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अिभव्यिक्त - Space Applications Centreक चयन करत ह जस ल कत ऽक ण ल क अ धक स अ धक सद य समझ सक ।

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  • 1 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    अिभव्यिक्त िहंदी गहृ पिऽका

    अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा

    िवकास एवं शैिक्षक सचंार यूिनट अहमदाबाद

    वषर्ः 2014 (ूथमांक) अंकः 8

    परम संरक्षक ौी आ.सी.िकरण कुमार, िनदेशक, सकै एवं अध्यक्ष, राजभाषा कायार्न्वयन सिमित, सैक

    संरक्षक ौी िवलास एस.पलसुले, िनदेशक, डेकू एवं अध्यक्ष, राजभाषा कायार्न्वयन सिमित, डेकू

    मागर्दशर्न ौीमती मिल्लका महाजन, भा.रा.से िनयंऽक, सैक एवं सह-अध्यक्ष, राजभाषा कायार्न्वयन सिमित, सैक

    सलाहकार मंडल ौी सी.एन.लाल, ूधान-ईक्यूसीडी

    ौी धमेर्श भट्ट, वैज्ञा./अिभ.-एसएफ ौी मकेुश कुमार िमौ, पुःतकालय सहायक

    ूधान संपादक ौी बी.आर.राजपूत

    विरष्ठ िहंदी अिधकारी, सैक सह संपादक

    ौीमती नीलू एस.सेठ िहंदी अिधकारी, सकै

    ूबंध संपादक ौी सोनू जैन

    किनष्ठ िहंदी अनुवादक

    सहयोग सुौी रजनी सेमवाल

    विरष्ठ िहंदी अनुवादक, एवं ौी जी.एल.िऽवेदी विरष्ठ सहायक

    आवरण पषृ्ठ िडजाइन मल्टीमीिडया लैब, डेकू

    मुिण पुःतकालय एवं ूलेखन ूभाग

    छायांकन फोटोलेब-ईपीएसए-एटीडीजी-आरएसीएफ

    ***

    अनुबमिणका

    पाठकों की कलम से 2संदेशः िनदेशक, सैक 3संदेशः िनदेशक, डेकू 4संदेशः िनयंऽक, सैक 5संपादकीय 6 सैक/डेकू में िहंदी गितिविधयां 7ऊंमा की रोचक बातें (लेख) 8मानव जीवन का उदे्दँय (लेख) 15घरवाली 16 ईश्वर का अिभनय (कहानी) 17मंगलयान (किवता) 17दघुर्टना के िलए िजम्मेदार सामान्य कारण 18 िमशन मंगल (लेख) 20िवज्ञान एवं िशक्षा में िहंदी का योगदान (लेख) 21सामािसक संःकृित (लेख) 22मैं तो हँू एक इंसान ही आिखर (किवता) 23िहंदी हमारी भाषा (लेख) 24दो किवताएं 25माता-िपता (किवता) 26इसरो देश की शान है (किवता) 26आज के बेटे (किवता) 27मन चाही बात (कहानी) 28कोरा कागज (किवता) 29ूेरक ूसंग (कहानी) 29एक कमर्चारी की सेवािनविृत्त (किवता) 29 जरूरत (कहानी) 30बंदगोभी की िशकायत फूलगोभी से 31 इसरो के हम पिरंदे (किवता) 32होली 32 पानी की तलाश में (कहानी) 33िवज्ञान एवं िशक्षाः िहंदी का योगदान (लेख) 34सुनहरे सपने (कहानी) 35गागर में सागर 36िरँते और हम 37 िजदंगी की ABCD 37 इन्सैट Ð 3D 38हािजर जवाब बच्चे 38महात्मा गाँधी जी के िवचार 39अरज 39 िवरासत की िहफाजत 40 भारतीय समाज की बदलती तःवीर 41भारत की संःकृित 43ॅष्टाचार 44

    आवरण पषृ्ठ अहमदाबाद शहर के मध्य िःथत साबरमित िरवरृंट का िचऽ मुिित है।

  • 2 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    पाठकों की कलम से........... पिऽका के लेख, चुटकुले, किवताएँ आिद बहुत सुंदर हैं। बाबूलाल मीणा की “ौद्धांजिल” किवता हृदयःपशीर् है। सोनू जैन का “कंप्यूटर पर शब्द ससंाधन” लेख ज्ञानवधर्क है। ूयास के िलए बधाइयाँ।

    अशोक कुमार िबल्लूरे विरष्ठ िहंदी अिधकारी, आईजेक, बेंगलूरु

    ौी रंजन परनामी द्वारा िलिखत किवता “िहंदी से नाता (िहंदी की जुबानी)”, ौी िजतेंि खडेर् द्वारा िलिखत “हाःय और हवाः तदंरुःती की दवा” एवं ौी अमर ज्योित की किवता “वो गाँव मेरा जब याद आया” काफी अच्छी लगी। साथ ही, ौी बाललूाल मीणा के “डायरी के अिवःमरणीय पन्ने (उत्तराखंड आपदा- एक संःमरण)” को पढ़कर हृदय ििवत हो गया।

    डॉ.शकंर कुमार विरष्ठ िहंदी अिधकारी, शाखा सिचवालय-अंतिरक्ष िवभाग, नई िदल्ली

    इस पिऽका में िविवध िवषयों पर ूकािशत िहंदी लेख, किवताएं, समसामियक घटनाबम रोचक एवं सराहनीय हैं। ौी कमलेश कुमार बराया द्वारा उंमा की कुछ रोचक बातों पर िलखा गया लेख काफी सराहनीय ज्ञानवधर्क है। पिऽका का आवरण पषृ्ठ और अंतिनर्िहत दृँयांकन अत्यंत आकषर्क हैं। आशा ही नहीं पूणर् िवश्वास है िक यह पिऽका िहंदी भाषा के िवकास एवं ज्ञान-िवज्ञान के ूचार ूसार में मील का पत्थर सािबत होगी।

    सरला विरष्ठ िहंदी अिधकारी, एमसीएफ, हासन

    आकषर्क पषृ्ठ के साथ “अिभव्यिक्त” का सातवाँ अंक ूाप्त हुआ। पिऽका से न िसफर् राजभाषा संबंधी िबया-कलापों एवं कायर्बमों की झाँकी िमली अिपतु कुछ ौषे्ठ लेख भी पढ़ने का अवसर ूाप्त हुआ। ौी कमलेश कुमार बराया द्वारा िलिखत ऊंमा की कुछ रोचक बातें, सोनू जैन की रचना कंप्यूटर पर शब्द संसाधन : भारतीय भाषा संदभर् आम पाठकों को अच्छी जानकारी देते हैं। बाबू लाल मीणा जी का िलखा “डायरी के अिवःमरणीय रेखांिकत पन्ने” वाःतव में केदारनाथ आपदा का भयावह दृँय सामने लाकर खड़ा कर देता है। हमारी संवेदनाएं उनके साथ हैं। किवताएं भी आकषर्क बन पड़ी हैं। पिऽका अपेिक्षत ःतर को बनाए रखने में कामयाब रही है, िजसके ौये संपादकीय सिमित के सभी सदःयों को जाता है। िहंदी माह समारोह के दौरान आयोिजत अभतूपूवर् भागीदारी कमर्चािरयों की िहंदी के ूित रुिच एवं समपर्ण व्यक्त करता है। आगामी अंकों के िलए शुभकामनाएं एवं पिऽका ूेिषत करने के िलए धन्यवाद।

