी समझदार जीव मनषय अपन नजनाम और नजआतमा क पहचान क लय सचत हो जाता ह तो वह मझ (सदगर) स सवय ह मल जाता ह और अपन असल घर-परवार सतयलोक म पहच जाता ह तब म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कोयलसत जस शरा होई यहवध धाय मल मोह कोई नजघर सरत कर जो हसा तार ताह एकोर वशा धमरदास इसी तरह कोयल क बचच क भात कोई शरवीर मनषय कालनरजन क असलयत को जानकर सदगर क परत शबद (नामउपदश) क लय मर तरफ़ दौङता ह और नजघर सतयलोक क तरफ़ अपनी सरत (पर एकागरता) रखता ह म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कबीर बोल - धमरदास कौव क नीच चालचलन नीचबदध को छोङकर हस क रहनी सतयआचरण सदगण परम शील सवभाव शभकायर जस उम लण को अपनान स मनषय जीव सतयलोक जाता ह िजस परकार कागा क ककर श वाणी काव-काव कसी को अचछ नह लगती परनत कोयल क मधर वाणी कहकह सबक मन को भाती ह इसी परकार कोयल क तरह हसजीव वचारपवरक उमवाणी बोल जो कोई अिगन क तरह जलता हआ करोध म भरकर भी सामन आय तो हसजीव को शीतल जल क समान उसक तपन बझानी चाहय ान-अान क यह सह पहचान ह जो अानी होता ह वह कपट उगर तथा दषटबध वाला होता ह गर का ानी शषय शीतल और परमभाव स पणर होता ह उसम सतय ववक सतोष आद सदगण समाय होत ह ानी वह ह जो झठ पाप अनाचार दषटता कपट आद दगरण स यकत दषटबदध को नषट कर द और कालनरजन रपी मन को पहचान कर उस भला द उसक कहन म न आय जो ानी होकर कटवाणी बोलता ह वह ानी अान ह बताता ह उस अानी ह समझना चाहय जो मनषय शरवीर क तरह धोती खस कर मदान म लङन क लय तयार होता ह और यदधभम म आमन सामन जाकर मरता ह तब उसका बहत यश होता ह और वह सचचावीर कहलाता ह इसी परकार जीवन म अान स उतपनन समसत पाप दगरण और बराईय को परासत करक जो ानवान उतपनन होता ह उसी को ान कहत ह मखर अानी क हरदय म शभ सतकमर नह सझता और वह सदगर का सारशबद और सदगर क महतव को नह समझता मखर इसान स अधकतर कोई कछ कहता नह ह यद कसी नतरहन का पर यद वषठा (मल) पर पङ जाय तो उसक हसी कोई नह करता लकन यद आख होत हय भी कसी का पर वषठा स सन जाय तो सभी लोग उसको ह दोष दत ह धमरदास यह ान और अान ह ान और अान वपरत सवभाव वाल ह होत ह अतः ानीपरष हमशा सदगर का धयान कर और सदगर क सतयशबद को समझ सबक अनदर सदगर का वास ह पर वह कह गपत तो कह परकट ह इसलय सबको अपना मानकर जसा म अवनाशी आतमा ह वस ह सभी जीवातमाओ को समझ और ऐसा समझ कर समान भाव स सबस नमन कर और ऐसी गरभिकत क नशानी

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लकर रह रग कचचा होन क कारण इस दह को कभी भी नाशवान होन वाल जानकर भकत परहलाद क तरह अपन सतयसकलप म दढ़ मजबत होकर रह यदयप उसक पता हरणयकशयप न उसको बहत कषट दय लकन फ़र भी परहलाद न अडग होकर हरगण वाल परभभिकत को ह सवीकार कया ऐसी ह परहलाद कसी पककभिकत करता हआ सदगर स लगन लगाय रह और चौरासी म डालन वाल मोहमाया को तयाग कर भिकतसाधना कर तब वह अनमोल हआ हसजीव अमरलोक म नवास पाता ह और अटल होकर िसथर होकर जनम-मरण क आवागमन स मकत हो जाता ह

परमाथर क उपदश

कबीर साहब बोल - धमरदास अब म तमस परमाथर वणरन करता ह ान को परापत हआ ान क शरणागत हआ कोई जीव समसत अान और कालजाल को छोङ तथा लगन लगाकर सतयनाम का समरन कर असतय को छोङकर सतय क चाल चल और मन लगाकर परमाथर मागर को अपनाय धमरदास एक गाय को परमाथर गण क खान जानो गाय क चाल और गण को समझो गाय खत बाग आद म घास चरती ह जल पीती ह और अनत म दध दती ह उसक दध घी स दवता और मनषय दोन ह तपत होत ह गाय क बचच दसर का पालन करन वाल होत ह उसका गोबर भी मनषय क बहत काम आता ह परनत पापकमर करन वाला मनषय अपना जनम य ह गवाता ह बाद म आय पर होन पर गाय का शरर नषट हो जाता ह तब रास क समान मनषय उसका शरर का मास लकर खात ह मरन पर भी उसक शरर का चमढ़ा मनषय क लय बहत सख दन वाला होता ह भाई जनम स लकर मतय तक गाय क शरर म इतन गण होत ह इसलय गाय क समान गण वाला होन का यह वाणी उपदश सजजन परष गहण कर तो कालनरजन जीव क कभी हान नह कर सकता मनषयशरर पाकर िजसक बदध ऐसी शदध हो और उस सदगर मल तो वह हमशा को अमर हो जाय धमरदास परमाथर क वाणी परमाथर क उपदश सनन स कभी हान नह होती इसलय सजजन परमाथर का सहारा आधार लकर भवसागर स पार हो दलरभ मनषयजीवन क रहत मनषय सारशबद क उपदश का परचय और ान परापत कर फ़र परमाथर पद को परापत हो तो वह सतयलोक को जाय अहकार को मटा द और नषकाम-सवा क भावना हरदय म लाय जो अपन कल बल धन ान आद का अहकार रखता ह वह सदा दख ह पाता ह यह मनषय ऐसा चतर बदधमान बनता ह क सदगण और शभकमर होन पर कहता ह क मन ऐसा कया ह और उसका परा शरय अपन ऊपर लता ह और अवगण दवारा उलटा वपरत परणाम हो जान पर कहता ह क भगवान न ऐसा कर दया यह नर अस चातर बधमाना गण शभकमर कह हम ठाना ऊचकरया आपन सर लनहा औगण को बोल हर कनहा तब ऐसा सोचन स उसक शभकम का नाश हो जाता ह धमरदास सब आशाओ को छोङकर तम नराश (उदास

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वरकत वरागी भाव) भाव जीवन म अपनाओ और कवल एक सतयनाम कमाई क ह आशा करो और अपन कय शभकमर को कसी को बताओ नह सभी दवी-दवताओ भगवान स ऊचा सवपर गरपद ह उसम सदा लगन लगाय रहो जस जल म अभननरप स मछल घमती ह वस ह सदगर क शरीचरण म मगन रह सदगर दवारा दय शबदनाम म सदा मन लगाता हआ उसका समरन कर जस मछल कभी जल को नह भलती और उसस दर होकर तङपन लगती ह ऐस ह चतरशषय गर स उपदश कर उनह भल नह सतयपरष क सतयनाम का परभाव ऐसा ह क हसजीव फ़र स ससार म नह आता तम कछए क बचच क कला गण समझो कछवी जल स बाहर आकर रत मटट म गढढा खोदकर अणड दती ह और अणड को मटट स ढककर फ़र पानी म चल जाती ह परनत पानी म रहत हय भी कछवी का धयान नरनतर अणड क ओर ह लगा रहता ह वह धयान स ह अणड को सती ह समय परा होन पर अणड पषट होत ह और उनम स बचच बाहर नकल आत ह तब उनक मा कछवी उन बचच को लन पानी स बाहर नह आती बचच सवय चलकर पानी म चल जात ह और अपन परवार स मल जात ह धमरदास जस कछय क बचच अपन सवभाव स अपन परवार स जाकर मल जात ह वस ह मर हसजीव अपन नजसवभाव स अपन घर सतयलोक क तरफ़ दौङ उनको सतयलोक जात दखकर कालनरजन क यमदत बलहन हो जायग तथा व उनक पास नह जायग व हसजीव नभरय नडर होकर गरजत और परसनन होत हय नाम का समरन करत हय आननदपवरक अपन घर जात ह और यमदत नराश होकर झक मारकर रह जात ह सतयलोक आननद का धाम अनमोल और अनपम ह वहा जाकर हस परमसख भोगत ह हस स हस मलकर आपस म करङा करत ह और सतयपरष का दशरन पात ह जस भवरा कमल पर बसता ह वस ह अपन मन को सदगर क शरीचरण म बसाओ तब सदा अचल सतयलोक मलता ह अवनाशी शबद और सरत का मल करो यह बद और सागर क मलन क खल जसा ह इसी परकार जीव सतयनाम स मलकर उसी जसा सतयसवरप हो जाता ह

अनलपी का रहसय

कबीर साहब बोल - गर क महान कपा स मनषय साध कहलाता ह ससार स वरकत मनषय क लय गरकपा स बढ़कर कछ भी नह ह फ़र ऐसा साध अनलपी क समान होकर सतयलोक को जाता ह धमरदास तम अनलपी क रहसय उपदश को सनो अनलपी नरनतर आकाश म ह वचरण करता रहता ह और उसका अणड स उतपनन बचचा भी सवतः जनम लकर वापस अपन घर को लौट जाता ह परथवी पर बलकल नह उतरता अनलपी जो सदव आकाश म ह रहता ह और कवल दन-रात पवन यानी हवा क ह आशा करता ह अनलपी क रतकरया या मथन कवल दिषट स होता ह यानी व जब एक-दसर स मलत ह तो परमपवरक एक दसर को रतभावना क गहनदिषट स दखत ह उनक इस रतकरया वध स मादापी को गभर ठहर जाता ह फ़र कछ समय बाद मादा अनलपी अणडा दती ह पर उनक नरनतर उङन क कारण अणडा ठहरन का कोई आधार तो होता नह वहा तो बस कवल नराधार शनय ह शनय ह तब आधारहन होन क कारण अणडा धरती क ओर गरन लगता ह और नीच रासत म आत-आत ह पर तरह पककर तयार हो जाता ह और रासत म ह अणडा फ़टकर शश बाहर नकल आता ह और नीच गरत-गरत ह रासत म अनलपी आख खोल लता ह तथा

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कछ ह दर म उसक पख उङन लायक हो जात ह नीच गरत हय जब वह परथवी क नकट आता ह तब उस सवतः पता लग जाता ह क यह परथवी मर रहन का सथान नह ह तब वह अनलपी अपनी सरत क सहार वापस अतर क ओर लौटन लगता ह जहा उसक माता-पता का नवास ह अनलपी कभी अपन बचच को लन परथवी क ओर नह आत बिलक बचचा सवय ह पहचान लता ह क यह परथवी मरा घर नह ह और वापस पलटकर अपन असलघर क ओर चला जाता ह धमरदास ससार म बहत स पी रहत ह परनत व अनल पी क समान गणवान नह होत ऐस ह कछ ह बरल जीव ह जो सदगर क ानअमत को पहचानत ह नधरनया सब ससार ह धनवनता नह कोय धनवनता ताह कहो जा त नाम रतन धन होय धमरदास इसी अनलपी क तरह जो जीव ानयकत होकर होश म आ जाता ह तो वह इस काल कलपनालोक को पार करक सतयलोक मिकतधाम म चला जाता ह जो मनषय जीव इस ससार क सभी आधार को तयाग कर एक सदगर का आधार और उनक नाम स वशवासपवरक लगन लगाय रहता ह और सब परकार का अभमान तयाग कर रात-दन गरचरण क अधीन रहता हआ दासभाव स उनक सवा म लगा रहता ह तथा धन घर और परवार आद का मोह नह करता पतर सतरी तथा समसत वषय को ससार का ह समबनध मानकर गरचरण को हरदय स पकङ रहता ह ताक चाहकर भी अलग न हो इस परकार जो मनषय साध सत गरभिकत क आचरण म लन रहता ह सदगर क कपा स उसक जनम-मरण रपी अतयनत दखदायी कषट का नाश हो जाता ह और वह साध सतयलोक को परापत होता ह साधक या भकतमनषय मन-वचन कमर स पवतर होकर सदगर का धयान कर और सदगर क आानसार सावधान होकर चल तब सदगर उस इस जङदह स पर नामवदह जो शाशवतसतय ह उसका साातकार करा क सहजमिकत परदान करत ह

धमरदास यह कठन कहानी

कबीर साहब बोल - सतयान बल स सदगर काल पर वजय परापत कर अपनी शरण म आय हसजीव को सतयलोक ल जात ह जहा हसजीव मनषय सतयपरष क दशरन पाता ह और अतआननद परापत करता ह फ़र वह वहा स लौटकर कभी भी इस कषटदायक दखदायी ससार म वापस नह आता यानी उसका मो हो जाता ह धमरदास मर वचन उपदश को भल परकार स गरहण करो िजास इसान को सतयलोक जान क लय सतय क मागर पर ह चलना चाहय जस शरवीर योदधा एक बार यदध क मदान म घसकर पीछ मढ़कर नह दखता बिलक नभरय होकर आग बढ़ जाता ह ठक वस ह कलयाण क इचछा रखन वाल िजास साधक को भी सतय क राह पर चलन क बाद पीछ नह हटना चाहय अपन पत क साथ सती होन वाल नार और यदधभम म सर कटान वाल वीर क महान आदशर को

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दख-समझ कर िजस परकार मनषय दया सतोष धयर मा वराग ववक आद सदगण को गरहण कर अपन जीवन म आग बढ़त ह उसी अनसार दढ़सकलप क साथ सतय सनतमत सवीकार करक जीवन क राह म आग बढ़ना चाहय जीवत रहत हय भी मतकभाव अथारत मान अपमान हान लाभ मोहमाया स रहत होकर सतयगर क बताय सतयान स इस घोर काल कषट पीङा का नवारण करना चाहय धमरदास लाख-करोङ म कोई एक बरला मनषय ह ऐसा होता ह जो सती शरवीर और सनत क बताय हय उदाहरण क अनसार आचरण करता ह और तब उस परमातमा क दशरन साातकार परापत होता ह धमरदास बोल - साहब मझ मतकभाव कया होता ह इस पणररप स सपषट बतान क कपा कर कबीर बोल - धमरदास जीवत रहत हय जीवन म मतकदशा क कहानी बहत ह कठन ह इस सदगर क सतयान स कोई बरला ह जान सकता ह सदगर क उपदश स ह यह जाना जाता ह धमरदास यह कठन कहानी गरमत त कोई बरल जानी जीवन म मतकभाव को परापत हआ सचचा मनषय अपन परमलय मो को ह खोजता ह वह सदगर क शबदवचार को अचछ तरह स परापत करक उनक दवारा बताय सतयमागर का अनसरण करता ह उदाहरणसवरप जस भरगी (पखवाला चीटा जो दवाल खङक आद पर मटट का घर बनाता ह) कसी मामल स कट क पास जाकर उस अपना तज शबद घघघ सनाता ह तब वह कट उसक गरान रपी शबदउपदश को गरहण करता ह गजार करता हआ भरगी अपन ह तज शबद सवर क गजार सना-सनाकर कट को परथवी पर डाल दता ह और जो कट उस भरगीशबद को धारण कर तब भरगी उस अपन घर ल जाता ह तथा गजार-गजार कर उस अपना lsquoसवात शबदrsquo सनाकर उसक शरर को अपन समान बना लता ह भरगी क महान शबदरपी सवर-गजार को यद कट अचछ तरह स सवीकार कर ल तो वह मामल कट स भरगी क समान शिकतशाल हो जाता ह फ़र दोन म कोई अतर नह रहता समान हो जाता ह असखय झीगर कट म स कोई-कोई बरला कट ह उपयकत और अनकल सख परदान करान वाला होता ह जो भरगी क lsquoपरथमशबदrsquo गजार को हरदय स सवीकारता ह अनयथा कोई दसर और तीसर शबद को ह शबद सवर मान कर सवीकार कर लता ह तन-मन स रहत भरगी क उस महान शबदरपी गजार को सवीकार करन म ह झीगरकट अपना भला मानत ह भरगी क शबद सवर-गजार को जो कट सवीकार नह करता तो फ़र वह कटयोन क आशरय म ह पङा रहता ह यानी वह मामल कट स शिकतशाल भरगी नह बन सकता धमरदास यह मामल कट का भरगी म बदलन का अदभत रहसय ह जो क महान शा परदान करन वाला ह इसी परकार जङबदध शषय जो सदगर क उपदश को हरदय स सवीकार करक गरहण करता ह उसस वह वषयवकार स मकत होकर अानरपी बधन स मकत होकर कलयाणदायी मो को परापत होता ह धमरदास भरगीभाव का महतव और शरषठता को जानो भरगी क तरह यद कोई मनषय नशचयपणर बदध स गर क उपदश को सवीकार कर तो गर उस अपन समान ह बना लत ह िजसक हरदय म गर क अलावा दसरा कोई भाव नह होता और वह सदगर को समपरत होता ह वह मो को परापत होता ह इस तरह वह नीचयोन म बसन वाल कौव स बदलकर उमयोन को परापत हो हस कहलाता ह

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साध का मागर बहत कठन ह

कबीर साहब बोल - इस मनषय को कौव क चाल सवभाव (जो साधारण मनषय क होती ह) आद दगरण को तयागकर हस सवभाव को अपनाना चाहय सदगर क शबदउपदश को गरहण कर मन-वचन वाणी कमर स सदाचार आद सदगण स हस क समान होना चाहय धमरदास जीवत रहत हय यह मतकसवभाव का अनपमान तम धयान स सनो इस गरहण करक ह कोई बरला मनषय जीव ह परमातमा क कपा को परापत कर साधनामागर पर चल सकता ह तम मझस उस मतकभाव का गहन रहसय सनो शषय मतकभाव होकर सतयान का उपदश करन वाल सदगर क शरीचरण क पर भाव स सवा कर मतकभाव को परापत होन वाला कलयाण क इचछा रखन वाला िजास अपन हरदय म मा दया परम आद गण को अचछ परकार स गरहण कर और जीवन म इन गण क वरत नयम का नवारह करत हय सवय को ससार क इस आवागमन क चकर स मकत कर जस परथवी को तोङा खोदा जान पर भी वह वचलत नह होती करोधत नह होती बिलक और अधक फ़ल फ़ल अनन आद परदान करती ह अपन-अपन सवभाव क अनसार कोई मनषय चनदन क समान परथवी पर फ़ल फ़लवार आद लगाता हआ सनदर बनाता ह तो कोई वषठा मल आद डालकर गनदा करता ह कोई-कोई उस पर कष खती आद करन क लय जताई-खदाई आद करता ह लकन परथवी उसस कभी वचलत न होकर शातभाव स सभी दख सहन करती हयी सभी क गण-अवगण को समान मानती ह और इस तरह क कषट को और अचछा मानत हय अचछ फ़सल आद दती ह धमरदास अब और भी मतकभाव सनो य अतयनत दरह कठन बात ह मतकभाव म िसथत सत गनन क भात होता ह जस कसान गनन को पहल काट छाटकर खत म बोकर उगाता ह फ़र नय सर स पदा हआ गनना कसान क हाथ म पङकर पोर-पोर स छलकर सवय को कटवाता ह ऐस ह मतकभाव का सत सभी दख सहन करता ह फ़र वह कटा-छला हआ गनना अपन आपको कोलह म परवाता ह िजसम वह पर तरह स कचल दया जाता ह और फ़र उसम स सारा रस नकल जान क बाद उसका शष भाग खो बन जाता ह फ़र आप (जल) सवरप उस रस को कङाह म उबाला जाता ह उसक अपन शरर क रस को आग पर तपान स गङ बनता ह और फ़र उस और अधक आच दकर तपा-तपाकर रगङ-रगङ कर खाड बनायी जाती ह खाड बन जान पर फ़र स उसम ताप दया जाता ह और फ़र तब उसम स जो दाना बनता ह उस चीनी कहत ह चीनी हो जान पर फ़र स उस तपाकर कषट दकर मशरी बनात ह धमरदास मशरी स पककर lsquoकदrsquo कहलाया तो सबक मन को अचछा लगा इस वध स गनन क भात जो शषय गर क आा अनसार आचरण वयवहार करता हआ सभी परकार क कषट-दख सहन करता ह वह सदगर क कपा स सहज ह भवसागर को पार कर लता ह धमरदास जीवत रहत हय मतकभाव अपनाना बहद कठन ह इस लाख-करोङ म कोई सरमा सत ह अपना पाता ह जबक इस सनकर ह सासारक वषयवकार म डबा कायर वयिकत तो भय क मार तन-मन स जलन लगता

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ह सवीकारना अपनाना तो बहत दर क बात ह वह डर क मार भागा हआ इस ओर (भिकत क तरफ़) मङकर भी नह दखता जस गनना सभी परकार क दख सहन करता ह ठक ऐस ह शरण म आया हआ शषय गर क कसौट पर दख सहन करता हआ सबको सवार और सदा सबको सख परदान करन वाल सवरहत क कायर कर वह मतकभाव को परापत गर क ानभद को जानन वाला ममर साधक शषय नशचय ह सतयलोक को जाता ह वह साध सासारक कलश और नज मन-इिनदरय क वषयवकार को समापत कर दता ह ऐसी उम वरागय िसथत को परापत अवचल साध स सामानय मनषय तो कया दवता तक अपन कलयाण क आशा करत ह धमरदास साध का मागर बहत ह कठन ह जो साधता क उम सतयता पवतरता नषकाम भाव म िसथत होकर साधना करता ह वह सचचा साध ह वह सचच अथ म साध ह जो अपनी पाच इिनदरय आख कान नाक जीभ कामदर को वश म रखता ह और सदगर दवारा दय सतयनाम अमत क दन-रात चखता ह

लटरा कामदव

कबीर साहब बोल - धमरदास साधना करत समय सबस पहल साध को च (आख) इिनदरय को साधना चाहय यानी आख पर नयतरण रख वह कसी वषय पर इधर-उधर न भटक उस भल परकार नयतरण म कर और गर क बताय ानमागर पर चलता हआ सदव उनक दवारा दया हआ नाम भावपणर होकर समरन कर पाच-ततव स बन इस शरर म ानइिनदरय आख का समबनध अिगनततव स ह आख का वषय रप ह उसस ह हम ससार को वभनन रप म दखत ह जसा रप आख को दखायी दता ह वसा ह भाव मन म उतपनन होता ह आख दवारा अचछा-बरा दोन दखन स राग-दवष भाव उतपनन होत ह इस मायारचत ससार म अनकानक वषय पदाथर ह िजनह दखत ह उनह परापत करन क तीवर इचछा स तन और मन वयाकल हो जात ह और जीव य नह जानता क य वषयपदाथर उसका पतन करन वाल ह इसलय एक सचच साध को आख पर नयतरण करना होता ह सनदर रप आख को दखन म अचछा लगता ह इसी कारण सनदर रप को आख क पजा कहा गया ह और जो दसरा रप करप ह वह दखन म अचछा नह लगता इसलय उस कोई नह दखना चाहता असल साध को चाहय क वह इस नाशवान शरर क रप-करप को एक ह करक मान और सथलदह क परत ऐस भाव स उठकर इसी शरर क अनदर जो शाशवत अवनाशी चतन आतमा ह उसक दशरन को ह सख मान जो ान दवारा lsquoवदहिसथतrsquo म परापत होता ह धमरदास कान इिनदरय का समबनध आकाशततव स ह और इसका वषय शबद सनना ह कान सदा ह अपन अनकल मधर शभशबद को ह सनना चाहत ह कान दवारा कठोर अपरय शबद सनन पर च करोध क आग म जलन लगता ह िजसस बहत अशात होकर बचनी होती ह सचच साध को चाहय क वह बोल-कबोल (अचछ-खराब वचन) दोन को समान रप स सहन कर सदगर क उपदश को धयान म रखत हय हरदय को शीतल और शात ह रख

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धमरदास अब नासका यानी नाक क वशीकरण क बार म भी सनो नाक का वषय गध होता ह इसका समबनध परथवीततव स ह अतः नाक को हमशा सगध क चाह रहती ह दगध इस बलकल अचछ नह लगती लकन कसी भी िसथरभाव साधक साध को चाहय क वह ततववचार करता हआ इस वश म रख यानी सगनध-दगरनध म समभाव रह अब िजभया यानी जीभ इिनदरय क बार म जानो जीभ का समबनध जलततव स ह और इसका वषय रस ह यह सदा वभनन परकार क अचछ-अचछ सवाद वाल वयजन को पाना चाहती ह इस ससार म छह रस मीठा कङवा खटटा नमकन चरपरा कसला ह जीभ सदा ऐस मधर सवाद क तलाश म रहती ह साध को चाहय क वह सवाद क परत भी समभाव रह और मधर अमधर सवाद क आसिकत म न पङ रख-सख भोजन को भी आननद स गहण कर जो कोई पचामत (दध दह शहद घी और मशरी स बना पदाथर) को भी खान को लकर आय तो उस दखकर मन म परसननता आद का वशष अनभव न कर और रख-सख भोजन क परत भी अरच न दखाय धमरदास वभनन परकार क सवाद लोलपता भी वयिकत क पतन का कारण बनती ह जीभ क सवाद क फ़र म पङा हआ वयिकत सहरप स भिकत नह कर पाता और अपना कलयाण नह कर पाता जबतक जीभ सवादरपी कए म लटक ह और तीण वषरपी वषय का पान कर रह ह तबतक हरदय म राग-दवष मोह आद बना ह रहगा और जीव सतयनाम का ान परापत नह कर पायगा धमरदास अब म पाचवी काम-इिनदरय यानी जननिनदरय क बार म समझाता ह इसका समबनध जलततव स ह िजसका कायर मतर वीयर का तयाग और मथन करना होता ह यह मथनरपी कटल वषयभोग क पापकमर म लगान वाल महान अपराधी इनदर ह जो अकसर इसान को घोर नरक म डलवाती ह इस इनदर क दवारा िजस दषटकाम क उतप होती ह उस दषट परबल कामदव को कोई बरला साध ह वश म कर पाता ह कामवासना म परवत करन वाल कामनी का मोहनीरप भयकर काल क खान ह िजसका गरसत जीव ऐस ह मर जाता ह और कोई मोसाधन नह कर पाता अतः गर क उपदश स कामभावना का दमन करन क बजाय भिकत उपचार स शमन करना चाहय ------------------ (यहा बात सफ़र औरत क न होकर सतरी-परष म एक-दसर क परत होन वाल कामभावना क लय ह कयक मो और उदधार का अधकार सतरी-परष दोन को ह समान रप स ह अतः जहा कामनी-सतरी परष क कलयाण म बाधक ह वह कामीपरष भी सतरी क मो म बाधा समान ह ह कामवषय बहत ह कठन वकार ह और ससार क सभी सतरी-परष कह न कह कामभावना स गरसत रहत ह कामअिगन दह म उतपनन होन पर शरर का रोम-रोम जलन लगता ह कामभावना उतपनन होत ह वयिकत क मन बदध स नयतरण समापत हो जाता ह िजसक कारण वयिकत का शाररक मानसक और आधयाितमक पतन होता ह) धमरदास कामी करोधी लालची वयिकत कभी भिकत नह कर पात सचची भिकत तो कोई शरवीर सत ह करता ह जो जात वणर और कल क मयारदा को भी छोङ दता ह

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कामी करोधी लालची इनस भिकत न होय भिकत कर कोई सरमा जातवणर कल खोय काम जीवन क वासतवक लय मो क मागर म सबस बढ़ा शतर ह अतः इस वश म करना बहत आवशयक ह ह धमरदास इस कराल वकराल काम को वश म करन का अब उपाय भी सनो जब काम शरर म उमङता हो या कामभावना बहद परबल हो जाय तो उस समय बहत सावधानी स अपन आपको बचाना चाहय इसक लए सवय क वदहरप को या आतमसवरप को वचारत हय सरत (एकागरता) वहा लगाय और सोच क म य शरर नह ह बिलक म शदधचतनय आतमसवरप ह और सतयनाम तथा सदगर (यद ह) का धयान करत हय वषल कामरस को तयाग कर सतयनाम क अमतरस का पान करत हय इसक आननददायी अनभव को परापत कर काम शरर म ह उतपनन होता ह और मनषय अानवश सवय को शरर और मन जानता हआ ह इस भोगवलास म परवत होता ह जब वह जान लगा क वह पाच-ततव क बनी य नाशवान जङदह नह ह बिलक वदह अवनाशी शाशवत चतनय आतमा ह तब ऐसा जानत ह वह इस कामशतर स पर तरह स मकत ह हो जायगा मनषय शरर म उमङन वाला य कामवषय अतयनत बलवान और बहत भयकर कालरप महाकठोर और नदरयी ह इसन दवता मनषय रास ऋष मन य गधवर आद सभी को सताया हआ ह और करोङ जनम स उनको लटकर घोर पतन म डाला ह और कठोर नकर क यातनाओ म धकला ह इसन कसी को नह छोङा सबको लटा ह लकन जो सत साधक अपन हरदयरपी भवन म ानरपी दपक का पणयपरकाश कय रहता हो और सदगर क सारशबद उपदश का मनन करत हय सदा उसम मगन रहता हो उसस डरकर य कामदवरपी चोर भाग जाता ह जो वषया सतन तजी मढ़ ताह लपटात नर जय डार वमन कर शवान सवाद सो खात कबीर साहब न य दोहा नीचकाम क लय ह बोला ह इस कामरपी वष को िजस सत न एकदम तयागा ह मखर मनषय इस काम स उसी तरह लपट रहत ह जस मनषय दवारा कय गय वमन यानी उलट को का परम स खाता ह

आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह

कबीर साहब बोल - धमरदास जबतक दह स पर वदहनाम का धयान होन म नह आता तबतक जीव इस असार ससार म ह भटकता रहता ह वदहधयान और वदहनाम इन दोन को अचछ तरह स समझ लता ह तो उसक सभी सदह मट जात ह जबलग धयान वदह न आव तबलग िजव भव भटका खाव धयानवदह और नामवदहा दोउ लख पाव मट सदहा

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मनषय का पाच-ततव स बना यह शरर जङ परवतरनशील तथा नाशवान ह यह अनतय ह इस शरर का एक नाम-रप होता ह परनत वह सथायी नह रहता राम कषण ईसा लमी दगार शकर आद िजतन भी नाम इस ससार म बोल जात ह य सब शरर नाम ह वाणी क नाम ह लकन इसक वपरत इस जङ और नाशवान दह स पर उस अवनाशी चतनय शाशवत और नज आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम वदह ह और धवनरप ह वह सतय ह वह सवपर ह अतः मन स सतयनाम का समरन करो वहा दन-रात क िसथत तथा परथवी अिगन वाय आद पाच-ततव का सथान नह ह वहा धयान लगान स कसी भी योन क जनम-मरण का दख जीव को परापत नह होता वहा क सख आननद का वणरन नह कया जा सकता जस गग को सपना दखता ह वस ह जीवत जनम को दखो जीत जी इसी जनम म दखो धमरदास धयान करत हय जब साधक का धयान णभर क लय भी lsquoवदहrsquo परमातमा म लन हो जाता ह तो उस ण क महमा आननद का वणरन करना असभव ह ह भगवान आद क शरर क रप तथा नाम को याद करक सब पकारत ह परनत उस वदहसवरप क वदहनाम को कोई बरला ह जान पाता ह जो कोई चारो यग सतयग तरता दवापर कलयग म पवतर कह जान वाल काशी नगर म नवास कर नमषारणय बदरनाथ आद तीथ पर जाय और गया दवारका परयाग म सनान कर परनत सारशबद (नवारणी नाम) का रहसय जान बना वह जनम-मरण क दख और बहद कषटदायी यमपर म ह जायगा और वास करगा धमरदास चाह कोई अड़सठ तीथ मथरा काशी हरदवार रामशवर गगासागर आद म सनान कर ल चाह सार परथवी क परकमा कर ल परनत सारशबद का ान जान बना उसका भरम अान नह मट सकता धमरदास म कहा तक उस सारशबद क नाम क परभाव का वणरन कर जो उसका हसदा लकर नयम स उसका समरन करगा उसका मतय का भय सदा क लय समापत हो जायगा सभी नाम स अदभत सतयपरष का सारनाम सफ़र सदगर स ह परापत होता ह उस सारनाम क डोर पकङकर ह भकतसाधक सतयलोक को जाता ह उस सारनाम का धयान करन स सदगर का वह हसभकत पाच-ततव स पर परमततव म समा जाता ह अथारत वसा ह हो जाता ह

वदहसवरप सारशबद

कबीर साहब बोल - धमरदास मो परदान करन वाला सारशबद वदहसवरप वाला ह और उसका वह अनपमरप नःअर ह पाच-ततव और पचचीस परकत को मलाकर सभी शरर बन ह परनत सारशबद इन सबस भी पर वदहसवरप वाला ह कहन-सनन क लय तो भकतसत क पास वस लोकवद आद क कमरकाड उपासना काड ानकाड योग मतर आद स समबिनधत सभी तरह क शबद ह लकन सतय यह ह क सारशबद स ह जीव का उदधार होता ह परमातमा का अपना सतयनाम ह मो का परमाण ह और सतयपरष का समरन ह सार ह बाहयजगत स धयान हटाकर अतमरखी होकर शातच स जो साधक इस नाम क अजपा जाप म लन होता ह

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उसस काल भी मरझा जाता ह सारशबद का समरन सम और मो का परा मागर ह इस सहज मागर पर शरवीर होकर साधक को मोयातरा करनी चाहय धमरदास सारशबद न तो वाणी स बोला जान वाला शबद ह और न ह उसका मह स बोलकर जाप कया जाता ह सारशबद का समरन करन वाला काल क कठन परभाव स हमशा क लय मकत हो जाता ह इसलय इस गपत आदशबद क पहचान कराकर इन वासतवक हसजीव को चतान क िजममवार तमह मन द ह धमरदास इस मनषयशरर क अनदर अननत पखङय वाल कमल ह जो अजपा जाप क इसी डोर स जङ हय ह तब उस बहद समदवार दवारा मन-बदध स पर इिनदरय स पर सतयपद का सपशर होता ह यानी उस परापत कया जाता ह शरर क अनदर िसथत शनयआकाश म अलौककपरकाश हो रहा ह वहा lsquoआदपरषrsquo का वास ह उसको पहचानता हआ कोई सदगर का हससाधक वहा पहच जाता ह और आदसरत (मन बदध च अहम का योग स एक होना) वहा पहचाती ह हसजीव को सरत िजस परमातमा क पास ल जाती ह उस lsquoसोऽहगrsquo कहत ह अतः धमरदास इस कलयाणकार सारशबद को भलभात समझो सारशबद क अजपा जाप क यह सहज धन अतरआकाश म सवतः ह हो रह ह अतः इसको अचछ तरह स जान-समझ कर सदगर स ह लना चाहय मन तथा पराण को िसथर कर मन तथा इिनदरय क कम को उनक वषय स हटाकर सारशबद का सवरप दखा जाता ह वह सहज सवाभावक lsquoधवनrsquo बना वाणी आद क सवतः ह हो रह ह इस नाम क जाप को करन क लय हाथ म माला लकर जाप करन क कोई आवशयकता ह नह ह इस परकार वदह िसथत म इस सारशबद का समरन हससाधक को सहज ह अमरलोक सतयलोक पहचा दता ह सतयपरष क शोभा अगम अपार मन-बदध क पहच स पर ह उनक एक-एक रोम म करोङ सयर चनदरमा क समान परकाश ह सतयलोक पहचन वाल एक हसजीव का परकाश सोलह सयर क बराबर होता ह ----------------------- समापत बहत दनन तक थ हम भटक सन सन बात बरानी जब कछबात उर म थर भयी सरतनरत ठहरानी रमता क सग समता हय गयी परो भनन प पानी हसदा परमहस दा समाधदा शिकतदा सारशबद दा नःअर ान वदहान सहजयोग सरतशबद योग नादबनद योग राजयोग और उजारतमक lsquoसहजधयानrsquo पदधत क वासतवक और परयोगातमक अनभव सीखन समझन होन हत समपकर कर

  • लखकीय
  • अनरागसागर की कहानी
  • कबीर साहब और धरमदास
  • आदिसषटि की रचना
  • अषटागीकनया और कालनिरजन
  • वद की उतपतति
  • तरिदव दवारा परथम समदरमथन
  • बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना
  • अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना
  • काल-निरजन का धोखा
  • चार खानि चौरासी लाख योनियो स आय मनषय क लकषण
  • चौरासी कयो बनी
  • कालनिरजन की चालबाजी
  • तपतशिला पर काल पीङित जीवो की पकार
  • कालनिरजन और कबीर का समझौता
  • राम-नाम की उतपतति
  • ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह
  • कबीर और रावण
  • कबीर और रानी इनदरमती
  • रानी इनदरमती का सतयलोक जाना
  • कबीर का सदरशन शवपच को जञान दना
  • काल कसाई जीव बकरा
  • समदर और राम की दशमनी का कबीर दवारा निबटारा
  • धरमदास क परवजनम की कहानी
  • कालदत नारायण दास की कहानी
  • कालनिरजन का छलावा बारह पथ
  • चङामणि का जनम
  • काल का अपन दतो को चाल समझाना
  • काल क चार दत
  • सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव
  • गर-शिषय विचार-रहनी
  • शरीरजञान परिचय
  • मन की कपट करामात
  • कपटी कालनिरजन का चरितर
  • सतयपथ की डोर
  • कौआ और कोयल स भी सीखो
  • परमारथ क उपदश
  • अनलपकषी का रहसय
  • धरमदास यह कठिन कहानी
  • साध का मारग बहत कठिन ह
  • लटरा कामदव
  • आतमसवरप परमातमा का वासतविक नाम lsquoविदहrsquo ह
  • विदहसवरप सारशबद
Page 2: प्रस्तुतकतार् राजीव कुलश्रेष्ठ" से वाणी यानी कबीर धमर्दास संवाद को प्रका

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वषय सची 1 लखकय 4

2 अनरागसागर क कहानी 4

3 कबीर साहब और धमरदास 7

4 आदसिषट क रचना 9

5 अषटागीकनया और कालनरजन 14

6 वद क उतप 17

7 तरदव दवारा परथम समदरमथन 18

8 बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना 21

9 अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना 24

10 काल-नरजन का धोखा 27

11 चार खान चौरासी लाख योनय स आय मनषय क लण 30

12 चौरासी कय बनी 33

13 कालनरजन क चालबाजी 35

14 तपतशला पर काल पीङत जीव क पकार 36

15 कालनरजन और कबीर का समझौता 39

16 राम-नाम क उतप 43

17 ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह 45

18 कबीर और रावण 47

19 कबीर और रानी इनदरमती 50

20 रानी इनदरमती का सतयलोक जाना 53

21 कबीर का सदशरन शवपच को ान दना 55

22 काल कसाई जीव बकरा 58

23 समदर और राम क दशमनी का कबीर दवारा नबटारा 60

24 धमरदास क पवरजनम क कहानी 62

25 कालदत नारायण दास क कहानी 66

26 कालनरजन का छलावा बारह पथ 69

27 चङामण का जनम 71

28 काल का अपन दत को चाल समझाना 73

29 काल क चार दत 75

30 सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव 78

31 गर-शषय वचार-रहनी 80

32 शररान परचय 82

33 मन क कपट करामात 84

34 कपट कालनरजन का चरतर 85

35 सतयपथ क डोर 86

36 कौआ और कोयल स भी सीखो 87

37 परमाथर क उपदश 89

38 अनलपी का रहसय 90

39 धमरदास यह कठन कहानी 91

3

40 साध का मागर बहत कठन ह 93

41 लटरा कामदव 94

42 आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह 96

43 वदहसवरप सारशबद 97

4

वसतकह ढढकह कहवध आव हाथ कहकबीर तब पाइए जब भद लज साथ भदलनहा साथ कर दनह वसत लखाय कोटजनम का पथ था पल म पहचा जाय

लखकय

ससार म िजतनी भी पजा ान परचलत ह य जयादातर कालपजा ह और काल माया क परभाव स इसी म सनतमत यानी सतयपरष का भद सतलोक या अमरलोक का भद असल हसान आतमा का वासतवक ान घल-मल गया ह आपन बहत पसतक पढ़ हगी लकन एक बार इसको पढ़ य आख खोल दगी यद इसक गहरायी समझ गय तो जीवन का लय और दनया म फ़ला धामरक मकङजाल आसानी स समझ म आ जायगा और दमाग म भरा जनम-जनम का धामरक कचरा साफ़ होकर सचच परभ स लौ लग जायगी जो सबका उदधारकतार ह

अनरागसागर क कहानी

अनरागसागर कबीर साहब और धमरदास क सवाद पर आधारत महानगरनथ ह इसक शरआत म बताया ह क सबस पहल जब य सिषट नह थी परथवी आसमान सरज तार आद कछ भी नह था तब कवल परमातमा ह था सफ़र परमातमा ह शाशवत ह इसलय सतमत म और सचच जानकार सत परमातमा क लय lsquoहrsquo शबद का परयोग करत ह उस (परमातमा) न कछ सोचा (सिषट क शरआत म उसम सवतः एक वचार उतपनन हआ इसस सफ़रणा (सकचन जसा) हयी) तब एक शबद lsquoहrsquo परकट हआ (जस हम आज भी वचारशील होन पर lsquoहrsquo करत ह) उसन सोचा - म कौन ह इसीलय हर इसान आज तक इसी परशन का उर खोज रहा ह क - म कौन ह (उस समय य पणर था) उसन एक सनदर आनददायक दप क रचना क और उसम वराजमान हो गया फर उसन एक-एक करक एक ह

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नाल स सोलह अश (सत) परकट कय उनम पाचव अश कालपरष को छोड़कर सभी सत आनद को दन वाल थ और सतपरष दवारा बनाय हसदप म आनदपवरक रहत थ लकन कालपरष सबस भयकर और वकराल था वह अपन भाइय क तरह हसदप म न जाकर मानसरोवर दप क नकट चला आया और सतपरष क परत घोर तपसया करन लगा लगभग चसठ यग तक तपसया हो जान पर उसन सतपरष क परसनन होन पर तीनलोक सवगर धरती और पाताल माग लए और फर स कई यग तक तपसया क तब सतपरष न अषटागी कनया (आदशिकत आदया भगवती आद) को सिषटबीज क साथ कालपरष क पास भजा (इसस पहल सतपरष न कमर नाम क सत को भजकर उसक तपसया करन क इचछा क वजह पछ) अषटागीकनया बहद सनदर और मनमोहक अग वाल थी वह कालपरष को दखकर भयभीत हो गयी कालपरष उस पर मोहत हो गया और उसस रतकरया का आगरह कया (यह परथम सतरी-परष का काममलन था) और दोन रतकरया म लन हो गए रतकरया बहत लमब समय तक चलती रह और इसस बरहमा वषण शकर का जनम हआ अषटागीकनया उनक साथ आननदपवरक रहन लगी पर कालपरष क इचछा कछ और ह थी पतर क जनम क उपरात कछ समय बाद कालपरष अदशय हो गया और भवषय क लए आदशिकत को नदश द गया तब आदशिकत न अपन अश स तीन कनयाय उतपनन क और उनह समदर म छपा दया फ़र उसन तीन पतर को समदरमथन क आा द और समदरमथन क दवारा परापत हयी तीन कनयाय अपन पतर को द द य कनयाय सावतरी लमी और पावरती थी तीन पतर न मा क कहन पर उनह अपनी पतनी क रप म सवीकार लया आदयाशिकत न (कालपरष क कह अनसार यह बात कालपरष दोबारा कहन आया था कयक पहल अषटागी न जब पतर को इसस पहल सिषटरचना क लय कहा तो उनहन अनसना कर दया) अपन तीन पतर क साथ सिषट क रचना क आदयाशिकत न खद अडज यानी अड स पदा होन वाल जीव को रचा बरहमा न पडज यानी पड स शरर स पदा होन वाल जीव क रचना क वषण न उषमज यानी पानी गम स पदा होन वाल जीव कट पतग ज आद क रचना क शकर न सथावर यानी पङ पौध पहाड़ पवरत आद जीव क रचना क और फर इन सब जीव को चारखान वाल चौरासी लाख योनय म डाल दया इनम मनषयशरर क रचना सवम थी इधर बरहमा वषण शकर न अपन पता कालपरष क बार म जानन क बहत कोशश क पर व सफल न हो सक कयक वो अदशय था और उसन आदयाशिकत स कह रखा था क वो कसी को उसका पता न बताय फर वो सब जीव क अनदर lsquoमनrsquo क रप म बठ गया और जीव को तरह-तरह क वासनाओ म फ़सान लगा और समसत जीव बहद दख भोगन लग कयक सतपरष न उसक कररता दखकर शाप दया था क वह एकलाख जीव को नतय खायगा और सवालाख को उतपनन करगा समसत जीव उसक करर वयवहार स हाहाकार करन लग और अपन बनान वाल को पकारन

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लग सतपरष को य जानकर बहत गससा आया क काल समसत जीव पर बहद अतयाचार कर रहा ह (काल जीव को तपतशला पर रखकर पटकता और खाता था) तब सतपरष न ानीजी (कबीर साहब) को उसक पास भजा कालपरष और ानीजी क बीच काफ़ झङप हयी और कालपरष हार गया तपतशला पर तङपत जीव न ानीजी स पराथरना क क वो उस इसक अतयाचार स बचाय ानीजी न उन जीव को सतपरष का नाम धयान करन को कहा इस नाम क धयान करत ह जीवमकत होकर ऊपर (सतलोक) जान लग यह दखकर काल घबरा गया और उसन ानीजी स एक समझौता कया क जो जीव इस परमनाम (वाणी स पर) को सतगर स परापत कर लगा वह यहा स मकत हो जायगा ानीजी न कहा - म सवय आकर सभी जीव को यह नाम दगा नाम क परभाव स व यहा स मकत होकर आननदधाम को चल जायग काल न कहा - म और माया (उसक पतनी) जीव को तरह तरह क भोगवासना म फ़सा दग िजसस जीव भिकत भल जायगा और यह फ़सा रहगा ानीजी न कहा - लकन उस सतनाम क अदर जात ह जीव म ान का परकाश हो जायगा और जीव तमहार सभी चाल समझ जायगा कालनरजन को चता हयी उसन बहद चालाक स कहा - म जीव को मिकत और उदधार क नाम पर तरह-तरह क जात धमर पजा पाठ तीथर वरत आद म ऐसा उलझाऊगा क वह कभी अपनी असलयत नह जान पायगा साथ ह म तमहार चलाय गय पथ म भी अपना जाल फ़ला दगा इस तरह अलपबदध जीव यह नह सोच पायगा क सचचाई आखर ह कया म तमहार असल नाम म भी अपन नाम मला दगा आद अब कयक समझौता हो गया था ानीजी वापस लौट गय वासतव म मनरप म यह काल ह ह जो हम तरह-तरह क कमरजाल म फसाता ह और फर नकर आद भोगवाता ह लकन वासतव म यह आतमा सतपरष का अश होन स बहत शिकतशाल ह पर भोग वासनाओ म पड़कर इसक य दगरत हो गई ह इसस छटकारा पान का एकमातर उपाय सतगर क शरण और महामतर का धयान करना ह ह ---------------------- परसततकतार राजीव कलशरषठ चारगर ससार म धमरदास बड़ अश मिकतराज़ लख दिनहया अटल बयालस वश

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1 सदशरन नाम साहब 2 कलपत नाम साहब 3 परमोध गर 4 कवलनाम साहब 5 अमोल नाम 6 सरतसनह नाम 7 हककनाम 8 पाकनाम 9 परगटनाम 10 धीरज नाम 11 उगरनाम 12 दयानाम 13 गरनधमन नाम साहब 14 परकाश मननाम साहब 15 उदतमन नाम साहब 16 मकनद मननाम 17 अधरनाम 18 उदयनाम 19 ाननाम 20 हसमण नाम 21 सकत नाम 22 अगरमण नाम 23 रसनाम 24 गगमण नाम 25 पारस नाम 26 जागरत नाम 27 भरगमण नाम 28 अकह नाम 29 कठमण नाम 30 सतोषमण नाम 31 चातरक नाम 32 आदनाम 33 नहनाम 34 अजरनाम 35 महानाम 36 नजनाम 37 साहब नाम 38 उदय नाम 39 करणा नाम 40 उधवरनाम 41 दघरनाम 42 महामण नाम

कबीर साहब और धमरदास

कबीर साहब क शषय धनी धमरदास का जनम बहत ह धनी वशय परवार म हआ था बाद म कबीर साहब क शरण म आकर उनस परमातम-ान लकर धमरदास न अपना जीवन साथरक और परपणर कया इस तरह उनह धमरदास क जगह lsquoधनी धमरदासrsquo कहा जान लगा धमरदास वषणव थ और ठाकर-पजा कया करत थ अपनी मत रपजा क इसी करम म धमरदास मथरा आय जहा उनक भट कबीर साहब स हयी धमरदास दयाल वयवहार और पवतर जीवन जीन वाल इसान थ अतयधक धन सप क बाद भी अहकार उनह छआ तक नह था व अपन हाथ स सवय भोजन बनात और पवतरता क लहाज स जलावन लकङ को इसतमाल करन स पहल धोया करत थ एकबार इसी समय म जब वह मथरा म भोजन तयार कर रह थ उसी समय कबीर स उनक भट हयी उनहन दखा क भोजन बनान क लय जो लकङया चलह म जल रह थी उसम स ढर चीटया नकलकर बाहर आ रह थी धमरदास न जलद स शष लकङय को बाहर नकाल कर चीटय को जलन स बचाया उनह बहत दख हआ और व अतयनत वयाकल हो उठ लकङय म जलकर मर गयी चीटय क परत उनक मन म बहद पशचाताप हआ व सोचन लग - आज मझस महापाप हआ ह अपन इसी दख क वजह स उनहन भोजन भी नह खाया उनहन सोचा िजस भोजन क बनन म इतनी चीटया जलकर मर गयी उस कस खा सकता ह उनक हसाब स वह दषत भोजन खान योगय नह था अतः उनहन वह भोजन कसी दन-हन साध महातमा आद को करान का वचार कया

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वो भोजन लकर बाहर आय तो उनहन दखा क कबीर एक घन शीतल व क छाया म बठ हय थ धमरदास न उनस भोजन क लय नवदन कया कबीर साहब न कहा - सठ धमरदास िजस भोजन को बनात समय हजार चीटया जलकर मर गयी उस भोजन को मझ कराकर य पाप तम मर ऊपर कय लादना चाहत हो तम तो रोज ह ठाकर जी क पजा करत हो फ़र उनह भगवान स कय नह पछ लया था क इन लकङय क अनदर कया ह धमरदास को बहद आशचयर हआ क इस साध को य सब बात कस पता चल उस समय तो धमरदास क आशचयर का ठकाना न रहा जब कबीर न व चीटया भोजन स िजदा नकलत हय दखायी इस रहसय को व समझ न सक और उनहोन दखी होकर कहा - बाबा यद म भगवान स इस बार म पछ सकता तो मझस इतना बङा पाप कय होता धमरदास को पाप क महाशोक म डबा दखकर कबीर न अधयातम-ान क गढ़ रहसय बताय जब धमरदास न उनका परचय पछा तो कबीर न अपना नाम सदगर कबीर साहब और नवासी अमरलोक बताया इसक कछ दर बाद कबीर अतधयारन हो गय धमरदास को जब कबीर बहत दन तक नह मल तो वो वयाकल होकर जगह जगह उनह खोजत फ़र और उनक िसथत पागल क समान हो गयी तब उनक पतनी न सझाव दया - तम य कया कर रह हो उनह खोजना बहत आसान ह जस क चीट चीटा गङ को खोजत हय खद ह आ जात ह धमरदास न कहा - कया मतलब पतनी न कहा - खब भडार कराओ दान दो हजार साध आयग जब वह साध तमह दख तो उस पहचान लना धमरदास को बात उचत लगी व ऐसा ह करन लग उनहन अपनी सार सप खचर कर द पर वह साध (कबीर) नह मला फर बहत समय भटकन क बाद उनह कबीर काशी म मल परनत उस समय व वषणव वश म थ फ़र भी धमरदास न उनह पहचान लया और उनक चरण म गर पङ धमरदास बोल - सदगर महाराज मझ पर कपा कर और मझ अपनी शरण म ल गरदव मझ पर परसनन ह म उसी समय स आपको खोज रहा ह आज आपक दशरन हय कबीर बोल - धमरदास तम मझ कहा खोज रह थ तम तो चीट चीट को खोज रह थ सो व तमहार भनडार म

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आय इस पर धमरदास को अपनी मखरता पर बङा पशचाताप हआ तब उनह परायिशचत भावना म दख कर कबीर साहब न फ़र कहा - लकन तम बहत भागयशाल हो जो तमन मझ पहचान लया अब तम धयर धारण करो म तमह जीवन क आवागमन स मकत करान वाला मो-ान दगा इसक बाद धमरदास नवदन करक कबीर साहब को अपन साथ बाधोगढ ल आय फ़र तो बाधोगढ म कबीर क शरीमख स अलौकक आतमान सतसग क अवरल धारा ह बहन लगी दर दर स लोग सतसग सनन आन लग धमरदास और उनक पतनी lsquoआमनrsquo न महामतर क दा ल बाधोगढ क नरश भी कबीर क सतसग म आन लग और बाद म दा लकर व भी कबीर साहब क शषय बन यहा कबीर न बहत स उपदश दय िजनह उनक शषय न बाधोगढ नरश और धनी धमरदास क आदश पर सकलत कर गरनथ का रप दया -------------------- वशष - जब भी कसी सचचसनत का पराकटय होता ह तो कालपरष भयभीत हो जाता ह क अब य जीव को मोान दकर उनका उदधार कर दगा इसस हरसभव बचाव क लय वो अपन lsquoकालदतrsquo वहा भज दता ह धमरदास का पतर lsquoनारायण दासrsquo जो कालदत था कबीर का बहत वरोध करता था लकन उसक एक भी नह चल खद कबीर क पतर क रप म lsquoकमालrsquo कालदत था वह भी कबीर का बहत वरोध करता था बाद म कबीर न धमरदास को सयोगय शषय जानत हय मो का अनमोल ान दया और साथ ह य ताकद भी क धमरदास तोह लाख दहाई सारशबद बाहर नह जाई धमरदास न कहा - सारशबद बाहर नह जाई तो हसा लोक को कस जाई कबीर साहब न कहा - जो अपना होय तो दयो बतायी

आदसिषट क रचना

धमरदास बोल - साहब कपा कर बताय क मकत होकर अमर हय लोग कहा रहत ह मझ अमरलोक और अनय दप का वणरन सनाओ आदसिषट क रचना कौन स दप म सदगर क हसजीव का वास ह और कौन स दप म सतपरष का नवास ह वहा हसजीव कौन सा तथा कसा भोजन करत ह और व कौन सी वाणी बोलत ह

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आदपरष न लोक कस रच रखा ह तथा उनह दप रचन क इचछा कस हयी तीन लोक क उतप कस हयी साहब मझ वह सब भी बताओ जो गपत ह कालनरजन कस वध स पदा हआ और सोलह सत का नमारण कस हआ सथावर अणडज पणडज ऊषमज इन चार परकार क चार खान वाल सिषट का वसतार कस हआ और जीव को कस काल क वश म डाल दया गया कमर और शषनाग उपराजा कस उतपनन हय और कस मतसय तथा वराह जस अवतार हय तीन परमख दव बरहमा वषण महश कस परकार हय तथा परथवी आकाश का नमारण कस हआ चनदरमा और सयर कस हय कस तार का समह परकट होकर आकाश म ठहर गया और कस चार खान क जीव शरर क रचना हयी इन सबक उतप क वषय म सपषट बताय कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमह सतयान और मो पान का सचचा अधकार पाया ह इसलय सतयान का जो अनभव मन कया उसक सारशबद का रहसय कहकर सनाया अब तम मझस आदसिषट क उतप सनो म तमह सबक उतप और परलय क बात सनाता ह यह ततव क बात सनो जब धरती और आकाश और पाताल भी नह था जब कमर वराह शषनाग सरसवती और गणश भी नह थ जब सबका राजा नरजनराय भी नह था िजसन सबक जीवन को मोहमाया क बधन म झलाकर रखा ह ततीस करोङ दवता भी नह थ और म तमह अनक कया बताऊ तब बरहमा वषण महश भी नह थ और न ह शासतर वद पराण थ तब य सब आदपरष म समाय हय थ जस बरगद क पङ क बीच म छाया रहती ह धमरदास तम परारमभ क आद-उतप सनो िजस परतयरप स कोई नह जानता और िजसक पीछ सार सिषट का वसतार हआ ह उसक लय म तमह कया परमाण द क िजसन उस दखा हो चारो वद परमपता क वासतवक कहानी नह जानत कयक तब वद का मल ह (आरमभ होन का आधार) नह था इसीलय वद सतयपरष को lsquoअकथनीयrsquo अथारत िजसक बार म कहा न जा सक ऐसा कहकर पकारत ह चारो वद नराकार नरजन स उतपनन हय ह जो क सिषट क उतप आद रहसय को जानत ह नह इसी कारण पडत उसका खडन करत ह और असल रहसय स अनजान वदमत पर यह सारा ससार चलता ह सिषट क पवर जब सतयपरष गपत रहत थ उनस िजनस कमर होता ह व नम कारण और उपादान कारण और करण यानी साधन उतपनन नह कय थ उस समय गपतरप स कारण और करण समपटकमल म थ उसका समबनध सतयपरष स था lsquoवदह-सतयपरषrsquo उस कमल म थ तब सतयपरष न सवय इचछा कर अपन अश को उतपनन कया और अपन अश को दखकर वह बहत परसनन हय सबस पहल सतयपरष न lsquoशबदrsquo का परकाश कया और उसस लोकदप रचकर उसम वास कया फ़र सतयपरष न चार-पाय वाल एक सहासन क रचना क और उसक ऊपर lsquoपहपदपrsquo का नमारण कया फर सतयपरष अपनी समसत कलाओ को धारण करक उस पर बठ और उनस lsquoअगरवासनाrsquo यानी (चनदन जसी) एक सगनध परकट हयी सतयपरष न अपनी इचछा स सब कामना क और lsquoअठासी हजारrsquo दप क रचना क उन सभी दप म वह चनदन जसी सगनध समा गयी जो बहत अचछ लगी इसक बाद सतयपरष न दसरा शबद उचचारत कया उसस lsquoकमरrsquo नाम का सत (अश) परकट हआ और उनहन सतयपरष क चरण म परणाम कया तब उनहन तीसर शबद का उचचारण कया उसस lsquoानrsquo नाम क सत हय जो

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सब सत म शरषठ थ व सतयपरष क चरण म शीश नवाकर खङ रह तब सतयपरष न उनको एक दप म रहन क आा द चौथ शबद क उचचारण स lsquoववकrsquo नामक सत हय और पाचव शबद स lsquoकाल-नरजनrsquo परकट हआ काल-नरजन अतयनत तज अग और भीषणपरकत वाला होकर आया इसी न अपन उगर-सवभाव स सब जीव को कषट दया ह वस य lsquoजीवrsquo सतयपरष का अश ह जीव क आद-अत को कोई नह जानता ह छठव शबद स lsquoसहज नामrsquo सत उतपनन हय सातव शबद स lsquoसतोषrsquo नाम क सत हय िजनको सतयपरष न उपहार म दप दकर सतषट कया आठव शबद स lsquoसरत सभावrsquo नाम क सत उतपनन हय उनह भी एक दप दया गया नव स lsquoआननद अपारrsquo नाम क सत उतपनन हय दसव स lsquoमाrsquo नाम क सत उतपनन हय गयारहव स lsquoनषकामrsquo और बारहव स lsquoजलरगीrsquo नाम क सत हय तरहव स lsquoअचतrsquo और चौदहव स lsquoपरमrsquo नाम क सत हय पनदरहव स दनदयाल और सोलहव स lsquoधीरजrsquo नाम क वशाल सत उतपनन हय सतरहव शबद क उचचारण स lsquoयोगसतायनrsquo हय इस तरह lsquoएक ह नालrsquo स सतयपरष क शबद उचचारण स सोलह सत क उतप हयी सतयपरष क शबद स ह उन सत का आकार का वकास हआ और शबद स ह सभी दप का वसतार हआ सतयपरष न अपन परतयक दवयअग यानी अश को अमत का आहार दया और परतयक को अलग- अलग दप का अधकार बनाकर बठा दया सतयपरष क इन अश क शोभा और कला अननत ह उनक दप म मायारहत अलौकक सख रहता ह सतयपरष क दवयपरकाश स सभी दप परकाशत हो रह ह सतयपरष क एक ह रोम का परकाश करोङ सयर-चनदरमा क समान ह सतयलोक आननदधाम ह वहा पर शोक मोह आद दख नह ह वहा सदव मकतहस का वशराम होता ह सतपरष का दशरन तथा अमत का पान होता ह आदसिषट क रचना क बाद जब बहत दन ऐस ह बीत गय तब धमरराज कालनरजन न कया तमाशा कया उस चरतर को धयान स सनो नरजन न सतयपरष म धयान लगाकर एक पर पर खङ होकर सर यग तक कठन तपसया क इसस आदपरष बहत परसनन हय तब सतयपरष क आवाज lsquoवाणीरपrsquo म हयी - ह धमरराय कस हत स तमन यह तपसवा क नरजन सर झकाकर बोला - परभ मझ वह सथान द जहा जाकर म नवास कर सतयपरष न कहा - तम मानसरोवर दप म जाओ परसनन होकर धमरराज मानसरोवर दप क ओर चला गया और आननद स भर गया मानसरोवर पर नरजन न फ़र स एक पर पर खङ होकर सर यग तपसया क तब दयाल सतयपरष क हरदय म दया भर गयी नरजन क कठन सवा-तपसया स पषपदप क पषप वकसत हो गय और फ़र सतयपरष क वाणी परकट हयी उनक बोलत ह वहा सगनध फ़ल गयी

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सतयपरष न सहज स कहा - सहज तम नरजन क पास जाओ और उसस तप का कारण पछो नरजन क सवा-तपसया स पहल ह मन उसको मानसरोवर दप दया ह अब वह कया चाहता ह यह ात कर तम मझ बताओ सहज नरजन क पास पहच और परमभाव स कहा - भाई अब तम कया चाहत हो नरजन परसनन होकर बोला - सहज तम मर बङ भाई हो इतना सा सथानय मानसरोवर मझ अचछा नह लगता अतः म कसी बङ सथान का सवामी बनना चाहता ह मझ ऐसी इचछा ह क या तो मझ दवलोक द या मझ एक अलग दश द सहज न नरजन क अभलाषा सतयपरष को जाकर बतायी सतयपरष न सपषट शबद म कहा - हम नरजन क सवा-तपसया स सतिषट होकर उसको तीनलोक दत ह वह उसम अपनी इचछा स lsquoशनयदशrsquo बसाय और वहा जाकर सिषट क रचना कर तम नरजन स ऐसा जाकर कहो नरजन न सहज दवारा य बात सनी तो वह बहत परसनन और आशचयरचकत हआ नरजन बोला - सहज सनो म कस परकार सिषटरचना करक उसका वसतार कर सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया ह परनत म सिषटरचना का भद नह जानता फ़र यह कायर कस कर जो सिषट मन बदध क पहच स पर अतयनत कठन और जटल ह वह मझ रचनी नह आती अतः दया करक मझ उसक यिकत बतायी जाय तम मर तरफ़ स सतयपरष स यह वनती करो क म कस परकार lsquoनवखणडrsquo बनाऊ अतः मझ वह साजसामान दो िजसस जगत क रचना हो सक सहज न यह सब बात जब जाकर सतयपरष स कह तब उनहन आा द - सहज कमर क पट क अनदर सिषटरचना का सब साज सामान ह उस लकर नरजन अपना कायर कर इसक लय नरजन कमर स वनती कर और उसस दणडपरणाम करक वनयपवरक सर झकाकर माग सहज न सतयपरष क आा नरजन को बता द यह सनत ह नरजन बहत हषरत हआ और उसक अनदर बहत अभमान हआ वह कमर क पास जाकर खङा हो गया और बताय अनसार दणडपरणाम भी नह कया अमतसवरप कमर जो सबको सख दन वाल ह उनम करोध अभमान का भाव जरा भी नह ह और अतयनत शीतल सवभाव क ह अतः जब कालनरजन न अभमान करक दखा तो पता चला क कमर अतयनत धयरवान और बलशाल ह बारह पालग कमर का वशाल शरर ह और छह पालग बलवान नरजन का शरर ह नरजन करोध करता हआ कमर क चारो ओर दौङता रहा और सोचता रहा क कस उपाय स इसस उतप का सामान ल तब नरजन बहद रोष स कमर स भङ गया और अपन तीख नाखन स कमर क शीश पर आघात

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करन लगा परहार करन स कमर क उदर स पवन नकल उसक शीश क तीन अश सत रज तम गण नकल आग िजनक वश बरहमा वषण महश हय पाच-ततव धरती आकाश आद तथा चनदरमा सयर आद तार का समह उसक उदर म थ उसक आघात स पानी अिगन चनदरमा और सयर नकल और परथवीजगत को ढकन क लय आकाश नकला फ़र उसक उदर स परथवी को उठान वाल वाराह शषनाग और मतसय नकल तब परथवीसिषट का आरमभ हआ जब कालनरजन न कमर का शीश काटा तब उस सथान स रकत जल क सरोत बहन लग जब उनक रकत म सवद यानी पसीना और जल मला उसस समदर का नमारण तथा उनचास कोट परथवी का नमारण हआ जस दध पर मलाई ठहर जाती ह वस ह जल पर परथवी ठहर गयी वाराह क दात परथवी क मल म रह पवन परचणड था और परथवी सथल थी आकाश को अडासवरप समझो और उसक बीच म परथवी िसथत ह कमर क उदर स lsquoकमरसतrsquo उतपनन हय उस पर शषनाग और वराह का सथान ह शषनाग क सर पर परथवी ह नरजन क चोट करन स कमर बरयाया सिषटरचना का सब साजोसामान कमर उदर क अड म थी परनत वह कमर क अश स अलग थी आदकमर सतयलोक क बीच रहता था नरजन क आघात स पीङत होकर उसन सतयपरष का धयान कया और शकायत करत हय कहा - कालनरजन न मर साथ दषटता क ह उसन मर ऊपर बल परयोग करत हय मर पट को फ़ाङ डाला ह आपक आा का उसन पालन नह कया सतयपरष सनह स बोल - कमर वह तमहारा छोटा भाई ह और यह रत ह क छोट क अवगण को भलाकर उसस सनह कया जाय सतयपरष क ऐस वचन सनकर कमर आनिनदत हो गय इधर कालनरजन न फ़र स सतयपरष का धयान कया और अनक यग तक उनक सवा तपसया क नरजन न अपन सवाथर स तप कया था अतः सिषटरचना को लकर वह पछताया तब धमरराय नरजन न वचार कया क तीन लोक का वसतार कस और कहा तक कया जाय उसन सवगरलोक मतयलोक और पाताललोक क रचना तो कर द परनत बना बीज और जीव क सिषट का वसतार कस सभव हो कस परकार और कया उपाय कया जाय जो जीव क धारण करन का शरर बनाकर सजीव सिषटरचना हो सक यह सब तरका वध सतयपरष क सवा तपसया स ह होगा ऐसा वचार करक हठपवरक एक पर पर खङा होकर उसन चसठ यग तक तपसया क तब दयाल सतयपरष न सहज स कहा - अब य तपसवी नरजन कया चाहता ह वह तम उसस पछो और द दो उसस कहो वह हमार वचन अनसार सिषट नमारण कर और छलमत का तयाग कर सहज न नरजन स जाकर यह सब बात कह

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नरजन बोला - मझ वह सथान दो जहा जाकर म बठ जाऊ सहज बोल - सतयपरष न पहल ह सब कछ द दया ह कमर क उदर स नकल सामान स तम सिषटरचना करो नरजन बोला - म कस कया बनाकर रचना कर सतयपरष स मर तरफ़ स वनती कर कहो अपना सारा खत बीज मझ द द सहज न यह हाल सतयपरष को कह सनाया सतयपरष न आा द तो सहज अपन सखासन दप चल गय नरजन क इचछा जानकर सतयपरष न इचछा वयकत क उनक इस इचछा स अषटागी नाम क कनया उतपनन हयी वह कनया आठ भजाओ क होकर आयी थी वह सतयपरष क बाय अग जाकर खङ हो गयी और परणाम करत हय बोल - ह सतयपरष मझ कया आा ह सतयपरष बोल - पतरी तम नरजन क पास जाओ म तमह जो वसत दता ह उस सभाल लो उसस तम नरजन क साथ मलकर सिषटरपी फ़लवार क रचना करो कबीर साहब बोल - धमरदास सतयपरष न अषटागीकनया को जो जीव-बीज दया उसका नाम lsquoसोऽहगrsquo ह इस तरह जीव का नाम सोऽहग ह जीव ह सोऽहगम ह दसरा नह ह और वह जीव सतयपरष का अश ह फ़र सतयपरष न तीन शिकतय को उतपनन कया उनक नाम lsquoचतनrsquo lsquoउलघनrsquo और lsquoअभयrsquo थ सतयपरष न अषटागी स कहा क नरजन क पास जाकर उस पहचान कर यह चौरासी लाख जीव का मलबीज जीव-बीज द दो अषटागीकनया यह जीव-बीज लकर मानसरोवर चल गयी तब सतयपरष न सहज को बलाया और उसस कहा - तम नरजन क पास जाकर यह कहो क जो वसत तम चाहत थ वह तमह द द गयी ह जीव-बीज lsquoसोऽहगrsquo तमह मल गया ह अब जसी चाहो सिषटरचना करो और मानसरोवर म जाकर रहो वह स सिषट का आरमभ होना ह सहज न नरजन स जाकर ऐसा ह कहा

अषटागीकनया और कालनरजन

सहज क दवारा सतयपरष क ऐस वचन सनकर नरजन परसनन होकर अहकार स भर गया और मानसरोवर चला आया फ़र जब उसन सनदर कामनी lsquoअषटागीकनयाrsquo को आत हय दखा तो उस अत परसननता हयी अषटागी का

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अनपमसदयर दखकर नरजन मगध हो गया उसक सनदरता क कला का अनत नह था यह दखकर कालनरजन बहत वयाकल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क कररता सनो वह अषटागीकनया को ह नगल गया जब अनयायी कालनरजन अषटागी का ह आहार करन लगा तब उस कनया को कालनरजन क परत बहत आशचयर हआ जब वह उस नगल रहा था तो अषटागी न सतयपरष को धयान करक पकारा क कालनरजन न मरा आहार कर लया ह अषटागी क पकार सनकर सतयपरष न सोचा क यह कालनरजन तो बहत करर और अनयायी ह इस कनया क तरह ह पहल कमर न धयान करक मझ पकारा था क कालनरजन न मर तीन शीश खा लय ह सतयपरष आप मझ पर दया किजय कबीर साहब बोल - कालनरजन का ऐसा करर चरतर जानकर सतयपरष न उस शाप दया क वह परतदन लाख जीव को खायगा और सवालाख का वसतार करगा फ़र सतयपरष न ऐसा भी वचार कया क इस कालपरष को मटा ह डाल कयक अनयायी और करर कालनरजन बहत ह कठोर और भयकर ह यह सभी जीव का जीवन बहत दखी कर दगा लकन अब वह मटान स भी नह मट सकता था कयक एक ह नाल स व सब सोलह सत उतपनन हय थ अतः एक को मटान स सभी मट जायग और मन सबको अलग लोकदप दकर जो रहन का वचन दया ह वह डावाडोल हो जायगा और मर य सब रचना भी समापत हो जायगी अतः इसको मारना ठक नह ह सतयपरष न वचार कया क कालपरष को मारन स उनका वचन भग हो जायगा अतः अपन वचन का पालन करत हय उस न मारकर यह कहता ह क अब वह कभी हमारा दशरन नह पायगा यह कहत हय सतयपरष न योगजीत को बलवाया और सब हाल कहा क कस तरह कालनरजन न अषटागी कनया को नगल लया और कमर क तीन शीश खा लय उनहन कहा - योगजीत तम शीघर मानसरोवर दप जाओ और वहा स नरजन को मारकर नकाल दो वह मानसरोवर म न रहन पाय और हमार दश सतयलोक म कभी न आन पाय नरजन क पट म अषटागी नार ह उसस कहो क वह मर वचन का सभाल कर पालन कर नरजन जाकर उसी दश म रह जो मन पहल उस दय ह अथारत वह सवगरलोक मतयलोक और पाताल पर अपना राजय कर वह अषटागी नार नरजन का पट फ़ाङकर बाहर नकल आय िजसस पट फ़टन स वह अपन कम का फ़ल पाय नरजन स नणरय करक कह दो क वह अषटागी नार ह अब तमहार सतरी होगी योगजीत सतयपरष को परणाम करक मानसरोवर दप आय कालनरजन उनह वहा आया दखकर भयकर रप हो गया और बोला - तम कौन हो और कसन तमह यहा भजा ह योगजीत न कहा - अर नरजन तम नार को ह खा गय अतः सतयपरष न मझ आा द क तमह शीघर ह यहा स नकाल योगजीत न नरजन क पट म समायी हयी अषटागी स कहा - अषटागी तम वहा कय रहती हो तम सतयपरष क तज का समरन करो और पट फ़ाङकर बाहर आ जाओ

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योगजीत क बात सनकर नरजन का हरदय करोध स जलन लगा और वह योगजीत स भङ गया योगजीत न सतयपरष का धयान कया तो सतयपरष न आा द क वह नरजन क माथ क बीच म जोर स घसा मार योगजीत न ऐसा ह कया फ़र योगजीत न नरजन क बाह पकङ कर उस उठाकर दर फ़ क दया तो वह सतयलोक क मानसरोवर दप स अलग जाकर दर गर पङा सतयपरष क डर स वह डरता हआ सभल सभलकर उठा फ़र अषटागीकनया नरजन क पट स नकल वह कालनरजन स बहत भयभीत थी वह सोचन लगी क अब म वह दश न दख सकगी म न जान कस परकार यहा आकर गर पङ यह कौन बताय वह नरजन स बहत डर हयी थी और सकपका कर इधर-उधर दखती हयी नरजन को शीश नवा रह थी तब नरजन बोला - ह आदकमार सनो अब तम मर डर स मत डरो सतयपरष न तमह मर lsquoकामrsquo क लय रचा ह हम-तम दोन एकमत होकर सिषटरचना कर म परष ह और तम मर सतरी हो अतः तम मर यह बात मान लो अषटागी बोल - तम यह कसी वाणी बोलत हो म तो तमह बङा भाई मानती ह इस परकार जानत हय भी तम मझस ऐसी बात मत करो जब स तमन मझ पट म डाल लया था और उसस उतपनन होन पर अब तो म तमहार पतरी भी हो गयी ह बङ भाई का रशता तो पहल स ह था अब तो तम मर पता भी हो गय हो अब तम मझ साफ़ दिषट स दखो नह तो तमस यह पाप हो जायगा अतः मझ वषयवासना क दिषट स मत दखो नरजन बोला - भवानी सनो म तमह सतय बताकर अपनी पहचान कराता ह पाप पणय क डर स म नह डरता कयक पाप पणय का म ह तो कतार (करान वाला) ह पाप पणय मझस ह हग और मरा हसाब कोई नह लगा पाप पणय को म ह फ़लाऊगा जो उसम फ़स जायगा वह मरा होगा अतः तम मर इस सीख को मानो सतयपरष न मझ कह समझा कर तझ दया ह अतः तम मरा कहना मानो नरजन क ऐसी बात सनकर अषटागी हसी और दोन एकमत होकर एक दसर क रग म रग गय अषटागी मीठ वाणी स रहसयमय वचन बोल और फ़र उस नीचबदध सतरी न वषयभोग क इचछा परकट क उसक रतवषयक रहसयमय वचन सनकर नरजन बहत परसनन हआ और उसक भी मन म वषयभोग क इचछा जाग उठ नरजन और अषटागी दोन परसपर रतकरया म लग गय तब कह चतनयसिषट का वशष आरमभ हआ धमरदास तम आदउतप का यह भद सनो िजस भरमवश कोई नह जानता उन दोन न तीन बार रतकरया क िजसस बरहमा वषण तथा महश हय उनम बरहमा सबस बङ मझल वषण और सबस छोट शकर थ इस परकार अषटागी और नरजन का रतपरसग हआ उन दोन न एकमत होकर भोगवलास कया तब उसस आदउतप का परकाश हआ

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वद क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास वचार करो पीछ ऐसा वणरन हो चका ह क अिगन पवन जल परथवी और परकाश कमर क उदर स परकट हय उसक उदर स य पाचो अश लय तथा तीन सर काटन स सत रज तम तीन गण परापत हय इस परकार पाच ततव और तीन गण परापत होन पर नरजन न सिषटरचना क फ़र अषटागी और नरजन क परसपर रतपरसग स अषटागी को गण एव ततव समान करक दय और अपन अश उतपनन कय इस परकार पाच-ततव और तीन गण को दन स उसन ससार क रचना क वीयरशिकत क पहल बद स बरहमा हय उनह रजोगण और पाच ततव दय दसर बद स वषण हय उनह सतगण और पाच ततव दय तीसर बद स शकर हय उनह तमोगण और पाच ततव दय पाच ततव तीन गण क मशरण स बरहमा वषण महश क शरर क रचना हयी इसी परकार सब जीव क शरर क रचना हयी उसस य पाच-ततव और तीन गण परवतरनशील और वकार होन स बारबार सजन-परलय यानी जीवन-मरण होता ह सिषट क रचना क इस lsquoआदरहसयrsquo को वासतवक रप स कोई नह जानता धमरदास कबीर साहब आग कहन लग नरजन बोला - अषटागी कामनी मर बात सन और जो म कह उस मान अब जीव-बीज सोऽहग तमहार पास ह उसक दवारा सिषटरचना का परकाश करो ह रानी सन अब म कस कया कर आदभवानी बरहमा वषण महश तीन पतर तमको सप दय और अपना मन सतयपरष क सवा भिकत म लगा दया ह तम इन तीन बालक को लकर राज करो परनत मरा भद कसी स न कहना मरा दशरन य तीन पतर न कर सक ग चाह मझ खोजत-खोजत अपना जनम ह कय न समापत कर द सोच-समझकर सब लोग को ऐसा मत सदढ कराना क सतयपरष का भद कोई पराणी जानन न पाय जब य तीन पतर बदधमान हो जाय तब उनह समदरमथन का ान दकर समदरमथन क लय भजना इस तरह नरजन न अषटागी को बहत परकार स समझाया और फ़र अपन आप गपत हो गया उसन शनयगफ़ा म नवास कया वह जीव क lsquoहरदयाकाशरपीrsquo शनयगफ़ा म रहता ह तब उसका भद कौन ल सकता ह वह गपत होकर भी सबक साथ ह जो सबक भीतर ह उस मन को ह नरजन जानो जीव क हरदय म रहन वाला यह मन नरजन सतयपरष परमातमा क रहसयमय ान क परत सदह उतपनन कर उस मटाता ह यह अपन मत स सभी को वशीभत करता ह और सवय क बङाई परकट करता ह सभी जीव क हरदय म बसन वाला यह मन कालनरजन का ह रप ह सबक साथ रहता हआ भी य मन पणरतया गपत ह और कसी को दखाई नह दता य सवाभावक रप स अतयनत चचल ह और सदा सासारक वषय क ओर दौङता ह वषयसख और भोगपरवत क कारण मन को चन कहा ह यह दन-रात सोत-जागत अपनी अननत इचछाओ क पतर क लय भटकता ह रहता ह और मन क वशीभत होन क कारण ह जीव अशात और दखी होता ह इसी कारण उसका पतन होकर जनम-मरण का बधन बना ह जीव का मन ह उसक दख भोग और जनम-मरण का कारण ह अतः मन को वश म करना ह सभी दख और

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जनम-मरण क बधन स मकत होन का उपाय ह जीव तथा उसक हरदय क भीतर मन दोन एक साथ ह मतवाला और वषयगामी मन कालनरजन क अग सपशर करन स जीव बदधहन हो गय इसी स अानी जीव कमर अकमर क करत रहन स तथा उनका फ़ल भोगत रहन क कारण ह जनम-जनमातर तक उनका उदधार नह हो पाता यह मन-काल जीव को सताता ह इिनदरय को पररत कर वभनन पापकम म लगाता ह यह सवय पाप पणय क कम क काल कचाल चलता ह फ़र जीव को दखरपी दणड दता ह उधर जब तीन बालक बरहमा वषण महश सयान समझदार हय तो माता अषटागी न उनह समदर मथन क लय भजा लकन व बालक खलन म मसत थ अतः समदर मथन नह गय कबीर साहब बोल - धमरदास उसी समय एक तमाशा हआ नरजनराव न योग धारण कया उसन पवन यानी सास खीचकर परक पराणायाम स आरमभ करपवन ठहरा कर कमभक पराणायाम बहत दर तक कया फ़र जब नरजन कमभक तयाग कर रचनकरया स पवनरहत हआ तब उसक सास क साथ वद बाहर नकल वदउतप क इस रहसय को कोई बरला वदवान ह जानगा वद न नरजन क सतत क और कहा - ह नगरणनाथ मझ कया आा ह नरजन बोला - तम जाकर समदर म नवास करो तथा िजसका तमस भट हो उसक पास चल जाना वद को आा दत हय कालनरजन क आवाज तो सनायी द पर वद न उसका सथलरप नह दखा उसन कवल अपना जयोतसवरप ह दखाया उसक तज स परभावत होकर आानसार वद चल गय फ़र अत म उस तज स वष क उतप हयी इधर चलत हय वद वहा जा पहच जहा नरजन न समदर क रचना क थी व सध क मधय म पहच गय फ़र नरजन न समदरमथन क यिकत का वचार कया

तरदव दवारा परथम समदरमथन

तब नरजन न गपत धयान स अषटागी को याद करत हय समझाया और कहा - बताओ समदर मथन म कसलय दर हो रह ह बरहमा वषण महश हमार तीन पतर को समदर मथन क लय शीघर ह भजो मर वचन दढ़ता स मानो और अषटागी इसक बाद तम सवय समदर म समा जाना तब अषटागी न समदरमथन हत वचार कया और तीन बालक को अचछ तरह समझा-बझाकर समदर मथन क लय भजा उनह भजत समय अषटागी न कहा - समदर स तमह अनमोल वसतय परापत हगी इसलय तम जलद ह जाओ यह सनकर बरहमा वषण और महश तीन बालक चल पङ और जाकर समदर क पास खङ हो गय तथा उस मथन का उपाय सोचन लग

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फ़र तीन न समदरमथन कया तीन को समदर स तीन वसतय परापत हयी बरहमा को वद वषण को तज और शकर को हलाहल वष क परािपत हयी य तीन वसतय लकर व अपनी माता अषटागी क पास आय और खशी-खशी तीन वसतय दखायी अषटागी न उनह अपनी-अपनी वसत अपन पास रखन क आा द अषटागी न कहा - अब फ़र स जाकर समदर मथो और िजसको जो परापत हो वह ल लो उसी समय आदभवानी न एक चरतर कया उसन तीन कनयाय उतपनन क और अपनी उन अश को समदर म परवश करा दया जब इन तीन कनयाओ को समदर म परवश करान क लय भजा इस रहसय को अषटागी क तीन पतर नह जान सक अतः उनहन जब समदरमथन कया तो समदर स तीन कनयाय नकल उनहन खशी स तीन कनयाओ को ल लया और अषटागी क पास आय अषटागी न कहा - पतरो तमहार सब कायर पर हो गय अषटागी न उन तीन कनयाओ को तीन पतर को बाट दया बरहमा को सावतरी वषण को लमी और शकर को पावरती द तीन भाई कामनी सतरी को पाकर बहत आनिनदत हय और उन कामनय क साथ काम क वशीभत होकर उनहन दव और दतय दोन परकार क सतान उतपनन क कबीर साहब बोल - धमरदास तम यह बात समझो क जो माता थी वह अब सतरी हो गयी अषटागी न फ़र स अपन पतर को समदर मथन क आा द इस बार समदर म स चौदह रतन नकल उनहन रतन क खान नकाल और रतन लकर माता क पास पहच तब अषटागी न कहा - पतरो अब तम सिषटरचना करो अणडज खान क उतप सवय अषटागी न क पणडज खान को बरहमा न बनाया ऊषमज खान वषण तथा सथावर को शकर न बनाया उनहन चौरासी लाख योनय क रचना क और उनक अनसार आधाजल आधाथल बनाया सथावर खान को एक-ततव का समझो और ऊषमज खान को दो-ततव तीन-ततव स अणडज और चार-ततव स पणडज का नमारण हआ पाचततव स मनषय को बनाया और तीन गण स सजाया सवारा इसक बाद बरहमा वद पढ़न लग वद पढ़त हय बरहमा को नराकार क परत अनराग हआ कयक वद कहता ह परष एक ह और वह नराकार ह और उसका कोई रप नह ह वह शनय म जयोत दखाता ह परनत दखत समय उसक दह दिषट म नह आती उस नराकार का सर सवगर ह और पर पाताल ह इस वदमत स बरहमा मतवाला हो गया

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बरहमा न वषण स कहा - वद न मझ आदपरष को दखा दया ह फ़र ऐसा ह उनहन शकर स भी कहा - वद पढ़न स पता चलता ह क परष एक ह और सबका सवामी कवल एक नराकार परष ह यह तो वद न बताया परनत उसन ऐसा भी कहा क मन उसका भद नह पाया बरहमा अषटागी क पास आय और बोल - माता मझ वद न दखाया और बताया क सिषट रचना करन वाला हम सबका सवामी कोई और ह ह अतः हम बताओ क तमहारा पत कौन ह और हमारा पता कहा ह अषटागी बोल - बरहमा सनो मर अतरकत तमहारा अनय कोई पता नह ह मझस ह सब उतप हयी ह और मन ह सबको सभारा ह बरहमा न कहा - माता वद नणरय करक कहता ह क परष कवल एक ह और वह गपत ह अषटागी बोल - पतर मझस नयारा सिषटरचयता और कोई नह ह मन ह सवगरलोक परथवीलोक और पाताललोक बनाय ह और सात समदर का नमारण भी मन ह कया ह बरहमा न कहा - मन तमहार बात मानी क तमन ह सब कछ कया ह परनत पहल स ह परष को गपत कस रख लया जबक वद कहता ह क परष एक ह और वह अलखनरजन ह माता तम कतार बनो आप बनो परनत पहल वदरचना करत समय यह वचार कय नह कया और उसम परष को नरजन कय बताया अतः अब तम मर स छल न करो और सच-सच बात बताओ कबीर साहब बोल - जब बरहमा न िजद पकङ ल तो अषटागी न वचार कया क बरहमा को कस परकार समझाऊ जो यह मर महमा को बङाई को नह मानता यह बात नरजन स कह तो यह कस परकार ठक स समझगा नरजन न मझस पहल ह कहा था क मरा दशरन कोई नह पायगा अब बरहमा को अलखनरजन क बार म कछ नह बताया तो कस परकार उस दखाया जाय ऐसा वचार कर अषटागी न कहा - अलखनरजन अपना दशरन नह दखाता बरहमा बोल - माता तम मझ सह-सह सथान बताओ आग-पीछ क उलट-सीधी बात करक मझ न बहलाओ म य बात नह मानता और न ह मझ अचछ लगती ह पहल तमन मझ बहकाया क म ह सिषटकतार ह और मझस अलग कछ भी नह ह और अब तम कहती हो क lsquoअलखनरजनrsquo तो ह पर वह अपना दशरन नह दखाता कया उसका दशरन पतर भी नह पायगा ऐसी पदा न होन वाल बात कय कहती हो इसलय मझ तमहार कहन पर भरोसा नह ह अतः इसी समय उस कतार का दशरन करा दिजय और मर सशय को दर किजय इसम जरा भी दर न करो अषटागी बोल - बरहमा म तमस सतय कहती ह क उस अलखनरजन क सात सवगर ह माथा ह और सात पाताल चरण ह यद तमह उसक दशरन क इचछा हो तो हाथ म फ़ल ल जाकर उस अपरत करत हय परणाम करो यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय

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अषटागी न मन म वचार कया - बरहमा मरा कहा मानता नह ह य कहता ह वद न मझ उपदश कया ह क एक परष नरजन ह परनत कोई उसक दशरन नह पाता ह अतः वह बोल - अर बालक सन अलखनरजन तमहारा पता ह पर तम उसका दशरन नह पा सकत यह म तमस सतयवचन कहती ह यह सनकर बरहमा न वयाकल होकर मा क चरण म सर रख दया और बोल - म पता का शीश सपशर व दशरन करक तमहार पास आता ह कहकर बरहमा lsquoउर दशाrsquo चल गय माता स आा मागकर वषण भी अपन पता क दशरन हत पाताल चल गय कवल शकर का मन इधर-उधर नह भटका वह माता क सवा करत हय कछ नह बोल

बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना

बहत दन बीत गय अषटागी न सोचा - मर पतर बरहमा और वषण न कया कया इसका कछ पता नह लगा व अब तक लौटकर कय नह आय तब सबस पहल वषण लौटकर माता क पास आय और बोल - पाताल म मझ पता क चरण तो नह मल उलट मरा शरर वषजवाला (शषनाग क परभाव स) स शयामल हो गया माता जब म पता नरजन क दशरन नह कर पाया तो म वयाकल हो गया और फ़र लौट आया अषटागी परसनन हो गयी और वषण को दलारत हय बोल - पतर तमन नशचय ह सतय कहा ह उधर पता क दशरन क बहद इचछक बरहमा चलत-चलत उस सथान पर पहच गय जहा न सयर था न चनदरमा कवल शनय था वहा बरहमा न अनक परकार स नरजन क सतत क जहा जयोत का परभाव था वहा भी धयान लगाया और ऐसा करत हय बहत दन बीत गय परनत बरहमा को नरजन क दशरन नह हय शनय म धयान करत हय बरहमा को अब lsquoचारयगrsquo बीत गय अषटागी को चनता हयी क म बरहमा क बना कस परकार सिषटरचना कर और कस परकार उस वापस लाऊ तब अषटागी न यिकत सोचत हय अपन शरर म उबटन लगाकर मल नकाला और उस मल स एक पतरीरपी कनया उतपनन क उस कनया म दवयशिकत का अश मलाया और कनया का नाम गायतरी रखा गायतरी उनह परणाम करती हयी बोल - माता तमन मझ कस कायर हत बनाया ह वह आा किजय

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अषटागी बोल - मर बात सनो बरहमा तमहारा बङा भाई ह वह पता क दशरन हत शनयआकाश क ओर गया ह उस बलाकर लाओ वह चाह अपन पता को खोजत-खोजत सारा जनम गवा द पर उनक दशरन नह कर पायगा अतः तम िजस वध स चाहो कोई उपाय करक उस बलाकर लाओ गायतरी बताय अनसार बरहमा क पास पहची उसन दखा धयान म लन बरहमा अपनी पलक तक नह झपकात थ वह कछ दन तक सोचती रह क कस वध दवारा बरहमा का धयान स धयान हटाकर अपनी ओर आकषरत कया जाय फ़र उसन अषटागी का धयान कया तब अषटागी न धयान म गायतरी को आदश दया क अपन हाथ स बरहमा को सपशर करो तब वह धयान स जागग गायतरी न ऐसा ह कया और बरहमा क चरणकमल का सपशर कया बरहमा धयान स जाग गया और उसका मन भटक गया वह वयाकल होकर बोला - त कौन पापी अपराधी ह जो मर धयान समाध छङायी म तझ शाप दता ह कयक तन आकर पता क दशरन का मरा धयान खडत कर दया गायतरी बोल - मझस कोई पाप नह हआ ह पहल तम सब बात समझ लो तब मझ शाप दो म सतय कहती ह तमहार माता न मझ तमहार पास भजा ह अतः शीघर चलो तमहार बना सिषट का वसतार कौन कर बरहमा बोल - म माता क पास कस परकार जाऊ अभी मझ पता क दशरन भी नह हय ह गायतरी बोल - तम पता क दशरन कभी नह पाओग अतः शीघर चलो वरना पछताओग बरहमा बोला - यद तम झठ गवाह दो क मन पता का दशरन पा लया ह और ऐसा सवय तमन भी अपनी आख स दखा ह क पता नरजन परकट हय और बरहमा न आदर स उनका शीश सपशर कया यद तम माता स इस परकार कहो तो म तमहार साथ चल गायतरी बोल - ह वद सनन और धारण करन वाल बरहमा सनो म झठ वचन नह बोलगी हा यद मर भाई तम मरा सवाथर परा करो तो म इस परकार क झठ बात कह दगी बरहमा बोल - म तमहार सवाथर वाल बात समझा नह अतः मझ सपषट कहो गायतरी बोल - यद तम मझ रतदान दो यानी मर साथ कामकरङा करो तो म ऐसा कह सकती ह यह मरा सवाथर ह फ़र भी तमहार लय परमाथर जानकर कहती ह बरहमा वचार करन लग क इस समय कया उचत होगा यद म इसक बात नह मानता तो य गवाह नह दगी और माता मझ मझ धककारगी क न तो मन पता क दशरन पाय और न कोई कायर सदध हआ अतः म इसक परसताव म पाप को वचारता ह तो मरा काम नह बनता इसलय रतदान दन क इसक इचछा पर करनी ह

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चाहय ऐसा ह नणरय करत हय बरहमा और गायतरी न मलकर वषयभोग कया उन दोन पर रतसख का रग परभाव दखान लगा बरहमा क मन म पता को दखन क जो इचछा थी उस वह भल गया और दोन क हरदय म कामवषय क उमग बढ़ गयी फ़र दोन न मलकर छलपणर बदध बनायी तब बरहमा न कहा - चलो माता क पास चलत ह गायतरी बोल - एक उपाय और करो जो मन सोचा ह वह यिकत ह क एक दसरा गवाह भी तयार कर लत ह बरहमा बोल - यह तो बहत अचछ बात ह तम वह करो िजस पर माता वशवास कर तब गायतरी न साी उतपनन करन हत अपन शरर स मल नकाला और उसम अपना अश मलाकर एक कनया बनायी बरहमा न उस कनया का नाम सावतरी रखवाया तब गायतरी न सावतरी को समझाया क तम चलकर माता स कहना क बरहमा न पता का दशरन पाया ह सावतरी बोल - जो तम कह रह हो उस म नह जानती और झठ गवाह दन म तो बहत हान ह बरहमा और गायतरी को बहत चता हयी उनहन सावतरी को अनक परकार स समझाया पर वह तयार नह हयी तब सावतरी अपन मन क बात बोल - यद बरहमा मझस रतपरसग कर तो म ऐसा कर सकती ह तब गायतरी न बरहमा को समझाया क सावतरी को रतदान दकर अपना काम बनाओ बरहमा न सावतरी को रतदान दया और बहत भार पाप अपन सर ल लया सावतरी का दसरा नाम बदल कर पहपावती कहकर अपनी बात सनात ह य तीन मलकर वहा गय जहा कनया आदकमार अषटागी थी तीन क परणाम करन पर अषटागी न पछा - बरहमा कया तमन अपन पता क दशरन पाय और यह दसर सतरी कहा स लाय बरहमा बोल - माता य दोन साी ह क मन पता क दशरन पाय इन दोन क सामन मन पता का शीश सपशर कया ह अषटागी बोल - गायतरी वचार करक कहो क तमन अपनी आख स कया दखा ह सतय बताओ बरहमा न अपन पता का दशरन पाया और इस दशरन का उस पर कया परभाव पङा गायतरी बोल - बरहमा न पता क शीश का दशरन पाया ह ऐसा मन अपनी आख स दखा ह क बरहमा अपन पता नरजन स मल माता यह सतय ह बरहमा न अपन पता पर फ़ल चढ़ाय और उनह फ़ल स यह पहपावती उस

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सथान स परकट हयी इसन भी पता का दशरन पाया ह आप इसस पछ क दखय इसम री भर भी झठ नह ह अषटागी बोल - पहपावती मझस सतय कहो और बताओ कया बरहमा न पता क सर पर पषप चढ़ाया पहपावती न कहा - माता म सतय कहती ह चतमरख बरहमा न पता क शीश क दशरन कय और शात एव िसथर मन स फ़ल चढ़ाय इस झठ गवाह को सनकर अषटागी परशान हो गयी और वचार करन लगी

अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना

अषटागी को बहद आशचयर हआ क बरहमा न नरजन क दशरन पा लय ह जबक अलखनरजन न परता कर रखी ह क उस कोई आख स दख नह पायगा फ़र य तीन लबार झठ-कपट कस कहत ह क उनहन नरजन को दखा ह उसी ण अषटागी न नरजन का धयान कया और बोल - मझ सतय बताओ नरजन न कहा - बरहमा न मरा दशरन नह पाया उसन तमहार पास आकर झठ गवाह दलवायी उन तीन न झठ बनाकर सब कहा ह वह सब मत मानो वह झठ ह अषटागी को बहत करोध आया उसन बरहमा को शाप दया - तमन मझस आकर झठ बोला अतः कोई तमहार पजा नह करगा एक तो तम झठ बोल और दसर तमन न करन योगय कमर (दषकमर) करक बहत बङा पाप अपन सर ल लया आग जो भी तमहार शाखा सतत होगी वह बहत झठ और पाप करगी तमहार सतत (बरहमा क वश अथवा बरहमा क नाम स पकार जान वाल बराहमण) परकट म तो बहत नयम धमर वरत उपवास पजा शच आद करग परनत उनक मन म भीतर पाप मल का वसतार रहगा तमहार व सतान वषणभकत स अहकार करगी इसलय नकर को परापत हगी तमहार वश वाल पराण क धमरकथाओ को लोग को समझायग परनत सवय उसका आचरण न करक दख पायग उनस जो और लोग ान क बात सनग उसक अनसार व भिकत कर सतय को बतायग बराहमण परमातमा का ान भिकत को छोङकर दसर दवताओ को ईशवर का अश बताकर उनक भिकत-पजा करायग और क नदा करक वकराल काल क मह म जायग अनक दवी-दवताओ क बहत परकार स पजा करक यजमान स दणा लग और दणा क कारण पशबल म पशओ का गला कटवायग दणा क लालच म यजमान को बबकफ़ बनायग व िजसको शषय बनायग उस भी परमाथर कलयाण का रासता नह दखायग परमाथर क तो व पास भी नह जायग परनत सवाथर क लय व सबको अपनी बात समझायग सवाथ होकर सबको अपनी सवाथरसदध का ान सनायग और ससार म अपनी सवा-पजा मजबत करग अपन को ऊचा और और को छोटा कहग इस परकार

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बरहमा तर वशज तर ह जस झठ और कपट हग शाप सनकर बरहमा मछरत होकर गर पङ फ़र अषटागी न गायतरी को शाप दया - गायतरी बरहमा क साथ कामभावना स हो जान स मनषयजनम म तर पाच पत हग तर गायरपी शरर म बल पत हग और व सात-पाच स भी अधक हग पशयोन म त गाय बनकर जनम लगी और न खान योगय पदाथर खायगी तमन अपन सवाथर क लय मझस झठ बोला और झठ वचन कह कया सोचकर तमन झठ गवाह द गायतरी न गलती मानकर शाप सवीकार कर लया फर अषटागी न सावतरी को दखा और बोल - तमन नाम तो सनदर पहपावती रखवा लया परनत झठ बोलकर तमन अपन जनम का नाश कर लया सन तमहार वशवास पर तमस कोई आशा रखकर कोई तमह नह पजगा दगध क सथान पर तमहारा वास होगा कामवषय क आशा लकर अब नकर क यातना भोगो जानबझ कर जो तमह सीचकर लगायगा उसक वश क हान होगी अब तम जाओ और व बनकर जनम तमहारा नाम कवङा कतक होगा कबीर बोल - अषटागी क शाप क कारण बरहमा गायतरी और सावतरी तीन बहत दखी हो गय अपन पापकमर स व बदधहन और दबरल हो गय कामवषय म परवत करान वाल कामनी सतरी कालरप-काम (वासना क इचछा) क अततीवर कला ह इसन सबको अपन शरर क सनदर चमर स डसा ह शकर बरहमा सनकाद और नारद जस कोई भी इसस बच नह पाय कोई बरला सनत-साधक बच पाता ह जो सदगर क सतयशबद को भल परकार अपनाता ह सदगर क शबदपरताप स य कालकला मनषय को नह वयापती अथारत कोई हान नह करती जो कलयाण क इचछा रखन वाला भकत मन वचन कमर स सतगर क शरीचरण क शरण गरहण करता ह पाप उसक पास नह आता कबीर साहब आग बोल - बरहमा वषण महश तीन को शाप दन क बाद अषटागी मन म पछतान लगी उसन सोचा शाप दत समय मझ बलकल दया नह आयी अब न जान नरजन मर साथ कसा वयवहार करगा उसी समय आकाशवाणी हयी - भवानी तमन यह कया कया मन तो तमह सिषटरचना क लय भजा था परनत तमन शाप दकर यह कसा चरतर कया ह भवानी ऊचा और बलवान ह नबरल को सताता ह और यह निशचत ह क वह इसक बदल दख पाता ह इसलय जब दवापर यग आयगा तब तमहार भी पाच पत हग भवानी न अपन शाप क बदल नरजन का शाप सना तो मन म सोच वचार कया पर मह स कछ न बोल वह सोचन लगी - मन बदल म शाप पाया नरजन म तो तर वश म ह जसा चाहो वयवहार करो फ़र अषटागी न वषण को दलारत हय कहा - पतर तम मर बात सनो सच-सच बताओ जब तम पता क चरण सपशर करन गय तब कया हआ पहल तो तमहारा शरर गोरा था तम शयाम रग कस हो गय

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वषण न कहा - पता क दशरन हत जब म पाताललोक पहचा तो शषनाग क पास पहच गया वहा उसक वष क तज स म ससत (अचत) हो गया मर शरर म उसक वष का तज समा गया िजसस वह शयाम हो गया तब एक आवाज हयी - वषण तम माता क पास लौट जाओ यह मरा सतयवचन ह क जस ह सतयग तरतायग बीत जायग तब दवापर म तमहारा कषणअवतार होगा उस समय तम शषनाग स अपना बदला लोग तब तम यमना नद पर जाकर नाग का मानमदरन करोग यह मरा नयम ह क जो भी ऊचा नीच वाल को सताता ह उसका बदला वह मझस पाता ह जो जीव दसर को दख दता ह उस म दख दता ह ह माता उस आवाज को सनकर म तमहार पास आ गया यह सतय ह क मझ पता क शरीचरण नह मल भवानी यह सनकर परसनन हो गयी और बोल - पतर सनो म तमह तमहार पता स मलाती ह और तमहार मन का भरम मटाती ह पहल तम बाहर क सथलदिषट (शरर क आख) छोङकर भीतर क ानदिषट (अनतर क आख तीसर आख) स दखो और अपन हरदय म मरा वचन परखो सथलदह क भीतर सममन क सवरप को ह कतार समझो मन क अलावा दसरा और कसी को कतार न मानो यह मन बहत ह चचल और गतशील ह ण भर म सवगर पाताल क दौङ लगाता ह और सवछनद होकर सब ओर वचरता ह मन एक ण म अननतकला दखाता ह और इस मन को कोई नह दख पाता मन को ह नराकार कहो मन क ह सहार दन-रात रहो ह वषण बाहर दनया स धयान हटाकर अतमरखी हो जाओ अपनी सरत और दिषट को पलट कर भकट मधय (भह क बीच आाचकर) पर या हरदय क शनय म जयोत को दखो जहा जयोत झलमल झालर सी परकाशत होती ह वषण न अपनी सवास को घमाकर भीतर आकाश क ओर दौङाया और (अतर) आकाशमागर म धयान लगाया हरदयगफ़ा म परवश कर धयान लगाया धयान परकया म वषण न पहल सवास का सयम पराणायाम स कया कमभक म जब उनहन सवास को रोका तो पराण ऊपर उठकर धयान क कनदर शनय म आया वहा वषण को lsquoअनहद-नादrsquo क गजरना सनाई द यह अनहद बाजा सनत हय वषण परसनन हो गय तब मन न उनह सफ़द लाल काला पीला आद रगीन परकाश दखाया धमरदास इसक बाद वषण को मन न अपन आपको दखाया और lsquoजयोतपरकाशrsquo कया िजस दखकर वह परसनन हो गय और बोल - ह माता आपक कपा स आज मन ईशवर को दखा धमरदास अचानक चककर बोल - सदगर यह सनकर मर भीतर एक भरम उतपनन हआ ह अषटागीकनया न जो lsquoमन का धयानrsquo बताया इसस तो समसत जीव भरमा गय ह यानी भरम म पङ गय ह कबीर बोल - धमरदास यह कालनरजन का सवभाव ह ह क इसक चककर म पङन स वषण सतयपरष का भद नह जान पाय (नरजन न अषटागी को पहल ह सचत कर आदश द दया था क सतयपरष का कोई भद जानन न पाय ऐसी माया फ़लाना) अब उस कामनी अषटागी क यह चाल दखो क उसन अमतसवरप सतयपरष को छपाकर वषरप कालनरजन को दखाया िजस lsquoजयोतrsquo का धयान अषटागी न बताया उस जयोत स कालनरजन

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को दसरा न समझो धमरदास अब तम यह वलण गढ़ सतय सनो जयोत का जसा परकटरप होता ह वसा ह गपतरप भी ह (दय मोमबी आद क जयोत लौ) जो हरदय क भीतर ह वह ह बाहर दखन म भी आता ह जब मनषय दपक जलाता ह तो उस जयोत क भाव-सवभाव को दखो और नणरय करो जयोत को दखकर पतगा बहत खश होता ह और परमवश अपना भला जानकर उसक पास आता ह लकन जयोत को सपशर करत ह पतगा भसम हो जाता ह इस परकार अानता म मतवाला हआ वह पतगा उसम जल मरता ह जयोतसवरप कालनरजन भी ऐसा ह ह जो भी जीवातमा उसक चककर म आ जाता ह कररकाल उस छोङता नह इस काल न करोङ वषण अवतार को खाया और अनक बरहमा शकर को खाया तथा अपन इशार पर नचाया काल दवारा दय जान वाल जीव क कौन-कौन स दख को कह वह लाख जीव नतय ह खाता ह ऐसा वह भयकर काल नदरयी ह धमरदास बोल - मर मन म सशय ह अषटागी को सतयपरष न उतपनन कया था और िजस परकार उतपनन कया वह सब कथा मन जानी कालनरजन न उस भी खा लया फ़र वह सतयपरष क परताप स बाहर आयी फ़र उस अषटागी न ऐसा धोखा कय कया क कालनरजन को तो परकट कया और सतयपरष का भद गपत रखा यहा तक क सतयपरष का भद उसन बरहमा वषण महश को भी नह बताया और उनस भी कालनरजन का धयान कराया अषटागी न कसा चरतर कया क सतयपरष को छोङकर कालनरजन क साथी हो गयी अथारत िजन सतयपरष का वह अश थी उसका धयान कय नह कराया कबीर साहब बोल - धमरदास नार का सवभाव तमह बताता ह िजसक घर म पतरी होती ह वह अनक जतन करक उस पालता-पोसता ह पहनन को वसतर खान को भोजन सोन को शयया रहन को घर आद सब सख दता ह और घर-बाहर सब जगह उस पर वशवास करता ह उसक माता-पता उसक हत म य आद करा क ववाह करत हय वधपवरक उस वदा करत ह माता-पता क घर स वदा होकर वह अपन पत क घर आ जाती ह तो उसक साथ सब गण म होकर परम म इतनी मगन हो जाती ह क अपन माता-पता सबको भला दती ह धमरदास नार का यह सवभाव ह इसलय नार सवभाववश अषटागी भी पराय सवभाव वाल ह हो गयी वह कालनरजन क साथ होकर उसी क होकर रह गयी और उसी क रग म रग गयी इसीलय उसन सतयपरष का भद परकट नह कया और वषण को कालनरजन का ह रप दखाया

काल-नरजन का धोखा

धमरदास बोल - यह रहसय तो मन जान लया अब आग का रहसय बताओ आग कया हआ कबीर साहब बोल - अषटागी न वषण को पयार कया और कहा बरहमा न तो वयभचार और झठ स अपनी मानमयारदा खो द वषण अब सब दवताओ म तमह ईशवर होग सब दवता तमह को शरषठ मानग और तमहार पजा करग िजसक इचछा तम मन म करोग वह कायर म परा करगी

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फ़र अषटागी शकर क पास गयी और बोल - शव तम मझस अपन मन क बात कहो तम जो चाहत हो वह मझस मागो अपन दोन पतर को तो मन उनक कमारनसार द दया ह शकर न हाथ जोङकर कहा - माता जसा तमन कहा वह मझ दिजय मरा यह शरर कभी नषट न हो ऐसा वर दिजय अषटागी न कहा - ऐसा नह हो सकता कयक lsquoआदपरषrsquo क अलावा कोई दसरा अमर नह हआ तम परमपवरक पराण पवन का योगसयम करक योगतप करो तो चार-यग तक तमहार दह बनी रहगी तब जहा तक परथवी आकाश होगा तमहार दह कभी नषट नह होगी वषण और महश ऐसा वर पाकर बहत परसनन हय पर बरहमा बहत उदास हय तब बरहमा वषण क पास पहच और बोल - भाई माता क वरदान स तम दवताओ म परमख और शरषठ हो माता तम पर दयाल हयी पर म उदास ह अब म माता को कया दोष द यह सब मर ह करनी का फ़ल ह तम कोई ऐसा उपाय करो िजसस मरा वश भी चल और माता का शाप भी भग न हो वषण बोल - बरहमा तम मन का भय और दख तयाग दो क माता न मझ शरषठ पद दया ह म सदा तमहार साथ तमहार सवा करगा तम बङ और म छोटा ह अतः तमहारा मान-सममान बराबर करगा जो कोई मरा भकत होगा वह तमहार भी वश क सवा करगा भाई म ससार म ऐसा मत-वशवास बना दगा क जो कोई पणयफ़ल क आशा करता हो और उसक लय वह जो भी य धमर पजा वरत आद जो भी कायर करता हो वह बना बराहमण क नह हग जो बराहमण क सवा करगा उस पर महापणय का परभाव होगा वह जीव मझ बहत पयारा होगा और म उस अपन समान बकठ म रखगा यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय वषण न उनक मन क चता मटा द बरहमा न कहा - मर भी यह चाह थी क मरा वश सखी हो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क फ़लाय जाल का वसतार दखो उसन खानी वाणी क मोह स मोहत कर सार ससार को ठग लया और सब इसक चककर म पङकर अपन आप ह इसक बधन म बध गय तथा परमातमा को सवय को अपन कलयाण को भल ह गय यह कालनरजन वभनन सख भोग आद तथा सवगर आद का लालच दकर सब जीव को भरमाता ह और उनस भात-भात क कमर करवाता ह फ़र उनह जनम-मरण क झल म झलाता हआ बहभात कषट दता ह ------------------- खानी बधन - सतरी-पत पतर-पतरी परवार धन-सप आद को ह सब कछ मानना खानी बधन ह वाणी बधन - भत-परत सवगर-नकर मान-अपमान आद कलपनाय करत हय वभनन चतन करना वाणी बधन ह

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कयक मन इन दोन जगह ह जीव को अटकाय रखता ह मोट माया सब तज झीनी तजी न जाय मान बङाई ईषयार फ़र लख चौरासी लाय सनतमत म खानी बधन को lsquoमोटमायाrsquo और वाणी बधन को lsquoझीनीमायाrsquo कहत ह बना ान क इन बधन स छट पाना जीव क लय बहद कठन ह खानी बधन क अतगरत मोटमाया को तयाग करत तो बहत लोग दख गय ह परनत झीनीमाया का तयाग बरल ह कर पात ह कामना वासनारपी झीनीमाया का बधन बहत ह जटल ह इसन सभी को भरम म फ़सा रखा ह इसक जाल म फ़सा कभी िसथर नह हो पाता अतः यह कालनरजन सब जीव को अपन जाल म फ़साकर बहत सताता ह राजा बल हरशचनदर वण वरोचन कणर यधषठर आद और भी परथवी क पराणय का हतचतन करन वाल कतन तयागी और दानी राजा हय इनको कालनरजन न कस दश म ल जाकर रखा यानी य सब भी काल क गाल म ह समा गय कालनरजन न इन सभी राजाओ क जो ददरशा क वह सारा ससार ह जानता ह क य सब बवश होकर काल क अधीन थ ससार जानता ह क कालनरजन स अलग न हो पान क कारण उनक हरदय क शदध नह हयी कालनरजन बहत परबल ह उसन सबक बदध हर ल ह य कालनरजन अभमानी lsquoमनrsquo हआ जीव क दह क भीतर ह रहता ह उसक परभाव म आकर जीव lsquoमन क तरगrsquo म वषयवासना म भला रहता ह िजसस वह अपन कलयाण क साधन नह कर पाता तब य अानी भरमत जीव अपन घर अमरलोक क तरफ़ पलटकर भी नह दखता और सतय स सदा अनजान ह रहता ह ---------------------- धमरदास बोल - मन यम यानी कालनरजन का धोखा तो पहचान लया ह अब बताओ क गायतरी क शाप का आग कया हआ कबीर साहब बोल - म तमहार सामन अगम (जहा पहचना असभव हो) ान कहता ह गायतरी न अषटागी दवारा दया शाप सवीकार तो कर लया पर उसन भी पलट कर अषटागी को शाप दया क माता मनषय जनम म जब म पाच परष क पतनी बन तो उन परष क माता तम बनो उस समय तम बना परष क ह पतर उतपनन करोगी और इस बात को ससार जानगा आग दवापर यग आन पर दोन न गायतरी न दरौपद और अषटागी न कनती क रप म दह धारण क और एक-दसर क शाप का फ़ल भगता जब यह शाप और उसका झगङा समापत हो गया तब फ़र स जगत क रचना हयी बरहमा वषण महश और अषटागी इन चारो न अणडज पणडज ऊषमज और सथावर इन चार खानय को उतपनन कया फ़र चार-खानय क अतगरत भनन-भनन सवभाव क चौरासी लाख योनया उतपनन क पहल अषटागी न अणडज यानी अड स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क बरहमा न पणडज यानी शरर क अनदर गभर स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क वषण न ऊषमज यानी मल पसीना पानी आद स

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उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क शकर न सथावर यानी व जङ पहाङ घास बल आद जीवखान क रचना क इस तरह स चार खानय को चार न रच दया और उसम जीव को बधन म डाल दया फ़र परथवी पर खती आद होन लगी तथा समयानसार लोग lsquoकारणrsquo lsquoकरणrsquo और lsquoकतारrsquo को समझन लग इस परकार चार खान क चौरासी का वसतार हो गया इन चार खानय को बोलन क लय lsquoचार परकार क वाणीrsquo द गयी बरहमा वषण महश और अषटागी दवारा सिषटरचना होन क कारण जीव उनह को सब कछ समझन लग और सतयपरष क तरफ़ स भल रह

चार खान चौरासी लाख योनय स आय मनषय क लण

धमरदास बोल - िजन चार खान क उतप हयी उनका वणरन मझ बताय चौरासीलाख योनय क जो वकराल धाराय ह उनम कस योन का कतना वसतार हआ वह भी बताय कबीर साहब बोल - म तमह योनभाव का वणरन सनाता ह चौरासी लाख योनय म नौ लाख जल क जीव और चौदह लाख पी होत ह उङन रगन वाल कम-कट आद साईस लाख होत ह व बल फ़ल आद सथावर तीस लाख होत ह और चारलाख परकार क मनषय हय इन सब योनय म मनषयदह सबस शरषठ ह कयक इसी स मो को जाना समझा और परापत कया जा सकता ह मनषययोन क अतरकत और कसी योन म मोपद या परमातमा का ान नह होता कयक और योन क जीव कमरबधन म भटकत रहत ह धमरदास बोल - जब सभी योनय क जीव एक समान ह तो फ़र सभी जीव को एक सा ान कय नह ह कबीर साहब बोल - जीव क असमानता क वजह तमह समझा कर कहता ह चारखान क जीव एक समान ह परनत शरररचना म ततववशष का अनतर ह सथावर खान म सफ़र lsquoएक ततवrsquo होता ह ऊषमज म lsquoदो ततवrsquo अणडज खान म lsquoतीन ततवrsquo और पणडज खान म lsquoचारततवrsquo होत ह इनस अलग मनषयशरर म पाच-ततव होत ह अब चार खान का ततवनणरय भी जान अणडज खान म तीन ततव - जल अिगन और वाय ह सथावर खान म एक ततव lsquoजलrsquo वशष ह ऊषमज खान म दो ततव वाय तथा अिगन बराबर समझो पणडज खान म चार ततव अिगन परथवी जल और वाय वशष ह पणडज खान म ह आन वाला मनषय - अिगन वाय परथवी जल आकाश स बना ह धमरदास बोल - मनषययोन म नर-नार ततव म एक समान ह परनत सबको एक समान ान कय नह ह सतोष मा दया शील आद सदगण स कोई मनषय तो शनय होता ह तथा कोई इन गण स परपणर होता ह कोई मनषय पापकमर करन वाला अपराधी होता ह तो कोई वदवान कोई दसर को दख दन वाल सवभाव का होता ह

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तो कोई अतकरोधी कालरप होता ह कोई मनषय कसी जीव को मारकर उसका आहार करता ह तो कोई जीव क परत दयाभाव रखता ह कोई आधयातम क बात सनकर सख पाता ह तो कोई कालनरजन क गण गाता ह मनषय म यह नानागण कस कारण स होत ह कबीर साहब बोल - म तमस मनषययोन क नर-नार क गण अवगण को भल परकार स कहता ह कस कारण स मनषय ानी और अानी भाव वाला होता ह वह पहचान सनो शर साप का गीदङ सयार कौवा गदध सअर बलल तथा इनक अलावा और भी अनक जीव ह जो इनक समान हसक पापयोन अभय मास आद खान वाल दषकम नीच गण वाल समझ जात ह इन योनय म स जो जीव आकर मनषययोन म जनम लता ह तो भी उसक पीछ क योन का सवभाव नह छटता उसक पवरकम का परभाव उसको अभी परापत मानवयोन म भी बना रहता ह अतः वह मनषयदह पाकर भी पवर क स कम म परवत रहता ह ऐस पशयोनय स आय जीव नरदह म होत हय भी परतय पश ह दखायी दत ह िजस योन स जो मनषय आया ह उसका सवभाव भी वसा ह होगा जो दसर पर घात करन वाल करर हसक पापकम तथा करोधी वषल सवभाव क जीव ह उनका भी वसा ह सवभाव बना रहता ह धमरदास मनषययोन म जनम लकर ऐस सवभाव को मटन का एक ह उपाय ह क कसी परकार सौभागय स सदगर मल जाय तो व ान दवारा अान स उतपनन इस परभाव को नषट कर दत ह और फ़र मनषय कागदशा (वषठा मल आद क समान वासनाओ क चाहत) क परभाव को भल जाता ह उसका अान पर तरह समापत हो जाता ह तब पवर पशयोन और अभी क मनषययोन का यह दवद छट जाता ह सदगरदव ान क आधार ह व अपन शरण म आय हय जीव को ानअिगन म तपाकर एव उपाय स घस पीटकर सतयान उपदश अनसार उस वसा ह बना लत ह और नरतर साधना अभयास स उस पर परभावी पवरयोनय क ससकार समापत कर दत ह िजस परकार धोबी वसतर धोता ह और साबन मलन स वसतर साफ़ हो जाता ह तब वसतर म यद थोङा सा ह मल हो तो वह थोङ ह महनत स साफ़ हो जाता ह परनत वसतर बहत अधक गनदा हो तो उसको धोन म अधक महनत क आवशयकता होती ह वसतर क भात ह जीव क सवभाव को जानो कोई-कोई जीव जो अकर होता ह ऐसा जीव सदगर क थोङ स ान को ह वचार कर शीघर गरहण कर लता ह उस ान का सकत ह बहत होता ह अधक ान क आवशयकता नह होती ऐसा शषय ह सचचान का अधकार होता ह धमरदास बोल - यह तो थोङ सी योनय क बात हयी अब चारखान क जीव क बात कह चारखान क जीव जब मनषययोन म आत ह उनक लण कया ह िजस जानकर म सावधान हो जाऊ कबीर साहब बोल - चारखान क चौरासी लाख योनय म भरमाया भटकता जीव जब बङ भागय स मनषयदह धारण करन का अवसर पाता ह तब उसक अचछ-बर लण का भद तमस कहता ह िजसको बहत ह आलस नीद आती ह तथा कामी करोधी और दरदर होता ह वह अणडज खान स आया ह जो बहत चचल ह और चोर करना िजस अचछा लगता ह धन-माया क बहत इचछा रखता ह दसर क चगल नदा िजस अचछ लगती ह इसी सवभाव क कारण वह दसर क घर वन तथा झाङ म आग लगाता ह तथा चचल होन क कारण कभी बहत रोता ह

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कभी नाचता-कदता ह कभी मगल गाता ह भतपरत क सवा उसक मन को बहत अचछ लगती ह कसी को कछ दता हआ दखकर वह मन म चढ़ता ह कसी भी वषय पर सबस वाद-ववाद करता ह ान धयान उसक मन म कछ नह आत वह गर सदगर को नह पहचानता न मानता वदशासतर को भी नह मानता वह अपन मन स ह छोटा बङा बनता रहता ह और समझता ह क मर समान दसरा कोई नह ह उसक वसतर मल तथा आख कचङयकत और मह स लार बहती ह वह अकसर नहाता भी नह ह जआ चौपङ क खल म मन लगाता ह उसका पाव लमबा और कभी-कभी वह कबङा भी होता ह य सब अणडज खान स आय मनषय क लण ह अब ऊषमज क बार म कहता ह यह जगल म जाकर शकार करत हय बहत जीव को मारकर खश होता ह इन जीव को मारकर अनक तरह स पकाकर वह खाता ह वह सदगर क नाम-ान क नदा करता ह गर क बराई और नदा करक वह गर क महतव को मटान का परयास करता ह वह शबदउपदश और गर क नदा करता ह वह बहत बात करता ह तथा बहत अकङता ह और अहकार क कारण बहत ान बनाकर समझाता ह वह सभा म झठ वचन कहता ह टङ पगङ बाधता ह िजसका कनारा छाती तक लटकता ह दया धमर उसक मन म नह होता कोई पणय-धमर करता ह वह उसक हसी उङाता ह माला पहनता ह और चदन का तलक लगाता ह तथा शदध सफ़द वसतर पहनकर बाजार आद म घमता ह वह अनदर स पापी और बाहर स दयावान दखता ह ऐसा अधम-नीच जीव यम क हाथ बक जाता ह उसक दात लमब तथा बदन भयानक होता ह उसक पील नतर होत ह कबीर साहब बोल - अब सथावर खान स आय जीव (मनषय) क लण सनो इसस आया जीव भस क समान शरर धारण करता ह ऐस जीव क बदध णक होती ह अतः उनको पलटन म दर नह लगती वह कमर म फ़ टा सर पर पगङ बाधता ह तथा राजदरबार क सवा करता ह कमर म तलवार कटार बाधता ह इधर-उधर दखता हआ मन स सन (आख मारकर इशारा करना) मारता ह परायी सतरी को सन स बलाता ह मह स रसभर मीठ बात कहता ह िजनम कामवासना का परभाव होता ह वह दसर क घर को कदिषट स ताकता ह तथा जाकर चोर करता ह पकङ जान पर राजा क पास लाया जाता ह सारा ससार भी उसक हसी उङाता ह फ़र भी उसको लाज नह आती एक ण म ह दवी-दवता क पजा करन क सोचता ह दसर ह ण वचार बदल दता ह कभी उसका मन कसी क सवा म लग जाता ह फ़र जलद ह वह उसको भल भी जाता ह एक ण म ह वह (कोई) कताब पढ़कर ानी बन जाता ह एक ण म ह वह सबक घर आना जाना घमना करता ह एक ण म बहादर एक ण म ह कायर भी हो जाता ह एक ण म ह मन म साह (धनी) हो जाता ह और दसर ण म ह चोर करन क सोचता ह एक ण म धमर और दसर ण म अधमर भी करता ह इस परकार ण परतण मन क बदलत भाव क साथ वह सखी दखी होता ह भोजन करत समय माथा खजाता ह तथा फ़र बाह जाघ पर रगङता ह भोजन करता ह फ़र सो जाता ह जो जगाता ह उस मारन दौङता ह और गसस स िजसक आख लाल हो जाती ह और उसका भद कहा तक कह धमरदास अब पणडज खान स आय जीव का लण सनो पणडज खान स आया जीव वरागी होता ह तथा योगसाधना क मदराओ म उनमनी-समाध का मत आद धारण करन वाला होता ह और वह जीव वद आद का वचार कर धमर-कमर करता ह तीथर वरत धयान योग समाध म लगन वाला होता ह उसका मन गरचरण म

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भल परकार लगता ह वह वद पराण का ानी होकर बहत ान करता ह और सभा म बठकर मधर वातारलाप करता ह राज मलन का तथा राज क कायर करन का और सतरीसख को बहत मानता ह कभी भी अपन मन म शका नह लाता और धन-सप क सख को मानता ह बसतर पर सनदर शया बछाता ह उस उम शदध साितवक पौिषटक भोजन बहत अचछा लगता ह और लग सपार पान बीङा आद खाता ह पणयकमर म धन खचर करता ह उसक आख म तज और शरर म परषाथर होता ह सवगर सदा उसक वश म ह वह कह भी दवी-दवता को दखता ह तो माथा झकाता ह उसका धयान समरन म बहत मन लगता ह तथा वह सदा गर क अधीन रहता ह

चौरासी कय बनी

कबीर साहब बोल - मन चारो खान क लण तमस कह अब सनो मनषययोन क अवध समापत होन स पहल कसी कारण स दह छट जाय वह फ़र स ससार म मनषय जनम लता ह अब उसक बार म सनो धमरदास बोल - मर मन म एक सशय ह जब चौरासी लाख योनय म भरमन भटकन क बाद य जीव मनषयदह पाता ह और मनषयदह पाया हआ य जीव फ़र दह (असमय) छटन पर पनः मनषयदह पाता ह तो मतय होन और पनः मनषयदह पान क यह सध कस हयी और उस पनः मनषय जनम लन वाल क गण लण भी कहो कबीर साहब बोल - आय शष रहत जो मनषय मर जाता ह फ़र वह शष बची आय को परा करन हत मनषयशरर धारण करक आता ह जो अानी मखर फ़र भी इस पर वशवास न कर वह दपक बी जलाकर दख और बहत परकार स उस दपक म तल भर परनत वाय का झका (मतय आघात) लगत ह वह दपक बझ जाता ह (भल ह उसम खब तल भरा हो) उस बझ दपक को आग स फ़र जलाय तो वह दपक फ़र स जल जाता ह इसी परकार जीव मनषय फ़र स दह धारण करता ह अब उस मनषय क लण भी सनो उसका भद तमस नह छपाऊगा मनषय स फ़र मनषय का शरर पान वाला वह मनषय शरवीर होता ह भय और डर उसक पास भी नह फ़टकता मोहमाया ममता उस नह वयापत उस दखकर दशमन डर स कापत ह वह सतगर क सतयशबद को वशवासपवरक मानता ह नदा को वह जानता तक नह वह सदा सदगर क शरीचरण म अपना मन लगाता ह और सबस परममयी वाणी बोलता ह अानी होकर ान को पछता समझता ह उस सतयनाम का ान और परचय करना बहद अचछा लगता ह धमरदास ऐस लण स यकत मनषय स ानवातार करन का अवसर कभी खोना नह चाहय और अवसर मलत ह उसस ानचचार करनी चाहय जो जीव सदगर क शबदरपी उपदश को पाता ह और भल परकार गरहण करता ह उसक जनम-जनम का पाप और अानरपी मल छट जाता ह सतयनाम का परमभाव स समरन करन वाला जीव भयानक काल-माया क फ़द स छटकर सतयलोक जाता ह सदगर क शबदउपदश को हरदय म धारण करन वाला जीव अमतमय अनमोल होता ह वह सतयनाम साधना क बल पर अपन असलघर अमरलोक चला जाता ह जहा सदगर क हसजीव सदा आननद करत ह और अमत आहार करत ह

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जबक कालनरजन क जीव कागदशा (वषठा मल क समान घणत वासनाओ क लालची) म भटकत हय जनम-मरण क कालझल म झलत रहत ह सतयनाम क परताप स कालनरजन जीव को सतयलोक जान स नह रोकता कयक महाबल कालनरजन कवल इसी स भयभीत रहता ह उस जीव पर सदगर क वश क छाप दखकर काल बवशी स सर झकाकर रह जाता ह धमरदास बोल - आपन चारखान क जो वचार कह वो मन सन अब म जानना चाहता ह क चौरासी लाख योनय क धारा का वसतार कस कारण स कया गया और इस अवनाशी जीव को अनगनत कषट म डाल दया गया मनषय क कारण ह यह सिषट बनायी गयी ह या क कोई और जीव को भी भोग भगतन क लय बनायी गयी ह कबीर साहब बोल - सभी योनय म शरषठ मनषयदह सख दन वाल ह इस मनषयदह म ह गरान समाता ह िजसको परापत कर मनषय अपना कलयाण कर सकता ह ऐसा मनषयशरर पाकर जीव जहा भी जाता ह सदगर क भिकत क बना दख ह पाता ह मनषयदह को पान क लय जीव को चौरासी क भयानक महाजाल स गजरना ह होता ह फ़र भी यह दह पाकर मनषय अान और पाप म ह लगा रहता ह तो उसका घोरपतन निशचत ह उस फ़र स भयकर कषटदायक (साढ़ बारह लाख साल आय क) चौरासी धारा स गजरना होगा दर-ब-दर भटकना होगा सतयान क बना मनषय तचछ वषयभोग क पीछ भागता हआ अपना जीवन बना परमाथर क ह नषट कर लता ह ऐस जीव का कलयाण कस तरह हो सकता ह उस मो भला कस मलगा अतः इस लय को परापत करन क लय सतगर क तलाश और उनक सवा भिकत अतआवशयक ह धमरदास मनषय क भोगउददशय स चौरासी धारा या चौरासी लाख योनया रची गयी ह सासारक-माया और मन-इिनदरय क वषय क मोह म पङकर मनषय क बदध का नाश हो जाता ह वह मढ़ अानी ह हो जाता ह और वह सदगर क शबदउपदश को नह सनता तो वह मनषय चौरासी को नह छोङ पाता उस अानी जीव को भयकर कालनरजन चौरासी म लाकर डालता ह जहा भोजन नीद डर और मथन क अतरकत कसी पदाथर का ान या अनय ान बलकल नह ह चौरासी लाख योनय क वषयवासना क परबलससकार क वशीभत हआ य जीव बारबार कररकाल क मह म जाता ह और अतयनत दखदायी जनम-मरण को भोगता हआ भी य अपन कलयाण का साधन नह करता धमरदास अानी जीव क इस घोर वप सकट को जानकर उनह सावधान करन क लय (सनत न) पकारा और बहत परकार स समझाया क मनषयशरर पाकर सतयनाम गरहण करो और इस सतयनाम क परताप स अपन नजधाम सतयलोक को परापत करो आदपरष क वदह (बना वाणी स जपा जान वाला) और िसथर आदनाम (जो शरआत स एक ह ह) को जो जाच-समझ कर (सचचगर स मतलब य नाम मह स जपन क बजाय धनरप होकर परकट हो जाय यह सचचगर और सचचीदा क पहचान ह) जो जीव गरहण करता ह उसका निशचत ह कलयाण होता ह गर स परापत ान स आचरण करता हआ वह जीव सार को गरहण करन वाला नीर-ीर ववक (हस क तरह दध और पानी क अनतर को जानन वाला) हो जाता ह और कौव क गत (साधारण और दारहत मनषय) तयाग कर हसगत वाला हो जाता ह इस परकार क ानदिषट क परापत होन स वह वनाशी तथा अवनाशी का वचार करक

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इस नशवर नाशवान जङ दह क भीतर ह अगोचर और अवनाशी परमातमा को दखता ह धमरदास वचार करो वह नःअर (शाशवत नाम) ह सार ह जो अर (जयोत िजस पर सभी योनय क शरर बनत ह धयान क एक ऊची िसथत) स परापत होता ह सब जङततव स पर वह असल सारततव ह

कालनरजन क चालबाजी

धमरदास बोल - साहब चार खानय क रचना कर फ़र कया कया यह मझ सपषट कहो कबीर साहब बोल - धमरदास यह कालनरजन क चालबाजी ह िजस पडत काजी नह समझत और व इस lsquoभक कालनरजनrsquo को भरमवश सवामी (भगवान आद) कहत ह और सतयपरष क नाम ानरपी अमत को तयाग कर माया का वषयरपी वष खात ह इन चारो अषटागी (आदशिकत) बरहमा वषण महश न मलकर यह सिषटरचना क और उनहन जीव क दह को कचचा रग दया इसीलय मनषयदह म आय समय आद क अनसार बदलाव होता रहता ह पाच-ततव परथवी जल वाय अिगन आकाश और तीन गण सत रज तम स दह क रचना हयी ह उसक साथ चौदह-चौदह यम लगाय गय ह इस परकार मनषयदह क रचना कर काल न उस मार खाया तथा फ़र फ़र उतपनन कया इस तरह मनषय सदा जनम-मरण क चककर म पङा ह रहता ह ओकार वद का मल अथारत आधार ह और इस ओकार म ह ससार भला-भला फ़र रहा ह ससार क लोग न ओकार को ह ईशवर परमातमा सब कछ मान लया व इसम उलझ कर सब ान भल गय और तरह-तरह स इसी क वयाखया करन लग यह ओकार ह नरजन ह परनत आदपरष का सतयनाम जो वदह ह उस गपत समझो कालमाया स पर वह lsquoआदनामrsquo गपत ह ह धमरदास फ़र बरहमा न अठासी हजार ऋषय को उतपनन कया िजसस कालनरजन का परभाव बहत बढ़ गया (कयक व उसी का गण तो गात ह) बरहमा स जो जीव उतपनन हय वो बराहमण कहलाय बराहमण न आग इसी शा क लय शासतर का वसतार कर दया (इसस कालनरजन का परभाव और भी बढ़ा कयक उनम उसी क बनावट महमा गायी गयी ह) बरहमा न समत शासतर पराण आद धमरगरनथ का वसतरत वणरन कया और उसम समसत जीव को बर तरह उलझा दया (जबक परमातमा को जानन का सीधा सरल आसान रासता lsquoसहजयोगrsquo ह) जीव को बरहमा न भटका दया और शासतर म तरह-तरह क कमरकाड पजा उपासना क नयम वध बताकर जीव को सतय स वमख कर भयानक कालनरजन क मह म डालकर उसी (अलखनरजन) क महमा को बताकर झठा धयान (और ान) कराया इस तरह lsquoवदमतrsquo स सब भरमत हो गय और सतयपरष क रहसय को न जान सक धमरदास नरकार (नरकार) नरजन न यह कसा झठा तमाशा कया उस चरतर को भी समझो कालनरजन (मन

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दवारा) आसरभाव उतपनन कर परताङत जीव को सताता ह दवता ऋष मन सभी को परताङत करता ह फ़र अवतार (दखाव क लय नजमहमा क लय) धारण कर रक बनता ह (जबक सबस बङा भक सवय ह) और फ़र असर का सहार (क नाटक) करता ह और इस तरह सबस अपनी महमा का वशष गणगान करवाता ह िजसक कारण जीव उस शिकतसपनन और सब कछ जानकर उसी स आशा बाधत ह क यह हमारा महान रक ह वह (वभनन अवतार दवारा) अपनी रककला दखाकर अनत म सब जीव का भण कर लता ह (यहा तक क अपन पतर बरहमा वषण महश को भी नह छोङता) जीवन भर उसक नाम ान जप पजा आद क चककर म पङा जीव अनत समय पछताता ह जब काल उस बरहमी स खाता ह (मतय स कछ पहल अपनी आगामी गत पता लग जाती ह)

तपतशला पर काल पीङत जीव क पकार

धमरदास अब आग सनो बरहमा न अड़सठ तीथर सथापत कर पाप पणय और कमर अकमर का वणरन कया फ़र बरहमा न बारह राश साईस नतर सात वार और पदरह तथ का वधान रचा इस परकार जयोतष शासतर क रचना हयी अब आग क बात सनो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन का जाल फ़लान क लय बनाय गय अड़सठ तीथर य ह 1 काशी 2 परयाग 3 नमषारणय 4 गया 5 करतर 6 परभास 7 पषकर 8 वशवशवर 9 अटटहास 10 महदर 11 उजजन 12 मरकोट 13 शककणर 14 गोकणर 15 रदरकोट 16 सथलशवर 17 हषरत 18 वषभधवज 19 कदार 20 मधयमशवर 21 सपणर 22 कातरकशवर 23 रामशवर 24 कनखल 25 भदरकणर 26 दडक 27 चदणडा 28 कमजागल 29 एकागर 30 छागलय 31 कालजर 32 मडकशवर 33 मथरा 34 मरकशवर 35 हरशचदर 36 सदधाथर तर 37 वामशवर 38 कककटशवर 39 भसमगातर 40 अमरकटक 41 तरसधया 42 वरजा 43 अक शवर 44 दवारका 45 दषकणर 46 करबीर 47 जलशवर 48 शरीशल 49 अयोधया 50 जगननाथपर 51 कारोहण 52 दवका 53 भरव 54 पवरसागर 55 सपतगोदावर 56 नमलशवर 57 कणरकार 58 कलाश 59 गगादवार 60 जललग 61 बङवागन 62 बदरकाशरम 63 शरषठ सथान 64 वधयाचल 65 हमकट 66 गधमादन 67 लगशवर 68 हरदवार और बारह राशया - मष वष मथन ककर सह कनया तला विशचक धन मकर कभ मीनय ह तथा साईस नतर - अिशवनी भरणी कका रोहणी मगशरा आदरार पनवरस पषय आशलषा मघा पवारफ़ालगनी उराफ़ालगनी हसत चतरा सवात वशाखा अनराधा जयषठा मल पवारषाढा उराषाढा शरवण धनरषठा शतभषा पवारभादरपरद उराभादपरद रवतीय ह सात दन - रववार सोमवार मगलवार बधवार बहसपतवार शकरवार शनवार पदरह तथया - परथम या पङवा दज तीज चौथ पचमी षषठ सपतमी अषटमी नवमी दशमी एकादशी दवादशी तरयोदशी चौदस पणरमा

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(शकलप) दसरा एक कषणप भी होता ह िजसक सभी तथया ऐसी ह होती ह कवल उसक पदरहवी तथ को पणरमा क सथान पर अमावसया कहत ह धमरदास फ़र बरहमा न चारो यग क समय को एक नयम स वसतार करत हय बाध दया एक पलक झपकन म िजतना समय लगता ह उस पल कहत ह साठपलक को एकघङ कहत ह एकघङ चौबीस मनट क होती ह साढ़सात घङ का एकपहर होता ह आठपहर का दन-रात चौबीस घट होत ह सात दन का एक सपताह और पदरह दन का एकप होता ह दो-प का एक महना और बारह महन का एक वषर होता ह सतरह लाख अटठाईस हजार वषर का सतयग बारह लाख छयानब हजार का तरता और आठ लाख चौसठ हजार का दवापर तथा चार लाख बीस हजार का कलयग होता ह चार यग को मलाकर एक महायग होता ह (यग का समय गलतबिलक बहत जयादा गलत ह य ववरण कबीर साहब दवारा बताया नह ह बिलक अनय आधार पर ह कलयग सफ़र बाईस हजार वषर का होता ह और तरता लगभग अड़तीस हजार वषर का होता ह) धमरदास बारह महन म कातरक और माघ इन दो महन को पणय वाला कह दया िजसस जीव वभनन धमर-कमर कर और उलझा रह जीव को इस परकार भरम म डालन वाल कालनरजन (और उसक परवार) क चालाक कोई बरला ह समझ पाता ह परतयक तीथर-धाम का बहत महातमय (महमा) बताया िजसस क मोहवश जीव लालच म तीथ क ओर भागन लग बहत सी कामनाओ क पतर क लय लोग तीथ म नहाकर पानी और पतथर स बनी दवी-दवता क मत रय को पजन लग लोग आतमा परमातमा (क ान) को भलकर इस झठपजा क भरम म पङ गय इस तरह काल न सब जीव को बर तरह उलझा दया सदगर क सतयशबद उपदश बना जीव सासारक कलश काम करोध शोक मोह चता आद स नह बच सकता सदगर क नाम बना वह यमरपी काल क मह म ह जायगा और बहत स दख को भोगगा वासतव म जीव कालनरजन का भय मानकर ह पणय कमाता ह थोङ फ़ल स धन-सप आद स उसक भख शानत नह होती जबतक जीव सतयपरष स डोर नह जोङता सदगर स दा लकर भिकत नह करता तबतक चौरासी लाख योनय म बारबार आता-जाता रहगा यह कालनरजन अपनी असीमकला जीव पर लगाता ह और उस भरमाता ह िजसस जीव सतयपरष का भद नह जान पाता लाभ क लय जीव लोभवश शासतर म बताय कम क और दौङता फ़रता ह और उसस फ़ल पान क आशा करता ह इस परकार जीव को झठ आशा बधाकर काल धरकर खा जाता ह कालनरजन क चालाक कोई पहचान नह पाता और कालनरजन शासतर दवारा पाप-पणय क कम स सवगर-नकर क परािपत और वषयभोग क आशा बधाकर जीव को चौरासी लाख योनय म नचाता ह पहल सतयग म इस कालनरजन का यह वयवहार था क वह जीव को लकर आहार करता था वह एक लाख जीव नतय खाता था ऐसा महान और अपार बलशाल कालनरजन कसाई ह वहा रात-दन तपतशला जलती थी कालनरजन जीव को पकङ कर उस पर धरता था उस तपतशला पर उन जीव को जलाता था और बहत दख दता था फ़र वह उनह चौरासी म डाल दता था उसक बाद जीव को तमाम योनय म भरमाता था इस परकार कालनरजन जीव को अनक परकार क बहत स कषट दता था

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तब अनकानक जीव न अनक परकार स दखी होकर पकारा क कालनरजन हम जीव को अपार कषट द रहा ह इस यमकाल का दया हआ कषट हमस सहा नह जाता सदगर हमार सहायता करो आप हमार रा करो सतयपरष न जीव को इस परकार पीङत होत दखा तब उनह दया आयी उन दया क भडार सवामी न मझ (ानी) नाम स बलाया और बहत परकार समझा कर कहा - ानी तम जाकर जीव को चताओ तमहार दशरन स जीव शीतल हो जायग जाकर उनक तपन दर करो सतयपरष क आा स म वहा आया कालनरजन जीव को सता रहा था और दखी जीव उसक सकत पर नाच रह थ जीव दख स छटपटा रह थ म वहा जाकर खङा हो गया जीव न मझ दखकर पकारा - ह साहब हम इस दख स उबार लो तब मन lsquoसतयशबदrsquo पकारा और उपदश कया फ़र सतयपरष क lsquoसारशबदrsquo स जीव को जोङ दया दख स जलत जीव शािनत महसस करन लग तब सब जीव न सतत क - ह परष आप धनय हो आपन हम दख स जलत हओ क तपन बझायी हम इस कालनरजन क जाल स छङा लो परभ दया करो मन जीव को समझाया - यद म अपनी शिकत स तमहारा उदधार करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह कयक सतयपरष क वचन अनसार सदउपदश दवारा ह आतमान स जीव का उदधार करना ह अतः जब तम यहा स जाकर मनषयदह धारण करोग तब तम मर शबदउपदश को वशवास स गरहण करना िजसस तमहारा उदधार होगा उस समय म सतयपरष क नाम समरन क सह वध और सारशबद का उपदश करगा तब तम ववक होकर सतयलोक जाओग और सदा क लय कालनरजन क बधन स मकत हो जाओग जो कोई भी मन वचन कमर स समरन करता ह और जहा अपनी आशा रखता ह वहा उसका वास होता ह अतः ससार म जाकर दह धारण कर िजसक आशा करोग और उस समय यद तम सतयपरष को भल गय तो कालनरजन तमको धर कर खा जायगा जीव बोल - ह परातन परष सनो मनषयदह धारण करक (मायारचत वासनाओ म फ़सकर) यह ान भल ह जाता ह अतः याद नह रहता पहल हमन सतयपरष जानकर कालनरजन का समरन कया क वह सब कछ ह कयक वद पराण सभी यह बतात ह वद-पराण सभी एकमत होकर यह कहत ह क नराकार नरजन स परम करो ततीस करोङ दवता मनषय और मन सबको नरजन न अपन वभनन झठ मत क डोर म बाध रखा ह उसी क झठमत स हमन मकत होन क आशा क परनत वह हमार भल थी अब हम सब सह-सह रप स दखायी द रहा ह और समझ म आ गया ह क वह सब दखदायी यम क कालफ़ास ह ह कबीर साहब बोल - जीव यह सब काल का धोखा ह काल न वभनन मत-मतातर का फ़दा बहत अधक फ़लाया ह कालनरजन न अनक कला मत का परदशरन कया और जीव को उसम फ़सान क लय बहत ठाठ फ़लाया (तरह-तरह क भोगवासना बनायी) और सबको तीथर वरत य एव याद कमर काड क फ़द म फ़ासा िजसस कोई मकत नह हो पाता

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फ़र आप शरर धारण करक परकट होता ह और (अवतार दवारा) अपनी वशषमहमा करवाता ह और नाना परकार क गण कमर आद करक सब जीव को बधन म बाध दता ह कालनरजन और अषटागी न जीव को फ़सान क लय अनक मायाजाल रच वद शासतर पराण समत आद क भरामकजाल स भयकरकाल न मिकत का रासता ह बनद कर दया जीव मनषयदह धारण करक भी अपन कलयाण क लय उसी स आशा करता ह कालनरजन क शासतर आद मतरपी कलाए बहत भयकर ह और जीव उसक वश म पङ ह सतयनाम क बना जीव काल का दड भोगत ह इस तरह जीव को बारबार समझा कर म सतयपरष क पास गया और उनको काल दवारा दय जा रह वभनन दख का वणरन कया दयाल सतयपरष तो दया क भडार और सबक सवामी ह व जीव क मल अभमानरहत और नषकामी ह तब सतयपरष न बहत परकार स समझा कर कहा - काल क भरम स छङान क लय जीव को नाम उपदश स सावधान करो

कालनरजन और कबीर का समझौता

धमरदास न कबीर साहब स कहा - परभो अब मझ वह वतात कहो जब आप पहल बार इस ससार म आय कबीर बोल - धमरदास जो तमन पछा वह यग-यग क कथा ह जो म तमस कहता ह जब सतयपरष न मझ आा क तब मन जीव क भलाई क लय परथवी क ओर पाव बढ़ाया और वकराल कालनरजन क तर म आ गया उस यग म मरा नाम अचत था जात हय मझ अनयायी कालनरजन मला वह मर पास आया और झगङत हय महाकरोध स बोला - योगजीत यहा कस आय कया मझ मारन आय हो ह परष अपन आन का कारण मझ बताओ मन कहा - नरजन म जीव का उदधार करन सतपरष दवारा भजा गया ह अनयायी सन तमन बहत कपट चतराई क भोलभाल जीव को तमन बहत भरम म डाला ह और बारबार सताया सतपरष क महमा को तमन गपत रखा और अपनी महमा का बढ़ाचढ़ा कर बखान कया तम तपतशला पर जीव को जलात हो और उस जला-पका कर खात हय अपना सवाद परा करत हो तमन ऐसा कषट जीव को दया तब सतपरष न मझ आा द क म तर जाल म फ़स जीव को सावधान करक सतलोक ल जाऊ और कषट स जीव को मिकत दलाऊ इसलय म ससार म जा रहा ह िजसस जीव को सतयान दकर सतलोक भज यह बात सनत ह कालनरजन भयकर रप हो गया और मझ भय दखान लगा फ़र वह करोध स बोला - मन सर यग तक सतपरष क सवा तपसया क तब सतपरष न मझ तीनलोक का राजय और उसक मान बङाई द

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फ़र दोबारा मन चौसठ यग तक सवा तपसया क तब सतपरष न सिषट रचन हत मझ अषटागी कनया (आदयाशिकत) को दया और उस समय तमन मझ मारकर मानसरोवर दप स नकाल दया था योगजीत अब म तमह नह छोङगा और तमह मारकर अपना बदला लगा म तमह अचछ तरह समझ गया मन कहा - धमरराय नरजन म तमस नह डरता मझ सतपरष का बल और तज परापत ह अर काल तरा मझ कोई डर नह तम मरा कछ नह बगाङ सकत कहकर मन उसी समय सतयपरष क परताप का समरन करक lsquoदवयशबद अगrsquo स काल को मारा मन उस पर दिषट डाल तो उसी समय उसका माथा काला पङ गया जस कसी पी क पख चोटल होन पर वह जमीन पर पङा बबस होकर दखता ह पर उङ नह पाता ठक यह हाल कालनरजन का था वह करोध कर रहा था पर कछ नह कर पा रहा था तब वह मर चरण म गर पङा और बोला - ानीजी म वनती करता ह क मन आपको भाई समझ कर वरोध कया यह मझस बङ गलती हयी म आपको सतयपरष क समान समझता ह आप बङ हो शिकतसमपनन हो गलती करन वाल अपराधी को भी मा दत हो जस सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया वस ह आप भी मझ कछ परसकार दो सोलह सत म आप ईशवर हो ानीजी आप और सतयपरष दोन एक समान हो मन कहा - नरजनराव तम तो सतयपरष क वश (सोलह सत) म कालख क समान कलकत हय हो म जीव को lsquoसतयशबदrsquo का उपदश करक सतयनाम मजबत करा क बचान आया ह भवसागर स जीव को मकत करान को आया ह यद तम इसम वघन डालत हो तो म इसी समय तमको यहा स नकाल दगा नरजन वनती करत हय बोला - म आपका एव सतयपरष दोन का सवक ह इसक अतरकत म कछ नह जानता ानीजी आपस वनती ह क ऐसा कछ मत करो िजसस मरा बगाङ हो और जस सतयपरष न मझ राजय दया वस आप भी दो तो म आपका वचन मानगा फ़र आप मिकत क लय हसजीव मझस ल लिजय तात म वनती करता ह क मर बात मानो आपका कहना य भरमत जीव नह मानग और उलट मरा प लकर आपस वादववाद करग कयक मन मोहरपी फ़दा इतना मजबत बनाया ह क समसत जीव उसम उलझ कर रह गय ह वद शासतर पराण समत म वभनन परकार क गणधमर का वणरन ह और उसम मर तीन पतर बरहमा वषण महश दवताओ म मखय ह उनम भी मन बहत चतराई का खल रचा ह क मर मतपथ का ान परमखरप स वणरन कया गया ह िजसस सब मर बात ह मानत ह म जीव स मिनदर दव और पतथर पजवाता ह और तीथर वरत जप और तप म सबका मन फ़सा रहता ह ससार म लोग दवी दव और भत भरव आद क पजा आराधना करग और जीव को मार-काट कर बल दग ऐस अनक मत-सदधात स मन जीव को बाध रखा ह धमर क नाम पर य होम नम और इसक अलावा भी अनक जाल मन डाल रख ह अतः ानीजी आप ससार म जायग तो जीव आपका कहा नह मानग और व मर मतफ़द म फ़स रहग मन कहा - अनयाय करन वाल नरजन म तमहार जालफ़द को काट कर जीव को सतयलोक ल जाऊगा िजतन भी

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मायाजाल जीव को फ़सान क लय तमन रच रख ह सतशबद स उन सबको नषट कर दगा जो जीव मरा lsquoसारशबदrsquo मजबती स गरहण करगा तमहार सब जाल स मकत हो जायगा जब जीव मर शबद उपदश को समझगा तो तर फ़लाय हय सब भरम अान को तयाग दगा म जीव को सतनाम समझाऊगा साधना कराऊगा और उन हसजीव का उदधार कर सतलोक ल जाऊगा सतयशबद दढ़ता स दकर म उन हसजीव को दया शील मा काम आद वषय स रहत सहजता समपणर सतोष और आतमपजा आद अनक सदगण का धनी बना दगा सतपरष क समरन का जो सार उपाय ह उसम सतपरष का अवचल नाम हसजीव पकारग तब तमहार सर पर पाव रखकर म उन हसजीव को सतलोक भज दगा अवनाशी lsquoअमतनामrsquo का परचार-परसार करक म हसजीव को चता कर भरममकत कर दगा इसलय धमररायनरजन मर बात मन लगाकर सन इस परकार म तमहारा मानमदरन करगा जो मनषय वधपवरक सदगर स दा लकर नाम को परापत करगा उसक पास काल नह आता सतयपरष क नामान स हसजीव को सध हआ दखकर कालनरजन भी उसको सर झकाता ह यह सनत ह कालनरजन भयभीत हो गया उसन हाथ जोङकर वनती क - तात आप दया करन वाल हो इसलय मझ पर इतनी कपा करो सतपरष न मझ शाप दया ह क म नतय लाख जीव खाऊ यद ससार क सभी जीव सतयलोक चल गय तो मर भख कस मटगी फ़र सतपरष न मझ पर दया क और भवसागर का राजय मझ दया आप भी मझ पर कपा करो और जो म मागता ह वह वर मझ दिजय सतयग तरता और दवापर इन तीन म स थोङ जीव सतयलोक म जाय लकन जब कलयग आय तो आपक शरण म बहत जीव जाय ऐसा पकका वचन मझ दकर ह आप ससार म जाय मन कहा - कालनरजन तमन य छल-मथया का जो परपच फ़लाया ह और तीन यग म जीव को दख म डाल दया मन तमहार वनती जान ल अर अभमानी काल तम मझ ठगत हो जसी वनती तमन मझस क वह मन तमह बखश द लकन चौथायग यानी कलयग जब आयगा तब म जीव क उदधार क लय अपन वश यानी सनत को भजगा आठअश सरत ससार म जाकर परकट हग उसक पीछ फ़र नय और उमसवरप सरत lsquoनौतमrsquo धमरदास क घर जाकर परकट हग सतपरष क व बयालस अश जीवउदधार क लय ससार म आयग व कलयग म वयापक रप स पथ परकट कर चलायग और जीव को ान परदान कर सतलोक भजग व बयालस अश िजस जीव को सतयशबद का उपदश दग म सदा उनक साथ रहगा तब वह जीव यमलोक नह जायगा और कालजाल स मकत रहगा नरजन बोला - साहब आप पथ चलाओ और भवसागर स उदधार कर जीव को सतलोक ल जाओ िजस जीव क हाथ म म अश-वश क छाप (नाम मोहर) दखगा उस म सर झकाकर परणाम करगा सतपरष क बात को मन मान लया परनत मर भी एक वनती ह आप एकपथ चलाओग और जीव को नाम दकर सतयलोक भजवाओग तब म बारहपथ (नकल) बनाऊगा जो आपक ह बात करत हय मतलब आपक जस ह ान क बात मगर फ़ज ान दग और अपन आपको कबीरपथी ह कहग म बारह यम ससार म भजगा और आपक नाम स पथ चलाऊगा

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मतअधा नाम का मरा एक दत सकत धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा दत धमरदास क घर जनम लगा इसक बाद आपका अश वहा आयगा इस परकार मरा वह दत जनम लकर जीव को भरमायगा और जीव को सतयपरष का नामउपदश (मगर नकल परभावहन) दकर समझायगा उन बारह पथ क अतगरत जो जीव आयग व मर मख म आकर मरा गरास बनग मर इतनी वनती मानकर मर बात बनाओ और मझ पर कपा करक मझ मा कर दो दवापर यग का अत और कलयग क शरआत जब होगी तब म बौदधशरर धारण करगा इसक बाद म उङसा क राजा इदरमन क पास जाऊगा और अपना नाम जगननाथ धराऊगा राजा इनदरमन जब मरा अथारत जगननाथ मदर समदर क कनार बनवायगा तब उस समदर का पानी ह गरा दगा उसस टकरा कर बहा दगा इसका वशष कारण यह होगा क तरतायग म मर वषण का अवतार राम वहा आयगा और वह समदर स पार जान क लय समदर पर पल बाधगा इसी शतरता क कारण समदर उस मदर को डबा दगा अतः ानीजी आप ऐसा वचार बनाकर पहल वहा समदर क कनार जाओ आपको दखकर समदर रक जायगा आपको लाघकर समदर आग नह जायगा इस परकार मरा वहा मदर सथापत करो उसक बाद अपना अश भजना आप भवसागर म अपना मतपथ चलाओ और सतयपरष क सतनाम स जीव का उदधार करो और अपन मतपथ का चहन छाप मझ बता दो तथा सतयपरष का नाम भी सझा समझा दो बना इस छाप क जो जीव भवसागर क घाट स उतरना चाहगा वह हस क मिकतघाट का मागर नह पायगा मन कहा - नरजन जसा तम मझस चाहत हो वसा तमहार चरतर को मन अचछ तरह समझ लया ह तमन बारह पथ चलान क जो बात कह ह वह मानो तमन अमत म वष डाल दया ह तमहार इस चरतर को दखकर तमह मटा ह डाल और अब पलट कर अपनी कला दखाऊ तथा यम स जीव का बधन छङाकर अमरलोक ल जाऊ मगर सतपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन नशचय कया ह क अमरलोक उस जीव को ल जाकर पहचाऊगा जो मर सतयशबद को मजबती स गरहण करगा अनयायीनरजन तमन जो बारहपथ चलान क माग कह ह वह मन तमको द पहल तमहारा दत धमरदास क यहा परकट होगा पीछ स मरा अश आयगा समदर क कनार म चला जाऊगा और जगननाथ मदर भी बनवाऊगा उसक बाद अपना सतयपथ चलाऊगा और जीव को सतयलोक भजगा नरजन बोला - ानीजी आप मझ सतयपरष स अपन मल का छाप नशान दिजय जसी पहचान आप अपन हसजीव को दोग जो जीव मझको उसी परकार क नशान पहचान बतायगा उसक पास काल नह आयगा अतः साहब दया करक सतपरष क नाम नशानी मझ द मन कहा - धमररायनरजन जो म तमह सतयपरष क मल क नशानी समझा द तो तम जीव क उदधार कायर म वघन पदा करोग तमहार इस चाल को मन समझ लया काल तमहारा ऐसा कोई दाव मझ पर नह चलन वाला धमरराय मन तमह साफ़ शबद म बता दया क अपना `अरनामrsquo मन गपत रखा ह जो कोई हमारा नाम लगा तम उस छोङकर अलग हो जाना जो तम हसजीव को रोकोग तो काल तम रहन नह पाओग धमररायनरजन बोला - ानीजी आप ससार म जाईय और सतयपरष क नाम दवारा जीव को उदधार करक ल