    एम.जी. सोम शेखरन नायर विरष्ठ िहंदी अिधकारी, एसडीएससी-शार

    सबसे पहले तो आपके कें ि को सवर्ौषे्ठ राजभाषा कायर्न्वयन के िलए िदए गए पुरःकार के िलए हािदर्क बधाइयाँ। यह बड़े गवर् की बात है िक आपके कें ि के वैज्ञािनक िहंदी में तकनीकी लेखन में बढ़-चढ़कर योगदान देते हैं। उनके इन ूयासों में माननीय राष्टर्पित द्वारा िहंदी में मौिलक लेखन पुःतक लेखन के िलए िदए गए पुरःकार हेत ुबधाई। पिऽका में वैज्ञािनक लेखों के साथ-साथ किवताओं तथा कहािनयों से इसकी िविवधता झलकती है। िविवध राजभाषा गितिविधयों को भी पिऽका में बखूबी आवतृ्त िकया गया है। पिऽका इसी ूकार िनरंतर ूकािशत होती रहे, इसी शुभेच्छा के साथ पुनः आपको हािदर्क बधाई।

    मीनाक्षी सक्सेना िहंदी अिधकारी, एनआरएससी, हैदराबाद

  • 3

    आ.सी.िकरणिनदेशक, सैअध्यक्ष, राज

    अंतिरक्ष ूौिलए समिपअमणी रहदौरान सैकके सभी ःिक यह ूय कें ि के वैज्ञिहंदी के ूतकनीकी ससहभािगताउत्तरोत्तर बकायर्िनंपाद इस पिऽकाअपने िनधमाध्यम से मैं ‘अिभव्य

    ण कुमार, सक एवं जभाषा काय

    ूौद्योिगकी किपर्त यह केंहा है। इसीक द्वारा िकएःटाफ सदःूयास उत्तरोत्त

    ज्ञािनकों, वूित सदैव संगोिष्ठयों,

    ता इसकी पबढ़ रहा हैादन िकया

    का का ूकाशधार्िरत दैनिंदसे अन्य लोग

    यिक्त’ के आ

    अंतिर

    यार्न्वयन सिम

    के के्षऽ में कें ि राजभाषसी का पिरणकए जा रहे रःयों के सामोत्तर ूगितशी

    विरष्ठ अिधकव लगाव रह िहंदी माहपिरचायक हहै। सैक मजा रहा है।

    ाशन कें ि केिदन कायर् सोगों से जुड़

    आठवें अंक

    रक्ष उपयोग कें ि त

    िमित, सकै

    नीतभारों एाषा कायार्न्वणाम है िकराजभाषा कमूिहक ूयाशील रहेंगे।

    कािरयों औररहा है। कें िह, िवश्व िहहै। दैनिन्दनमें राजभाषाह।

    के सभी कासे इतर, अड़ सकें ।

    के ूकाशन

    तथा िवकास एवं

    संदेश एवं अनुूयोन्वयन से जुिक संसदीय कायार्न्वयनयासों का पिर

    और अन्य सि द्वारा ूििहंदी िदवस,दन कायार्लयषा कायर्न्वय

    कािमर्कों को अपने ज्ञान,

    न के िलए

    शैिक्षक संचार यूि

    योगों के अनुजड़ुी गितिव राजभाषा न की सराहिरणाम मान

    सभी कािमर्कितवषर् आयस, आिद कालयीन कामकवयन हेतु ि

    ऐसा मंच संवेदनशील

    हािदर्क शुभ

    ूिनट

    अनुसंधान एविविधयों के सिमित अहना करते रनता हँू और

    कों में संघ योिजत की कायर्बमों में काज में िहिनधार्िरत ल

    ूदान कर लता और भ

    भकामनाएं

    (आ

    एवं िवकास के्षऽ में भअपने िनरीक्षरहे हैं, मैं इ

    और अपेक्षा र

    की राजभाी जाने वालमें सभी की िहंदी का ूयलआयों के

    र रहा है, िजभाषागत कौ

    देता हँू।

    आ.सी.िकरण

    के िलए भी सदैव ीक्षणों के इसे कें ि रखता हँू

    भाषा िहंदी ली िहंदी ी सिबय ूयोग भी अनुरूप

    िजसमें वे कौशल के

    ण कुमार)

  • 4

    िवलास एसिनदेशक, डेकअध्यक्ष, राज

    भारत के िकसी एकजनता द्वारपिरचायक अपनाया एइसे बल ू

    राजकीय कवैज्ञािनक ूिहंदी के ूयूिनटों द्वारपिऽकाओं कूत्यक्ष ूम

    ‘अिभव्यिक्तने कें ि में

    मैं इस पिऽकी सराहन

    स. पलसुले, कू एवं जभाषा काय

    िविवधतायुक भाषा कोारा उसे ःव है। भारतएवं मनोरंजूदान िकया

    कामकाज ूकृित के ूचार-ू सार ारा ूितवषर् का ूकाशनमाण है।

    िक्त’ पिऽका िहंदी लेखन

    िऽका के िलना करता हँू

    अंतिर

    यार्न्वयन सिम

    यकु्त सांःकृिको देश की ःवीकार िकयत की जनजन जगत, ा।

    में भी िह कायोर्ं के र में कोई क िहंदी में अशन और मुख्

    का ूकाशखन के ूित

    िलए लेखकों हँू।

    रक्ष उपयोग कें ि त

    िमित, डेकू

    ितक और संपकर् भाषकया जाना नता ने खुल सोँयल मी

    िहंदी का चिलए समिकमी नहीं अनेक तकनख्य धारा के

    शन भी इसी अिभरुिच ब

    ों तथा संपाद

    तथा िवकास एवं

    संदेश

    बहुिवध भाषा अथवा अपने आ

    खले िदल समीिडया और

    चलन बढ़ मिपर्त भारतीी रखी है। दकनीकी संगोिके कायर्बमों

    सी िदशा में बढ़ाई है वह

    ादक मंडल

    शैिक्षक संचार यूि

    भाषा पिरदृँ राजभाषा आप में भारसे िहंदी कर मोबाइल

    रहा है। गतीय अंतिरक्षदेश के िवोिष्ठयों का आमों में िहंदी

    में एक महत्वहीं पाठक भ

    द्वारा िकए

    ूिनट

    ँय को ध्यके रूप मेंरत की िवको अपने दफोन जसेै

    गहन तकनक्ष अनुसंधािविभन्न भागआयोजन, ि का ूगितश

    त्वपूणर् ूयासभी इसे पस

    ए जा रहे ौ

    (िवल

    यान में रखमें चनुा जािवशाल हृदयदैनंिदन जी संचार माध्

    कनीकी औरधान संगठनागों में िःथिहंदी पऽ-प

    ितशील ूयोग

    ास है। इससंद कर रहे

    ौम एवं ूय

    िवलास एस.