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जाईय जो हसजीव आपक गण गायगा म उसक पास कभी नह आऊगा जो जीव आपक शरण म आयगा वह मर सर पर पाव रखकर भवसागर स पार होगा मन तो वयथर आपक सामन मखरता क तथा आपको पता समान समझ कर लङकपन कया बालक करोङ अवगण वाला होता ह परनत पता उनको हरदय म नह रखता यद अवगण क कारण पता बालक को घर स नकाल द फ़र उसक रा कौन करगा इसी परकार मर मखरता पर यद आप मझ नकाल दग तो फ़र मर रा कौन करगा ऐसा कहकर नरजन न उठकर शीश नवाया और मन ससार क और परसथान कया कबीर न धमरदास स कहा - जब मन नरजन को वयाकल दखा तब मन वहा स परसथान कया और भवसागर क ओर चला आया

राम-नाम क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास भवसागर क ओर चलत हय म सबस पहल बरहमा क पास आया और बरहमा को आदपरष का शबद उपदश परकट कया तब बरहमा न मन लगाकर सनत हय आदपरष क चहन लण क बार म बहत पछा उस समय नरजन को सदह हआ क बरहमा मरा बङा लङका ह ानी क बात म आकर वह उनक प म न चला जाय तब नरजन न बरहमा क बदध फ़रन का उपाय कया कयक नरजन मन क रप म सबक भीतर बठा हआ ह अतः वह बरहमा क शरर म भी वराजमान था उसन बरहमा क बदध को अपनी ओर फ़र दया (सब जीव क भीतर lsquoमनसवरपrsquo नरजन का वास ह जो सबक बदध अपन अनसार घमाता फ़राता ह) बदध फ़रत ह बरहमा न मझस कहा - वह ईशवर नराकार नगरण अवनाशी जयोतसवरप और शनय का वासी ह उसी परष यानी ईशवर का वद वणरन करता ह वद आानसार ह म उस परष को मानता और समझता ह जब मन दखा क कालनरजन न बरहमा क बदध को फ़र दया ह और उस अपन प म मजबत कर लया ह तो म वहा स वषण क पास आ गया वषण को भी वह आदपरष का शबदउपदश कया परनत काल क वश म होन क कारण वषण न भी उस गरहण नह कया वषण न मझस कहा - मर समान अनय कौन ह मर पास चार पदाथर यानी फ़ल ह धमर अथर काम मो मर अधकार म ह उनम स जो चाह म कसी जीव को द मन कहा - वषण सनो तमहार पास यह कसा मो ह मो अमरपद तो मतय क पार होन स यानी आवागमन छटन पर ह परापत होता ह तम सवय िसथर शात नह हो तो दसर को िसथर शात कस करोग झठ साी झठ गवाह स तम भला कसका भला करोग और इस अवगण को कौन भरगा मर नभक सतयवाणी सनकर वषण भयभीत होकर रह गय और अपन हरदय म इस बात का बहत डर माना उसक बाद म नागलोक चला गया और वहा शषनाग स अपनी कछ बात कहन लगा

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मन कहा - आदपरष का भद कोई नह जानता ह सभी काल क छाया म लग हय ह और अानता क कारण काल क मह म जा रह ह भाई अपनी रा करन वाल को पहचानो यहा काल स तमह कौन छङायगा बरहमा वषण और रदर िजसका धयान करत ह और वद िजसका गण दन-रात गात ह वह आदपरष तमहार रा करन वाल ह वह तमह इस भवसागर स पार करग रा करन वाला और कोई नह ह वशवास करो म तमह उनस मलाता ह साातकार कराता ह लकन वष खान स उतपनन शषनाग का बहत तज सवभाव था अतः उसक मन म मर वचन का वशवास नह हआ जब बरहमा वषण और शषनाग न मर दवारा सतयपरष का सदश मानन स इकार कर दया तब म शकर क पास गया परनत शकर को भी सतयपरष का यह सदश अचछा नह लगा शकर न कहा - म तो नरजन को मानता ह और बात को मन म नह लाता तब वहा स म भवसागर क ओर चल दया कबीर साहब आग बोल - जब म इस भवसागर यानी मतयमडल म आया तब मन यहा कसी जीव को सतपरष क भिकत करत नह दखा ऐसी िसथत म सतपरष का ानउपदश कसस कहता िजसस कह वह अधकाश तो यम क वश म दखायी पङ वचतर बात यह थी क जो घातक वनाश करन वाला कालनरजन ह लोग को उसका तो वशवास ह और व उसी क पजा करत ह और जो रा करन वाला ह उसक ओर स व जीव उदास ह उसक प म न बोलत ह न सनत ह जीव िजस काल को जपता ह वह उस धरकर खा जाता ह तब मर शबदउपदश स उसक मन म चतना आती ह जीव जब दखी होता ह तब ान पान क बात उसक समझ म आती ह लकन उसस पहल जीव मोहवश कछ दखता समझता नह फर ऐसा भाव मर मन म उपजा क कालनरजन क शाखा वश सतत को मटा डाल और उस अपना परतय परभाव दखाऊ यमनरजन स जीव को छङा ल तथा उनह अमरलोक भज द िजनक कारण म शबदउपदश को रटत हय फ़रता ह व ह जीव मझ पहचानत तक नह सब जीव काल क वश म पङ ह और सतयपरष क नाम उपदशरपी अमत को छोङकर वषयरपी वष गरहण कर रह ह लकन सतयपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन अपन मन म नशचय कया क अमरलोक उसी जीव को लकर पहचाऊ जो मर सारशबद को मजबती स गरहण कर धमरदास इसक आग जसा चरतर हआ वह तम धयान लगाकर सनो मर बात स वचलत होकर बरहमा वषण शकर और बरहमा क पतर सनकादक सबन मलकर शनय म धयान समाध लगायी समाध म उनहन पराथरना क - ह ईशवर हम कस lsquoनामrsquo का समरन कर और तमहारा कौन सा नाम धयान क योगय ह धमरदास जस सीप सवात नतर का सनह अपन भीतर लाती ह ठक उसी परकार उन सबन ईशवर क परत परमभाव स शनय म धयान लगाया उसी समय नरजन न उनको उर दन का उपाय सोचा और lsquoशनयगफ़ाrsquo स अपना शबद उचचारण कया तब इनक धयान समाध म ररार यानी lsquoराrsquo शबद बहत बार उचचारत हआ उसक आग म अर उसक पतनी माया यानी अषटागी न मला दया इस तरह रा और म दोन अर को बराबर मलान पर राम शबद बना

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रामनाम उन सबको बहत अचछा लगा और सबन रामनाम समरन क ह इचछा क बाद म उसी रामनाम को लकर उनहन ससार क जीव को उपदश दया और समरन कराया कालनरजन और माया क इस जाल को कोई पहचान समझ नह पाया और इस तरह रामनाम क उतप हयी इस बात को तम गहरायी स समझो धमरदास बोल - आप पर सदगर ह आपका ान सयर क समान ह िजसस मरा सारा अान अधरा दर हो गया ह ससार म मायामोह का घोर अधरा ह िजसम वषयवकार लालची जीव पङ हय ह जब आपका ानरपी सयर परकट होता ह और उसस जीव का मोह अधकार नषट हो जाय यह आपक शबदउपदश क सतय होन का परमाण ह मर धनय भागय जो मन आपको पाया आपन मझ अधम को जगा लया अब आप वह कथा कह जब आपन सतयग म जीव को मकत कया

ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह

कबीर साहब बोल - धमरदास सतयग म िजन जीव को मन नामान का उपदश कया था सतयग म मरा नाम lsquoसतसकतrsquo था म उस समय राजा धधल क पास गया और उस सारशबद का उपदश सनाया उसन मर ान को सवीकार कया और उस मन lsquoनामrsquo दया इसक बाद म मथरा नगर आया यहा मझ खमसर नाम क सतरी मल उसक साथ अनय सतरी वदध और बचच भी थ खमसर बोल - ह परष परातन आप कहा स आय हो मन उसस सतयपरष सतयलोक तथा कालनरजन आद का वणरन कया खमसर न सना और उसक मन म सतयपरष क लय परम उतपनन हआ उसक मन म ानभाव आया और उसन कालनरजन क चाल को भी समझा पर खमसर क मन म एक सदह था क अपनी आख स सतयलोक दख तब ह मर मन म वशवास हो तब मन (सतसकत) उसक शरर को वह रहत हय उसक आतमा को एकपल म सतलोक पहचा दया फ़र अपनी दह म आत ह खमसर सतयलोक को याद करक पछतान लगी और बोल - साहब आपन जो दश दखाया ह मझ उसी दश अमरलोक ल चलो यहा तो बहत काल-कलश दख पीङा ह यहा सफ़र झठ मोहमाया का पसारा ह मन कहा - खमसर जबतक आय पर नह हो जाती तबतक तमह सतयलोक नह ल जा सकता इसलय अपनी आय रहन तक मर दय हय सतयनाम का समरन करो अब कयक तमन सतयलोक दखा ह इसलय आय रहन तक तम दसर जीव को सारशबद का उपदश करो जब कसी ानवान मनषय क दवारा एक भी जीव सतयपरष क शरण म आता ह तब ऐसा ानवान मनषय सतयपरष को बहत परय होता ह जस कोई गाय शर क मख म जाती हो यानी शर उस खान वाला हो और तब कोई बलवान मनषय आकर उस छङा ल तो सभी उसक बढ़ाई करत ह जस बाघ अपन चगल म फ़सी गाय को सताता डराता भयभीत करता हआ मार डालता ह ऐस ह कालनरजन जीव को दख दता हआ मारकर खा जाता ह इसलय जो भी मनषय एक भी जीव को सतयपरष क भिकत म लगाकर कालनरजन स बचा लता ह तो वह

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मनषय करोङ गाय को बचान क समान पणय पाता ह यह सनकर खमसर मर चरण म गर पङ और बोल - साहब मझ पर दया किजय और मझ इस करर रक क वश म भक कालनरजन स बचा लिजय मन कहा - खमसर यह कालनरजन का दश ह उसक जाल म फ़सन का जो अदशा ह वह सतयपरष क नाम स दर हो जाता ह खमसर बोल - साहब आप मझ वह नामदान (दा) दिजय और काल क पज स छङाकर अपनी (गर क) आतमा बना लिजय हमार घर म भी जो अनय जीव ह उनह भी य नाम दिजय धमरदास तब म खमसर क घर गया और सभी जीव को सतयनाम उपदश कया सब नर-नार मर चरण म गर गय खमसर अपन घर वाल स बोल - भाई यद अपन जीवन क मिकत चाहत हो तो आकर सदगर स शबदउपदश गहण करो य यम क फ़द स छङान वाल ह तम यह बात सतय जानो खमसर क वचन स सबको वशवास हो गया और सबन वनती क - ह साहब ह बनदछोङ गर हमारा उदधार करो िजसस यम का फ़दा नषट हो जाय और जनम-जनम का कषट (जीवन-मरण) मट जाय तब मन उन सबको नामदान करत हय धयानसाधना (नामजप) क बार म समझाया और सारनाम स हसजीव को बचाया कबीर साहब बोल - धमरदास इस तरह सतयग म म बारह जीव को नाम उपदश कर सतयलोक चला गया सतयलोक म रहन वाल जीव क शोभा मख स कह नह जाती वहा एक हस का दवयपरकाश सोलह सय क बराबर ह फ़र मन कछ समय तक सतयलोक म नवास कया और दोबारा भवसागर म आकर अपन दत हस जीव धधल खमसर आद को दखा म रात-दन ससार म गपतरप स रहता ह पर मझको कोई पहचान नह पाता फ़र सतयग बीत गया और तरता आया तब तरता म म मनीनदर सवामी क नाम स ससार म आया मझ दखकर कालनरजन को बङा अफ़सोस हआ उसन सोचा - इनहन तो मर भवसागर को ह उजाङ दया य जीव को सतयनाम का उपदश कर सतयपरष क दरबार म ल जात ह मन कतन छलबल क उपाय कय पर उसस ानी को कोई डर नह हआ व मझस नह डरत ह ानी क पास सतयपरष का बल ह उसस मरा बस इन पर नह चलता ह और न ह य मर कालमाया क जाल म फ़सत ह कबीर साहब बोल - धमरदास जस सह को दखकर हाथी का हरदय भय स कापन लगता ह और वह परथवी पर गर

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पङता ह वस ह सतयपरष क नाम स कालनरजन भय स थरथर कापता ह

कबीर और रावण

तरतायग म जब मनीनदर सवामी (तरतायग म कबीर का नाम) परथवी पर आय और उनहन जाकर जीव स कहा - यमरपी काल स तमह कौन छङायगा तब व अानी भरमत जीव बोल - हमारा कतारधतार सवामी पराणपरष (कालनरजन) ह वह पराणपरष वषण हमार रा करन वाला ह और हम यम क फ़द स छङान वाला ह कबीर बोल - धमरदास उन अानी जीव म स कोई तो अपनी रा और मिकत क आस शकर स लगाय हय था कोई चडी दवी को धयाता गाता था कया कह य वासना का लालची जीव अपनी सदगत भलकर पराया ह हो गया और सतयपरष को भल गया तथा तचछ दवी-दवताओ क हाथ लोभवश बक गया कालनरजन न सब जीव को परतदन पापकमर क कोठर म डाला हआ ह और सबको अपन मायाजाल म फ़साकर मार रहा ह यद सतयपरष क ऐसी आा होती तो कालनरजन को अभी मटाकर जीव को भवसागर क तट पर लाऊ लकन यद अपन बल स ऐसा कर तो सतयपरष का वचन नषट होता ह इसलय उपदश दवारा ह जीव को सावधान कर कतनी वचतर बात ह क जो (कालनरजन) इस जीव को दख दता खाता ह वह जीव उसी क पजा करता ह इस परकार बना जान यह जीव यम क मख म जाता ह धमरदास तब चार तरफ़ घमत हय म लका दश म आया वहा मझ वचतरभाट नाम का शरदधाल मला उसन मझस भवसागर स मिकत का उपाय पछा और मन उस ानउपदश दया उस उपदश को सनत ह वचतरभाट का सशय दर हो गया और वह मर चरण म गर गया मन उसक घर जाकर उस दा द वचतरभाट क सतरी राजा रावण क महल गयी और जाकर रानी मदोदर को सब बात बतायी उसन मदोदर स कहा - महारानी जी हमार घर एक सनदर महामन शरषठयोगी आय ह उनक महमा का म कया वणरन कर ऐसा सनतयोगी मन पहल कभी नह दखा मर पत न उनक शरण गरहण क ह और उनस दा ल ह तथा इसी म अपन जीवन को साथरक समझा ह यह बात सनत ह मदोदर म भिकतभाव जागा और वह मनीनदर सवामी क दशरन करन को वयाकल हो गयी वह दासी को साथ लकर सवणर हरा रतन आद लकर वचतरभाट क घर आयी और उनह अपरत करत हय मर चरण म शीश झकाया मन उसको आशीवारद दया मदोदर बोल - आपक दशरन स मरा दन आज बहत शभ हआ मन ऐसा तपसवी पहल कभी नह दखा क िजनक सब अग सफ़द और वसतर भी शवत ह सवामी जी म आपस वनती करती ह मर जीव (आतमा) का कलयाण िजस

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तरह हो वह उपाय मझ कहो म अपन जीवन क कलयाण क लय अपन कल और जात का भी तयाग कर सकती ह ह समथरसवामी अपनी शरण म लकर मझ अनाथ को सनाथ करो भवसागर म डबती हयी मझको सभालो आप मझ बहत दयाल और परय लगत हो आपक दशरन मातर स मर सभी भरम दर हो गय मन कहा - मदोदर सनो सतयपरष क नामपरताप स यम क बङ कट जाती ह तम इस ानदिषट स समझो म तमह खरा (सतयपरष) और खोटा (कालनरजन) समझाता ह सतयपरष असीम अजर अमर ह तथा तीनलोक स नयार ह अलग ह उन सतयपरष का जो कोई धयान-समरन कर वह आवागमन स मकत हो जाता ह मर य वचन सनत ह मदोदर का सब भरम भय अान दर हो गया और उसन पवतरमन स परमपवरक नामदान लया मदोदर इस तरह गदगद हयी मानो कसी कगाल को खजाना मल गया हो फ़र रानी चरण सपशर कर महल को चल गयी मदोदर न वचतरभाट क सतरी को समझा कर हसदा क लय पररत कया तब उसन भी दा ल धमरदास फ़र म रावण क महल स आया और मन दवारपाल स कहा - म तमस एक बात कहता ह अपन राजा को मर पास लकर आओ दवारपाल वनयपवरक बोला - राजा रावण बहत भयकर ह उसम शव का बल ह वह कसी का भय नह मानता और कसी बात क चता नह करता वह बङा अहकार और महान करोधी ह यद म उसस जाकर आपक बात कहगा तो वह उलटा मझ ह मार डालगा मन कहा - तम मरा वचन सतय मानो तमहारा बालबाका भी नह होगा अतः नभक होकर रावण स ऐसा जाकर कहो और उसको शीघर बलाकर लाओ दवारपाल न ऐसा ह कया वह रावण क पास जाकर बोला - ह महाराज हमार पास एक सदध (सनत) आया ह उसन मझस कहा ह क अपन राजा को लकर आओ रावण करोध स बोला - दवारपाल त नरा बदधहन ह ह तर बदध को कसन हर लया ह जो यह सनत ह त मझ बलान दौङा-दौङा चला आया मरा दशरन शव क सत गण आद भी नह पात और तन मझ एक भक को बलान पर जान को कहा मर बात सन और उस सदध का रप वणरन मझ बता वह कौन ह कसा ह कया वश ह दवारपाल बोला - ह राजन उनका शवत उजजवल सवरप ह उनक शवत ह माला तथा शवत तलक अनपम ह और शवत ह वसतर तथा शवत साजसामान ह चनदरमा क समान उसका सवरप परकाशवान ह मदोदर बोल - ह राजा रावण जसा दवारपाल न बताया वह सदधसनत परमातमा क समान सशोभत ह आप शीघर जाकर उनक चरण म परणाम करो तो आपका राजय अटल हो जायगा ह राजन इस झठ मान बङाई क अहम को तयाग कर आप ऐसा ह कर

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मदोदर क बात सनत ह रावण इस तरह भङका मानो जलती हयी आग म घी डाल दया गया हो रावण तरनत हाथ म शसतर लकर चला क जाकर उस सदध का माथा काटगा जब उसका शीश गर पङ तब दख वह भक मरा कया कर लगा ऐसा सोचत हय रावण बाहर मर पास आया और उसन सर बार पर शिकत स मझ पर शसतर चलाया मन उसक शसतरपरहार को हर बार एक तनक क ओट पर रोका अथारत रावण वह तनका भी नह काट सका मन तनक क ओट इस कारण क क रावण बहत अहकार ह इस कारण अपन शिकतशाल परहार स जब रावण तनका भी न काट पायगा तो अतयनत लिजजत होगा और उसका अहकार नषट हो जायगा तब यह तमाशा दखती हयी (मरा बलपरताप जान कर) मदोदर रावण स बोल - सवामी आप झठा अहकार और लजजा तयाग कर मनीनदर सवामी क चरण पकङ लो िजसस आपका राजय अटल हो जायगा यह सनकर खसयाया हआ रावण बोला - म जाकर शव क सवा-पजा करगा िजनहन मझ अटल राजय दया म उनक ह आग घटन टकगा और हरपल उनह को दणडवत करगा मन उस पकार कर कहा - रावण तम बहत अहकार करन वाल हो तमन हमारा भद नह समझा इसलय आग क पहचान क रप म तमह एक भवषयवाणी कहता ह तमको रामचनदर मारग और तमहारा मास का भी नह खायगा तम इतन नीचभाव वाल हो कबीर साहब बोल - धमरदास मनीनदर सवामी क रप म मन अहकार रावण को अपमानत कया और फ़र अयोधयानगर क ओर परसथान कया तब रासत म मझ मधकर नाम का एक गरब बराहमण मला वह मझ परमपवरक अपन घर ल गया और मर बहत परकार स सवा क गरब मधकर ानभाव म िसथरबदध वाला था उसका लोकवद का ान बहत अचछा था तब मन उस सतयपरष और सतयनाम क बार म बताया िजस सनकर उसका मन परसननता स भर गया वह बोला - ह परमसनत सवरप सवामी म भी उस अमतमय सतयलोक को दखना चाहता ह तब उसक सवाभाव स परसनन होकर lsquoअचछाrsquo ऐसा कहत हय म उसक शरर को वह रहा छोङकर उसक जीवातमा को सतयलोक ल गया अमरलोक क अनपम शोभा-छटा दखकर वह बहत परसनन हआ और गदगद होकर मर चरण म गर पङा और बोला - सवामी आपन सतयलोक दखन क मर पयास बझा द अब आप मझ ससार म ल चलो िजसस म अनय जीव को यहा लान क लय उपदश (गवाह) कर और जो जीव घर-गहसथी क अतगरत आत ह उनह भी सतय बताऊ धमरदास जब म उसक जीवातमा को लकर ससार म आया और जस ह मधकर क जीवातमा न दह म परवश कया तो उसका शरर जागरत हो गया मधकर क घर-परवार म सोलह अनय जीव थ

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मधकर न उनस सब बात कह और मझस बोला - साहब मर वनती सनो अब हम सबको सतयलोक म नवास दिजय कयक परथवी तो यम का दश ह इसम बहत दख ह फ़र भी माया स बधा जीव अानवश अधा हो रहा ह इस दश म कालनरजन बहत परबल ह वह सब जीव को सताता ह और अनक परकार क कषट दता हआ जनम-मरण का नकर समान दख दता ह काम करोध तषणा और माया बहत बलवान ह जो इसी कालनरजन क रचना ह य सब महाशतर दवता मन आद सबको वयापत ह और करोङ जीव को कचलकर मसल दत ह य तीन लोक यमनरजन का दश ह इसम जीव को णभर क लय वासतवक सख नह ह आप हमारा य जनम-जनम का कलश मटाओ और अपन साथ ल चलो तब मन उन सबको सतयपरष क नाम का उपदश दकर हसदा स गर (क) आतमा बनाया और उनक आय पर हो जान पर उनको सतयलोक भज दया उन सोलह जीव को सतयलोक जात हय दखकर ससारजीव क लय वकराल भयकर यमदत उदास खङ दखत रह उनह ऊपर जात दखकर व सब ववश और बहद उदास हो गय व सब जीव सतयपरष क दरबार म पहच गय िजनह दखकर सतयपरष क अश और अनय मकत हसजीव बहत परसनन हय सतयपरष न उन सोलह हसजीव को अमरवसतर पहनाया सवणर क समान परकाशवान अपनी अमरदह क सवरप को दखकर उन हसजीव को बहत सख हआ सतयलोक म हरक हसजीव का दवयपरकाश सोलह सयर क समान ह वहा उनहन अमत (अमीरस) का भोजन कया और अगर (चदन) क सगनध स उनका शरर शीतल होकर महकन लगा इस तरह तरतायग म मर (मनीनदर सवामी नाम स) दवारा ानउपदश का परचार-परसार हआ और सतयपरष क नामपरभाव स हसजीव मकत होकर सतयलोक गय

कबीर और रानी इनदरमती

तरतायग समापत हआ दवापर-यग आ गया तब फ़र कालनरजन का परभाव हआ और फ़र सतयपरष न ानीजी को बलाकर कहा - ानी तम शीघर ससार म जाओ और कालनरजन क बधन स जीव का उदधार करो कालनरजन जीव को बहत पीङा द रहा ह जाकर उसक फ़ास काटो मन सतयपरष क बात सनकर उनस कहा - आप परमाणत सपषट शबद म आा करो तो म कालनरजन को मारकर सब जीव को सतयलोक ल आता ह बारबार ऐसा करन ससार म कया जाऊ सतयपरष बोल - योगसतायन सनो सारशबद का उपदश सनाकर जीव को मकत कराओ जो अब जाकर कालनरजन को मारोग तो तम मरा वचन ह भग करोग अब तो अानी जीव काल क जाल म फ़स पङ ह और उसम ह उनह मोहवश सख भास रहा ह लकन जब तम उनह जागरत करोग तब उनह आननद का अहसास होगा

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जब तम कालनरजन का असल चरतर बताओग तो सब जीव तमहार चरण पकङग ह ानी जीव का भाव सवभाव तो दखो क य ान अान को पहचानत समझत नह ह तम ससार म lsquoसहजभावrsquo स जाकर परकट होओ और जीव को चताओ तब म फ़र स ससार क तरफ़ चला इधर आत ह चालाक और परपची कालनरजन न मर चरण म सर झका दया वह कातर भाव स बोला - अब कस कारण स ससार म आय हो म वनती करता ह क सार ससार क जीव को समझाओ ऐसा मत करना आप मर बङ भाई हो म वनती करता ह सभी जीव को मरा रहसय न बताना मन कहा - नरजन सन कोई-कोई जीव ह मझ पहचान पाता ह और मर बात समझता ह कयक तमन जीव को अपन जाल म बहत मजबती स फ़साकर ठगा हआ ह धमरदास ऐसा कहकर मन सतयलोक और सतयलोक का शरर छोङ दया और मनषयशरर धारण कर मतयलोक म आया उस यग म मरा नाम करणामय सवामी था तब म गरनार गढ़ आया जहा राजा चनदरवजय राजय करत थ उस राजा क सतरी बहत बदधमान थी उसका नाम इनदरमती था वह सनत समागम करती थी और ानीसनत क पजा करती थी इनदरमती अपन सवभाव क अनसार महल क ऊची अटार पर चढ़ कर रासता दखा करती थी यद रासत म उस कोई साध जाता नजर आता तो तरनत उसको बलवा लती थी इस परकार सनत क दशरन हत वह अपन शरर को कषट दती थी वह कसी सचचसनत क तलाश म थी उसक ऐस भाव स परसनन हम उसी रासत पर पहच गय जब रानी क दिषट हम पर पङ तो उसन तरनत दासी को आदरपवरक बलान भजा दासी न रानी का वनमर सदश मझ सनाया मन दासी स कहा - दासी हम राजा क घर नह जायग कयक राजय क कायर म झठ मान बङाई होती ह और साध का मान बङाई स कोई समबनध नह होता अतः म नह जाऊगा दासी न रानी स जाकर ऐसा ह कहा तब रानी सवय दौङ-दौङ आयी और मर चरण म अपना शीश रख दया फ़र वह बोल - साहब हम पर दया किजय और अपन पवतर शरीचरण स हमारा घर धनय किजय आपक दशरन पाकर म सखी हो गयी उसका ऐसा परमभाव दखकर हम उसक घर चल गय रानी भोजन क लय मझस नवदन करती हयी बोल - ह परभ भोजन तयार करन क आा दकर मरा सौभागय बढ़ाय आपक जठन मर घर म पङ और बचा भोजन शष परसाद क रप म म खाऊ मन कहा - रानी सनो पाच-ततव (का शरर) िजस भोजन को पाता ह उसक भख मझ नह होती मरा भोजन अमत ह म तमह इसको समझाता ह मरा शरर परकत क पाच-ततव और तीन गण वाला नह ह बिलक अलग ह पाच-ततव तीन गण पचचीस परकत स तो कालनरजन न मनषय शरर क रचना क ह सथान और करया क भद स कालनरजन न वाय क lsquoपचासी भागrsquo कय इसलय पचासी पवन कहा जाता ह इसी

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वाय तथा चार अनयततव परथवी जल आकाश अिगन स य मनषय शरर बना ह परनत म इनस एकदम अलग ह इस पाच-ततव क सथलदह म एक lsquoआदपवनrsquo ह आद का मतलब यहा जनम-मरण स रहत नतय अवनाशी और शाशवत ह वह चतनयजीव ह उस lsquoसोऽहगrsquo बोला जाता ह यह जीव सतयपरष का अश ह कालनरजन न इसी जीव को भरम म डालकर सतयलोक जान स रोक रखा ह कालनरजन ऐसा करन क लय नाना परकार क मायाजाल रचता ह और सासारक वषय का लोभ-लालच दकर जीव को उसम फ़साता ह और फ़र खा जाता ह म उनह जीव को कालनरजन स उदधार करान आया ह काल न पानी पवन परथवी आद ततव स जीव क बनावटदह क रचना क और इस दह म वह जीव को बहत दख दता ह मरा शरर कालनरजन न नह बनाया मरा शरर lsquoशबदसवरपrsquo ह जो खद मर इचछा स बना ह रानी इनदरमती को बहत आशचयर हआ और वह बोल - परभ जसा आपन कहा ऐसा कहन वाला दसरा कोई नह मला दयानध मझ और भी ान बताओ मन सना ह क वषण क समान दसरा कोई बरहमा शकर मन आद भी नह ह पाच-ततव क मलन स यह शरर बना ह और उन ततव क गण भख पयास नीद क वश म सभी जीव ह परभ आप अगमअपार हो मझ बताओ क बरहमा वषण तथा शकर स भी अलग आप कहा स उतपनन हय हो ऐसा बताकर मर िजासा शानत करो मन कहा - इनदरमती मरा दश नागलोक (पाताल) मतयलोक (परथवी) और दवलोक (सवगर) इन सबस अलग ह वहा कालनरजन को घसन क अनमत नह ह इस परथवी पर चनदरमा सयर ह पर सतयलोक म सतयपरष क एक रोम का परकाश करोङ चनदरमा क समान ह तथा वहा क हसजीव (मकत होकर गयी आतमाय) का परकाश सोलह सयर क बराबर ह उन हसजीव म अगर (चनदन) क समान सगनध आती ह और वहा कभी रात नह होती रानी इनदरमती घबरा कर बोल - परभ आप मझ इस यम कालनरजन स छङा लो म अपना समसत राजपाट आप पर नयोछावर करती ह म अपना सब धन-सप का तयाग करती ह ह बनदछोङ मझ अपनी शरण म लो मन कहा - रानी म तमह अवशय यम कालनरजन स छङाऊगा सतयनाम का समरन दगा पर मझको तमहार धन-सप तथा राजपाट स कोई परयोजन नह ह जो धन-सप तमहार पास ह उसस पणयकायर करो सचच साध-सनत का आदर सतकार करो सतयपरष क ह सभी जीव ह ऐसा जानकर उनस वयवहार करो परनत व मोहवश अान क अधकार म पङ हय ह सब शरर म सतयपरष क अश जीवातमा का ह वास ह पर वह कह परकट और कह गपत ह ह रानी य समसत जीव सतयपरष क ह परनत व मोह क भरमजाल म फ़स कालनरजन क प म हो रह ह यह सब चरतर कालनरजन का ह ह क सब जीव सतयपरष को भलाकर उसक फ़लाय खानी-वाणी क जाल म फ़स ह और उसन यह जाल इतनी सझबझ स फ़लाया ह क मझ जस उदधारक स भी जीव कालवश होकर उसका प लकर लङत ह और मझ भी नह पहचानत इस परकार य भरमत जीव सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन स परम करत ह असखय जीव म स कोई-कोई ह इस कपट कालनरजन क चालाक को समझ पाता ह और सतयनाम का उपदश लता ह इनदरमती बोल - ह परभ अब मन सब कछ समझ लया ह अब आप वह करो िजसस मरा उदधार हो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन रानी को सतयनाम उपदश यानी दा द रानी न ऐसी (दा क समय होन वाल) अनभत स परभावत होकर अपन पत स कहा - सवामी यद आप सखदायी मो चाहत हो तो करणामय सवामी क शरण म आओ मर इतनी बात मानो राजा बोला - रानी तम मर अधागनी हो इसलय म तमहार भिकत म आध का भागीदार ह इसलय हम-तम दोन भकत नह हग म सफ़र तमहार भिकत का परभाव दखगा क कस परकार तम मझ मकत कराओगी म तमहार भिकत का परताप दखगा िजसस सब दख कषट मट जायग और हम सतयलोक जायग

रानी इनदरमती का सतयलोक जाना

कबीर साहब बोल - धमरदास यह सब रानी न मर पास आकर कहा और मन उस वघन डालकर बदध फ़रन वाल कालनरजन का चरतर सनाया उसन राजा क बदध कस तरह फ़र द और इसक बाद मन रानी को भवषय क बार म बताया मन रानी स कहा - रानी सनो कालनरजन अपनी कला स छलरप धारण करगा साप बनकर कालदत तमहार पास आयगा और तमह डसगा ऐसा म तमह पहल ह बताय दता ह इसलय म तमको बरहल मनतर बताता ह िजसस कालरपी सपर का सब जहर दर हो जायगा फ़र यम तमस दसरा धोखा करगा वह हसवणर का सफ़दरप बनाकर तमहार पास आयगा और मर समान ान तमह समझायगा वह तमस कहगा - रानी मझ पहचान म कालनरजन का मानमदरन करन वाला ह और मरा नाम ानी करणामय ह इस परकार काल तमह ठगगा म उसका हलया भी तमह बताता ह कालदत का मसतक छोटा होगा और उसक आख का रग बदरग होगा उसक दसर सब अग शवतरग क हग य सब काल क लण मन तमह बता दय तब रानी न घबरा कर मर चरण पकङ लय और बोल - परभ मझ सतयलोक ल चलो यह तो यम का दश ह िजसस मर सब दख-कषट मट जाय मन कहा - रानी सतयनाम-दा स यम स तमहारा समबनध टट गया ह और तम सतयपरष क आतमा हो गयी हो अब तम इस सतयनाम का समरन करो तब य परपची कालनरजन तमहारा कया बगाङ लगा जबतक तमहार आय पर न हो इसी नाम का समरन करो जबतक आय का ठका परा न हो जीव सतयलोक नह जा सकता इस कालनरजन क कला बहत भयकर ह वह ससार म जीव क पास हाथीरप म आता ह परनत सहरपी सतयनाम का समरन करत ह समरन वाल का भय कालनरजन मानता ह और सामन नह आता रानी बोल - साहब जब कालनरजन सपर बनकर मझ सताय और हसरप धारण कर भरमाय तब फ़र आप मर पास आ जाना और मर हस-जीवातमा को सतयलोक ल जाना यह मर वनती ह

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कबीर साहब बोल - रानी काल सपर और मानवरप क कला धरकर तमहार पास आयगा तब म उसका मानमदरन करगा मझ दखत ह काल भाग जायगा उसक पीछ म तमहार पास आऊगा और तमहार जीव को सतयलोक ल जाऊगा धमरदास इतना कहकर मन सवय को छपा लया और तब तकसपर बनकर कालदत आया जब आधी रात हो गयी थी तब रानी अपन महल म आकर पलग पर लट गयी और सो गयी उसी समय तक न आकर रानी क माथ म डस लया रानी न जलद ह राजा स कहा - तक न मझ डस लया ह इतना सनत ह राजा वयाकल हो गया और वष उतारन वाल गारङ (ओझा) को बलाया रानी इनदरमती न साहब म सरत लगाकर उनका दया बरहल मनतर जपा और गारङ स कहा - तम दर जाओ तमहार आवशयकता नह ह रानी न राजा स कहा - सदगर न मझ बरहल मनतर दया ह िजसस मझ पर वष का परभाव नह होगा ऐसा कहत हय जाप करती हयी रानी उठ कर खङ हो गयी राजा चनदरवजय अपनी रानी को ठक दखकर बहत परसनन हआ धमरदास रानी क बना कसी नकसान क ठक हो जान पर वह कालदत वहा गया जहा बरहमा वषण महश थ और बोला - मर वष का तज भी इनदरमती को नह लगा सतयपरष क नामपरताप स सारा वष दर हो गया वषण न कहा - यमदत सन तम अपन सब अग सफ़द बना लो मर बात मानो और छल करक रानी को ल आओ तब उस कालदत न ऐसा ह कया और रानी क पास मर (कबीर) वश म आकर बोला - रानी तम कय उदास हो मन तमह दामनतर दया ह तम जानबझ कर ऐसी अनजान कय हो रह हो रानी मरा नाम करणामय ह म काल को मारकर उसक ऐसी पसाई कर दगा जब काल न तक बनकर तमह डसा तब भी मन तमह बचाया तम पलग स उतरकर मर चरण सपशर करो और अपनी मान बङाई छोङो म तमह परभ क दशरन कराऊगा लकन मर दवारा पहल ह बताय जान स रानी न उसको पहचान लया और उसक आख म तीन रखाय दखी पील सफ़द और लाल फ़र उसका छोटा मसतक दखा फर रानी मर वचन को याद करती हयी बोल - यमदत तम अपन घर जाओ मन तमह पहचान लया ह कौवा बहत सनदर वश बनाय परनत वह हस क सनदरता नह पा सकता वसा ह मन तमहारा रप दखा मर समथरगर न मझ पहल ह सब बता दया था यह सनकर यमदत न बहत करोध कया और बोला - मन कतना बारबार तमह कहकर समझाया फ़र भी तम नह मानी तमहार बदध फ़र गयी ह

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ऐसा कहकर वह रानी क पास आया और उसन रानी को थपपङ मारा िजसस रानी भम पर गर गयी और उसन मरा (कबीर) समरन कया फर बोल - ह सदगर मर सहायता करो मझको य कररकाल बहत दख द रहा ह धमरदास मरा सवभाव ह क भकत क पकार सनत ह मझस नह रहा जाता इसलय म णभर म इनदरमती क पास आ गया मझ दखत ह रानी को बहत परसननता हयी मर आत ह काल वहा स चला गया उसक थपपङ स जो अशदध हयी थी मर दशरन स दर हो गयी तब रानी बोल - साहब मझ यम क छाया क पहचान हो गयी मर एक वनती सनय अब म मतयलोक म नह रहना चाहती साहब मझ अपन दश सतयलोक ल चलय यहा तो बहत काल-कलश ह यह कहकर वह उदास हो गयी धमरदास उसक ऐसी वनती सनकर मन उस पर स काल का कठन परभाव समापत कर दया फ़र उसक आय का ठका (शष आय का समय समय स पहल परा करना) परा भर दया और रानी क हसजीव को लकर सतयलोक चला गया मन उस लकर मानसरोवर दप पहचाया जहा पर मायाकामनी कलोलकरङा कर रह थी अमतसरोवर स उस अमत चखाया तथा कबीरसागर पर उसका पाव रखवाया उसक आग सरतसागर था वहा पहचत ह रानी क जीवातमा परकाशत हो गयी तब उस सतयलोक क दवार पर ल गया िजस दखकर रानी न परमसख अनभव कया सतयलोक क दवार पर रानी क हसआतमा को दखकर वहा क हस न दौङकर रानी को अपन स लपटा लया और सवागत करत हय कहा - तम धनय हो जो करणामय सवामी को पहचान लया अब तमहारा कालनरजन का फ़दा छट गया और तमहार सब दख-दवद मट गय ह इनदरमती मर साथ आओ तमह सतयपरष क दशरन कराऊ ऐसा कहकर मन सतयपरष न वनती क - ह सतयपरष अब हस क पास आओ और एक नय हस को दशरन दो ह बनदछोङ आप महान कपा करन वाल हो ह दनदयाल दशरन दो तब पषपदप का पषप खला और वाणी हयी - ह योगसतायन सनो अब हस को ल आओ और दशरन करो तब ानी हस क पास आय और उनह ल जाकर सतयपरष का दशरन कराया सब हस न सतयपरष को दणडवत परणाम कया तब आदपरष न चार अमतफ़ल दय िजस सब हस न मलकर खाया

कबीर का सदशरन शवपच को ान दना

कबीर साहब बोल - धमरदास रानी इनदरमती क हसजीव को सतयलोक पहचा कर उस सतयपरष क दशरन करान क बाद मन कहा - ह हस अब अपनी बात बताओ तमहार जसी दशा ह सो कहो तमहारा सब दख-दवद जनम-

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मरण का आवागमन सब मट गया और तमहारा तज सोलह सयर क बराबर हो गया और तमहार सब कलश मटकर तमहारा कलयाण हआ इनदरमती दोन हाथ जोङकर बोल - साहब मर एक वनती ह बङ भागय स मन आपक शरीचरण म सथान पाया ह मर इस हसशरर का रप बहत सनदर ह परनत मर मन म एक सशय ह िजसस मझ (अपन पत चनदरवजय) राजा क परत मोह हआ ह कयक वह राजा मरा पत रहा ह ह करणामय सवामी आप उस भी सतयलोक ल आईय नह तो मरा राजा काल क मख म जायगा कबीर साहब बोल - तब मन कहा बदधमान हस सन राजा न नामउपदश नह लया उसन सतयपरष क भिकत नह पायी और भिकतहन होकर ततवान क बना वह इस असार ससार म चौरासी लाख योनय म ह भटकगा इनदरमती बोल - परभ म जब ससार म रहती थी और अनक परकार स आपक भिकत कया करती थी तब सजजन राजा न मर भिकत को समझा और कभी भी भिकत स नह रोका ससार का सवभाव बहत कठोर ह यद अपन पत को छोङकर उसक सतरी कह अलग रह तो सारा ससार उस गाल दता ह और सनत ह पत भी उस मार डालता ह साहब राजकाज म तो मान परशसा नािसतकता करोध चतराई होती ह ह परनत इन सबस अलग म साध-सत क सवा ह करती थी और राजा स भी नह डरती थी तो जब म साध-सनत क सवा करती थी यह सनकर राजा परसनन ह होता था साहब इसक वपरत राजा ऐसा करन क लय मझ रोकता दख दता तो म कस तरह साध-सनत क सवा कर पाती और तब मर मिकत कस होती अतः सवा-भिकत को जानन वाला वह राजा धनय ह उसक हस (जीवातमा) को भी ल आइय ह हसपत सदगर आप तो दया क सागर ह दया किजय और राजा को सासारक बधन स छङाईय कबीर साहब बोल - धमरदास म उस हस इनदरमती क ऐसी बात सनकर बहत हसा और इनदरमती क इचछाअनसार उसक राजय गरनारगढ़ म परकट हो गया उस समय राजा चनदरवजय क आय पर होन क करब ह आ गयी थी राजा चनदरवजय क पराण नकालन क लय यमराज उनह घर कर बहत कषट द रहा था और सकट म पङा हआ राजा भय स थरथर काप रहा था तब मन यमराज स उस छोङन को कहा यमराज उस छोङता नह था धमरदास दलरभ मनषयशरर म सतयनाम भिकत न करन क चक का यह परणाम होता ह सतयपरष क भिकत को भलकर जो जीव ससार क मायाजाल म पङ रहत ह आय पर होन पर यमराज उनह भयकर दख दता ह ह तब मन राजा चनदरवजय का हाथ पकङ लया और उसी समय सतयलोक ल आया रानी इनदरमती यह दखकर बहत परसनन हयी और बोल - ह राजा सनो मझ पहचानो म तमहार पतनी ह राजा उसस बोला - ानवान हस तमहारा दवय रपरग तो सोलह सयर जसा दमक रहा ह तमहार अग-अग म वशष अलौकक चमक ह तब तमको अपनी पतनी कस कह शरषठनार यह तमन बहत अचछ भिकत क िजसस अपना और मरा दोन का ह उदधार कया तमहार भिकत स ह मन अपना नजघर सतयलोक पाया मन करोङ जनम तक धमरपणय कया तब ऐसी सतकमर करन वाल भिकत करन वाल सतरी पायी म तो राजकाज ह करता हआ भिकत स वमख रहा रानी यद तम न होती तो म नशचय ह कठोर नकर म जाता ऐसा मन मतयपवर ह

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अनभव कया अतः ससार म तमहार समान पतनी सबको मल कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन राजा स ऐसा कहा जो जीव सतयपरष क सतनाम का धयान करता ह वह दोबारा कषटमय ससार म नह जाता धमरदास इसक बाद म फ़र स ससार म आया और काशी नगर म गया जहा भकत सदशरन शवपच रहता था वह शबदववक ान को समझन वाला उम सनत था उसन मर बताय आतमान को शीघर ह समझा और उस अपनाया उसका पकका वशवास दखकर मन उस भवबधन स मकत कर दया और वधपवरक नाम उपदश कया धमरदास सतयपरष क ऐसी परतय महमा दखत हय भी जो जीव उसको नह समझत व कालनरजन क फ़द म पङ हय ह जस का अपवतर वसत को भी खा लता ह वस ह ससार लोग भी अमत छोङकर वष खात ह अथारत सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन क ह भिकत करत ह धमरदास दवापर यग म यधषठर नाम का एक राजा हआ महाभारत यदध म अपन ह बनध-बानधव को मारकर उनस बहत पाप हआ था अतः यदध क बाद बहत हाहाकार मच गया चारो ओर घोर अशािनत और शोक-दख का माहौल था खद यधषठर को बर सवपन और अपशकन होत थ तब शरीकषण क सलाह पर उनहन इस पाप नवारण हत एक य कया इस य क सभी वधवत तयार आद करक जब य होन लगा तब शरीकषण न कहा - इस य क सफ़लतापवरक होन क पहचान ह क आकाश म बजता हआ घटा सवतः सनायी दगा उस य म सयासी योगी ऋष मन वरागी बराहमण बरहमचार आद सभी आय सभी को परम स भोजन आद कराया पर घटा नह बजा यधषठर बहत लिजजत हय और शरीकषण क पास इसका कारण पछन गय शरीकषण बोल - िजतन भी लोग न भोजन कया इनम एक भी सचचा सनत नह था व दखाव क लय साध सनयासी योगी वरागी बराहमण बरहमचार अवशय लग रह ह पर व मन स अभमानी ह थ इसलय घटा नह बजा यधषठर को बढ़ा आशचयर हआ इतन वशाल य म करोङ साधओ न भोजन कया और उनम कोई सचचा ह नह था तब हम ऐसा सचचासनत कहा स लाय शरीकषण न कहा - काशी नगर स सदशरन शवपच को लकर आओ व ह सवम साध ह उन जसा साध अभी कोई नह ह तब य सफ़ल होगा ऐसा ह कया गया और घनटा बजन लगा शवपच सदशरन क गरास उठात ह घटा सात बार बजा य सफ़ल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास तब भी जो अानी जीव सदगर क वाणी का रहसय नह पहचानत ऐस लोग क बदध नषट होकर यम क हाथ बक गयी ह अपन ह भकतजीव को य काल दख दता ह नकर म डालता ह काल

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क लय अब कया कह य भकत-अभकत सभी को दख दता ह सबको मार खाता ह गौर स समझो इस काल क दवारा ह महाभारत यदध म शरीकषण न पाडव को यदध क लय पररत कया और हतया का पाप करवाया फ़र उनह शरीकषण न पाडव को दोष लगाया क तमस हतया का पाप हआ अतः य करो और तब कहा था क तमह इसक बदल सवगर मलगा तमहारा यश होगा धमरदास इसक बाद भी पाडव को (शरीकषण न) और अधक दख दया और जीवन क अतम समय म हमालय यातरा म भजकर बफ़र म गलवा दया दरौपद और चार पाडव भीम अजरन नकल सहदव हमालय क बफ़र म गल गय कवल सतय को धारण करन वाल यधषठर ह बच जब शरीकषण को अजरन बहत परय था तो उसक य गत कय हयी राजा बल हरशचनदर कणर बहत बङ दानी थ फ़र भी काल न उनह बहत परकार स दख दया अपमान कराया अतः इस जीव को अानवश सतय-असतय उचत-अनचत का ान नह ह इसलय वह सदा हतषी सतयपरष को छोङकर इस कपट धतर कालनरजन क पजा करत हय मोहवश उसी क ओर भागता ह कालनरजन जीव को अनक कला दखाकर भरमत करता ह जीव इसस मिकत क आशा लगाकर और उसी आशा क फ़ास म बधकर काल क मख म जाता ह इन दोन कालनरजन और माया न सतयपरष क समान ह बनावट नकल और वाणी क अनक नाम मिकत क नाम पर ससार म फ़ला दय ह और जीव को भयकर धोख म डाल दया ह

काल कसाई जीव बकरा

कबीर साहब बोल - धमरदास दवापर यग बीत गया और कलयग आया तब म फ़र सतयपरष क आा स जीव को चतान हत परथवी पर आया और मन कालनरजन को अपनी ओर आत दखा मझ दखकर वह भय स मरझा ह गया और बोला - कसलय मझ दखी करत हो और मर भय भोजन जीव को सतयलोक पहचात हो तीन यग तरता दवापर सतयग म आप ससार म गय और जीव का कलयाण कर मरा ससार उजाङा सतयपरष न जीव पर शासन करन का वचन मझ दया हआ ह मर अधकारतर स आप जीव को छङा लत हो आपक अलावा यद कोई दसरा भाई इस परकार आता तो म उस मारकर खा जाता लकन आप पर मरा कोई वश नह चलता आपक बलपरताप स ह हसजीव (मनषय) अपन वासतवक घर अमरलोक को जात ह अब आप फ़र ससार म जा रह हो परनत आपक शबदउपदश को ससार म कोई नह सनगा शभ और अशभ कम क भरमजाल का मन ऐसा ठाठ मोह सख रचा ह क िजसस उसम फ़सा जीव आपक बताय सतयलोक क सदमागर को नह समझ पायगा धमर क नाम पर मन घर-घर म भरम का भत पदा कर दया ह इसलय सभी जीव असल पजा भलकर भगवान दवी-दवता भत-पशाच भरव आद क पजा-भिकत म लग ह और इसी को सतय समझ कर खद को धनय मान रह ह इस परकार धोखा दकर मन सब जीव को अपनी कठपतल बनाया हआ ह ससार म जीव को भरम और अान का भत लगगा परनत जो आपको तथा आपक सदउपदश को पहचानगा उसका भरम ततकाल दर हो जायगा

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लकन मर भरमभत स गरसत मनषय मास-मदरा खायग पयग और ऐस नीच मनषय को मास खाना बहत परय होगा म अपन ऐस मतपथ परकट करगा िजसम सब मनषय मास-मदरा का सवन करग तब म चडी योगनी भत-परत आद को मनषय स पजवाऊगा और इसी भरम स सार ससार क जीव को भटकाऊगा जीव को अनक परकार क मोहबधन म बाधकर इस परकार क फ़द म फ़सा दगा क व अपन अनत समय तक मतय को भलकर पापकम म लपत और वासतवक भिकत स दर रहग और इस परकार मोहबधन म बध व जीव जनम पनजरनम और चौरासी लाख योनय म बारमबार भटकत ह रहग भाई आपक दवारा बनी हयी सतयपरष क भिकत तो बहत कठन ह आप समझाकर कहोग तब भी कोई नह मानगा कबीर साहब बोल - नरजन तमन जीव क साथ बङा धोखा कया ह मन तमहार धोख को पहचान लया ह सतयपरष न जो वचन कहा ह वह दसरा नह हो सकता उसी क वजह स तम जीव को सतात और मारत हो सतयपरष न मझ आा द ह उसक अनसार सब शरदधाल जीव सतयनाम क परमी हग इसलय म सरल सवभाव स जीव को समझाऊगा और सतयान को गरहण करन वाल अकर जीव को भवसागर स छङाऊगा तमन मोहमाया क जो करोङ जाल रच रख ह और वद शासतर पराण म जो अपनी महमा बताकर जीव को भरमाया ह यद म परतयकला धारण करक ससार म आऊ तो तरा जाल और य झठ महमा समापत कर सब जीव को ससार स मकत करा द लकन जो म ऐसा करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह उनका वचन तो सदा न टटन वाला न डोलन वाला और बना मोह का अनमोल ह अतः म उसका पालन अवशय ह करगा जो शरषठ जीव हग व मर सारशबद ान को मानग तर चालाक समझ म आत ह शीघर सावधान होन वाल अकरजीव को म भवसागर स मकत कराऊगा और तमहार सार जाल को काटकर उनह सतयलोक ल जाऊगा जो तमन जीव क लय करोङ भरम फ़ला रख ह व तमहार फ़लाय हय भरम को नह मानग म सब जीव का सतयशबद पकका करक उनक सार भरम छङा दगा नरजन बोला - जीव को सख दन वाल मझ एक बात समझा कर कहो क जो तमको लगन लगाकर रहगा उसक पास म काल नह जाऊगा मरा कालदत आपक हस को नह पायगा और यद वह उस हसजीव (सतयनाम दा) क पास जायगा तो मरा वह कालदत मछरत हो जायगा और मर पास खाल हाथ लौट आयगा लकन आपक गपतान क यह बात मझ समझ नह आती अतः उसका भद समझा कर कहो वह कया ह तब मन कहा - नरजन धयान स सन सतय शरषठ पहचान ह और वह सतयशबद (नवारणी नाम) मो परदान करान वाला ह सतयपरष का नाम lsquoगपत परमाणrsquo ह कालनरजन बोला - अतयारमी सवामी सनो और मझ पर कपा करो इस यग म आपका कया नाम होगा मझ बताओ और अपन नामदान उपदश को भी बताओ क कस तरह और कौन सा lsquoनामrsquo आप जीव को दोग वह सब मझ बताओ िजस कारण आप ससार म जा रह हो उसका सब भद मझस कहो तब म भी जीव को उस नाम का उपदश कर चताऊगा और उन जीव को सतयपरष क सतयलोक भजगा परभ आप मझ अपना दास बना लिजय तथा य सारा गपतान मझ भी समझा दिजय मन कहा - नरजन सन म जानता ह आग क समय म तम कसा छल करन वाल हो दखाव क लय तो तम

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मर दास रहोग और गपतरप स कपट करोग गपत सारशबद का भदान म तमह नह दगा सतयपरष न ऐसा आदश मझ नह दया ह इस कलयग म मरा नाम कबीर होगा और यह इतना परभावी होगा क lsquoकबीरrsquo कहन स यम अथवा उसका दत उस शरदधाल जीव क पास नह जायगा कालनरजन बोला - आप मझस दवष रखत हो लकन एक खल म फ़र भी खलगा म ऐसी छलपणर बदध बनाऊगा िजसस अनक नकल हसजीव को अपन साथ रखगा और आपक समान रप बनाऊगा तथा आपका नाम लकर अपना मत चलाऊगा इस परकार बहत स जीव को धोख म डाल दगा क व समझ व सतयनाम का ह मागर अपनाय हय ह इसस अलप जीव सतय-असतय को नह समझ पायग कबीर साहब बोल - अर कालनरजन त तो सतयपरष का वरोधी ह उनक ह वरदध षङयतर रचता ह अपनी छलपणर बदध मझ सनाता ह परनत जो जीव सतयनाम का परमी होगा वो इस धोख म नह आयगा जो सचचा हस होगा वह तमहार दवारा मर ानगरनथ म मलायी गयी मलावट और मर वाणी का सतय साफ़-साफ़ पहचानगा और समझगा िजस जीव को म दा दगा उस तमहार धोख क पहचान भी करा दगा तब वह तमहार धोख म नह आयगा य बात सनकर कालनरजन चप हो गया और अतधयारन होकर अपन भवन को चला गया धमरदास इस काल क गत बहत नकषट और कठन ह यह धोख स जीव क मन-बदध को अपन फ़द म फ़ास लता ह --------------------- कबीर साहब न धमरदास दवारा काल क चरतर क बार म पछन पर बताया क - जस कसाई बकरा पालता ह उसक लय चार-पानी क वयवसथा करता ह गम-सद स बचन क लए भी परबनध करता ह िजसक वजह स उन अबोध बकर को लगता ह क हमारा मालक बहत अचछा और दयाल ह हमारा कतना धयान रखता ह इसलय जब कसाई उनक पास आता ह तो सीध-साध बकर उस अपना सह मालक जानकर अपना पयार जतान क लए आग वाल पर उठाकर कसाई क शरर को सपशर करत ह कछ उसक हाथ-पर को भी चाटत ह कसाई जब उन बकर को छकर कमर पर हाथ लगाकर दबा-दबाकर दखता ह तो बचार बकर समझत ह मालक पयार दखा रहा ह परनत कसाई दख रहा ह क बकर म कतना मास हो गया और जब मास खरदन गराहक आता ह तो उस समय कसाई नह दखता क कसका बाप मरगा कसक बट मरगी कसका पतर मरगा या परवार मर रहा ह वो तो बस छर रखी और कर दया - मऽ उनको सवधा दन खलान पलान का उसका यह उददशय था ठक इसी परकार सवरपराणी कालबरहम क पजा-साधना करक काल आहार ह बन ह

समदर और राम क दशमनी का कबीर दवारा नबटारा

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धमरदास बोल - साहब इसस आग कया हआ वह सब भी मझ सनाओ कबीर साहब बोल - उस समय राजा इनदरदमन उङसा का राजा था राजा इनदरदमन अपन राजय का कायर नयायपणर तरक स करता था दवापर यग क अनत म शरीकषण न परभास तर म शरर तयागा तब उसक बाद राजा इनदरदमन को सवपन हआ सवपन म शरीकषण न उसस कहा तम मरा मदर बनवा दो ह राजन तम मरा मदर बनवाकर मझ सथापत करो जब राजा न ऐसा सवपन दखा तो उसन तरनत मदर बनवान का कायर शर दया मदर बना जस ह उसका सब कायर परा हआ तरनत समदर न वह मदर और वह सथान ह नषट कर डबो दया फ़र जब दबारा मदर बनवान लग तो फ़र स समदर करोधत होकर दौङा और ण भर म सब डबोकर जगननाथ का मदर तोङ दया इस तरह राजा न मदर को छह बार बनबाया परनत समदर न हर बार उस नषट कर दया राजा इनदरदमन मदर बनवान क सब उपाय कर हार गया परनत समदर न मदर नह बनन दया मदर बनान तथा टटन क यह दशा दखकर मन वचार कया कयक अनयायी कालनरजन न पहल मझस यह मदर बनवान क पराथरना क थी और मन उस वरदान दया था अतः मर मन म बात सभालन का वचार आया और वचन स बधा होन क कारण म वहा गया मन समदर क कनार आसन लगाया परनत उस समय कसी जीव न मझ वहा दखा नह उसक बाद म फ़र समदर क कनार आया और वहा मन अपना चौरा (नवास) बनाया फ़र मन राजा इनदरदमन को सवपन दखाया और कहा - अर राजा तम मदर बनवाओ और अब य शका मत करो क समदर उस गरा दगा म यहा इसी काम क लय आया ह राजा न ऐसा ह कया और मदर बनवान लगा मदर बनन का काम होत दखकर समदर फ़र चलकर आया उस समय फ़र सागर म लहर उठ और उन लहर न च म करोध धारण कया इस परकार वह लहराता हआ समदर उमङ उमङ कर आता था क मदर बनन न पाय उसक बहद ऊची लहर आकाश तक जाती थी फ़र समदर मर चौर क पास आया और मरा दशरन पाकर भय मानता हआ वह रक गया और आग नह बढ़ा कबीर साहब बोल - तब समदर बराहमण का रप बनाकर मर पास आया और चरण सपशर कर परणाम कया फ़र वह बोला - म आपका रहसय समझा नह सवामी मरा जगननाथ स पराना वर ह शरीकषण िजनका दवापर यग म अवतार हआ था और तरता म िजनका रामरप म अवतार हआ था उनक दवारा समदर पर जबरन पल बनान स मरा उनस पराना वर ह इसीलय म यहा तक आया ह आप मरा अपराध मा कर मन आपका रहसय पाया आप समथरपरष ह परभ आप दन पर दया करन वाल ह आप इस जगननाथ (राम) स मरा बदला दलवाईय म आपस हाथ जोङकर वनती करता ह म उसका पालन करगा जब राम न लका दश क लय गमन कया था तब व सब मझ पर सत बाधकर पार उतर जब कोई बलवान कसी दबरल पर ताकत दखाकर बलपवरक कछ करता ह तो समथरपरभ उसका बदला अवशय दलवात ह ह समथरसवामी आप मझ पर दया करो म उसस बदला अवशय लगा कबीर साहब बोल - समदर जगननाथ स तमहार वर को मन समझा इसक लय मन तमह दवारका दया तम

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जाकर शरीकषण क दवारका नगर को डबो दो यह सनकर समदर न मर चरण सपशर कय और वह परसनन होकर उमङ पङा तथा उसन दवारका नगर डबो दया इस परकार समदर अपना बदला लकर शानत हो गया इस तरह मदर का काम परा हआ तब जगननाथ न पडत को सवपन म बताया क सतयकबीर मर पास आय ह उनहन समदरतट पर अपना चौरा बनाया ह समदर क उमङन स पानी वहा तक आया और सतयकबीर क दशरन कर पीछ हट गया इस परकार मरा मदर डबन स उनहन बचाया तब वह पडापजार समदरतट पर आया और सनान कर मदर म चला गया परनत उस पडत न ऐसा पाखड मन म वचारा क पहल तो उस मलचछ का ह दशरन करना पङा ह कयक म पहल कबीरचौरा तक आया परनत जगननाथपरभ का दशरन नह पाया (पडा मलचछ कबीर साहब को समझ रहा ह) धमरदास तब मन उस पड क बदध दरसत करन क लय एक लला क वह म तमस छपाऊगा नह जब पडत पजा क लय मदर म गया तो वहा एक चरतर हआ मदर म जो मतर लगी थी उसन कबीर का रप धारण कर लया और पडत न जगननाथ क मतर को वहा नह दखा कयक वह बदल कर कबीर रप हो गयी पजा क लय अतपषप लकर पडत भल म पङ गया क यहा ठाकर जी तो ह ह नह फ़र भाई कस पज यहा तो कबीर ह कबीर ह तब ऐसा चरतर दखकर उस पडा न सर झकाया और बोला - सवामी म आपका रहसय नह समझ पाया आप म मन मन नह लगाया मन आपको नह जाना उसक लय आपन यह चरतर दखाया परभ मर अपराध को मा कर दो कबीर साहब बोल - बराहमण म तमस एक बात कहता ह िजस त कान लगाकर सन म तझ आा दता ह क त ठाकर जगननाथ क पजा कर और दवधा का भाव छोङ द वणर जात छत अछत ऊच नीच अमीर गरब का भाव तयाग द कयक सभी मनषय एक समान ह इस जगननाथ मदर म आकर जो मनषय म भदभाव मानता हआ भोजन करगा वह मनषय अगहन होगा भोजन करन म जो छत-अछत रखगा उसका शीश उलटा (चमगादङ) होगा धमरदास इस तरह पडत को पकका उपदश करत हय मन वहा स परसथान कया

धमरदास क पवरजनम क कहानी

धमरदास बोला - साहब आपक दवारा जगननाथ मदर का बनवाना मन सना इसक बाद आप कहा गय कौन स जीव को मकत कराया तथा कलयग का परभाव भी कहय कबीर साहब बोल - धमरदास lsquoराजसथल दशrsquo क राजा का नाम lsquoबकजrsquo था मन उस नाम उपदश दया और जीव

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क उदधार क लय कणरधार कवट बनाया राजसथल दश स म शालमल दप आया और वहा मन एक सत lsquoसहतrsquo को चताया और उस जीव का उदधार करन क लय समसत गर ानदा परदान क फ़र म वहा स दरभगा आया जहा राजा lsquoचतभरज सवामीrsquo का नवास था उसको भी पातर जानकर मन जीव को चतान हत गरवाई (जीव को चतान और नाम उपदश दन वाला) बनाया उसन जरा भी मायामोह नह कया तब मन उस सतयनाम दकर गरवाई द धमरदास मन हस का नमरलान रहनी गहनी समरन आद इन कङहार गरओ को अचछ तरह बताया व सब कल मयारदा काम मोह आद वषय का तयाग कर सारगण को जानन वाल हय चतभरज बकज सहतज और चौथ धमरदास तम य चार जीव क कङहार ह अथारत जीव को सतयान बताकर भवसागर स पार लगान वाल ह यह मन तमस अटल सतय कहा ह धमरदास अब तमहार हाथ स मझको जमबदप (भारत) क जीव मलग जो मर उपदश को गरहण करगा कालनरजन उसस दर ह रहगा धमरदास बोल - साहब म पापकमर करन वाला दषट और नदरयी था और मरा जीवातमा सदा भरम स अचत रहा तब मर कस पणय स आपन मझ अाननदरा स जगाया और कौन स तप स मन आपका दशरन पाया वह मझ बताय कबीर साहब बोल - तमह समझान और दशरन दन क पीछ कया कारण था वह मझस सनो तम अपन पछल जनम क बात सनो िजस कारण म तमहार पास आया सत सदशरन जो दवापर म हय वह कथा मन तमह सनाई जब म उसक हसजीव को सतयलोक ल गया तब उसन मझस वनती क और बोला - सदगर मर वनती सन और मर माता-पता को मिकत दलाय ह बनदछोङ उनका आवागमन मट कर छङान क कपा कर यम क दश म उनहन बहत दख पाया ह मन बहत तरक स उनको समझाया परनत तब उनहन मर बात नह मानी और वशवास ह नह कया लकन उनहन भिकत करन स मझ कभी नह रोका जब म आपक भिकत करता तो कभी उनक मन म वरभाव नह होता बिलक परसननता ह होती इसी स परभ मर वनती ह क आप बनदछोङ उनक जीव को मकत कराय जब सदशरन शवपच न बारबार ऐसी वनती क तो मन उसको मान लया और ससार म कबीर नाम स आया म नरजन क एक वचन स बधा था फ़र भी सदशरन शवपच क वनती पर म भारत आया म वहा गया जहा सत शवपच क माता पता lsquoलमीrsquo और lsquoनरहरrsquo नाम स रहत थ भाई उनहन शवपच क साथ वाल दह छोङ द थी और सदशरन क पणय स उसक माता-पता चौरासी म न जाकर पनः मनषयदह म बराहमण होकर उतपनन हय थ जब दोन का जनम हो गया तब फ़र वधाता न समय अनसार उनह पत-पतनी क रप म मला दया तब उस बराहमण का नाम कलपत और उसक पतनी का नाम महशवर था बहत समय बीत जान पर भी महशवर क सतान नह हयी थी तब पतरपरािपत हत उसन सनान कर सयरदव का वरत रखा वह आचल फ़लाकर दोन हाथ जोङकर सयर स पराथरना करती उसका मन बहत रोता था तब उसी समय म (कबीर साहब) उसक आचल म बालक रप धरकर परकट हो गया मझ दखकर महशवर बहत परसनन हयी और मझ घर ल गयी और अपन पत स बोल - परभ न मझ पर कपा क और मर सयरवरत करन का फ़ल यह बालक मझको दया

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म बहत दन तक वहा रहा व दोन सतरी-परष मलकर मर बहत सवा करत पर व नधरन होन स बहत दखी थ तब मन ऐसा वचार कया क पहल म इनक गरबी दर कर फ़र इनको भिकत-मिकत का उपदश कर इसक लय मन एक लला क जब बराहमण सतरी न मरा पालना हलाया तो उस उसम एक तौला सोना मला फ़र मर बछौन स उनह रोज एक तौला सोना मलता था उसस व बहत सखी हो गय तब मन उनको सतयशबद का उपदश कया और उन दोन को बहत तरह स समझाया परनत उनक हरदय म मरा उपदश नह समाया बालक जानकर उनह मर बात पर वशवास नह आया उस दह म उनहन मझ नह पहचाना तब म वह शरर तयाग कर गपत हो गया तब कछ समय बाद उस बराहमण कलपत और उसक सतरी महशवर दोन न शरर छोङा और मर दशरन क परभाव स उनह फ़र स मनषय शरर मला फ़र दोन समय अनसार पत-पतनी हय और वह चदनवार नगर म जाकर रहन लग इस जनम म उस औरत का नाम lsquoऊदाrsquo और परष का नाम lsquoचदनrsquo था तब म सतयलोक स आकर पनः चदवार नगर म परगट हआ उस सथान पर मन बालक रप बनाया और वहा तालाब म वशराम कया तालाब म मन कमलपतर पर आसन लगाया और आठ पहर वहा रहा उस तालाब म ऊदा सनान करन आयी और सनदर बालक दखकर मोहत हो गयी वह मझ अपन घर ल गयी उसन अपन पत चदनसाह को बताया क य बालक कस परकार मझ मला चदन साह बोला - अर ऊदा त मखर सतरी ह शीघर जाओ और इस बालक को वह डाल आओ वरना हमार जात कटमब क लोग हम पर हसग और उनक हसन स हम दख ह होगा चदनसाह करोधत हआ तो ऊदा बहत डर गयी चदन साह अपनी दासी स बोला - इस बालक को ल जा और तालाब क जल म डाल द कबीर साहब बोल - दासी उस बालक को लकर चल द और तालाब म डालन का मन बनाया उसी समय म अतधयारन हो गया यह दखकर वह बलख-बलख कर रोन लगी वह मन स बहत परशान थी और य चमतकार दखकर मगध होती हयी बालक को खोजती थी पर मह स कछ न बोलती थी इस परकार आय पर होन पर चदनसाह और ऊदा न भी शरर छोङ दया और फ़र दोन न मनषयजनम पाया अबक बार उन दोन को जलाहा-कल म मनषयशरर मला फ़र स वधाता का सयोग हआ और फ़र स समय आन पर व पत-पतनी बन गय इस जनम म उन दोन का नाम नीर नीमा हआ नीर नाम का वह जलाहा काशी म रहता था तब एक दन जठ महना और शकलप तथा बरसाइत पणरमा क तथ थी नीर अपनी पतनी नीमा क साथ लहरतारा तालाब मागर स जा रहा था गम स वयाकल उसक पतनी को जल पीन क इचछा हयी तभी म उस तालाब क कमलपतर पर शशरप म परकट हो गया और बालकरङा करन लगा जल पीन आयी नीमा मझ दखकर हरान रह गयी उसन दौङकर मझ उठा लया और अपन पत क पास ल आयी नीमा न मझ दखकर बहत करोध कया और कहा - इस बालक को वह डाल दो

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नीमा सोच म पङ गयी तब मन उसस कहा - नीमा सनो म तमह समझाकर कहता ह पछल (जनम क) परम क कारण मन तमह दशरन दया कयक पछल जनम म तम दोन सदशरन क माता-पता थ और मन उस वचन दया था क तमहार माता-पता का अवशय उदधार करगा इसलय म तमहार पास आया ह अब तम मझ घर ल चलो और मझ पहचान कर अपना गर बनाओ तब म तमह सतयनाम उपदश दगा िजसस तम कालनरजन क फ़द स छट जाओग तब नीमा न नीर क बात का भय नह माना और मझ अपन घर ल गयी इस परकार म काशी नगर म आ गया और बहत दन तक उनक साथ रहा पर उनह मझ पर वशवास नह आया व मझ अपना बालक ह समझत रह और मर शबदउपदश पर धयान नह दया धमरदास बना वशवास और समपरण क जीवनमिकत का कायर नह होता ऐसा नणरय करक गर क वचन पर दढ़तापवरक वशवास करना चाहय अतः उस शरर म नीर नीमा न मझ नह पहचाना और मझ अपना बालक जानकर सतसग नह कया धमरदास जब जलाहाकल म भी नीर नीमा क आय पर हयी और उनहन फ़र स शरर तयाग कर दबारा मनषयरप म मथरा म जनम लया तब मन वहा मथरा म जाकर उनको दशरन दया अबक बार उनहन मरा शबदउपदश मान लया और उस औरत का रतना नाम हआ वह मन लगाकर भिकत करती थी मन उन दोन सतरी-परष को शबदनाम उपदश दया इस तरह व मकत हो गय और सतयलोक म जाकर हसशरर परापत कया उन हस को दखकर सतयपरष बहत परसनन हय और उनह lsquoसकतrsquo नाम दया फर सतयलोक म रहत हय मझ बहत दन बीत गय तब कालनरजन न बहत जीव को सताया जब कालनरजन जीव को बहत दख दन लगा तब सतयपरष न सकत को पकारा और कहा - ह सकत तम ससार म जाओ वहा अपार बलवान कालनरजन जीव को बहत दख द रहा ह तम जीव को सतयनाम सदश सनाओ और हसदा दकर काल क जाल स मकत कराओ य सनकर सकत बहत परसनन हय और व सतयलोक स भवसागर म आ गय इस बार सकत को ससार म आया दखकर कालनरजन बहत परसनन हआ क इसको तो म अपन फ़द म फ़सा ह लगा तब कालनरजन न बहत स उपाय अपनाकर सकत को फ़साकर अपन जाल म डाल लया जब बहत दन बीत गय और काल न एक भी जीव को सरत नह छोङा और सबको सताता मारता खाता रहा तब जीव न फ़र दखी होकर सतयपरष को पकारा और तब सतयपरष न मझ पकारा सतयपरष न कहा - ानी शीघर ह ससार म जाओ मन जीव क उदधार क लय सकत अश भजा था वह ससार म परकट हो गया हमन उस सारशबद का रहसय समझा कर भजा था परनत वह वापस सतयलोक लौटकर नह आया और कालनरजन क जाल म फ़सकर सध-बध (समत अपनी पहचान) भल गया ानीजी तम जाकर उस अचत-नदरा स जगाओ िजसस मिकतपथ चल वश बयालस हमारा अश ह जो सकत क घर अवतार लगा ानी तम शीघर सकत क पास जाओ और उसक कालफ़ास मटा दो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब सतयपरष क आा स म तमहार पास आया ह धमरदास तम सोचो वचारो क तम जस lsquoनीरrsquo स होकर जनम हो और तमहार सतरी आमन lsquoनीमाrsquo स होकर जनमी ह वस ह म तमहार घर आया ह तम तो मर सबस अधक परय अश हो इसलय मन तमह दशरन दया अबक बार तम मझ पहचानो तब म तमह सतयपरष का उपदश कहगा यह वचन सनत ह धमरदास दौङकर कबीर साहब क चरण म गर गय और रोन लग

कालदत नारायण दास क कहानी

कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमहार सामन सतय का भद परकाशत कया ह और तमहार सभी काल-जाल को मटा दया ह अब रहनी-गहनी क बात सनो िजसको जान बना मनषय य ह भलकर सदा भटकता रहता ह सदा मन लगाकर भिकतसाधना करो और मान-परशसा को तयागकर सचचसनत क सवा करो पहल जात वणर और कल क मयारदा नषट करो (अभमान मत करो और य मत मानो क lsquoमrsquo य ह या वो ह य चौरासी म फ़सन का सबस बङा कारण होता ह) तथा दसर अनयमत पतथर (मतर) पानी (गगा यमना कमभ आद) दवी-दवता क पजा छोङकर नषकाम गर क भिकत करो जो जीव गर स कपट चतराई करता ह वह जीव ससार म भटकता भरमता ह इसलय गर स कभी कपट परदा नह रखना चाहय गर स कपट मतर क चोर क होय अधा क होय कोढ़ जो गर स भद कपट रखता ह उसका उदधार नह होता वह चौरासी म ह रहता ह धमरदास कवल एक सतयपरष क सतयनाम क आशा और वशवास करो इस ससार का बहत बङा जजाल ह इसी म छपा हआ कालनरजन अपनी फ़ास (फ़दा) लगाय हय ह िजसस क जीव उसम फ़सत रह परवार क सब नर-नार मलकर यद सतयनाम का समरन कर तो भयकर काल कछ नह बगाङ सकता धमरदास तमहार घर िजतन जीव ह उन सबको बलाओ सब (हस) नामदा ल फ़र तम अनयायी और करर कालनरजन स सदा सरत रहोग धमरदास बोल - परभ आप जीव क मल (आधार) हो आपन मरा समसत अान मटा दया मरा एक पतर नारायण दास ह आप उस भी उपदश कर यह सनकर कबीर साहब मसकरा दय पर अपन अनदर क भाव को परकट नह कया और बोल - धमरदास िजसको तम शदध अतःकरण वाला समझत हो उनको तरनत बलाओ धमरदास न सबको बलाया और बोल - भाई य समथर सदगरदव सवामी ह इनक शरीचरण म गरकर समपरत हो जाओ िजसस क चौरासी स मकत होओ और ससार म फ़र स न जनम इतना सनत ह सभी जीव आय और कबीर साहब क चरण म दडवत परणाम कर समपरत हो गय परनत नारायण

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दास नह आया धमरदास सोचन लग क नारायण दास तो बहत चतर ह फ़र वह कय नह आया धमरदास न अपन सवक स कहा - मर पतर नारायण दास न गर lsquoरपदासrsquo पर वशवास कया ह और उसक शा अनसार वह िजस सथान पर शरीमदभगवद गीता पढ़ता रहता ह वहा जाकर उसस कहो तमहार पता न समथरगर पाया ह सवक नारायण दास क पास जाकर बोला - नारायण दास तम शीघर चलो आपक पता क पास समथरगर कबीर साहब आय ह उनस उपदश लो नारायण दास बोला - म पता क पास नह जाऊगा व बढ़ हो गय ह और उनक बदध का नाश हो गया ह वषण क समान और कौन ह हम िजसको जप मर पता बढ़ हो गय ह और उनको जलाहा गर भा गया ह मर मन को तो वठठलशवर गर ह पाया ह अब और कया कह मर पता तो बस पागल ह हो गय ह उस सदशी न यह सब बात धमरदास को आकर बतायी धमरदास सवय अपन पतर नारायण दास क पास पहच और बोल - पतर नारायण दास अपन घर चलो वहा सदगर कबीर साहब आय हय ह उनक शरीचरण म माथा टको और अपन सब कमरबधनो को कटाओ जलद करो ऐसा अवसर फ़र नह मलगा हठ छोङो बनदछोङ गर बारबार नह मलत नारायण दास बोला - पताजी लगता ह आप पगला गय हो इसलय तीसरपन क अवसथा म िजदागर पाया ह अर िजसका नाम राम ह उसक समान और कोई दवता नह ह िजसक ऋष-मन आद सभी पजा करत ह आपन गर वठठलशवर का परम छोङकर अब बढ़ाप म वह िजनदागर कया ह तब धमरदास न नारायण को बाह पकङ कर उठा लया और कबीर साहब क सामन ल आय और बोल - इनक चरण पकङो य यम क फ़द स छङान वाल ह नारायण दास मह फ़रकर कट शबद म बोला - यह कहा हमार घर म मलचछ न परवश कया ह कहा स यह lsquoिजनदाठगrsquo आया िजसन मर पता को पागल कर दया वदशासतर को इसन उठाकर रख दया और अपनी महमा बनाकर कहता ह यद यह िजनदा आपक पास रहगा तो मन आपक घर आन क आशा छोङ द ह नारायण दास क यह बात सनत ह धमरदास परशान हो गय और बोल - मरा यह पतर जान कया मत ठान हय ह फ़र माता आमन न भी नारायण को बहत समझाया परनत नारायण दास क मन म उनक एक भी बात सह न लगी और वह बाहर चला गया तब धमरदास कबीर स वनती करत हय बोल - साहब मझ वह कारण बताओ िजसस मरा पतर इस परकार आपको कटवचन कहता ह और दबरदध को परापत होकर भटका हआ ह कबीर बोल - धमरदास मन तो तमह नारायण दास क बार म पहल ह बता दया था पर तम उस भल गय हो

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अतः फ़र स सनो जब म सतयपरष क आा स जीव को चतान मतयलोक क तरफ़ आया तब कालनरजन न मझ दखकर वकराल रप बनाया और बोला - सतयपरष क सवा क बदल मन यह lsquoझाझरदपrsquo परापत कया ह ानी तम भवसागर म कस (कय) आय म तमस सतय कहता ह म तमह मार दगा तम मरा यह रहसय नह जानत कबीर न कहा - अनयायीनरजन सन म तझस नह डरता जो तम अहकार क वाणी बोलत हो म इसी ण तमह मार डालगा कालनरजन सहम गया और वनती करता हआ बोला - ानीजी आप ससार म जाओग बहत स जीव का उदधार कर मकत करोग तो मर भख कस मटगी जब जीव नह हग तब म कया खाऊगा मन एक लाख जीव रात-दन खाय और सवालाख उतपनन कय मर सवा स सतयपरष न मझको तीनलोक का राजय दया आप ससार म जाकर जीव को चताओग उसक लय मन ऐसा इतजाम कया ह म धमर-कमर का ऐसा मायाजाल फ़लाऊगा क आपका सतयउपदश कोई नह मानगा म घर-घर म अान भरम का भत उतपनन करगा तथा धोखा द दकर जीव को भरम म डालगा तब सभी मनषय शराब पीयग मास खायग इसलय कोई आपक बात नह मानगा आपका ससार म जाना बकार ह मन कहा - कालनरजन म तरा छल-बल सब जानता ह म सतयनाम स तर दवारा फ़लाय गय सब भरम मटा दगा और तरा धोखा सबको बताऊगा कालनरजन घबरा गया और बोला - म जीव को अधक स अधक भरमान क लय बारह पथ चलाऊगा और आपका नाम लकर अपना धोख का पथ चलाऊगा lsquoमतअधाrsquo मरा अश ह वह धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा कालदत धमरदास क घर जनम लगा पीछ स आपका अश जनम लगा भाई मर इतनी वनती तो मान ह लो धमरदास तब मन नरजन को कहा सनो नरजन तमन इस परकार कहकर जीव क उदधारकायर म वघन डाल दया ह फ़र भी मन तमको वचन दया इसलय धमरदास अब वह lsquoमतअधाrsquo नाम का कालदत तमहारा पतर बनकर आया ह और अपना नाम नारायण दास रखवाया ह नारायण कालनरजन का अश ह जो जीव क उदधार म वघन का कायर करगा यह मरा नाम लकर पथ को परकट करगा और जीव को धोख म डालगा और नकर म डलवायगा जस शकार नाद को बजाकर हरन को अपन वश म कर लता ह और पकङकर उस मार डालता ह वस ह शकार क भात यमकाल अपना जाल लगाता ह और इस चाल को हसजीव ह समझ पायगा तब कालदत नारायण दास क चाल समझ म आत ह धमरदास न उस तयाग दया और कबीर क चरण म गर पङ

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कालनरजन का छलावा बारह पथ

धमरदास बोल - कालनरजन न जीव को भरमान क लय जो अपन बारह पथ चलाय व मझ समझा कर कहो कबीर साहब बोल - म तमस काल क lsquoबारह पथrsquo क बार कहता ह lsquoमतयअधाrsquo नाम का दत जो छल बल म शिकतशाल ह वह सवय तमहार घर म उतपनन हआ ह यह पहला पथ ह दसरा lsquoतमर दतrsquo चलकर आयगा उसक जात अहर होगी और वह नफ़र यानी गलाम कहलायगा वह तमहार बहत सी पसतक स ान चराकर अलग पथ चलायगा तीसरा पथ का नाम lsquoअधाअचतrsquo दत होगा वह सवक होगा वह तमहार पास आयगा और अपना नाम lsquoसरतगोपालrsquo बतायगा वह भी अपना अलग पथ चलायगा और जीव को lsquoअरयोगrsquo (कालनरजन) क भरम म डालगा धमरदास चौथा lsquoमनभगrsquo नाम का कालदत होगा वह कबीरपथ क मलकथा का आधार लकर अपना पथ चलायगा और उस मलपथ कहकर ससार म फ़लायगा वह जीव को lsquoलदrsquo नाम लकर समझायगा उपदश करगा और इसी नाम को lsquoपारसrsquo कहगा वह शरर क भीतर झकत होन वाल शनय क lsquoझगrsquo शबद का समरन अपन मख स वणरन करगा सब जीव उस lsquoथाकाrsquo कहकर मानग धमरदास lsquoपाचव पथrsquo को चलान वाला lsquoानभगीrsquo नाम का दत होगा उसका पथ टकसार नाम स होगा वह इगला-पगला नाङय क सवर को साधकर भवषय क बात करगा जीव को जीभ नतर मसतक क रखा क बार म बता कर समझायगा जीव क तल मससा आद चहन दखकर उनह भरमरपी धोख म डालगा वह िजस जीव क ऊपर जसा दोष लगायगा वसा ह उसको पान खलायगा (नाम आद दना) lsquoछठा पथrsquo कमाल नाम का ह वह lsquoमनमकरदrsquo दत क नाम स ससार म आया ह उसन मद म वास कया और मरा पतर होकर परकट हआ वह जीव को झलमल-जयोत का उपदश करगा (जो अषटागी न वषण को दखाकर भरमा दया) और इस तरह वह जीव को भरमायगा जहा तक जीव क दिषट ह वह झलमल-जयोत ह दखगा िजसन दोन आख स झलमल-जयोत नह दखी ह वह कस झलमल-जयोत क रप को पहचानगा झलमल-जयोत कालनरजन क ह उस दत क हरदय म सतय मत समझो वह तमह भरमान क लय ह सातवा दत lsquoचतभगrsquo ह वह मन क तरह अनक रगरप बदल कर बोलगा वह lsquoदनrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और दह क भीतर बोलन वाल आतमा को ह सतयपरष बतायगा वह जगतसिषट म पाच-ततव तीन गण बतायगा और ऐसा ान करता हआ अपना पथ चलायगा इसक अतरकत आदपरष कालनरजन अषटागी बरहमा आद कछ भी नह ह ऐसा भरम बनायगा सिषट हमशा स ह तथा इसका कतारधतार कोई नह ह इसी को वह ठोस lsquoबीजकrsquo ान कहगा वह कहगा क अपना आपा ह बरहम ह वह वचन वाणी बोलता ह तो फ़र सोचो गर का कया महतव और आवशयकता ह राम न वशषठ को और कषण न दवारसा को गर कय बनाया जब कषण जस न गरओ क सवा क तो ऋषय-मनय क फ़र गनती ह कया ह नारद न गर को दोष लगाया तो वषण न उनस नकर भगतवाया जो बीजक ान वह दत थोपगा वह ऐसा होगा जस गलर क भीतर कङा घमता ह तथा वह कङा समझता ह क

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ससार इतना ह ह अपन आपको कतार-धतार मानन स जीव का कभी भला न होगा अपन आपको ह मानन वाला जीव रोता रहगा आठवा पथ चलान वाला lsquoअकलभगrsquo दत होगा वह परमधाम कहकर अपना पथ चलायगा कछ करआन तथा वद क बात चराकर अपन पथ म शामल करगा वह कछ-कछ मर नगरण-मत क बात लगा और उन सब बात को मलाकर एक पसतक बनायगा इस परकार जोङजाङ कर वह बरहमान का पथ चलायगा उसम कमरआशरत (यानी ानरहत ानआशरत नह कमर ह पजा ह मानन वाल) जीव बहत लपटग नौवा पथ lsquoवशभर दतrsquo का होगा और उसका जीवनचरतर ऐसा होगा क वह lsquoरामकबीरrsquo नाम का पथ चलायगा वह नगरण-सगण दोन को मलाकर उपदश करगा पाप-पणय को एक समझगा ऐसा कहता हआ वह अपना पथ चलायगा दसवा पथ क दत का नाम lsquoनकटा ननrsquo ह वह lsquoसतनामीrsquo कहकर पथ चलायगा और lsquoचारवणरrsquo क जीव को एक म मलायगा वह अपन वचनउपदश म बराहमण तरय वशय शदर सबको एक समान मलायगा परनत वह सदगर क शबदउपदश को नह पहचानगा वह अपन प को बाधकर रखगा िजसस जीव नकर को जायग वह शरर का ान कथन सब समझायगा परनत सतयपरष क मागर को नह पायगा धमरदास कालनरजन क चालबाजी क बात सनो वह जीव को फ़सान क लय बङ-बङ फ़द क रचना करता ह वह काल जीव को अनक कमर (पजा आद आडबर सामािजक रतरवाज) और कमरजाल म ह जीव को फ़ास कर खा जाता ह जो जीव सारशबद को पहचानता ह समझता ह वह कालनरजन क यमजाल स छट जाता ह और शरदधा स सतयनाम का समरन करत हय अमरलोक को जाता ह lsquoगयारहव पथrsquo को चलान वाला lsquoदगरदानीrsquo नाम का कालदत अतयनत बलशाल होगा वह lsquoजीवपथrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और शररान क बार म समझायगा उसस भोल अानी जीव भरमग और भवसागर स पार नह हग जो जीव बहत अधक अभमानी होगा वह उस कालदत क बात सनकर उसस परम करगा lsquoबारहव पथrsquo का कालदत lsquoहसमनrsquo नाम का होगा वह बहत तरह क चरतर करगा वह वचनवश क घर म सवक होगा और पहल बहत सवा करगा फ़र पीछ (अथारत पहल वशवास जमायगा और जब लोग उसको मानन लगग) वह अपना मत परकट करगा और बहत स जीव को अपन जाल म फ़सा लगा और अश-वश (कबीर साहब क सथापत ान) का वरोध करगा वह उसक ान क कछ बात को मानगा कछ को नह मानगा इस परकार कालनरजन जीव पर अपना दाव फ़ कत हय उनह अपन फ़द म (असलान स दर) बनाय रखगा यानी ऐसी कोशश करगा वह अपन इन अश (कालदत) स बारह पथ (झठान को फ़लान हत) परकट करायगा और य दत सफ़र एकबार ह परकट नह हग बिलक व उन पथ म बारबार आत-जात रहग और इस तरह बारबार ससार म परकट हग जहा-जहा भी य दत परकट हग जीव को बहत ान (भरमान वाला) कहग और व यह सब खद को कबीरपथी बतात हय करग और व शररान का कथन करक सतयान क नाम पर कालनरजन क ह महमा को घमाफ़रा कर बतायग और अानी जीव को काल क मह म भजत रहग कालनरजन न ऐसा ह करन का उनको आदश दया ह

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जब-जब नरजन क य दत ससार म जनम लकर परकट हग तब-तब य अपना पथ फ़लायग व जीव को हरान करन वाल वचतर बात बतायग और जीव को भरमा कर नकर म डालग धमरदास ऐसा वह कालनरजन बहत ह परबल ह वह तथा उसक दत कपट स जीव को छलबदध वाला ह बनायग -------------- आतमान क lsquoहसदाrsquo और lsquoपरमहस दाrsquo म वाणी या अनय इिनदरय का कोई सथान नह ह दोन ह दाओ म सरत को दो अलग-अलग सथान स जोङा जाता ह मतलब धयान बारबार वह ल जान का अभयास कया जाता ह जब धयान पर साधक क पकङ हो जाती ह तो य धयान खद-ब-खद अपन आप होन लगता ह और तीन महन क ह सह अभयास स दवयदशरन अनतलक क सर भवरगफ़ा आसमानी झला आद बहत अनभव होत ह दसर दा क बाद एक सथायी सी शात महसस होती ह जसी पहल कभी महसस नह क और आपक िजनदगी म सवभाव म एक मजबती सी आ जाती ह इसीलय सनत न कहा ह - फ़कर मत कर िजकर कर

चङामण का जनम

धमरदास बोल - परभ अब आप मझ पर कपा करो िजसस ससार म वचनवश परकट हो और आग पथ चल कबीर बोल - धमरदास दस महन म तमहार जीवरप म वश परकट होगा और अवतार होकर जीव क उदधार क लय ह ससार म आयगा य तमहारा पतर ह मरा अश होगा धमरदास न कहा - साहब मन तो अपनी कामदर को वश म कर लया ह फ़र कस परष क अश lsquoनौतम सरतrsquo चङामण ससार म जनम लग कबीर साहब बोल - तम दोन सतरी-परष कामवषय क आसिकत स दर रहकर सफ़र मन स रत करो सतयपरष का नाम पारस ह उस पान पर लखकर अपनी पतनी आमन को दो िजसस सतयपरष का अश नौतम जनम लगा तब धमरदास क यह शका दर हो गयी क बना मथन क यह कस सभव होगा फ़र कबीर साहब क बताय अनसार दोन पत-पतनी न मन स रत क और पान दया जब दस मास पर हय तब मकतामण का जनम हआ इस पर धमरदास न बहत दान कया कबीर साहब को पता चला क मकतामण का जनम हो गया ह तो व तरनत धमरदास क घर पहच और मकतामण को दखकर बोल - यह मकतामण मिकत का सवरप ह यह कालनरजन स जीव को मकत करायगा

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फ़र कबीर साहब मकतामण क दा करत हय बोल - मन तमको वश बयालस का राजय दया तमस बयालस वश हग जो शरदधाल जीव को तारग तमहार उन वश बयालस स साठ शाखाय हगी और फ़र उन शाखाओ स परशाखाय हगी तमहार दस हजार तक परशाखाय हगी वश क साथ मलकर उनका गजारा होगा लकन यद तमहार वश उनस ससार समबनध मानकर नाता मानग तो उनको सतयलोक परापत नह होगा इसलय तमहार वश को मोहमाया स दर रहना चाहय धमरदास पहल मन तमको जो ानवाणी का भडार सपा था वह सब चङामण को बता दो तब बदधमान चङामण ान स पणर हग िजस दखकर काल भी चकनाचर हो जायगा धमरदास न कबीर साहब क आा का पालन कया और दोन न कबीर क चरण सपशर कय यह सब दखकर कालनरजन भय स कापन लगा परसनन होकर कबीर साहब बोल - धमरदास जो सतयपरष क इस नामउपदश को गरहण करगा उसका सतयलोक जान का रासता कालनरजन नह रोक सकता चाह वह अठासी करोङ घाट ढ़ढ़ कोई मख स करोङ ान क बात कहता हो और दखाव क लय बना वधान क (कायद स दा आद क) कबीर कबीर का नाम जपता हो वयथर म कतना ह असार-कथन कहता हो परनत सतयनाम को जान बना सब बकार ह ह जो सवय को ानी समझकर ान क नाम पर बकवास करता हो उसक ानरपी वयजन क सवाद को पछो करोङ यतन स भी यद भोजन तयार हो परनत नमक बना सब फ़का ह रहता ह जस भोजन क बात ह वस ह ान क बात ह हमारा ान का वसतार चौदह करोङ ह फ़र भी सारशबद (असल नाम) इनस अलग और शरषठ ह धमरदास िजस तरह आकाश म नौ लाख तारागण नकलत ह िजनह दखकर सब परसनन होत ह परनत एक सयर क नकलत ह सब तार क चमक खतम हो जाती ह और व दखायी नह दत इसी तरह नौ लाख तारागण ससार क करोङ ान को समझो और एक सयर आतमानी सनत को जानो जस वशाल समदर को पार करान वाला जहाज होता ह उसी परकार अथाह भवसागर को पार करवान वाला एकमातर lsquoसारशबदrsquo ह ह मर सारशबद को समझ कर जो जीव कौव क चाल (वषयवासना म रच) छोङ दग तो वह सारशबदगराह हस हो जायग धमरदास बोल - साहब मर मन म एक सशय ह कपया उस सन मझ समथर सतपरष न ससार म भजा था परनत यहा आन पर कालनरजन न मझ फ़सा लया आप कहत हो म सतसकत का अश ह तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया ऐसा ह आग वश क साथ हआ तो ससार क सभी जीव नषट हो जायग इसलय साहब ऐसी कपा कर क कालनरजन वश को न छल कबीर बोल - धमरदास तमन सतय कहा और ठक सोचा और तमहारा यह सशय होना भी सतय ह आग धमररायनरजन एक खल तमाशा करगा उस म तमस छपाऊगा नह कालनरजन न मझस सफ़र बारह पथ चलान क बात कह थी और अपन चार पथ को गपत रखा था जब मन चार गरओ का नमारण कया तो उसन भी अपन चार अश परकट कय और उनह जीव को फ़सान क लय बहत परकार स समझाया अब आग जसा होगा वह सनो जबतक तम इस शरर म रहोग तबतक कालनरजन परकट नह होगा जब तम शरर छोङोग तभी काल आकर परकट होगा काल आकर तमहार वश को छदगा और धोख म डालकर मोहत करगा वश क बहत नाद सत महत कणरधार हग काल क परभाव स व पारस वश को वष क सवाद जसा करग

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बदमल और टकसार वश क अनदर मशरत हग वश म एक बहत बङा धोखा होगा कालसवरप lsquoहगrsquo दत उसक दह म समायगा वह आपस म झगङा करायगा बदवश क सवभाव को हगदत नह छोङगा वह मन क दवारा बदवश को अपनी तरफ़ मोङगा मरा अश जो सतयपथ चलायगा उस दखकर वह झगङा करगा उसक चहन अथवा चाल को वह नह दख सकगा और अपना रासता वश म दखगा वश अपन अनभवगरनथ कथ कर (कह कर) रखगा परनत नादपतर क नदा करगा तब उन अनभवगरनथ को वश क कणरधार सत महत पढ़ग िजसस उनको बहत अहकार होगा व सवाथर और अहकार को समझ नह पायग और ान कलयाण क नाम पर जीव को भटकायग इसी स म तमह समझाकर कहता ह अपन वश को सावधान कर दो नादपतर जो परकट होगा उसस सब परम स मल धमरदास इसी मन स समझो तम सवरथा वषयवकार स रहत मर नादपतर (शबद स उतपनन) हो कमाल पतर जो मन मतक स जीवत कया था उसक घट (शरर) क भीतर भी कालदत समा गया उसन मझ पता जानकर अहकार कया तब मन अपना ानधन तमको दया म तो परमभाव का भखा ह हाथी घोङ धन दौलत क चाह मझ नह ह अननयपरम और भिकत स जो मझ अपनायगा वह हसभकत ह मर हरदय समायगा यद म अहकार स ह परसनन होन वाला होता तो म सब ान धयान आधयातम पडत-काजी को न सप दता जब मन तमह परम म लगन लगाय अपन अधीन दखा तो अपनी सब अलौकक ान-सपदा ह सप द ऐस ह धमरदास आग सपातर लोग को तम यह ान दना धमरदास अचछ तरह जान लो जहा अहकार होता ह वहा म नह होता जहा अहकार होता ह वहा सब कालसवरप ह होता ह अतः अहकार मिकत क अनोख सतयलोक को नह पा सकता मकतामण और चङामण एक ह अश क दो नाम ह

काल का अपन दत को चाल समझाना

धमरदास बोल - साहब जीव क उदधार क लय जो वचनवश lsquoचङामणrsquo ससार म आया वह सब आपन बताया वचनवश को जो ानी पहचान लगा उसको कालनरजन का lsquoदगरदानीrsquo जसा दत भी नह रोक पायगा तीसरा सरत अश lsquoचङामणrsquo ससार म परकट हआ ह वह मन दख लया फ़र भी मझ एक सशय ह साहब मझ समथर सतयपरष न भजा था परनत ससार म आकर म भी कालनरजन क जाल म फ़स गया आप मझ lsquoसतसकतrsquo का अश कहत हो तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया अगर ऐसा ह सब वश क साथ हआ तो ससार क सब जीव नषट हो जायग इसलय ऐसी कपा करय क कालनरजन सतयपरष क वश को अपन छलभद स न छल पाय कबीर साहब बोल - यह तमन ठक कहा और तमहारा सशय सतय ह भवषय म कालनरजन कया चाल खलगा वह बताता ह सतयग म सतयपरष न मझ बलाया और ससार म जाकर जीव को चतान क लय कहा तो

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कालनरजन न रासत म मझस झगङा कया और मन उसका घमणड चर-चर कर दया पर उसन मर साथ एक धोखा कया और याचना करत हय मझस तीनयग माग लय अनयायी कालनरजन न तब कहा - भाई म चौथा कलयग नह मागता और मन उस वचन द दया और तब जीव क कलयाण हत ससार म आया कयक मन उसको तीन यग द दय थ उसी स उस समय वचनमयारदा क कारण अपना पथ परकट नह कया लकन जब चौथा कलयग आया तब सतयपरष न फ़र स मझ ससार म भजा पहल क ह तरह कसाई कालनरजन न मझ रासत म रोका और मर साथ झगङा कया वह बात मन तमह बता द ह और कालनरजन क बारह पथ का भद भी बता दया कालनरजन न मझस धोखा कया उसन मझस कवल lsquoबारह पथrsquo क बात कह और गपत बात मझको नह बतायी तीन यग म तो वचन लकर उसन मझ ववश कर दया और कलयग म बहत जाल रचकर ऊधम मचाया काल न मझस सफ़र बारह पथ क कहकर गपतरप स lsquoचार पथrsquo और बनाय जब मन जीव को चतान क लय चार कङहार गर क नमारण क वयवसथा क तो काल न अपना अशदत भज दया तथा अपनी छलबदध का वसतार कया और अपन चार अशदत को बहत शा द कालनरजन न दत स कहा - अशो सनो तम तो मर वश हो तमस जो कह उस मानो और मर आा का पालन करो भाई हमारा एक दशमन ह जो ससार म कबीर नाम स जाना जाता ह वह हमारा भवसागर मटाना चाहता ह और जीव को दसर लोक (सतयलोक) ल जाना चाहता ह वह छल-कपट कर मर पजा क वरदध जगत म भरम फ़लाता ह और मर तरफ़ स सबका मन हटा दता ह वह सतयनाम क समधर टर सनाकर जीव को सतयलोक ल जाता ह इस ससार को परकाशत करन म मन अपना मन दया हआ ह और इसलय मन तमको उतपनन कया मर आा मानकर तम ससार म जाओ और कबीर नाम स झठपथ परकट करो ससार क लालची और मखर जीव काम मोह वषयवासना आद वषय क रस म मगन ह अतः म जो कहता ह उसी अनसार उन पर घात लगाकर हमला करो ससार म तम lsquoचार पथrsquo सथापत करो और उनको अपनी-अपनी (झठ) राह बताओ चारो क नाम कबीर नाम पर ह रखो और बना कबीर शबद लगाय मह स कोई बात ह न बोलो अथारत इस तरह कहो कबीर न ऐसा कहा कबीर न वसा कहा जस तम कबीरवाणी का उपदश कर रह होओ कबीर नाम क वशीभत होकर जब जीव तमहार पास आय तो उसस ऐस मीठ वचन कहो जो उसक मन को अचछ लगत ह (अथारत चोट मारन वाल वाल सतयान क बजाय उसको अचछ लगन वाल मीठ मीठ बात करो कयक तमह जीव को झठ म उलझाना ह) कलयग क लालची मखर अानी जीव को ान क समझ नह ह व दखादखी क रासता चलत ह तमहार वचन सनकर व परसनन हग और बारबार तमहार पास आयग जब उनक शरदधा पकक हो जाय और व कोई भदभाव न मान यानी सतय क रासत और तमहार झठ क रासत को एक ह समझन लग तब तम उन पर अपना जाल डाल दो पर बहद होशयार स कोई इस रहसय को जानन न पाय तम जमबदप (भारत) म अपना सथान बनाओ जहा कबीर क नाम और ान का परमाण ह जब कबीर बाधगढ (छीसगढ़) म जाय और धमरदास को उपदश-दा आद द तब व उसक बयालस वश क ानराजय को सथापत करग तब तमह उसम घसपठ करक उनक राजय को डावाडोल करना ह मन चौदह यम क नाकाबनद करक जीव

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क सतयलोक जान का मागर रोक दया ह और कबीर क नाम पर बारह झठपथ चलाकर जीव को धोख म डाल दया ह भाई तब भी मझ सशय ह उसी स म तमको वहा भजता ह उनक बयालस वश पर तम हमला करो और उनह अपनी बात म फ़सा लो कालनरजन क बात सनकर व चार दत बोल - हम ऐसा ह करग यह सनकर कालनरजन बहत परसनन हआ और जीव को छल-कपट दवारा धोख म रखन क बहत स उपाय बतान लगा जीव पर हमला करन क उसन बहत स मनतर सनाय उसन कहा - अब तम ससार म जाओ और चार तरफ़ फ़ल जाओ ऊच नीच गरब अमीर कसी को मत छोङो और सब पर काल का फ़दा कस दो तम ऐसी कपट-चालाक करो क िजसस मरा आहार जीव कह नकल कर न जान पाय धमरदास यह चारो दत ससार म परगट हग जो चार अलग-अलग नाम स कबीर क नाम पर पथ चलायग इन चार दत को मर चलाय बारह पथ का मखया मानो इनस जो चार पथ चलग उसस सब ान उलट-पलट हो जायगा य चार पथ बारह पथ का मल यानी आधार हग जो वचनवश क लय शल क समान पीङादायक हग यानी हर तरह स उनक कायर म वघन करत हय जीव क उदधार म बाधा पहचायग यह सनकर धमरदास घबरा गय और बोल - साहब अब मरा सशय और भी बढ़ गया ह मझ उन कालदत क बार म अवशय बताओ उनका चरतर मझ सनाओ उन कालदत का वश और उनका लण कहो य ससार म कौन सा रप बनायग और कस परकार जीव को मारग व कौन स दश म परकट हग मझ शीघर बताओ

काल क चार दत

कबीर साहब बोल - धमरदास उन चार दत क बार म तमस समझा कर कहता ह उन चार दत क नाम - रभदत करभदत जयदत और वजयदत ह अब lsquoरभदतrsquo क बात सनो यह भारत क गढ़ कालजर म अपनी गदद सथापत करगा और अपना नाम भगत रखगा और बहत जीव को अपना शषय बनायगा जो कोई जीव अकर होगा अथारत िजसम सतयान क परत चतना होगी तथा िजसक पवर क शभकमर हग वह यम (कालनरजन) क इस फ़द को तोङकर बच जायगा वह कालरप रभदत बहत बलवान तथा षङयतर करन वाला होगा वह तमहार और मर वातार का खडन करगा वह दावधान को रोकगा और सतयपरष क सतयलोक और दप को झठा बतायगा वह अपनी lsquoअलग ह रमनीrsquo कहगा वह मर सतयवाणी क परत ववाद करगा िजसक कारण उसक जाल म बहत लोग फ़सग चार धाराओ का अपन मतानसार ान करगा मरा नाम कबीर जोङकर अपना झठा परचार-परसार करगा वह अपन आपको कबीर ह बतायगा और मझ पाच-ततव क दह म बसा हआ बतायगा वह जीव को सतयपरष क समान

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सदध करगा तथा सतयपरष का खडन कर जीव को शरषठ बतायगा हसजीव को इषट कबीर ठहरायगा तथा कतार को कबीर कहकर पकारगा सबका कतार कालनरजन जीव को घोर दख दन वाला ह और उसक ह समान यह यमदत मझ भी समझता ह वह कमर करन वाल जीव को ह सतयपरष ठहरायगा और सतयपरष क नाम-ान को छपाकर अपन आपको परकट करगा वचार करो जीव अपन आप ह सब होता तो इस तरह अनक दख कय भोगता पाच-ततव क दह वाला पाच-ततव क अधीन हआ य जीव दख पाता ह और रमभदत जीव को सतयपरष क समान बताता ह सतयपरष का शरर अजर-अमर ह उनक अनक कलाय ह तथा उनका रप और छाया नह ह धमरदास य गरान अनपम ह िजसम बना दपरण क अपना रप दखायी दता ह अब दसर lsquoकरभ दतrsquo का वणरन सनो वह मगध दश म परकट होगा और अपना नाम धनीदास रखगा करभ छल-परपच क बहत स जाल बछायगा और ानीजीव को भी भटकायगा िजसक हरदय म थोङा भी आतमान होगा य यमदत धोखा दकर उस नषट कर दगा धमरदास इस करभ क चालबाजी सनो यह अपन कथन क टकसार बताकर मजबत जाल सजायगा वह चनदर इङा सयर पगला नाङय क अनसार शभ-अशभ लगन का परचार-परसार करगा तथा राह-कत आद गरह का वसतार स वणरन करगा वह पाच-ततव तथा उनक गण क मत को शरषठ बताकर उनका वणरन करगा तब अानी जीव उसक फ़लाय भरम को नह जानग वह जयोतष क मत को टकसार कहकर फ़लायगा और जीव को गरह-नतर तथा इिनदरय क वश म करक उनका असल सतयपरष क भिकत स धयान हटा दगा वह जल वाय का ान बतायगा और पवन क वभनन नाम और गण का वणरन करगा वह सतय स हटकर ऐसी पजावधान चलाकर जीव को धोखा दकर भरमायगा भटकायगा वह अपन शषय बनात समय वशष नाटक करगा अग-अग क रखा दखगा और पाव क नाखन स सर क चोट को दखत हय जीव को कमरजाल म फ़साकर भरमायगा वह जीव को दख-समझ कर तथा शरवीर कहकर मोह मद म चढ़ा कर धर खायगा भरमाय हय अपन शषय स दणा म सवणर तथा सतरी अपरण करायगा इस परकार वह जीव को ठगगा शषय को गाठ बाधकर तब वह फ़रा करगा और कमरदोष लगाकर उस यम का गलाम बना दगा पचासी पवन काल क ह अतः वह शषय को पवन नाम लखकर पान खलायगा वह नीर पवन क ान का परसार करगा और शषय को पवन नाम दकर आरती उतरवायगा काल क पचासी पवन अनसार पजा करायगा कया नार कया परष वह सबक शरर क तल मसस क पहचान दखा करगा शख चकर और सीप क चनह दखगा कालनरजन का वह दत ऐसी दषटबदध का होगा और जीव म सशय उतपनन करगा तथा उनह गरसत (बरबाद) करत हय पीङत करगा इस कालदत का और भी झठ-परपच सनो वह अपनी lsquoसाठ समrsquo तथा lsquoबारह चौपाईयrsquo को उठाकर जीव म भरम उतपनन करगा वह lsquoपचामत एकोर नामrsquo का समरन को शरषठशबद और मिकतदाता बतायगा जीव क कलयाण का जो असलान आदकाल स निशचत ह वह उस झठ और धोखा बतायगा तथा पाच-ततव पचचीस परकत

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तीन गण चौदह यम यह ईशवर ह अथारत ऐसा कहगा तम ह सब कछ हो पाच-ततव का जाल बनाकर यह यमदत शरर क ततव का धयान करायगा वचार करो क ततव का धयान लगाय तब शरर छटन पर कहा जायग ततव तो ततव म मल जायगा धमरदास जीव को जहा आशा होती ह वह उसका वास होता ह अतः नाम-समरन स धयान हटन पर ततव म उलझ कर वह ततव म ह समायगा कहा तक कह करभ घमासान वनाश करगा उसक छल को वह समझगा जो जीव सतयनाम उपदश को गरहण करन वाला और समझन वाला होगा पाच जङततव तो काल क अग ह अतः ततव क मत म पङकर जीव क दगरत ह होगी और यह सब कछ वह कबीर क नाम पर खद को कबीरपथी बताकर इसको कबीर का ान बताकर करगा जो जीव उसक जाल म फ़स जायग वह करर कालनरजन क मख म ह जायग अब तीसर दत lsquoजयदतrsquo क बार म जानो यह यमदत बङा वकराल होगा यह झठा-परपची अपनी वाणी को आद अनाद (वाणी) कहगा यह जयदत lsquoकरकट गरामrsquo म परकट होगा जो बाधौगढ क पास ह ह वह lsquoचमार कलrsquo म उतपनन होगा और ऊचकल वाल क जात को बगाङन क कोशश करगा यह यमदत lsquoदासrsquo कहायगा और lsquoगणपतrsquo नाम का उसका पतर होगा व दोन पता पतर परबल कालसवरप दखदायी हग और तमहार वश को आकर घरग अथारत जीव क उदधार म यथाशिकत बाधा पहचायग वह कहगा असलान हमार पास ह धमरदास वह तमहार वश को उठा दगा अथारत परभाव खतम करन क कोशश करगा वह अपना अनभव कहकर अपन बहत स गरनथ बनायगा और उसम ानीपरष क समान सवाद बनायगा वह कहगा क lsquoमलानrsquo तो सतयपरष न मझ दया ह धमरदास क पास मलान नह ह वह तमहार वश को भरमा दगा और ानमागर को वचलत करगा वह तमहार वश म अपना मत पकका करगा और मल lsquoपारस-थाकाrsquo पथ चलायगा मलछाप लकर वश को बगाङगा वह कालदत अपना मल पारस दकर सबक वसी ह बदध कर दगा वह भीतर शनय म झकत होन वाल lsquoझगrsquo शबद क बात करगा िजसस ानहन कचचजीव को भलावा दगा परष-सतरी क िजस रज-वीयर स शरररचना होती ह उसको वह अपना मलमत परचलत करगा शरर का मल lsquoआधारबीजrsquo कामवषय ह परनत उसका नाम वह गपत रखगा पहल तो वह अपना मलआधार थाका ह गपत रखगा फ़र जब शषय को जोङकर पर तरह साध लगा तब उसका वणरन करगा पहल तो ान-गरनथ को समझायगा फ़र पीछ स अपना मत पकका करायगा वह सतरी क अग को पारस ान दगा िजस आा मानकर उसक सब शषय लग पहल वह ान का शबद-उपदश समझायगा फ़र कामवषय वासना जो नकर क खान ह उस वह मल बखानगा वह lsquoझाझर दपrsquo क कथा सनायगा पाच-ततव स बन शरर क lsquoशनयगफ़ाrsquo म जाकर य पाच-ततव बहत परकार स रगीन चमकला परकाश बनात ह उस गफ़ा म lsquoहगrsquo शबद बहत जोर स उठता ह जब lsquoसोऽहगमrsquo जीव अपना शरर छोङगा तब कौन स वध स lsquoझगrsquo शबद उसक सामन आयगा कयक वह तो शरर क रहन तक ह होता ह शरर क छटत ह वह भी समापत हो जायगा

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lsquoझाझर दपrsquo कालनरजन न रच रखा ह और lsquoझग-हगrsquo दोन काल क ह शाखा ह य अनयायी कालदत अवहर (सतरी-परष कामसमबनध) ान कहगा lsquoअवहर ानrsquo कालनरजन का धोखा ह वह तमहार ान क भी महमा शामल करक मलाकर कहगा इसलय उसक मत म बहत स कङहार महत हग वह कालदत सथान-सथान पर नीचकमर करगा और हमार बात करत हय हम पर ह हसगा अतः अानी ससार लोग समझग क यह सब समान ह अथारत कबीर का मत और lsquoजयदतrsquo का मत एक ह ह जब कोई इस भद को जानन क कोशश करगा तभी उस पता चलगा िजसक हाथ म सतनामरपी दपक होगा वह हसजीव काल क इस जजाल को तयाग कर अपना कलयाण करगा इसम कोई सदह नह ह य कपटकाल बगल का धयान लगाय रहगा और सतयनाम को छोङकर कालसमबनधी नाम को परकटायगा अब चौथ lsquoवजयदतrsquo क बात सनो यह बनदलखनड म परकट होगा और अपना नाम lsquoजीवrsquo धरायगा यह वजयदत lsquoसखाभावrsquo क भिकत पकक करगा यह सखय क साथ रास रचायगा और मरल बजायगा अनक सखय क सग लगन परम लगायगा और अपन आपको दसरा कषण कहायगा वह जीव को धोखा दकर फ़ासगा और कहगा - आख क आग lsquoमन क छायाrsquo रहती ह और नाक क ऊपर क ओर आकाश lsquoशनयrsquo ह आख और कान बनद कर धयान लगान क िसथत म कोहरा जसा दखता ह सफ़द काला नीला पीला आद रग दखना च क करयाय ह परनत वह मिकत क नाम पर उनम जीव को डालकर भरमायगा य सब काल का धोखा ह यह परतण बदलती करयाय िसथर ह जो शरर क आख स दखी जाती ह अतः यह कालदत मन क छाया माया दखायगा और मिकत का मल छाया को बतायगा यह lsquoसतयनामrsquo स जीव को भटका कर काल क मख म ल जायगा

सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव

कबीर बोल - धमरदास सदगर सवपर ह अतः शषय को चाहय क गर स अधक कसी को न मान और गर क सखाय हय को सतय करक जान एक समय ऐसा भी आयगा जब तमहारा बदवश उलटा काम करगा वह बना गर क भवसागर स पार होना चाहगा जो नगरा होकर जगत को समझाता ह अथारत ान बताता ह वह खद तो डबगा ह तथा ससार क जीव को भी डबायगा बना गर क कलयाण नह होता जो गर क शरणागत होता ह वह ससारसागर स पार हो जाता ह कालनरजन अनक परकार स जीव को धोख म डालता ह अतः बना गर क जीव को अहकारवश ान कहत दखकर काल बहत खश होता ह धमरदास बोल - साहब कपा कर lsquoनाद-बदrsquo ान समझान क कपा कर कबीर बोल - बद एक और नाद बहत स होत ह जो बद क भात मल वह बद कहाता ह वचनवश सतयपरष का अश ह उसक ान स जीव ससार स छट जाता ह नाद और बदवश एक साथ हग तब उनस काल मह छपाकर रहगा जस मन तमह बताया वस नादबद योग (योग का एक तरका परकार) एक करना कयक बना

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नाद तो बद का भी वसतार नह होता और बना बद नाद नह उबरगा इस कलयग म काल बहत परबल ह जो अहकाररप धर सबको खाता ह नाद अहकार तयाग कर होगा और बद का अहकार बद सजायगा इसी स सतयपरष न इन दोन को अनशासत करन क लय मयारदा (नयम) म बाधा और नाद-बद दो रप बनाय जो अहकार छोङकर सतयसवरप परमातमा को भजगा उसका धयान समरन करगा वह हस-सवरप हो जायगा नाद-बद दोन कोई ह अहकार सबक लय हानकारक ह ह इसलय यह निशचत ह जो अहकार करगा वह भवसागर म डबगा धमरदास बोल - साहब आपन नाद-बद क बार म बताया अब मर मन म एक बात आ रह ह आपक वरोधी मर पतर नारायण दास का कया होगा वह ससार क नात मरा पतर ह इसलय चता होती ह सतयनाम को गरहण करन वाल जीव सतयलोक को जायग और नारायण दास काल क मह म जायगा यह तो अचछ बात न होगी कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमको बारबार समझाया पर तमहार समझ म नह आया अगर चौदह यमदत ह मकत होकर सतयलोक चल जायग तो फ़र जीव को फ़सान क लय फ़दा कौन लगायगा अब मन तमहारा ान समझा तम मर बात क परवाह न करक मोहमाया दवारा सतयपरष क आा को मटान म लग हय हो जब मनषय क मन म मोह अधकार छा जाता ह तब सारा ान भलकर वह अपना परमाथर कमर नषट करता ह बना वशवास क भिकत नह होती और बना भिकत क कोई जीव भवसागर स नह तर सकता फ़र स तमह काल फ़दा लगा ह तमन परतय दखा क नारायण दास कालदत ह फ़र भी तमन उस पतर मानन का हठ कया जब तमह ह मर वचन पर वशवास नह आता तो ससार लोग गरओ पर कया वशवास करग जो अहकार को छोङकर गर क शरण म आता ह वह सदगत पाता ह जो तरगणी माया को पकङत ह उनम मोहमद जाग जाता ह और व अभाग भिकत-ान सब तयाग दत ह जब तम ह गर का वशवास तयाग दोग जो जीव का उदधार करन वाल हो तब सामानय जीव का कया ठकाना इस परकार भरमत करन क यह तो कालनरजन क सह पहचान ह धमरदास सनो जसा तम कह रह हो वसा ह तमहारा वश भी परकाशत करगा मोह क आग म वह सदा जलगा और इसी स तमहार वश म वरोध पङगा िजसस दख होगा पतर धन घर सतरी परवार और कल का अभमान यह सब काल ह का तो वसतार ह वह इनह को माधयम बनाकर जीव को बधन म डालता ह इनस तमहारा वश भल म पङ जायगा और सतयनाम क राह नह पायगा ससार क अनय वश क दखादखी तमहार वश क लोग भी पतर धन घर परवार आद क मोह म पङ जायग और यह दखकर कालदत बहत परसनन हग तब कालदत परबल हो जायग और जीव को नकर भजग कालनरजन अपन जाल म जीव को जब फ़साता ह तो उस काम करोध मद लोभ मोह वषय म भला दता ह फ़र उस गर क वचन पर वशवास नह रहता तब सतयनाम क बात सनत ह वह जीव चढ़न लगता ह गर पर वशवास न करन का यह लण ह धमरदास िजसक घट (शरर) म सतयनाम समा गया ह उसक पहचान कहता ह धयान स सनो उस भकत को काल का वाण नह लगता और उस काम करोध मद लोभ नह सतात वह झठ मोह तषणा तथा सासारक वसतओ क आशा तयाग कर सदगर क सतयवचन म मन लगाता ह जस सपर मण को धारण कर परकाशत होता

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ह ऐस ह शषय सदगर क आा को अपन हरदय म धारण कर तथा समसत वषय को भलाकर ववक हस बनकर अवनाशी नज मकतसवरप सतयपद परापत कर सदगर क वचन पर अटल और अभमानरहत कोई बरला ह शरवीर सत परापत करता ह और उसक लय मिकत दर नह होती इस परकार जीवत ह मिकतिसथत का अनभव और मिकत परदान कराना सदगर का ह परताप ह अतः सदगर क चरण म ह परम करो और सब पापकमर अान एव सासारक वषय वकार को तयाग दो अपन नाशवान शरर को धल क समान समझो यह सनकर धमरदास सकपका गय वह कबीर साहब क चरण म गर पङ और दखी सवर म बोल - परभ म अान स अचत हो गया था मझ पर कपा कर कपा कर मर भल-चक मा कर जो नारायण दास क लय मन िजद क थी वह अान म खद को पता जानकर क थी अतः मर इस भल को मा कर कबीर बोल - धमरदास तम सतयपरष क अश हो परनत वश नारायण दास काल का दत ह उस तयाग दो और जीव का कलयाण करन क लय भवसागर म सतयपथ चलाओ यह सनकर धमरदास कबीर साहब क पर पर गर पङ और बोल - आज स मन अपन उस पतररप कालदत को तयाग दया अब आपको छोङकर कसी और क आशा कर तो म सतयसकलप क साथ कहता ह मरा नकर म वास हो कबीर साहब परसननता स बोल - धमरदास तम धनय हो जो मझको पहचान लया और नारायण दास को तयाग दया जब शषय क हरदयरपी दपरण म मल नह होगा गर का सवरप तब ह दखायी दगा जब शषय अपन पवतर हरदय म सदगर क शरीचरण को रखता ह तो काल क सब शाखाओ क समसत बधन को मटाता ह परनत जबतक वह सात पाच (सात सवगर काल तथा माया (क) तीन पतर बरहमा वषण महश य पाच) क आशा लगी रहगी तबतक वह शषय गरपद क महमा नह समझ पायगा

गर-शषय वचार-रहनी

धमरदास बोल - साहब आप गर हो म दास ह अब मझ गर-शषय क रहनी समझा कर कहो कबीर बोल - गर का वरत धारण करन वाल शषय को समझना चाहय क नगरण-सगण क बीच गर ह आधार होता ह गर क बना आचार अनदर-बाहर क पवतरता नह होती और गर क बना कोई भवसागर स पार नह होता शषय को सीप और गर को सवात बद क समान समझना चाहय गर क समपकर स तचछजीव (सीप) मोती क समान अनमोल हो जाता ह गर पारस और शषय लोह क समान ह जस पारस लोह को सोना बना दता ह गर मलयागर चदन क समान ह शषय वषल सपर क तरह होता ह इस परकार वह गर क कपा स शीतल होता ह गर समदर तो शषय उसम उठन वाल तरग ह गर दपक ह तो शषय उसम समपरत हआ पतगा ह गर चनदरमा ह तो शषय चकोर ह गर सयर ह जो कमलरपी शषय को वकसत करत ह इस परकार गरपरम को

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शषय वशवासपवरक परापत कर गर क चरण का सपशर और दशरन परापत कर जब इस तरह कोई शषय गर का वशष धयान करता ह तब वह भी गर क समान होता ह धमरदास गर एव गरओ म भी भद ह य तो सभी ससार ह गर-गर कहता ह परनत वासतव म गर वह ह जो सतयशबद या सारशबद का ान करान वाला ह उसका जगान वाला या दखान वाला ह और सतयान क अनसार आवागमन स मिकत दलाकर आतमा को उसक नजघर सतयलोक पहचाय गर जो मतय स हमशा क लय छङाकर अमतशबद (सारशबद) दखात ह िजसक शिकत स हसजीव अपन घर सतयलोक को जाता ह उस गर म कछ छल-भद नह ह अथारत वह सचचा ह ह ऐस गर तथा उनक शषय का मत एक ह होता ह जबक दसर गर-शषय म मतभद होता ह ससार क लोग क मन म अनक परकार क कमर करन क भावना ह यह सारा ससार उसी स लपटा पङा ह कालनरजन न जीव को भरमजाल म डाल दया ह िजसस उबर कर वह अपन ह इस सतय को नह जान पाता क वह नतय अवनाशी और चतनय ानसवरप ह इस ससार म गर बहत ह परनत व सभी झठ मानयताओ और अधवशवास क बनावट जाल म फ़स हय ह और दसर जीव को भी फ़सात ह लकन समथरसदगर क बना जीव का भरम कभी नह मटगा कयक कालनरजन भी बहत बलवान और भयकर ह अतः ऐसी झठ मानयताओ अधवशवास एव परमपराओ क फ़द स छङान वाल सदगर क बलहार ह जो सतयान का अजर-अमर सदश बतात ह अतः रात-दन शषय अपनी सरत सदगर स लगाय और पवतर सवाभावना स सचच साध-सनत क हरदय म सथान बनाय िजन सवक भकत शषय पर सदगर दया करत ह उनक सब अशभ कमरबधन आद जलकर भसम हो जात ह शषय गर क सवा क बदल कसी फ़ल क मन म आशा न रख तो सदगर उसक सब दखबधन काट दत ह जो सदगर क शरीचरण म धयान लगाता ह वह जीव अमरलोक जाता ह कोई योगी योगसाधना करता ह िजसम खचर भचर चाचर अगोचर नाद चकरभदन आद बहत सी करयाय ह तब इनह म उलझा हआ वह योगी भी सतयान को नह जान पाता और बना सदगर क वह भी भवसागर स नह तरता धमरदास सचचगर को ह मानना चाहय ऐस साध और गर म अतर नह होता परनत जो ससार कसम क गर ह वह अपन ह सवाथर म लग रहत ह न तो वह गर ह न शषय न साध और न ह आचार मानन वाला खद को गर कहन वाल ऐस सवाथ जीव को तम काल का फ़दा समझो और कालनरजन का दत ह जानो उसस जीव क हान होती ह यह सवाथरभावना कालनरजन क ह पहचान ह जो गर शाशवतपरम क आितमकपरम क भद को जानता ह और सारशबद क पहचान मागर जानता ह और परमपरष क िसथर भिकत कराता ह तथा सरत को शबद म लन करान क करया समझाता ह ऐस सदगर स मन लगाकर परम कर और दषटबदध एव कपट चालाक छोङ द तब ह वह नजघर को परापत होता ह और इस भवसागर स तर क फ़र लौटकर नह आता तीन काल क बधन स मकत सदा अवनाशी सतयपरष का नाम अमत ह अनमोल ह िसथर ह शाशवत सतय स मलान वाला ह अतः मनषय को चाहय क वह अपनी वतरमान कौव क चाल छोङकर हस सवभाव अपनाय और

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बहत सार पथ जो कमागर क ओर ल जात ह उनम बलकल भी मन न लगाय और बहत सार कमर भरम क जजाल को तयाग कर सतय को जान तथा अपन शरर को मटट ह जान और सदगर क वचन पर पणर वशवास कर कबीर साहब क ऐस वचन सनकर धमरदास बहत परसनन हय और दौङकर कबीर क चरण स लपट गय व परम म गदगद हो गय और उनक खशी स आस बहन लग फ़र वह बोल - साहब आप मझ ान पान क अधकार और अनाधकार जीव क लण भी कह कबीर बोल - धमरदास िजसको तम वनमर दखो िजस परष म ान क ललक परमाथर और सवाभावना हो तथा जो मिकत क लय बहत अधीर हो िजसक मन म दया शील मा आद सदगण ह उसको नाम (हसदा) और सतयान का उपदश करो कनत जो दयाहन हो सारशबद का उपदश न मान और काल का प लकर वयथर वाद-ववाद तकर -वतकर कर और िजसक दिषट चचल हो उसको ान परापत नह हो सकता होठ क बाहर िजसक दात दखाई पङ उसको जानो क कालदत वश धरकर आया ह िजसक आख क मधय तल हो वह काल का ह रप ह िजसका सर छोटा हो परनत शरर वशाल हो उनक हरदय म अकसर कपट होता ह उसको भी सारशबद ान मत दो कयक वह सतयपथ क हान ह करगा तब धमरदास न कबीर साहब को शरदधा स दडवत परणाम कया

शररान परचय

धमरदास बोल - साहब म बङभागी ह आपन मझ ान दया अब मझ शररनणरय वचार भी कहय इसम कौन सा दवता कहा रहता ह और उसका कया कायर ह नाङ रोम कतन ह और शरर म खन कसलय ह तथा सवास कौन स मागर स चलती ह आत प फ़फ़ङा और आमाशय इनक बार म भी बताओ शरर म िसथत कौन स कमल पर कतना जप होता ह और रात-दन म कतनी सवास चलती ह कहा स शबद उठकर आता ह तथा कहा जाकर वह समाता ह अगर कोई जीव झलमल-जयोत को दखता ह तो मझ उसका भी ान ववक कहो क उसन कौन स दवता का दशरन पाया कबीर बोल - धमरदास अब तम शरर-वचार सनो सतयपरष का नाम सबस नयारा और शरर स अलग ह कयक वह आदपरष कमशः सथल सम कारण महाकारण तथा कवलय शरर स अलग ह इसलय उसका नाम भी अलग ह ह पहला मलाधारचकर गदासथान ह यहा चारदल का कमल ह इसका दवता गणश ह यहा सोलह सौ अजपा जाप ह मलाधार क ऊपर सवाधषठानचकर ह यह छहदल का कमल ह यहा बरहमा सावतरी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह आठदल (प) का कमल नाभसथान पर ह यह वषण लमी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह

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इसक ऊपर हरदय सथान पर बारह दल का कमल ह यह शव पावरती का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह वशदधचकर का सथान कठ (गला) ह यह सोलह दल का कमल ह इसम सरसवती का सथान ह इसक लय एक हजार अजपा जाप ह भवरगफ़ा दो-दल का कमल ह वहा मनराजा का थाना (चौक - मकत होत जीव को भरमान क लय) ह इसक लय भी एक हजार अजपा जाप ह इस कमल क ऊपर शनयसथान ह वहा होती झलमल-जयोत को कालनरजन जानो सबस ऊपर lsquoसरतकमलrsquo म सदगर का वास ह वहा अननत अजपा जाप ह धमरदास सबस नीच मलाधारचकर स ऊपर तक इककस हजार छह सौ सवास दन-रात चलती ह (सामानय सवास लन और छोङन म चार सक ड का समय लगता ह इस हसाब स चौबीस घट म इककस हजार छह सौ सवास दन-रात आती जाती ह) अब शरर क बार म जानो पाच-ततव स बना य (घङा घट) कमभरपी शरर ह तथा शरर म सात धातय रकत मास मद मजजा रस शकर और अिसथ ह इनम रस बना खन सार शरर म दौङता हआ शरर का पोषण करता ह जस परथवी पर असखय पङ-पौध ह वस ह परथवीरपी इस शरर पर करोङ रोम (रय) होत ह इस शरर क सरचना म बहर कोठ ह जहा बहर हजार नाङय क गाठ बधी हयी ह इस तरह शरर म धमनी और शरापरधान नाङया ह बहर नाङय म नौ पहखा गधार कह वारणी गणशनी पयिसवनी हिसतनी अलवषा शखनी ह इन नौ म भी इङा पगला सषमना य तीन परधान ह इन तीन नाङय म भी सषमना खास ह इस नाङ क दवारा ह योगी सतययातरा करत ह नीच मलाधारचकर स लकर ऊपर बरहमरधर तक िजतन भी कमलदल चकर आत ह उनस शबद उठता ह और उनका गण परकट करता ह तब वहा स फ़र उठकर वह शबद शनय म समा जाता ह आत का इककस हाथ होन का परमाण ह और आमाशय सवा हाथ अनमान ह नभतर का सवा हाथ परमाण ह और इसम सात खङक दो कान दो आख दो नाक छद एक मह ह इस तरह इस शरर म िसथत पराणवाय क रहसय को जो योगी जान लता ह और नरतर य योग करता ह परनत सदगर क भिकत क बना वह भी लख चौरासी म ह जाता ह हर तरह स ानयोग कमरयोग स शरषठ ह अतः इन वभनन योग क चककर म न पङ कर नाम क सहज भिकत स अपना उदधार कर और शरर म रहन वाल अतयनत बलवान शतर काम करोध मद लोभ आद को ान दवारा नषट करक जीवन मकत होकर रह धमरदास य सब कमरकाड मन क वयवहार ह अतः तम सदगर क मत स ान को समझो कालनरजन या मन शनय म जयोत दखाता ह िजस दखकर जीव उस ह ईशवर मानकर धोख म पङ जाता ह इस परकार य lsquoमनरपीrsquo कालनरजन अनक परकार क भरम उतपनन करता ह धमरदास योगसाधना म मसतक म पराण रोकन स जो जयोत उतपनन होती ह वह आकार-रहत नराकार मन ह ह मन म ह जीव को भरमान उनह पापकम म वषय म परवत करन क शिकत ह उसी शिकत स वह सब जीव को कचलता ह उसक यह शिकत तीन लोक म फ़ल हयी ह इस तरह मन दवारा भरमत यह मनषय खद को पहचान कर असखय-जनम स धोखा खा रहा ह और य भी नह सोच पाता क कालनरजन क कपट स िजन तचछ दवी-दवताओ क आग वह सर झकाता ह व सब उस (आतमा-मनषय) क ह आशरत ह धमरदास यह सब नरजन का जाल ह जो मनषय दवी- दवताओ को पजता हआ कलयाण क आशा करता ह परनत सतयनाम क बना यह यम क फ़ास कभी नह कटगी

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मन क कपट करामात

कबीर बोल - धमरदास िजस परकार कोई नट बदर को नाच नचाता ह और उस बधन म रखता हआ अनक दख दता ह इसी परकार य मनरपी कालनरजन जीव को नचाता ह और उस बहत दख दता ह यह मन जीव को भरमत कर पापकम म परवत करता ह तथा सासारक बधन म मजबती स बाधता ह मिकत उपदश क तरफ़ जात हय कसी जीव को दखकर मन उस रोक दता ह इसी परकार मनषय क कलयाणकार काय क इचछा होन पर भी यह मन रोक दता ह मन क इस चाल को कोई बरला परष ह जान पाता ह यद कह सतयपरष का ान हो रहा हो तो य मन जलन लगता ह और जीव को अपनी तरफ़ मोङकर वपरत बहा ल जाता ह इस शरर क भीतर और कोई नह ह कवल मन और जीव य दो ह रहत ह पाच-ततव और पाच-ततव क पचचीस परकतया सत रज तम य तीन गण और दस इिनदरया य सब मन-नरजन क ह चल ह सतयपरष का अश जीव आकर शरर म समाया ह और शरर म आकर जीव अपन घर क पहचान भल गया ह पाच-ततव पचचीस परकत तीन गण और मन-इिनदरय न मलकर जीव को घर लया ह जीव को इन सबका ान नह ह और अपना य भी पता नह क म कौन ह इस परकार स बना परचय क अवनाशी-जीव कालनरजन का दास बना हआ ह जीव अानवश खद को और इस बधन को नह जानता जस तोता लकङ क नलनी यतर म फ़सकर कद हो जाता ह यह िसथत मनषय क ह जस शर न अपनी परछा कए क जल म दखी और अपनी छाया को दसरा शर जानकर कद पङा और मर गया ठक ऐस ह जीव काल-माया का धोखा समझ नह पाता और बधन म फ़सा रहता ह जस काच क महल क पास गया का दपरण म अपना परतबमब दखकर भकता ह और अपनी ह आवाज और परतबमब स धोखा खाकर दसरा का समझकर उसक तरफ़ भागता ह ऐस ह कालनरजन न जीव को फ़सान क लय मायामोह का जाल बना रखा ह कालनरजन और उसक शाखाओ (कमरचार दवताओ आद न) न जो नाम रख ह व बनावट ह जो दखन-सनन म शदध मायारहत और महान लगत ह परबहम पराशिकत आद आद परनत सचचा और मोदायी कवल आदपरष का lsquoआदनामrsquo ह ह अतः धमरदास जीव इस काल क बनायी भलभलया म पङकर सतयपरष स बगाना हो गय और अपना भला-बरा भी नह वचार सकत िजतना भी पापकमर और मथया वषय आचरण ह य इसी मन-नरजन का ह ह यद जीव इस दषटमन नरजन को पहचान कर इसस अलग हो जाय तो निशचत ह जीव का कलयाण हो जाय यह मन मन और जीव क भननता तमह समझाई जो जीव सावधान सचत होकर ानदिषट स मन को दखगा समझगा तो वह कालनरजन क धोख म नह आयगा जस जबतक घर का मालक सोता रहता ह तबतक चोर उसक घर म सध लगाकर चोर करन क कोशश करत रहत ह और उसका धन लट ल जात ह ऐस ह जबतक शरररपी घर का सवामी य जीव अानवश मन क चाल क परत सावधान नह रहता तबतक मनरपी चोर उसका भिकत और ानरपी धन चराता रहता ह और जीव को नीचकम क ओर पररत करता रहता ह परनत जब जीव इसक चाल को समझकर सावधान हो जाता ह तब इसक नह चलती जो जीव मन को जानन लगता ह उसक जागरतकला (योगिसथत) अनपम होती ह जीव क लय अान अधकार बहत भयकर अधकप क समान ह इसलय य मन ह भयकर काल ह जो जीव को बहाल करता ह सतरी-परष मन दवारा ह एक-दसर क परत आकषरत होत ह और मन उमङन स ह शरर म कामदव जीव को

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बहत सताता ह इस परकार सतरी-परष वषयभोग म आसकत हो जात ह इस वषयभोग का आननदरस कामइनदर और मन न लया और उसका पाप जीव क ऊपर लगा दया इस परकार पापकमर और सब अनाचार करान वाला य मन होता ह और उसक फ़लसवरप अनक नकर आद कठोर दड जीव भोगता ह दसर क नदा करना दसर का धन हङपना यह सब मन क फ़ासी ह सनत स वर मानना गर क ननदा करना यह सब मन-बदध का कमर कालजाल ह िजसम भोलाजीव फ़स जाता ह परसतरी-परष स कभी वयभचार न कर अपन मन पर सयम रख यह मन तो अधा ह वषय वषरपी कम को बोता ह और परतयक इनदर को उसक वषय म परवत करता ह मन जीव को उमग दकर मनषय स तरह तरह क जीवहतया कराता ह और फ़र जीव स नकर भगतवाता ह यह मन जीव को अनकानक कामनाओ क पत र का लालच दकर तीथर वरत तचछ दवी-दवताओ क जङ-मतरय क सवा-पजा म लगाकर धोख म डालता ह लोग को दवारकापर म यह मन दाग (छाप) लगवाता ह मिकत आद क झठ आशा दकर मन ह जीव को दाग दकर बगाङता ह अपन पणयकमर स यद कसी का राजा का जनम होता ह तो पणयफ़ल भोग लन पर वह नकर भगतता ह और राजा जीवन म वषयवकार होन स नकर भगतन क बाद फ़र उसका साड का जनम होता ह और वह बहत गाय का पत होता ह पाप-पणय दो अलग-अलग परकार क कमर होत ह उनम पाप स नकर और पणय स सवगर परापत होता ह पणयकमर ीण हो जान स फ़र नकर भगतना होता ह ऐसा वधान ह अतः कामनावश कय गय पणय का यह कमरयोग भी मन का जाल ह नषकाम भिकत ह सवरशरषठ ह िजसस जीव का सब दख-दवद मट जाता ह धमरदास इस मन क कपट-करामात कहा तक कह बरहमा वषण महश तीन परधान दवता शषनाग तथा ततीस करोङ दवता सब इसक फ़द म फ़स और हार कर रह मन को वश म न कर सक सदगर क बना कोई मन को वश म नह कर पाता सभी मन-माया क बनावट जाल म फ़स पङ ह

कपट कालनरजन का चरतर

कबीर बोल - धमरदास अब इस कपट कालनरजन का चरतर सनो कस परकार वह जीव क छलबदध कर अपन जाल म फ़साता ह इसन कषण अवतार धर कर गीता क कथा कह परनत अानी जीव इसक चाल रहसय को नह समझ पाता अजरन शरीकषण का सचचा सवक था और शरीकषण क भिकत म लगन लगाय रहता था शरीकषण न उस सब समान कहा सासारक वषय स लगाव और सासारक वषय स पर आतम मो सब कछ सनाया परनत बाद म काल अनसार उस मोमागर स हटाकर सासारक कमर-कतरवय म लगन को पररत कया िजसक परणामसवरप भयकर महाभारत यदध हआ शरीकषण न गीता क ान उपदश म पहल दया मा आद गण उपदश क बार म बताया और ान-वान कमरयोग आद कलयाण दन वाल उपदश का वणरन कया जबक अजरन सतयभिकत म लगन लगाय था तथा वह शरीकषण को बहत मानता था पहल शरीकषण न अजरन को मिकत क आशा द परनत बाद म उस नकर म डाल दया कलयाणदायक ानयोग का तयाग कराकर उस सासारक कमर-कतरवय क ओर घमा दया िजसस कमर क वश हय अजरन न बाद म बहत दख पाया मीठा अमत दखाकर उसका लालच दकर धोख स वष समान दख द दया

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इस परकार काल जीव को बहला-फ़सला कर सनत क छव बगाङता ह और उनह मिकत स दर रखता ह जीव म सनत क परत अवशवास और सदह उतपनन करता ह इस कालनरजन क छलबदध कहा-कहा तक गनाऊ उस कोई कोई ववक सनत ह पहचानता ह जब कोई ानमागर म पकका रहता ह तभी उस सतयमागर सझता ह तब वह यम क छल-कपट को समझता ह और उस पहचानता हआ उसस अलग हो जाता ह सदगर क शरण म जान पर यम का नाश हो जाता ह तथा अटल अय-सख परापत होता ह

सतयपथ क डोर

धमरदास बोल - परभ इस कालनरजन का चरतर मन समझ लया अब आप lsquoसतयपथ क डोरrsquo कहो िजसको पकङ कर जीव यमनरजन स अलग हो जाता ह कबीर बोल - धमरदास म तमको सतयपरष क डोर क पहचान कराता ह सतयपरष क शिकत को जब यह जीव जान लता ह तब काल कसाई उसका रासता नह रोक पाता सतयपरष क शिकत उनक एक ह नाल स उतपनन सोलह सत ह उन शिकतय क साथ ह जीव सतयलोक को जाता ह बना शिकत क पथ नह चल सकता शिकतहन जीव तो भवसागर म ह उलझा रहता ह य शिकतया सदगण क रप म बतायी गयी ह ान ववक सतय सतोष परमभाव धीरज मौन दया मा शील नहकमर तयाग वरागय शात नजधमर दसर का दख दर करन क लय ह तो करणा क जाती ह परनत अपन आप भी करणा करक अपन जीव का उदधार कर और सबको मतर समान समझ कर अपन मन म धारण कर इन शिकतसवरप सदगण को ह धारण कर जीव सतयलोक म वशराम पाता ह अतः मनषय िजस भी सथान पर रह अचछ तरह स समझ-बझ कर सतयरासत पर चल और मोह ममता काम करोध आद दगरण पर नयतरण रख इस तरह इस डोर क साथ जो सतयनाम को पकङता ह वह जीव सतयलोक जाता ह धमरदास बोल - परभ आप मझ पथ का वणरन करो और पथ क अतगरत वरिकत और गरहसथ क रहनी पर भी परकाश डालो कौन सी रहनी स वरागी वरागय कर और कौन सी रहनी स गरहसथ आपको परापत कर कबीर साहब बोल - धमरदास अब म वरागी क लय आचरण बताता ह वह पहल अभय पदाथर मास मदरा आद का तयाग कर तभी हस कहायगा वरागीसनत सतयपरष क अननयभिकत अपन हरदय म धारण कर कसी स भी दवष और वर न कर ऐस पापकम क तरफ़ दख भी नह सब जीव क परत हरदय म दयाभाव रख मन-वचन कमर स भी कसी जीव को न मार सतयान का उपदश और नाम ल जो मिकत क नशानी ह िजसस पापकमर अान तथा अहकार का समल नाश हो जायगा वरागी बरहमचयर वरत का पणररप स पालन कर कामभावना क दिषट स सतरी को सपशर न कर तथा वीयर को नषट न कर काम करोध आद वषय और छल-कपट को हरदय स पणरतया धो द और एकमन एकच होकर नाम का समरण कर धमरदास अब गरहसथ क भिकत सनो िजसको धारण करन स गरहसथ कालफ़ास म नह पङगा वह कागदशा (कौवा सवभाव) पापकमर दगरण और नीच सवभाव स पर तरह दर रह और हरदय म सभी जीव क परत दयाभाव बनाय

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रख मछल कसी भी पश का मास अड न खाय और न ह शराब पय इनको खाना-पीना तो दर इनक पास भी न जाय कयक य सब अभय-पदाथर ह वनसपत अकर स उतपनन अनाज फ़ल शाक सबजी आद का आहार कर सदगर स नाम ल जो मिकत क पहचान ह तब काल कसाई उसको रोक नह पाता ह जो गरहसथ जीव ऐसा नह करता वह कह भी नह बचता वह घोर दख क अिगनकनड म जल-जल कर नाचता ह और पागल हआ सा इधर-उधर को भटकता ह ह उस अनकानक कषट होत ह और वह जनम-जनम बारबार कठोर नकर म जाता ह वह करोङ जनम जहरल साप क पाता ह तथा अपनी ह वष जवाला का दख सहता हआ य ह जनम गवाता ह वह वषठा (मल टटट) म कङा कट का शरर पाता ह और इस परकार चौरासी क योनय क करोङ जनम तक नकर म पङा रहता ह और तमस जीव क घोर दख को कया कह मनषय चाह करोङ योग आराधना कर कनत बना सदगर क जीव को हान ह होती ह सदगर मन बदध पहच क पर का अगमान दन वाल ह िजसक जानकार वद भी नह बता सकत वद इसका-उसका यानी कमरयोग उपासना और बरहम का ह वणरन करता ह वद सतयपरष का भद नह जानता अतः करोङ म कोई ऐसा ववक सत होता ह जो मर वाणी को पहचान कर गरहण करता ह कालनरजन न खानी वाणी क बधन म सबको फ़साया हआ ह मदबदध अलप जीव उस चाल को नह पहचानता और अपन घर आननदधाम सतयलोक नह पहच पाता तथा जनम-मरण और नकर क भयानक कषट म ह फ़सा रहता ह

कौआ और कोयल स भी सीखो

कबीर बोल - धमरदास कोयल क बचच का सवभाव सनो और उसक गण को जानकर वचार करो कोयल मन स चतर तथा मीठ वाणी बोलन वाल होती ह जबक उसका वर कौवा पाप क खान होता ह कोयल कौव क घर (घसल) म अपना अणडा रख दती ह वपरत गण वाल दषट मतर कौव क परत कोयल न अपना मन एक समान कया तब सखा मतर सहायक समझ कर कौव न उस अणड को पाला और वह कालबदध कागा (कौवा) उस अणड क रा करता रहा समय क साथ कोयल का अणडा बङकर पकका हआ और समय आन पर फ़ट गया तब उसस बचचा नकला कछ दन बीत जान पर कोयल क बचच क आख ठक स खल गयी और वह समझदार होकर जानन समझन लगा फ़र कछ ह दन म उसक पख भी मजबत हो गय तब कोयल समय-समय पर आ आकर उसको शबद सनान लगी अपना नजशबद सनत ह कोयल का बचचा जाग गया यानी सचत हो गया और सच का बोध होत ह उस अपन वासतवक कल का वचन वाणी पयार लगी फ़र जब भी कागा कोयल क बचच को दाना खलान घमान ल जाय तब-तब कोयल अपन उस बचच को वह मीठा मनोहर शबद सनाय कोयल क बचच म जब उस शबद दवारा अपना अश अकरत हआ यानी उस अपनी असलपहचान का बोध हआ तो उस बचच का हरदय कौव क ओर स हट गया और एक दन कौव को अगठा दखा कर वह कोयल का बचचा उसस पराया होकर उङ चला कोयल का बचचा अपनी वाणी बोलता हआ चला और तब घबरा कर उसक पीछ-पीछ कागा वयाकल बहाल होकर

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दौङा उसक पीछ-पीछ भागता हआ कागा थक गया परनत उस नह पा सका फ़र वह बहोश हो गया और बाद म होश आन पर नराश होकर अपन घर लौट आया कोयल का बचचा जाकर अपन परवार स मलकर सखी हो गया और नराश कागा झक मारकर रह गया धमरदास िजस परकार कोयल का बचचा होता ह क वह कौव क पास रहकर भी अपना शबद सनत ह उसका साथ छोङकर अपन परवार स मल जाता ह इसी वध स जब कोई भी समझदार जीव मनषय अपन नजनाम और नजआतमा क पहचान क लय सचत हो जाता ह तो वह मझ (सदगर) स सवय ह मल जाता ह और अपन असल घर-परवार सतयलोक म पहच जाता ह तब म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कोयलसत जस शरा होई यहवध धाय मल मोह कोई नजघर सरत कर जो हसा तार ताह एकोर वशा धमरदास इसी तरह कोयल क बचच क भात कोई शरवीर मनषय कालनरजन क असलयत को जानकर सदगर क परत शबद (नामउपदश) क लय मर तरफ़ दौङता ह और नजघर सतयलोक क तरफ़ अपनी सरत (पर एकागरता) रखता ह म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कबीर बोल - धमरदास कौव क नीच चालचलन नीचबदध को छोङकर हस क रहनी सतयआचरण सदगण परम शील सवभाव शभकायर जस उम लण को अपनान स मनषय जीव सतयलोक जाता ह िजस परकार कागा क ककर श वाणी काव-काव कसी को अचछ नह लगती परनत कोयल क मधर वाणी कहकह सबक मन को भाती ह इसी परकार कोयल क तरह हसजीव वचारपवरक उमवाणी बोल जो कोई अिगन क तरह जलता हआ करोध म भरकर भी सामन आय तो हसजीव को शीतल जल क समान उसक तपन बझानी चाहय ान-अान क यह सह पहचान ह जो अानी होता ह वह कपट उगर तथा दषटबध वाला होता ह गर का ानी शषय शीतल और परमभाव स पणर होता ह उसम सतय ववक सतोष आद सदगण समाय होत ह ानी वह ह जो झठ पाप अनाचार दषटता कपट आद दगरण स यकत दषटबदध को नषट कर द और कालनरजन रपी मन को पहचान कर उस भला द उसक कहन म न आय जो ानी होकर कटवाणी बोलता ह वह ानी अान ह बताता ह उस अानी ह समझना चाहय जो मनषय शरवीर क तरह धोती खस कर मदान म लङन क लय तयार होता ह और यदधभम म आमन सामन जाकर मरता ह तब उसका बहत यश होता ह और वह सचचावीर कहलाता ह इसी परकार जीवन म अान स उतपनन समसत पाप दगरण और बराईय को परासत करक जो ानवान उतपनन होता ह उसी को ान कहत ह मखर अानी क हरदय म शभ सतकमर नह सझता और वह सदगर का सारशबद और सदगर क महतव को नह समझता मखर इसान स अधकतर कोई कछ कहता नह ह यद कसी नतरहन का पर यद वषठा (मल) पर पङ जाय तो उसक हसी कोई नह करता लकन यद आख होत हय भी कसी का पर वषठा स सन जाय तो सभी लोग उसको ह दोष दत ह धमरदास यह ान और अान ह ान और अान वपरत सवभाव वाल ह होत ह अतः ानीपरष हमशा सदगर का धयान कर और सदगर क सतयशबद को समझ सबक अनदर सदगर का वास ह पर वह कह गपत तो कह परकट ह इसलय सबको अपना मानकर जसा म अवनाशी आतमा ह वस ह सभी जीवातमाओ को समझ और ऐसा समझ कर समान भाव स सबस नमन कर और ऐसी गरभिकत क नशानी

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लकर रह रग कचचा होन क कारण इस दह को कभी भी नाशवान होन वाल जानकर भकत परहलाद क तरह अपन सतयसकलप म दढ़ मजबत होकर रह यदयप उसक पता हरणयकशयप न उसको बहत कषट दय लकन फ़र भी परहलाद न अडग होकर हरगण वाल परभभिकत को ह सवीकार कया ऐसी ह परहलाद कसी पककभिकत करता हआ सदगर स लगन लगाय रह और चौरासी म डालन वाल मोहमाया को तयाग कर भिकतसाधना कर तब वह अनमोल हआ हसजीव अमरलोक म नवास पाता ह और अटल होकर िसथर होकर जनम-मरण क आवागमन स मकत हो जाता ह

परमाथर क उपदश

कबीर साहब बोल - धमरदास अब म तमस परमाथर वणरन करता ह ान को परापत हआ ान क शरणागत हआ कोई जीव समसत अान और कालजाल को छोङ तथा लगन लगाकर सतयनाम का समरन कर असतय को छोङकर सतय क चाल चल और मन लगाकर परमाथर मागर को अपनाय धमरदास एक गाय को परमाथर गण क खान जानो गाय क चाल और गण को समझो गाय खत बाग आद म घास चरती ह जल पीती ह और अनत म दध दती ह उसक दध घी स दवता और मनषय दोन ह तपत होत ह गाय क बचच दसर का पालन करन वाल होत ह उसका गोबर भी मनषय क बहत काम आता ह परनत पापकमर करन वाला मनषय अपना जनम य ह गवाता ह बाद म आय पर होन पर गाय का शरर नषट हो जाता ह तब रास क समान मनषय उसका शरर का मास लकर खात ह मरन पर भी उसक शरर का चमढ़ा मनषय क लय बहत सख दन वाला होता ह भाई जनम स लकर मतय तक गाय क शरर म इतन गण होत ह इसलय गाय क समान गण वाला होन का यह वाणी उपदश सजजन परष गहण कर तो कालनरजन जीव क कभी हान नह कर सकता मनषयशरर पाकर िजसक बदध ऐसी शदध हो और उस सदगर मल तो वह हमशा को अमर हो जाय धमरदास परमाथर क वाणी परमाथर क उपदश सनन स कभी हान नह होती इसलय सजजन परमाथर का सहारा आधार लकर भवसागर स पार हो दलरभ मनषयजीवन क रहत मनषय सारशबद क उपदश का परचय और ान परापत कर फ़र परमाथर पद को परापत हो तो वह सतयलोक को जाय अहकार को मटा द और नषकाम-सवा क भावना हरदय म लाय जो अपन कल बल धन ान आद का अहकार रखता ह वह सदा दख ह पाता ह यह मनषय ऐसा चतर बदधमान बनता ह क सदगण और शभकमर होन पर कहता ह क मन ऐसा कया ह और उसका परा शरय अपन ऊपर लता ह और अवगण दवारा उलटा वपरत परणाम हो जान पर कहता ह क भगवान न ऐसा कर दया यह नर अस चातर बधमाना गण शभकमर कह हम ठाना ऊचकरया आपन सर लनहा औगण को बोल हर कनहा तब ऐसा सोचन स उसक शभकम का नाश हो जाता ह धमरदास सब आशाओ को छोङकर तम नराश (उदास

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वरकत वरागी भाव) भाव जीवन म अपनाओ और कवल एक सतयनाम कमाई क ह आशा करो और अपन कय शभकमर को कसी को बताओ नह सभी दवी-दवताओ भगवान स ऊचा सवपर गरपद ह उसम सदा लगन लगाय रहो जस जल म अभननरप स मछल घमती ह वस ह सदगर क शरीचरण म मगन रह सदगर दवारा दय शबदनाम म सदा मन लगाता हआ उसका समरन कर जस मछल कभी जल को नह भलती और उसस दर होकर तङपन लगती ह ऐस ह चतरशषय गर स उपदश कर उनह भल नह सतयपरष क सतयनाम का परभाव ऐसा ह क हसजीव फ़र स ससार म नह आता तम कछए क बचच क कला गण समझो कछवी जल स बाहर आकर रत मटट म गढढा खोदकर अणड दती ह और अणड को मटट स ढककर फ़र पानी म चल जाती ह परनत पानी म रहत हय भी कछवी का धयान नरनतर अणड क ओर ह लगा रहता ह वह धयान स ह अणड को सती ह समय परा होन पर अणड पषट होत ह और उनम स बचच बाहर नकल आत ह तब उनक मा कछवी उन बचच को लन पानी स बाहर नह आती बचच सवय चलकर पानी म चल जात ह और अपन परवार स मल जात ह धमरदास जस कछय क बचच अपन सवभाव स अपन परवार स जाकर मल जात ह वस ह मर हसजीव अपन नजसवभाव स अपन घर सतयलोक क तरफ़ दौङ उनको सतयलोक जात दखकर कालनरजन क यमदत बलहन हो जायग तथा व उनक पास नह जायग व हसजीव नभरय नडर होकर गरजत और परसनन होत हय नाम का समरन करत हय आननदपवरक अपन घर जात ह और यमदत नराश होकर झक मारकर रह जात ह सतयलोक आननद का धाम अनमोल और अनपम ह वहा जाकर हस परमसख भोगत ह हस स हस मलकर आपस म करङा करत ह और सतयपरष का दशरन पात ह जस भवरा कमल पर बसता ह वस ह अपन मन को सदगर क शरीचरण म बसाओ तब सदा अचल सतयलोक मलता ह अवनाशी शबद और सरत का मल करो यह बद और सागर क मलन क खल जसा ह इसी परकार जीव सतयनाम स मलकर उसी जसा सतयसवरप हो जाता ह