    खते हुए, ाना और यता का जीवन में ध्यमों ने

    र िवशुद्ध न ने भी थत कें ि/ पिऽकाओं ग इसका

    स पिऽका हे हैं।

    यासों की

    पलसुले)

  • 5

    मिल्लका मिनयऽंक, एवसह-अध्यक्ष

    यिद िकसीहोता है, उूितष्ठािपत जनता औरूदान कर

    अंतिरक्ष उअंतिरक्ष िव(3) के अआयोिजत में िहंदी केकमर्चािरयों

    तकनीकी औको माध्यमपिरचय भीपुःतकें भीिहंदी भाषातथ्य को ध्

    पिऽका का सभी व्यिक्त

    मेरी यही शु

    जय िहंद।

    महाजन, भा.रव ंक्ष, राजभाषा

    सी कायर् का उसके पिरणत करने के और शासन सकें ।

    उपयोग कें ििवभाग के अअनुपालन क होने वाले के ूगामी ूयों में िहंदी क

    और ूशासम बनाकर भी देता है।भी िलखी जाषा के िवकासध्यान में र

    ा ूकाशन िक्त सराहना

    शुभकामना

    अंतिर

    रा.से

    कायार्न्वयन

    ा उदे्दँय सवरणाम भी दक पीछे भी एक दसूरे

    ि और िवकअमणी कायके साथ-सा कायर्बमों ूयोग को दके ूित िक

    सन के्षऽ में अपनी लेख। सैक के जा रहीं हैं, िास और ूसरखते हुए कें

    एक ौमसा के पाऽ हैं।

    ा है िक पिऽ

    रक्ष उपयोग कें ि त

    न सिमित, सै

    सवर्जन िहतादरूगामी होी यही उदे्दँर के िनकट

    कास एवं शैायार्लय हैं। साथ, िहंदी में ूितभािदेखकर सहिकतना लगाव

    में तो िहंदी कखनी का ूय वैज्ञािनकों िजनमें से ूसार में पऽकें ि िहंदी गृ

    साध्य कायर् हैं।

    िऽका सफलत

    तथा िवकास एवं

    सकै

    संदेश

    ताय एवं सवहोते हैं। भाँय था। शट आकर ल

    शैिक्षक संचा िहंदी पऽाचतकनीकी ािगयों की सहज अनुमानाव और उत्स

    का ूयोग योग करके ों द्वारा गूढ़07 पुःतकऽ-पिऽकाओगहृ पिऽका

    है। लेखक,

    लता के नए

    शैिक्षक संचार यूि

    सवर्जन सुखाभारत में राजशासन जनतलोकतंऽ की

    चार यूिनट ाचार, राजभसंगोिष्ठयों संख्या औरन लगाया जत्साह है।

    देखने को यह कें ि अढ़ तकनीकीकों का लेखओं का महत्व ‘अिभव्यिक्त

    क, संपादक

    ए आयामों क

    ूिनट

    खाय हो तो ाजभाषा के ता की भाषकी मूल भाव

    िहंदी कायाभाषा अिधिों तथा िहंदीर दैनंिदन रजा सकता

    िमलता हीअपनी संवेदी िवषयों पखन कायर् सत्वपूणर् योगिक्त’ का ूका

    मंडल और

    का ःपशर् क

    (म

    वह अवँयक रूप में िहाषा में हो, ावना को म

    यार्न्वयन के धिनयम की दी माह केराजकीय क है िक इस

    ही है, साथ दनापूणर् उवपर सरल संपन्न हो चुगदान रहा हकाशन कर र

    र इस कायर्

    करे।

    मिल्लका म

    य सफल िहंदी को िजससे मूतर् रूप

    क के्षऽ में धारा 3 के दौरान कामकाज स कें ि के

    ही िहंदी वर्रता का िहंदी में चकुा है। है। इसी रहा है।

    यर् से जुड़े

    महाजन)

  • 6 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    संपादकीय............

    अिभव्यिक्त शब्द का ूयोग माऽ मानवीय संवेदनाओं की िबया-ूितिबयाओं तक सीिमत रखना न्यायपूणर् नहीं होगा। अिभव्यिक्त ने इस दिुनया में कई बांितयों और आिवंकारों को जन्म िदया है। चेतना रिहत ूाकृितक घटकों की ूितिबयाओं को भी संवेदनशील होकर देखना होगा। उंण वातावरण में पानी की अिभव्यिक्त को पहचान कर भाप के इंजन का अिवंकार िकया गया। पेड़ से टूटे सेब की अिभव्यिक्त को देखकर गुरुत्वाकषर्ण के िनयम रेखांिकत िकए गए, इस िनयम ने िवज्ञान के के्षऽ में अनेक नवीन बांितयों का सूऽपात िकया। फलतः अिभव्यिक्तयां ही नहीं अिपतु अिभव्यिक्तयों का सूआम अवलोकन भी अनुसंधान एवं िवकास का समथर् उत्ूेरक है। दासता और जुल्म के िवरुद्ध ःवतंऽता और सौहादर् की अिभव्यिक्त ने देश, काल, वणर्, िलंग और जाित के भेदभाव के िबना समान मानव अिधकारों के िलए बांित को जन्म िदया, िजसने िवश्वमाम की संकल्पना को साकार िकया। इससे यह फिलत होता है िक अिभव्यिक्त िजतनी अिधक ूखर होती है, न्याय, सौहादर् और सिहंणुता के अवसर उतने ही ूबल होते हैं। कंप्यूटर और इंटरनेट के आगमन के बाद संचार माध्यमों के सशक्त और ूभावशील हो जाने से अिभव्यिक्त के ूसार को बल िमला है। इससे व्यापक मुद्दों पर जन भागीदारी बढ़ी है। व्यिक्त अपनी सीमाओं और अिधकारों के ूित जागरूक हुआ है, िजसके कारण नीित-िनधार्रण पर जरूरतों और आकांक्षाओं का सीधा ूभाव पड़ रहा है। इस संदभर् में एक और तथ्य समझने की आवँयकता है िक व्यापक जनमानस तक पहँुच बनाने के िलए अिभव्यिक्त की भाषा का चयन भी एक महत्वपूणर् िबंद ु है। लोकिूय जननायक यहाँ सहज ही उस भाषा का चयन करते हैं िजसे लोकतांिऽक ूणाली के अिधक से अिधक सदःय समझ सकें । मनोरंजन जगत भी इसी िसद्धांत का अनुकरण करते हुए अपनी कामयाबी का दायरा साल-दर-साल बढ़ाता जा रहा है। सारतः अिभव्यिक्त जगत को जीवंत बनाती है। अिभव्यिक्त सिृष्ट के ूत्येक अंश को मूितर्मान करती है, उसे साकार करते हुए नये आयामों से जोड़ती है। कला, सािहत्य, संगीत, नतृ्य, िचऽकारी यहाँ तक िक रोना-हँसना, मुःकुराना-उदास होना, िवषाद-हषर् - यह सभी अिभव्यिक्तयाँ ही तो हैं। अिभव्यिक्तयों के इन रंग-िबरंगे िचऽों से ही जगत शोिभत होता है। यह अिभव्यिक्तयां ही तो एक-दसूरे को िनकट लाने में संवाहक की भूिमका अदा करती हैं। हम भी इस पिऽका ‘अिभव्यिक्त’ के माध्यम से सभी को राजभाषा िहंदी के िनकट लाने के िलए ूयासरत हैं। िवगत सात अंकों के माध्यम से इस संवाद को ःथािपत करने का ूयास, सभी ने खबू सराहा है। इसी सराहना का ूमाण अिभव्यिक्त में ूकाशन हेतु ूाप्त होने वाली रचनाओं की सखं्या में अिभविृद्ध के रूप में फिलत हो रहा है। पाठकों से िमल रहे उत्साहजनक ूितसाद ने भी उत्ूेरक की भूिमका िनभाई है। हमें आशा है िक िवगत अंकों की तरह अिभव्यिक्त के आठवें अंक को भी आपसे उतना ही ूेम और अपनापन िमलेगा।

    -संपादक

  • 7 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    अंतिरक्ष उपयोग कें ि/ िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट में िहंदी गितिविधयाँ

    िवश्व िहंदी िदवस समारोह अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट (डेकू), अहमदाबाद में 10 जनवरी 2014 को िवश्व िहंदी िदवस मनाया गया। इस अवसर पर सैक तथा डेकू के कमर्चािरयों के िलए िहंदी िनबंध एवं तकनीकी अनुवाद ूितयोिगता का आयोजन िकया गया। सैक के िवबम हॉल में संपन्न इन ूितयोिगताओं में कमर्चािरयों ने उत्साहपूवर्क भाग िलया। उपिःथत ूितभािगयों ने कायार्लयीन एवं िनजी जीवन में राजभाषा िहंदी का अिधक से अिधक ूयोग करने तथा अन्य लोगों को भी िहंदी अपनाने के िलए ूेिरत करने का संकल्प दोहराया।

    सैक के विरष्ठ िहंदी अिधकारी ौी बी.आर.राजपूत ने बताया िक जोहान्सबगर् में आयोिजत नौवें िवश्व िहंदी सम्मेलन के दौरान यह देखने में आया िक िहंदी भारत की सीमाओं को पार करते हुए िवश्व के अनेक देशों में लोकिूयता के नये आयाम गढ़ रही है। िनबंध ूितयोिगता सिमित के संयोजक ौी वी.के.जैन, ूधान, ईटीएडी, सैक ने िहंदी के ूचार-ूसार के अनुकूल वातावरण तैयार करने में इन अनौपचािरक ूितयोिगताओं के आयोजन को महत्वपूणर् बताया।

    िहंदी कायर्शाला सैक और डेकू, अहमदाबाद के पिरचर वगर् के कमर्चािरयों (ूथम बैच) के िलए 24 िदसंबर 2013 को एकिदवसीय राजभाषा कायर्शाला का आयोजन िकया गया। कायर्शाला के उद्घाटन सऽ की अध्यक्षता ौी सी.एन.लाल, कल्याण अिधकारी/ ूधान-ईक्यूसीडी, सैक ने की। ौी सी.एन. लाल ने उपिःथत ूितभािगयों को संबोिधत करते हुए कहा िक संघ सरकार की राजभाषा िहंदी को हमें अपने दैनंिदन कामकाज में अपनाना चािहए और िहंदी में कायर् करने पर सरकार अपने कमर्चािरयों को ूोत्साहन ःवरूप अनेक पुरःकार ूदान करती है। उद्घाटन सऽ में ौी बी.आर.राजपूत, विरष्ठ िहंदी अिधकारी, सैक ने बड़े ही सरल और सुबोध शब्दों में िहंदी कायर्शाला की उपयोिगता और महत्व पर ूकाश डाला। उद्घाटन कायर्बम के पश्चात ्ौी राजपूत द्वारा कायर्शाला के ूथम सऽ में परःपर संवाद शैली में पिरचर वगर् के कमर्चािरयों द्वारा कायार्लय में िकए जाने वाले दैनंिदन कायोर्ं में िहंदी के ूयोग के अवसरों पर चचार् की। चाय काल के बाद िद्वतीय सऽ में छुट्टी, भिवंय िनिध, अंशदायी ःवाःथ्य सेवा योजना आिद से संबंिधत िविवध ूकार के फामोर्ं को िहंदी में भरने का अभ्यास कराया गया।

    सैक और डेकू, अहमदाबाद के पिरचर वगर् के कमर्चािरयों (िद्वतीय बैच) के िलए 19 फरवरी 2014 को एकिदवसीय राजभाषा कायर्शाला का आयोजन िकया गया। कायर्शाला के उद्घाटन सऽ की अध्यक्षता ौी सी. एन. लाल, कल्याण अिधकारी/ ूधान-ईक्यूसीडी, सैक ने की। ौी सी.एन. लाल ने उपिःथत ूितभािगयों को संबोिधत करते हुए कहा िक पिरचर वगर् के कमर्चािरयों को समूह ग में रखा गया है और उनसे अपेक्षा की जाती है िक वे कायार्लयीन कामकाज में अिधक िजम्मेदारी और सिबयता का ूदशर्न करें और अपने कामकाज में िहंदी का ूयोग करें। उद्घाटन सऽ में ौी बी.आर.राजपूत, विरष्ठ िहंदी अिधकारी, सैक ने

  • 8 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    बड़े ही सरल और सुबोध शब्दों में िहंदी कायर्शाला का पिरचय देते हुए ूितभािगयों को बताया िक अंतिरक्ष िवभाग ने िहंदी में अिधक से अिधक काम करने पर पिरचर एवं वाहन चालक वगर् के िलए अलग से ूोत्साहन योजना का ूावधान िकया है।

    गणतंऽ िदवस 26 जनवरी 2014 को अंतिरक्ष उपयोग कें ि पिरसर में गणतंऽ िदवस मनाया गया। इस अवसर पर तकनीकी अनुभागों में िहन्दी कायार्न्वयन को बढ़ावा देने के उदे्दँय से लागू ूोत्साहन योजना के अधीन तकनीकी ूभागों को चल-वैजयंती एवं ूमाणपऽ ूदान िकए गए और िहन्दी माह 2013 के दौरान अिधकतर कायार्लयीन कायर् िहन्दी में करने हेतु लागू ूोत्साहन योजना के अधीन ःटाफ सदःयों को पुरःकृत िकया गया। िवश्व िहंदी िदवस समारोह के िवजेता ूितभािगयों को भी इस अवसर पर िनदेशक, सकै द्वारा पुरःकार ूदान िकए गए। अंतिरक्ष िवभाग/ इसरो के िविभन्न कें ि/ यूिनटों में कायर्रत कमर्चािरयों के बच्चों के िलए लागू िहंदी योग्यता पुरःकार योजना के अंतगर्त भी कक्षा 10 में िहंदी िवषय में सवार्िधक अंक ूाप्त करने वाले बच्चों को भी नगद पुरःकार ूदान िकए गए।

    िहन्दी िवषय में सवार्िधक अंक ूाप्त करने वाले बच्चों को योग्यता पुरःकार सीबीएसई – कक्षा 10

    िवद्याथीर् का नाम कमर्चारी का नाम पुरःकार िशंजन दत्ता ौी सुजय दत्ता ूथम मधुली देवाशीष गोःवामी ौी देवाशीष रामनाथ गोःवामी िद्वतीय िबंदल आशुतोष अरूण ौी अरूण िबन्दल ततृीय

    गुजरात राज्य बोडर् – कक्षा 10 1 आयार् जॉयल मुकेश मुकेश डी. आयार् ूथम िहंदी माह के दौरान अिधक से अिधक सरकारी कायर् िहंदी में करने हेतु लाग ूूोत्साहन योजना

    नाम भाषा वगर् पुरःकार ौी मकेुश कुमार िमौ िहन्दी भाषा वगर् ूथम ौी बी.के. सुखवाणी िहन्दी भाषा वगर् िद्वतीय ौी मनोज के. िनमेश िहन्दी भाषा वगर् ततृीय ौी जैिमन शाह िहन्दीतर भाषा वगर् ूथम सुौी चंपा ठक्कर िहन्दीतर भाषा वगर् िद्वतीय ौी राजेश शास्तर्ी िहन्दीतर भाषा वगर् ततृीय ौी राजेन्ि गायकवाड़ िहन्दीतर भाषा वगर् ूोत्साहन ौी जे.एच. पटेल िहन्दीतर भाषा वगर् ूोत्साहन ौी िनकंुज डी. दवे िहन्दीतर भाषा वगर् ूोत्साहन तकनीकी ूभागों के िलए लाग ूिहंदी ूोत्साहन योजना के िवजेता ूभाग

    ूभाग का नाम पुरःकार ईएफपीडी ूथम पुःतकालय िद्वतीय एस.टी.पी.डी. ततृीय ताप िनवार्त ्परीक्षण ूणाली ूभाग ूोत्साहन जलवायु परीक्षण ूणाली ूभाग ूोत्साहन