अनलपी का रहसय

कबीर साहब बोल - गर क महान कपा स मनषय साध कहलाता ह ससार स वरकत मनषय क लय गरकपा स बढ़कर कछ भी नह ह फ़र ऐसा साध अनलपी क समान होकर सतयलोक को जाता ह धमरदास तम अनलपी क रहसय उपदश को सनो अनलपी नरनतर आकाश म ह वचरण करता रहता ह और उसका अणड स उतपनन बचचा भी सवतः जनम लकर वापस अपन घर को लौट जाता ह परथवी पर बलकल नह उतरता अनलपी जो सदव आकाश म ह रहता ह और कवल दन-रात पवन यानी हवा क ह आशा करता ह अनलपी क रतकरया या मथन कवल दिषट स होता ह यानी व जब एक-दसर स मलत ह तो परमपवरक एक दसर को रतभावना क गहनदिषट स दखत ह उनक इस रतकरया वध स मादापी को गभर ठहर जाता ह फ़र कछ समय बाद मादा अनलपी अणडा दती ह पर उनक नरनतर उङन क कारण अणडा ठहरन का कोई आधार तो होता नह वहा तो बस कवल नराधार शनय ह शनय ह तब आधारहन होन क कारण अणडा धरती क ओर गरन लगता ह और नीच रासत म आत-आत ह पर तरह पककर तयार हो जाता ह और रासत म ह अणडा फ़टकर शश बाहर नकल आता ह और नीच गरत-गरत ह रासत म अनलपी आख खोल लता ह तथा

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कछ ह दर म उसक पख उङन लायक हो जात ह नीच गरत हय जब वह परथवी क नकट आता ह तब उस सवतः पता लग जाता ह क यह परथवी मर रहन का सथान नह ह तब वह अनलपी अपनी सरत क सहार वापस अतर क ओर लौटन लगता ह जहा उसक माता-पता का नवास ह अनलपी कभी अपन बचच को लन परथवी क ओर नह आत बिलक बचचा सवय ह पहचान लता ह क यह परथवी मरा घर नह ह और वापस पलटकर अपन असलघर क ओर चला जाता ह धमरदास ससार म बहत स पी रहत ह परनत व अनल पी क समान गणवान नह होत ऐस ह कछ ह बरल जीव ह जो सदगर क ानअमत को पहचानत ह नधरनया सब ससार ह धनवनता नह कोय धनवनता ताह कहो जा त नाम रतन धन होय धमरदास इसी अनलपी क तरह जो जीव ानयकत होकर होश म आ जाता ह तो वह इस काल कलपनालोक को पार करक सतयलोक मिकतधाम म चला जाता ह जो मनषय जीव इस ससार क सभी आधार को तयाग कर एक सदगर का आधार और उनक नाम स वशवासपवरक लगन लगाय रहता ह और सब परकार का अभमान तयाग कर रात-दन गरचरण क अधीन रहता हआ दासभाव स उनक सवा म लगा रहता ह तथा धन घर और परवार आद का मोह नह करता पतर सतरी तथा समसत वषय को ससार का ह समबनध मानकर गरचरण को हरदय स पकङ रहता ह ताक चाहकर भी अलग न हो इस परकार जो मनषय साध सत गरभिकत क आचरण म लन रहता ह सदगर क कपा स उसक जनम-मरण रपी अतयनत दखदायी कषट का नाश हो जाता ह और वह साध सतयलोक को परापत होता ह साधक या भकतमनषय मन-वचन कमर स पवतर होकर सदगर का धयान कर और सदगर क आानसार सावधान होकर चल तब सदगर उस इस जङदह स पर नामवदह जो शाशवतसतय ह उसका साातकार करा क सहजमिकत परदान करत ह

धमरदास यह कठन कहानी

कबीर साहब बोल - सतयान बल स सदगर काल पर वजय परापत कर अपनी शरण म आय हसजीव को सतयलोक ल जात ह जहा हसजीव मनषय सतयपरष क दशरन पाता ह और अतआननद परापत करता ह फ़र वह वहा स लौटकर कभी भी इस कषटदायक दखदायी ससार म वापस नह आता यानी उसका मो हो जाता ह धमरदास मर वचन उपदश को भल परकार स गरहण करो िजास इसान को सतयलोक जान क लय सतय क मागर पर ह चलना चाहय जस शरवीर योदधा एक बार यदध क मदान म घसकर पीछ मढ़कर नह दखता बिलक नभरय होकर आग बढ़ जाता ह ठक वस ह कलयाण क इचछा रखन वाल िजास साधक को भी सतय क राह पर चलन क बाद पीछ नह हटना चाहय अपन पत क साथ सती होन वाल नार और यदधभम म सर कटान वाल वीर क महान आदशर को

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दख-समझ कर िजस परकार मनषय दया सतोष धयर मा वराग ववक आद सदगण को गरहण कर अपन जीवन म आग बढ़त ह उसी अनसार दढ़सकलप क साथ सतय सनतमत सवीकार करक जीवन क राह म आग बढ़ना चाहय जीवत रहत हय भी मतकभाव अथारत मान अपमान हान लाभ मोहमाया स रहत होकर सतयगर क बताय सतयान स इस घोर काल कषट पीङा का नवारण करना चाहय धमरदास लाख-करोङ म कोई एक बरला मनषय ह ऐसा होता ह जो सती शरवीर और सनत क बताय हय उदाहरण क अनसार आचरण करता ह और तब उस परमातमा क दशरन साातकार परापत होता ह धमरदास बोल - साहब मझ मतकभाव कया होता ह इस पणररप स सपषट बतान क कपा कर कबीर बोल - धमरदास जीवत रहत हय जीवन म मतकदशा क कहानी बहत ह कठन ह इस सदगर क सतयान स कोई बरला ह जान सकता ह सदगर क उपदश स ह यह जाना जाता ह धमरदास यह कठन कहानी गरमत त कोई बरल जानी जीवन म मतकभाव को परापत हआ सचचा मनषय अपन परमलय मो को ह खोजता ह वह सदगर क शबदवचार को अचछ तरह स परापत करक उनक दवारा बताय सतयमागर का अनसरण करता ह उदाहरणसवरप जस भरगी (पखवाला चीटा जो दवाल खङक आद पर मटट का घर बनाता ह) कसी मामल स कट क पास जाकर उस अपना तज शबद घघघ सनाता ह तब वह कट उसक गरान रपी शबदउपदश को गरहण करता ह गजार करता हआ भरगी अपन ह तज शबद सवर क गजार सना-सनाकर कट को परथवी पर डाल दता ह और जो कट उस भरगीशबद को धारण कर तब भरगी उस अपन घर ल जाता ह तथा गजार-गजार कर उस अपना lsquoसवात शबदrsquo सनाकर उसक शरर को अपन समान बना लता ह भरगी क महान शबदरपी सवर-गजार को यद कट अचछ तरह स सवीकार कर ल तो वह मामल कट स भरगी क समान शिकतशाल हो जाता ह फ़र दोन म कोई अतर नह रहता समान हो जाता ह असखय झीगर कट म स कोई-कोई बरला कट ह उपयकत और अनकल सख परदान करान वाला होता ह जो भरगी क lsquoपरथमशबदrsquo गजार को हरदय स सवीकारता ह अनयथा कोई दसर और तीसर शबद को ह शबद सवर मान कर सवीकार कर लता ह तन-मन स रहत भरगी क उस महान शबदरपी गजार को सवीकार करन म ह झीगरकट अपना भला मानत ह भरगी क शबद सवर-गजार को जो कट सवीकार नह करता तो फ़र वह कटयोन क आशरय म ह पङा रहता ह यानी वह मामल कट स शिकतशाल भरगी नह बन सकता धमरदास यह मामल कट का भरगी म बदलन का अदभत रहसय ह जो क महान शा परदान करन वाला ह इसी परकार जङबदध शषय जो सदगर क उपदश को हरदय स सवीकार करक गरहण करता ह उसस वह वषयवकार स मकत होकर अानरपी बधन स मकत होकर कलयाणदायी मो को परापत होता ह धमरदास भरगीभाव का महतव और शरषठता को जानो भरगी क तरह यद कोई मनषय नशचयपणर बदध स गर क उपदश को सवीकार कर तो गर उस अपन समान ह बना लत ह िजसक हरदय म गर क अलावा दसरा कोई भाव नह होता और वह सदगर को समपरत होता ह वह मो को परापत होता ह इस तरह वह नीचयोन म बसन वाल कौव स बदलकर उमयोन को परापत हो हस कहलाता ह

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साध का मागर बहत कठन ह

कबीर साहब बोल - इस मनषय को कौव क चाल सवभाव (जो साधारण मनषय क होती ह) आद दगरण को तयागकर हस सवभाव को अपनाना चाहय सदगर क शबदउपदश को गरहण कर मन-वचन वाणी कमर स सदाचार आद सदगण स हस क समान होना चाहय धमरदास जीवत रहत हय यह मतकसवभाव का अनपमान तम धयान स सनो इस गरहण करक ह कोई बरला मनषय जीव ह परमातमा क कपा को परापत कर साधनामागर पर चल सकता ह तम मझस उस मतकभाव का गहन रहसय सनो शषय मतकभाव होकर सतयान का उपदश करन वाल सदगर क शरीचरण क पर भाव स सवा कर मतकभाव को परापत होन वाला कलयाण क इचछा रखन वाला िजास अपन हरदय म मा दया परम आद गण को अचछ परकार स गरहण कर और जीवन म इन गण क वरत नयम का नवारह करत हय सवय को ससार क इस आवागमन क चकर स मकत कर जस परथवी को तोङा खोदा जान पर भी वह वचलत नह होती करोधत नह होती बिलक और अधक फ़ल फ़ल अनन आद परदान करती ह अपन-अपन सवभाव क अनसार कोई मनषय चनदन क समान परथवी पर फ़ल फ़लवार आद लगाता हआ सनदर बनाता ह तो कोई वषठा मल आद डालकर गनदा करता ह कोई-कोई उस पर कष खती आद करन क लय जताई-खदाई आद करता ह लकन परथवी उसस कभी वचलत न होकर शातभाव स सभी दख सहन करती हयी सभी क गण-अवगण को समान मानती ह और इस तरह क कषट को और अचछा मानत हय अचछ फ़सल आद दती ह धमरदास अब और भी मतकभाव सनो य अतयनत दरह कठन बात ह मतकभाव म िसथत सत गनन क भात होता ह जस कसान गनन को पहल काट छाटकर खत म बोकर उगाता ह फ़र नय सर स पदा हआ गनना कसान क हाथ म पङकर पोर-पोर स छलकर सवय को कटवाता ह ऐस ह मतकभाव का सत सभी दख सहन करता ह फ़र वह कटा-छला हआ गनना अपन आपको कोलह म परवाता ह िजसम वह पर तरह स कचल दया जाता ह और फ़र उसम स सारा रस नकल जान क बाद उसका शष भाग खो बन जाता ह फ़र आप (जल) सवरप उस रस को कङाह म उबाला जाता ह उसक अपन शरर क रस को आग पर तपान स गङ बनता ह और फ़र उस और अधक आच दकर तपा-तपाकर रगङ-रगङ कर खाड बनायी जाती ह खाड बन जान पर फ़र स उसम ताप दया जाता ह और फ़र तब उसम स जो दाना बनता ह उस चीनी कहत ह चीनी हो जान पर फ़र स उस तपाकर कषट दकर मशरी बनात ह धमरदास मशरी स पककर lsquoकदrsquo कहलाया तो सबक मन को अचछा लगा इस वध स गनन क भात जो शषय गर क आा अनसार आचरण वयवहार करता हआ सभी परकार क कषट-दख सहन करता ह वह सदगर क कपा स सहज ह भवसागर को पार कर लता ह धमरदास जीवत रहत हय मतकभाव अपनाना बहद कठन ह इस लाख-करोङ म कोई सरमा सत ह अपना पाता ह जबक इस सनकर ह सासारक वषयवकार म डबा कायर वयिकत तो भय क मार तन-मन स जलन लगता

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ह सवीकारना अपनाना तो बहत दर क बात ह वह डर क मार भागा हआ इस ओर (भिकत क तरफ़) मङकर भी नह दखता जस गनना सभी परकार क दख सहन करता ह ठक ऐस ह शरण म आया हआ शषय गर क कसौट पर दख सहन करता हआ सबको सवार और सदा सबको सख परदान करन वाल सवरहत क कायर कर वह मतकभाव को परापत गर क ानभद को जानन वाला ममर साधक शषय नशचय ह सतयलोक को जाता ह वह साध सासारक कलश और नज मन-इिनदरय क वषयवकार को समापत कर दता ह ऐसी उम वरागय िसथत को परापत अवचल साध स सामानय मनषय तो कया दवता तक अपन कलयाण क आशा करत ह धमरदास साध का मागर बहत ह कठन ह जो साधता क उम सतयता पवतरता नषकाम भाव म िसथत होकर साधना करता ह वह सचचा साध ह वह सचच अथ म साध ह जो अपनी पाच इिनदरय आख कान नाक जीभ कामदर को वश म रखता ह और सदगर दवारा दय सतयनाम अमत क दन-रात चखता ह

लटरा कामदव

कबीर साहब बोल - धमरदास साधना करत समय सबस पहल साध को च (आख) इिनदरय को साधना चाहय यानी आख पर नयतरण रख वह कसी वषय पर इधर-उधर न भटक उस भल परकार नयतरण म कर और गर क बताय ानमागर पर चलता हआ सदव उनक दवारा दया हआ नाम भावपणर होकर समरन कर पाच-ततव स बन इस शरर म ानइिनदरय आख का समबनध अिगनततव स ह आख का वषय रप ह उसस ह हम ससार को वभनन रप म दखत ह जसा रप आख को दखायी दता ह वसा ह भाव मन म उतपनन होता ह आख दवारा अचछा-बरा दोन दखन स राग-दवष भाव उतपनन होत ह इस मायारचत ससार म अनकानक वषय पदाथर ह िजनह दखत ह उनह परापत करन क तीवर इचछा स तन और मन वयाकल हो जात ह और जीव य नह जानता क य वषयपदाथर उसका पतन करन वाल ह इसलय एक सचच साध को आख पर नयतरण करना होता ह सनदर रप आख को दखन म अचछा लगता ह इसी कारण सनदर रप को आख क पजा कहा गया ह और जो दसरा रप करप ह वह दखन म अचछा नह लगता इसलय उस कोई नह दखना चाहता असल साध को चाहय क वह इस नाशवान शरर क रप-करप को एक ह करक मान और सथलदह क परत ऐस भाव स उठकर इसी शरर क अनदर जो शाशवत अवनाशी चतन आतमा ह उसक दशरन को ह सख मान जो ान दवारा lsquoवदहिसथतrsquo म परापत होता ह धमरदास कान इिनदरय का समबनध आकाशततव स ह और इसका वषय शबद सनना ह कान सदा ह अपन अनकल मधर शभशबद को ह सनना चाहत ह कान दवारा कठोर अपरय शबद सनन पर च करोध क आग म जलन लगता ह िजसस बहत अशात होकर बचनी होती ह सचच साध को चाहय क वह बोल-कबोल (अचछ-खराब वचन) दोन को समान रप स सहन कर सदगर क उपदश को धयान म रखत हय हरदय को शीतल और शात ह रख

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धमरदास अब नासका यानी नाक क वशीकरण क बार म भी सनो नाक का वषय गध होता ह इसका समबनध परथवीततव स ह अतः नाक को हमशा सगध क चाह रहती ह दगध इस बलकल अचछ नह लगती लकन कसी भी िसथरभाव साधक साध को चाहय क वह ततववचार करता हआ इस वश म रख यानी सगनध-दगरनध म समभाव रह अब िजभया यानी जीभ इिनदरय क बार म जानो जीभ का समबनध जलततव स ह और इसका वषय रस ह यह सदा वभनन परकार क अचछ-अचछ सवाद वाल वयजन को पाना चाहती ह इस ससार म छह रस मीठा कङवा खटटा नमकन चरपरा कसला ह जीभ सदा ऐस मधर सवाद क तलाश म रहती ह साध को चाहय क वह सवाद क परत भी समभाव रह और मधर अमधर सवाद क आसिकत म न पङ रख-सख भोजन को भी आननद स गहण कर जो कोई पचामत (दध दह शहद घी और मशरी स बना पदाथर) को भी खान को लकर आय तो उस दखकर मन म परसननता आद का वशष अनभव न कर और रख-सख भोजन क परत भी अरच न दखाय धमरदास वभनन परकार क सवाद लोलपता भी वयिकत क पतन का कारण बनती ह जीभ क सवाद क फ़र म पङा हआ वयिकत सहरप स भिकत नह कर पाता और अपना कलयाण नह कर पाता जबतक जीभ सवादरपी कए म लटक ह और तीण वषरपी वषय का पान कर रह ह तबतक हरदय म राग-दवष मोह आद बना ह रहगा और जीव सतयनाम का ान परापत नह कर पायगा धमरदास अब म पाचवी काम-इिनदरय यानी जननिनदरय क बार म समझाता ह इसका समबनध जलततव स ह िजसका कायर मतर वीयर का तयाग और मथन करना होता ह यह मथनरपी कटल वषयभोग क पापकमर म लगान वाल महान अपराधी इनदर ह जो अकसर इसान को घोर नरक म डलवाती ह इस इनदर क दवारा िजस दषटकाम क उतप होती ह उस दषट परबल कामदव को कोई बरला साध ह वश म कर पाता ह कामवासना म परवत करन वाल कामनी का मोहनीरप भयकर काल क खान ह िजसका गरसत जीव ऐस ह मर जाता ह और कोई मोसाधन नह कर पाता अतः गर क उपदश स कामभावना का दमन करन क बजाय भिकत उपचार स शमन करना चाहय ------------------ (यहा बात सफ़र औरत क न होकर सतरी-परष म एक-दसर क परत होन वाल कामभावना क लय ह कयक मो और उदधार का अधकार सतरी-परष दोन को ह समान रप स ह अतः जहा कामनी-सतरी परष क कलयाण म बाधक ह वह कामीपरष भी सतरी क मो म बाधा समान ह ह कामवषय बहत ह कठन वकार ह और ससार क सभी सतरी-परष कह न कह कामभावना स गरसत रहत ह कामअिगन दह म उतपनन होन पर शरर का रोम-रोम जलन लगता ह कामभावना उतपनन होत ह वयिकत क मन बदध स नयतरण समापत हो जाता ह िजसक कारण वयिकत का शाररक मानसक और आधयाितमक पतन होता ह) धमरदास कामी करोधी लालची वयिकत कभी भिकत नह कर पात सचची भिकत तो कोई शरवीर सत ह करता ह जो जात वणर और कल क मयारदा को भी छोङ दता ह

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कामी करोधी लालची इनस भिकत न होय भिकत कर कोई सरमा जातवणर कल खोय काम जीवन क वासतवक लय मो क मागर म सबस बढ़ा शतर ह अतः इस वश म करना बहत आवशयक ह ह धमरदास इस कराल वकराल काम को वश म करन का अब उपाय भी सनो जब काम शरर म उमङता हो या कामभावना बहद परबल हो जाय तो उस समय बहत सावधानी स अपन आपको बचाना चाहय इसक लए सवय क वदहरप को या आतमसवरप को वचारत हय सरत (एकागरता) वहा लगाय और सोच क म य शरर नह ह बिलक म शदधचतनय आतमसवरप ह और सतयनाम तथा सदगर (यद ह) का धयान करत हय वषल कामरस को तयाग कर सतयनाम क अमतरस का पान करत हय इसक आननददायी अनभव को परापत कर काम शरर म ह उतपनन होता ह और मनषय अानवश सवय को शरर और मन जानता हआ ह इस भोगवलास म परवत होता ह जब वह जान लगा क वह पाच-ततव क बनी य नाशवान जङदह नह ह बिलक वदह अवनाशी शाशवत चतनय आतमा ह तब ऐसा जानत ह वह इस कामशतर स पर तरह स मकत ह हो जायगा मनषय शरर म उमङन वाला य कामवषय अतयनत बलवान और बहत भयकर कालरप महाकठोर और नदरयी ह इसन दवता मनषय रास ऋष मन य गधवर आद सभी को सताया हआ ह और करोङ जनम स उनको लटकर घोर पतन म डाला ह और कठोर नकर क यातनाओ म धकला ह इसन कसी को नह छोङा सबको लटा ह लकन जो सत साधक अपन हरदयरपी भवन म ानरपी दपक का पणयपरकाश कय रहता हो और सदगर क सारशबद उपदश का मनन करत हय सदा उसम मगन रहता हो उसस डरकर य कामदवरपी चोर भाग जाता ह जो वषया सतन तजी मढ़ ताह लपटात नर जय डार वमन कर शवान सवाद सो खात कबीर साहब न य दोहा नीचकाम क लय ह बोला ह इस कामरपी वष को िजस सत न एकदम तयागा ह मखर मनषय इस काम स उसी तरह लपट रहत ह जस मनषय दवारा कय गय वमन यानी उलट को का परम स खाता ह

आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह

कबीर साहब बोल - धमरदास जबतक दह स पर वदहनाम का धयान होन म नह आता तबतक जीव इस असार ससार म ह भटकता रहता ह वदहधयान और वदहनाम इन दोन को अचछ तरह स समझ लता ह तो उसक सभी सदह मट जात ह जबलग धयान वदह न आव तबलग िजव भव भटका खाव धयानवदह और नामवदहा दोउ लख पाव मट सदहा

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मनषय का पाच-ततव स बना यह शरर जङ परवतरनशील तथा नाशवान ह यह अनतय ह इस शरर का एक नाम-रप होता ह परनत वह सथायी नह रहता राम कषण ईसा लमी दगार शकर आद िजतन भी नाम इस ससार म बोल जात ह य सब शरर नाम ह वाणी क नाम ह लकन इसक वपरत इस जङ और नाशवान दह स पर उस अवनाशी चतनय शाशवत और नज आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम वदह ह और धवनरप ह वह सतय ह वह सवपर ह अतः मन स सतयनाम का समरन करो वहा दन-रात क िसथत तथा परथवी अिगन वाय आद पाच-ततव का सथान नह ह वहा धयान लगान स कसी भी योन क जनम-मरण का दख जीव को परापत नह होता वहा क सख आननद का वणरन नह कया जा सकता जस गग को सपना दखता ह वस ह जीवत जनम को दखो जीत जी इसी जनम म दखो धमरदास धयान करत हय जब साधक का धयान णभर क लय भी lsquoवदहrsquo परमातमा म लन हो जाता ह तो उस ण क महमा आननद का वणरन करना असभव ह ह भगवान आद क शरर क रप तथा नाम को याद करक सब पकारत ह परनत उस वदहसवरप क वदहनाम को कोई बरला ह जान पाता ह जो कोई चारो यग सतयग तरता दवापर कलयग म पवतर कह जान वाल काशी नगर म नवास कर नमषारणय बदरनाथ आद तीथ पर जाय और गया दवारका परयाग म सनान कर परनत सारशबद (नवारणी नाम) का रहसय जान बना वह जनम-मरण क दख और बहद कषटदायी यमपर म ह जायगा और वास करगा धमरदास चाह कोई अड़सठ तीथ मथरा काशी हरदवार रामशवर गगासागर आद म सनान कर ल चाह सार परथवी क परकमा कर ल परनत सारशबद का ान जान बना उसका भरम अान नह मट सकता धमरदास म कहा तक उस सारशबद क नाम क परभाव का वणरन कर जो उसका हसदा लकर नयम स उसका समरन करगा उसका मतय का भय सदा क लय समापत हो जायगा सभी नाम स अदभत सतयपरष का सारनाम सफ़र सदगर स ह परापत होता ह उस सारनाम क डोर पकङकर ह भकतसाधक सतयलोक को जाता ह उस सारनाम का धयान करन स सदगर का वह हसभकत पाच-ततव स पर परमततव म समा जाता ह अथारत वसा ह हो जाता ह

वदहसवरप सारशबद

कबीर साहब बोल - धमरदास मो परदान करन वाला सारशबद वदहसवरप वाला ह और उसका वह अनपमरप नःअर ह पाच-ततव और पचचीस परकत को मलाकर सभी शरर बन ह परनत सारशबद इन सबस भी पर वदहसवरप वाला ह कहन-सनन क लय तो भकतसत क पास वस लोकवद आद क कमरकाड उपासना काड ानकाड योग मतर आद स समबिनधत सभी तरह क शबद ह लकन सतय यह ह क सारशबद स ह जीव का उदधार होता ह परमातमा का अपना सतयनाम ह मो का परमाण ह और सतयपरष का समरन ह सार ह बाहयजगत स धयान हटाकर अतमरखी होकर शातच स जो साधक इस नाम क अजपा जाप म लन होता ह

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उसस काल भी मरझा जाता ह सारशबद का समरन सम और मो का परा मागर ह इस सहज मागर पर शरवीर होकर साधक को मोयातरा करनी चाहय धमरदास सारशबद न तो वाणी स बोला जान वाला शबद ह और न ह उसका मह स बोलकर जाप कया जाता ह सारशबद का समरन करन वाला काल क कठन परभाव स हमशा क लय मकत हो जाता ह इसलय इस गपत आदशबद क पहचान कराकर इन वासतवक हसजीव को चतान क िजममवार तमह मन द ह धमरदास इस मनषयशरर क अनदर अननत पखङय वाल कमल ह जो अजपा जाप क इसी डोर स जङ हय ह तब उस बहद समदवार दवारा मन-बदध स पर इिनदरय स पर सतयपद का सपशर होता ह यानी उस परापत कया जाता ह शरर क अनदर िसथत शनयआकाश म अलौककपरकाश हो रहा ह वहा lsquoआदपरषrsquo का वास ह उसको पहचानता हआ कोई सदगर का हससाधक वहा पहच जाता ह और आदसरत (मन बदध च अहम का योग स एक होना) वहा पहचाती ह हसजीव को सरत िजस परमातमा क पास ल जाती ह उस lsquoसोऽहगrsquo कहत ह अतः धमरदास इस कलयाणकार सारशबद को भलभात समझो सारशबद क अजपा जाप क यह सहज धन अतरआकाश म सवतः ह हो रह ह अतः इसको अचछ तरह स जान-समझ कर सदगर स ह लना चाहय मन तथा पराण को िसथर कर मन तथा इिनदरय क कम को उनक वषय स हटाकर सारशबद का सवरप दखा जाता ह वह सहज सवाभावक lsquoधवनrsquo बना वाणी आद क सवतः ह हो रह ह इस नाम क जाप को करन क लय हाथ म माला लकर जाप करन क कोई आवशयकता ह नह ह इस परकार वदह िसथत म इस सारशबद का समरन हससाधक को सहज ह अमरलोक सतयलोक पहचा दता ह सतयपरष क शोभा अगम अपार मन-बदध क पहच स पर ह उनक एक-एक रोम म करोङ सयर चनदरमा क समान परकाश ह सतयलोक पहचन वाल एक हसजीव का परकाश सोलह सयर क बराबर होता ह ----------------------- समापत बहत दनन तक थ हम भटक सन सन बात बरानी जब कछबात उर म थर भयी सरतनरत ठहरानी रमता क सग समता हय गयी परो भनन प पानी हसदा परमहस दा समाधदा शिकतदा सारशबद दा नःअर ान वदहान सहजयोग सरतशबद योग नादबनद योग राजयोग और उजारतमक lsquoसहजधयानrsquo पदधत क वासतवक और परयोगातमक अनभव सीखन समझन होन हत समपकर कर

  • लखकीय
  • अनरागसागर की कहानी
  • कबीर साहब और धरमदास
  • आदिसषटि की रचना
  • अषटागीकनया और कालनिरजन
  • वद की उतपतति
  • तरिदव दवारा परथम समदरमथन
  • बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना
  • अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना
  • काल-निरजन का धोखा
  • चार खानि चौरासी लाख योनियो स आय मनषय क लकषण
  • चौरासी कयो बनी
  • कालनिरजन की चालबाजी
  • तपतशिला पर काल पीङित जीवो की पकार
  • कालनिरजन और कबीर का समझौता
  • राम-नाम की उतपतति
  • ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह
  • कबीर और रावण
  • कबीर और रानी इनदरमती
  • रानी इनदरमती का सतयलोक जाना
  • कबीर का सदरशन शवपच को जञान दना
  • काल कसाई जीव बकरा
  • समदर और राम की दशमनी का कबीर दवारा निबटारा
  • धरमदास क परवजनम की कहानी
  • कालदत नारायण दास की कहानी
  • कालनिरजन का छलावा बारह पथ
  • चङामणि का जनम
  • काल का अपन दतो को चाल समझाना
  • काल क चार दत
  • सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव
  • गर-शिषय विचार-रहनी
  • शरीरजञान परिचय
  • मन की कपट करामात
  • कपटी कालनिरजन का चरितर
  • सतयपथ की डोर
  • कौआ और कोयल स भी सीखो
  • परमारथ क उपदश
  • अनलपकषी का रहसय
  • धरमदास यह कठिन कहानी
  • साध का मारग बहत कठिन ह
  • लटरा कामदव
  • आतमसवरप परमातमा का वासतविक नाम lsquoविदहrsquo ह
  • विदहसवरप सारशबद
Page 3: प्रस्तुतकतार् राजीव कुलश्रेष्ठ" से वाणी यानी कबीर धमर्दास संवाद को प्रका

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40 साध का मागर बहत कठन ह 93

41 लटरा कामदव 94

42 आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह 96

43 वदहसवरप सारशबद 97

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वसतकह ढढकह कहवध आव हाथ कहकबीर तब पाइए जब भद लज साथ भदलनहा साथ कर दनह वसत लखाय कोटजनम का पथ था पल म पहचा जाय

लखकय

ससार म िजतनी भी पजा ान परचलत ह य जयादातर कालपजा ह और काल माया क परभाव स इसी म सनतमत यानी सतयपरष का भद सतलोक या अमरलोक का भद असल हसान आतमा का वासतवक ान घल-मल गया ह आपन बहत पसतक पढ़ हगी लकन एक बार इसको पढ़ य आख खोल दगी यद इसक गहरायी समझ गय तो जीवन का लय और दनया म फ़ला धामरक मकङजाल आसानी स समझ म आ जायगा और दमाग म भरा जनम-जनम का धामरक कचरा साफ़ होकर सचच परभ स लौ लग जायगी जो सबका उदधारकतार ह

अनरागसागर क कहानी

अनरागसागर कबीर साहब और धमरदास क सवाद पर आधारत महानगरनथ ह इसक शरआत म बताया ह क सबस पहल जब य सिषट नह थी परथवी आसमान सरज तार आद कछ भी नह था तब कवल परमातमा ह था सफ़र परमातमा ह शाशवत ह इसलय सतमत म और सचच जानकार सत परमातमा क लय lsquoहrsquo शबद का परयोग करत ह उस (परमातमा) न कछ सोचा (सिषट क शरआत म उसम सवतः एक वचार उतपनन हआ इसस सफ़रणा (सकचन जसा) हयी) तब एक शबद lsquoहrsquo परकट हआ (जस हम आज भी वचारशील होन पर lsquoहrsquo करत ह) उसन सोचा - म कौन ह इसीलय हर इसान आज तक इसी परशन का उर खोज रहा ह क - म कौन ह (उस समय य पणर था) उसन एक सनदर आनददायक दप क रचना क और उसम वराजमान हो गया फर उसन एक-एक करक एक ह

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नाल स सोलह अश (सत) परकट कय उनम पाचव अश कालपरष को छोड़कर सभी सत आनद को दन वाल थ और सतपरष दवारा बनाय हसदप म आनदपवरक रहत थ लकन कालपरष सबस भयकर और वकराल था वह अपन भाइय क तरह हसदप म न जाकर मानसरोवर दप क नकट चला आया और सतपरष क परत घोर तपसया करन लगा लगभग चसठ यग तक तपसया हो जान पर उसन सतपरष क परसनन होन पर तीनलोक सवगर धरती और पाताल माग लए और फर स कई यग तक तपसया क तब सतपरष न अषटागी कनया (आदशिकत आदया भगवती आद) को सिषटबीज क साथ कालपरष क पास भजा (इसस पहल सतपरष न कमर नाम क सत को भजकर उसक तपसया करन क इचछा क वजह पछ) अषटागीकनया बहद सनदर और मनमोहक अग वाल थी वह कालपरष को दखकर भयभीत हो गयी कालपरष उस पर मोहत हो गया और उसस रतकरया का आगरह कया (यह परथम सतरी-परष का काममलन था) और दोन रतकरया म लन हो गए रतकरया बहत लमब समय तक चलती रह और इसस बरहमा वषण शकर का जनम हआ अषटागीकनया उनक साथ आननदपवरक रहन लगी पर कालपरष क इचछा कछ और ह थी पतर क जनम क उपरात कछ समय बाद कालपरष अदशय हो गया और भवषय क लए आदशिकत को नदश द गया तब आदशिकत न अपन अश स तीन कनयाय उतपनन क और उनह समदर म छपा दया फ़र उसन तीन पतर को समदरमथन क आा द और समदरमथन क दवारा परापत हयी तीन कनयाय अपन पतर को द द य कनयाय सावतरी लमी और पावरती थी तीन पतर न मा क कहन पर उनह अपनी पतनी क रप म सवीकार लया आदयाशिकत न (कालपरष क कह अनसार यह बात कालपरष दोबारा कहन आया था कयक पहल अषटागी न जब पतर को इसस पहल सिषटरचना क लय कहा तो उनहन अनसना कर दया) अपन तीन पतर क साथ सिषट क रचना क आदयाशिकत न खद अडज यानी अड स पदा होन वाल जीव को रचा बरहमा न पडज यानी पड स शरर स पदा होन वाल जीव क रचना क वषण न उषमज यानी पानी गम स पदा होन वाल जीव कट पतग ज आद क रचना क शकर न सथावर यानी पङ पौध पहाड़ पवरत आद जीव क रचना क और फर इन सब जीव को चारखान वाल चौरासी लाख योनय म डाल दया इनम मनषयशरर क रचना सवम थी इधर बरहमा वषण शकर न अपन पता कालपरष क बार म जानन क बहत कोशश क पर व सफल न हो सक कयक वो अदशय था और उसन आदयाशिकत स कह रखा था क वो कसी को उसका पता न बताय फर वो सब जीव क अनदर lsquoमनrsquo क रप म बठ गया और जीव को तरह-तरह क वासनाओ म फ़सान लगा और समसत जीव बहद दख भोगन लग कयक सतपरष न उसक कररता दखकर शाप दया था क वह एकलाख जीव को नतय खायगा और सवालाख को उतपनन करगा समसत जीव उसक करर वयवहार स हाहाकार करन लग और अपन बनान वाल को पकारन

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लग सतपरष को य जानकर बहत गससा आया क काल समसत जीव पर बहद अतयाचार कर रहा ह (काल जीव को तपतशला पर रखकर पटकता और खाता था) तब सतपरष न ानीजी (कबीर साहब) को उसक पास भजा कालपरष और ानीजी क बीच काफ़ झङप हयी और कालपरष हार गया तपतशला पर तङपत जीव न ानीजी स पराथरना क क वो उस इसक अतयाचार स बचाय ानीजी न उन जीव को सतपरष का नाम धयान करन को कहा इस नाम क धयान करत ह जीवमकत होकर ऊपर (सतलोक) जान लग यह दखकर काल घबरा गया और उसन ानीजी स एक समझौता कया क जो जीव इस परमनाम (वाणी स पर) को सतगर स परापत कर लगा वह यहा स मकत हो जायगा ानीजी न कहा - म सवय आकर सभी जीव को यह नाम दगा नाम क परभाव स व यहा स मकत होकर आननदधाम को चल जायग काल न कहा - म और माया (उसक पतनी) जीव को तरह तरह क भोगवासना म फ़सा दग िजसस जीव भिकत भल जायगा और यह फ़सा रहगा ानीजी न कहा - लकन उस सतनाम क अदर जात ह जीव म ान का परकाश हो जायगा और जीव तमहार सभी चाल समझ जायगा कालनरजन को चता हयी उसन बहद चालाक स कहा - म जीव को मिकत और उदधार क नाम पर तरह-तरह क जात धमर पजा पाठ तीथर वरत आद म ऐसा उलझाऊगा क वह कभी अपनी असलयत नह जान पायगा साथ ह म तमहार चलाय गय पथ म भी अपना जाल फ़ला दगा इस तरह अलपबदध जीव यह नह सोच पायगा क सचचाई आखर ह कया म तमहार असल नाम म भी अपन नाम मला दगा आद अब कयक समझौता हो गया था ानीजी वापस लौट गय वासतव म मनरप म यह काल ह ह जो हम तरह-तरह क कमरजाल म फसाता ह और फर नकर आद भोगवाता ह लकन वासतव म यह आतमा सतपरष का अश होन स बहत शिकतशाल ह पर भोग वासनाओ म पड़कर इसक य दगरत हो गई ह इसस छटकारा पान का एकमातर उपाय सतगर क शरण और महामतर का धयान करना ह ह ---------------------- परसततकतार राजीव कलशरषठ चारगर ससार म धमरदास बड़ अश मिकतराज़ लख दिनहया अटल बयालस वश

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1 सदशरन नाम साहब 2 कलपत नाम साहब 3 परमोध गर 4 कवलनाम साहब 5 अमोल नाम 6 सरतसनह नाम 7 हककनाम 8 पाकनाम 9 परगटनाम 10 धीरज नाम 11 उगरनाम 12 दयानाम 13 गरनधमन नाम साहब 14 परकाश मननाम साहब 15 उदतमन नाम साहब 16 मकनद मननाम 17 अधरनाम 18 उदयनाम 19 ाननाम 20 हसमण नाम 21 सकत नाम 22 अगरमण नाम 23 रसनाम 24 गगमण नाम 25 पारस नाम 26 जागरत नाम 27 भरगमण नाम 28 अकह नाम 29 कठमण नाम 30 सतोषमण नाम 31 चातरक नाम 32 आदनाम 33 नहनाम 34 अजरनाम 35 महानाम 36 नजनाम 37 साहब नाम 38 उदय नाम 39 करणा नाम 40 उधवरनाम 41 दघरनाम 42 महामण नाम

कबीर साहब और धमरदास

कबीर साहब क शषय धनी धमरदास का जनम बहत ह धनी वशय परवार म हआ था बाद म कबीर साहब क शरण म आकर उनस परमातम-ान लकर धमरदास न अपना जीवन साथरक और परपणर कया इस तरह उनह धमरदास क जगह lsquoधनी धमरदासrsquo कहा जान लगा धमरदास वषणव थ और ठाकर-पजा कया करत थ अपनी मत रपजा क इसी करम म धमरदास मथरा आय जहा उनक भट कबीर साहब स हयी धमरदास दयाल वयवहार और पवतर जीवन जीन वाल इसान थ अतयधक धन सप क बाद भी अहकार उनह छआ तक नह था व अपन हाथ स सवय भोजन बनात और पवतरता क लहाज स जलावन लकङ को इसतमाल करन स पहल धोया करत थ एकबार इसी समय म जब वह मथरा म भोजन तयार कर रह थ उसी समय कबीर स उनक भट हयी उनहन दखा क भोजन बनान क लय जो लकङया चलह म जल रह थी उसम स ढर चीटया नकलकर बाहर आ रह थी धमरदास न जलद स शष लकङय को बाहर नकाल कर चीटय को जलन स बचाया उनह बहत दख हआ और व अतयनत वयाकल हो उठ लकङय म जलकर मर गयी चीटय क परत उनक मन म बहद पशचाताप हआ व सोचन लग - आज मझस महापाप हआ ह अपन इसी दख क वजह स उनहन भोजन भी नह खाया उनहन सोचा िजस भोजन क बनन म इतनी चीटया जलकर मर गयी उस कस खा सकता ह उनक हसाब स वह दषत भोजन खान योगय नह था अतः उनहन वह भोजन कसी दन-हन साध महातमा आद को करान का वचार कया

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वो भोजन लकर बाहर आय तो उनहन दखा क कबीर एक घन शीतल व क छाया म बठ हय थ धमरदास न उनस भोजन क लय नवदन कया कबीर साहब न कहा - सठ धमरदास िजस भोजन को बनात समय हजार चीटया जलकर मर गयी उस भोजन को मझ कराकर य पाप तम मर ऊपर कय लादना चाहत हो तम तो रोज ह ठाकर जी क पजा करत हो फ़र उनह भगवान स कय नह पछ लया था क इन लकङय क अनदर कया ह धमरदास को बहद आशचयर हआ क इस साध को य सब बात कस पता चल उस समय तो धमरदास क आशचयर का ठकाना न रहा जब कबीर न व चीटया भोजन स िजदा नकलत हय दखायी इस रहसय को व समझ न सक और उनहोन दखी होकर कहा - बाबा यद म भगवान स इस बार म पछ सकता तो मझस इतना बङा पाप कय होता धमरदास को पाप क महाशोक म डबा दखकर कबीर न अधयातम-ान क गढ़ रहसय बताय जब धमरदास न उनका परचय पछा तो कबीर न अपना नाम सदगर कबीर साहब और नवासी अमरलोक बताया इसक कछ दर बाद कबीर अतधयारन हो गय धमरदास को जब कबीर बहत दन तक नह मल तो वो वयाकल होकर जगह जगह उनह खोजत फ़र और उनक िसथत पागल क समान हो गयी तब उनक पतनी न सझाव दया - तम य कया कर रह हो उनह खोजना बहत आसान ह जस क चीट चीटा गङ को खोजत हय खद ह आ जात ह धमरदास न कहा - कया मतलब पतनी न कहा - खब भडार कराओ दान दो हजार साध आयग जब वह साध तमह दख तो उस पहचान लना धमरदास को बात उचत लगी व ऐसा ह करन लग उनहन अपनी सार सप खचर कर द पर वह साध (कबीर) नह मला फर बहत समय भटकन क बाद उनह कबीर काशी म मल परनत उस समय व वषणव वश म थ फ़र भी धमरदास न उनह पहचान लया और उनक चरण म गर पङ धमरदास बोल - सदगर महाराज मझ पर कपा कर और मझ अपनी शरण म ल गरदव मझ पर परसनन ह म उसी समय स आपको खोज रहा ह आज आपक दशरन हय कबीर बोल - धमरदास तम मझ कहा खोज रह थ तम तो चीट चीट को खोज रह थ सो व तमहार भनडार म

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आय इस पर धमरदास को अपनी मखरता पर बङा पशचाताप हआ तब उनह परायिशचत भावना म दख कर कबीर साहब न फ़र कहा - लकन तम बहत भागयशाल हो जो तमन मझ पहचान लया अब तम धयर धारण करो म तमह जीवन क आवागमन स मकत करान वाला मो-ान दगा इसक बाद धमरदास नवदन करक कबीर साहब को अपन साथ बाधोगढ ल आय फ़र तो बाधोगढ म कबीर क शरीमख स अलौकक आतमान सतसग क अवरल धारा ह बहन लगी दर दर स लोग सतसग सनन आन लग धमरदास और उनक पतनी lsquoआमनrsquo न महामतर क दा ल बाधोगढ क नरश भी कबीर क सतसग म आन लग और बाद म दा लकर व भी कबीर साहब क शषय बन यहा कबीर न बहत स उपदश दय िजनह उनक शषय न बाधोगढ नरश और धनी धमरदास क आदश पर सकलत कर गरनथ का रप दया -------------------- वशष - जब भी कसी सचचसनत का पराकटय होता ह तो कालपरष भयभीत हो जाता ह क अब य जीव को मोान दकर उनका उदधार कर दगा इसस हरसभव बचाव क लय वो अपन lsquoकालदतrsquo वहा भज दता ह धमरदास का पतर lsquoनारायण दासrsquo जो कालदत था कबीर का बहत वरोध करता था लकन उसक एक भी नह चल खद कबीर क पतर क रप म lsquoकमालrsquo कालदत था वह भी कबीर का बहत वरोध करता था बाद म कबीर न धमरदास को सयोगय शषय जानत हय मो का अनमोल ान दया और साथ ह य ताकद भी क धमरदास तोह लाख दहाई सारशबद बाहर नह जाई धमरदास न कहा - सारशबद बाहर नह जाई तो हसा लोक को कस जाई कबीर साहब न कहा - जो अपना होय तो दयो बतायी

आदसिषट क रचना

धमरदास बोल - साहब कपा कर बताय क मकत होकर अमर हय लोग कहा रहत ह मझ अमरलोक और अनय दप का वणरन सनाओ आदसिषट क रचना कौन स दप म सदगर क हसजीव का वास ह और कौन स दप म सतपरष का नवास ह वहा हसजीव कौन सा तथा कसा भोजन करत ह और व कौन सी वाणी बोलत ह

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आदपरष न लोक कस रच रखा ह तथा उनह दप रचन क इचछा कस हयी तीन लोक क उतप कस हयी साहब मझ वह सब भी बताओ जो गपत ह कालनरजन कस वध स पदा हआ और सोलह सत का नमारण कस हआ सथावर अणडज पणडज ऊषमज इन चार परकार क चार खान वाल सिषट का वसतार कस हआ और जीव को कस काल क वश म डाल दया गया कमर और शषनाग उपराजा कस उतपनन हय और कस मतसय तथा वराह जस अवतार हय तीन परमख दव बरहमा वषण महश कस परकार हय तथा परथवी आकाश का नमारण कस हआ चनदरमा और सयर कस हय कस तार का समह परकट होकर आकाश म ठहर गया और कस चार खान क जीव शरर क रचना हयी इन सबक उतप क वषय म सपषट बताय कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमह सतयान और मो पान का सचचा अधकार पाया ह इसलय सतयान का जो अनभव मन कया उसक सारशबद का रहसय कहकर सनाया अब तम मझस आदसिषट क उतप सनो म तमह सबक उतप और परलय क बात सनाता ह यह ततव क बात सनो जब धरती और आकाश और पाताल भी नह था जब कमर वराह शषनाग सरसवती और गणश भी नह थ जब सबका राजा नरजनराय भी नह था िजसन सबक जीवन को मोहमाया क बधन म झलाकर रखा ह ततीस करोङ दवता भी नह थ और म तमह अनक कया बताऊ तब बरहमा वषण महश भी नह थ और न ह शासतर वद पराण थ तब य सब आदपरष म समाय हय थ जस बरगद क पङ क बीच म छाया रहती ह धमरदास तम परारमभ क आद-उतप सनो िजस परतयरप स कोई नह जानता और िजसक पीछ सार सिषट का वसतार हआ ह उसक लय म तमह कया परमाण द क िजसन उस दखा हो चारो वद परमपता क वासतवक कहानी नह जानत कयक तब वद का मल ह (आरमभ होन का आधार) नह था इसीलय वद सतयपरष को lsquoअकथनीयrsquo अथारत िजसक बार म कहा न जा सक ऐसा कहकर पकारत ह चारो वद नराकार नरजन स उतपनन हय ह जो क सिषट क उतप आद रहसय को जानत ह नह इसी कारण पडत उसका खडन करत ह और असल रहसय स अनजान वदमत पर यह सारा ससार चलता ह सिषट क पवर जब सतयपरष गपत रहत थ उनस िजनस कमर होता ह व नम कारण और उपादान कारण और करण यानी साधन उतपनन नह कय थ उस समय गपतरप स कारण और करण समपटकमल म थ उसका समबनध सतयपरष स था lsquoवदह-सतयपरषrsquo उस कमल म थ तब सतयपरष न सवय इचछा कर अपन अश को उतपनन कया और अपन अश को दखकर वह बहत परसनन हय सबस पहल सतयपरष न lsquoशबदrsquo का परकाश कया और उसस लोकदप रचकर उसम वास कया फ़र सतयपरष न चार-पाय वाल एक सहासन क रचना क और उसक ऊपर lsquoपहपदपrsquo का नमारण कया फर सतयपरष अपनी समसत कलाओ को धारण करक उस पर बठ और उनस lsquoअगरवासनाrsquo यानी (चनदन जसी) एक सगनध परकट हयी सतयपरष न अपनी इचछा स सब कामना क और lsquoअठासी हजारrsquo दप क रचना क उन सभी दप म वह चनदन जसी सगनध समा गयी जो बहत अचछ लगी इसक बाद सतयपरष न दसरा शबद उचचारत कया उसस lsquoकमरrsquo नाम का सत (अश) परकट हआ और उनहन सतयपरष क चरण म परणाम कया तब उनहन तीसर शबद का उचचारण कया उसस lsquoानrsquo नाम क सत हय जो

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सब सत म शरषठ थ व सतयपरष क चरण म शीश नवाकर खङ रह तब सतयपरष न उनको एक दप म रहन क आा द चौथ शबद क उचचारण स lsquoववकrsquo नामक सत हय और पाचव शबद स lsquoकाल-नरजनrsquo परकट हआ काल-नरजन अतयनत तज अग और भीषणपरकत वाला होकर आया इसी न अपन उगर-सवभाव स सब जीव को कषट दया ह वस य lsquoजीवrsquo सतयपरष का अश ह जीव क आद-अत को कोई नह जानता ह छठव शबद स lsquoसहज नामrsquo सत उतपनन हय सातव शबद स lsquoसतोषrsquo नाम क सत हय िजनको सतयपरष न उपहार म दप दकर सतषट कया आठव शबद स lsquoसरत सभावrsquo नाम क सत उतपनन हय उनह भी एक दप दया गया नव स lsquoआननद अपारrsquo नाम क सत उतपनन हय दसव स lsquoमाrsquo नाम क सत उतपनन हय गयारहव स lsquoनषकामrsquo और बारहव स lsquoजलरगीrsquo नाम क सत हय तरहव स lsquoअचतrsquo और चौदहव स lsquoपरमrsquo नाम क सत हय पनदरहव स दनदयाल और सोलहव स lsquoधीरजrsquo नाम क वशाल सत उतपनन हय सतरहव शबद क उचचारण स lsquoयोगसतायनrsquo हय इस तरह lsquoएक ह नालrsquo स सतयपरष क शबद उचचारण स सोलह सत क उतप हयी सतयपरष क शबद स ह उन सत का आकार का वकास हआ और शबद स ह सभी दप का वसतार हआ सतयपरष न अपन परतयक दवयअग यानी अश को अमत का आहार दया और परतयक को अलग- अलग दप का अधकार बनाकर बठा दया सतयपरष क इन अश क शोभा और कला अननत ह उनक दप म मायारहत अलौकक सख रहता ह सतयपरष क दवयपरकाश स सभी दप परकाशत हो रह ह सतयपरष क एक ह रोम का परकाश करोङ सयर-चनदरमा क समान ह सतयलोक आननदधाम ह वहा पर शोक मोह आद दख नह ह वहा सदव मकतहस का वशराम होता ह सतपरष का दशरन तथा अमत का पान होता ह आदसिषट क रचना क बाद जब बहत दन ऐस ह बीत गय तब धमरराज कालनरजन न कया तमाशा कया उस चरतर को धयान स सनो नरजन न सतयपरष म धयान लगाकर एक पर पर खङ होकर सर यग तक कठन तपसया क इसस आदपरष बहत परसनन हय तब सतयपरष क आवाज lsquoवाणीरपrsquo म हयी - ह धमरराय कस हत स तमन यह तपसवा क नरजन सर झकाकर बोला - परभ मझ वह सथान द जहा जाकर म नवास कर सतयपरष न कहा - तम मानसरोवर दप म जाओ परसनन होकर धमरराज मानसरोवर दप क ओर चला गया और आननद स भर गया मानसरोवर पर नरजन न फ़र स एक पर पर खङ होकर सर यग तपसया क तब दयाल सतयपरष क हरदय म दया भर गयी नरजन क कठन सवा-तपसया स पषपदप क पषप वकसत हो गय और फ़र सतयपरष क वाणी परकट हयी उनक बोलत ह वहा सगनध फ़ल गयी

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सतयपरष न सहज स कहा - सहज तम नरजन क पास जाओ और उसस तप का कारण पछो नरजन क सवा-तपसया स पहल ह मन उसको मानसरोवर दप दया ह अब वह कया चाहता ह यह ात कर तम मझ बताओ सहज नरजन क पास पहच और परमभाव स कहा - भाई अब तम कया चाहत हो नरजन परसनन होकर बोला - सहज तम मर बङ भाई हो इतना सा सथानय मानसरोवर मझ अचछा नह लगता अतः म कसी बङ सथान का सवामी बनना चाहता ह मझ ऐसी इचछा ह क या तो मझ दवलोक द या मझ एक अलग दश द सहज न नरजन क अभलाषा सतयपरष को जाकर बतायी सतयपरष न सपषट शबद म कहा - हम नरजन क सवा-तपसया स सतिषट होकर उसको तीनलोक दत ह वह उसम अपनी इचछा स lsquoशनयदशrsquo बसाय और वहा जाकर सिषट क रचना कर तम नरजन स ऐसा जाकर कहो नरजन न सहज दवारा य बात सनी तो वह बहत परसनन और आशचयरचकत हआ नरजन बोला - सहज सनो म कस परकार सिषटरचना करक उसका वसतार कर सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया ह परनत म सिषटरचना का भद नह जानता फ़र यह कायर कस कर जो सिषट मन बदध क पहच स पर अतयनत कठन और जटल ह वह मझ रचनी नह आती अतः दया करक मझ उसक यिकत बतायी जाय तम मर तरफ़ स सतयपरष स यह वनती करो क म कस परकार lsquoनवखणडrsquo बनाऊ अतः मझ वह साजसामान दो िजसस जगत क रचना हो सक सहज न यह सब बात जब जाकर सतयपरष स कह तब उनहन आा द - सहज कमर क पट क अनदर सिषटरचना का सब साज सामान ह उस लकर नरजन अपना कायर कर इसक लय नरजन कमर स वनती कर और उसस दणडपरणाम करक वनयपवरक सर झकाकर माग सहज न सतयपरष क आा नरजन को बता द यह सनत ह नरजन बहत हषरत हआ और उसक अनदर बहत अभमान हआ वह कमर क पास जाकर खङा हो गया और बताय अनसार दणडपरणाम भी नह कया अमतसवरप कमर जो सबको सख दन वाल ह उनम करोध अभमान का भाव जरा भी नह ह और अतयनत शीतल सवभाव क ह अतः जब कालनरजन न अभमान करक दखा तो पता चला क कमर अतयनत धयरवान और बलशाल ह बारह पालग कमर का वशाल शरर ह और छह पालग बलवान नरजन का शरर ह नरजन करोध करता हआ कमर क चारो ओर दौङता रहा और सोचता रहा क कस उपाय स इसस उतप का सामान ल तब नरजन बहद रोष स कमर स भङ गया और अपन तीख नाखन स कमर क शीश पर आघात

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करन लगा परहार करन स कमर क उदर स पवन नकल उसक शीश क तीन अश सत रज तम गण नकल आग िजनक वश बरहमा वषण महश हय पाच-ततव धरती आकाश आद तथा चनदरमा सयर आद तार का समह उसक उदर म थ उसक आघात स पानी अिगन चनदरमा और सयर नकल और परथवीजगत को ढकन क लय आकाश नकला फ़र उसक उदर स परथवी को उठान वाल वाराह शषनाग और मतसय नकल तब परथवीसिषट का आरमभ हआ जब कालनरजन न कमर का शीश काटा तब उस सथान स रकत जल क सरोत बहन लग जब उनक रकत म सवद यानी पसीना और जल मला उसस समदर का नमारण तथा उनचास कोट परथवी का नमारण हआ जस दध पर मलाई ठहर जाती ह वस ह जल पर परथवी ठहर गयी वाराह क दात परथवी क मल म रह पवन परचणड था और परथवी सथल थी आकाश को अडासवरप समझो और उसक बीच म परथवी िसथत ह कमर क उदर स lsquoकमरसतrsquo उतपनन हय उस पर शषनाग और वराह का सथान ह शषनाग क सर पर परथवी ह नरजन क चोट करन स कमर बरयाया सिषटरचना का सब साजोसामान कमर उदर क अड म थी परनत वह कमर क अश स अलग थी आदकमर सतयलोक क बीच रहता था नरजन क आघात स पीङत होकर उसन सतयपरष का धयान कया और शकायत करत हय कहा - कालनरजन न मर साथ दषटता क ह उसन मर ऊपर बल परयोग करत हय मर पट को फ़ाङ डाला ह आपक आा का उसन पालन नह कया सतयपरष सनह स बोल - कमर वह तमहारा छोटा भाई ह और यह रत ह क छोट क अवगण को भलाकर उसस सनह कया जाय सतयपरष क ऐस वचन सनकर कमर आनिनदत हो गय इधर कालनरजन न फ़र स सतयपरष का धयान कया और अनक यग तक उनक सवा तपसया क नरजन न अपन सवाथर स तप कया था अतः सिषटरचना को लकर वह पछताया तब धमरराय नरजन न वचार कया क तीन लोक का वसतार कस और कहा तक कया जाय उसन सवगरलोक मतयलोक और पाताललोक क रचना तो कर द परनत बना बीज और जीव क सिषट का वसतार कस सभव हो कस परकार और कया उपाय कया जाय जो जीव क धारण करन का शरर बनाकर सजीव सिषटरचना हो सक यह सब तरका वध सतयपरष क सवा तपसया स ह होगा ऐसा वचार करक हठपवरक एक पर पर खङा होकर उसन चसठ यग तक तपसया क तब दयाल सतयपरष न सहज स कहा - अब य तपसवी नरजन कया चाहता ह वह तम उसस पछो और द दो उसस कहो वह हमार वचन अनसार सिषट नमारण कर और छलमत का तयाग कर सहज न नरजन स जाकर यह सब बात कह

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नरजन बोला - मझ वह सथान दो जहा जाकर म बठ जाऊ सहज बोल - सतयपरष न पहल ह सब कछ द दया ह कमर क उदर स नकल सामान स तम सिषटरचना करो नरजन बोला - म कस कया बनाकर रचना कर सतयपरष स मर तरफ़ स वनती कर कहो अपना सारा खत बीज मझ द द सहज न यह हाल सतयपरष को कह सनाया सतयपरष न आा द तो सहज अपन सखासन दप चल गय नरजन क इचछा जानकर सतयपरष न इचछा वयकत क उनक इस इचछा स अषटागी नाम क कनया उतपनन हयी वह कनया आठ भजाओ क होकर आयी थी वह सतयपरष क बाय अग जाकर खङ हो गयी और परणाम करत हय बोल - ह सतयपरष मझ कया आा ह सतयपरष बोल - पतरी तम नरजन क पास जाओ म तमह जो वसत दता ह उस सभाल लो उसस तम नरजन क साथ मलकर सिषटरपी फ़लवार क रचना करो कबीर साहब बोल - धमरदास सतयपरष न अषटागीकनया को जो जीव-बीज दया उसका नाम lsquoसोऽहगrsquo ह इस तरह जीव का नाम सोऽहग ह जीव ह सोऽहगम ह दसरा नह ह और वह जीव सतयपरष का अश ह फ़र सतयपरष न तीन शिकतय को उतपनन कया उनक नाम lsquoचतनrsquo lsquoउलघनrsquo और lsquoअभयrsquo थ सतयपरष न अषटागी स कहा क नरजन क पास जाकर उस पहचान कर यह चौरासी लाख जीव का मलबीज जीव-बीज द दो अषटागीकनया यह जीव-बीज लकर मानसरोवर चल गयी तब सतयपरष न सहज को बलाया और उसस कहा - तम नरजन क पास जाकर यह कहो क जो वसत तम चाहत थ वह तमह द द गयी ह जीव-बीज lsquoसोऽहगrsquo तमह मल गया ह अब जसी चाहो सिषटरचना करो और मानसरोवर म जाकर रहो वह स सिषट का आरमभ होना ह सहज न नरजन स जाकर ऐसा ह कहा

अषटागीकनया और कालनरजन

सहज क दवारा सतयपरष क ऐस वचन सनकर नरजन परसनन होकर अहकार स भर गया और मानसरोवर चला आया फ़र जब उसन सनदर कामनी lsquoअषटागीकनयाrsquo को आत हय दखा तो उस अत परसननता हयी अषटागी का

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अनपमसदयर दखकर नरजन मगध हो गया उसक सनदरता क कला का अनत नह था यह दखकर कालनरजन बहत वयाकल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क कररता सनो वह अषटागीकनया को ह नगल गया जब अनयायी कालनरजन अषटागी का ह आहार करन लगा तब उस कनया को कालनरजन क परत बहत आशचयर हआ जब वह उस नगल रहा था तो अषटागी न सतयपरष को धयान करक पकारा क कालनरजन न मरा आहार कर लया ह अषटागी क पकार सनकर सतयपरष न सोचा क यह कालनरजन तो बहत करर और अनयायी ह इस कनया क तरह ह पहल कमर न धयान करक मझ पकारा था क कालनरजन न मर तीन शीश खा लय ह सतयपरष आप मझ पर दया किजय कबीर साहब बोल - कालनरजन का ऐसा करर चरतर जानकर सतयपरष न उस शाप दया क वह परतदन लाख जीव को खायगा और सवालाख का वसतार करगा फ़र सतयपरष न ऐसा भी वचार कया क इस कालपरष को मटा ह डाल कयक अनयायी और करर कालनरजन बहत ह कठोर और भयकर ह यह सभी जीव का जीवन बहत दखी कर दगा लकन अब वह मटान स भी नह मट सकता था कयक एक ह नाल स व सब सोलह सत उतपनन हय थ अतः एक को मटान स सभी मट जायग और मन सबको अलग लोकदप दकर जो रहन का वचन दया ह वह डावाडोल हो जायगा और मर य सब रचना भी समापत हो जायगी अतः इसको मारना ठक नह ह सतयपरष न वचार कया क कालपरष को मारन स उनका वचन भग हो जायगा अतः अपन वचन का पालन करत हय उस न मारकर यह कहता ह क अब वह कभी हमारा दशरन नह पायगा यह कहत हय सतयपरष न योगजीत को बलवाया और सब हाल कहा क कस तरह कालनरजन न अषटागी कनया को नगल लया और कमर क तीन शीश खा लय उनहन कहा - योगजीत तम शीघर मानसरोवर दप जाओ और वहा स नरजन को मारकर नकाल दो वह मानसरोवर म न रहन पाय और हमार दश सतयलोक म कभी न आन पाय नरजन क पट म अषटागी नार ह उसस कहो क वह मर वचन का सभाल कर पालन कर नरजन जाकर उसी दश म रह जो मन पहल उस दय ह अथारत वह सवगरलोक मतयलोक और पाताल पर अपना राजय कर वह अषटागी नार नरजन का पट फ़ाङकर बाहर नकल आय िजसस पट फ़टन स वह अपन कम का फ़ल पाय नरजन स नणरय करक कह दो क वह अषटागी नार ह अब तमहार सतरी होगी योगजीत सतयपरष को परणाम करक मानसरोवर दप आय कालनरजन उनह वहा आया दखकर भयकर रप हो गया और बोला - तम कौन हो और कसन तमह यहा भजा ह योगजीत न कहा - अर नरजन तम नार को ह खा गय अतः सतयपरष न मझ आा द क तमह शीघर ह यहा स नकाल योगजीत न नरजन क पट म समायी हयी अषटागी स कहा - अषटागी तम वहा कय रहती हो तम सतयपरष क तज का समरन करो और पट फ़ाङकर बाहर आ जाओ

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योगजीत क बात सनकर नरजन का हरदय करोध स जलन लगा और वह योगजीत स भङ गया योगजीत न सतयपरष का धयान कया तो सतयपरष न आा द क वह नरजन क माथ क बीच म जोर स घसा मार योगजीत न ऐसा ह कया फ़र योगजीत न नरजन क बाह पकङ कर उस उठाकर दर फ़ क दया तो वह सतयलोक क मानसरोवर दप स अलग जाकर दर गर पङा सतयपरष क डर स वह डरता हआ सभल सभलकर उठा फ़र अषटागीकनया नरजन क पट स नकल वह कालनरजन स बहत भयभीत थी वह सोचन लगी क अब म वह दश न दख सकगी म न जान कस परकार यहा आकर गर पङ यह कौन बताय वह नरजन स बहत डर हयी थी और सकपका कर इधर-उधर दखती हयी नरजन को शीश नवा रह थी तब नरजन बोला - ह आदकमार सनो अब तम मर डर स मत डरो सतयपरष न तमह मर lsquoकामrsquo क लय रचा ह हम-तम दोन एकमत होकर सिषटरचना कर म परष ह और तम मर सतरी हो अतः तम मर यह बात मान लो अषटागी बोल - तम यह कसी वाणी बोलत हो म तो तमह बङा भाई मानती ह इस परकार जानत हय भी तम मझस ऐसी बात मत करो जब स तमन मझ पट म डाल लया था और उसस उतपनन होन पर अब तो म तमहार पतरी भी हो गयी ह बङ भाई का रशता तो पहल स ह था अब तो तम मर पता भी हो गय हो अब तम मझ साफ़ दिषट स दखो नह तो तमस यह पाप हो जायगा अतः मझ वषयवासना क दिषट स मत दखो नरजन बोला - भवानी सनो म तमह सतय बताकर अपनी पहचान कराता ह पाप पणय क डर स म नह डरता कयक पाप पणय का म ह तो कतार (करान वाला) ह पाप पणय मझस ह हग और मरा हसाब कोई नह लगा पाप पणय को म ह फ़लाऊगा जो उसम फ़स जायगा वह मरा होगा अतः तम मर इस सीख को मानो सतयपरष न मझ कह समझा कर तझ दया ह अतः तम मरा कहना मानो नरजन क ऐसी बात सनकर अषटागी हसी और दोन एकमत होकर एक दसर क रग म रग गय अषटागी मीठ वाणी स रहसयमय वचन बोल और फ़र उस नीचबदध सतरी न वषयभोग क इचछा परकट क उसक रतवषयक रहसयमय वचन सनकर नरजन बहत परसनन हआ और उसक भी मन म वषयभोग क इचछा जाग उठ नरजन और अषटागी दोन परसपर रतकरया म लग गय तब कह चतनयसिषट का वशष आरमभ हआ धमरदास तम आदउतप का यह भद सनो िजस भरमवश कोई नह जानता उन दोन न तीन बार रतकरया क िजसस बरहमा वषण तथा महश हय उनम बरहमा सबस बङ मझल वषण और सबस छोट शकर थ इस परकार अषटागी और नरजन का रतपरसग हआ उन दोन न एकमत होकर भोगवलास कया तब उसस आदउतप का परकाश हआ

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वद क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास वचार करो पीछ ऐसा वणरन हो चका ह क अिगन पवन जल परथवी और परकाश कमर क उदर स परकट हय उसक उदर स य पाचो अश लय तथा तीन सर काटन स सत रज तम तीन गण परापत हय इस परकार पाच ततव और तीन गण परापत होन पर नरजन न सिषटरचना क फ़र अषटागी और नरजन क परसपर रतपरसग स अषटागी को गण एव ततव समान करक दय और अपन अश उतपनन कय इस परकार पाच-ततव और तीन गण को दन स उसन ससार क रचना क वीयरशिकत क पहल बद स बरहमा हय उनह रजोगण और पाच ततव दय दसर बद स वषण हय उनह सतगण और पाच ततव दय तीसर बद स शकर हय उनह तमोगण और पाच ततव दय पाच ततव तीन गण क मशरण स बरहमा वषण महश क शरर क रचना हयी इसी परकार सब जीव क शरर क रचना हयी उसस य पाच-ततव और तीन गण परवतरनशील और वकार होन स बारबार सजन-परलय यानी जीवन-मरण होता ह सिषट क रचना क इस lsquoआदरहसयrsquo को वासतवक रप स कोई नह जानता धमरदास कबीर साहब आग कहन लग नरजन बोला - अषटागी कामनी मर बात सन और जो म कह उस मान अब जीव-बीज सोऽहग तमहार पास ह उसक दवारा सिषटरचना का परकाश करो ह रानी सन अब म कस कया कर आदभवानी बरहमा वषण महश तीन पतर तमको सप दय और अपना मन सतयपरष क सवा भिकत म लगा दया ह तम इन तीन बालक को लकर राज करो परनत मरा भद कसी स न कहना मरा दशरन य तीन पतर न कर सक ग चाह मझ खोजत-खोजत अपना जनम ह कय न समापत कर द सोच-समझकर सब लोग को ऐसा मत सदढ कराना क सतयपरष का भद कोई पराणी जानन न पाय जब य तीन पतर बदधमान हो जाय तब उनह समदरमथन का ान दकर समदरमथन क लय भजना इस तरह नरजन न अषटागी को बहत परकार स समझाया और फ़र अपन आप गपत हो गया उसन शनयगफ़ा म नवास कया वह जीव क lsquoहरदयाकाशरपीrsquo शनयगफ़ा म रहता ह तब उसका भद कौन ल सकता ह वह गपत होकर भी सबक साथ ह जो सबक भीतर ह उस मन को ह नरजन जानो जीव क हरदय म रहन वाला यह मन नरजन सतयपरष परमातमा क रहसयमय ान क परत सदह उतपनन कर उस मटाता ह यह अपन मत स सभी को वशीभत करता ह और सवय क बङाई परकट करता ह सभी जीव क हरदय म बसन वाला यह मन कालनरजन का ह रप ह सबक साथ रहता हआ भी य मन पणरतया गपत ह और कसी को दखाई नह दता य सवाभावक रप स अतयनत चचल ह और सदा सासारक वषय क ओर दौङता ह वषयसख और भोगपरवत क कारण मन को चन कहा ह यह दन-रात सोत-जागत अपनी अननत इचछाओ क पतर क लय भटकता ह रहता ह और मन क वशीभत होन क कारण ह जीव अशात और दखी होता ह इसी कारण उसका पतन होकर जनम-मरण का बधन बना ह जीव का मन ह उसक दख भोग और जनम-मरण का कारण ह अतः मन को वश म करना ह सभी दख और

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जनम-मरण क बधन स मकत होन का उपाय ह जीव तथा उसक हरदय क भीतर मन दोन एक साथ ह मतवाला और वषयगामी मन कालनरजन क अग सपशर करन स जीव बदधहन हो गय इसी स अानी जीव कमर अकमर क करत रहन स तथा उनका फ़ल भोगत रहन क कारण ह जनम-जनमातर तक उनका उदधार नह हो पाता यह मन-काल जीव को सताता ह इिनदरय को पररत कर वभनन पापकम म लगाता ह यह सवय पाप पणय क कम क काल कचाल चलता ह फ़र जीव को दखरपी दणड दता ह उधर जब तीन बालक बरहमा वषण महश सयान समझदार हय तो माता अषटागी न उनह समदर मथन क लय भजा लकन व बालक खलन म मसत थ अतः समदर मथन नह गय कबीर साहब बोल - धमरदास उसी समय एक तमाशा हआ नरजनराव न योग धारण कया उसन पवन यानी सास खीचकर परक पराणायाम स आरमभ करपवन ठहरा कर कमभक पराणायाम बहत दर तक कया फ़र जब नरजन कमभक तयाग कर रचनकरया स पवनरहत हआ तब उसक सास क साथ वद बाहर नकल वदउतप क इस रहसय को कोई बरला वदवान ह जानगा वद न नरजन क सतत क और कहा - ह नगरणनाथ मझ कया आा ह नरजन बोला - तम जाकर समदर म नवास करो तथा िजसका तमस भट हो उसक पास चल जाना वद को आा दत हय कालनरजन क आवाज तो सनायी द पर वद न उसका सथलरप नह दखा उसन कवल अपना जयोतसवरप ह दखाया उसक तज स परभावत होकर आानसार वद चल गय फ़र अत म उस तज स वष क उतप हयी इधर चलत हय वद वहा जा पहच जहा नरजन न समदर क रचना क थी व सध क मधय म पहच गय फ़र नरजन न समदरमथन क यिकत का वचार कया

तरदव दवारा परथम समदरमथन

तब नरजन न गपत धयान स अषटागी को याद करत हय समझाया और कहा - बताओ समदर मथन म कसलय दर हो रह ह बरहमा वषण महश हमार तीन पतर को समदर मथन क लय शीघर ह भजो मर वचन दढ़ता स मानो और अषटागी इसक बाद तम सवय समदर म समा जाना तब अषटागी न समदरमथन हत वचार कया और तीन बालक को अचछ तरह समझा-बझाकर समदर मथन क लय भजा उनह भजत समय अषटागी न कहा - समदर स तमह अनमोल वसतय परापत हगी इसलय तम जलद ह जाओ यह सनकर बरहमा वषण और महश तीन बालक चल पङ और जाकर समदर क पास खङ हो गय तथा उस मथन का उपाय सोचन लग

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फ़र तीन न समदरमथन कया तीन को समदर स तीन वसतय परापत हयी बरहमा को वद वषण को तज और शकर को हलाहल वष क परािपत हयी य तीन वसतय लकर व अपनी माता अषटागी क पास आय और खशी-खशी तीन वसतय दखायी अषटागी न उनह अपनी-अपनी वसत अपन पास रखन क आा द अषटागी न कहा - अब फ़र स जाकर समदर मथो और िजसको जो परापत हो वह ल लो उसी समय आदभवानी न एक चरतर कया उसन तीन कनयाय उतपनन क और अपनी उन अश को समदर म परवश करा दया जब इन तीन कनयाओ को समदर म परवश करान क लय भजा इस रहसय को अषटागी क तीन पतर नह जान सक अतः उनहन जब समदरमथन कया तो समदर स तीन कनयाय नकल उनहन खशी स तीन कनयाओ को ल लया और अषटागी क पास आय अषटागी न कहा - पतरो तमहार सब कायर पर हो गय अषटागी न उन तीन कनयाओ को तीन पतर को बाट दया बरहमा को सावतरी वषण को लमी और शकर को पावरती द तीन भाई कामनी सतरी को पाकर बहत आनिनदत हय और उन कामनय क साथ काम क वशीभत होकर उनहन दव और दतय दोन परकार क सतान उतपनन क कबीर साहब बोल - धमरदास तम यह बात समझो क जो माता थी वह अब सतरी हो गयी अषटागी न फ़र स अपन पतर को समदर मथन क आा द इस बार समदर म स चौदह रतन नकल उनहन रतन क खान नकाल और रतन लकर माता क पास पहच तब अषटागी न कहा - पतरो अब तम सिषटरचना करो अणडज खान क उतप सवय अषटागी न क पणडज खान को बरहमा न बनाया ऊषमज खान वषण तथा सथावर को शकर न बनाया उनहन चौरासी लाख योनय क रचना क और उनक अनसार आधाजल आधाथल बनाया सथावर खान को एक-ततव का समझो और ऊषमज खान को दो-ततव तीन-ततव स अणडज और चार-ततव स पणडज का नमारण हआ पाचततव स मनषय को बनाया और तीन गण स सजाया सवारा इसक बाद बरहमा वद पढ़न लग वद पढ़त हय बरहमा को नराकार क परत अनराग हआ कयक वद कहता ह परष एक ह और वह नराकार ह और उसका कोई रप नह ह वह शनय म जयोत दखाता ह परनत दखत समय उसक दह दिषट म नह आती उस नराकार का सर सवगर ह और पर पाताल ह इस वदमत स बरहमा मतवाला हो गया

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बरहमा न वषण स कहा - वद न मझ आदपरष को दखा दया ह फ़र ऐसा ह उनहन शकर स भी कहा - वद पढ़न स पता चलता ह क परष एक ह और सबका सवामी कवल एक नराकार परष ह यह तो वद न बताया परनत उसन ऐसा भी कहा क मन उसका भद नह पाया बरहमा अषटागी क पास आय और बोल - माता मझ वद न दखाया और बताया क सिषट रचना करन वाला हम सबका सवामी कोई और ह ह अतः हम बताओ क तमहारा पत कौन ह और हमारा पता कहा ह अषटागी बोल - बरहमा सनो मर अतरकत तमहारा अनय कोई पता नह ह मझस ह सब उतप हयी ह और मन ह सबको सभारा ह बरहमा न कहा - माता वद नणरय करक कहता ह क परष कवल एक ह और वह गपत ह अषटागी बोल - पतर मझस नयारा सिषटरचयता और कोई नह ह मन ह सवगरलोक परथवीलोक और पाताललोक बनाय ह और सात समदर का नमारण भी मन ह कया ह बरहमा न कहा - मन तमहार बात मानी क तमन ह सब कछ कया ह परनत पहल स ह परष को गपत कस रख लया जबक वद कहता ह क परष एक ह और वह अलखनरजन ह माता तम कतार बनो आप बनो परनत पहल वदरचना करत समय यह वचार कय नह कया और उसम परष को नरजन कय बताया अतः अब तम मर स छल न करो और सच-सच बात बताओ कबीर साहब बोल - जब बरहमा न िजद पकङ ल तो अषटागी न वचार कया क बरहमा को कस परकार समझाऊ जो यह मर महमा को बङाई को नह मानता यह बात नरजन स कह तो यह कस परकार ठक स समझगा नरजन न मझस पहल ह कहा था क मरा दशरन कोई नह पायगा अब बरहमा को अलखनरजन क बार म कछ नह बताया तो कस परकार उस दखाया जाय ऐसा वचार कर अषटागी न कहा - अलखनरजन अपना दशरन नह दखाता बरहमा बोल - माता तम मझ सह-सह सथान बताओ आग-पीछ क उलट-सीधी बात करक मझ न बहलाओ म य बात नह मानता और न ह मझ अचछ लगती ह पहल तमन मझ बहकाया क म ह सिषटकतार ह और मझस अलग कछ भी नह ह और अब तम कहती हो क lsquoअलखनरजनrsquo तो ह पर वह अपना दशरन नह दखाता कया उसका दशरन पतर भी नह पायगा ऐसी पदा न होन वाल बात कय कहती हो इसलय मझ तमहार कहन पर भरोसा नह ह अतः इसी समय उस कतार का दशरन करा दिजय और मर सशय को दर किजय इसम जरा भी दर न करो अषटागी बोल - बरहमा म तमस सतय कहती ह क उस अलखनरजन क सात सवगर ह माथा ह और सात पाताल चरण ह यद तमह उसक दशरन क इचछा हो तो हाथ म फ़ल ल जाकर उस अपरत करत हय परणाम करो यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय

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अषटागी न मन म वचार कया - बरहमा मरा कहा मानता नह ह य कहता ह वद न मझ उपदश कया ह क एक परष नरजन ह परनत कोई उसक दशरन नह पाता ह अतः वह बोल - अर बालक सन अलखनरजन तमहारा पता ह पर तम उसका दशरन नह पा सकत यह म तमस सतयवचन कहती ह यह सनकर बरहमा न वयाकल होकर मा क चरण म सर रख दया और बोल - म पता का शीश सपशर व दशरन करक तमहार पास आता ह कहकर बरहमा lsquoउर दशाrsquo चल गय माता स आा मागकर वषण भी अपन पता क दशरन हत पाताल चल गय कवल शकर का मन इधर-उधर नह भटका वह माता क सवा करत हय कछ नह बोल

बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना

बहत दन बीत गय अषटागी न सोचा - मर पतर बरहमा और वषण न कया कया इसका कछ पता नह लगा व अब तक लौटकर कय नह आय तब सबस पहल वषण लौटकर माता क पास आय और बोल - पाताल म मझ पता क चरण तो नह मल उलट मरा शरर वषजवाला (शषनाग क परभाव स) स शयामल हो गया माता जब म पता नरजन क दशरन नह कर पाया तो म वयाकल हो गया और फ़र लौट आया अषटागी परसनन हो गयी और वषण को दलारत हय बोल - पतर तमन नशचय ह सतय कहा ह उधर पता क दशरन क बहद इचछक बरहमा चलत-चलत उस सथान पर पहच गय जहा न सयर था न चनदरमा कवल शनय था वहा बरहमा न अनक परकार स नरजन क सतत क जहा जयोत का परभाव था वहा भी धयान लगाया और ऐसा करत हय बहत दन बीत गय परनत बरहमा को नरजन क दशरन नह हय शनय म धयान करत हय बरहमा को अब lsquoचारयगrsquo बीत गय अषटागी को चनता हयी क म बरहमा क बना कस परकार सिषटरचना कर और कस परकार उस वापस लाऊ तब अषटागी न यिकत सोचत हय अपन शरर म उबटन लगाकर मल नकाला और उस मल स एक पतरीरपी कनया उतपनन क उस कनया म दवयशिकत का अश मलाया और कनया का नाम गायतरी रखा गायतरी उनह परणाम करती हयी बोल - माता तमन मझ कस कायर हत बनाया ह वह आा किजय

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अषटागी बोल - मर बात सनो बरहमा तमहारा बङा भाई ह वह पता क दशरन हत शनयआकाश क ओर गया ह उस बलाकर लाओ वह चाह अपन पता को खोजत-खोजत सारा जनम गवा द पर उनक दशरन नह कर पायगा अतः तम िजस वध स चाहो कोई उपाय करक उस बलाकर लाओ गायतरी बताय अनसार बरहमा क पास पहची उसन दखा धयान म लन बरहमा अपनी पलक तक नह झपकात थ वह कछ दन तक सोचती रह क कस वध दवारा बरहमा का धयान स धयान हटाकर अपनी ओर आकषरत कया जाय फ़र उसन अषटागी का धयान कया तब अषटागी न धयान म गायतरी को आदश दया क अपन हाथ स बरहमा को सपशर करो तब वह धयान स जागग गायतरी न ऐसा ह कया और बरहमा क चरणकमल का सपशर कया बरहमा धयान स जाग गया और उसका मन भटक गया वह वयाकल होकर बोला - त कौन पापी अपराधी ह जो मर धयान समाध छङायी म तझ शाप दता ह कयक तन आकर पता क दशरन का मरा धयान खडत कर दया गायतरी बोल - मझस कोई पाप नह हआ ह पहल तम सब बात समझ लो तब मझ शाप दो म सतय कहती ह तमहार माता न मझ तमहार पास भजा ह अतः शीघर चलो तमहार बना सिषट का वसतार कौन कर बरहमा बोल - म माता क पास कस परकार जाऊ अभी मझ पता क दशरन भी नह हय ह गायतरी बोल - तम पता क दशरन कभी नह पाओग अतः शीघर चलो वरना पछताओग बरहमा बोला - यद तम झठ गवाह दो क मन पता का दशरन पा लया ह और ऐसा सवय तमन भी अपनी आख स दखा ह क पता नरजन परकट हय और बरहमा न आदर स उनका शीश सपशर कया यद तम माता स इस परकार कहो तो म तमहार साथ चल गायतरी बोल - ह वद सनन और धारण करन वाल बरहमा सनो म झठ वचन नह बोलगी हा यद मर भाई तम मरा सवाथर परा करो तो म इस परकार क झठ बात कह दगी बरहमा बोल - म तमहार सवाथर वाल बात समझा नह अतः मझ सपषट कहो गायतरी बोल - यद तम मझ रतदान दो यानी मर साथ कामकरङा करो तो म ऐसा कह सकती ह यह मरा सवाथर ह फ़र भी तमहार लय परमाथर जानकर कहती ह बरहमा वचार करन लग क इस समय कया उचत होगा यद म इसक बात नह मानता तो य गवाह नह दगी और माता मझ मझ धककारगी क न तो मन पता क दशरन पाय और न कोई कायर सदध हआ अतः म इसक परसताव म पाप को वचारता ह तो मरा काम नह बनता इसलय रतदान दन क इसक इचछा पर करनी ह

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चाहय ऐसा ह नणरय करत हय बरहमा और गायतरी न मलकर वषयभोग कया उन दोन पर रतसख का रग परभाव दखान लगा बरहमा क मन म पता को दखन क जो इचछा थी उस वह भल गया और दोन क हरदय म कामवषय क उमग बढ़ गयी फ़र दोन न मलकर छलपणर बदध बनायी तब बरहमा न कहा - चलो माता क पास चलत ह गायतरी बोल - एक उपाय और करो जो मन सोचा ह वह यिकत ह क एक दसरा गवाह भी तयार कर लत ह बरहमा बोल - यह तो बहत अचछ बात ह तम वह करो िजस पर माता वशवास कर तब गायतरी न साी उतपनन करन हत अपन शरर स मल नकाला और उसम अपना अश मलाकर एक कनया बनायी बरहमा न उस कनया का नाम सावतरी रखवाया तब गायतरी न सावतरी को समझाया क तम चलकर माता स कहना क बरहमा न पता का दशरन पाया ह सावतरी बोल - जो तम कह रह हो उस म नह जानती और झठ गवाह दन म तो बहत हान ह बरहमा और गायतरी को बहत चता हयी उनहन सावतरी को अनक परकार स समझाया पर वह तयार नह हयी तब सावतरी अपन मन क बात बोल - यद बरहमा मझस रतपरसग कर तो म ऐसा कर सकती ह तब गायतरी न बरहमा को समझाया क सावतरी को रतदान दकर अपना काम बनाओ बरहमा न सावतरी को रतदान दया और बहत भार पाप अपन सर ल लया सावतरी का दसरा नाम बदल कर पहपावती कहकर अपनी बात सनात ह य तीन मलकर वहा गय जहा कनया आदकमार अषटागी थी तीन क परणाम करन पर अषटागी न पछा - बरहमा कया तमन अपन पता क दशरन पाय और यह दसर सतरी कहा स लाय बरहमा बोल - माता य दोन साी ह क मन पता क दशरन पाय इन दोन क सामन मन पता का शीश सपशर कया ह अषटागी बोल - गायतरी वचार करक कहो क तमन अपनी आख स कया दखा ह सतय बताओ बरहमा न अपन पता का दशरन पाया और इस दशरन का उस पर कया परभाव पङा गायतरी बोल - बरहमा न पता क शीश का दशरन पाया ह ऐसा मन अपनी आख स दखा ह क बरहमा अपन पता नरजन स मल माता यह सतय ह बरहमा न अपन पता पर फ़ल चढ़ाय और उनह फ़ल स यह पहपावती उस

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सथान स परकट हयी इसन भी पता का दशरन पाया ह आप इसस पछ क दखय इसम री भर भी झठ नह ह अषटागी बोल - पहपावती मझस सतय कहो और बताओ कया बरहमा न पता क सर पर पषप चढ़ाया पहपावती न कहा - माता म सतय कहती ह चतमरख बरहमा न पता क शीश क दशरन कय और शात एव िसथर मन स फ़ल चढ़ाय इस झठ गवाह को सनकर अषटागी परशान हो गयी और वचार करन लगी

अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना

अषटागी को बहद आशचयर हआ क बरहमा न नरजन क दशरन पा लय ह जबक अलखनरजन न परता कर रखी ह क उस कोई आख स दख नह पायगा फ़र य तीन लबार झठ-कपट कस कहत ह क उनहन नरजन को दखा ह उसी ण अषटागी न नरजन का धयान कया और बोल - मझ सतय बताओ नरजन न कहा - बरहमा न मरा दशरन नह पाया उसन तमहार पास आकर झठ गवाह दलवायी उन तीन न झठ बनाकर सब कहा ह वह सब मत मानो वह झठ ह अषटागी को बहत करोध आया उसन बरहमा को शाप दया - तमन मझस आकर झठ बोला अतः कोई तमहार पजा नह करगा एक तो तम झठ बोल और दसर तमन न करन योगय कमर (दषकमर) करक बहत बङा पाप अपन सर ल लया आग जो भी तमहार शाखा सतत होगी वह बहत झठ और पाप करगी तमहार सतत (बरहमा क वश अथवा बरहमा क नाम स पकार जान वाल बराहमण) परकट म तो बहत नयम धमर वरत उपवास पजा शच आद करग परनत उनक मन म भीतर पाप मल का वसतार रहगा तमहार व सतान वषणभकत स अहकार करगी इसलय नकर को परापत हगी तमहार वश वाल पराण क धमरकथाओ को लोग को समझायग परनत सवय उसका आचरण न करक दख पायग उनस जो और लोग ान क बात सनग उसक अनसार व भिकत कर सतय को बतायग बराहमण परमातमा का ान भिकत को छोङकर दसर दवताओ को ईशवर का अश बताकर उनक भिकत-पजा करायग और क नदा करक वकराल काल क मह म जायग अनक दवी-दवताओ क बहत परकार स पजा करक यजमान स दणा लग और दणा क कारण पशबल म पशओ का गला कटवायग दणा क लालच म यजमान को बबकफ़ बनायग व िजसको शषय बनायग उस भी परमाथर कलयाण का रासता नह दखायग परमाथर क तो व पास भी नह जायग परनत सवाथर क लय व सबको अपनी बात समझायग सवाथ होकर सबको अपनी सवाथरसदध का ान सनायग और ससार म अपनी सवा-पजा मजबत करग अपन को ऊचा और और को छोटा कहग इस परकार

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बरहमा तर वशज तर ह जस झठ और कपट हग शाप सनकर बरहमा मछरत होकर गर पङ फ़र अषटागी न गायतरी को शाप दया - गायतरी बरहमा क साथ कामभावना स हो जान स मनषयजनम म तर पाच पत हग तर गायरपी शरर म बल पत हग और व सात-पाच स भी अधक हग पशयोन म त गाय बनकर जनम लगी और न खान योगय पदाथर खायगी तमन अपन सवाथर क लय मझस झठ बोला और झठ वचन कह कया सोचकर तमन झठ गवाह द गायतरी न गलती मानकर शाप सवीकार कर लया फर अषटागी न सावतरी को दखा और बोल - तमन नाम तो सनदर पहपावती रखवा लया परनत झठ बोलकर तमन अपन जनम का नाश कर लया सन तमहार वशवास पर तमस कोई आशा रखकर कोई तमह नह पजगा दगध क सथान पर तमहारा वास होगा कामवषय क आशा लकर अब नकर क यातना भोगो जानबझ कर जो तमह सीचकर लगायगा उसक वश क हान होगी अब तम जाओ और व बनकर जनम तमहारा नाम कवङा कतक होगा कबीर बोल - अषटागी क शाप क कारण बरहमा गायतरी और सावतरी तीन बहत दखी हो गय अपन पापकमर स व बदधहन और दबरल हो गय कामवषय म परवत करान वाल कामनी सतरी कालरप-काम (वासना क इचछा) क अततीवर कला ह इसन सबको अपन शरर क सनदर चमर स डसा ह शकर बरहमा सनकाद और नारद जस कोई भी इसस बच नह पाय कोई बरला सनत-साधक बच पाता ह जो सदगर क सतयशबद को भल परकार अपनाता ह सदगर क शबदपरताप स य कालकला मनषय को नह वयापती अथारत कोई हान नह करती जो कलयाण क इचछा रखन वाला भकत मन वचन कमर स सतगर क शरीचरण क शरण गरहण करता ह पाप उसक पास नह आता कबीर साहब आग बोल - बरहमा वषण महश तीन को शाप दन क बाद अषटागी मन म पछतान लगी उसन सोचा शाप दत समय मझ बलकल दया नह आयी अब न जान नरजन मर साथ कसा वयवहार करगा उसी समय आकाशवाणी हयी - भवानी तमन यह कया कया मन तो तमह सिषटरचना क लय भजा था परनत तमन शाप दकर यह कसा चरतर कया ह भवानी ऊचा और बलवान ह नबरल को सताता ह और यह निशचत ह क वह इसक बदल दख पाता ह इसलय जब दवापर यग आयगा तब तमहार भी पाच पत हग भवानी न अपन शाप क बदल नरजन का शाप सना तो मन म सोच वचार कया पर मह स कछ न बोल वह सोचन लगी - मन बदल म शाप पाया नरजन म तो तर वश म ह जसा चाहो वयवहार करो फ़र अषटागी न वषण को दलारत हय कहा - पतर तम मर बात सनो सच-सच बताओ जब तम पता क चरण सपशर करन गय तब कया हआ पहल तो तमहारा शरर गोरा था तम शयाम रग कस हो गय

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वषण न कहा - पता क दशरन हत जब म पाताललोक पहचा तो शषनाग क पास पहच गया वहा उसक वष क तज स म ससत (अचत) हो गया मर शरर म उसक वष का तज समा गया िजसस वह शयाम हो गया तब एक आवाज हयी - वषण तम माता क पास लौट जाओ यह मरा सतयवचन ह क जस ह सतयग तरतायग बीत जायग तब दवापर म तमहारा कषणअवतार होगा उस समय तम शषनाग स अपना बदला लोग तब तम यमना नद पर जाकर नाग का मानमदरन करोग यह मरा नयम ह क जो भी ऊचा नीच वाल को सताता ह उसका बदला वह मझस पाता ह जो जीव दसर को दख दता ह उस म दख दता ह ह माता उस आवाज को सनकर म तमहार पास आ गया यह सतय ह क मझ पता क शरीचरण नह मल भवानी यह सनकर परसनन हो गयी और बोल - पतर सनो म तमह तमहार पता स मलाती ह और तमहार मन का भरम मटाती ह पहल तम बाहर क सथलदिषट (शरर क आख) छोङकर भीतर क ानदिषट (अनतर क आख तीसर आख) स दखो और अपन हरदय म मरा वचन परखो सथलदह क भीतर सममन क सवरप को ह कतार समझो मन क अलावा दसरा और कसी को कतार न मानो यह मन बहत ह चचल और गतशील ह ण भर म सवगर पाताल क दौङ लगाता ह और सवछनद होकर सब ओर वचरता ह मन एक ण म अननतकला दखाता ह और इस मन को कोई नह दख पाता मन को ह नराकार कहो मन क ह सहार दन-रात रहो ह वषण बाहर दनया स धयान हटाकर अतमरखी हो जाओ अपनी सरत और दिषट को पलट कर भकट मधय (भह क बीच आाचकर) पर या हरदय क शनय म जयोत को दखो जहा जयोत झलमल झालर सी परकाशत होती ह वषण न अपनी सवास को घमाकर भीतर आकाश क ओर दौङाया और (अतर) आकाशमागर म धयान लगाया हरदयगफ़ा म परवश कर धयान लगाया धयान परकया म वषण न पहल सवास का सयम पराणायाम स कया कमभक म जब उनहन सवास को रोका तो पराण ऊपर उठकर धयान क कनदर शनय म आया वहा वषण को lsquoअनहद-नादrsquo क गजरना सनाई द यह अनहद बाजा सनत हय वषण परसनन हो गय तब मन न उनह सफ़द लाल काला पीला आद रगीन परकाश दखाया धमरदास इसक बाद वषण को मन न अपन आपको दखाया और lsquoजयोतपरकाशrsquo कया िजस दखकर वह परसनन हो गय और बोल - ह माता आपक कपा स आज मन ईशवर को दखा धमरदास अचानक चककर बोल - सदगर यह सनकर मर भीतर एक भरम उतपनन हआ ह अषटागीकनया न जो lsquoमन का धयानrsquo बताया इसस तो समसत जीव भरमा गय ह यानी भरम म पङ गय ह कबीर बोल - धमरदास यह कालनरजन का सवभाव ह ह क इसक चककर म पङन स वषण सतयपरष का भद नह जान पाय (नरजन न अषटागी को पहल ह सचत कर आदश द दया था क सतयपरष का कोई भद जानन न पाय ऐसी माया फ़लाना) अब उस कामनी अषटागी क यह चाल दखो क उसन अमतसवरप सतयपरष को छपाकर वषरप कालनरजन को दखाया िजस lsquoजयोतrsquo का धयान अषटागी न बताया उस जयोत स कालनरजन

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को दसरा न समझो धमरदास अब तम यह वलण गढ़ सतय सनो जयोत का जसा परकटरप होता ह वसा ह गपतरप भी ह (दय मोमबी आद क जयोत लौ) जो हरदय क भीतर ह वह ह बाहर दखन म भी आता ह जब मनषय दपक जलाता ह तो उस जयोत क भाव-सवभाव को दखो और नणरय करो जयोत को दखकर पतगा बहत खश होता ह और परमवश अपना भला जानकर उसक पास आता ह लकन जयोत को सपशर करत ह पतगा भसम हो जाता ह इस परकार अानता म मतवाला हआ वह पतगा उसम जल मरता ह जयोतसवरप कालनरजन भी ऐसा ह ह जो भी जीवातमा उसक चककर म आ जाता ह कररकाल उस छोङता नह इस काल न करोङ वषण अवतार को खाया और अनक बरहमा शकर को खाया तथा अपन इशार पर नचाया काल दवारा दय जान वाल जीव क कौन-कौन स दख को कह वह लाख जीव नतय ह खाता ह ऐसा वह भयकर काल नदरयी ह धमरदास बोल - मर मन म सशय ह अषटागी को सतयपरष न उतपनन कया था और िजस परकार उतपनन कया वह सब कथा मन जानी कालनरजन न उस भी खा लया फ़र वह सतयपरष क परताप स बाहर आयी फ़र उस अषटागी न ऐसा धोखा कय कया क कालनरजन को तो परकट कया और सतयपरष का भद गपत रखा यहा तक क सतयपरष का भद उसन बरहमा वषण महश को भी नह बताया और उनस भी कालनरजन का धयान कराया अषटागी न कसा चरतर कया क सतयपरष को छोङकर कालनरजन क साथी हो गयी अथारत िजन सतयपरष का वह अश थी उसका धयान कय नह कराया कबीर साहब बोल - धमरदास नार का सवभाव तमह बताता ह िजसक घर म पतरी होती ह वह अनक जतन करक उस पालता-पोसता ह पहनन को वसतर खान को भोजन सोन को शयया रहन को घर आद सब सख दता ह और घर-बाहर सब जगह उस पर वशवास करता ह उसक माता-पता उसक हत म य आद करा क ववाह करत हय वधपवरक उस वदा करत ह माता-पता क घर स वदा होकर वह अपन पत क घर आ जाती ह तो उसक साथ सब गण म होकर परम म इतनी मगन हो जाती ह क अपन माता-पता सबको भला दती ह धमरदास नार का यह सवभाव ह इसलय नार सवभाववश अषटागी भी पराय सवभाव वाल ह हो गयी वह कालनरजन क साथ होकर उसी क होकर रह गयी और उसी क रग म रग गयी इसीलय उसन सतयपरष का भद परकट नह कया और वषण को कालनरजन का ह रप दखाया

काल-नरजन का धोखा

धमरदास बोल - यह रहसय तो मन जान लया अब आग का रहसय बताओ आग कया हआ कबीर साहब बोल - अषटागी न वषण को पयार कया और कहा बरहमा न तो वयभचार और झठ स अपनी मानमयारदा खो द वषण अब सब दवताओ म तमह ईशवर होग सब दवता तमह को शरषठ मानग और तमहार पजा करग िजसक इचछा तम मन म करोग वह कायर म परा करगी

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फ़र अषटागी शकर क पास गयी और बोल - शव तम मझस अपन मन क बात कहो तम जो चाहत हो वह मझस मागो अपन दोन पतर को तो मन उनक कमारनसार द दया ह शकर न हाथ जोङकर कहा - माता जसा तमन कहा वह मझ दिजय मरा यह शरर कभी नषट न हो ऐसा वर दिजय अषटागी न कहा - ऐसा नह हो सकता कयक lsquoआदपरषrsquo क अलावा कोई दसरा अमर नह हआ तम परमपवरक पराण पवन का योगसयम करक योगतप करो तो चार-यग तक तमहार दह बनी रहगी तब जहा तक परथवी आकाश होगा तमहार दह कभी नषट नह होगी वषण और महश ऐसा वर पाकर बहत परसनन हय पर बरहमा बहत उदास हय तब बरहमा वषण क पास पहच और बोल - भाई माता क वरदान स तम दवताओ म परमख और शरषठ हो माता तम पर दयाल हयी पर म उदास ह अब म माता को कया दोष द यह सब मर ह करनी का फ़ल ह तम कोई ऐसा उपाय करो िजसस मरा वश भी चल और माता का शाप भी भग न हो वषण बोल - बरहमा तम मन का भय और दख तयाग दो क माता न मझ शरषठ पद दया ह म सदा तमहार साथ तमहार सवा करगा तम बङ और म छोटा ह अतः तमहारा मान-सममान बराबर करगा जो कोई मरा भकत होगा वह तमहार भी वश क सवा करगा भाई म ससार म ऐसा मत-वशवास बना दगा क जो कोई पणयफ़ल क आशा करता हो और उसक लय वह जो भी य धमर पजा वरत आद जो भी कायर करता हो वह बना बराहमण क नह हग जो बराहमण क सवा करगा उस पर महापणय का परभाव होगा वह जीव मझ बहत पयारा होगा और म उस अपन समान बकठ म रखगा यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय वषण न उनक मन क चता मटा द बरहमा न कहा - मर भी यह चाह थी क मरा वश सखी हो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क फ़लाय जाल का वसतार दखो उसन खानी वाणी क मोह स मोहत कर सार ससार को ठग लया और सब इसक चककर म पङकर अपन आप ह इसक बधन म बध गय तथा परमातमा को सवय को अपन कलयाण को भल ह गय यह कालनरजन वभनन सख भोग आद तथा सवगर आद का लालच दकर सब जीव को भरमाता ह और उनस भात-भात क कमर करवाता ह फ़र उनह जनम-मरण क झल म झलाता हआ बहभात कषट दता ह ------------------- खानी बधन - सतरी-पत पतर-पतरी परवार धन-सप आद को ह सब कछ मानना खानी बधन ह वाणी बधन - भत-परत सवगर-नकर मान-अपमान आद कलपनाय करत हय वभनन चतन करना वाणी बधन ह

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कयक मन इन दोन जगह ह जीव को अटकाय रखता ह मोट माया सब तज झीनी तजी न जाय मान बङाई ईषयार फ़र लख चौरासी लाय सनतमत म खानी बधन को lsquoमोटमायाrsquo और वाणी बधन को lsquoझीनीमायाrsquo कहत ह बना ान क इन बधन स छट पाना जीव क लय बहद कठन ह खानी बधन क अतगरत मोटमाया को तयाग करत तो बहत लोग दख गय ह परनत झीनीमाया का तयाग बरल ह कर पात ह कामना वासनारपी झीनीमाया का बधन बहत ह जटल ह इसन सभी को भरम म फ़सा रखा ह इसक जाल म फ़सा कभी िसथर नह हो पाता अतः यह कालनरजन सब जीव को अपन जाल म फ़साकर बहत सताता ह राजा बल हरशचनदर वण वरोचन कणर यधषठर आद और भी परथवी क पराणय का हतचतन करन वाल कतन तयागी और दानी राजा हय इनको कालनरजन न कस दश म ल जाकर रखा यानी य सब भी काल क गाल म ह समा गय कालनरजन न इन सभी राजाओ क जो ददरशा क वह सारा ससार ह जानता ह क य सब बवश होकर काल क अधीन थ ससार जानता ह क कालनरजन स अलग न हो पान क कारण उनक हरदय क शदध नह हयी कालनरजन बहत परबल ह उसन सबक बदध हर ल ह य कालनरजन अभमानी lsquoमनrsquo हआ जीव क दह क भीतर ह रहता ह उसक परभाव म आकर जीव lsquoमन क तरगrsquo म वषयवासना म भला रहता ह िजसस वह अपन कलयाण क साधन नह कर पाता तब य अानी भरमत जीव अपन घर अमरलोक क तरफ़ पलटकर भी नह दखता और सतय स सदा अनजान ह रहता ह ---------------------- धमरदास बोल - मन यम यानी कालनरजन का धोखा तो पहचान लया ह अब बताओ क गायतरी क शाप का आग कया हआ कबीर साहब बोल - म तमहार सामन अगम (जहा पहचना असभव हो) ान कहता ह गायतरी न अषटागी दवारा दया शाप सवीकार तो कर लया पर उसन भी पलट कर अषटागी को शाप दया क माता मनषय जनम म जब म पाच परष क पतनी बन तो उन परष क माता तम बनो उस समय तम बना परष क ह पतर उतपनन करोगी और इस बात को ससार जानगा आग दवापर यग आन पर दोन न गायतरी न दरौपद और अषटागी न कनती क रप म दह धारण क और एक-दसर क शाप का फ़ल भगता जब यह शाप और उसका झगङा समापत हो गया तब फ़र स जगत क रचना हयी बरहमा वषण महश और अषटागी इन चारो न अणडज पणडज ऊषमज और सथावर इन चार खानय को उतपनन कया फ़र चार-खानय क अतगरत भनन-भनन सवभाव क चौरासी लाख योनया उतपनन क पहल अषटागी न अणडज यानी अड स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क बरहमा न पणडज यानी शरर क अनदर गभर स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क वषण न ऊषमज यानी मल पसीना पानी आद स

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उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क शकर न सथावर यानी व जङ पहाङ घास बल आद जीवखान क रचना क इस तरह स चार खानय को चार न रच दया और उसम जीव को बधन म डाल दया फ़र परथवी पर खती आद होन लगी तथा समयानसार लोग lsquoकारणrsquo lsquoकरणrsquo और lsquoकतारrsquo को समझन लग इस परकार चार खान क चौरासी का वसतार हो गया इन चार खानय को बोलन क लय lsquoचार परकार क वाणीrsquo द गयी बरहमा वषण महश और अषटागी दवारा सिषटरचना होन क कारण जीव उनह को सब कछ समझन लग और सतयपरष क तरफ़ स भल रह

चार खान चौरासी लाख योनय स आय मनषय क लण

धमरदास बोल - िजन चार खान क उतप हयी उनका वणरन मझ बताय चौरासीलाख योनय क जो वकराल धाराय ह उनम कस योन का कतना वसतार हआ वह भी बताय कबीर साहब बोल - म तमह योनभाव का वणरन सनाता ह चौरासी लाख योनय म नौ लाख जल क जीव और चौदह लाख पी होत ह उङन रगन वाल कम-कट आद साईस लाख होत ह व बल फ़ल आद सथावर तीस लाख होत ह और चारलाख परकार क मनषय हय इन सब योनय म मनषयदह सबस शरषठ ह कयक इसी स मो को जाना समझा और परापत कया जा सकता ह मनषययोन क अतरकत और कसी योन म मोपद या परमातमा का ान नह होता कयक और योन क जीव कमरबधन म भटकत रहत ह धमरदास बोल - जब सभी योनय क जीव एक समान ह तो फ़र सभी जीव को एक सा ान कय नह ह कबीर साहब बोल - जीव क असमानता क वजह तमह समझा कर कहता ह चारखान क जीव एक समान ह परनत शरररचना म ततववशष का अनतर ह सथावर खान म सफ़र lsquoएक ततवrsquo होता ह ऊषमज म lsquoदो ततवrsquo अणडज खान म lsquoतीन ततवrsquo और पणडज खान म lsquoचारततवrsquo होत ह इनस अलग मनषयशरर म पाच-ततव होत ह अब चार खान का ततवनणरय भी जान अणडज खान म तीन ततव - जल अिगन और वाय ह सथावर खान म एक ततव lsquoजलrsquo वशष ह ऊषमज खान म दो ततव वाय तथा अिगन बराबर समझो पणडज खान म चार ततव अिगन परथवी जल और वाय वशष ह पणडज खान म ह आन वाला मनषय - अिगन वाय परथवी जल आकाश स बना ह धमरदास बोल - मनषययोन म नर-नार ततव म एक समान ह परनत सबको एक समान ान कय नह ह सतोष मा दया शील आद सदगण स कोई मनषय तो शनय होता ह तथा कोई इन गण स परपणर होता ह कोई मनषय पापकमर करन वाला अपराधी होता ह तो कोई वदवान कोई दसर को दख दन वाल सवभाव का होता ह

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तो कोई अतकरोधी कालरप होता ह कोई मनषय कसी जीव को मारकर उसका आहार करता ह तो कोई जीव क परत दयाभाव रखता ह कोई आधयातम क बात सनकर सख पाता ह तो कोई कालनरजन क गण गाता ह मनषय म यह नानागण कस कारण स होत ह कबीर साहब बोल - म तमस मनषययोन क नर-नार क गण अवगण को भल परकार स कहता ह कस कारण स मनषय ानी और अानी भाव वाला होता ह वह पहचान सनो शर साप का गीदङ सयार कौवा गदध सअर बलल तथा इनक अलावा और भी अनक जीव ह जो इनक समान हसक पापयोन अभय मास आद खान वाल दषकम नीच गण वाल समझ जात ह इन योनय म स जो जीव आकर मनषययोन म जनम लता ह तो भी उसक पीछ क योन का सवभाव नह छटता उसक पवरकम का परभाव उसको अभी परापत मानवयोन म भी बना रहता ह अतः वह मनषयदह पाकर भी पवर क स कम म परवत रहता ह ऐस पशयोनय स आय जीव नरदह म होत हय भी परतय पश ह दखायी दत ह िजस योन स जो मनषय आया ह उसका सवभाव भी वसा ह होगा जो दसर पर घात करन वाल करर हसक पापकम तथा करोधी वषल सवभाव क जीव ह उनका भी वसा ह सवभाव बना रहता ह धमरदास मनषययोन म जनम लकर ऐस सवभाव को मटन का एक ह उपाय ह क कसी परकार सौभागय स सदगर मल जाय तो व ान दवारा अान स उतपनन इस परभाव को नषट कर दत ह और फ़र मनषय कागदशा (वषठा मल आद क समान वासनाओ क चाहत) क परभाव को भल जाता ह उसका अान पर तरह समापत हो जाता ह तब पवर पशयोन और अभी क मनषययोन का यह दवद छट जाता ह सदगरदव ान क आधार ह व अपन शरण म आय हय जीव को ानअिगन म तपाकर एव उपाय स घस पीटकर सतयान उपदश अनसार उस वसा ह बना लत ह और नरतर साधना अभयास स उस पर परभावी पवरयोनय क ससकार समापत कर दत ह िजस परकार धोबी वसतर धोता ह और साबन मलन स वसतर साफ़ हो जाता ह तब वसतर म यद थोङा सा ह मल हो तो वह थोङ ह महनत स साफ़ हो जाता ह परनत वसतर बहत अधक गनदा हो तो उसको धोन म अधक महनत क आवशयकता होती ह वसतर क भात ह जीव क सवभाव को जानो कोई-कोई जीव जो अकर होता ह ऐसा जीव सदगर क थोङ स ान को ह वचार कर शीघर गरहण कर लता ह उस ान का सकत ह बहत होता ह अधक ान क आवशयकता नह होती ऐसा शषय ह सचचान का अधकार होता ह धमरदास बोल - यह तो थोङ सी योनय क बात हयी अब चारखान क जीव क बात कह चारखान क जीव जब मनषययोन म आत ह उनक लण कया ह िजस जानकर म सावधान हो जाऊ कबीर साहब बोल - चारखान क चौरासी लाख योनय म भरमाया भटकता जीव जब बङ भागय स मनषयदह धारण करन का अवसर पाता ह तब उसक अचछ-बर लण का भद तमस कहता ह िजसको बहत ह आलस नीद आती ह तथा कामी करोधी और दरदर होता ह वह अणडज खान स आया ह जो बहत चचल ह और चोर करना िजस अचछा लगता ह धन-माया क बहत इचछा रखता ह दसर क चगल नदा िजस अचछ लगती ह इसी सवभाव क कारण वह दसर क घर वन तथा झाङ म आग लगाता ह तथा चचल होन क कारण कभी बहत रोता ह

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कभी नाचता-कदता ह कभी मगल गाता ह भतपरत क सवा उसक मन को बहत अचछ लगती ह कसी को कछ दता हआ दखकर वह मन म चढ़ता ह कसी भी वषय पर सबस वाद-ववाद करता ह ान धयान उसक मन म कछ नह आत वह गर सदगर को नह पहचानता न मानता वदशासतर को भी नह मानता वह अपन मन स ह छोटा बङा बनता रहता ह और समझता ह क मर समान दसरा कोई नह ह उसक वसतर मल तथा आख कचङयकत और मह स लार बहती ह वह अकसर नहाता भी नह ह जआ चौपङ क खल म मन लगाता ह उसका पाव लमबा और कभी-कभी वह कबङा भी होता ह य सब अणडज खान स आय मनषय क लण ह अब ऊषमज क बार म कहता ह यह जगल म जाकर शकार करत हय बहत जीव को मारकर खश होता ह इन जीव को मारकर अनक तरह स पकाकर वह खाता ह वह सदगर क नाम-ान क नदा करता ह गर क बराई और नदा करक वह गर क महतव को मटान का परयास करता ह वह शबदउपदश और गर क नदा करता ह वह बहत बात करता ह तथा बहत अकङता ह और अहकार क कारण बहत ान बनाकर समझाता ह वह सभा म झठ वचन कहता ह टङ पगङ बाधता ह िजसका कनारा छाती तक लटकता ह दया धमर उसक मन म नह होता कोई पणय-धमर करता ह वह उसक हसी उङाता ह माला पहनता ह और चदन का तलक लगाता ह तथा शदध सफ़द वसतर पहनकर बाजार आद म घमता ह वह अनदर स पापी और बाहर स दयावान दखता ह ऐसा अधम-नीच जीव यम क हाथ बक जाता ह उसक दात लमब तथा बदन भयानक होता ह उसक पील नतर होत ह कबीर साहब बोल - अब सथावर खान स आय जीव (मनषय) क लण सनो इसस आया जीव भस क समान शरर धारण करता ह ऐस जीव क बदध णक होती ह अतः उनको पलटन म दर नह लगती वह कमर म फ़ टा सर पर पगङ बाधता ह तथा राजदरबार क सवा करता ह कमर म तलवार कटार बाधता ह इधर-उधर दखता हआ मन स सन (आख मारकर इशारा करना) मारता ह परायी सतरी को सन स बलाता ह मह स रसभर मीठ बात कहता ह िजनम कामवासना का परभाव होता ह वह दसर क घर को कदिषट स ताकता ह तथा जाकर चोर करता ह पकङ जान पर राजा क पास लाया जाता ह सारा ससार भी उसक हसी उङाता ह फ़र भी उसको लाज नह आती एक ण म ह दवी-दवता क पजा करन क सोचता ह दसर ह ण वचार बदल दता ह कभी उसका मन कसी क सवा म लग जाता ह फ़र जलद ह वह उसको भल भी जाता ह एक ण म ह वह (कोई) कताब पढ़कर ानी बन जाता ह एक ण म ह वह सबक घर आना जाना घमना करता ह एक ण म बहादर एक ण म ह कायर भी हो जाता ह एक ण म ह मन म साह (धनी) हो जाता ह और दसर ण म ह चोर करन क सोचता ह एक ण म धमर और दसर ण म अधमर भी करता ह इस परकार ण परतण मन क बदलत भाव क साथ वह सखी दखी होता ह भोजन करत समय माथा खजाता ह तथा फ़र बाह जाघ पर रगङता ह भोजन करता ह फ़र सो जाता ह जो जगाता ह उस मारन दौङता ह और गसस स िजसक आख लाल हो जाती ह और उसका भद कहा तक कह धमरदास अब पणडज खान स आय जीव का लण सनो पणडज खान स आया जीव वरागी होता ह तथा योगसाधना क मदराओ म उनमनी-समाध का मत आद धारण करन वाला होता ह और वह जीव वद आद का वचार कर धमर-कमर करता ह तीथर वरत धयान योग समाध म लगन वाला होता ह उसका मन गरचरण म

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भल परकार लगता ह वह वद पराण का ानी होकर बहत ान करता ह और सभा म बठकर मधर वातारलाप करता ह राज मलन का तथा राज क कायर करन का और सतरीसख को बहत मानता ह कभी भी अपन मन म शका नह लाता और धन-सप क सख को मानता ह बसतर पर सनदर शया बछाता ह उस उम शदध साितवक पौिषटक भोजन बहत अचछा लगता ह और लग सपार पान बीङा आद खाता ह पणयकमर म धन खचर करता ह उसक आख म तज और शरर म परषाथर होता ह सवगर सदा उसक वश म ह वह कह भी दवी-दवता को दखता ह तो माथा झकाता ह उसका धयान समरन म बहत मन लगता ह तथा वह सदा गर क अधीन रहता ह

चौरासी कय बनी

कबीर साहब बोल - मन चारो खान क लण तमस कह अब सनो मनषययोन क अवध समापत होन स पहल कसी कारण स दह छट जाय वह फ़र स ससार म मनषय जनम लता ह अब उसक बार म सनो धमरदास बोल - मर मन म एक सशय ह जब चौरासी लाख योनय म भरमन भटकन क बाद य जीव मनषयदह पाता ह और मनषयदह पाया हआ य जीव फ़र दह (असमय) छटन पर पनः मनषयदह पाता ह तो मतय होन और पनः मनषयदह पान क यह सध कस हयी और उस पनः मनषय जनम लन वाल क गण लण भी कहो कबीर साहब बोल - आय शष रहत जो मनषय मर जाता ह फ़र वह शष बची आय को परा करन हत मनषयशरर धारण करक आता ह जो अानी मखर फ़र भी इस पर वशवास न कर वह दपक बी जलाकर दख और बहत परकार स उस दपक म तल भर परनत वाय का झका (मतय आघात) लगत ह वह दपक बझ जाता ह (भल ह उसम खब तल भरा हो) उस बझ दपक को आग स फ़र जलाय तो वह दपक फ़र स जल जाता ह इसी परकार जीव मनषय फ़र स दह धारण करता ह अब उस मनषय क लण भी सनो उसका भद तमस नह छपाऊगा मनषय स फ़र मनषय का शरर पान वाला वह मनषय शरवीर होता ह भय और डर उसक पास भी नह फ़टकता मोहमाया ममता उस नह वयापत उस दखकर दशमन डर स कापत ह वह सतगर क सतयशबद को वशवासपवरक मानता ह नदा को वह जानता तक नह वह सदा सदगर क शरीचरण म अपना मन लगाता ह और सबस परममयी वाणी बोलता ह अानी होकर ान को पछता समझता ह उस सतयनाम का ान और परचय करना बहद अचछा लगता ह धमरदास ऐस लण स यकत मनषय स ानवातार करन का अवसर कभी खोना नह चाहय और अवसर मलत ह उसस ानचचार करनी चाहय जो जीव सदगर क शबदरपी उपदश को पाता ह और भल परकार गरहण करता ह उसक जनम-जनम का पाप और अानरपी मल छट जाता ह सतयनाम का परमभाव स समरन करन वाला जीव भयानक काल-माया क फ़द स छटकर सतयलोक जाता ह सदगर क शबदउपदश को हरदय म धारण करन वाला जीव अमतमय अनमोल होता ह वह सतयनाम साधना क बल पर अपन असलघर अमरलोक चला जाता ह जहा सदगर क हसजीव सदा आननद करत ह और अमत आहार करत ह

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जबक कालनरजन क जीव कागदशा (वषठा मल क समान घणत वासनाओ क लालची) म भटकत हय जनम-मरण क कालझल म झलत रहत ह सतयनाम क परताप स कालनरजन जीव को सतयलोक जान स नह रोकता कयक महाबल कालनरजन कवल इसी स भयभीत रहता ह उस जीव पर सदगर क वश क छाप दखकर काल बवशी स सर झकाकर रह जाता ह धमरदास बोल - आपन चारखान क जो वचार कह वो मन सन अब म जानना चाहता ह क चौरासी लाख योनय क धारा का वसतार कस कारण स कया गया और इस अवनाशी जीव को अनगनत कषट म डाल दया गया मनषय क कारण ह यह सिषट बनायी गयी ह या क कोई और जीव को भी भोग भगतन क लय बनायी गयी ह कबीर साहब बोल - सभी योनय म शरषठ मनषयदह सख दन वाल ह इस मनषयदह म ह गरान समाता ह िजसको परापत कर मनषय अपना कलयाण कर सकता ह ऐसा मनषयशरर पाकर जीव जहा भी जाता ह सदगर क भिकत क बना दख ह पाता ह मनषयदह को पान क लय जीव को चौरासी क भयानक महाजाल स गजरना ह होता ह फ़र भी यह दह पाकर मनषय अान और पाप म ह लगा रहता ह तो उसका घोरपतन निशचत ह उस फ़र स भयकर कषटदायक (साढ़ बारह लाख साल आय क) चौरासी धारा स गजरना होगा दर-ब-दर भटकना होगा सतयान क बना मनषय तचछ वषयभोग क पीछ भागता हआ अपना जीवन बना परमाथर क ह नषट कर लता ह ऐस जीव का कलयाण कस तरह हो सकता ह उस मो भला कस मलगा अतः इस लय को परापत करन क लय सतगर क तलाश और उनक सवा भिकत अतआवशयक ह धमरदास मनषय क भोगउददशय स चौरासी धारा या चौरासी लाख योनया रची गयी ह सासारक-माया और मन-इिनदरय क वषय क मोह म पङकर मनषय क बदध का नाश हो जाता ह वह मढ़ अानी ह हो जाता ह और वह सदगर क शबदउपदश को नह सनता तो वह मनषय चौरासी को नह छोङ पाता उस अानी जीव को भयकर कालनरजन चौरासी म लाकर डालता ह जहा भोजन नीद डर और मथन क अतरकत कसी पदाथर का ान या अनय ान बलकल नह ह चौरासी लाख योनय क वषयवासना क परबलससकार क वशीभत हआ य जीव बारबार कररकाल क मह म जाता ह और अतयनत दखदायी जनम-मरण को भोगता हआ भी य अपन कलयाण का साधन नह करता धमरदास अानी जीव क इस घोर वप सकट को जानकर उनह सावधान करन क लय (सनत न) पकारा और बहत परकार स समझाया क मनषयशरर पाकर सतयनाम गरहण करो और इस सतयनाम क परताप स अपन नजधाम सतयलोक को परापत करो आदपरष क वदह (बना वाणी स जपा जान वाला) और िसथर आदनाम (जो शरआत स एक ह ह) को जो जाच-समझ कर (सचचगर स मतलब य नाम मह स जपन क बजाय धनरप होकर परकट हो जाय यह सचचगर और सचचीदा क पहचान ह) जो जीव गरहण करता ह उसका निशचत ह कलयाण होता ह गर स परापत ान स आचरण करता हआ वह जीव सार को गरहण करन वाला नीर-ीर ववक (हस क तरह दध और पानी क अनतर को जानन वाला) हो जाता ह और कौव क गत (साधारण और दारहत मनषय) तयाग कर हसगत वाला हो जाता ह इस परकार क ानदिषट क परापत होन स वह वनाशी तथा अवनाशी का वचार करक

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इस नशवर नाशवान जङ दह क भीतर ह अगोचर और अवनाशी परमातमा को दखता ह धमरदास वचार करो वह नःअर (शाशवत नाम) ह सार ह जो अर (जयोत िजस पर सभी योनय क शरर बनत ह धयान क एक ऊची िसथत) स परापत होता ह सब जङततव स पर वह असल सारततव ह

कालनरजन क चालबाजी

धमरदास बोल - साहब चार खानय क रचना कर फ़र कया कया यह मझ सपषट कहो कबीर साहब बोल - धमरदास यह कालनरजन क चालबाजी ह िजस पडत काजी नह समझत और व इस lsquoभक कालनरजनrsquo को भरमवश सवामी (भगवान आद) कहत ह और सतयपरष क नाम ानरपी अमत को तयाग कर माया का वषयरपी वष खात ह इन चारो अषटागी (आदशिकत) बरहमा वषण महश न मलकर यह सिषटरचना क और उनहन जीव क दह को कचचा रग दया इसीलय मनषयदह म आय समय आद क अनसार बदलाव होता रहता ह पाच-ततव परथवी जल वाय अिगन आकाश और तीन गण सत रज तम स दह क रचना हयी ह उसक साथ चौदह-चौदह यम लगाय गय ह इस परकार मनषयदह क रचना कर काल न उस मार खाया तथा फ़र फ़र उतपनन कया इस तरह मनषय सदा जनम-मरण क चककर म पङा ह रहता ह ओकार वद का मल अथारत आधार ह और इस ओकार म ह ससार भला-भला फ़र रहा ह ससार क लोग न ओकार को ह ईशवर परमातमा सब कछ मान लया व इसम उलझ कर सब ान भल गय और तरह-तरह स इसी क वयाखया करन लग यह ओकार ह नरजन ह परनत आदपरष का सतयनाम जो वदह ह उस गपत समझो कालमाया स पर वह lsquoआदनामrsquo गपत ह ह धमरदास फ़र बरहमा न अठासी हजार ऋषय को उतपनन कया िजसस कालनरजन का परभाव बहत बढ़ गया (कयक व उसी का गण तो गात ह) बरहमा स जो जीव उतपनन हय वो बराहमण कहलाय बराहमण न आग इसी शा क लय शासतर का वसतार कर दया (इसस कालनरजन का परभाव और भी बढ़ा कयक उनम उसी क बनावट महमा गायी गयी ह) बरहमा न समत शासतर पराण आद धमरगरनथ का वसतरत वणरन कया और उसम समसत जीव को बर तरह उलझा दया (जबक परमातमा को जानन का सीधा सरल आसान रासता lsquoसहजयोगrsquo ह) जीव को बरहमा न भटका दया और शासतर म तरह-तरह क कमरकाड पजा उपासना क नयम वध बताकर जीव को सतय स वमख कर भयानक कालनरजन क मह म डालकर उसी (अलखनरजन) क महमा को बताकर झठा धयान (और ान) कराया इस तरह lsquoवदमतrsquo स सब भरमत हो गय और सतयपरष क रहसय को न जान सक धमरदास नरकार (नरकार) नरजन न यह कसा झठा तमाशा कया उस चरतर को भी समझो कालनरजन (मन

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दवारा) आसरभाव उतपनन कर परताङत जीव को सताता ह दवता ऋष मन सभी को परताङत करता ह फ़र अवतार (दखाव क लय नजमहमा क लय) धारण कर रक बनता ह (जबक सबस बङा भक सवय ह) और फ़र असर का सहार (क नाटक) करता ह और इस तरह सबस अपनी महमा का वशष गणगान करवाता ह िजसक कारण जीव उस शिकतसपनन और सब कछ जानकर उसी स आशा बाधत ह क यह हमारा महान रक ह वह (वभनन अवतार दवारा) अपनी रककला दखाकर अनत म सब जीव का भण कर लता ह (यहा तक क अपन पतर बरहमा वषण महश को भी नह छोङता) जीवन भर उसक नाम ान जप पजा आद क चककर म पङा जीव अनत समय पछताता ह जब काल उस बरहमी स खाता ह (मतय स कछ पहल अपनी आगामी गत पता लग जाती ह)

तपतशला पर काल पीङत जीव क पकार

धमरदास अब आग सनो बरहमा न अड़सठ तीथर सथापत कर पाप पणय और कमर अकमर का वणरन कया फ़र बरहमा न बारह राश साईस नतर सात वार और पदरह तथ का वधान रचा इस परकार जयोतष शासतर क रचना हयी अब आग क बात सनो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन का जाल फ़लान क लय बनाय गय अड़सठ तीथर य ह 1 काशी 2 परयाग 3 नमषारणय 4 गया 5 करतर 6 परभास 7 पषकर 8 वशवशवर 9 अटटहास 10 महदर 11 उजजन 12 मरकोट 13 शककणर 14 गोकणर 15 रदरकोट 16 सथलशवर 17 हषरत 18 वषभधवज 19 कदार 20 मधयमशवर 21 सपणर 22 कातरकशवर 23 रामशवर 24 कनखल 25 भदरकणर 26 दडक 27 चदणडा 28 कमजागल 29 एकागर 30 छागलय 31 कालजर 32 मडकशवर 33 मथरा 34 मरकशवर 35 हरशचदर 36 सदधाथर तर 37 वामशवर 38 कककटशवर 39 भसमगातर 40 अमरकटक 41 तरसधया 42 वरजा 43 अक शवर 44 दवारका 45 दषकणर 46 करबीर 47 जलशवर 48 शरीशल 49 अयोधया 50 जगननाथपर 51 कारोहण 52 दवका 53 भरव 54 पवरसागर 55 सपतगोदावर 56 नमलशवर 57 कणरकार 58 कलाश 59 गगादवार 60 जललग 61 बङवागन 62 बदरकाशरम 63 शरषठ सथान 64 वधयाचल 65 हमकट 66 गधमादन 67 लगशवर 68 हरदवार और बारह राशया - मष वष मथन ककर सह कनया तला विशचक धन मकर कभ मीनय ह तथा साईस नतर - अिशवनी भरणी कका रोहणी मगशरा आदरार पनवरस पषय आशलषा मघा पवारफ़ालगनी उराफ़ालगनी हसत चतरा सवात वशाखा अनराधा जयषठा मल पवारषाढा उराषाढा शरवण धनरषठा शतभषा पवारभादरपरद उराभादपरद रवतीय ह सात दन - रववार सोमवार मगलवार बधवार बहसपतवार शकरवार शनवार पदरह तथया - परथम या पङवा दज तीज चौथ पचमी षषठ सपतमी अषटमी नवमी दशमी एकादशी दवादशी तरयोदशी चौदस पणरमा

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(शकलप) दसरा एक कषणप भी होता ह िजसक सभी तथया ऐसी ह होती ह कवल उसक पदरहवी तथ को पणरमा क सथान पर अमावसया कहत ह धमरदास फ़र बरहमा न चारो यग क समय को एक नयम स वसतार करत हय बाध दया एक पलक झपकन म िजतना समय लगता ह उस पल कहत ह साठपलक को एकघङ कहत ह एकघङ चौबीस मनट क होती ह साढ़सात घङ का एकपहर होता ह आठपहर का दन-रात चौबीस घट होत ह सात दन का एक सपताह और पदरह दन का एकप होता ह दो-प का एक महना और बारह महन का एक वषर होता ह सतरह लाख अटठाईस हजार वषर का सतयग बारह लाख छयानब हजार का तरता और आठ लाख चौसठ हजार का दवापर तथा चार लाख बीस हजार का कलयग होता ह चार यग को मलाकर एक महायग होता ह (यग का समय गलतबिलक बहत जयादा गलत ह य ववरण कबीर साहब दवारा बताया नह ह बिलक अनय आधार पर ह कलयग सफ़र बाईस हजार वषर का होता ह और तरता लगभग अड़तीस हजार वषर का होता ह) धमरदास बारह महन म कातरक और माघ इन दो महन को पणय वाला कह दया िजसस जीव वभनन धमर-कमर कर और उलझा रह जीव को इस परकार भरम म डालन वाल कालनरजन (और उसक परवार) क चालाक कोई बरला ह समझ पाता ह परतयक तीथर-धाम का बहत महातमय (महमा) बताया िजसस क मोहवश जीव लालच म तीथ क ओर भागन लग बहत सी कामनाओ क पतर क लय लोग तीथ म नहाकर पानी और पतथर स बनी दवी-दवता क मत रय को पजन लग लोग आतमा परमातमा (क ान) को भलकर इस झठपजा क भरम म पङ गय इस तरह काल न सब जीव को बर तरह उलझा दया सदगर क सतयशबद उपदश बना जीव सासारक कलश काम करोध शोक मोह चता आद स नह बच सकता सदगर क नाम बना वह यमरपी काल क मह म ह जायगा और बहत स दख को भोगगा वासतव म जीव कालनरजन का भय मानकर ह पणय कमाता ह थोङ फ़ल स धन-सप आद स उसक भख शानत नह होती जबतक जीव सतयपरष स डोर नह जोङता सदगर स दा लकर भिकत नह करता तबतक चौरासी लाख योनय म बारबार आता-जाता रहगा यह कालनरजन अपनी असीमकला जीव पर लगाता ह और उस भरमाता ह िजसस जीव सतयपरष का भद नह जान पाता लाभ क लय जीव लोभवश शासतर म बताय कम क और दौङता फ़रता ह और उसस फ़ल पान क आशा करता ह इस परकार जीव को झठ आशा बधाकर काल धरकर खा जाता ह कालनरजन क चालाक कोई पहचान नह पाता और कालनरजन शासतर दवारा पाप-पणय क कम स सवगर-नकर क परािपत और वषयभोग क आशा बधाकर जीव को चौरासी लाख योनय म नचाता ह पहल सतयग म इस कालनरजन का यह वयवहार था क वह जीव को लकर आहार करता था वह एक लाख जीव नतय खाता था ऐसा महान और अपार बलशाल कालनरजन कसाई ह वहा रात-दन तपतशला जलती थी कालनरजन जीव को पकङ कर उस पर धरता था उस तपतशला पर उन जीव को जलाता था और बहत दख दता था फ़र वह उनह चौरासी म डाल दता था उसक बाद जीव को तमाम योनय म भरमाता था इस परकार कालनरजन जीव को अनक परकार क बहत स कषट दता था

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तब अनकानक जीव न अनक परकार स दखी होकर पकारा क कालनरजन हम जीव को अपार कषट द रहा ह इस यमकाल का दया हआ कषट हमस सहा नह जाता सदगर हमार सहायता करो आप हमार रा करो सतयपरष न जीव को इस परकार पीङत होत दखा तब उनह दया आयी उन दया क भडार सवामी न मझ (ानी) नाम स बलाया और बहत परकार समझा कर कहा - ानी तम जाकर जीव को चताओ तमहार दशरन स जीव शीतल हो जायग जाकर उनक तपन दर करो सतयपरष क आा स म वहा आया कालनरजन जीव को सता रहा था और दखी जीव उसक सकत पर नाच रह थ जीव दख स छटपटा रह थ म वहा जाकर खङा हो गया जीव न मझ दखकर पकारा - ह साहब हम इस दख स उबार लो तब मन lsquoसतयशबदrsquo पकारा और उपदश कया फ़र सतयपरष क lsquoसारशबदrsquo स जीव को जोङ दया दख स जलत जीव शािनत महसस करन लग तब सब जीव न सतत क - ह परष आप धनय हो आपन हम दख स जलत हओ क तपन बझायी हम इस कालनरजन क जाल स छङा लो परभ दया करो मन जीव को समझाया - यद म अपनी शिकत स तमहारा उदधार करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह कयक सतयपरष क वचन अनसार सदउपदश दवारा ह आतमान स जीव का उदधार करना ह अतः जब तम यहा स जाकर मनषयदह धारण करोग तब तम मर शबदउपदश को वशवास स गरहण करना िजसस तमहारा उदधार होगा उस समय म सतयपरष क नाम समरन क सह वध और सारशबद का उपदश करगा तब तम ववक होकर सतयलोक जाओग और सदा क लय कालनरजन क बधन स मकत हो जाओग जो कोई भी मन वचन कमर स समरन करता ह और जहा अपनी आशा रखता ह वहा उसका वास होता ह अतः ससार म जाकर दह धारण कर िजसक आशा करोग और उस समय यद तम सतयपरष को भल गय तो कालनरजन तमको धर कर खा जायगा जीव बोल - ह परातन परष सनो मनषयदह धारण करक (मायारचत वासनाओ म फ़सकर) यह ान भल ह जाता ह अतः याद नह रहता पहल हमन सतयपरष जानकर कालनरजन का समरन कया क वह सब कछ ह कयक वद पराण सभी यह बतात ह वद-पराण सभी एकमत होकर यह कहत ह क नराकार नरजन स परम करो ततीस करोङ दवता मनषय और मन सबको नरजन न अपन वभनन झठ मत क डोर म बाध रखा ह उसी क झठमत स हमन मकत होन क आशा क परनत वह हमार भल थी अब हम सब सह-सह रप स दखायी द रहा ह और समझ म आ गया ह क वह सब दखदायी यम क कालफ़ास ह ह कबीर साहब बोल - जीव यह सब काल का धोखा ह काल न वभनन मत-मतातर का फ़दा बहत अधक फ़लाया ह कालनरजन न अनक कला मत का परदशरन कया और जीव को उसम फ़सान क लय बहत ठाठ फ़लाया (तरह-तरह क भोगवासना बनायी) और सबको तीथर वरत य एव याद कमर काड क फ़द म फ़ासा िजसस कोई मकत नह हो पाता

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फ़र आप शरर धारण करक परकट होता ह और (अवतार दवारा) अपनी वशषमहमा करवाता ह और नाना परकार क गण कमर आद करक सब जीव को बधन म बाध दता ह कालनरजन और अषटागी न जीव को फ़सान क लय अनक मायाजाल रच वद शासतर पराण समत आद क भरामकजाल स भयकरकाल न मिकत का रासता ह बनद कर दया जीव मनषयदह धारण करक भी अपन कलयाण क लय उसी स आशा करता ह कालनरजन क शासतर आद मतरपी कलाए बहत भयकर ह और जीव उसक वश म पङ ह सतयनाम क बना जीव काल का दड भोगत ह इस तरह जीव को बारबार समझा कर म सतयपरष क पास गया और उनको काल दवारा दय जा रह वभनन दख का वणरन कया दयाल सतयपरष तो दया क भडार और सबक सवामी ह व जीव क मल अभमानरहत और नषकामी ह तब सतयपरष न बहत परकार स समझा कर कहा - काल क भरम स छङान क लय जीव को नाम उपदश स सावधान करो

कालनरजन और कबीर का समझौता

धमरदास न कबीर साहब स कहा - परभो अब मझ वह वतात कहो जब आप पहल बार इस ससार म आय कबीर बोल - धमरदास जो तमन पछा वह यग-यग क कथा ह जो म तमस कहता ह जब सतयपरष न मझ आा क तब मन जीव क भलाई क लय परथवी क ओर पाव बढ़ाया और वकराल कालनरजन क तर म आ गया उस यग म मरा नाम अचत था जात हय मझ अनयायी कालनरजन मला वह मर पास आया और झगङत हय महाकरोध स बोला - योगजीत यहा कस आय कया मझ मारन आय हो ह परष अपन आन का कारण मझ बताओ मन कहा - नरजन म जीव का उदधार करन सतपरष दवारा भजा गया ह अनयायी सन तमन बहत कपट चतराई क भोलभाल जीव को तमन बहत भरम म डाला ह और बारबार सताया सतपरष क महमा को तमन गपत रखा और अपनी महमा का बढ़ाचढ़ा कर बखान कया तम तपतशला पर जीव को जलात हो और उस जला-पका कर खात हय अपना सवाद परा करत हो तमन ऐसा कषट जीव को दया तब सतपरष न मझ आा द क म तर जाल म फ़स जीव को सावधान करक सतलोक ल जाऊ और कषट स जीव को मिकत दलाऊ इसलय म ससार म जा रहा ह िजसस जीव को सतयान दकर सतलोक भज यह बात सनत ह कालनरजन भयकर रप हो गया और मझ भय दखान लगा फ़र वह करोध स बोला - मन सर यग तक सतपरष क सवा तपसया क तब सतपरष न मझ तीनलोक का राजय और उसक मान बङाई द

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फ़र दोबारा मन चौसठ यग तक सवा तपसया क तब सतपरष न सिषट रचन हत मझ अषटागी कनया (आदयाशिकत) को दया और उस समय तमन मझ मारकर मानसरोवर दप स नकाल दया था योगजीत अब म तमह नह छोङगा और तमह मारकर अपना बदला लगा म तमह अचछ तरह समझ गया मन कहा - धमरराय नरजन म तमस नह डरता मझ सतपरष का बल और तज परापत ह अर काल तरा मझ कोई डर नह तम मरा कछ नह बगाङ सकत कहकर मन उसी समय सतयपरष क परताप का समरन करक lsquoदवयशबद अगrsquo स काल को मारा मन उस पर दिषट डाल तो उसी समय उसका माथा काला पङ गया जस कसी पी क पख चोटल होन पर वह जमीन पर पङा बबस होकर दखता ह पर उङ नह पाता ठक यह हाल कालनरजन का था वह करोध कर रहा था पर कछ नह कर पा रहा था तब वह मर चरण म गर पङा और बोला - ानीजी म वनती करता ह क मन आपको भाई समझ कर वरोध कया यह मझस बङ गलती हयी म आपको सतयपरष क समान समझता ह आप बङ हो शिकतसमपनन हो गलती करन वाल अपराधी को भी मा दत हो जस सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया वस ह आप भी मझ कछ परसकार दो सोलह सत म आप ईशवर हो ानीजी आप और सतयपरष दोन एक समान हो मन कहा - नरजनराव तम तो सतयपरष क वश (सोलह सत) म कालख क समान कलकत हय हो म जीव को lsquoसतयशबदrsquo का उपदश करक सतयनाम मजबत करा क बचान आया ह भवसागर स जीव को मकत करान को आया ह यद तम इसम वघन डालत हो तो म इसी समय तमको यहा स नकाल दगा नरजन वनती करत हय बोला - म आपका एव सतयपरष दोन का सवक ह इसक अतरकत म कछ नह जानता ानीजी आपस वनती ह क ऐसा कछ मत करो िजसस मरा बगाङ हो और जस सतयपरष न मझ राजय दया वस आप भी दो तो म आपका वचन मानगा फ़र आप मिकत क लय हसजीव मझस ल लिजय तात म वनती करता ह क मर बात मानो आपका कहना य भरमत जीव नह मानग और उलट मरा प लकर आपस वादववाद करग कयक मन मोहरपी फ़दा इतना मजबत बनाया ह क समसत जीव उसम उलझ कर रह गय ह वद शासतर पराण समत म वभनन परकार क गणधमर का वणरन ह और उसम मर तीन पतर बरहमा वषण महश दवताओ म मखय ह उनम भी मन बहत चतराई का खल रचा ह क मर मतपथ का ान परमखरप स वणरन कया गया ह िजसस सब मर बात ह मानत ह म जीव स मिनदर दव और पतथर पजवाता ह और तीथर वरत जप और तप म सबका मन फ़सा रहता ह ससार म लोग दवी दव और भत भरव आद क पजा आराधना करग और जीव को मार-काट कर बल दग ऐस अनक मत-सदधात स मन जीव को बाध रखा ह धमर क नाम पर य होम नम और इसक अलावा भी अनक जाल मन डाल रख ह अतः ानीजी आप ससार म जायग तो जीव आपका कहा नह मानग और व मर मतफ़द म फ़स रहग मन कहा - अनयाय करन वाल नरजन म तमहार जालफ़द को काट कर जीव को सतयलोक ल जाऊगा िजतन भी

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मायाजाल जीव को फ़सान क लय तमन रच रख ह सतशबद स उन सबको नषट कर दगा जो जीव मरा lsquoसारशबदrsquo मजबती स गरहण करगा तमहार सब जाल स मकत हो जायगा जब जीव मर शबद उपदश को समझगा तो तर फ़लाय हय सब भरम अान को तयाग दगा म जीव को सतनाम समझाऊगा साधना कराऊगा और उन हसजीव का उदधार कर सतलोक ल जाऊगा सतयशबद दढ़ता स दकर म उन हसजीव को दया शील मा काम आद वषय स रहत सहजता समपणर सतोष और आतमपजा आद अनक सदगण का धनी बना दगा सतपरष क समरन का जो सार उपाय ह उसम सतपरष का अवचल नाम हसजीव पकारग तब तमहार सर पर पाव रखकर म उन हसजीव को सतलोक भज दगा अवनाशी lsquoअमतनामrsquo का परचार-परसार करक म हसजीव को चता कर भरममकत कर दगा इसलय धमररायनरजन मर बात मन लगाकर सन इस परकार म तमहारा मानमदरन करगा जो मनषय वधपवरक सदगर स दा लकर नाम को परापत करगा उसक पास काल नह आता सतयपरष क नामान स हसजीव को सध हआ दखकर कालनरजन भी उसको सर झकाता ह यह सनत ह कालनरजन भयभीत हो गया उसन हाथ जोङकर वनती क - तात आप दया करन वाल हो इसलय मझ पर इतनी कपा करो सतपरष न मझ शाप दया ह क म नतय लाख जीव खाऊ यद ससार क सभी जीव सतयलोक चल गय तो मर भख कस मटगी फ़र सतपरष न मझ पर दया क और भवसागर का राजय मझ दया आप भी मझ पर कपा करो और जो म मागता ह वह वर मझ दिजय सतयग तरता और दवापर इन तीन म स थोङ जीव सतयलोक म जाय लकन जब कलयग आय तो आपक शरण म बहत जीव जाय ऐसा पकका वचन मझ दकर ह आप ससार म जाय मन कहा - कालनरजन तमन य छल-मथया का जो परपच फ़लाया ह और तीन यग म जीव को दख म डाल दया मन तमहार वनती जान ल अर अभमानी काल तम मझ ठगत हो जसी वनती तमन मझस क वह मन तमह बखश द लकन चौथायग यानी कलयग जब आयगा तब म जीव क उदधार क लय अपन वश यानी सनत को भजगा आठअश सरत ससार म जाकर परकट हग उसक पीछ फ़र नय और उमसवरप सरत lsquoनौतमrsquo धमरदास क घर जाकर परकट हग सतपरष क व बयालस अश जीवउदधार क लय ससार म आयग व कलयग म वयापक रप स पथ परकट कर चलायग और जीव को ान परदान कर सतलोक भजग व बयालस अश िजस जीव को सतयशबद का उपदश दग म सदा उनक साथ रहगा तब वह जीव यमलोक नह जायगा और कालजाल स मकत रहगा नरजन बोला - साहब आप पथ चलाओ और भवसागर स उदधार कर जीव को सतलोक ल जाओ िजस जीव क हाथ म म अश-वश क छाप (नाम मोहर) दखगा उस म सर झकाकर परणाम करगा सतपरष क बात को मन मान लया परनत मर भी एक वनती ह आप एकपथ चलाओग और जीव को नाम दकर सतयलोक भजवाओग तब म बारहपथ (नकल) बनाऊगा जो आपक ह बात करत हय मतलब आपक जस ह ान क बात मगर फ़ज ान दग और अपन आपको कबीरपथी ह कहग म बारह यम ससार म भजगा और आपक नाम स पथ चलाऊगा

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मतअधा नाम का मरा एक दत सकत धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा दत धमरदास क घर जनम लगा इसक बाद आपका अश वहा आयगा इस परकार मरा वह दत जनम लकर जीव को भरमायगा और जीव को सतयपरष का नामउपदश (मगर नकल परभावहन) दकर समझायगा उन बारह पथ क अतगरत जो जीव आयग व मर मख म आकर मरा गरास बनग मर इतनी वनती मानकर मर बात बनाओ और मझ पर कपा करक मझ मा कर दो दवापर यग का अत और कलयग क शरआत जब होगी तब म बौदधशरर धारण करगा इसक बाद म उङसा क राजा इदरमन क पास जाऊगा और अपना नाम जगननाथ धराऊगा राजा इनदरमन जब मरा अथारत जगननाथ मदर समदर क कनार बनवायगा तब उस समदर का पानी ह गरा दगा उसस टकरा कर बहा दगा इसका वशष कारण यह होगा क तरतायग म मर वषण का अवतार राम वहा आयगा और वह समदर स पार जान क लय समदर पर पल बाधगा इसी शतरता क कारण समदर उस मदर को डबा दगा अतः ानीजी आप ऐसा वचार बनाकर पहल वहा समदर क कनार जाओ आपको दखकर समदर रक जायगा आपको लाघकर समदर आग नह जायगा इस परकार मरा वहा मदर सथापत करो उसक बाद अपना अश भजना आप भवसागर म अपना मतपथ चलाओ और सतयपरष क सतनाम स जीव का उदधार करो और अपन मतपथ का चहन छाप मझ बता दो तथा सतयपरष का नाम भी सझा समझा दो बना इस छाप क जो जीव भवसागर क घाट स उतरना चाहगा वह हस क मिकतघाट का मागर नह पायगा मन कहा - नरजन जसा तम मझस चाहत हो वसा तमहार चरतर को मन अचछ तरह समझ लया ह तमन बारह पथ चलान क जो बात कह ह वह मानो तमन अमत म वष डाल दया ह तमहार इस चरतर को दखकर तमह मटा ह डाल और अब पलट कर अपनी कला दखाऊ तथा यम स जीव का बधन छङाकर अमरलोक ल जाऊ मगर सतपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन नशचय कया ह क अमरलोक उस जीव को ल जाकर पहचाऊगा जो मर सतयशबद को मजबती स गरहण करगा अनयायीनरजन तमन जो बारहपथ चलान क माग कह ह वह मन तमको द पहल तमहारा दत धमरदास क यहा परकट होगा पीछ स मरा अश आयगा समदर क कनार म चला जाऊगा और जगननाथ मदर भी बनवाऊगा उसक बाद अपना सतयपथ चलाऊगा और जीव को सतयलोक भजगा नरजन बोला - ानीजी आप मझ सतयपरष स अपन मल का छाप नशान दिजय जसी पहचान आप अपन हसजीव को दोग जो जीव मझको उसी परकार क नशान पहचान बतायगा उसक पास काल नह आयगा अतः साहब दया करक सतपरष क नाम नशानी मझ द मन कहा - धमररायनरजन जो म तमह सतयपरष क मल क नशानी समझा द तो तम जीव क उदधार कायर म वघन पदा करोग तमहार इस चाल को मन समझ लया काल तमहारा ऐसा कोई दाव मझ पर नह चलन वाला धमरराय मन तमह साफ़ शबद म बता दया क अपना `अरनामrsquo मन गपत रखा ह जो कोई हमारा नाम लगा तम उस छोङकर अलग हो जाना जो तम हसजीव को रोकोग तो काल तम रहन नह पाओग धमररायनरजन बोला - ानीजी आप ससार म जाईय और सतयपरष क नाम दवारा जीव को उदधार करक ल

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जाईय जो हसजीव आपक गण गायगा म उसक पास कभी नह आऊगा जो जीव आपक शरण म आयगा वह मर सर पर पाव रखकर भवसागर स पार होगा मन तो वयथर आपक सामन मखरता क तथा आपको पता समान समझ कर लङकपन कया बालक करोङ अवगण वाला होता ह परनत पता उनको हरदय म नह रखता यद अवगण क कारण पता बालक को घर स नकाल द फ़र उसक रा कौन करगा इसी परकार मर मखरता पर यद आप मझ नकाल दग तो फ़र मर रा कौन करगा ऐसा कहकर नरजन न उठकर शीश नवाया और मन ससार क और परसथान कया कबीर न धमरदास स कहा - जब मन नरजन को वयाकल दखा तब मन वहा स परसथान कया और भवसागर क ओर चला आया

राम-नाम क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास भवसागर क ओर चलत हय म सबस पहल बरहमा क पास आया और बरहमा को आदपरष का शबद उपदश परकट कया तब बरहमा न मन लगाकर सनत हय आदपरष क चहन लण क बार म बहत पछा उस समय नरजन को सदह हआ क बरहमा मरा बङा लङका ह ानी क बात म आकर वह उनक प म न चला जाय तब नरजन न बरहमा क बदध फ़रन का उपाय कया कयक नरजन मन क रप म सबक भीतर बठा हआ ह अतः वह बरहमा क शरर म भी वराजमान था उसन बरहमा क बदध को अपनी ओर फ़र दया (सब जीव क भीतर lsquoमनसवरपrsquo नरजन का वास ह जो सबक बदध अपन अनसार घमाता फ़राता ह) बदध फ़रत ह बरहमा न मझस कहा - वह ईशवर नराकार नगरण अवनाशी जयोतसवरप और शनय का वासी ह उसी परष यानी ईशवर का वद वणरन करता ह वद आानसार ह म उस परष को मानता और समझता ह जब मन दखा क कालनरजन न बरहमा क बदध को फ़र दया ह और उस अपन प म मजबत कर लया ह तो म वहा स वषण क पास आ गया वषण को भी वह आदपरष का शबदउपदश कया परनत काल क वश म होन क कारण वषण न भी उस गरहण नह कया वषण न मझस कहा - मर समान अनय कौन ह मर पास चार पदाथर यानी फ़ल ह धमर अथर काम मो मर अधकार म ह उनम स जो चाह म कसी जीव को द मन कहा - वषण सनो तमहार पास यह कसा मो ह मो अमरपद तो मतय क पार होन स यानी आवागमन छटन पर ह परापत होता ह तम सवय िसथर शात नह हो तो दसर को िसथर शात कस करोग झठ साी झठ गवाह स तम भला कसका भला करोग और इस अवगण को कौन भरगा मर नभक सतयवाणी सनकर वषण भयभीत होकर रह गय और अपन हरदय म इस बात का बहत डर माना उसक बाद म नागलोक चला गया और वहा शषनाग स अपनी कछ बात कहन लगा

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मन कहा - आदपरष का भद कोई नह जानता ह सभी काल क छाया म लग हय ह और अानता क कारण काल क मह म जा रह ह भाई अपनी रा करन वाल को पहचानो यहा काल स तमह कौन छङायगा बरहमा वषण और रदर िजसका धयान करत ह और वद िजसका गण दन-रात गात ह वह आदपरष तमहार रा करन वाल ह वह तमह इस भवसागर स पार करग रा करन वाला और कोई नह ह वशवास करो म तमह उनस मलाता ह साातकार कराता ह लकन वष खान स उतपनन शषनाग का बहत तज सवभाव था अतः उसक मन म मर वचन का वशवास नह हआ जब बरहमा वषण और शषनाग न मर दवारा सतयपरष का सदश मानन स इकार कर दया तब म शकर क पास गया परनत शकर को भी सतयपरष का यह सदश अचछा नह लगा शकर न कहा - म तो नरजन को मानता ह और बात को मन म नह लाता तब वहा स म भवसागर क ओर चल दया कबीर साहब आग बोल - जब म इस भवसागर यानी मतयमडल म आया तब मन यहा कसी जीव को सतपरष क भिकत करत नह दखा ऐसी िसथत म सतपरष का ानउपदश कसस कहता िजसस कह वह अधकाश तो यम क वश म दखायी पङ वचतर बात यह थी क जो घातक वनाश करन वाला कालनरजन ह लोग को उसका तो वशवास ह और व उसी क पजा करत ह और जो रा करन वाला ह उसक ओर स व जीव उदास ह उसक प म न बोलत ह न सनत ह जीव िजस काल को जपता ह वह उस धरकर खा जाता ह तब मर शबदउपदश स उसक मन म चतना आती ह जीव जब दखी होता ह तब ान पान क बात उसक समझ म आती ह लकन उसस पहल जीव मोहवश कछ दखता समझता नह फर ऐसा भाव मर मन म उपजा क कालनरजन क शाखा वश सतत को मटा डाल और उस अपना परतय परभाव दखाऊ यमनरजन स जीव को छङा ल तथा उनह अमरलोक भज द िजनक कारण म शबदउपदश को रटत हय फ़रता ह व ह जीव मझ पहचानत तक नह सब जीव काल क वश म पङ ह और सतयपरष क नाम उपदशरपी अमत को छोङकर वषयरपी वष गरहण कर रह ह लकन सतयपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन अपन मन म नशचय कया क अमरलोक उसी जीव को लकर पहचाऊ जो मर सारशबद को मजबती स गरहण कर धमरदास इसक आग जसा चरतर हआ वह तम धयान लगाकर सनो मर बात स वचलत होकर बरहमा वषण शकर और बरहमा क पतर सनकादक सबन मलकर शनय म धयान समाध लगायी समाध म उनहन पराथरना क - ह ईशवर हम कस lsquoनामrsquo का समरन कर और तमहारा कौन सा नाम धयान क योगय ह धमरदास जस सीप सवात नतर का सनह अपन भीतर लाती ह ठक उसी परकार उन सबन ईशवर क परत परमभाव स शनय म धयान लगाया उसी समय नरजन न उनको उर दन का उपाय सोचा और lsquoशनयगफ़ाrsquo स अपना शबद उचचारण कया तब इनक धयान समाध म ररार यानी lsquoराrsquo शबद बहत बार उचचारत हआ उसक आग म अर उसक पतनी माया यानी अषटागी न मला दया इस तरह रा और म दोन अर को बराबर मलान पर राम शबद बना

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रामनाम उन सबको बहत अचछा लगा और सबन रामनाम समरन क ह इचछा क बाद म उसी रामनाम को लकर उनहन ससार क जीव को उपदश दया और समरन कराया कालनरजन और माया क इस जाल को कोई पहचान समझ नह पाया और इस तरह रामनाम क उतप हयी इस बात को तम गहरायी स समझो धमरदास बोल - आप पर सदगर ह आपका ान सयर क समान ह िजसस मरा सारा अान अधरा दर हो गया ह ससार म मायामोह का घोर अधरा ह िजसम वषयवकार लालची जीव पङ हय ह जब आपका ानरपी सयर परकट होता ह और उसस जीव का मोह अधकार नषट हो जाय यह आपक शबदउपदश क सतय होन का परमाण ह मर धनय भागय जो मन आपको पाया आपन मझ अधम को जगा लया अब आप वह कथा कह जब आपन सतयग म जीव को मकत कया

ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह

कबीर साहब बोल - धमरदास सतयग म िजन जीव को मन नामान का उपदश कया था सतयग म मरा नाम lsquoसतसकतrsquo था म उस समय राजा धधल क पास गया और उस सारशबद का उपदश सनाया उसन मर ान को सवीकार कया और उस मन lsquoनामrsquo दया इसक बाद म मथरा नगर आया यहा मझ खमसर नाम क सतरी मल उसक साथ अनय सतरी वदध और बचच भी थ खमसर बोल - ह परष परातन आप कहा स आय हो मन उसस सतयपरष सतयलोक तथा कालनरजन आद का वणरन कया खमसर न सना और उसक मन म सतयपरष क लय परम उतपनन हआ उसक मन म ानभाव आया और उसन कालनरजन क चाल को भी समझा पर खमसर क मन म एक सदह था क अपनी आख स सतयलोक दख तब ह मर मन म वशवास हो तब मन (सतसकत) उसक शरर को वह रहत हय उसक आतमा को एकपल म सतलोक पहचा दया फ़र अपनी दह म आत ह खमसर सतयलोक को याद करक पछतान लगी और बोल - साहब आपन जो दश दखाया ह मझ उसी दश अमरलोक ल चलो यहा तो बहत काल-कलश दख पीङा ह यहा सफ़र झठ मोहमाया का पसारा ह मन कहा - खमसर जबतक आय पर नह हो जाती तबतक तमह सतयलोक नह ल जा सकता इसलय अपनी आय रहन तक मर दय हय सतयनाम का समरन करो अब कयक तमन सतयलोक दखा ह इसलय आय रहन तक तम दसर जीव को सारशबद का उपदश करो जब कसी ानवान मनषय क दवारा एक भी जीव सतयपरष क शरण म आता ह तब ऐसा ानवान मनषय सतयपरष को बहत परय होता ह जस कोई गाय शर क मख म जाती हो यानी शर उस खान वाला हो और तब कोई बलवान मनषय आकर उस छङा ल तो सभी उसक बढ़ाई करत ह जस बाघ अपन चगल म फ़सी गाय को सताता डराता भयभीत करता हआ मार डालता ह ऐस ह कालनरजन जीव को दख दता हआ मारकर खा जाता ह इसलय जो भी मनषय एक भी जीव को सतयपरष क भिकत म लगाकर कालनरजन स बचा लता ह तो वह

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मनषय करोङ गाय को बचान क समान पणय पाता ह यह सनकर खमसर मर चरण म गर पङ और बोल - साहब मझ पर दया किजय और मझ इस करर रक क वश म भक कालनरजन स बचा लिजय मन कहा - खमसर यह कालनरजन का दश ह उसक जाल म फ़सन का जो अदशा ह वह सतयपरष क नाम स दर हो जाता ह खमसर बोल - साहब आप मझ वह नामदान (दा) दिजय और काल क पज स छङाकर अपनी (गर क) आतमा बना लिजय हमार घर म भी जो अनय जीव ह उनह भी य नाम दिजय धमरदास तब म खमसर क घर गया और सभी जीव को सतयनाम उपदश कया सब नर-नार मर चरण म गर गय खमसर अपन घर वाल स बोल - भाई यद अपन जीवन क मिकत चाहत हो तो आकर सदगर स शबदउपदश गहण करो य यम क फ़द स छङान वाल ह तम यह बात सतय जानो खमसर क वचन स सबको वशवास हो गया और सबन वनती क - ह साहब ह बनदछोङ गर हमारा उदधार करो िजसस यम का फ़दा नषट हो जाय और जनम-जनम का कषट (जीवन-मरण) मट जाय तब मन उन सबको नामदान करत हय धयानसाधना (नामजप) क बार म समझाया और सारनाम स हसजीव को बचाया कबीर साहब बोल - धमरदास इस तरह सतयग म म बारह जीव को नाम उपदश कर सतयलोक चला गया सतयलोक म रहन वाल जीव क शोभा मख स कह नह जाती वहा एक हस का दवयपरकाश सोलह सय क बराबर ह फ़र मन कछ समय तक सतयलोक म नवास कया और दोबारा भवसागर म आकर अपन दत हस जीव धधल खमसर आद को दखा म रात-दन ससार म गपतरप स रहता ह पर मझको कोई पहचान नह पाता फ़र सतयग बीत गया और तरता आया तब तरता म म मनीनदर सवामी क नाम स ससार म आया मझ दखकर कालनरजन को बङा अफ़सोस हआ उसन सोचा - इनहन तो मर भवसागर को ह उजाङ दया य जीव को सतयनाम का उपदश कर सतयपरष क दरबार म ल जात ह मन कतन छलबल क उपाय कय पर उसस ानी को कोई डर नह हआ व मझस नह डरत ह ानी क पास सतयपरष का बल ह उसस मरा बस इन पर नह चलता ह और न ह य मर कालमाया क जाल म फ़सत ह कबीर साहब बोल - धमरदास जस सह को दखकर हाथी का हरदय भय स कापन लगता ह और वह परथवी पर गर

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पङता ह वस ह सतयपरष क नाम स कालनरजन भय स थरथर कापता ह

कबीर और रावण

तरतायग म जब मनीनदर सवामी (तरतायग म कबीर का नाम) परथवी पर आय और उनहन जाकर जीव स कहा - यमरपी काल स तमह कौन छङायगा तब व अानी भरमत जीव बोल - हमारा कतारधतार सवामी पराणपरष (कालनरजन) ह वह पराणपरष वषण हमार रा करन वाला ह और हम यम क फ़द स छङान वाला ह कबीर बोल - धमरदास उन अानी जीव म स कोई तो अपनी रा और मिकत क आस शकर स लगाय हय था कोई चडी दवी को धयाता गाता था कया कह य वासना का लालची जीव अपनी सदगत भलकर पराया ह हो गया और सतयपरष को भल गया तथा तचछ दवी-दवताओ क हाथ लोभवश बक गया कालनरजन न सब जीव को परतदन पापकमर क कोठर म डाला हआ ह और सबको अपन मायाजाल म फ़साकर मार रहा ह यद सतयपरष क ऐसी आा होती तो कालनरजन को अभी मटाकर जीव को भवसागर क तट पर लाऊ लकन यद अपन बल स ऐसा कर तो सतयपरष का वचन नषट होता ह इसलय उपदश दवारा ह जीव को सावधान कर कतनी वचतर बात ह क जो (कालनरजन) इस जीव को दख दता खाता ह वह जीव उसी क पजा करता ह इस परकार बना जान यह जीव यम क मख म जाता ह धमरदास तब चार तरफ़ घमत हय म लका दश म आया वहा मझ वचतरभाट नाम का शरदधाल मला उसन मझस भवसागर स मिकत का उपाय पछा और मन उस ानउपदश दया उस उपदश को सनत ह वचतरभाट का सशय दर हो गया और वह मर चरण म गर गया मन उसक घर जाकर उस दा द वचतरभाट क सतरी राजा रावण क महल गयी और जाकर रानी मदोदर को सब बात बतायी उसन मदोदर स कहा - महारानी जी हमार घर एक सनदर महामन शरषठयोगी आय ह उनक महमा का म कया वणरन कर ऐसा सनतयोगी मन पहल कभी नह दखा मर पत न उनक शरण गरहण क ह और उनस दा ल ह तथा इसी म अपन जीवन को साथरक समझा ह यह बात सनत ह मदोदर म भिकतभाव जागा और वह मनीनदर सवामी क दशरन करन को वयाकल हो गयी वह दासी को साथ लकर सवणर हरा रतन आद लकर वचतरभाट क घर आयी और उनह अपरत करत हय मर चरण म शीश झकाया मन उसको आशीवारद दया मदोदर बोल - आपक दशरन स मरा दन आज बहत शभ हआ मन ऐसा तपसवी पहल कभी नह दखा क िजनक सब अग सफ़द और वसतर भी शवत ह सवामी जी म आपस वनती करती ह मर जीव (आतमा) का कलयाण िजस

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तरह हो वह उपाय मझ कहो म अपन जीवन क कलयाण क लय अपन कल और जात का भी तयाग कर सकती ह ह समथरसवामी अपनी शरण म लकर मझ अनाथ को सनाथ करो भवसागर म डबती हयी मझको सभालो आप मझ बहत दयाल और परय लगत हो आपक दशरन मातर स मर सभी भरम दर हो गय मन कहा - मदोदर सनो सतयपरष क नामपरताप स यम क बङ कट जाती ह तम इस ानदिषट स समझो म तमह खरा (सतयपरष) और खोटा (कालनरजन) समझाता ह सतयपरष असीम अजर अमर ह तथा तीनलोक स नयार ह अलग ह उन सतयपरष का जो कोई धयान-समरन कर वह आवागमन स मकत हो जाता ह मर य वचन सनत ह मदोदर का सब भरम भय अान दर हो गया और उसन पवतरमन स परमपवरक नामदान लया मदोदर इस तरह गदगद हयी मानो कसी कगाल को खजाना मल गया हो फ़र रानी चरण सपशर कर महल को चल गयी मदोदर न वचतरभाट क सतरी को समझा कर हसदा क लय पररत कया तब उसन भी दा ल धमरदास फ़र म रावण क महल स आया और मन दवारपाल स कहा - म तमस एक बात कहता ह अपन राजा को मर पास लकर आओ दवारपाल वनयपवरक बोला - राजा रावण बहत भयकर ह उसम शव का बल ह वह कसी का भय नह मानता और कसी बात क चता नह करता वह बङा अहकार और महान करोधी ह यद म उसस जाकर आपक बात कहगा तो वह उलटा मझ ह मार डालगा मन कहा - तम मरा वचन सतय मानो तमहारा बालबाका भी नह होगा अतः नभक होकर रावण स ऐसा जाकर कहो और उसको शीघर बलाकर लाओ दवारपाल न ऐसा ह कया वह रावण क पास जाकर बोला - ह महाराज हमार पास एक सदध (सनत) आया ह उसन मझस कहा ह क अपन राजा को लकर आओ रावण करोध स बोला - दवारपाल त नरा बदधहन ह ह तर बदध को कसन हर लया ह जो यह सनत ह त मझ बलान दौङा-दौङा चला आया मरा दशरन शव क सत गण आद भी नह पात और तन मझ एक भक को बलान पर जान को कहा मर बात सन और उस सदध का रप वणरन मझ बता वह कौन ह कसा ह कया वश ह दवारपाल बोला - ह राजन उनका शवत उजजवल सवरप ह उनक शवत ह माला तथा शवत तलक अनपम ह और शवत ह वसतर तथा शवत साजसामान ह चनदरमा क समान उसका सवरप परकाशवान ह मदोदर बोल - ह राजा रावण जसा दवारपाल न बताया वह सदधसनत परमातमा क समान सशोभत ह आप शीघर जाकर उनक चरण म परणाम करो तो आपका राजय अटल हो जायगा ह राजन इस झठ मान बङाई क अहम को तयाग कर आप ऐसा ह कर

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मदोदर क बात सनत ह रावण इस तरह भङका मानो जलती हयी आग म घी डाल दया गया हो रावण तरनत हाथ म शसतर लकर चला क जाकर उस सदध का माथा काटगा जब उसका शीश गर पङ तब दख वह भक मरा कया कर लगा ऐसा सोचत हय रावण बाहर मर पास आया और उसन सर बार पर शिकत स मझ पर शसतर चलाया मन उसक शसतरपरहार को हर बार एक तनक क ओट पर रोका अथारत रावण वह तनका भी नह काट सका मन तनक क ओट इस कारण क क रावण बहत अहकार ह इस कारण अपन शिकतशाल परहार स जब रावण तनका भी न काट पायगा तो अतयनत लिजजत होगा और उसका अहकार नषट हो जायगा तब यह तमाशा दखती हयी (मरा बलपरताप जान कर) मदोदर रावण स बोल - सवामी आप झठा अहकार और लजजा तयाग कर मनीनदर सवामी क चरण पकङ लो िजसस आपका राजय अटल हो जायगा यह सनकर खसयाया हआ रावण बोला - म जाकर शव क सवा-पजा करगा िजनहन मझ अटल राजय दया म उनक ह आग घटन टकगा और हरपल उनह को दणडवत करगा मन उस पकार कर कहा - रावण तम बहत अहकार करन वाल हो तमन हमारा भद नह समझा इसलय आग क पहचान क रप म तमह एक भवषयवाणी कहता ह तमको रामचनदर मारग और तमहारा मास का भी नह खायगा तम इतन नीचभाव वाल हो कबीर साहब बोल - धमरदास मनीनदर सवामी क रप म मन अहकार रावण को अपमानत कया और फ़र अयोधयानगर क ओर परसथान कया तब रासत म मझ मधकर नाम का एक गरब बराहमण मला वह मझ परमपवरक अपन घर ल गया और मर बहत परकार स सवा क गरब मधकर ानभाव म िसथरबदध वाला था उसका लोकवद का ान बहत अचछा था तब मन उस सतयपरष और सतयनाम क बार म बताया िजस सनकर उसका मन परसननता स भर गया वह बोला - ह परमसनत सवरप सवामी म भी उस अमतमय सतयलोक को दखना चाहता ह तब उसक सवाभाव स परसनन होकर lsquoअचछाrsquo ऐसा कहत हय म उसक शरर को वह रहा छोङकर उसक जीवातमा को सतयलोक ल गया अमरलोक क अनपम शोभा-छटा दखकर वह बहत परसनन हआ और गदगद होकर मर चरण म गर पङा और बोला - सवामी आपन सतयलोक दखन क मर पयास बझा द अब आप मझ ससार म ल चलो िजसस म अनय जीव को यहा लान क लय उपदश (गवाह) कर और जो जीव घर-गहसथी क अतगरत आत ह उनह भी सतय बताऊ धमरदास जब म उसक जीवातमा को लकर ससार म आया और जस ह मधकर क जीवातमा न दह म परवश कया तो उसका शरर जागरत हो गया मधकर क घर-परवार म सोलह अनय जीव थ

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मधकर न उनस सब बात कह और मझस बोला - साहब मर वनती सनो अब हम सबको सतयलोक म नवास दिजय कयक परथवी तो यम का दश ह इसम बहत दख ह फ़र भी माया स बधा जीव अानवश अधा हो रहा ह इस दश म कालनरजन बहत परबल ह वह सब जीव को सताता ह और अनक परकार क कषट दता हआ जनम-मरण का नकर समान दख दता ह काम करोध तषणा और माया बहत बलवान ह जो इसी कालनरजन क रचना ह य सब महाशतर दवता मन आद सबको वयापत ह और करोङ जीव को कचलकर मसल दत ह य तीन लोक यमनरजन का दश ह इसम जीव को णभर क लय वासतवक सख नह ह आप हमारा य जनम-जनम का कलश मटाओ और अपन साथ ल चलो तब मन उन सबको सतयपरष क नाम का उपदश दकर हसदा स गर (क) आतमा बनाया और उनक आय पर हो जान पर उनको सतयलोक भज दया उन सोलह जीव को सतयलोक जात हय दखकर ससारजीव क लय वकराल भयकर यमदत उदास खङ दखत रह उनह ऊपर जात दखकर व सब ववश और बहद उदास हो गय व सब जीव सतयपरष क दरबार म पहच गय िजनह दखकर सतयपरष क अश और अनय मकत हसजीव बहत परसनन हय सतयपरष न उन सोलह हसजीव को अमरवसतर पहनाया सवणर क समान परकाशवान अपनी अमरदह क सवरप को दखकर उन हसजीव को बहत सख हआ सतयलोक म हरक हसजीव का दवयपरकाश सोलह सयर क समान ह वहा उनहन अमत (अमीरस) का भोजन कया और अगर (चदन) क सगनध स उनका शरर शीतल होकर महकन लगा इस तरह तरतायग म मर (मनीनदर सवामी नाम स) दवारा ानउपदश का परचार-परसार हआ और सतयपरष क नामपरभाव स हसजीव मकत होकर सतयलोक गय

कबीर और रानी इनदरमती

तरतायग समापत हआ दवापर-यग आ गया तब फ़र कालनरजन का परभाव हआ और फ़र सतयपरष न ानीजी को बलाकर कहा - ानी तम शीघर ससार म जाओ और कालनरजन क बधन स जीव का उदधार करो कालनरजन जीव को बहत पीङा द रहा ह जाकर उसक फ़ास काटो मन सतयपरष क बात सनकर उनस कहा - आप परमाणत सपषट शबद म आा करो तो म कालनरजन को मारकर सब जीव को सतयलोक ल आता ह बारबार ऐसा करन ससार म कया जाऊ सतयपरष बोल - योगसतायन सनो सारशबद का उपदश सनाकर जीव को मकत कराओ जो अब जाकर कालनरजन को मारोग तो तम मरा वचन ह भग करोग अब तो अानी जीव काल क जाल म फ़स पङ ह और उसम ह उनह मोहवश सख भास रहा ह लकन जब तम उनह जागरत करोग तब उनह आननद का अहसास होगा

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जब तम कालनरजन का असल चरतर बताओग तो सब जीव तमहार चरण पकङग ह ानी जीव का भाव सवभाव तो दखो क य ान अान को पहचानत समझत नह ह तम ससार म lsquoसहजभावrsquo स जाकर परकट होओ और जीव को चताओ तब म फ़र स ससार क तरफ़ चला इधर आत ह चालाक और परपची कालनरजन न मर चरण म सर झका दया वह कातर भाव स बोला - अब कस कारण स ससार म आय हो म वनती करता ह क सार ससार क जीव को समझाओ ऐसा मत करना आप मर बङ भाई हो म वनती करता ह सभी जीव को मरा रहसय न बताना मन कहा - नरजन सन कोई-कोई जीव ह मझ पहचान पाता ह और मर बात समझता ह कयक तमन जीव को अपन जाल म बहत मजबती स फ़साकर ठगा हआ ह धमरदास ऐसा कहकर मन सतयलोक और सतयलोक का शरर छोङ दया और मनषयशरर धारण कर मतयलोक म आया उस यग म मरा नाम करणामय सवामी था तब म गरनार गढ़ आया जहा राजा चनदरवजय राजय करत थ उस राजा क सतरी बहत बदधमान थी उसका नाम इनदरमती था वह सनत समागम करती थी और ानीसनत क पजा करती थी इनदरमती अपन सवभाव क अनसार महल क ऊची अटार पर चढ़ कर रासता दखा करती थी यद रासत म उस कोई साध जाता नजर आता तो तरनत उसको बलवा लती थी इस परकार सनत क दशरन हत वह अपन शरर को कषट दती थी वह कसी सचचसनत क तलाश म थी उसक ऐस भाव स परसनन हम उसी रासत पर पहच गय जब रानी क दिषट हम पर पङ तो उसन तरनत दासी को आदरपवरक बलान भजा दासी न रानी का वनमर सदश मझ सनाया मन दासी स कहा - दासी हम राजा क घर नह जायग कयक राजय क कायर म झठ मान बङाई होती ह और साध का मान बङाई स कोई समबनध नह होता अतः म नह जाऊगा दासी न रानी स जाकर ऐसा ह कहा तब रानी सवय दौङ-दौङ आयी और मर चरण म अपना शीश रख दया फ़र वह बोल - साहब हम पर दया किजय और अपन पवतर शरीचरण स हमारा घर धनय किजय आपक दशरन पाकर म सखी हो गयी उसका ऐसा परमभाव दखकर हम उसक घर चल गय रानी भोजन क लय मझस नवदन करती हयी बोल - ह परभ भोजन तयार करन क आा दकर मरा सौभागय बढ़ाय आपक जठन मर घर म पङ और बचा भोजन शष परसाद क रप म म खाऊ मन कहा - रानी सनो पाच-ततव (का शरर) िजस भोजन को पाता ह उसक भख मझ नह होती मरा भोजन अमत ह म तमह इसको समझाता ह मरा शरर परकत क पाच-ततव और तीन गण वाला नह ह बिलक अलग ह पाच-ततव तीन गण पचचीस परकत स तो कालनरजन न मनषय शरर क रचना क ह सथान और करया क भद स कालनरजन न वाय क lsquoपचासी भागrsquo कय इसलय पचासी पवन कहा जाता ह इसी

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वाय तथा चार अनयततव परथवी जल आकाश अिगन स य मनषय शरर बना ह परनत म इनस एकदम अलग ह इस पाच-ततव क सथलदह म एक lsquoआदपवनrsquo ह आद का मतलब यहा जनम-मरण स रहत नतय अवनाशी और शाशवत ह वह चतनयजीव ह उस lsquoसोऽहगrsquo बोला जाता ह यह जीव सतयपरष का अश ह कालनरजन न इसी जीव को भरम म डालकर सतयलोक जान स रोक रखा ह कालनरजन ऐसा करन क लय नाना परकार क मायाजाल रचता ह और सासारक वषय का लोभ-लालच दकर जीव को उसम फ़साता ह और फ़र खा जाता ह म उनह जीव को कालनरजन स उदधार करान आया ह काल न पानी पवन परथवी आद ततव स जीव क बनावटदह क रचना क और इस दह म वह जीव को बहत दख दता ह मरा शरर कालनरजन न नह बनाया मरा शरर lsquoशबदसवरपrsquo ह जो खद मर इचछा स बना ह रानी इनदरमती को बहत आशचयर हआ और वह बोल - परभ जसा आपन कहा ऐसा कहन वाला दसरा कोई नह मला दयानध मझ और भी ान बताओ मन सना ह क वषण क समान दसरा कोई बरहमा शकर मन आद भी नह ह पाच-ततव क मलन स यह शरर बना ह और उन ततव क गण भख पयास नीद क वश म सभी जीव ह परभ आप अगमअपार हो मझ बताओ क बरहमा वषण तथा शकर स भी अलग आप कहा स उतपनन हय हो ऐसा बताकर मर िजासा शानत करो मन कहा - इनदरमती मरा दश नागलोक (पाताल) मतयलोक (परथवी) और दवलोक (सवगर) इन सबस अलग ह वहा कालनरजन को घसन क अनमत नह ह इस परथवी पर चनदरमा सयर ह पर सतयलोक म सतयपरष क एक रोम का परकाश करोङ चनदरमा क समान ह तथा वहा क हसजीव (मकत होकर गयी आतमाय) का परकाश सोलह सयर क बराबर ह उन हसजीव म अगर (चनदन) क समान सगनध आती ह और वहा कभी रात नह होती रानी इनदरमती घबरा कर बोल - परभ आप मझ इस यम कालनरजन स छङा लो म अपना समसत राजपाट आप पर नयोछावर करती ह म अपना सब धन-सप का तयाग करती ह ह बनदछोङ मझ अपनी शरण म लो मन कहा - रानी म तमह अवशय यम कालनरजन स छङाऊगा सतयनाम का समरन दगा पर मझको तमहार धन-सप तथा राजपाट स कोई परयोजन नह ह जो धन-सप तमहार पास ह उसस पणयकायर करो सचच साध-सनत का आदर सतकार करो सतयपरष क ह सभी जीव ह ऐसा जानकर उनस वयवहार करो परनत व मोहवश अान क अधकार म पङ हय ह सब शरर म सतयपरष क अश जीवातमा का ह वास ह पर वह कह परकट और कह गपत ह ह रानी य समसत जीव सतयपरष क ह परनत व मोह क भरमजाल म फ़स कालनरजन क प म हो रह ह यह सब चरतर कालनरजन का ह ह क सब जीव सतयपरष को भलाकर उसक फ़लाय खानी-वाणी क जाल म फ़स ह और उसन यह जाल इतनी सझबझ स फ़लाया ह क मझ जस उदधारक स भी जीव कालवश होकर उसका प लकर लङत ह और मझ भी नह पहचानत इस परकार य भरमत जीव सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन स परम करत ह असखय जीव म स कोई-कोई ह इस कपट कालनरजन क चालाक को समझ पाता ह और सतयनाम का उपदश लता ह इनदरमती बोल - ह परभ अब मन सब कछ समझ लया ह अब आप वह करो िजसस मरा उदधार हो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन रानी को सतयनाम उपदश यानी दा द रानी न ऐसी (दा क समय होन वाल) अनभत स परभावत होकर अपन पत स कहा - सवामी यद आप सखदायी मो चाहत हो तो करणामय सवामी क शरण म आओ मर इतनी बात मानो राजा बोला - रानी तम मर अधागनी हो इसलय म तमहार भिकत म आध का भागीदार ह इसलय हम-तम दोन भकत नह हग म सफ़र तमहार भिकत का परभाव दखगा क कस परकार तम मझ मकत कराओगी म तमहार भिकत का परताप दखगा िजसस सब दख कषट मट जायग और हम सतयलोक जायग

रानी इनदरमती का सतयलोक जाना

कबीर साहब बोल - धमरदास यह सब रानी न मर पास आकर कहा और मन उस वघन डालकर बदध फ़रन वाल कालनरजन का चरतर सनाया उसन राजा क बदध कस तरह फ़र द और इसक बाद मन रानी को भवषय क बार म बताया मन रानी स कहा - रानी सनो कालनरजन अपनी कला स छलरप धारण करगा साप बनकर कालदत तमहार पास आयगा और तमह डसगा ऐसा म तमह पहल ह बताय दता ह इसलय म तमको बरहल मनतर बताता ह िजसस कालरपी सपर का सब जहर दर हो जायगा फ़र यम तमस दसरा धोखा करगा वह हसवणर का सफ़दरप बनाकर तमहार पास आयगा और मर समान ान तमह समझायगा वह तमस कहगा - रानी मझ पहचान म कालनरजन का मानमदरन करन वाला ह और मरा नाम ानी करणामय ह इस परकार काल तमह ठगगा म उसका हलया भी तमह बताता ह कालदत का मसतक छोटा होगा और उसक आख का रग बदरग होगा उसक दसर सब अग शवतरग क हग य सब काल क लण मन तमह बता दय तब रानी न घबरा कर मर चरण पकङ लय और बोल - परभ मझ सतयलोक ल चलो यह तो यम का दश ह िजसस मर सब दख-कषट मट जाय मन कहा - रानी सतयनाम-दा स यम स तमहारा समबनध टट गया ह और तम सतयपरष क आतमा हो गयी हो अब तम इस सतयनाम का समरन करो तब य परपची कालनरजन तमहारा कया बगाङ लगा जबतक तमहार आय पर न हो इसी नाम का समरन करो जबतक आय का ठका परा न हो जीव सतयलोक नह जा सकता इस कालनरजन क कला बहत भयकर ह वह ससार म जीव क पास हाथीरप म आता ह परनत सहरपी सतयनाम का समरन करत ह समरन वाल का भय कालनरजन मानता ह और सामन नह आता रानी बोल - साहब जब कालनरजन सपर बनकर मझ सताय और हसरप धारण कर भरमाय तब फ़र आप मर पास आ जाना और मर हस-जीवातमा को सतयलोक ल जाना यह मर वनती ह

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कबीर साहब बोल - रानी काल सपर और मानवरप क कला धरकर तमहार पास आयगा तब म उसका मानमदरन करगा मझ दखत ह काल भाग जायगा उसक पीछ म तमहार पास आऊगा और तमहार जीव को सतयलोक ल जाऊगा धमरदास इतना कहकर मन सवय को छपा लया और तब तकसपर बनकर कालदत आया जब आधी रात हो गयी थी तब रानी अपन महल म आकर पलग पर लट गयी और सो गयी उसी समय तक न आकर रानी क माथ म डस लया रानी न जलद ह राजा स कहा - तक न मझ डस लया ह इतना सनत ह राजा वयाकल हो गया और वष उतारन वाल गारङ (ओझा) को बलाया रानी इनदरमती न साहब म सरत लगाकर उनका दया बरहल मनतर जपा और गारङ स कहा - तम दर जाओ तमहार आवशयकता नह ह रानी न राजा स कहा - सदगर न मझ बरहल मनतर दया ह िजसस मझ पर वष का परभाव नह होगा ऐसा कहत हय जाप करती हयी रानी उठ कर खङ हो गयी राजा चनदरवजय अपनी रानी को ठक दखकर बहत परसनन हआ धमरदास रानी क बना कसी नकसान क ठक हो जान पर वह कालदत वहा गया जहा बरहमा वषण महश थ और बोला - मर वष का तज भी इनदरमती को नह लगा सतयपरष क नामपरताप स सारा वष दर हो गया वषण न कहा - यमदत सन तम अपन सब अग सफ़द बना लो मर बात मानो और छल करक रानी को ल आओ तब उस कालदत न ऐसा ह कया और रानी क पास मर (कबीर) वश म आकर बोला - रानी तम कय उदास हो मन तमह दामनतर दया ह तम जानबझ कर ऐसी अनजान कय हो रह हो रानी मरा नाम करणामय ह म काल को मारकर उसक ऐसी पसाई कर दगा जब काल न तक बनकर तमह डसा तब भी मन तमह बचाया तम पलग स उतरकर मर चरण सपशर करो और अपनी मान बङाई छोङो म तमह परभ क दशरन कराऊगा लकन मर दवारा पहल ह बताय जान स रानी न उसको पहचान लया और उसक आख म तीन रखाय दखी पील सफ़द और लाल फ़र उसका छोटा मसतक दखा फर रानी मर वचन को याद करती हयी बोल - यमदत तम अपन घर जाओ मन तमह पहचान लया ह कौवा बहत सनदर वश बनाय परनत वह हस क सनदरता नह पा सकता वसा ह मन तमहारा रप दखा मर समथरगर न मझ पहल ह सब बता दया था यह सनकर यमदत न बहत करोध कया और बोला - मन कतना बारबार तमह कहकर समझाया फ़र भी तम नह मानी तमहार बदध फ़र गयी ह

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ऐसा कहकर वह रानी क पास आया और उसन रानी को थपपङ मारा िजसस रानी भम पर गर गयी और उसन मरा (कबीर) समरन कया फर बोल - ह सदगर मर सहायता करो मझको य कररकाल बहत दख द रहा ह धमरदास मरा सवभाव ह क भकत क पकार सनत ह मझस नह रहा जाता इसलय म णभर म इनदरमती क पास आ गया मझ दखत ह रानी को बहत परसननता हयी मर आत ह काल वहा स चला गया उसक थपपङ स जो अशदध हयी थी मर दशरन स दर हो गयी तब रानी बोल - साहब मझ यम क छाया क पहचान हो गयी मर एक वनती सनय अब म मतयलोक म नह रहना चाहती साहब मझ अपन दश सतयलोक ल चलय यहा तो बहत काल-कलश ह यह कहकर वह उदास हो गयी धमरदास उसक ऐसी वनती सनकर मन उस पर स काल का कठन परभाव समापत कर दया फ़र उसक आय का ठका (शष आय का समय समय स पहल परा करना) परा भर दया और रानी क हसजीव को लकर सतयलोक चला गया मन उस लकर मानसरोवर दप पहचाया जहा पर मायाकामनी कलोलकरङा कर रह थी अमतसरोवर स उस अमत चखाया तथा कबीरसागर पर उसका पाव रखवाया उसक आग सरतसागर था वहा पहचत ह रानी क जीवातमा परकाशत हो गयी तब उस सतयलोक क दवार पर ल गया िजस दखकर रानी न परमसख अनभव कया सतयलोक क दवार पर रानी क हसआतमा को दखकर वहा क हस न दौङकर रानी को अपन स लपटा लया और सवागत करत हय कहा - तम धनय हो जो करणामय सवामी को पहचान लया अब तमहारा कालनरजन का फ़दा छट गया और तमहार सब दख-दवद मट गय ह इनदरमती मर साथ आओ तमह सतयपरष क दशरन कराऊ ऐसा कहकर मन सतयपरष न वनती क - ह सतयपरष अब हस क पास आओ और एक नय हस को दशरन दो ह बनदछोङ आप महान कपा करन वाल हो ह दनदयाल दशरन दो तब पषपदप का पषप खला और वाणी हयी - ह योगसतायन सनो अब हस को ल आओ और दशरन करो तब ानी हस क पास आय और उनह ल जाकर सतयपरष का दशरन कराया सब हस न सतयपरष को दणडवत परणाम कया तब आदपरष न चार अमतफ़ल दय िजस सब हस न मलकर खाया

कबीर का सदशरन शवपच को ान दना

कबीर साहब बोल - धमरदास रानी इनदरमती क हसजीव को सतयलोक पहचा कर उस सतयपरष क दशरन करान क बाद मन कहा - ह हस अब अपनी बात बताओ तमहार जसी दशा ह सो कहो तमहारा सब दख-दवद जनम-

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मरण का आवागमन सब मट गया और तमहारा तज सोलह सयर क बराबर हो गया और तमहार सब कलश मटकर तमहारा कलयाण हआ इनदरमती दोन हाथ जोङकर बोल - साहब मर एक वनती ह बङ भागय स मन आपक शरीचरण म सथान पाया ह मर इस हसशरर का रप बहत सनदर ह परनत मर मन म एक सशय ह िजसस मझ (अपन पत चनदरवजय) राजा क परत मोह हआ ह कयक वह राजा मरा पत रहा ह ह करणामय सवामी आप उस भी सतयलोक ल आईय नह तो मरा राजा काल क मख म जायगा कबीर साहब बोल - तब मन कहा बदधमान हस सन राजा न नामउपदश नह लया उसन सतयपरष क भिकत नह पायी और भिकतहन होकर ततवान क बना वह इस असार ससार म चौरासी लाख योनय म ह भटकगा इनदरमती बोल - परभ म जब ससार म रहती थी और अनक परकार स आपक भिकत कया करती थी तब सजजन राजा न मर भिकत को समझा और कभी भी भिकत स नह रोका ससार का सवभाव बहत कठोर ह यद अपन पत को छोङकर उसक सतरी कह अलग रह तो सारा ससार उस गाल दता ह और सनत ह पत भी उस मार डालता ह साहब राजकाज म तो मान परशसा नािसतकता करोध चतराई होती ह ह परनत इन सबस अलग म साध-सत क सवा ह करती थी और राजा स भी नह डरती थी तो जब म साध-सनत क सवा करती थी यह सनकर राजा परसनन ह होता था साहब इसक वपरत राजा ऐसा करन क लय मझ रोकता दख दता तो म कस तरह साध-सनत क सवा कर पाती और तब मर मिकत कस होती अतः सवा-भिकत को जानन वाला वह राजा धनय ह उसक हस (जीवातमा) को भी ल आइय ह हसपत सदगर आप तो दया क सागर ह दया किजय और राजा को सासारक बधन स छङाईय कबीर साहब बोल - धमरदास म उस हस इनदरमती क ऐसी बात सनकर बहत हसा और इनदरमती क इचछाअनसार उसक राजय गरनारगढ़ म परकट हो गया उस समय राजा चनदरवजय क आय पर होन क करब ह आ गयी थी राजा चनदरवजय क पराण नकालन क लय यमराज उनह घर कर बहत कषट द रहा था और सकट म पङा हआ राजा भय स थरथर काप रहा था तब मन यमराज स उस छोङन को कहा यमराज उस छोङता नह था धमरदास दलरभ मनषयशरर म सतयनाम भिकत न करन क चक का यह परणाम होता ह सतयपरष क भिकत को भलकर जो जीव ससार क मायाजाल म पङ रहत ह आय पर होन पर यमराज उनह भयकर दख दता ह ह तब मन राजा चनदरवजय का हाथ पकङ लया और उसी समय सतयलोक ल आया रानी इनदरमती यह दखकर बहत परसनन हयी और बोल - ह राजा सनो मझ पहचानो म तमहार पतनी ह राजा उसस बोला - ानवान हस तमहारा दवय रपरग तो सोलह सयर जसा दमक रहा ह तमहार अग-अग म वशष अलौकक चमक ह तब तमको अपनी पतनी कस कह शरषठनार यह तमन बहत अचछ भिकत क िजसस अपना और मरा दोन का ह उदधार कया तमहार भिकत स ह मन अपना नजघर सतयलोक पाया मन करोङ जनम तक धमरपणय कया तब ऐसी सतकमर करन वाल भिकत करन वाल सतरी पायी म तो राजकाज ह करता हआ भिकत स वमख रहा रानी यद तम न होती तो म नशचय ह कठोर नकर म जाता ऐसा मन मतयपवर ह

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अनभव कया अतः ससार म तमहार समान पतनी सबको मल कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन राजा स ऐसा कहा जो जीव सतयपरष क सतनाम का धयान करता ह वह दोबारा कषटमय ससार म नह जाता धमरदास इसक बाद म फ़र स ससार म आया और काशी नगर म गया जहा भकत सदशरन शवपच रहता था वह शबदववक ान को समझन वाला उम सनत था उसन मर बताय आतमान को शीघर ह समझा और उस अपनाया उसका पकका वशवास दखकर मन उस भवबधन स मकत कर दया और वधपवरक नाम उपदश कया धमरदास सतयपरष क ऐसी परतय महमा दखत हय भी जो जीव उसको नह समझत व कालनरजन क फ़द म पङ हय ह जस का अपवतर वसत को भी खा लता ह वस ह ससार लोग भी अमत छोङकर वष खात ह अथारत सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन क ह भिकत करत ह धमरदास दवापर यग म यधषठर नाम का एक राजा हआ महाभारत यदध म अपन ह बनध-बानधव को मारकर उनस बहत पाप हआ था अतः यदध क बाद बहत हाहाकार मच गया चारो ओर घोर अशािनत और शोक-दख का माहौल था खद यधषठर को बर सवपन और अपशकन होत थ तब शरीकषण क सलाह पर उनहन इस पाप नवारण हत एक य कया इस य क सभी वधवत तयार आद करक जब य होन लगा तब शरीकषण न कहा - इस य क सफ़लतापवरक होन क पहचान ह क आकाश म बजता हआ घटा सवतः सनायी दगा उस य म सयासी योगी ऋष मन वरागी बराहमण बरहमचार आद सभी आय सभी को परम स भोजन आद कराया पर घटा नह बजा यधषठर बहत लिजजत हय और शरीकषण क पास इसका कारण पछन गय शरीकषण बोल - िजतन भी लोग न भोजन कया इनम एक भी सचचा सनत नह था व दखाव क लय साध सनयासी योगी वरागी बराहमण बरहमचार अवशय लग रह ह पर व मन स अभमानी ह थ इसलय घटा नह बजा यधषठर को बढ़ा आशचयर हआ इतन वशाल य म करोङ साधओ न भोजन कया और उनम कोई सचचा ह नह था तब हम ऐसा सचचासनत कहा स लाय शरीकषण न कहा - काशी नगर स सदशरन शवपच को लकर आओ व ह सवम साध ह उन जसा साध अभी कोई नह ह तब य सफ़ल होगा ऐसा ह कया गया और घनटा बजन लगा शवपच सदशरन क गरास उठात ह घटा सात बार बजा य सफ़ल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास तब भी जो अानी जीव सदगर क वाणी का रहसय नह पहचानत ऐस लोग क बदध नषट होकर यम क हाथ बक गयी ह अपन ह भकतजीव को य काल दख दता ह नकर म डालता ह काल

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क लय अब कया कह य भकत-अभकत सभी को दख दता ह सबको मार खाता ह गौर स समझो इस काल क दवारा ह महाभारत यदध म शरीकषण न पाडव को यदध क लय पररत कया और हतया का पाप करवाया फ़र उनह शरीकषण न पाडव को दोष लगाया क तमस हतया का पाप हआ अतः य करो और तब कहा था क तमह इसक बदल सवगर मलगा तमहारा यश होगा धमरदास इसक बाद भी पाडव को (शरीकषण न) और अधक दख दया और जीवन क अतम समय म हमालय यातरा म भजकर बफ़र म गलवा दया दरौपद और चार पाडव भीम अजरन नकल सहदव हमालय क बफ़र म गल गय कवल सतय को धारण करन वाल यधषठर ह बच जब शरीकषण को अजरन बहत परय था तो उसक य गत कय हयी राजा बल हरशचनदर कणर बहत बङ दानी थ फ़र भी काल न उनह बहत परकार स दख दया अपमान कराया अतः इस जीव को अानवश सतय-असतय उचत-अनचत का ान नह ह इसलय वह सदा हतषी सतयपरष को छोङकर इस कपट धतर कालनरजन क पजा करत हय मोहवश उसी क ओर भागता ह कालनरजन जीव को अनक कला दखाकर भरमत करता ह जीव इसस मिकत क आशा लगाकर और उसी आशा क फ़ास म बधकर काल क मख म जाता ह इन दोन कालनरजन और माया न सतयपरष क समान ह बनावट नकल और वाणी क अनक नाम मिकत क नाम पर ससार म फ़ला दय ह और जीव को भयकर धोख म डाल दया ह

काल कसाई जीव बकरा

कबीर साहब बोल - धमरदास दवापर यग बीत गया और कलयग आया तब म फ़र सतयपरष क आा स जीव को चतान हत परथवी पर आया और मन कालनरजन को अपनी ओर आत दखा मझ दखकर वह भय स मरझा ह गया और बोला - कसलय मझ दखी करत हो और मर भय भोजन जीव को सतयलोक पहचात हो तीन यग तरता दवापर सतयग म आप ससार म गय और जीव का कलयाण कर मरा ससार उजाङा सतयपरष न जीव पर शासन करन का वचन मझ दया हआ ह मर अधकारतर स आप जीव को छङा लत हो आपक अलावा यद कोई दसरा भाई इस परकार आता तो म उस मारकर खा जाता लकन आप पर मरा कोई वश नह चलता आपक बलपरताप स ह हसजीव (मनषय) अपन वासतवक घर अमरलोक को जात ह अब आप फ़र ससार म जा रह हो परनत आपक शबदउपदश को ससार म कोई नह सनगा शभ और अशभ कम क भरमजाल का मन ऐसा ठाठ मोह सख रचा ह क िजसस उसम फ़सा जीव आपक बताय सतयलोक क सदमागर को नह समझ पायगा धमर क नाम पर मन घर-घर म भरम का भत पदा कर दया ह इसलय सभी जीव असल पजा भलकर भगवान दवी-दवता भत-पशाच भरव आद क पजा-भिकत म लग ह और इसी को सतय समझ कर खद को धनय मान रह ह इस परकार धोखा दकर मन सब जीव को अपनी कठपतल बनाया हआ ह ससार म जीव को भरम और अान का भत लगगा परनत जो आपको तथा आपक सदउपदश को पहचानगा उसका भरम ततकाल दर हो जायगा

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लकन मर भरमभत स गरसत मनषय मास-मदरा खायग पयग और ऐस नीच मनषय को मास खाना बहत परय होगा म अपन ऐस मतपथ परकट करगा िजसम सब मनषय मास-मदरा का सवन करग तब म चडी योगनी भत-परत आद को मनषय स पजवाऊगा और इसी भरम स सार ससार क जीव को भटकाऊगा जीव को अनक परकार क मोहबधन म बाधकर इस परकार क फ़द म फ़सा दगा क व अपन अनत समय तक मतय को भलकर पापकम म लपत और वासतवक भिकत स दर रहग और इस परकार मोहबधन म बध व जीव जनम पनजरनम और चौरासी लाख योनय म बारमबार भटकत ह रहग भाई आपक दवारा बनी हयी सतयपरष क भिकत तो बहत कठन ह आप समझाकर कहोग तब भी कोई नह मानगा कबीर साहब बोल - नरजन तमन जीव क साथ बङा धोखा कया ह मन तमहार धोख को पहचान लया ह सतयपरष न जो वचन कहा ह वह दसरा नह हो सकता उसी क वजह स तम जीव को सतात और मारत हो सतयपरष न मझ आा द ह उसक अनसार सब शरदधाल जीव सतयनाम क परमी हग इसलय म सरल सवभाव स जीव को समझाऊगा और सतयान को गरहण करन वाल अकर जीव को भवसागर स छङाऊगा तमन मोहमाया क जो करोङ जाल रच रख ह और वद शासतर पराण म जो अपनी महमा बताकर जीव को भरमाया ह यद म परतयकला धारण करक ससार म आऊ तो तरा जाल और य झठ महमा समापत कर सब जीव को ससार स मकत करा द लकन जो म ऐसा करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह उनका वचन तो सदा न टटन वाला न डोलन वाला और बना मोह का अनमोल ह अतः म उसका पालन अवशय ह करगा जो शरषठ जीव हग व मर सारशबद ान को मानग तर चालाक समझ म आत ह शीघर सावधान होन वाल अकरजीव को म भवसागर स मकत कराऊगा और तमहार सार जाल को काटकर उनह सतयलोक ल जाऊगा जो तमन जीव क लय करोङ भरम फ़ला रख ह व तमहार फ़लाय हय भरम को नह मानग म सब जीव का सतयशबद पकका करक उनक सार भरम छङा दगा नरजन बोला - जीव को सख दन वाल मझ एक बात समझा कर कहो क जो तमको लगन लगाकर रहगा उसक पास म काल नह जाऊगा मरा कालदत आपक हस को नह पायगा और यद वह उस हसजीव (सतयनाम दा) क पास जायगा तो मरा वह कालदत मछरत हो जायगा और मर पास खाल हाथ लौट आयगा लकन आपक गपतान क यह बात मझ समझ नह आती अतः उसका भद समझा कर कहो वह कया ह तब मन कहा - नरजन धयान स सन सतय शरषठ पहचान ह और वह सतयशबद (नवारणी नाम) मो परदान करान वाला ह सतयपरष का नाम lsquoगपत परमाणrsquo ह कालनरजन बोला - अतयारमी सवामी सनो और मझ पर कपा करो इस यग म आपका कया नाम होगा मझ बताओ और अपन नामदान उपदश को भी बताओ क कस तरह और कौन सा lsquoनामrsquo आप जीव को दोग वह सब मझ बताओ िजस कारण आप ससार म जा रह हो उसका सब भद मझस कहो तब म भी जीव को उस नाम का उपदश कर चताऊगा और उन जीव को सतयपरष क सतयलोक भजगा परभ आप मझ अपना दास बना लिजय तथा य सारा गपतान मझ भी समझा दिजय मन कहा - नरजन सन म जानता ह आग क समय म तम कसा छल करन वाल हो दखाव क लय तो तम

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मर दास रहोग और गपतरप स कपट करोग गपत सारशबद का भदान म तमह नह दगा सतयपरष न ऐसा आदश मझ नह दया ह इस कलयग म मरा नाम कबीर होगा और यह इतना परभावी होगा क lsquoकबीरrsquo कहन स यम अथवा उसका दत उस शरदधाल जीव क पास नह जायगा कालनरजन बोला - आप मझस दवष रखत हो लकन एक खल म फ़र भी खलगा म ऐसी छलपणर बदध बनाऊगा िजसस अनक नकल हसजीव को अपन साथ रखगा और आपक समान रप बनाऊगा तथा आपका नाम लकर अपना मत चलाऊगा इस परकार बहत स जीव को धोख म डाल दगा क व समझ व सतयनाम का ह मागर अपनाय हय ह इसस अलप जीव सतय-असतय को नह समझ पायग कबीर साहब बोल - अर कालनरजन त तो सतयपरष का वरोधी ह उनक ह वरदध षङयतर रचता ह अपनी छलपणर बदध मझ सनाता ह परनत जो जीव सतयनाम का परमी होगा वो इस धोख म नह आयगा जो सचचा हस होगा वह तमहार दवारा मर ानगरनथ म मलायी गयी मलावट और मर वाणी का सतय साफ़-साफ़ पहचानगा और समझगा िजस जीव को म दा दगा उस तमहार धोख क पहचान भी करा दगा तब वह तमहार धोख म नह आयगा य बात सनकर कालनरजन चप हो गया और अतधयारन होकर अपन भवन को चला गया धमरदास इस काल क गत बहत नकषट और कठन ह यह धोख स जीव क मन-बदध को अपन फ़द म फ़ास लता ह --------------------- कबीर साहब न धमरदास दवारा काल क चरतर क बार म पछन पर बताया क - जस कसाई बकरा पालता ह उसक लय चार-पानी क वयवसथा करता ह गम-सद स बचन क लए भी परबनध करता ह िजसक वजह स उन अबोध बकर को लगता ह क हमारा मालक बहत अचछा और दयाल ह हमारा कतना धयान रखता ह इसलय जब कसाई उनक पास आता ह तो सीध-साध बकर उस अपना सह मालक जानकर अपना पयार जतान क लए आग वाल पर उठाकर कसाई क शरर को सपशर करत ह कछ उसक हाथ-पर को भी चाटत ह कसाई जब उन बकर को छकर कमर पर हाथ लगाकर दबा-दबाकर दखता ह तो बचार बकर समझत ह मालक पयार दखा रहा ह परनत कसाई दख रहा ह क बकर म कतना मास हो गया और जब मास खरदन गराहक आता ह तो उस समय कसाई नह दखता क कसका बाप मरगा कसक बट मरगी कसका पतर मरगा या परवार मर रहा ह वो तो बस छर रखी और कर दया - मऽ उनको सवधा दन खलान पलान का उसका यह उददशय था ठक इसी परकार सवरपराणी कालबरहम क पजा-साधना करक काल आहार ह बन ह

समदर और राम क दशमनी का कबीर दवारा नबटारा

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धमरदास बोल - साहब इसस आग कया हआ वह सब भी मझ सनाओ कबीर साहब बोल - उस समय राजा इनदरदमन उङसा का राजा था राजा इनदरदमन अपन राजय का कायर नयायपणर तरक स करता था दवापर यग क अनत म शरीकषण न परभास तर म शरर तयागा तब उसक बाद राजा इनदरदमन को सवपन हआ सवपन म शरीकषण न उसस कहा तम मरा मदर बनवा दो ह राजन तम मरा मदर बनवाकर मझ सथापत करो जब राजा न ऐसा सवपन दखा तो उसन तरनत मदर बनवान का कायर शर दया मदर बना जस ह उसका सब कायर परा हआ तरनत समदर न वह मदर और वह सथान ह नषट कर डबो दया फ़र जब दबारा मदर बनवान लग तो फ़र स समदर करोधत होकर दौङा और ण भर म सब डबोकर जगननाथ का मदर तोङ दया इस तरह राजा न मदर को छह बार बनबाया परनत समदर न हर बार उस नषट कर दया राजा इनदरदमन मदर बनवान क सब उपाय कर हार गया परनत समदर न मदर नह बनन दया मदर बनान तथा टटन क यह दशा दखकर मन वचार कया कयक अनयायी कालनरजन न पहल मझस यह मदर बनवान क पराथरना क थी और मन उस वरदान दया था अतः मर मन म बात सभालन का वचार आया और वचन स बधा होन क कारण म वहा गया मन समदर क कनार आसन लगाया परनत उस समय कसी जीव न मझ वहा दखा नह उसक बाद म फ़र समदर क कनार आया और वहा मन अपना चौरा (नवास) बनाया फ़र मन राजा इनदरदमन को सवपन दखाया और कहा - अर राजा तम मदर बनवाओ और अब य शका मत करो क समदर उस गरा दगा म यहा इसी काम क लय आया ह राजा न ऐसा ह कया और मदर बनवान लगा मदर बनन का काम होत दखकर समदर फ़र चलकर आया उस समय फ़र सागर म लहर उठ और उन लहर न च म करोध धारण कया इस परकार वह लहराता हआ समदर उमङ उमङ कर आता था क मदर बनन न पाय उसक बहद ऊची लहर आकाश तक जाती थी फ़र समदर मर चौर क पास आया और मरा दशरन पाकर भय मानता हआ वह रक गया और आग नह बढ़ा कबीर साहब बोल - तब समदर बराहमण का रप बनाकर मर पास आया और चरण सपशर कर परणाम कया फ़र वह बोला - म आपका रहसय समझा नह सवामी मरा जगननाथ स पराना वर ह शरीकषण िजनका दवापर यग म अवतार हआ था और तरता म िजनका रामरप म अवतार हआ था उनक दवारा समदर पर जबरन पल बनान स मरा उनस पराना वर ह इसीलय म यहा तक आया ह आप मरा अपराध मा कर मन आपका रहसय पाया आप समथरपरष ह परभ आप दन पर दया करन वाल ह आप इस जगननाथ (राम) स मरा बदला दलवाईय म आपस हाथ जोङकर वनती करता ह म उसका पालन करगा जब राम न लका दश क लय गमन कया था तब व सब मझ पर सत बाधकर पार उतर जब कोई बलवान कसी दबरल पर ताकत दखाकर बलपवरक कछ करता ह तो समथरपरभ उसका बदला अवशय दलवात ह ह समथरसवामी आप मझ पर दया करो म उसस बदला अवशय लगा कबीर साहब बोल - समदर जगननाथ स तमहार वर को मन समझा इसक लय मन तमह दवारका दया तम

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जाकर शरीकषण क दवारका नगर को डबो दो यह सनकर समदर न मर चरण सपशर कय और वह परसनन होकर उमङ पङा तथा उसन दवारका नगर डबो दया इस परकार समदर अपना बदला लकर शानत हो गया इस तरह मदर का काम परा हआ तब जगननाथ न पडत को सवपन म बताया क सतयकबीर मर पास आय ह उनहन समदरतट पर अपना चौरा बनाया ह समदर क उमङन स पानी वहा तक आया और सतयकबीर क दशरन कर पीछ हट गया इस परकार मरा मदर डबन स उनहन बचाया तब वह पडापजार समदरतट पर आया और सनान कर मदर म चला गया परनत उस पडत न ऐसा पाखड मन म वचारा क पहल तो उस मलचछ का ह दशरन करना पङा ह कयक म पहल कबीरचौरा तक आया परनत जगननाथपरभ का दशरन नह पाया (पडा मलचछ कबीर साहब को समझ रहा ह) धमरदास तब मन उस पड क बदध दरसत करन क लय एक लला क वह म तमस छपाऊगा नह जब पडत पजा क लय मदर म गया तो वहा एक चरतर हआ मदर म जो मतर लगी थी उसन कबीर का रप धारण कर लया और पडत न जगननाथ क मतर को वहा नह दखा कयक वह बदल कर कबीर रप हो गयी पजा क लय अतपषप लकर पडत भल म पङ गया क यहा ठाकर जी तो ह ह नह फ़र भाई कस पज यहा तो कबीर ह कबीर ह तब ऐसा चरतर दखकर उस पडा न सर झकाया और बोला - सवामी म आपका रहसय नह समझ पाया आप म मन मन नह लगाया मन आपको नह जाना उसक लय आपन यह चरतर दखाया परभ मर अपराध को मा कर दो कबीर साहब बोल - बराहमण म तमस एक बात कहता ह िजस त कान लगाकर सन म तझ आा दता ह क त ठाकर जगननाथ क पजा कर और दवधा का भाव छोङ द वणर जात छत अछत ऊच नीच अमीर गरब का भाव तयाग द कयक सभी मनषय एक समान ह इस जगननाथ मदर म आकर जो मनषय म भदभाव मानता हआ भोजन करगा वह मनषय अगहन होगा भोजन करन म जो छत-अछत रखगा उसका शीश उलटा (चमगादङ) होगा धमरदास इस तरह पडत को पकका उपदश करत हय मन वहा स परसथान कया

धमरदास क पवरजनम क कहानी

धमरदास बोला - साहब आपक दवारा जगननाथ मदर का बनवाना मन सना इसक बाद आप कहा गय कौन स जीव को मकत कराया तथा कलयग का परभाव भी कहय कबीर साहब बोल - धमरदास lsquoराजसथल दशrsquo क राजा का नाम lsquoबकजrsquo था मन उस नाम उपदश दया और जीव

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क उदधार क लय कणरधार कवट बनाया राजसथल दश स म शालमल दप आया और वहा मन एक सत lsquoसहतrsquo को चताया और उस जीव का उदधार करन क लय समसत गर ानदा परदान क फ़र म वहा स दरभगा आया जहा राजा lsquoचतभरज सवामीrsquo का नवास था उसको भी पातर जानकर मन जीव को चतान हत गरवाई (जीव को चतान और नाम उपदश दन वाला) बनाया उसन जरा भी मायामोह नह कया तब मन उस सतयनाम दकर गरवाई द धमरदास मन हस का नमरलान रहनी गहनी समरन आद इन कङहार गरओ को अचछ तरह बताया व सब कल मयारदा काम मोह आद वषय का तयाग कर सारगण को जानन वाल हय चतभरज बकज सहतज और चौथ धमरदास तम य चार जीव क कङहार ह अथारत जीव को सतयान बताकर भवसागर स पार लगान वाल ह यह मन तमस अटल सतय कहा ह धमरदास अब तमहार हाथ स मझको जमबदप (भारत) क जीव मलग जो मर उपदश को गरहण करगा कालनरजन उसस दर ह रहगा धमरदास बोल - साहब म पापकमर करन वाला दषट और नदरयी था और मरा जीवातमा सदा भरम स अचत रहा तब मर कस पणय स आपन मझ अाननदरा स जगाया और कौन स तप स मन आपका दशरन पाया वह मझ बताय कबीर साहब बोल - तमह समझान और दशरन दन क पीछ कया कारण था वह मझस सनो तम अपन पछल जनम क बात सनो िजस कारण म तमहार पास आया सत सदशरन जो दवापर म हय वह कथा मन तमह सनाई जब म उसक हसजीव को सतयलोक ल गया तब उसन मझस वनती क और बोला - सदगर मर वनती सन और मर माता-पता को मिकत दलाय ह बनदछोङ उनका आवागमन मट कर छङान क कपा कर यम क दश म उनहन बहत दख पाया ह मन बहत तरक स उनको समझाया परनत तब उनहन मर बात नह मानी और वशवास ह नह कया लकन उनहन भिकत करन स मझ कभी नह रोका जब म आपक भिकत करता तो कभी उनक मन म वरभाव नह होता बिलक परसननता ह होती इसी स परभ मर वनती ह क आप बनदछोङ उनक जीव को मकत कराय जब सदशरन शवपच न बारबार ऐसी वनती क तो मन उसको मान लया और ससार म कबीर नाम स आया म नरजन क एक वचन स बधा था फ़र भी सदशरन शवपच क वनती पर म भारत आया म वहा गया जहा सत शवपच क माता पता lsquoलमीrsquo और lsquoनरहरrsquo नाम स रहत थ भाई उनहन शवपच क साथ वाल दह छोङ द थी और सदशरन क पणय स उसक माता-पता चौरासी म न जाकर पनः मनषयदह म बराहमण होकर उतपनन हय थ जब दोन का जनम हो गया तब फ़र वधाता न समय अनसार उनह पत-पतनी क रप म मला दया तब उस बराहमण का नाम कलपत और उसक पतनी का नाम महशवर था बहत समय बीत जान पर भी महशवर क सतान नह हयी थी तब पतरपरािपत हत उसन सनान कर सयरदव का वरत रखा वह आचल फ़लाकर दोन हाथ जोङकर सयर स पराथरना करती उसका मन बहत रोता था तब उसी समय म (कबीर साहब) उसक आचल म बालक रप धरकर परकट हो गया मझ दखकर महशवर बहत परसनन हयी और मझ घर ल गयी और अपन पत स बोल - परभ न मझ पर कपा क और मर सयरवरत करन का फ़ल यह बालक मझको दया

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म बहत दन तक वहा रहा व दोन सतरी-परष मलकर मर बहत सवा करत पर व नधरन होन स बहत दखी थ तब मन ऐसा वचार कया क पहल म इनक गरबी दर कर फ़र इनको भिकत-मिकत का उपदश कर इसक लय मन एक लला क जब बराहमण सतरी न मरा पालना हलाया तो उस उसम एक तौला सोना मला फ़र मर बछौन स उनह रोज एक तौला सोना मलता था उसस व बहत सखी हो गय तब मन उनको सतयशबद का उपदश कया और उन दोन को बहत तरह स समझाया परनत उनक हरदय म मरा उपदश नह समाया बालक जानकर उनह मर बात पर वशवास नह आया उस दह म उनहन मझ नह पहचाना तब म वह शरर तयाग कर गपत हो गया तब कछ समय बाद उस बराहमण कलपत और उसक सतरी महशवर दोन न शरर छोङा और मर दशरन क परभाव स उनह फ़र स मनषय शरर मला फ़र दोन समय अनसार पत-पतनी हय और वह चदनवार नगर म जाकर रहन लग इस जनम म उस औरत का नाम lsquoऊदाrsquo और परष का नाम lsquoचदनrsquo था तब म सतयलोक स आकर पनः चदवार नगर म परगट हआ उस सथान पर मन बालक रप बनाया और वहा तालाब म वशराम कया तालाब म मन कमलपतर पर आसन लगाया और आठ पहर वहा रहा उस तालाब म ऊदा सनान करन आयी और सनदर बालक दखकर मोहत हो गयी वह मझ अपन घर ल गयी उसन अपन पत चदनसाह को बताया क य बालक कस परकार मझ मला चदन साह बोला - अर ऊदा त मखर सतरी ह शीघर जाओ और इस बालक को वह डाल आओ वरना हमार जात कटमब क लोग हम पर हसग और उनक हसन स हम दख ह होगा चदनसाह करोधत हआ तो ऊदा बहत डर गयी चदन साह अपनी दासी स बोला - इस बालक को ल जा और तालाब क जल म डाल द कबीर साहब बोल - दासी उस बालक को लकर चल द और तालाब म डालन का मन बनाया उसी समय म अतधयारन हो गया यह दखकर वह बलख-बलख कर रोन लगी वह मन स बहत परशान थी और य चमतकार दखकर मगध होती हयी बालक को खोजती थी पर मह स कछ न बोलती थी इस परकार आय पर होन पर चदनसाह और ऊदा न भी शरर छोङ दया और फ़र दोन न मनषयजनम पाया अबक बार उन दोन को जलाहा-कल म मनषयशरर मला फ़र स वधाता का सयोग हआ और फ़र स समय आन पर व पत-पतनी बन गय इस जनम म उन दोन का नाम नीर नीमा हआ नीर नाम का वह जलाहा काशी म रहता था तब एक दन जठ महना और शकलप तथा बरसाइत पणरमा क तथ थी नीर अपनी पतनी नीमा क साथ लहरतारा तालाब मागर स जा रहा था गम स वयाकल उसक पतनी को जल पीन क इचछा हयी तभी म उस तालाब क कमलपतर पर शशरप म परकट हो गया और बालकरङा करन लगा जल पीन आयी नीमा मझ दखकर हरान रह गयी उसन दौङकर मझ उठा लया और अपन पत क पास ल आयी नीमा न मझ दखकर बहत करोध कया और कहा - इस बालक को वह डाल दो

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नीमा सोच म पङ गयी तब मन उसस कहा - नीमा सनो म तमह समझाकर कहता ह पछल (जनम क) परम क कारण मन तमह दशरन दया कयक पछल जनम म तम दोन सदशरन क माता-पता थ और मन उस वचन दया था क तमहार माता-पता का अवशय उदधार करगा इसलय म तमहार पास आया ह अब तम मझ घर ल चलो और मझ पहचान कर अपना गर बनाओ तब म तमह सतयनाम उपदश दगा िजसस तम कालनरजन क फ़द स छट जाओग तब नीमा न नीर क बात का भय नह माना और मझ अपन घर ल गयी इस परकार म काशी नगर म आ गया और बहत दन तक उनक साथ रहा पर उनह मझ पर वशवास नह आया व मझ अपना बालक ह समझत रह और मर शबदउपदश पर धयान नह दया धमरदास बना वशवास और समपरण क जीवनमिकत का कायर नह होता ऐसा नणरय करक गर क वचन पर दढ़तापवरक वशवास करना चाहय अतः उस शरर म नीर नीमा न मझ नह पहचाना और मझ अपना बालक जानकर सतसग नह कया धमरदास जब जलाहाकल म भी नीर नीमा क आय पर हयी और उनहन फ़र स शरर तयाग कर दबारा मनषयरप म मथरा म जनम लया तब मन वहा मथरा म जाकर उनको दशरन दया अबक बार उनहन मरा शबदउपदश मान लया और उस औरत का रतना नाम हआ वह मन लगाकर भिकत करती थी मन उन दोन सतरी-परष को शबदनाम उपदश दया इस तरह व मकत हो गय और सतयलोक म जाकर हसशरर परापत कया उन हस को दखकर सतयपरष बहत परसनन हय और उनह lsquoसकतrsquo नाम दया फर सतयलोक म रहत हय मझ बहत दन बीत गय तब कालनरजन न बहत जीव को सताया जब कालनरजन जीव को बहत दख दन लगा तब सतयपरष न सकत को पकारा और कहा - ह सकत तम ससार म जाओ वहा अपार बलवान कालनरजन जीव को बहत दख द रहा ह तम जीव को सतयनाम सदश सनाओ और हसदा दकर काल क जाल स मकत कराओ य सनकर सकत बहत परसनन हय और व सतयलोक स भवसागर म आ गय इस बार सकत को ससार म आया दखकर कालनरजन बहत परसनन हआ क इसको तो म अपन फ़द म फ़सा ह लगा तब कालनरजन न बहत स उपाय अपनाकर सकत को फ़साकर अपन जाल म डाल लया जब बहत दन बीत गय और काल न एक भी जीव को सरत नह छोङा और सबको सताता मारता खाता रहा तब जीव न फ़र दखी होकर सतयपरष को पकारा और तब सतयपरष न मझ पकारा सतयपरष न कहा - ानी शीघर ह ससार म जाओ मन जीव क उदधार क लय सकत अश भजा था वह ससार म परकट हो गया हमन उस सारशबद का रहसय समझा कर भजा था परनत वह वापस सतयलोक लौटकर नह आया और कालनरजन क जाल म फ़सकर सध-बध (समत अपनी पहचान) भल गया ानीजी तम जाकर उस अचत-नदरा स जगाओ िजसस मिकतपथ चल वश बयालस हमारा अश ह जो सकत क घर अवतार लगा ानी तम शीघर सकत क पास जाओ और उसक कालफ़ास मटा दो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब सतयपरष क आा स म तमहार पास आया ह धमरदास तम सोचो वचारो क तम जस lsquoनीरrsquo स होकर जनम हो और तमहार सतरी आमन lsquoनीमाrsquo स होकर जनमी ह वस ह म तमहार घर आया ह तम तो मर सबस अधक परय अश हो इसलय मन तमह दशरन दया अबक बार तम मझ पहचानो तब म तमह सतयपरष का उपदश कहगा यह वचन सनत ह धमरदास दौङकर कबीर साहब क चरण म गर गय और रोन लग

कालदत नारायण दास क कहानी

कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमहार सामन सतय का भद परकाशत कया ह और तमहार सभी काल-जाल को मटा दया ह अब रहनी-गहनी क बात सनो िजसको जान बना मनषय य ह भलकर सदा भटकता रहता ह सदा मन लगाकर भिकतसाधना करो और मान-परशसा को तयागकर सचचसनत क सवा करो पहल जात वणर और कल क मयारदा नषट करो (अभमान मत करो और य मत मानो क lsquoमrsquo य ह या वो ह य चौरासी म फ़सन का सबस बङा कारण होता ह) तथा दसर अनयमत पतथर (मतर) पानी (गगा यमना कमभ आद) दवी-दवता क पजा छोङकर नषकाम गर क भिकत करो जो जीव गर स कपट चतराई करता ह वह जीव ससार म भटकता भरमता ह इसलय गर स कभी कपट परदा नह रखना चाहय गर स कपट मतर क चोर क होय अधा क होय कोढ़ जो गर स भद कपट रखता ह उसका उदधार नह होता वह चौरासी म ह रहता ह धमरदास कवल एक सतयपरष क सतयनाम क आशा और वशवास करो इस ससार का बहत बङा जजाल ह इसी म छपा हआ कालनरजन अपनी फ़ास (फ़दा) लगाय हय ह िजसस क जीव उसम फ़सत रह परवार क सब नर-नार मलकर यद सतयनाम का समरन कर तो भयकर काल कछ नह बगाङ सकता धमरदास तमहार घर िजतन जीव ह उन सबको बलाओ सब (हस) नामदा ल फ़र तम अनयायी और करर कालनरजन स सदा सरत रहोग धमरदास बोल - परभ आप जीव क मल (आधार) हो आपन मरा समसत अान मटा दया मरा एक पतर नारायण दास ह आप उस भी उपदश कर यह सनकर कबीर साहब मसकरा दय पर अपन अनदर क भाव को परकट नह कया और बोल - धमरदास िजसको तम शदध अतःकरण वाला समझत हो उनको तरनत बलाओ धमरदास न सबको बलाया और बोल - भाई य समथर सदगरदव सवामी ह इनक शरीचरण म गरकर समपरत हो जाओ िजसस क चौरासी स मकत होओ और ससार म फ़र स न जनम इतना सनत ह सभी जीव आय और कबीर साहब क चरण म दडवत परणाम कर समपरत हो गय परनत नारायण

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दास नह आया धमरदास सोचन लग क नारायण दास तो बहत चतर ह फ़र वह कय नह आया धमरदास न अपन सवक स कहा - मर पतर नारायण दास न गर lsquoरपदासrsquo पर वशवास कया ह और उसक शा अनसार वह िजस सथान पर शरीमदभगवद गीता पढ़ता रहता ह वहा जाकर उसस कहो तमहार पता न समथरगर पाया ह सवक नारायण दास क पास जाकर बोला - नारायण दास तम शीघर चलो आपक पता क पास समथरगर कबीर साहब आय ह उनस उपदश लो नारायण दास बोला - म पता क पास नह जाऊगा व बढ़ हो गय ह और उनक बदध का नाश हो गया ह वषण क समान और कौन ह हम िजसको जप मर पता बढ़ हो गय ह और उनको जलाहा गर भा गया ह मर मन को तो वठठलशवर गर ह पाया ह अब और कया कह मर पता तो बस पागल ह हो गय ह उस सदशी न यह सब बात धमरदास को आकर बतायी धमरदास सवय अपन पतर नारायण दास क पास पहच और बोल - पतर नारायण दास अपन घर चलो वहा सदगर कबीर साहब आय हय ह उनक शरीचरण म माथा टको और अपन सब कमरबधनो को कटाओ जलद करो ऐसा अवसर फ़र नह मलगा हठ छोङो बनदछोङ गर बारबार नह मलत नारायण दास बोला - पताजी लगता ह आप पगला गय हो इसलय तीसरपन क अवसथा म िजदागर पाया ह अर िजसका नाम राम ह उसक समान और कोई दवता नह ह िजसक ऋष-मन आद सभी पजा करत ह आपन गर वठठलशवर का परम छोङकर अब बढ़ाप म वह िजनदागर कया ह तब धमरदास न नारायण को बाह पकङ कर उठा लया और कबीर साहब क सामन ल आय और बोल - इनक चरण पकङो य यम क फ़द स छङान वाल ह नारायण दास मह फ़रकर कट शबद म बोला - यह कहा हमार घर म मलचछ न परवश कया ह कहा स यह lsquoिजनदाठगrsquo आया िजसन मर पता को पागल कर दया वदशासतर को इसन उठाकर रख दया और अपनी महमा बनाकर कहता ह यद यह िजनदा आपक पास रहगा तो मन आपक घर आन क आशा छोङ द ह नारायण दास क यह बात सनत ह धमरदास परशान हो गय और बोल - मरा यह पतर जान कया मत ठान हय ह फ़र माता आमन न भी नारायण को बहत समझाया परनत नारायण दास क मन म उनक एक भी बात सह न लगी और वह बाहर चला गया तब धमरदास कबीर स वनती करत हय बोल - साहब मझ वह कारण बताओ िजसस मरा पतर इस परकार आपको कटवचन कहता ह और दबरदध को परापत होकर भटका हआ ह कबीर बोल - धमरदास मन तो तमह नारायण दास क बार म पहल ह बता दया था पर तम उस भल गय हो

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अतः फ़र स सनो जब म सतयपरष क आा स जीव को चतान मतयलोक क तरफ़ आया तब कालनरजन न मझ दखकर वकराल रप बनाया और बोला - सतयपरष क सवा क बदल मन यह lsquoझाझरदपrsquo परापत कया ह ानी तम भवसागर म कस (कय) आय म तमस सतय कहता ह म तमह मार दगा तम मरा यह रहसय नह जानत कबीर न कहा - अनयायीनरजन सन म तझस नह डरता जो तम अहकार क वाणी बोलत हो म इसी ण तमह मार डालगा कालनरजन सहम गया और वनती करता हआ बोला - ानीजी आप ससार म जाओग बहत स जीव का उदधार कर मकत करोग तो मर भख कस मटगी जब जीव नह हग तब म कया खाऊगा मन एक लाख जीव रात-दन खाय और सवालाख उतपनन कय मर सवा स सतयपरष न मझको तीनलोक का राजय दया आप ससार म जाकर जीव को चताओग उसक लय मन ऐसा इतजाम कया ह म धमर-कमर का ऐसा मायाजाल फ़लाऊगा क आपका सतयउपदश कोई नह मानगा म घर-घर म अान भरम का भत उतपनन करगा तथा धोखा द दकर जीव को भरम म डालगा तब सभी मनषय शराब पीयग मास खायग इसलय कोई आपक बात नह मानगा आपका ससार म जाना बकार ह मन कहा - कालनरजन म तरा छल-बल सब जानता ह म सतयनाम स तर दवारा फ़लाय गय सब भरम मटा दगा और तरा धोखा सबको बताऊगा कालनरजन घबरा गया और बोला - म जीव को अधक स अधक भरमान क लय बारह पथ चलाऊगा और आपका नाम लकर अपना धोख का पथ चलाऊगा lsquoमतअधाrsquo मरा अश ह वह धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा कालदत धमरदास क घर जनम लगा पीछ स आपका अश जनम लगा भाई मर इतनी वनती तो मान ह लो धमरदास तब मन नरजन को कहा सनो नरजन तमन इस परकार कहकर जीव क उदधारकायर म वघन डाल दया ह फ़र भी मन तमको वचन दया इसलय धमरदास अब वह lsquoमतअधाrsquo नाम का कालदत तमहारा पतर बनकर आया ह और अपना नाम नारायण दास रखवाया ह नारायण कालनरजन का अश ह जो जीव क उदधार म वघन का कायर करगा यह मरा नाम लकर पथ को परकट करगा और जीव को धोख म डालगा और नकर म डलवायगा जस शकार नाद को बजाकर हरन को अपन वश म कर लता ह और पकङकर उस मार डालता ह वस ह शकार क भात यमकाल अपना जाल लगाता ह और इस चाल को हसजीव ह समझ पायगा तब कालदत नारायण दास क चाल समझ म आत ह धमरदास न उस तयाग दया और कबीर क चरण म गर पङ

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कालनरजन का छलावा बारह पथ

धमरदास बोल - कालनरजन न जीव को भरमान क लय जो अपन बारह पथ चलाय व मझ समझा कर कहो कबीर साहब बोल - म तमस काल क lsquoबारह पथrsquo क बार कहता ह lsquoमतयअधाrsquo नाम का दत जो छल बल म शिकतशाल ह वह सवय तमहार घर म उतपनन हआ ह यह पहला पथ ह दसरा lsquoतमर दतrsquo चलकर आयगा उसक जात अहर होगी और वह नफ़र यानी गलाम कहलायगा वह तमहार बहत सी पसतक स ान चराकर अलग पथ चलायगा तीसरा पथ का नाम lsquoअधाअचतrsquo दत होगा वह सवक होगा वह तमहार पास आयगा और अपना नाम lsquoसरतगोपालrsquo बतायगा वह भी अपना अलग पथ चलायगा और जीव को lsquoअरयोगrsquo (कालनरजन) क भरम म डालगा धमरदास चौथा lsquoमनभगrsquo नाम का कालदत होगा वह कबीरपथ क मलकथा का आधार लकर अपना पथ चलायगा और उस मलपथ कहकर ससार म फ़लायगा वह जीव को lsquoलदrsquo नाम लकर समझायगा उपदश करगा और इसी नाम को lsquoपारसrsquo कहगा वह शरर क भीतर झकत होन वाल शनय क lsquoझगrsquo शबद का समरन अपन मख स वणरन करगा सब जीव उस lsquoथाकाrsquo कहकर मानग धमरदास lsquoपाचव पथrsquo को चलान वाला lsquoानभगीrsquo नाम का दत होगा उसका पथ टकसार नाम स होगा वह इगला-पगला नाङय क सवर को साधकर भवषय क बात करगा जीव को जीभ नतर मसतक क रखा क बार म बता कर समझायगा जीव क तल मससा आद चहन दखकर उनह भरमरपी धोख म डालगा वह िजस जीव क ऊपर जसा दोष लगायगा वसा ह उसको पान खलायगा (नाम आद दना) lsquoछठा पथrsquo कमाल नाम का ह वह lsquoमनमकरदrsquo दत क नाम स ससार म आया ह उसन मद म वास कया और मरा पतर होकर परकट हआ वह जीव को झलमल-जयोत का उपदश करगा (जो अषटागी न वषण को दखाकर भरमा दया) और इस तरह वह जीव को भरमायगा जहा तक जीव क दिषट ह वह झलमल-जयोत ह दखगा िजसन दोन आख स झलमल-जयोत नह दखी ह वह कस झलमल-जयोत क रप को पहचानगा झलमल-जयोत कालनरजन क ह उस दत क हरदय म सतय मत समझो वह तमह भरमान क लय ह सातवा दत lsquoचतभगrsquo ह वह मन क तरह अनक रगरप बदल कर बोलगा वह lsquoदनrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और दह क भीतर बोलन वाल आतमा को ह सतयपरष बतायगा वह जगतसिषट म पाच-ततव तीन गण बतायगा और ऐसा ान करता हआ अपना पथ चलायगा इसक अतरकत आदपरष कालनरजन अषटागी बरहमा आद कछ भी नह ह ऐसा भरम बनायगा सिषट हमशा स ह तथा इसका कतारधतार कोई नह ह इसी को वह ठोस lsquoबीजकrsquo ान कहगा वह कहगा क अपना आपा ह बरहम ह वह वचन वाणी बोलता ह तो फ़र सोचो गर का कया महतव और आवशयकता ह राम न वशषठ को और कषण न दवारसा को गर कय बनाया जब कषण जस न गरओ क सवा क तो ऋषय-मनय क फ़र गनती ह कया ह नारद न गर को दोष लगाया तो वषण न उनस नकर भगतवाया जो बीजक ान वह दत थोपगा वह ऐसा होगा जस गलर क भीतर कङा घमता ह तथा वह कङा समझता ह क

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ससार इतना ह ह अपन आपको कतार-धतार मानन स जीव का कभी भला न होगा अपन आपको ह मानन वाला जीव रोता रहगा आठवा पथ चलान वाला lsquoअकलभगrsquo दत होगा वह परमधाम कहकर अपना पथ चलायगा कछ करआन तथा वद क बात चराकर अपन पथ म शामल करगा वह कछ-कछ मर नगरण-मत क बात लगा और उन सब बात को मलाकर एक पसतक बनायगा इस परकार जोङजाङ कर वह बरहमान का पथ चलायगा उसम कमरआशरत (यानी ानरहत ानआशरत नह कमर ह पजा ह मानन वाल) जीव बहत लपटग नौवा पथ lsquoवशभर दतrsquo का होगा और उसका जीवनचरतर ऐसा होगा क वह lsquoरामकबीरrsquo नाम का पथ चलायगा वह नगरण-सगण दोन को मलाकर उपदश करगा पाप-पणय को एक समझगा ऐसा कहता हआ वह अपना पथ चलायगा दसवा पथ क दत का नाम lsquoनकटा ननrsquo ह वह lsquoसतनामीrsquo कहकर पथ चलायगा और lsquoचारवणरrsquo क जीव को एक म मलायगा वह अपन वचनउपदश म बराहमण तरय वशय शदर सबको एक समान मलायगा परनत वह सदगर क शबदउपदश को नह पहचानगा वह अपन प को बाधकर रखगा िजसस जीव नकर को जायग वह शरर का ान कथन सब समझायगा परनत सतयपरष क मागर को नह पायगा धमरदास कालनरजन क चालबाजी क बात सनो वह जीव को फ़सान क लय बङ-बङ फ़द क रचना करता ह वह काल जीव को अनक कमर (पजा आद आडबर सामािजक रतरवाज) और कमरजाल म ह जीव को फ़ास कर खा जाता ह जो जीव सारशबद को पहचानता ह समझता ह वह कालनरजन क यमजाल स छट जाता ह और शरदधा स सतयनाम का समरन करत हय अमरलोक को जाता ह lsquoगयारहव पथrsquo को चलान वाला lsquoदगरदानीrsquo नाम का कालदत अतयनत बलशाल होगा वह lsquoजीवपथrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और शररान क बार म समझायगा उसस भोल अानी जीव भरमग और भवसागर स पार नह हग जो जीव बहत अधक अभमानी होगा वह उस कालदत क बात सनकर उसस परम करगा lsquoबारहव पथrsquo का कालदत lsquoहसमनrsquo नाम का होगा वह बहत तरह क चरतर करगा वह वचनवश क घर म सवक होगा और पहल बहत सवा करगा फ़र पीछ (अथारत पहल वशवास जमायगा और जब लोग उसको मानन लगग) वह अपना मत परकट करगा और बहत स जीव को अपन जाल म फ़सा लगा और अश-वश (कबीर साहब क सथापत ान) का वरोध करगा वह उसक ान क कछ बात को मानगा कछ को नह मानगा इस परकार कालनरजन जीव पर अपना दाव फ़ कत हय उनह अपन फ़द म (असलान स दर) बनाय रखगा यानी ऐसी कोशश करगा वह अपन इन अश (कालदत) स बारह पथ (झठान को फ़लान हत) परकट करायगा और य दत सफ़र एकबार ह परकट नह हग बिलक व उन पथ म बारबार आत-जात रहग और इस तरह बारबार ससार म परकट हग जहा-जहा भी य दत परकट हग जीव को बहत ान (भरमान वाला) कहग और व यह सब खद को कबीरपथी बतात हय करग और व शररान का कथन करक सतयान क नाम पर कालनरजन क ह महमा को घमाफ़रा कर बतायग और अानी जीव को काल क मह म भजत रहग कालनरजन न ऐसा ह करन का उनको आदश दया ह

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जब-जब नरजन क य दत ससार म जनम लकर परकट हग तब-तब य अपना पथ फ़लायग व जीव को हरान करन वाल वचतर बात बतायग और जीव को भरमा कर नकर म डालग धमरदास ऐसा वह कालनरजन बहत ह परबल ह वह तथा उसक दत कपट स जीव को छलबदध वाला ह बनायग -------------- आतमान क lsquoहसदाrsquo और lsquoपरमहस दाrsquo म वाणी या अनय इिनदरय का कोई सथान नह ह दोन ह दाओ म सरत को दो अलग-अलग सथान स जोङा जाता ह मतलब धयान बारबार वह ल जान का अभयास कया जाता ह जब धयान पर साधक क पकङ हो जाती ह तो य धयान खद-ब-खद अपन आप होन लगता ह और तीन महन क ह सह अभयास स दवयदशरन अनतलक क सर भवरगफ़ा आसमानी झला आद बहत अनभव होत ह दसर दा क बाद एक सथायी सी शात महसस होती ह जसी पहल कभी महसस नह क और आपक िजनदगी म सवभाव म एक मजबती सी आ जाती ह इसीलय सनत न कहा ह - फ़कर मत कर िजकर कर

चङामण का जनम

धमरदास बोल - परभ अब आप मझ पर कपा करो िजसस ससार म वचनवश परकट हो और आग पथ चल कबीर बोल - धमरदास दस महन म तमहार जीवरप म वश परकट होगा और अवतार होकर जीव क उदधार क लय ह ससार म आयगा य तमहारा पतर ह मरा अश होगा धमरदास न कहा - साहब मन तो अपनी कामदर को वश म कर लया ह फ़र कस परष क अश lsquoनौतम सरतrsquo चङामण ससार म जनम लग कबीर साहब बोल - तम दोन सतरी-परष कामवषय क आसिकत स दर रहकर सफ़र मन स रत करो सतयपरष का नाम पारस ह उस पान पर लखकर अपनी पतनी आमन को दो िजसस सतयपरष का अश नौतम जनम लगा तब धमरदास क यह शका दर हो गयी क बना मथन क यह कस सभव होगा फ़र कबीर साहब क बताय अनसार दोन पत-पतनी न मन स रत क और पान दया जब दस मास पर हय तब मकतामण का जनम हआ इस पर धमरदास न बहत दान कया कबीर साहब को पता चला क मकतामण का जनम हो गया ह तो व तरनत धमरदास क घर पहच और मकतामण को दखकर बोल - यह मकतामण मिकत का सवरप ह यह कालनरजन स जीव को मकत करायगा

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फ़र कबीर साहब मकतामण क दा करत हय बोल - मन तमको वश बयालस का राजय दया तमस बयालस वश हग जो शरदधाल जीव को तारग तमहार उन वश बयालस स साठ शाखाय हगी और फ़र उन शाखाओ स परशाखाय हगी तमहार दस हजार तक परशाखाय हगी वश क साथ मलकर उनका गजारा होगा लकन यद तमहार वश उनस ससार समबनध मानकर नाता मानग तो उनको सतयलोक परापत नह होगा इसलय तमहार वश को मोहमाया स दर रहना चाहय धमरदास पहल मन तमको जो ानवाणी का भडार सपा था वह सब चङामण को बता दो तब बदधमान चङामण ान स पणर हग िजस दखकर काल भी चकनाचर हो जायगा धमरदास न कबीर साहब क आा का पालन कया और दोन न कबीर क चरण सपशर कय यह सब दखकर कालनरजन भय स कापन लगा परसनन होकर कबीर साहब बोल - धमरदास जो सतयपरष क इस नामउपदश को गरहण करगा उसका सतयलोक जान का रासता कालनरजन नह रोक सकता चाह वह अठासी करोङ घाट ढ़ढ़ कोई मख स करोङ ान क बात कहता हो और दखाव क लय बना वधान क (कायद स दा आद क) कबीर कबीर का नाम जपता हो वयथर म कतना ह असार-कथन कहता हो परनत सतयनाम को जान बना सब बकार ह ह जो सवय को ानी समझकर ान क नाम पर बकवास करता हो उसक ानरपी वयजन क सवाद को पछो करोङ यतन स भी यद भोजन तयार हो परनत नमक बना सब फ़का ह रहता ह जस भोजन क बात ह वस ह ान क बात ह हमारा ान का वसतार चौदह करोङ ह फ़र भी सारशबद (असल नाम) इनस अलग और शरषठ ह धमरदास िजस तरह आकाश म नौ लाख तारागण नकलत ह िजनह दखकर सब परसनन होत ह परनत एक सयर क नकलत ह सब तार क चमक खतम हो जाती ह और व दखायी नह दत इसी तरह नौ लाख तारागण ससार क करोङ ान को समझो और एक सयर आतमानी सनत को जानो जस वशाल समदर को पार करान वाला जहाज होता ह उसी परकार अथाह भवसागर को पार करवान वाला एकमातर lsquoसारशबदrsquo ह ह मर सारशबद को समझ कर जो जीव कौव क चाल (वषयवासना म रच) छोङ दग तो वह सारशबदगराह हस हो जायग धमरदास बोल - साहब मर मन म एक सशय ह कपया उस सन मझ समथर सतपरष न ससार म भजा था परनत यहा आन पर कालनरजन न मझ फ़सा लया आप कहत हो म सतसकत का अश ह तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया ऐसा ह आग वश क साथ हआ तो ससार क सभी जीव नषट हो जायग इसलय साहब ऐसी कपा कर क कालनरजन वश को न छल कबीर बोल - धमरदास तमन सतय कहा और ठक सोचा और तमहारा यह सशय होना भी सतय ह आग धमररायनरजन एक खल तमाशा करगा उस म तमस छपाऊगा नह कालनरजन न मझस सफ़र बारह पथ चलान क बात कह थी और अपन चार पथ को गपत रखा था जब मन चार गरओ का नमारण कया तो उसन भी अपन चार अश परकट कय और उनह जीव को फ़सान क लय बहत परकार स समझाया अब आग जसा होगा वह सनो जबतक तम इस शरर म रहोग तबतक कालनरजन परकट नह होगा जब तम शरर छोङोग तभी काल आकर परकट होगा काल आकर तमहार वश को छदगा और धोख म डालकर मोहत करगा वश क बहत नाद सत महत कणरधार हग काल क परभाव स व पारस वश को वष क सवाद जसा करग

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बदमल और टकसार वश क अनदर मशरत हग वश म एक बहत बङा धोखा होगा कालसवरप lsquoहगrsquo दत उसक दह म समायगा वह आपस म झगङा करायगा बदवश क सवभाव को हगदत नह छोङगा वह मन क दवारा बदवश को अपनी तरफ़ मोङगा मरा अश जो सतयपथ चलायगा उस दखकर वह झगङा करगा उसक चहन अथवा चाल को वह नह दख सकगा और अपना रासता वश म दखगा वश अपन अनभवगरनथ कथ कर (कह कर) रखगा परनत नादपतर क नदा करगा तब उन अनभवगरनथ को वश क कणरधार सत महत पढ़ग िजसस उनको बहत अहकार होगा व सवाथर और अहकार को समझ नह पायग और ान कलयाण क नाम पर जीव को भटकायग इसी स म तमह समझाकर कहता ह अपन वश को सावधान कर दो नादपतर जो परकट होगा उसस सब परम स मल धमरदास इसी मन स समझो तम सवरथा वषयवकार स रहत मर नादपतर (शबद स उतपनन) हो कमाल पतर जो मन मतक स जीवत कया था उसक घट (शरर) क भीतर भी कालदत समा गया उसन मझ पता जानकर अहकार कया तब मन अपना ानधन तमको दया म तो परमभाव का भखा ह हाथी घोङ धन दौलत क चाह मझ नह ह अननयपरम और भिकत स जो मझ अपनायगा वह हसभकत ह मर हरदय समायगा यद म अहकार स ह परसनन होन वाला होता तो म सब ान धयान आधयातम पडत-काजी को न सप दता जब मन तमह परम म लगन लगाय अपन अधीन दखा तो अपनी सब अलौकक ान-सपदा ह सप द ऐस ह धमरदास आग सपातर लोग को तम यह ान दना धमरदास अचछ तरह जान लो जहा अहकार होता ह वहा म नह होता जहा अहकार होता ह वहा सब कालसवरप ह होता ह अतः अहकार मिकत क अनोख सतयलोक को नह पा सकता मकतामण और चङामण एक ह अश क दो नाम ह

काल का अपन दत को चाल समझाना

धमरदास बोल - साहब जीव क उदधार क लय जो वचनवश lsquoचङामणrsquo ससार म आया वह सब आपन बताया वचनवश को जो ानी पहचान लगा उसको कालनरजन का lsquoदगरदानीrsquo जसा दत भी नह रोक पायगा तीसरा सरत अश lsquoचङामणrsquo ससार म परकट हआ ह वह मन दख लया फ़र भी मझ एक सशय ह साहब मझ समथर सतयपरष न भजा था परनत ससार म आकर म भी कालनरजन क जाल म फ़स गया आप मझ lsquoसतसकतrsquo का अश कहत हो तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया अगर ऐसा ह सब वश क साथ हआ तो ससार क सब जीव नषट हो जायग इसलय ऐसी कपा करय क कालनरजन सतयपरष क वश को अपन छलभद स न छल पाय कबीर साहब बोल - यह तमन ठक कहा और तमहारा सशय सतय ह भवषय म कालनरजन कया चाल खलगा वह बताता ह सतयग म सतयपरष न मझ बलाया और ससार म जाकर जीव को चतान क लय कहा तो

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कालनरजन न रासत म मझस झगङा कया और मन उसका घमणड चर-चर कर दया पर उसन मर साथ एक धोखा कया और याचना करत हय मझस तीनयग माग लय अनयायी कालनरजन न तब कहा - भाई म चौथा कलयग नह मागता और मन उस वचन द दया और तब जीव क कलयाण हत ससार म आया कयक मन उसको तीन यग द दय थ उसी स उस समय वचनमयारदा क कारण अपना पथ परकट नह कया लकन जब चौथा कलयग आया तब सतयपरष न फ़र स मझ ससार म भजा पहल क ह तरह कसाई कालनरजन न मझ रासत म रोका और मर साथ झगङा कया वह बात मन तमह बता द ह और कालनरजन क बारह पथ का भद भी बता दया कालनरजन न मझस धोखा कया उसन मझस कवल lsquoबारह पथrsquo क बात कह और गपत बात मझको नह बतायी तीन यग म तो वचन लकर उसन मझ ववश कर दया और कलयग म बहत जाल रचकर ऊधम मचाया काल न मझस सफ़र बारह पथ क कहकर गपतरप स lsquoचार पथrsquo और बनाय जब मन जीव को चतान क लय चार कङहार गर क नमारण क वयवसथा क तो काल न अपना अशदत भज दया तथा अपनी छलबदध का वसतार कया और अपन चार अशदत को बहत शा द कालनरजन न दत स कहा - अशो सनो तम तो मर वश हो तमस जो कह उस मानो और मर आा का पालन करो भाई हमारा एक दशमन ह जो ससार म कबीर नाम स जाना जाता ह वह हमारा भवसागर मटाना चाहता ह और जीव को दसर लोक (सतयलोक) ल जाना चाहता ह वह छल-कपट कर मर पजा क वरदध जगत म भरम फ़लाता ह और मर तरफ़ स सबका मन हटा दता ह वह सतयनाम क समधर टर सनाकर जीव को सतयलोक ल जाता ह इस ससार को परकाशत करन म मन अपना मन दया हआ ह और इसलय मन तमको उतपनन कया मर आा मानकर तम ससार म जाओ और कबीर नाम स झठपथ परकट करो ससार क लालची और मखर जीव काम मोह वषयवासना आद वषय क रस म मगन ह अतः म जो कहता ह उसी अनसार उन पर घात लगाकर हमला करो ससार म तम lsquoचार पथrsquo सथापत करो और उनको अपनी-अपनी (झठ) राह बताओ चारो क नाम कबीर नाम पर ह रखो और बना कबीर शबद लगाय मह स कोई बात ह न बोलो अथारत इस तरह कहो कबीर न ऐसा कहा कबीर न वसा कहा जस तम कबीरवाणी का उपदश कर रह होओ कबीर नाम क वशीभत होकर जब जीव तमहार पास आय तो उसस ऐस मीठ वचन कहो जो उसक मन को अचछ लगत ह (अथारत चोट मारन वाल वाल सतयान क बजाय उसको अचछ लगन वाल मीठ मीठ बात करो कयक तमह जीव को झठ म उलझाना ह) कलयग क लालची मखर अानी जीव को ान क समझ नह ह व दखादखी क रासता चलत ह तमहार वचन सनकर व परसनन हग और बारबार तमहार पास आयग जब उनक शरदधा पकक हो जाय और व कोई भदभाव न मान यानी सतय क रासत और तमहार झठ क रासत को एक ह समझन लग तब तम उन पर अपना जाल डाल दो पर बहद होशयार स कोई इस रहसय को जानन न पाय तम जमबदप (भारत) म अपना सथान बनाओ जहा कबीर क नाम और ान का परमाण ह जब कबीर बाधगढ (छीसगढ़) म जाय और धमरदास को उपदश-दा आद द तब व उसक बयालस वश क ानराजय को सथापत करग तब तमह उसम घसपठ करक उनक राजय को डावाडोल करना ह मन चौदह यम क नाकाबनद करक जीव

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क सतयलोक जान का मागर रोक दया ह और कबीर क नाम पर बारह झठपथ चलाकर जीव को धोख म डाल दया ह भाई तब भी मझ सशय ह उसी स म तमको वहा भजता ह उनक बयालस वश पर तम हमला करो और उनह अपनी बात म फ़सा लो कालनरजन क बात सनकर व चार दत बोल - हम ऐसा ह करग यह सनकर कालनरजन बहत परसनन हआ और जीव को छल-कपट दवारा धोख म रखन क बहत स उपाय बतान लगा जीव पर हमला करन क उसन बहत स मनतर सनाय उसन कहा - अब तम ससार म जाओ और चार तरफ़ फ़ल जाओ ऊच नीच गरब अमीर कसी को मत छोङो और सब पर काल का फ़दा कस दो तम ऐसी कपट-चालाक करो क िजसस मरा आहार जीव कह नकल कर न जान पाय धमरदास यह चारो दत ससार म परगट हग जो चार अलग-अलग नाम स कबीर क नाम पर पथ चलायग इन चार दत को मर चलाय बारह पथ का मखया मानो इनस जो चार पथ चलग उसस सब ान उलट-पलट हो जायगा य चार पथ बारह पथ का मल यानी आधार हग जो वचनवश क लय शल क समान पीङादायक हग यानी हर तरह स उनक कायर म वघन करत हय जीव क उदधार म बाधा पहचायग यह सनकर धमरदास घबरा गय और बोल - साहब अब मरा सशय और भी बढ़ गया ह मझ उन कालदत क बार म अवशय बताओ उनका चरतर मझ सनाओ उन कालदत का वश और उनका लण कहो य ससार म कौन सा रप बनायग और कस परकार जीव को मारग व कौन स दश म परकट हग मझ शीघर बताओ

काल क चार दत

कबीर साहब बोल - धमरदास उन चार दत क बार म तमस समझा कर कहता ह उन चार दत क नाम - रभदत करभदत जयदत और वजयदत ह अब lsquoरभदतrsquo क बात सनो यह भारत क गढ़ कालजर म अपनी गदद सथापत करगा और अपना नाम भगत रखगा और बहत जीव को अपना शषय बनायगा जो कोई जीव अकर होगा अथारत िजसम सतयान क परत चतना होगी तथा िजसक पवर क शभकमर हग वह यम (कालनरजन) क इस फ़द को तोङकर बच जायगा वह कालरप रभदत बहत बलवान तथा षङयतर करन वाला होगा वह तमहार और मर वातार का खडन करगा वह दावधान को रोकगा और सतयपरष क सतयलोक और दप को झठा बतायगा वह अपनी lsquoअलग ह रमनीrsquo कहगा वह मर सतयवाणी क परत ववाद करगा िजसक कारण उसक जाल म बहत लोग फ़सग चार धाराओ का अपन मतानसार ान करगा मरा नाम कबीर जोङकर अपना झठा परचार-परसार करगा वह अपन आपको कबीर ह बतायगा और मझ पाच-ततव क दह म बसा हआ बतायगा वह जीव को सतयपरष क समान

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सदध करगा तथा सतयपरष का खडन कर जीव को शरषठ बतायगा हसजीव को इषट कबीर ठहरायगा तथा कतार को कबीर कहकर पकारगा सबका कतार कालनरजन जीव को घोर दख दन वाला ह और उसक ह समान यह यमदत मझ भी समझता ह वह कमर करन वाल जीव को ह सतयपरष ठहरायगा और सतयपरष क नाम-ान को छपाकर अपन आपको परकट करगा वचार करो जीव अपन आप ह सब होता तो इस तरह अनक दख कय भोगता पाच-ततव क दह वाला पाच-ततव क अधीन हआ य जीव दख पाता ह और रमभदत जीव को सतयपरष क समान बताता ह सतयपरष का शरर अजर-अमर ह उनक अनक कलाय ह तथा उनका रप और छाया नह ह धमरदास य गरान अनपम ह िजसम बना दपरण क अपना रप दखायी दता ह अब दसर lsquoकरभ दतrsquo का वणरन सनो वह मगध दश म परकट होगा और अपना नाम धनीदास रखगा करभ छल-परपच क बहत स जाल बछायगा और ानीजीव को भी भटकायगा िजसक हरदय म थोङा भी आतमान होगा य यमदत धोखा दकर उस नषट कर दगा धमरदास इस करभ क चालबाजी सनो यह अपन कथन क टकसार बताकर मजबत जाल सजायगा वह चनदर इङा सयर पगला नाङय क अनसार शभ-अशभ लगन का परचार-परसार करगा तथा राह-कत आद गरह का वसतार स वणरन करगा वह पाच-ततव तथा उनक गण क मत को शरषठ बताकर उनका वणरन करगा तब अानी जीव उसक फ़लाय भरम को नह जानग वह जयोतष क मत को टकसार कहकर फ़लायगा और जीव को गरह-नतर तथा इिनदरय क वश म करक उनका असल सतयपरष क भिकत स धयान हटा दगा वह जल वाय का ान बतायगा और पवन क वभनन नाम और गण का वणरन करगा वह सतय स हटकर ऐसी पजावधान चलाकर जीव को धोखा दकर भरमायगा भटकायगा वह अपन शषय बनात समय वशष नाटक करगा अग-अग क रखा दखगा और पाव क नाखन स सर क चोट को दखत हय जीव को कमरजाल म फ़साकर भरमायगा वह जीव को दख-समझ कर तथा शरवीर कहकर मोह मद म चढ़ा कर धर खायगा भरमाय हय अपन शषय स दणा म सवणर तथा सतरी अपरण करायगा इस परकार वह जीव को ठगगा शषय को गाठ बाधकर तब वह फ़रा करगा और कमरदोष लगाकर उस यम का गलाम बना दगा पचासी पवन काल क ह अतः वह शषय को पवन नाम लखकर पान खलायगा वह नीर पवन क ान का परसार करगा और शषय को पवन नाम दकर आरती उतरवायगा काल क पचासी पवन अनसार पजा करायगा कया नार कया परष वह सबक शरर क तल मसस क पहचान दखा करगा शख चकर और सीप क चनह दखगा कालनरजन का वह दत ऐसी दषटबदध का होगा और जीव म सशय उतपनन करगा तथा उनह गरसत (बरबाद) करत हय पीङत करगा इस कालदत का और भी झठ-परपच सनो वह अपनी lsquoसाठ समrsquo तथा lsquoबारह चौपाईयrsquo को उठाकर जीव म भरम उतपनन करगा वह lsquoपचामत एकोर नामrsquo का समरन को शरषठशबद और मिकतदाता बतायगा जीव क कलयाण का जो असलान आदकाल स निशचत ह वह उस झठ और धोखा बतायगा तथा पाच-ततव पचचीस परकत

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तीन गण चौदह यम यह ईशवर ह अथारत ऐसा कहगा तम ह सब कछ हो पाच-ततव का जाल बनाकर यह यमदत शरर क ततव का धयान करायगा वचार करो क ततव का धयान लगाय तब शरर छटन पर कहा जायग ततव तो ततव म मल जायगा धमरदास जीव को जहा आशा होती ह वह उसका वास होता ह अतः नाम-समरन स धयान हटन पर ततव म उलझ कर वह ततव म ह समायगा कहा तक कह करभ घमासान वनाश करगा उसक छल को वह समझगा जो जीव सतयनाम उपदश को गरहण करन वाला और समझन वाला होगा पाच जङततव तो काल क अग ह अतः ततव क मत म पङकर जीव क दगरत ह होगी और यह सब कछ वह कबीर क नाम पर खद को कबीरपथी बताकर इसको कबीर का ान बताकर करगा जो जीव उसक जाल म फ़स जायग वह करर कालनरजन क मख म ह जायग अब तीसर दत lsquoजयदतrsquo क बार म जानो यह यमदत बङा वकराल होगा यह झठा-परपची अपनी वाणी को आद अनाद (वाणी) कहगा यह जयदत lsquoकरकट गरामrsquo म परकट होगा जो बाधौगढ क पास ह ह वह lsquoचमार कलrsquo म उतपनन होगा और ऊचकल वाल क जात को बगाङन क कोशश करगा यह यमदत lsquoदासrsquo कहायगा और lsquoगणपतrsquo नाम का उसका पतर होगा व दोन पता पतर परबल कालसवरप दखदायी हग और तमहार वश को आकर घरग अथारत जीव क उदधार म यथाशिकत बाधा पहचायग वह कहगा असलान हमार पास ह धमरदास वह तमहार वश को उठा दगा अथारत परभाव खतम करन क कोशश करगा वह अपना अनभव कहकर अपन बहत स गरनथ बनायगा और उसम ानीपरष क समान सवाद बनायगा वह कहगा क lsquoमलानrsquo तो सतयपरष न मझ दया ह धमरदास क पास मलान नह ह वह तमहार वश को भरमा दगा और ानमागर को वचलत करगा वह तमहार वश म अपना मत पकका करगा और मल lsquoपारस-थाकाrsquo पथ चलायगा मलछाप लकर वश को बगाङगा वह कालदत अपना मल पारस दकर सबक वसी ह बदध कर दगा वह भीतर शनय म झकत होन वाल lsquoझगrsquo शबद क बात करगा िजसस ानहन कचचजीव को भलावा दगा परष-सतरी क िजस रज-वीयर स शरररचना होती ह उसको वह अपना मलमत परचलत करगा शरर का मल lsquoआधारबीजrsquo कामवषय ह परनत उसका नाम वह गपत रखगा पहल तो वह अपना मलआधार थाका ह गपत रखगा फ़र जब शषय को जोङकर पर तरह साध लगा तब उसका वणरन करगा पहल तो ान-गरनथ को समझायगा फ़र पीछ स अपना मत पकका करायगा वह सतरी क अग को पारस ान दगा िजस आा मानकर उसक सब शषय लग पहल वह ान का शबद-उपदश समझायगा फ़र कामवषय वासना जो नकर क खान ह उस वह मल बखानगा वह lsquoझाझर दपrsquo क कथा सनायगा पाच-ततव स बन शरर क lsquoशनयगफ़ाrsquo म जाकर य पाच-ततव बहत परकार स रगीन चमकला परकाश बनात ह उस गफ़ा म lsquoहगrsquo शबद बहत जोर स उठता ह जब lsquoसोऽहगमrsquo जीव अपना शरर छोङगा तब कौन स वध स lsquoझगrsquo शबद उसक सामन आयगा कयक वह तो शरर क रहन तक ह होता ह शरर क छटत ह वह भी समापत हो जायगा

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lsquoझाझर दपrsquo कालनरजन न रच रखा ह और lsquoझग-हगrsquo दोन काल क ह शाखा ह य अनयायी कालदत अवहर (सतरी-परष कामसमबनध) ान कहगा lsquoअवहर ानrsquo कालनरजन का धोखा ह वह तमहार ान क भी महमा शामल करक मलाकर कहगा इसलय उसक मत म बहत स कङहार महत हग वह कालदत सथान-सथान पर नीचकमर करगा और हमार बात करत हय हम पर ह हसगा अतः अानी ससार लोग समझग क यह सब समान ह अथारत कबीर का मत और lsquoजयदतrsquo का मत एक ह ह जब कोई इस भद को जानन क कोशश करगा तभी उस पता चलगा िजसक हाथ म सतनामरपी दपक होगा वह हसजीव काल क इस जजाल को तयाग कर अपना कलयाण करगा इसम कोई सदह नह ह य कपटकाल बगल का धयान लगाय रहगा और सतयनाम को छोङकर कालसमबनधी नाम को परकटायगा अब चौथ lsquoवजयदतrsquo क बात सनो यह बनदलखनड म परकट होगा और अपना नाम lsquoजीवrsquo धरायगा यह वजयदत lsquoसखाभावrsquo क भिकत पकक करगा यह सखय क साथ रास रचायगा और मरल बजायगा अनक सखय क सग लगन परम लगायगा और अपन आपको दसरा कषण कहायगा वह जीव को धोखा दकर फ़ासगा और कहगा - आख क आग lsquoमन क छायाrsquo रहती ह और नाक क ऊपर क ओर आकाश lsquoशनयrsquo ह आख और कान बनद कर धयान लगान क िसथत म कोहरा जसा दखता ह सफ़द काला नीला पीला आद रग दखना च क करयाय ह परनत वह मिकत क नाम पर उनम जीव को डालकर भरमायगा य सब काल का धोखा ह यह परतण बदलती करयाय िसथर ह जो शरर क आख स दखी जाती ह अतः यह कालदत मन क छाया माया दखायगा और मिकत का मल छाया को बतायगा यह lsquoसतयनामrsquo स जीव को भटका कर काल क मख म ल जायगा

सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव

कबीर बोल - धमरदास सदगर सवपर ह अतः शषय को चाहय क गर स अधक कसी को न मान और गर क सखाय हय को सतय करक जान एक समय ऐसा भी आयगा जब तमहारा बदवश उलटा काम करगा वह बना गर क भवसागर स पार होना चाहगा जो नगरा होकर जगत को समझाता ह अथारत ान बताता ह वह खद तो डबगा ह तथा ससार क जीव को भी डबायगा बना गर क कलयाण नह होता जो गर क शरणागत होता ह वह ससारसागर स पार हो जाता ह कालनरजन अनक परकार स जीव को धोख म डालता ह अतः बना गर क जीव को अहकारवश ान कहत दखकर काल बहत खश होता ह धमरदास बोल - साहब कपा कर lsquoनाद-बदrsquo ान समझान क कपा कर कबीर बोल - बद एक और नाद बहत स होत ह जो बद क भात मल वह बद कहाता ह वचनवश सतयपरष का अश ह उसक ान स जीव ससार स छट जाता ह नाद और बदवश एक साथ हग तब उनस काल मह छपाकर रहगा जस मन तमह बताया वस नादबद योग (योग का एक तरका परकार) एक करना कयक बना

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नाद तो बद का भी वसतार नह होता और बना बद नाद नह उबरगा इस कलयग म काल बहत परबल ह जो अहकाररप धर सबको खाता ह नाद अहकार तयाग कर होगा और बद का अहकार बद सजायगा इसी स सतयपरष न इन दोन को अनशासत करन क लय मयारदा (नयम) म बाधा और नाद-बद दो रप बनाय जो अहकार छोङकर सतयसवरप परमातमा को भजगा उसका धयान समरन करगा वह हस-सवरप हो जायगा नाद-बद दोन कोई ह अहकार सबक लय हानकारक ह ह इसलय यह निशचत ह जो अहकार करगा वह भवसागर म डबगा धमरदास बोल - साहब आपन नाद-बद क बार म बताया अब मर मन म एक बात आ रह ह आपक वरोधी मर पतर नारायण दास का कया होगा वह ससार क नात मरा पतर ह इसलय चता होती ह सतयनाम को गरहण करन वाल जीव सतयलोक को जायग और नारायण दास काल क मह म जायगा यह तो अचछ बात न होगी कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमको बारबार समझाया पर तमहार समझ म नह आया अगर चौदह यमदत ह मकत होकर सतयलोक चल जायग तो फ़र जीव को फ़सान क लय फ़दा कौन लगायगा अब मन तमहारा ान समझा तम मर बात क परवाह न करक मोहमाया दवारा सतयपरष क आा को मटान म लग हय हो जब मनषय क मन म मोह अधकार छा जाता ह तब सारा ान भलकर वह अपना परमाथर कमर नषट करता ह बना वशवास क भिकत नह होती और बना भिकत क कोई जीव भवसागर स नह तर सकता फ़र स तमह काल फ़दा लगा ह तमन परतय दखा क नारायण दास कालदत ह फ़र भी तमन उस पतर मानन का हठ कया जब तमह ह मर वचन पर वशवास नह आता तो ससार लोग गरओ पर कया वशवास करग जो अहकार को छोङकर गर क शरण म आता ह वह सदगत पाता ह जो तरगणी माया को पकङत ह उनम मोहमद जाग जाता ह और व अभाग भिकत-ान सब तयाग दत ह जब तम ह गर का वशवास तयाग दोग जो जीव का उदधार करन वाल हो तब सामानय जीव का कया ठकाना इस परकार भरमत करन क यह तो कालनरजन क सह पहचान ह धमरदास सनो जसा तम कह रह हो वसा ह तमहारा वश भी परकाशत करगा मोह क आग म वह सदा जलगा और इसी स तमहार वश म वरोध पङगा िजसस दख होगा पतर धन घर सतरी परवार और कल का अभमान यह सब काल ह का तो वसतार ह वह इनह को माधयम बनाकर जीव को बधन म डालता ह इनस तमहारा वश भल म पङ जायगा और सतयनाम क राह नह पायगा ससार क अनय वश क दखादखी तमहार वश क लोग भी पतर धन घर परवार आद क मोह म पङ जायग और यह दखकर कालदत बहत परसनन हग तब कालदत परबल हो जायग और जीव को नकर भजग कालनरजन अपन जाल म जीव को जब फ़साता ह तो उस काम करोध मद लोभ मोह वषय म भला दता ह फ़र उस गर क वचन पर वशवास नह रहता तब सतयनाम क बात सनत ह वह जीव चढ़न लगता ह गर पर वशवास न करन का यह लण ह धमरदास िजसक घट (शरर) म सतयनाम समा गया ह उसक पहचान कहता ह धयान स सनो उस भकत को काल का वाण नह लगता और उस काम करोध मद लोभ नह सतात वह झठ मोह तषणा तथा सासारक वसतओ क आशा तयाग कर सदगर क सतयवचन म मन लगाता ह जस सपर मण को धारण कर परकाशत होता

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ह ऐस ह शषय सदगर क आा को अपन हरदय म धारण कर तथा समसत वषय को भलाकर ववक हस बनकर अवनाशी नज मकतसवरप सतयपद परापत कर सदगर क वचन पर अटल और अभमानरहत कोई बरला ह शरवीर सत परापत करता ह और उसक लय मिकत दर नह होती इस परकार जीवत ह मिकतिसथत का अनभव और मिकत परदान कराना सदगर का ह परताप ह अतः सदगर क चरण म ह परम करो और सब पापकमर अान एव सासारक वषय वकार को तयाग दो अपन नाशवान शरर को धल क समान समझो यह सनकर धमरदास सकपका गय वह कबीर साहब क चरण म गर पङ और दखी सवर म बोल - परभ म अान स अचत हो गया था मझ पर कपा कर कपा कर मर भल-चक मा कर जो नारायण दास क लय मन िजद क थी वह अान म खद को पता जानकर क थी अतः मर इस भल को मा कर कबीर बोल - धमरदास तम सतयपरष क अश हो परनत वश नारायण दास काल का दत ह उस तयाग दो और जीव का कलयाण करन क लय भवसागर म सतयपथ चलाओ यह सनकर धमरदास कबीर साहब क पर पर गर पङ और बोल - आज स मन अपन उस पतररप कालदत को तयाग दया अब आपको छोङकर कसी और क आशा कर तो म सतयसकलप क साथ कहता ह मरा नकर म वास हो कबीर साहब परसननता स बोल - धमरदास तम धनय हो जो मझको पहचान लया और नारायण दास को तयाग दया जब शषय क हरदयरपी दपरण म मल नह होगा गर का सवरप तब ह दखायी दगा जब शषय अपन पवतर हरदय म सदगर क शरीचरण को रखता ह तो काल क सब शाखाओ क समसत बधन को मटाता ह परनत जबतक वह सात पाच (सात सवगर काल तथा माया (क) तीन पतर बरहमा वषण महश य पाच) क आशा लगी रहगी तबतक वह शषय गरपद क महमा नह समझ पायगा

गर-शषय वचार-रहनी

धमरदास बोल - साहब आप गर हो म दास ह अब मझ गर-शषय क रहनी समझा कर कहो कबीर बोल - गर का वरत धारण करन वाल शषय को समझना चाहय क नगरण-सगण क बीच गर ह आधार होता ह गर क बना आचार अनदर-बाहर क पवतरता नह होती और गर क बना कोई भवसागर स पार नह होता शषय को सीप और गर को सवात बद क समान समझना चाहय गर क समपकर स तचछजीव (सीप) मोती क समान अनमोल हो जाता ह गर पारस और शषय लोह क समान ह जस पारस लोह को सोना बना दता ह गर मलयागर चदन क समान ह शषय वषल सपर क तरह होता ह इस परकार वह गर क कपा स शीतल होता ह गर समदर तो शषय उसम उठन वाल तरग ह गर दपक ह तो शषय उसम समपरत हआ पतगा ह गर चनदरमा ह तो शषय चकोर ह गर सयर ह जो कमलरपी शषय को वकसत करत ह इस परकार गरपरम को

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शषय वशवासपवरक परापत कर गर क चरण का सपशर और दशरन परापत कर जब इस तरह कोई शषय गर का वशष धयान करता ह तब वह भी गर क समान होता ह धमरदास गर एव गरओ म भी भद ह य तो सभी ससार ह गर-गर कहता ह परनत वासतव म गर वह ह जो सतयशबद या सारशबद का ान करान वाला ह उसका जगान वाला या दखान वाला ह और सतयान क अनसार आवागमन स मिकत दलाकर आतमा को उसक नजघर सतयलोक पहचाय गर जो मतय स हमशा क लय छङाकर अमतशबद (सारशबद) दखात ह िजसक शिकत स हसजीव अपन घर सतयलोक को जाता ह उस गर म कछ छल-भद नह ह अथारत वह सचचा ह ह ऐस गर तथा उनक शषय का मत एक ह होता ह जबक दसर गर-शषय म मतभद होता ह ससार क लोग क मन म अनक परकार क कमर करन क भावना ह यह सारा ससार उसी स लपटा पङा ह कालनरजन न जीव को भरमजाल म डाल दया ह िजसस उबर कर वह अपन ह इस सतय को नह जान पाता क वह नतय अवनाशी और चतनय ानसवरप ह इस ससार म गर बहत ह परनत व सभी झठ मानयताओ और अधवशवास क बनावट जाल म फ़स हय ह और दसर जीव को भी फ़सात ह लकन समथरसदगर क बना जीव का भरम कभी नह मटगा कयक कालनरजन भी बहत बलवान और भयकर ह अतः ऐसी झठ मानयताओ अधवशवास एव परमपराओ क फ़द स छङान वाल सदगर क बलहार ह जो सतयान का अजर-अमर सदश बतात ह अतः रात-दन शषय अपनी सरत सदगर स लगाय और पवतर सवाभावना स सचच साध-सनत क हरदय म सथान बनाय िजन सवक भकत शषय पर सदगर दया करत ह उनक सब अशभ कमरबधन आद जलकर भसम हो जात ह शषय गर क सवा क बदल कसी फ़ल क मन म आशा न रख तो सदगर उसक सब दखबधन काट दत ह जो सदगर क शरीचरण म धयान लगाता ह वह जीव अमरलोक जाता ह कोई योगी योगसाधना करता ह िजसम खचर भचर चाचर अगोचर नाद चकरभदन आद बहत सी करयाय ह तब इनह म उलझा हआ वह योगी भी सतयान को नह जान पाता और बना सदगर क वह भी भवसागर स नह तरता धमरदास सचचगर को ह मानना चाहय ऐस साध और गर म अतर नह होता परनत जो ससार कसम क गर ह वह अपन ह सवाथर म लग रहत ह न तो वह गर ह न शषय न साध और न ह आचार मानन वाला खद को गर कहन वाल ऐस सवाथ जीव को तम काल का फ़दा समझो और कालनरजन का दत ह जानो उसस जीव क हान होती ह यह सवाथरभावना कालनरजन क ह पहचान ह जो गर शाशवतपरम क आितमकपरम क भद को जानता ह और सारशबद क पहचान मागर जानता ह और परमपरष क िसथर भिकत कराता ह तथा सरत को शबद म लन करान क करया समझाता ह ऐस सदगर स मन लगाकर परम कर और दषटबदध एव कपट चालाक छोङ द तब ह वह नजघर को परापत होता ह और इस भवसागर स तर क फ़र लौटकर नह आता तीन काल क बधन स मकत सदा अवनाशी सतयपरष का नाम अमत ह अनमोल ह िसथर ह शाशवत सतय स मलान वाला ह अतः मनषय को चाहय क वह अपनी वतरमान कौव क चाल छोङकर हस सवभाव अपनाय और

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बहत सार पथ जो कमागर क ओर ल जात ह उनम बलकल भी मन न लगाय और बहत सार कमर भरम क जजाल को तयाग कर सतय को जान तथा अपन शरर को मटट ह जान और सदगर क वचन पर पणर वशवास कर कबीर साहब क ऐस वचन सनकर धमरदास बहत परसनन हय और दौङकर कबीर क चरण स लपट गय व परम म गदगद हो गय और उनक खशी स आस बहन लग फ़र वह बोल - साहब आप मझ ान पान क अधकार और अनाधकार जीव क लण भी कह कबीर बोल - धमरदास िजसको तम वनमर दखो िजस परष म ान क ललक परमाथर और सवाभावना हो तथा जो मिकत क लय बहत अधीर हो िजसक मन म दया शील मा आद सदगण ह उसको नाम (हसदा) और सतयान का उपदश करो कनत जो दयाहन हो सारशबद का उपदश न मान और काल का प लकर वयथर वाद-ववाद तकर -वतकर कर और िजसक दिषट चचल हो उसको ान परापत नह हो सकता होठ क बाहर िजसक दात दखाई पङ उसको जानो क कालदत वश धरकर आया ह िजसक आख क मधय तल हो वह काल का ह रप ह िजसका सर छोटा हो परनत शरर वशाल हो उनक हरदय म अकसर कपट होता ह उसको भी सारशबद ान मत दो कयक वह सतयपथ क हान ह करगा तब धमरदास न कबीर साहब को शरदधा स दडवत परणाम कया

शररान परचय

धमरदास बोल - साहब म बङभागी ह आपन मझ ान दया अब मझ शररनणरय वचार भी कहय इसम कौन सा दवता कहा रहता ह और उसका कया कायर ह नाङ रोम कतन ह और शरर म खन कसलय ह तथा सवास कौन स मागर स चलती ह आत प फ़फ़ङा और आमाशय इनक बार म भी बताओ शरर म िसथत कौन स कमल पर कतना जप होता ह और रात-दन म कतनी सवास चलती ह कहा स शबद उठकर आता ह तथा कहा जाकर वह समाता ह अगर कोई जीव झलमल-जयोत को दखता ह तो मझ उसका भी ान ववक कहो क उसन कौन स दवता का दशरन पाया कबीर बोल - धमरदास अब तम शरर-वचार सनो सतयपरष का नाम सबस नयारा और शरर स अलग ह कयक वह आदपरष कमशः सथल सम कारण महाकारण तथा कवलय शरर स अलग ह इसलय उसका नाम भी अलग ह ह पहला मलाधारचकर गदासथान ह यहा चारदल का कमल ह इसका दवता गणश ह यहा सोलह सौ अजपा जाप ह मलाधार क ऊपर सवाधषठानचकर ह यह छहदल का कमल ह यहा बरहमा सावतरी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह आठदल (प) का कमल नाभसथान पर ह यह वषण लमी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह

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इसक ऊपर हरदय सथान पर बारह दल का कमल ह यह शव पावरती का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह वशदधचकर का सथान कठ (गला) ह यह सोलह दल का कमल ह इसम सरसवती का सथान ह इसक लय एक हजार अजपा जाप ह भवरगफ़ा दो-दल का कमल ह वहा मनराजा का थाना (चौक - मकत होत जीव को भरमान क लय) ह इसक लय भी एक हजार अजपा जाप ह इस कमल क ऊपर शनयसथान ह वहा होती झलमल-जयोत को कालनरजन जानो सबस ऊपर lsquoसरतकमलrsquo म सदगर का वास ह वहा अननत अजपा जाप ह धमरदास सबस नीच मलाधारचकर स ऊपर तक इककस हजार छह सौ सवास दन-रात चलती ह (सामानय सवास लन और छोङन म चार सक ड का समय लगता ह इस हसाब स चौबीस घट म इककस हजार छह सौ सवास दन-रात आती जाती ह) अब शरर क बार म जानो पाच-ततव स बना य (घङा घट) कमभरपी शरर ह तथा शरर म सात धातय रकत मास मद मजजा रस शकर और अिसथ ह इनम रस बना खन सार शरर म दौङता हआ शरर का पोषण करता ह जस परथवी पर असखय पङ-पौध ह वस ह परथवीरपी इस शरर पर करोङ रोम (रय) होत ह इस शरर क सरचना म बहर कोठ ह जहा बहर हजार नाङय क गाठ बधी हयी ह इस तरह शरर म धमनी और शरापरधान नाङया ह बहर नाङय म नौ पहखा गधार कह वारणी गणशनी पयिसवनी हिसतनी अलवषा शखनी ह इन नौ म भी इङा पगला सषमना य तीन परधान ह इन तीन नाङय म भी सषमना खास ह इस नाङ क दवारा ह योगी सतययातरा करत ह नीच मलाधारचकर स लकर ऊपर बरहमरधर तक िजतन भी कमलदल चकर आत ह उनस शबद उठता ह और उनका गण परकट करता ह तब वहा स फ़र उठकर वह शबद शनय म समा जाता ह आत का इककस हाथ होन का परमाण ह और आमाशय सवा हाथ अनमान ह नभतर का सवा हाथ परमाण ह और इसम सात खङक दो कान दो आख दो नाक छद एक मह ह इस तरह इस शरर म िसथत पराणवाय क रहसय को जो योगी जान लता ह और नरतर य योग करता ह परनत सदगर क भिकत क बना वह भी लख चौरासी म ह जाता ह हर तरह स ानयोग कमरयोग स शरषठ ह अतः इन वभनन योग क चककर म न पङ कर नाम क सहज भिकत स अपना उदधार कर और शरर म रहन वाल अतयनत बलवान शतर काम करोध मद लोभ आद को ान दवारा नषट करक जीवन मकत होकर रह धमरदास य सब कमरकाड मन क वयवहार ह अतः तम सदगर क मत स ान को समझो कालनरजन या मन शनय म जयोत दखाता ह िजस दखकर जीव उस ह ईशवर मानकर धोख म पङ जाता ह इस परकार य lsquoमनरपीrsquo कालनरजन अनक परकार क भरम उतपनन करता ह धमरदास योगसाधना म मसतक म पराण रोकन स जो जयोत उतपनन होती ह वह आकार-रहत नराकार मन ह ह मन म ह जीव को भरमान उनह पापकम म वषय म परवत करन क शिकत ह उसी शिकत स वह सब जीव को कचलता ह उसक यह शिकत तीन लोक म फ़ल हयी ह इस तरह मन दवारा भरमत यह मनषय खद को पहचान कर असखय-जनम स धोखा खा रहा ह और य भी नह सोच पाता क कालनरजन क कपट स िजन तचछ दवी-दवताओ क आग वह सर झकाता ह व सब उस (आतमा-मनषय) क ह आशरत ह धमरदास यह सब नरजन का जाल ह जो मनषय दवी- दवताओ को पजता हआ कलयाण क आशा करता ह परनत सतयनाम क बना यह यम क फ़ास कभी नह कटगी

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मन क कपट करामात

कबीर बोल - धमरदास िजस परकार कोई नट बदर को नाच नचाता ह और उस बधन म रखता हआ अनक दख दता ह इसी परकार य मनरपी कालनरजन जीव को नचाता ह और उस बहत दख दता ह यह मन जीव को भरमत कर पापकम म परवत करता ह तथा सासारक बधन म मजबती स बाधता ह मिकत उपदश क तरफ़ जात हय कसी जीव को दखकर मन उस रोक दता ह इसी परकार मनषय क कलयाणकार काय क इचछा होन पर भी यह मन रोक दता ह मन क इस चाल को कोई बरला परष ह जान पाता ह यद कह सतयपरष का ान हो रहा हो तो य मन जलन लगता ह और जीव को अपनी तरफ़ मोङकर वपरत बहा ल जाता ह इस शरर क भीतर और कोई नह ह कवल मन और जीव य दो ह रहत ह पाच-ततव और पाच-ततव क पचचीस परकतया सत रज तम य तीन गण और दस इिनदरया य सब मन-नरजन क ह चल ह सतयपरष का अश जीव आकर शरर म समाया ह और शरर म आकर जीव अपन घर क पहचान भल गया ह पाच-ततव पचचीस परकत तीन गण और मन-इिनदरय न मलकर जीव को घर लया ह जीव को इन सबका ान नह ह और अपना य भी पता नह क म कौन ह इस परकार स बना परचय क अवनाशी-जीव कालनरजन का दास बना हआ ह जीव अानवश खद को और इस बधन को नह जानता जस तोता लकङ क नलनी यतर म फ़सकर कद हो जाता ह यह िसथत मनषय क ह जस शर न अपनी परछा कए क जल म दखी और अपनी छाया को दसरा शर जानकर कद पङा और मर गया ठक ऐस ह जीव काल-माया का धोखा समझ नह पाता और बधन म फ़सा रहता ह जस काच क महल क पास गया का दपरण म अपना परतबमब दखकर भकता ह और अपनी ह आवाज और परतबमब स धोखा खाकर दसरा का समझकर उसक तरफ़ भागता ह ऐस ह कालनरजन न जीव को फ़सान क लय मायामोह का जाल बना रखा ह कालनरजन और उसक शाखाओ (कमरचार दवताओ आद न) न जो नाम रख ह व बनावट ह जो दखन-सनन म शदध मायारहत और महान लगत ह परबहम पराशिकत आद आद परनत सचचा और मोदायी कवल आदपरष का lsquoआदनामrsquo ह ह अतः धमरदास जीव इस काल क बनायी भलभलया म पङकर सतयपरष स बगाना हो गय और अपना भला-बरा भी नह वचार सकत िजतना भी पापकमर और मथया वषय आचरण ह य इसी मन-नरजन का ह ह यद जीव इस दषटमन नरजन को पहचान कर इसस अलग हो जाय तो निशचत ह जीव का कलयाण हो जाय यह मन मन और जीव क भननता तमह समझाई जो जीव सावधान सचत होकर ानदिषट स मन को दखगा समझगा तो वह कालनरजन क धोख म नह आयगा जस जबतक घर का मालक सोता रहता ह तबतक चोर उसक घर म सध लगाकर चोर करन क कोशश करत रहत ह और उसका धन लट ल जात ह ऐस ह जबतक शरररपी घर का सवामी य जीव अानवश मन क चाल क परत सावधान नह रहता तबतक मनरपी चोर उसका भिकत और ानरपी धन चराता रहता ह और जीव को नीचकम क ओर पररत करता रहता ह परनत जब जीव इसक चाल को समझकर सावधान हो जाता ह तब इसक नह चलती जो जीव मन को जानन लगता ह उसक जागरतकला (योगिसथत) अनपम होती ह जीव क लय अान अधकार बहत भयकर अधकप क समान ह इसलय य मन ह भयकर काल ह जो जीव को बहाल करता ह सतरी-परष मन दवारा ह एक-दसर क परत आकषरत होत ह और मन उमङन स ह शरर म कामदव जीव को

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बहत सताता ह इस परकार सतरी-परष वषयभोग म आसकत हो जात ह इस वषयभोग का आननदरस कामइनदर और मन न लया और उसका पाप जीव क ऊपर लगा दया इस परकार पापकमर और सब अनाचार करान वाला य मन होता ह और उसक फ़लसवरप अनक नकर आद कठोर दड जीव भोगता ह दसर क नदा करना दसर का धन हङपना यह सब मन क फ़ासी ह सनत स वर मानना गर क ननदा करना यह सब मन-बदध का कमर कालजाल ह िजसम भोलाजीव फ़स जाता ह परसतरी-परष स कभी वयभचार न कर अपन मन पर सयम रख यह मन तो अधा ह वषय वषरपी कम को बोता ह और परतयक इनदर को उसक वषय म परवत करता ह मन जीव को उमग दकर मनषय स तरह तरह क जीवहतया कराता ह और फ़र जीव स नकर भगतवाता ह यह मन जीव को अनकानक कामनाओ क पत र का लालच दकर तीथर वरत तचछ दवी-दवताओ क जङ-मतरय क सवा-पजा म लगाकर धोख म डालता ह लोग को दवारकापर म यह मन दाग (छाप) लगवाता ह मिकत आद क झठ आशा दकर मन ह जीव को दाग दकर बगाङता ह अपन पणयकमर स यद कसी का राजा का जनम होता ह तो पणयफ़ल भोग लन पर वह नकर भगतता ह और राजा जीवन म वषयवकार होन स नकर भगतन क बाद फ़र उसका साड का जनम होता ह और वह बहत गाय का पत होता ह पाप-पणय दो अलग-अलग परकार क कमर होत ह उनम पाप स नकर और पणय स सवगर परापत होता ह पणयकमर ीण हो जान स फ़र नकर भगतना होता ह ऐसा वधान ह अतः कामनावश कय गय पणय का यह कमरयोग भी मन का जाल ह नषकाम भिकत ह सवरशरषठ ह िजसस जीव का सब दख-दवद मट जाता ह धमरदास इस मन क कपट-करामात कहा तक कह बरहमा वषण महश तीन परधान दवता शषनाग तथा ततीस करोङ दवता सब इसक फ़द म फ़स और हार कर रह मन को वश म न कर सक सदगर क बना कोई मन को वश म नह कर पाता सभी मन-माया क बनावट जाल म फ़स पङ ह

कपट कालनरजन का चरतर

कबीर बोल - धमरदास अब इस कपट कालनरजन का चरतर सनो कस परकार वह जीव क छलबदध कर अपन जाल म फ़साता ह इसन कषण अवतार धर कर गीता क कथा कह परनत अानी जीव इसक चाल रहसय को नह समझ पाता अजरन शरीकषण का सचचा सवक था और शरीकषण क भिकत म लगन लगाय रहता था शरीकषण न उस सब समान कहा सासारक वषय स लगाव और सासारक वषय स पर आतम मो सब कछ सनाया परनत बाद म काल अनसार उस मोमागर स हटाकर सासारक कमर-कतरवय म लगन को पररत कया िजसक परणामसवरप भयकर महाभारत यदध हआ शरीकषण न गीता क ान उपदश म पहल दया मा आद गण उपदश क बार म बताया और ान-वान कमरयोग आद कलयाण दन वाल उपदश का वणरन कया जबक अजरन सतयभिकत म लगन लगाय था तथा वह शरीकषण को बहत मानता था पहल शरीकषण न अजरन को मिकत क आशा द परनत बाद म उस नकर म डाल दया कलयाणदायक ानयोग का तयाग कराकर उस सासारक कमर-कतरवय क ओर घमा दया िजसस कमर क वश हय अजरन न बाद म बहत दख पाया मीठा अमत दखाकर उसका लालच दकर धोख स वष समान दख द दया

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इस परकार काल जीव को बहला-फ़सला कर सनत क छव बगाङता ह और उनह मिकत स दर रखता ह जीव म सनत क परत अवशवास और सदह उतपनन करता ह इस कालनरजन क छलबदध कहा-कहा तक गनाऊ उस कोई कोई ववक सनत ह पहचानता ह जब कोई ानमागर म पकका रहता ह तभी उस सतयमागर सझता ह तब वह यम क छल-कपट को समझता ह और उस पहचानता हआ उसस अलग हो जाता ह सदगर क शरण म जान पर यम का नाश हो जाता ह तथा अटल अय-सख परापत होता ह

सतयपथ क डोर

धमरदास बोल - परभ इस कालनरजन का चरतर मन समझ लया अब आप lsquoसतयपथ क डोरrsquo कहो िजसको पकङ कर जीव यमनरजन स अलग हो जाता ह कबीर बोल - धमरदास म तमको सतयपरष क डोर क पहचान कराता ह सतयपरष क शिकत को जब यह जीव जान लता ह तब काल कसाई उसका रासता नह रोक पाता सतयपरष क शिकत उनक एक ह नाल स उतपनन सोलह सत ह उन शिकतय क साथ ह जीव सतयलोक को जाता ह बना शिकत क पथ नह चल सकता शिकतहन जीव तो भवसागर म ह उलझा रहता ह य शिकतया सदगण क रप म बतायी गयी ह ान ववक सतय सतोष परमभाव धीरज मौन दया मा शील नहकमर तयाग वरागय शात नजधमर दसर का दख दर करन क लय ह तो करणा क जाती ह परनत अपन आप भी करणा करक अपन जीव का उदधार कर और सबको मतर समान समझ कर अपन मन म धारण कर इन शिकतसवरप सदगण को ह धारण कर जीव सतयलोक म वशराम पाता ह अतः मनषय िजस भी सथान पर रह अचछ तरह स समझ-बझ कर सतयरासत पर चल और मोह ममता काम करोध आद दगरण पर नयतरण रख इस तरह इस डोर क साथ जो सतयनाम को पकङता ह वह जीव सतयलोक जाता ह धमरदास बोल - परभ आप मझ पथ का वणरन करो और पथ क अतगरत वरिकत और गरहसथ क रहनी पर भी परकाश डालो कौन सी रहनी स वरागी वरागय कर और कौन सी रहनी स गरहसथ आपको परापत कर कबीर साहब बोल - धमरदास अब म वरागी क लय आचरण बताता ह वह पहल अभय पदाथर मास मदरा आद का तयाग कर तभी हस कहायगा वरागीसनत सतयपरष क अननयभिकत अपन हरदय म धारण कर कसी स भी दवष और वर न कर ऐस पापकम क तरफ़ दख भी नह सब जीव क परत हरदय म दयाभाव रख मन-वचन कमर स भी कसी जीव को न मार सतयान का उपदश और नाम ल जो मिकत क नशानी ह िजसस पापकमर अान तथा अहकार का समल नाश हो जायगा वरागी बरहमचयर वरत का पणररप स पालन कर कामभावना क दिषट स सतरी को सपशर न कर तथा वीयर को नषट न कर काम करोध आद वषय और छल-कपट को हरदय स पणरतया धो द और एकमन एकच होकर नाम का समरण कर धमरदास अब गरहसथ क भिकत सनो िजसको धारण करन स गरहसथ कालफ़ास म नह पङगा वह कागदशा (कौवा सवभाव) पापकमर दगरण और नीच सवभाव स पर तरह दर रह और हरदय म सभी जीव क परत दयाभाव बनाय

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रख मछल कसी भी पश का मास अड न खाय और न ह शराब पय इनको खाना-पीना तो दर इनक पास भी न जाय कयक य सब अभय-पदाथर ह वनसपत अकर स उतपनन अनाज फ़ल शाक सबजी आद का आहार कर सदगर स नाम ल जो मिकत क पहचान ह तब काल कसाई उसको रोक नह पाता ह जो गरहसथ जीव ऐसा नह करता वह कह भी नह बचता वह घोर दख क अिगनकनड म जल-जल कर नाचता ह और पागल हआ सा इधर-उधर को भटकता ह ह उस अनकानक कषट होत ह और वह जनम-जनम बारबार कठोर नकर म जाता ह वह करोङ जनम जहरल साप क पाता ह तथा अपनी ह वष जवाला का दख सहता हआ य ह जनम गवाता ह वह वषठा (मल टटट) म कङा कट का शरर पाता ह और इस परकार चौरासी क योनय क करोङ जनम तक नकर म पङा रहता ह और तमस जीव क घोर दख को कया कह मनषय चाह करोङ योग आराधना कर कनत बना सदगर क जीव को हान ह होती ह सदगर मन बदध पहच क पर का अगमान दन वाल ह िजसक जानकार वद भी नह बता सकत वद इसका-उसका यानी कमरयोग उपासना और बरहम का ह वणरन करता ह वद सतयपरष का भद नह जानता अतः करोङ म कोई ऐसा ववक सत होता ह जो मर वाणी को पहचान कर गरहण करता ह कालनरजन न खानी वाणी क बधन म सबको फ़साया हआ ह मदबदध अलप जीव उस चाल को नह पहचानता और अपन घर आननदधाम सतयलोक नह पहच पाता तथा जनम-मरण और नकर क भयानक कषट म ह फ़सा रहता ह

कौआ और कोयल स भी सीखो

कबीर बोल - धमरदास कोयल क बचच का सवभाव सनो और उसक गण को जानकर वचार करो कोयल मन स चतर तथा मीठ वाणी बोलन वाल होती ह जबक उसका वर कौवा पाप क खान होता ह कोयल कौव क घर (घसल) म अपना अणडा रख दती ह वपरत गण वाल दषट मतर कौव क परत कोयल न अपना मन एक समान कया तब सखा मतर सहायक समझ कर कौव न उस अणड को पाला और वह कालबदध कागा (कौवा) उस अणड क रा करता रहा समय क साथ कोयल का अणडा बङकर पकका हआ और समय आन पर फ़ट गया तब उसस बचचा नकला कछ दन बीत जान पर कोयल क बचच क आख ठक स खल गयी और वह समझदार होकर जानन समझन लगा फ़र कछ ह दन म उसक पख भी मजबत हो गय तब कोयल समय-समय पर आ आकर उसको शबद सनान लगी अपना नजशबद सनत ह कोयल का बचचा जाग गया यानी सचत हो गया और सच का बोध होत ह उस अपन वासतवक कल का वचन वाणी पयार लगी फ़र जब भी कागा कोयल क बचच को दाना खलान घमान ल जाय तब-तब कोयल अपन उस बचच को वह मीठा मनोहर शबद सनाय कोयल क बचच म जब उस शबद दवारा अपना अश अकरत हआ यानी उस अपनी असलपहचान का बोध हआ तो उस बचच का हरदय कौव क ओर स हट गया और एक दन कौव को अगठा दखा कर वह कोयल का बचचा उसस पराया होकर उङ चला कोयल का बचचा अपनी वाणी बोलता हआ चला और तब घबरा कर उसक पीछ-पीछ कागा वयाकल बहाल होकर

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दौङा उसक पीछ-पीछ भागता हआ कागा थक गया परनत उस नह पा सका फ़र वह बहोश हो गया और बाद म होश आन पर नराश होकर अपन घर लौट आया कोयल का बचचा जाकर अपन परवार स मलकर सखी हो गया और नराश कागा झक मारकर रह गया धमरदास िजस परकार कोयल का बचचा होता ह क वह कौव क पास रहकर भी अपना शबद सनत ह उसका साथ छोङकर अपन परवार स मल जाता ह इसी वध स जब कोई भी समझदार जीव मनषय अपन नजनाम और नजआतमा क पहचान क लय सचत हो जाता ह तो वह मझ (सदगर) स सवय ह मल जाता ह और अपन असल घर-परवार सतयलोक म पहच जाता ह तब म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कोयलसत जस शरा होई यहवध धाय मल मोह कोई नजघर सरत कर जो हसा तार ताह एकोर वशा धमरदास इसी तरह कोयल क बचच क भात कोई शरवीर मनषय कालनरजन क असलयत को जानकर सदगर क परत शबद (नामउपदश) क लय मर तरफ़ दौङता ह और नजघर सतयलोक क तरफ़ अपनी सरत (पर एकागरता) रखता ह म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कबीर बोल - धमरदास कौव क नीच चालचलन नीचबदध को छोङकर हस क रहनी सतयआचरण सदगण परम शील सवभाव शभकायर जस उम लण को अपनान स मनषय जीव सतयलोक जाता ह िजस परकार कागा क ककर श वाणी काव-काव कसी को अचछ नह लगती परनत कोयल क मधर वाणी कहकह सबक मन को भाती ह इसी परकार कोयल क तरह हसजीव वचारपवरक उमवाणी बोल जो कोई अिगन क तरह जलता हआ करोध म भरकर भी सामन आय तो हसजीव को शीतल जल क समान उसक तपन बझानी चाहय ान-अान क यह सह पहचान ह जो अानी होता ह वह कपट उगर तथा दषटबध वाला होता ह गर का ानी शषय शीतल और परमभाव स पणर होता ह उसम सतय ववक सतोष आद सदगण समाय होत ह ानी वह ह जो झठ पाप अनाचार दषटता कपट आद दगरण स यकत दषटबदध को नषट कर द और कालनरजन रपी मन को पहचान कर उस भला द उसक कहन म न आय जो ानी होकर कटवाणी बोलता ह वह ानी अान ह बताता ह उस अानी ह समझना चाहय जो मनषय शरवीर क तरह धोती खस कर मदान म लङन क लय तयार होता ह और यदधभम म आमन सामन जाकर मरता ह तब उसका बहत यश होता ह और वह सचचावीर कहलाता ह इसी परकार जीवन म अान स उतपनन समसत पाप दगरण और बराईय को परासत करक जो ानवान उतपनन होता ह उसी को ान कहत ह मखर अानी क हरदय म शभ सतकमर नह सझता और वह सदगर का सारशबद और सदगर क महतव को नह समझता मखर इसान स अधकतर कोई कछ कहता नह ह यद कसी नतरहन का पर यद वषठा (मल) पर पङ जाय तो उसक हसी कोई नह करता लकन यद आख होत हय भी कसी का पर वषठा स सन जाय तो सभी लोग उसको ह दोष दत ह धमरदास यह ान और अान ह ान और अान वपरत सवभाव वाल ह होत ह अतः ानीपरष हमशा सदगर का धयान कर और सदगर क सतयशबद को समझ सबक अनदर सदगर का वास ह पर वह कह गपत तो कह परकट ह इसलय सबको अपना मानकर जसा म अवनाशी आतमा ह वस ह सभी जीवातमाओ को समझ और ऐसा समझ कर समान भाव स सबस नमन कर और ऐसी गरभिकत क नशानी

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लकर रह रग कचचा होन क कारण इस दह को कभी भी नाशवान होन वाल जानकर भकत परहलाद क तरह अपन सतयसकलप म दढ़ मजबत होकर रह यदयप उसक पता हरणयकशयप न उसको बहत कषट दय लकन फ़र भी परहलाद न अडग होकर हरगण वाल परभभिकत को ह सवीकार कया ऐसी ह परहलाद कसी पककभिकत करता हआ सदगर स लगन लगाय रह और चौरासी म डालन वाल मोहमाया को तयाग कर भिकतसाधना कर तब वह अनमोल हआ हसजीव अमरलोक म नवास पाता ह और अटल होकर िसथर होकर जनम-मरण क आवागमन स मकत हो जाता ह

परमाथर क उपदश

कबीर साहब बोल - धमरदास अब म तमस परमाथर वणरन करता ह ान को परापत हआ ान क शरणागत हआ कोई जीव समसत अान और कालजाल को छोङ तथा लगन लगाकर सतयनाम का समरन कर असतय को छोङकर सतय क चाल चल और मन लगाकर परमाथर मागर को अपनाय धमरदास एक गाय को परमाथर गण क खान जानो गाय क चाल और गण को समझो गाय खत बाग आद म घास चरती ह जल पीती ह और अनत म दध दती ह उसक दध घी स दवता और मनषय दोन ह तपत होत ह गाय क बचच दसर का पालन करन वाल होत ह उसका गोबर भी मनषय क बहत काम आता ह परनत पापकमर करन वाला मनषय अपना जनम य ह गवाता ह बाद म आय पर होन पर गाय का शरर नषट हो जाता ह तब रास क समान मनषय उसका शरर का मास लकर खात ह मरन पर भी उसक शरर का चमढ़ा मनषय क लय बहत सख दन वाला होता ह भाई जनम स लकर मतय तक गाय क शरर म इतन गण होत ह इसलय गाय क समान गण वाला होन का यह वाणी उपदश सजजन परष गहण कर तो कालनरजन जीव क कभी हान नह कर सकता मनषयशरर पाकर िजसक बदध ऐसी शदध हो और उस सदगर मल तो वह हमशा को अमर हो जाय धमरदास परमाथर क वाणी परमाथर क उपदश सनन स कभी हान नह होती इसलय सजजन परमाथर का सहारा आधार लकर भवसागर स पार हो दलरभ मनषयजीवन क रहत मनषय सारशबद क उपदश का परचय और ान परापत कर फ़र परमाथर पद को परापत हो तो वह सतयलोक को जाय अहकार को मटा द और नषकाम-सवा क भावना हरदय म लाय जो अपन कल बल धन ान आद का अहकार रखता ह वह सदा दख ह पाता ह यह मनषय ऐसा चतर बदधमान बनता ह क सदगण और शभकमर होन पर कहता ह क मन ऐसा कया ह और उसका परा शरय अपन ऊपर लता ह और अवगण दवारा उलटा वपरत परणाम हो जान पर कहता ह क भगवान न ऐसा कर दया यह नर अस चातर बधमाना गण शभकमर कह हम ठाना ऊचकरया आपन सर लनहा औगण को बोल हर कनहा तब ऐसा सोचन स उसक शभकम का नाश हो जाता ह धमरदास सब आशाओ को छोङकर तम नराश (उदास

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वरकत वरागी भाव) भाव जीवन म अपनाओ और कवल एक सतयनाम कमाई क ह आशा करो और अपन कय शभकमर को कसी को बताओ नह सभी दवी-दवताओ भगवान स ऊचा सवपर गरपद ह उसम सदा लगन लगाय रहो जस जल म अभननरप स मछल घमती ह वस ह सदगर क शरीचरण म मगन रह सदगर दवारा दय शबदनाम म सदा मन लगाता हआ उसका समरन कर जस मछल कभी जल को नह भलती और उसस दर होकर तङपन लगती ह ऐस ह चतरशषय गर स उपदश कर उनह भल नह सतयपरष क सतयनाम का परभाव ऐसा ह क हसजीव फ़र स ससार म नह आता तम कछए क बचच क कला गण समझो कछवी जल स बाहर आकर रत मटट म गढढा खोदकर अणड दती ह और अणड को मटट स ढककर फ़र पानी म चल जाती ह परनत पानी म रहत हय भी कछवी का धयान नरनतर अणड क ओर ह लगा रहता ह वह धयान स ह अणड को सती ह समय परा होन पर अणड पषट होत ह और उनम स बचच बाहर नकल आत ह तब उनक मा कछवी उन बचच को लन पानी स बाहर नह आती बचच सवय चलकर पानी म चल जात ह और अपन परवार स मल जात ह धमरदास जस कछय क बचच अपन सवभाव स अपन परवार स जाकर मल जात ह वस ह मर हसजीव अपन नजसवभाव स अपन घर सतयलोक क तरफ़ दौङ उनको सतयलोक जात दखकर कालनरजन क यमदत बलहन हो जायग तथा व उनक पास नह जायग व हसजीव नभरय नडर होकर गरजत और परसनन होत हय नाम का समरन करत हय आननदपवरक अपन घर जात ह और यमदत नराश होकर झक मारकर रह जात ह सतयलोक आननद का धाम अनमोल और अनपम ह वहा जाकर हस परमसख भोगत ह हस स हस मलकर आपस म करङा करत ह और सतयपरष का दशरन पात ह जस भवरा कमल पर बसता ह वस ह अपन मन को सदगर क शरीचरण म बसाओ तब सदा अचल सतयलोक मलता ह अवनाशी शबद और सरत का मल करो यह बद और सागर क मलन क खल जसा ह इसी परकार जीव सतयनाम स मलकर उसी जसा सतयसवरप हो जाता ह

अनलपी का रहसय

कबीर साहब बोल - गर क महान कपा स मनषय साध कहलाता ह ससार स वरकत मनषय क लय गरकपा स बढ़कर कछ भी नह ह फ़र ऐसा साध अनलपी क समान होकर सतयलोक को जाता ह धमरदास तम अनलपी क रहसय उपदश को सनो अनलपी नरनतर आकाश म ह वचरण करता रहता ह और उसका अणड स उतपनन बचचा भी सवतः जनम लकर वापस अपन घर को लौट जाता ह परथवी पर बलकल नह उतरता अनलपी जो सदव आकाश म ह रहता ह और कवल दन-रात पवन यानी हवा क ह आशा करता ह अनलपी क रतकरया या मथन कवल दिषट स होता ह यानी व जब एक-दसर स मलत ह तो परमपवरक एक दसर को रतभावना क गहनदिषट स दखत ह उनक इस रतकरया वध स मादापी को गभर ठहर जाता ह फ़र कछ समय बाद मादा अनलपी अणडा दती ह पर उनक नरनतर उङन क कारण अणडा ठहरन का कोई आधार तो होता नह वहा तो बस कवल नराधार शनय ह शनय ह तब आधारहन होन क कारण अणडा धरती क ओर गरन लगता ह और नीच रासत म आत-आत ह पर तरह पककर तयार हो जाता ह और रासत म ह अणडा फ़टकर शश बाहर नकल आता ह और नीच गरत-गरत ह रासत म अनलपी आख खोल लता ह तथा

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कछ ह दर म उसक पख उङन लायक हो जात ह नीच गरत हय जब वह परथवी क नकट आता ह तब उस सवतः पता लग जाता ह क यह परथवी मर रहन का सथान नह ह तब वह अनलपी अपनी सरत क सहार वापस अतर क ओर लौटन लगता ह जहा उसक माता-पता का नवास ह अनलपी कभी अपन बचच को लन परथवी क ओर नह आत बिलक बचचा सवय ह पहचान लता ह क यह परथवी मरा घर नह ह और वापस पलटकर अपन असलघर क ओर चला जाता ह धमरदास ससार म बहत स पी रहत ह परनत व अनल पी क समान गणवान नह होत ऐस ह कछ ह बरल जीव ह जो सदगर क ानअमत को पहचानत ह नधरनया सब ससार ह धनवनता नह कोय धनवनता ताह कहो जा त नाम रतन धन होय धमरदास इसी अनलपी क तरह जो जीव ानयकत होकर होश म आ जाता ह तो वह इस काल कलपनालोक को पार करक सतयलोक मिकतधाम म चला जाता ह जो मनषय जीव इस ससार क सभी आधार को तयाग कर एक सदगर का आधार और उनक नाम स वशवासपवरक लगन लगाय रहता ह और सब परकार का अभमान तयाग कर रात-दन गरचरण क अधीन रहता हआ दासभाव स उनक सवा म लगा रहता ह तथा धन घर और परवार आद का मोह नह करता पतर सतरी तथा समसत वषय को ससार का ह समबनध मानकर गरचरण को हरदय स पकङ रहता ह ताक चाहकर भी अलग न हो इस परकार जो मनषय साध सत गरभिकत क आचरण म लन रहता ह सदगर क कपा स उसक जनम-मरण रपी अतयनत दखदायी कषट का नाश हो जाता ह और वह साध सतयलोक को परापत होता ह साधक या भकतमनषय मन-वचन कमर स पवतर होकर सदगर का धयान कर और सदगर क आानसार सावधान होकर चल तब सदगर उस इस जङदह स पर नामवदह जो शाशवतसतय ह उसका साातकार करा क सहजमिकत परदान करत ह

धमरदास यह कठन कहानी

कबीर साहब बोल - सतयान बल स सदगर काल पर वजय परापत कर अपनी शरण म आय हसजीव को सतयलोक ल जात ह जहा हसजीव मनषय सतयपरष क दशरन पाता ह और अतआननद परापत करता ह फ़र वह वहा स लौटकर कभी भी इस कषटदायक दखदायी ससार म वापस नह आता यानी उसका मो हो जाता ह धमरदास मर वचन उपदश को भल परकार स गरहण करो िजास इसान को सतयलोक जान क लय सतय क मागर पर ह चलना चाहय जस शरवीर योदधा एक बार यदध क मदान म घसकर पीछ मढ़कर नह दखता बिलक नभरय होकर आग बढ़ जाता ह ठक वस ह कलयाण क इचछा रखन वाल िजास साधक को भी सतय क राह पर चलन क बाद पीछ नह हटना चाहय अपन पत क साथ सती होन वाल नार और यदधभम म सर कटान वाल वीर क महान आदशर को

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दख-समझ कर िजस परकार मनषय दया सतोष धयर मा वराग ववक आद सदगण को गरहण कर अपन जीवन म आग बढ़त ह उसी अनसार दढ़सकलप क साथ सतय सनतमत सवीकार करक जीवन क राह म आग बढ़ना चाहय जीवत रहत हय भी मतकभाव अथारत मान अपमान हान लाभ मोहमाया स रहत होकर सतयगर क बताय सतयान स इस घोर काल कषट पीङा का नवारण करना चाहय धमरदास लाख-करोङ म कोई एक बरला मनषय ह ऐसा होता ह जो सती शरवीर और सनत क बताय हय उदाहरण क अनसार आचरण करता ह और तब उस परमातमा क दशरन साातकार परापत होता ह धमरदास बोल - साहब मझ मतकभाव कया होता ह इस पणररप स सपषट बतान क कपा कर कबीर बोल - धमरदास जीवत रहत हय जीवन म मतकदशा क कहानी बहत ह कठन ह इस सदगर क सतयान स कोई बरला ह जान सकता ह सदगर क उपदश स ह यह जाना जाता ह धमरदास यह कठन कहानी गरमत त कोई बरल जानी जीवन म मतकभाव को परापत हआ सचचा मनषय अपन परमलय मो को ह खोजता ह वह सदगर क शबदवचार को अचछ तरह स परापत करक उनक दवारा बताय सतयमागर का अनसरण करता ह उदाहरणसवरप जस भरगी (पखवाला चीटा जो दवाल खङक आद पर मटट का घर बनाता ह) कसी मामल स कट क पास जाकर उस अपना तज शबद घघघ सनाता ह तब वह कट उसक गरान रपी शबदउपदश को गरहण करता ह गजार करता हआ भरगी अपन ह तज शबद सवर क गजार सना-सनाकर कट को परथवी पर डाल दता ह और जो कट उस भरगीशबद को धारण कर तब भरगी उस अपन घर ल जाता ह तथा गजार-गजार कर उस अपना lsquoसवात शबदrsquo सनाकर उसक शरर को अपन समान बना लता ह भरगी क महान शबदरपी सवर-गजार को यद कट अचछ तरह स सवीकार कर ल तो वह मामल कट स भरगी क समान शिकतशाल हो जाता ह फ़र दोन म कोई अतर नह रहता समान हो जाता ह असखय झीगर कट म स कोई-कोई बरला कट ह उपयकत और अनकल सख परदान करान वाला होता ह जो भरगी क lsquoपरथमशबदrsquo गजार को हरदय स सवीकारता ह अनयथा कोई दसर और तीसर शबद को ह शबद सवर मान कर सवीकार कर लता ह तन-मन स रहत भरगी क उस महान शबदरपी गजार को सवीकार करन म ह झीगरकट अपना भला मानत ह भरगी क शबद सवर-गजार को जो कट सवीकार नह करता तो फ़र वह कटयोन क आशरय म ह पङा रहता ह यानी वह मामल कट स शिकतशाल भरगी नह बन सकता धमरदास यह मामल कट का भरगी म बदलन का अदभत रहसय ह जो क महान शा परदान करन वाला ह इसी परकार जङबदध शषय जो सदगर क उपदश को हरदय स सवीकार करक गरहण करता ह उसस वह वषयवकार स मकत होकर अानरपी बधन स मकत होकर कलयाणदायी मो को परापत होता ह धमरदास भरगीभाव का महतव और शरषठता को जानो भरगी क तरह यद कोई मनषय नशचयपणर बदध स गर क उपदश को सवीकार कर तो गर उस अपन समान ह बना लत ह िजसक हरदय म गर क अलावा दसरा कोई भाव नह होता और वह सदगर को समपरत होता ह वह मो को परापत होता ह इस तरह वह नीचयोन म बसन वाल कौव स बदलकर उमयोन को परापत हो हस कहलाता ह