  • 9 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    पयार्वरणीय परीक्षा ूणाली मुप ूोत्साहन िवश्व िहंदी िदवस के अवसर पर आयोिजत ूितयोिगताओं के पुरःकृत िवजेता ूितभागी

    नाम भाषावगर् ूितयोिगता पुरःकार ूतीक ए. कुमार जैन िहंदीतर तकनीकी अनुवाद

    िनबंध ूथम ततृीय

    िदनेश कुमार अमवाल िहंदी िनबंध तकनीकी अनुवाद

    ूथम ूोत्साहन

    िजतेन्ि खडेर् िहंदीतर िनबंध ूथम सत्यिूय िमत्तल िहंदी तकनीकी अनुवाद ूथम मुकेश कुमार िमौ िहंदी तकनीकी अनुवाद

    िनबंध िद्वतीय ूोत्साहन

    देवांग मांकड िहंदीतर िनबंध िद्वतीय िूतेश िसन्हा िहंदी िनबंध िद्वतीय बी.एन. शमार् िहंदीतर तकनीकी अनुवाद िद्वतीय अिमय िबश्वास िहंदीतर तकनीकी अनुवाद

    िनबंध ततृीय ूोत्साहन

    अिभषेक शुक्ला िहंदी िनबंध ततृीय आिशष सोनी िहंदीतर तकनीकी अनुवाद एवं िनबंध ूोत्साहन कमलेश कुमार बराया िहंदी तकनीकी अनुवाद ततृीय िदनेश नौलखा िहंदी तकनीकी अनुवाद एवं िनबंध ूोत्साहन अजय कुमार िसहं िहंदी िनबंध ूोत्साहन अपूवर् बी. ूजापित िहंदीतर तकनीकी अनुवाद ूोत्साहन आिदत्य पितंगे िहंदीतर िनबंध ूोत्साहन िजगर गांधी िहंदीतर तकनीकी अनुवाद ूोत्साहन िजतेन्ि कुमार िहंदी तकनीकी अनुवाद ूोत्साहन ज्ञान िसंह िहंदी तकनीकी अनुवाद ूोत्साहन पुरुषोत्तम गुप्ता िहंदी तकनीकी अनुवाद ूोत्साहन यजे्ञश आर. पटेल िहंदीतर तकनीकी अनुवाद ूोत्साहन रिव एन. वाघेला िहंदीतर िनबंध ूोत्साहन संगीत कुमार िमौ िहंदी िनबंध ूोत्साहन सुनील िसहं िहंदी तकनीकी अनुवाद ूोत्साहन नराकास ूितयोिगताओं में पुरःकार िवजेताओं को ूशिःत पऽ

    नाम ूितयोिगता का नाम पुरःकार मुकेश कुमार िमौ िटप्पण आलेखन एवं अनुवाद ूितयोिगता ूथम पुरःकार संगीत कुमार िमौा सामान्य ज्ञान ूितयोिगता ूथम पुरःकार पूजा कक्कड़ िचऽ देखो कहानी िलखो ूितयोिगता िवशेष (सांत्वना) पुरःकार आिशष सोनी आशुभाषण ूितयोिगता िवशेष (सांत्वना) पुरःकार

    व्याख्यानःसकै के एसईडीए के्षऽ के वैज्ञािनक ौी अिश्वनी कुमार द्वारा अंतिरक्ष यान ूचालन िबयाएं और अंतरमहीय अिभयान- एक पिरचय िवषय पर िहंदी में तकनीकी व्याख्यान िदया गया। अन्यः कें ि में 28/10/2013 से 02/11/2014 तक सतकर् ता सप्ताह, 20 अगःत, 2013 को सद्भावना िदवस, 4 माचर्, 2013 से 10 माचर्, 2013 तक कें ि में राष्टर्ीय सुरक्षा सप्ताह मनाया गया। इस दौरान ःटाफ सदःयों के िलए िहंदी/गुजराती/अंमेजी िनबंध लेखन तथा वकृ्तता ूितयोिगता माऽ िहंदी में आयोिजत की गई।

  • 10 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    ऊंमा की कुछ रोचक बातें लेखक ने यांिऽकी अिभयांिऽकी में ःनातक, भारतीय ूौद्योिगकी संःथान मंुबई से तापीय एवं तरल अिभयांिऽकी में ःनातकोत्तर एवं जवाहरलाल नेहरू िवश्विवद्यालय, नई िदल्ली से इटािलयन भाषा में ूवीणता का िडप्लोमा की िशक्षा महण की है। वतर्मान में अंतिरक्ष उपयोग कें ि के संरचना एवं तापीय िवशे्लषण ूभाग में वैज्ञािनक / अिभयंता - एसएफ के पद पर कायर्रत है। केन्िीय सिचवालय िहंदी पिरषद, नई िदल्ली द्वारा आयोिजत अिखल भारतीय वैज्ञािनक तथा तकनीकी िवषयों पर आपके लेख दो बार आचायर् सत्येन पुरःकार से सम्मािनत िकए गए हैं। हाल ही में ौी बराया जी को िहंदी पिऽका में ूकािशत तकनीकी िवषय पर ौषे्ठ िहंदी लेख के िलए राष्टर्पित द्वारा पुरःकृत िकया गया है।

    कमलेश कुमार बराया

    हमारे जीवन के िविभन्न िबया-कलापों में ऊंमा की महत्वपूणर् भूिमका होती है; लेिकन िफर भी कई सामान्य घटनाओं में हम ऊंमा की भूिमका एवं उसके व्यवहार से अनिभज्ञ होते हैं। इस लेख में पाठकों को कुछ रोचक ूश्नों एवं जानकािरयों द्वारा हमारे जीवन में ऊंमा से संबंिधत पहलुओं से पिरिचत कराने का ूयास िकया गया है।

    क्या मोटे कांच की दीवार से बना चाय का िगलास अिधक सुरिक्षत है ? हमने कई बार अनुभव िकया है िक गमर् चाय या अन्य पेय डालने से कभी-कभी कांच का िगलास चटक जाता है। उपयुर्क्त ूश्न का सही उत्तर जानने के िलए हमें पहले यह सोचना होगा िक गमर् चाय से कांच का िगलास क्यों चटक जाता है।

    जब हम कांच के िगलास में गमर् चाय डालते हैं तो उसके अंदर वाली सतह चाय के तापमान के कारण गमर् हो जाती है; जबिक बाहरी सतह अपेक्षाकृत ठण्डी रहती है। कांच ऊंमा का अच्छा चालक नहीं है, इसिलए कांच की मोटी दीवार में चाय द्वारा दी गई ऊंमा आंतिरक सतह से बाहरी सतह तक समुिचत माऽा में नहीं पहंुच पाती है। ऊंमा की िभन्न माऽाओं के कारण दोनों दीवारों के तापमान में भी अिधक अंतर हो जाता है। अिधक तापमान के कारण आंतिरक दीवार का फैलाव अिधक होता है; जबिक कम तापमान के कारण बाहरी दीवार का फैलाव बहुत कम होता है। कांच के िगलास की आंतिरक एवं बाहरी सतहों पर िभन्न फैलाव के कारण कांच के अंदर ूितबल उत्पन्न हो जाते हैं। जब ये ूितबल इतने अिधक हो जाते हैं िक कांच इन्हें सहन नहीं कर सकता है तो कांच की दीवार चटक जाती है।

    मोटे कांच की दीवार का तापीय ूितरोध अिधक होता है अथार्त यह ऊंमा को आंतिरक सतह से बाहरी सतह की ओर जाने से रोकने में अिधक समथर् होगी, िजससे दोनों सतहों पर तापमानों में अिधक अंतर होगा पिरणाम ःवरूप