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साध का मागर बहत कठन ह

कबीर साहब बोल - इस मनषय को कौव क चाल सवभाव (जो साधारण मनषय क होती ह) आद दगरण को तयागकर हस सवभाव को अपनाना चाहय सदगर क शबदउपदश को गरहण कर मन-वचन वाणी कमर स सदाचार आद सदगण स हस क समान होना चाहय धमरदास जीवत रहत हय यह मतकसवभाव का अनपमान तम धयान स सनो इस गरहण करक ह कोई बरला मनषय जीव ह परमातमा क कपा को परापत कर साधनामागर पर चल सकता ह तम मझस उस मतकभाव का गहन रहसय सनो शषय मतकभाव होकर सतयान का उपदश करन वाल सदगर क शरीचरण क पर भाव स सवा कर मतकभाव को परापत होन वाला कलयाण क इचछा रखन वाला िजास अपन हरदय म मा दया परम आद गण को अचछ परकार स गरहण कर और जीवन म इन गण क वरत नयम का नवारह करत हय सवय को ससार क इस आवागमन क चकर स मकत कर जस परथवी को तोङा खोदा जान पर भी वह वचलत नह होती करोधत नह होती बिलक और अधक फ़ल फ़ल अनन आद परदान करती ह अपन-अपन सवभाव क अनसार कोई मनषय चनदन क समान परथवी पर फ़ल फ़लवार आद लगाता हआ सनदर बनाता ह तो कोई वषठा मल आद डालकर गनदा करता ह कोई-कोई उस पर कष खती आद करन क लय जताई-खदाई आद करता ह लकन परथवी उसस कभी वचलत न होकर शातभाव स सभी दख सहन करती हयी सभी क गण-अवगण को समान मानती ह और इस तरह क कषट को और अचछा मानत हय अचछ फ़सल आद दती ह धमरदास अब और भी मतकभाव सनो य अतयनत दरह कठन बात ह मतकभाव म िसथत सत गनन क भात होता ह जस कसान गनन को पहल काट छाटकर खत म बोकर उगाता ह फ़र नय सर स पदा हआ गनना कसान क हाथ म पङकर पोर-पोर स छलकर सवय को कटवाता ह ऐस ह मतकभाव का सत सभी दख सहन करता ह फ़र वह कटा-छला हआ गनना अपन आपको कोलह म परवाता ह िजसम वह पर तरह स कचल दया जाता ह और फ़र उसम स सारा रस नकल जान क बाद उसका शष भाग खो बन जाता ह फ़र आप (जल) सवरप उस रस को कङाह म उबाला जाता ह उसक अपन शरर क रस को आग पर तपान स गङ बनता ह और फ़र उस और अधक आच दकर तपा-तपाकर रगङ-रगङ कर खाड बनायी जाती ह खाड बन जान पर फ़र स उसम ताप दया जाता ह और फ़र तब उसम स जो दाना बनता ह उस चीनी कहत ह चीनी हो जान पर फ़र स उस तपाकर कषट दकर मशरी बनात ह धमरदास मशरी स पककर lsquoकदrsquo कहलाया तो सबक मन को अचछा लगा इस वध स गनन क भात जो शषय गर क आा अनसार आचरण वयवहार करता हआ सभी परकार क कषट-दख सहन करता ह वह सदगर क कपा स सहज ह भवसागर को पार कर लता ह धमरदास जीवत रहत हय मतकभाव अपनाना बहद कठन ह इस लाख-करोङ म कोई सरमा सत ह अपना पाता ह जबक इस सनकर ह सासारक वषयवकार म डबा कायर वयिकत तो भय क मार तन-मन स जलन लगता

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ह सवीकारना अपनाना तो बहत दर क बात ह वह डर क मार भागा हआ इस ओर (भिकत क तरफ़) मङकर भी नह दखता जस गनना सभी परकार क दख सहन करता ह ठक ऐस ह शरण म आया हआ शषय गर क कसौट पर दख सहन करता हआ सबको सवार और सदा सबको सख परदान करन वाल सवरहत क कायर कर वह मतकभाव को परापत गर क ानभद को जानन वाला ममर साधक शषय नशचय ह सतयलोक को जाता ह वह साध सासारक कलश और नज मन-इिनदरय क वषयवकार को समापत कर दता ह ऐसी उम वरागय िसथत को परापत अवचल साध स सामानय मनषय तो कया दवता तक अपन कलयाण क आशा करत ह धमरदास साध का मागर बहत ह कठन ह जो साधता क उम सतयता पवतरता नषकाम भाव म िसथत होकर साधना करता ह वह सचचा साध ह वह सचच अथ म साध ह जो अपनी पाच इिनदरय आख कान नाक जीभ कामदर को वश म रखता ह और सदगर दवारा दय सतयनाम अमत क दन-रात चखता ह

लटरा कामदव

कबीर साहब बोल - धमरदास साधना करत समय सबस पहल साध को च (आख) इिनदरय को साधना चाहय यानी आख पर नयतरण रख वह कसी वषय पर इधर-उधर न भटक उस भल परकार नयतरण म कर और गर क बताय ानमागर पर चलता हआ सदव उनक दवारा दया हआ नाम भावपणर होकर समरन कर पाच-ततव स बन इस शरर म ानइिनदरय आख का समबनध अिगनततव स ह आख का वषय रप ह उसस ह हम ससार को वभनन रप म दखत ह जसा रप आख को दखायी दता ह वसा ह भाव मन म उतपनन होता ह आख दवारा अचछा-बरा दोन दखन स राग-दवष भाव उतपनन होत ह इस मायारचत ससार म अनकानक वषय पदाथर ह िजनह दखत ह उनह परापत करन क तीवर इचछा स तन और मन वयाकल हो जात ह और जीव य नह जानता क य वषयपदाथर उसका पतन करन वाल ह इसलय एक सचच साध को आख पर नयतरण करना होता ह सनदर रप आख को दखन म अचछा लगता ह इसी कारण सनदर रप को आख क पजा कहा गया ह और जो दसरा रप करप ह वह दखन म अचछा नह लगता इसलय उस कोई नह दखना चाहता असल साध को चाहय क वह इस नाशवान शरर क रप-करप को एक ह करक मान और सथलदह क परत ऐस भाव स उठकर इसी शरर क अनदर जो शाशवत अवनाशी चतन आतमा ह उसक दशरन को ह सख मान जो ान दवारा lsquoवदहिसथतrsquo म परापत होता ह धमरदास कान इिनदरय का समबनध आकाशततव स ह और इसका वषय शबद सनना ह कान सदा ह अपन अनकल मधर शभशबद को ह सनना चाहत ह कान दवारा कठोर अपरय शबद सनन पर च करोध क आग म जलन लगता ह िजसस बहत अशात होकर बचनी होती ह सचच साध को चाहय क वह बोल-कबोल (अचछ-खराब वचन) दोन को समान रप स सहन कर सदगर क उपदश को धयान म रखत हय हरदय को शीतल और शात ह रख

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धमरदास अब नासका यानी नाक क वशीकरण क बार म भी सनो नाक का वषय गध होता ह इसका समबनध परथवीततव स ह अतः नाक को हमशा सगध क चाह रहती ह दगध इस बलकल अचछ नह लगती लकन कसी भी िसथरभाव साधक साध को चाहय क वह ततववचार करता हआ इस वश म रख यानी सगनध-दगरनध म समभाव रह अब िजभया यानी जीभ इिनदरय क बार म जानो जीभ का समबनध जलततव स ह और इसका वषय रस ह यह सदा वभनन परकार क अचछ-अचछ सवाद वाल वयजन को पाना चाहती ह इस ससार म छह रस मीठा कङवा खटटा नमकन चरपरा कसला ह जीभ सदा ऐस मधर सवाद क तलाश म रहती ह साध को चाहय क वह सवाद क परत भी समभाव रह और मधर अमधर सवाद क आसिकत म न पङ रख-सख भोजन को भी आननद स गहण कर जो कोई पचामत (दध दह शहद घी और मशरी स बना पदाथर) को भी खान को लकर आय तो उस दखकर मन म परसननता आद का वशष अनभव न कर और रख-सख भोजन क परत भी अरच न दखाय धमरदास वभनन परकार क सवाद लोलपता भी वयिकत क पतन का कारण बनती ह जीभ क सवाद क फ़र म पङा हआ वयिकत सहरप स भिकत नह कर पाता और अपना कलयाण नह कर पाता जबतक जीभ सवादरपी कए म लटक ह और तीण वषरपी वषय का पान कर रह ह तबतक हरदय म राग-दवष मोह आद बना ह रहगा और जीव सतयनाम का ान परापत नह कर पायगा धमरदास अब म पाचवी काम-इिनदरय यानी जननिनदरय क बार म समझाता ह इसका समबनध जलततव स ह िजसका कायर मतर वीयर का तयाग और मथन करना होता ह यह मथनरपी कटल वषयभोग क पापकमर म लगान वाल महान अपराधी इनदर ह जो अकसर इसान को घोर नरक म डलवाती ह इस इनदर क दवारा िजस दषटकाम क उतप होती ह उस दषट परबल कामदव को कोई बरला साध ह वश म कर पाता ह कामवासना म परवत करन वाल कामनी का मोहनीरप भयकर काल क खान ह िजसका गरसत जीव ऐस ह मर जाता ह और कोई मोसाधन नह कर पाता अतः गर क उपदश स कामभावना का दमन करन क बजाय भिकत उपचार स शमन करना चाहय ------------------ (यहा बात सफ़र औरत क न होकर सतरी-परष म एक-दसर क परत होन वाल कामभावना क लय ह कयक मो और उदधार का अधकार सतरी-परष दोन को ह समान रप स ह अतः जहा कामनी-सतरी परष क कलयाण म बाधक ह वह कामीपरष भी सतरी क मो म बाधा समान ह ह कामवषय बहत ह कठन वकार ह और ससार क सभी सतरी-परष कह न कह कामभावना स गरसत रहत ह कामअिगन दह म उतपनन होन पर शरर का रोम-रोम जलन लगता ह कामभावना उतपनन होत ह वयिकत क मन बदध स नयतरण समापत हो जाता ह िजसक कारण वयिकत का शाररक मानसक और आधयाितमक पतन होता ह) धमरदास कामी करोधी लालची वयिकत कभी भिकत नह कर पात सचची भिकत तो कोई शरवीर सत ह करता ह जो जात वणर और कल क मयारदा को भी छोङ दता ह

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कामी करोधी लालची इनस भिकत न होय भिकत कर कोई सरमा जातवणर कल खोय काम जीवन क वासतवक लय मो क मागर म सबस बढ़ा शतर ह अतः इस वश म करना बहत आवशयक ह ह धमरदास इस कराल वकराल काम को वश म करन का अब उपाय भी सनो जब काम शरर म उमङता हो या कामभावना बहद परबल हो जाय तो उस समय बहत सावधानी स अपन आपको बचाना चाहय इसक लए सवय क वदहरप को या आतमसवरप को वचारत हय सरत (एकागरता) वहा लगाय और सोच क म य शरर नह ह बिलक म शदधचतनय आतमसवरप ह और सतयनाम तथा सदगर (यद ह) का धयान करत हय वषल कामरस को तयाग कर सतयनाम क अमतरस का पान करत हय इसक आननददायी अनभव को परापत कर काम शरर म ह उतपनन होता ह और मनषय अानवश सवय को शरर और मन जानता हआ ह इस भोगवलास म परवत होता ह जब वह जान लगा क वह पाच-ततव क बनी य नाशवान जङदह नह ह बिलक वदह अवनाशी शाशवत चतनय आतमा ह तब ऐसा जानत ह वह इस कामशतर स पर तरह स मकत ह हो जायगा मनषय शरर म उमङन वाला य कामवषय अतयनत बलवान और बहत भयकर कालरप महाकठोर और नदरयी ह इसन दवता मनषय रास ऋष मन य गधवर आद सभी को सताया हआ ह और करोङ जनम स उनको लटकर घोर पतन म डाला ह और कठोर नकर क यातनाओ म धकला ह इसन कसी को नह छोङा सबको लटा ह लकन जो सत साधक अपन हरदयरपी भवन म ानरपी दपक का पणयपरकाश कय रहता हो और सदगर क सारशबद उपदश का मनन करत हय सदा उसम मगन रहता हो उसस डरकर य कामदवरपी चोर भाग जाता ह जो वषया सतन तजी मढ़ ताह लपटात नर जय डार वमन कर शवान सवाद सो खात कबीर साहब न य दोहा नीचकाम क लय ह बोला ह इस कामरपी वष को िजस सत न एकदम तयागा ह मखर मनषय इस काम स उसी तरह लपट रहत ह जस मनषय दवारा कय गय वमन यानी उलट को का परम स खाता ह

आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह

कबीर साहब बोल - धमरदास जबतक दह स पर वदहनाम का धयान होन म नह आता तबतक जीव इस असार ससार म ह भटकता रहता ह वदहधयान और वदहनाम इन दोन को अचछ तरह स समझ लता ह तो उसक सभी सदह मट जात ह जबलग धयान वदह न आव तबलग िजव भव भटका खाव धयानवदह और नामवदहा दोउ लख पाव मट सदहा

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मनषय का पाच-ततव स बना यह शरर जङ परवतरनशील तथा नाशवान ह यह अनतय ह इस शरर का एक नाम-रप होता ह परनत वह सथायी नह रहता राम कषण ईसा लमी दगार शकर आद िजतन भी नाम इस ससार म बोल जात ह य सब शरर नाम ह वाणी क नाम ह लकन इसक वपरत इस जङ और नाशवान दह स पर उस अवनाशी चतनय शाशवत और नज आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम वदह ह और धवनरप ह वह सतय ह वह सवपर ह अतः मन स सतयनाम का समरन करो वहा दन-रात क िसथत तथा परथवी अिगन वाय आद पाच-ततव का सथान नह ह वहा धयान लगान स कसी भी योन क जनम-मरण का दख जीव को परापत नह होता वहा क सख आननद का वणरन नह कया जा सकता जस गग को सपना दखता ह वस ह जीवत जनम को दखो जीत जी इसी जनम म दखो धमरदास धयान करत हय जब साधक का धयान णभर क लय भी lsquoवदहrsquo परमातमा म लन हो जाता ह तो उस ण क महमा आननद का वणरन करना असभव ह ह भगवान आद क शरर क रप तथा नाम को याद करक सब पकारत ह परनत उस वदहसवरप क वदहनाम को कोई बरला ह जान पाता ह जो कोई चारो यग सतयग तरता दवापर कलयग म पवतर कह जान वाल काशी नगर म नवास कर नमषारणय बदरनाथ आद तीथ पर जाय और गया दवारका परयाग म सनान कर परनत सारशबद (नवारणी नाम) का रहसय जान बना वह जनम-मरण क दख और बहद कषटदायी यमपर म ह जायगा और वास करगा धमरदास चाह कोई अड़सठ तीथ मथरा काशी हरदवार रामशवर गगासागर आद म सनान कर ल चाह सार परथवी क परकमा कर ल परनत सारशबद का ान जान बना उसका भरम अान नह मट सकता धमरदास म कहा तक उस सारशबद क नाम क परभाव का वणरन कर जो उसका हसदा लकर नयम स उसका समरन करगा उसका मतय का भय सदा क लय समापत हो जायगा सभी नाम स अदभत सतयपरष का सारनाम सफ़र सदगर स ह परापत होता ह उस सारनाम क डोर पकङकर ह भकतसाधक सतयलोक को जाता ह उस सारनाम का धयान करन स सदगर का वह हसभकत पाच-ततव स पर परमततव म समा जाता ह अथारत वसा ह हो जाता ह

वदहसवरप सारशबद

कबीर साहब बोल - धमरदास मो परदान करन वाला सारशबद वदहसवरप वाला ह और उसका वह अनपमरप नःअर ह पाच-ततव और पचचीस परकत को मलाकर सभी शरर बन ह परनत सारशबद इन सबस भी पर वदहसवरप वाला ह कहन-सनन क लय तो भकतसत क पास वस लोकवद आद क कमरकाड उपासना काड ानकाड योग मतर आद स समबिनधत सभी तरह क शबद ह लकन सतय यह ह क सारशबद स ह जीव का उदधार होता ह परमातमा का अपना सतयनाम ह मो का परमाण ह और सतयपरष का समरन ह सार ह बाहयजगत स धयान हटाकर अतमरखी होकर शातच स जो साधक इस नाम क अजपा जाप म लन होता ह

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उसस काल भी मरझा जाता ह सारशबद का समरन सम और मो का परा मागर ह इस सहज मागर पर शरवीर होकर साधक को मोयातरा करनी चाहय धमरदास सारशबद न तो वाणी स बोला जान वाला शबद ह और न ह उसका मह स बोलकर जाप कया जाता ह सारशबद का समरन करन वाला काल क कठन परभाव स हमशा क लय मकत हो जाता ह इसलय इस गपत आदशबद क पहचान कराकर इन वासतवक हसजीव को चतान क िजममवार तमह मन द ह धमरदास इस मनषयशरर क अनदर अननत पखङय वाल कमल ह जो अजपा जाप क इसी डोर स जङ हय ह तब उस बहद समदवार दवारा मन-बदध स पर इिनदरय स पर सतयपद का सपशर होता ह यानी उस परापत कया जाता ह शरर क अनदर िसथत शनयआकाश म अलौककपरकाश हो रहा ह वहा lsquoआदपरषrsquo का वास ह उसको पहचानता हआ कोई सदगर का हससाधक वहा पहच जाता ह और आदसरत (मन बदध च अहम का योग स एक होना) वहा पहचाती ह हसजीव को सरत िजस परमातमा क पास ल जाती ह उस lsquoसोऽहगrsquo कहत ह अतः धमरदास इस कलयाणकार सारशबद को भलभात समझो सारशबद क अजपा जाप क यह सहज धन अतरआकाश म सवतः ह हो रह ह अतः इसको अचछ तरह स जान-समझ कर सदगर स ह लना चाहय मन तथा पराण को िसथर कर मन तथा इिनदरय क कम को उनक वषय स हटाकर सारशबद का सवरप दखा जाता ह वह सहज सवाभावक lsquoधवनrsquo बना वाणी आद क सवतः ह हो रह ह इस नाम क जाप को करन क लय हाथ म माला लकर जाप करन क कोई आवशयकता ह नह ह इस परकार वदह िसथत म इस सारशबद का समरन हससाधक को सहज ह अमरलोक सतयलोक पहचा दता ह सतयपरष क शोभा अगम अपार मन-बदध क पहच स पर ह उनक एक-एक रोम म करोङ सयर चनदरमा क समान परकाश ह सतयलोक पहचन वाल एक हसजीव का परकाश सोलह सयर क बराबर होता ह ----------------------- समापत बहत दनन तक थ हम भटक सन सन बात बरानी जब कछबात उर म थर भयी सरतनरत ठहरानी रमता क सग समता हय गयी परो भनन प पानी हसदा परमहस दा समाधदा शिकतदा सारशबद दा नःअर ान वदहान सहजयोग सरतशबद योग नादबनद योग राजयोग और उजारतमक lsquoसहजधयानrsquo पदधत क वासतवक और परयोगातमक अनभव सीखन समझन होन हत समपकर कर

  • लखकीय
  • अनरागसागर की कहानी
  • कबीर साहब और धरमदास
  • आदिसषटि की रचना
  • अषटागीकनया और कालनिरजन
  • वद की उतपतति
  • तरिदव दवारा परथम समदरमथन
  • बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना
  • अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना
  • काल-निरजन का धोखा
  • चार खानि चौरासी लाख योनियो स आय मनषय क लकषण
  • चौरासी कयो बनी
  • कालनिरजन की चालबाजी
  • तपतशिला पर काल पीङित जीवो की पकार
  • कालनिरजन और कबीर का समझौता
  • राम-नाम की उतपतति
  • ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह
  • कबीर और रावण
  • कबीर और रानी इनदरमती
  • रानी इनदरमती का सतयलोक जाना
  • कबीर का सदरशन शवपच को जञान दना
  • काल कसाई जीव बकरा
  • समदर और राम की दशमनी का कबीर दवारा निबटारा
  • धरमदास क परवजनम की कहानी
  • कालदत नारायण दास की कहानी
  • कालनिरजन का छलावा बारह पथ
  • चङामणि का जनम
  • काल का अपन दतो को चाल समझाना
  • काल क चार दत
  • सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव
  • गर-शिषय विचार-रहनी
  • शरीरजञान परिचय
  • मन की कपट करामात
  • कपटी कालनिरजन का चरितर
  • सतयपथ की डोर
  • कौआ और कोयल स भी सीखो
  • परमारथ क उपदश
  • अनलपकषी का रहसय
  • धरमदास यह कठिन कहानी
  • साध का मारग बहत कठिन ह
  • लटरा कामदव
  • आतमसवरप परमातमा का वासतविक नाम lsquoविदहrsquo ह
  • विदहसवरप सारशबद
Page 4: प्रस्तुतकतार् राजीव कुलश्रेष्ठ" से वाणी यानी कबीर धमर्दास संवाद को प्रका

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वसतकह ढढकह कहवध आव हाथ कहकबीर तब पाइए जब भद लज साथ भदलनहा साथ कर दनह वसत लखाय कोटजनम का पथ था पल म पहचा जाय

लखकय

ससार म िजतनी भी पजा ान परचलत ह य जयादातर कालपजा ह और काल माया क परभाव स इसी म सनतमत यानी सतयपरष का भद सतलोक या अमरलोक का भद असल हसान आतमा का वासतवक ान घल-मल गया ह आपन बहत पसतक पढ़ हगी लकन एक बार इसको पढ़ य आख खोल दगी यद इसक गहरायी समझ गय तो जीवन का लय और दनया म फ़ला धामरक मकङजाल आसानी स समझ म आ जायगा और दमाग म भरा जनम-जनम का धामरक कचरा साफ़ होकर सचच परभ स लौ लग जायगी जो सबका उदधारकतार ह

अनरागसागर क कहानी

अनरागसागर कबीर साहब और धमरदास क सवाद पर आधारत महानगरनथ ह इसक शरआत म बताया ह क सबस पहल जब य सिषट नह थी परथवी आसमान सरज तार आद कछ भी नह था तब कवल परमातमा ह था सफ़र परमातमा ह शाशवत ह इसलय सतमत म और सचच जानकार सत परमातमा क लय lsquoहrsquo शबद का परयोग करत ह उस (परमातमा) न कछ सोचा (सिषट क शरआत म उसम सवतः एक वचार उतपनन हआ इसस सफ़रणा (सकचन जसा) हयी) तब एक शबद lsquoहrsquo परकट हआ (जस हम आज भी वचारशील होन पर lsquoहrsquo करत ह) उसन सोचा - म कौन ह इसीलय हर इसान आज तक इसी परशन का उर खोज रहा ह क - म कौन ह (उस समय य पणर था) उसन एक सनदर आनददायक दप क रचना क और उसम वराजमान हो गया फर उसन एक-एक करक एक ह

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नाल स सोलह अश (सत) परकट कय उनम पाचव अश कालपरष को छोड़कर सभी सत आनद को दन वाल थ और सतपरष दवारा बनाय हसदप म आनदपवरक रहत थ लकन कालपरष सबस भयकर और वकराल था वह अपन भाइय क तरह हसदप म न जाकर मानसरोवर दप क नकट चला आया और सतपरष क परत घोर तपसया करन लगा लगभग चसठ यग तक तपसया हो जान पर उसन सतपरष क परसनन होन पर तीनलोक सवगर धरती और पाताल माग लए और फर स कई यग तक तपसया क तब सतपरष न अषटागी कनया (आदशिकत आदया भगवती आद) को सिषटबीज क साथ कालपरष क पास भजा (इसस पहल सतपरष न कमर नाम क सत को भजकर उसक तपसया करन क इचछा क वजह पछ) अषटागीकनया बहद सनदर और मनमोहक अग वाल थी वह कालपरष को दखकर भयभीत हो गयी कालपरष उस पर मोहत हो गया और उसस रतकरया का आगरह कया (यह परथम सतरी-परष का काममलन था) और दोन रतकरया म लन हो गए रतकरया बहत लमब समय तक चलती रह और इसस बरहमा वषण शकर का जनम हआ अषटागीकनया उनक साथ आननदपवरक रहन लगी पर कालपरष क इचछा कछ और ह थी पतर क जनम क उपरात कछ समय बाद कालपरष अदशय हो गया और भवषय क लए आदशिकत को नदश द गया तब आदशिकत न अपन अश स तीन कनयाय उतपनन क और उनह समदर म छपा दया फ़र उसन तीन पतर को समदरमथन क आा द और समदरमथन क दवारा परापत हयी तीन कनयाय अपन पतर को द द य कनयाय सावतरी लमी और पावरती थी तीन पतर न मा क कहन पर उनह अपनी पतनी क रप म सवीकार लया आदयाशिकत न (कालपरष क कह अनसार यह बात कालपरष दोबारा कहन आया था कयक पहल अषटागी न जब पतर को इसस पहल सिषटरचना क लय कहा तो उनहन अनसना कर दया) अपन तीन पतर क साथ सिषट क रचना क आदयाशिकत न खद अडज यानी अड स पदा होन वाल जीव को रचा बरहमा न पडज यानी पड स शरर स पदा होन वाल जीव क रचना क वषण न उषमज यानी पानी गम स पदा होन वाल जीव कट पतग ज आद क रचना क शकर न सथावर यानी पङ पौध पहाड़ पवरत आद जीव क रचना क और फर इन सब जीव को चारखान वाल चौरासी लाख योनय म डाल दया इनम मनषयशरर क रचना सवम थी इधर बरहमा वषण शकर न अपन पता कालपरष क बार म जानन क बहत कोशश क पर व सफल न हो सक कयक वो अदशय था और उसन आदयाशिकत स कह रखा था क वो कसी को उसका पता न बताय फर वो सब जीव क अनदर lsquoमनrsquo क रप म बठ गया और जीव को तरह-तरह क वासनाओ म फ़सान लगा और समसत जीव बहद दख भोगन लग कयक सतपरष न उसक कररता दखकर शाप दया था क वह एकलाख जीव को नतय खायगा और सवालाख को उतपनन करगा समसत जीव उसक करर वयवहार स हाहाकार करन लग और अपन बनान वाल को पकारन

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लग सतपरष को य जानकर बहत गससा आया क काल समसत जीव पर बहद अतयाचार कर रहा ह (काल जीव को तपतशला पर रखकर पटकता और खाता था) तब सतपरष न ानीजी (कबीर साहब) को उसक पास भजा कालपरष और ानीजी क बीच काफ़ झङप हयी और कालपरष हार गया तपतशला पर तङपत जीव न ानीजी स पराथरना क क वो उस इसक अतयाचार स बचाय ानीजी न उन जीव को सतपरष का नाम धयान करन को कहा इस नाम क धयान करत ह जीवमकत होकर ऊपर (सतलोक) जान लग यह दखकर काल घबरा गया और उसन ानीजी स एक समझौता कया क जो जीव इस परमनाम (वाणी स पर) को सतगर स परापत कर लगा वह यहा स मकत हो जायगा ानीजी न कहा - म सवय आकर सभी जीव को यह नाम दगा नाम क परभाव स व यहा स मकत होकर आननदधाम को चल जायग काल न कहा - म और माया (उसक पतनी) जीव को तरह तरह क भोगवासना म फ़सा दग िजसस जीव भिकत भल जायगा और यह फ़सा रहगा ानीजी न कहा - लकन उस सतनाम क अदर जात ह जीव म ान का परकाश हो जायगा और जीव तमहार सभी चाल समझ जायगा कालनरजन को चता हयी उसन बहद चालाक स कहा - म जीव को मिकत और उदधार क नाम पर तरह-तरह क जात धमर पजा पाठ तीथर वरत आद म ऐसा उलझाऊगा क वह कभी अपनी असलयत नह जान पायगा साथ ह म तमहार चलाय गय पथ म भी अपना जाल फ़ला दगा इस तरह अलपबदध जीव यह नह सोच पायगा क सचचाई आखर ह कया म तमहार असल नाम म भी अपन नाम मला दगा आद अब कयक समझौता हो गया था ानीजी वापस लौट गय वासतव म मनरप म यह काल ह ह जो हम तरह-तरह क कमरजाल म फसाता ह और फर नकर आद भोगवाता ह लकन वासतव म यह आतमा सतपरष का अश होन स बहत शिकतशाल ह पर भोग वासनाओ म पड़कर इसक य दगरत हो गई ह इसस छटकारा पान का एकमातर उपाय सतगर क शरण और महामतर का धयान करना ह ह ---------------------- परसततकतार राजीव कलशरषठ चारगर ससार म धमरदास बड़ अश मिकतराज़ लख दिनहया अटल बयालस वश

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1 सदशरन नाम साहब 2 कलपत नाम साहब 3 परमोध गर 4 कवलनाम साहब 5 अमोल नाम 6 सरतसनह नाम 7 हककनाम 8 पाकनाम 9 परगटनाम 10 धीरज नाम 11 उगरनाम 12 दयानाम 13 गरनधमन नाम साहब 14 परकाश मननाम साहब 15 उदतमन नाम साहब 16 मकनद मननाम 17 अधरनाम 18 उदयनाम 19 ाननाम 20 हसमण नाम 21 सकत नाम 22 अगरमण नाम 23 रसनाम 24 गगमण नाम 25 पारस नाम 26 जागरत नाम 27 भरगमण नाम 28 अकह नाम 29 कठमण नाम 30 सतोषमण नाम 31 चातरक नाम 32 आदनाम 33 नहनाम 34 अजरनाम 35 महानाम 36 नजनाम 37 साहब नाम 38 उदय नाम 39 करणा नाम 40 उधवरनाम 41 दघरनाम 42 महामण नाम

कबीर साहब और धमरदास

कबीर साहब क शषय धनी धमरदास का जनम बहत ह धनी वशय परवार म हआ था बाद म कबीर साहब क शरण म आकर उनस परमातम-ान लकर धमरदास न अपना जीवन साथरक और परपणर कया इस तरह उनह धमरदास क जगह lsquoधनी धमरदासrsquo कहा जान लगा धमरदास वषणव थ और ठाकर-पजा कया करत थ अपनी मत रपजा क इसी करम म धमरदास मथरा आय जहा उनक भट कबीर साहब स हयी धमरदास दयाल वयवहार और पवतर जीवन जीन वाल इसान थ अतयधक धन सप क बाद भी अहकार उनह छआ तक नह था व अपन हाथ स सवय भोजन बनात और पवतरता क लहाज स जलावन लकङ को इसतमाल करन स पहल धोया करत थ एकबार इसी समय म जब वह मथरा म भोजन तयार कर रह थ उसी समय कबीर स उनक भट हयी उनहन दखा क भोजन बनान क लय जो लकङया चलह म जल रह थी उसम स ढर चीटया नकलकर बाहर आ रह थी धमरदास न जलद स शष लकङय को बाहर नकाल कर चीटय को जलन स बचाया उनह बहत दख हआ और व अतयनत वयाकल हो उठ लकङय म जलकर मर गयी चीटय क परत उनक मन म बहद पशचाताप हआ व सोचन लग - आज मझस महापाप हआ ह अपन इसी दख क वजह स उनहन भोजन भी नह खाया उनहन सोचा िजस भोजन क बनन म इतनी चीटया जलकर मर गयी उस कस खा सकता ह उनक हसाब स वह दषत भोजन खान योगय नह था अतः उनहन वह भोजन कसी दन-हन साध महातमा आद को करान का वचार कया

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वो भोजन लकर बाहर आय तो उनहन दखा क कबीर एक घन शीतल व क छाया म बठ हय थ धमरदास न उनस भोजन क लय नवदन कया कबीर साहब न कहा - सठ धमरदास िजस भोजन को बनात समय हजार चीटया जलकर मर गयी उस भोजन को मझ कराकर य पाप तम मर ऊपर कय लादना चाहत हो तम तो रोज ह ठाकर जी क पजा करत हो फ़र उनह भगवान स कय नह पछ लया था क इन लकङय क अनदर कया ह धमरदास को बहद आशचयर हआ क इस साध को य सब बात कस पता चल उस समय तो धमरदास क आशचयर का ठकाना न रहा जब कबीर न व चीटया भोजन स िजदा नकलत हय दखायी इस रहसय को व समझ न सक और उनहोन दखी होकर कहा - बाबा यद म भगवान स इस बार म पछ सकता तो मझस इतना बङा पाप कय होता धमरदास को पाप क महाशोक म डबा दखकर कबीर न अधयातम-ान क गढ़ रहसय बताय जब धमरदास न उनका परचय पछा तो कबीर न अपना नाम सदगर कबीर साहब और नवासी अमरलोक बताया इसक कछ दर बाद कबीर अतधयारन हो गय धमरदास को जब कबीर बहत दन तक नह मल तो वो वयाकल होकर जगह जगह उनह खोजत फ़र और उनक िसथत पागल क समान हो गयी तब उनक पतनी न सझाव दया - तम य कया कर रह हो उनह खोजना बहत आसान ह जस क चीट चीटा गङ को खोजत हय खद ह आ जात ह धमरदास न कहा - कया मतलब पतनी न कहा - खब भडार कराओ दान दो हजार साध आयग जब वह साध तमह दख तो उस पहचान लना धमरदास को बात उचत लगी व ऐसा ह करन लग उनहन अपनी सार सप खचर कर द पर वह साध (कबीर) नह मला फर बहत समय भटकन क बाद उनह कबीर काशी म मल परनत उस समय व वषणव वश म थ फ़र भी धमरदास न उनह पहचान लया और उनक चरण म गर पङ धमरदास बोल - सदगर महाराज मझ पर कपा कर और मझ अपनी शरण म ल गरदव मझ पर परसनन ह म उसी समय स आपको खोज रहा ह आज आपक दशरन हय कबीर बोल - धमरदास तम मझ कहा खोज रह थ तम तो चीट चीट को खोज रह थ सो व तमहार भनडार म

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आय इस पर धमरदास को अपनी मखरता पर बङा पशचाताप हआ तब उनह परायिशचत भावना म दख कर कबीर साहब न फ़र कहा - लकन तम बहत भागयशाल हो जो तमन मझ पहचान लया अब तम धयर धारण करो म तमह जीवन क आवागमन स मकत करान वाला मो-ान दगा इसक बाद धमरदास नवदन करक कबीर साहब को अपन साथ बाधोगढ ल आय फ़र तो बाधोगढ म कबीर क शरीमख स अलौकक आतमान सतसग क अवरल धारा ह बहन लगी दर दर स लोग सतसग सनन आन लग धमरदास और उनक पतनी lsquoआमनrsquo न महामतर क दा ल बाधोगढ क नरश भी कबीर क सतसग म आन लग और बाद म दा लकर व भी कबीर साहब क शषय बन यहा कबीर न बहत स उपदश दय िजनह उनक शषय न बाधोगढ नरश और धनी धमरदास क आदश पर सकलत कर गरनथ का रप दया -------------------- वशष - जब भी कसी सचचसनत का पराकटय होता ह तो कालपरष भयभीत हो जाता ह क अब य जीव को मोान दकर उनका उदधार कर दगा इसस हरसभव बचाव क लय वो अपन lsquoकालदतrsquo वहा भज दता ह धमरदास का पतर lsquoनारायण दासrsquo जो कालदत था कबीर का बहत वरोध करता था लकन उसक एक भी नह चल खद कबीर क पतर क रप म lsquoकमालrsquo कालदत था वह भी कबीर का बहत वरोध करता था बाद म कबीर न धमरदास को सयोगय शषय जानत हय मो का अनमोल ान दया और साथ ह य ताकद भी क धमरदास तोह लाख दहाई सारशबद बाहर नह जाई धमरदास न कहा - सारशबद बाहर नह जाई तो हसा लोक को कस जाई कबीर साहब न कहा - जो अपना होय तो दयो बतायी

आदसिषट क रचना

धमरदास बोल - साहब कपा कर बताय क मकत होकर अमर हय लोग कहा रहत ह मझ अमरलोक और अनय दप का वणरन सनाओ आदसिषट क रचना कौन स दप म सदगर क हसजीव का वास ह और कौन स दप म सतपरष का नवास ह वहा हसजीव कौन सा तथा कसा भोजन करत ह और व कौन सी वाणी बोलत ह

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आदपरष न लोक कस रच रखा ह तथा उनह दप रचन क इचछा कस हयी तीन लोक क उतप कस हयी साहब मझ वह सब भी बताओ जो गपत ह कालनरजन कस वध स पदा हआ और सोलह सत का नमारण कस हआ सथावर अणडज पणडज ऊषमज इन चार परकार क चार खान वाल सिषट का वसतार कस हआ और जीव को कस काल क वश म डाल दया गया कमर और शषनाग उपराजा कस उतपनन हय और कस मतसय तथा वराह जस अवतार हय तीन परमख दव बरहमा वषण महश कस परकार हय तथा परथवी आकाश का नमारण कस हआ चनदरमा और सयर कस हय कस तार का समह परकट होकर आकाश म ठहर गया और कस चार खान क जीव शरर क रचना हयी इन सबक उतप क वषय म सपषट बताय कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमह सतयान और मो पान का सचचा अधकार पाया ह इसलय सतयान का जो अनभव मन कया उसक सारशबद का रहसय कहकर सनाया अब तम मझस आदसिषट क उतप सनो म तमह सबक उतप और परलय क बात सनाता ह यह ततव क बात सनो जब धरती और आकाश और पाताल भी नह था जब कमर वराह शषनाग सरसवती और गणश भी नह थ जब सबका राजा नरजनराय भी नह था िजसन सबक जीवन को मोहमाया क बधन म झलाकर रखा ह ततीस करोङ दवता भी नह थ और म तमह अनक कया बताऊ तब बरहमा वषण महश भी नह थ और न ह शासतर वद पराण थ तब य सब आदपरष म समाय हय थ जस बरगद क पङ क बीच म छाया रहती ह धमरदास तम परारमभ क आद-उतप सनो िजस परतयरप स कोई नह जानता और िजसक पीछ सार सिषट का वसतार हआ ह उसक लय म तमह कया परमाण द क िजसन उस दखा हो चारो वद परमपता क वासतवक कहानी नह जानत कयक तब वद का मल ह (आरमभ होन का आधार) नह था इसीलय वद सतयपरष को lsquoअकथनीयrsquo अथारत िजसक बार म कहा न जा सक ऐसा कहकर पकारत ह चारो वद नराकार नरजन स उतपनन हय ह जो क सिषट क उतप आद रहसय को जानत ह नह इसी कारण पडत उसका खडन करत ह और असल रहसय स अनजान वदमत पर यह सारा ससार चलता ह सिषट क पवर जब सतयपरष गपत रहत थ उनस िजनस कमर होता ह व नम कारण और उपादान कारण और करण यानी साधन उतपनन नह कय थ उस समय गपतरप स कारण और करण समपटकमल म थ उसका समबनध सतयपरष स था lsquoवदह-सतयपरषrsquo उस कमल म थ तब सतयपरष न सवय इचछा कर अपन अश को उतपनन कया और अपन अश को दखकर वह बहत परसनन हय सबस पहल सतयपरष न lsquoशबदrsquo का परकाश कया और उसस लोकदप रचकर उसम वास कया फ़र सतयपरष न चार-पाय वाल एक सहासन क रचना क और उसक ऊपर lsquoपहपदपrsquo का नमारण कया फर सतयपरष अपनी समसत कलाओ को धारण करक उस पर बठ और उनस lsquoअगरवासनाrsquo यानी (चनदन जसी) एक सगनध परकट हयी सतयपरष न अपनी इचछा स सब कामना क और lsquoअठासी हजारrsquo दप क रचना क उन सभी दप म वह चनदन जसी सगनध समा गयी जो बहत अचछ लगी इसक बाद सतयपरष न दसरा शबद उचचारत कया उसस lsquoकमरrsquo नाम का सत (अश) परकट हआ और उनहन सतयपरष क चरण म परणाम कया तब उनहन तीसर शबद का उचचारण कया उसस lsquoानrsquo नाम क सत हय जो

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सब सत म शरषठ थ व सतयपरष क चरण म शीश नवाकर खङ रह तब सतयपरष न उनको एक दप म रहन क आा द चौथ शबद क उचचारण स lsquoववकrsquo नामक सत हय और पाचव शबद स lsquoकाल-नरजनrsquo परकट हआ काल-नरजन अतयनत तज अग और भीषणपरकत वाला होकर आया इसी न अपन उगर-सवभाव स सब जीव को कषट दया ह वस य lsquoजीवrsquo सतयपरष का अश ह जीव क आद-अत को कोई नह जानता ह छठव शबद स lsquoसहज नामrsquo सत उतपनन हय सातव शबद स lsquoसतोषrsquo नाम क सत हय िजनको सतयपरष न उपहार म दप दकर सतषट कया आठव शबद स lsquoसरत सभावrsquo नाम क सत उतपनन हय उनह भी एक दप दया गया नव स lsquoआननद अपारrsquo नाम क सत उतपनन हय दसव स lsquoमाrsquo नाम क सत उतपनन हय गयारहव स lsquoनषकामrsquo और बारहव स lsquoजलरगीrsquo नाम क सत हय तरहव स lsquoअचतrsquo और चौदहव स lsquoपरमrsquo नाम क सत हय पनदरहव स दनदयाल और सोलहव स lsquoधीरजrsquo नाम क वशाल सत उतपनन हय सतरहव शबद क उचचारण स lsquoयोगसतायनrsquo हय इस तरह lsquoएक ह नालrsquo स सतयपरष क शबद उचचारण स सोलह सत क उतप हयी सतयपरष क शबद स ह उन सत का आकार का वकास हआ और शबद स ह सभी दप का वसतार हआ सतयपरष न अपन परतयक दवयअग यानी अश को अमत का आहार दया और परतयक को अलग- अलग दप का अधकार बनाकर बठा दया सतयपरष क इन अश क शोभा और कला अननत ह उनक दप म मायारहत अलौकक सख रहता ह सतयपरष क दवयपरकाश स सभी दप परकाशत हो रह ह सतयपरष क एक ह रोम का परकाश करोङ सयर-चनदरमा क समान ह सतयलोक आननदधाम ह वहा पर शोक मोह आद दख नह ह वहा सदव मकतहस का वशराम होता ह सतपरष का दशरन तथा अमत का पान होता ह आदसिषट क रचना क बाद जब बहत दन ऐस ह बीत गय तब धमरराज कालनरजन न कया तमाशा कया उस चरतर को धयान स सनो नरजन न सतयपरष म धयान लगाकर एक पर पर खङ होकर सर यग तक कठन तपसया क इसस आदपरष बहत परसनन हय तब सतयपरष क आवाज lsquoवाणीरपrsquo म हयी - ह धमरराय कस हत स तमन यह तपसवा क नरजन सर झकाकर बोला - परभ मझ वह सथान द जहा जाकर म नवास कर सतयपरष न कहा - तम मानसरोवर दप म जाओ परसनन होकर धमरराज मानसरोवर दप क ओर चला गया और आननद स भर गया मानसरोवर पर नरजन न फ़र स एक पर पर खङ होकर सर यग तपसया क तब दयाल सतयपरष क हरदय म दया भर गयी नरजन क कठन सवा-तपसया स पषपदप क पषप वकसत हो गय और फ़र सतयपरष क वाणी परकट हयी उनक बोलत ह वहा सगनध फ़ल गयी

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सतयपरष न सहज स कहा - सहज तम नरजन क पास जाओ और उसस तप का कारण पछो नरजन क सवा-तपसया स पहल ह मन उसको मानसरोवर दप दया ह अब वह कया चाहता ह यह ात कर तम मझ बताओ सहज नरजन क पास पहच और परमभाव स कहा - भाई अब तम कया चाहत हो नरजन परसनन होकर बोला - सहज तम मर बङ भाई हो इतना सा सथानय मानसरोवर मझ अचछा नह लगता अतः म कसी बङ सथान का सवामी बनना चाहता ह मझ ऐसी इचछा ह क या तो मझ दवलोक द या मझ एक अलग दश द सहज न नरजन क अभलाषा सतयपरष को जाकर बतायी सतयपरष न सपषट शबद म कहा - हम नरजन क सवा-तपसया स सतिषट होकर उसको तीनलोक दत ह वह उसम अपनी इचछा स lsquoशनयदशrsquo बसाय और वहा जाकर सिषट क रचना कर तम नरजन स ऐसा जाकर कहो नरजन न सहज दवारा य बात सनी तो वह बहत परसनन और आशचयरचकत हआ नरजन बोला - सहज सनो म कस परकार सिषटरचना करक उसका वसतार कर सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया ह परनत म सिषटरचना का भद नह जानता फ़र यह कायर कस कर जो सिषट मन बदध क पहच स पर अतयनत कठन और जटल ह वह मझ रचनी नह आती अतः दया करक मझ उसक यिकत बतायी जाय तम मर तरफ़ स सतयपरष स यह वनती करो क म कस परकार lsquoनवखणडrsquo बनाऊ अतः मझ वह साजसामान दो िजसस जगत क रचना हो सक सहज न यह सब बात जब जाकर सतयपरष स कह तब उनहन आा द - सहज कमर क पट क अनदर सिषटरचना का सब साज सामान ह उस लकर नरजन अपना कायर कर इसक लय नरजन कमर स वनती कर और उसस दणडपरणाम करक वनयपवरक सर झकाकर माग सहज न सतयपरष क आा नरजन को बता द यह सनत ह नरजन बहत हषरत हआ और उसक अनदर बहत अभमान हआ वह कमर क पास जाकर खङा हो गया और बताय अनसार दणडपरणाम भी नह कया अमतसवरप कमर जो सबको सख दन वाल ह उनम करोध अभमान का भाव जरा भी नह ह और अतयनत शीतल सवभाव क ह अतः जब कालनरजन न अभमान करक दखा तो पता चला क कमर अतयनत धयरवान और बलशाल ह बारह पालग कमर का वशाल शरर ह और छह पालग बलवान नरजन का शरर ह नरजन करोध करता हआ कमर क चारो ओर दौङता रहा और सोचता रहा क कस उपाय स इसस उतप का सामान ल तब नरजन बहद रोष स कमर स भङ गया और अपन तीख नाखन स कमर क शीश पर आघात

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करन लगा परहार करन स कमर क उदर स पवन नकल उसक शीश क तीन अश सत रज तम गण नकल आग िजनक वश बरहमा वषण महश हय पाच-ततव धरती आकाश आद तथा चनदरमा सयर आद तार का समह उसक उदर म थ उसक आघात स पानी अिगन चनदरमा और सयर नकल और परथवीजगत को ढकन क लय आकाश नकला फ़र उसक उदर स परथवी को उठान वाल वाराह शषनाग और मतसय नकल तब परथवीसिषट का आरमभ हआ जब कालनरजन न कमर का शीश काटा तब उस सथान स रकत जल क सरोत बहन लग जब उनक रकत म सवद यानी पसीना और जल मला उसस समदर का नमारण तथा उनचास कोट परथवी का नमारण हआ जस दध पर मलाई ठहर जाती ह वस ह जल पर परथवी ठहर गयी वाराह क दात परथवी क मल म रह पवन परचणड था और परथवी सथल थी आकाश को अडासवरप समझो और उसक बीच म परथवी िसथत ह कमर क उदर स lsquoकमरसतrsquo उतपनन हय उस पर शषनाग और वराह का सथान ह शषनाग क सर पर परथवी ह नरजन क चोट करन स कमर बरयाया सिषटरचना का सब साजोसामान कमर उदर क अड म थी परनत वह कमर क अश स अलग थी आदकमर सतयलोक क बीच रहता था नरजन क आघात स पीङत होकर उसन सतयपरष का धयान कया और शकायत करत हय कहा - कालनरजन न मर साथ दषटता क ह उसन मर ऊपर बल परयोग करत हय मर पट को फ़ाङ डाला ह आपक आा का उसन पालन नह कया सतयपरष सनह स बोल - कमर वह तमहारा छोटा भाई ह और यह रत ह क छोट क अवगण को भलाकर उसस सनह कया जाय सतयपरष क ऐस वचन सनकर कमर आनिनदत हो गय इधर कालनरजन न फ़र स सतयपरष का धयान कया और अनक यग तक उनक सवा तपसया क नरजन न अपन सवाथर स तप कया था अतः सिषटरचना को लकर वह पछताया तब धमरराय नरजन न वचार कया क तीन लोक का वसतार कस और कहा तक कया जाय उसन सवगरलोक मतयलोक और पाताललोक क रचना तो कर द परनत बना बीज और जीव क सिषट का वसतार कस सभव हो कस परकार और कया उपाय कया जाय जो जीव क धारण करन का शरर बनाकर सजीव सिषटरचना हो सक यह सब तरका वध सतयपरष क सवा तपसया स ह होगा ऐसा वचार करक हठपवरक एक पर पर खङा होकर उसन चसठ यग तक तपसया क तब दयाल सतयपरष न सहज स कहा - अब य तपसवी नरजन कया चाहता ह वह तम उसस पछो और द दो उसस कहो वह हमार वचन अनसार सिषट नमारण कर और छलमत का तयाग कर सहज न नरजन स जाकर यह सब बात कह

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नरजन बोला - मझ वह सथान दो जहा जाकर म बठ जाऊ सहज बोल - सतयपरष न पहल ह सब कछ द दया ह कमर क उदर स नकल सामान स तम सिषटरचना करो नरजन बोला - म कस कया बनाकर रचना कर सतयपरष स मर तरफ़ स वनती कर कहो अपना सारा खत बीज मझ द द सहज न यह हाल सतयपरष को कह सनाया सतयपरष न आा द तो सहज अपन सखासन दप चल गय नरजन क इचछा जानकर सतयपरष न इचछा वयकत क उनक इस इचछा स अषटागी नाम क कनया उतपनन हयी वह कनया आठ भजाओ क होकर आयी थी वह सतयपरष क बाय अग जाकर खङ हो गयी और परणाम करत हय बोल - ह सतयपरष मझ कया आा ह सतयपरष बोल - पतरी तम नरजन क पास जाओ म तमह जो वसत दता ह उस सभाल लो उसस तम नरजन क साथ मलकर सिषटरपी फ़लवार क रचना करो कबीर साहब बोल - धमरदास सतयपरष न अषटागीकनया को जो जीव-बीज दया उसका नाम lsquoसोऽहगrsquo ह इस तरह जीव का नाम सोऽहग ह जीव ह सोऽहगम ह दसरा नह ह और वह जीव सतयपरष का अश ह फ़र सतयपरष न तीन शिकतय को उतपनन कया उनक नाम lsquoचतनrsquo lsquoउलघनrsquo और lsquoअभयrsquo थ सतयपरष न अषटागी स कहा क नरजन क पास जाकर उस पहचान कर यह चौरासी लाख जीव का मलबीज जीव-बीज द दो अषटागीकनया यह जीव-बीज लकर मानसरोवर चल गयी तब सतयपरष न सहज को बलाया और उसस कहा - तम नरजन क पास जाकर यह कहो क जो वसत तम चाहत थ वह तमह द द गयी ह जीव-बीज lsquoसोऽहगrsquo तमह मल गया ह अब जसी चाहो सिषटरचना करो और मानसरोवर म जाकर रहो वह स सिषट का आरमभ होना ह सहज न नरजन स जाकर ऐसा ह कहा

अषटागीकनया और कालनरजन

सहज क दवारा सतयपरष क ऐस वचन सनकर नरजन परसनन होकर अहकार स भर गया और मानसरोवर चला आया फ़र जब उसन सनदर कामनी lsquoअषटागीकनयाrsquo को आत हय दखा तो उस अत परसननता हयी अषटागी का

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अनपमसदयर दखकर नरजन मगध हो गया उसक सनदरता क कला का अनत नह था यह दखकर कालनरजन बहत वयाकल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क कररता सनो वह अषटागीकनया को ह नगल गया जब अनयायी कालनरजन अषटागी का ह आहार करन लगा तब उस कनया को कालनरजन क परत बहत आशचयर हआ जब वह उस नगल रहा था तो अषटागी न सतयपरष को धयान करक पकारा क कालनरजन न मरा आहार कर लया ह अषटागी क पकार सनकर सतयपरष न सोचा क यह कालनरजन तो बहत करर और अनयायी ह इस कनया क तरह ह पहल कमर न धयान करक मझ पकारा था क कालनरजन न मर तीन शीश खा लय ह सतयपरष आप मझ पर दया किजय कबीर साहब बोल - कालनरजन का ऐसा करर चरतर जानकर सतयपरष न उस शाप दया क वह परतदन लाख जीव को खायगा और सवालाख का वसतार करगा फ़र सतयपरष न ऐसा भी वचार कया क इस कालपरष को मटा ह डाल कयक अनयायी और करर कालनरजन बहत ह कठोर और भयकर ह यह सभी जीव का जीवन बहत दखी कर दगा लकन अब वह मटान स भी नह मट सकता था कयक एक ह नाल स व सब सोलह सत उतपनन हय थ अतः एक को मटान स सभी मट जायग और मन सबको अलग लोकदप दकर जो रहन का वचन दया ह वह डावाडोल हो जायगा और मर य सब रचना भी समापत हो जायगी अतः इसको मारना ठक नह ह सतयपरष न वचार कया क कालपरष को मारन स उनका वचन भग हो जायगा अतः अपन वचन का पालन करत हय उस न मारकर यह कहता ह क अब वह कभी हमारा दशरन नह पायगा यह कहत हय सतयपरष न योगजीत को बलवाया और सब हाल कहा क कस तरह कालनरजन न अषटागी कनया को नगल लया और कमर क तीन शीश खा लय उनहन कहा - योगजीत तम शीघर मानसरोवर दप जाओ और वहा स नरजन को मारकर नकाल दो वह मानसरोवर म न रहन पाय और हमार दश सतयलोक म कभी न आन पाय नरजन क पट म अषटागी नार ह उसस कहो क वह मर वचन का सभाल कर पालन कर नरजन जाकर उसी दश म रह जो मन पहल उस दय ह अथारत वह सवगरलोक मतयलोक और पाताल पर अपना राजय कर वह अषटागी नार नरजन का पट फ़ाङकर बाहर नकल आय िजसस पट फ़टन स वह अपन कम का फ़ल पाय नरजन स नणरय करक कह दो क वह अषटागी नार ह अब तमहार सतरी होगी योगजीत सतयपरष को परणाम करक मानसरोवर दप आय कालनरजन उनह वहा आया दखकर भयकर रप हो गया और बोला - तम कौन हो और कसन तमह यहा भजा ह योगजीत न कहा - अर नरजन तम नार को ह खा गय अतः सतयपरष न मझ आा द क तमह शीघर ह यहा स नकाल योगजीत न नरजन क पट म समायी हयी अषटागी स कहा - अषटागी तम वहा कय रहती हो तम सतयपरष क तज का समरन करो और पट फ़ाङकर बाहर आ जाओ

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योगजीत क बात सनकर नरजन का हरदय करोध स जलन लगा और वह योगजीत स भङ गया योगजीत न सतयपरष का धयान कया तो सतयपरष न आा द क वह नरजन क माथ क बीच म जोर स घसा मार योगजीत न ऐसा ह कया फ़र योगजीत न नरजन क बाह पकङ कर उस उठाकर दर फ़ क दया तो वह सतयलोक क मानसरोवर दप स अलग जाकर दर गर पङा सतयपरष क डर स वह डरता हआ सभल सभलकर उठा फ़र अषटागीकनया नरजन क पट स नकल वह कालनरजन स बहत भयभीत थी वह सोचन लगी क अब म वह दश न दख सकगी म न जान कस परकार यहा आकर गर पङ यह कौन बताय वह नरजन स बहत डर हयी थी और सकपका कर इधर-उधर दखती हयी नरजन को शीश नवा रह थी तब नरजन बोला - ह आदकमार सनो अब तम मर डर स मत डरो सतयपरष न तमह मर lsquoकामrsquo क लय रचा ह हम-तम दोन एकमत होकर सिषटरचना कर म परष ह और तम मर सतरी हो अतः तम मर यह बात मान लो अषटागी बोल - तम यह कसी वाणी बोलत हो म तो तमह बङा भाई मानती ह इस परकार जानत हय भी तम मझस ऐसी बात मत करो जब स तमन मझ पट म डाल लया था और उसस उतपनन होन पर अब तो म तमहार पतरी भी हो गयी ह बङ भाई का रशता तो पहल स ह था अब तो तम मर पता भी हो गय हो अब तम मझ साफ़ दिषट स दखो नह तो तमस यह पाप हो जायगा अतः मझ वषयवासना क दिषट स मत दखो नरजन बोला - भवानी सनो म तमह सतय बताकर अपनी पहचान कराता ह पाप पणय क डर स म नह डरता कयक पाप पणय का म ह तो कतार (करान वाला) ह पाप पणय मझस ह हग और मरा हसाब कोई नह लगा पाप पणय को म ह फ़लाऊगा जो उसम फ़स जायगा वह मरा होगा अतः तम मर इस सीख को मानो सतयपरष न मझ कह समझा कर तझ दया ह अतः तम मरा कहना मानो नरजन क ऐसी बात सनकर अषटागी हसी और दोन एकमत होकर एक दसर क रग म रग गय अषटागी मीठ वाणी स रहसयमय वचन बोल और फ़र उस नीचबदध सतरी न वषयभोग क इचछा परकट क उसक रतवषयक रहसयमय वचन सनकर नरजन बहत परसनन हआ और उसक भी मन म वषयभोग क इचछा जाग उठ नरजन और अषटागी दोन परसपर रतकरया म लग गय तब कह चतनयसिषट का वशष आरमभ हआ धमरदास तम आदउतप का यह भद सनो िजस भरमवश कोई नह जानता उन दोन न तीन बार रतकरया क िजसस बरहमा वषण तथा महश हय उनम बरहमा सबस बङ मझल वषण और सबस छोट शकर थ इस परकार अषटागी और नरजन का रतपरसग हआ उन दोन न एकमत होकर भोगवलास कया तब उसस आदउतप का परकाश हआ

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वद क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास वचार करो पीछ ऐसा वणरन हो चका ह क अिगन पवन जल परथवी और परकाश कमर क उदर स परकट हय उसक उदर स य पाचो अश लय तथा तीन सर काटन स सत रज तम तीन गण परापत हय इस परकार पाच ततव और तीन गण परापत होन पर नरजन न सिषटरचना क फ़र अषटागी और नरजन क परसपर रतपरसग स अषटागी को गण एव ततव समान करक दय और अपन अश उतपनन कय इस परकार पाच-ततव और तीन गण को दन स उसन ससार क रचना क वीयरशिकत क पहल बद स बरहमा हय उनह रजोगण और पाच ततव दय दसर बद स वषण हय उनह सतगण और पाच ततव दय तीसर बद स शकर हय उनह तमोगण और पाच ततव दय पाच ततव तीन गण क मशरण स बरहमा वषण महश क शरर क रचना हयी इसी परकार सब जीव क शरर क रचना हयी उसस य पाच-ततव और तीन गण परवतरनशील और वकार होन स बारबार सजन-परलय यानी जीवन-मरण होता ह सिषट क रचना क इस lsquoआदरहसयrsquo को वासतवक रप स कोई नह जानता धमरदास कबीर साहब आग कहन लग नरजन बोला - अषटागी कामनी मर बात सन और जो म कह उस मान अब जीव-बीज सोऽहग तमहार पास ह उसक दवारा सिषटरचना का परकाश करो ह रानी सन अब म कस कया कर आदभवानी बरहमा वषण महश तीन पतर तमको सप दय और अपना मन सतयपरष क सवा भिकत म लगा दया ह तम इन तीन बालक को लकर राज करो परनत मरा भद कसी स न कहना मरा दशरन य तीन पतर न कर सक ग चाह मझ खोजत-खोजत अपना जनम ह कय न समापत कर द सोच-समझकर सब लोग को ऐसा मत सदढ कराना क सतयपरष का भद कोई पराणी जानन न पाय जब य तीन पतर बदधमान हो जाय तब उनह समदरमथन का ान दकर समदरमथन क लय भजना इस तरह नरजन न अषटागी को बहत परकार स समझाया और फ़र अपन आप गपत हो गया उसन शनयगफ़ा म नवास कया वह जीव क lsquoहरदयाकाशरपीrsquo शनयगफ़ा म रहता ह तब उसका भद कौन ल सकता ह वह गपत होकर भी सबक साथ ह जो सबक भीतर ह उस मन को ह नरजन जानो जीव क हरदय म रहन वाला यह मन नरजन सतयपरष परमातमा क रहसयमय ान क परत सदह उतपनन कर उस मटाता ह यह अपन मत स सभी को वशीभत करता ह और सवय क बङाई परकट करता ह सभी जीव क हरदय म बसन वाला यह मन कालनरजन का ह रप ह सबक साथ रहता हआ भी य मन पणरतया गपत ह और कसी को दखाई नह दता य सवाभावक रप स अतयनत चचल ह और सदा सासारक वषय क ओर दौङता ह वषयसख और भोगपरवत क कारण मन को चन कहा ह यह दन-रात सोत-जागत अपनी अननत इचछाओ क पतर क लय भटकता ह रहता ह और मन क वशीभत होन क कारण ह जीव अशात और दखी होता ह इसी कारण उसका पतन होकर जनम-मरण का बधन बना ह जीव का मन ह उसक दख भोग और जनम-मरण का कारण ह अतः मन को वश म करना ह सभी दख और

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जनम-मरण क बधन स मकत होन का उपाय ह जीव तथा उसक हरदय क भीतर मन दोन एक साथ ह मतवाला और वषयगामी मन कालनरजन क अग सपशर करन स जीव बदधहन हो गय इसी स अानी जीव कमर अकमर क करत रहन स तथा उनका फ़ल भोगत रहन क कारण ह जनम-जनमातर तक उनका उदधार नह हो पाता यह मन-काल जीव को सताता ह इिनदरय को पररत कर वभनन पापकम म लगाता ह यह सवय पाप पणय क कम क काल कचाल चलता ह फ़र जीव को दखरपी दणड दता ह उधर जब तीन बालक बरहमा वषण महश सयान समझदार हय तो माता अषटागी न उनह समदर मथन क लय भजा लकन व बालक खलन म मसत थ अतः समदर मथन नह गय कबीर साहब बोल - धमरदास उसी समय एक तमाशा हआ नरजनराव न योग धारण कया उसन पवन यानी सास खीचकर परक पराणायाम स आरमभ करपवन ठहरा कर कमभक पराणायाम बहत दर तक कया फ़र जब नरजन कमभक तयाग कर रचनकरया स पवनरहत हआ तब उसक सास क साथ वद बाहर नकल वदउतप क इस रहसय को कोई बरला वदवान ह जानगा वद न नरजन क सतत क और कहा - ह नगरणनाथ मझ कया आा ह नरजन बोला - तम जाकर समदर म नवास करो तथा िजसका तमस भट हो उसक पास चल जाना वद को आा दत हय कालनरजन क आवाज तो सनायी द पर वद न उसका सथलरप नह दखा उसन कवल अपना जयोतसवरप ह दखाया उसक तज स परभावत होकर आानसार वद चल गय फ़र अत म उस तज स वष क उतप हयी इधर चलत हय वद वहा जा पहच जहा नरजन न समदर क रचना क थी व सध क मधय म पहच गय फ़र नरजन न समदरमथन क यिकत का वचार कया

तरदव दवारा परथम समदरमथन

तब नरजन न गपत धयान स अषटागी को याद करत हय समझाया और कहा - बताओ समदर मथन म कसलय दर हो रह ह बरहमा वषण महश हमार तीन पतर को समदर मथन क लय शीघर ह भजो मर वचन दढ़ता स मानो और अषटागी इसक बाद तम सवय समदर म समा जाना तब अषटागी न समदरमथन हत वचार कया और तीन बालक को अचछ तरह समझा-बझाकर समदर मथन क लय भजा उनह भजत समय अषटागी न कहा - समदर स तमह अनमोल वसतय परापत हगी इसलय तम जलद ह जाओ यह सनकर बरहमा वषण और महश तीन बालक चल पङ और जाकर समदर क पास खङ हो गय तथा उस मथन का उपाय सोचन लग

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फ़र तीन न समदरमथन कया तीन को समदर स तीन वसतय परापत हयी बरहमा को वद वषण को तज और शकर को हलाहल वष क परािपत हयी य तीन वसतय लकर व अपनी माता अषटागी क पास आय और खशी-खशी तीन वसतय दखायी अषटागी न उनह अपनी-अपनी वसत अपन पास रखन क आा द अषटागी न कहा - अब फ़र स जाकर समदर मथो और िजसको जो परापत हो वह ल लो उसी समय आदभवानी न एक चरतर कया उसन तीन कनयाय उतपनन क और अपनी उन अश को समदर म परवश करा दया जब इन तीन कनयाओ को समदर म परवश करान क लय भजा इस रहसय को अषटागी क तीन पतर नह जान सक अतः उनहन जब समदरमथन कया तो समदर स तीन कनयाय नकल उनहन खशी स तीन कनयाओ को ल लया और अषटागी क पास आय अषटागी न कहा - पतरो तमहार सब कायर पर हो गय अषटागी न उन तीन कनयाओ को तीन पतर को बाट दया बरहमा को सावतरी वषण को लमी और शकर को पावरती द तीन भाई कामनी सतरी को पाकर बहत आनिनदत हय और उन कामनय क साथ काम क वशीभत होकर उनहन दव और दतय दोन परकार क सतान उतपनन क कबीर साहब बोल - धमरदास तम यह बात समझो क जो माता थी वह अब सतरी हो गयी अषटागी न फ़र स अपन पतर को समदर मथन क आा द इस बार समदर म स चौदह रतन नकल उनहन रतन क खान नकाल और रतन लकर माता क पास पहच तब अषटागी न कहा - पतरो अब तम सिषटरचना करो अणडज खान क उतप सवय अषटागी न क पणडज खान को बरहमा न बनाया ऊषमज खान वषण तथा सथावर को शकर न बनाया उनहन चौरासी लाख योनय क रचना क और उनक अनसार आधाजल आधाथल बनाया सथावर खान को एक-ततव का समझो और ऊषमज खान को दो-ततव तीन-ततव स अणडज और चार-ततव स पणडज का नमारण हआ पाचततव स मनषय को बनाया और तीन गण स सजाया सवारा इसक बाद बरहमा वद पढ़न लग वद पढ़त हय बरहमा को नराकार क परत अनराग हआ कयक वद कहता ह परष एक ह और वह नराकार ह और उसका कोई रप नह ह वह शनय म जयोत दखाता ह परनत दखत समय उसक दह दिषट म नह आती उस नराकार का सर सवगर ह और पर पाताल ह इस वदमत स बरहमा मतवाला हो गया

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बरहमा न वषण स कहा - वद न मझ आदपरष को दखा दया ह फ़र ऐसा ह उनहन शकर स भी कहा - वद पढ़न स पता चलता ह क परष एक ह और सबका सवामी कवल एक नराकार परष ह यह तो वद न बताया परनत उसन ऐसा भी कहा क मन उसका भद नह पाया बरहमा अषटागी क पास आय और बोल - माता मझ वद न दखाया और बताया क सिषट रचना करन वाला हम सबका सवामी कोई और ह ह अतः हम बताओ क तमहारा पत कौन ह और हमारा पता कहा ह अषटागी बोल - बरहमा सनो मर अतरकत तमहारा अनय कोई पता नह ह मझस ह सब उतप हयी ह और मन ह सबको सभारा ह बरहमा न कहा - माता वद नणरय करक कहता ह क परष कवल एक ह और वह गपत ह अषटागी बोल - पतर मझस नयारा सिषटरचयता और कोई नह ह मन ह सवगरलोक परथवीलोक और पाताललोक बनाय ह और सात समदर का नमारण भी मन ह कया ह बरहमा न कहा - मन तमहार बात मानी क तमन ह सब कछ कया ह परनत पहल स ह परष को गपत कस रख लया जबक वद कहता ह क परष एक ह और वह अलखनरजन ह माता तम कतार बनो आप बनो परनत पहल वदरचना करत समय यह वचार कय नह कया और उसम परष को नरजन कय बताया अतः अब तम मर स छल न करो और सच-सच बात बताओ कबीर साहब बोल - जब बरहमा न िजद पकङ ल तो अषटागी न वचार कया क बरहमा को कस परकार समझाऊ जो यह मर महमा को बङाई को नह मानता यह बात नरजन स कह तो यह कस परकार ठक स समझगा नरजन न मझस पहल ह कहा था क मरा दशरन कोई नह पायगा अब बरहमा को अलखनरजन क बार म कछ नह बताया तो कस परकार उस दखाया जाय ऐसा वचार कर अषटागी न कहा - अलखनरजन अपना दशरन नह दखाता बरहमा बोल - माता तम मझ सह-सह सथान बताओ आग-पीछ क उलट-सीधी बात करक मझ न बहलाओ म य बात नह मानता और न ह मझ अचछ लगती ह पहल तमन मझ बहकाया क म ह सिषटकतार ह और मझस अलग कछ भी नह ह और अब तम कहती हो क lsquoअलखनरजनrsquo तो ह पर वह अपना दशरन नह दखाता कया उसका दशरन पतर भी नह पायगा ऐसी पदा न होन वाल बात कय कहती हो इसलय मझ तमहार कहन पर भरोसा नह ह अतः इसी समय उस कतार का दशरन करा दिजय और मर सशय को दर किजय इसम जरा भी दर न करो अषटागी बोल - बरहमा म तमस सतय कहती ह क उस अलखनरजन क सात सवगर ह माथा ह और सात पाताल चरण ह यद तमह उसक दशरन क इचछा हो तो हाथ म फ़ल ल जाकर उस अपरत करत हय परणाम करो यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय

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अषटागी न मन म वचार कया - बरहमा मरा कहा मानता नह ह य कहता ह वद न मझ उपदश कया ह क एक परष नरजन ह परनत कोई उसक दशरन नह पाता ह अतः वह बोल - अर बालक सन अलखनरजन तमहारा पता ह पर तम उसका दशरन नह पा सकत यह म तमस सतयवचन कहती ह यह सनकर बरहमा न वयाकल होकर मा क चरण म सर रख दया और बोल - म पता का शीश सपशर व दशरन करक तमहार पास आता ह कहकर बरहमा lsquoउर दशाrsquo चल गय माता स आा मागकर वषण भी अपन पता क दशरन हत पाताल चल गय कवल शकर का मन इधर-उधर नह भटका वह माता क सवा करत हय कछ नह बोल

बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना

बहत दन बीत गय अषटागी न सोचा - मर पतर बरहमा और वषण न कया कया इसका कछ पता नह लगा व अब तक लौटकर कय नह आय तब सबस पहल वषण लौटकर माता क पास आय और बोल - पाताल म मझ पता क चरण तो नह मल उलट मरा शरर वषजवाला (शषनाग क परभाव स) स शयामल हो गया माता जब म पता नरजन क दशरन नह कर पाया तो म वयाकल हो गया और फ़र लौट आया अषटागी परसनन हो गयी और वषण को दलारत हय बोल - पतर तमन नशचय ह सतय कहा ह उधर पता क दशरन क बहद इचछक बरहमा चलत-चलत उस सथान पर पहच गय जहा न सयर था न चनदरमा कवल शनय था वहा बरहमा न अनक परकार स नरजन क सतत क जहा जयोत का परभाव था वहा भी धयान लगाया और ऐसा करत हय बहत दन बीत गय परनत बरहमा को नरजन क दशरन नह हय शनय म धयान करत हय बरहमा को अब lsquoचारयगrsquo बीत गय अषटागी को चनता हयी क म बरहमा क बना कस परकार सिषटरचना कर और कस परकार उस वापस लाऊ तब अषटागी न यिकत सोचत हय अपन शरर म उबटन लगाकर मल नकाला और उस मल स एक पतरीरपी कनया उतपनन क उस कनया म दवयशिकत का अश मलाया और कनया का नाम गायतरी रखा गायतरी उनह परणाम करती हयी बोल - माता तमन मझ कस कायर हत बनाया ह वह आा किजय

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अषटागी बोल - मर बात सनो बरहमा तमहारा बङा भाई ह वह पता क दशरन हत शनयआकाश क ओर गया ह उस बलाकर लाओ वह चाह अपन पता को खोजत-खोजत सारा जनम गवा द पर उनक दशरन नह कर पायगा अतः तम िजस वध स चाहो कोई उपाय करक उस बलाकर लाओ गायतरी बताय अनसार बरहमा क पास पहची उसन दखा धयान म लन बरहमा अपनी पलक तक नह झपकात थ वह कछ दन तक सोचती रह क कस वध दवारा बरहमा का धयान स धयान हटाकर अपनी ओर आकषरत कया जाय फ़र उसन अषटागी का धयान कया तब अषटागी न धयान म गायतरी को आदश दया क अपन हाथ स बरहमा को सपशर करो तब वह धयान स जागग गायतरी न ऐसा ह कया और बरहमा क चरणकमल का सपशर कया बरहमा धयान स जाग गया और उसका मन भटक गया वह वयाकल होकर बोला - त कौन पापी अपराधी ह जो मर धयान समाध छङायी म तझ शाप दता ह कयक तन आकर पता क दशरन का मरा धयान खडत कर दया गायतरी बोल - मझस कोई पाप नह हआ ह पहल तम सब बात समझ लो तब मझ शाप दो म सतय कहती ह तमहार माता न मझ तमहार पास भजा ह अतः शीघर चलो तमहार बना सिषट का वसतार कौन कर बरहमा बोल - म माता क पास कस परकार जाऊ अभी मझ पता क दशरन भी नह हय ह गायतरी बोल - तम पता क दशरन कभी नह पाओग अतः शीघर चलो वरना पछताओग बरहमा बोला - यद तम झठ गवाह दो क मन पता का दशरन पा लया ह और ऐसा सवय तमन भी अपनी आख स दखा ह क पता नरजन परकट हय और बरहमा न आदर स उनका शीश सपशर कया यद तम माता स इस परकार कहो तो म तमहार साथ चल गायतरी बोल - ह वद सनन और धारण करन वाल बरहमा सनो म झठ वचन नह बोलगी हा यद मर भाई तम मरा सवाथर परा करो तो म इस परकार क झठ बात कह दगी बरहमा बोल - म तमहार सवाथर वाल बात समझा नह अतः मझ सपषट कहो गायतरी बोल - यद तम मझ रतदान दो यानी मर साथ कामकरङा करो तो म ऐसा कह सकती ह यह मरा सवाथर ह फ़र भी तमहार लय परमाथर जानकर कहती ह बरहमा वचार करन लग क इस समय कया उचत होगा यद म इसक बात नह मानता तो य गवाह नह दगी और माता मझ मझ धककारगी क न तो मन पता क दशरन पाय और न कोई कायर सदध हआ अतः म इसक परसताव म पाप को वचारता ह तो मरा काम नह बनता इसलय रतदान दन क इसक इचछा पर करनी ह

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चाहय ऐसा ह नणरय करत हय बरहमा और गायतरी न मलकर वषयभोग कया उन दोन पर रतसख का रग परभाव दखान लगा बरहमा क मन म पता को दखन क जो इचछा थी उस वह भल गया और दोन क हरदय म कामवषय क उमग बढ़ गयी फ़र दोन न मलकर छलपणर बदध बनायी तब बरहमा न कहा - चलो माता क पास चलत ह गायतरी बोल - एक उपाय और करो जो मन सोचा ह वह यिकत ह क एक दसरा गवाह भी तयार कर लत ह बरहमा बोल - यह तो बहत अचछ बात ह तम वह करो िजस पर माता वशवास कर तब गायतरी न साी उतपनन करन हत अपन शरर स मल नकाला और उसम अपना अश मलाकर एक कनया बनायी बरहमा न उस कनया का नाम सावतरी रखवाया तब गायतरी न सावतरी को समझाया क तम चलकर माता स कहना क बरहमा न पता का दशरन पाया ह सावतरी बोल - जो तम कह रह हो उस म नह जानती और झठ गवाह दन म तो बहत हान ह बरहमा और गायतरी को बहत चता हयी उनहन सावतरी को अनक परकार स समझाया पर वह तयार नह हयी तब सावतरी अपन मन क बात बोल - यद बरहमा मझस रतपरसग कर तो म ऐसा कर सकती ह तब गायतरी न बरहमा को समझाया क सावतरी को रतदान दकर अपना काम बनाओ बरहमा न सावतरी को रतदान दया और बहत भार पाप अपन सर ल लया सावतरी का दसरा नाम बदल कर पहपावती कहकर अपनी बात सनात ह य तीन मलकर वहा गय जहा कनया आदकमार अषटागी थी तीन क परणाम करन पर अषटागी न पछा - बरहमा कया तमन अपन पता क दशरन पाय और यह दसर सतरी कहा स लाय बरहमा बोल - माता य दोन साी ह क मन पता क दशरन पाय इन दोन क सामन मन पता का शीश सपशर कया ह अषटागी बोल - गायतरी वचार करक कहो क तमन अपनी आख स कया दखा ह सतय बताओ बरहमा न अपन पता का दशरन पाया और इस दशरन का उस पर कया परभाव पङा गायतरी बोल - बरहमा न पता क शीश का दशरन पाया ह ऐसा मन अपनी आख स दखा ह क बरहमा अपन पता नरजन स मल माता यह सतय ह बरहमा न अपन पता पर फ़ल चढ़ाय और उनह फ़ल स यह पहपावती उस

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सथान स परकट हयी इसन भी पता का दशरन पाया ह आप इसस पछ क दखय इसम री भर भी झठ नह ह अषटागी बोल - पहपावती मझस सतय कहो और बताओ कया बरहमा न पता क सर पर पषप चढ़ाया पहपावती न कहा - माता म सतय कहती ह चतमरख बरहमा न पता क शीश क दशरन कय और शात एव िसथर मन स फ़ल चढ़ाय इस झठ गवाह को सनकर अषटागी परशान हो गयी और वचार करन लगी

अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना

अषटागी को बहद आशचयर हआ क बरहमा न नरजन क दशरन पा लय ह जबक अलखनरजन न परता कर रखी ह क उस कोई आख स दख नह पायगा फ़र य तीन लबार झठ-कपट कस कहत ह क उनहन नरजन को दखा ह उसी ण अषटागी न नरजन का धयान कया और बोल - मझ सतय बताओ नरजन न कहा - बरहमा न मरा दशरन नह पाया उसन तमहार पास आकर झठ गवाह दलवायी उन तीन न झठ बनाकर सब कहा ह वह सब मत मानो वह झठ ह अषटागी को बहत करोध आया उसन बरहमा को शाप दया - तमन मझस आकर झठ बोला अतः कोई तमहार पजा नह करगा एक तो तम झठ बोल और दसर तमन न करन योगय कमर (दषकमर) करक बहत बङा पाप अपन सर ल लया आग जो भी तमहार शाखा सतत होगी वह बहत झठ और पाप करगी तमहार सतत (बरहमा क वश अथवा बरहमा क नाम स पकार जान वाल बराहमण) परकट म तो बहत नयम धमर वरत उपवास पजा शच आद करग परनत उनक मन म भीतर पाप मल का वसतार रहगा तमहार व सतान वषणभकत स अहकार करगी इसलय नकर को परापत हगी तमहार वश वाल पराण क धमरकथाओ को लोग को समझायग परनत सवय उसका आचरण न करक दख पायग उनस जो और लोग ान क बात सनग उसक अनसार व भिकत कर सतय को बतायग बराहमण परमातमा का ान भिकत को छोङकर दसर दवताओ को ईशवर का अश बताकर उनक भिकत-पजा करायग और क नदा करक वकराल काल क मह म जायग अनक दवी-दवताओ क बहत परकार स पजा करक यजमान स दणा लग और दणा क कारण पशबल म पशओ का गला कटवायग दणा क लालच म यजमान को बबकफ़ बनायग व िजसको शषय बनायग उस भी परमाथर कलयाण का रासता नह दखायग परमाथर क तो व पास भी नह जायग परनत सवाथर क लय व सबको अपनी बात समझायग सवाथ होकर सबको अपनी सवाथरसदध का ान सनायग और ससार म अपनी सवा-पजा मजबत करग अपन को ऊचा और और को छोटा कहग इस परकार

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बरहमा तर वशज तर ह जस झठ और कपट हग शाप सनकर बरहमा मछरत होकर गर पङ फ़र अषटागी न गायतरी को शाप दया - गायतरी बरहमा क साथ कामभावना स हो जान स मनषयजनम म तर पाच पत हग तर गायरपी शरर म बल पत हग और व सात-पाच स भी अधक हग पशयोन म त गाय बनकर जनम लगी और न खान योगय पदाथर खायगी तमन अपन सवाथर क लय मझस झठ बोला और झठ वचन कह कया सोचकर तमन झठ गवाह द गायतरी न गलती मानकर शाप सवीकार कर लया फर अषटागी न सावतरी को दखा और बोल - तमन नाम तो सनदर पहपावती रखवा लया परनत झठ बोलकर तमन अपन जनम का नाश कर लया सन तमहार वशवास पर तमस कोई आशा रखकर कोई तमह नह पजगा दगध क सथान पर तमहारा वास होगा कामवषय क आशा लकर अब नकर क यातना भोगो जानबझ कर जो तमह सीचकर लगायगा उसक वश क हान होगी अब तम जाओ और व बनकर जनम तमहारा नाम कवङा कतक होगा कबीर बोल - अषटागी क शाप क कारण बरहमा गायतरी और सावतरी तीन बहत दखी हो गय अपन पापकमर स व बदधहन और दबरल हो गय कामवषय म परवत करान वाल कामनी सतरी कालरप-काम (वासना क इचछा) क अततीवर कला ह इसन सबको अपन शरर क सनदर चमर स डसा ह शकर बरहमा सनकाद और नारद जस कोई भी इसस बच नह पाय कोई बरला सनत-साधक बच पाता ह जो सदगर क सतयशबद को भल परकार अपनाता ह सदगर क शबदपरताप स य कालकला मनषय को नह वयापती अथारत कोई हान नह करती जो कलयाण क इचछा रखन वाला भकत मन वचन कमर स सतगर क शरीचरण क शरण गरहण करता ह पाप उसक पास नह आता कबीर साहब आग बोल - बरहमा वषण महश तीन को शाप दन क बाद अषटागी मन म पछतान लगी उसन सोचा शाप दत समय मझ बलकल दया नह आयी अब न जान नरजन मर साथ कसा वयवहार करगा उसी समय आकाशवाणी हयी - भवानी तमन यह कया कया मन तो तमह सिषटरचना क लय भजा था परनत तमन शाप दकर यह कसा चरतर कया ह भवानी ऊचा और बलवान ह नबरल को सताता ह और यह निशचत ह क वह इसक बदल दख पाता ह इसलय जब दवापर यग आयगा तब तमहार भी पाच पत हग भवानी न अपन शाप क बदल नरजन का शाप सना तो मन म सोच वचार कया पर मह स कछ न बोल वह सोचन लगी - मन बदल म शाप पाया नरजन म तो तर वश म ह जसा चाहो वयवहार करो फ़र अषटागी न वषण को दलारत हय कहा - पतर तम मर बात सनो सच-सच बताओ जब तम पता क चरण सपशर करन गय तब कया हआ पहल तो तमहारा शरर गोरा था तम शयाम रग कस हो गय

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वषण न कहा - पता क दशरन हत जब म पाताललोक पहचा तो शषनाग क पास पहच गया वहा उसक वष क तज स म ससत (अचत) हो गया मर शरर म उसक वष का तज समा गया िजसस वह शयाम हो गया तब एक आवाज हयी - वषण तम माता क पास लौट जाओ यह मरा सतयवचन ह क जस ह सतयग तरतायग बीत जायग तब दवापर म तमहारा कषणअवतार होगा उस समय तम शषनाग स अपना बदला लोग तब तम यमना नद पर जाकर नाग का मानमदरन करोग यह मरा नयम ह क जो भी ऊचा नीच वाल को सताता ह उसका बदला वह मझस पाता ह जो जीव दसर को दख दता ह उस म दख दता ह ह माता उस आवाज को सनकर म तमहार पास आ गया यह सतय ह क मझ पता क शरीचरण नह मल भवानी यह सनकर परसनन हो गयी और बोल - पतर सनो म तमह तमहार पता स मलाती ह और तमहार मन का भरम मटाती ह पहल तम बाहर क सथलदिषट (शरर क आख) छोङकर भीतर क ानदिषट (अनतर क आख तीसर आख) स दखो और अपन हरदय म मरा वचन परखो सथलदह क भीतर सममन क सवरप को ह कतार समझो मन क अलावा दसरा और कसी को कतार न मानो यह मन बहत ह चचल और गतशील ह ण भर म सवगर पाताल क दौङ लगाता ह और सवछनद होकर सब ओर वचरता ह मन एक ण म अननतकला दखाता ह और इस मन को कोई नह दख पाता मन को ह नराकार कहो मन क ह सहार दन-रात रहो ह वषण बाहर दनया स धयान हटाकर अतमरखी हो जाओ अपनी सरत और दिषट को पलट कर भकट मधय (भह क बीच आाचकर) पर या हरदय क शनय म जयोत को दखो जहा जयोत झलमल झालर सी परकाशत होती ह वषण न अपनी सवास को घमाकर भीतर आकाश क ओर दौङाया और (अतर) आकाशमागर म धयान लगाया हरदयगफ़ा म परवश कर धयान लगाया धयान परकया म वषण न पहल सवास का सयम पराणायाम स कया कमभक म जब उनहन सवास को रोका तो पराण ऊपर उठकर धयान क कनदर शनय म आया वहा वषण को lsquoअनहद-नादrsquo क गजरना सनाई द यह अनहद बाजा सनत हय वषण परसनन हो गय तब मन न उनह सफ़द लाल काला पीला आद रगीन परकाश दखाया धमरदास इसक बाद वषण को मन न अपन आपको दखाया और lsquoजयोतपरकाशrsquo कया िजस दखकर वह परसनन हो गय और बोल - ह माता आपक कपा स आज मन ईशवर को दखा धमरदास अचानक चककर बोल - सदगर यह सनकर मर भीतर एक भरम उतपनन हआ ह अषटागीकनया न जो lsquoमन का धयानrsquo बताया इसस तो समसत जीव भरमा गय ह यानी भरम म पङ गय ह कबीर बोल - धमरदास यह कालनरजन का सवभाव ह ह क इसक चककर म पङन स वषण सतयपरष का भद नह जान पाय (नरजन न अषटागी को पहल ह सचत कर आदश द दया था क सतयपरष का कोई भद जानन न पाय ऐसी माया फ़लाना) अब उस कामनी अषटागी क यह चाल दखो क उसन अमतसवरप सतयपरष को छपाकर वषरप कालनरजन को दखाया िजस lsquoजयोतrsquo का धयान अषटागी न बताया उस जयोत स कालनरजन

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को दसरा न समझो धमरदास अब तम यह वलण गढ़ सतय सनो जयोत का जसा परकटरप होता ह वसा ह गपतरप भी ह (दय मोमबी आद क जयोत लौ) जो हरदय क भीतर ह वह ह बाहर दखन म भी आता ह जब मनषय दपक जलाता ह तो उस जयोत क भाव-सवभाव को दखो और नणरय करो जयोत को दखकर पतगा बहत खश होता ह और परमवश अपना भला जानकर उसक पास आता ह लकन जयोत को सपशर करत ह पतगा भसम हो जाता ह इस परकार अानता म मतवाला हआ वह पतगा उसम जल मरता ह जयोतसवरप कालनरजन भी ऐसा ह ह जो भी जीवातमा उसक चककर म आ जाता ह कररकाल उस छोङता नह इस काल न करोङ वषण अवतार को खाया और अनक बरहमा शकर को खाया तथा अपन इशार पर नचाया काल दवारा दय जान वाल जीव क कौन-कौन स दख को कह वह लाख जीव नतय ह खाता ह ऐसा वह भयकर काल नदरयी ह धमरदास बोल - मर मन म सशय ह अषटागी को सतयपरष न उतपनन कया था और िजस परकार उतपनन कया वह सब कथा मन जानी कालनरजन न उस भी खा लया फ़र वह सतयपरष क परताप स बाहर आयी फ़र उस अषटागी न ऐसा धोखा कय कया क कालनरजन को तो परकट कया और सतयपरष का भद गपत रखा यहा तक क सतयपरष का भद उसन बरहमा वषण महश को भी नह बताया और उनस भी कालनरजन का धयान कराया अषटागी न कसा चरतर कया क सतयपरष को छोङकर कालनरजन क साथी हो गयी अथारत िजन सतयपरष का वह अश थी उसका धयान कय नह कराया कबीर साहब बोल - धमरदास नार का सवभाव तमह बताता ह िजसक घर म पतरी होती ह वह अनक जतन करक उस पालता-पोसता ह पहनन को वसतर खान को भोजन सोन को शयया रहन को घर आद सब सख दता ह और घर-बाहर सब जगह उस पर वशवास करता ह उसक माता-पता उसक हत म य आद करा क ववाह करत हय वधपवरक उस वदा करत ह माता-पता क घर स वदा होकर वह अपन पत क घर आ जाती ह तो उसक साथ सब गण म होकर परम म इतनी मगन हो जाती ह क अपन माता-पता सबको भला दती ह धमरदास नार का यह सवभाव ह इसलय नार सवभाववश अषटागी भी पराय सवभाव वाल ह हो गयी वह कालनरजन क साथ होकर उसी क होकर रह गयी और उसी क रग म रग गयी इसीलय उसन सतयपरष का भद परकट नह कया और वषण को कालनरजन का ह रप दखाया

काल-नरजन का धोखा

धमरदास बोल - यह रहसय तो मन जान लया अब आग का रहसय बताओ आग कया हआ कबीर साहब बोल - अषटागी न वषण को पयार कया और कहा बरहमा न तो वयभचार और झठ स अपनी मानमयारदा खो द वषण अब सब दवताओ म तमह ईशवर होग सब दवता तमह को शरषठ मानग और तमहार पजा करग िजसक इचछा तम मन म करोग वह कायर म परा करगी

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फ़र अषटागी शकर क पास गयी और बोल - शव तम मझस अपन मन क बात कहो तम जो चाहत हो वह मझस मागो अपन दोन पतर को तो मन उनक कमारनसार द दया ह शकर न हाथ जोङकर कहा - माता जसा तमन कहा वह मझ दिजय मरा यह शरर कभी नषट न हो ऐसा वर दिजय अषटागी न कहा - ऐसा नह हो सकता कयक lsquoआदपरषrsquo क अलावा कोई दसरा अमर नह हआ तम परमपवरक पराण पवन का योगसयम करक योगतप करो तो चार-यग तक तमहार दह बनी रहगी तब जहा तक परथवी आकाश होगा तमहार दह कभी नषट नह होगी वषण और महश ऐसा वर पाकर बहत परसनन हय पर बरहमा बहत उदास हय तब बरहमा वषण क पास पहच और बोल - भाई माता क वरदान स तम दवताओ म परमख और शरषठ हो माता तम पर दयाल हयी पर म उदास ह अब म माता को कया दोष द यह सब मर ह करनी का फ़ल ह तम कोई ऐसा उपाय करो िजसस मरा वश भी चल और माता का शाप भी भग न हो वषण बोल - बरहमा तम मन का भय और दख तयाग दो क माता न मझ शरषठ पद दया ह म सदा तमहार साथ तमहार सवा करगा तम बङ और म छोटा ह अतः तमहारा मान-सममान बराबर करगा जो कोई मरा भकत होगा वह तमहार भी वश क सवा करगा भाई म ससार म ऐसा मत-वशवास बना दगा क जो कोई पणयफ़ल क आशा करता हो और उसक लय वह जो भी य धमर पजा वरत आद जो भी कायर करता हो वह बना बराहमण क नह हग जो बराहमण क सवा करगा उस पर महापणय का परभाव होगा वह जीव मझ बहत पयारा होगा और म उस अपन समान बकठ म रखगा यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय वषण न उनक मन क चता मटा द बरहमा न कहा - मर भी यह चाह थी क मरा वश सखी हो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क फ़लाय जाल का वसतार दखो उसन खानी वाणी क मोह स मोहत कर सार ससार को ठग लया और सब इसक चककर म पङकर अपन आप ह इसक बधन म बध गय तथा परमातमा को सवय को अपन कलयाण को भल ह गय यह कालनरजन वभनन सख भोग आद तथा सवगर आद का लालच दकर सब जीव को भरमाता ह और उनस भात-भात क कमर करवाता ह फ़र उनह जनम-मरण क झल म झलाता हआ बहभात कषट दता ह ------------------- खानी बधन - सतरी-पत पतर-पतरी परवार धन-सप आद को ह सब कछ मानना खानी बधन ह वाणी बधन - भत-परत सवगर-नकर मान-अपमान आद कलपनाय करत हय वभनन चतन करना वाणी बधन ह

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कयक मन इन दोन जगह ह जीव को अटकाय रखता ह मोट माया सब तज झीनी तजी न जाय मान बङाई ईषयार फ़र लख चौरासी लाय सनतमत म खानी बधन को lsquoमोटमायाrsquo और वाणी बधन को lsquoझीनीमायाrsquo कहत ह बना ान क इन बधन स छट पाना जीव क लय बहद कठन ह खानी बधन क अतगरत मोटमाया को तयाग करत तो बहत लोग दख गय ह परनत झीनीमाया का तयाग बरल ह कर पात ह कामना वासनारपी झीनीमाया का बधन बहत ह जटल ह इसन सभी को भरम म फ़सा रखा ह इसक जाल म फ़सा कभी िसथर नह हो पाता अतः यह कालनरजन सब जीव को अपन जाल म फ़साकर बहत सताता ह राजा बल हरशचनदर वण वरोचन कणर यधषठर आद और भी परथवी क पराणय का हतचतन करन वाल कतन तयागी और दानी राजा हय इनको कालनरजन न कस दश म ल जाकर रखा यानी य सब भी काल क गाल म ह समा गय कालनरजन न इन सभी राजाओ क जो ददरशा क वह सारा ससार ह जानता ह क य सब बवश होकर काल क अधीन थ ससार जानता ह क कालनरजन स अलग न हो पान क कारण उनक हरदय क शदध नह हयी कालनरजन बहत परबल ह उसन सबक बदध हर ल ह य कालनरजन अभमानी lsquoमनrsquo हआ जीव क दह क भीतर ह रहता ह उसक परभाव म आकर जीव lsquoमन क तरगrsquo म वषयवासना म भला रहता ह िजसस वह अपन कलयाण क साधन नह कर पाता तब य अानी भरमत जीव अपन घर अमरलोक क तरफ़ पलटकर भी नह दखता और सतय स सदा अनजान ह रहता ह ---------------------- धमरदास बोल - मन यम यानी कालनरजन का धोखा तो पहचान लया ह अब बताओ क गायतरी क शाप का आग कया हआ कबीर साहब बोल - म तमहार सामन अगम (जहा पहचना असभव हो) ान कहता ह गायतरी न अषटागी दवारा दया शाप सवीकार तो कर लया पर उसन भी पलट कर अषटागी को शाप दया क माता मनषय जनम म जब म पाच परष क पतनी बन तो उन परष क माता तम बनो उस समय तम बना परष क ह पतर उतपनन करोगी और इस बात को ससार जानगा आग दवापर यग आन पर दोन न गायतरी न दरौपद और अषटागी न कनती क रप म दह धारण क और एक-दसर क शाप का फ़ल भगता जब यह शाप और उसका झगङा समापत हो गया तब फ़र स जगत क रचना हयी बरहमा वषण महश और अषटागी इन चारो न अणडज पणडज ऊषमज और सथावर इन चार खानय को उतपनन कया फ़र चार-खानय क अतगरत भनन-भनन सवभाव क चौरासी लाख योनया उतपनन क पहल अषटागी न अणडज यानी अड स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क बरहमा न पणडज यानी शरर क अनदर गभर स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क वषण न ऊषमज यानी मल पसीना पानी आद स

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उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क शकर न सथावर यानी व जङ पहाङ घास बल आद जीवखान क रचना क इस तरह स चार खानय को चार न रच दया और उसम जीव को बधन म डाल दया फ़र परथवी पर खती आद होन लगी तथा समयानसार लोग lsquoकारणrsquo lsquoकरणrsquo और lsquoकतारrsquo को समझन लग इस परकार चार खान क चौरासी का वसतार हो गया इन चार खानय को बोलन क लय lsquoचार परकार क वाणीrsquo द गयी बरहमा वषण महश और अषटागी दवारा सिषटरचना होन क कारण जीव उनह को सब कछ समझन लग और सतयपरष क तरफ़ स भल रह

चार खान चौरासी लाख योनय स आय मनषय क लण

धमरदास बोल - िजन चार खान क उतप हयी उनका वणरन मझ बताय चौरासीलाख योनय क जो वकराल धाराय ह उनम कस योन का कतना वसतार हआ वह भी बताय कबीर साहब बोल - म तमह योनभाव का वणरन सनाता ह चौरासी लाख योनय म नौ लाख जल क जीव और चौदह लाख पी होत ह उङन रगन वाल कम-कट आद साईस लाख होत ह व बल फ़ल आद सथावर तीस लाख होत ह और चारलाख परकार क मनषय हय इन सब योनय म मनषयदह सबस शरषठ ह कयक इसी स मो को जाना समझा और परापत कया जा सकता ह मनषययोन क अतरकत और कसी योन म मोपद या परमातमा का ान नह होता कयक और योन क जीव कमरबधन म भटकत रहत ह धमरदास बोल - जब सभी योनय क जीव एक समान ह तो फ़र सभी जीव को एक सा ान कय नह ह कबीर साहब बोल - जीव क असमानता क वजह तमह समझा कर कहता ह चारखान क जीव एक समान ह परनत शरररचना म ततववशष का अनतर ह सथावर खान म सफ़र lsquoएक ततवrsquo होता ह ऊषमज म lsquoदो ततवrsquo अणडज खान म lsquoतीन ततवrsquo और पणडज खान म lsquoचारततवrsquo होत ह इनस अलग मनषयशरर म पाच-ततव होत ह अब चार खान का ततवनणरय भी जान अणडज खान म तीन ततव - जल अिगन और वाय ह सथावर खान म एक ततव lsquoजलrsquo वशष ह ऊषमज खान म दो ततव वाय तथा अिगन बराबर समझो पणडज खान म चार ततव अिगन परथवी जल और वाय वशष ह पणडज खान म ह आन वाला मनषय - अिगन वाय परथवी जल आकाश स बना ह धमरदास बोल - मनषययोन म नर-नार ततव म एक समान ह परनत सबको एक समान ान कय नह ह सतोष मा दया शील आद सदगण स कोई मनषय तो शनय होता ह तथा कोई इन गण स परपणर होता ह कोई मनषय पापकमर करन वाला अपराधी होता ह तो कोई वदवान कोई दसर को दख दन वाल सवभाव का होता ह

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तो कोई अतकरोधी कालरप होता ह कोई मनषय कसी जीव को मारकर उसका आहार करता ह तो कोई जीव क परत दयाभाव रखता ह कोई आधयातम क बात सनकर सख पाता ह तो कोई कालनरजन क गण गाता ह मनषय म यह नानागण कस कारण स होत ह कबीर साहब बोल - म तमस मनषययोन क नर-नार क गण अवगण को भल परकार स कहता ह कस कारण स मनषय ानी और अानी भाव वाला होता ह वह पहचान सनो शर साप का गीदङ सयार कौवा गदध सअर बलल तथा इनक अलावा और भी अनक जीव ह जो इनक समान हसक पापयोन अभय मास आद खान वाल दषकम नीच गण वाल समझ जात ह इन योनय म स जो जीव आकर मनषययोन म जनम लता ह तो भी उसक पीछ क योन का सवभाव नह छटता उसक पवरकम का परभाव उसको अभी परापत मानवयोन म भी बना रहता ह अतः वह मनषयदह पाकर भी पवर क स कम म परवत रहता ह ऐस पशयोनय स आय जीव नरदह म होत हय भी परतय पश ह दखायी दत ह िजस योन स जो मनषय आया ह उसका सवभाव भी वसा ह होगा जो दसर पर घात करन वाल करर हसक पापकम तथा करोधी वषल सवभाव क जीव ह उनका भी वसा ह सवभाव बना रहता ह धमरदास मनषययोन म जनम लकर ऐस सवभाव को मटन का एक ह उपाय ह क कसी परकार सौभागय स सदगर मल जाय तो व ान दवारा अान स उतपनन इस परभाव को नषट कर दत ह और फ़र मनषय कागदशा (वषठा मल आद क समान वासनाओ क चाहत) क परभाव को भल जाता ह उसका अान पर तरह समापत हो जाता ह तब पवर पशयोन और अभी क मनषययोन का यह दवद छट जाता ह सदगरदव ान क आधार ह व अपन शरण म आय हय जीव को ानअिगन म तपाकर एव उपाय स घस पीटकर सतयान उपदश अनसार उस वसा ह बना लत ह और नरतर साधना अभयास स उस पर परभावी पवरयोनय क ससकार समापत कर दत ह िजस परकार धोबी वसतर धोता ह और साबन मलन स वसतर साफ़ हो जाता ह तब वसतर म यद थोङा सा ह मल हो तो वह थोङ ह महनत स साफ़ हो जाता ह परनत वसतर बहत अधक गनदा हो तो उसको धोन म अधक महनत क आवशयकता होती ह वसतर क भात ह जीव क सवभाव को जानो कोई-कोई जीव जो अकर होता ह ऐसा जीव सदगर क थोङ स ान को ह वचार कर शीघर गरहण कर लता ह उस ान का सकत ह बहत होता ह अधक ान क आवशयकता नह होती ऐसा शषय ह सचचान का अधकार होता ह धमरदास बोल - यह तो थोङ सी योनय क बात हयी अब चारखान क जीव क बात कह चारखान क जीव जब मनषययोन म आत ह उनक लण कया ह िजस जानकर म सावधान हो जाऊ कबीर साहब बोल - चारखान क चौरासी लाख योनय म भरमाया भटकता जीव जब बङ भागय स मनषयदह धारण करन का अवसर पाता ह तब उसक अचछ-बर लण का भद तमस कहता ह िजसको बहत ह आलस नीद आती ह तथा कामी करोधी और दरदर होता ह वह अणडज खान स आया ह जो बहत चचल ह और चोर करना िजस अचछा लगता ह धन-माया क बहत इचछा रखता ह दसर क चगल नदा िजस अचछ लगती ह इसी सवभाव क कारण वह दसर क घर वन तथा झाङ म आग लगाता ह तथा चचल होन क कारण कभी बहत रोता ह

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कभी नाचता-कदता ह कभी मगल गाता ह भतपरत क सवा उसक मन को बहत अचछ लगती ह कसी को कछ दता हआ दखकर वह मन म चढ़ता ह कसी भी वषय पर सबस वाद-ववाद करता ह ान धयान उसक मन म कछ नह आत वह गर सदगर को नह पहचानता न मानता वदशासतर को भी नह मानता वह अपन मन स ह छोटा बङा बनता रहता ह और समझता ह क मर समान दसरा कोई नह ह उसक वसतर मल तथा आख कचङयकत और मह स लार बहती ह वह अकसर नहाता भी नह ह जआ चौपङ क खल म मन लगाता ह उसका पाव लमबा और कभी-कभी वह कबङा भी होता ह य सब अणडज खान स आय मनषय क लण ह अब ऊषमज क बार म कहता ह यह जगल म जाकर शकार करत हय बहत जीव को मारकर खश होता ह इन जीव को मारकर अनक तरह स पकाकर वह खाता ह वह सदगर क नाम-ान क नदा करता ह गर क बराई और नदा करक वह गर क महतव को मटान का परयास करता ह वह शबदउपदश और गर क नदा करता ह वह बहत बात करता ह तथा बहत अकङता ह और अहकार क कारण बहत ान बनाकर समझाता ह वह सभा म झठ वचन कहता ह टङ पगङ बाधता ह िजसका कनारा छाती तक लटकता ह दया धमर उसक मन म नह होता कोई पणय-धमर करता ह वह उसक हसी उङाता ह माला पहनता ह और चदन का तलक लगाता ह तथा शदध सफ़द वसतर पहनकर बाजार आद म घमता ह वह अनदर स पापी और बाहर स दयावान दखता ह ऐसा अधम-नीच जीव यम क हाथ बक जाता ह उसक दात लमब तथा बदन भयानक होता ह उसक पील नतर होत ह कबीर साहब बोल - अब सथावर खान स आय जीव (मनषय) क लण सनो इसस आया जीव भस क समान शरर धारण करता ह ऐस जीव क बदध णक होती ह अतः उनको पलटन म दर नह लगती वह कमर म फ़ टा सर पर पगङ बाधता ह तथा राजदरबार क सवा करता ह कमर म तलवार कटार बाधता ह इधर-उधर दखता हआ मन स सन (आख मारकर इशारा करना) मारता ह परायी सतरी को सन स बलाता ह मह स रसभर मीठ बात कहता ह िजनम कामवासना का परभाव होता ह वह दसर क घर को कदिषट स ताकता ह तथा जाकर चोर करता ह पकङ जान पर राजा क पास लाया जाता ह सारा ससार भी उसक हसी उङाता ह फ़र भी उसको लाज नह आती एक ण म ह दवी-दवता क पजा करन क सोचता ह दसर ह ण वचार बदल दता ह कभी उसका मन कसी क सवा म लग जाता ह फ़र जलद ह वह उसको भल भी जाता ह एक ण म ह वह (कोई) कताब पढ़कर ानी बन जाता ह एक ण म ह वह सबक घर आना जाना घमना करता ह एक ण म बहादर एक ण म ह कायर भी हो जाता ह एक ण म ह मन म साह (धनी) हो जाता ह और दसर ण म ह चोर करन क सोचता ह एक ण म धमर और दसर ण म अधमर भी करता ह इस परकार ण परतण मन क बदलत भाव क साथ वह सखी दखी होता ह भोजन करत समय माथा खजाता ह तथा फ़र बाह जाघ पर रगङता ह भोजन करता ह फ़र सो जाता ह जो जगाता ह उस मारन दौङता ह और गसस स िजसक आख लाल हो जाती ह और उसका भद कहा तक कह धमरदास अब पणडज खान स आय जीव का लण सनो पणडज खान स आया जीव वरागी होता ह तथा योगसाधना क मदराओ म उनमनी-समाध का मत आद धारण करन वाला होता ह और वह जीव वद आद का वचार कर धमर-कमर करता ह तीथर वरत धयान योग समाध म लगन वाला होता ह उसका मन गरचरण म

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भल परकार लगता ह वह वद पराण का ानी होकर बहत ान करता ह और सभा म बठकर मधर वातारलाप करता ह राज मलन का तथा राज क कायर करन का और सतरीसख को बहत मानता ह कभी भी अपन मन म शका नह लाता और धन-सप क सख को मानता ह बसतर पर सनदर शया बछाता ह उस उम शदध साितवक पौिषटक भोजन बहत अचछा लगता ह और लग सपार पान बीङा आद खाता ह पणयकमर म धन खचर करता ह उसक आख म तज और शरर म परषाथर होता ह सवगर सदा उसक वश म ह वह कह भी दवी-दवता को दखता ह तो माथा झकाता ह उसका धयान समरन म बहत मन लगता ह तथा वह सदा गर क अधीन रहता ह

चौरासी कय बनी

कबीर साहब बोल - मन चारो खान क लण तमस कह अब सनो मनषययोन क अवध समापत होन स पहल कसी कारण स दह छट जाय वह फ़र स ससार म मनषय जनम लता ह अब उसक बार म सनो धमरदास बोल - मर मन म एक सशय ह जब चौरासी लाख योनय म भरमन भटकन क बाद य जीव मनषयदह पाता ह और मनषयदह पाया हआ य जीव फ़र दह (असमय) छटन पर पनः मनषयदह पाता ह तो मतय होन और पनः मनषयदह पान क यह सध कस हयी और उस पनः मनषय जनम लन वाल क गण लण भी कहो कबीर साहब बोल - आय शष रहत जो मनषय मर जाता ह फ़र वह शष बची आय को परा करन हत मनषयशरर धारण करक आता ह जो अानी मखर फ़र भी इस पर वशवास न कर वह दपक बी जलाकर दख और बहत परकार स उस दपक म तल भर परनत वाय का झका (मतय आघात) लगत ह वह दपक बझ जाता ह (भल ह उसम खब तल भरा हो) उस बझ दपक को आग स फ़र जलाय तो वह दपक फ़र स जल जाता ह इसी परकार जीव मनषय फ़र स दह धारण करता ह अब उस मनषय क लण भी सनो उसका भद तमस नह छपाऊगा मनषय स फ़र मनषय का शरर पान वाला वह मनषय शरवीर होता ह भय और डर उसक पास भी नह फ़टकता मोहमाया ममता उस नह वयापत उस दखकर दशमन डर स कापत ह वह सतगर क सतयशबद को वशवासपवरक मानता ह नदा को वह जानता तक नह वह सदा सदगर क शरीचरण म अपना मन लगाता ह और सबस परममयी वाणी बोलता ह अानी होकर ान को पछता समझता ह उस सतयनाम का ान और परचय करना बहद अचछा लगता ह धमरदास ऐस लण स यकत मनषय स ानवातार करन का अवसर कभी खोना नह चाहय और अवसर मलत ह उसस ानचचार करनी चाहय जो जीव सदगर क शबदरपी उपदश को पाता ह और भल परकार गरहण करता ह उसक जनम-जनम का पाप और अानरपी मल छट जाता ह सतयनाम का परमभाव स समरन करन वाला जीव भयानक काल-माया क फ़द स छटकर सतयलोक जाता ह सदगर क शबदउपदश को हरदय म धारण करन वाला जीव अमतमय अनमोल होता ह वह सतयनाम साधना क बल पर अपन असलघर अमरलोक चला जाता ह जहा सदगर क हसजीव सदा आननद करत ह और अमत आहार करत ह

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जबक कालनरजन क जीव कागदशा (वषठा मल क समान घणत वासनाओ क लालची) म भटकत हय जनम-मरण क कालझल म झलत रहत ह सतयनाम क परताप स कालनरजन जीव को सतयलोक जान स नह रोकता कयक महाबल कालनरजन कवल इसी स भयभीत रहता ह उस जीव पर सदगर क वश क छाप दखकर काल बवशी स सर झकाकर रह जाता ह धमरदास बोल - आपन चारखान क जो वचार कह वो मन सन अब म जानना चाहता ह क चौरासी लाख योनय क धारा का वसतार कस कारण स कया गया और इस अवनाशी जीव को अनगनत कषट म डाल दया गया मनषय क कारण ह यह सिषट बनायी गयी ह या क कोई और जीव को भी भोग भगतन क लय बनायी गयी ह कबीर साहब बोल - सभी योनय म शरषठ मनषयदह सख दन वाल ह इस मनषयदह म ह गरान समाता ह िजसको परापत कर मनषय अपना कलयाण कर सकता ह ऐसा मनषयशरर पाकर जीव जहा भी जाता ह सदगर क भिकत क बना दख ह पाता ह मनषयदह को पान क लय जीव को चौरासी क भयानक महाजाल स गजरना ह होता ह फ़र भी यह दह पाकर मनषय अान और पाप म ह लगा रहता ह तो उसका घोरपतन निशचत ह उस फ़र स भयकर कषटदायक (साढ़ बारह लाख साल आय क) चौरासी धारा स गजरना होगा दर-ब-दर भटकना होगा सतयान क बना मनषय तचछ वषयभोग क पीछ भागता हआ अपना जीवन बना परमाथर क ह नषट कर लता ह ऐस जीव का कलयाण कस तरह हो सकता ह उस मो भला कस मलगा अतः इस लय को परापत करन क लय सतगर क तलाश और उनक सवा भिकत अतआवशयक ह धमरदास मनषय क भोगउददशय स चौरासी धारा या चौरासी लाख योनया रची गयी ह सासारक-माया और मन-इिनदरय क वषय क मोह म पङकर मनषय क बदध का नाश हो जाता ह वह मढ़ अानी ह हो जाता ह और वह सदगर क शबदउपदश को नह सनता तो वह मनषय चौरासी को नह छोङ पाता उस अानी जीव को भयकर कालनरजन चौरासी म लाकर डालता ह जहा भोजन नीद डर और मथन क अतरकत कसी पदाथर का ान या अनय ान बलकल नह ह चौरासी लाख योनय क वषयवासना क परबलससकार क वशीभत हआ य जीव बारबार कररकाल क मह म जाता ह और अतयनत दखदायी जनम-मरण को भोगता हआ भी य अपन कलयाण का साधन नह करता धमरदास अानी जीव क इस घोर वप सकट को जानकर उनह सावधान करन क लय (सनत न) पकारा और बहत परकार स समझाया क मनषयशरर पाकर सतयनाम गरहण करो और इस सतयनाम क परताप स अपन नजधाम सतयलोक को परापत करो आदपरष क वदह (बना वाणी स जपा जान वाला) और िसथर आदनाम (जो शरआत स एक ह ह) को जो जाच-समझ कर (सचचगर स मतलब य नाम मह स जपन क बजाय धनरप होकर परकट हो जाय यह सचचगर और सचचीदा क पहचान ह) जो जीव गरहण करता ह उसका निशचत ह कलयाण होता ह गर स परापत ान स आचरण करता हआ वह जीव सार को गरहण करन वाला नीर-ीर ववक (हस क तरह दध और पानी क अनतर को जानन वाला) हो जाता ह और कौव क गत (साधारण और दारहत मनषय) तयाग कर हसगत वाला हो जाता ह इस परकार क ानदिषट क परापत होन स वह वनाशी तथा अवनाशी का वचार करक

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इस नशवर नाशवान जङ दह क भीतर ह अगोचर और अवनाशी परमातमा को दखता ह धमरदास वचार करो वह नःअर (शाशवत नाम) ह सार ह जो अर (जयोत िजस पर सभी योनय क शरर बनत ह धयान क एक ऊची िसथत) स परापत होता ह सब जङततव स पर वह असल सारततव ह

कालनरजन क चालबाजी

धमरदास बोल - साहब चार खानय क रचना कर फ़र कया कया यह मझ सपषट कहो कबीर साहब बोल - धमरदास यह कालनरजन क चालबाजी ह िजस पडत काजी नह समझत और व इस lsquoभक कालनरजनrsquo को भरमवश सवामी (भगवान आद) कहत ह और सतयपरष क नाम ानरपी अमत को तयाग कर माया का वषयरपी वष खात ह इन चारो अषटागी (आदशिकत) बरहमा वषण महश न मलकर यह सिषटरचना क और उनहन जीव क दह को कचचा रग दया इसीलय मनषयदह म आय समय आद क अनसार बदलाव होता रहता ह पाच-ततव परथवी जल वाय अिगन आकाश और तीन गण सत रज तम स दह क रचना हयी ह उसक साथ चौदह-चौदह यम लगाय गय ह इस परकार मनषयदह क रचना कर काल न उस मार खाया तथा फ़र फ़र उतपनन कया इस तरह मनषय सदा जनम-मरण क चककर म पङा ह रहता ह ओकार वद का मल अथारत आधार ह और इस ओकार म ह ससार भला-भला फ़र रहा ह ससार क लोग न ओकार को ह ईशवर परमातमा सब कछ मान लया व इसम उलझ कर सब ान भल गय और तरह-तरह स इसी क वयाखया करन लग यह ओकार ह नरजन ह परनत आदपरष का सतयनाम जो वदह ह उस गपत समझो कालमाया स पर वह lsquoआदनामrsquo गपत ह ह धमरदास फ़र बरहमा न अठासी हजार ऋषय को उतपनन कया िजसस कालनरजन का परभाव बहत बढ़ गया (कयक व उसी का गण तो गात ह) बरहमा स जो जीव उतपनन हय वो बराहमण कहलाय बराहमण न आग इसी शा क लय शासतर का वसतार कर दया (इसस कालनरजन का परभाव और भी बढ़ा कयक उनम उसी क बनावट महमा गायी गयी ह) बरहमा न समत शासतर पराण आद धमरगरनथ का वसतरत वणरन कया और उसम समसत जीव को बर तरह उलझा दया (जबक परमातमा को जानन का सीधा सरल आसान रासता lsquoसहजयोगrsquo ह) जीव को बरहमा न भटका दया और शासतर म तरह-तरह क कमरकाड पजा उपासना क नयम वध बताकर जीव को सतय स वमख कर भयानक कालनरजन क मह म डालकर उसी (अलखनरजन) क महमा को बताकर झठा धयान (और ान) कराया इस तरह lsquoवदमतrsquo स सब भरमत हो गय और सतयपरष क रहसय को न जान सक धमरदास नरकार (नरकार) नरजन न यह कसा झठा तमाशा कया उस चरतर को भी समझो कालनरजन (मन

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दवारा) आसरभाव उतपनन कर परताङत जीव को सताता ह दवता ऋष मन सभी को परताङत करता ह फ़र अवतार (दखाव क लय नजमहमा क लय) धारण कर रक बनता ह (जबक सबस बङा भक सवय ह) और फ़र असर का सहार (क नाटक) करता ह और इस तरह सबस अपनी महमा का वशष गणगान करवाता ह िजसक कारण जीव उस शिकतसपनन और सब कछ जानकर उसी स आशा बाधत ह क यह हमारा महान रक ह वह (वभनन अवतार दवारा) अपनी रककला दखाकर अनत म सब जीव का भण कर लता ह (यहा तक क अपन पतर बरहमा वषण महश को भी नह छोङता) जीवन भर उसक नाम ान जप पजा आद क चककर म पङा जीव अनत समय पछताता ह जब काल उस बरहमी स खाता ह (मतय स कछ पहल अपनी आगामी गत पता लग जाती ह)

तपतशला पर काल पीङत जीव क पकार

धमरदास अब आग सनो बरहमा न अड़सठ तीथर सथापत कर पाप पणय और कमर अकमर का वणरन कया फ़र बरहमा न बारह राश साईस नतर सात वार और पदरह तथ का वधान रचा इस परकार जयोतष शासतर क रचना हयी अब आग क बात सनो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन का जाल फ़लान क लय बनाय गय अड़सठ तीथर य ह 1 काशी 2 परयाग 3 नमषारणय 4 गया 5 करतर 6 परभास 7 पषकर 8 वशवशवर 9 अटटहास 10 महदर 11 उजजन 12 मरकोट 13 शककणर 14 गोकणर 15 रदरकोट 16 सथलशवर 17 हषरत 18 वषभधवज 19 कदार 20 मधयमशवर 21 सपणर 22 कातरकशवर 23 रामशवर 24 कनखल 25 भदरकणर 26 दडक 27 चदणडा 28 कमजागल 29 एकागर 30 छागलय 31 कालजर 32 मडकशवर 33 मथरा 34 मरकशवर 35 हरशचदर 36 सदधाथर तर 37 वामशवर 38 कककटशवर 39 भसमगातर 40 अमरकटक 41 तरसधया 42 वरजा 43 अक शवर 44 दवारका 45 दषकणर 46 करबीर 47 जलशवर 48 शरीशल 49 अयोधया 50 जगननाथपर 51 कारोहण 52 दवका 53 भरव 54 पवरसागर 55 सपतगोदावर 56 नमलशवर 57 कणरकार 58 कलाश 59 गगादवार 60 जललग 61 बङवागन 62 बदरकाशरम 63 शरषठ सथान 64 वधयाचल 65 हमकट 66 गधमादन 67 लगशवर 68 हरदवार और बारह राशया - मष वष मथन ककर सह कनया तला विशचक धन मकर कभ मीनय ह तथा साईस नतर - अिशवनी भरणी कका रोहणी मगशरा आदरार पनवरस पषय आशलषा मघा पवारफ़ालगनी उराफ़ालगनी हसत चतरा सवात वशाखा अनराधा जयषठा मल पवारषाढा उराषाढा शरवण धनरषठा शतभषा पवारभादरपरद उराभादपरद रवतीय ह सात दन - रववार सोमवार मगलवार बधवार बहसपतवार शकरवार शनवार पदरह तथया - परथम या पङवा दज तीज चौथ पचमी षषठ सपतमी अषटमी नवमी दशमी एकादशी दवादशी तरयोदशी चौदस पणरमा

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(शकलप) दसरा एक कषणप भी होता ह िजसक सभी तथया ऐसी ह होती ह कवल उसक पदरहवी तथ को पणरमा क सथान पर अमावसया कहत ह धमरदास फ़र बरहमा न चारो यग क समय को एक नयम स वसतार करत हय बाध दया एक पलक झपकन म िजतना समय लगता ह उस पल कहत ह साठपलक को एकघङ कहत ह एकघङ चौबीस मनट क होती ह साढ़सात घङ का एकपहर होता ह आठपहर का दन-रात चौबीस घट होत ह सात दन का एक सपताह और पदरह दन का एकप होता ह दो-प का एक महना और बारह महन का एक वषर होता ह सतरह लाख अटठाईस हजार वषर का सतयग बारह लाख छयानब हजार का तरता और आठ लाख चौसठ हजार का दवापर तथा चार लाख बीस हजार का कलयग होता ह चार यग को मलाकर एक महायग होता ह (यग का समय गलतबिलक बहत जयादा गलत ह य ववरण कबीर साहब दवारा बताया नह ह बिलक अनय आधार पर ह कलयग सफ़र बाईस हजार वषर का होता ह और तरता लगभग अड़तीस हजार वषर का होता ह) धमरदास बारह महन म कातरक और माघ इन दो महन को पणय वाला कह दया िजसस जीव वभनन धमर-कमर कर और उलझा रह जीव को इस परकार भरम म डालन वाल कालनरजन (और उसक परवार) क चालाक कोई बरला ह समझ पाता ह परतयक तीथर-धाम का बहत महातमय (महमा) बताया िजसस क मोहवश जीव लालच म तीथ क ओर भागन लग बहत सी कामनाओ क पतर क लय लोग तीथ म नहाकर पानी और पतथर स बनी दवी-दवता क मत रय को पजन लग लोग आतमा परमातमा (क ान) को भलकर इस झठपजा क भरम म पङ गय इस तरह काल न सब जीव को बर तरह उलझा दया सदगर क सतयशबद उपदश बना जीव सासारक कलश काम करोध शोक मोह चता आद स नह बच सकता सदगर क नाम बना वह यमरपी काल क मह म ह जायगा और बहत स दख को भोगगा वासतव म जीव कालनरजन का भय मानकर ह पणय कमाता ह थोङ फ़ल स धन-सप आद स उसक भख शानत नह होती जबतक जीव सतयपरष स डोर नह जोङता सदगर स दा लकर भिकत नह करता तबतक चौरासी लाख योनय म बारबार आता-जाता रहगा यह कालनरजन अपनी असीमकला जीव पर लगाता ह और उस भरमाता ह िजसस जीव सतयपरष का भद नह जान पाता लाभ क लय जीव लोभवश शासतर म बताय कम क और दौङता फ़रता ह और उसस फ़ल पान क आशा करता ह इस परकार जीव को झठ आशा बधाकर काल धरकर खा जाता ह कालनरजन क चालाक कोई पहचान नह पाता और कालनरजन शासतर दवारा पाप-पणय क कम स सवगर-नकर क परािपत और वषयभोग क आशा बधाकर जीव को चौरासी लाख योनय म नचाता ह पहल सतयग म इस कालनरजन का यह वयवहार था क वह जीव को लकर आहार करता था वह एक लाख जीव नतय खाता था ऐसा महान और अपार बलशाल कालनरजन कसाई ह वहा रात-दन तपतशला जलती थी कालनरजन जीव को पकङ कर उस पर धरता था उस तपतशला पर उन जीव को जलाता था और बहत दख दता था फ़र वह उनह चौरासी म डाल दता था उसक बाद जीव को तमाम योनय म भरमाता था इस परकार कालनरजन जीव को अनक परकार क बहत स कषट दता था

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तब अनकानक जीव न अनक परकार स दखी होकर पकारा क कालनरजन हम जीव को अपार कषट द रहा ह इस यमकाल का दया हआ कषट हमस सहा नह जाता सदगर हमार सहायता करो आप हमार रा करो सतयपरष न जीव को इस परकार पीङत होत दखा तब उनह दया आयी उन दया क भडार सवामी न मझ (ानी) नाम स बलाया और बहत परकार समझा कर कहा - ानी तम जाकर जीव को चताओ तमहार दशरन स जीव शीतल हो जायग जाकर उनक तपन दर करो सतयपरष क आा स म वहा आया कालनरजन जीव को सता रहा था और दखी जीव उसक सकत पर नाच रह थ जीव दख स छटपटा रह थ म वहा जाकर खङा हो गया जीव न मझ दखकर पकारा - ह साहब हम इस दख स उबार लो तब मन lsquoसतयशबदrsquo पकारा और उपदश कया फ़र सतयपरष क lsquoसारशबदrsquo स जीव को जोङ दया दख स जलत जीव शािनत महसस करन लग तब सब जीव न सतत क - ह परष आप धनय हो आपन हम दख स जलत हओ क तपन बझायी हम इस कालनरजन क जाल स छङा लो परभ दया करो मन जीव को समझाया - यद म अपनी शिकत स तमहारा उदधार करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह कयक सतयपरष क वचन अनसार सदउपदश दवारा ह आतमान स जीव का उदधार करना ह अतः जब तम यहा स जाकर मनषयदह धारण करोग तब तम मर शबदउपदश को वशवास स गरहण करना िजसस तमहारा उदधार होगा उस समय म सतयपरष क नाम समरन क सह वध और सारशबद का उपदश करगा तब तम ववक होकर सतयलोक जाओग और सदा क लय कालनरजन क बधन स मकत हो जाओग जो कोई भी मन वचन कमर स समरन करता ह और जहा अपनी आशा रखता ह वहा उसका वास होता ह अतः ससार म जाकर दह धारण कर िजसक आशा करोग और उस समय यद तम सतयपरष को भल गय तो कालनरजन तमको धर कर खा जायगा जीव बोल - ह परातन परष सनो मनषयदह धारण करक (मायारचत वासनाओ म फ़सकर) यह ान भल ह जाता ह अतः याद नह रहता पहल हमन सतयपरष जानकर कालनरजन का समरन कया क वह सब कछ ह कयक वद पराण सभी यह बतात ह वद-पराण सभी एकमत होकर यह कहत ह क नराकार नरजन स परम करो ततीस करोङ दवता मनषय और मन सबको नरजन न अपन वभनन झठ मत क डोर म बाध रखा ह उसी क झठमत स हमन मकत होन क आशा क परनत वह हमार भल थी अब हम सब सह-सह रप स दखायी द रहा ह और समझ म आ गया ह क वह सब दखदायी यम क कालफ़ास ह ह कबीर साहब बोल - जीव यह सब काल का धोखा ह काल न वभनन मत-मतातर का फ़दा बहत अधक फ़लाया ह कालनरजन न अनक कला मत का परदशरन कया और जीव को उसम फ़सान क लय बहत ठाठ फ़लाया (तरह-तरह क भोगवासना बनायी) और सबको तीथर वरत य एव याद कमर काड क फ़द म फ़ासा िजसस कोई मकत नह हो पाता

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फ़र आप शरर धारण करक परकट होता ह और (अवतार दवारा) अपनी वशषमहमा करवाता ह और नाना परकार क गण कमर आद करक सब जीव को बधन म बाध दता ह कालनरजन और अषटागी न जीव को फ़सान क लय अनक मायाजाल रच वद शासतर पराण समत आद क भरामकजाल स भयकरकाल न मिकत का रासता ह बनद कर दया जीव मनषयदह धारण करक भी अपन कलयाण क लय उसी स आशा करता ह कालनरजन क शासतर आद मतरपी कलाए बहत भयकर ह और जीव उसक वश म पङ ह सतयनाम क बना जीव काल का दड भोगत ह इस तरह जीव को बारबार समझा कर म सतयपरष क पास गया और उनको काल दवारा दय जा रह वभनन दख का वणरन कया दयाल सतयपरष तो दया क भडार और सबक सवामी ह व जीव क मल अभमानरहत और नषकामी ह तब सतयपरष न बहत परकार स समझा कर कहा - काल क भरम स छङान क लय जीव को नाम उपदश स सावधान करो

कालनरजन और कबीर का समझौता

धमरदास न कबीर साहब स कहा - परभो अब मझ वह वतात कहो जब आप पहल बार इस ससार म आय कबीर बोल - धमरदास जो तमन पछा वह यग-यग क कथा ह जो म तमस कहता ह जब सतयपरष न मझ आा क तब मन जीव क भलाई क लय परथवी क ओर पाव बढ़ाया और वकराल कालनरजन क तर म आ गया उस यग म मरा नाम अचत था जात हय मझ अनयायी कालनरजन मला वह मर पास आया और झगङत हय महाकरोध स बोला - योगजीत यहा कस आय कया मझ मारन आय हो ह परष अपन आन का कारण मझ बताओ मन कहा - नरजन म जीव का उदधार करन सतपरष दवारा भजा गया ह अनयायी सन तमन बहत कपट चतराई क भोलभाल जीव को तमन बहत भरम म डाला ह और बारबार सताया सतपरष क महमा को तमन गपत रखा और अपनी महमा का बढ़ाचढ़ा कर बखान कया तम तपतशला पर जीव को जलात हो और उस जला-पका कर खात हय अपना सवाद परा करत हो तमन ऐसा कषट जीव को दया तब सतपरष न मझ आा द क म तर जाल म फ़स जीव को सावधान करक सतलोक ल जाऊ और कषट स जीव को मिकत दलाऊ इसलय म ससार म जा रहा ह िजसस जीव को सतयान दकर सतलोक भज यह बात सनत ह कालनरजन भयकर रप हो गया और मझ भय दखान लगा फ़र वह करोध स बोला - मन सर यग तक सतपरष क सवा तपसया क तब सतपरष न मझ तीनलोक का राजय और उसक मान बङाई द

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फ़र दोबारा मन चौसठ यग तक सवा तपसया क तब सतपरष न सिषट रचन हत मझ अषटागी कनया (आदयाशिकत) को दया और उस समय तमन मझ मारकर मानसरोवर दप स नकाल दया था योगजीत अब म तमह नह छोङगा और तमह मारकर अपना बदला लगा म तमह अचछ तरह समझ गया मन कहा - धमरराय नरजन म तमस नह डरता मझ सतपरष का बल और तज परापत ह अर काल तरा मझ कोई डर नह तम मरा कछ नह बगाङ सकत कहकर मन उसी समय सतयपरष क परताप का समरन करक lsquoदवयशबद अगrsquo स काल को मारा मन उस पर दिषट डाल तो उसी समय उसका माथा काला पङ गया जस कसी पी क पख चोटल होन पर वह जमीन पर पङा बबस होकर दखता ह पर उङ नह पाता ठक यह हाल कालनरजन का था वह करोध कर रहा था पर कछ नह कर पा रहा था तब वह मर चरण म गर पङा और बोला - ानीजी म वनती करता ह क मन आपको भाई समझ कर वरोध कया यह मझस बङ गलती हयी म आपको सतयपरष क समान समझता ह आप बङ हो शिकतसमपनन हो गलती करन वाल अपराधी को भी मा दत हो जस सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया वस ह आप भी मझ कछ परसकार दो सोलह सत म आप ईशवर हो ानीजी आप और सतयपरष दोन एक समान हो मन कहा - नरजनराव तम तो सतयपरष क वश (सोलह सत) म कालख क समान कलकत हय हो म जीव को lsquoसतयशबदrsquo का उपदश करक सतयनाम मजबत करा क बचान आया ह भवसागर स जीव को मकत करान को आया ह यद तम इसम वघन डालत हो तो म इसी समय तमको यहा स नकाल दगा नरजन वनती करत हय बोला - म आपका एव सतयपरष दोन का सवक ह इसक अतरकत म कछ नह जानता ानीजी आपस वनती ह क ऐसा कछ मत करो िजसस मरा बगाङ हो और जस सतयपरष न मझ राजय दया वस आप भी दो तो म आपका वचन मानगा फ़र आप मिकत क लय हसजीव मझस ल लिजय तात म वनती करता ह क मर बात मानो आपका कहना य भरमत जीव नह मानग और उलट मरा प लकर आपस वादववाद करग कयक मन मोहरपी फ़दा इतना मजबत बनाया ह क समसत जीव उसम उलझ कर रह गय ह वद शासतर पराण समत म वभनन परकार क गणधमर का वणरन ह और उसम मर तीन पतर बरहमा वषण महश दवताओ म मखय ह उनम भी मन बहत चतराई का खल रचा ह क मर मतपथ का ान परमखरप स वणरन कया गया ह िजसस सब मर बात ह मानत ह म जीव स मिनदर दव और पतथर पजवाता ह और तीथर वरत जप और तप म सबका मन फ़सा रहता ह ससार म लोग दवी दव और भत भरव आद क पजा आराधना करग और जीव को मार-काट कर बल दग ऐस अनक मत-सदधात स मन जीव को बाध रखा ह धमर क नाम पर य होम नम और इसक अलावा भी अनक जाल मन डाल रख ह अतः ानीजी आप ससार म जायग तो जीव आपका कहा नह मानग और व मर मतफ़द म फ़स रहग मन कहा - अनयाय करन वाल नरजन म तमहार जालफ़द को काट कर जीव को सतयलोक ल जाऊगा िजतन भी

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मायाजाल जीव को फ़सान क लय तमन रच रख ह सतशबद स उन सबको नषट कर दगा जो जीव मरा lsquoसारशबदrsquo मजबती स गरहण करगा तमहार सब जाल स मकत हो जायगा जब जीव मर शबद उपदश को समझगा तो तर फ़लाय हय सब भरम अान को तयाग दगा म जीव को सतनाम समझाऊगा साधना कराऊगा और उन हसजीव का उदधार कर सतलोक ल जाऊगा सतयशबद दढ़ता स दकर म उन हसजीव को दया शील मा काम आद वषय स रहत सहजता समपणर सतोष और आतमपजा आद अनक सदगण का धनी बना दगा सतपरष क समरन का जो सार उपाय ह उसम सतपरष का अवचल नाम हसजीव पकारग तब तमहार सर पर पाव रखकर म उन हसजीव को सतलोक भज दगा अवनाशी lsquoअमतनामrsquo का परचार-परसार करक म हसजीव को चता कर भरममकत कर दगा इसलय धमररायनरजन मर बात मन लगाकर सन इस परकार म तमहारा मानमदरन करगा जो मनषय वधपवरक सदगर स दा लकर नाम को परापत करगा उसक पास काल नह आता सतयपरष क नामान स हसजीव को सध हआ दखकर कालनरजन भी उसको सर झकाता ह यह सनत ह कालनरजन भयभीत हो गया उसन हाथ जोङकर वनती क - तात आप दया करन वाल हो इसलय मझ पर इतनी कपा करो सतपरष न मझ शाप दया ह क म नतय लाख जीव खाऊ यद ससार क सभी जीव सतयलोक चल गय तो मर भख कस मटगी फ़र सतपरष न मझ पर दया क और भवसागर का राजय मझ दया आप भी मझ पर कपा करो और जो म मागता ह वह वर मझ दिजय सतयग तरता और दवापर इन तीन म स थोङ जीव सतयलोक म जाय लकन जब कलयग आय तो आपक शरण म बहत जीव जाय ऐसा पकका वचन मझ दकर ह आप ससार म जाय मन कहा - कालनरजन तमन य छल-मथया का जो परपच फ़लाया ह और तीन यग म जीव को दख म डाल दया मन तमहार वनती जान ल अर अभमानी काल तम मझ ठगत हो जसी वनती तमन मझस क वह मन तमह बखश द लकन चौथायग यानी कलयग जब आयगा तब म जीव क उदधार क लय अपन वश यानी सनत को भजगा आठअश सरत ससार म जाकर परकट हग उसक पीछ फ़र नय और उमसवरप सरत lsquoनौतमrsquo धमरदास क घर जाकर परकट हग सतपरष क व बयालस अश जीवउदधार क लय ससार म आयग व कलयग म वयापक रप स पथ परकट कर चलायग और जीव को ान परदान कर सतलोक भजग व बयालस अश िजस जीव को सतयशबद का उपदश दग म सदा उनक साथ रहगा तब वह जीव यमलोक नह जायगा और कालजाल स मकत रहगा नरजन बोला - साहब आप पथ चलाओ और भवसागर स उदधार कर जीव को सतलोक ल जाओ िजस जीव क हाथ म म अश-वश क छाप (नाम मोहर) दखगा उस म सर झकाकर परणाम करगा सतपरष क बात को मन मान लया परनत मर भी एक वनती ह आप एकपथ चलाओग और जीव को नाम दकर सतयलोक भजवाओग तब म बारहपथ (नकल) बनाऊगा जो आपक ह बात करत हय मतलब आपक जस ह ान क बात मगर फ़ज ान दग और अपन आपको कबीरपथी ह कहग म बारह यम ससार म भजगा और आपक नाम स पथ चलाऊगा

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मतअधा नाम का मरा एक दत सकत धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा दत धमरदास क घर जनम लगा इसक बाद आपका अश वहा आयगा इस परकार मरा वह दत जनम लकर जीव को भरमायगा और जीव को सतयपरष का नामउपदश (मगर नकल परभावहन) दकर समझायगा उन बारह पथ क अतगरत जो जीव आयग व मर मख म आकर मरा गरास बनग मर इतनी वनती मानकर मर बात बनाओ और मझ पर कपा करक मझ मा कर दो दवापर यग का अत और कलयग क शरआत जब होगी तब म बौदधशरर धारण करगा इसक बाद म उङसा क राजा इदरमन क पास जाऊगा और अपना नाम जगननाथ धराऊगा राजा इनदरमन जब मरा अथारत जगननाथ मदर समदर क कनार बनवायगा तब उस समदर का पानी ह गरा दगा उसस टकरा कर बहा दगा इसका वशष कारण यह होगा क तरतायग म मर वषण का अवतार राम वहा आयगा और वह समदर स पार जान क लय समदर पर पल बाधगा इसी शतरता क कारण समदर उस मदर को डबा दगा अतः ानीजी आप ऐसा वचार बनाकर पहल वहा समदर क कनार जाओ आपको दखकर समदर रक जायगा आपको लाघकर समदर आग नह जायगा इस परकार मरा वहा मदर सथापत करो उसक बाद अपना अश भजना आप भवसागर म अपना मतपथ चलाओ और सतयपरष क सतनाम स जीव का उदधार करो और अपन मतपथ का चहन छाप मझ बता दो तथा सतयपरष का नाम भी सझा समझा दो बना इस छाप क जो जीव भवसागर क घाट स उतरना चाहगा वह हस क मिकतघाट का मागर नह पायगा मन कहा - नरजन जसा तम मझस चाहत हो वसा तमहार चरतर को मन अचछ तरह समझ लया ह तमन बारह पथ चलान क जो बात कह ह वह मानो तमन अमत म वष डाल दया ह तमहार इस चरतर को दखकर तमह मटा ह डाल और अब पलट कर अपनी कला दखाऊ तथा यम स जीव का बधन छङाकर अमरलोक ल जाऊ मगर सतपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन नशचय कया ह क अमरलोक उस जीव को ल जाकर पहचाऊगा जो मर सतयशबद को मजबती स गरहण करगा अनयायीनरजन तमन जो बारहपथ चलान क माग कह ह वह मन तमको द पहल तमहारा दत धमरदास क यहा परकट होगा पीछ स मरा अश आयगा समदर क कनार म चला जाऊगा और जगननाथ मदर भी बनवाऊगा उसक बाद अपना सतयपथ चलाऊगा और जीव को सतयलोक भजगा नरजन बोला - ानीजी आप मझ सतयपरष स अपन मल का छाप नशान दिजय जसी पहचान आप अपन हसजीव को दोग जो जीव मझको उसी परकार क नशान पहचान बतायगा उसक पास काल नह आयगा अतः साहब दया करक सतपरष क नाम नशानी मझ द मन कहा - धमररायनरजन जो म तमह सतयपरष क मल क नशानी समझा द तो तम जीव क उदधार कायर म वघन पदा करोग तमहार इस चाल को मन समझ लया काल तमहारा ऐसा कोई दाव मझ पर नह चलन वाला धमरराय मन तमह साफ़ शबद म बता दया क अपना `अरनामrsquo मन गपत रखा ह जो कोई हमारा नाम लगा तम उस छोङकर अलग हो जाना जो तम हसजीव को रोकोग तो काल तम रहन नह पाओग धमररायनरजन बोला - ानीजी आप ससार म जाईय और सतयपरष क नाम दवारा जीव को उदधार करक ल

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जाईय जो हसजीव आपक गण गायगा म उसक पास कभी नह आऊगा जो जीव आपक शरण म आयगा वह मर सर पर पाव रखकर भवसागर स पार होगा मन तो वयथर आपक सामन मखरता क तथा आपको पता समान समझ कर लङकपन कया बालक करोङ अवगण वाला होता ह परनत पता उनको हरदय म नह रखता यद अवगण क कारण पता बालक को घर स नकाल द फ़र उसक रा कौन करगा इसी परकार मर मखरता पर यद आप मझ नकाल दग तो फ़र मर रा कौन करगा ऐसा कहकर नरजन न उठकर शीश नवाया और मन ससार क और परसथान कया कबीर न धमरदास स कहा - जब मन नरजन को वयाकल दखा तब मन वहा स परसथान कया और भवसागर क ओर चला आया

राम-नाम क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास भवसागर क ओर चलत हय म सबस पहल बरहमा क पास आया और बरहमा को आदपरष का शबद उपदश परकट कया तब बरहमा न मन लगाकर सनत हय आदपरष क चहन लण क बार म बहत पछा उस समय नरजन को सदह हआ क बरहमा मरा बङा लङका ह ानी क बात म आकर वह उनक प म न चला जाय तब नरजन न बरहमा क बदध फ़रन का उपाय कया कयक नरजन मन क रप म सबक भीतर बठा हआ ह अतः वह बरहमा क शरर म भी वराजमान था उसन बरहमा क बदध को अपनी ओर फ़र दया (सब जीव क भीतर lsquoमनसवरपrsquo नरजन का वास ह जो सबक बदध अपन अनसार घमाता फ़राता ह) बदध फ़रत ह बरहमा न मझस कहा - वह ईशवर नराकार नगरण अवनाशी जयोतसवरप और शनय का वासी ह उसी परष यानी ईशवर का वद वणरन करता ह वद आानसार ह म उस परष को मानता और समझता ह जब मन दखा क कालनरजन न बरहमा क बदध को फ़र दया ह और उस अपन प म मजबत कर लया ह तो म वहा स वषण क पास आ गया वषण को भी वह आदपरष का शबदउपदश कया परनत काल क वश म होन क कारण वषण न भी उस गरहण नह कया वषण न मझस कहा - मर समान अनय कौन ह मर पास चार पदाथर यानी फ़ल ह धमर अथर काम मो मर अधकार म ह उनम स जो चाह म कसी जीव को द मन कहा - वषण सनो तमहार पास यह कसा मो ह मो अमरपद तो मतय क पार होन स यानी आवागमन छटन पर ह परापत होता ह तम सवय िसथर शात नह हो तो दसर को िसथर शात कस करोग झठ साी झठ गवाह स तम भला कसका भला करोग और इस अवगण को कौन भरगा मर नभक सतयवाणी सनकर वषण भयभीत होकर रह गय और अपन हरदय म इस बात का बहत डर माना उसक बाद म नागलोक चला गया और वहा शषनाग स अपनी कछ बात कहन लगा

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मन कहा - आदपरष का भद कोई नह जानता ह सभी काल क छाया म लग हय ह और अानता क कारण काल क मह म जा रह ह भाई अपनी रा करन वाल को पहचानो यहा काल स तमह कौन छङायगा बरहमा वषण और रदर िजसका धयान करत ह और वद िजसका गण दन-रात गात ह वह आदपरष तमहार रा करन वाल ह वह तमह इस भवसागर स पार करग रा करन वाला और कोई नह ह वशवास करो म तमह उनस मलाता ह साातकार कराता ह लकन वष खान स उतपनन शषनाग का बहत तज सवभाव था अतः उसक मन म मर वचन का वशवास नह हआ जब बरहमा वषण और शषनाग न मर दवारा सतयपरष का सदश मानन स इकार कर दया तब म शकर क पास गया परनत शकर को भी सतयपरष का यह सदश अचछा नह लगा शकर न कहा - म तो नरजन को मानता ह और बात को मन म नह लाता तब वहा स म भवसागर क ओर चल दया कबीर साहब आग बोल - जब म इस भवसागर यानी मतयमडल म आया तब मन यहा कसी जीव को सतपरष क भिकत करत नह दखा ऐसी िसथत म सतपरष का ानउपदश कसस कहता िजसस कह वह अधकाश तो यम क वश म दखायी पङ वचतर बात यह थी क जो घातक वनाश करन वाला कालनरजन ह लोग को उसका तो वशवास ह और व उसी क पजा करत ह और जो रा करन वाला ह उसक ओर स व जीव उदास ह उसक प म न बोलत ह न सनत ह जीव िजस काल को जपता ह वह उस धरकर खा जाता ह तब मर शबदउपदश स उसक मन म चतना आती ह जीव जब दखी होता ह तब ान पान क बात उसक समझ म आती ह लकन उसस पहल जीव मोहवश कछ दखता समझता नह फर ऐसा भाव मर मन म उपजा क कालनरजन क शाखा वश सतत को मटा डाल और उस अपना परतय परभाव दखाऊ यमनरजन स जीव को छङा ल तथा उनह अमरलोक भज द िजनक कारण म शबदउपदश को रटत हय फ़रता ह व ह जीव मझ पहचानत तक नह सब जीव काल क वश म पङ ह और सतयपरष क नाम उपदशरपी अमत को छोङकर वषयरपी वष गरहण कर रह ह लकन सतयपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन अपन मन म नशचय कया क अमरलोक उसी जीव को लकर पहचाऊ जो मर सारशबद को मजबती स गरहण कर धमरदास इसक आग जसा चरतर हआ वह तम धयान लगाकर सनो मर बात स वचलत होकर बरहमा वषण शकर और बरहमा क पतर सनकादक सबन मलकर शनय म धयान समाध लगायी समाध म उनहन पराथरना क - ह ईशवर हम कस lsquoनामrsquo का समरन कर और तमहारा कौन सा नाम धयान क योगय ह धमरदास जस सीप सवात नतर का सनह अपन भीतर लाती ह ठक उसी परकार उन सबन ईशवर क परत परमभाव स शनय म धयान लगाया उसी समय नरजन न उनको उर दन का उपाय सोचा और lsquoशनयगफ़ाrsquo स अपना शबद उचचारण कया तब इनक धयान समाध म ररार यानी lsquoराrsquo शबद बहत बार उचचारत हआ उसक आग म अर उसक पतनी माया यानी अषटागी न मला दया इस तरह रा और म दोन अर को बराबर मलान पर राम शबद बना

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रामनाम उन सबको बहत अचछा लगा और सबन रामनाम समरन क ह इचछा क बाद म उसी रामनाम को लकर उनहन ससार क जीव को उपदश दया और समरन कराया कालनरजन और माया क इस जाल को कोई पहचान समझ नह पाया और इस तरह रामनाम क उतप हयी इस बात को तम गहरायी स समझो धमरदास बोल - आप पर सदगर ह आपका ान सयर क समान ह िजसस मरा सारा अान अधरा दर हो गया ह ससार म मायामोह का घोर अधरा ह िजसम वषयवकार लालची जीव पङ हय ह जब आपका ानरपी सयर परकट होता ह और उसस जीव का मोह अधकार नषट हो जाय यह आपक शबदउपदश क सतय होन का परमाण ह मर धनय भागय जो मन आपको पाया आपन मझ अधम को जगा लया अब आप वह कथा कह जब आपन सतयग म जीव को मकत कया

ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह

कबीर साहब बोल - धमरदास सतयग म िजन जीव को मन नामान का उपदश कया था सतयग म मरा नाम lsquoसतसकतrsquo था म उस समय राजा धधल क पास गया और उस सारशबद का उपदश सनाया उसन मर ान को सवीकार कया और उस मन lsquoनामrsquo दया इसक बाद म मथरा नगर आया यहा मझ खमसर नाम क सतरी मल उसक साथ अनय सतरी वदध और बचच भी थ खमसर बोल - ह परष परातन आप कहा स आय हो मन उसस सतयपरष सतयलोक तथा कालनरजन आद का वणरन कया खमसर न सना और उसक मन म सतयपरष क लय परम उतपनन हआ उसक मन म ानभाव आया और उसन कालनरजन क चाल को भी समझा पर खमसर क मन म एक सदह था क अपनी आख स सतयलोक दख तब ह मर मन म वशवास हो तब मन (सतसकत) उसक शरर को वह रहत हय उसक आतमा को एकपल म सतलोक पहचा दया फ़र अपनी दह म आत ह खमसर सतयलोक को याद करक पछतान लगी और बोल - साहब आपन जो दश दखाया ह मझ उसी दश अमरलोक ल चलो यहा तो बहत काल-कलश दख पीङा ह यहा सफ़र झठ मोहमाया का पसारा ह मन कहा - खमसर जबतक आय पर नह हो जाती तबतक तमह सतयलोक नह ल जा सकता इसलय अपनी आय रहन तक मर दय हय सतयनाम का समरन करो अब कयक तमन सतयलोक दखा ह इसलय आय रहन तक तम दसर जीव को सारशबद का उपदश करो जब कसी ानवान मनषय क दवारा एक भी जीव सतयपरष क शरण म आता ह तब ऐसा ानवान मनषय सतयपरष को बहत परय होता ह जस कोई गाय शर क मख म जाती हो यानी शर उस खान वाला हो और तब कोई बलवान मनषय आकर उस छङा ल तो सभी उसक बढ़ाई करत ह जस बाघ अपन चगल म फ़सी गाय को सताता डराता भयभीत करता हआ मार डालता ह ऐस ह कालनरजन जीव को दख दता हआ मारकर खा जाता ह इसलय जो भी मनषय एक भी जीव को सतयपरष क भिकत म लगाकर कालनरजन स बचा लता ह तो वह

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मनषय करोङ गाय को बचान क समान पणय पाता ह यह सनकर खमसर मर चरण म गर पङ और बोल - साहब मझ पर दया किजय और मझ इस करर रक क वश म भक कालनरजन स बचा लिजय मन कहा - खमसर यह कालनरजन का दश ह उसक जाल म फ़सन का जो अदशा ह वह सतयपरष क नाम स दर हो जाता ह खमसर बोल - साहब आप मझ वह नामदान (दा) दिजय और काल क पज स छङाकर अपनी (गर क) आतमा बना लिजय हमार घर म भी जो अनय जीव ह उनह भी य नाम दिजय धमरदास तब म खमसर क घर गया और सभी जीव को सतयनाम उपदश कया सब नर-नार मर चरण म गर गय खमसर अपन घर वाल स बोल - भाई यद अपन जीवन क मिकत चाहत हो तो आकर सदगर स शबदउपदश गहण करो य यम क फ़द स छङान वाल ह तम यह बात सतय जानो खमसर क वचन स सबको वशवास हो गया और सबन वनती क - ह साहब ह बनदछोङ गर हमारा उदधार करो िजसस यम का फ़दा नषट हो जाय और जनम-जनम का कषट (जीवन-मरण) मट जाय तब मन उन सबको नामदान करत हय धयानसाधना (नामजप) क बार म समझाया और सारनाम स हसजीव को बचाया कबीर साहब बोल - धमरदास इस तरह सतयग म म बारह जीव को नाम उपदश कर सतयलोक चला गया सतयलोक म रहन वाल जीव क शोभा मख स कह नह जाती वहा एक हस का दवयपरकाश सोलह सय क बराबर ह फ़र मन कछ समय तक सतयलोक म नवास कया और दोबारा भवसागर म आकर अपन दत हस जीव धधल खमसर आद को दखा म रात-दन ससार म गपतरप स रहता ह पर मझको कोई पहचान नह पाता फ़र सतयग बीत गया और तरता आया तब तरता म म मनीनदर सवामी क नाम स ससार म आया मझ दखकर कालनरजन को बङा अफ़सोस हआ उसन सोचा - इनहन तो मर भवसागर को ह उजाङ दया य जीव को सतयनाम का उपदश कर सतयपरष क दरबार म ल जात ह मन कतन छलबल क उपाय कय पर उसस ानी को कोई डर नह हआ व मझस नह डरत ह ानी क पास सतयपरष का बल ह उसस मरा बस इन पर नह चलता ह और न ह य मर कालमाया क जाल म फ़सत ह कबीर साहब बोल - धमरदास जस सह को दखकर हाथी का हरदय भय स कापन लगता ह और वह परथवी पर गर

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पङता ह वस ह सतयपरष क नाम स कालनरजन भय स थरथर कापता ह

कबीर और रावण

तरतायग म जब मनीनदर सवामी (तरतायग म कबीर का नाम) परथवी पर आय और उनहन जाकर जीव स कहा - यमरपी काल स तमह कौन छङायगा तब व अानी भरमत जीव बोल - हमारा कतारधतार सवामी पराणपरष (कालनरजन) ह वह पराणपरष वषण हमार रा करन वाला ह और हम यम क फ़द स छङान वाला ह कबीर बोल - धमरदास उन अानी जीव म स कोई तो अपनी रा और मिकत क आस शकर स लगाय हय था कोई चडी दवी को धयाता गाता था कया कह य वासना का लालची जीव अपनी सदगत भलकर पराया ह हो गया और सतयपरष को भल गया तथा तचछ दवी-दवताओ क हाथ लोभवश बक गया कालनरजन न सब जीव को परतदन पापकमर क कोठर म डाला हआ ह और सबको अपन मायाजाल म फ़साकर मार रहा ह यद सतयपरष क ऐसी आा होती तो कालनरजन को अभी मटाकर जीव को भवसागर क तट पर लाऊ लकन यद अपन बल स ऐसा कर तो सतयपरष का वचन नषट होता ह इसलय उपदश दवारा ह जीव को सावधान कर कतनी वचतर बात ह क जो (कालनरजन) इस जीव को दख दता खाता ह वह जीव उसी क पजा करता ह इस परकार बना जान यह जीव यम क मख म जाता ह धमरदास तब चार तरफ़ घमत हय म लका दश म आया वहा मझ वचतरभाट नाम का शरदधाल मला उसन मझस भवसागर स मिकत का उपाय पछा और मन उस ानउपदश दया उस उपदश को सनत ह वचतरभाट का सशय दर हो गया और वह मर चरण म गर गया मन उसक घर जाकर उस दा द वचतरभाट क सतरी राजा रावण क महल गयी और जाकर रानी मदोदर को सब बात बतायी उसन मदोदर स कहा - महारानी जी हमार घर एक सनदर महामन शरषठयोगी आय ह उनक महमा का म कया वणरन कर ऐसा सनतयोगी मन पहल कभी नह दखा मर पत न उनक शरण गरहण क ह और उनस दा ल ह तथा इसी म अपन जीवन को साथरक समझा ह यह बात सनत ह मदोदर म भिकतभाव जागा और वह मनीनदर सवामी क दशरन करन को वयाकल हो गयी वह दासी को साथ लकर सवणर हरा रतन आद लकर वचतरभाट क घर आयी और उनह अपरत करत हय मर चरण म शीश झकाया मन उसको आशीवारद दया मदोदर बोल - आपक दशरन स मरा दन आज बहत शभ हआ मन ऐसा तपसवी पहल कभी नह दखा क िजनक सब अग सफ़द और वसतर भी शवत ह सवामी जी म आपस वनती करती ह मर जीव (आतमा) का कलयाण िजस

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तरह हो वह उपाय मझ कहो म अपन जीवन क कलयाण क लय अपन कल और जात का भी तयाग कर सकती ह ह समथरसवामी अपनी शरण म लकर मझ अनाथ को सनाथ करो भवसागर म डबती हयी मझको सभालो आप मझ बहत दयाल और परय लगत हो आपक दशरन मातर स मर सभी भरम दर हो गय मन कहा - मदोदर सनो सतयपरष क नामपरताप स यम क बङ कट जाती ह तम इस ानदिषट स समझो म तमह खरा (सतयपरष) और खोटा (कालनरजन) समझाता ह सतयपरष असीम अजर अमर ह तथा तीनलोक स नयार ह अलग ह उन सतयपरष का जो कोई धयान-समरन कर वह आवागमन स मकत हो जाता ह मर य वचन सनत ह मदोदर का सब भरम भय अान दर हो गया और उसन पवतरमन स परमपवरक नामदान लया मदोदर इस तरह गदगद हयी मानो कसी कगाल को खजाना मल गया हो फ़र रानी चरण सपशर कर महल को चल गयी मदोदर न वचतरभाट क सतरी को समझा कर हसदा क लय पररत कया तब उसन भी दा ल धमरदास फ़र म रावण क महल स आया और मन दवारपाल स कहा - म तमस एक बात कहता ह अपन राजा को मर पास लकर आओ दवारपाल वनयपवरक बोला - राजा रावण बहत भयकर ह उसम शव का बल ह वह कसी का भय नह मानता और कसी बात क चता नह करता वह बङा अहकार और महान करोधी ह यद म उसस जाकर आपक बात कहगा तो वह उलटा मझ ह मार डालगा मन कहा - तम मरा वचन सतय मानो तमहारा बालबाका भी नह होगा अतः नभक होकर रावण स ऐसा जाकर कहो और उसको शीघर बलाकर लाओ दवारपाल न ऐसा ह कया वह रावण क पास जाकर बोला - ह महाराज हमार पास एक सदध (सनत) आया ह उसन मझस कहा ह क अपन राजा को लकर आओ रावण करोध स बोला - दवारपाल त नरा बदधहन ह ह तर बदध को कसन हर लया ह जो यह सनत ह त मझ बलान दौङा-दौङा चला आया मरा दशरन शव क सत गण आद भी नह पात और तन मझ एक भक को बलान पर जान को कहा मर बात सन और उस सदध का रप वणरन मझ बता वह कौन ह कसा ह कया वश ह दवारपाल बोला - ह राजन उनका शवत उजजवल सवरप ह उनक शवत ह माला तथा शवत तलक अनपम ह और शवत ह वसतर तथा शवत साजसामान ह चनदरमा क समान उसका सवरप परकाशवान ह मदोदर बोल - ह राजा रावण जसा दवारपाल न बताया वह सदधसनत परमातमा क समान सशोभत ह आप शीघर जाकर उनक चरण म परणाम करो तो आपका राजय अटल हो जायगा ह राजन इस झठ मान बङाई क अहम को तयाग कर आप ऐसा ह कर