    दोनों सतहों के फैलाव में अिधक अंतर होगा और िगलास की दीवार के चटकने की संभावना भी अिधक होगी।

    इसके िवपरीत पतले कांच की दीवार का तापीय ूितरोध अपेक्षाकृत कम होता है इसिलए दीवार की आंतिरक एवं बाहरी सतहों पर तापमानों में अंतर भी कम होने के पिरणामःवरूप पतले कांच की दीवारों के तापीय फैलाव में कम अंतर होगा। पतले कांच की दीवार में तापीय फैलाव में कम अंतर के कारण उसमें उत्पन्न ूितबल भी कम होता है इसिलए गमर् चाय के कारण पतले कांच की दीवार वाले िगलास के चटकने की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है। इस ूकार गमर् चाय के िलए पतले कांच की दीवार से बना िगलास अिधक सुरिक्षत है। बनर्र पर सीधे पानी उबालने के िलए केिमःट पतले कांच से बने पाऽों का ही उपयोग करते हैं।

    िकसी पाऽ में पानी को गमर् करने के िलए हम उसके नीचे वाले तल को गमर् करते हैं, क्या पानी या पेय को ठण्डा करने के िलए भी िनचले भाग से ही ठण्डा करना चािहए ?

    जब हम िकसी पाऽ में पानी को गमर् करते हैं तो पाऽ को सीधे आग की लौ के ऊपर रखते हैं। ऐसा करना ठीक भी है क्योंिक पाऽ के नीचे की हवा गमर् होकर हल्की हो जाती है। आिकर् िमड़ीज के उत्प्लावकता के िसद्धांत के अनुसार गमर् हवा ऊपर की ओर उठने लगती है और थोड़े समय में ही गमर् हवा संपूणर् पाऽ को चारों ओर से घेर लेती है िजससे पाऽ में रखा पानी तेजी से गमर् होने लगता है। इस तरह पाऽ को लौ के ऊपर रखने से हम आग की लौ का उपयोग बेहतर तरीके से कर पाते हैं।

    लेिकन हमें बंद पाऽ में पानी या िकसी पेय को ठण्डा करना हो तो क्या पाऽ को बफर् के ऊपर रखना चािहए या बफर् को पाऽ के ऊपर रखना चािहए ? हममें से कुछ ऐसा सोच सकते हैं िक पाऽ को बफर् के ऊपर रख देना चािहए

  • 11 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    लेिकन ये सही तरीका नहीं है; क्योंिक बफर् के चारों ओर की हवा ठण्डी होकर नीचे ही रहती है तथा शेष पाऽ चारों ओर से गमर् हवा से ही िघरा हुआ होने के कारण पाऽ में रखा पेय तेजी से ठण्डा नहीं हो पाएगा। अब अगर हम पाऽ को बफर् के ऊपर रखने के बजाय बफर् को पाऽ के ऊपर रख देते हैं तो उस दशा में बफर् को घेरी हुई हवा ठण्डी होकर नीचे की ओर जाकर संपूणर् पाऽ को घेर लेती है तथा यह ठण्डी हवा पाऽ में रखे पेय को अिधक तेजी से ठण्डा करने में सहायक होती है। इसिलए िकसी पाऽ में बंद पेय को बफर् से ठण्डा करने के िलए बफर् को पाऽ के ऊपर रखना बेहतर होगा।

    वकृ्षों के नीचे की हवा अपेक्षाकृत ठण्डी क्यों होती है ? गमीर् के िदनों में हम सभी वकृ्षों के नीचे ठण्डक का अनुभव करते हैं। सवरू् थम तो वकृ्ष हमें सीधे सौर िकरणों से बचाते हैं, इस कारण वकृ्षों के नीचे ज़मीन का तापमान भी अपेक्षाकृत कम होता है। वकृ्षों की पित्तयों में उपिःथत नमी का सतत वांपीकरण होता रहता है। वांपीकरण के िलए ऊंमा की आवँयकता होती है, पित्तयां उनके आसपास उपिःथत हवा से ही यह ऊंमा ले लेती है। इस कारण पित्तयों के आसपास उपिःथत हवा का तापमान अपेक्षाकृत कम हो जाता है, यह हवा ठण्डी होने के कारण नीचे की ओर आने लगती है जो हमें ठण्डक ूदान करती है।

    वकृ्षों की पित्तयों में नमी की आपूितर् उसकी जड़ों द्वारा की जाती है। वकृ्ष की जड़ें आिर् िमट्टी द्वारा िघरी हुई रहती हैं। िमट्टी की यह आिर्ता वकृ्ष की जडों एवं तने द्वारा केिशका ूभाव के कारण वकृ्ष की पित्तयों तक पहंुचती रहती है। केिशका ूभाव का हमारे शरीर के तापिनयंऽण में भी महत्वपूणर् भूिमका होती है। त्वचा में नमी की आपूितर् एवं रक्त संचरण में भी केिशका ूभाव की महत्वपूणर् भूिमका होती है। मानव द्वारा िनिमर्त कई उपकरणों में भी केिशका ूभाव की महत्वपूणर् भूिमका होती है। हमारे घरों एवं कायर् ःथलों पर उपयोग में आने वाले लैपटॉप कंप्यूटरों की केन्िीय संसाधन इकाइयों (सी.पी.यू.) के तापिनयंऽण के िलए ूयुक्त हीट िसंक में केिशका ूभाव का उपयोग िकया जाता है। लैपटॉप कंप्यूटरों के हीट िसंक में ऊंमा के दक्षतापूवर्क ःथानांतरण के िलए एक तांबे की नली के आकार की ूयुिक्त का उपयोग िकया जाता है िजसे ऊंमानली कहा जाता है। इस ऊंमानली की आंतिरक सतहों पर िसंटडर् धातु िचपका होता है िजसे केिशका बत्ती

    कहा जाता है। केिशका बत्ती के अितिरक्त, ऊंमानली में अल्प माऽा में पानी और उसकी वांप उपिःथत रहते हैं। सी.पी.यू. की ऊंमा से केिशका बत्ती में उपिःथत पानी वांप बनकर नली के दसूरे छोर पर जाकर संघिनत हो जाती है, िजसे एक छोटे पंखे द्वारा ठण्डा रखा जाता है। संघिनत िव केिशका बत्ती में केिशका ूभाव द्वारा वापस ऊंमा ॐोत की ओर पहंुचा िदया जाता है। इस ूकार वांपीकरण और संघनन के चब द्वारा ऊंमा का सतत ःथानांतरण होता रहता है और सी.पी.यू का तापमान िनधार्िरत सीमाओं में ही बना रहता है। अंतिरक्ष में पथृ्वी का चक्कर लगाते हुए कृिऽम उपमहों में िविभन्न इलेक्शॉिनकी घटकों के ताप िनयंऽण के िलए भी ऊंमानिलयों का उपयोग िकया जाता है।

    लेपटॉप कंप्यूटरों में ऊंमानिलयों द्वारा सीपीयू का शीतलन

    इस ूश्न की शुरूआत हमने वकृ्ष से की थी; लेिकन इसका अंत कंप्यूटर के सी.पी.यू. की चचार् से हो रहा है। िवज्ञान एवं तकनीकी िवषयों की यह एक महत्वपूणर् खूबी है िक एक ूश्न का उत्तर हमें िविभन्न के्षऽों में ूवेश करा देता है।