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मदोदर क बात सनत ह रावण इस तरह भङका मानो जलती हयी आग म घी डाल दया गया हो रावण तरनत हाथ म शसतर लकर चला क जाकर उस सदध का माथा काटगा जब उसका शीश गर पङ तब दख वह भक मरा कया कर लगा ऐसा सोचत हय रावण बाहर मर पास आया और उसन सर बार पर शिकत स मझ पर शसतर चलाया मन उसक शसतरपरहार को हर बार एक तनक क ओट पर रोका अथारत रावण वह तनका भी नह काट सका मन तनक क ओट इस कारण क क रावण बहत अहकार ह इस कारण अपन शिकतशाल परहार स जब रावण तनका भी न काट पायगा तो अतयनत लिजजत होगा और उसका अहकार नषट हो जायगा तब यह तमाशा दखती हयी (मरा बलपरताप जान कर) मदोदर रावण स बोल - सवामी आप झठा अहकार और लजजा तयाग कर मनीनदर सवामी क चरण पकङ लो िजसस आपका राजय अटल हो जायगा यह सनकर खसयाया हआ रावण बोला - म जाकर शव क सवा-पजा करगा िजनहन मझ अटल राजय दया म उनक ह आग घटन टकगा और हरपल उनह को दणडवत करगा मन उस पकार कर कहा - रावण तम बहत अहकार करन वाल हो तमन हमारा भद नह समझा इसलय आग क पहचान क रप म तमह एक भवषयवाणी कहता ह तमको रामचनदर मारग और तमहारा मास का भी नह खायगा तम इतन नीचभाव वाल हो कबीर साहब बोल - धमरदास मनीनदर सवामी क रप म मन अहकार रावण को अपमानत कया और फ़र अयोधयानगर क ओर परसथान कया तब रासत म मझ मधकर नाम का एक गरब बराहमण मला वह मझ परमपवरक अपन घर ल गया और मर बहत परकार स सवा क गरब मधकर ानभाव म िसथरबदध वाला था उसका लोकवद का ान बहत अचछा था तब मन उस सतयपरष और सतयनाम क बार म बताया िजस सनकर उसका मन परसननता स भर गया वह बोला - ह परमसनत सवरप सवामी म भी उस अमतमय सतयलोक को दखना चाहता ह तब उसक सवाभाव स परसनन होकर lsquoअचछाrsquo ऐसा कहत हय म उसक शरर को वह रहा छोङकर उसक जीवातमा को सतयलोक ल गया अमरलोक क अनपम शोभा-छटा दखकर वह बहत परसनन हआ और गदगद होकर मर चरण म गर पङा और बोला - सवामी आपन सतयलोक दखन क मर पयास बझा द अब आप मझ ससार म ल चलो िजसस म अनय जीव को यहा लान क लय उपदश (गवाह) कर और जो जीव घर-गहसथी क अतगरत आत ह उनह भी सतय बताऊ धमरदास जब म उसक जीवातमा को लकर ससार म आया और जस ह मधकर क जीवातमा न दह म परवश कया तो उसका शरर जागरत हो गया मधकर क घर-परवार म सोलह अनय जीव थ

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मधकर न उनस सब बात कह और मझस बोला - साहब मर वनती सनो अब हम सबको सतयलोक म नवास दिजय कयक परथवी तो यम का दश ह इसम बहत दख ह फ़र भी माया स बधा जीव अानवश अधा हो रहा ह इस दश म कालनरजन बहत परबल ह वह सब जीव को सताता ह और अनक परकार क कषट दता हआ जनम-मरण का नकर समान दख दता ह काम करोध तषणा और माया बहत बलवान ह जो इसी कालनरजन क रचना ह य सब महाशतर दवता मन आद सबको वयापत ह और करोङ जीव को कचलकर मसल दत ह य तीन लोक यमनरजन का दश ह इसम जीव को णभर क लय वासतवक सख नह ह आप हमारा य जनम-जनम का कलश मटाओ और अपन साथ ल चलो तब मन उन सबको सतयपरष क नाम का उपदश दकर हसदा स गर (क) आतमा बनाया और उनक आय पर हो जान पर उनको सतयलोक भज दया उन सोलह जीव को सतयलोक जात हय दखकर ससारजीव क लय वकराल भयकर यमदत उदास खङ दखत रह उनह ऊपर जात दखकर व सब ववश और बहद उदास हो गय व सब जीव सतयपरष क दरबार म पहच गय िजनह दखकर सतयपरष क अश और अनय मकत हसजीव बहत परसनन हय सतयपरष न उन सोलह हसजीव को अमरवसतर पहनाया सवणर क समान परकाशवान अपनी अमरदह क सवरप को दखकर उन हसजीव को बहत सख हआ सतयलोक म हरक हसजीव का दवयपरकाश सोलह सयर क समान ह वहा उनहन अमत (अमीरस) का भोजन कया और अगर (चदन) क सगनध स उनका शरर शीतल होकर महकन लगा इस तरह तरतायग म मर (मनीनदर सवामी नाम स) दवारा ानउपदश का परचार-परसार हआ और सतयपरष क नामपरभाव स हसजीव मकत होकर सतयलोक गय

कबीर और रानी इनदरमती

तरतायग समापत हआ दवापर-यग आ गया तब फ़र कालनरजन का परभाव हआ और फ़र सतयपरष न ानीजी को बलाकर कहा - ानी तम शीघर ससार म जाओ और कालनरजन क बधन स जीव का उदधार करो कालनरजन जीव को बहत पीङा द रहा ह जाकर उसक फ़ास काटो मन सतयपरष क बात सनकर उनस कहा - आप परमाणत सपषट शबद म आा करो तो म कालनरजन को मारकर सब जीव को सतयलोक ल आता ह बारबार ऐसा करन ससार म कया जाऊ सतयपरष बोल - योगसतायन सनो सारशबद का उपदश सनाकर जीव को मकत कराओ जो अब जाकर कालनरजन को मारोग तो तम मरा वचन ह भग करोग अब तो अानी जीव काल क जाल म फ़स पङ ह और उसम ह उनह मोहवश सख भास रहा ह लकन जब तम उनह जागरत करोग तब उनह आननद का अहसास होगा

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जब तम कालनरजन का असल चरतर बताओग तो सब जीव तमहार चरण पकङग ह ानी जीव का भाव सवभाव तो दखो क य ान अान को पहचानत समझत नह ह तम ससार म lsquoसहजभावrsquo स जाकर परकट होओ और जीव को चताओ तब म फ़र स ससार क तरफ़ चला इधर आत ह चालाक और परपची कालनरजन न मर चरण म सर झका दया वह कातर भाव स बोला - अब कस कारण स ससार म आय हो म वनती करता ह क सार ससार क जीव को समझाओ ऐसा मत करना आप मर बङ भाई हो म वनती करता ह सभी जीव को मरा रहसय न बताना मन कहा - नरजन सन कोई-कोई जीव ह मझ पहचान पाता ह और मर बात समझता ह कयक तमन जीव को अपन जाल म बहत मजबती स फ़साकर ठगा हआ ह धमरदास ऐसा कहकर मन सतयलोक और सतयलोक का शरर छोङ दया और मनषयशरर धारण कर मतयलोक म आया उस यग म मरा नाम करणामय सवामी था तब म गरनार गढ़ आया जहा राजा चनदरवजय राजय करत थ उस राजा क सतरी बहत बदधमान थी उसका नाम इनदरमती था वह सनत समागम करती थी और ानीसनत क पजा करती थी इनदरमती अपन सवभाव क अनसार महल क ऊची अटार पर चढ़ कर रासता दखा करती थी यद रासत म उस कोई साध जाता नजर आता तो तरनत उसको बलवा लती थी इस परकार सनत क दशरन हत वह अपन शरर को कषट दती थी वह कसी सचचसनत क तलाश म थी उसक ऐस भाव स परसनन हम उसी रासत पर पहच गय जब रानी क दिषट हम पर पङ तो उसन तरनत दासी को आदरपवरक बलान भजा दासी न रानी का वनमर सदश मझ सनाया मन दासी स कहा - दासी हम राजा क घर नह जायग कयक राजय क कायर म झठ मान बङाई होती ह और साध का मान बङाई स कोई समबनध नह होता अतः म नह जाऊगा दासी न रानी स जाकर ऐसा ह कहा तब रानी सवय दौङ-दौङ आयी और मर चरण म अपना शीश रख दया फ़र वह बोल - साहब हम पर दया किजय और अपन पवतर शरीचरण स हमारा घर धनय किजय आपक दशरन पाकर म सखी हो गयी उसका ऐसा परमभाव दखकर हम उसक घर चल गय रानी भोजन क लय मझस नवदन करती हयी बोल - ह परभ भोजन तयार करन क आा दकर मरा सौभागय बढ़ाय आपक जठन मर घर म पङ और बचा भोजन शष परसाद क रप म म खाऊ मन कहा - रानी सनो पाच-ततव (का शरर) िजस भोजन को पाता ह उसक भख मझ नह होती मरा भोजन अमत ह म तमह इसको समझाता ह मरा शरर परकत क पाच-ततव और तीन गण वाला नह ह बिलक अलग ह पाच-ततव तीन गण पचचीस परकत स तो कालनरजन न मनषय शरर क रचना क ह सथान और करया क भद स कालनरजन न वाय क lsquoपचासी भागrsquo कय इसलय पचासी पवन कहा जाता ह इसी

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वाय तथा चार अनयततव परथवी जल आकाश अिगन स य मनषय शरर बना ह परनत म इनस एकदम अलग ह इस पाच-ततव क सथलदह म एक lsquoआदपवनrsquo ह आद का मतलब यहा जनम-मरण स रहत नतय अवनाशी और शाशवत ह वह चतनयजीव ह उस lsquoसोऽहगrsquo बोला जाता ह यह जीव सतयपरष का अश ह कालनरजन न इसी जीव को भरम म डालकर सतयलोक जान स रोक रखा ह कालनरजन ऐसा करन क लय नाना परकार क मायाजाल रचता ह और सासारक वषय का लोभ-लालच दकर जीव को उसम फ़साता ह और फ़र खा जाता ह म उनह जीव को कालनरजन स उदधार करान आया ह काल न पानी पवन परथवी आद ततव स जीव क बनावटदह क रचना क और इस दह म वह जीव को बहत दख दता ह मरा शरर कालनरजन न नह बनाया मरा शरर lsquoशबदसवरपrsquo ह जो खद मर इचछा स बना ह रानी इनदरमती को बहत आशचयर हआ और वह बोल - परभ जसा आपन कहा ऐसा कहन वाला दसरा कोई नह मला दयानध मझ और भी ान बताओ मन सना ह क वषण क समान दसरा कोई बरहमा शकर मन आद भी नह ह पाच-ततव क मलन स यह शरर बना ह और उन ततव क गण भख पयास नीद क वश म सभी जीव ह परभ आप अगमअपार हो मझ बताओ क बरहमा वषण तथा शकर स भी अलग आप कहा स उतपनन हय हो ऐसा बताकर मर िजासा शानत करो मन कहा - इनदरमती मरा दश नागलोक (पाताल) मतयलोक (परथवी) और दवलोक (सवगर) इन सबस अलग ह वहा कालनरजन को घसन क अनमत नह ह इस परथवी पर चनदरमा सयर ह पर सतयलोक म सतयपरष क एक रोम का परकाश करोङ चनदरमा क समान ह तथा वहा क हसजीव (मकत होकर गयी आतमाय) का परकाश सोलह सयर क बराबर ह उन हसजीव म अगर (चनदन) क समान सगनध आती ह और वहा कभी रात नह होती रानी इनदरमती घबरा कर बोल - परभ आप मझ इस यम कालनरजन स छङा लो म अपना समसत राजपाट आप पर नयोछावर करती ह म अपना सब धन-सप का तयाग करती ह ह बनदछोङ मझ अपनी शरण म लो मन कहा - रानी म तमह अवशय यम कालनरजन स छङाऊगा सतयनाम का समरन दगा पर मझको तमहार धन-सप तथा राजपाट स कोई परयोजन नह ह जो धन-सप तमहार पास ह उसस पणयकायर करो सचच साध-सनत का आदर सतकार करो सतयपरष क ह सभी जीव ह ऐसा जानकर उनस वयवहार करो परनत व मोहवश अान क अधकार म पङ हय ह सब शरर म सतयपरष क अश जीवातमा का ह वास ह पर वह कह परकट और कह गपत ह ह रानी य समसत जीव सतयपरष क ह परनत व मोह क भरमजाल म फ़स कालनरजन क प म हो रह ह यह सब चरतर कालनरजन का ह ह क सब जीव सतयपरष को भलाकर उसक फ़लाय खानी-वाणी क जाल म फ़स ह और उसन यह जाल इतनी सझबझ स फ़लाया ह क मझ जस उदधारक स भी जीव कालवश होकर उसका प लकर लङत ह और मझ भी नह पहचानत इस परकार य भरमत जीव सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन स परम करत ह असखय जीव म स कोई-कोई ह इस कपट कालनरजन क चालाक को समझ पाता ह और सतयनाम का उपदश लता ह इनदरमती बोल - ह परभ अब मन सब कछ समझ लया ह अब आप वह करो िजसस मरा उदधार हो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन रानी को सतयनाम उपदश यानी दा द रानी न ऐसी (दा क समय होन वाल) अनभत स परभावत होकर अपन पत स कहा - सवामी यद आप सखदायी मो चाहत हो तो करणामय सवामी क शरण म आओ मर इतनी बात मानो राजा बोला - रानी तम मर अधागनी हो इसलय म तमहार भिकत म आध का भागीदार ह इसलय हम-तम दोन भकत नह हग म सफ़र तमहार भिकत का परभाव दखगा क कस परकार तम मझ मकत कराओगी म तमहार भिकत का परताप दखगा िजसस सब दख कषट मट जायग और हम सतयलोक जायग

रानी इनदरमती का सतयलोक जाना

कबीर साहब बोल - धमरदास यह सब रानी न मर पास आकर कहा और मन उस वघन डालकर बदध फ़रन वाल कालनरजन का चरतर सनाया उसन राजा क बदध कस तरह फ़र द और इसक बाद मन रानी को भवषय क बार म बताया मन रानी स कहा - रानी सनो कालनरजन अपनी कला स छलरप धारण करगा साप बनकर कालदत तमहार पास आयगा और तमह डसगा ऐसा म तमह पहल ह बताय दता ह इसलय म तमको बरहल मनतर बताता ह िजसस कालरपी सपर का सब जहर दर हो जायगा फ़र यम तमस दसरा धोखा करगा वह हसवणर का सफ़दरप बनाकर तमहार पास आयगा और मर समान ान तमह समझायगा वह तमस कहगा - रानी मझ पहचान म कालनरजन का मानमदरन करन वाला ह और मरा नाम ानी करणामय ह इस परकार काल तमह ठगगा म उसका हलया भी तमह बताता ह कालदत का मसतक छोटा होगा और उसक आख का रग बदरग होगा उसक दसर सब अग शवतरग क हग य सब काल क लण मन तमह बता दय तब रानी न घबरा कर मर चरण पकङ लय और बोल - परभ मझ सतयलोक ल चलो यह तो यम का दश ह िजसस मर सब दख-कषट मट जाय मन कहा - रानी सतयनाम-दा स यम स तमहारा समबनध टट गया ह और तम सतयपरष क आतमा हो गयी हो अब तम इस सतयनाम का समरन करो तब य परपची कालनरजन तमहारा कया बगाङ लगा जबतक तमहार आय पर न हो इसी नाम का समरन करो जबतक आय का ठका परा न हो जीव सतयलोक नह जा सकता इस कालनरजन क कला बहत भयकर ह वह ससार म जीव क पास हाथीरप म आता ह परनत सहरपी सतयनाम का समरन करत ह समरन वाल का भय कालनरजन मानता ह और सामन नह आता रानी बोल - साहब जब कालनरजन सपर बनकर मझ सताय और हसरप धारण कर भरमाय तब फ़र आप मर पास आ जाना और मर हस-जीवातमा को सतयलोक ल जाना यह मर वनती ह

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कबीर साहब बोल - रानी काल सपर और मानवरप क कला धरकर तमहार पास आयगा तब म उसका मानमदरन करगा मझ दखत ह काल भाग जायगा उसक पीछ म तमहार पास आऊगा और तमहार जीव को सतयलोक ल जाऊगा धमरदास इतना कहकर मन सवय को छपा लया और तब तकसपर बनकर कालदत आया जब आधी रात हो गयी थी तब रानी अपन महल म आकर पलग पर लट गयी और सो गयी उसी समय तक न आकर रानी क माथ म डस लया रानी न जलद ह राजा स कहा - तक न मझ डस लया ह इतना सनत ह राजा वयाकल हो गया और वष उतारन वाल गारङ (ओझा) को बलाया रानी इनदरमती न साहब म सरत लगाकर उनका दया बरहल मनतर जपा और गारङ स कहा - तम दर जाओ तमहार आवशयकता नह ह रानी न राजा स कहा - सदगर न मझ बरहल मनतर दया ह िजसस मझ पर वष का परभाव नह होगा ऐसा कहत हय जाप करती हयी रानी उठ कर खङ हो गयी राजा चनदरवजय अपनी रानी को ठक दखकर बहत परसनन हआ धमरदास रानी क बना कसी नकसान क ठक हो जान पर वह कालदत वहा गया जहा बरहमा वषण महश थ और बोला - मर वष का तज भी इनदरमती को नह लगा सतयपरष क नामपरताप स सारा वष दर हो गया वषण न कहा - यमदत सन तम अपन सब अग सफ़द बना लो मर बात मानो और छल करक रानी को ल आओ तब उस कालदत न ऐसा ह कया और रानी क पास मर (कबीर) वश म आकर बोला - रानी तम कय उदास हो मन तमह दामनतर दया ह तम जानबझ कर ऐसी अनजान कय हो रह हो रानी मरा नाम करणामय ह म काल को मारकर उसक ऐसी पसाई कर दगा जब काल न तक बनकर तमह डसा तब भी मन तमह बचाया तम पलग स उतरकर मर चरण सपशर करो और अपनी मान बङाई छोङो म तमह परभ क दशरन कराऊगा लकन मर दवारा पहल ह बताय जान स रानी न उसको पहचान लया और उसक आख म तीन रखाय दखी पील सफ़द और लाल फ़र उसका छोटा मसतक दखा फर रानी मर वचन को याद करती हयी बोल - यमदत तम अपन घर जाओ मन तमह पहचान लया ह कौवा बहत सनदर वश बनाय परनत वह हस क सनदरता नह पा सकता वसा ह मन तमहारा रप दखा मर समथरगर न मझ पहल ह सब बता दया था यह सनकर यमदत न बहत करोध कया और बोला - मन कतना बारबार तमह कहकर समझाया फ़र भी तम नह मानी तमहार बदध फ़र गयी ह

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ऐसा कहकर वह रानी क पास आया और उसन रानी को थपपङ मारा िजसस रानी भम पर गर गयी और उसन मरा (कबीर) समरन कया फर बोल - ह सदगर मर सहायता करो मझको य कररकाल बहत दख द रहा ह धमरदास मरा सवभाव ह क भकत क पकार सनत ह मझस नह रहा जाता इसलय म णभर म इनदरमती क पास आ गया मझ दखत ह रानी को बहत परसननता हयी मर आत ह काल वहा स चला गया उसक थपपङ स जो अशदध हयी थी मर दशरन स दर हो गयी तब रानी बोल - साहब मझ यम क छाया क पहचान हो गयी मर एक वनती सनय अब म मतयलोक म नह रहना चाहती साहब मझ अपन दश सतयलोक ल चलय यहा तो बहत काल-कलश ह यह कहकर वह उदास हो गयी धमरदास उसक ऐसी वनती सनकर मन उस पर स काल का कठन परभाव समापत कर दया फ़र उसक आय का ठका (शष आय का समय समय स पहल परा करना) परा भर दया और रानी क हसजीव को लकर सतयलोक चला गया मन उस लकर मानसरोवर दप पहचाया जहा पर मायाकामनी कलोलकरङा कर रह थी अमतसरोवर स उस अमत चखाया तथा कबीरसागर पर उसका पाव रखवाया उसक आग सरतसागर था वहा पहचत ह रानी क जीवातमा परकाशत हो गयी तब उस सतयलोक क दवार पर ल गया िजस दखकर रानी न परमसख अनभव कया सतयलोक क दवार पर रानी क हसआतमा को दखकर वहा क हस न दौङकर रानी को अपन स लपटा लया और सवागत करत हय कहा - तम धनय हो जो करणामय सवामी को पहचान लया अब तमहारा कालनरजन का फ़दा छट गया और तमहार सब दख-दवद मट गय ह इनदरमती मर साथ आओ तमह सतयपरष क दशरन कराऊ ऐसा कहकर मन सतयपरष न वनती क - ह सतयपरष अब हस क पास आओ और एक नय हस को दशरन दो ह बनदछोङ आप महान कपा करन वाल हो ह दनदयाल दशरन दो तब पषपदप का पषप खला और वाणी हयी - ह योगसतायन सनो अब हस को ल आओ और दशरन करो तब ानी हस क पास आय और उनह ल जाकर सतयपरष का दशरन कराया सब हस न सतयपरष को दणडवत परणाम कया तब आदपरष न चार अमतफ़ल दय िजस सब हस न मलकर खाया

कबीर का सदशरन शवपच को ान दना

कबीर साहब बोल - धमरदास रानी इनदरमती क हसजीव को सतयलोक पहचा कर उस सतयपरष क दशरन करान क बाद मन कहा - ह हस अब अपनी बात बताओ तमहार जसी दशा ह सो कहो तमहारा सब दख-दवद जनम-

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मरण का आवागमन सब मट गया और तमहारा तज सोलह सयर क बराबर हो गया और तमहार सब कलश मटकर तमहारा कलयाण हआ इनदरमती दोन हाथ जोङकर बोल - साहब मर एक वनती ह बङ भागय स मन आपक शरीचरण म सथान पाया ह मर इस हसशरर का रप बहत सनदर ह परनत मर मन म एक सशय ह िजसस मझ (अपन पत चनदरवजय) राजा क परत मोह हआ ह कयक वह राजा मरा पत रहा ह ह करणामय सवामी आप उस भी सतयलोक ल आईय नह तो मरा राजा काल क मख म जायगा कबीर साहब बोल - तब मन कहा बदधमान हस सन राजा न नामउपदश नह लया उसन सतयपरष क भिकत नह पायी और भिकतहन होकर ततवान क बना वह इस असार ससार म चौरासी लाख योनय म ह भटकगा इनदरमती बोल - परभ म जब ससार म रहती थी और अनक परकार स आपक भिकत कया करती थी तब सजजन राजा न मर भिकत को समझा और कभी भी भिकत स नह रोका ससार का सवभाव बहत कठोर ह यद अपन पत को छोङकर उसक सतरी कह अलग रह तो सारा ससार उस गाल दता ह और सनत ह पत भी उस मार डालता ह साहब राजकाज म तो मान परशसा नािसतकता करोध चतराई होती ह ह परनत इन सबस अलग म साध-सत क सवा ह करती थी और राजा स भी नह डरती थी तो जब म साध-सनत क सवा करती थी यह सनकर राजा परसनन ह होता था साहब इसक वपरत राजा ऐसा करन क लय मझ रोकता दख दता तो म कस तरह साध-सनत क सवा कर पाती और तब मर मिकत कस होती अतः सवा-भिकत को जानन वाला वह राजा धनय ह उसक हस (जीवातमा) को भी ल आइय ह हसपत सदगर आप तो दया क सागर ह दया किजय और राजा को सासारक बधन स छङाईय कबीर साहब बोल - धमरदास म उस हस इनदरमती क ऐसी बात सनकर बहत हसा और इनदरमती क इचछाअनसार उसक राजय गरनारगढ़ म परकट हो गया उस समय राजा चनदरवजय क आय पर होन क करब ह आ गयी थी राजा चनदरवजय क पराण नकालन क लय यमराज उनह घर कर बहत कषट द रहा था और सकट म पङा हआ राजा भय स थरथर काप रहा था तब मन यमराज स उस छोङन को कहा यमराज उस छोङता नह था धमरदास दलरभ मनषयशरर म सतयनाम भिकत न करन क चक का यह परणाम होता ह सतयपरष क भिकत को भलकर जो जीव ससार क मायाजाल म पङ रहत ह आय पर होन पर यमराज उनह भयकर दख दता ह ह तब मन राजा चनदरवजय का हाथ पकङ लया और उसी समय सतयलोक ल आया रानी इनदरमती यह दखकर बहत परसनन हयी और बोल - ह राजा सनो मझ पहचानो म तमहार पतनी ह राजा उसस बोला - ानवान हस तमहारा दवय रपरग तो सोलह सयर जसा दमक रहा ह तमहार अग-अग म वशष अलौकक चमक ह तब तमको अपनी पतनी कस कह शरषठनार यह तमन बहत अचछ भिकत क िजसस अपना और मरा दोन का ह उदधार कया तमहार भिकत स ह मन अपना नजघर सतयलोक पाया मन करोङ जनम तक धमरपणय कया तब ऐसी सतकमर करन वाल भिकत करन वाल सतरी पायी म तो राजकाज ह करता हआ भिकत स वमख रहा रानी यद तम न होती तो म नशचय ह कठोर नकर म जाता ऐसा मन मतयपवर ह

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अनभव कया अतः ससार म तमहार समान पतनी सबको मल कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन राजा स ऐसा कहा जो जीव सतयपरष क सतनाम का धयान करता ह वह दोबारा कषटमय ससार म नह जाता धमरदास इसक बाद म फ़र स ससार म आया और काशी नगर म गया जहा भकत सदशरन शवपच रहता था वह शबदववक ान को समझन वाला उम सनत था उसन मर बताय आतमान को शीघर ह समझा और उस अपनाया उसका पकका वशवास दखकर मन उस भवबधन स मकत कर दया और वधपवरक नाम उपदश कया धमरदास सतयपरष क ऐसी परतय महमा दखत हय भी जो जीव उसको नह समझत व कालनरजन क फ़द म पङ हय ह जस का अपवतर वसत को भी खा लता ह वस ह ससार लोग भी अमत छोङकर वष खात ह अथारत सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन क ह भिकत करत ह धमरदास दवापर यग म यधषठर नाम का एक राजा हआ महाभारत यदध म अपन ह बनध-बानधव को मारकर उनस बहत पाप हआ था अतः यदध क बाद बहत हाहाकार मच गया चारो ओर घोर अशािनत और शोक-दख का माहौल था खद यधषठर को बर सवपन और अपशकन होत थ तब शरीकषण क सलाह पर उनहन इस पाप नवारण हत एक य कया इस य क सभी वधवत तयार आद करक जब य होन लगा तब शरीकषण न कहा - इस य क सफ़लतापवरक होन क पहचान ह क आकाश म बजता हआ घटा सवतः सनायी दगा उस य म सयासी योगी ऋष मन वरागी बराहमण बरहमचार आद सभी आय सभी को परम स भोजन आद कराया पर घटा नह बजा यधषठर बहत लिजजत हय और शरीकषण क पास इसका कारण पछन गय शरीकषण बोल - िजतन भी लोग न भोजन कया इनम एक भी सचचा सनत नह था व दखाव क लय साध सनयासी योगी वरागी बराहमण बरहमचार अवशय लग रह ह पर व मन स अभमानी ह थ इसलय घटा नह बजा यधषठर को बढ़ा आशचयर हआ इतन वशाल य म करोङ साधओ न भोजन कया और उनम कोई सचचा ह नह था तब हम ऐसा सचचासनत कहा स लाय शरीकषण न कहा - काशी नगर स सदशरन शवपच को लकर आओ व ह सवम साध ह उन जसा साध अभी कोई नह ह तब य सफ़ल होगा ऐसा ह कया गया और घनटा बजन लगा शवपच सदशरन क गरास उठात ह घटा सात बार बजा य सफ़ल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास तब भी जो अानी जीव सदगर क वाणी का रहसय नह पहचानत ऐस लोग क बदध नषट होकर यम क हाथ बक गयी ह अपन ह भकतजीव को य काल दख दता ह नकर म डालता ह काल

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क लय अब कया कह य भकत-अभकत सभी को दख दता ह सबको मार खाता ह गौर स समझो इस काल क दवारा ह महाभारत यदध म शरीकषण न पाडव को यदध क लय पररत कया और हतया का पाप करवाया फ़र उनह शरीकषण न पाडव को दोष लगाया क तमस हतया का पाप हआ अतः य करो और तब कहा था क तमह इसक बदल सवगर मलगा तमहारा यश होगा धमरदास इसक बाद भी पाडव को (शरीकषण न) और अधक दख दया और जीवन क अतम समय म हमालय यातरा म भजकर बफ़र म गलवा दया दरौपद और चार पाडव भीम अजरन नकल सहदव हमालय क बफ़र म गल गय कवल सतय को धारण करन वाल यधषठर ह बच जब शरीकषण को अजरन बहत परय था तो उसक य गत कय हयी राजा बल हरशचनदर कणर बहत बङ दानी थ फ़र भी काल न उनह बहत परकार स दख दया अपमान कराया अतः इस जीव को अानवश सतय-असतय उचत-अनचत का ान नह ह इसलय वह सदा हतषी सतयपरष को छोङकर इस कपट धतर कालनरजन क पजा करत हय मोहवश उसी क ओर भागता ह कालनरजन जीव को अनक कला दखाकर भरमत करता ह जीव इसस मिकत क आशा लगाकर और उसी आशा क फ़ास म बधकर काल क मख म जाता ह इन दोन कालनरजन और माया न सतयपरष क समान ह बनावट नकल और वाणी क अनक नाम मिकत क नाम पर ससार म फ़ला दय ह और जीव को भयकर धोख म डाल दया ह

काल कसाई जीव बकरा

कबीर साहब बोल - धमरदास दवापर यग बीत गया और कलयग आया तब म फ़र सतयपरष क आा स जीव को चतान हत परथवी पर आया और मन कालनरजन को अपनी ओर आत दखा मझ दखकर वह भय स मरझा ह गया और बोला - कसलय मझ दखी करत हो और मर भय भोजन जीव को सतयलोक पहचात हो तीन यग तरता दवापर सतयग म आप ससार म गय और जीव का कलयाण कर मरा ससार उजाङा सतयपरष न जीव पर शासन करन का वचन मझ दया हआ ह मर अधकारतर स आप जीव को छङा लत हो आपक अलावा यद कोई दसरा भाई इस परकार आता तो म उस मारकर खा जाता लकन आप पर मरा कोई वश नह चलता आपक बलपरताप स ह हसजीव (मनषय) अपन वासतवक घर अमरलोक को जात ह अब आप फ़र ससार म जा रह हो परनत आपक शबदउपदश को ससार म कोई नह सनगा शभ और अशभ कम क भरमजाल का मन ऐसा ठाठ मोह सख रचा ह क िजसस उसम फ़सा जीव आपक बताय सतयलोक क सदमागर को नह समझ पायगा धमर क नाम पर मन घर-घर म भरम का भत पदा कर दया ह इसलय सभी जीव असल पजा भलकर भगवान दवी-दवता भत-पशाच भरव आद क पजा-भिकत म लग ह और इसी को सतय समझ कर खद को धनय मान रह ह इस परकार धोखा दकर मन सब जीव को अपनी कठपतल बनाया हआ ह ससार म जीव को भरम और अान का भत लगगा परनत जो आपको तथा आपक सदउपदश को पहचानगा उसका भरम ततकाल दर हो जायगा

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लकन मर भरमभत स गरसत मनषय मास-मदरा खायग पयग और ऐस नीच मनषय को मास खाना बहत परय होगा म अपन ऐस मतपथ परकट करगा िजसम सब मनषय मास-मदरा का सवन करग तब म चडी योगनी भत-परत आद को मनषय स पजवाऊगा और इसी भरम स सार ससार क जीव को भटकाऊगा जीव को अनक परकार क मोहबधन म बाधकर इस परकार क फ़द म फ़सा दगा क व अपन अनत समय तक मतय को भलकर पापकम म लपत और वासतवक भिकत स दर रहग और इस परकार मोहबधन म बध व जीव जनम पनजरनम और चौरासी लाख योनय म बारमबार भटकत ह रहग भाई आपक दवारा बनी हयी सतयपरष क भिकत तो बहत कठन ह आप समझाकर कहोग तब भी कोई नह मानगा कबीर साहब बोल - नरजन तमन जीव क साथ बङा धोखा कया ह मन तमहार धोख को पहचान लया ह सतयपरष न जो वचन कहा ह वह दसरा नह हो सकता उसी क वजह स तम जीव को सतात और मारत हो सतयपरष न मझ आा द ह उसक अनसार सब शरदधाल जीव सतयनाम क परमी हग इसलय म सरल सवभाव स जीव को समझाऊगा और सतयान को गरहण करन वाल अकर जीव को भवसागर स छङाऊगा तमन मोहमाया क जो करोङ जाल रच रख ह और वद शासतर पराण म जो अपनी महमा बताकर जीव को भरमाया ह यद म परतयकला धारण करक ससार म आऊ तो तरा जाल और य झठ महमा समापत कर सब जीव को ससार स मकत करा द लकन जो म ऐसा करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह उनका वचन तो सदा न टटन वाला न डोलन वाला और बना मोह का अनमोल ह अतः म उसका पालन अवशय ह करगा जो शरषठ जीव हग व मर सारशबद ान को मानग तर चालाक समझ म आत ह शीघर सावधान होन वाल अकरजीव को म भवसागर स मकत कराऊगा और तमहार सार जाल को काटकर उनह सतयलोक ल जाऊगा जो तमन जीव क लय करोङ भरम फ़ला रख ह व तमहार फ़लाय हय भरम को नह मानग म सब जीव का सतयशबद पकका करक उनक सार भरम छङा दगा नरजन बोला - जीव को सख दन वाल मझ एक बात समझा कर कहो क जो तमको लगन लगाकर रहगा उसक पास म काल नह जाऊगा मरा कालदत आपक हस को नह पायगा और यद वह उस हसजीव (सतयनाम दा) क पास जायगा तो मरा वह कालदत मछरत हो जायगा और मर पास खाल हाथ लौट आयगा लकन आपक गपतान क यह बात मझ समझ नह आती अतः उसका भद समझा कर कहो वह कया ह तब मन कहा - नरजन धयान स सन सतय शरषठ पहचान ह और वह सतयशबद (नवारणी नाम) मो परदान करान वाला ह सतयपरष का नाम lsquoगपत परमाणrsquo ह कालनरजन बोला - अतयारमी सवामी सनो और मझ पर कपा करो इस यग म आपका कया नाम होगा मझ बताओ और अपन नामदान उपदश को भी बताओ क कस तरह और कौन सा lsquoनामrsquo आप जीव को दोग वह सब मझ बताओ िजस कारण आप ससार म जा रह हो उसका सब भद मझस कहो तब म भी जीव को उस नाम का उपदश कर चताऊगा और उन जीव को सतयपरष क सतयलोक भजगा परभ आप मझ अपना दास बना लिजय तथा य सारा गपतान मझ भी समझा दिजय मन कहा - नरजन सन म जानता ह आग क समय म तम कसा छल करन वाल हो दखाव क लय तो तम

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मर दास रहोग और गपतरप स कपट करोग गपत सारशबद का भदान म तमह नह दगा सतयपरष न ऐसा आदश मझ नह दया ह इस कलयग म मरा नाम कबीर होगा और यह इतना परभावी होगा क lsquoकबीरrsquo कहन स यम अथवा उसका दत उस शरदधाल जीव क पास नह जायगा कालनरजन बोला - आप मझस दवष रखत हो लकन एक खल म फ़र भी खलगा म ऐसी छलपणर बदध बनाऊगा िजसस अनक नकल हसजीव को अपन साथ रखगा और आपक समान रप बनाऊगा तथा आपका नाम लकर अपना मत चलाऊगा इस परकार बहत स जीव को धोख म डाल दगा क व समझ व सतयनाम का ह मागर अपनाय हय ह इसस अलप जीव सतय-असतय को नह समझ पायग कबीर साहब बोल - अर कालनरजन त तो सतयपरष का वरोधी ह उनक ह वरदध षङयतर रचता ह अपनी छलपणर बदध मझ सनाता ह परनत जो जीव सतयनाम का परमी होगा वो इस धोख म नह आयगा जो सचचा हस होगा वह तमहार दवारा मर ानगरनथ म मलायी गयी मलावट और मर वाणी का सतय साफ़-साफ़ पहचानगा और समझगा िजस जीव को म दा दगा उस तमहार धोख क पहचान भी करा दगा तब वह तमहार धोख म नह आयगा य बात सनकर कालनरजन चप हो गया और अतधयारन होकर अपन भवन को चला गया धमरदास इस काल क गत बहत नकषट और कठन ह यह धोख स जीव क मन-बदध को अपन फ़द म फ़ास लता ह --------------------- कबीर साहब न धमरदास दवारा काल क चरतर क बार म पछन पर बताया क - जस कसाई बकरा पालता ह उसक लय चार-पानी क वयवसथा करता ह गम-सद स बचन क लए भी परबनध करता ह िजसक वजह स उन अबोध बकर को लगता ह क हमारा मालक बहत अचछा और दयाल ह हमारा कतना धयान रखता ह इसलय जब कसाई उनक पास आता ह तो सीध-साध बकर उस अपना सह मालक जानकर अपना पयार जतान क लए आग वाल पर उठाकर कसाई क शरर को सपशर करत ह कछ उसक हाथ-पर को भी चाटत ह कसाई जब उन बकर को छकर कमर पर हाथ लगाकर दबा-दबाकर दखता ह तो बचार बकर समझत ह मालक पयार दखा रहा ह परनत कसाई दख रहा ह क बकर म कतना मास हो गया और जब मास खरदन गराहक आता ह तो उस समय कसाई नह दखता क कसका बाप मरगा कसक बट मरगी कसका पतर मरगा या परवार मर रहा ह वो तो बस छर रखी और कर दया - मऽ उनको सवधा दन खलान पलान का उसका यह उददशय था ठक इसी परकार सवरपराणी कालबरहम क पजा-साधना करक काल आहार ह बन ह

समदर और राम क दशमनी का कबीर दवारा नबटारा

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धमरदास बोल - साहब इसस आग कया हआ वह सब भी मझ सनाओ कबीर साहब बोल - उस समय राजा इनदरदमन उङसा का राजा था राजा इनदरदमन अपन राजय का कायर नयायपणर तरक स करता था दवापर यग क अनत म शरीकषण न परभास तर म शरर तयागा तब उसक बाद राजा इनदरदमन को सवपन हआ सवपन म शरीकषण न उसस कहा तम मरा मदर बनवा दो ह राजन तम मरा मदर बनवाकर मझ सथापत करो जब राजा न ऐसा सवपन दखा तो उसन तरनत मदर बनवान का कायर शर दया मदर बना जस ह उसका सब कायर परा हआ तरनत समदर न वह मदर और वह सथान ह नषट कर डबो दया फ़र जब दबारा मदर बनवान लग तो फ़र स समदर करोधत होकर दौङा और ण भर म सब डबोकर जगननाथ का मदर तोङ दया इस तरह राजा न मदर को छह बार बनबाया परनत समदर न हर बार उस नषट कर दया राजा इनदरदमन मदर बनवान क सब उपाय कर हार गया परनत समदर न मदर नह बनन दया मदर बनान तथा टटन क यह दशा दखकर मन वचार कया कयक अनयायी कालनरजन न पहल मझस यह मदर बनवान क पराथरना क थी और मन उस वरदान दया था अतः मर मन म बात सभालन का वचार आया और वचन स बधा होन क कारण म वहा गया मन समदर क कनार आसन लगाया परनत उस समय कसी जीव न मझ वहा दखा नह उसक बाद म फ़र समदर क कनार आया और वहा मन अपना चौरा (नवास) बनाया फ़र मन राजा इनदरदमन को सवपन दखाया और कहा - अर राजा तम मदर बनवाओ और अब य शका मत करो क समदर उस गरा दगा म यहा इसी काम क लय आया ह राजा न ऐसा ह कया और मदर बनवान लगा मदर बनन का काम होत दखकर समदर फ़र चलकर आया उस समय फ़र सागर म लहर उठ और उन लहर न च म करोध धारण कया इस परकार वह लहराता हआ समदर उमङ उमङ कर आता था क मदर बनन न पाय उसक बहद ऊची लहर आकाश तक जाती थी फ़र समदर मर चौर क पास आया और मरा दशरन पाकर भय मानता हआ वह रक गया और आग नह बढ़ा कबीर साहब बोल - तब समदर बराहमण का रप बनाकर मर पास आया और चरण सपशर कर परणाम कया फ़र वह बोला - म आपका रहसय समझा नह सवामी मरा जगननाथ स पराना वर ह शरीकषण िजनका दवापर यग म अवतार हआ था और तरता म िजनका रामरप म अवतार हआ था उनक दवारा समदर पर जबरन पल बनान स मरा उनस पराना वर ह इसीलय म यहा तक आया ह आप मरा अपराध मा कर मन आपका रहसय पाया आप समथरपरष ह परभ आप दन पर दया करन वाल ह आप इस जगननाथ (राम) स मरा बदला दलवाईय म आपस हाथ जोङकर वनती करता ह म उसका पालन करगा जब राम न लका दश क लय गमन कया था तब व सब मझ पर सत बाधकर पार उतर जब कोई बलवान कसी दबरल पर ताकत दखाकर बलपवरक कछ करता ह तो समथरपरभ उसका बदला अवशय दलवात ह ह समथरसवामी आप मझ पर दया करो म उसस बदला अवशय लगा कबीर साहब बोल - समदर जगननाथ स तमहार वर को मन समझा इसक लय मन तमह दवारका दया तम

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जाकर शरीकषण क दवारका नगर को डबो दो यह सनकर समदर न मर चरण सपशर कय और वह परसनन होकर उमङ पङा तथा उसन दवारका नगर डबो दया इस परकार समदर अपना बदला लकर शानत हो गया इस तरह मदर का काम परा हआ तब जगननाथ न पडत को सवपन म बताया क सतयकबीर मर पास आय ह उनहन समदरतट पर अपना चौरा बनाया ह समदर क उमङन स पानी वहा तक आया और सतयकबीर क दशरन कर पीछ हट गया इस परकार मरा मदर डबन स उनहन बचाया तब वह पडापजार समदरतट पर आया और सनान कर मदर म चला गया परनत उस पडत न ऐसा पाखड मन म वचारा क पहल तो उस मलचछ का ह दशरन करना पङा ह कयक म पहल कबीरचौरा तक आया परनत जगननाथपरभ का दशरन नह पाया (पडा मलचछ कबीर साहब को समझ रहा ह) धमरदास तब मन उस पड क बदध दरसत करन क लय एक लला क वह म तमस छपाऊगा नह जब पडत पजा क लय मदर म गया तो वहा एक चरतर हआ मदर म जो मतर लगी थी उसन कबीर का रप धारण कर लया और पडत न जगननाथ क मतर को वहा नह दखा कयक वह बदल कर कबीर रप हो गयी पजा क लय अतपषप लकर पडत भल म पङ गया क यहा ठाकर जी तो ह ह नह फ़र भाई कस पज यहा तो कबीर ह कबीर ह तब ऐसा चरतर दखकर उस पडा न सर झकाया और बोला - सवामी म आपका रहसय नह समझ पाया आप म मन मन नह लगाया मन आपको नह जाना उसक लय आपन यह चरतर दखाया परभ मर अपराध को मा कर दो कबीर साहब बोल - बराहमण म तमस एक बात कहता ह िजस त कान लगाकर सन म तझ आा दता ह क त ठाकर जगननाथ क पजा कर और दवधा का भाव छोङ द वणर जात छत अछत ऊच नीच अमीर गरब का भाव तयाग द कयक सभी मनषय एक समान ह इस जगननाथ मदर म आकर जो मनषय म भदभाव मानता हआ भोजन करगा वह मनषय अगहन होगा भोजन करन म जो छत-अछत रखगा उसका शीश उलटा (चमगादङ) होगा धमरदास इस तरह पडत को पकका उपदश करत हय मन वहा स परसथान कया

धमरदास क पवरजनम क कहानी

धमरदास बोला - साहब आपक दवारा जगननाथ मदर का बनवाना मन सना इसक बाद आप कहा गय कौन स जीव को मकत कराया तथा कलयग का परभाव भी कहय कबीर साहब बोल - धमरदास lsquoराजसथल दशrsquo क राजा का नाम lsquoबकजrsquo था मन उस नाम उपदश दया और जीव

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क उदधार क लय कणरधार कवट बनाया राजसथल दश स म शालमल दप आया और वहा मन एक सत lsquoसहतrsquo को चताया और उस जीव का उदधार करन क लय समसत गर ानदा परदान क फ़र म वहा स दरभगा आया जहा राजा lsquoचतभरज सवामीrsquo का नवास था उसको भी पातर जानकर मन जीव को चतान हत गरवाई (जीव को चतान और नाम उपदश दन वाला) बनाया उसन जरा भी मायामोह नह कया तब मन उस सतयनाम दकर गरवाई द धमरदास मन हस का नमरलान रहनी गहनी समरन आद इन कङहार गरओ को अचछ तरह बताया व सब कल मयारदा काम मोह आद वषय का तयाग कर सारगण को जानन वाल हय चतभरज बकज सहतज और चौथ धमरदास तम य चार जीव क कङहार ह अथारत जीव को सतयान बताकर भवसागर स पार लगान वाल ह यह मन तमस अटल सतय कहा ह धमरदास अब तमहार हाथ स मझको जमबदप (भारत) क जीव मलग जो मर उपदश को गरहण करगा कालनरजन उसस दर ह रहगा धमरदास बोल - साहब म पापकमर करन वाला दषट और नदरयी था और मरा जीवातमा सदा भरम स अचत रहा तब मर कस पणय स आपन मझ अाननदरा स जगाया और कौन स तप स मन आपका दशरन पाया वह मझ बताय कबीर साहब बोल - तमह समझान और दशरन दन क पीछ कया कारण था वह मझस सनो तम अपन पछल जनम क बात सनो िजस कारण म तमहार पास आया सत सदशरन जो दवापर म हय वह कथा मन तमह सनाई जब म उसक हसजीव को सतयलोक ल गया तब उसन मझस वनती क और बोला - सदगर मर वनती सन और मर माता-पता को मिकत दलाय ह बनदछोङ उनका आवागमन मट कर छङान क कपा कर यम क दश म उनहन बहत दख पाया ह मन बहत तरक स उनको समझाया परनत तब उनहन मर बात नह मानी और वशवास ह नह कया लकन उनहन भिकत करन स मझ कभी नह रोका जब म आपक भिकत करता तो कभी उनक मन म वरभाव नह होता बिलक परसननता ह होती इसी स परभ मर वनती ह क आप बनदछोङ उनक जीव को मकत कराय जब सदशरन शवपच न बारबार ऐसी वनती क तो मन उसको मान लया और ससार म कबीर नाम स आया म नरजन क एक वचन स बधा था फ़र भी सदशरन शवपच क वनती पर म भारत आया म वहा गया जहा सत शवपच क माता पता lsquoलमीrsquo और lsquoनरहरrsquo नाम स रहत थ भाई उनहन शवपच क साथ वाल दह छोङ द थी और सदशरन क पणय स उसक माता-पता चौरासी म न जाकर पनः मनषयदह म बराहमण होकर उतपनन हय थ जब दोन का जनम हो गया तब फ़र वधाता न समय अनसार उनह पत-पतनी क रप म मला दया तब उस बराहमण का नाम कलपत और उसक पतनी का नाम महशवर था बहत समय बीत जान पर भी महशवर क सतान नह हयी थी तब पतरपरािपत हत उसन सनान कर सयरदव का वरत रखा वह आचल फ़लाकर दोन हाथ जोङकर सयर स पराथरना करती उसका मन बहत रोता था तब उसी समय म (कबीर साहब) उसक आचल म बालक रप धरकर परकट हो गया मझ दखकर महशवर बहत परसनन हयी और मझ घर ल गयी और अपन पत स बोल - परभ न मझ पर कपा क और मर सयरवरत करन का फ़ल यह बालक मझको दया

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म बहत दन तक वहा रहा व दोन सतरी-परष मलकर मर बहत सवा करत पर व नधरन होन स बहत दखी थ तब मन ऐसा वचार कया क पहल म इनक गरबी दर कर फ़र इनको भिकत-मिकत का उपदश कर इसक लय मन एक लला क जब बराहमण सतरी न मरा पालना हलाया तो उस उसम एक तौला सोना मला फ़र मर बछौन स उनह रोज एक तौला सोना मलता था उसस व बहत सखी हो गय तब मन उनको सतयशबद का उपदश कया और उन दोन को बहत तरह स समझाया परनत उनक हरदय म मरा उपदश नह समाया बालक जानकर उनह मर बात पर वशवास नह आया उस दह म उनहन मझ नह पहचाना तब म वह शरर तयाग कर गपत हो गया तब कछ समय बाद उस बराहमण कलपत और उसक सतरी महशवर दोन न शरर छोङा और मर दशरन क परभाव स उनह फ़र स मनषय शरर मला फ़र दोन समय अनसार पत-पतनी हय और वह चदनवार नगर म जाकर रहन लग इस जनम म उस औरत का नाम lsquoऊदाrsquo और परष का नाम lsquoचदनrsquo था तब म सतयलोक स आकर पनः चदवार नगर म परगट हआ उस सथान पर मन बालक रप बनाया और वहा तालाब म वशराम कया तालाब म मन कमलपतर पर आसन लगाया और आठ पहर वहा रहा उस तालाब म ऊदा सनान करन आयी और सनदर बालक दखकर मोहत हो गयी वह मझ अपन घर ल गयी उसन अपन पत चदनसाह को बताया क य बालक कस परकार मझ मला चदन साह बोला - अर ऊदा त मखर सतरी ह शीघर जाओ और इस बालक को वह डाल आओ वरना हमार जात कटमब क लोग हम पर हसग और उनक हसन स हम दख ह होगा चदनसाह करोधत हआ तो ऊदा बहत डर गयी चदन साह अपनी दासी स बोला - इस बालक को ल जा और तालाब क जल म डाल द कबीर साहब बोल - दासी उस बालक को लकर चल द और तालाब म डालन का मन बनाया उसी समय म अतधयारन हो गया यह दखकर वह बलख-बलख कर रोन लगी वह मन स बहत परशान थी और य चमतकार दखकर मगध होती हयी बालक को खोजती थी पर मह स कछ न बोलती थी इस परकार आय पर होन पर चदनसाह और ऊदा न भी शरर छोङ दया और फ़र दोन न मनषयजनम पाया अबक बार उन दोन को जलाहा-कल म मनषयशरर मला फ़र स वधाता का सयोग हआ और फ़र स समय आन पर व पत-पतनी बन गय इस जनम म उन दोन का नाम नीर नीमा हआ नीर नाम का वह जलाहा काशी म रहता था तब एक दन जठ महना और शकलप तथा बरसाइत पणरमा क तथ थी नीर अपनी पतनी नीमा क साथ लहरतारा तालाब मागर स जा रहा था गम स वयाकल उसक पतनी को जल पीन क इचछा हयी तभी म उस तालाब क कमलपतर पर शशरप म परकट हो गया और बालकरङा करन लगा जल पीन आयी नीमा मझ दखकर हरान रह गयी उसन दौङकर मझ उठा लया और अपन पत क पास ल आयी नीमा न मझ दखकर बहत करोध कया और कहा - इस बालक को वह डाल दो

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नीमा सोच म पङ गयी तब मन उसस कहा - नीमा सनो म तमह समझाकर कहता ह पछल (जनम क) परम क कारण मन तमह दशरन दया कयक पछल जनम म तम दोन सदशरन क माता-पता थ और मन उस वचन दया था क तमहार माता-पता का अवशय उदधार करगा इसलय म तमहार पास आया ह अब तम मझ घर ल चलो और मझ पहचान कर अपना गर बनाओ तब म तमह सतयनाम उपदश दगा िजसस तम कालनरजन क फ़द स छट जाओग तब नीमा न नीर क बात का भय नह माना और मझ अपन घर ल गयी इस परकार म काशी नगर म आ गया और बहत दन तक उनक साथ रहा पर उनह मझ पर वशवास नह आया व मझ अपना बालक ह समझत रह और मर शबदउपदश पर धयान नह दया धमरदास बना वशवास और समपरण क जीवनमिकत का कायर नह होता ऐसा नणरय करक गर क वचन पर दढ़तापवरक वशवास करना चाहय अतः उस शरर म नीर नीमा न मझ नह पहचाना और मझ अपना बालक जानकर सतसग नह कया धमरदास जब जलाहाकल म भी नीर नीमा क आय पर हयी और उनहन फ़र स शरर तयाग कर दबारा मनषयरप म मथरा म जनम लया तब मन वहा मथरा म जाकर उनको दशरन दया अबक बार उनहन मरा शबदउपदश मान लया और उस औरत का रतना नाम हआ वह मन लगाकर भिकत करती थी मन उन दोन सतरी-परष को शबदनाम उपदश दया इस तरह व मकत हो गय और सतयलोक म जाकर हसशरर परापत कया उन हस को दखकर सतयपरष बहत परसनन हय और उनह lsquoसकतrsquo नाम दया फर सतयलोक म रहत हय मझ बहत दन बीत गय तब कालनरजन न बहत जीव को सताया जब कालनरजन जीव को बहत दख दन लगा तब सतयपरष न सकत को पकारा और कहा - ह सकत तम ससार म जाओ वहा अपार बलवान कालनरजन जीव को बहत दख द रहा ह तम जीव को सतयनाम सदश सनाओ और हसदा दकर काल क जाल स मकत कराओ य सनकर सकत बहत परसनन हय और व सतयलोक स भवसागर म आ गय इस बार सकत को ससार म आया दखकर कालनरजन बहत परसनन हआ क इसको तो म अपन फ़द म फ़सा ह लगा तब कालनरजन न बहत स उपाय अपनाकर सकत को फ़साकर अपन जाल म डाल लया जब बहत दन बीत गय और काल न एक भी जीव को सरत नह छोङा और सबको सताता मारता खाता रहा तब जीव न फ़र दखी होकर सतयपरष को पकारा और तब सतयपरष न मझ पकारा सतयपरष न कहा - ानी शीघर ह ससार म जाओ मन जीव क उदधार क लय सकत अश भजा था वह ससार म परकट हो गया हमन उस सारशबद का रहसय समझा कर भजा था परनत वह वापस सतयलोक लौटकर नह आया और कालनरजन क जाल म फ़सकर सध-बध (समत अपनी पहचान) भल गया ानीजी तम जाकर उस अचत-नदरा स जगाओ िजसस मिकतपथ चल वश बयालस हमारा अश ह जो सकत क घर अवतार लगा ानी तम शीघर सकत क पास जाओ और उसक कालफ़ास मटा दो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब सतयपरष क आा स म तमहार पास आया ह धमरदास तम सोचो वचारो क तम जस lsquoनीरrsquo स होकर जनम हो और तमहार सतरी आमन lsquoनीमाrsquo स होकर जनमी ह वस ह म तमहार घर आया ह तम तो मर सबस अधक परय अश हो इसलय मन तमह दशरन दया अबक बार तम मझ पहचानो तब म तमह सतयपरष का उपदश कहगा यह वचन सनत ह धमरदास दौङकर कबीर साहब क चरण म गर गय और रोन लग

कालदत नारायण दास क कहानी

कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमहार सामन सतय का भद परकाशत कया ह और तमहार सभी काल-जाल को मटा दया ह अब रहनी-गहनी क बात सनो िजसको जान बना मनषय य ह भलकर सदा भटकता रहता ह सदा मन लगाकर भिकतसाधना करो और मान-परशसा को तयागकर सचचसनत क सवा करो पहल जात वणर और कल क मयारदा नषट करो (अभमान मत करो और य मत मानो क lsquoमrsquo य ह या वो ह य चौरासी म फ़सन का सबस बङा कारण होता ह) तथा दसर अनयमत पतथर (मतर) पानी (गगा यमना कमभ आद) दवी-दवता क पजा छोङकर नषकाम गर क भिकत करो जो जीव गर स कपट चतराई करता ह वह जीव ससार म भटकता भरमता ह इसलय गर स कभी कपट परदा नह रखना चाहय गर स कपट मतर क चोर क होय अधा क होय कोढ़ जो गर स भद कपट रखता ह उसका उदधार नह होता वह चौरासी म ह रहता ह धमरदास कवल एक सतयपरष क सतयनाम क आशा और वशवास करो इस ससार का बहत बङा जजाल ह इसी म छपा हआ कालनरजन अपनी फ़ास (फ़दा) लगाय हय ह िजसस क जीव उसम फ़सत रह परवार क सब नर-नार मलकर यद सतयनाम का समरन कर तो भयकर काल कछ नह बगाङ सकता धमरदास तमहार घर िजतन जीव ह उन सबको बलाओ सब (हस) नामदा ल फ़र तम अनयायी और करर कालनरजन स सदा सरत रहोग धमरदास बोल - परभ आप जीव क मल (आधार) हो आपन मरा समसत अान मटा दया मरा एक पतर नारायण दास ह आप उस भी उपदश कर यह सनकर कबीर साहब मसकरा दय पर अपन अनदर क भाव को परकट नह कया और बोल - धमरदास िजसको तम शदध अतःकरण वाला समझत हो उनको तरनत बलाओ धमरदास न सबको बलाया और बोल - भाई य समथर सदगरदव सवामी ह इनक शरीचरण म गरकर समपरत हो जाओ िजसस क चौरासी स मकत होओ और ससार म फ़र स न जनम इतना सनत ह सभी जीव आय और कबीर साहब क चरण म दडवत परणाम कर समपरत हो गय परनत नारायण

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दास नह आया धमरदास सोचन लग क नारायण दास तो बहत चतर ह फ़र वह कय नह आया धमरदास न अपन सवक स कहा - मर पतर नारायण दास न गर lsquoरपदासrsquo पर वशवास कया ह और उसक शा अनसार वह िजस सथान पर शरीमदभगवद गीता पढ़ता रहता ह वहा जाकर उसस कहो तमहार पता न समथरगर पाया ह सवक नारायण दास क पास जाकर बोला - नारायण दास तम शीघर चलो आपक पता क पास समथरगर कबीर साहब आय ह उनस उपदश लो नारायण दास बोला - म पता क पास नह जाऊगा व बढ़ हो गय ह और उनक बदध का नाश हो गया ह वषण क समान और कौन ह हम िजसको जप मर पता बढ़ हो गय ह और उनको जलाहा गर भा गया ह मर मन को तो वठठलशवर गर ह पाया ह अब और कया कह मर पता तो बस पागल ह हो गय ह उस सदशी न यह सब बात धमरदास को आकर बतायी धमरदास सवय अपन पतर नारायण दास क पास पहच और बोल - पतर नारायण दास अपन घर चलो वहा सदगर कबीर साहब आय हय ह उनक शरीचरण म माथा टको और अपन सब कमरबधनो को कटाओ जलद करो ऐसा अवसर फ़र नह मलगा हठ छोङो बनदछोङ गर बारबार नह मलत नारायण दास बोला - पताजी लगता ह आप पगला गय हो इसलय तीसरपन क अवसथा म िजदागर पाया ह अर िजसका नाम राम ह उसक समान और कोई दवता नह ह िजसक ऋष-मन आद सभी पजा करत ह आपन गर वठठलशवर का परम छोङकर अब बढ़ाप म वह िजनदागर कया ह तब धमरदास न नारायण को बाह पकङ कर उठा लया और कबीर साहब क सामन ल आय और बोल - इनक चरण पकङो य यम क फ़द स छङान वाल ह नारायण दास मह फ़रकर कट शबद म बोला - यह कहा हमार घर म मलचछ न परवश कया ह कहा स यह lsquoिजनदाठगrsquo आया िजसन मर पता को पागल कर दया वदशासतर को इसन उठाकर रख दया और अपनी महमा बनाकर कहता ह यद यह िजनदा आपक पास रहगा तो मन आपक घर आन क आशा छोङ द ह नारायण दास क यह बात सनत ह धमरदास परशान हो गय और बोल - मरा यह पतर जान कया मत ठान हय ह फ़र माता आमन न भी नारायण को बहत समझाया परनत नारायण दास क मन म उनक एक भी बात सह न लगी और वह बाहर चला गया तब धमरदास कबीर स वनती करत हय बोल - साहब मझ वह कारण बताओ िजसस मरा पतर इस परकार आपको कटवचन कहता ह और दबरदध को परापत होकर भटका हआ ह कबीर बोल - धमरदास मन तो तमह नारायण दास क बार म पहल ह बता दया था पर तम उस भल गय हो

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अतः फ़र स सनो जब म सतयपरष क आा स जीव को चतान मतयलोक क तरफ़ आया तब कालनरजन न मझ दखकर वकराल रप बनाया और बोला - सतयपरष क सवा क बदल मन यह lsquoझाझरदपrsquo परापत कया ह ानी तम भवसागर म कस (कय) आय म तमस सतय कहता ह म तमह मार दगा तम मरा यह रहसय नह जानत कबीर न कहा - अनयायीनरजन सन म तझस नह डरता जो तम अहकार क वाणी बोलत हो म इसी ण तमह मार डालगा कालनरजन सहम गया और वनती करता हआ बोला - ानीजी आप ससार म जाओग बहत स जीव का उदधार कर मकत करोग तो मर भख कस मटगी जब जीव नह हग तब म कया खाऊगा मन एक लाख जीव रात-दन खाय और सवालाख उतपनन कय मर सवा स सतयपरष न मझको तीनलोक का राजय दया आप ससार म जाकर जीव को चताओग उसक लय मन ऐसा इतजाम कया ह म धमर-कमर का ऐसा मायाजाल फ़लाऊगा क आपका सतयउपदश कोई नह मानगा म घर-घर म अान भरम का भत उतपनन करगा तथा धोखा द दकर जीव को भरम म डालगा तब सभी मनषय शराब पीयग मास खायग इसलय कोई आपक बात नह मानगा आपका ससार म जाना बकार ह मन कहा - कालनरजन म तरा छल-बल सब जानता ह म सतयनाम स तर दवारा फ़लाय गय सब भरम मटा दगा और तरा धोखा सबको बताऊगा कालनरजन घबरा गया और बोला - म जीव को अधक स अधक भरमान क लय बारह पथ चलाऊगा और आपका नाम लकर अपना धोख का पथ चलाऊगा lsquoमतअधाrsquo मरा अश ह वह धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा कालदत धमरदास क घर जनम लगा पीछ स आपका अश जनम लगा भाई मर इतनी वनती तो मान ह लो धमरदास तब मन नरजन को कहा सनो नरजन तमन इस परकार कहकर जीव क उदधारकायर म वघन डाल दया ह फ़र भी मन तमको वचन दया इसलय धमरदास अब वह lsquoमतअधाrsquo नाम का कालदत तमहारा पतर बनकर आया ह और अपना नाम नारायण दास रखवाया ह नारायण कालनरजन का अश ह जो जीव क उदधार म वघन का कायर करगा यह मरा नाम लकर पथ को परकट करगा और जीव को धोख म डालगा और नकर म डलवायगा जस शकार नाद को बजाकर हरन को अपन वश म कर लता ह और पकङकर उस मार डालता ह वस ह शकार क भात यमकाल अपना जाल लगाता ह और इस चाल को हसजीव ह समझ पायगा तब कालदत नारायण दास क चाल समझ म आत ह धमरदास न उस तयाग दया और कबीर क चरण म गर पङ

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कालनरजन का छलावा बारह पथ

धमरदास बोल - कालनरजन न जीव को भरमान क लय जो अपन बारह पथ चलाय व मझ समझा कर कहो कबीर साहब बोल - म तमस काल क lsquoबारह पथrsquo क बार कहता ह lsquoमतयअधाrsquo नाम का दत जो छल बल म शिकतशाल ह वह सवय तमहार घर म उतपनन हआ ह यह पहला पथ ह दसरा lsquoतमर दतrsquo चलकर आयगा उसक जात अहर होगी और वह नफ़र यानी गलाम कहलायगा वह तमहार बहत सी पसतक स ान चराकर अलग पथ चलायगा तीसरा पथ का नाम lsquoअधाअचतrsquo दत होगा वह सवक होगा वह तमहार पास आयगा और अपना नाम lsquoसरतगोपालrsquo बतायगा वह भी अपना अलग पथ चलायगा और जीव को lsquoअरयोगrsquo (कालनरजन) क भरम म डालगा धमरदास चौथा lsquoमनभगrsquo नाम का कालदत होगा वह कबीरपथ क मलकथा का आधार लकर अपना पथ चलायगा और उस मलपथ कहकर ससार म फ़लायगा वह जीव को lsquoलदrsquo नाम लकर समझायगा उपदश करगा और इसी नाम को lsquoपारसrsquo कहगा वह शरर क भीतर झकत होन वाल शनय क lsquoझगrsquo शबद का समरन अपन मख स वणरन करगा सब जीव उस lsquoथाकाrsquo कहकर मानग धमरदास lsquoपाचव पथrsquo को चलान वाला lsquoानभगीrsquo नाम का दत होगा उसका पथ टकसार नाम स होगा वह इगला-पगला नाङय क सवर को साधकर भवषय क बात करगा जीव को जीभ नतर मसतक क रखा क बार म बता कर समझायगा जीव क तल मससा आद चहन दखकर उनह भरमरपी धोख म डालगा वह िजस जीव क ऊपर जसा दोष लगायगा वसा ह उसको पान खलायगा (नाम आद दना) lsquoछठा पथrsquo कमाल नाम का ह वह lsquoमनमकरदrsquo दत क नाम स ससार म आया ह उसन मद म वास कया और मरा पतर होकर परकट हआ वह जीव को झलमल-जयोत का उपदश करगा (जो अषटागी न वषण को दखाकर भरमा दया) और इस तरह वह जीव को भरमायगा जहा तक जीव क दिषट ह वह झलमल-जयोत ह दखगा िजसन दोन आख स झलमल-जयोत नह दखी ह वह कस झलमल-जयोत क रप को पहचानगा झलमल-जयोत कालनरजन क ह उस दत क हरदय म सतय मत समझो वह तमह भरमान क लय ह सातवा दत lsquoचतभगrsquo ह वह मन क तरह अनक रगरप बदल कर बोलगा वह lsquoदनrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और दह क भीतर बोलन वाल आतमा को ह सतयपरष बतायगा वह जगतसिषट म पाच-ततव तीन गण बतायगा और ऐसा ान करता हआ अपना पथ चलायगा इसक अतरकत आदपरष कालनरजन अषटागी बरहमा आद कछ भी नह ह ऐसा भरम बनायगा सिषट हमशा स ह तथा इसका कतारधतार कोई नह ह इसी को वह ठोस lsquoबीजकrsquo ान कहगा वह कहगा क अपना आपा ह बरहम ह वह वचन वाणी बोलता ह तो फ़र सोचो गर का कया महतव और आवशयकता ह राम न वशषठ को और कषण न दवारसा को गर कय बनाया जब कषण जस न गरओ क सवा क तो ऋषय-मनय क फ़र गनती ह कया ह नारद न गर को दोष लगाया तो वषण न उनस नकर भगतवाया जो बीजक ान वह दत थोपगा वह ऐसा होगा जस गलर क भीतर कङा घमता ह तथा वह कङा समझता ह क

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ससार इतना ह ह अपन आपको कतार-धतार मानन स जीव का कभी भला न होगा अपन आपको ह मानन वाला जीव रोता रहगा आठवा पथ चलान वाला lsquoअकलभगrsquo दत होगा वह परमधाम कहकर अपना पथ चलायगा कछ करआन तथा वद क बात चराकर अपन पथ म शामल करगा वह कछ-कछ मर नगरण-मत क बात लगा और उन सब बात को मलाकर एक पसतक बनायगा इस परकार जोङजाङ कर वह बरहमान का पथ चलायगा उसम कमरआशरत (यानी ानरहत ानआशरत नह कमर ह पजा ह मानन वाल) जीव बहत लपटग नौवा पथ lsquoवशभर दतrsquo का होगा और उसका जीवनचरतर ऐसा होगा क वह lsquoरामकबीरrsquo नाम का पथ चलायगा वह नगरण-सगण दोन को मलाकर उपदश करगा पाप-पणय को एक समझगा ऐसा कहता हआ वह अपना पथ चलायगा दसवा पथ क दत का नाम lsquoनकटा ननrsquo ह वह lsquoसतनामीrsquo कहकर पथ चलायगा और lsquoचारवणरrsquo क जीव को एक म मलायगा वह अपन वचनउपदश म बराहमण तरय वशय शदर सबको एक समान मलायगा परनत वह सदगर क शबदउपदश को नह पहचानगा वह अपन प को बाधकर रखगा िजसस जीव नकर को जायग वह शरर का ान कथन सब समझायगा परनत सतयपरष क मागर को नह पायगा धमरदास कालनरजन क चालबाजी क बात सनो वह जीव को फ़सान क लय बङ-बङ फ़द क रचना करता ह वह काल जीव को अनक कमर (पजा आद आडबर सामािजक रतरवाज) और कमरजाल म ह जीव को फ़ास कर खा जाता ह जो जीव सारशबद को पहचानता ह समझता ह वह कालनरजन क यमजाल स छट जाता ह और शरदधा स सतयनाम का समरन करत हय अमरलोक को जाता ह lsquoगयारहव पथrsquo को चलान वाला lsquoदगरदानीrsquo नाम का कालदत अतयनत बलशाल होगा वह lsquoजीवपथrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और शररान क बार म समझायगा उसस भोल अानी जीव भरमग और भवसागर स पार नह हग जो जीव बहत अधक अभमानी होगा वह उस कालदत क बात सनकर उसस परम करगा lsquoबारहव पथrsquo का कालदत lsquoहसमनrsquo नाम का होगा वह बहत तरह क चरतर करगा वह वचनवश क घर म सवक होगा और पहल बहत सवा करगा फ़र पीछ (अथारत पहल वशवास जमायगा और जब लोग उसको मानन लगग) वह अपना मत परकट करगा और बहत स जीव को अपन जाल म फ़सा लगा और अश-वश (कबीर साहब क सथापत ान) का वरोध करगा वह उसक ान क कछ बात को मानगा कछ को नह मानगा इस परकार कालनरजन जीव पर अपना दाव फ़ कत हय उनह अपन फ़द म (असलान स दर) बनाय रखगा यानी ऐसी कोशश करगा वह अपन इन अश (कालदत) स बारह पथ (झठान को फ़लान हत) परकट करायगा और य दत सफ़र एकबार ह परकट नह हग बिलक व उन पथ म बारबार आत-जात रहग और इस तरह बारबार ससार म परकट हग जहा-जहा भी य दत परकट हग जीव को बहत ान (भरमान वाला) कहग और व यह सब खद को कबीरपथी बतात हय करग और व शररान का कथन करक सतयान क नाम पर कालनरजन क ह महमा को घमाफ़रा कर बतायग और अानी जीव को काल क मह म भजत रहग कालनरजन न ऐसा ह करन का उनको आदश दया ह

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जब-जब नरजन क य दत ससार म जनम लकर परकट हग तब-तब य अपना पथ फ़लायग व जीव को हरान करन वाल वचतर बात बतायग और जीव को भरमा कर नकर म डालग धमरदास ऐसा वह कालनरजन बहत ह परबल ह वह तथा उसक दत कपट स जीव को छलबदध वाला ह बनायग -------------- आतमान क lsquoहसदाrsquo और lsquoपरमहस दाrsquo म वाणी या अनय इिनदरय का कोई सथान नह ह दोन ह दाओ म सरत को दो अलग-अलग सथान स जोङा जाता ह मतलब धयान बारबार वह ल जान का अभयास कया जाता ह जब धयान पर साधक क पकङ हो जाती ह तो य धयान खद-ब-खद अपन आप होन लगता ह और तीन महन क ह सह अभयास स दवयदशरन अनतलक क सर भवरगफ़ा आसमानी झला आद बहत अनभव होत ह दसर दा क बाद एक सथायी सी शात महसस होती ह जसी पहल कभी महसस नह क और आपक िजनदगी म सवभाव म एक मजबती सी आ जाती ह इसीलय सनत न कहा ह - फ़कर मत कर िजकर कर

चङामण का जनम

धमरदास बोल - परभ अब आप मझ पर कपा करो िजसस ससार म वचनवश परकट हो और आग पथ चल कबीर बोल - धमरदास दस महन म तमहार जीवरप म वश परकट होगा और अवतार होकर जीव क उदधार क लय ह ससार म आयगा य तमहारा पतर ह मरा अश होगा धमरदास न कहा - साहब मन तो अपनी कामदर को वश म कर लया ह फ़र कस परष क अश lsquoनौतम सरतrsquo चङामण ससार म जनम लग कबीर साहब बोल - तम दोन सतरी-परष कामवषय क आसिकत स दर रहकर सफ़र मन स रत करो सतयपरष का नाम पारस ह उस पान पर लखकर अपनी पतनी आमन को दो िजसस सतयपरष का अश नौतम जनम लगा तब धमरदास क यह शका दर हो गयी क बना मथन क यह कस सभव होगा फ़र कबीर साहब क बताय अनसार दोन पत-पतनी न मन स रत क और पान दया जब दस मास पर हय तब मकतामण का जनम हआ इस पर धमरदास न बहत दान कया कबीर साहब को पता चला क मकतामण का जनम हो गया ह तो व तरनत धमरदास क घर पहच और मकतामण को दखकर बोल - यह मकतामण मिकत का सवरप ह यह कालनरजन स जीव को मकत करायगा

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फ़र कबीर साहब मकतामण क दा करत हय बोल - मन तमको वश बयालस का राजय दया तमस बयालस वश हग जो शरदधाल जीव को तारग तमहार उन वश बयालस स साठ शाखाय हगी और फ़र उन शाखाओ स परशाखाय हगी तमहार दस हजार तक परशाखाय हगी वश क साथ मलकर उनका गजारा होगा लकन यद तमहार वश उनस ससार समबनध मानकर नाता मानग तो उनको सतयलोक परापत नह होगा इसलय तमहार वश को मोहमाया स दर रहना चाहय धमरदास पहल मन तमको जो ानवाणी का भडार सपा था वह सब चङामण को बता दो तब बदधमान चङामण ान स पणर हग िजस दखकर काल भी चकनाचर हो जायगा धमरदास न कबीर साहब क आा का पालन कया और दोन न कबीर क चरण सपशर कय यह सब दखकर कालनरजन भय स कापन लगा परसनन होकर कबीर साहब बोल - धमरदास जो सतयपरष क इस नामउपदश को गरहण करगा उसका सतयलोक जान का रासता कालनरजन नह रोक सकता चाह वह अठासी करोङ घाट ढ़ढ़ कोई मख स करोङ ान क बात कहता हो और दखाव क लय बना वधान क (कायद स दा आद क) कबीर कबीर का नाम जपता हो वयथर म कतना ह असार-कथन कहता हो परनत सतयनाम को जान बना सब बकार ह ह जो सवय को ानी समझकर ान क नाम पर बकवास करता हो उसक ानरपी वयजन क सवाद को पछो करोङ यतन स भी यद भोजन तयार हो परनत नमक बना सब फ़का ह रहता ह जस भोजन क बात ह वस ह ान क बात ह हमारा ान का वसतार चौदह करोङ ह फ़र भी सारशबद (असल नाम) इनस अलग और शरषठ ह धमरदास िजस तरह आकाश म नौ लाख तारागण नकलत ह िजनह दखकर सब परसनन होत ह परनत एक सयर क नकलत ह सब तार क चमक खतम हो जाती ह और व दखायी नह दत इसी तरह नौ लाख तारागण ससार क करोङ ान को समझो और एक सयर आतमानी सनत को जानो जस वशाल समदर को पार करान वाला जहाज होता ह उसी परकार अथाह भवसागर को पार करवान वाला एकमातर lsquoसारशबदrsquo ह ह मर सारशबद को समझ कर जो जीव कौव क चाल (वषयवासना म रच) छोङ दग तो वह सारशबदगराह हस हो जायग धमरदास बोल - साहब मर मन म एक सशय ह कपया उस सन मझ समथर सतपरष न ससार म भजा था परनत यहा आन पर कालनरजन न मझ फ़सा लया आप कहत हो म सतसकत का अश ह तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया ऐसा ह आग वश क साथ हआ तो ससार क सभी जीव नषट हो जायग इसलय साहब ऐसी कपा कर क कालनरजन वश को न छल कबीर बोल - धमरदास तमन सतय कहा और ठक सोचा और तमहारा यह सशय होना भी सतय ह आग धमररायनरजन एक खल तमाशा करगा उस म तमस छपाऊगा नह कालनरजन न मझस सफ़र बारह पथ चलान क बात कह थी और अपन चार पथ को गपत रखा था जब मन चार गरओ का नमारण कया तो उसन भी अपन चार अश परकट कय और उनह जीव को फ़सान क लय बहत परकार स समझाया अब आग जसा होगा वह सनो जबतक तम इस शरर म रहोग तबतक कालनरजन परकट नह होगा जब तम शरर छोङोग तभी काल आकर परकट होगा काल आकर तमहार वश को छदगा और धोख म डालकर मोहत करगा वश क बहत नाद सत महत कणरधार हग काल क परभाव स व पारस वश को वष क सवाद जसा करग

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बदमल और टकसार वश क अनदर मशरत हग वश म एक बहत बङा धोखा होगा कालसवरप lsquoहगrsquo दत उसक दह म समायगा वह आपस म झगङा करायगा बदवश क सवभाव को हगदत नह छोङगा वह मन क दवारा बदवश को अपनी तरफ़ मोङगा मरा अश जो सतयपथ चलायगा उस दखकर वह झगङा करगा उसक चहन अथवा चाल को वह नह दख सकगा और अपना रासता वश म दखगा वश अपन अनभवगरनथ कथ कर (कह कर) रखगा परनत नादपतर क नदा करगा तब उन अनभवगरनथ को वश क कणरधार सत महत पढ़ग िजसस उनको बहत अहकार होगा व सवाथर और अहकार को समझ नह पायग और ान कलयाण क नाम पर जीव को भटकायग इसी स म तमह समझाकर कहता ह अपन वश को सावधान कर दो नादपतर जो परकट होगा उसस सब परम स मल धमरदास इसी मन स समझो तम सवरथा वषयवकार स रहत मर नादपतर (शबद स उतपनन) हो कमाल पतर जो मन मतक स जीवत कया था उसक घट (शरर) क भीतर भी कालदत समा गया उसन मझ पता जानकर अहकार कया तब मन अपना ानधन तमको दया म तो परमभाव का भखा ह हाथी घोङ धन दौलत क चाह मझ नह ह अननयपरम और भिकत स जो मझ अपनायगा वह हसभकत ह मर हरदय समायगा यद म अहकार स ह परसनन होन वाला होता तो म सब ान धयान आधयातम पडत-काजी को न सप दता जब मन तमह परम म लगन लगाय अपन अधीन दखा तो अपनी सब अलौकक ान-सपदा ह सप द ऐस ह धमरदास आग सपातर लोग को तम यह ान दना धमरदास अचछ तरह जान लो जहा अहकार होता ह वहा म नह होता जहा अहकार होता ह वहा सब कालसवरप ह होता ह अतः अहकार मिकत क अनोख सतयलोक को नह पा सकता मकतामण और चङामण एक ह अश क दो नाम ह

काल का अपन दत को चाल समझाना

धमरदास बोल - साहब जीव क उदधार क लय जो वचनवश lsquoचङामणrsquo ससार म आया वह सब आपन बताया वचनवश को जो ानी पहचान लगा उसको कालनरजन का lsquoदगरदानीrsquo जसा दत भी नह रोक पायगा तीसरा सरत अश lsquoचङामणrsquo ससार म परकट हआ ह वह मन दख लया फ़र भी मझ एक सशय ह साहब मझ समथर सतयपरष न भजा था परनत ससार म आकर म भी कालनरजन क जाल म फ़स गया आप मझ lsquoसतसकतrsquo का अश कहत हो तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया अगर ऐसा ह सब वश क साथ हआ तो ससार क सब जीव नषट हो जायग इसलय ऐसी कपा करय क कालनरजन सतयपरष क वश को अपन छलभद स न छल पाय कबीर साहब बोल - यह तमन ठक कहा और तमहारा सशय सतय ह भवषय म कालनरजन कया चाल खलगा वह बताता ह सतयग म सतयपरष न मझ बलाया और ससार म जाकर जीव को चतान क लय कहा तो

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कालनरजन न रासत म मझस झगङा कया और मन उसका घमणड चर-चर कर दया पर उसन मर साथ एक धोखा कया और याचना करत हय मझस तीनयग माग लय अनयायी कालनरजन न तब कहा - भाई म चौथा कलयग नह मागता और मन उस वचन द दया और तब जीव क कलयाण हत ससार म आया कयक मन उसको तीन यग द दय थ उसी स उस समय वचनमयारदा क कारण अपना पथ परकट नह कया लकन जब चौथा कलयग आया तब सतयपरष न फ़र स मझ ससार म भजा पहल क ह तरह कसाई कालनरजन न मझ रासत म रोका और मर साथ झगङा कया वह बात मन तमह बता द ह और कालनरजन क बारह पथ का भद भी बता दया कालनरजन न मझस धोखा कया उसन मझस कवल lsquoबारह पथrsquo क बात कह और गपत बात मझको नह बतायी तीन यग म तो वचन लकर उसन मझ ववश कर दया और कलयग म बहत जाल रचकर ऊधम मचाया काल न मझस सफ़र बारह पथ क कहकर गपतरप स lsquoचार पथrsquo और बनाय जब मन जीव को चतान क लय चार कङहार गर क नमारण क वयवसथा क तो काल न अपना अशदत भज दया तथा अपनी छलबदध का वसतार कया और अपन चार अशदत को बहत शा द कालनरजन न दत स कहा - अशो सनो तम तो मर वश हो तमस जो कह उस मानो और मर आा का पालन करो भाई हमारा एक दशमन ह जो ससार म कबीर नाम स जाना जाता ह वह हमारा भवसागर मटाना चाहता ह और जीव को दसर लोक (सतयलोक) ल जाना चाहता ह वह छल-कपट कर मर पजा क वरदध जगत म भरम फ़लाता ह और मर तरफ़ स सबका मन हटा दता ह वह सतयनाम क समधर टर सनाकर जीव को सतयलोक ल जाता ह इस ससार को परकाशत करन म मन अपना मन दया हआ ह और इसलय मन तमको उतपनन कया मर आा मानकर तम ससार म जाओ और कबीर नाम स झठपथ परकट करो ससार क लालची और मखर जीव काम मोह वषयवासना आद वषय क रस म मगन ह अतः म जो कहता ह उसी अनसार उन पर घात लगाकर हमला करो ससार म तम lsquoचार पथrsquo सथापत करो और उनको अपनी-अपनी (झठ) राह बताओ चारो क नाम कबीर नाम पर ह रखो और बना कबीर शबद लगाय मह स कोई बात ह न बोलो अथारत इस तरह कहो कबीर न ऐसा कहा कबीर न वसा कहा जस तम कबीरवाणी का उपदश कर रह होओ कबीर नाम क वशीभत होकर जब जीव तमहार पास आय तो उसस ऐस मीठ वचन कहो जो उसक मन को अचछ लगत ह (अथारत चोट मारन वाल वाल सतयान क बजाय उसको अचछ लगन वाल मीठ मीठ बात करो कयक तमह जीव को झठ म उलझाना ह) कलयग क लालची मखर अानी जीव को ान क समझ नह ह व दखादखी क रासता चलत ह तमहार वचन सनकर व परसनन हग और बारबार तमहार पास आयग जब उनक शरदधा पकक हो जाय और व कोई भदभाव न मान यानी सतय क रासत और तमहार झठ क रासत को एक ह समझन लग तब तम उन पर अपना जाल डाल दो पर बहद होशयार स कोई इस रहसय को जानन न पाय तम जमबदप (भारत) म अपना सथान बनाओ जहा कबीर क नाम और ान का परमाण ह जब कबीर बाधगढ (छीसगढ़) म जाय और धमरदास को उपदश-दा आद द तब व उसक बयालस वश क ानराजय को सथापत करग तब तमह उसम घसपठ करक उनक राजय को डावाडोल करना ह मन चौदह यम क नाकाबनद करक जीव

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क सतयलोक जान का मागर रोक दया ह और कबीर क नाम पर बारह झठपथ चलाकर जीव को धोख म डाल दया ह भाई तब भी मझ सशय ह उसी स म तमको वहा भजता ह उनक बयालस वश पर तम हमला करो और उनह अपनी बात म फ़सा लो कालनरजन क बात सनकर व चार दत बोल - हम ऐसा ह करग यह सनकर कालनरजन बहत परसनन हआ और जीव को छल-कपट दवारा धोख म रखन क बहत स उपाय बतान लगा जीव पर हमला करन क उसन बहत स मनतर सनाय उसन कहा - अब तम ससार म जाओ और चार तरफ़ फ़ल जाओ ऊच नीच गरब अमीर कसी को मत छोङो और सब पर काल का फ़दा कस दो तम ऐसी कपट-चालाक करो क िजसस मरा आहार जीव कह नकल कर न जान पाय धमरदास यह चारो दत ससार म परगट हग जो चार अलग-अलग नाम स कबीर क नाम पर पथ चलायग इन चार दत को मर चलाय बारह पथ का मखया मानो इनस जो चार पथ चलग उसस सब ान उलट-पलट हो जायगा य चार पथ बारह पथ का मल यानी आधार हग जो वचनवश क लय शल क समान पीङादायक हग यानी हर तरह स उनक कायर म वघन करत हय जीव क उदधार म बाधा पहचायग यह सनकर धमरदास घबरा गय और बोल - साहब अब मरा सशय और भी बढ़ गया ह मझ उन कालदत क बार म अवशय बताओ उनका चरतर मझ सनाओ उन कालदत का वश और उनका लण कहो य ससार म कौन सा रप बनायग और कस परकार जीव को मारग व कौन स दश म परकट हग मझ शीघर बताओ

काल क चार दत

कबीर साहब बोल - धमरदास उन चार दत क बार म तमस समझा कर कहता ह उन चार दत क नाम - रभदत करभदत जयदत और वजयदत ह अब lsquoरभदतrsquo क बात सनो यह भारत क गढ़ कालजर म अपनी गदद सथापत करगा और अपना नाम भगत रखगा और बहत जीव को अपना शषय बनायगा जो कोई जीव अकर होगा अथारत िजसम सतयान क परत चतना होगी तथा िजसक पवर क शभकमर हग वह यम (कालनरजन) क इस फ़द को तोङकर बच जायगा वह कालरप रभदत बहत बलवान तथा षङयतर करन वाला होगा वह तमहार और मर वातार का खडन करगा वह दावधान को रोकगा और सतयपरष क सतयलोक और दप को झठा बतायगा वह अपनी lsquoअलग ह रमनीrsquo कहगा वह मर सतयवाणी क परत ववाद करगा िजसक कारण उसक जाल म बहत लोग फ़सग चार धाराओ का अपन मतानसार ान करगा मरा नाम कबीर जोङकर अपना झठा परचार-परसार करगा वह अपन आपको कबीर ह बतायगा और मझ पाच-ततव क दह म बसा हआ बतायगा वह जीव को सतयपरष क समान

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सदध करगा तथा सतयपरष का खडन कर जीव को शरषठ बतायगा हसजीव को इषट कबीर ठहरायगा तथा कतार को कबीर कहकर पकारगा सबका कतार कालनरजन जीव को घोर दख दन वाला ह और उसक ह समान यह यमदत मझ भी समझता ह वह कमर करन वाल जीव को ह सतयपरष ठहरायगा और सतयपरष क नाम-ान को छपाकर अपन आपको परकट करगा वचार करो जीव अपन आप ह सब होता तो इस तरह अनक दख कय भोगता पाच-ततव क दह वाला पाच-ततव क अधीन हआ य जीव दख पाता ह और रमभदत जीव को सतयपरष क समान बताता ह सतयपरष का शरर अजर-अमर ह उनक अनक कलाय ह तथा उनका रप और छाया नह ह धमरदास य गरान अनपम ह िजसम बना दपरण क अपना रप दखायी दता ह अब दसर lsquoकरभ दतrsquo का वणरन सनो वह मगध दश म परकट होगा और अपना नाम धनीदास रखगा करभ छल-परपच क बहत स जाल बछायगा और ानीजीव को भी भटकायगा िजसक हरदय म थोङा भी आतमान होगा य यमदत धोखा दकर उस नषट कर दगा धमरदास इस करभ क चालबाजी सनो यह अपन कथन क टकसार बताकर मजबत जाल सजायगा वह चनदर इङा सयर पगला नाङय क अनसार शभ-अशभ लगन का परचार-परसार करगा तथा राह-कत आद गरह का वसतार स वणरन करगा वह पाच-ततव तथा उनक गण क मत को शरषठ बताकर उनका वणरन करगा तब अानी जीव उसक फ़लाय भरम को नह जानग वह जयोतष क मत को टकसार कहकर फ़लायगा और जीव को गरह-नतर तथा इिनदरय क वश म करक उनका असल सतयपरष क भिकत स धयान हटा दगा वह जल वाय का ान बतायगा और पवन क वभनन नाम और गण का वणरन करगा वह सतय स हटकर ऐसी पजावधान चलाकर जीव को धोखा दकर भरमायगा भटकायगा वह अपन शषय बनात समय वशष नाटक करगा अग-अग क रखा दखगा और पाव क नाखन स सर क चोट को दखत हय जीव को कमरजाल म फ़साकर भरमायगा वह जीव को दख-समझ कर तथा शरवीर कहकर मोह मद म चढ़ा कर धर खायगा भरमाय हय अपन शषय स दणा म सवणर तथा सतरी अपरण करायगा इस परकार वह जीव को ठगगा शषय को गाठ बाधकर तब वह फ़रा करगा और कमरदोष लगाकर उस यम का गलाम बना दगा पचासी पवन काल क ह अतः वह शषय को पवन नाम लखकर पान खलायगा वह नीर पवन क ान का परसार करगा और शषय को पवन नाम दकर आरती उतरवायगा काल क पचासी पवन अनसार पजा करायगा कया नार कया परष वह सबक शरर क तल मसस क पहचान दखा करगा शख चकर और सीप क चनह दखगा कालनरजन का वह दत ऐसी दषटबदध का होगा और जीव म सशय उतपनन करगा तथा उनह गरसत (बरबाद) करत हय पीङत करगा इस कालदत का और भी झठ-परपच सनो वह अपनी lsquoसाठ समrsquo तथा lsquoबारह चौपाईयrsquo को उठाकर जीव म भरम उतपनन करगा वह lsquoपचामत एकोर नामrsquo का समरन को शरषठशबद और मिकतदाता बतायगा जीव क कलयाण का जो असलान आदकाल स निशचत ह वह उस झठ और धोखा बतायगा तथा पाच-ततव पचचीस परकत

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तीन गण चौदह यम यह ईशवर ह अथारत ऐसा कहगा तम ह सब कछ हो पाच-ततव का जाल बनाकर यह यमदत शरर क ततव का धयान करायगा वचार करो क ततव का धयान लगाय तब शरर छटन पर कहा जायग ततव तो ततव म मल जायगा धमरदास जीव को जहा आशा होती ह वह उसका वास होता ह अतः नाम-समरन स धयान हटन पर ततव म उलझ कर वह ततव म ह समायगा कहा तक कह करभ घमासान वनाश करगा उसक छल को वह समझगा जो जीव सतयनाम उपदश को गरहण करन वाला और समझन वाला होगा पाच जङततव तो काल क अग ह अतः ततव क मत म पङकर जीव क दगरत ह होगी और यह सब कछ वह कबीर क नाम पर खद को कबीरपथी बताकर इसको कबीर का ान बताकर करगा जो जीव उसक जाल म फ़स जायग वह करर कालनरजन क मख म ह जायग अब तीसर दत lsquoजयदतrsquo क बार म जानो यह यमदत बङा वकराल होगा यह झठा-परपची अपनी वाणी को आद अनाद (वाणी) कहगा यह जयदत lsquoकरकट गरामrsquo म परकट होगा जो बाधौगढ क पास ह ह वह lsquoचमार कलrsquo म उतपनन होगा और ऊचकल वाल क जात को बगाङन क कोशश करगा यह यमदत lsquoदासrsquo कहायगा और lsquoगणपतrsquo नाम का उसका पतर होगा व दोन पता पतर परबल कालसवरप दखदायी हग और तमहार वश को आकर घरग अथारत जीव क उदधार म यथाशिकत बाधा पहचायग वह कहगा असलान हमार पास ह धमरदास वह तमहार वश को उठा दगा अथारत परभाव खतम करन क कोशश करगा वह अपना अनभव कहकर अपन बहत स गरनथ बनायगा और उसम ानीपरष क समान सवाद बनायगा वह कहगा क lsquoमलानrsquo तो सतयपरष न मझ दया ह धमरदास क पास मलान नह ह वह तमहार वश को भरमा दगा और ानमागर को वचलत करगा वह तमहार वश म अपना मत पकका करगा और मल lsquoपारस-थाकाrsquo पथ चलायगा मलछाप लकर वश को बगाङगा वह कालदत अपना मल पारस दकर सबक वसी ह बदध कर दगा वह भीतर शनय म झकत होन वाल lsquoझगrsquo शबद क बात करगा िजसस ानहन कचचजीव को भलावा दगा परष-सतरी क िजस रज-वीयर स शरररचना होती ह उसको वह अपना मलमत परचलत करगा शरर का मल lsquoआधारबीजrsquo कामवषय ह परनत उसका नाम वह गपत रखगा पहल तो वह अपना मलआधार थाका ह गपत रखगा फ़र जब शषय को जोङकर पर तरह साध लगा तब उसका वणरन करगा पहल तो ान-गरनथ को समझायगा फ़र पीछ स अपना मत पकका करायगा वह सतरी क अग को पारस ान दगा िजस आा मानकर उसक सब शषय लग पहल वह ान का शबद-उपदश समझायगा फ़र कामवषय वासना जो नकर क खान ह उस वह मल बखानगा वह lsquoझाझर दपrsquo क कथा सनायगा पाच-ततव स बन शरर क lsquoशनयगफ़ाrsquo म जाकर य पाच-ततव बहत परकार स रगीन चमकला परकाश बनात ह उस गफ़ा म lsquoहगrsquo शबद बहत जोर स उठता ह जब lsquoसोऽहगमrsquo जीव अपना शरर छोङगा तब कौन स वध स lsquoझगrsquo शबद उसक सामन आयगा कयक वह तो शरर क रहन तक ह होता ह शरर क छटत ह वह भी समापत हो जायगा

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lsquoझाझर दपrsquo कालनरजन न रच रखा ह और lsquoझग-हगrsquo दोन काल क ह शाखा ह य अनयायी कालदत अवहर (सतरी-परष कामसमबनध) ान कहगा lsquoअवहर ानrsquo कालनरजन का धोखा ह वह तमहार ान क भी महमा शामल करक मलाकर कहगा इसलय उसक मत म बहत स कङहार महत हग वह कालदत सथान-सथान पर नीचकमर करगा और हमार बात करत हय हम पर ह हसगा अतः अानी ससार लोग समझग क यह सब समान ह अथारत कबीर का मत और lsquoजयदतrsquo का मत एक ह ह जब कोई इस भद को जानन क कोशश करगा तभी उस पता चलगा िजसक हाथ म सतनामरपी दपक होगा वह हसजीव काल क इस जजाल को तयाग कर अपना कलयाण करगा इसम कोई सदह नह ह य कपटकाल बगल का धयान लगाय रहगा और सतयनाम को छोङकर कालसमबनधी नाम को परकटायगा अब चौथ lsquoवजयदतrsquo क बात सनो यह बनदलखनड म परकट होगा और अपना नाम lsquoजीवrsquo धरायगा यह वजयदत lsquoसखाभावrsquo क भिकत पकक करगा यह सखय क साथ रास रचायगा और मरल बजायगा अनक सखय क सग लगन परम लगायगा और अपन आपको दसरा कषण कहायगा वह जीव को धोखा दकर फ़ासगा और कहगा - आख क आग lsquoमन क छायाrsquo रहती ह और नाक क ऊपर क ओर आकाश lsquoशनयrsquo ह आख और कान बनद कर धयान लगान क िसथत म कोहरा जसा दखता ह सफ़द काला नीला पीला आद रग दखना च क करयाय ह परनत वह मिकत क नाम पर उनम जीव को डालकर भरमायगा य सब काल का धोखा ह यह परतण बदलती करयाय िसथर ह जो शरर क आख स दखी जाती ह अतः यह कालदत मन क छाया माया दखायगा और मिकत का मल छाया को बतायगा यह lsquoसतयनामrsquo स जीव को भटका कर काल क मख म ल जायगा

सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव

कबीर बोल - धमरदास सदगर सवपर ह अतः शषय को चाहय क गर स अधक कसी को न मान और गर क सखाय हय को सतय करक जान एक समय ऐसा भी आयगा जब तमहारा बदवश उलटा काम करगा वह बना गर क भवसागर स पार होना चाहगा जो नगरा होकर जगत को समझाता ह अथारत ान बताता ह वह खद तो डबगा ह तथा ससार क जीव को भी डबायगा बना गर क कलयाण नह होता जो गर क शरणागत होता ह वह ससारसागर स पार हो जाता ह कालनरजन अनक परकार स जीव को धोख म डालता ह अतः बना गर क जीव को अहकारवश ान कहत दखकर काल बहत खश होता ह धमरदास बोल - साहब कपा कर lsquoनाद-बदrsquo ान समझान क कपा कर कबीर बोल - बद एक और नाद बहत स होत ह जो बद क भात मल वह बद कहाता ह वचनवश सतयपरष का अश ह उसक ान स जीव ससार स छट जाता ह नाद और बदवश एक साथ हग तब उनस काल मह छपाकर रहगा जस मन तमह बताया वस नादबद योग (योग का एक तरका परकार) एक करना कयक बना

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नाद तो बद का भी वसतार नह होता और बना बद नाद नह उबरगा इस कलयग म काल बहत परबल ह जो अहकाररप धर सबको खाता ह नाद अहकार तयाग कर होगा और बद का अहकार बद सजायगा इसी स सतयपरष न इन दोन को अनशासत करन क लय मयारदा (नयम) म बाधा और नाद-बद दो रप बनाय जो अहकार छोङकर सतयसवरप परमातमा को भजगा उसका धयान समरन करगा वह हस-सवरप हो जायगा नाद-बद दोन कोई ह अहकार सबक लय हानकारक ह ह इसलय यह निशचत ह जो अहकार करगा वह भवसागर म डबगा धमरदास बोल - साहब आपन नाद-बद क बार म बताया अब मर मन म एक बात आ रह ह आपक वरोधी मर पतर नारायण दास का कया होगा वह ससार क नात मरा पतर ह इसलय चता होती ह सतयनाम को गरहण करन वाल जीव सतयलोक को जायग और नारायण दास काल क मह म जायगा यह तो अचछ बात न होगी कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमको बारबार समझाया पर तमहार समझ म नह आया अगर चौदह यमदत ह मकत होकर सतयलोक चल जायग तो फ़र जीव को फ़सान क लय फ़दा कौन लगायगा अब मन तमहारा ान समझा तम मर बात क परवाह न करक मोहमाया दवारा सतयपरष क आा को मटान म लग हय हो जब मनषय क मन म मोह अधकार छा जाता ह तब सारा ान भलकर वह अपना परमाथर कमर नषट करता ह बना वशवास क भिकत नह होती और बना भिकत क कोई जीव भवसागर स नह तर सकता फ़र स तमह काल फ़दा लगा ह तमन परतय दखा क नारायण दास कालदत ह फ़र भी तमन उस पतर मानन का हठ कया जब तमह ह मर वचन पर वशवास नह आता तो ससार लोग गरओ पर कया वशवास करग जो अहकार को छोङकर गर क शरण म आता ह वह सदगत पाता ह जो तरगणी माया को पकङत ह उनम मोहमद जाग जाता ह और व अभाग भिकत-ान सब तयाग दत ह जब तम ह गर का वशवास तयाग दोग जो जीव का उदधार करन वाल हो तब सामानय जीव का कया ठकाना इस परकार भरमत करन क यह तो कालनरजन क सह पहचान ह धमरदास सनो जसा तम कह रह हो वसा ह तमहारा वश भी परकाशत करगा मोह क आग म वह सदा जलगा और इसी स तमहार वश म वरोध पङगा िजसस दख होगा पतर धन घर सतरी परवार और कल का अभमान यह सब काल ह का तो वसतार ह वह इनह को माधयम बनाकर जीव को बधन म डालता ह इनस तमहारा वश भल म पङ जायगा और सतयनाम क राह नह पायगा ससार क अनय वश क दखादखी तमहार वश क लोग भी पतर धन घर परवार आद क मोह म पङ जायग और यह दखकर कालदत बहत परसनन हग तब कालदत परबल हो जायग और जीव को नकर भजग कालनरजन अपन जाल म जीव को जब फ़साता ह तो उस काम करोध मद लोभ मोह वषय म भला दता ह फ़र उस गर क वचन पर वशवास नह रहता तब सतयनाम क बात सनत ह वह जीव चढ़न लगता ह गर पर वशवास न करन का यह लण ह धमरदास िजसक घट (शरर) म सतयनाम समा गया ह उसक पहचान कहता ह धयान स सनो उस भकत को काल का वाण नह लगता और उस काम करोध मद लोभ नह सतात वह झठ मोह तषणा तथा सासारक वसतओ क आशा तयाग कर सदगर क सतयवचन म मन लगाता ह जस सपर मण को धारण कर परकाशत होता

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ह ऐस ह शषय सदगर क आा को अपन हरदय म धारण कर तथा समसत वषय को भलाकर ववक हस बनकर अवनाशी नज मकतसवरप सतयपद परापत कर सदगर क वचन पर अटल और अभमानरहत कोई बरला ह शरवीर सत परापत करता ह और उसक लय मिकत दर नह होती इस परकार जीवत ह मिकतिसथत का अनभव और मिकत परदान कराना सदगर का ह परताप ह अतः सदगर क चरण म ह परम करो और सब पापकमर अान एव सासारक वषय वकार को तयाग दो अपन नाशवान शरर को धल क समान समझो यह सनकर धमरदास सकपका गय वह कबीर साहब क चरण म गर पङ और दखी सवर म बोल - परभ म अान स अचत हो गया था मझ पर कपा कर कपा कर मर भल-चक मा कर जो नारायण दास क लय मन िजद क थी वह अान म खद को पता जानकर क थी अतः मर इस भल को मा कर कबीर बोल - धमरदास तम सतयपरष क अश हो परनत वश नारायण दास काल का दत ह उस तयाग दो और जीव का कलयाण करन क लय भवसागर म सतयपथ चलाओ यह सनकर धमरदास कबीर साहब क पर पर गर पङ और बोल - आज स मन अपन उस पतररप कालदत को तयाग दया अब आपको छोङकर कसी और क आशा कर तो म सतयसकलप क साथ कहता ह मरा नकर म वास हो कबीर साहब परसननता स बोल - धमरदास तम धनय हो जो मझको पहचान लया और नारायण दास को तयाग दया जब शषय क हरदयरपी दपरण म मल नह होगा गर का सवरप तब ह दखायी दगा जब शषय अपन पवतर हरदय म सदगर क शरीचरण को रखता ह तो काल क सब शाखाओ क समसत बधन को मटाता ह परनत जबतक वह सात पाच (सात सवगर काल तथा माया (क) तीन पतर बरहमा वषण महश य पाच) क आशा लगी रहगी तबतक वह शषय गरपद क महमा नह समझ पायगा

गर-शषय वचार-रहनी

धमरदास बोल - साहब आप गर हो म दास ह अब मझ गर-शषय क रहनी समझा कर कहो कबीर बोल - गर का वरत धारण करन वाल शषय को समझना चाहय क नगरण-सगण क बीच गर ह आधार होता ह गर क बना आचार अनदर-बाहर क पवतरता नह होती और गर क बना कोई भवसागर स पार नह होता शषय को सीप और गर को सवात बद क समान समझना चाहय गर क समपकर स तचछजीव (सीप) मोती क समान अनमोल हो जाता ह गर पारस और शषय लोह क समान ह जस पारस लोह को सोना बना दता ह गर मलयागर चदन क समान ह शषय वषल सपर क तरह होता ह इस परकार वह गर क कपा स शीतल होता ह गर समदर तो शषय उसम उठन वाल तरग ह गर दपक ह तो शषय उसम समपरत हआ पतगा ह गर चनदरमा ह तो शषय चकोर ह गर सयर ह जो कमलरपी शषय को वकसत करत ह इस परकार गरपरम को

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शषय वशवासपवरक परापत कर गर क चरण का सपशर और दशरन परापत कर जब इस तरह कोई शषय गर का वशष धयान करता ह तब वह भी गर क समान होता ह धमरदास गर एव गरओ म भी भद ह य तो सभी ससार ह गर-गर कहता ह परनत वासतव म गर वह ह जो सतयशबद या सारशबद का ान करान वाला ह उसका जगान वाला या दखान वाला ह और सतयान क अनसार आवागमन स मिकत दलाकर आतमा को उसक नजघर सतयलोक पहचाय गर जो मतय स हमशा क लय छङाकर अमतशबद (सारशबद) दखात ह िजसक शिकत स हसजीव अपन घर सतयलोक को जाता ह उस गर म कछ छल-भद नह ह अथारत वह सचचा ह ह ऐस गर तथा उनक शषय का मत एक ह होता ह जबक दसर गर-शषय म मतभद होता ह ससार क लोग क मन म अनक परकार क कमर करन क भावना ह यह सारा ससार उसी स लपटा पङा ह कालनरजन न जीव को भरमजाल म डाल दया ह िजसस उबर कर वह अपन ह इस सतय को नह जान पाता क वह नतय अवनाशी और चतनय ानसवरप ह इस ससार म गर बहत ह परनत व सभी झठ मानयताओ और अधवशवास क बनावट जाल म फ़स हय ह और दसर जीव को भी फ़सात ह लकन समथरसदगर क बना जीव का भरम कभी नह मटगा कयक कालनरजन भी बहत बलवान और भयकर ह अतः ऐसी झठ मानयताओ अधवशवास एव परमपराओ क फ़द स छङान वाल सदगर क बलहार ह जो सतयान का अजर-अमर सदश बतात ह अतः रात-दन शषय अपनी सरत सदगर स लगाय और पवतर सवाभावना स सचच साध-सनत क हरदय म सथान बनाय िजन सवक भकत शषय पर सदगर दया करत ह उनक सब अशभ कमरबधन आद जलकर भसम हो जात ह शषय गर क सवा क बदल कसी फ़ल क मन म आशा न रख तो सदगर उसक सब दखबधन काट दत ह जो सदगर क शरीचरण म धयान लगाता ह वह जीव अमरलोक जाता ह कोई योगी योगसाधना करता ह िजसम खचर भचर चाचर अगोचर नाद चकरभदन आद बहत सी करयाय ह तब इनह म उलझा हआ वह योगी भी सतयान को नह जान पाता और बना सदगर क वह भी भवसागर स नह तरता धमरदास सचचगर को ह मानना चाहय ऐस साध और गर म अतर नह होता परनत जो ससार कसम क गर ह वह अपन ह सवाथर म लग रहत ह न तो वह गर ह न शषय न साध और न ह आचार मानन वाला खद को गर कहन वाल ऐस सवाथ जीव को तम काल का फ़दा समझो और कालनरजन का दत ह जानो उसस जीव क हान होती ह यह सवाथरभावना कालनरजन क ह पहचान ह जो गर शाशवतपरम क आितमकपरम क भद को जानता ह और सारशबद क पहचान मागर जानता ह और परमपरष क िसथर भिकत कराता ह तथा सरत को शबद म लन करान क करया समझाता ह ऐस सदगर स मन लगाकर परम कर और दषटबदध एव कपट चालाक छोङ द तब ह वह नजघर को परापत होता ह और इस भवसागर स तर क फ़र लौटकर नह आता तीन काल क बधन स मकत सदा अवनाशी सतयपरष का नाम अमत ह अनमोल ह िसथर ह शाशवत सतय स मलान वाला ह अतः मनषय को चाहय क वह अपनी वतरमान कौव क चाल छोङकर हस सवभाव अपनाय और

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बहत सार पथ जो कमागर क ओर ल जात ह उनम बलकल भी मन न लगाय और बहत सार कमर भरम क जजाल को तयाग कर सतय को जान तथा अपन शरर को मटट ह जान और सदगर क वचन पर पणर वशवास कर कबीर साहब क ऐस वचन सनकर धमरदास बहत परसनन हय और दौङकर कबीर क चरण स लपट गय व परम म गदगद हो गय और उनक खशी स आस बहन लग फ़र वह बोल - साहब आप मझ ान पान क अधकार और अनाधकार जीव क लण भी कह कबीर बोल - धमरदास िजसको तम वनमर दखो िजस परष म ान क ललक परमाथर और सवाभावना हो तथा जो मिकत क लय बहत अधीर हो िजसक मन म दया शील मा आद सदगण ह उसको नाम (हसदा) और सतयान का उपदश करो कनत जो दयाहन हो सारशबद का उपदश न मान और काल का प लकर वयथर वाद-ववाद तकर -वतकर कर और िजसक दिषट चचल हो उसको ान परापत नह हो सकता होठ क बाहर िजसक दात दखाई पङ उसको जानो क कालदत वश धरकर आया ह िजसक आख क मधय तल हो वह काल का ह रप ह िजसका सर छोटा हो परनत शरर वशाल हो उनक हरदय म अकसर कपट होता ह उसको भी सारशबद ान मत दो कयक वह सतयपथ क हान ह करगा तब धमरदास न कबीर साहब को शरदधा स दडवत परणाम कया

शररान परचय

धमरदास बोल - साहब म बङभागी ह आपन मझ ान दया अब मझ शररनणरय वचार भी कहय इसम कौन सा दवता कहा रहता ह और उसका कया कायर ह नाङ रोम कतन ह और शरर म खन कसलय ह तथा सवास कौन स मागर स चलती ह आत प फ़फ़ङा और आमाशय इनक बार म भी बताओ शरर म िसथत कौन स कमल पर कतना जप होता ह और रात-दन म कतनी सवास चलती ह कहा स शबद उठकर आता ह तथा कहा जाकर वह समाता ह अगर कोई जीव झलमल-जयोत को दखता ह तो मझ उसका भी ान ववक कहो क उसन कौन स दवता का दशरन पाया कबीर बोल - धमरदास अब तम शरर-वचार सनो सतयपरष का नाम सबस नयारा और शरर स अलग ह कयक वह आदपरष कमशः सथल सम कारण महाकारण तथा कवलय शरर स अलग ह इसलय उसका नाम भी अलग ह ह पहला मलाधारचकर गदासथान ह यहा चारदल का कमल ह इसका दवता गणश ह यहा सोलह सौ अजपा जाप ह मलाधार क ऊपर सवाधषठानचकर ह यह छहदल का कमल ह यहा बरहमा सावतरी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह आठदल (प) का कमल नाभसथान पर ह यह वषण लमी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह

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इसक ऊपर हरदय सथान पर बारह दल का कमल ह यह शव पावरती का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह वशदधचकर का सथान कठ (गला) ह यह सोलह दल का कमल ह इसम सरसवती का सथान ह इसक लय एक हजार अजपा जाप ह भवरगफ़ा दो-दल का कमल ह वहा मनराजा का थाना (चौक - मकत होत जीव को भरमान क लय) ह इसक लय भी एक हजार अजपा जाप ह इस कमल क ऊपर शनयसथान ह वहा होती झलमल-जयोत को कालनरजन जानो सबस ऊपर lsquoसरतकमलrsquo म सदगर का वास ह वहा अननत अजपा जाप ह धमरदास सबस नीच मलाधारचकर स ऊपर तक इककस हजार छह सौ सवास दन-रात चलती ह (सामानय सवास लन और छोङन म चार सक ड का समय लगता ह इस हसाब स चौबीस घट म इककस हजार छह सौ सवास दन-रात आती जाती ह) अब शरर क बार म जानो पाच-ततव स बना य (घङा घट) कमभरपी शरर ह तथा शरर म सात धातय रकत मास मद मजजा रस शकर और अिसथ ह इनम रस बना खन सार शरर म दौङता हआ शरर का पोषण करता ह जस परथवी पर असखय पङ-पौध ह वस ह परथवीरपी इस शरर पर करोङ रोम (रय) होत ह इस शरर क सरचना म बहर कोठ ह जहा बहर हजार नाङय क गाठ बधी हयी ह इस तरह शरर म धमनी और शरापरधान नाङया ह बहर नाङय म नौ पहखा गधार कह वारणी गणशनी पयिसवनी हिसतनी अलवषा शखनी ह इन नौ म भी इङा पगला सषमना य तीन परधान ह इन तीन नाङय म भी सषमना खास ह इस नाङ क दवारा ह योगी सतययातरा करत ह नीच मलाधारचकर स लकर ऊपर बरहमरधर तक िजतन भी कमलदल चकर आत ह उनस शबद उठता ह और उनका गण परकट करता ह तब वहा स फ़र उठकर वह शबद शनय म समा जाता ह आत का इककस हाथ होन का परमाण ह और आमाशय सवा हाथ अनमान ह नभतर का सवा हाथ परमाण ह और इसम सात खङक दो कान दो आख दो नाक छद एक मह ह इस तरह इस शरर म िसथत पराणवाय क रहसय को जो योगी जान लता ह और नरतर य योग करता ह परनत सदगर क भिकत क बना वह भी लख चौरासी म ह जाता ह हर तरह स ानयोग कमरयोग स शरषठ ह अतः इन वभनन योग क चककर म न पङ कर नाम क सहज भिकत स अपना उदधार कर और शरर म रहन वाल अतयनत बलवान शतर काम करोध मद लोभ आद को ान दवारा नषट करक जीवन मकत होकर रह धमरदास य सब कमरकाड मन क वयवहार ह अतः तम सदगर क मत स ान को समझो कालनरजन या मन शनय म जयोत दखाता ह िजस दखकर जीव उस ह ईशवर मानकर धोख म पङ जाता ह इस परकार य lsquoमनरपीrsquo कालनरजन अनक परकार क भरम उतपनन करता ह धमरदास योगसाधना म मसतक म पराण रोकन स जो जयोत उतपनन होती ह वह आकार-रहत नराकार मन ह ह मन म ह जीव को भरमान उनह पापकम म वषय म परवत करन क शिकत ह उसी शिकत स वह सब जीव को कचलता ह उसक यह शिकत तीन लोक म फ़ल हयी ह इस तरह मन दवारा भरमत यह मनषय खद को पहचान कर असखय-जनम स धोखा खा रहा ह और य भी नह सोच पाता क कालनरजन क कपट स िजन तचछ दवी-दवताओ क आग वह सर झकाता ह व सब उस (आतमा-मनषय) क ह आशरत ह धमरदास यह सब नरजन का जाल ह जो मनषय दवी- दवताओ को पजता हआ कलयाण क आशा करता ह परनत सतयनाम क बना यह यम क फ़ास कभी नह कटगी

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मन क कपट करामात

कबीर बोल - धमरदास िजस परकार कोई नट बदर को नाच नचाता ह और उस बधन म रखता हआ अनक दख दता ह इसी परकार य मनरपी कालनरजन जीव को नचाता ह और उस बहत दख दता ह यह मन जीव को भरमत कर पापकम म परवत करता ह तथा सासारक बधन म मजबती स बाधता ह मिकत उपदश क तरफ़ जात हय कसी जीव को दखकर मन उस रोक दता ह इसी परकार मनषय क कलयाणकार काय क इचछा होन पर भी यह मन रोक दता ह मन क इस चाल को कोई बरला परष ह जान पाता ह यद कह सतयपरष का ान हो रहा हो तो य मन जलन लगता ह और जीव को अपनी तरफ़ मोङकर वपरत बहा ल जाता ह इस शरर क भीतर और कोई नह ह कवल मन और जीव य दो ह रहत ह पाच-ततव और पाच-ततव क पचचीस परकतया सत रज तम य तीन गण और दस इिनदरया य सब मन-नरजन क ह चल ह सतयपरष का अश जीव आकर शरर म समाया ह और शरर म आकर जीव अपन घर क पहचान भल गया ह पाच-ततव पचचीस परकत तीन गण और मन-इिनदरय न मलकर जीव को घर लया ह जीव को इन सबका ान नह ह और अपना य भी पता नह क म कौन ह इस परकार स बना परचय क अवनाशी-जीव कालनरजन का दास बना हआ ह जीव अानवश खद को और इस बधन को नह जानता जस तोता लकङ क नलनी यतर म फ़सकर कद हो जाता ह यह िसथत मनषय क ह जस शर न अपनी परछा कए क जल म दखी और अपनी छाया को दसरा शर जानकर कद पङा और मर गया ठक ऐस ह जीव काल-माया का धोखा समझ नह पाता और बधन म फ़सा रहता ह जस काच क महल क पास गया का दपरण म अपना परतबमब दखकर भकता ह और अपनी ह आवाज और परतबमब स धोखा खाकर दसरा का समझकर उसक तरफ़ भागता ह ऐस ह कालनरजन न जीव को फ़सान क लय मायामोह का जाल बना रखा ह कालनरजन और उसक शाखाओ (कमरचार दवताओ आद न) न जो नाम रख ह व बनावट ह जो दखन-सनन म शदध मायारहत और महान लगत ह परबहम पराशिकत आद आद परनत सचचा और मोदायी कवल आदपरष का lsquoआदनामrsquo ह ह अतः धमरदास जीव इस काल क बनायी भलभलया म पङकर सतयपरष स बगाना हो गय और अपना भला-बरा भी नह वचार सकत िजतना भी पापकमर और मथया वषय आचरण ह य इसी मन-नरजन का ह ह यद जीव इस दषटमन नरजन को पहचान कर इसस अलग हो जाय तो निशचत ह जीव का कलयाण हो जाय यह मन मन और जीव क भननता तमह समझाई जो जीव सावधान सचत होकर ानदिषट स मन को दखगा समझगा तो वह कालनरजन क धोख म नह आयगा जस जबतक घर का मालक सोता रहता ह तबतक चोर उसक घर म सध लगाकर चोर करन क कोशश करत रहत ह और उसका धन लट ल जात ह ऐस ह जबतक शरररपी घर का सवामी य जीव अानवश मन क चाल क परत सावधान नह रहता तबतक मनरपी चोर उसका भिकत और ानरपी धन चराता रहता ह और जीव को नीचकम क ओर पररत करता रहता ह परनत जब जीव इसक चाल को समझकर सावधान हो जाता ह तब इसक नह चलती जो जीव मन को जानन लगता ह उसक जागरतकला (योगिसथत) अनपम होती ह जीव क लय अान अधकार बहत भयकर अधकप क समान ह इसलय य मन ह भयकर काल ह जो जीव को बहाल करता ह सतरी-परष मन दवारा ह एक-दसर क परत आकषरत होत ह और मन उमङन स ह शरर म कामदव जीव को

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बहत सताता ह इस परकार सतरी-परष वषयभोग म आसकत हो जात ह इस वषयभोग का आननदरस कामइनदर और मन न लया और उसका पाप जीव क ऊपर लगा दया इस परकार पापकमर और सब अनाचार करान वाला य मन होता ह और उसक फ़लसवरप अनक नकर आद कठोर दड जीव भोगता ह दसर क नदा करना दसर का धन हङपना यह सब मन क फ़ासी ह सनत स वर मानना गर क ननदा करना यह सब मन-बदध का कमर कालजाल ह िजसम भोलाजीव फ़स जाता ह परसतरी-परष स कभी वयभचार न कर अपन मन पर सयम रख यह मन तो अधा ह वषय वषरपी कम को बोता ह और परतयक इनदर को उसक वषय म परवत करता ह मन जीव को उमग दकर मनषय स तरह तरह क जीवहतया कराता ह और फ़र जीव स नकर भगतवाता ह यह मन जीव को अनकानक कामनाओ क पत र का लालच दकर तीथर वरत तचछ दवी-दवताओ क जङ-मतरय क सवा-पजा म लगाकर धोख म डालता ह लोग को दवारकापर म यह मन दाग (छाप) लगवाता ह मिकत आद क झठ आशा दकर मन ह जीव को दाग दकर बगाङता ह अपन पणयकमर स यद कसी का राजा का जनम होता ह तो पणयफ़ल भोग लन पर वह नकर भगतता ह और राजा जीवन म वषयवकार होन स नकर भगतन क बाद फ़र उसका साड का जनम होता ह और वह बहत गाय का पत होता ह पाप-पणय दो अलग-अलग परकार क कमर होत ह उनम पाप स नकर और पणय स सवगर परापत होता ह पणयकमर ीण हो जान स फ़र नकर भगतना होता ह ऐसा वधान ह अतः कामनावश कय गय पणय का यह कमरयोग भी मन का जाल ह नषकाम भिकत ह सवरशरषठ ह िजसस जीव का सब दख-दवद मट जाता ह धमरदास इस मन क कपट-करामात कहा तक कह बरहमा वषण महश तीन परधान दवता शषनाग तथा ततीस करोङ दवता सब इसक फ़द म फ़स और हार कर रह मन को वश म न कर सक सदगर क बना कोई मन को वश म नह कर पाता सभी मन-माया क बनावट जाल म फ़स पङ ह

कपट कालनरजन का चरतर

कबीर बोल - धमरदास अब इस कपट कालनरजन का चरतर सनो कस परकार वह जीव क छलबदध कर अपन जाल म फ़साता ह इसन कषण अवतार धर कर गीता क कथा कह परनत अानी जीव इसक चाल रहसय को नह समझ पाता अजरन शरीकषण का सचचा सवक था और शरीकषण क भिकत म लगन लगाय रहता था शरीकषण न उस सब समान कहा सासारक वषय स लगाव और सासारक वषय स पर आतम मो सब कछ सनाया परनत बाद म काल अनसार उस मोमागर स हटाकर सासारक कमर-कतरवय म लगन को पररत कया िजसक परणामसवरप भयकर महाभारत यदध हआ शरीकषण न गीता क ान उपदश म पहल दया मा आद गण उपदश क बार म बताया और ान-वान कमरयोग आद कलयाण दन वाल उपदश का वणरन कया जबक अजरन सतयभिकत म लगन लगाय था तथा वह शरीकषण को बहत मानता था पहल शरीकषण न अजरन को मिकत क आशा द परनत बाद म उस नकर म डाल दया कलयाणदायक ानयोग का तयाग कराकर उस सासारक कमर-कतरवय क ओर घमा दया िजसस कमर क वश हय अजरन न बाद म बहत दख पाया मीठा अमत दखाकर उसका लालच दकर धोख स वष समान दख द दया

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इस परकार काल जीव को बहला-फ़सला कर सनत क छव बगाङता ह और उनह मिकत स दर रखता ह जीव म सनत क परत अवशवास और सदह उतपनन करता ह इस कालनरजन क छलबदध कहा-कहा तक गनाऊ उस कोई कोई ववक सनत ह पहचानता ह जब कोई ानमागर म पकका रहता ह तभी उस सतयमागर सझता ह तब वह यम क छल-कपट को समझता ह और उस पहचानता हआ उसस अलग हो जाता ह सदगर क शरण म जान पर यम का नाश हो जाता ह तथा अटल अय-सख परापत होता ह

सतयपथ क डोर

धमरदास बोल - परभ इस कालनरजन का चरतर मन समझ लया अब आप lsquoसतयपथ क डोरrsquo कहो िजसको पकङ कर जीव यमनरजन स अलग हो जाता ह कबीर बोल - धमरदास म तमको सतयपरष क डोर क पहचान कराता ह सतयपरष क शिकत को जब यह जीव जान लता ह तब काल कसाई उसका रासता नह रोक पाता सतयपरष क शिकत उनक एक ह नाल स उतपनन सोलह सत ह उन शिकतय क साथ ह जीव सतयलोक को जाता ह बना शिकत क पथ नह चल सकता शिकतहन जीव तो भवसागर म ह उलझा रहता ह य शिकतया सदगण क रप म बतायी गयी ह ान ववक सतय सतोष परमभाव धीरज मौन दया मा शील नहकमर तयाग वरागय शात नजधमर दसर का दख दर करन क लय ह तो करणा क जाती ह परनत अपन आप भी करणा करक अपन जीव का उदधार कर और सबको मतर समान समझ कर अपन मन म धारण कर इन शिकतसवरप सदगण को ह धारण कर जीव सतयलोक म वशराम पाता ह अतः मनषय िजस भी सथान पर रह अचछ तरह स समझ-बझ कर सतयरासत पर चल और मोह ममता काम करोध आद दगरण पर नयतरण रख इस तरह इस डोर क साथ जो सतयनाम को पकङता ह वह जीव सतयलोक जाता ह धमरदास बोल - परभ आप मझ पथ का वणरन करो और पथ क अतगरत वरिकत और गरहसथ क रहनी पर भी परकाश डालो कौन सी रहनी स वरागी वरागय कर और कौन सी रहनी स गरहसथ आपको परापत कर कबीर साहब बोल - धमरदास अब म वरागी क लय आचरण बताता ह वह पहल अभय पदाथर मास मदरा आद का तयाग कर तभी हस कहायगा वरागीसनत सतयपरष क अननयभिकत अपन हरदय म धारण कर कसी स भी दवष और वर न कर ऐस पापकम क तरफ़ दख भी नह सब जीव क परत हरदय म दयाभाव रख मन-वचन कमर स भी कसी जीव को न मार सतयान का उपदश और नाम ल जो मिकत क नशानी ह िजसस पापकमर अान तथा अहकार का समल नाश हो जायगा वरागी बरहमचयर वरत का पणररप स पालन कर कामभावना क दिषट स सतरी को सपशर न कर तथा वीयर को नषट न कर काम करोध आद वषय और छल-कपट को हरदय स पणरतया धो द और एकमन एकच होकर नाम का समरण कर धमरदास अब गरहसथ क भिकत सनो िजसको धारण करन स गरहसथ कालफ़ास म नह पङगा वह कागदशा (कौवा सवभाव) पापकमर दगरण और नीच सवभाव स पर तरह दर रह और हरदय म सभी जीव क परत दयाभाव बनाय

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रख मछल कसी भी पश का मास अड न खाय और न ह शराब पय इनको खाना-पीना तो दर इनक पास भी न जाय कयक य सब अभय-पदाथर ह वनसपत अकर स उतपनन अनाज फ़ल शाक सबजी आद का आहार कर सदगर स नाम ल जो मिकत क पहचान ह तब काल कसाई उसको रोक नह पाता ह जो गरहसथ जीव ऐसा नह करता वह कह भी नह बचता वह घोर दख क अिगनकनड म जल-जल कर नाचता ह और पागल हआ सा इधर-उधर को भटकता ह ह उस अनकानक कषट होत ह और वह जनम-जनम बारबार कठोर नकर म जाता ह वह करोङ जनम जहरल साप क पाता ह तथा अपनी ह वष जवाला का दख सहता हआ य ह जनम गवाता ह वह वषठा (मल टटट) म कङा कट का शरर पाता ह और इस परकार चौरासी क योनय क करोङ जनम तक नकर म पङा रहता ह और तमस जीव क घोर दख को कया कह मनषय चाह करोङ योग आराधना कर कनत बना सदगर क जीव को हान ह होती ह सदगर मन बदध पहच क पर का अगमान दन वाल ह िजसक जानकार वद भी नह बता सकत वद इसका-उसका यानी कमरयोग उपासना और बरहम का ह वणरन करता ह वद सतयपरष का भद नह जानता अतः करोङ म कोई ऐसा ववक सत होता ह जो मर वाणी को पहचान कर गरहण करता ह कालनरजन न खानी वाणी क बधन म सबको फ़साया हआ ह मदबदध अलप जीव उस चाल को नह पहचानता और अपन घर आननदधाम सतयलोक नह पहच पाता तथा जनम-मरण और नकर क भयानक कषट म ह फ़सा रहता ह

कौआ और कोयल स भी सीखो

कबीर बोल - धमरदास कोयल क बचच का सवभाव सनो और उसक गण को जानकर वचार करो कोयल मन स चतर तथा मीठ वाणी बोलन वाल होती ह जबक उसका वर कौवा पाप क खान होता ह कोयल कौव क घर (घसल) म अपना अणडा रख दती ह वपरत गण वाल दषट मतर कौव क परत कोयल न अपना मन एक समान कया तब सखा मतर सहायक समझ कर कौव न उस अणड को पाला और वह कालबदध कागा (कौवा) उस अणड क रा करता रहा समय क साथ कोयल का अणडा बङकर पकका हआ और समय आन पर फ़ट गया तब उसस बचचा नकला कछ दन बीत जान पर कोयल क बचच क आख ठक स खल गयी और वह समझदार होकर जानन समझन लगा फ़र कछ ह दन म उसक पख भी मजबत हो गय तब कोयल समय-समय पर आ आकर उसको शबद सनान लगी अपना नजशबद सनत ह कोयल का बचचा जाग गया यानी सचत हो गया और सच का बोध होत ह उस अपन वासतवक कल का वचन वाणी पयार लगी फ़र जब भी कागा कोयल क बचच को दाना खलान घमान ल जाय तब-तब कोयल अपन उस बचच को वह मीठा मनोहर शबद सनाय कोयल क बचच म जब उस शबद दवारा अपना अश अकरत हआ यानी उस अपनी असलपहचान का बोध हआ तो उस बचच का हरदय कौव क ओर स हट गया और एक दन कौव को अगठा दखा कर वह कोयल का बचचा उसस पराया होकर उङ चला कोयल का बचचा अपनी वाणी बोलता हआ चला और तब घबरा कर उसक पीछ-पीछ कागा वयाकल बहाल होकर

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दौङा उसक पीछ-पीछ भागता हआ कागा थक गया परनत उस नह पा सका फ़र वह बहोश हो गया और बाद म होश आन पर नराश होकर अपन घर लौट आया कोयल का बचचा जाकर अपन परवार स मलकर सखी हो गया और नराश कागा झक मारकर रह गया धमरदास िजस परकार कोयल का बचचा होता ह क वह कौव क पास रहकर भी अपना शबद सनत ह उसका साथ छोङकर अपन परवार स मल जाता ह इसी वध स जब कोई भी समझदार जीव मनषय अपन नजनाम और नजआतमा क पहचान क लय सचत हो जाता ह तो वह मझ (सदगर) स सवय ह मल जाता ह और अपन असल घर-परवार सतयलोक म पहच जाता ह तब म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कोयलसत जस शरा होई यहवध धाय मल मोह कोई नजघर सरत कर जो हसा तार ताह एकोर वशा धमरदास इसी तरह कोयल क बचच क भात कोई शरवीर मनषय कालनरजन क असलयत को जानकर सदगर क परत शबद (नामउपदश) क लय मर तरफ़ दौङता ह और नजघर सतयलोक क तरफ़ अपनी सरत (पर एकागरता) रखता ह म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कबीर बोल - धमरदास कौव क नीच चालचलन नीचबदध को छोङकर हस क रहनी सतयआचरण सदगण परम शील सवभाव शभकायर जस उम लण को अपनान स मनषय जीव सतयलोक जाता ह िजस परकार कागा क ककर श वाणी काव-काव कसी को अचछ नह लगती परनत कोयल क मधर वाणी कहकह सबक मन को भाती ह इसी परकार कोयल क तरह हसजीव वचारपवरक उमवाणी बोल जो कोई अिगन क तरह जलता हआ करोध म भरकर भी सामन आय तो हसजीव को शीतल जल क समान उसक तपन बझानी चाहय ान-अान क यह सह पहचान ह जो अानी होता ह वह कपट उगर तथा दषटबध वाला होता ह गर का ानी शषय शीतल और परमभाव स पणर होता ह उसम सतय ववक सतोष आद सदगण समाय होत ह ानी वह ह जो झठ पाप अनाचार दषटता कपट आद दगरण स यकत दषटबदध को नषट कर द और कालनरजन रपी मन को पहचान कर उस भला द उसक कहन म न आय जो ानी होकर कटवाणी बोलता ह वह ानी अान ह बताता ह उस अानी ह समझना चाहय जो मनषय शरवीर क तरह धोती खस कर मदान म लङन क लय तयार होता ह और यदधभम म आमन सामन जाकर मरता ह तब उसका बहत यश होता ह और वह सचचावीर कहलाता ह इसी परकार जीवन म अान स उतपनन समसत पाप दगरण और बराईय को परासत करक जो ानवान उतपनन होता ह उसी को ान कहत ह मखर अानी क हरदय म शभ सतकमर नह सझता और वह सदगर का सारशबद और सदगर क महतव को नह समझता मखर इसान स अधकतर कोई कछ कहता नह ह यद कसी नतरहन का पर यद वषठा (मल) पर पङ जाय तो उसक हसी कोई नह करता लकन यद आख होत हय भी कसी का पर वषठा स सन जाय तो सभी लोग उसको ह दोष दत ह धमरदास यह ान और अान ह ान और अान वपरत सवभाव वाल ह होत ह अतः ानीपरष हमशा सदगर का धयान कर और सदगर क सतयशबद को समझ सबक अनदर सदगर का वास ह पर वह कह गपत तो कह परकट ह इसलय सबको अपना मानकर जसा म अवनाशी आतमा ह वस ह सभी जीवातमाओ को समझ और ऐसा समझ कर समान भाव स सबस नमन कर और ऐसी गरभिकत क नशानी

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लकर रह रग कचचा होन क कारण इस दह को कभी भी नाशवान होन वाल जानकर भकत परहलाद क तरह अपन सतयसकलप म दढ़ मजबत होकर रह यदयप उसक पता हरणयकशयप न उसको बहत कषट दय लकन फ़र भी परहलाद न अडग होकर हरगण वाल परभभिकत को ह सवीकार कया ऐसी ह परहलाद कसी पककभिकत करता हआ सदगर स लगन लगाय रह और चौरासी म डालन वाल मोहमाया को तयाग कर भिकतसाधना कर तब वह अनमोल हआ हसजीव अमरलोक म नवास पाता ह और अटल होकर िसथर होकर जनम-मरण क आवागमन स मकत हो जाता ह

परमाथर क उपदश

कबीर साहब बोल - धमरदास अब म तमस परमाथर वणरन करता ह ान को परापत हआ ान क शरणागत हआ कोई जीव समसत अान और कालजाल को छोङ तथा लगन लगाकर सतयनाम का समरन कर असतय को छोङकर सतय क चाल चल और मन लगाकर परमाथर मागर को अपनाय धमरदास एक गाय को परमाथर गण क खान जानो गाय क चाल और गण को समझो गाय खत बाग आद म घास चरती ह जल पीती ह और अनत म दध दती ह उसक दध घी स दवता और मनषय दोन ह तपत होत ह गाय क बचच दसर का पालन करन वाल होत ह उसका गोबर भी मनषय क बहत काम आता ह परनत पापकमर करन वाला मनषय अपना जनम य ह गवाता ह बाद म आय पर होन पर गाय का शरर नषट हो जाता ह तब रास क समान मनषय उसका शरर का मास लकर खात ह मरन पर भी उसक शरर का चमढ़ा मनषय क लय बहत सख दन वाला होता ह भाई जनम स लकर मतय तक गाय क शरर म इतन गण होत ह इसलय गाय क समान गण वाला होन का यह वाणी उपदश सजजन परष गहण कर तो कालनरजन जीव क कभी हान नह कर सकता मनषयशरर पाकर िजसक बदध ऐसी शदध हो और उस सदगर मल तो वह हमशा को अमर हो जाय धमरदास परमाथर क वाणी परमाथर क उपदश सनन स कभी हान नह होती इसलय सजजन परमाथर का सहारा आधार लकर भवसागर स पार हो दलरभ मनषयजीवन क रहत मनषय सारशबद क उपदश का परचय और ान परापत कर फ़र परमाथर पद को परापत हो तो वह सतयलोक को जाय अहकार को मटा द और नषकाम-सवा क भावना हरदय म लाय जो अपन कल बल धन ान आद का अहकार रखता ह वह सदा दख ह पाता ह यह मनषय ऐसा चतर बदधमान बनता ह क सदगण और शभकमर होन पर कहता ह क मन ऐसा कया ह और उसका परा शरय अपन ऊपर लता ह और अवगण दवारा उलटा वपरत परणाम हो जान पर कहता ह क भगवान न ऐसा कर दया यह नर अस चातर बधमाना गण शभकमर कह हम ठाना ऊचकरया आपन सर लनहा औगण को बोल हर कनहा तब ऐसा सोचन स उसक शभकम का नाश हो जाता ह धमरदास सब आशाओ को छोङकर तम नराश (उदास

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वरकत वरागी भाव) भाव जीवन म अपनाओ और कवल एक सतयनाम कमाई क ह आशा करो और अपन कय शभकमर को कसी को बताओ नह सभी दवी-दवताओ भगवान स ऊचा सवपर गरपद ह उसम सदा लगन लगाय रहो जस जल म अभननरप स मछल घमती ह वस ह सदगर क शरीचरण म मगन रह सदगर दवारा दय शबदनाम म सदा मन लगाता हआ उसका समरन कर जस मछल कभी जल को नह भलती और उसस दर होकर तङपन लगती ह ऐस ह चतरशषय गर स उपदश कर उनह भल नह सतयपरष क सतयनाम का परभाव ऐसा ह क हसजीव फ़र स ससार म नह आता तम कछए क बचच क कला गण समझो कछवी जल स बाहर आकर रत मटट म गढढा खोदकर अणड दती ह और अणड को मटट स ढककर फ़र पानी म चल जाती ह परनत पानी म रहत हय भी कछवी का धयान नरनतर अणड क ओर ह लगा रहता ह वह धयान स ह अणड को सती ह समय परा होन पर अणड पषट होत ह और उनम स बचच बाहर नकल आत ह तब उनक मा कछवी उन बचच को लन पानी स बाहर नह आती बचच सवय चलकर पानी म चल जात ह और अपन परवार स मल जात ह धमरदास जस कछय क बचच अपन सवभाव स अपन परवार स जाकर मल जात ह वस ह मर हसजीव अपन नजसवभाव स अपन घर सतयलोक क तरफ़ दौङ उनको सतयलोक जात दखकर कालनरजन क यमदत बलहन हो जायग तथा व उनक पास नह जायग व हसजीव नभरय नडर होकर गरजत और परसनन होत हय नाम का समरन करत हय आननदपवरक अपन घर जात ह और यमदत नराश होकर झक मारकर रह जात ह सतयलोक आननद का धाम अनमोल और अनपम ह वहा जाकर हस परमसख भोगत ह हस स हस मलकर आपस म करङा करत ह और सतयपरष का दशरन पात ह जस भवरा कमल पर बसता ह वस ह अपन मन को सदगर क शरीचरण म बसाओ तब सदा अचल सतयलोक मलता ह अवनाशी शबद और सरत का मल करो यह बद और सागर क मलन क खल जसा ह इसी परकार जीव सतयनाम स मलकर उसी जसा सतयसवरप हो जाता ह

अनलपी का रहसय

कबीर साहब बोल - गर क महान कपा स मनषय साध कहलाता ह ससार स वरकत मनषय क लय गरकपा स बढ़कर कछ भी नह ह फ़र ऐसा साध अनलपी क समान होकर सतयलोक को जाता ह धमरदास तम अनलपी क रहसय उपदश को सनो अनलपी नरनतर आकाश म ह वचरण करता रहता ह और उसका अणड स उतपनन बचचा भी सवतः जनम लकर वापस अपन घर को लौट जाता ह परथवी पर बलकल नह उतरता अनलपी जो सदव आकाश म ह रहता ह और कवल दन-रात पवन यानी हवा क ह आशा करता ह अनलपी क रतकरया या मथन कवल दिषट स होता ह यानी व जब एक-दसर स मलत ह तो परमपवरक एक दसर को रतभावना क गहनदिषट स दखत ह उनक इस रतकरया वध स मादापी को गभर ठहर जाता ह फ़र कछ समय बाद मादा अनलपी अणडा दती ह पर उनक नरनतर उङन क कारण अणडा ठहरन का कोई आधार तो होता नह वहा तो बस कवल नराधार शनय ह शनय ह तब आधारहन होन क कारण अणडा धरती क ओर गरन लगता ह और नीच रासत म आत-आत ह पर तरह पककर तयार हो जाता ह और रासत म ह अणडा फ़टकर शश बाहर नकल आता ह और नीच गरत-गरत ह रासत म अनलपी आख खोल लता ह तथा

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कछ ह दर म उसक पख उङन लायक हो जात ह नीच गरत हय जब वह परथवी क नकट आता ह तब उस सवतः पता लग जाता ह क यह परथवी मर रहन का सथान नह ह तब वह अनलपी अपनी सरत क सहार वापस अतर क ओर लौटन लगता ह जहा उसक माता-पता का नवास ह अनलपी कभी अपन बचच को लन परथवी क ओर नह आत बिलक बचचा सवय ह पहचान लता ह क यह परथवी मरा घर नह ह और वापस पलटकर अपन असलघर क ओर चला जाता ह धमरदास ससार म बहत स पी रहत ह परनत व अनल पी क समान गणवान नह होत ऐस ह कछ ह बरल जीव ह जो सदगर क ानअमत को पहचानत ह नधरनया सब ससार ह धनवनता नह कोय धनवनता ताह कहो जा त नाम रतन धन होय धमरदास इसी अनलपी क तरह जो जीव ानयकत होकर होश म आ जाता ह तो वह इस काल कलपनालोक को पार करक सतयलोक मिकतधाम म चला जाता ह जो मनषय जीव इस ससार क सभी आधार को तयाग कर एक सदगर का आधार और उनक नाम स वशवासपवरक लगन लगाय रहता ह और सब परकार का अभमान तयाग कर रात-दन गरचरण क अधीन रहता हआ दासभाव स उनक सवा म लगा रहता ह तथा धन घर और परवार आद का मोह नह करता पतर सतरी तथा समसत वषय को ससार का ह समबनध मानकर गरचरण को हरदय स पकङ रहता ह ताक चाहकर भी अलग न हो इस परकार जो मनषय साध सत गरभिकत क आचरण म लन रहता ह सदगर क कपा स उसक जनम-मरण रपी अतयनत दखदायी कषट का नाश हो जाता ह और वह साध सतयलोक को परापत होता ह साधक या भकतमनषय मन-वचन कमर स पवतर होकर सदगर का धयान कर और सदगर क आानसार सावधान होकर चल तब सदगर उस इस जङदह स पर नामवदह जो शाशवतसतय ह उसका साातकार करा क सहजमिकत परदान करत ह

धमरदास यह कठन कहानी

कबीर साहब बोल - सतयान बल स सदगर काल पर वजय परापत कर अपनी शरण म आय हसजीव को सतयलोक ल जात ह जहा हसजीव मनषय सतयपरष क दशरन पाता ह और अतआननद परापत करता ह फ़र वह वहा स लौटकर कभी भी इस कषटदायक दखदायी ससार म वापस नह आता यानी उसका मो हो जाता ह धमरदास मर वचन उपदश को भल परकार स गरहण करो िजास इसान को सतयलोक जान क लय सतय क मागर पर ह चलना चाहय जस शरवीर योदधा एक बार यदध क मदान म घसकर पीछ मढ़कर नह दखता बिलक नभरय होकर आग बढ़ जाता ह ठक वस ह कलयाण क इचछा रखन वाल िजास साधक को भी सतय क राह पर चलन क बाद पीछ नह हटना चाहय अपन पत क साथ सती होन वाल नार और यदधभम म सर कटान वाल वीर क महान आदशर को

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दख-समझ कर िजस परकार मनषय दया सतोष धयर मा वराग ववक आद सदगण को गरहण कर अपन जीवन म आग बढ़त ह उसी अनसार दढ़सकलप क साथ सतय सनतमत सवीकार करक जीवन क राह म आग बढ़ना चाहय जीवत रहत हय भी मतकभाव अथारत मान अपमान हान लाभ मोहमाया स रहत होकर सतयगर क बताय सतयान स इस घोर काल कषट पीङा का नवारण करना चाहय धमरदास लाख-करोङ म कोई एक बरला मनषय ह ऐसा होता ह जो सती शरवीर और सनत क बताय हय उदाहरण क अनसार आचरण करता ह और तब उस परमातमा क दशरन साातकार परापत होता ह धमरदास बोल - साहब मझ मतकभाव कया होता ह इस पणररप स सपषट बतान क कपा कर कबीर बोल - धमरदास जीवत रहत हय जीवन म मतकदशा क कहानी बहत ह कठन ह इस सदगर क सतयान स कोई बरला ह जान सकता ह सदगर क उपदश स ह यह जाना जाता ह धमरदास यह कठन कहानी गरमत त कोई बरल जानी जीवन म मतकभाव को परापत हआ सचचा मनषय अपन परमलय मो को ह खोजता ह वह सदगर क शबदवचार को अचछ तरह स परापत करक उनक दवारा बताय सतयमागर का अनसरण करता ह उदाहरणसवरप जस भरगी (पखवाला चीटा जो दवाल खङक आद पर मटट का घर बनाता ह) कसी मामल स कट क पास जाकर उस अपना तज शबद घघघ सनाता ह तब वह कट उसक गरान रपी शबदउपदश को गरहण करता ह गजार करता हआ भरगी अपन ह तज शबद सवर क गजार सना-सनाकर कट को परथवी पर डाल दता ह और जो कट उस भरगीशबद को धारण कर तब भरगी उस अपन घर ल जाता ह तथा गजार-गजार कर उस अपना lsquoसवात शबदrsquo सनाकर उसक शरर को अपन समान बना लता ह भरगी क महान शबदरपी सवर-गजार को यद कट अचछ तरह स सवीकार कर ल तो वह मामल कट स भरगी क समान शिकतशाल हो जाता ह फ़र दोन म कोई अतर नह रहता समान हो जाता ह असखय झीगर कट म स कोई-कोई बरला कट ह उपयकत और अनकल सख परदान करान वाला होता ह जो भरगी क lsquoपरथमशबदrsquo गजार को हरदय स सवीकारता ह अनयथा कोई दसर और तीसर शबद को ह शबद सवर मान कर सवीकार कर लता ह तन-मन स रहत भरगी क उस महान शबदरपी गजार को सवीकार करन म ह झीगरकट अपना भला मानत ह भरगी क शबद सवर-गजार को जो कट सवीकार नह करता तो फ़र वह कटयोन क आशरय म ह पङा रहता ह यानी वह मामल कट स शिकतशाल भरगी नह बन सकता धमरदास यह मामल कट का भरगी म बदलन का अदभत रहसय ह जो क महान शा परदान करन वाला ह इसी परकार जङबदध शषय जो सदगर क उपदश को हरदय स सवीकार करक गरहण करता ह उसस वह वषयवकार स मकत होकर अानरपी बधन स मकत होकर कलयाणदायी मो को परापत होता ह धमरदास भरगीभाव का महतव और शरषठता को जानो भरगी क तरह यद कोई मनषय नशचयपणर बदध स गर क उपदश को सवीकार कर तो गर उस अपन समान ह बना लत ह िजसक हरदय म गर क अलावा दसरा कोई भाव नह होता और वह सदगर को समपरत होता ह वह मो को परापत होता ह इस तरह वह नीचयोन म बसन वाल कौव स बदलकर उमयोन को परापत हो हस कहलाता ह

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साध का मागर बहत कठन ह

कबीर साहब बोल - इस मनषय को कौव क चाल सवभाव (जो साधारण मनषय क होती ह) आद दगरण को तयागकर हस सवभाव को अपनाना चाहय सदगर क शबदउपदश को गरहण कर मन-वचन वाणी कमर स सदाचार आद सदगण स हस क समान होना चाहय धमरदास जीवत रहत हय यह मतकसवभाव का अनपमान तम धयान स सनो इस गरहण करक ह कोई बरला मनषय जीव ह परमातमा क कपा को परापत कर साधनामागर पर चल सकता ह तम मझस उस मतकभाव का गहन रहसय सनो शषय मतकभाव होकर सतयान का उपदश करन वाल सदगर क शरीचरण क पर भाव स सवा कर मतकभाव को परापत होन वाला कलयाण क इचछा रखन वाला िजास अपन हरदय म मा दया परम आद गण को अचछ परकार स गरहण कर और जीवन म इन गण क वरत नयम का नवारह करत हय सवय को ससार क इस आवागमन क चकर स मकत कर जस परथवी को तोङा खोदा जान पर भी वह वचलत नह होती करोधत नह होती बिलक और अधक फ़ल फ़ल अनन आद परदान करती ह अपन-अपन सवभाव क अनसार कोई मनषय चनदन क समान परथवी पर फ़ल फ़लवार आद लगाता हआ सनदर बनाता ह तो कोई वषठा मल आद डालकर गनदा करता ह कोई-कोई उस पर कष खती आद करन क लय जताई-खदाई आद करता ह लकन परथवी उसस कभी वचलत न होकर शातभाव स सभी दख सहन करती हयी सभी क गण-अवगण को समान मानती ह और इस तरह क कषट को और अचछा मानत हय अचछ फ़सल आद दती ह धमरदास अब और भी मतकभाव सनो य अतयनत दरह कठन बात ह मतकभाव म िसथत सत गनन क भात होता ह जस कसान गनन को पहल काट छाटकर खत म बोकर उगाता ह फ़र नय सर स पदा हआ गनना कसान क हाथ म पङकर पोर-पोर स छलकर सवय को कटवाता ह ऐस ह मतकभाव का सत सभी दख सहन करता ह फ़र वह कटा-छला हआ गनना अपन आपको कोलह म परवाता ह िजसम वह पर तरह स कचल दया जाता ह और फ़र उसम स सारा रस नकल जान क बाद उसका शष भाग खो बन जाता ह फ़र आप (जल) सवरप उस रस को कङाह म उबाला जाता ह उसक अपन शरर क रस को आग पर तपान स गङ बनता ह और फ़र उस और अधक आच दकर तपा-तपाकर रगङ-रगङ कर खाड बनायी जाती ह खाड बन जान पर फ़र स उसम ताप दया जाता ह और फ़र तब उसम स जो दाना बनता ह उस चीनी कहत ह चीनी हो जान पर फ़र स उस तपाकर कषट दकर मशरी बनात ह धमरदास मशरी स पककर lsquoकदrsquo कहलाया तो सबक मन को अचछा लगा इस वध स गनन क भात जो शषय गर क आा अनसार आचरण वयवहार करता हआ सभी परकार क कषट-दख सहन करता ह वह सदगर क कपा स सहज ह भवसागर को पार कर लता ह धमरदास जीवत रहत हय मतकभाव अपनाना बहद कठन ह इस लाख-करोङ म कोई सरमा सत ह अपना पाता ह जबक इस सनकर ह सासारक वषयवकार म डबा कायर वयिकत तो भय क मार तन-मन स जलन लगता

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ह सवीकारना अपनाना तो बहत दर क बात ह वह डर क मार भागा हआ इस ओर (भिकत क तरफ़) मङकर भी नह दखता जस गनना सभी परकार क दख सहन करता ह ठक ऐस ह शरण म आया हआ शषय गर क कसौट पर दख सहन करता हआ सबको सवार और सदा सबको सख परदान करन वाल सवरहत क कायर कर वह मतकभाव को परापत गर क ानभद को जानन वाला ममर साधक शषय नशचय ह सतयलोक को जाता ह वह साध सासारक कलश और नज मन-इिनदरय क वषयवकार को समापत कर दता ह ऐसी उम वरागय िसथत को परापत अवचल साध स सामानय मनषय तो कया दवता तक अपन कलयाण क आशा करत ह धमरदास साध का मागर बहत ह कठन ह जो साधता क उम सतयता पवतरता नषकाम भाव म िसथत होकर साधना करता ह वह सचचा साध ह वह सचच अथ म साध ह जो अपनी पाच इिनदरय आख कान नाक जीभ कामदर को वश म रखता ह और सदगर दवारा दय सतयनाम अमत क दन-रात चखता ह

लटरा कामदव

कबीर साहब बोल - धमरदास साधना करत समय सबस पहल साध को च (आख) इिनदरय को साधना चाहय यानी आख पर नयतरण रख वह कसी वषय पर इधर-उधर न भटक उस भल परकार नयतरण म कर और गर क बताय ानमागर पर चलता हआ सदव उनक दवारा दया हआ नाम भावपणर होकर समरन कर पाच-ततव स बन इस शरर म ानइिनदरय आख का समबनध अिगनततव स ह आख का वषय रप ह उसस ह हम ससार को वभनन रप म दखत ह जसा रप आख को दखायी दता ह वसा ह भाव मन म उतपनन होता ह आख दवारा अचछा-बरा दोन दखन स राग-दवष भाव उतपनन होत ह इस मायारचत ससार म अनकानक वषय पदाथर ह िजनह दखत ह उनह परापत करन क तीवर इचछा स तन और मन वयाकल हो जात ह और जीव य नह जानता क य वषयपदाथर उसका पतन करन वाल ह इसलय एक सचच साध को आख पर नयतरण करना होता ह सनदर रप आख को दखन म अचछा लगता ह इसी कारण सनदर रप को आख क पजा कहा गया ह और जो दसरा रप करप ह वह दखन म अचछा नह लगता इसलय उस कोई नह दखना चाहता असल साध को चाहय क वह इस नाशवान शरर क रप-करप को एक ह करक मान और सथलदह क परत ऐस भाव स उठकर इसी शरर क अनदर जो शाशवत अवनाशी चतन आतमा ह उसक दशरन को ह सख मान जो ान दवारा lsquoवदहिसथतrsquo म परापत होता ह धमरदास कान इिनदरय का समबनध आकाशततव स ह और इसका वषय शबद सनना ह कान सदा ह अपन अनकल मधर शभशबद को ह सनना चाहत ह कान दवारा कठोर अपरय शबद सनन पर च करोध क आग म जलन लगता ह िजसस बहत अशात होकर बचनी होती ह सचच साध को चाहय क वह बोल-कबोल (अचछ-खराब वचन) दोन को समान रप स सहन कर सदगर क उपदश को धयान म रखत हय हरदय को शीतल और शात ह रख

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धमरदास अब नासका यानी नाक क वशीकरण क बार म भी सनो नाक का वषय गध होता ह इसका समबनध परथवीततव स ह अतः नाक को हमशा सगध क चाह रहती ह दगध इस बलकल अचछ नह लगती लकन कसी भी िसथरभाव साधक साध को चाहय क वह ततववचार करता हआ इस वश म रख यानी सगनध-दगरनध म समभाव रह अब िजभया यानी जीभ इिनदरय क बार म जानो जीभ का समबनध जलततव स ह और इसका वषय रस ह यह सदा वभनन परकार क अचछ-अचछ सवाद वाल वयजन को पाना चाहती ह इस ससार म छह रस मीठा कङवा खटटा नमकन चरपरा कसला ह जीभ सदा ऐस मधर सवाद क तलाश म रहती ह साध को चाहय क वह सवाद क परत भी समभाव रह और मधर अमधर सवाद क आसिकत म न पङ रख-सख भोजन को भी आननद स गहण कर जो कोई पचामत (दध दह शहद घी और मशरी स बना पदाथर) को भी खान को लकर आय तो उस दखकर मन म परसननता आद का वशष अनभव न कर और रख-सख भोजन क परत भी अरच न दखाय धमरदास वभनन परकार क सवाद लोलपता भी वयिकत क पतन का कारण बनती ह जीभ क सवाद क फ़र म पङा हआ वयिकत सहरप स भिकत नह कर पाता और अपना कलयाण नह कर पाता जबतक जीभ सवादरपी कए म लटक ह और तीण वषरपी वषय का पान कर रह ह तबतक हरदय म राग-दवष मोह आद बना ह रहगा और जीव सतयनाम का ान परापत नह कर पायगा धमरदास अब म पाचवी काम-इिनदरय यानी जननिनदरय क बार म समझाता ह इसका समबनध जलततव स ह िजसका कायर मतर वीयर का तयाग और मथन करना होता ह यह मथनरपी कटल वषयभोग क पापकमर म लगान वाल महान अपराधी इनदर ह जो अकसर इसान को घोर नरक म डलवाती ह इस इनदर क दवारा िजस दषटकाम क उतप होती ह उस दषट परबल कामदव को कोई बरला साध ह वश म कर पाता ह कामवासना म परवत करन वाल कामनी का मोहनीरप भयकर काल क खान ह िजसका गरसत जीव ऐस ह मर जाता ह और कोई मोसाधन नह कर पाता अतः गर क उपदश स कामभावना का दमन करन क बजाय भिकत उपचार स शमन करना चाहय ------------------ (यहा बात सफ़र औरत क न होकर सतरी-परष म एक-दसर क परत होन वाल कामभावना क लय ह कयक मो और उदधार का अधकार सतरी-परष दोन को ह समान रप स ह अतः जहा कामनी-सतरी परष क कलयाण म बाधक ह वह कामीपरष भी सतरी क मो म बाधा समान ह ह कामवषय बहत ह कठन वकार ह और ससार क सभी सतरी-परष कह न कह कामभावना स गरसत रहत ह कामअिगन दह म उतपनन होन पर शरर का रोम-रोम जलन लगता ह कामभावना उतपनन होत ह वयिकत क मन बदध स नयतरण समापत हो जाता ह िजसक कारण वयिकत का शाररक मानसक और आधयाितमक पतन होता ह) धमरदास कामी करोधी लालची वयिकत कभी भिकत नह कर पात सचची भिकत तो कोई शरवीर सत ह करता ह जो जात वणर और कल क मयारदा को भी छोङ दता ह