    एिफल टॉवर की ऊंचाई िकतनी है ? यह ूश्न सुन कर हमें ऐसा लग सकता है िक हमारे सामान्य ज्ञान की परीक्षा ली जा रही है; लेिकन इस ूश्न के पिरशुद्ध उत्तर के िलए हमें सामान्य िवज्ञान की जानकारी होना भी आवँयक है।

    एिफल टॉवर की ऊंचाई हमेशा समान नहीं होती है। यह मौसम के अनुसार बदलती रहती है, क्योंिक इतनी लंबी टॉवर की ऊंचाई उसके तापमान पर िनभर्र करती है। हम जानते हैं िक सामान्य धातुएं गमर् होकर फैलती हैं। धातुओं के फैलाव का उनके तापीय ूसार गुणांक से अनुमान लगाया जा सकता है। एिफल टॉवर की ऊंचाई लगभग 300 मीटर से अिधक है। एक 300 मीटर की ःटील की संरचना का तापमान 1 ⁰C बढ़ाने पर उसकी

  • 12 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    लंबाई में 3 िमिलमीटर की विृद्ध हो जाती है। गमीर् के मौसम में पेिरस शहर में एिफल टॉवर जैसी संरचना का तापमान शून्य से 40 ⁰C ऊपर तक पहंुच सकता है। इसी तरह सिदर्यों के मौसम में इस संरचना का तापमान शून्य से 10 नीचे तक पहंुच सकता है। इस तरह मौसम के ूभाव के कारण से एिफल टॉवर को 50 ⁰C के उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है। तापमान के इस उतार-चढ़ाव के कारण एिफल टॉवर की ऊंचाई में 50 गुना 3 अथार्त 150 िमिलमीटर या 15 सेंटीमीटर तक का पिरवतर्न हो सकता है।

    ृांस की राजधानी पेिरस में एिफल टॉवर

    तापमान में पिरवतर्न के कारण एिफल टॉवर की ऊंचाई में होने वाले पिरवतर्न का पता लगाने के िलए इनवार िमौ धातु से बने तार का उपयोग िकया गया था। इनवार से बने तार की लंबाई पर तापमान का ूभाव नगण्य होता है। इसी कारण से इस िमौ धातु का उपयोग उपमहों में संवेदनशील उपकरण जैसे कैमरा संरचना इत्यािद के िनमार्ण के िलए िकया जाता है। तापमान के कारण इस िमौ धातु से बने उपकरणों का आकार लगभग 'इनवेिरयेबल' अथार्त िःथर रहता है इसिलए इसे इनवार के नाम से जाना जाता है।

    बंद िखड़की से हवा का झोंका ! सदीर् के मौसम में हमारे घर के कमरों की िखड़िकयाँ पूरी तरह से बंद होने तथा उनमें कोई दरार नहीं होने के बावज़ूद भी हमें िखड़की के समीप हवा का ूवाह महसूस होता है। यह बात सुनने में अजीब ज़रूर लगती है लेिकन इसमें कोई आश्चयर् नहीं है।

    कमरों में हवा कभी िःथर नहीं होती है। कमरों में हवा का अदृँय ूवाह सतत चलता रहता है। यह ूवाह कमरे के िविभन्न भागों में तापमानों में िभन्नता के कारण होता है। हम जानते हैं िक गमर् हवा हल्की होकर ऊपर उठती है

    जबकी ठण्डी हवा अपेक्षाकृत भारी होने के कारण नीचे की ओर ूवािहत होती है।

    सदीर् के मौसम में कमरे की िखड़की वाली दीवार का तापमान बाहरी ठण्डी वायु के संपकर् में होने के कारण कमरे की अंदर वाली दीवारों के तापमान से कम होता है। कमरे के भीतर िखड़की वाली दीवार के समीप हवा उससे सीधे संपकर् में होने के कारण ठण्डी हो जाती है। यह ठण्डी हवा भारी होने के कारण कमरे के फशर् की ओर ूवािहत होती है। ठण्डी हवा का यह ूवाह अपेक्षाकृत गमर् हवा को कमरे की छत की ओर अथार्त ऊपर की ओर धकेलता है। इस तरह कमरे में िखड़की वाली दीवार के समीप वायु का ूवाह ऊपर से नीचे की ओर हो जाता है यहीं कारण है िक हमें सदीर् के िदनों में बंद कमरे में हमारे पैरों के ऊपर से ठण्डी हवा के ूवाह का अनुभव होता है।

    खुरदरी बफर् पर क्यों अिधक तेजी से िफसलते हैं ? हमारा सामान्य अनुभव है िक हम खुरदरे फशर् की तुलना में िचकने समतल फशर् पर आसानी से िफसल जाते हैं। लेिकन अगर हम बफर् पर िफसलने की बात करें तो क्या बफर् के समतल िचकने फशर् पर भी िफसलना आसान होता है? लेिकन हमारे अनुमान के िवपरीत एक ःलेज खुरदरी बफर् की फशर् पर अिधक आसानी से िफसल जाती है। िजनको कभी ःलेज खींचने का मौका िमला होगा तो उन लोगों ने जरूर इस बात का अनुभव िकया होगा; लेिकन यह कैसे संभव हो पाता है िक खुरदरी बफर् , समतल बफर् की तुलना में अिधक िफसलन वाली होती है। हमें यह समझना चािहए िक बफर् की सतह समतल एवं िचकनी होने के कारण िफसलन वाली नहीं होती है। बफर् की सतह िफसलन वाली इसिलए होती है क्योंिक दाब बढ़ाने पर बफर् का गलनांक कम हो जाता है।

    जब ःलेज समतल िचकनी फशर् पर चलती है, तब ःलेज का वजन बफर् के बड़े के्षऽफल द्वारा वहन िकया जाता है। िजससे बफर् पर इतना दबाव नहीं बन पाता है िक वह िपघल जाए। िकसी सतह पर दाब उस सतह के संपकर् के्षऽफल के व्युत्बमानुपाती होता है। जब एक ःलेज खुरदरी फशर् पर चलती है तो उसकी सतह का बफर् से संपकर् बहुत कम के्षऽ पर होता है। ःलेज का पूरा वजन बफर् के कुछ िबंदओुं द्वारा ही वहन िकया जाता है। ःलेज का वजन बहुत कम के्षऽफल पर िगरने से उन के्षऽों पर बफर् पर बहुत अिधक दाब हो जाता है िजससे बफर् कम तापमान पर भी िपघल जाती है। बफर् के िपघलने से ःलेज और बफर् की खुरदरी फशर् के बीच में पानी की एक पतली परत बन

  • 13 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    जाती है। इस पानी की परत के कारण ःलेज खुरदरी फशर् पर भी आसानी से िफसल जाती है।

    दाब के कारण बफर् का गलनांक कम हो जाने से हमें यह भी ःपष्ट हो जाता है िक जब हम बफर् के दो लोंदों को साथ में लाकर दबाते हैं तो वे जमकर एक हो जाते हैं।

    नंगे पैर जलते हुए अंगारों पर चलना कैसे संभव होता है ? नंगे पैरों से लाल गमर् अंगारो पर िबना जले चलना कैसे संभव हो पाता है। इस ूश्न का उत्तर जानने के िलए हमें कोयले के बारे में जानना होगा। कोयला शुरू में लकड़ी के टुकड़े के समान होता है। लकड़ी में काफ़ी माऽा में काबर्न, कुछ वांपशील काबर्िनक पदाथर् तथा थोड़ी माऽा में पानी होता है।

    वांपशील काबर्िनक अणु एक काबर्न आधािरत अणु होता है जो गमर् करने पर वांप में पिरवितर्त हो जाता है। पेशोल एक वांपशील काबर्िनक रसायन होता है। हम जब लकड़ी जलाते हैं तो वांपशील काबर्िनक अणुओं को धुएं के रूप में उठते हुए देखते हैं। आग की ऊंमा के कारण वांपशील काबर्िनक पदाथोर्ं एवं जल का वांपीकरण हो जाता है। आग, करतब िदखाने के थोड़े समय पहले ही लगा ली जाती है िजससे करतब िदखाने के समय कोयला लगभग शुद्ध काबर्न कोयले में बदल चुका होता है।

    अगर हम इस शुद्ध काबर्न कोयले को हाथ में उठा कर देखें तो यह हमें बहुत ही हल्का महसूस होगा। काबर्न एक हल्का तत्व है, इसिलए काबर्न-फाइबर पदाथर् से बने बाइकों के ृेम एवं टेिनस के रैकट वजन में बहुत हल्के होते हैं। कोयले में अिधकतर हल्के काबर्न के अणु एवं हवा से भरी खाली जगह होती है, इसके अितिरक्त इसमें पोटेिशयम एवं कैिल्शयम जैसे तत्व भी उपिःथत होते हैं जो िक राख में शेष बच जाते हैं। ऐसी काबर्न संरचना का हल्का पदाथर् ऊंमा का बहुत खराब चालक होता है। ऐसे ूदीप्त कोयले को जब हम त्वचा से ःपशर् करते हैं तो कोयले से त्वचा में ऊंमा ःथानांतरण में काफ़ी समय लगता है। अगर कोयले लाल गमर् धातु के बने होते तो ःपशर् करने पर तुरंत बड़ी माऽा में ऊंमा का ःथानांतरण हो जाता और हमारी त्वचा जल जाती। इसके अितिरक्त कोयले की राख एक अच्छा ऊंमारोधी पदाथर् है।

    कई लोग कोयले की राख से बफर् के डब्बों को ऊंमारोधी बनाने के िलए िकया करते थे। लाल गमर् कोयले जब

    कोयले की राख से ढके हो तो ऊंमा ःथानांतरण और कम हो जाएगा।

    करतब िदखाने वाला व्यिक्त अंगारों पर तेजी से चलता है, इसिलए अंगारों से पैरों की त्वचा का ःपशर् बहुत अल्प अविध के िलए ही होता है। अगर हम अंगारों पर काफ़ी समय के िलए िःथर खड़े रहे तो िनिश्चत रूप से हमारी त्वचा जल जाएगी। करतब िदखाने वाला व्यिक्त अंगारों पर तेज चलते हुए कोयले के ऊपर कुल समय को सीिमत कर देता है; इसिलए जलते हुए कोयले पर चलने के बावजूद भी उसके पैर जल नहीं पाते हैं।

    हथेली पर आग आपने जादगूरों को हथेली पर आग जलाकर उससे खेलते हुए देखा होगा। इस तरह के खेल से आकिषर्त होने का मुख्य कारण हमारी यह सोच होती है िक आग अत्यिधक गरम होती है; लेिकन ऐसा कोई जरूरी नहीं है।

    ऐसी आग जलाने के िलए हम रुई के एक छोटे टुकड़े को गेंद के आकार में बना लेंगे। अब हम एक पाऽ में इस ूकार का घोल लेंगे; िजसमें काबर्न डाई सल्फाइड और काबर्न टेशा क्लोराइड 2:1 के अनुपात में हो। अब रूई के टुकड़े को इन रसायनों के िमौण के घोल में डुबो कर बाहर िनकाल देंगे, इसके बाद रूई को थोड़ा दबाकर िनचोड़ देंगे, िजससे अितिरक्त रसायन पथृक हो जाएगा। अब इस रूई के टुकड़े को जलाने पर िनकलने वाली ज्वाला से हमारा हाथ मुिँकल से गमर् होगा। इस जलते हुए रूई के टुकड़े को हम एक हाथ से दसूरे हाथ में आसानी से उछाल सकते है।

    इस ठण्डी आग के पीछे क्या रहःय है इसे हमें जानना चािहए। काबर्न डाई सल्फाइड दहन के दौरान कम ऊंमा उत्पन्न करती है। इसके अितिरक्त काबर्न डाई सल्फाइड की वांप का दाब अिधक होता है; इसिलए इसकी वांप रूई की गेंद के अनावतृ्त भाग को ढक देती है, िजससे रूई की सतह का वायु के साथ सीधा संपकर् नहीं हो पाता है। दसूरी ओर काबर्न टेशा क्लोराइड का वांप दाब अपेक्षाकृत कम होता है तथा यह दहनशील नहीं होती है, इसिलए यह हथेली के नज़दीक नीचे की ओर एकिऽत हो जाती है। इस तरह काबर्न टेशा क्लोराइड हथेली को जलने से बचाती है।

    ीुवीय भालू का ताप िनयंऽण हम सभी जानते हैं िक उत्तरी ीुव के आकर् िटक के्षऽ पर बफर् जमा देने वाली ठण्ड पड़ती है, जहां पर वषर्भर तापमान

  • 14 अंतिरक्ष उपयोग कें ि तथा िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट

    अिभव्यिक्त, अंक - 8 2014

    शून्य से भी काफ़ी नीचे होता है। ऐसे वातावरण में ीुवीय भालू कैसे जीिवत रह पाते हैं ? ीुवीय भालू आकर् िटक के्षऽ में जीिवत रहने के िलए कई तरीकों से अपने शरीर का तापमान बनाए रखते हैं।

    ीुवीय भालू

    इनके पैर के तलवे मुलायम पतले बालों से ढ़के रहते हैं जो बफर् पर चलते समय ऊंमारोधी कवच का काम करते हैं। इसी तरह इनके शरीर की त्वचा भी लम्बे बालों से ढकी रहती है। ये लंबे बाल ऊंमारोधी कवच के रूप में इनके शरीर की गमीर् को बाहर िनकलने से रोकते हैं। जब ये बाल गीले हो जाते हैं तो ये साथ में िचपककर एक जलरोधी आवरण बना लेते है जो भालू को ठण्डे पानी के ूभाव से बचा लेता है। इनके शरीर की त्वचा के नीचे मोटी चबीर् की परत जमी होती है, यह चबीर् की परत ऊजार् भण्डारण के साथ-साथ ऊंमारोधी कवच के रूप में भी कायर् करती है।

    ीुवीय भालूओं का शरीर बड़ा होता है,िजससे इनके शरीर के बाहरी सतह का के्षऽफल एवं शरीर के आयतन का अनुपात न्यूनतम रखा जा सके। जब यह अनुपात न्यूनतम होता है तब इनकी त्वचा द्वारा वातावरण में ऊंमा की हािन भी कम हो जाती है। इस ूकार ये शरीर में उत्पन्न ऊंमा को संरिक्षत कर सकते हैं, िजससे शरीर का तापमान बनाए रखने में मदद िमलती है। इनके कानों का आकार भी छोटा होता है िजससे कानों की त्वचा से वातावरण में ऊंमा की हािन न्यूनतम हो जाती है।

    इसके िवपरीत गमर् ूदेशों में रहने वाले जानवर पतले होते है िजससे इनके शरीर के के्षऽफल एवं आयतन का अनुपात अिधक हो जाता है पिरणामःवरुप ये वातावरण में अिधक माऽा में ऊंमा का उत्सजर्न करके अपने शरीर को ठण्डा रख सकते हैं। इसी कारण गमर् रेिगःतान में रहने वाली िछपकली लंबी एवं पतली होती है।

    कागज की कड़ाही ! घरों में ःटील एवं एलुिमिनयम के बतर्नों में पा