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कामी करोधी लालची इनस भिकत न होय भिकत कर कोई सरमा जातवणर कल खोय काम जीवन क वासतवक लय मो क मागर म सबस बढ़ा शतर ह अतः इस वश म करना बहत आवशयक ह ह धमरदास इस कराल वकराल काम को वश म करन का अब उपाय भी सनो जब काम शरर म उमङता हो या कामभावना बहद परबल हो जाय तो उस समय बहत सावधानी स अपन आपको बचाना चाहय इसक लए सवय क वदहरप को या आतमसवरप को वचारत हय सरत (एकागरता) वहा लगाय और सोच क म य शरर नह ह बिलक म शदधचतनय आतमसवरप ह और सतयनाम तथा सदगर (यद ह) का धयान करत हय वषल कामरस को तयाग कर सतयनाम क अमतरस का पान करत हय इसक आननददायी अनभव को परापत कर काम शरर म ह उतपनन होता ह और मनषय अानवश सवय को शरर और मन जानता हआ ह इस भोगवलास म परवत होता ह जब वह जान लगा क वह पाच-ततव क बनी य नाशवान जङदह नह ह बिलक वदह अवनाशी शाशवत चतनय आतमा ह तब ऐसा जानत ह वह इस कामशतर स पर तरह स मकत ह हो जायगा मनषय शरर म उमङन वाला य कामवषय अतयनत बलवान और बहत भयकर कालरप महाकठोर और नदरयी ह इसन दवता मनषय रास ऋष मन य गधवर आद सभी को सताया हआ ह और करोङ जनम स उनको लटकर घोर पतन म डाला ह और कठोर नकर क यातनाओ म धकला ह इसन कसी को नह छोङा सबको लटा ह लकन जो सत साधक अपन हरदयरपी भवन म ानरपी दपक का पणयपरकाश कय रहता हो और सदगर क सारशबद उपदश का मनन करत हय सदा उसम मगन रहता हो उसस डरकर य कामदवरपी चोर भाग जाता ह जो वषया सतन तजी मढ़ ताह लपटात नर जय डार वमन कर शवान सवाद सो खात कबीर साहब न य दोहा नीचकाम क लय ह बोला ह इस कामरपी वष को िजस सत न एकदम तयागा ह मखर मनषय इस काम स उसी तरह लपट रहत ह जस मनषय दवारा कय गय वमन यानी उलट को का परम स खाता ह

आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह

कबीर साहब बोल - धमरदास जबतक दह स पर वदहनाम का धयान होन म नह आता तबतक जीव इस असार ससार म ह भटकता रहता ह वदहधयान और वदहनाम इन दोन को अचछ तरह स समझ लता ह तो उसक सभी सदह मट जात ह जबलग धयान वदह न आव तबलग िजव भव भटका खाव धयानवदह और नामवदहा दोउ लख पाव मट सदहा

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मनषय का पाच-ततव स बना यह शरर जङ परवतरनशील तथा नाशवान ह यह अनतय ह इस शरर का एक नाम-रप होता ह परनत वह सथायी नह रहता राम कषण ईसा लमी दगार शकर आद िजतन भी नाम इस ससार म बोल जात ह य सब शरर नाम ह वाणी क नाम ह लकन इसक वपरत इस जङ और नाशवान दह स पर उस अवनाशी चतनय शाशवत और नज आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम वदह ह और धवनरप ह वह सतय ह वह सवपर ह अतः मन स सतयनाम का समरन करो वहा दन-रात क िसथत तथा परथवी अिगन वाय आद पाच-ततव का सथान नह ह वहा धयान लगान स कसी भी योन क जनम-मरण का दख जीव को परापत नह होता वहा क सख आननद का वणरन नह कया जा सकता जस गग को सपना दखता ह वस ह जीवत जनम को दखो जीत जी इसी जनम म दखो धमरदास धयान करत हय जब साधक का धयान णभर क लय भी lsquoवदहrsquo परमातमा म लन हो जाता ह तो उस ण क महमा आननद का वणरन करना असभव ह ह भगवान आद क शरर क रप तथा नाम को याद करक सब पकारत ह परनत उस वदहसवरप क वदहनाम को कोई बरला ह जान पाता ह जो कोई चारो यग सतयग तरता दवापर कलयग म पवतर कह जान वाल काशी नगर म नवास कर नमषारणय बदरनाथ आद तीथ पर जाय और गया दवारका परयाग म सनान कर परनत सारशबद (नवारणी नाम) का रहसय जान बना वह जनम-मरण क दख और बहद कषटदायी यमपर म ह जायगा और वास करगा धमरदास चाह कोई अड़सठ तीथ मथरा काशी हरदवार रामशवर गगासागर आद म सनान कर ल चाह सार परथवी क परकमा कर ल परनत सारशबद का ान जान बना उसका भरम अान नह मट सकता धमरदास म कहा तक उस सारशबद क नाम क परभाव का वणरन कर जो उसका हसदा लकर नयम स उसका समरन करगा उसका मतय का भय सदा क लय समापत हो जायगा सभी नाम स अदभत सतयपरष का सारनाम सफ़र सदगर स ह परापत होता ह उस सारनाम क डोर पकङकर ह भकतसाधक सतयलोक को जाता ह उस सारनाम का धयान करन स सदगर का वह हसभकत पाच-ततव स पर परमततव म समा जाता ह अथारत वसा ह हो जाता ह

वदहसवरप सारशबद

कबीर साहब बोल - धमरदास मो परदान करन वाला सारशबद वदहसवरप वाला ह और उसका वह अनपमरप नःअर ह पाच-ततव और पचचीस परकत को मलाकर सभी शरर बन ह परनत सारशबद इन सबस भी पर वदहसवरप वाला ह कहन-सनन क लय तो भकतसत क पास वस लोकवद आद क कमरकाड उपासना काड ानकाड योग मतर आद स समबिनधत सभी तरह क शबद ह लकन सतय यह ह क सारशबद स ह जीव का उदधार होता ह परमातमा का अपना सतयनाम ह मो का परमाण ह और सतयपरष का समरन ह सार ह बाहयजगत स धयान हटाकर अतमरखी होकर शातच स जो साधक इस नाम क अजपा जाप म लन होता ह

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उसस काल भी मरझा जाता ह सारशबद का समरन सम और मो का परा मागर ह इस सहज मागर पर शरवीर होकर साधक को मोयातरा करनी चाहय धमरदास सारशबद न तो वाणी स बोला जान वाला शबद ह और न ह उसका मह स बोलकर जाप कया जाता ह सारशबद का समरन करन वाला काल क कठन परभाव स हमशा क लय मकत हो जाता ह इसलय इस गपत आदशबद क पहचान कराकर इन वासतवक हसजीव को चतान क िजममवार तमह मन द ह धमरदास इस मनषयशरर क अनदर अननत पखङय वाल कमल ह जो अजपा जाप क इसी डोर स जङ हय ह तब उस बहद समदवार दवारा मन-बदध स पर इिनदरय स पर सतयपद का सपशर होता ह यानी उस परापत कया जाता ह शरर क अनदर िसथत शनयआकाश म अलौककपरकाश हो रहा ह वहा lsquoआदपरषrsquo का वास ह उसको पहचानता हआ कोई सदगर का हससाधक वहा पहच जाता ह और आदसरत (मन बदध च अहम का योग स एक होना) वहा पहचाती ह हसजीव को सरत िजस परमातमा क पास ल जाती ह उस lsquoसोऽहगrsquo कहत ह अतः धमरदास इस कलयाणकार सारशबद को भलभात समझो सारशबद क अजपा जाप क यह सहज धन अतरआकाश म सवतः ह हो रह ह अतः इसको अचछ तरह स जान-समझ कर सदगर स ह लना चाहय मन तथा पराण को िसथर कर मन तथा इिनदरय क कम को उनक वषय स हटाकर सारशबद का सवरप दखा जाता ह वह सहज सवाभावक lsquoधवनrsquo बना वाणी आद क सवतः ह हो रह ह इस नाम क जाप को करन क लय हाथ म माला लकर जाप करन क कोई आवशयकता ह नह ह इस परकार वदह िसथत म इस सारशबद का समरन हससाधक को सहज ह अमरलोक सतयलोक पहचा दता ह सतयपरष क शोभा अगम अपार मन-बदध क पहच स पर ह उनक एक-एक रोम म करोङ सयर चनदरमा क समान परकाश ह सतयलोक पहचन वाल एक हसजीव का परकाश सोलह सयर क बराबर होता ह ----------------------- समापत बहत दनन तक थ हम भटक सन सन बात बरानी जब कछबात उर म थर भयी सरतनरत ठहरानी रमता क सग समता हय गयी परो भनन प पानी हसदा परमहस दा समाधदा शिकतदा सारशबद दा नःअर ान वदहान सहजयोग सरतशबद योग नादबनद योग राजयोग और उजारतमक lsquoसहजधयानrsquo पदधत क वासतवक और परयोगातमक अनभव सीखन समझन होन हत समपकर कर

  • लखकीय
  • अनरागसागर की कहानी
  • कबीर साहब और धरमदास
  • आदिसषटि की रचना
  • अषटागीकनया और कालनिरजन
  • वद की उतपतति
  • तरिदव दवारा परथम समदरमथन
  • बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना
  • अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना
  • काल-निरजन का धोखा
  • चार खानि चौरासी लाख योनियो स आय मनषय क लकषण
  • चौरासी कयो बनी
  • कालनिरजन की चालबाजी
  • तपतशिला पर काल पीङित जीवो की पकार
  • कालनिरजन और कबीर का समझौता
  • राम-नाम की उतपतति
  • ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह
  • कबीर और रावण
  • कबीर और रानी इनदरमती
  • रानी इनदरमती का सतयलोक जाना
  • कबीर का सदरशन शवपच को जञान दना
  • काल कसाई जीव बकरा
  • समदर और राम की दशमनी का कबीर दवारा निबटारा
  • धरमदास क परवजनम की कहानी
  • कालदत नारायण दास की कहानी
  • कालनिरजन का छलावा बारह पथ
  • चङामणि का जनम
  • काल का अपन दतो को चाल समझाना
  • काल क चार दत
  • सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव
  • गर-शिषय विचार-रहनी
  • शरीरजञान परिचय
  • मन की कपट करामात
  • कपटी कालनिरजन का चरितर
  • सतयपथ की डोर
  • कौआ और कोयल स भी सीखो
  • परमारथ क उपदश
  • अनलपकषी का रहसय
  • धरमदास यह कठिन कहानी
  • साध का मारग बहत कठिन ह
  • लटरा कामदव
  • आतमसवरप परमातमा का वासतविक नाम lsquoविदहrsquo ह
  • विदहसवरप सारशबद
Page 5: प्रस्तुतकतार् राजीव कुलश्रेष्ठ" से वाणी यानी कबीर धमर्दास संवाद को प्रका

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नाल स सोलह अश (सत) परकट कय उनम पाचव अश कालपरष को छोड़कर सभी सत आनद को दन वाल थ और सतपरष दवारा बनाय हसदप म आनदपवरक रहत थ लकन कालपरष सबस भयकर और वकराल था वह अपन भाइय क तरह हसदप म न जाकर मानसरोवर दप क नकट चला आया और सतपरष क परत घोर तपसया करन लगा लगभग चसठ यग तक तपसया हो जान पर उसन सतपरष क परसनन होन पर तीनलोक सवगर धरती और पाताल माग लए और फर स कई यग तक तपसया क तब सतपरष न अषटागी कनया (आदशिकत आदया भगवती आद) को सिषटबीज क साथ कालपरष क पास भजा (इसस पहल सतपरष न कमर नाम क सत को भजकर उसक तपसया करन क इचछा क वजह पछ) अषटागीकनया बहद सनदर और मनमोहक अग वाल थी वह कालपरष को दखकर भयभीत हो गयी कालपरष उस पर मोहत हो गया और उसस रतकरया का आगरह कया (यह परथम सतरी-परष का काममलन था) और दोन रतकरया म लन हो गए रतकरया बहत लमब समय तक चलती रह और इसस बरहमा वषण शकर का जनम हआ अषटागीकनया उनक साथ आननदपवरक रहन लगी पर कालपरष क इचछा कछ और ह थी पतर क जनम क उपरात कछ समय बाद कालपरष अदशय हो गया और भवषय क लए आदशिकत को नदश द गया तब आदशिकत न अपन अश स तीन कनयाय उतपनन क और उनह समदर म छपा दया फ़र उसन तीन पतर को समदरमथन क आा द और समदरमथन क दवारा परापत हयी तीन कनयाय अपन पतर को द द य कनयाय सावतरी लमी और पावरती थी तीन पतर न मा क कहन पर उनह अपनी पतनी क रप म सवीकार लया आदयाशिकत न (कालपरष क कह अनसार यह बात कालपरष दोबारा कहन आया था कयक पहल अषटागी न जब पतर को इसस पहल सिषटरचना क लय कहा तो उनहन अनसना कर दया) अपन तीन पतर क साथ सिषट क रचना क आदयाशिकत न खद अडज यानी अड स पदा होन वाल जीव को रचा बरहमा न पडज यानी पड स शरर स पदा होन वाल जीव क रचना क वषण न उषमज यानी पानी गम स पदा होन वाल जीव कट पतग ज आद क रचना क शकर न सथावर यानी पङ पौध पहाड़ पवरत आद जीव क रचना क और फर इन सब जीव को चारखान वाल चौरासी लाख योनय म डाल दया इनम मनषयशरर क रचना सवम थी इधर बरहमा वषण शकर न अपन पता कालपरष क बार म जानन क बहत कोशश क पर व सफल न हो सक कयक वो अदशय था और उसन आदयाशिकत स कह रखा था क वो कसी को उसका पता न बताय फर वो सब जीव क अनदर lsquoमनrsquo क रप म बठ गया और जीव को तरह-तरह क वासनाओ म फ़सान लगा और समसत जीव बहद दख भोगन लग कयक सतपरष न उसक कररता दखकर शाप दया था क वह एकलाख जीव को नतय खायगा और सवालाख को उतपनन करगा समसत जीव उसक करर वयवहार स हाहाकार करन लग और अपन बनान वाल को पकारन

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लग सतपरष को य जानकर बहत गससा आया क काल समसत जीव पर बहद अतयाचार कर रहा ह (काल जीव को तपतशला पर रखकर पटकता और खाता था) तब सतपरष न ानीजी (कबीर साहब) को उसक पास भजा कालपरष और ानीजी क बीच काफ़ झङप हयी और कालपरष हार गया तपतशला पर तङपत जीव न ानीजी स पराथरना क क वो उस इसक अतयाचार स बचाय ानीजी न उन जीव को सतपरष का नाम धयान करन को कहा इस नाम क धयान करत ह जीवमकत होकर ऊपर (सतलोक) जान लग यह दखकर काल घबरा गया और उसन ानीजी स एक समझौता कया क जो जीव इस परमनाम (वाणी स पर) को सतगर स परापत कर लगा वह यहा स मकत हो जायगा ानीजी न कहा - म सवय आकर सभी जीव को यह नाम दगा नाम क परभाव स व यहा स मकत होकर आननदधाम को चल जायग काल न कहा - म और माया (उसक पतनी) जीव को तरह तरह क भोगवासना म फ़सा दग िजसस जीव भिकत भल जायगा और यह फ़सा रहगा ानीजी न कहा - लकन उस सतनाम क अदर जात ह जीव म ान का परकाश हो जायगा और जीव तमहार सभी चाल समझ जायगा कालनरजन को चता हयी उसन बहद चालाक स कहा - म जीव को मिकत और उदधार क नाम पर तरह-तरह क जात धमर पजा पाठ तीथर वरत आद म ऐसा उलझाऊगा क वह कभी अपनी असलयत नह जान पायगा साथ ह म तमहार चलाय गय पथ म भी अपना जाल फ़ला दगा इस तरह अलपबदध जीव यह नह सोच पायगा क सचचाई आखर ह कया म तमहार असल नाम म भी अपन नाम मला दगा आद अब कयक समझौता हो गया था ानीजी वापस लौट गय वासतव म मनरप म यह काल ह ह जो हम तरह-तरह क कमरजाल म फसाता ह और फर नकर आद भोगवाता ह लकन वासतव म यह आतमा सतपरष का अश होन स बहत शिकतशाल ह पर भोग वासनाओ म पड़कर इसक य दगरत हो गई ह इसस छटकारा पान का एकमातर उपाय सतगर क शरण और महामतर का धयान करना ह ह ---------------------- परसततकतार राजीव कलशरषठ चारगर ससार म धमरदास बड़ अश मिकतराज़ लख दिनहया अटल बयालस वश

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1 सदशरन नाम साहब 2 कलपत नाम साहब 3 परमोध गर 4 कवलनाम साहब 5 अमोल नाम 6 सरतसनह नाम 7 हककनाम 8 पाकनाम 9 परगटनाम 10 धीरज नाम 11 उगरनाम 12 दयानाम 13 गरनधमन नाम साहब 14 परकाश मननाम साहब 15 उदतमन नाम साहब 16 मकनद मननाम 17 अधरनाम 18 उदयनाम 19 ाननाम 20 हसमण नाम 21 सकत नाम 22 अगरमण नाम 23 रसनाम 24 गगमण नाम 25 पारस नाम 26 जागरत नाम 27 भरगमण नाम 28 अकह नाम 29 कठमण नाम 30 सतोषमण नाम 31 चातरक नाम 32 आदनाम 33 नहनाम 34 अजरनाम 35 महानाम 36 नजनाम 37 साहब नाम 38 उदय नाम 39 करणा नाम 40 उधवरनाम 41 दघरनाम 42 महामण नाम

कबीर साहब और धमरदास

कबीर साहब क शषय धनी धमरदास का जनम बहत ह धनी वशय परवार म हआ था बाद म कबीर साहब क शरण म आकर उनस परमातम-ान लकर धमरदास न अपना जीवन साथरक और परपणर कया इस तरह उनह धमरदास क जगह lsquoधनी धमरदासrsquo कहा जान लगा धमरदास वषणव थ और ठाकर-पजा कया करत थ अपनी मत रपजा क इसी करम म धमरदास मथरा आय जहा उनक भट कबीर साहब स हयी धमरदास दयाल वयवहार और पवतर जीवन जीन वाल इसान थ अतयधक धन सप क बाद भी अहकार उनह छआ तक नह था व अपन हाथ स सवय भोजन बनात और पवतरता क लहाज स जलावन लकङ को इसतमाल करन स पहल धोया करत थ एकबार इसी समय म जब वह मथरा म भोजन तयार कर रह थ उसी समय कबीर स उनक भट हयी उनहन दखा क भोजन बनान क लय जो लकङया चलह म जल रह थी उसम स ढर चीटया नकलकर बाहर आ रह थी धमरदास न जलद स शष लकङय को बाहर नकाल कर चीटय को जलन स बचाया उनह बहत दख हआ और व अतयनत वयाकल हो उठ लकङय म जलकर मर गयी चीटय क परत उनक मन म बहद पशचाताप हआ व सोचन लग - आज मझस महापाप हआ ह अपन इसी दख क वजह स उनहन भोजन भी नह खाया उनहन सोचा िजस भोजन क बनन म इतनी चीटया जलकर मर गयी उस कस खा सकता ह उनक हसाब स वह दषत भोजन खान योगय नह था अतः उनहन वह भोजन कसी दन-हन साध महातमा आद को करान का वचार कया

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वो भोजन लकर बाहर आय तो उनहन दखा क कबीर एक घन शीतल व क छाया म बठ हय थ धमरदास न उनस भोजन क लय नवदन कया कबीर साहब न कहा - सठ धमरदास िजस भोजन को बनात समय हजार चीटया जलकर मर गयी उस भोजन को मझ कराकर य पाप तम मर ऊपर कय लादना चाहत हो तम तो रोज ह ठाकर जी क पजा करत हो फ़र उनह भगवान स कय नह पछ लया था क इन लकङय क अनदर कया ह धमरदास को बहद आशचयर हआ क इस साध को य सब बात कस पता चल उस समय तो धमरदास क आशचयर का ठकाना न रहा जब कबीर न व चीटया भोजन स िजदा नकलत हय दखायी इस रहसय को व समझ न सक और उनहोन दखी होकर कहा - बाबा यद म भगवान स इस बार म पछ सकता तो मझस इतना बङा पाप कय होता धमरदास को पाप क महाशोक म डबा दखकर कबीर न अधयातम-ान क गढ़ रहसय बताय जब धमरदास न उनका परचय पछा तो कबीर न अपना नाम सदगर कबीर साहब और नवासी अमरलोक बताया इसक कछ दर बाद कबीर अतधयारन हो गय धमरदास को जब कबीर बहत दन तक नह मल तो वो वयाकल होकर जगह जगह उनह खोजत फ़र और उनक िसथत पागल क समान हो गयी तब उनक पतनी न सझाव दया - तम य कया कर रह हो उनह खोजना बहत आसान ह जस क चीट चीटा गङ को खोजत हय खद ह आ जात ह धमरदास न कहा - कया मतलब पतनी न कहा - खब भडार कराओ दान दो हजार साध आयग जब वह साध तमह दख तो उस पहचान लना धमरदास को बात उचत लगी व ऐसा ह करन लग उनहन अपनी सार सप खचर कर द पर वह साध (कबीर) नह मला फर बहत समय भटकन क बाद उनह कबीर काशी म मल परनत उस समय व वषणव वश म थ फ़र भी धमरदास न उनह पहचान लया और उनक चरण म गर पङ धमरदास बोल - सदगर महाराज मझ पर कपा कर और मझ अपनी शरण म ल गरदव मझ पर परसनन ह म उसी समय स आपको खोज रहा ह आज आपक दशरन हय कबीर बोल - धमरदास तम मझ कहा खोज रह थ तम तो चीट चीट को खोज रह थ सो व तमहार भनडार म

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आय इस पर धमरदास को अपनी मखरता पर बङा पशचाताप हआ तब उनह परायिशचत भावना म दख कर कबीर साहब न फ़र कहा - लकन तम बहत भागयशाल हो जो तमन मझ पहचान लया अब तम धयर धारण करो म तमह जीवन क आवागमन स मकत करान वाला मो-ान दगा इसक बाद धमरदास नवदन करक कबीर साहब को अपन साथ बाधोगढ ल आय फ़र तो बाधोगढ म कबीर क शरीमख स अलौकक आतमान सतसग क अवरल धारा ह बहन लगी दर दर स लोग सतसग सनन आन लग धमरदास और उनक पतनी lsquoआमनrsquo न महामतर क दा ल बाधोगढ क नरश भी कबीर क सतसग म आन लग और बाद म दा लकर व भी कबीर साहब क शषय बन यहा कबीर न बहत स उपदश दय िजनह उनक शषय न बाधोगढ नरश और धनी धमरदास क आदश पर सकलत कर गरनथ का रप दया -------------------- वशष - जब भी कसी सचचसनत का पराकटय होता ह तो कालपरष भयभीत हो जाता ह क अब य जीव को मोान दकर उनका उदधार कर दगा इसस हरसभव बचाव क लय वो अपन lsquoकालदतrsquo वहा भज दता ह धमरदास का पतर lsquoनारायण दासrsquo जो कालदत था कबीर का बहत वरोध करता था लकन उसक एक भी नह चल खद कबीर क पतर क रप म lsquoकमालrsquo कालदत था वह भी कबीर का बहत वरोध करता था बाद म कबीर न धमरदास को सयोगय शषय जानत हय मो का अनमोल ान दया और साथ ह य ताकद भी क धमरदास तोह लाख दहाई सारशबद बाहर नह जाई धमरदास न कहा - सारशबद बाहर नह जाई तो हसा लोक को कस जाई कबीर साहब न कहा - जो अपना होय तो दयो बतायी

आदसिषट क रचना

धमरदास बोल - साहब कपा कर बताय क मकत होकर अमर हय लोग कहा रहत ह मझ अमरलोक और अनय दप का वणरन सनाओ आदसिषट क रचना कौन स दप म सदगर क हसजीव का वास ह और कौन स दप म सतपरष का नवास ह वहा हसजीव कौन सा तथा कसा भोजन करत ह और व कौन सी वाणी बोलत ह

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आदपरष न लोक कस रच रखा ह तथा उनह दप रचन क इचछा कस हयी तीन लोक क उतप कस हयी साहब मझ वह सब भी बताओ जो गपत ह कालनरजन कस वध स पदा हआ और सोलह सत का नमारण कस हआ सथावर अणडज पणडज ऊषमज इन चार परकार क चार खान वाल सिषट का वसतार कस हआ और जीव को कस काल क वश म डाल दया गया कमर और शषनाग उपराजा कस उतपनन हय और कस मतसय तथा वराह जस अवतार हय तीन परमख दव बरहमा वषण महश कस परकार हय तथा परथवी आकाश का नमारण कस हआ चनदरमा और सयर कस हय कस तार का समह परकट होकर आकाश म ठहर गया और कस चार खान क जीव शरर क रचना हयी इन सबक उतप क वषय म सपषट बताय कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमह सतयान और मो पान का सचचा अधकार पाया ह इसलय सतयान का जो अनभव मन कया उसक सारशबद का रहसय कहकर सनाया अब तम मझस आदसिषट क उतप सनो म तमह सबक उतप और परलय क बात सनाता ह यह ततव क बात सनो जब धरती और आकाश और पाताल भी नह था जब कमर वराह शषनाग सरसवती और गणश भी नह थ जब सबका राजा नरजनराय भी नह था िजसन सबक जीवन को मोहमाया क बधन म झलाकर रखा ह ततीस करोङ दवता भी नह थ और म तमह अनक कया बताऊ तब बरहमा वषण महश भी नह थ और न ह शासतर वद पराण थ तब य सब आदपरष म समाय हय थ जस बरगद क पङ क बीच म छाया रहती ह धमरदास तम परारमभ क आद-उतप सनो िजस परतयरप स कोई नह जानता और िजसक पीछ सार सिषट का वसतार हआ ह उसक लय म तमह कया परमाण द क िजसन उस दखा हो चारो वद परमपता क वासतवक कहानी नह जानत कयक तब वद का मल ह (आरमभ होन का आधार) नह था इसीलय वद सतयपरष को lsquoअकथनीयrsquo अथारत िजसक बार म कहा न जा सक ऐसा कहकर पकारत ह चारो वद नराकार नरजन स उतपनन हय ह जो क सिषट क उतप आद रहसय को जानत ह नह इसी कारण पडत उसका खडन करत ह और असल रहसय स अनजान वदमत पर यह सारा ससार चलता ह सिषट क पवर जब सतयपरष गपत रहत थ उनस िजनस कमर होता ह व नम कारण और उपादान कारण और करण यानी साधन उतपनन नह कय थ उस समय गपतरप स कारण और करण समपटकमल म थ उसका समबनध सतयपरष स था lsquoवदह-सतयपरषrsquo उस कमल म थ तब सतयपरष न सवय इचछा कर अपन अश को उतपनन कया और अपन अश को दखकर वह बहत परसनन हय सबस पहल सतयपरष न lsquoशबदrsquo का परकाश कया और उसस लोकदप रचकर उसम वास कया फ़र सतयपरष न चार-पाय वाल एक सहासन क रचना क और उसक ऊपर lsquoपहपदपrsquo का नमारण कया फर सतयपरष अपनी समसत कलाओ को धारण करक उस पर बठ और उनस lsquoअगरवासनाrsquo यानी (चनदन जसी) एक सगनध परकट हयी सतयपरष न अपनी इचछा स सब कामना क और lsquoअठासी हजारrsquo दप क रचना क उन सभी दप म वह चनदन जसी सगनध समा गयी जो बहत अचछ लगी इसक बाद सतयपरष न दसरा शबद उचचारत कया उसस lsquoकमरrsquo नाम का सत (अश) परकट हआ और उनहन सतयपरष क चरण म परणाम कया तब उनहन तीसर शबद का उचचारण कया उसस lsquoानrsquo नाम क सत हय जो

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सब सत म शरषठ थ व सतयपरष क चरण म शीश नवाकर खङ रह तब सतयपरष न उनको एक दप म रहन क आा द चौथ शबद क उचचारण स lsquoववकrsquo नामक सत हय और पाचव शबद स lsquoकाल-नरजनrsquo परकट हआ काल-नरजन अतयनत तज अग और भीषणपरकत वाला होकर आया इसी न अपन उगर-सवभाव स सब जीव को कषट दया ह वस य lsquoजीवrsquo सतयपरष का अश ह जीव क आद-अत को कोई नह जानता ह छठव शबद स lsquoसहज नामrsquo सत उतपनन हय सातव शबद स lsquoसतोषrsquo नाम क सत हय िजनको सतयपरष न उपहार म दप दकर सतषट कया आठव शबद स lsquoसरत सभावrsquo नाम क सत उतपनन हय उनह भी एक दप दया गया नव स lsquoआननद अपारrsquo नाम क सत उतपनन हय दसव स lsquoमाrsquo नाम क सत उतपनन हय गयारहव स lsquoनषकामrsquo और बारहव स lsquoजलरगीrsquo नाम क सत हय तरहव स lsquoअचतrsquo और चौदहव स lsquoपरमrsquo नाम क सत हय पनदरहव स दनदयाल और सोलहव स lsquoधीरजrsquo नाम क वशाल सत उतपनन हय सतरहव शबद क उचचारण स lsquoयोगसतायनrsquo हय इस तरह lsquoएक ह नालrsquo स सतयपरष क शबद उचचारण स सोलह सत क उतप हयी सतयपरष क शबद स ह उन सत का आकार का वकास हआ और शबद स ह सभी दप का वसतार हआ सतयपरष न अपन परतयक दवयअग यानी अश को अमत का आहार दया और परतयक को अलग- अलग दप का अधकार बनाकर बठा दया सतयपरष क इन अश क शोभा और कला अननत ह उनक दप म मायारहत अलौकक सख रहता ह सतयपरष क दवयपरकाश स सभी दप परकाशत हो रह ह सतयपरष क एक ह रोम का परकाश करोङ सयर-चनदरमा क समान ह सतयलोक आननदधाम ह वहा पर शोक मोह आद दख नह ह वहा सदव मकतहस का वशराम होता ह सतपरष का दशरन तथा अमत का पान होता ह आदसिषट क रचना क बाद जब बहत दन ऐस ह बीत गय तब धमरराज कालनरजन न कया तमाशा कया उस चरतर को धयान स सनो नरजन न सतयपरष म धयान लगाकर एक पर पर खङ होकर सर यग तक कठन तपसया क इसस आदपरष बहत परसनन हय तब सतयपरष क आवाज lsquoवाणीरपrsquo म हयी - ह धमरराय कस हत स तमन यह तपसवा क नरजन सर झकाकर बोला - परभ मझ वह सथान द जहा जाकर म नवास कर सतयपरष न कहा - तम मानसरोवर दप म जाओ परसनन होकर धमरराज मानसरोवर दप क ओर चला गया और आननद स भर गया मानसरोवर पर नरजन न फ़र स एक पर पर खङ होकर सर यग तपसया क तब दयाल सतयपरष क हरदय म दया भर गयी नरजन क कठन सवा-तपसया स पषपदप क पषप वकसत हो गय और फ़र सतयपरष क वाणी परकट हयी उनक बोलत ह वहा सगनध फ़ल गयी

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सतयपरष न सहज स कहा - सहज तम नरजन क पास जाओ और उसस तप का कारण पछो नरजन क सवा-तपसया स पहल ह मन उसको मानसरोवर दप दया ह अब वह कया चाहता ह यह ात कर तम मझ बताओ सहज नरजन क पास पहच और परमभाव स कहा - भाई अब तम कया चाहत हो नरजन परसनन होकर बोला - सहज तम मर बङ भाई हो इतना सा सथानय मानसरोवर मझ अचछा नह लगता अतः म कसी बङ सथान का सवामी बनना चाहता ह मझ ऐसी इचछा ह क या तो मझ दवलोक द या मझ एक अलग दश द सहज न नरजन क अभलाषा सतयपरष को जाकर बतायी सतयपरष न सपषट शबद म कहा - हम नरजन क सवा-तपसया स सतिषट होकर उसको तीनलोक दत ह वह उसम अपनी इचछा स lsquoशनयदशrsquo बसाय और वहा जाकर सिषट क रचना कर तम नरजन स ऐसा जाकर कहो नरजन न सहज दवारा य बात सनी तो वह बहत परसनन और आशचयरचकत हआ नरजन बोला - सहज सनो म कस परकार सिषटरचना करक उसका वसतार कर सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया ह परनत म सिषटरचना का भद नह जानता फ़र यह कायर कस कर जो सिषट मन बदध क पहच स पर अतयनत कठन और जटल ह वह मझ रचनी नह आती अतः दया करक मझ उसक यिकत बतायी जाय तम मर तरफ़ स सतयपरष स यह वनती करो क म कस परकार lsquoनवखणडrsquo बनाऊ अतः मझ वह साजसामान दो िजसस जगत क रचना हो सक सहज न यह सब बात जब जाकर सतयपरष स कह तब उनहन आा द - सहज कमर क पट क अनदर सिषटरचना का सब साज सामान ह उस लकर नरजन अपना कायर कर इसक लय नरजन कमर स वनती कर और उसस दणडपरणाम करक वनयपवरक सर झकाकर माग सहज न सतयपरष क आा नरजन को बता द यह सनत ह नरजन बहत हषरत हआ और उसक अनदर बहत अभमान हआ वह कमर क पास जाकर खङा हो गया और बताय अनसार दणडपरणाम भी नह कया अमतसवरप कमर जो सबको सख दन वाल ह उनम करोध अभमान का भाव जरा भी नह ह और अतयनत शीतल सवभाव क ह अतः जब कालनरजन न अभमान करक दखा तो पता चला क कमर अतयनत धयरवान और बलशाल ह बारह पालग कमर का वशाल शरर ह और छह पालग बलवान नरजन का शरर ह नरजन करोध करता हआ कमर क चारो ओर दौङता रहा और सोचता रहा क कस उपाय स इसस उतप का सामान ल तब नरजन बहद रोष स कमर स भङ गया और अपन तीख नाखन स कमर क शीश पर आघात

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करन लगा परहार करन स कमर क उदर स पवन नकल उसक शीश क तीन अश सत रज तम गण नकल आग िजनक वश बरहमा वषण महश हय पाच-ततव धरती आकाश आद तथा चनदरमा सयर आद तार का समह उसक उदर म थ उसक आघात स पानी अिगन चनदरमा और सयर नकल और परथवीजगत को ढकन क लय आकाश नकला फ़र उसक उदर स परथवी को उठान वाल वाराह शषनाग और मतसय नकल तब परथवीसिषट का आरमभ हआ जब कालनरजन न कमर का शीश काटा तब उस सथान स रकत जल क सरोत बहन लग जब उनक रकत म सवद यानी पसीना और जल मला उसस समदर का नमारण तथा उनचास कोट परथवी का नमारण हआ जस दध पर मलाई ठहर जाती ह वस ह जल पर परथवी ठहर गयी वाराह क दात परथवी क मल म रह पवन परचणड था और परथवी सथल थी आकाश को अडासवरप समझो और उसक बीच म परथवी िसथत ह कमर क उदर स lsquoकमरसतrsquo उतपनन हय उस पर शषनाग और वराह का सथान ह शषनाग क सर पर परथवी ह नरजन क चोट करन स कमर बरयाया सिषटरचना का सब साजोसामान कमर उदर क अड म थी परनत वह कमर क अश स अलग थी आदकमर सतयलोक क बीच रहता था नरजन क आघात स पीङत होकर उसन सतयपरष का धयान कया और शकायत करत हय कहा - कालनरजन न मर साथ दषटता क ह उसन मर ऊपर बल परयोग करत हय मर पट को फ़ाङ डाला ह आपक आा का उसन पालन नह कया सतयपरष सनह स बोल - कमर वह तमहारा छोटा भाई ह और यह रत ह क छोट क अवगण को भलाकर उसस सनह कया जाय सतयपरष क ऐस वचन सनकर कमर आनिनदत हो गय इधर कालनरजन न फ़र स सतयपरष का धयान कया और अनक यग तक उनक सवा तपसया क नरजन न अपन सवाथर स तप कया था अतः सिषटरचना को लकर वह पछताया तब धमरराय नरजन न वचार कया क तीन लोक का वसतार कस और कहा तक कया जाय उसन सवगरलोक मतयलोक और पाताललोक क रचना तो कर द परनत बना बीज और जीव क सिषट का वसतार कस सभव हो कस परकार और कया उपाय कया जाय जो जीव क धारण करन का शरर बनाकर सजीव सिषटरचना हो सक यह सब तरका वध सतयपरष क सवा तपसया स ह होगा ऐसा वचार करक हठपवरक एक पर पर खङा होकर उसन चसठ यग तक तपसया क तब दयाल सतयपरष न सहज स कहा - अब य तपसवी नरजन कया चाहता ह वह तम उसस पछो और द दो उसस कहो वह हमार वचन अनसार सिषट नमारण कर और छलमत का तयाग कर सहज न नरजन स जाकर यह सब बात कह

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नरजन बोला - मझ वह सथान दो जहा जाकर म बठ जाऊ सहज बोल - सतयपरष न पहल ह सब कछ द दया ह कमर क उदर स नकल सामान स तम सिषटरचना करो नरजन बोला - म कस कया बनाकर रचना कर सतयपरष स मर तरफ़ स वनती कर कहो अपना सारा खत बीज मझ द द सहज न यह हाल सतयपरष को कह सनाया सतयपरष न आा द तो सहज अपन सखासन दप चल गय नरजन क इचछा जानकर सतयपरष न इचछा वयकत क उनक इस इचछा स अषटागी नाम क कनया उतपनन हयी वह कनया आठ भजाओ क होकर आयी थी वह सतयपरष क बाय अग जाकर खङ हो गयी और परणाम करत हय बोल - ह सतयपरष मझ कया आा ह सतयपरष बोल - पतरी तम नरजन क पास जाओ म तमह जो वसत दता ह उस सभाल लो उसस तम नरजन क साथ मलकर सिषटरपी फ़लवार क रचना करो कबीर साहब बोल - धमरदास सतयपरष न अषटागीकनया को जो जीव-बीज दया उसका नाम lsquoसोऽहगrsquo ह इस तरह जीव का नाम सोऽहग ह जीव ह सोऽहगम ह दसरा नह ह और वह जीव सतयपरष का अश ह फ़र सतयपरष न तीन शिकतय को उतपनन कया उनक नाम lsquoचतनrsquo lsquoउलघनrsquo और lsquoअभयrsquo थ सतयपरष न अषटागी स कहा क नरजन क पास जाकर उस पहचान कर यह चौरासी लाख जीव का मलबीज जीव-बीज द दो अषटागीकनया यह जीव-बीज लकर मानसरोवर चल गयी तब सतयपरष न सहज को बलाया और उसस कहा - तम नरजन क पास जाकर यह कहो क जो वसत तम चाहत थ वह तमह द द गयी ह जीव-बीज lsquoसोऽहगrsquo तमह मल गया ह अब जसी चाहो सिषटरचना करो और मानसरोवर म जाकर रहो वह स सिषट का आरमभ होना ह सहज न नरजन स जाकर ऐसा ह कहा

अषटागीकनया और कालनरजन

सहज क दवारा सतयपरष क ऐस वचन सनकर नरजन परसनन होकर अहकार स भर गया और मानसरोवर चला आया फ़र जब उसन सनदर कामनी lsquoअषटागीकनयाrsquo को आत हय दखा तो उस अत परसननता हयी अषटागी का

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अनपमसदयर दखकर नरजन मगध हो गया उसक सनदरता क कला का अनत नह था यह दखकर कालनरजन बहत वयाकल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क कररता सनो वह अषटागीकनया को ह नगल गया जब अनयायी कालनरजन अषटागी का ह आहार करन लगा तब उस कनया को कालनरजन क परत बहत आशचयर हआ जब वह उस नगल रहा था तो अषटागी न सतयपरष को धयान करक पकारा क कालनरजन न मरा आहार कर लया ह अषटागी क पकार सनकर सतयपरष न सोचा क यह कालनरजन तो बहत करर और अनयायी ह इस कनया क तरह ह पहल कमर न धयान करक मझ पकारा था क कालनरजन न मर तीन शीश खा लय ह सतयपरष आप मझ पर दया किजय कबीर साहब बोल - कालनरजन का ऐसा करर चरतर जानकर सतयपरष न उस शाप दया क वह परतदन लाख जीव को खायगा और सवालाख का वसतार करगा फ़र सतयपरष न ऐसा भी वचार कया क इस कालपरष को मटा ह डाल कयक अनयायी और करर कालनरजन बहत ह कठोर और भयकर ह यह सभी जीव का जीवन बहत दखी कर दगा लकन अब वह मटान स भी नह मट सकता था कयक एक ह नाल स व सब सोलह सत उतपनन हय थ अतः एक को मटान स सभी मट जायग और मन सबको अलग लोकदप दकर जो रहन का वचन दया ह वह डावाडोल हो जायगा और मर य सब रचना भी समापत हो जायगी अतः इसको मारना ठक नह ह सतयपरष न वचार कया क कालपरष को मारन स उनका वचन भग हो जायगा अतः अपन वचन का पालन करत हय उस न मारकर यह कहता ह क अब वह कभी हमारा दशरन नह पायगा यह कहत हय सतयपरष न योगजीत को बलवाया और सब हाल कहा क कस तरह कालनरजन न अषटागी कनया को नगल लया और कमर क तीन शीश खा लय उनहन कहा - योगजीत तम शीघर मानसरोवर दप जाओ और वहा स नरजन को मारकर नकाल दो वह मानसरोवर म न रहन पाय और हमार दश सतयलोक म कभी न आन पाय नरजन क पट म अषटागी नार ह उसस कहो क वह मर वचन का सभाल कर पालन कर नरजन जाकर उसी दश म रह जो मन पहल उस दय ह अथारत वह सवगरलोक मतयलोक और पाताल पर अपना राजय कर वह अषटागी नार नरजन का पट फ़ाङकर बाहर नकल आय िजसस पट फ़टन स वह अपन कम का फ़ल पाय नरजन स नणरय करक कह दो क वह अषटागी नार ह अब तमहार सतरी होगी योगजीत सतयपरष को परणाम करक मानसरोवर दप आय कालनरजन उनह वहा आया दखकर भयकर रप हो गया और बोला - तम कौन हो और कसन तमह यहा भजा ह योगजीत न कहा - अर नरजन तम नार को ह खा गय अतः सतयपरष न मझ आा द क तमह शीघर ह यहा स नकाल योगजीत न नरजन क पट म समायी हयी अषटागी स कहा - अषटागी तम वहा कय रहती हो तम सतयपरष क तज का समरन करो और पट फ़ाङकर बाहर आ जाओ

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योगजीत क बात सनकर नरजन का हरदय करोध स जलन लगा और वह योगजीत स भङ गया योगजीत न सतयपरष का धयान कया तो सतयपरष न आा द क वह नरजन क माथ क बीच म जोर स घसा मार योगजीत न ऐसा ह कया फ़र योगजीत न नरजन क बाह पकङ कर उस उठाकर दर फ़ क दया तो वह सतयलोक क मानसरोवर दप स अलग जाकर दर गर पङा सतयपरष क डर स वह डरता हआ सभल सभलकर उठा फ़र अषटागीकनया नरजन क पट स नकल वह कालनरजन स बहत भयभीत थी वह सोचन लगी क अब म वह दश न दख सकगी म न जान कस परकार यहा आकर गर पङ यह कौन बताय वह नरजन स बहत डर हयी थी और सकपका कर इधर-उधर दखती हयी नरजन को शीश नवा रह थी तब नरजन बोला - ह आदकमार सनो अब तम मर डर स मत डरो सतयपरष न तमह मर lsquoकामrsquo क लय रचा ह हम-तम दोन एकमत होकर सिषटरचना कर म परष ह और तम मर सतरी हो अतः तम मर यह बात मान लो अषटागी बोल - तम यह कसी वाणी बोलत हो म तो तमह बङा भाई मानती ह इस परकार जानत हय भी तम मझस ऐसी बात मत करो जब स तमन मझ पट म डाल लया था और उसस उतपनन होन पर अब तो म तमहार पतरी भी हो गयी ह बङ भाई का रशता तो पहल स ह था अब तो तम मर पता भी हो गय हो अब तम मझ साफ़ दिषट स दखो नह तो तमस यह पाप हो जायगा अतः मझ वषयवासना क दिषट स मत दखो नरजन बोला - भवानी सनो म तमह सतय बताकर अपनी पहचान कराता ह पाप पणय क डर स म नह डरता कयक पाप पणय का म ह तो कतार (करान वाला) ह पाप पणय मझस ह हग और मरा हसाब कोई नह लगा पाप पणय को म ह फ़लाऊगा जो उसम फ़स जायगा वह मरा होगा अतः तम मर इस सीख को मानो सतयपरष न मझ कह समझा कर तझ दया ह अतः तम मरा कहना मानो नरजन क ऐसी बात सनकर अषटागी हसी और दोन एकमत होकर एक दसर क रग म रग गय अषटागी मीठ वाणी स रहसयमय वचन बोल और फ़र उस नीचबदध सतरी न वषयभोग क इचछा परकट क उसक रतवषयक रहसयमय वचन सनकर नरजन बहत परसनन हआ और उसक भी मन म वषयभोग क इचछा जाग उठ नरजन और अषटागी दोन परसपर रतकरया म लग गय तब कह चतनयसिषट का वशष आरमभ हआ धमरदास तम आदउतप का यह भद सनो िजस भरमवश कोई नह जानता उन दोन न तीन बार रतकरया क िजसस बरहमा वषण तथा महश हय उनम बरहमा सबस बङ मझल वषण और सबस छोट शकर थ इस परकार अषटागी और नरजन का रतपरसग हआ उन दोन न एकमत होकर भोगवलास कया तब उसस आदउतप का परकाश हआ

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वद क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास वचार करो पीछ ऐसा वणरन हो चका ह क अिगन पवन जल परथवी और परकाश कमर क उदर स परकट हय उसक उदर स य पाचो अश लय तथा तीन सर काटन स सत रज तम तीन गण परापत हय इस परकार पाच ततव और तीन गण परापत होन पर नरजन न सिषटरचना क फ़र अषटागी और नरजन क परसपर रतपरसग स अषटागी को गण एव ततव समान करक दय और अपन अश उतपनन कय इस परकार पाच-ततव और तीन गण को दन स उसन ससार क रचना क वीयरशिकत क पहल बद स बरहमा हय उनह रजोगण और पाच ततव दय दसर बद स वषण हय उनह सतगण और पाच ततव दय तीसर बद स शकर हय उनह तमोगण और पाच ततव दय पाच ततव तीन गण क मशरण स बरहमा वषण महश क शरर क रचना हयी इसी परकार सब जीव क शरर क रचना हयी उसस य पाच-ततव और तीन गण परवतरनशील और वकार होन स बारबार सजन-परलय यानी जीवन-मरण होता ह सिषट क रचना क इस lsquoआदरहसयrsquo को वासतवक रप स कोई नह जानता धमरदास कबीर साहब आग कहन लग नरजन बोला - अषटागी कामनी मर बात सन और जो म कह उस मान अब जीव-बीज सोऽहग तमहार पास ह उसक दवारा सिषटरचना का परकाश करो ह रानी सन अब म कस कया कर आदभवानी बरहमा वषण महश तीन पतर तमको सप दय और अपना मन सतयपरष क सवा भिकत म लगा दया ह तम इन तीन बालक को लकर राज करो परनत मरा भद कसी स न कहना मरा दशरन य तीन पतर न कर सक ग चाह मझ खोजत-खोजत अपना जनम ह कय न समापत कर द सोच-समझकर सब लोग को ऐसा मत सदढ कराना क सतयपरष का भद कोई पराणी जानन न पाय जब य तीन पतर बदधमान हो जाय तब उनह समदरमथन का ान दकर समदरमथन क लय भजना इस तरह नरजन न अषटागी को बहत परकार स समझाया और फ़र अपन आप गपत हो गया उसन शनयगफ़ा म नवास कया वह जीव क lsquoहरदयाकाशरपीrsquo शनयगफ़ा म रहता ह तब उसका भद कौन ल सकता ह वह गपत होकर भी सबक साथ ह जो सबक भीतर ह उस मन को ह नरजन जानो जीव क हरदय म रहन वाला यह मन नरजन सतयपरष परमातमा क रहसयमय ान क परत सदह उतपनन कर उस मटाता ह यह अपन मत स सभी को वशीभत करता ह और सवय क बङाई परकट करता ह सभी जीव क हरदय म बसन वाला यह मन कालनरजन का ह रप ह सबक साथ रहता हआ भी य मन पणरतया गपत ह और कसी को दखाई नह दता य सवाभावक रप स अतयनत चचल ह और सदा सासारक वषय क ओर दौङता ह वषयसख और भोगपरवत क कारण मन को चन कहा ह यह दन-रात सोत-जागत अपनी अननत इचछाओ क पतर क लय भटकता ह रहता ह और मन क वशीभत होन क कारण ह जीव अशात और दखी होता ह इसी कारण उसका पतन होकर जनम-मरण का बधन बना ह जीव का मन ह उसक दख भोग और जनम-मरण का कारण ह अतः मन को वश म करना ह सभी दख और

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जनम-मरण क बधन स मकत होन का उपाय ह जीव तथा उसक हरदय क भीतर मन दोन एक साथ ह मतवाला और वषयगामी मन कालनरजन क अग सपशर करन स जीव बदधहन हो गय इसी स अानी जीव कमर अकमर क करत रहन स तथा उनका फ़ल भोगत रहन क कारण ह जनम-जनमातर तक उनका उदधार नह हो पाता यह मन-काल जीव को सताता ह इिनदरय को पररत कर वभनन पापकम म लगाता ह यह सवय पाप पणय क कम क काल कचाल चलता ह फ़र जीव को दखरपी दणड दता ह उधर जब तीन बालक बरहमा वषण महश सयान समझदार हय तो माता अषटागी न उनह समदर मथन क लय भजा लकन व बालक खलन म मसत थ अतः समदर मथन नह गय कबीर साहब बोल - धमरदास उसी समय एक तमाशा हआ नरजनराव न योग धारण कया उसन पवन यानी सास खीचकर परक पराणायाम स आरमभ करपवन ठहरा कर कमभक पराणायाम बहत दर तक कया फ़र जब नरजन कमभक तयाग कर रचनकरया स पवनरहत हआ तब उसक सास क साथ वद बाहर नकल वदउतप क इस रहसय को कोई बरला वदवान ह जानगा वद न नरजन क सतत क और कहा - ह नगरणनाथ मझ कया आा ह नरजन बोला - तम जाकर समदर म नवास करो तथा िजसका तमस भट हो उसक पास चल जाना वद को आा दत हय कालनरजन क आवाज तो सनायी द पर वद न उसका सथलरप नह दखा उसन कवल अपना जयोतसवरप ह दखाया उसक तज स परभावत होकर आानसार वद चल गय फ़र अत म उस तज स वष क उतप हयी इधर चलत हय वद वहा जा पहच जहा नरजन न समदर क रचना क थी व सध क मधय म पहच गय फ़र नरजन न समदरमथन क यिकत का वचार कया

तरदव दवारा परथम समदरमथन

तब नरजन न गपत धयान स अषटागी को याद करत हय समझाया और कहा - बताओ समदर मथन म कसलय दर हो रह ह बरहमा वषण महश हमार तीन पतर को समदर मथन क लय शीघर ह भजो मर वचन दढ़ता स मानो और अषटागी इसक बाद तम सवय समदर म समा जाना तब अषटागी न समदरमथन हत वचार कया और तीन बालक को अचछ तरह समझा-बझाकर समदर मथन क लय भजा उनह भजत समय अषटागी न कहा - समदर स तमह अनमोल वसतय परापत हगी इसलय तम जलद ह जाओ यह सनकर बरहमा वषण और महश तीन बालक चल पङ और जाकर समदर क पास खङ हो गय तथा उस मथन का उपाय सोचन लग

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फ़र तीन न समदरमथन कया तीन को समदर स तीन वसतय परापत हयी बरहमा को वद वषण को तज और शकर को हलाहल वष क परािपत हयी य तीन वसतय लकर व अपनी माता अषटागी क पास आय और खशी-खशी तीन वसतय दखायी अषटागी न उनह अपनी-अपनी वसत अपन पास रखन क आा द अषटागी न कहा - अब फ़र स जाकर समदर मथो और िजसको जो परापत हो वह ल लो उसी समय आदभवानी न एक चरतर कया उसन तीन कनयाय उतपनन क और अपनी उन अश को समदर म परवश करा दया जब इन तीन कनयाओ को समदर म परवश करान क लय भजा इस रहसय को अषटागी क तीन पतर नह जान सक अतः उनहन जब समदरमथन कया तो समदर स तीन कनयाय नकल उनहन खशी स तीन कनयाओ को ल लया और अषटागी क पास आय अषटागी न कहा - पतरो तमहार सब कायर पर हो गय अषटागी न उन तीन कनयाओ को तीन पतर को बाट दया बरहमा को सावतरी वषण को लमी और शकर को पावरती द तीन भाई कामनी सतरी को पाकर बहत आनिनदत हय और उन कामनय क साथ काम क वशीभत होकर उनहन दव और दतय दोन परकार क सतान उतपनन क कबीर साहब बोल - धमरदास तम यह बात समझो क जो माता थी वह अब सतरी हो गयी अषटागी न फ़र स अपन पतर को समदर मथन क आा द इस बार समदर म स चौदह रतन नकल उनहन रतन क खान नकाल और रतन लकर माता क पास पहच तब अषटागी न कहा - पतरो अब तम सिषटरचना करो अणडज खान क उतप सवय अषटागी न क पणडज खान को बरहमा न बनाया ऊषमज खान वषण तथा सथावर को शकर न बनाया उनहन चौरासी लाख योनय क रचना क और उनक अनसार आधाजल आधाथल बनाया सथावर खान को एक-ततव का समझो और ऊषमज खान को दो-ततव तीन-ततव स अणडज और चार-ततव स पणडज का नमारण हआ पाचततव स मनषय को बनाया और तीन गण स सजाया सवारा इसक बाद बरहमा वद पढ़न लग वद पढ़त हय बरहमा को नराकार क परत अनराग हआ कयक वद कहता ह परष एक ह और वह नराकार ह और उसका कोई रप नह ह वह शनय म जयोत दखाता ह परनत दखत समय उसक दह दिषट म नह आती उस नराकार का सर सवगर ह और पर पाताल ह इस वदमत स बरहमा मतवाला हो गया

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बरहमा न वषण स कहा - वद न मझ आदपरष को दखा दया ह फ़र ऐसा ह उनहन शकर स भी कहा - वद पढ़न स पता चलता ह क परष एक ह और सबका सवामी कवल एक नराकार परष ह यह तो वद न बताया परनत उसन ऐसा भी कहा क मन उसका भद नह पाया बरहमा अषटागी क पास आय और बोल - माता मझ वद न दखाया और बताया क सिषट रचना करन वाला हम सबका सवामी कोई और ह ह अतः हम बताओ क तमहारा पत कौन ह और हमारा पता कहा ह अषटागी बोल - बरहमा सनो मर अतरकत तमहारा अनय कोई पता नह ह मझस ह सब उतप हयी ह और मन ह सबको सभारा ह बरहमा न कहा - माता वद नणरय करक कहता ह क परष कवल एक ह और वह गपत ह अषटागी बोल - पतर मझस नयारा सिषटरचयता और कोई नह ह मन ह सवगरलोक परथवीलोक और पाताललोक बनाय ह और सात समदर का नमारण भी मन ह कया ह बरहमा न कहा - मन तमहार बात मानी क तमन ह सब कछ कया ह परनत पहल स ह परष को गपत कस रख लया जबक वद कहता ह क परष एक ह और वह अलखनरजन ह माता तम कतार बनो आप बनो परनत पहल वदरचना करत समय यह वचार कय नह कया और उसम परष को नरजन कय बताया अतः अब तम मर स छल न करो और सच-सच बात बताओ कबीर साहब बोल - जब बरहमा न िजद पकङ ल तो अषटागी न वचार कया क बरहमा को कस परकार समझाऊ जो यह मर महमा को बङाई को नह मानता यह बात नरजन स कह तो यह कस परकार ठक स समझगा नरजन न मझस पहल ह कहा था क मरा दशरन कोई नह पायगा अब बरहमा को अलखनरजन क बार म कछ नह बताया तो कस परकार उस दखाया जाय ऐसा वचार कर अषटागी न कहा - अलखनरजन अपना दशरन नह दखाता बरहमा बोल - माता तम मझ सह-सह सथान बताओ आग-पीछ क उलट-सीधी बात करक मझ न बहलाओ म य बात नह मानता और न ह मझ अचछ लगती ह पहल तमन मझ बहकाया क म ह सिषटकतार ह और मझस अलग कछ भी नह ह और अब तम कहती हो क lsquoअलखनरजनrsquo तो ह पर वह अपना दशरन नह दखाता कया उसका दशरन पतर भी नह पायगा ऐसी पदा न होन वाल बात कय कहती हो इसलय मझ तमहार कहन पर भरोसा नह ह अतः इसी समय उस कतार का दशरन करा दिजय और मर सशय को दर किजय इसम जरा भी दर न करो अषटागी बोल - बरहमा म तमस सतय कहती ह क उस अलखनरजन क सात सवगर ह माथा ह और सात पाताल चरण ह यद तमह उसक दशरन क इचछा हो तो हाथ म फ़ल ल जाकर उस अपरत करत हय परणाम करो यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय

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अषटागी न मन म वचार कया - बरहमा मरा कहा मानता नह ह य कहता ह वद न मझ उपदश कया ह क एक परष नरजन ह परनत कोई उसक दशरन नह पाता ह अतः वह बोल - अर बालक सन अलखनरजन तमहारा पता ह पर तम उसका दशरन नह पा सकत यह म तमस सतयवचन कहती ह यह सनकर बरहमा न वयाकल होकर मा क चरण म सर रख दया और बोल - म पता का शीश सपशर व दशरन करक तमहार पास आता ह कहकर बरहमा lsquoउर दशाrsquo चल गय माता स आा मागकर वषण भी अपन पता क दशरन हत पाताल चल गय कवल शकर का मन इधर-उधर नह भटका वह माता क सवा करत हय कछ नह बोल

बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना

बहत दन बीत गय अषटागी न सोचा - मर पतर बरहमा और वषण न कया कया इसका कछ पता नह लगा व अब तक लौटकर कय नह आय तब सबस पहल वषण लौटकर माता क पास आय और बोल - पाताल म मझ पता क चरण तो नह मल उलट मरा शरर वषजवाला (शषनाग क परभाव स) स शयामल हो गया माता जब म पता नरजन क दशरन नह कर पाया तो म वयाकल हो गया और फ़र लौट आया अषटागी परसनन हो गयी और वषण को दलारत हय बोल - पतर तमन नशचय ह सतय कहा ह उधर पता क दशरन क बहद इचछक बरहमा चलत-चलत उस सथान पर पहच गय जहा न सयर था न चनदरमा कवल शनय था वहा बरहमा न अनक परकार स नरजन क सतत क जहा जयोत का परभाव था वहा भी धयान लगाया और ऐसा करत हय बहत दन बीत गय परनत बरहमा को नरजन क दशरन नह हय शनय म धयान करत हय बरहमा को अब lsquoचारयगrsquo बीत गय अषटागी को चनता हयी क म बरहमा क बना कस परकार सिषटरचना कर और कस परकार उस वापस लाऊ तब अषटागी न यिकत सोचत हय अपन शरर म उबटन लगाकर मल नकाला और उस मल स एक पतरीरपी कनया उतपनन क उस कनया म दवयशिकत का अश मलाया और कनया का नाम गायतरी रखा गायतरी उनह परणाम करती हयी बोल - माता तमन मझ कस कायर हत बनाया ह वह आा किजय

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अषटागी बोल - मर बात सनो बरहमा तमहारा बङा भाई ह वह पता क दशरन हत शनयआकाश क ओर गया ह उस बलाकर लाओ वह चाह अपन पता को खोजत-खोजत सारा जनम गवा द पर उनक दशरन नह कर पायगा अतः तम िजस वध स चाहो कोई उपाय करक उस बलाकर लाओ गायतरी बताय अनसार बरहमा क पास पहची उसन दखा धयान म लन बरहमा अपनी पलक तक नह झपकात थ वह कछ दन तक सोचती रह क कस वध दवारा बरहमा का धयान स धयान हटाकर अपनी ओर आकषरत कया जाय फ़र उसन अषटागी का धयान कया तब अषटागी न धयान म गायतरी को आदश दया क अपन हाथ स बरहमा को सपशर करो तब वह धयान स जागग गायतरी न ऐसा ह कया और बरहमा क चरणकमल का सपशर कया बरहमा धयान स जाग गया और उसका मन भटक गया वह वयाकल होकर बोला - त कौन पापी अपराधी ह जो मर धयान समाध छङायी म तझ शाप दता ह कयक तन आकर पता क दशरन का मरा धयान खडत कर दया गायतरी बोल - मझस कोई पाप नह हआ ह पहल तम सब बात समझ लो तब मझ शाप दो म सतय कहती ह तमहार माता न मझ तमहार पास भजा ह अतः शीघर चलो तमहार बना सिषट का वसतार कौन कर बरहमा बोल - म माता क पास कस परकार जाऊ अभी मझ पता क दशरन भी नह हय ह गायतरी बोल - तम पता क दशरन कभी नह पाओग अतः शीघर चलो वरना पछताओग बरहमा बोला - यद तम झठ गवाह दो क मन पता का दशरन पा लया ह और ऐसा सवय तमन भी अपनी आख स दखा ह क पता नरजन परकट हय और बरहमा न आदर स उनका शीश सपशर कया यद तम माता स इस परकार कहो तो म तमहार साथ चल गायतरी बोल - ह वद सनन और धारण करन वाल बरहमा सनो म झठ वचन नह बोलगी हा यद मर भाई तम मरा सवाथर परा करो तो म इस परकार क झठ बात कह दगी बरहमा बोल - म तमहार सवाथर वाल बात समझा नह अतः मझ सपषट कहो गायतरी बोल - यद तम मझ रतदान दो यानी मर साथ कामकरङा करो तो म ऐसा कह सकती ह यह मरा सवाथर ह फ़र भी तमहार लय परमाथर जानकर कहती ह बरहमा वचार करन लग क इस समय कया उचत होगा यद म इसक बात नह मानता तो य गवाह नह दगी और माता मझ मझ धककारगी क न तो मन पता क दशरन पाय और न कोई कायर सदध हआ अतः म इसक परसताव म पाप को वचारता ह तो मरा काम नह बनता इसलय रतदान दन क इसक इचछा पर करनी ह

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चाहय ऐसा ह नणरय करत हय बरहमा और गायतरी न मलकर वषयभोग कया उन दोन पर रतसख का रग परभाव दखान लगा बरहमा क मन म पता को दखन क जो इचछा थी उस वह भल गया और दोन क हरदय म कामवषय क उमग बढ़ गयी फ़र दोन न मलकर छलपणर बदध बनायी तब बरहमा न कहा - चलो माता क पास चलत ह गायतरी बोल - एक उपाय और करो जो मन सोचा ह वह यिकत ह क एक दसरा गवाह भी तयार कर लत ह बरहमा बोल - यह तो बहत अचछ बात ह तम वह करो िजस पर माता वशवास कर तब गायतरी न साी उतपनन करन हत अपन शरर स मल नकाला और उसम अपना अश मलाकर एक कनया बनायी बरहमा न उस कनया का नाम सावतरी रखवाया तब गायतरी न सावतरी को समझाया क तम चलकर माता स कहना क बरहमा न पता का दशरन पाया ह सावतरी बोल - जो तम कह रह हो उस म नह जानती और झठ गवाह दन म तो बहत हान ह बरहमा और गायतरी को बहत चता हयी उनहन सावतरी को अनक परकार स समझाया पर वह तयार नह हयी तब सावतरी अपन मन क बात बोल - यद बरहमा मझस रतपरसग कर तो म ऐसा कर सकती ह तब गायतरी न बरहमा को समझाया क सावतरी को रतदान दकर अपना काम बनाओ बरहमा न सावतरी को रतदान दया और बहत भार पाप अपन सर ल लया सावतरी का दसरा नाम बदल कर पहपावती कहकर अपनी बात सनात ह य तीन मलकर वहा गय जहा कनया आदकमार अषटागी थी तीन क परणाम करन पर अषटागी न पछा - बरहमा कया तमन अपन पता क दशरन पाय और यह दसर सतरी कहा स लाय बरहमा बोल - माता य दोन साी ह क मन पता क दशरन पाय इन दोन क सामन मन पता का शीश सपशर कया ह अषटागी बोल - गायतरी वचार करक कहो क तमन अपनी आख स कया दखा ह सतय बताओ बरहमा न अपन पता का दशरन पाया और इस दशरन का उस पर कया परभाव पङा गायतरी बोल - बरहमा न पता क शीश का दशरन पाया ह ऐसा मन अपनी आख स दखा ह क बरहमा अपन पता नरजन स मल माता यह सतय ह बरहमा न अपन पता पर फ़ल चढ़ाय और उनह फ़ल स यह पहपावती उस

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सथान स परकट हयी इसन भी पता का दशरन पाया ह आप इसस पछ क दखय इसम री भर भी झठ नह ह अषटागी बोल - पहपावती मझस सतय कहो और बताओ कया बरहमा न पता क सर पर पषप चढ़ाया पहपावती न कहा - माता म सतय कहती ह चतमरख बरहमा न पता क शीश क दशरन कय और शात एव िसथर मन स फ़ल चढ़ाय इस झठ गवाह को सनकर अषटागी परशान हो गयी और वचार करन लगी

अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना

अषटागी को बहद आशचयर हआ क बरहमा न नरजन क दशरन पा लय ह जबक अलखनरजन न परता कर रखी ह क उस कोई आख स दख नह पायगा फ़र य तीन लबार झठ-कपट कस कहत ह क उनहन नरजन को दखा ह उसी ण अषटागी न नरजन का धयान कया और बोल - मझ सतय बताओ नरजन न कहा - बरहमा न मरा दशरन नह पाया उसन तमहार पास आकर झठ गवाह दलवायी उन तीन न झठ बनाकर सब कहा ह वह सब मत मानो वह झठ ह अषटागी को बहत करोध आया उसन बरहमा को शाप दया - तमन मझस आकर झठ बोला अतः कोई तमहार पजा नह करगा एक तो तम झठ बोल और दसर तमन न करन योगय कमर (दषकमर) करक बहत बङा पाप अपन सर ल लया आग जो भी तमहार शाखा सतत होगी वह बहत झठ और पाप करगी तमहार सतत (बरहमा क वश अथवा बरहमा क नाम स पकार जान वाल बराहमण) परकट म तो बहत नयम धमर वरत उपवास पजा शच आद करग परनत उनक मन म भीतर पाप मल का वसतार रहगा तमहार व सतान वषणभकत स अहकार करगी इसलय नकर को परापत हगी तमहार वश वाल पराण क धमरकथाओ को लोग को समझायग परनत सवय उसका आचरण न करक दख पायग उनस जो और लोग ान क बात सनग उसक अनसार व भिकत कर सतय को बतायग बराहमण परमातमा का ान भिकत को छोङकर दसर दवताओ को ईशवर का अश बताकर उनक भिकत-पजा करायग और क नदा करक वकराल काल क मह म जायग अनक दवी-दवताओ क बहत परकार स पजा करक यजमान स दणा लग और दणा क कारण पशबल म पशओ का गला कटवायग दणा क लालच म यजमान को बबकफ़ बनायग व िजसको शषय बनायग उस भी परमाथर कलयाण का रासता नह दखायग परमाथर क तो व पास भी नह जायग परनत सवाथर क लय व सबको अपनी बात समझायग सवाथ होकर सबको अपनी सवाथरसदध का ान सनायग और ससार म अपनी सवा-पजा मजबत करग अपन को ऊचा और और को छोटा कहग इस परकार

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बरहमा तर वशज तर ह जस झठ और कपट हग शाप सनकर बरहमा मछरत होकर गर पङ फ़र अषटागी न गायतरी को शाप दया - गायतरी बरहमा क साथ कामभावना स हो जान स मनषयजनम म तर पाच पत हग तर गायरपी शरर म बल पत हग और व सात-पाच स भी अधक हग पशयोन म त गाय बनकर जनम लगी और न खान योगय पदाथर खायगी तमन अपन सवाथर क लय मझस झठ बोला और झठ वचन कह कया सोचकर तमन झठ गवाह द गायतरी न गलती मानकर शाप सवीकार कर लया फर अषटागी न सावतरी को दखा और बोल - तमन नाम तो सनदर पहपावती रखवा लया परनत झठ बोलकर तमन अपन जनम का नाश कर लया सन तमहार वशवास पर तमस कोई आशा रखकर कोई तमह नह पजगा दगध क सथान पर तमहारा वास होगा कामवषय क आशा लकर अब नकर क यातना भोगो जानबझ कर जो तमह सीचकर लगायगा उसक वश क हान होगी अब तम जाओ और व बनकर जनम तमहारा नाम कवङा कतक होगा कबीर बोल - अषटागी क शाप क कारण बरहमा गायतरी और सावतरी तीन बहत दखी हो गय अपन पापकमर स व बदधहन और दबरल हो गय कामवषय म परवत करान वाल कामनी सतरी कालरप-काम (वासना क इचछा) क अततीवर कला ह इसन सबको अपन शरर क सनदर चमर स डसा ह शकर बरहमा सनकाद और नारद जस कोई भी इसस बच नह पाय कोई बरला सनत-साधक बच पाता ह जो सदगर क सतयशबद को भल परकार अपनाता ह सदगर क शबदपरताप स य कालकला मनषय को नह वयापती अथारत कोई हान नह करती जो कलयाण क इचछा रखन वाला भकत मन वचन कमर स सतगर क शरीचरण क शरण गरहण करता ह पाप उसक पास नह आता कबीर साहब आग बोल - बरहमा वषण महश तीन को शाप दन क बाद अषटागी मन म पछतान लगी उसन सोचा शाप दत समय मझ बलकल दया नह आयी अब न जान नरजन मर साथ कसा वयवहार करगा उसी समय आकाशवाणी हयी - भवानी तमन यह कया कया मन तो तमह सिषटरचना क लय भजा था परनत तमन शाप दकर यह कसा चरतर कया ह भवानी ऊचा और बलवान ह नबरल को सताता ह और यह निशचत ह क वह इसक बदल दख पाता ह इसलय जब दवापर यग आयगा तब तमहार भी पाच पत हग भवानी न अपन शाप क बदल नरजन का शाप सना तो मन म सोच वचार कया पर मह स कछ न बोल वह सोचन लगी - मन बदल म शाप पाया नरजन म तो तर वश म ह जसा चाहो वयवहार करो फ़र अषटागी न वषण को दलारत हय कहा - पतर तम मर बात सनो सच-सच बताओ जब तम पता क चरण सपशर करन गय तब कया हआ पहल तो तमहारा शरर गोरा था तम शयाम रग कस हो गय

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वषण न कहा - पता क दशरन हत जब म पाताललोक पहचा तो शषनाग क पास पहच गया वहा उसक वष क तज स म ससत (अचत) हो गया मर शरर म उसक वष का तज समा गया िजसस वह शयाम हो गया तब एक आवाज हयी - वषण तम माता क पास लौट जाओ यह मरा सतयवचन ह क जस ह सतयग तरतायग बीत जायग तब दवापर म तमहारा कषणअवतार होगा उस समय तम शषनाग स अपना बदला लोग तब तम यमना नद पर जाकर नाग का मानमदरन करोग यह मरा नयम ह क जो भी ऊचा नीच वाल को सताता ह उसका बदला वह मझस पाता ह जो जीव दसर को दख दता ह उस म दख दता ह ह माता उस आवाज को सनकर म तमहार पास आ गया यह सतय ह क मझ पता क शरीचरण नह मल भवानी यह सनकर परसनन हो गयी और बोल - पतर सनो म तमह तमहार पता स मलाती ह और तमहार मन का भरम मटाती ह पहल तम बाहर क सथलदिषट (शरर क आख) छोङकर भीतर क ानदिषट (अनतर क आख तीसर आख) स दखो और अपन हरदय म मरा वचन परखो सथलदह क भीतर सममन क सवरप को ह कतार समझो मन क अलावा दसरा और कसी को कतार न मानो यह मन बहत ह चचल और गतशील ह ण भर म सवगर पाताल क दौङ लगाता ह और सवछनद होकर सब ओर वचरता ह मन एक ण म अननतकला दखाता ह और इस मन को कोई नह दख पाता मन को ह नराकार कहो मन क ह सहार दन-रात रहो ह वषण बाहर दनया स धयान हटाकर अतमरखी हो जाओ अपनी सरत और दिषट को पलट कर भकट मधय (भह क बीच आाचकर) पर या हरदय क शनय म जयोत को दखो जहा जयोत झलमल झालर सी परकाशत होती ह वषण न अपनी सवास को घमाकर भीतर आकाश क ओर दौङाया और (अतर) आकाशमागर म धयान लगाया हरदयगफ़ा म परवश कर धयान लगाया धयान परकया म वषण न पहल सवास का सयम पराणायाम स कया कमभक म जब उनहन सवास को रोका तो पराण ऊपर उठकर धयान क कनदर शनय म आया वहा वषण को lsquoअनहद-नादrsquo क गजरना सनाई द यह अनहद बाजा सनत हय वषण परसनन हो गय तब मन न उनह सफ़द लाल काला पीला आद रगीन परकाश दखाया धमरदास इसक बाद वषण को मन न अपन आपको दखाया और lsquoजयोतपरकाशrsquo कया िजस दखकर वह परसनन हो गय और बोल - ह माता आपक कपा स आज मन ईशवर को दखा धमरदास अचानक चककर बोल - सदगर यह सनकर मर भीतर एक भरम उतपनन हआ ह अषटागीकनया न जो lsquoमन का धयानrsquo बताया इसस तो समसत जीव भरमा गय ह यानी भरम म पङ गय ह कबीर बोल - धमरदास यह कालनरजन का सवभाव ह ह क इसक चककर म पङन स वषण सतयपरष का भद नह जान पाय (नरजन न अषटागी को पहल ह सचत कर आदश द दया था क सतयपरष का कोई भद जानन न पाय ऐसी माया फ़लाना) अब उस कामनी अषटागी क यह चाल दखो क उसन अमतसवरप सतयपरष को छपाकर वषरप कालनरजन को दखाया िजस lsquoजयोतrsquo का धयान अषटागी न बताया उस जयोत स कालनरजन

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को दसरा न समझो धमरदास अब तम यह वलण गढ़ सतय सनो जयोत का जसा परकटरप होता ह वसा ह गपतरप भी ह (दय मोमबी आद क जयोत लौ) जो हरदय क भीतर ह वह ह बाहर दखन म भी आता ह जब मनषय दपक जलाता ह तो उस जयोत क भाव-सवभाव को दखो और नणरय करो जयोत को दखकर पतगा बहत खश होता ह और परमवश अपना भला जानकर उसक पास आता ह लकन जयोत को सपशर करत ह पतगा भसम हो जाता ह इस परकार अानता म मतवाला हआ वह पतगा उसम जल मरता ह जयोतसवरप कालनरजन भी ऐसा ह ह जो भी जीवातमा उसक चककर म आ जाता ह कररकाल उस छोङता नह इस काल न करोङ वषण अवतार को खाया और अनक बरहमा शकर को खाया तथा अपन इशार पर नचाया काल दवारा दय जान वाल जीव क कौन-कौन स दख को कह वह लाख जीव नतय ह खाता ह ऐसा वह भयकर काल नदरयी ह धमरदास बोल - मर मन म सशय ह अषटागी को सतयपरष न उतपनन कया था और िजस परकार उतपनन कया वह सब कथा मन जानी कालनरजन न उस भी खा लया फ़र वह सतयपरष क परताप स बाहर आयी फ़र उस अषटागी न ऐसा धोखा कय कया क कालनरजन को तो परकट कया और सतयपरष का भद गपत रखा यहा तक क सतयपरष का भद उसन बरहमा वषण महश को भी नह बताया और उनस भी कालनरजन का धयान कराया अषटागी न कसा चरतर कया क सतयपरष को छोङकर कालनरजन क साथी हो गयी अथारत िजन सतयपरष का वह अश थी उसका धयान कय नह कराया कबीर साहब बोल - धमरदास नार का सवभाव तमह बताता ह िजसक घर म पतरी होती ह वह अनक जतन करक उस पालता-पोसता ह पहनन को वसतर खान को भोजन सोन को शयया रहन को घर आद सब सख दता ह और घर-बाहर सब जगह उस पर वशवास करता ह उसक माता-पता उसक हत म य आद करा क ववाह करत हय वधपवरक उस वदा करत ह माता-पता क घर स वदा होकर वह अपन पत क घर आ जाती ह तो उसक साथ सब गण म होकर परम म इतनी मगन हो जाती ह क अपन माता-पता सबको भला दती ह धमरदास नार का यह सवभाव ह इसलय नार सवभाववश अषटागी भी पराय सवभाव वाल ह हो गयी वह कालनरजन क साथ होकर उसी क होकर रह गयी और उसी क रग म रग गयी इसीलय उसन सतयपरष का भद परकट नह कया और वषण को कालनरजन का ह रप दखाया

काल-नरजन का धोखा

धमरदास बोल - यह रहसय तो मन जान लया अब आग का रहसय बताओ आग कया हआ कबीर साहब बोल - अषटागी न वषण को पयार कया और कहा बरहमा न तो वयभचार और झठ स अपनी मानमयारदा खो द वषण अब सब दवताओ म तमह ईशवर होग सब दवता तमह को शरषठ मानग और तमहार पजा करग िजसक इचछा तम मन म करोग वह कायर म परा करगी

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फ़र अषटागी शकर क पास गयी और बोल - शव तम मझस अपन मन क बात कहो तम जो चाहत हो वह मझस मागो अपन दोन पतर को तो मन उनक कमारनसार द दया ह शकर न हाथ जोङकर कहा - माता जसा तमन कहा वह मझ दिजय मरा यह शरर कभी नषट न हो ऐसा वर दिजय अषटागी न कहा - ऐसा नह हो सकता कयक lsquoआदपरषrsquo क अलावा कोई दसरा अमर नह हआ तम परमपवरक पराण पवन का योगसयम करक योगतप करो तो चार-यग तक तमहार दह बनी रहगी तब जहा तक परथवी आकाश होगा तमहार दह कभी नषट नह होगी वषण और महश ऐसा वर पाकर बहत परसनन हय पर बरहमा बहत उदास हय तब बरहमा वषण क पास पहच और बोल - भाई माता क वरदान स तम दवताओ म परमख और शरषठ हो माता तम पर दयाल हयी पर म उदास ह अब म माता को कया दोष द यह सब मर ह करनी का फ़ल ह तम कोई ऐसा उपाय करो िजसस मरा वश भी चल और माता का शाप भी भग न हो वषण बोल - बरहमा तम मन का भय और दख तयाग दो क माता न मझ शरषठ पद दया ह म सदा तमहार साथ तमहार सवा करगा तम बङ और म छोटा ह अतः तमहारा मान-सममान बराबर करगा जो कोई मरा भकत होगा वह तमहार भी वश क सवा करगा भाई म ससार म ऐसा मत-वशवास बना दगा क जो कोई पणयफ़ल क आशा करता हो और उसक लय वह जो भी य धमर पजा वरत आद जो भी कायर करता हो वह बना बराहमण क नह हग जो बराहमण क सवा करगा उस पर महापणय का परभाव होगा वह जीव मझ बहत पयारा होगा और म उस अपन समान बकठ म रखगा यह सनकर बरहमा बहत परसनन हय वषण न उनक मन क चता मटा द बरहमा न कहा - मर भी यह चाह थी क मरा वश सखी हो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन क फ़लाय जाल का वसतार दखो उसन खानी वाणी क मोह स मोहत कर सार ससार को ठग लया और सब इसक चककर म पङकर अपन आप ह इसक बधन म बध गय तथा परमातमा को सवय को अपन कलयाण को भल ह गय यह कालनरजन वभनन सख भोग आद तथा सवगर आद का लालच दकर सब जीव को भरमाता ह और उनस भात-भात क कमर करवाता ह फ़र उनह जनम-मरण क झल म झलाता हआ बहभात कषट दता ह ------------------- खानी बधन - सतरी-पत पतर-पतरी परवार धन-सप आद को ह सब कछ मानना खानी बधन ह वाणी बधन - भत-परत सवगर-नकर मान-अपमान आद कलपनाय करत हय वभनन चतन करना वाणी बधन ह

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कयक मन इन दोन जगह ह जीव को अटकाय रखता ह मोट माया सब तज झीनी तजी न जाय मान बङाई ईषयार फ़र लख चौरासी लाय सनतमत म खानी बधन को lsquoमोटमायाrsquo और वाणी बधन को lsquoझीनीमायाrsquo कहत ह बना ान क इन बधन स छट पाना जीव क लय बहद कठन ह खानी बधन क अतगरत मोटमाया को तयाग करत तो बहत लोग दख गय ह परनत झीनीमाया का तयाग बरल ह कर पात ह कामना वासनारपी झीनीमाया का बधन बहत ह जटल ह इसन सभी को भरम म फ़सा रखा ह इसक जाल म फ़सा कभी िसथर नह हो पाता अतः यह कालनरजन सब जीव को अपन जाल म फ़साकर बहत सताता ह राजा बल हरशचनदर वण वरोचन कणर यधषठर आद और भी परथवी क पराणय का हतचतन करन वाल कतन तयागी और दानी राजा हय इनको कालनरजन न कस दश म ल जाकर रखा यानी य सब भी काल क गाल म ह समा गय कालनरजन न इन सभी राजाओ क जो ददरशा क वह सारा ससार ह जानता ह क य सब बवश होकर काल क अधीन थ ससार जानता ह क कालनरजन स अलग न हो पान क कारण उनक हरदय क शदध नह हयी कालनरजन बहत परबल ह उसन सबक बदध हर ल ह य कालनरजन अभमानी lsquoमनrsquo हआ जीव क दह क भीतर ह रहता ह उसक परभाव म आकर जीव lsquoमन क तरगrsquo म वषयवासना म भला रहता ह िजसस वह अपन कलयाण क साधन नह कर पाता तब य अानी भरमत जीव अपन घर अमरलोक क तरफ़ पलटकर भी नह दखता और सतय स सदा अनजान ह रहता ह ---------------------- धमरदास बोल - मन यम यानी कालनरजन का धोखा तो पहचान लया ह अब बताओ क गायतरी क शाप का आग कया हआ कबीर साहब बोल - म तमहार सामन अगम (जहा पहचना असभव हो) ान कहता ह गायतरी न अषटागी दवारा दया शाप सवीकार तो कर लया पर उसन भी पलट कर अषटागी को शाप दया क माता मनषय जनम म जब म पाच परष क पतनी बन तो उन परष क माता तम बनो उस समय तम बना परष क ह पतर उतपनन करोगी और इस बात को ससार जानगा आग दवापर यग आन पर दोन न गायतरी न दरौपद और अषटागी न कनती क रप म दह धारण क और एक-दसर क शाप का फ़ल भगता जब यह शाप और उसका झगङा समापत हो गया तब फ़र स जगत क रचना हयी बरहमा वषण महश और अषटागी इन चारो न अणडज पणडज ऊषमज और सथावर इन चार खानय को उतपनन कया फ़र चार-खानय क अतगरत भनन-भनन सवभाव क चौरासी लाख योनया उतपनन क पहल अषटागी न अणडज यानी अड स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क बरहमा न पणडज यानी शरर क अनदर गभर स उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क वषण न ऊषमज यानी मल पसीना पानी आद स

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उतपनन होन वाल जीवखान क रचना क शकर न सथावर यानी व जङ पहाङ घास बल आद जीवखान क रचना क इस तरह स चार खानय को चार न रच दया और उसम जीव को बधन म डाल दया फ़र परथवी पर खती आद होन लगी तथा समयानसार लोग lsquoकारणrsquo lsquoकरणrsquo और lsquoकतारrsquo को समझन लग इस परकार चार खान क चौरासी का वसतार हो गया इन चार खानय को बोलन क लय lsquoचार परकार क वाणीrsquo द गयी बरहमा वषण महश और अषटागी दवारा सिषटरचना होन क कारण जीव उनह को सब कछ समझन लग और सतयपरष क तरफ़ स भल रह

चार खान चौरासी लाख योनय स आय मनषय क लण

धमरदास बोल - िजन चार खान क उतप हयी उनका वणरन मझ बताय चौरासीलाख योनय क जो वकराल धाराय ह उनम कस योन का कतना वसतार हआ वह भी बताय कबीर साहब बोल - म तमह योनभाव का वणरन सनाता ह चौरासी लाख योनय म नौ लाख जल क जीव और चौदह लाख पी होत ह उङन रगन वाल कम-कट आद साईस लाख होत ह व बल फ़ल आद सथावर तीस लाख होत ह और चारलाख परकार क मनषय हय इन सब योनय म मनषयदह सबस शरषठ ह कयक इसी स मो को जाना समझा और परापत कया जा सकता ह मनषययोन क अतरकत और कसी योन म मोपद या परमातमा का ान नह होता कयक और योन क जीव कमरबधन म भटकत रहत ह धमरदास बोल - जब सभी योनय क जीव एक समान ह तो फ़र सभी जीव को एक सा ान कय नह ह कबीर साहब बोल - जीव क असमानता क वजह तमह समझा कर कहता ह चारखान क जीव एक समान ह परनत शरररचना म ततववशष का अनतर ह सथावर खान म सफ़र lsquoएक ततवrsquo होता ह ऊषमज म lsquoदो ततवrsquo अणडज खान म lsquoतीन ततवrsquo और पणडज खान म lsquoचारततवrsquo होत ह इनस अलग मनषयशरर म पाच-ततव होत ह अब चार खान का ततवनणरय भी जान अणडज खान म तीन ततव - जल अिगन और वाय ह सथावर खान म एक ततव lsquoजलrsquo वशष ह ऊषमज खान म दो ततव वाय तथा अिगन बराबर समझो पणडज खान म चार ततव अिगन परथवी जल और वाय वशष ह पणडज खान म ह आन वाला मनषय - अिगन वाय परथवी जल आकाश स बना ह धमरदास बोल - मनषययोन म नर-नार ततव म एक समान ह परनत सबको एक समान ान कय नह ह सतोष मा दया शील आद सदगण स कोई मनषय तो शनय होता ह तथा कोई इन गण स परपणर होता ह कोई मनषय पापकमर करन वाला अपराधी होता ह तो कोई वदवान कोई दसर को दख दन वाल सवभाव का होता ह

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तो कोई अतकरोधी कालरप होता ह कोई मनषय कसी जीव को मारकर उसका आहार करता ह तो कोई जीव क परत दयाभाव रखता ह कोई आधयातम क बात सनकर सख पाता ह तो कोई कालनरजन क गण गाता ह मनषय म यह नानागण कस कारण स होत ह कबीर साहब बोल - म तमस मनषययोन क नर-नार क गण अवगण को भल परकार स कहता ह कस कारण स मनषय ानी और अानी भाव वाला होता ह वह पहचान सनो शर साप का गीदङ सयार कौवा गदध सअर बलल तथा इनक अलावा और भी अनक जीव ह जो इनक समान हसक पापयोन अभय मास आद खान वाल दषकम नीच गण वाल समझ जात ह इन योनय म स जो जीव आकर मनषययोन म जनम लता ह तो भी उसक पीछ क योन का सवभाव नह छटता उसक पवरकम का परभाव उसको अभी परापत मानवयोन म भी बना रहता ह अतः वह मनषयदह पाकर भी पवर क स कम म परवत रहता ह ऐस पशयोनय स आय जीव नरदह म होत हय भी परतय पश ह दखायी दत ह िजस योन स जो मनषय आया ह उसका सवभाव भी वसा ह होगा जो दसर पर घात करन वाल करर हसक पापकम तथा करोधी वषल सवभाव क जीव ह उनका भी वसा ह सवभाव बना रहता ह धमरदास मनषययोन म जनम लकर ऐस सवभाव को मटन का एक ह उपाय ह क कसी परकार सौभागय स सदगर मल जाय तो व ान दवारा अान स उतपनन इस परभाव को नषट कर दत ह और फ़र मनषय कागदशा (वषठा मल आद क समान वासनाओ क चाहत) क परभाव को भल जाता ह उसका अान पर तरह समापत हो जाता ह तब पवर पशयोन और अभी क मनषययोन का यह दवद छट जाता ह सदगरदव ान क आधार ह व अपन शरण म आय हय जीव को ानअिगन म तपाकर एव उपाय स घस पीटकर सतयान उपदश अनसार उस वसा ह बना लत ह और नरतर साधना अभयास स उस पर परभावी पवरयोनय क ससकार समापत कर दत ह िजस परकार धोबी वसतर धोता ह और साबन मलन स वसतर साफ़ हो जाता ह तब वसतर म यद थोङा सा ह मल हो तो वह थोङ ह महनत स साफ़ हो जाता ह परनत वसतर बहत अधक गनदा हो तो उसको धोन म अधक महनत क आवशयकता होती ह वसतर क भात ह जीव क सवभाव को जानो कोई-कोई जीव जो अकर होता ह ऐसा जीव सदगर क थोङ स ान को ह वचार कर शीघर गरहण कर लता ह उस ान का सकत ह बहत होता ह अधक ान क आवशयकता नह होती ऐसा शषय ह सचचान का अधकार होता ह धमरदास बोल - यह तो थोङ सी योनय क बात हयी अब चारखान क जीव क बात कह चारखान क जीव जब मनषययोन म आत ह उनक लण कया ह िजस जानकर म सावधान हो जाऊ कबीर साहब बोल - चारखान क चौरासी लाख योनय म भरमाया भटकता जीव जब बङ भागय स मनषयदह धारण करन का अवसर पाता ह तब उसक अचछ-बर लण का भद तमस कहता ह िजसको बहत ह आलस नीद आती ह तथा कामी करोधी और दरदर होता ह वह अणडज खान स आया ह जो बहत चचल ह और चोर करना िजस अचछा लगता ह धन-माया क बहत इचछा रखता ह दसर क चगल नदा िजस अचछ लगती ह इसी सवभाव क कारण वह दसर क घर वन तथा झाङ म आग लगाता ह तथा चचल होन क कारण कभी बहत रोता ह

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कभी नाचता-कदता ह कभी मगल गाता ह भतपरत क सवा उसक मन को बहत अचछ लगती ह कसी को कछ दता हआ दखकर वह मन म चढ़ता ह कसी भी वषय पर सबस वाद-ववाद करता ह ान धयान उसक मन म कछ नह आत वह गर सदगर को नह पहचानता न मानता वदशासतर को भी नह मानता वह अपन मन स ह छोटा बङा बनता रहता ह और समझता ह क मर समान दसरा कोई नह ह उसक वसतर मल तथा आख कचङयकत और मह स लार बहती ह वह अकसर नहाता भी नह ह जआ चौपङ क खल म मन लगाता ह उसका पाव लमबा और कभी-कभी वह कबङा भी होता ह य सब अणडज खान स आय मनषय क लण ह अब ऊषमज क बार म कहता ह यह जगल म जाकर शकार करत हय बहत जीव को मारकर खश होता ह इन जीव को मारकर अनक तरह स पकाकर वह खाता ह वह सदगर क नाम-ान क नदा करता ह गर क बराई और नदा करक वह गर क महतव को मटान का परयास करता ह वह शबदउपदश और गर क नदा करता ह वह बहत बात करता ह तथा बहत अकङता ह और अहकार क कारण बहत ान बनाकर समझाता ह वह सभा म झठ वचन कहता ह टङ पगङ बाधता ह िजसका कनारा छाती तक लटकता ह दया धमर उसक मन म नह होता कोई पणय-धमर करता ह वह उसक हसी उङाता ह माला पहनता ह और चदन का तलक लगाता ह तथा शदध सफ़द वसतर पहनकर बाजार आद म घमता ह वह अनदर स पापी और बाहर स दयावान दखता ह ऐसा अधम-नीच जीव यम क हाथ बक जाता ह उसक दात लमब तथा बदन भयानक होता ह उसक पील नतर होत ह कबीर साहब बोल - अब सथावर खान स आय जीव (मनषय) क लण सनो इसस आया जीव भस क समान शरर धारण करता ह ऐस जीव क बदध णक होती ह अतः उनको पलटन म दर नह लगती वह कमर म फ़ टा सर पर पगङ बाधता ह तथा राजदरबार क सवा करता ह कमर म तलवार कटार बाधता ह इधर-उधर दखता हआ मन स सन (आख मारकर इशारा करना) मारता ह परायी सतरी को सन स बलाता ह मह स रसभर मीठ बात कहता ह िजनम कामवासना का परभाव होता ह वह दसर क घर को कदिषट स ताकता ह तथा जाकर चोर करता ह पकङ जान पर राजा क पास लाया जाता ह सारा ससार भी उसक हसी उङाता ह फ़र भी उसको लाज नह आती एक ण म ह दवी-दवता क पजा करन क सोचता ह दसर ह ण वचार बदल दता ह कभी उसका मन कसी क सवा म लग जाता ह फ़र जलद ह वह उसको भल भी जाता ह एक ण म ह वह (कोई) कताब पढ़कर ानी बन जाता ह एक ण म ह वह सबक घर आना जाना घमना करता ह एक ण म बहादर एक ण म ह कायर भी हो जाता ह एक ण म ह मन म साह (धनी) हो जाता ह और दसर ण म ह चोर करन क सोचता ह एक ण म धमर और दसर ण म अधमर भी करता ह इस परकार ण परतण मन क बदलत भाव क साथ वह सखी दखी होता ह भोजन करत समय माथा खजाता ह तथा फ़र बाह जाघ पर रगङता ह भोजन करता ह फ़र सो जाता ह जो जगाता ह उस मारन दौङता ह और गसस स िजसक आख लाल हो जाती ह और उसका भद कहा तक कह धमरदास अब पणडज खान स आय जीव का लण सनो पणडज खान स आया जीव वरागी होता ह तथा योगसाधना क मदराओ म उनमनी-समाध का मत आद धारण करन वाला होता ह और वह जीव वद आद का वचार कर धमर-कमर करता ह तीथर वरत धयान योग समाध म लगन वाला होता ह उसका मन गरचरण म

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भल परकार लगता ह वह वद पराण का ानी होकर बहत ान करता ह और सभा म बठकर मधर वातारलाप करता ह राज मलन का तथा राज क कायर करन का और सतरीसख को बहत मानता ह कभी भी अपन मन म शका नह लाता और धन-सप क सख को मानता ह बसतर पर सनदर शया बछाता ह उस उम शदध साितवक पौिषटक भोजन बहत अचछा लगता ह और लग सपार पान बीङा आद खाता ह पणयकमर म धन खचर करता ह उसक आख म तज और शरर म परषाथर होता ह सवगर सदा उसक वश म ह वह कह भी दवी-दवता को दखता ह तो माथा झकाता ह उसका धयान समरन म बहत मन लगता ह तथा वह सदा गर क अधीन रहता ह

चौरासी कय बनी

कबीर साहब बोल - मन चारो खान क लण तमस कह अब सनो मनषययोन क अवध समापत होन स पहल कसी कारण स दह छट जाय वह फ़र स ससार म मनषय जनम लता ह अब उसक बार म सनो धमरदास बोल - मर मन म एक सशय ह जब चौरासी लाख योनय म भरमन भटकन क बाद य जीव मनषयदह पाता ह और मनषयदह पाया हआ य जीव फ़र दह (असमय) छटन पर पनः मनषयदह पाता ह तो मतय होन और पनः मनषयदह पान क यह सध कस हयी और उस पनः मनषय जनम लन वाल क गण लण भी कहो कबीर साहब बोल - आय शष रहत जो मनषय मर जाता ह फ़र वह शष बची आय को परा करन हत मनषयशरर धारण करक आता ह जो अानी मखर फ़र भी इस पर वशवास न कर वह दपक बी जलाकर दख और बहत परकार स उस दपक म तल भर परनत वाय का झका (मतय आघात) लगत ह वह दपक बझ जाता ह (भल ह उसम खब तल भरा हो) उस बझ दपक को आग स फ़र जलाय तो वह दपक फ़र स जल जाता ह इसी परकार जीव मनषय फ़र स दह धारण करता ह अब उस मनषय क लण भी सनो उसका भद तमस नह छपाऊगा मनषय स फ़र मनषय का शरर पान वाला वह मनषय शरवीर होता ह भय और डर उसक पास भी नह फ़टकता मोहमाया ममता उस नह वयापत उस दखकर दशमन डर स कापत ह वह सतगर क सतयशबद को वशवासपवरक मानता ह नदा को वह जानता तक नह वह सदा सदगर क शरीचरण म अपना मन लगाता ह और सबस परममयी वाणी बोलता ह अानी होकर ान को पछता समझता ह उस सतयनाम का ान और परचय करना बहद अचछा लगता ह धमरदास ऐस लण स यकत मनषय स ानवातार करन का अवसर कभी खोना नह चाहय और अवसर मलत ह उसस ानचचार करनी चाहय जो जीव सदगर क शबदरपी उपदश को पाता ह और भल परकार गरहण करता ह उसक जनम-जनम का पाप और अानरपी मल छट जाता ह सतयनाम का परमभाव स समरन करन वाला जीव भयानक काल-माया क फ़द स छटकर सतयलोक जाता ह सदगर क शबदउपदश को हरदय म धारण करन वाला जीव अमतमय अनमोल होता ह वह सतयनाम साधना क बल पर अपन असलघर अमरलोक चला जाता ह जहा सदगर क हसजीव सदा आननद करत ह और अमत आहार करत ह

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जबक कालनरजन क जीव कागदशा (वषठा मल क समान घणत वासनाओ क लालची) म भटकत हय जनम-मरण क कालझल म झलत रहत ह सतयनाम क परताप स कालनरजन जीव को सतयलोक जान स नह रोकता कयक महाबल कालनरजन कवल इसी स भयभीत रहता ह उस जीव पर सदगर क वश क छाप दखकर काल बवशी स सर झकाकर रह जाता ह धमरदास बोल - आपन चारखान क जो वचार कह वो मन सन अब म जानना चाहता ह क चौरासी लाख योनय क धारा का वसतार कस कारण स कया गया और इस अवनाशी जीव को अनगनत कषट म डाल दया गया मनषय क कारण ह यह सिषट बनायी गयी ह या क कोई और जीव को भी भोग भगतन क लय बनायी गयी ह कबीर साहब बोल - सभी योनय म शरषठ मनषयदह सख दन वाल ह इस मनषयदह म ह गरान समाता ह िजसको परापत कर मनषय अपना कलयाण कर सकता ह ऐसा मनषयशरर पाकर जीव जहा भी जाता ह सदगर क भिकत क बना दख ह पाता ह मनषयदह को पान क लय जीव को चौरासी क भयानक महाजाल स गजरना ह होता ह फ़र भी यह दह पाकर मनषय अान और पाप म ह लगा रहता ह तो उसका घोरपतन निशचत ह उस फ़र स भयकर कषटदायक (साढ़ बारह लाख साल आय क) चौरासी धारा स गजरना होगा दर-ब-दर भटकना होगा सतयान क बना मनषय तचछ वषयभोग क पीछ भागता हआ अपना जीवन बना परमाथर क ह नषट कर लता ह ऐस जीव का कलयाण कस तरह हो सकता ह उस मो भला कस मलगा अतः इस लय को परापत करन क लय सतगर क तलाश और उनक सवा भिकत अतआवशयक ह धमरदास मनषय क भोगउददशय स चौरासी धारा या चौरासी लाख योनया रची गयी ह सासारक-माया और मन-इिनदरय क वषय क मोह म पङकर मनषय क बदध का नाश हो जाता ह वह मढ़ अानी ह हो जाता ह और वह सदगर क शबदउपदश को नह सनता तो वह मनषय चौरासी को नह छोङ पाता उस अानी जीव को भयकर कालनरजन चौरासी म लाकर डालता ह जहा भोजन नीद डर और मथन क अतरकत कसी पदाथर का ान या अनय ान बलकल नह ह चौरासी लाख योनय क वषयवासना क परबलससकार क वशीभत हआ य जीव बारबार कररकाल क मह म जाता ह और अतयनत दखदायी जनम-मरण को भोगता हआ भी य अपन कलयाण का साधन नह करता धमरदास अानी जीव क इस घोर वप सकट को जानकर उनह सावधान करन क लय (सनत न) पकारा और बहत परकार स समझाया क मनषयशरर पाकर सतयनाम गरहण करो और इस सतयनाम क परताप स अपन नजधाम सतयलोक को परापत करो आदपरष क वदह (बना वाणी स जपा जान वाला) और िसथर आदनाम (जो शरआत स एक ह ह) को जो जाच-समझ कर (सचचगर स मतलब य नाम मह स जपन क बजाय धनरप होकर परकट हो जाय यह सचचगर और सचचीदा क पहचान ह) जो जीव गरहण करता ह उसका निशचत ह कलयाण होता ह गर स परापत ान स आचरण करता हआ वह जीव सार को गरहण करन वाला नीर-ीर ववक (हस क तरह दध और पानी क अनतर को जानन वाला) हो जाता ह और कौव क गत (साधारण और दारहत मनषय) तयाग कर हसगत वाला हो जाता ह इस परकार क ानदिषट क परापत होन स वह वनाशी तथा अवनाशी का वचार करक

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इस नशवर नाशवान जङ दह क भीतर ह अगोचर और अवनाशी परमातमा को दखता ह धमरदास वचार करो वह नःअर (शाशवत नाम) ह सार ह जो अर (जयोत िजस पर सभी योनय क शरर बनत ह धयान क एक ऊची िसथत) स परापत होता ह सब जङततव स पर वह असल सारततव ह

कालनरजन क चालबाजी

धमरदास बोल - साहब चार खानय क रचना कर फ़र कया कया यह मझ सपषट कहो कबीर साहब बोल - धमरदास यह कालनरजन क चालबाजी ह िजस पडत काजी नह समझत और व इस lsquoभक कालनरजनrsquo को भरमवश सवामी (भगवान आद) कहत ह और सतयपरष क नाम ानरपी अमत को तयाग कर माया का वषयरपी वष खात ह इन चारो अषटागी (आदशिकत) बरहमा वषण महश न मलकर यह सिषटरचना क और उनहन जीव क दह को कचचा रग दया इसीलय मनषयदह म आय समय आद क अनसार बदलाव होता रहता ह पाच-ततव परथवी जल वाय अिगन आकाश और तीन गण सत रज तम स दह क रचना हयी ह उसक साथ चौदह-चौदह यम लगाय गय ह इस परकार मनषयदह क रचना कर काल न उस मार खाया तथा फ़र फ़र उतपनन कया इस तरह मनषय सदा जनम-मरण क चककर म पङा ह रहता ह ओकार वद का मल अथारत आधार ह और इस ओकार म ह ससार भला-भला फ़र रहा ह ससार क लोग न ओकार को ह ईशवर परमातमा सब कछ मान लया व इसम उलझ कर सब ान भल गय और तरह-तरह स इसी क वयाखया करन लग यह ओकार ह नरजन ह परनत आदपरष का सतयनाम जो वदह ह उस गपत समझो कालमाया स पर वह lsquoआदनामrsquo गपत ह ह धमरदास फ़र बरहमा न अठासी हजार ऋषय को उतपनन कया िजसस कालनरजन का परभाव बहत बढ़ गया (कयक व उसी का गण तो गात ह) बरहमा स जो जीव उतपनन हय वो बराहमण कहलाय बराहमण न आग इसी शा क लय शासतर का वसतार कर दया (इसस कालनरजन का परभाव और भी बढ़ा कयक उनम उसी क बनावट महमा गायी गयी ह) बरहमा न समत शासतर पराण आद धमरगरनथ का वसतरत वणरन कया और उसम समसत जीव को बर तरह उलझा दया (जबक परमातमा को जानन का सीधा सरल आसान रासता lsquoसहजयोगrsquo ह) जीव को बरहमा न भटका दया और शासतर म तरह-तरह क कमरकाड पजा उपासना क नयम वध बताकर जीव को सतय स वमख कर भयानक कालनरजन क मह म डालकर उसी (अलखनरजन) क महमा को बताकर झठा धयान (और ान) कराया इस तरह lsquoवदमतrsquo स सब भरमत हो गय और सतयपरष क रहसय को न जान सक धमरदास नरकार (नरकार) नरजन न यह कसा झठा तमाशा कया उस चरतर को भी समझो कालनरजन (मन

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दवारा) आसरभाव उतपनन कर परताङत जीव को सताता ह दवता ऋष मन सभी को परताङत करता ह फ़र अवतार (दखाव क लय नजमहमा क लय) धारण कर रक बनता ह (जबक सबस बङा भक सवय ह) और फ़र असर का सहार (क नाटक) करता ह और इस तरह सबस अपनी महमा का वशष गणगान करवाता ह िजसक कारण जीव उस शिकतसपनन और सब कछ जानकर उसी स आशा बाधत ह क यह हमारा महान रक ह वह (वभनन अवतार दवारा) अपनी रककला दखाकर अनत म सब जीव का भण कर लता ह (यहा तक क अपन पतर बरहमा वषण महश को भी नह छोङता) जीवन भर उसक नाम ान जप पजा आद क चककर म पङा जीव अनत समय पछताता ह जब काल उस बरहमी स खाता ह (मतय स कछ पहल अपनी आगामी गत पता लग जाती ह)

तपतशला पर काल पीङत जीव क पकार

धमरदास अब आग सनो बरहमा न अड़सठ तीथर सथापत कर पाप पणय और कमर अकमर का वणरन कया फ़र बरहमा न बारह राश साईस नतर सात वार और पदरह तथ का वधान रचा इस परकार जयोतष शासतर क रचना हयी अब आग क बात सनो कबीर साहब बोल - धमरदास कालनरजन का जाल फ़लान क लय बनाय गय अड़सठ तीथर य ह 1 काशी 2 परयाग 3 नमषारणय 4 गया 5 करतर 6 परभास 7 पषकर 8 वशवशवर 9 अटटहास 10 महदर 11 उजजन 12 मरकोट 13 शककणर 14 गोकणर 15 रदरकोट 16 सथलशवर 17 हषरत 18 वषभधवज 19 कदार 20 मधयमशवर 21 सपणर 22 कातरकशवर 23 रामशवर 24 कनखल 25 भदरकणर 26 दडक 27 चदणडा 28 कमजागल 29 एकागर 30 छागलय 31 कालजर 32 मडकशवर 33 मथरा 34 मरकशवर 35 हरशचदर 36 सदधाथर तर 37 वामशवर 38 कककटशवर 39 भसमगातर 40 अमरकटक 41 तरसधया 42 वरजा 43 अक शवर 44 दवारका 45 दषकणर 46 करबीर 47 जलशवर 48 शरीशल 49 अयोधया 50 जगननाथपर 51 कारोहण 52 दवका 53 भरव 54 पवरसागर 55 सपतगोदावर 56 नमलशवर 57 कणरकार 58 कलाश 59 गगादवार 60 जललग 61 बङवागन 62 बदरकाशरम 63 शरषठ सथान 64 वधयाचल 65 हमकट 66 गधमादन 67 लगशवर 68 हरदवार और बारह राशया - मष वष मथन ककर सह कनया तला विशचक धन मकर कभ मीनय ह तथा साईस नतर - अिशवनी भरणी कका रोहणी मगशरा आदरार पनवरस पषय आशलषा मघा पवारफ़ालगनी उराफ़ालगनी हसत चतरा सवात वशाखा अनराधा जयषठा मल पवारषाढा उराषाढा शरवण धनरषठा शतभषा पवारभादरपरद उराभादपरद रवतीय ह सात दन - रववार सोमवार मगलवार बधवार बहसपतवार शकरवार शनवार पदरह तथया - परथम या पङवा दज तीज चौथ पचमी षषठ सपतमी अषटमी नवमी दशमी एकादशी दवादशी तरयोदशी चौदस पणरमा

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(शकलप) दसरा एक कषणप भी होता ह िजसक सभी तथया ऐसी ह होती ह कवल उसक पदरहवी तथ को पणरमा क सथान पर अमावसया कहत ह धमरदास फ़र बरहमा न चारो यग क समय को एक नयम स वसतार करत हय बाध दया एक पलक झपकन म िजतना समय लगता ह उस पल कहत ह साठपलक को एकघङ कहत ह एकघङ चौबीस मनट क होती ह साढ़सात घङ का एकपहर होता ह आठपहर का दन-रात चौबीस घट होत ह सात दन का एक सपताह और पदरह दन का एकप होता ह दो-प का एक महना और बारह महन का एक वषर होता ह सतरह लाख अटठाईस हजार वषर का सतयग बारह लाख छयानब हजार का तरता और आठ लाख चौसठ हजार का दवापर तथा चार लाख बीस हजार का कलयग होता ह चार यग को मलाकर एक महायग होता ह (यग का समय गलतबिलक बहत जयादा गलत ह य ववरण कबीर साहब दवारा बताया नह ह बिलक अनय आधार पर ह कलयग सफ़र बाईस हजार वषर का होता ह और तरता लगभग अड़तीस हजार वषर का होता ह) धमरदास बारह महन म कातरक और माघ इन दो महन को पणय वाला कह दया िजसस जीव वभनन धमर-कमर कर और उलझा रह जीव को इस परकार भरम म डालन वाल कालनरजन (और उसक परवार) क चालाक कोई बरला ह समझ पाता ह परतयक तीथर-धाम का बहत महातमय (महमा) बताया िजसस क मोहवश जीव लालच म तीथ क ओर भागन लग बहत सी कामनाओ क पतर क लय लोग तीथ म नहाकर पानी और पतथर स बनी दवी-दवता क मत रय को पजन लग लोग आतमा परमातमा (क ान) को भलकर इस झठपजा क भरम म पङ गय इस तरह काल न सब जीव को बर तरह उलझा दया सदगर क सतयशबद उपदश बना जीव सासारक कलश काम करोध शोक मोह चता आद स नह बच सकता सदगर क नाम बना वह यमरपी काल क मह म ह जायगा और बहत स दख को भोगगा वासतव म जीव कालनरजन का भय मानकर ह पणय कमाता ह थोङ फ़ल स धन-सप आद स उसक भख शानत नह होती जबतक जीव सतयपरष स डोर नह जोङता सदगर स दा लकर भिकत नह करता तबतक चौरासी लाख योनय म बारबार आता-जाता रहगा यह कालनरजन अपनी असीमकला जीव पर लगाता ह और उस भरमाता ह िजसस जीव सतयपरष का भद नह जान पाता लाभ क लय जीव लोभवश शासतर म बताय कम क और दौङता फ़रता ह और उसस फ़ल पान क आशा करता ह इस परकार जीव को झठ आशा बधाकर काल धरकर खा जाता ह कालनरजन क चालाक कोई पहचान नह पाता और कालनरजन शासतर दवारा पाप-पणय क कम स सवगर-नकर क परािपत और वषयभोग क आशा बधाकर जीव को चौरासी लाख योनय म नचाता ह पहल सतयग म इस कालनरजन का यह वयवहार था क वह जीव को लकर आहार करता था वह एक लाख जीव नतय खाता था ऐसा महान और अपार बलशाल कालनरजन कसाई ह वहा रात-दन तपतशला जलती थी कालनरजन जीव को पकङ कर उस पर धरता था उस तपतशला पर उन जीव को जलाता था और बहत दख दता था फ़र वह उनह चौरासी म डाल दता था उसक बाद जीव को तमाम योनय म भरमाता था इस परकार कालनरजन जीव को अनक परकार क बहत स कषट दता था

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तब अनकानक जीव न अनक परकार स दखी होकर पकारा क कालनरजन हम जीव को अपार कषट द रहा ह इस यमकाल का दया हआ कषट हमस सहा नह जाता सदगर हमार सहायता करो आप हमार रा करो सतयपरष न जीव को इस परकार पीङत होत दखा तब उनह दया आयी उन दया क भडार सवामी न मझ (ानी) नाम स बलाया और बहत परकार समझा कर कहा - ानी तम जाकर जीव को चताओ तमहार दशरन स जीव शीतल हो जायग जाकर उनक तपन दर करो सतयपरष क आा स म वहा आया कालनरजन जीव को सता रहा था और दखी जीव उसक सकत पर नाच रह थ जीव दख स छटपटा रह थ म वहा जाकर खङा हो गया जीव न मझ दखकर पकारा - ह साहब हम इस दख स उबार लो तब मन lsquoसतयशबदrsquo पकारा और उपदश कया फ़र सतयपरष क lsquoसारशबदrsquo स जीव को जोङ दया दख स जलत जीव शािनत महसस करन लग तब सब जीव न सतत क - ह परष आप धनय हो आपन हम दख स जलत हओ क तपन बझायी हम इस कालनरजन क जाल स छङा लो परभ दया करो मन जीव को समझाया - यद म अपनी शिकत स तमहारा उदधार करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह कयक सतयपरष क वचन अनसार सदउपदश दवारा ह आतमान स जीव का उदधार करना ह अतः जब तम यहा स जाकर मनषयदह धारण करोग तब तम मर शबदउपदश को वशवास स गरहण करना िजसस तमहारा उदधार होगा उस समय म सतयपरष क नाम समरन क सह वध और सारशबद का उपदश करगा तब तम ववक होकर सतयलोक जाओग और सदा क लय कालनरजन क बधन स मकत हो जाओग जो कोई भी मन वचन कमर स समरन करता ह और जहा अपनी आशा रखता ह वहा उसका वास होता ह अतः ससार म जाकर दह धारण कर िजसक आशा करोग और उस समय यद तम सतयपरष को भल गय तो कालनरजन तमको धर कर खा जायगा जीव बोल - ह परातन परष सनो मनषयदह धारण करक (मायारचत वासनाओ म फ़सकर) यह ान भल ह जाता ह अतः याद नह रहता पहल हमन सतयपरष जानकर कालनरजन का समरन कया क वह सब कछ ह कयक वद पराण सभी यह बतात ह वद-पराण सभी एकमत होकर यह कहत ह क नराकार नरजन स परम करो ततीस करोङ दवता मनषय और मन सबको नरजन न अपन वभनन झठ मत क डोर म बाध रखा ह उसी क झठमत स हमन मकत होन क आशा क परनत वह हमार भल थी अब हम सब सह-सह रप स दखायी द रहा ह और समझ म आ गया ह क वह सब दखदायी यम क कालफ़ास ह ह कबीर साहब बोल - जीव यह सब काल का धोखा ह काल न वभनन मत-मतातर का फ़दा बहत अधक फ़लाया ह कालनरजन न अनक कला मत का परदशरन कया और जीव को उसम फ़सान क लय बहत ठाठ फ़लाया (तरह-तरह क भोगवासना बनायी) और सबको तीथर वरत य एव याद कमर काड क फ़द म फ़ासा िजसस कोई मकत नह हो पाता

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फ़र आप शरर धारण करक परकट होता ह और (अवतार दवारा) अपनी वशषमहमा करवाता ह और नाना परकार क गण कमर आद करक सब जीव को बधन म बाध दता ह कालनरजन और अषटागी न जीव को फ़सान क लय अनक मायाजाल रच वद शासतर पराण समत आद क भरामकजाल स भयकरकाल न मिकत का रासता ह बनद कर दया जीव मनषयदह धारण करक भी अपन कलयाण क लय उसी स आशा करता ह कालनरजन क शासतर आद मतरपी कलाए बहत भयकर ह और जीव उसक वश म पङ ह सतयनाम क बना जीव काल का दड भोगत ह इस तरह जीव को बारबार समझा कर म सतयपरष क पास गया और उनको काल दवारा दय जा रह वभनन दख का वणरन कया दयाल सतयपरष तो दया क भडार और सबक सवामी ह व जीव क मल अभमानरहत और नषकामी ह तब सतयपरष न बहत परकार स समझा कर कहा - काल क भरम स छङान क लय जीव को नाम उपदश स सावधान करो

कालनरजन और कबीर का समझौता

धमरदास न कबीर साहब स कहा - परभो अब मझ वह वतात कहो जब आप पहल बार इस ससार म आय कबीर बोल - धमरदास जो तमन पछा वह यग-यग क कथा ह जो म तमस कहता ह जब सतयपरष न मझ आा क तब मन जीव क भलाई क लय परथवी क ओर पाव बढ़ाया और वकराल कालनरजन क तर म आ गया उस यग म मरा नाम अचत था जात हय मझ अनयायी कालनरजन मला वह मर पास आया और झगङत हय महाकरोध स बोला - योगजीत यहा कस आय कया मझ मारन आय हो ह परष अपन आन का कारण मझ बताओ मन कहा - नरजन म जीव का उदधार करन सतपरष दवारा भजा गया ह अनयायी सन तमन बहत कपट चतराई क भोलभाल जीव को तमन बहत भरम म डाला ह और बारबार सताया सतपरष क महमा को तमन गपत रखा और अपनी महमा का बढ़ाचढ़ा कर बखान कया तम तपतशला पर जीव को जलात हो और उस जला-पका कर खात हय अपना सवाद परा करत हो तमन ऐसा कषट जीव को दया तब सतपरष न मझ आा द क म तर जाल म फ़स जीव को सावधान करक सतलोक ल जाऊ और कषट स जीव को मिकत दलाऊ इसलय म ससार म जा रहा ह िजसस जीव को सतयान दकर सतलोक भज यह बात सनत ह कालनरजन भयकर रप हो गया और मझ भय दखान लगा फ़र वह करोध स बोला - मन सर यग तक सतपरष क सवा तपसया क तब सतपरष न मझ तीनलोक का राजय और उसक मान बङाई द

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फ़र दोबारा मन चौसठ यग तक सवा तपसया क तब सतपरष न सिषट रचन हत मझ अषटागी कनया (आदयाशिकत) को दया और उस समय तमन मझ मारकर मानसरोवर दप स नकाल दया था योगजीत अब म तमह नह छोङगा और तमह मारकर अपना बदला लगा म तमह अचछ तरह समझ गया मन कहा - धमरराय नरजन म तमस नह डरता मझ सतपरष का बल और तज परापत ह अर काल तरा मझ कोई डर नह तम मरा कछ नह बगाङ सकत कहकर मन उसी समय सतयपरष क परताप का समरन करक lsquoदवयशबद अगrsquo स काल को मारा मन उस पर दिषट डाल तो उसी समय उसका माथा काला पङ गया जस कसी पी क पख चोटल होन पर वह जमीन पर पङा बबस होकर दखता ह पर उङ नह पाता ठक यह हाल कालनरजन का था वह करोध कर रहा था पर कछ नह कर पा रहा था तब वह मर चरण म गर पङा और बोला - ानीजी म वनती करता ह क मन आपको भाई समझ कर वरोध कया यह मझस बङ गलती हयी म आपको सतयपरष क समान समझता ह आप बङ हो शिकतसमपनन हो गलती करन वाल अपराधी को भी मा दत हो जस सतयपरष न मझ तीनलोक का राजय दया वस ह आप भी मझ कछ परसकार दो सोलह सत म आप ईशवर हो ानीजी आप और सतयपरष दोन एक समान हो मन कहा - नरजनराव तम तो सतयपरष क वश (सोलह सत) म कालख क समान कलकत हय हो म जीव को lsquoसतयशबदrsquo का उपदश करक सतयनाम मजबत करा क बचान आया ह भवसागर स जीव को मकत करान को आया ह यद तम इसम वघन डालत हो तो म इसी समय तमको यहा स नकाल दगा नरजन वनती करत हय बोला - म आपका एव सतयपरष दोन का सवक ह इसक अतरकत म कछ नह जानता ानीजी आपस वनती ह क ऐसा कछ मत करो िजसस मरा बगाङ हो और जस सतयपरष न मझ राजय दया वस आप भी दो तो म आपका वचन मानगा फ़र आप मिकत क लय हसजीव मझस ल लिजय तात म वनती करता ह क मर बात मानो आपका कहना य भरमत जीव नह मानग और उलट मरा प लकर आपस वादववाद करग कयक मन मोहरपी फ़दा इतना मजबत बनाया ह क समसत जीव उसम उलझ कर रह गय ह वद शासतर पराण समत म वभनन परकार क गणधमर का वणरन ह और उसम मर तीन पतर बरहमा वषण महश दवताओ म मखय ह उनम भी मन बहत चतराई का खल रचा ह क मर मतपथ का ान परमखरप स वणरन कया गया ह िजसस सब मर बात ह मानत ह म जीव स मिनदर दव और पतथर पजवाता ह और तीथर वरत जप और तप म सबका मन फ़सा रहता ह ससार म लोग दवी दव और भत भरव आद क पजा आराधना करग और जीव को मार-काट कर बल दग ऐस अनक मत-सदधात स मन जीव को बाध रखा ह धमर क नाम पर य होम नम और इसक अलावा भी अनक जाल मन डाल रख ह अतः ानीजी आप ससार म जायग तो जीव आपका कहा नह मानग और व मर मतफ़द म फ़स रहग मन कहा - अनयाय करन वाल नरजन म तमहार जालफ़द को काट कर जीव को सतयलोक ल जाऊगा िजतन भी

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मायाजाल जीव को फ़सान क लय तमन रच रख ह सतशबद स उन सबको नषट कर दगा जो जीव मरा lsquoसारशबदrsquo मजबती स गरहण करगा तमहार सब जाल स मकत हो जायगा जब जीव मर शबद उपदश को समझगा तो तर फ़लाय हय सब भरम अान को तयाग दगा म जीव को सतनाम समझाऊगा साधना कराऊगा और उन हसजीव का उदधार कर सतलोक ल जाऊगा सतयशबद दढ़ता स दकर म उन हसजीव को दया शील मा काम आद वषय स रहत सहजता समपणर सतोष और आतमपजा आद अनक सदगण का धनी बना दगा सतपरष क समरन का जो सार उपाय ह उसम सतपरष का अवचल नाम हसजीव पकारग तब तमहार सर पर पाव रखकर म उन हसजीव को सतलोक भज दगा अवनाशी lsquoअमतनामrsquo का परचार-परसार करक म हसजीव को चता कर भरममकत कर दगा इसलय धमररायनरजन मर बात मन लगाकर सन इस परकार म तमहारा मानमदरन करगा जो मनषय वधपवरक सदगर स दा लकर नाम को परापत करगा उसक पास काल नह आता सतयपरष क नामान स हसजीव को सध हआ दखकर कालनरजन भी उसको सर झकाता ह यह सनत ह कालनरजन भयभीत हो गया उसन हाथ जोङकर वनती क - तात आप दया करन वाल हो इसलय मझ पर इतनी कपा करो सतपरष न मझ शाप दया ह क म नतय लाख जीव खाऊ यद ससार क सभी जीव सतयलोक चल गय तो मर भख कस मटगी फ़र सतपरष न मझ पर दया क और भवसागर का राजय मझ दया आप भी मझ पर कपा करो और जो म मागता ह वह वर मझ दिजय सतयग तरता और दवापर इन तीन म स थोङ जीव सतयलोक म जाय लकन जब कलयग आय तो आपक शरण म बहत जीव जाय ऐसा पकका वचन मझ दकर ह आप ससार म जाय मन कहा - कालनरजन तमन य छल-मथया का जो परपच फ़लाया ह और तीन यग म जीव को दख म डाल दया मन तमहार वनती जान ल अर अभमानी काल तम मझ ठगत हो जसी वनती तमन मझस क वह मन तमह बखश द लकन चौथायग यानी कलयग जब आयगा तब म जीव क उदधार क लय अपन वश यानी सनत को भजगा आठअश सरत ससार म जाकर परकट हग उसक पीछ फ़र नय और उमसवरप सरत lsquoनौतमrsquo धमरदास क घर जाकर परकट हग सतपरष क व बयालस अश जीवउदधार क लय ससार म आयग व कलयग म वयापक रप स पथ परकट कर चलायग और जीव को ान परदान कर सतलोक भजग व बयालस अश िजस जीव को सतयशबद का उपदश दग म सदा उनक साथ रहगा तब वह जीव यमलोक नह जायगा और कालजाल स मकत रहगा नरजन बोला - साहब आप पथ चलाओ और भवसागर स उदधार कर जीव को सतलोक ल जाओ िजस जीव क हाथ म म अश-वश क छाप (नाम मोहर) दखगा उस म सर झकाकर परणाम करगा सतपरष क बात को मन मान लया परनत मर भी एक वनती ह आप एकपथ चलाओग और जीव को नाम दकर सतयलोक भजवाओग तब म बारहपथ (नकल) बनाऊगा जो आपक ह बात करत हय मतलब आपक जस ह ान क बात मगर फ़ज ान दग और अपन आपको कबीरपथी ह कहग म बारह यम ससार म भजगा और आपक नाम स पथ चलाऊगा

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मतअधा नाम का मरा एक दत सकत धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा दत धमरदास क घर जनम लगा इसक बाद आपका अश वहा आयगा इस परकार मरा वह दत जनम लकर जीव को भरमायगा और जीव को सतयपरष का नामउपदश (मगर नकल परभावहन) दकर समझायगा उन बारह पथ क अतगरत जो जीव आयग व मर मख म आकर मरा गरास बनग मर इतनी वनती मानकर मर बात बनाओ और मझ पर कपा करक मझ मा कर दो दवापर यग का अत और कलयग क शरआत जब होगी तब म बौदधशरर धारण करगा इसक बाद म उङसा क राजा इदरमन क पास जाऊगा और अपना नाम जगननाथ धराऊगा राजा इनदरमन जब मरा अथारत जगननाथ मदर समदर क कनार बनवायगा तब उस समदर का पानी ह गरा दगा उसस टकरा कर बहा दगा इसका वशष कारण यह होगा क तरतायग म मर वषण का अवतार राम वहा आयगा और वह समदर स पार जान क लय समदर पर पल बाधगा इसी शतरता क कारण समदर उस मदर को डबा दगा अतः ानीजी आप ऐसा वचार बनाकर पहल वहा समदर क कनार जाओ आपको दखकर समदर रक जायगा आपको लाघकर समदर आग नह जायगा इस परकार मरा वहा मदर सथापत करो उसक बाद अपना अश भजना आप भवसागर म अपना मतपथ चलाओ और सतयपरष क सतनाम स जीव का उदधार करो और अपन मतपथ का चहन छाप मझ बता दो तथा सतयपरष का नाम भी सझा समझा दो बना इस छाप क जो जीव भवसागर क घाट स उतरना चाहगा वह हस क मिकतघाट का मागर नह पायगा मन कहा - नरजन जसा तम मझस चाहत हो वसा तमहार चरतर को मन अचछ तरह समझ लया ह तमन बारह पथ चलान क जो बात कह ह वह मानो तमन अमत म वष डाल दया ह तमहार इस चरतर को दखकर तमह मटा ह डाल और अब पलट कर अपनी कला दखाऊ तथा यम स जीव का बधन छङाकर अमरलोक ल जाऊ मगर सतपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन नशचय कया ह क अमरलोक उस जीव को ल जाकर पहचाऊगा जो मर सतयशबद को मजबती स गरहण करगा अनयायीनरजन तमन जो बारहपथ चलान क माग कह ह वह मन तमको द पहल तमहारा दत धमरदास क यहा परकट होगा पीछ स मरा अश आयगा समदर क कनार म चला जाऊगा और जगननाथ मदर भी बनवाऊगा उसक बाद अपना सतयपथ चलाऊगा और जीव को सतयलोक भजगा नरजन बोला - ानीजी आप मझ सतयपरष स अपन मल का छाप नशान दिजय जसी पहचान आप अपन हसजीव को दोग जो जीव मझको उसी परकार क नशान पहचान बतायगा उसक पास काल नह आयगा अतः साहब दया करक सतपरष क नाम नशानी मझ द मन कहा - धमररायनरजन जो म तमह सतयपरष क मल क नशानी समझा द तो तम जीव क उदधार कायर म वघन पदा करोग तमहार इस चाल को मन समझ लया काल तमहारा ऐसा कोई दाव मझ पर नह चलन वाला धमरराय मन तमह साफ़ शबद म बता दया क अपना `अरनामrsquo मन गपत रखा ह जो कोई हमारा नाम लगा तम उस छोङकर अलग हो जाना जो तम हसजीव को रोकोग तो काल तम रहन नह पाओग धमररायनरजन बोला - ानीजी आप ससार म जाईय और सतयपरष क नाम दवारा जीव को उदधार करक ल

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जाईय जो हसजीव आपक गण गायगा म उसक पास कभी नह आऊगा जो जीव आपक शरण म आयगा वह मर सर पर पाव रखकर भवसागर स पार होगा मन तो वयथर आपक सामन मखरता क तथा आपको पता समान समझ कर लङकपन कया बालक करोङ अवगण वाला होता ह परनत पता उनको हरदय म नह रखता यद अवगण क कारण पता बालक को घर स नकाल द फ़र उसक रा कौन करगा इसी परकार मर मखरता पर यद आप मझ नकाल दग तो फ़र मर रा कौन करगा ऐसा कहकर नरजन न उठकर शीश नवाया और मन ससार क और परसथान कया कबीर न धमरदास स कहा - जब मन नरजन को वयाकल दखा तब मन वहा स परसथान कया और भवसागर क ओर चला आया

राम-नाम क उतप

कबीर साहब बोल - धमरदास भवसागर क ओर चलत हय म सबस पहल बरहमा क पास आया और बरहमा को आदपरष का शबद उपदश परकट कया तब बरहमा न मन लगाकर सनत हय आदपरष क चहन लण क बार म बहत पछा उस समय नरजन को सदह हआ क बरहमा मरा बङा लङका ह ानी क बात म आकर वह उनक प म न चला जाय तब नरजन न बरहमा क बदध फ़रन का उपाय कया कयक नरजन मन क रप म सबक भीतर बठा हआ ह अतः वह बरहमा क शरर म भी वराजमान था उसन बरहमा क बदध को अपनी ओर फ़र दया (सब जीव क भीतर lsquoमनसवरपrsquo नरजन का वास ह जो सबक बदध अपन अनसार घमाता फ़राता ह) बदध फ़रत ह बरहमा न मझस कहा - वह ईशवर नराकार नगरण अवनाशी जयोतसवरप और शनय का वासी ह उसी परष यानी ईशवर का वद वणरन करता ह वद आानसार ह म उस परष को मानता और समझता ह जब मन दखा क कालनरजन न बरहमा क बदध को फ़र दया ह और उस अपन प म मजबत कर लया ह तो म वहा स वषण क पास आ गया वषण को भी वह आदपरष का शबदउपदश कया परनत काल क वश म होन क कारण वषण न भी उस गरहण नह कया वषण न मझस कहा - मर समान अनय कौन ह मर पास चार पदाथर यानी फ़ल ह धमर अथर काम मो मर अधकार म ह उनम स जो चाह म कसी जीव को द मन कहा - वषण सनो तमहार पास यह कसा मो ह मो अमरपद तो मतय क पार होन स यानी आवागमन छटन पर ह परापत होता ह तम सवय िसथर शात नह हो तो दसर को िसथर शात कस करोग झठ साी झठ गवाह स तम भला कसका भला करोग और इस अवगण को कौन भरगा मर नभक सतयवाणी सनकर वषण भयभीत होकर रह गय और अपन हरदय म इस बात का बहत डर माना उसक बाद म नागलोक चला गया और वहा शषनाग स अपनी कछ बात कहन लगा

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मन कहा - आदपरष का भद कोई नह जानता ह सभी काल क छाया म लग हय ह और अानता क कारण काल क मह म जा रह ह भाई अपनी रा करन वाल को पहचानो यहा काल स तमह कौन छङायगा बरहमा वषण और रदर िजसका धयान करत ह और वद िजसका गण दन-रात गात ह वह आदपरष तमहार रा करन वाल ह वह तमह इस भवसागर स पार करग रा करन वाला और कोई नह ह वशवास करो म तमह उनस मलाता ह साातकार कराता ह लकन वष खान स उतपनन शषनाग का बहत तज सवभाव था अतः उसक मन म मर वचन का वशवास नह हआ जब बरहमा वषण और शषनाग न मर दवारा सतयपरष का सदश मानन स इकार कर दया तब म शकर क पास गया परनत शकर को भी सतयपरष का यह सदश अचछा नह लगा शकर न कहा - म तो नरजन को मानता ह और बात को मन म नह लाता तब वहा स म भवसागर क ओर चल दया कबीर साहब आग बोल - जब म इस भवसागर यानी मतयमडल म आया तब मन यहा कसी जीव को सतपरष क भिकत करत नह दखा ऐसी िसथत म सतपरष का ानउपदश कसस कहता िजसस कह वह अधकाश तो यम क वश म दखायी पङ वचतर बात यह थी क जो घातक वनाश करन वाला कालनरजन ह लोग को उसका तो वशवास ह और व उसी क पजा करत ह और जो रा करन वाला ह उसक ओर स व जीव उदास ह उसक प म न बोलत ह न सनत ह जीव िजस काल को जपता ह वह उस धरकर खा जाता ह तब मर शबदउपदश स उसक मन म चतना आती ह जीव जब दखी होता ह तब ान पान क बात उसक समझ म आती ह लकन उसस पहल जीव मोहवश कछ दखता समझता नह फर ऐसा भाव मर मन म उपजा क कालनरजन क शाखा वश सतत को मटा डाल और उस अपना परतय परभाव दखाऊ यमनरजन स जीव को छङा ल तथा उनह अमरलोक भज द िजनक कारण म शबदउपदश को रटत हय फ़रता ह व ह जीव मझ पहचानत तक नह सब जीव काल क वश म पङ ह और सतयपरष क नाम उपदशरपी अमत को छोङकर वषयरपी वष गरहण कर रह ह लकन सतयपरष का आदश ऐसा नह ह यह सोचकर मन अपन मन म नशचय कया क अमरलोक उसी जीव को लकर पहचाऊ जो मर सारशबद को मजबती स गरहण कर धमरदास इसक आग जसा चरतर हआ वह तम धयान लगाकर सनो मर बात स वचलत होकर बरहमा वषण शकर और बरहमा क पतर सनकादक सबन मलकर शनय म धयान समाध लगायी समाध म उनहन पराथरना क - ह ईशवर हम कस lsquoनामrsquo का समरन कर और तमहारा कौन सा नाम धयान क योगय ह धमरदास जस सीप सवात नतर का सनह अपन भीतर लाती ह ठक उसी परकार उन सबन ईशवर क परत परमभाव स शनय म धयान लगाया उसी समय नरजन न उनको उर दन का उपाय सोचा और lsquoशनयगफ़ाrsquo स अपना शबद उचचारण कया तब इनक धयान समाध म ररार यानी lsquoराrsquo शबद बहत बार उचचारत हआ उसक आग म अर उसक पतनी माया यानी अषटागी न मला दया इस तरह रा और म दोन अर को बराबर मलान पर राम शबद बना

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रामनाम उन सबको बहत अचछा लगा और सबन रामनाम समरन क ह इचछा क बाद म उसी रामनाम को लकर उनहन ससार क जीव को उपदश दया और समरन कराया कालनरजन और माया क इस जाल को कोई पहचान समझ नह पाया और इस तरह रामनाम क उतप हयी इस बात को तम गहरायी स समझो धमरदास बोल - आप पर सदगर ह आपका ान सयर क समान ह िजसस मरा सारा अान अधरा दर हो गया ह ससार म मायामोह का घोर अधरा ह िजसम वषयवकार लालची जीव पङ हय ह जब आपका ानरपी सयर परकट होता ह और उसस जीव का मोह अधकार नषट हो जाय यह आपक शबदउपदश क सतय होन का परमाण ह मर धनय भागय जो मन आपको पाया आपन मझ अधम को जगा लया अब आप वह कथा कह जब आपन सतयग म जीव को मकत कया

ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह

कबीर साहब बोल - धमरदास सतयग म िजन जीव को मन नामान का उपदश कया था सतयग म मरा नाम lsquoसतसकतrsquo था म उस समय राजा धधल क पास गया और उस सारशबद का उपदश सनाया उसन मर ान को सवीकार कया और उस मन lsquoनामrsquo दया इसक बाद म मथरा नगर आया यहा मझ खमसर नाम क सतरी मल उसक साथ अनय सतरी वदध और बचच भी थ खमसर बोल - ह परष परातन आप कहा स आय हो मन उसस सतयपरष सतयलोक तथा कालनरजन आद का वणरन कया खमसर न सना और उसक मन म सतयपरष क लय परम उतपनन हआ उसक मन म ानभाव आया और उसन कालनरजन क चाल को भी समझा पर खमसर क मन म एक सदह था क अपनी आख स सतयलोक दख तब ह मर मन म वशवास हो तब मन (सतसकत) उसक शरर को वह रहत हय उसक आतमा को एकपल म सतलोक पहचा दया फ़र अपनी दह म आत ह खमसर सतयलोक को याद करक पछतान लगी और बोल - साहब आपन जो दश दखाया ह मझ उसी दश अमरलोक ल चलो यहा तो बहत काल-कलश दख पीङा ह यहा सफ़र झठ मोहमाया का पसारा ह मन कहा - खमसर जबतक आय पर नह हो जाती तबतक तमह सतयलोक नह ल जा सकता इसलय अपनी आय रहन तक मर दय हय सतयनाम का समरन करो अब कयक तमन सतयलोक दखा ह इसलय आय रहन तक तम दसर जीव को सारशबद का उपदश करो जब कसी ानवान मनषय क दवारा एक भी जीव सतयपरष क शरण म आता ह तब ऐसा ानवान मनषय सतयपरष को बहत परय होता ह जस कोई गाय शर क मख म जाती हो यानी शर उस खान वाला हो और तब कोई बलवान मनषय आकर उस छङा ल तो सभी उसक बढ़ाई करत ह जस बाघ अपन चगल म फ़सी गाय को सताता डराता भयभीत करता हआ मार डालता ह ऐस ह कालनरजन जीव को दख दता हआ मारकर खा जाता ह इसलय जो भी मनषय एक भी जीव को सतयपरष क भिकत म लगाकर कालनरजन स बचा लता ह तो वह

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मनषय करोङ गाय को बचान क समान पणय पाता ह यह सनकर खमसर मर चरण म गर पङ और बोल - साहब मझ पर दया किजय और मझ इस करर रक क वश म भक कालनरजन स बचा लिजय मन कहा - खमसर यह कालनरजन का दश ह उसक जाल म फ़सन का जो अदशा ह वह सतयपरष क नाम स दर हो जाता ह खमसर बोल - साहब आप मझ वह नामदान (दा) दिजय और काल क पज स छङाकर अपनी (गर क) आतमा बना लिजय हमार घर म भी जो अनय जीव ह उनह भी य नाम दिजय धमरदास तब म खमसर क घर गया और सभी जीव को सतयनाम उपदश कया सब नर-नार मर चरण म गर गय खमसर अपन घर वाल स बोल - भाई यद अपन जीवन क मिकत चाहत हो तो आकर सदगर स शबदउपदश गहण करो य यम क फ़द स छङान वाल ह तम यह बात सतय जानो खमसर क वचन स सबको वशवास हो गया और सबन वनती क - ह साहब ह बनदछोङ गर हमारा उदधार करो िजसस यम का फ़दा नषट हो जाय और जनम-जनम का कषट (जीवन-मरण) मट जाय तब मन उन सबको नामदान करत हय धयानसाधना (नामजप) क बार म समझाया और सारनाम स हसजीव को बचाया कबीर साहब बोल - धमरदास इस तरह सतयग म म बारह जीव को नाम उपदश कर सतयलोक चला गया सतयलोक म रहन वाल जीव क शोभा मख स कह नह जाती वहा एक हस का दवयपरकाश सोलह सय क बराबर ह फ़र मन कछ समय तक सतयलोक म नवास कया और दोबारा भवसागर म आकर अपन दत हस जीव धधल खमसर आद को दखा म रात-दन ससार म गपतरप स रहता ह पर मझको कोई पहचान नह पाता फ़र सतयग बीत गया और तरता आया तब तरता म म मनीनदर सवामी क नाम स ससार म आया मझ दखकर कालनरजन को बङा अफ़सोस हआ उसन सोचा - इनहन तो मर भवसागर को ह उजाङ दया य जीव को सतयनाम का उपदश कर सतयपरष क दरबार म ल जात ह मन कतन छलबल क उपाय कय पर उसस ानी को कोई डर नह हआ व मझस नह डरत ह ानी क पास सतयपरष का बल ह उसस मरा बस इन पर नह चलता ह और न ह य मर कालमाया क जाल म फ़सत ह कबीर साहब बोल - धमरदास जस सह को दखकर हाथी का हरदय भय स कापन लगता ह और वह परथवी पर गर

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पङता ह वस ह सतयपरष क नाम स कालनरजन भय स थरथर कापता ह

कबीर और रावण

तरतायग म जब मनीनदर सवामी (तरतायग म कबीर का नाम) परथवी पर आय और उनहन जाकर जीव स कहा - यमरपी काल स तमह कौन छङायगा तब व अानी भरमत जीव बोल - हमारा कतारधतार सवामी पराणपरष (कालनरजन) ह वह पराणपरष वषण हमार रा करन वाला ह और हम यम क फ़द स छङान वाला ह कबीर बोल - धमरदास उन अानी जीव म स कोई तो अपनी रा और मिकत क आस शकर स लगाय हय था कोई चडी दवी को धयाता गाता था कया कह य वासना का लालची जीव अपनी सदगत भलकर पराया ह हो गया और सतयपरष को भल गया तथा तचछ दवी-दवताओ क हाथ लोभवश बक गया कालनरजन न सब जीव को परतदन पापकमर क कोठर म डाला हआ ह और सबको अपन मायाजाल म फ़साकर मार रहा ह यद सतयपरष क ऐसी आा होती तो कालनरजन को अभी मटाकर जीव को भवसागर क तट पर लाऊ लकन यद अपन बल स ऐसा कर तो सतयपरष का वचन नषट होता ह इसलय उपदश दवारा ह जीव को सावधान कर कतनी वचतर बात ह क जो (कालनरजन) इस जीव को दख दता खाता ह वह जीव उसी क पजा करता ह इस परकार बना जान यह जीव यम क मख म जाता ह धमरदास तब चार तरफ़ घमत हय म लका दश म आया वहा मझ वचतरभाट नाम का शरदधाल मला उसन मझस भवसागर स मिकत का उपाय पछा और मन उस ानउपदश दया उस उपदश को सनत ह वचतरभाट का सशय दर हो गया और वह मर चरण म गर गया मन उसक घर जाकर उस दा द वचतरभाट क सतरी राजा रावण क महल गयी और जाकर रानी मदोदर को सब बात बतायी उसन मदोदर स कहा - महारानी जी हमार घर एक सनदर महामन शरषठयोगी आय ह उनक महमा का म कया वणरन कर ऐसा सनतयोगी मन पहल कभी नह दखा मर पत न उनक शरण गरहण क ह और उनस दा ल ह तथा इसी म अपन जीवन को साथरक समझा ह यह बात सनत ह मदोदर म भिकतभाव जागा और वह मनीनदर सवामी क दशरन करन को वयाकल हो गयी वह दासी को साथ लकर सवणर हरा रतन आद लकर वचतरभाट क घर आयी और उनह अपरत करत हय मर चरण म शीश झकाया मन उसको आशीवारद दया मदोदर बोल - आपक दशरन स मरा दन आज बहत शभ हआ मन ऐसा तपसवी पहल कभी नह दखा क िजनक सब अग सफ़द और वसतर भी शवत ह सवामी जी म आपस वनती करती ह मर जीव (आतमा) का कलयाण िजस

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तरह हो वह उपाय मझ कहो म अपन जीवन क कलयाण क लय अपन कल और जात का भी तयाग कर सकती ह ह समथरसवामी अपनी शरण म लकर मझ अनाथ को सनाथ करो भवसागर म डबती हयी मझको सभालो आप मझ बहत दयाल और परय लगत हो आपक दशरन मातर स मर सभी भरम दर हो गय मन कहा - मदोदर सनो सतयपरष क नामपरताप स यम क बङ कट जाती ह तम इस ानदिषट स समझो म तमह खरा (सतयपरष) और खोटा (कालनरजन) समझाता ह सतयपरष असीम अजर अमर ह तथा तीनलोक स नयार ह अलग ह उन सतयपरष का जो कोई धयान-समरन कर वह आवागमन स मकत हो जाता ह मर य वचन सनत ह मदोदर का सब भरम भय अान दर हो गया और उसन पवतरमन स परमपवरक नामदान लया मदोदर इस तरह गदगद हयी मानो कसी कगाल को खजाना मल गया हो फ़र रानी चरण सपशर कर महल को चल गयी मदोदर न वचतरभाट क सतरी को समझा कर हसदा क लय पररत कया तब उसन भी दा ल धमरदास फ़र म रावण क महल स आया और मन दवारपाल स कहा - म तमस एक बात कहता ह अपन राजा को मर पास लकर आओ दवारपाल वनयपवरक बोला - राजा रावण बहत भयकर ह उसम शव का बल ह वह कसी का भय नह मानता और कसी बात क चता नह करता वह बङा अहकार और महान करोधी ह यद म उसस जाकर आपक बात कहगा तो वह उलटा मझ ह मार डालगा मन कहा - तम मरा वचन सतय मानो तमहारा बालबाका भी नह होगा अतः नभक होकर रावण स ऐसा जाकर कहो और उसको शीघर बलाकर लाओ दवारपाल न ऐसा ह कया वह रावण क पास जाकर बोला - ह महाराज हमार पास एक सदध (सनत) आया ह उसन मझस कहा ह क अपन राजा को लकर आओ रावण करोध स बोला - दवारपाल त नरा बदधहन ह ह तर बदध को कसन हर लया ह जो यह सनत ह त मझ बलान दौङा-दौङा चला आया मरा दशरन शव क सत गण आद भी नह पात और तन मझ एक भक को बलान पर जान को कहा मर बात सन और उस सदध का रप वणरन मझ बता वह कौन ह कसा ह कया वश ह दवारपाल बोला - ह राजन उनका शवत उजजवल सवरप ह उनक शवत ह माला तथा शवत तलक अनपम ह और शवत ह वसतर तथा शवत साजसामान ह चनदरमा क समान उसका सवरप परकाशवान ह मदोदर बोल - ह राजा रावण जसा दवारपाल न बताया वह सदधसनत परमातमा क समान सशोभत ह आप शीघर जाकर उनक चरण म परणाम करो तो आपका राजय अटल हो जायगा ह राजन इस झठ मान बङाई क अहम को तयाग कर आप ऐसा ह कर

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मदोदर क बात सनत ह रावण इस तरह भङका मानो जलती हयी आग म घी डाल दया गया हो रावण तरनत हाथ म शसतर लकर चला क जाकर उस सदध का माथा काटगा जब उसका शीश गर पङ तब दख वह भक मरा कया कर लगा ऐसा सोचत हय रावण बाहर मर पास आया और उसन सर बार पर शिकत स मझ पर शसतर चलाया मन उसक शसतरपरहार को हर बार एक तनक क ओट पर रोका अथारत रावण वह तनका भी नह काट सका मन तनक क ओट इस कारण क क रावण बहत अहकार ह इस कारण अपन शिकतशाल परहार स जब रावण तनका भी न काट पायगा तो अतयनत लिजजत होगा और उसका अहकार नषट हो जायगा तब यह तमाशा दखती हयी (मरा बलपरताप जान कर) मदोदर रावण स बोल - सवामी आप झठा अहकार और लजजा तयाग कर मनीनदर सवामी क चरण पकङ लो िजसस आपका राजय अटल हो जायगा यह सनकर खसयाया हआ रावण बोला - म जाकर शव क सवा-पजा करगा िजनहन मझ अटल राजय दया म उनक ह आग घटन टकगा और हरपल उनह को दणडवत करगा मन उस पकार कर कहा - रावण तम बहत अहकार करन वाल हो तमन हमारा भद नह समझा इसलय आग क पहचान क रप म तमह एक भवषयवाणी कहता ह तमको रामचनदर मारग और तमहारा मास का भी नह खायगा तम इतन नीचभाव वाल हो कबीर साहब बोल - धमरदास मनीनदर सवामी क रप म मन अहकार रावण को अपमानत कया और फ़र अयोधयानगर क ओर परसथान कया तब रासत म मझ मधकर नाम का एक गरब बराहमण मला वह मझ परमपवरक अपन घर ल गया और मर बहत परकार स सवा क गरब मधकर ानभाव म िसथरबदध वाला था उसका लोकवद का ान बहत अचछा था तब मन उस सतयपरष और सतयनाम क बार म बताया िजस सनकर उसका मन परसननता स भर गया वह बोला - ह परमसनत सवरप सवामी म भी उस अमतमय सतयलोक को दखना चाहता ह तब उसक सवाभाव स परसनन होकर lsquoअचछाrsquo ऐसा कहत हय म उसक शरर को वह रहा छोङकर उसक जीवातमा को सतयलोक ल गया अमरलोक क अनपम शोभा-छटा दखकर वह बहत परसनन हआ और गदगद होकर मर चरण म गर पङा और बोला - सवामी आपन सतयलोक दखन क मर पयास बझा द अब आप मझ ससार म ल चलो िजसस म अनय जीव को यहा लान क लय उपदश (गवाह) कर और जो जीव घर-गहसथी क अतगरत आत ह उनह भी सतय बताऊ धमरदास जब म उसक जीवातमा को लकर ससार म आया और जस ह मधकर क जीवातमा न दह म परवश कया तो उसका शरर जागरत हो गया मधकर क घर-परवार म सोलह अनय जीव थ

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मधकर न उनस सब बात कह और मझस बोला - साहब मर वनती सनो अब हम सबको सतयलोक म नवास दिजय कयक परथवी तो यम का दश ह इसम बहत दख ह फ़र भी माया स बधा जीव अानवश अधा हो रहा ह इस दश म कालनरजन बहत परबल ह वह सब जीव को सताता ह और अनक परकार क कषट दता हआ जनम-मरण का नकर समान दख दता ह काम करोध तषणा और माया बहत बलवान ह जो इसी कालनरजन क रचना ह य सब महाशतर दवता मन आद सबको वयापत ह और करोङ जीव को कचलकर मसल दत ह य तीन लोक यमनरजन का दश ह इसम जीव को णभर क लय वासतवक सख नह ह आप हमारा य जनम-जनम का कलश मटाओ और अपन साथ ल चलो तब मन उन सबको सतयपरष क नाम का उपदश दकर हसदा स गर (क) आतमा बनाया और उनक आय पर हो जान पर उनको सतयलोक भज दया उन सोलह जीव को सतयलोक जात हय दखकर ससारजीव क लय वकराल भयकर यमदत उदास खङ दखत रह उनह ऊपर जात दखकर व सब ववश और बहद उदास हो गय व सब जीव सतयपरष क दरबार म पहच गय िजनह दखकर सतयपरष क अश और अनय मकत हसजीव बहत परसनन हय सतयपरष न उन सोलह हसजीव को अमरवसतर पहनाया सवणर क समान परकाशवान अपनी अमरदह क सवरप को दखकर उन हसजीव को बहत सख हआ सतयलोक म हरक हसजीव का दवयपरकाश सोलह सयर क समान ह वहा उनहन अमत (अमीरस) का भोजन कया और अगर (चदन) क सगनध स उनका शरर शीतल होकर महकन लगा इस तरह तरतायग म मर (मनीनदर सवामी नाम स) दवारा ानउपदश का परचार-परसार हआ और सतयपरष क नामपरभाव स हसजीव मकत होकर सतयलोक गय

कबीर और रानी इनदरमती

तरतायग समापत हआ दवापर-यग आ गया तब फ़र कालनरजन का परभाव हआ और फ़र सतयपरष न ानीजी को बलाकर कहा - ानी तम शीघर ससार म जाओ और कालनरजन क बधन स जीव का उदधार करो कालनरजन जीव को बहत पीङा द रहा ह जाकर उसक फ़ास काटो मन सतयपरष क बात सनकर उनस कहा - आप परमाणत सपषट शबद म आा करो तो म कालनरजन को मारकर सब जीव को सतयलोक ल आता ह बारबार ऐसा करन ससार म कया जाऊ सतयपरष बोल - योगसतायन सनो सारशबद का उपदश सनाकर जीव को मकत कराओ जो अब जाकर कालनरजन को मारोग तो तम मरा वचन ह भग करोग अब तो अानी जीव काल क जाल म फ़स पङ ह और उसम ह उनह मोहवश सख भास रहा ह लकन जब तम उनह जागरत करोग तब उनह आननद का अहसास होगा

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जब तम कालनरजन का असल चरतर बताओग तो सब जीव तमहार चरण पकङग ह ानी जीव का भाव सवभाव तो दखो क य ान अान को पहचानत समझत नह ह तम ससार म lsquoसहजभावrsquo स जाकर परकट होओ और जीव को चताओ तब म फ़र स ससार क तरफ़ चला इधर आत ह चालाक और परपची कालनरजन न मर चरण म सर झका दया वह कातर भाव स बोला - अब कस कारण स ससार म आय हो म वनती करता ह क सार ससार क जीव को समझाओ ऐसा मत करना आप मर बङ भाई हो म वनती करता ह सभी जीव को मरा रहसय न बताना मन कहा - नरजन सन कोई-कोई जीव ह मझ पहचान पाता ह और मर बात समझता ह कयक तमन जीव को अपन जाल म बहत मजबती स फ़साकर ठगा हआ ह धमरदास ऐसा कहकर मन सतयलोक और सतयलोक का शरर छोङ दया और मनषयशरर धारण कर मतयलोक म आया उस यग म मरा नाम करणामय सवामी था तब म गरनार गढ़ आया जहा राजा चनदरवजय राजय करत थ उस राजा क सतरी बहत बदधमान थी उसका नाम इनदरमती था वह सनत समागम करती थी और ानीसनत क पजा करती थी इनदरमती अपन सवभाव क अनसार महल क ऊची अटार पर चढ़ कर रासता दखा करती थी यद रासत म उस कोई साध जाता नजर आता तो तरनत उसको बलवा लती थी इस परकार सनत क दशरन हत वह अपन शरर को कषट दती थी वह कसी सचचसनत क तलाश म थी उसक ऐस भाव स परसनन हम उसी रासत पर पहच गय जब रानी क दिषट हम पर पङ तो उसन तरनत दासी को आदरपवरक बलान भजा दासी न रानी का वनमर सदश मझ सनाया मन दासी स कहा - दासी हम राजा क घर नह जायग कयक राजय क कायर म झठ मान बङाई होती ह और साध का मान बङाई स कोई समबनध नह होता अतः म नह जाऊगा दासी न रानी स जाकर ऐसा ह कहा तब रानी सवय दौङ-दौङ आयी और मर चरण म अपना शीश रख दया फ़र वह बोल - साहब हम पर दया किजय और अपन पवतर शरीचरण स हमारा घर धनय किजय आपक दशरन पाकर म सखी हो गयी उसका ऐसा परमभाव दखकर हम उसक घर चल गय रानी भोजन क लय मझस नवदन करती हयी बोल - ह परभ भोजन तयार करन क आा दकर मरा सौभागय बढ़ाय आपक जठन मर घर म पङ और बचा भोजन शष परसाद क रप म म खाऊ मन कहा - रानी सनो पाच-ततव (का शरर) िजस भोजन को पाता ह उसक भख मझ नह होती मरा भोजन अमत ह म तमह इसको समझाता ह मरा शरर परकत क पाच-ततव और तीन गण वाला नह ह बिलक अलग ह पाच-ततव तीन गण पचचीस परकत स तो कालनरजन न मनषय शरर क रचना क ह सथान और करया क भद स कालनरजन न वाय क lsquoपचासी भागrsquo कय इसलय पचासी पवन कहा जाता ह इसी

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वाय तथा चार अनयततव परथवी जल आकाश अिगन स य मनषय शरर बना ह परनत म इनस एकदम अलग ह इस पाच-ततव क सथलदह म एक lsquoआदपवनrsquo ह आद का मतलब यहा जनम-मरण स रहत नतय अवनाशी और शाशवत ह वह चतनयजीव ह उस lsquoसोऽहगrsquo बोला जाता ह यह जीव सतयपरष का अश ह कालनरजन न इसी जीव को भरम म डालकर सतयलोक जान स रोक रखा ह कालनरजन ऐसा करन क लय नाना परकार क मायाजाल रचता ह और सासारक वषय का लोभ-लालच दकर जीव को उसम फ़साता ह और फ़र खा जाता ह म उनह जीव को कालनरजन स उदधार करान आया ह काल न पानी पवन परथवी आद ततव स जीव क बनावटदह क रचना क और इस दह म वह जीव को बहत दख दता ह मरा शरर कालनरजन न नह बनाया मरा शरर lsquoशबदसवरपrsquo ह जो खद मर इचछा स बना ह रानी इनदरमती को बहत आशचयर हआ और वह बोल - परभ जसा आपन कहा ऐसा कहन वाला दसरा कोई नह मला दयानध मझ और भी ान बताओ मन सना ह क वषण क समान दसरा कोई बरहमा शकर मन आद भी नह ह पाच-ततव क मलन स यह शरर बना ह और उन ततव क गण भख पयास नीद क वश म सभी जीव ह परभ आप अगमअपार हो मझ बताओ क बरहमा वषण तथा शकर स भी अलग आप कहा स उतपनन हय हो ऐसा बताकर मर िजासा शानत करो मन कहा - इनदरमती मरा दश नागलोक (पाताल) मतयलोक (परथवी) और दवलोक (सवगर) इन सबस अलग ह वहा कालनरजन को घसन क अनमत नह ह इस परथवी पर चनदरमा सयर ह पर सतयलोक म सतयपरष क एक रोम का परकाश करोङ चनदरमा क समान ह तथा वहा क हसजीव (मकत होकर गयी आतमाय) का परकाश सोलह सयर क बराबर ह उन हसजीव म अगर (चनदन) क समान सगनध आती ह और वहा कभी रात नह होती रानी इनदरमती घबरा कर बोल - परभ आप मझ इस यम कालनरजन स छङा लो म अपना समसत राजपाट आप पर नयोछावर करती ह म अपना सब धन-सप का तयाग करती ह ह बनदछोङ मझ अपनी शरण म लो मन कहा - रानी म तमह अवशय यम कालनरजन स छङाऊगा सतयनाम का समरन दगा पर मझको तमहार धन-सप तथा राजपाट स कोई परयोजन नह ह जो धन-सप तमहार पास ह उसस पणयकायर करो सचच साध-सनत का आदर सतकार करो सतयपरष क ह सभी जीव ह ऐसा जानकर उनस वयवहार करो परनत व मोहवश अान क अधकार म पङ हय ह सब शरर म सतयपरष क अश जीवातमा का ह वास ह पर वह कह परकट और कह गपत ह ह रानी य समसत जीव सतयपरष क ह परनत व मोह क भरमजाल म फ़स कालनरजन क प म हो रह ह यह सब चरतर कालनरजन का ह ह क सब जीव सतयपरष को भलाकर उसक फ़लाय खानी-वाणी क जाल म फ़स ह और उसन यह जाल इतनी सझबझ स फ़लाया ह क मझ जस उदधारक स भी जीव कालवश होकर उसका प लकर लङत ह और मझ भी नह पहचानत इस परकार य भरमत जीव सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन स परम करत ह असखय जीव म स कोई-कोई ह इस कपट कालनरजन क चालाक को समझ पाता ह और सतयनाम का उपदश लता ह इनदरमती बोल - ह परभ अब मन सब कछ समझ लया ह अब आप वह करो िजसस मरा उदधार हो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन रानी को सतयनाम उपदश यानी दा द रानी न ऐसी (दा क समय होन वाल) अनभत स परभावत होकर अपन पत स कहा - सवामी यद आप सखदायी मो चाहत हो तो करणामय सवामी क शरण म आओ मर इतनी बात मानो राजा बोला - रानी तम मर अधागनी हो इसलय म तमहार भिकत म आध का भागीदार ह इसलय हम-तम दोन भकत नह हग म सफ़र तमहार भिकत का परभाव दखगा क कस परकार तम मझ मकत कराओगी म तमहार भिकत का परताप दखगा िजसस सब दख कषट मट जायग और हम सतयलोक जायग

रानी इनदरमती का सतयलोक जाना

कबीर साहब बोल - धमरदास यह सब रानी न मर पास आकर कहा और मन उस वघन डालकर बदध फ़रन वाल कालनरजन का चरतर सनाया उसन राजा क बदध कस तरह फ़र द और इसक बाद मन रानी को भवषय क बार म बताया मन रानी स कहा - रानी सनो कालनरजन अपनी कला स छलरप धारण करगा साप बनकर कालदत तमहार पास आयगा और तमह डसगा ऐसा म तमह पहल ह बताय दता ह इसलय म तमको बरहल मनतर बताता ह िजसस कालरपी सपर का सब जहर दर हो जायगा फ़र यम तमस दसरा धोखा करगा वह हसवणर का सफ़दरप बनाकर तमहार पास आयगा और मर समान ान तमह समझायगा वह तमस कहगा - रानी मझ पहचान म कालनरजन का मानमदरन करन वाला ह और मरा नाम ानी करणामय ह इस परकार काल तमह ठगगा म उसका हलया भी तमह बताता ह कालदत का मसतक छोटा होगा और उसक आख का रग बदरग होगा उसक दसर सब अग शवतरग क हग य सब काल क लण मन तमह बता दय तब रानी न घबरा कर मर चरण पकङ लय और बोल - परभ मझ सतयलोक ल चलो यह तो यम का दश ह िजसस मर सब दख-कषट मट जाय मन कहा - रानी सतयनाम-दा स यम स तमहारा समबनध टट गया ह और तम सतयपरष क आतमा हो गयी हो अब तम इस सतयनाम का समरन करो तब य परपची कालनरजन तमहारा कया बगाङ लगा जबतक तमहार आय पर न हो इसी नाम का समरन करो जबतक आय का ठका परा न हो जीव सतयलोक नह जा सकता इस कालनरजन क कला बहत भयकर ह वह ससार म जीव क पास हाथीरप म आता ह परनत सहरपी सतयनाम का समरन करत ह समरन वाल का भय कालनरजन मानता ह और सामन नह आता रानी बोल - साहब जब कालनरजन सपर बनकर मझ सताय और हसरप धारण कर भरमाय तब फ़र आप मर पास आ जाना और मर हस-जीवातमा को सतयलोक ल जाना यह मर वनती ह

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कबीर साहब बोल - रानी काल सपर और मानवरप क कला धरकर तमहार पास आयगा तब म उसका मानमदरन करगा मझ दखत ह काल भाग जायगा उसक पीछ म तमहार पास आऊगा और तमहार जीव को सतयलोक ल जाऊगा धमरदास इतना कहकर मन सवय को छपा लया और तब तकसपर बनकर कालदत आया जब आधी रात हो गयी थी तब रानी अपन महल म आकर पलग पर लट गयी और सो गयी उसी समय तक न आकर रानी क माथ म डस लया रानी न जलद ह राजा स कहा - तक न मझ डस लया ह इतना सनत ह राजा वयाकल हो गया और वष उतारन वाल गारङ (ओझा) को बलाया रानी इनदरमती न साहब म सरत लगाकर उनका दया बरहल मनतर जपा और गारङ स कहा - तम दर जाओ तमहार आवशयकता नह ह रानी न राजा स कहा - सदगर न मझ बरहल मनतर दया ह िजसस मझ पर वष का परभाव नह होगा ऐसा कहत हय जाप करती हयी रानी उठ कर खङ हो गयी राजा चनदरवजय अपनी रानी को ठक दखकर बहत परसनन हआ धमरदास रानी क बना कसी नकसान क ठक हो जान पर वह कालदत वहा गया जहा बरहमा वषण महश थ और बोला - मर वष का तज भी इनदरमती को नह लगा सतयपरष क नामपरताप स सारा वष दर हो गया वषण न कहा - यमदत सन तम अपन सब अग सफ़द बना लो मर बात मानो और छल करक रानी को ल आओ तब उस कालदत न ऐसा ह कया और रानी क पास मर (कबीर) वश म आकर बोला - रानी तम कय उदास हो मन तमह दामनतर दया ह तम जानबझ कर ऐसी अनजान कय हो रह हो रानी मरा नाम करणामय ह म काल को मारकर उसक ऐसी पसाई कर दगा जब काल न तक बनकर तमह डसा तब भी मन तमह बचाया तम पलग स उतरकर मर चरण सपशर करो और अपनी मान बङाई छोङो म तमह परभ क दशरन कराऊगा लकन मर दवारा पहल ह बताय जान स रानी न उसको पहचान लया और उसक आख म तीन रखाय दखी पील सफ़द और लाल फ़र उसका छोटा मसतक दखा फर रानी मर वचन को याद करती हयी बोल - यमदत तम अपन घर जाओ मन तमह पहचान लया ह कौवा बहत सनदर वश बनाय परनत वह हस क सनदरता नह पा सकता वसा ह मन तमहारा रप दखा मर समथरगर न मझ पहल ह सब बता दया था यह सनकर यमदत न बहत करोध कया और बोला - मन कतना बारबार तमह कहकर समझाया फ़र भी तम नह मानी तमहार बदध फ़र गयी ह

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ऐसा कहकर वह रानी क पास आया और उसन रानी को थपपङ मारा िजसस रानी भम पर गर गयी और उसन मरा (कबीर) समरन कया फर बोल - ह सदगर मर सहायता करो मझको य कररकाल बहत दख द रहा ह धमरदास मरा सवभाव ह क भकत क पकार सनत ह मझस नह रहा जाता इसलय म णभर म इनदरमती क पास आ गया मझ दखत ह रानी को बहत परसननता हयी मर आत ह काल वहा स चला गया उसक थपपङ स जो अशदध हयी थी मर दशरन स दर हो गयी तब रानी बोल - साहब मझ यम क छाया क पहचान हो गयी मर एक वनती सनय अब म मतयलोक म नह रहना चाहती साहब मझ अपन दश सतयलोक ल चलय यहा तो बहत काल-कलश ह यह कहकर वह उदास हो गयी धमरदास उसक ऐसी वनती सनकर मन उस पर स काल का कठन परभाव समापत कर दया फ़र उसक आय का ठका (शष आय का समय समय स पहल परा करना) परा भर दया और रानी क हसजीव को लकर सतयलोक चला गया मन उस लकर मानसरोवर दप पहचाया जहा पर मायाकामनी कलोलकरङा कर रह थी अमतसरोवर स उस अमत चखाया तथा कबीरसागर पर उसका पाव रखवाया उसक आग सरतसागर था वहा पहचत ह रानी क जीवातमा परकाशत हो गयी तब उस सतयलोक क दवार पर ल गया िजस दखकर रानी न परमसख अनभव कया सतयलोक क दवार पर रानी क हसआतमा को दखकर वहा क हस न दौङकर रानी को अपन स लपटा लया और सवागत करत हय कहा - तम धनय हो जो करणामय सवामी को पहचान लया अब तमहारा कालनरजन का फ़दा छट गया और तमहार सब दख-दवद मट गय ह इनदरमती मर साथ आओ तमह सतयपरष क दशरन कराऊ ऐसा कहकर मन सतयपरष न वनती क - ह सतयपरष अब हस क पास आओ और एक नय हस को दशरन दो ह बनदछोङ आप महान कपा करन वाल हो ह दनदयाल दशरन दो तब पषपदप का पषप खला और वाणी हयी - ह योगसतायन सनो अब हस को ल आओ और दशरन करो तब ानी हस क पास आय और उनह ल जाकर सतयपरष का दशरन कराया सब हस न सतयपरष को दणडवत परणाम कया तब आदपरष न चार अमतफ़ल दय िजस सब हस न मलकर खाया

कबीर का सदशरन शवपच को ान दना

कबीर साहब बोल - धमरदास रानी इनदरमती क हसजीव को सतयलोक पहचा कर उस सतयपरष क दशरन करान क बाद मन कहा - ह हस अब अपनी बात बताओ तमहार जसी दशा ह सो कहो तमहारा सब दख-दवद जनम-

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मरण का आवागमन सब मट गया और तमहारा तज सोलह सयर क बराबर हो गया और तमहार सब कलश मटकर तमहारा कलयाण हआ इनदरमती दोन हाथ जोङकर बोल - साहब मर एक वनती ह बङ भागय स मन आपक शरीचरण म सथान पाया ह मर इस हसशरर का रप बहत सनदर ह परनत मर मन म एक सशय ह िजसस मझ (अपन पत चनदरवजय) राजा क परत मोह हआ ह कयक वह राजा मरा पत रहा ह ह करणामय सवामी आप उस भी सतयलोक ल आईय नह तो मरा राजा काल क मख म जायगा कबीर साहब बोल - तब मन कहा बदधमान हस सन राजा न नामउपदश नह लया उसन सतयपरष क भिकत नह पायी और भिकतहन होकर ततवान क बना वह इस असार ससार म चौरासी लाख योनय म ह भटकगा इनदरमती बोल - परभ म जब ससार म रहती थी और अनक परकार स आपक भिकत कया करती थी तब सजजन राजा न मर भिकत को समझा और कभी भी भिकत स नह रोका ससार का सवभाव बहत कठोर ह यद अपन पत को छोङकर उसक सतरी कह अलग रह तो सारा ससार उस गाल दता ह और सनत ह पत भी उस मार डालता ह साहब राजकाज म तो मान परशसा नािसतकता करोध चतराई होती ह ह परनत इन सबस अलग म साध-सत क सवा ह करती थी और राजा स भी नह डरती थी तो जब म साध-सनत क सवा करती थी यह सनकर राजा परसनन ह होता था साहब इसक वपरत राजा ऐसा करन क लय मझ रोकता दख दता तो म कस तरह साध-सनत क सवा कर पाती और तब मर मिकत कस होती अतः सवा-भिकत को जानन वाला वह राजा धनय ह उसक हस (जीवातमा) को भी ल आइय ह हसपत सदगर आप तो दया क सागर ह दया किजय और राजा को सासारक बधन स छङाईय कबीर साहब बोल - धमरदास म उस हस इनदरमती क ऐसी बात सनकर बहत हसा और इनदरमती क इचछाअनसार उसक राजय गरनारगढ़ म परकट हो गया उस समय राजा चनदरवजय क आय पर होन क करब ह आ गयी थी राजा चनदरवजय क पराण नकालन क लय यमराज उनह घर कर बहत कषट द रहा था और सकट म पङा हआ राजा भय स थरथर काप रहा था तब मन यमराज स उस छोङन को कहा यमराज उस छोङता नह था धमरदास दलरभ मनषयशरर म सतयनाम भिकत न करन क चक का यह परणाम होता ह सतयपरष क भिकत को भलकर जो जीव ससार क मायाजाल म पङ रहत ह आय पर होन पर यमराज उनह भयकर दख दता ह ह तब मन राजा चनदरवजय का हाथ पकङ लया और उसी समय सतयलोक ल आया रानी इनदरमती यह दखकर बहत परसनन हयी और बोल - ह राजा सनो मझ पहचानो म तमहार पतनी ह राजा उसस बोला - ानवान हस तमहारा दवय रपरग तो सोलह सयर जसा दमक रहा ह तमहार अग-अग म वशष अलौकक चमक ह तब तमको अपनी पतनी कस कह शरषठनार यह तमन बहत अचछ भिकत क िजसस अपना और मरा दोन का ह उदधार कया तमहार भिकत स ह मन अपना नजघर सतयलोक पाया मन करोङ जनम तक धमरपणय कया तब ऐसी सतकमर करन वाल भिकत करन वाल सतरी पायी म तो राजकाज ह करता हआ भिकत स वमख रहा रानी यद तम न होती तो म नशचय ह कठोर नकर म जाता ऐसा मन मतयपवर ह

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अनभव कया अतः ससार म तमहार समान पतनी सबको मल कबीर साहब बोल - धमरदास तब मन राजा स ऐसा कहा जो जीव सतयपरष क सतनाम का धयान करता ह वह दोबारा कषटमय ससार म नह जाता धमरदास इसक बाद म फ़र स ससार म आया और काशी नगर म गया जहा भकत सदशरन शवपच रहता था वह शबदववक ान को समझन वाला उम सनत था उसन मर बताय आतमान को शीघर ह समझा और उस अपनाया उसका पकका वशवास दखकर मन उस भवबधन स मकत कर दया और वधपवरक नाम उपदश कया धमरदास सतयपरष क ऐसी परतय महमा दखत हय भी जो जीव उसको नह समझत व कालनरजन क फ़द म पङ हय ह जस का अपवतर वसत को भी खा लता ह वस ह ससार लोग भी अमत छोङकर वष खात ह अथारत सतयपरषरपी अमत को छोङकर वषरपी कालनरजन क ह भिकत करत ह धमरदास दवापर यग म यधषठर नाम का एक राजा हआ महाभारत यदध म अपन ह बनध-बानधव को मारकर उनस बहत पाप हआ था अतः यदध क बाद बहत हाहाकार मच गया चारो ओर घोर अशािनत और शोक-दख का माहौल था खद यधषठर को बर सवपन और अपशकन होत थ तब शरीकषण क सलाह पर उनहन इस पाप नवारण हत एक य कया इस य क सभी वधवत तयार आद करक जब य होन लगा तब शरीकषण न कहा - इस य क सफ़लतापवरक होन क पहचान ह क आकाश म बजता हआ घटा सवतः सनायी दगा उस य म सयासी योगी ऋष मन वरागी बराहमण बरहमचार आद सभी आय सभी को परम स भोजन आद कराया पर घटा नह बजा यधषठर बहत लिजजत हय और शरीकषण क पास इसका कारण पछन गय शरीकषण बोल - िजतन भी लोग न भोजन कया इनम एक भी सचचा सनत नह था व दखाव क लय साध सनयासी योगी वरागी बराहमण बरहमचार अवशय लग रह ह पर व मन स अभमानी ह थ इसलय घटा नह बजा यधषठर को बढ़ा आशचयर हआ इतन वशाल य म करोङ साधओ न भोजन कया और उनम कोई सचचा ह नह था तब हम ऐसा सचचासनत कहा स लाय शरीकषण न कहा - काशी नगर स सदशरन शवपच को लकर आओ व ह सवम साध ह उन जसा साध अभी कोई नह ह तब य सफ़ल होगा ऐसा ह कया गया और घनटा बजन लगा शवपच सदशरन क गरास उठात ह घटा सात बार बजा य सफ़ल हो गया कबीर साहब बोल - धमरदास तब भी जो अानी जीव सदगर क वाणी का रहसय नह पहचानत ऐस लोग क बदध नषट होकर यम क हाथ बक गयी ह अपन ह भकतजीव को य काल दख दता ह नकर म डालता ह काल

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क लय अब कया कह य भकत-अभकत सभी को दख दता ह सबको मार खाता ह गौर स समझो इस काल क दवारा ह महाभारत यदध म शरीकषण न पाडव को यदध क लय पररत कया और हतया का पाप करवाया फ़र उनह शरीकषण न पाडव को दोष लगाया क तमस हतया का पाप हआ अतः य करो और तब कहा था क तमह इसक बदल सवगर मलगा तमहारा यश होगा धमरदास इसक बाद भी पाडव को (शरीकषण न) और अधक दख दया और जीवन क अतम समय म हमालय यातरा म भजकर बफ़र म गलवा दया दरौपद और चार पाडव भीम अजरन नकल सहदव हमालय क बफ़र म गल गय कवल सतय को धारण करन वाल यधषठर ह बच जब शरीकषण को अजरन बहत परय था तो उसक य गत कय हयी राजा बल हरशचनदर कणर बहत बङ दानी थ फ़र भी काल न उनह बहत परकार स दख दया अपमान कराया अतः इस जीव को अानवश सतय-असतय उचत-अनचत का ान नह ह इसलय वह सदा हतषी सतयपरष को छोङकर इस कपट धतर कालनरजन क पजा करत हय मोहवश उसी क ओर भागता ह कालनरजन जीव को अनक कला दखाकर भरमत करता ह जीव इसस मिकत क आशा लगाकर और उसी आशा क फ़ास म बधकर काल क मख म जाता ह इन दोन कालनरजन और माया न सतयपरष क समान ह बनावट नकल और वाणी क अनक नाम मिकत क नाम पर ससार म फ़ला दय ह और जीव को भयकर धोख म डाल दया ह

काल कसाई जीव बकरा

कबीर साहब बोल - धमरदास दवापर यग बीत गया और कलयग आया तब म फ़र सतयपरष क आा स जीव को चतान हत परथवी पर आया और मन कालनरजन को अपनी ओर आत दखा मझ दखकर वह भय स मरझा ह गया और बोला - कसलय मझ दखी करत हो और मर भय भोजन जीव को सतयलोक पहचात हो तीन यग तरता दवापर सतयग म आप ससार म गय और जीव का कलयाण कर मरा ससार उजाङा सतयपरष न जीव पर शासन करन का वचन मझ दया हआ ह मर अधकारतर स आप जीव को छङा लत हो आपक अलावा यद कोई दसरा भाई इस परकार आता तो म उस मारकर खा जाता लकन आप पर मरा कोई वश नह चलता आपक बलपरताप स ह हसजीव (मनषय) अपन वासतवक घर अमरलोक को जात ह अब आप फ़र ससार म जा रह हो परनत आपक शबदउपदश को ससार म कोई नह सनगा शभ और अशभ कम क भरमजाल का मन ऐसा ठाठ मोह सख रचा ह क िजसस उसम फ़सा जीव आपक बताय सतयलोक क सदमागर को नह समझ पायगा धमर क नाम पर मन घर-घर म भरम का भत पदा कर दया ह इसलय सभी जीव असल पजा भलकर भगवान दवी-दवता भत-पशाच भरव आद क पजा-भिकत म लग ह और इसी को सतय समझ कर खद को धनय मान रह ह इस परकार धोखा दकर मन सब जीव को अपनी कठपतल बनाया हआ ह ससार म जीव को भरम और अान का भत लगगा परनत जो आपको तथा आपक सदउपदश को पहचानगा उसका भरम ततकाल दर हो जायगा

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लकन मर भरमभत स गरसत मनषय मास-मदरा खायग पयग और ऐस नीच मनषय को मास खाना बहत परय होगा म अपन ऐस मतपथ परकट करगा िजसम सब मनषय मास-मदरा का सवन करग तब म चडी योगनी भत-परत आद को मनषय स पजवाऊगा और इसी भरम स सार ससार क जीव को भटकाऊगा जीव को अनक परकार क मोहबधन म बाधकर इस परकार क फ़द म फ़सा दगा क व अपन अनत समय तक मतय को भलकर पापकम म लपत और वासतवक भिकत स दर रहग और इस परकार मोहबधन म बध व जीव जनम पनजरनम और चौरासी लाख योनय म बारमबार भटकत ह रहग भाई आपक दवारा बनी हयी सतयपरष क भिकत तो बहत कठन ह आप समझाकर कहोग तब भी कोई नह मानगा कबीर साहब बोल - नरजन तमन जीव क साथ बङा धोखा कया ह मन तमहार धोख को पहचान लया ह सतयपरष न जो वचन कहा ह वह दसरा नह हो सकता उसी क वजह स तम जीव को सतात और मारत हो सतयपरष न मझ आा द ह उसक अनसार सब शरदधाल जीव सतयनाम क परमी हग इसलय म सरल सवभाव स जीव को समझाऊगा और सतयान को गरहण करन वाल अकर जीव को भवसागर स छङाऊगा तमन मोहमाया क जो करोङ जाल रच रख ह और वद शासतर पराण म जो अपनी महमा बताकर जीव को भरमाया ह यद म परतयकला धारण करक ससार म आऊ तो तरा जाल और य झठ महमा समापत कर सब जीव को ससार स मकत करा द लकन जो म ऐसा करता ह तो सतयपरष का वचन भग होता ह उनका वचन तो सदा न टटन वाला न डोलन वाला और बना मोह का अनमोल ह अतः म उसका पालन अवशय ह करगा जो शरषठ जीव हग व मर सारशबद ान को मानग तर चालाक समझ म आत ह शीघर सावधान होन वाल अकरजीव को म भवसागर स मकत कराऊगा और तमहार सार जाल को काटकर उनह सतयलोक ल जाऊगा जो तमन जीव क लय करोङ भरम फ़ला रख ह व तमहार फ़लाय हय भरम को नह मानग म सब जीव का सतयशबद पकका करक उनक सार भरम छङा दगा नरजन बोला - जीव को सख दन वाल मझ एक बात समझा कर कहो क जो तमको लगन लगाकर रहगा उसक पास म काल नह जाऊगा मरा कालदत आपक हस को नह पायगा और यद वह उस हसजीव (सतयनाम दा) क पास जायगा तो मरा वह कालदत मछरत हो जायगा और मर पास खाल हाथ लौट आयगा लकन आपक गपतान क यह बात मझ समझ नह आती अतः उसका भद समझा कर कहो वह कया ह तब मन कहा - नरजन धयान स सन सतय शरषठ पहचान ह और वह सतयशबद (नवारणी नाम) मो परदान करान वाला ह सतयपरष का नाम lsquoगपत परमाणrsquo ह कालनरजन बोला - अतयारमी सवामी सनो और मझ पर कपा करो इस यग म आपका कया नाम होगा मझ बताओ और अपन नामदान उपदश को भी बताओ क कस तरह और कौन सा lsquoनामrsquo आप जीव को दोग वह सब मझ बताओ िजस कारण आप ससार म जा रह हो उसका सब भद मझस कहो तब म भी जीव को उस नाम का उपदश कर चताऊगा और उन जीव को सतयपरष क सतयलोक भजगा परभ आप मझ अपना दास बना लिजय तथा य सारा गपतान मझ भी समझा दिजय मन कहा - नरजन सन म जानता ह आग क समय म तम कसा छल करन वाल हो दखाव क लय तो तम

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मर दास रहोग और गपतरप स कपट करोग गपत सारशबद का भदान म तमह नह दगा सतयपरष न ऐसा आदश मझ नह दया ह इस कलयग म मरा नाम कबीर होगा और यह इतना परभावी होगा क lsquoकबीरrsquo कहन स यम अथवा उसका दत उस शरदधाल जीव क पास नह जायगा कालनरजन बोला - आप मझस दवष रखत हो लकन एक खल म फ़र भी खलगा म ऐसी छलपणर बदध बनाऊगा िजसस अनक नकल हसजीव को अपन साथ रखगा और आपक समान रप बनाऊगा तथा आपका नाम लकर अपना मत चलाऊगा इस परकार बहत स जीव को धोख म डाल दगा क व समझ व सतयनाम का ह मागर अपनाय हय ह इसस अलप जीव सतय-असतय को नह समझ पायग कबीर साहब बोल - अर कालनरजन त तो सतयपरष का वरोधी ह उनक ह वरदध षङयतर रचता ह अपनी छलपणर बदध मझ सनाता ह परनत जो जीव सतयनाम का परमी होगा वो इस धोख म नह आयगा जो सचचा हस होगा वह तमहार दवारा मर ानगरनथ म मलायी गयी मलावट और मर वाणी का सतय साफ़-साफ़ पहचानगा और समझगा िजस जीव को म दा दगा उस तमहार धोख क पहचान भी करा दगा तब वह तमहार धोख म नह आयगा य बात सनकर कालनरजन चप हो गया और अतधयारन होकर अपन भवन को चला गया धमरदास इस काल क गत बहत नकषट और कठन ह यह धोख स जीव क मन-बदध को अपन फ़द म फ़ास लता ह --------------------- कबीर साहब न धमरदास दवारा काल क चरतर क बार म पछन पर बताया क - जस कसाई बकरा पालता ह उसक लय चार-पानी क वयवसथा करता ह गम-सद स बचन क लए भी परबनध करता ह िजसक वजह स उन अबोध बकर को लगता ह क हमारा मालक बहत अचछा और दयाल ह हमारा कतना धयान रखता ह इसलय जब कसाई उनक पास आता ह तो सीध-साध बकर उस अपना सह मालक जानकर अपना पयार जतान क लए आग वाल पर उठाकर कसाई क शरर को सपशर करत ह कछ उसक हाथ-पर को भी चाटत ह कसाई जब उन बकर को छकर कमर पर हाथ लगाकर दबा-दबाकर दखता ह तो बचार बकर समझत ह मालक पयार दखा रहा ह परनत कसाई दख रहा ह क बकर म कतना मास हो गया और जब मास खरदन गराहक आता ह तो उस समय कसाई नह दखता क कसका बाप मरगा कसक बट मरगी कसका पतर मरगा या परवार मर रहा ह वो तो बस छर रखी और कर दया - मऽ उनको सवधा दन खलान पलान का उसका यह उददशय था ठक इसी परकार सवरपराणी कालबरहम क पजा-साधना करक काल आहार ह बन ह

समदर और राम क दशमनी का कबीर दवारा नबटारा

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धमरदास बोल - साहब इसस आग कया हआ वह सब भी मझ सनाओ कबीर साहब बोल - उस समय राजा इनदरदमन उङसा का राजा था राजा इनदरदमन अपन राजय का कायर नयायपणर तरक स करता था दवापर यग क अनत म शरीकषण न परभास तर म शरर तयागा तब उसक बाद राजा इनदरदमन को सवपन हआ सवपन म शरीकषण न उसस कहा तम मरा मदर बनवा दो ह राजन तम मरा मदर बनवाकर मझ सथापत करो जब राजा न ऐसा सवपन दखा तो उसन तरनत मदर बनवान का कायर शर दया मदर बना जस ह उसका सब कायर परा हआ तरनत समदर न वह मदर और वह सथान ह नषट कर डबो दया फ़र जब दबारा मदर बनवान लग तो फ़र स समदर करोधत होकर दौङा और ण भर म सब डबोकर जगननाथ का मदर तोङ दया इस तरह राजा न मदर को छह बार बनबाया परनत समदर न हर बार उस नषट कर दया राजा इनदरदमन मदर बनवान क सब उपाय कर हार गया परनत समदर न मदर नह बनन दया मदर बनान तथा टटन क यह दशा दखकर मन वचार कया कयक अनयायी कालनरजन न पहल मझस यह मदर बनवान क पराथरना क थी और मन उस वरदान दया था अतः मर मन म बात सभालन का वचार आया और वचन स बधा होन क कारण म वहा गया मन समदर क कनार आसन लगाया परनत उस समय कसी जीव न मझ वहा दखा नह उसक बाद म फ़र समदर क कनार आया और वहा मन अपना चौरा (नवास) बनाया फ़र मन राजा इनदरदमन को सवपन दखाया और कहा - अर राजा तम मदर बनवाओ और अब य शका मत करो क समदर उस गरा दगा म यहा इसी काम क लय आया ह राजा न ऐसा ह कया और मदर बनवान लगा मदर बनन का काम होत दखकर समदर फ़र चलकर आया उस समय फ़र सागर म लहर उठ और उन लहर न च म करोध धारण कया इस परकार वह लहराता हआ समदर उमङ उमङ कर आता था क मदर बनन न पाय उसक बहद ऊची लहर आकाश तक जाती थी फ़र समदर मर चौर क पास आया और मरा दशरन पाकर भय मानता हआ वह रक गया और आग नह बढ़ा कबीर साहब बोल - तब समदर बराहमण का रप बनाकर मर पास आया और चरण सपशर कर परणाम कया फ़र वह बोला - म आपका रहसय समझा नह सवामी मरा जगननाथ स पराना वर ह शरीकषण िजनका दवापर यग म अवतार हआ था और तरता म िजनका रामरप म अवतार हआ था उनक दवारा समदर पर जबरन पल बनान स मरा उनस पराना वर ह इसीलय म यहा तक आया ह आप मरा अपराध मा कर मन आपका रहसय पाया आप समथरपरष ह परभ आप दन पर दया करन वाल ह आप इस जगननाथ (राम) स मरा बदला दलवाईय म आपस हाथ जोङकर वनती करता ह म उसका पालन करगा जब राम न लका दश क लय गमन कया था तब व सब मझ पर सत बाधकर पार उतर जब कोई बलवान कसी दबरल पर ताकत दखाकर बलपवरक कछ करता ह तो समथरपरभ उसका बदला अवशय दलवात ह ह समथरसवामी आप मझ पर दया करो म उसस बदला अवशय लगा कबीर साहब बोल - समदर जगननाथ स तमहार वर को मन समझा इसक लय मन तमह दवारका दया तम

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जाकर शरीकषण क दवारका नगर को डबो दो यह सनकर समदर न मर चरण सपशर कय और वह परसनन होकर उमङ पङा तथा उसन दवारका नगर डबो दया इस परकार समदर अपना बदला लकर शानत हो गया इस तरह मदर का काम परा हआ तब जगननाथ न पडत को सवपन म बताया क सतयकबीर मर पास आय ह उनहन समदरतट पर अपना चौरा बनाया ह समदर क उमङन स पानी वहा तक आया और सतयकबीर क दशरन कर पीछ हट गया इस परकार मरा मदर डबन स उनहन बचाया तब वह पडापजार समदरतट पर आया और सनान कर मदर म चला गया परनत उस पडत न ऐसा पाखड मन म वचारा क पहल तो उस मलचछ का ह दशरन करना पङा ह कयक म पहल कबीरचौरा तक आया परनत जगननाथपरभ का दशरन नह पाया (पडा मलचछ कबीर साहब को समझ रहा ह) धमरदास तब मन उस पड क बदध दरसत करन क लय एक लला क वह म तमस छपाऊगा नह जब पडत पजा क लय मदर म गया तो वहा एक चरतर हआ मदर म जो मतर लगी थी उसन कबीर का रप धारण कर लया और पडत न जगननाथ क मतर को वहा नह दखा कयक वह बदल कर कबीर रप हो गयी पजा क लय अतपषप लकर पडत भल म पङ गया क यहा ठाकर जी तो ह ह नह फ़र भाई कस पज यहा तो कबीर ह कबीर ह तब ऐसा चरतर दखकर उस पडा न सर झकाया और बोला - सवामी म आपका रहसय नह समझ पाया आप म मन मन नह लगाया मन आपको नह जाना उसक लय आपन यह चरतर दखाया परभ मर अपराध को मा कर दो कबीर साहब बोल - बराहमण म तमस एक बात कहता ह िजस त कान लगाकर सन म तझ आा दता ह क त ठाकर जगननाथ क पजा कर और दवधा का भाव छोङ द वणर जात छत अछत ऊच नीच अमीर गरब का भाव तयाग द कयक सभी मनषय एक समान ह इस जगननाथ मदर म आकर जो मनषय म भदभाव मानता हआ भोजन करगा वह मनषय अगहन होगा भोजन करन म जो छत-अछत रखगा उसका शीश उलटा (चमगादङ) होगा धमरदास इस तरह पडत को पकका उपदश करत हय मन वहा स परसथान कया

धमरदास क पवरजनम क कहानी

धमरदास बोला - साहब आपक दवारा जगननाथ मदर का बनवाना मन सना इसक बाद आप कहा गय कौन स जीव को मकत कराया तथा कलयग का परभाव भी कहय कबीर साहब बोल - धमरदास lsquoराजसथल दशrsquo क राजा का नाम lsquoबकजrsquo था मन उस नाम उपदश दया और जीव

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क उदधार क लय कणरधार कवट बनाया राजसथल दश स म शालमल दप आया और वहा मन एक सत lsquoसहतrsquo को चताया और उस जीव का उदधार करन क लय समसत गर ानदा परदान क फ़र म वहा स दरभगा आया जहा राजा lsquoचतभरज सवामीrsquo का नवास था उसको भी पातर जानकर मन जीव को चतान हत गरवाई (जीव को चतान और नाम उपदश दन वाला) बनाया उसन जरा भी मायामोह नह कया तब मन उस सतयनाम दकर गरवाई द धमरदास मन हस का नमरलान रहनी गहनी समरन आद इन कङहार गरओ को अचछ तरह बताया व सब कल मयारदा काम मोह आद वषय का तयाग कर सारगण को जानन वाल हय चतभरज बकज सहतज और चौथ धमरदास तम य चार जीव क कङहार ह अथारत जीव को सतयान बताकर भवसागर स पार लगान वाल ह यह मन तमस अटल सतय कहा ह धमरदास अब तमहार हाथ स मझको जमबदप (भारत) क जीव मलग जो मर उपदश को गरहण करगा कालनरजन उसस दर ह रहगा धमरदास बोल - साहब म पापकमर करन वाला दषट और नदरयी था और मरा जीवातमा सदा भरम स अचत रहा तब मर कस पणय स आपन मझ अाननदरा स जगाया और कौन स तप स मन आपका दशरन पाया वह मझ बताय कबीर साहब बोल - तमह समझान और दशरन दन क पीछ कया कारण था वह मझस सनो तम अपन पछल जनम क बात सनो िजस कारण म तमहार पास आया सत सदशरन जो दवापर म हय वह कथा मन तमह सनाई जब म उसक हसजीव को सतयलोक ल गया तब उसन मझस वनती क और बोला - सदगर मर वनती सन और मर माता-पता को मिकत दलाय ह बनदछोङ उनका आवागमन मट कर छङान क कपा कर यम क दश म उनहन बहत दख पाया ह मन बहत तरक स उनको समझाया परनत तब उनहन मर बात नह मानी और वशवास ह नह कया लकन उनहन भिकत करन स मझ कभी नह रोका जब म आपक भिकत करता तो कभी उनक मन म वरभाव नह होता बिलक परसननता ह होती इसी स परभ मर वनती ह क आप बनदछोङ उनक जीव को मकत कराय जब सदशरन शवपच न बारबार ऐसी वनती क तो मन उसको मान लया और ससार म कबीर नाम स आया म नरजन क एक वचन स बधा था फ़र भी सदशरन शवपच क वनती पर म भारत आया म वहा गया जहा सत शवपच क माता पता lsquoलमीrsquo और lsquoनरहरrsquo नाम स रहत थ भाई उनहन शवपच क साथ वाल दह छोङ द थी और सदशरन क पणय स उसक माता-पता चौरासी म न जाकर पनः मनषयदह म बराहमण होकर उतपनन हय थ जब दोन का जनम हो गया तब फ़र वधाता न समय अनसार उनह पत-पतनी क रप म मला दया तब उस बराहमण का नाम कलपत और उसक पतनी का नाम महशवर था बहत समय बीत जान पर भी महशवर क सतान नह हयी थी तब पतरपरािपत हत उसन सनान कर सयरदव का वरत रखा वह आचल फ़लाकर दोन हाथ जोङकर सयर स पराथरना करती उसका मन बहत रोता था तब उसी समय म (कबीर साहब) उसक आचल म बालक रप धरकर परकट हो गया मझ दखकर महशवर बहत परसनन हयी और मझ घर ल गयी और अपन पत स बोल - परभ न मझ पर कपा क और मर सयरवरत करन का फ़ल यह बालक मझको दया

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म बहत दन तक वहा रहा व दोन सतरी-परष मलकर मर बहत सवा करत पर व नधरन होन स बहत दखी थ तब मन ऐसा वचार कया क पहल म इनक गरबी दर कर फ़र इनको भिकत-मिकत का उपदश कर इसक लय मन एक लला क जब बराहमण सतरी न मरा पालना हलाया तो उस उसम एक तौला सोना मला फ़र मर बछौन स उनह रोज एक तौला सोना मलता था उसस व बहत सखी हो गय तब मन उनको सतयशबद का उपदश कया और उन दोन को बहत तरह स समझाया परनत उनक हरदय म मरा उपदश नह समाया बालक जानकर उनह मर बात पर वशवास नह आया उस दह म उनहन मझ नह पहचाना तब म वह शरर तयाग कर गपत हो गया तब कछ समय बाद उस बराहमण कलपत और उसक सतरी महशवर दोन न शरर छोङा और मर दशरन क परभाव स उनह फ़र स मनषय शरर मला फ़र दोन समय अनसार पत-पतनी हय और वह चदनवार नगर म जाकर रहन लग इस जनम म उस औरत का नाम lsquoऊदाrsquo और परष का नाम lsquoचदनrsquo था तब म सतयलोक स आकर पनः चदवार नगर म परगट हआ उस सथान पर मन बालक रप बनाया और वहा तालाब म वशराम कया तालाब म मन कमलपतर पर आसन लगाया और आठ पहर वहा रहा उस तालाब म ऊदा सनान करन आयी और सनदर बालक दखकर मोहत हो गयी वह मझ अपन घर ल गयी उसन अपन पत चदनसाह को बताया क य बालक कस परकार मझ मला चदन साह बोला - अर ऊदा त मखर सतरी ह शीघर जाओ और इस बालक को वह डाल आओ वरना हमार जात कटमब क लोग हम पर हसग और उनक हसन स हम दख ह होगा चदनसाह करोधत हआ तो ऊदा बहत डर गयी चदन साह अपनी दासी स बोला - इस बालक को ल जा और तालाब क जल म डाल द कबीर साहब बोल - दासी उस बालक को लकर चल द और तालाब म डालन का मन बनाया उसी समय म अतधयारन हो गया यह दखकर वह बलख-बलख कर रोन लगी वह मन स बहत परशान थी और य चमतकार दखकर मगध होती हयी बालक को खोजती थी पर मह स कछ न बोलती थी इस परकार आय पर होन पर चदनसाह और ऊदा न भी शरर छोङ दया और फ़र दोन न मनषयजनम पाया अबक बार उन दोन को जलाहा-कल म मनषयशरर मला फ़र स वधाता का सयोग हआ और फ़र स समय आन पर व पत-पतनी बन गय इस जनम म उन दोन का नाम नीर नीमा हआ नीर नाम का वह जलाहा काशी म रहता था तब एक दन जठ महना और शकलप तथा बरसाइत पणरमा क तथ थी नीर अपनी पतनी नीमा क साथ लहरतारा तालाब मागर स जा रहा था गम स वयाकल उसक पतनी को जल पीन क इचछा हयी तभी म उस तालाब क कमलपतर पर शशरप म परकट हो गया और बालकरङा करन लगा जल पीन आयी नीमा मझ दखकर हरान रह गयी उसन दौङकर मझ उठा लया और अपन पत क पास ल आयी नीमा न मझ दखकर बहत करोध कया और कहा - इस बालक को वह डाल दो

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नीमा सोच म पङ गयी तब मन उसस कहा - नीमा सनो म तमह समझाकर कहता ह पछल (जनम क) परम क कारण मन तमह दशरन दया कयक पछल जनम म तम दोन सदशरन क माता-पता थ और मन उस वचन दया था क तमहार माता-पता का अवशय उदधार करगा इसलय म तमहार पास आया ह अब तम मझ घर ल चलो और मझ पहचान कर अपना गर बनाओ तब म तमह सतयनाम उपदश दगा िजसस तम कालनरजन क फ़द स छट जाओग तब नीमा न नीर क बात का भय नह माना और मझ अपन घर ल गयी इस परकार म काशी नगर म आ गया और बहत दन तक उनक साथ रहा पर उनह मझ पर वशवास नह आया व मझ अपना बालक ह समझत रह और मर शबदउपदश पर धयान नह दया धमरदास बना वशवास और समपरण क जीवनमिकत का कायर नह होता ऐसा नणरय करक गर क वचन पर दढ़तापवरक वशवास करना चाहय अतः उस शरर म नीर नीमा न मझ नह पहचाना और मझ अपना बालक जानकर सतसग नह कया धमरदास जब जलाहाकल म भी नीर नीमा क आय पर हयी और उनहन फ़र स शरर तयाग कर दबारा मनषयरप म मथरा म जनम लया तब मन वहा मथरा म जाकर उनको दशरन दया अबक बार उनहन मरा शबदउपदश मान लया और उस औरत का रतना नाम हआ वह मन लगाकर भिकत करती थी मन उन दोन सतरी-परष को शबदनाम उपदश दया इस तरह व मकत हो गय और सतयलोक म जाकर हसशरर परापत कया उन हस को दखकर सतयपरष बहत परसनन हय और उनह lsquoसकतrsquo नाम दया फर सतयलोक म रहत हय मझ बहत दन बीत गय तब कालनरजन न बहत जीव को सताया जब कालनरजन जीव को बहत दख दन लगा तब सतयपरष न सकत को पकारा और कहा - ह सकत तम ससार म जाओ वहा अपार बलवान कालनरजन जीव को बहत दख द रहा ह तम जीव को सतयनाम सदश सनाओ और हसदा दकर काल क जाल स मकत कराओ य सनकर सकत बहत परसनन हय और व सतयलोक स भवसागर म आ गय इस बार सकत को ससार म आया दखकर कालनरजन बहत परसनन हआ क इसको तो म अपन फ़द म फ़सा ह लगा तब कालनरजन न बहत स उपाय अपनाकर सकत को फ़साकर अपन जाल म डाल लया जब बहत दन बीत गय और काल न एक भी जीव को सरत नह छोङा और सबको सताता मारता खाता रहा तब जीव न फ़र दखी होकर सतयपरष को पकारा और तब सतयपरष न मझ पकारा सतयपरष न कहा - ानी शीघर ह ससार म जाओ मन जीव क उदधार क लय सकत अश भजा था वह ससार म परकट हो गया हमन उस सारशबद का रहसय समझा कर भजा था परनत वह वापस सतयलोक लौटकर नह आया और कालनरजन क जाल म फ़सकर सध-बध (समत अपनी पहचान) भल गया ानीजी तम जाकर उस अचत-नदरा स जगाओ िजसस मिकतपथ चल वश बयालस हमारा अश ह जो सकत क घर अवतार लगा ानी तम शीघर सकत क पास जाओ और उसक कालफ़ास मटा दो

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कबीर साहब बोल - धमरदास तब सतयपरष क आा स म तमहार पास आया ह धमरदास तम सोचो वचारो क तम जस lsquoनीरrsquo स होकर जनम हो और तमहार सतरी आमन lsquoनीमाrsquo स होकर जनमी ह वस ह म तमहार घर आया ह तम तो मर सबस अधक परय अश हो इसलय मन तमह दशरन दया अबक बार तम मझ पहचानो तब म तमह सतयपरष का उपदश कहगा यह वचन सनत ह धमरदास दौङकर कबीर साहब क चरण म गर गय और रोन लग

कालदत नारायण दास क कहानी

कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमहार सामन सतय का भद परकाशत कया ह और तमहार सभी काल-जाल को मटा दया ह अब रहनी-गहनी क बात सनो िजसको जान बना मनषय य ह भलकर सदा भटकता रहता ह सदा मन लगाकर भिकतसाधना करो और मान-परशसा को तयागकर सचचसनत क सवा करो पहल जात वणर और कल क मयारदा नषट करो (अभमान मत करो और य मत मानो क lsquoमrsquo य ह या वो ह य चौरासी म फ़सन का सबस बङा कारण होता ह) तथा दसर अनयमत पतथर (मतर) पानी (गगा यमना कमभ आद) दवी-दवता क पजा छोङकर नषकाम गर क भिकत करो जो जीव गर स कपट चतराई करता ह वह जीव ससार म भटकता भरमता ह इसलय गर स कभी कपट परदा नह रखना चाहय गर स कपट मतर क चोर क होय अधा क होय कोढ़ जो गर स भद कपट रखता ह उसका उदधार नह होता वह चौरासी म ह रहता ह धमरदास कवल एक सतयपरष क सतयनाम क आशा और वशवास करो इस ससार का बहत बङा जजाल ह इसी म छपा हआ कालनरजन अपनी फ़ास (फ़दा) लगाय हय ह िजसस क जीव उसम फ़सत रह परवार क सब नर-नार मलकर यद सतयनाम का समरन कर तो भयकर काल कछ नह बगाङ सकता धमरदास तमहार घर िजतन जीव ह उन सबको बलाओ सब (हस) नामदा ल फ़र तम अनयायी और करर कालनरजन स सदा सरत रहोग धमरदास बोल - परभ आप जीव क मल (आधार) हो आपन मरा समसत अान मटा दया मरा एक पतर नारायण दास ह आप उस भी उपदश कर यह सनकर कबीर साहब मसकरा दय पर अपन अनदर क भाव को परकट नह कया और बोल - धमरदास िजसको तम शदध अतःकरण वाला समझत हो उनको तरनत बलाओ धमरदास न सबको बलाया और बोल - भाई य समथर सदगरदव सवामी ह इनक शरीचरण म गरकर समपरत हो जाओ िजसस क चौरासी स मकत होओ और ससार म फ़र स न जनम इतना सनत ह सभी जीव आय और कबीर साहब क चरण म दडवत परणाम कर समपरत हो गय परनत नारायण

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दास नह आया धमरदास सोचन लग क नारायण दास तो बहत चतर ह फ़र वह कय नह आया धमरदास न अपन सवक स कहा - मर पतर नारायण दास न गर lsquoरपदासrsquo पर वशवास कया ह और उसक शा अनसार वह िजस सथान पर शरीमदभगवद गीता पढ़ता रहता ह वहा जाकर उसस कहो तमहार पता न समथरगर पाया ह सवक नारायण दास क पास जाकर बोला - नारायण दास तम शीघर चलो आपक पता क पास समथरगर कबीर साहब आय ह उनस उपदश लो नारायण दास बोला - म पता क पास नह जाऊगा व बढ़ हो गय ह और उनक बदध का नाश हो गया ह वषण क समान और कौन ह हम िजसको जप मर पता बढ़ हो गय ह और उनको जलाहा गर भा गया ह मर मन को तो वठठलशवर गर ह पाया ह अब और कया कह मर पता तो बस पागल ह हो गय ह उस सदशी न यह सब बात धमरदास को आकर बतायी धमरदास सवय अपन पतर नारायण दास क पास पहच और बोल - पतर नारायण दास अपन घर चलो वहा सदगर कबीर साहब आय हय ह उनक शरीचरण म माथा टको और अपन सब कमरबधनो को कटाओ जलद करो ऐसा अवसर फ़र नह मलगा हठ छोङो बनदछोङ गर बारबार नह मलत नारायण दास बोला - पताजी लगता ह आप पगला गय हो इसलय तीसरपन क अवसथा म िजदागर पाया ह अर िजसका नाम राम ह उसक समान और कोई दवता नह ह िजसक ऋष-मन आद सभी पजा करत ह आपन गर वठठलशवर का परम छोङकर अब बढ़ाप म वह िजनदागर कया ह तब धमरदास न नारायण को बाह पकङ कर उठा लया और कबीर साहब क सामन ल आय और बोल - इनक चरण पकङो य यम क फ़द स छङान वाल ह नारायण दास मह फ़रकर कट शबद म बोला - यह कहा हमार घर म मलचछ न परवश कया ह कहा स यह lsquoिजनदाठगrsquo आया िजसन मर पता को पागल कर दया वदशासतर को इसन उठाकर रख दया और अपनी महमा बनाकर कहता ह यद यह िजनदा आपक पास रहगा तो मन आपक घर आन क आशा छोङ द ह नारायण दास क यह बात सनत ह धमरदास परशान हो गय और बोल - मरा यह पतर जान कया मत ठान हय ह फ़र माता आमन न भी नारायण को बहत समझाया परनत नारायण दास क मन म उनक एक भी बात सह न लगी और वह बाहर चला गया तब धमरदास कबीर स वनती करत हय बोल - साहब मझ वह कारण बताओ िजसस मरा पतर इस परकार आपको कटवचन कहता ह और दबरदध को परापत होकर भटका हआ ह कबीर बोल - धमरदास मन तो तमह नारायण दास क बार म पहल ह बता दया था पर तम उस भल गय हो

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अतः फ़र स सनो जब म सतयपरष क आा स जीव को चतान मतयलोक क तरफ़ आया तब कालनरजन न मझ दखकर वकराल रप बनाया और बोला - सतयपरष क सवा क बदल मन यह lsquoझाझरदपrsquo परापत कया ह ानी तम भवसागर म कस (कय) आय म तमस सतय कहता ह म तमह मार दगा तम मरा यह रहसय नह जानत कबीर न कहा - अनयायीनरजन सन म तझस नह डरता जो तम अहकार क वाणी बोलत हो म इसी ण तमह मार डालगा कालनरजन सहम गया और वनती करता हआ बोला - ानीजी आप ससार म जाओग बहत स जीव का उदधार कर मकत करोग तो मर भख कस मटगी जब जीव नह हग तब म कया खाऊगा मन एक लाख जीव रात-दन खाय और सवालाख उतपनन कय मर सवा स सतयपरष न मझको तीनलोक का राजय दया आप ससार म जाकर जीव को चताओग उसक लय मन ऐसा इतजाम कया ह म धमर-कमर का ऐसा मायाजाल फ़लाऊगा क आपका सतयउपदश कोई नह मानगा म घर-घर म अान भरम का भत उतपनन करगा तथा धोखा द दकर जीव को भरम म डालगा तब सभी मनषय शराब पीयग मास खायग इसलय कोई आपक बात नह मानगा आपका ससार म जाना बकार ह मन कहा - कालनरजन म तरा छल-बल सब जानता ह म सतयनाम स तर दवारा फ़लाय गय सब भरम मटा दगा और तरा धोखा सबको बताऊगा कालनरजन घबरा गया और बोला - म जीव को अधक स अधक भरमान क लय बारह पथ चलाऊगा और आपका नाम लकर अपना धोख का पथ चलाऊगा lsquoमतअधाrsquo मरा अश ह वह धमरदास क घर जनम लगा पहल मरा कालदत धमरदास क घर जनम लगा पीछ स आपका अश जनम लगा भाई मर इतनी वनती तो मान ह लो धमरदास तब मन नरजन को कहा सनो नरजन तमन इस परकार कहकर जीव क उदधारकायर म वघन डाल दया ह फ़र भी मन तमको वचन दया इसलय धमरदास अब वह lsquoमतअधाrsquo नाम का कालदत तमहारा पतर बनकर आया ह और अपना नाम नारायण दास रखवाया ह नारायण कालनरजन का अश ह जो जीव क उदधार म वघन का कायर करगा यह मरा नाम लकर पथ को परकट करगा और जीव को धोख म डालगा और नकर म डलवायगा जस शकार नाद को बजाकर हरन को अपन वश म कर लता ह और पकङकर उस मार डालता ह वस ह शकार क भात यमकाल अपना जाल लगाता ह और इस चाल को हसजीव ह समझ पायगा तब कालदत नारायण दास क चाल समझ म आत ह धमरदास न उस तयाग दया और कबीर क चरण म गर पङ

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कालनरजन का छलावा बारह पथ

धमरदास बोल - कालनरजन न जीव को भरमान क लय जो अपन बारह पथ चलाय व मझ समझा कर कहो कबीर साहब बोल - म तमस काल क lsquoबारह पथrsquo क बार कहता ह lsquoमतयअधाrsquo नाम का दत जो छल बल म शिकतशाल ह वह सवय तमहार घर म उतपनन हआ ह यह पहला पथ ह दसरा lsquoतमर दतrsquo चलकर आयगा उसक जात अहर होगी और वह नफ़र यानी गलाम कहलायगा वह तमहार बहत सी पसतक स ान चराकर अलग पथ चलायगा तीसरा पथ का नाम lsquoअधाअचतrsquo दत होगा वह सवक होगा वह तमहार पास आयगा और अपना नाम lsquoसरतगोपालrsquo बतायगा वह भी अपना अलग पथ चलायगा और जीव को lsquoअरयोगrsquo (कालनरजन) क भरम म डालगा धमरदास चौथा lsquoमनभगrsquo नाम का कालदत होगा वह कबीरपथ क मलकथा का आधार लकर अपना पथ चलायगा और उस मलपथ कहकर ससार म फ़लायगा वह जीव को lsquoलदrsquo नाम लकर समझायगा उपदश करगा और इसी नाम को lsquoपारसrsquo कहगा वह शरर क भीतर झकत होन वाल शनय क lsquoझगrsquo शबद का समरन अपन मख स वणरन करगा सब जीव उस lsquoथाकाrsquo कहकर मानग धमरदास lsquoपाचव पथrsquo को चलान वाला lsquoानभगीrsquo नाम का दत होगा उसका पथ टकसार नाम स होगा वह इगला-पगला नाङय क सवर को साधकर भवषय क बात करगा जीव को जीभ नतर मसतक क रखा क बार म बता कर समझायगा जीव क तल मससा आद चहन दखकर उनह भरमरपी धोख म डालगा वह िजस जीव क ऊपर जसा दोष लगायगा वसा ह उसको पान खलायगा (नाम आद दना) lsquoछठा पथrsquo कमाल नाम का ह वह lsquoमनमकरदrsquo दत क नाम स ससार म आया ह उसन मद म वास कया और मरा पतर होकर परकट हआ वह जीव को झलमल-जयोत का उपदश करगा (जो अषटागी न वषण को दखाकर भरमा दया) और इस तरह वह जीव को भरमायगा जहा तक जीव क दिषट ह वह झलमल-जयोत ह दखगा िजसन दोन आख स झलमल-जयोत नह दखी ह वह कस झलमल-जयोत क रप को पहचानगा झलमल-जयोत कालनरजन क ह उस दत क हरदय म सतय मत समझो वह तमह भरमान क लय ह सातवा दत lsquoचतभगrsquo ह वह मन क तरह अनक रगरप बदल कर बोलगा वह lsquoदनrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और दह क भीतर बोलन वाल आतमा को ह सतयपरष बतायगा वह जगतसिषट म पाच-ततव तीन गण बतायगा और ऐसा ान करता हआ अपना पथ चलायगा इसक अतरकत आदपरष कालनरजन अषटागी बरहमा आद कछ भी नह ह ऐसा भरम बनायगा सिषट हमशा स ह तथा इसका कतारधतार कोई नह ह इसी को वह ठोस lsquoबीजकrsquo ान कहगा वह कहगा क अपना आपा ह बरहम ह वह वचन वाणी बोलता ह तो फ़र सोचो गर का कया महतव और आवशयकता ह राम न वशषठ को और कषण न दवारसा को गर कय बनाया जब कषण जस न गरओ क सवा क तो ऋषय-मनय क फ़र गनती ह कया ह नारद न गर को दोष लगाया तो वषण न उनस नकर भगतवाया जो बीजक ान वह दत थोपगा वह ऐसा होगा जस गलर क भीतर कङा घमता ह तथा वह कङा समझता ह क

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ससार इतना ह ह अपन आपको कतार-धतार मानन स जीव का कभी भला न होगा अपन आपको ह मानन वाला जीव रोता रहगा आठवा पथ चलान वाला lsquoअकलभगrsquo दत होगा वह परमधाम कहकर अपना पथ चलायगा कछ करआन तथा वद क बात चराकर अपन पथ म शामल करगा वह कछ-कछ मर नगरण-मत क बात लगा और उन सब बात को मलाकर एक पसतक बनायगा इस परकार जोङजाङ कर वह बरहमान का पथ चलायगा उसम कमरआशरत (यानी ानरहत ानआशरत नह कमर ह पजा ह मानन वाल) जीव बहत लपटग नौवा पथ lsquoवशभर दतrsquo का होगा और उसका जीवनचरतर ऐसा होगा क वह lsquoरामकबीरrsquo नाम का पथ चलायगा वह नगरण-सगण दोन को मलाकर उपदश करगा पाप-पणय को एक समझगा ऐसा कहता हआ वह अपना पथ चलायगा दसवा पथ क दत का नाम lsquoनकटा ननrsquo ह वह lsquoसतनामीrsquo कहकर पथ चलायगा और lsquoचारवणरrsquo क जीव को एक म मलायगा वह अपन वचनउपदश म बराहमण तरय वशय शदर सबको एक समान मलायगा परनत वह सदगर क शबदउपदश को नह पहचानगा वह अपन प को बाधकर रखगा िजसस जीव नकर को जायग वह शरर का ान कथन सब समझायगा परनत सतयपरष क मागर को नह पायगा धमरदास कालनरजन क चालबाजी क बात सनो वह जीव को फ़सान क लय बङ-बङ फ़द क रचना करता ह वह काल जीव को अनक कमर (पजा आद आडबर सामािजक रतरवाज) और कमरजाल म ह जीव को फ़ास कर खा जाता ह जो जीव सारशबद को पहचानता ह समझता ह वह कालनरजन क यमजाल स छट जाता ह और शरदधा स सतयनाम का समरन करत हय अमरलोक को जाता ह lsquoगयारहव पथrsquo को चलान वाला lsquoदगरदानीrsquo नाम का कालदत अतयनत बलशाल होगा वह lsquoजीवपथrsquo नाम कहकर पथ चलायगा और शररान क बार म समझायगा उसस भोल अानी जीव भरमग और भवसागर स पार नह हग जो जीव बहत अधक अभमानी होगा वह उस कालदत क बात सनकर उसस परम करगा lsquoबारहव पथrsquo का कालदत lsquoहसमनrsquo नाम का होगा वह बहत तरह क चरतर करगा वह वचनवश क घर म सवक होगा और पहल बहत सवा करगा फ़र पीछ (अथारत पहल वशवास जमायगा और जब लोग उसको मानन लगग) वह अपना मत परकट करगा और बहत स जीव को अपन जाल म फ़सा लगा और अश-वश (कबीर साहब क सथापत ान) का वरोध करगा वह उसक ान क कछ बात को मानगा कछ को नह मानगा इस परकार कालनरजन जीव पर अपना दाव फ़ कत हय उनह अपन फ़द म (असलान स दर) बनाय रखगा यानी ऐसी कोशश करगा वह अपन इन अश (कालदत) स बारह पथ (झठान को फ़लान हत) परकट करायगा और य दत सफ़र एकबार ह परकट नह हग बिलक व उन पथ म बारबार आत-जात रहग और इस तरह बारबार ससार म परकट हग जहा-जहा भी य दत परकट हग जीव को बहत ान (भरमान वाला) कहग और व यह सब खद को कबीरपथी बतात हय करग और व शररान का कथन करक सतयान क नाम पर कालनरजन क ह महमा को घमाफ़रा कर बतायग और अानी जीव को काल क मह म भजत रहग कालनरजन न ऐसा ह करन का उनको आदश दया ह

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जब-जब नरजन क य दत ससार म जनम लकर परकट हग तब-तब य अपना पथ फ़लायग व जीव को हरान करन वाल वचतर बात बतायग और जीव को भरमा कर नकर म डालग धमरदास ऐसा वह कालनरजन बहत ह परबल ह वह तथा उसक दत कपट स जीव को छलबदध वाला ह बनायग -------------- आतमान क lsquoहसदाrsquo और lsquoपरमहस दाrsquo म वाणी या अनय इिनदरय का कोई सथान नह ह दोन ह दाओ म सरत को दो अलग-अलग सथान स जोङा जाता ह मतलब धयान बारबार वह ल जान का अभयास कया जाता ह जब धयान पर साधक क पकङ हो जाती ह तो य धयान खद-ब-खद अपन आप होन लगता ह और तीन महन क ह सह अभयास स दवयदशरन अनतलक क सर भवरगफ़ा आसमानी झला आद बहत अनभव होत ह दसर दा क बाद एक सथायी सी शात महसस होती ह जसी पहल कभी महसस नह क और आपक िजनदगी म सवभाव म एक मजबती सी आ जाती ह इसीलय सनत न कहा ह - फ़कर मत कर िजकर कर

चङामण का जनम

धमरदास बोल - परभ अब आप मझ पर कपा करो िजसस ससार म वचनवश परकट हो और आग पथ चल कबीर बोल - धमरदास दस महन म तमहार जीवरप म वश परकट होगा और अवतार होकर जीव क उदधार क लय ह ससार म आयगा य तमहारा पतर ह मरा अश होगा धमरदास न कहा - साहब मन तो अपनी कामदर को वश म कर लया ह फ़र कस परष क अश lsquoनौतम सरतrsquo चङामण ससार म जनम लग कबीर साहब बोल - तम दोन सतरी-परष कामवषय क आसिकत स दर रहकर सफ़र मन स रत करो सतयपरष का नाम पारस ह उस पान पर लखकर अपनी पतनी आमन को दो िजसस सतयपरष का अश नौतम जनम लगा तब धमरदास क यह शका दर हो गयी क बना मथन क यह कस सभव होगा फ़र कबीर साहब क बताय अनसार दोन पत-पतनी न मन स रत क और पान दया जब दस मास पर हय तब मकतामण का जनम हआ इस पर धमरदास न बहत दान कया कबीर साहब को पता चला क मकतामण का जनम हो गया ह तो व तरनत धमरदास क घर पहच और मकतामण को दखकर बोल - यह मकतामण मिकत का सवरप ह यह कालनरजन स जीव को मकत करायगा

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फ़र कबीर साहब मकतामण क दा करत हय बोल - मन तमको वश बयालस का राजय दया तमस बयालस वश हग जो शरदधाल जीव को तारग तमहार उन वश बयालस स साठ शाखाय हगी और फ़र उन शाखाओ स परशाखाय हगी तमहार दस हजार तक परशाखाय हगी वश क साथ मलकर उनका गजारा होगा लकन यद तमहार वश उनस ससार समबनध मानकर नाता मानग तो उनको सतयलोक परापत नह होगा इसलय तमहार वश को मोहमाया स दर रहना चाहय धमरदास पहल मन तमको जो ानवाणी का भडार सपा था वह सब चङामण को बता दो तब बदधमान चङामण ान स पणर हग िजस दखकर काल भी चकनाचर हो जायगा धमरदास न कबीर साहब क आा का पालन कया और दोन न कबीर क चरण सपशर कय यह सब दखकर कालनरजन भय स कापन लगा परसनन होकर कबीर साहब बोल - धमरदास जो सतयपरष क इस नामउपदश को गरहण करगा उसका सतयलोक जान का रासता कालनरजन नह रोक सकता चाह वह अठासी करोङ घाट ढ़ढ़ कोई मख स करोङ ान क बात कहता हो और दखाव क लय बना वधान क (कायद स दा आद क) कबीर कबीर का नाम जपता हो वयथर म कतना ह असार-कथन कहता हो परनत सतयनाम को जान बना सब बकार ह ह जो सवय को ानी समझकर ान क नाम पर बकवास करता हो उसक ानरपी वयजन क सवाद को पछो करोङ यतन स भी यद भोजन तयार हो परनत नमक बना सब फ़का ह रहता ह जस भोजन क बात ह वस ह ान क बात ह हमारा ान का वसतार चौदह करोङ ह फ़र भी सारशबद (असल नाम) इनस अलग और शरषठ ह धमरदास िजस तरह आकाश म नौ लाख तारागण नकलत ह िजनह दखकर सब परसनन होत ह परनत एक सयर क नकलत ह सब तार क चमक खतम हो जाती ह और व दखायी नह दत इसी तरह नौ लाख तारागण ससार क करोङ ान को समझो और एक सयर आतमानी सनत को जानो जस वशाल समदर को पार करान वाला जहाज होता ह उसी परकार अथाह भवसागर को पार करवान वाला एकमातर lsquoसारशबदrsquo ह ह मर सारशबद को समझ कर जो जीव कौव क चाल (वषयवासना म रच) छोङ दग तो वह सारशबदगराह हस हो जायग धमरदास बोल - साहब मर मन म एक सशय ह कपया उस सन मझ समथर सतपरष न ससार म भजा था परनत यहा आन पर कालनरजन न मझ फ़सा लया आप कहत हो म सतसकत का अश ह तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया ऐसा ह आग वश क साथ हआ तो ससार क सभी जीव नषट हो जायग इसलय साहब ऐसी कपा कर क कालनरजन वश को न छल कबीर बोल - धमरदास तमन सतय कहा और ठक सोचा और तमहारा यह सशय होना भी सतय ह आग धमररायनरजन एक खल तमाशा करगा उस म तमस छपाऊगा नह कालनरजन न मझस सफ़र बारह पथ चलान क बात कह थी और अपन चार पथ को गपत रखा था जब मन चार गरओ का नमारण कया तो उसन भी अपन चार अश परकट कय और उनह जीव को फ़सान क लय बहत परकार स समझाया अब आग जसा होगा वह सनो जबतक तम इस शरर म रहोग तबतक कालनरजन परकट नह होगा जब तम शरर छोङोग तभी काल आकर परकट होगा काल आकर तमहार वश को छदगा और धोख म डालकर मोहत करगा वश क बहत नाद सत महत कणरधार हग काल क परभाव स व पारस वश को वष क सवाद जसा करग

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बदमल और टकसार वश क अनदर मशरत हग वश म एक बहत बङा धोखा होगा कालसवरप lsquoहगrsquo दत उसक दह म समायगा वह आपस म झगङा करायगा बदवश क सवभाव को हगदत नह छोङगा वह मन क दवारा बदवश को अपनी तरफ़ मोङगा मरा अश जो सतयपथ चलायगा उस दखकर वह झगङा करगा उसक चहन अथवा चाल को वह नह दख सकगा और अपना रासता वश म दखगा वश अपन अनभवगरनथ कथ कर (कह कर) रखगा परनत नादपतर क नदा करगा तब उन अनभवगरनथ को वश क कणरधार सत महत पढ़ग िजसस उनको बहत अहकार होगा व सवाथर और अहकार को समझ नह पायग और ान कलयाण क नाम पर जीव को भटकायग इसी स म तमह समझाकर कहता ह अपन वश को सावधान कर दो नादपतर जो परकट होगा उसस सब परम स मल धमरदास इसी मन स समझो तम सवरथा वषयवकार स रहत मर नादपतर (शबद स उतपनन) हो कमाल पतर जो मन मतक स जीवत कया था उसक घट (शरर) क भीतर भी कालदत समा गया उसन मझ पता जानकर अहकार कया तब मन अपना ानधन तमको दया म तो परमभाव का भखा ह हाथी घोङ धन दौलत क चाह मझ नह ह अननयपरम और भिकत स जो मझ अपनायगा वह हसभकत ह मर हरदय समायगा यद म अहकार स ह परसनन होन वाला होता तो म सब ान धयान आधयातम पडत-काजी को न सप दता जब मन तमह परम म लगन लगाय अपन अधीन दखा तो अपनी सब अलौकक ान-सपदा ह सप द ऐस ह धमरदास आग सपातर लोग को तम यह ान दना धमरदास अचछ तरह जान लो जहा अहकार होता ह वहा म नह होता जहा अहकार होता ह वहा सब कालसवरप ह होता ह अतः अहकार मिकत क अनोख सतयलोक को नह पा सकता मकतामण और चङामण एक ह अश क दो नाम ह

काल का अपन दत को चाल समझाना

धमरदास बोल - साहब जीव क उदधार क लय जो वचनवश lsquoचङामणrsquo ससार म आया वह सब आपन बताया वचनवश को जो ानी पहचान लगा उसको कालनरजन का lsquoदगरदानीrsquo जसा दत भी नह रोक पायगा तीसरा सरत अश lsquoचङामणrsquo ससार म परकट हआ ह वह मन दख लया फ़र भी मझ एक सशय ह साहब मझ समथर सतयपरष न भजा था परनत ससार म आकर म भी कालनरजन क जाल म फ़स गया आप मझ lsquoसतसकतrsquo का अश कहत हो तब भी भयकर कालनरजन न मझ डस लया अगर ऐसा ह सब वश क साथ हआ तो ससार क सब जीव नषट हो जायग इसलय ऐसी कपा करय क कालनरजन सतयपरष क वश को अपन छलभद स न छल पाय कबीर साहब बोल - यह तमन ठक कहा और तमहारा सशय सतय ह भवषय म कालनरजन कया चाल खलगा वह बताता ह सतयग म सतयपरष न मझ बलाया और ससार म जाकर जीव को चतान क लय कहा तो

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कालनरजन न रासत म मझस झगङा कया और मन उसका घमणड चर-चर कर दया पर उसन मर साथ एक धोखा कया और याचना करत हय मझस तीनयग माग लय अनयायी कालनरजन न तब कहा - भाई म चौथा कलयग नह मागता और मन उस वचन द दया और तब जीव क कलयाण हत ससार म आया कयक मन उसको तीन यग द दय थ उसी स उस समय वचनमयारदा क कारण अपना पथ परकट नह कया लकन जब चौथा कलयग आया तब सतयपरष न फ़र स मझ ससार म भजा पहल क ह तरह कसाई कालनरजन न मझ रासत म रोका और मर साथ झगङा कया वह बात मन तमह बता द ह और कालनरजन क बारह पथ का भद भी बता दया कालनरजन न मझस धोखा कया उसन मझस कवल lsquoबारह पथrsquo क बात कह और गपत बात मझको नह बतायी तीन यग म तो वचन लकर उसन मझ ववश कर दया और कलयग म बहत जाल रचकर ऊधम मचाया काल न मझस सफ़र बारह पथ क कहकर गपतरप स lsquoचार पथrsquo और बनाय जब मन जीव को चतान क लय चार कङहार गर क नमारण क वयवसथा क तो काल न अपना अशदत भज दया तथा अपनी छलबदध का वसतार कया और अपन चार अशदत को बहत शा द कालनरजन न दत स कहा - अशो सनो तम तो मर वश हो तमस जो कह उस मानो और मर आा का पालन करो भाई हमारा एक दशमन ह जो ससार म कबीर नाम स जाना जाता ह वह हमारा भवसागर मटाना चाहता ह और जीव को दसर लोक (सतयलोक) ल जाना चाहता ह वह छल-कपट कर मर पजा क वरदध जगत म भरम फ़लाता ह और मर तरफ़ स सबका मन हटा दता ह वह सतयनाम क समधर टर सनाकर जीव को सतयलोक ल जाता ह इस ससार को परकाशत करन म मन अपना मन दया हआ ह और इसलय मन तमको उतपनन कया मर आा मानकर तम ससार म जाओ और कबीर नाम स झठपथ परकट करो ससार क लालची और मखर जीव काम मोह वषयवासना आद वषय क रस म मगन ह अतः म जो कहता ह उसी अनसार उन पर घात लगाकर हमला करो ससार म तम lsquoचार पथrsquo सथापत करो और उनको अपनी-अपनी (झठ) राह बताओ चारो क नाम कबीर नाम पर ह रखो और बना कबीर शबद लगाय मह स कोई बात ह न बोलो अथारत इस तरह कहो कबीर न ऐसा कहा कबीर न वसा कहा जस तम कबीरवाणी का उपदश कर रह होओ कबीर नाम क वशीभत होकर जब जीव तमहार पास आय तो उसस ऐस मीठ वचन कहो जो उसक मन को अचछ लगत ह (अथारत चोट मारन वाल वाल सतयान क बजाय उसको अचछ लगन वाल मीठ मीठ बात करो कयक तमह जीव को झठ म उलझाना ह) कलयग क लालची मखर अानी जीव को ान क समझ नह ह व दखादखी क रासता चलत ह तमहार वचन सनकर व परसनन हग और बारबार तमहार पास आयग जब उनक शरदधा पकक हो जाय और व कोई भदभाव न मान यानी सतय क रासत और तमहार झठ क रासत को एक ह समझन लग तब तम उन पर अपना जाल डाल दो पर बहद होशयार स कोई इस रहसय को जानन न पाय तम जमबदप (भारत) म अपना सथान बनाओ जहा कबीर क नाम और ान का परमाण ह जब कबीर बाधगढ (छीसगढ़) म जाय और धमरदास को उपदश-दा आद द तब व उसक बयालस वश क ानराजय को सथापत करग तब तमह उसम घसपठ करक उनक राजय को डावाडोल करना ह मन चौदह यम क नाकाबनद करक जीव

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क सतयलोक जान का मागर रोक दया ह और कबीर क नाम पर बारह झठपथ चलाकर जीव को धोख म डाल दया ह भाई तब भी मझ सशय ह उसी स म तमको वहा भजता ह उनक बयालस वश पर तम हमला करो और उनह अपनी बात म फ़सा लो कालनरजन क बात सनकर व चार दत बोल - हम ऐसा ह करग यह सनकर कालनरजन बहत परसनन हआ और जीव को छल-कपट दवारा धोख म रखन क बहत स उपाय बतान लगा जीव पर हमला करन क उसन बहत स मनतर सनाय उसन कहा - अब तम ससार म जाओ और चार तरफ़ फ़ल जाओ ऊच नीच गरब अमीर कसी को मत छोङो और सब पर काल का फ़दा कस दो तम ऐसी कपट-चालाक करो क िजसस मरा आहार जीव कह नकल कर न जान पाय धमरदास यह चारो दत ससार म परगट हग जो चार अलग-अलग नाम स कबीर क नाम पर पथ चलायग इन चार दत को मर चलाय बारह पथ का मखया मानो इनस जो चार पथ चलग उसस सब ान उलट-पलट हो जायगा य चार पथ बारह पथ का मल यानी आधार हग जो वचनवश क लय शल क समान पीङादायक हग यानी हर तरह स उनक कायर म वघन करत हय जीव क उदधार म बाधा पहचायग यह सनकर धमरदास घबरा गय और बोल - साहब अब मरा सशय और भी बढ़ गया ह मझ उन कालदत क बार म अवशय बताओ उनका चरतर मझ सनाओ उन कालदत का वश और उनका लण कहो य ससार म कौन सा रप बनायग और कस परकार जीव को मारग व कौन स दश म परकट हग मझ शीघर बताओ

काल क चार दत

कबीर साहब बोल - धमरदास उन चार दत क बार म तमस समझा कर कहता ह उन चार दत क नाम - रभदत करभदत जयदत और वजयदत ह अब lsquoरभदतrsquo क बात सनो यह भारत क गढ़ कालजर म अपनी गदद सथापत करगा और अपना नाम भगत रखगा और बहत जीव को अपना शषय बनायगा जो कोई जीव अकर होगा अथारत िजसम सतयान क परत चतना होगी तथा िजसक पवर क शभकमर हग वह यम (कालनरजन) क इस फ़द को तोङकर बच जायगा वह कालरप रभदत बहत बलवान तथा षङयतर करन वाला होगा वह तमहार और मर वातार का खडन करगा वह दावधान को रोकगा और सतयपरष क सतयलोक और दप को झठा बतायगा वह अपनी lsquoअलग ह रमनीrsquo कहगा वह मर सतयवाणी क परत ववाद करगा िजसक कारण उसक जाल म बहत लोग फ़सग चार धाराओ का अपन मतानसार ान करगा मरा नाम कबीर जोङकर अपना झठा परचार-परसार करगा वह अपन आपको कबीर ह बतायगा और मझ पाच-ततव क दह म बसा हआ बतायगा वह जीव को सतयपरष क समान

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सदध करगा तथा सतयपरष का खडन कर जीव को शरषठ बतायगा हसजीव को इषट कबीर ठहरायगा तथा कतार को कबीर कहकर पकारगा सबका कतार कालनरजन जीव को घोर दख दन वाला ह और उसक ह समान यह यमदत मझ भी समझता ह वह कमर करन वाल जीव को ह सतयपरष ठहरायगा और सतयपरष क नाम-ान को छपाकर अपन आपको परकट करगा वचार करो जीव अपन आप ह सब होता तो इस तरह अनक दख कय भोगता पाच-ततव क दह वाला पाच-ततव क अधीन हआ य जीव दख पाता ह और रमभदत जीव को सतयपरष क समान बताता ह सतयपरष का शरर अजर-अमर ह उनक अनक कलाय ह तथा उनका रप और छाया नह ह धमरदास य गरान अनपम ह िजसम बना दपरण क अपना रप दखायी दता ह अब दसर lsquoकरभ दतrsquo का वणरन सनो वह मगध दश म परकट होगा और अपना नाम धनीदास रखगा करभ छल-परपच क बहत स जाल बछायगा और ानीजीव को भी भटकायगा िजसक हरदय म थोङा भी आतमान होगा य यमदत धोखा दकर उस नषट कर दगा धमरदास इस करभ क चालबाजी सनो यह अपन कथन क टकसार बताकर मजबत जाल सजायगा वह चनदर इङा सयर पगला नाङय क अनसार शभ-अशभ लगन का परचार-परसार करगा तथा राह-कत आद गरह का वसतार स वणरन करगा वह पाच-ततव तथा उनक गण क मत को शरषठ बताकर उनका वणरन करगा तब अानी जीव उसक फ़लाय भरम को नह जानग वह जयोतष क मत को टकसार कहकर फ़लायगा और जीव को गरह-नतर तथा इिनदरय क वश म करक उनका असल सतयपरष क भिकत स धयान हटा दगा वह जल वाय का ान बतायगा और पवन क वभनन नाम और गण का वणरन करगा वह सतय स हटकर ऐसी पजावधान चलाकर जीव को धोखा दकर भरमायगा भटकायगा वह अपन शषय बनात समय वशष नाटक करगा अग-अग क रखा दखगा और पाव क नाखन स सर क चोट को दखत हय जीव को कमरजाल म फ़साकर भरमायगा वह जीव को दख-समझ कर तथा शरवीर कहकर मोह मद म चढ़ा कर धर खायगा भरमाय हय अपन शषय स दणा म सवणर तथा सतरी अपरण करायगा इस परकार वह जीव को ठगगा शषय को गाठ बाधकर तब वह फ़रा करगा और कमरदोष लगाकर उस यम का गलाम बना दगा पचासी पवन काल क ह अतः वह शषय को पवन नाम लखकर पान खलायगा वह नीर पवन क ान का परसार करगा और शषय को पवन नाम दकर आरती उतरवायगा काल क पचासी पवन अनसार पजा करायगा कया नार कया परष वह सबक शरर क तल मसस क पहचान दखा करगा शख चकर और सीप क चनह दखगा कालनरजन का वह दत ऐसी दषटबदध का होगा और जीव म सशय उतपनन करगा तथा उनह गरसत (बरबाद) करत हय पीङत करगा इस कालदत का और भी झठ-परपच सनो वह अपनी lsquoसाठ समrsquo तथा lsquoबारह चौपाईयrsquo को उठाकर जीव म भरम उतपनन करगा वह lsquoपचामत एकोर नामrsquo का समरन को शरषठशबद और मिकतदाता बतायगा जीव क कलयाण का जो असलान आदकाल स निशचत ह वह उस झठ और धोखा बतायगा तथा पाच-ततव पचचीस परकत

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तीन गण चौदह यम यह ईशवर ह अथारत ऐसा कहगा तम ह सब कछ हो पाच-ततव का जाल बनाकर यह यमदत शरर क ततव का धयान करायगा वचार करो क ततव का धयान लगाय तब शरर छटन पर कहा जायग ततव तो ततव म मल जायगा धमरदास जीव को जहा आशा होती ह वह उसका वास होता ह अतः नाम-समरन स धयान हटन पर ततव म उलझ कर वह ततव म ह समायगा कहा तक कह करभ घमासान वनाश करगा उसक छल को वह समझगा जो जीव सतयनाम उपदश को गरहण करन वाला और समझन वाला होगा पाच जङततव तो काल क अग ह अतः ततव क मत म पङकर जीव क दगरत ह होगी और यह सब कछ वह कबीर क नाम पर खद को कबीरपथी बताकर इसको कबीर का ान बताकर करगा जो जीव उसक जाल म फ़स जायग वह करर कालनरजन क मख म ह जायग अब तीसर दत lsquoजयदतrsquo क बार म जानो यह यमदत बङा वकराल होगा यह झठा-परपची अपनी वाणी को आद अनाद (वाणी) कहगा यह जयदत lsquoकरकट गरामrsquo म परकट होगा जो बाधौगढ क पास ह ह वह lsquoचमार कलrsquo म उतपनन होगा और ऊचकल वाल क जात को बगाङन क कोशश करगा यह यमदत lsquoदासrsquo कहायगा और lsquoगणपतrsquo नाम का उसका पतर होगा व दोन पता पतर परबल कालसवरप दखदायी हग और तमहार वश को आकर घरग अथारत जीव क उदधार म यथाशिकत बाधा पहचायग वह कहगा असलान हमार पास ह धमरदास वह तमहार वश को उठा दगा अथारत परभाव खतम करन क कोशश करगा वह अपना अनभव कहकर अपन बहत स गरनथ बनायगा और उसम ानीपरष क समान सवाद बनायगा वह कहगा क lsquoमलानrsquo तो सतयपरष न मझ दया ह धमरदास क पास मलान नह ह वह तमहार वश को भरमा दगा और ानमागर को वचलत करगा वह तमहार वश म अपना मत पकका करगा और मल lsquoपारस-थाकाrsquo पथ चलायगा मलछाप लकर वश को बगाङगा वह कालदत अपना मल पारस दकर सबक वसी ह बदध कर दगा वह भीतर शनय म झकत होन वाल lsquoझगrsquo शबद क बात करगा िजसस ानहन कचचजीव को भलावा दगा परष-सतरी क िजस रज-वीयर स शरररचना होती ह उसको वह अपना मलमत परचलत करगा शरर का मल lsquoआधारबीजrsquo कामवषय ह परनत उसका नाम वह गपत रखगा पहल तो वह अपना मलआधार थाका ह गपत रखगा फ़र जब शषय को जोङकर पर तरह साध लगा तब उसका वणरन करगा पहल तो ान-गरनथ को समझायगा फ़र पीछ स अपना मत पकका करायगा वह सतरी क अग को पारस ान दगा िजस आा मानकर उसक सब शषय लग पहल वह ान का शबद-उपदश समझायगा फ़र कामवषय वासना जो नकर क खान ह उस वह मल बखानगा वह lsquoझाझर दपrsquo क कथा सनायगा पाच-ततव स बन शरर क lsquoशनयगफ़ाrsquo म जाकर य पाच-ततव बहत परकार स रगीन चमकला परकाश बनात ह उस गफ़ा म lsquoहगrsquo शबद बहत जोर स उठता ह जब lsquoसोऽहगमrsquo जीव अपना शरर छोङगा तब कौन स वध स lsquoझगrsquo शबद उसक सामन आयगा कयक वह तो शरर क रहन तक ह होता ह शरर क छटत ह वह भी समापत हो जायगा

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lsquoझाझर दपrsquo कालनरजन न रच रखा ह और lsquoझग-हगrsquo दोन काल क ह शाखा ह य अनयायी कालदत अवहर (सतरी-परष कामसमबनध) ान कहगा lsquoअवहर ानrsquo कालनरजन का धोखा ह वह तमहार ान क भी महमा शामल करक मलाकर कहगा इसलय उसक मत म बहत स कङहार महत हग वह कालदत सथान-सथान पर नीचकमर करगा और हमार बात करत हय हम पर ह हसगा अतः अानी ससार लोग समझग क यह सब समान ह अथारत कबीर का मत और lsquoजयदतrsquo का मत एक ह ह जब कोई इस भद को जानन क कोशश करगा तभी उस पता चलगा िजसक हाथ म सतनामरपी दपक होगा वह हसजीव काल क इस जजाल को तयाग कर अपना कलयाण करगा इसम कोई सदह नह ह य कपटकाल बगल का धयान लगाय रहगा और सतयनाम को छोङकर कालसमबनधी नाम को परकटायगा अब चौथ lsquoवजयदतrsquo क बात सनो यह बनदलखनड म परकट होगा और अपना नाम lsquoजीवrsquo धरायगा यह वजयदत lsquoसखाभावrsquo क भिकत पकक करगा यह सखय क साथ रास रचायगा और मरल बजायगा अनक सखय क सग लगन परम लगायगा और अपन आपको दसरा कषण कहायगा वह जीव को धोखा दकर फ़ासगा और कहगा - आख क आग lsquoमन क छायाrsquo रहती ह और नाक क ऊपर क ओर आकाश lsquoशनयrsquo ह आख और कान बनद कर धयान लगान क िसथत म कोहरा जसा दखता ह सफ़द काला नीला पीला आद रग दखना च क करयाय ह परनत वह मिकत क नाम पर उनम जीव को डालकर भरमायगा य सब काल का धोखा ह यह परतण बदलती करयाय िसथर ह जो शरर क आख स दखी जाती ह अतः यह कालदत मन क छाया माया दखायगा और मिकत का मल छाया को बतायगा यह lsquoसतयनामrsquo स जीव को भटका कर काल क मख म ल जायगा

सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव

कबीर बोल - धमरदास सदगर सवपर ह अतः शषय को चाहय क गर स अधक कसी को न मान और गर क सखाय हय को सतय करक जान एक समय ऐसा भी आयगा जब तमहारा बदवश उलटा काम करगा वह बना गर क भवसागर स पार होना चाहगा जो नगरा होकर जगत को समझाता ह अथारत ान बताता ह वह खद तो डबगा ह तथा ससार क जीव को भी डबायगा बना गर क कलयाण नह होता जो गर क शरणागत होता ह वह ससारसागर स पार हो जाता ह कालनरजन अनक परकार स जीव को धोख म डालता ह अतः बना गर क जीव को अहकारवश ान कहत दखकर काल बहत खश होता ह धमरदास बोल - साहब कपा कर lsquoनाद-बदrsquo ान समझान क कपा कर कबीर बोल - बद एक और नाद बहत स होत ह जो बद क भात मल वह बद कहाता ह वचनवश सतयपरष का अश ह उसक ान स जीव ससार स छट जाता ह नाद और बदवश एक साथ हग तब उनस काल मह छपाकर रहगा जस मन तमह बताया वस नादबद योग (योग का एक तरका परकार) एक करना कयक बना

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नाद तो बद का भी वसतार नह होता और बना बद नाद नह उबरगा इस कलयग म काल बहत परबल ह जो अहकाररप धर सबको खाता ह नाद अहकार तयाग कर होगा और बद का अहकार बद सजायगा इसी स सतयपरष न इन दोन को अनशासत करन क लय मयारदा (नयम) म बाधा और नाद-बद दो रप बनाय जो अहकार छोङकर सतयसवरप परमातमा को भजगा उसका धयान समरन करगा वह हस-सवरप हो जायगा नाद-बद दोन कोई ह अहकार सबक लय हानकारक ह ह इसलय यह निशचत ह जो अहकार करगा वह भवसागर म डबगा धमरदास बोल - साहब आपन नाद-बद क बार म बताया अब मर मन म एक बात आ रह ह आपक वरोधी मर पतर नारायण दास का कया होगा वह ससार क नात मरा पतर ह इसलय चता होती ह सतयनाम को गरहण करन वाल जीव सतयलोक को जायग और नारायण दास काल क मह म जायगा यह तो अचछ बात न होगी कबीर साहब बोल - धमरदास मन तमको बारबार समझाया पर तमहार समझ म नह आया अगर चौदह यमदत ह मकत होकर सतयलोक चल जायग तो फ़र जीव को फ़सान क लय फ़दा कौन लगायगा अब मन तमहारा ान समझा तम मर बात क परवाह न करक मोहमाया दवारा सतयपरष क आा को मटान म लग हय हो जब मनषय क मन म मोह अधकार छा जाता ह तब सारा ान भलकर वह अपना परमाथर कमर नषट करता ह बना वशवास क भिकत नह होती और बना भिकत क कोई जीव भवसागर स नह तर सकता फ़र स तमह काल फ़दा लगा ह तमन परतय दखा क नारायण दास कालदत ह फ़र भी तमन उस पतर मानन का हठ कया जब तमह ह मर वचन पर वशवास नह आता तो ससार लोग गरओ पर कया वशवास करग जो अहकार को छोङकर गर क शरण म आता ह वह सदगत पाता ह जो तरगणी माया को पकङत ह उनम मोहमद जाग जाता ह और व अभाग भिकत-ान सब तयाग दत ह जब तम ह गर का वशवास तयाग दोग जो जीव का उदधार करन वाल हो तब सामानय जीव का कया ठकाना इस परकार भरमत करन क यह तो कालनरजन क सह पहचान ह धमरदास सनो जसा तम कह रह हो वसा ह तमहारा वश भी परकाशत करगा मोह क आग म वह सदा जलगा और इसी स तमहार वश म वरोध पङगा िजसस दख होगा पतर धन घर सतरी परवार और कल का अभमान यह सब काल ह का तो वसतार ह वह इनह को माधयम बनाकर जीव को बधन म डालता ह इनस तमहारा वश भल म पङ जायगा और सतयनाम क राह नह पायगा ससार क अनय वश क दखादखी तमहार वश क लोग भी पतर धन घर परवार आद क मोह म पङ जायग और यह दखकर कालदत बहत परसनन हग तब कालदत परबल हो जायग और जीव को नकर भजग कालनरजन अपन जाल म जीव को जब फ़साता ह तो उस काम करोध मद लोभ मोह वषय म भला दता ह फ़र उस गर क वचन पर वशवास नह रहता तब सतयनाम क बात सनत ह वह जीव चढ़न लगता ह गर पर वशवास न करन का यह लण ह धमरदास िजसक घट (शरर) म सतयनाम समा गया ह उसक पहचान कहता ह धयान स सनो उस भकत को काल का वाण नह लगता और उस काम करोध मद लोभ नह सतात वह झठ मोह तषणा तथा सासारक वसतओ क आशा तयाग कर सदगर क सतयवचन म मन लगाता ह जस सपर मण को धारण कर परकाशत होता

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ह ऐस ह शषय सदगर क आा को अपन हरदय म धारण कर तथा समसत वषय को भलाकर ववक हस बनकर अवनाशी नज मकतसवरप सतयपद परापत कर सदगर क वचन पर अटल और अभमानरहत कोई बरला ह शरवीर सत परापत करता ह और उसक लय मिकत दर नह होती इस परकार जीवत ह मिकतिसथत का अनभव और मिकत परदान कराना सदगर का ह परताप ह अतः सदगर क चरण म ह परम करो और सब पापकमर अान एव सासारक वषय वकार को तयाग दो अपन नाशवान शरर को धल क समान समझो यह सनकर धमरदास सकपका गय वह कबीर साहब क चरण म गर पङ और दखी सवर म बोल - परभ म अान स अचत हो गया था मझ पर कपा कर कपा कर मर भल-चक मा कर जो नारायण दास क लय मन िजद क थी वह अान म खद को पता जानकर क थी अतः मर इस भल को मा कर कबीर बोल - धमरदास तम सतयपरष क अश हो परनत वश नारायण दास काल का दत ह उस तयाग दो और जीव का कलयाण करन क लय भवसागर म सतयपथ चलाओ यह सनकर धमरदास कबीर साहब क पर पर गर पङ और बोल - आज स मन अपन उस पतररप कालदत को तयाग दया अब आपको छोङकर कसी और क आशा कर तो म सतयसकलप क साथ कहता ह मरा नकर म वास हो कबीर साहब परसननता स बोल - धमरदास तम धनय हो जो मझको पहचान लया और नारायण दास को तयाग दया जब शषय क हरदयरपी दपरण म मल नह होगा गर का सवरप तब ह दखायी दगा जब शषय अपन पवतर हरदय म सदगर क शरीचरण को रखता ह तो काल क सब शाखाओ क समसत बधन को मटाता ह परनत जबतक वह सात पाच (सात सवगर काल तथा माया (क) तीन पतर बरहमा वषण महश य पाच) क आशा लगी रहगी तबतक वह शषय गरपद क महमा नह समझ पायगा

गर-शषय वचार-रहनी

धमरदास बोल - साहब आप गर हो म दास ह अब मझ गर-शषय क रहनी समझा कर कहो कबीर बोल - गर का वरत धारण करन वाल शषय को समझना चाहय क नगरण-सगण क बीच गर ह आधार होता ह गर क बना आचार अनदर-बाहर क पवतरता नह होती और गर क बना कोई भवसागर स पार नह होता शषय को सीप और गर को सवात बद क समान समझना चाहय गर क समपकर स तचछजीव (सीप) मोती क समान अनमोल हो जाता ह गर पारस और शषय लोह क समान ह जस पारस लोह को सोना बना दता ह गर मलयागर चदन क समान ह शषय वषल सपर क तरह होता ह इस परकार वह गर क कपा स शीतल होता ह गर समदर तो शषय उसम उठन वाल तरग ह गर दपक ह तो शषय उसम समपरत हआ पतगा ह गर चनदरमा ह तो शषय चकोर ह गर सयर ह जो कमलरपी शषय को वकसत करत ह इस परकार गरपरम को

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शषय वशवासपवरक परापत कर गर क चरण का सपशर और दशरन परापत कर जब इस तरह कोई शषय गर का वशष धयान करता ह तब वह भी गर क समान होता ह धमरदास गर एव गरओ म भी भद ह य तो सभी ससार ह गर-गर कहता ह परनत वासतव म गर वह ह जो सतयशबद या सारशबद का ान करान वाला ह उसका जगान वाला या दखान वाला ह और सतयान क अनसार आवागमन स मिकत दलाकर आतमा को उसक नजघर सतयलोक पहचाय गर जो मतय स हमशा क लय छङाकर अमतशबद (सारशबद) दखात ह िजसक शिकत स हसजीव अपन घर सतयलोक को जाता ह उस गर म कछ छल-भद नह ह अथारत वह सचचा ह ह ऐस गर तथा उनक शषय का मत एक ह होता ह जबक दसर गर-शषय म मतभद होता ह ससार क लोग क मन म अनक परकार क कमर करन क भावना ह यह सारा ससार उसी स लपटा पङा ह कालनरजन न जीव को भरमजाल म डाल दया ह िजसस उबर कर वह अपन ह इस सतय को नह जान पाता क वह नतय अवनाशी और चतनय ानसवरप ह इस ससार म गर बहत ह परनत व सभी झठ मानयताओ और अधवशवास क बनावट जाल म फ़स हय ह और दसर जीव को भी फ़सात ह लकन समथरसदगर क बना जीव का भरम कभी नह मटगा कयक कालनरजन भी बहत बलवान और भयकर ह अतः ऐसी झठ मानयताओ अधवशवास एव परमपराओ क फ़द स छङान वाल सदगर क बलहार ह जो सतयान का अजर-अमर सदश बतात ह अतः रात-दन शषय अपनी सरत सदगर स लगाय और पवतर सवाभावना स सचच साध-सनत क हरदय म सथान बनाय िजन सवक भकत शषय पर सदगर दया करत ह उनक सब अशभ कमरबधन आद जलकर भसम हो जात ह शषय गर क सवा क बदल कसी फ़ल क मन म आशा न रख तो सदगर उसक सब दखबधन काट दत ह जो सदगर क शरीचरण म धयान लगाता ह वह जीव अमरलोक जाता ह कोई योगी योगसाधना करता ह िजसम खचर भचर चाचर अगोचर नाद चकरभदन आद बहत सी करयाय ह तब इनह म उलझा हआ वह योगी भी सतयान को नह जान पाता और बना सदगर क वह भी भवसागर स नह तरता धमरदास सचचगर को ह मानना चाहय ऐस साध और गर म अतर नह होता परनत जो ससार कसम क गर ह वह अपन ह सवाथर म लग रहत ह न तो वह गर ह न शषय न साध और न ह आचार मानन वाला खद को गर कहन वाल ऐस सवाथ जीव को तम काल का फ़दा समझो और कालनरजन का दत ह जानो उसस जीव क हान होती ह यह सवाथरभावना कालनरजन क ह पहचान ह जो गर शाशवतपरम क आितमकपरम क भद को जानता ह और सारशबद क पहचान मागर जानता ह और परमपरष क िसथर भिकत कराता ह तथा सरत को शबद म लन करान क करया समझाता ह ऐस सदगर स मन लगाकर परम कर और दषटबदध एव कपट चालाक छोङ द तब ह वह नजघर को परापत होता ह और इस भवसागर स तर क फ़र लौटकर नह आता तीन काल क बधन स मकत सदा अवनाशी सतयपरष का नाम अमत ह अनमोल ह िसथर ह शाशवत सतय स मलान वाला ह अतः मनषय को चाहय क वह अपनी वतरमान कौव क चाल छोङकर हस सवभाव अपनाय और

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बहत सार पथ जो कमागर क ओर ल जात ह उनम बलकल भी मन न लगाय और बहत सार कमर भरम क जजाल को तयाग कर सतय को जान तथा अपन शरर को मटट ह जान और सदगर क वचन पर पणर वशवास कर कबीर साहब क ऐस वचन सनकर धमरदास बहत परसनन हय और दौङकर कबीर क चरण स लपट गय व परम म गदगद हो गय और उनक खशी स आस बहन लग फ़र वह बोल - साहब आप मझ ान पान क अधकार और अनाधकार जीव क लण भी कह कबीर बोल - धमरदास िजसको तम वनमर दखो िजस परष म ान क ललक परमाथर और सवाभावना हो तथा जो मिकत क लय बहत अधीर हो िजसक मन म दया शील मा आद सदगण ह उसको नाम (हसदा) और सतयान का उपदश करो कनत जो दयाहन हो सारशबद का उपदश न मान और काल का प लकर वयथर वाद-ववाद तकर -वतकर कर और िजसक दिषट चचल हो उसको ान परापत नह हो सकता होठ क बाहर िजसक दात दखाई पङ उसको जानो क कालदत वश धरकर आया ह िजसक आख क मधय तल हो वह काल का ह रप ह िजसका सर छोटा हो परनत शरर वशाल हो उनक हरदय म अकसर कपट होता ह उसको भी सारशबद ान मत दो कयक वह सतयपथ क हान ह करगा तब धमरदास न कबीर साहब को शरदधा स दडवत परणाम कया

शररान परचय

धमरदास बोल - साहब म बङभागी ह आपन मझ ान दया अब मझ शररनणरय वचार भी कहय इसम कौन सा दवता कहा रहता ह और उसका कया कायर ह नाङ रोम कतन ह और शरर म खन कसलय ह तथा सवास कौन स मागर स चलती ह आत प फ़फ़ङा और आमाशय इनक बार म भी बताओ शरर म िसथत कौन स कमल पर कतना जप होता ह और रात-दन म कतनी सवास चलती ह कहा स शबद उठकर आता ह तथा कहा जाकर वह समाता ह अगर कोई जीव झलमल-जयोत को दखता ह तो मझ उसका भी ान ववक कहो क उसन कौन स दवता का दशरन पाया कबीर बोल - धमरदास अब तम शरर-वचार सनो सतयपरष का नाम सबस नयारा और शरर स अलग ह कयक वह आदपरष कमशः सथल सम कारण महाकारण तथा कवलय शरर स अलग ह इसलय उसका नाम भी अलग ह ह पहला मलाधारचकर गदासथान ह यहा चारदल का कमल ह इसका दवता गणश ह यहा सोलह सौ अजपा जाप ह मलाधार क ऊपर सवाधषठानचकर ह यह छहदल का कमल ह यहा बरहमा सावतरी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह आठदल (प) का कमल नाभसथान पर ह यह वषण लमी का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह

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इसक ऊपर हरदय सथान पर बारह दल का कमल ह यह शव पावरती का सथान ह यहा छह हजार अजपा जाप ह वशदधचकर का सथान कठ (गला) ह यह सोलह दल का कमल ह इसम सरसवती का सथान ह इसक लय एक हजार अजपा जाप ह भवरगफ़ा दो-दल का कमल ह वहा मनराजा का थाना (चौक - मकत होत जीव को भरमान क लय) ह इसक लय भी एक हजार अजपा जाप ह इस कमल क ऊपर शनयसथान ह वहा होती झलमल-जयोत को कालनरजन जानो सबस ऊपर lsquoसरतकमलrsquo म सदगर का वास ह वहा अननत अजपा जाप ह धमरदास सबस नीच मलाधारचकर स ऊपर तक इककस हजार छह सौ सवास दन-रात चलती ह (सामानय सवास लन और छोङन म चार सक ड का समय लगता ह इस हसाब स चौबीस घट म इककस हजार छह सौ सवास दन-रात आती जाती ह) अब शरर क बार म जानो पाच-ततव स बना य (घङा घट) कमभरपी शरर ह तथा शरर म सात धातय रकत मास मद मजजा रस शकर और अिसथ ह इनम रस बना खन सार शरर म दौङता हआ शरर का पोषण करता ह जस परथवी पर असखय पङ-पौध ह वस ह परथवीरपी इस शरर पर करोङ रोम (रय) होत ह इस शरर क सरचना म बहर कोठ ह जहा बहर हजार नाङय क गाठ बधी हयी ह इस तरह शरर म धमनी और शरापरधान नाङया ह बहर नाङय म नौ पहखा गधार कह वारणी गणशनी पयिसवनी हिसतनी अलवषा शखनी ह इन नौ म भी इङा पगला सषमना य तीन परधान ह इन तीन नाङय म भी सषमना खास ह इस नाङ क दवारा ह योगी सतययातरा करत ह नीच मलाधारचकर स लकर ऊपर बरहमरधर तक िजतन भी कमलदल चकर आत ह उनस शबद उठता ह और उनका गण परकट करता ह तब वहा स फ़र उठकर वह शबद शनय म समा जाता ह आत का इककस हाथ होन का परमाण ह और आमाशय सवा हाथ अनमान ह नभतर का सवा हाथ परमाण ह और इसम सात खङक दो कान दो आख दो नाक छद एक मह ह इस तरह इस शरर म िसथत पराणवाय क रहसय को जो योगी जान लता ह और नरतर य योग करता ह परनत सदगर क भिकत क बना वह भी लख चौरासी म ह जाता ह हर तरह स ानयोग कमरयोग स शरषठ ह अतः इन वभनन योग क चककर म न पङ कर नाम क सहज भिकत स अपना उदधार कर और शरर म रहन वाल अतयनत बलवान शतर काम करोध मद लोभ आद को ान दवारा नषट करक जीवन मकत होकर रह धमरदास य सब कमरकाड मन क वयवहार ह अतः तम सदगर क मत स ान को समझो कालनरजन या मन शनय म जयोत दखाता ह िजस दखकर जीव उस ह ईशवर मानकर धोख म पङ जाता ह इस परकार य lsquoमनरपीrsquo कालनरजन अनक परकार क भरम उतपनन करता ह धमरदास योगसाधना म मसतक म पराण रोकन स जो जयोत उतपनन होती ह वह आकार-रहत नराकार मन ह ह मन म ह जीव को भरमान उनह पापकम म वषय म परवत करन क शिकत ह उसी शिकत स वह सब जीव को कचलता ह उसक यह शिकत तीन लोक म फ़ल हयी ह इस तरह मन दवारा भरमत यह मनषय खद को पहचान कर असखय-जनम स धोखा खा रहा ह और य भी नह सोच पाता क कालनरजन क कपट स िजन तचछ दवी-दवताओ क आग वह सर झकाता ह व सब उस (आतमा-मनषय) क ह आशरत ह धमरदास यह सब नरजन का जाल ह जो मनषय दवी- दवताओ को पजता हआ कलयाण क आशा करता ह परनत सतयनाम क बना यह यम क फ़ास कभी नह कटगी

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मन क कपट करामात

कबीर बोल - धमरदास िजस परकार कोई नट बदर को नाच नचाता ह और उस बधन म रखता हआ अनक दख दता ह इसी परकार य मनरपी कालनरजन जीव को नचाता ह और उस बहत दख दता ह यह मन जीव को भरमत कर पापकम म परवत करता ह तथा सासारक बधन म मजबती स बाधता ह मिकत उपदश क तरफ़ जात हय कसी जीव को दखकर मन उस रोक दता ह इसी परकार मनषय क कलयाणकार काय क इचछा होन पर भी यह मन रोक दता ह मन क इस चाल को कोई बरला परष ह जान पाता ह यद कह सतयपरष का ान हो रहा हो तो य मन जलन लगता ह और जीव को अपनी तरफ़ मोङकर वपरत बहा ल जाता ह इस शरर क भीतर और कोई नह ह कवल मन और जीव य दो ह रहत ह पाच-ततव और पाच-ततव क पचचीस परकतया सत रज तम य तीन गण और दस इिनदरया य सब मन-नरजन क ह चल ह सतयपरष का अश जीव आकर शरर म समाया ह और शरर म आकर जीव अपन घर क पहचान भल गया ह पाच-ततव पचचीस परकत तीन गण और मन-इिनदरय न मलकर जीव को घर लया ह जीव को इन सबका ान नह ह और अपना य भी पता नह क म कौन ह इस परकार स बना परचय क अवनाशी-जीव कालनरजन का दास बना हआ ह जीव अानवश खद को और इस बधन को नह जानता जस तोता लकङ क नलनी यतर म फ़सकर कद हो जाता ह यह िसथत मनषय क ह जस शर न अपनी परछा कए क जल म दखी और अपनी छाया को दसरा शर जानकर कद पङा और मर गया ठक ऐस ह जीव काल-माया का धोखा समझ नह पाता और बधन म फ़सा रहता ह जस काच क महल क पास गया का दपरण म अपना परतबमब दखकर भकता ह और अपनी ह आवाज और परतबमब स धोखा खाकर दसरा का समझकर उसक तरफ़ भागता ह ऐस ह कालनरजन न जीव को फ़सान क लय मायामोह का जाल बना रखा ह कालनरजन और उसक शाखाओ (कमरचार दवताओ आद न) न जो नाम रख ह व बनावट ह जो दखन-सनन म शदध मायारहत और महान लगत ह परबहम पराशिकत आद आद परनत सचचा और मोदायी कवल आदपरष का lsquoआदनामrsquo ह ह अतः धमरदास जीव इस काल क बनायी भलभलया म पङकर सतयपरष स बगाना हो गय और अपना भला-बरा भी नह वचार सकत िजतना भी पापकमर और मथया वषय आचरण ह य इसी मन-नरजन का ह ह यद जीव इस दषटमन नरजन को पहचान कर इसस अलग हो जाय तो निशचत ह जीव का कलयाण हो जाय यह मन मन और जीव क भननता तमह समझाई जो जीव सावधान सचत होकर ानदिषट स मन को दखगा समझगा तो वह कालनरजन क धोख म नह आयगा जस जबतक घर का मालक सोता रहता ह तबतक चोर उसक घर म सध लगाकर चोर करन क कोशश करत रहत ह और उसका धन लट ल जात ह ऐस ह जबतक शरररपी घर का सवामी य जीव अानवश मन क चाल क परत सावधान नह रहता तबतक मनरपी चोर उसका भिकत और ानरपी धन चराता रहता ह और जीव को नीचकम क ओर पररत करता रहता ह परनत जब जीव इसक चाल को समझकर सावधान हो जाता ह तब इसक नह चलती जो जीव मन को जानन लगता ह उसक जागरतकला (योगिसथत) अनपम होती ह जीव क लय अान अधकार बहत भयकर अधकप क समान ह इसलय य मन ह भयकर काल ह जो जीव को बहाल करता ह सतरी-परष मन दवारा ह एक-दसर क परत आकषरत होत ह और मन उमङन स ह शरर म कामदव जीव को

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बहत सताता ह इस परकार सतरी-परष वषयभोग म आसकत हो जात ह इस वषयभोग का आननदरस कामइनदर और मन न लया और उसका पाप जीव क ऊपर लगा दया इस परकार पापकमर और सब अनाचार करान वाला य मन होता ह और उसक फ़लसवरप अनक नकर आद कठोर दड जीव भोगता ह दसर क नदा करना दसर का धन हङपना यह सब मन क फ़ासी ह सनत स वर मानना गर क ननदा करना यह सब मन-बदध का कमर कालजाल ह िजसम भोलाजीव फ़स जाता ह परसतरी-परष स कभी वयभचार न कर अपन मन पर सयम रख यह मन तो अधा ह वषय वषरपी कम को बोता ह और परतयक इनदर को उसक वषय म परवत करता ह मन जीव को उमग दकर मनषय स तरह तरह क जीवहतया कराता ह और फ़र जीव स नकर भगतवाता ह यह मन जीव को अनकानक कामनाओ क पत र का लालच दकर तीथर वरत तचछ दवी-दवताओ क जङ-मतरय क सवा-पजा म लगाकर धोख म डालता ह लोग को दवारकापर म यह मन दाग (छाप) लगवाता ह मिकत आद क झठ आशा दकर मन ह जीव को दाग दकर बगाङता ह अपन पणयकमर स यद कसी का राजा का जनम होता ह तो पणयफ़ल भोग लन पर वह नकर भगतता ह और राजा जीवन म वषयवकार होन स नकर भगतन क बाद फ़र उसका साड का जनम होता ह और वह बहत गाय का पत होता ह पाप-पणय दो अलग-अलग परकार क कमर होत ह उनम पाप स नकर और पणय स सवगर परापत होता ह पणयकमर ीण हो जान स फ़र नकर भगतना होता ह ऐसा वधान ह अतः कामनावश कय गय पणय का यह कमरयोग भी मन का जाल ह नषकाम भिकत ह सवरशरषठ ह िजसस जीव का सब दख-दवद मट जाता ह धमरदास इस मन क कपट-करामात कहा तक कह बरहमा वषण महश तीन परधान दवता शषनाग तथा ततीस करोङ दवता सब इसक फ़द म फ़स और हार कर रह मन को वश म न कर सक सदगर क बना कोई मन को वश म नह कर पाता सभी मन-माया क बनावट जाल म फ़स पङ ह

कपट कालनरजन का चरतर

कबीर बोल - धमरदास अब इस कपट कालनरजन का चरतर सनो कस परकार वह जीव क छलबदध कर अपन जाल म फ़साता ह इसन कषण अवतार धर कर गीता क कथा कह परनत अानी जीव इसक चाल रहसय को नह समझ पाता अजरन शरीकषण का सचचा सवक था और शरीकषण क भिकत म लगन लगाय रहता था शरीकषण न उस सब समान कहा सासारक वषय स लगाव और सासारक वषय स पर आतम मो सब कछ सनाया परनत बाद म काल अनसार उस मोमागर स हटाकर सासारक कमर-कतरवय म लगन को पररत कया िजसक परणामसवरप भयकर महाभारत यदध हआ शरीकषण न गीता क ान उपदश म पहल दया मा आद गण उपदश क बार म बताया और ान-वान कमरयोग आद कलयाण दन वाल उपदश का वणरन कया जबक अजरन सतयभिकत म लगन लगाय था तथा वह शरीकषण को बहत मानता था पहल शरीकषण न अजरन को मिकत क आशा द परनत बाद म उस नकर म डाल दया कलयाणदायक ानयोग का तयाग कराकर उस सासारक कमर-कतरवय क ओर घमा दया िजसस कमर क वश हय अजरन न बाद म बहत दख पाया मीठा अमत दखाकर उसका लालच दकर धोख स वष समान दख द दया

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इस परकार काल जीव को बहला-फ़सला कर सनत क छव बगाङता ह और उनह मिकत स दर रखता ह जीव म सनत क परत अवशवास और सदह उतपनन करता ह इस कालनरजन क छलबदध कहा-कहा तक गनाऊ उस कोई कोई ववक सनत ह पहचानता ह जब कोई ानमागर म पकका रहता ह तभी उस सतयमागर सझता ह तब वह यम क छल-कपट को समझता ह और उस पहचानता हआ उसस अलग हो जाता ह सदगर क शरण म जान पर यम का नाश हो जाता ह तथा अटल अय-सख परापत होता ह

सतयपथ क डोर

धमरदास बोल - परभ इस कालनरजन का चरतर मन समझ लया अब आप lsquoसतयपथ क डोरrsquo कहो िजसको पकङ कर जीव यमनरजन स अलग हो जाता ह कबीर बोल - धमरदास म तमको सतयपरष क डोर क पहचान कराता ह सतयपरष क शिकत को जब यह जीव जान लता ह तब काल कसाई उसका रासता नह रोक पाता सतयपरष क शिकत उनक एक ह नाल स उतपनन सोलह सत ह उन शिकतय क साथ ह जीव सतयलोक को जाता ह बना शिकत क पथ नह चल सकता शिकतहन जीव तो भवसागर म ह उलझा रहता ह य शिकतया सदगण क रप म बतायी गयी ह ान ववक सतय सतोष परमभाव धीरज मौन दया मा शील नहकमर तयाग वरागय शात नजधमर दसर का दख दर करन क लय ह तो करणा क जाती ह परनत अपन आप भी करणा करक अपन जीव का उदधार कर और सबको मतर समान समझ कर अपन मन म धारण कर इन शिकतसवरप सदगण को ह धारण कर जीव सतयलोक म वशराम पाता ह अतः मनषय िजस भी सथान पर रह अचछ तरह स समझ-बझ कर सतयरासत पर चल और मोह ममता काम करोध आद दगरण पर नयतरण रख इस तरह इस डोर क साथ जो सतयनाम को पकङता ह वह जीव सतयलोक जाता ह धमरदास बोल - परभ आप मझ पथ का वणरन करो और पथ क अतगरत वरिकत और गरहसथ क रहनी पर भी परकाश डालो कौन सी रहनी स वरागी वरागय कर और कौन सी रहनी स गरहसथ आपको परापत कर कबीर साहब बोल - धमरदास अब म वरागी क लय आचरण बताता ह वह पहल अभय पदाथर मास मदरा आद का तयाग कर तभी हस कहायगा वरागीसनत सतयपरष क अननयभिकत अपन हरदय म धारण कर कसी स भी दवष और वर न कर ऐस पापकम क तरफ़ दख भी नह सब जीव क परत हरदय म दयाभाव रख मन-वचन कमर स भी कसी जीव को न मार सतयान का उपदश और नाम ल जो मिकत क नशानी ह िजसस पापकमर अान तथा अहकार का समल नाश हो जायगा वरागी बरहमचयर वरत का पणररप स पालन कर कामभावना क दिषट स सतरी को सपशर न कर तथा वीयर को नषट न कर काम करोध आद वषय और छल-कपट को हरदय स पणरतया धो द और एकमन एकच होकर नाम का समरण कर धमरदास अब गरहसथ क भिकत सनो िजसको धारण करन स गरहसथ कालफ़ास म नह पङगा वह कागदशा (कौवा सवभाव) पापकमर दगरण और नीच सवभाव स पर तरह दर रह और हरदय म सभी जीव क परत दयाभाव बनाय

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रख मछल कसी भी पश का मास अड न खाय और न ह शराब पय इनको खाना-पीना तो दर इनक पास भी न जाय कयक य सब अभय-पदाथर ह वनसपत अकर स उतपनन अनाज फ़ल शाक सबजी आद का आहार कर सदगर स नाम ल जो मिकत क पहचान ह तब काल कसाई उसको रोक नह पाता ह जो गरहसथ जीव ऐसा नह करता वह कह भी नह बचता वह घोर दख क अिगनकनड म जल-जल कर नाचता ह और पागल हआ सा इधर-उधर को भटकता ह ह उस अनकानक कषट होत ह और वह जनम-जनम बारबार कठोर नकर म जाता ह वह करोङ जनम जहरल साप क पाता ह तथा अपनी ह वष जवाला का दख सहता हआ य ह जनम गवाता ह वह वषठा (मल टटट) म कङा कट का शरर पाता ह और इस परकार चौरासी क योनय क करोङ जनम तक नकर म पङा रहता ह और तमस जीव क घोर दख को कया कह मनषय चाह करोङ योग आराधना कर कनत बना सदगर क जीव को हान ह होती ह सदगर मन बदध पहच क पर का अगमान दन वाल ह िजसक जानकार वद भी नह बता सकत वद इसका-उसका यानी कमरयोग उपासना और बरहम का ह वणरन करता ह वद सतयपरष का भद नह जानता अतः करोङ म कोई ऐसा ववक सत होता ह जो मर वाणी को पहचान कर गरहण करता ह कालनरजन न खानी वाणी क बधन म सबको फ़साया हआ ह मदबदध अलप जीव उस चाल को नह पहचानता और अपन घर आननदधाम सतयलोक नह पहच पाता तथा जनम-मरण और नकर क भयानक कषट म ह फ़सा रहता ह

कौआ और कोयल स भी सीखो

कबीर बोल - धमरदास कोयल क बचच का सवभाव सनो और उसक गण को जानकर वचार करो कोयल मन स चतर तथा मीठ वाणी बोलन वाल होती ह जबक उसका वर कौवा पाप क खान होता ह कोयल कौव क घर (घसल) म अपना अणडा रख दती ह वपरत गण वाल दषट मतर कौव क परत कोयल न अपना मन एक समान कया तब सखा मतर सहायक समझ कर कौव न उस अणड को पाला और वह कालबदध कागा (कौवा) उस अणड क रा करता रहा समय क साथ कोयल का अणडा बङकर पकका हआ और समय आन पर फ़ट गया तब उसस बचचा नकला कछ दन बीत जान पर कोयल क बचच क आख ठक स खल गयी और वह समझदार होकर जानन समझन लगा फ़र कछ ह दन म उसक पख भी मजबत हो गय तब कोयल समय-समय पर आ आकर उसको शबद सनान लगी अपना नजशबद सनत ह कोयल का बचचा जाग गया यानी सचत हो गया और सच का बोध होत ह उस अपन वासतवक कल का वचन वाणी पयार लगी फ़र जब भी कागा कोयल क बचच को दाना खलान घमान ल जाय तब-तब कोयल अपन उस बचच को वह मीठा मनोहर शबद सनाय कोयल क बचच म जब उस शबद दवारा अपना अश अकरत हआ यानी उस अपनी असलपहचान का बोध हआ तो उस बचच का हरदय कौव क ओर स हट गया और एक दन कौव को अगठा दखा कर वह कोयल का बचचा उसस पराया होकर उङ चला कोयल का बचचा अपनी वाणी बोलता हआ चला और तब घबरा कर उसक पीछ-पीछ कागा वयाकल बहाल होकर

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दौङा उसक पीछ-पीछ भागता हआ कागा थक गया परनत उस नह पा सका फ़र वह बहोश हो गया और बाद म होश आन पर नराश होकर अपन घर लौट आया कोयल का बचचा जाकर अपन परवार स मलकर सखी हो गया और नराश कागा झक मारकर रह गया धमरदास िजस परकार कोयल का बचचा होता ह क वह कौव क पास रहकर भी अपना शबद सनत ह उसका साथ छोङकर अपन परवार स मल जाता ह इसी वध स जब कोई भी समझदार जीव मनषय अपन नजनाम और नजआतमा क पहचान क लय सचत हो जाता ह तो वह मझ (सदगर) स सवय ह मल जाता ह और अपन असल घर-परवार सतयलोक म पहच जाता ह तब म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कोयलसत जस शरा होई यहवध धाय मल मोह कोई नजघर सरत कर जो हसा तार ताह एकोर वशा धमरदास इसी तरह कोयल क बचच क भात कोई शरवीर मनषय कालनरजन क असलयत को जानकर सदगर क परत शबद (नामउपदश) क लय मर तरफ़ दौङता ह और नजघर सतयलोक क तरफ़ अपनी सरत (पर एकागरता) रखता ह म उसक एक सौ एक वश तार दता ह कबीर बोल - धमरदास कौव क नीच चालचलन नीचबदध को छोङकर हस क रहनी सतयआचरण सदगण परम शील सवभाव शभकायर जस उम लण को अपनान स मनषय जीव सतयलोक जाता ह िजस परकार कागा क ककर श वाणी काव-काव कसी को अचछ नह लगती परनत कोयल क मधर वाणी कहकह सबक मन को भाती ह इसी परकार कोयल क तरह हसजीव वचारपवरक उमवाणी बोल जो कोई अिगन क तरह जलता हआ करोध म भरकर भी सामन आय तो हसजीव को शीतल जल क समान उसक तपन बझानी चाहय ान-अान क यह सह पहचान ह जो अानी होता ह वह कपट उगर तथा दषटबध वाला होता ह गर का ानी शषय शीतल और परमभाव स पणर होता ह उसम सतय ववक सतोष आद सदगण समाय होत ह ानी वह ह जो झठ पाप अनाचार दषटता कपट आद दगरण स यकत दषटबदध को नषट कर द और कालनरजन रपी मन को पहचान कर उस भला द उसक कहन म न आय जो ानी होकर कटवाणी बोलता ह वह ानी अान ह बताता ह उस अानी ह समझना चाहय जो मनषय शरवीर क तरह धोती खस कर मदान म लङन क लय तयार होता ह और यदधभम म आमन सामन जाकर मरता ह तब उसका बहत यश होता ह और वह सचचावीर कहलाता ह इसी परकार जीवन म अान स उतपनन समसत पाप दगरण और बराईय को परासत करक जो ानवान उतपनन होता ह उसी को ान कहत ह मखर अानी क हरदय म शभ सतकमर नह सझता और वह सदगर का सारशबद और सदगर क महतव को नह समझता मखर इसान स अधकतर कोई कछ कहता नह ह यद कसी नतरहन का पर यद वषठा (मल) पर पङ जाय तो उसक हसी कोई नह करता लकन यद आख होत हय भी कसी का पर वषठा स सन जाय तो सभी लोग उसको ह दोष दत ह धमरदास यह ान और अान ह ान और अान वपरत सवभाव वाल ह होत ह अतः ानीपरष हमशा सदगर का धयान कर और सदगर क सतयशबद को समझ सबक अनदर सदगर का वास ह पर वह कह गपत तो कह परकट ह इसलय सबको अपना मानकर जसा म अवनाशी आतमा ह वस ह सभी जीवातमाओ को समझ और ऐसा समझ कर समान भाव स सबस नमन कर और ऐसी गरभिकत क नशानी

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लकर रह रग कचचा होन क कारण इस दह को कभी भी नाशवान होन वाल जानकर भकत परहलाद क तरह अपन सतयसकलप म दढ़ मजबत होकर रह यदयप उसक पता हरणयकशयप न उसको बहत कषट दय लकन फ़र भी परहलाद न अडग होकर हरगण वाल परभभिकत को ह सवीकार कया ऐसी ह परहलाद कसी पककभिकत करता हआ सदगर स लगन लगाय रह और चौरासी म डालन वाल मोहमाया को तयाग कर भिकतसाधना कर तब वह अनमोल हआ हसजीव अमरलोक म नवास पाता ह और अटल होकर िसथर होकर जनम-मरण क आवागमन स मकत हो जाता ह

परमाथर क उपदश

कबीर साहब बोल - धमरदास अब म तमस परमाथर वणरन करता ह ान को परापत हआ ान क शरणागत हआ कोई जीव समसत अान और कालजाल को छोङ तथा लगन लगाकर सतयनाम का समरन कर असतय को छोङकर सतय क चाल चल और मन लगाकर परमाथर मागर को अपनाय धमरदास एक गाय को परमाथर गण क खान जानो गाय क चाल और गण को समझो गाय खत बाग आद म घास चरती ह जल पीती ह और अनत म दध दती ह उसक दध घी स दवता और मनषय दोन ह तपत होत ह गाय क बचच दसर का पालन करन वाल होत ह उसका गोबर भी मनषय क बहत काम आता ह परनत पापकमर करन वाला मनषय अपना जनम य ह गवाता ह बाद म आय पर होन पर गाय का शरर नषट हो जाता ह तब रास क समान मनषय उसका शरर का मास लकर खात ह मरन पर भी उसक शरर का चमढ़ा मनषय क लय बहत सख दन वाला होता ह भाई जनम स लकर मतय तक गाय क शरर म इतन गण होत ह इसलय गाय क समान गण वाला होन का यह वाणी उपदश सजजन परष गहण कर तो कालनरजन जीव क कभी हान नह कर सकता मनषयशरर पाकर िजसक बदध ऐसी शदध हो और उस सदगर मल तो वह हमशा को अमर हो जाय धमरदास परमाथर क वाणी परमाथर क उपदश सनन स कभी हान नह होती इसलय सजजन परमाथर का सहारा आधार लकर भवसागर स पार हो दलरभ मनषयजीवन क रहत मनषय सारशबद क उपदश का परचय और ान परापत कर फ़र परमाथर पद को परापत हो तो वह सतयलोक को जाय अहकार को मटा द और नषकाम-सवा क भावना हरदय म लाय जो अपन कल बल धन ान आद का अहकार रखता ह वह सदा दख ह पाता ह यह मनषय ऐसा चतर बदधमान बनता ह क सदगण और शभकमर होन पर कहता ह क मन ऐसा कया ह और उसका परा शरय अपन ऊपर लता ह और अवगण दवारा उलटा वपरत परणाम हो जान पर कहता ह क भगवान न ऐसा कर दया यह नर अस चातर बधमाना गण शभकमर कह हम ठाना ऊचकरया आपन सर लनहा औगण को बोल हर कनहा तब ऐसा सोचन स उसक शभकम का नाश हो जाता ह धमरदास सब आशाओ को छोङकर तम नराश (उदास

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वरकत वरागी भाव) भाव जीवन म अपनाओ और कवल एक सतयनाम कमाई क ह आशा करो और अपन कय शभकमर को कसी को बताओ नह सभी दवी-दवताओ भगवान स ऊचा सवपर गरपद ह उसम सदा लगन लगाय रहो जस जल म अभननरप स मछल घमती ह वस ह सदगर क शरीचरण म मगन रह सदगर दवारा दय शबदनाम म सदा मन लगाता हआ उसका समरन कर जस मछल कभी जल को नह भलती और उसस दर होकर तङपन लगती ह ऐस ह चतरशषय गर स उपदश कर उनह भल नह सतयपरष क सतयनाम का परभाव ऐसा ह क हसजीव फ़र स ससार म नह आता तम कछए क बचच क कला गण समझो कछवी जल स बाहर आकर रत मटट म गढढा खोदकर अणड दती ह और अणड को मटट स ढककर फ़र पानी म चल जाती ह परनत पानी म रहत हय भी कछवी का धयान नरनतर अणड क ओर ह लगा रहता ह वह धयान स ह अणड को सती ह समय परा होन पर अणड पषट होत ह और उनम स बचच बाहर नकल आत ह तब उनक मा कछवी उन बचच को लन पानी स बाहर नह आती बचच सवय चलकर पानी म चल जात ह और अपन परवार स मल जात ह धमरदास जस कछय क बचच अपन सवभाव स अपन परवार स जाकर मल जात ह वस ह मर हसजीव अपन नजसवभाव स अपन घर सतयलोक क तरफ़ दौङ उनको सतयलोक जात दखकर कालनरजन क यमदत बलहन हो जायग तथा व उनक पास नह जायग व हसजीव नभरय नडर होकर गरजत और परसनन होत हय नाम का समरन करत हय आननदपवरक अपन घर जात ह और यमदत नराश होकर झक मारकर रह जात ह सतयलोक आननद का धाम अनमोल और अनपम ह वहा जाकर हस परमसख भोगत ह हस स हस मलकर आपस म करङा करत ह और सतयपरष का दशरन पात ह जस भवरा कमल पर बसता ह वस ह अपन मन को सदगर क शरीचरण म बसाओ तब सदा अचल सतयलोक मलता ह अवनाशी शबद और सरत का मल करो यह बद और सागर क मलन क खल जसा ह इसी परकार जीव सतयनाम स मलकर उसी जसा सतयसवरप हो जाता ह

अनलपी का रहसय

कबीर साहब बोल - गर क महान कपा स मनषय साध कहलाता ह ससार स वरकत मनषय क लय गरकपा स बढ़कर कछ भी नह ह फ़र ऐसा साध अनलपी क समान होकर सतयलोक को जाता ह धमरदास तम अनलपी क रहसय उपदश को सनो अनलपी नरनतर आकाश म ह वचरण करता रहता ह और उसका अणड स उतपनन बचचा भी सवतः जनम लकर वापस अपन घर को लौट जाता ह परथवी पर बलकल नह उतरता अनलपी जो सदव आकाश म ह रहता ह और कवल दन-रात पवन यानी हवा क ह आशा करता ह अनलपी क रतकरया या मथन कवल दिषट स होता ह यानी व जब एक-दसर स मलत ह तो परमपवरक एक दसर को रतभावना क गहनदिषट स दखत ह उनक इस रतकरया वध स मादापी को गभर ठहर जाता ह फ़र कछ समय बाद मादा अनलपी अणडा दती ह पर उनक नरनतर उङन क कारण अणडा ठहरन का कोई आधार तो होता नह वहा तो बस कवल नराधार शनय ह शनय ह तब आधारहन होन क कारण अणडा धरती क ओर गरन लगता ह और नीच रासत म आत-आत ह पर तरह पककर तयार हो जाता ह और रासत म ह अणडा फ़टकर शश बाहर नकल आता ह और नीच गरत-गरत ह रासत म अनलपी आख खोल लता ह तथा

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कछ ह दर म उसक पख उङन लायक हो जात ह नीच गरत हय जब वह परथवी क नकट आता ह तब उस सवतः पता लग जाता ह क यह परथवी मर रहन का सथान नह ह तब वह अनलपी अपनी सरत क सहार वापस अतर क ओर लौटन लगता ह जहा उसक माता-पता का नवास ह अनलपी कभी अपन बचच को लन परथवी क ओर नह आत बिलक बचचा सवय ह पहचान लता ह क यह परथवी मरा घर नह ह और वापस पलटकर अपन असलघर क ओर चला जाता ह धमरदास ससार म बहत स पी रहत ह परनत व अनल पी क समान गणवान नह होत ऐस ह कछ ह बरल जीव ह जो सदगर क ानअमत को पहचानत ह नधरनया सब ससार ह धनवनता नह कोय धनवनता ताह कहो जा त नाम रतन धन होय धमरदास इसी अनलपी क तरह जो जीव ानयकत होकर होश म आ जाता ह तो वह इस काल कलपनालोक को पार करक सतयलोक मिकतधाम म चला जाता ह जो मनषय जीव इस ससार क सभी आधार को तयाग कर एक सदगर का आधार और उनक नाम स वशवासपवरक लगन लगाय रहता ह और सब परकार का अभमान तयाग कर रात-दन गरचरण क अधीन रहता हआ दासभाव स उनक सवा म लगा रहता ह तथा धन घर और परवार आद का मोह नह करता पतर सतरी तथा समसत वषय को ससार का ह समबनध मानकर गरचरण को हरदय स पकङ रहता ह ताक चाहकर भी अलग न हो इस परकार जो मनषय साध सत गरभिकत क आचरण म लन रहता ह सदगर क कपा स उसक जनम-मरण रपी अतयनत दखदायी कषट का नाश हो जाता ह और वह साध सतयलोक को परापत होता ह साधक या भकतमनषय मन-वचन कमर स पवतर होकर सदगर का धयान कर और सदगर क आानसार सावधान होकर चल तब सदगर उस इस जङदह स पर नामवदह जो शाशवतसतय ह उसका साातकार करा क सहजमिकत परदान करत ह

धमरदास यह कठन कहानी

कबीर साहब बोल - सतयान बल स सदगर काल पर वजय परापत कर अपनी शरण म आय हसजीव को सतयलोक ल जात ह जहा हसजीव मनषय सतयपरष क दशरन पाता ह और अतआननद परापत करता ह फ़र वह वहा स लौटकर कभी भी इस कषटदायक दखदायी ससार म वापस नह आता यानी उसका मो हो जाता ह धमरदास मर वचन उपदश को भल परकार स गरहण करो िजास इसान को सतयलोक जान क लय सतय क मागर पर ह चलना चाहय जस शरवीर योदधा एक बार यदध क मदान म घसकर पीछ मढ़कर नह दखता बिलक नभरय होकर आग बढ़ जाता ह ठक वस ह कलयाण क इचछा रखन वाल िजास साधक को भी सतय क राह पर चलन क बाद पीछ नह हटना चाहय अपन पत क साथ सती होन वाल नार और यदधभम म सर कटान वाल वीर क महान आदशर को

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दख-समझ कर िजस परकार मनषय दया सतोष धयर मा वराग ववक आद सदगण को गरहण कर अपन जीवन म आग बढ़त ह उसी अनसार दढ़सकलप क साथ सतय सनतमत सवीकार करक जीवन क राह म आग बढ़ना चाहय जीवत रहत हय भी मतकभाव अथारत मान अपमान हान लाभ मोहमाया स रहत होकर सतयगर क बताय सतयान स इस घोर काल कषट पीङा का नवारण करना चाहय धमरदास लाख-करोङ म कोई एक बरला मनषय ह ऐसा होता ह जो सती शरवीर और सनत क बताय हय उदाहरण क अनसार आचरण करता ह और तब उस परमातमा क दशरन साातकार परापत होता ह धमरदास बोल - साहब मझ मतकभाव कया होता ह इस पणररप स सपषट बतान क कपा कर कबीर बोल - धमरदास जीवत रहत हय जीवन म मतकदशा क कहानी बहत ह कठन ह इस सदगर क सतयान स कोई बरला ह जान सकता ह सदगर क उपदश स ह यह जाना जाता ह धमरदास यह कठन कहानी गरमत त कोई बरल जानी जीवन म मतकभाव को परापत हआ सचचा मनषय अपन परमलय मो को ह खोजता ह वह सदगर क शबदवचार को अचछ तरह स परापत करक उनक दवारा बताय सतयमागर का अनसरण करता ह उदाहरणसवरप जस भरगी (पखवाला चीटा जो दवाल खङक आद पर मटट का घर बनाता ह) कसी मामल स कट क पास जाकर उस अपना तज शबद घघघ सनाता ह तब वह कट उसक गरान रपी शबदउपदश को गरहण करता ह गजार करता हआ भरगी अपन ह तज शबद सवर क गजार सना-सनाकर कट को परथवी पर डाल दता ह और जो कट उस भरगीशबद को धारण कर तब भरगी उस अपन घर ल जाता ह तथा गजार-गजार कर उस अपना lsquoसवात शबदrsquo सनाकर उसक शरर को अपन समान बना लता ह भरगी क महान शबदरपी सवर-गजार को यद कट अचछ तरह स सवीकार कर ल तो वह मामल कट स भरगी क समान शिकतशाल हो जाता ह फ़र दोन म कोई अतर नह रहता समान हो जाता ह असखय झीगर कट म स कोई-कोई बरला कट ह उपयकत और अनकल सख परदान करान वाला होता ह जो भरगी क lsquoपरथमशबदrsquo गजार को हरदय स सवीकारता ह अनयथा कोई दसर और तीसर शबद को ह शबद सवर मान कर सवीकार कर लता ह तन-मन स रहत भरगी क उस महान शबदरपी गजार को सवीकार करन म ह झीगरकट अपना भला मानत ह भरगी क शबद सवर-गजार को जो कट सवीकार नह करता तो फ़र वह कटयोन क आशरय म ह पङा रहता ह यानी वह मामल कट स शिकतशाल भरगी नह बन सकता धमरदास यह मामल कट का भरगी म बदलन का अदभत रहसय ह जो क महान शा परदान करन वाला ह इसी परकार जङबदध शषय जो सदगर क उपदश को हरदय स सवीकार करक गरहण करता ह उसस वह वषयवकार स मकत होकर अानरपी बधन स मकत होकर कलयाणदायी मो को परापत होता ह धमरदास भरगीभाव का महतव और शरषठता को जानो भरगी क तरह यद कोई मनषय नशचयपणर बदध स गर क उपदश को सवीकार कर तो गर उस अपन समान ह बना लत ह िजसक हरदय म गर क अलावा दसरा कोई भाव नह होता और वह सदगर को समपरत होता ह वह मो को परापत होता ह इस तरह वह नीचयोन म बसन वाल कौव स बदलकर उमयोन को परापत हो हस कहलाता ह

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साध का मागर बहत कठन ह

कबीर साहब बोल - इस मनषय को कौव क चाल सवभाव (जो साधारण मनषय क होती ह) आद दगरण को तयागकर हस सवभाव को अपनाना चाहय सदगर क शबदउपदश को गरहण कर मन-वचन वाणी कमर स सदाचार आद सदगण स हस क समान होना चाहय धमरदास जीवत रहत हय यह मतकसवभाव का अनपमान तम धयान स सनो इस गरहण करक ह कोई बरला मनषय जीव ह परमातमा क कपा को परापत कर साधनामागर पर चल सकता ह तम मझस उस मतकभाव का गहन रहसय सनो शषय मतकभाव होकर सतयान का उपदश करन वाल सदगर क शरीचरण क पर भाव स सवा कर मतकभाव को परापत होन वाला कलयाण क इचछा रखन वाला िजास अपन हरदय म मा दया परम आद गण को अचछ परकार स गरहण कर और जीवन म इन गण क वरत नयम का नवारह करत हय सवय को ससार क इस आवागमन क चकर स मकत कर जस परथवी को तोङा खोदा जान पर भी वह वचलत नह होती करोधत नह होती बिलक और अधक फ़ल फ़ल अनन आद परदान करती ह अपन-अपन सवभाव क अनसार कोई मनषय चनदन क समान परथवी पर फ़ल फ़लवार आद लगाता हआ सनदर बनाता ह तो कोई वषठा मल आद डालकर गनदा करता ह कोई-कोई उस पर कष खती आद करन क लय जताई-खदाई आद करता ह लकन परथवी उसस कभी वचलत न होकर शातभाव स सभी दख सहन करती हयी सभी क गण-अवगण को समान मानती ह और इस तरह क कषट को और अचछा मानत हय अचछ फ़सल आद दती ह धमरदास अब और भी मतकभाव सनो य अतयनत दरह कठन बात ह मतकभाव म िसथत सत गनन क भात होता ह जस कसान गनन को पहल काट छाटकर खत म बोकर उगाता ह फ़र नय सर स पदा हआ गनना कसान क हाथ म पङकर पोर-पोर स छलकर सवय को कटवाता ह ऐस ह मतकभाव का सत सभी दख सहन करता ह फ़र वह कटा-छला हआ गनना अपन आपको कोलह म परवाता ह िजसम वह पर तरह स कचल दया जाता ह और फ़र उसम स सारा रस नकल जान क बाद उसका शष भाग खो बन जाता ह फ़र आप (जल) सवरप उस रस को कङाह म उबाला जाता ह उसक अपन शरर क रस को आग पर तपान स गङ बनता ह और फ़र उस और अधक आच दकर तपा-तपाकर रगङ-रगङ कर खाड बनायी जाती ह खाड बन जान पर फ़र स उसम ताप दया जाता ह और फ़र तब उसम स जो दाना बनता ह उस चीनी कहत ह चीनी हो जान पर फ़र स उस तपाकर कषट दकर मशरी बनात ह धमरदास मशरी स पककर lsquoकदrsquo कहलाया तो सबक मन को अचछा लगा इस वध स गनन क भात जो शषय गर क आा अनसार आचरण वयवहार करता हआ सभी परकार क कषट-दख सहन करता ह वह सदगर क कपा स सहज ह भवसागर को पार कर लता ह धमरदास जीवत रहत हय मतकभाव अपनाना बहद कठन ह इस लाख-करोङ म कोई सरमा सत ह अपना पाता ह जबक इस सनकर ह सासारक वषयवकार म डबा कायर वयिकत तो भय क मार तन-मन स जलन लगता

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ह सवीकारना अपनाना तो बहत दर क बात ह वह डर क मार भागा हआ इस ओर (भिकत क तरफ़) मङकर भी नह दखता जस गनना सभी परकार क दख सहन करता ह ठक ऐस ह शरण म आया हआ शषय गर क कसौट पर दख सहन करता हआ सबको सवार और सदा सबको सख परदान करन वाल सवरहत क कायर कर वह मतकभाव को परापत गर क ानभद को जानन वाला ममर साधक शषय नशचय ह सतयलोक को जाता ह वह साध सासारक कलश और नज मन-इिनदरय क वषयवकार को समापत कर दता ह ऐसी उम वरागय िसथत को परापत अवचल साध स सामानय मनषय तो कया दवता तक अपन कलयाण क आशा करत ह धमरदास साध का मागर बहत ह कठन ह जो साधता क उम सतयता पवतरता नषकाम भाव म िसथत होकर साधना करता ह वह सचचा साध ह वह सचच अथ म साध ह जो अपनी पाच इिनदरय आख कान नाक जीभ कामदर को वश म रखता ह और सदगर दवारा दय सतयनाम अमत क दन-रात चखता ह

लटरा कामदव

कबीर साहब बोल - धमरदास साधना करत समय सबस पहल साध को च (आख) इिनदरय को साधना चाहय यानी आख पर नयतरण रख वह कसी वषय पर इधर-उधर न भटक उस भल परकार नयतरण म कर और गर क बताय ानमागर पर चलता हआ सदव उनक दवारा दया हआ नाम भावपणर होकर समरन कर पाच-ततव स बन इस शरर म ानइिनदरय आख का समबनध अिगनततव स ह आख का वषय रप ह उसस ह हम ससार को वभनन रप म दखत ह जसा रप आख को दखायी दता ह वसा ह भाव मन म उतपनन होता ह आख दवारा अचछा-बरा दोन दखन स राग-दवष भाव उतपनन होत ह इस मायारचत ससार म अनकानक वषय पदाथर ह िजनह दखत ह उनह परापत करन क तीवर इचछा स तन और मन वयाकल हो जात ह और जीव य नह जानता क य वषयपदाथर उसका पतन करन वाल ह इसलय एक सचच साध को आख पर नयतरण करना होता ह सनदर रप आख को दखन म अचछा लगता ह इसी कारण सनदर रप को आख क पजा कहा गया ह और जो दसरा रप करप ह वह दखन म अचछा नह लगता इसलय उस कोई नह दखना चाहता असल साध को चाहय क वह इस नाशवान शरर क रप-करप को एक ह करक मान और सथलदह क परत ऐस भाव स उठकर इसी शरर क अनदर जो शाशवत अवनाशी चतन आतमा ह उसक दशरन को ह सख मान जो ान दवारा lsquoवदहिसथतrsquo म परापत होता ह धमरदास कान इिनदरय का समबनध आकाशततव स ह और इसका वषय शबद सनना ह कान सदा ह अपन अनकल मधर शभशबद को ह सनना चाहत ह कान दवारा कठोर अपरय शबद सनन पर च करोध क आग म जलन लगता ह िजसस बहत अशात होकर बचनी होती ह सचच साध को चाहय क वह बोल-कबोल (अचछ-खराब वचन) दोन को समान रप स सहन कर सदगर क उपदश को धयान म रखत हय हरदय को शीतल और शात ह रख

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धमरदास अब नासका यानी नाक क वशीकरण क बार म भी सनो नाक का वषय गध होता ह इसका समबनध परथवीततव स ह अतः नाक को हमशा सगध क चाह रहती ह दगध इस बलकल अचछ नह लगती लकन कसी भी िसथरभाव साधक साध को चाहय क वह ततववचार करता हआ इस वश म रख यानी सगनध-दगरनध म समभाव रह अब िजभया यानी जीभ इिनदरय क बार म जानो जीभ का समबनध जलततव स ह और इसका वषय रस ह यह सदा वभनन परकार क अचछ-अचछ सवाद वाल वयजन को पाना चाहती ह इस ससार म छह रस मीठा कङवा खटटा नमकन चरपरा कसला ह जीभ सदा ऐस मधर सवाद क तलाश म रहती ह साध को चाहय क वह सवाद क परत भी समभाव रह और मधर अमधर सवाद क आसिकत म न पङ रख-सख भोजन को भी आननद स गहण कर जो कोई पचामत (दध दह शहद घी और मशरी स बना पदाथर) को भी खान को लकर आय तो उस दखकर मन म परसननता आद का वशष अनभव न कर और रख-सख भोजन क परत भी अरच न दखाय धमरदास वभनन परकार क सवाद लोलपता भी वयिकत क पतन का कारण बनती ह जीभ क सवाद क फ़र म पङा हआ वयिकत सहरप स भिकत नह कर पाता और अपना कलयाण नह कर पाता जबतक जीभ सवादरपी कए म लटक ह और तीण वषरपी वषय का पान कर रह ह तबतक हरदय म राग-दवष मोह आद बना ह रहगा और जीव सतयनाम का ान परापत नह कर पायगा धमरदास अब म पाचवी काम-इिनदरय यानी जननिनदरय क बार म समझाता ह इसका समबनध जलततव स ह िजसका कायर मतर वीयर का तयाग और मथन करना होता ह यह मथनरपी कटल वषयभोग क पापकमर म लगान वाल महान अपराधी इनदर ह जो अकसर इसान को घोर नरक म डलवाती ह इस इनदर क दवारा िजस दषटकाम क उतप होती ह उस दषट परबल कामदव को कोई बरला साध ह वश म कर पाता ह कामवासना म परवत करन वाल कामनी का मोहनीरप भयकर काल क खान ह िजसका गरसत जीव ऐस ह मर जाता ह और कोई मोसाधन नह कर पाता अतः गर क उपदश स कामभावना का दमन करन क बजाय भिकत उपचार स शमन करना चाहय ------------------ (यहा बात सफ़र औरत क न होकर सतरी-परष म एक-दसर क परत होन वाल कामभावना क लय ह कयक मो और उदधार का अधकार सतरी-परष दोन को ह समान रप स ह अतः जहा कामनी-सतरी परष क कलयाण म बाधक ह वह कामीपरष भी सतरी क मो म बाधा समान ह ह कामवषय बहत ह कठन वकार ह और ससार क सभी सतरी-परष कह न कह कामभावना स गरसत रहत ह कामअिगन दह म उतपनन होन पर शरर का रोम-रोम जलन लगता ह कामभावना उतपनन होत ह वयिकत क मन बदध स नयतरण समापत हो जाता ह िजसक कारण वयिकत का शाररक मानसक और आधयाितमक पतन होता ह) धमरदास कामी करोधी लालची वयिकत कभी भिकत नह कर पात सचची भिकत तो कोई शरवीर सत ह करता ह जो जात वणर और कल क मयारदा को भी छोङ दता ह

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कामी करोधी लालची इनस भिकत न होय भिकत कर कोई सरमा जातवणर कल खोय काम जीवन क वासतवक लय मो क मागर म सबस बढ़ा शतर ह अतः इस वश म करना बहत आवशयक ह ह धमरदास इस कराल वकराल काम को वश म करन का अब उपाय भी सनो जब काम शरर म उमङता हो या कामभावना बहद परबल हो जाय तो उस समय बहत सावधानी स अपन आपको बचाना चाहय इसक लए सवय क वदहरप को या आतमसवरप को वचारत हय सरत (एकागरता) वहा लगाय और सोच क म य शरर नह ह बिलक म शदधचतनय आतमसवरप ह और सतयनाम तथा सदगर (यद ह) का धयान करत हय वषल कामरस को तयाग कर सतयनाम क अमतरस का पान करत हय इसक आननददायी अनभव को परापत कर काम शरर म ह उतपनन होता ह और मनषय अानवश सवय को शरर और मन जानता हआ ह इस भोगवलास म परवत होता ह जब वह जान लगा क वह पाच-ततव क बनी य नाशवान जङदह नह ह बिलक वदह अवनाशी शाशवत चतनय आतमा ह तब ऐसा जानत ह वह इस कामशतर स पर तरह स मकत ह हो जायगा मनषय शरर म उमङन वाला य कामवषय अतयनत बलवान और बहत भयकर कालरप महाकठोर और नदरयी ह इसन दवता मनषय रास ऋष मन य गधवर आद सभी को सताया हआ ह और करोङ जनम स उनको लटकर घोर पतन म डाला ह और कठोर नकर क यातनाओ म धकला ह इसन कसी को नह छोङा सबको लटा ह लकन जो सत साधक अपन हरदयरपी भवन म ानरपी दपक का पणयपरकाश कय रहता हो और सदगर क सारशबद उपदश का मनन करत हय सदा उसम मगन रहता हो उसस डरकर य कामदवरपी चोर भाग जाता ह जो वषया सतन तजी मढ़ ताह लपटात नर जय डार वमन कर शवान सवाद सो खात कबीर साहब न य दोहा नीचकाम क लय ह बोला ह इस कामरपी वष को िजस सत न एकदम तयागा ह मखर मनषय इस काम स उसी तरह लपट रहत ह जस मनषय दवारा कय गय वमन यानी उलट को का परम स खाता ह

आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम lsquoवदहrsquo ह

कबीर साहब बोल - धमरदास जबतक दह स पर वदहनाम का धयान होन म नह आता तबतक जीव इस असार ससार म ह भटकता रहता ह वदहधयान और वदहनाम इन दोन को अचछ तरह स समझ लता ह तो उसक सभी सदह मट जात ह जबलग धयान वदह न आव तबलग िजव भव भटका खाव धयानवदह और नामवदहा दोउ लख पाव मट सदहा

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मनषय का पाच-ततव स बना यह शरर जङ परवतरनशील तथा नाशवान ह यह अनतय ह इस शरर का एक नाम-रप होता ह परनत वह सथायी नह रहता राम कषण ईसा लमी दगार शकर आद िजतन भी नाम इस ससार म बोल जात ह य सब शरर नाम ह वाणी क नाम ह लकन इसक वपरत इस जङ और नाशवान दह स पर उस अवनाशी चतनय शाशवत और नज आतमसवरप परमातमा का वासतवक नाम वदह ह और धवनरप ह वह सतय ह वह सवपर ह अतः मन स सतयनाम का समरन करो वहा दन-रात क िसथत तथा परथवी अिगन वाय आद पाच-ततव का सथान नह ह वहा धयान लगान स कसी भी योन क जनम-मरण का दख जीव को परापत नह होता वहा क सख आननद का वणरन नह कया जा सकता जस गग को सपना दखता ह वस ह जीवत जनम को दखो जीत जी इसी जनम म दखो धमरदास धयान करत हय जब साधक का धयान णभर क लय भी lsquoवदहrsquo परमातमा म लन हो जाता ह तो उस ण क महमा आननद का वणरन करना असभव ह ह भगवान आद क शरर क रप तथा नाम को याद करक सब पकारत ह परनत उस वदहसवरप क वदहनाम को कोई बरला ह जान पाता ह जो कोई चारो यग सतयग तरता दवापर कलयग म पवतर कह जान वाल काशी नगर म नवास कर नमषारणय बदरनाथ आद तीथ पर जाय और गया दवारका परयाग म सनान कर परनत सारशबद (नवारणी नाम) का रहसय जान बना वह जनम-मरण क दख और बहद कषटदायी यमपर म ह जायगा और वास करगा धमरदास चाह कोई अड़सठ तीथ मथरा काशी हरदवार रामशवर गगासागर आद म सनान कर ल चाह सार परथवी क परकमा कर ल परनत सारशबद का ान जान बना उसका भरम अान नह मट सकता धमरदास म कहा तक उस सारशबद क नाम क परभाव का वणरन कर जो उसका हसदा लकर नयम स उसका समरन करगा उसका मतय का भय सदा क लय समापत हो जायगा सभी नाम स अदभत सतयपरष का सारनाम सफ़र सदगर स ह परापत होता ह उस सारनाम क डोर पकङकर ह भकतसाधक सतयलोक को जाता ह उस सारनाम का धयान करन स सदगर का वह हसभकत पाच-ततव स पर परमततव म समा जाता ह अथारत वसा ह हो जाता ह

वदहसवरप सारशबद

कबीर साहब बोल - धमरदास मो परदान करन वाला सारशबद वदहसवरप वाला ह और उसका वह अनपमरप नःअर ह पाच-ततव और पचचीस परकत को मलाकर सभी शरर बन ह परनत सारशबद इन सबस भी पर वदहसवरप वाला ह कहन-सनन क लय तो भकतसत क पास वस लोकवद आद क कमरकाड उपासना काड ानकाड योग मतर आद स समबिनधत सभी तरह क शबद ह लकन सतय यह ह क सारशबद स ह जीव का उदधार होता ह परमातमा का अपना सतयनाम ह मो का परमाण ह और सतयपरष का समरन ह सार ह बाहयजगत स धयान हटाकर अतमरखी होकर शातच स जो साधक इस नाम क अजपा जाप म लन होता ह

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उसस काल भी मरझा जाता ह सारशबद का समरन सम और मो का परा मागर ह इस सहज मागर पर शरवीर होकर साधक को मोयातरा करनी चाहय धमरदास सारशबद न तो वाणी स बोला जान वाला शबद ह और न ह उसका मह स बोलकर जाप कया जाता ह सारशबद का समरन करन वाला काल क कठन परभाव स हमशा क लय मकत हो जाता ह इसलय इस गपत आदशबद क पहचान कराकर इन वासतवक हसजीव को चतान क िजममवार तमह मन द ह धमरदास इस मनषयशरर क अनदर अननत पखङय वाल कमल ह जो अजपा जाप क इसी डोर स जङ हय ह तब उस बहद समदवार दवारा मन-बदध स पर इिनदरय स पर सतयपद का सपशर होता ह यानी उस परापत कया जाता ह शरर क अनदर िसथत शनयआकाश म अलौककपरकाश हो रहा ह वहा lsquoआदपरषrsquo का वास ह उसको पहचानता हआ कोई सदगर का हससाधक वहा पहच जाता ह और आदसरत (मन बदध च अहम का योग स एक होना) वहा पहचाती ह हसजीव को सरत िजस परमातमा क पास ल जाती ह उस lsquoसोऽहगrsquo कहत ह अतः धमरदास इस कलयाणकार सारशबद को भलभात समझो सारशबद क अजपा जाप क यह सहज धन अतरआकाश म सवतः ह हो रह ह अतः इसको अचछ तरह स जान-समझ कर सदगर स ह लना चाहय मन तथा पराण को िसथर कर मन तथा इिनदरय क कम को उनक वषय स हटाकर सारशबद का सवरप दखा जाता ह वह सहज सवाभावक lsquoधवनrsquo बना वाणी आद क सवतः ह हो रह ह इस नाम क जाप को करन क लय हाथ म माला लकर जाप करन क कोई आवशयकता ह नह ह इस परकार वदह िसथत म इस सारशबद का समरन हससाधक को सहज ह अमरलोक सतयलोक पहचा दता ह सतयपरष क शोभा अगम अपार मन-बदध क पहच स पर ह उनक एक-एक रोम म करोङ सयर चनदरमा क समान परकाश ह सतयलोक पहचन वाल एक हसजीव का परकाश सोलह सयर क बराबर होता ह ----------------------- समापत बहत दनन तक थ हम भटक सन सन बात बरानी जब कछबात उर म थर भयी सरतनरत ठहरानी रमता क सग समता हय गयी परो भनन प पानी हसदा परमहस दा समाधदा शिकतदा सारशबद दा नःअर ान वदहान सहजयोग सरतशबद योग नादबनद योग राजयोग और उजारतमक lsquoसहजधयानrsquo पदधत क वासतवक और परयोगातमक अनभव सीखन समझन होन हत समपकर कर

  • लखकीय
  • अनरागसागर की कहानी
  • कबीर साहब और धरमदास
  • आदिसषटि की रचना
  • अषटागीकनया और कालनिरजन
  • वद की उतपतति
  • तरिदव दवारा परथम समदरमथन
  • बरहमा और गायतरी का अषटागी स झठ बोलना
  • अषटागी का बरहमा और पहपावती को शाप दना
  • काल-निरजन का धोखा
  • चार खानि चौरासी लाख योनियो स आय मनषय क लकषण
  • चौरासी कयो बनी
  • कालनिरजन की चालबाजी
  • तपतशिला पर काल पीङित जीवो की पकार
  • कालनिरजन और कबीर का समझौता
  • राम-नाम की उतपतति
  • ससार म बहत काल-कलश दख-पीङा ह
  • कबीर और रावण
  • कबीर और रानी इनदरमती
  • रानी इनदरमती का सतयलोक जाना
  • कबीर का सदरशन शवपच को जञान दना
  • काल कसाई जीव बकरा
  • समदर और राम की दशमनी का कबीर दवारा निबटारा
  • धरमदास क परवजनम की कहानी
  • कालदत नारायण दास की कहानी
  • कालनिरजन का छलावा बारह पथ
  • चङामणि का जनम
  • काल का अपन दतो को चाल समझाना
  • काल क चार दत
  • सात पाच क मायाजाल म फ़सा जीव
  • गर-शिषय विचार-रहनी
  • शरीरजञान परिचय
  • मन की कपट करामात
  • कपटी कालनिरजन का चरितर
  • सतयपथ की डोर
  • कौआ और कोयल स भी सीखो
  • परमारथ क उपदश
  • अनलपकषी का रहसय
  • धरमदास यह कठिन कहानी
  • साध का मारग बहत कठिन ह
  • लटरा कामदव
  • आतमसवरप परमातमा का वासतविक नाम lsquoविदहrsquo ह
  • विदहसवरप सारशबद
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